Book Title: Acharang Sutram Part 01 Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti View full book textPage 4
________________ ★ प्रकाशकीय ★ आगम-साहित्य वस्तुतः ज्ञान-विज्ञान का अक्षय-अपूर्व कोष है। ऐसा कोई भी विषय नहीं है, जिसके सन्दर्भ में विस्तृत अथवा संक्षिप्त रूप से विचारणा नहीं की गई हो। वास्तव में आगम-वाङ्मय हमारे धर्म और अध्यात्म, समाज और संस्कृति की आधारशिला है। मूल्यवान एवं प्राणवान निधि है। सर्वस्व रूप है और सर्वेसर्वा है। हमें इससे अतिशय प्रसन्नता है कि जैनागम-साहित्य के सर्वथा मौलिक और विशेष मार्मिक व्याख्याता तथा गहन-गम्भीर अध्येता आराध्यस्वरूप आचार्य सम्राट् श्री आत्माराम जी म. ने अपने जीवनकाल में आगम-साहित्य पर जिस युग में विस्तृत टीकाएँ निर्मित की, तलस्पर्शी विचारणा प्रस्तुत की, वह सब आधुनिक युग में भी महत्त्वपूर्ण है, उपयोगी और प्रयोगी सिद्ध है। श्रद्धास्पद आचार्यश्री जी द्वारा प्रणीत आगम-टीकाएँ प्रलम्ब समय से दुर्लभ हो गईं, दुष्प्राप्य हो गईं और उनकी माँग नित्य निरन्तर बढ़ती गई। जैन धर्म दिवाकर आचार्य सम्राट् श्री शिवमुनि जी म. ने भगवान महावीर के 26 सौवें जन्मकल्याणक वर्ष के ऐतिहासिक अवसर और चादर महोत्सव के पावन प्रसंग पर दृढ़तापूर्वक सत्संकल्प किया कि आचार्य श्री आत्माराम जी म. द्वारा विवेचित आगम और लिखित साहित्य का पुनः प्रकाशन किया जाए। आपश्री जी ने इस दिशा में क्रियात्मक पदन्यास किया, आपश्री जी के इस चिरसंचित, चिरअभिलषित और चिरप्रतीक्षित स्वप्न को मूर्त रूप प्रदान करने हेतु 'आत्म ज्ञान शिव आगम प्रकाशन' नामक संस्था का गठन हुआ है। उक्त संस्था के संगठन में श्री हीरालाल जी जैन, श्री राजेन्द्रपाल जी जैन, श्री रामकुमार जी जैन आदि समाज के प्रतिष्ठित और गण्यमान्य व्यक्तियों का प्रशंसनीय श्रम और सहयोग रहा है। 'आत्म-ज्ञान-शिव आगम प्रकाशन समिति' द्वारा प्रकाशित किया जाने वाला यह प्रथम आगम है। परम पूज्य आचार्य भगवन श्री शिवमुनि जी महाराज एवं श्री शिरीष __मुनि जी महाराज के दिशानिर्देशन में हमारा यह पूर्ण प्रयास रहा है कि प्रकाशनादिPage Navigation
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