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मुनिराज अवधि ज्ञानी थे। उन्होंने उसे भव्य जानकर उपदेश देने का विचार किया
प्रणाम हो मुनिराज ! कृपया मुझे भी कुछ उपदेश दें।
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हे भद्र! संसार दुःखों से परिपूर्ण है। सुख दुःख, राग-द्वेष, का कर्त्ता भोक्ता है। इससे छूटने के लिए अहिंसादि महाव्रत धारण कर संसारिक दुःखों से सदा के लिए मुक्ति की जा सकती है।
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