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समस्त--जार मर्हम-गुरुदेव के सुयोग्य-शिष्य मुनिश्रीदीपविजयजी (श्रीम. हिजयनूपेन्द्रसूरिजी) और मुनिश्रीयतीन्द्रविजयजी को सौंपा जाय । बस, प्रस्ताव पास होने के बाद सं० १९६४ श्रावणसुदि ५ के दिन उक्त कोश को छपाने के लिये रतलाम में उपर्युक्त कार्यालय और प्रेस खोला गया और उक्त दोनों पूज्य मुनिराजों की देख-रेख से कोश क्रमशः बपना शुरू हुश्रा, जो सं० १एर चैत्र-वदि ५ गुरुवार के दिन संपूर्ण बप जाने की सफलता को प्राप्त हुथा।
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इस महान् कोश के मुजणकार्य में कुवादिमतमतंगजमदभजनकेसरीबालिकाससिद्धान्तशिरोमणि-प्रातःस्मरणीय-धाचार्य:-श्रीमद्धनचन्ऽसरिजी महाराज, उपाध्याय श्रीमन्मोहनविजयजी महाराज , सञ्चारित्रीमुनिश्रीटीकमविजयजी महाराज, पूर्णगुरुदेवसेवाहेवाक--मुनिश्रीहुकुम विज. यजी महाराज, सस्क्रियावान् महातपस्वी-मुनिश्रीरूपविजयजी महाराज, साहित्यविशारद-विद्यानूषण-श्रीमद्विजयनूपेन्ऽसरिजी महाराज , व्याख्यानवाचस्पत्युपाध्याय-मुनिश्रीयतीन्द्रविजयजी महाराज, ज्ञानी ध्यानी मौनी महातपस्वी-मुनिश्रीहिम्मतविजयजी, मुनिश्री लक्ष्मी विजयजी, मुनिश्री-गुलाबविजयजी, मुनिश्री-हर्षविजयजी, मुनिश्री-इंसविजयजी, मुनिश्री-अमृतविजयजी, आदि मुनिवरोंने अपने अपने विहार के दरमियान समय समय पर श्रीसंघ को उपदेश दे दे कर तन, मन और धन से पूर्ण सहायता पहोंचाई, और स्वयं भी अनेक जाँति परिश्रम उगया है, श्रतएव उक्त मुनिवरों का कार्यालय आजारी है ।
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जिन जिन ग्राम-नगरों के सौधर्मबृहत्तपोगच्चीय-श्रीसंघ ने इस महान् कोषान-कार्य में आर्थिक-सहायता प्रदान की है, उनकी शुज. सुवर्षाकरी नामावली इस प्रकार है
श्रीसौधर्मवृत्तपोगच्छीय श्रीसंघ-मालवा
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श्रीसष-रतलाम। " जावरा
भीसंघ-चाँगरोद।
, वारोदा-पड़ा।
श्रीसंघ-राजगढ़।
झाबुवा ।
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