Book Title: Acharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth Author(s): Jinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan Publisher: Jinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan View full book textPage 6
________________ इस ग्रंथ में संपूर्ण दिगंबर जैन ग्रंथोंपर निबंध हैं यह संपादकों का दावा नहीं है और वह काल तथा पृष्ठों की मर्यादा में अशक्यप्राय था। किन्तु साहित्य के अध्यात्म, दार्शनिक, न्याय, काव्य, पुराण आदि शाखाओं में प्रभावक आचार्यों की प्रधान कृतियाँ, जिनके विचारों की समाजपर अमिट छाप है, इसमें संमिलित हैं। सहजही तात्त्विक तथा दार्शनिक ग्रंथों को प्राधान्य मिला है। पुराण, काव्य तथा अन्य शाखाओं के परिचयरूप में निबंध मंगाये गये। ग्रंथ के दूसरे भाग का स्वरूप देखने से इसका पता चलता है। फिर भी ग्रंथ की अपूर्णता का हमें खयाल है। दोचार ग्रंथों पर विद्वानों द्वारा हमें लेख प्राप्त नहीं हो सके, इसी कारण जैन आचार्यों द्वारा निर्मित व्याकरण ग्रंथों का परिचय तथा जैन व्याकरण की विशेषता हम नहीं दे सके। फिर भी सब मर्यादाओं के भीतर ग्रंथ ज्यादा तर अधिकृत तथा परिपूर्ण हो इसका खयाल रखा गया । तात्त्विक विचारों के मंथन के इस काल में इस दष्टि से संपादित ग्रंथ की आवश्यकता हमें प्रतीत हुई इसलिए इस दिशा में यह अल्प प्रयत्न है। दिगंबर जैन साहित्य का परिचय पाने में यह निबंध उपयुक्त होगा ऐसा हमें विश्वास है। इन निबंधों द्वारा मूल ग्रंथों का अध्ययन तथा स्वाध्याय की प्रेरणा मिली तथा उनका हार्द समझने में कुछ सहाय्यता मिली तो यह प्रयत्न अपनी दिशा में सफल हुआ ऐसा समाधान प्राप्त होगा। प. पू. आचार्यश्री के जीवन तथा कार्य और संस्था से संबंधित और परिचित मान्यवर साधु तथा सज्जनों से अपनी श्रद्धांजलि तथा संस्मरण भेजने का परिपत्रक भेजा गया था। जैन पत्रों में परिपत्रक प्रकाशित किया गया । समस्त त्यागीवर्ग, कार्यकर्ता सज्जनों का इस कार्य में संपादकों को अच्छा सहयोग मिला । आजतक प्रसिद्ध संस्मरण तथा चरित्र से इसमें कुछ नये संस्मरण, ऐसा कुछ नया भाग प्राप्त होगा जिससे आचार्यश्री की महिमा तथा विवेकशीलता का परिचय मिलता है। हमें विश्वास है की चरित्र तथा इन संस्मरणों द्वारा महाराज श्री का अलौकिक व्यक्तित्व, विवेकशीलता, सामाजिक जागरण की लगन, जीवन की ऊंचाई का दर्शन होगा। इस ग्रन्थ के संपादन में अनेक महानुभावों की मदद हुई है। ग्रन्थ के संपादन में प्रारंभ से आखिरतक श्री. पं. मोतिचंदजी गौतमचंद कोठारी का बहुमूल्य मार्गदर्शन प्राप्त हुआ, सूचनाएँ मिली इसलिए उनका हृदय से धन्यवाद है। चरित्र लेखक श्री. प्रा. सुभाषचंद्र अक्कोळे, संस्मरण भेजनेवाले मान्यवर महानुभाव, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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