Book Title: Abhayratnasara
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Danmal Shankardas Nahta

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ४ ] एक नयी पुस्तक संपादन करायी जाये; पर ठीक संयोग न मिलनेके कारण विलम्ब होता गया। इधर गत वर्ष में आपके सुयोग्य पुत्ररत्न बाबू भैरूं दानजी तथा सुभयराजजीने हमसे समागम कर प्रस्तुत पुस्तक के सम्पादन कर देनेकी बात कहीं। उस समय हमारा स्वास्थ्य ठीक नहीं था, एवं कार्यभार अधिक रहनेसे अवकाश भी बहुत कम था; किन्तु दोनों सज्जनोंके आग्रह तथा हमारे प्रिय मित्र बाबू अमोचन्दजो गोलेछाके विशेष अनुरोध करने पर इस पुस्तकके सम्पादनका कार्य हमें ही अङ्गीकार करना पड़ा । प्रस्तुत ग्रन्थको लेते समय हमारा यह अनुमान था कि सातआठ मासमें सम्पूर्ण ग्रन्थ तैयार हो जायगा । तदनुसार उक्त दोनों सजनों को उतने समयमें पूरा कर देनेका निश्चय-समय दिया; पर होनहार कुछ और ही था । किसी तरह समयानुसार पन्द्रह फार्म तक तो कार्यक्रम ठीक रहा । अनन्तर नाना प्रकार के विघ्न पड़ते गये । हमारा स्वास्थ्य भी खराब हो गया । एवं कुछ ऐसे ही आवश्यक कार्य आ पड़े जिसमें हमें बम्बई, अहमदाबाद आदि बार-बार आना-जाना पड़ा। इससे और भी देरी पर देरी होती गयी । अस्तु ! प्रारम्भमें प्रस्तुत पुस्तकका विषयानुक्रम और ढंग से रखनेका विचार था, इसलिये उस क्रमके अनुसार आरम्भ क्रम रखा गया; किन्तु उस क्रमसे पुस्तकके बहुत बढ़ जानेकी सम्भावना हो गयो । अतः दह क्रम न रखकर दूसरा क्रम कर दिया गया । यद्यपि क्रम परिवत्तन के कारण पुस्तकका ढङ्ग अवश्य ही बदल गया; पर फिर भी हमने हर एक विषयको विभक्त करके अलग - For Private And Personal Use Only

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