Book Title: Adhyatmasara
Author(s): Yashovijay, Gambhirvijay
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 13
________________ श्रीगुरुभ्यो नमः। श्रह। // अध्यात्मसारः॥ EXISTIRREGUISTILISTASISK ।सटीकः। जयति वीरनाथस्य देशनामृततोयधिः। अध्यात्मशीकरैर्जन्तोषुष्कषायामयापहः // 1 // नौमि परोपकृन्मुख्यं यशोविजयवाचकम् / यदध्यात्मोपदेशेन मादृशोऽजनि तदचिः॥॥ नत्वा सर्वविदः सर्वान् श्रुताधारांश्च शारदाम् / क्रियतेऽध्यात्मसारेऽत्र व्याख्या गुरुप्रसादतः // 3 // श्रीयशोविजयवाचकवर्याः सप्ततिः प्रबन्धेरकविंशत्यधिकारैरेतच्छास्त्रं कृतवन्तः / तत्र प्रथमप्रबन्धे प्रथमाधिकारे ग्रन्यादौ विघ्नोपशान्तये मंगलमाचरणीयमिति पञ्चनिःश्लोकैः स्वानीष्टदेवतानमस्कारादिरूपं मंगलं कृतवन्तः। कृतमंगखेनाप्यनिधेयं वाच्यं इत्येकेन श्लोकेनानिधेयसूचनां कृतवन्तः / झापितानिधेयेनापि श्रोतुः संमुखत्वसंपादनाय शास्त्रमहिमा वक्तव्य इत्यष्टादशनिः श्लोकैरध्यात्ममहिमानमुक्तवन्तः / दर्शितमहिनापि अनिधेयस्वरूपं प्रतिपादनीयमिति हितीयेऽधिकारे एकोनत्रिंशता श्लोकैरध्यात्मस्वरूपमुक्तवन्तः। पुनश्च विज्ञाताध्यात्मस्वरूपेण दलत्यागो विधेय इति / वाविंशत्या श्लोकैर्दनत्यागाधिकारः तृतीयोऽकारि। त्यक्तदंजेन जवस्वरूपं चिन्तनीयमिति सप्तविंशत्या श्लोकैनव ACCIA

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