Book Title: Aasan Pranayam Mudra Bandh
Author(s): Satyanand Sarasvati
Publisher: Bihar Yog Vidyalay

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Page 18
________________ भूमिका अनेक लोग आसनों का संबंध शक्तिशाली शारीरिक व्यायाम या शरीर को मांसल बनाने वाली प्रक्रियाओं से जोड़ते हैं। यह धारणा पूर्णतः गलत है। आसन न तो शरीर को झटके के साथ हिलाने-डुलाने के लिए बनाये गये हैं और न अनावश्यक मांसपेशियों को बढ़ाने के लिए ही उनकी रचना की गयी है। उन्हें व्यक्ति के विभिन्न स्वरूप, अवस्था या विभिन्न स्तरों के अंग-विन्यास ही माना जाना चाहिए। अपनी अंतरात्मा के साथ एकाकार होने के अनुभव को 'योग' कहते हैं। यह 'एकता' जड़ और चेतन के द्वैतभाव को परम तत्व में मिला देने से प्राप्त होती है। 'आसन' शरीर की वह स्थिति है जिसमें आप अपने शरीर और मन के साथ शांत, स्थिर एवं सुख से रह सकें। पातंजलि रचित प्राचीन ग्रंथ 'योगसूत्र' में योगासनों की संक्षिप्त परिभाषा दी गई है- 'स्थिरं सुखं आसनम्' / अतः इस संदर्भ में कहा जा सकता है कि आसनों का अभ्यास बिना कष्ट के एक ही स्थिति में अधिक से अधिक समय तक बैठने की क्षमता को बढ़ाने के लिये किया जाता है- उदाहरणार्थ ध्यान के समय / आसनों का अभ्यास स्वास्थ्य लाभ एवं उपचार के लिए भी किया जा सकता है। मांसपेशियों में साधारण खिंचाव, आंतरिक अंगों की मालिश एवं सम्पूर्ण स्नायुओं में सुव्यवस्था आने से अभ्यासी के स्वास्थ्य में अद्भुत सुधार होता है। असाध्य रोगों में लाभ एवं उनका पूर्णरूपेण निराकरण भी योगाभ्यासों के माध्यम से किया जा सकता है। . अन्य स्वास्थ्य प्रणालियों की तुलना में योगासन .. शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक व्यक्तित्व के विकास में भी आसनों का विशेष महत्व है जबकि अन्य शुद्ध व्यायामों का प्रभाव केवल शरीर की मांसपेशियों एवं हड्डियों पर ही होता है। शारीरिक व्यायाम शीघ्रतापूर्वक एवं अधिक श्वास-प्रश्वास की क्रिया के साथ किया जाता है / नट के प्रदर्शन, शरीर को पुष्ट करने वाले व्यायाम, भार उठाने वाली प्रणालियों स्वस्थ व्यक्तियों में . मांस के विकास हेतु उपयुक्त हैं / विकसित मांसपेशियों के लिये अधिक भोजन . और रक्त-आपूर्ति की आवश्यकता पड़ती है। परिणामतः हृदय को अधिक

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