Book Title: Aetihasik Ras Sangraha Part 4 Author(s): Vijaydharmsuri Publisher: Abhaychandra Bhagwandas Gandhi View full book textPage 6
________________ Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orge ध जीऐ नमः॥ उदय अधिक महिमाघ । श्री मनमोहन पासासंघ सलाद का सुखसंप दिवऊवासासनियर बरहानपुरम मणा। प्ररनिदामोदाप्रीनिंप्रति प्रमोद शत्रयाणामय संघ निवडुजिन दो वीसा भारती में कर साधना। विहरमानवली वी सा३॥ करमषपी मुगनिवस्या(सिद्धासिय नेत्राने ग्रह निसिधारा हो । अनेन ज्ञानगुणावन॥४॥ बासर निश्माला सोदरचं नृपायानार जिनितवंदीश कलिकालिंजिन रूप॥५॥कल सूत्र सोतास पावर सारावाचक गु पंचवीस सिरासुखकारीय दीपमा मुनाहो स्वहावमानय्वदीया सत्तावीस लगे ॥ विप्रवचन वितिश्राली इनिधीगड पगार सामुखिनिनने सुऐ।। शिव सुखनोदाता ॥८॥ प्रवचननीचधिकारिए। (शास निसो हतिने हा समरीसा वितसारदा सकलमिलि ॥राम सारंगाफ मनो॥ देवतादानवमानवा वित्त र ज्योतिषा जेहरे डुपचाराधना। सुखकारी हो श्ते हरे॥१॥ सालडरजल बिजएगा जे हनो एक ससा विर। विरहसंयो गिंजा पायो। बाहु सावरे ॥१॥ कानपकर वृद्ध वादे सिंह से नरे । इत्यादिकजे क विजनामु सिधा यो मनेहरे॥१॥ अबधिमंविद्याहरु नागा यनरगिंगाथयो। एहनबंधसुतारे ||१३|| वीरशासनपट्टा वाणी। पहला धम्मसामिरे। बीजानं बजाणी विरम केवली तिरा मरे ||१४|| बस वसा मित्री जोनमा। वो घोसपल वस्त्र रिशेपचपरिप રાસકાર કવિ દર્શનવિજયજીએ સ’, ૧૬૭૯માં પેાતાના હાથે લખેલી પ્રતિના પ્રથમ પત્રના ફોટા.Page Navigation
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