Book Title: Abhayratnasara
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Danmal Shankardas Nahta

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir LES KARANSISMRENDER * पूर्व-वक्तव्य MEROTHERELES प्रिय पाठक वृन्द! वर्तमान समयमें प्रस्तुत पुस्तकके विषयानुसार अनेकों छोटी-मोटी पुस्तके प्रकाशित हो चुकी हैं। एवं समय-समय पर नवीन पुस्तके भी प्रकाशित होती रहती हैं; पर उनमें कुछ-न कुछ त्रुटि अवश्य ही रह जाती है। अतएव पुन: उसी विषय पर अन्यान्य पुस्तकोंके प्रकाशन करनेकी जिज्ञासा हो पड़ती है। पहले इस पुस्तककी शैलीके अनुसार "रत्नसागर" और "रत्नसमुश्चय" नामक बड़ी बड़ी पुस्तके कलकत्ता निवासी उपाध्याय जयचन्दजी तथा बीकानेर निवासी उपाध्यायजी रामलालजी गणीकी ओरसे प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनका प्रवार मारवाड़ दक्षिण, बराड़, बङ्गाल आदि प्रदेशोंमें खूब अच्छा रहा। आज भी उन पुस्तकोंकी मांग हो रही है, पर प्रकाशकोंके पास न रहनेसे अलभ्य हो गयी हैं। प्रस्तुत पुस्तकके प्रकाशक महोदय बाबू शंकरदानजी नाहटाकी कई दिनोंले यही मनोभावना थी कि वर्तमान समयमें इस तरहकी पुस्तकके अभावके कारण साधर्मिक भाइयोंको बड़ी अडचण पड़ रही है। अतः कुछ शैली बदल कर इस तरहकी For Private And Personal Use Only

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