Book Title: Adhyatmik Poojan Vidhan Sangraha Author(s): Ravindra Publisher: Kanjiswami Smarak Trust Devlali View full book textPage 8
________________ आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह 7 'युगल' कोटा एवं डॉ. हुकमचन्दबी भारिल्ल जयपुर अग्रगण्य है। युगलजी कृत देव - शास्त्र - गुरु पूजन तो सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज में एकछत्र राज्य कर रही है। जड़कर्म घुमाता है मुझको, यह मिथ्या भ्रान्ति रही मेरी । मैं रागी-द्वेषी हो लेता, जब परिणति होती है जड़ की ॥ इन पक्तियों में दो द्रव्यों के कर्ता-कर्म की भ्रांति का प्रक्षालन सहज हो गया है। इसी पूजा में गुरु का स्वरूप दर्शानेवाली पंक्तियाँ आज सारी समाज की पथ प्रदर्शक बनी हुई हैं। बाबूजी द्वारा रचित "सिद्ध पूजन" का स्मरण मात्र अध्यात्म रसिक बनों को रोमांचित कर देता है। माननीय डॉ. हुकमचंदजी भारिल्ल ने भी अपनी मात्र चार पूजनों में क्रमबद्धपर्याय, सात तत्त्व संबंधी भूल, इन्द्रियों तथा प्रकाश से ज्ञान की अनुत्पत्ति आदि गहन बिन्दुओं का समावेश किया है। कविवर राजमलजी पवैया ने तो पूजन साहित्य की रचना को मानो अपना व्यसन बना लिया है। सैकड़ों पूजनों और विधानों की रचना करने पर भी ऐसा लगता है कि अभी तक उनका मन नहीं भरा। उनकी रचनाओं में भी कहीं-कहीं जैन सिद्धांतों के सूक्ष्म रहस्य एवं अध्यात्म रस का सुन्दर परिपाक दृष्टिगोचर होता है। इसके अतिरिक्त अन्य लेखकों द्वारा रचित पूजनें भी उपलब्ध हैं, जिनमें भावपक्ष और कलापक्ष का स्तर कम अधिक होने पर भी वे युगलजी की परम्परा की अनुगामी सी दिखाई पड़ती हैं। गत चार-पाँच वर्षों से ब्र. रवीन्द्रजी द्वारा रचित कुछ स्तवन और पूजनें मेरी जानकारी में आईं, जिनका संकलन मौ से प्रकाशित “जिनेन्द्र आराधना” में किया गया था । देव-शास्त्र-गुरु पूजन के अष्टकों तथा शान्तिनाथ पूजन की जयमाला ने तो मेरे भक्ति भावों में नया रस भरकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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