Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Shwetambar Agam Guna Manjusha
Author(s): Gunsagarsuri
Publisher: Jina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai

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Page 3
________________ ३) श्री जीवाजीवाभिगम सूत्र :- यह ठाणांगसूत्र का उपांग है। जीव और अजीव के बारे मे अच्छा विश्लेषण किया है। इसके अलावा जम्बुद्विप की जगती एवं विजयदेव कि हुइ पूजा की विधि सविस्तर बताई है। फिलाल जिज्ञासु ४ प्रकरण, क्षेत्रसमासादि जो पढ़ते है वह सभी ग्रंथे जीवाभिगम अपरग्च पन्नवणासूत्र के ही पदार्थ है। यह आगम सूत्र ४७०० श्लोक प्रमाण का है। ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय ४) श्री प्रज्ञापना सूत्र- यह आगम समवायांग सूत्र का उपांग है। इसमे ३६ पदो का वर्णन है। प्रायः ८००० श्लोक प्रमाण का यह सूत्र है। ५) ६) श्री सुर्यप्रज्ञप्ति सूत्र : श्री चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र :- इस दो आगमो मे गणितानुयोग मुख्य विषय रहा है। सूर्य, चन्द्र, ग्रहादि की गति, दिनमान ऋतु अयनादि का वर्णन है, दोनो आगमो मे २२००, २२०० श्लोक है। ७) श्री जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र :- यह आगम भी अगले दो आगमों की तरह गणितानुयोग है। यह ग्रंथ नाम के मुताबित जंबूद्विप का सविस्तर वर्णन है । ६ आरे के स्वरूप बताया है । ४५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है। ९) ८) श्री निरयावली सूत्र :- इन आगम ग्रंथो में हाथी और हारादि के कारण नानाजी का दोहित्र के साथ जो भयंकर युद्ध हुआ उस मे श्रेणिक राजा के १० पुत्र मरकर नरक मे गये उसका वर्णन है। श्री कल्पावतंसक सूत्र :- इसमें पद्मकुमार और श्रेणिकपुत्र कालकुमार इत्यादि १० भाइओं के १० पुत्रों का जीवन चरित्र है। १०) श्री पुष्पिका उपांग सूत्र :- इसमें १० अध्ययन है। चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बहुपुत्रिका देवी, पूर्णभद्र, माणिभद्र, दत्त, शील, जल, अणाढ्य श्रावक के अधिकार है। ११) श्री पुष्पचुलीका सूत्र :- इसमें श्रीदेवी आदि १० देवीओ का पूर्वभव का वर्णन है। १२) श्री वृष्णिदशा सूत्र :- यादववंश के राजा अंधकवृष्णि के समुद्रादि १०पुत्र, १० मे पुत्र वासुदेव के पुत्र बलभद्रजी, निषधकुमार इत्यादि १२ कथाएं है। अंतके पांचो उपांगो को निरियावली परचक भी कहते है। दश प्रकीर्णक सूत्र १) श्री चतुशरण प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में अरिहन्त, सिद्ध, साधु और गच्छधर्म के आचार के स्वरूप का वर्णन एवं चारों शरण की स्वीकृति है । २) श्री आतुर प्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस आगम का विषय है अंतिम आराधना और मृत्युसुधार ३) श्री भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में पंडित मृत्यु के तीन प्रकार ( १ ) भक्त परिज्ञा मरण (२) इंगिनी मरण (३) पादोपगमन मरण इत्यादि का वर्णन है । ६) श्री संस्तारक प्रकीर्णक सूत्र :- नामानुसार इस पयन्ने में संथारा की महिमा का वर्णन है । इन चारों पयन्ने पठन के अधिकारी श्रावक भी है। ७) श्री तंदुल वैचारिक प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने को पूर्वाचार्यगण वैराग्य रस के समुद्र के नाम से चीन्हित करते है । १०० वर्षों में जीवात्मा कितना खानपान करे इसकी विस्तृत जानकारी दी गई है। धर्म की आराधना ही मानव मन की सफलता है। ऐसी बातों से गुंफित यह वैराग्यमय कृति है। ८) श्री चन्दाविजय प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु सुधार हेतु कैसी आराधना हो इसे इस पयन्ने में समजाया गया है। ९) श्री देवेन्द्र-स्तव प्रकीर्णक सूत्र :- इन्द्र द्वारा परमात्मा की स्तुति एवं इन्द्र संबधित अन्य बातों का वर्णन है। १०) श्री मरणसमाथि प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु संबधित आठ प्रकरणों के सार एवं अंतिम आराधना का विस्तृत वर्णन इस पयन्ने में है। १०B) श्री महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में साधु के अंतिम समय में किए जाने योग्य पयन्ना एवं विविध आत्महितकारी उपयोगी बातों का विस्तृत वर्णन है। MO६५६६५६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ श्री आगमगुणमंजूषा H

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