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राजमहल में शोर मच गया।
अरे भैया पिताजी ने दीक्षा
लेली
हाँ! बहिन यह तो हमने भी
सुना है।
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दोनों के मन में एकदम परिवर्तन हुआ
अरे! (यह क्या
हुआ
हमें मुर्गा... मुर्गी दिख
एं ! कैसे हुआ हमें भी अपने पूर्व भव दिख रहे
हैं?
गा दोनों को अपनी पूर्व-पर्याय का स्मरण होगया । तभी उन दोनों ने सदत्ताचार्य के समीप दीक्षा ग्रहण कर ली।
हेराजन्! वे ही हम दोनों प्राणी
आटे के मुर्गे की बलि से हमें इतनादुख उठाना पड़ा।
आपतोसाक्षाल जीवों की बलि चढ़ाते हैं ? आप को कितना दुस्व इस संसार में भोगना पड़ेगा?