Book Title: Aajna Vignan Yug ma Jain Jiv Vicharnani Aahar Kshetra Prastutta
Author(s): N M Kansara
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ 103 संसारी जीवोना बीजी दृष्टिए स्थावर अने त्रस एवा बे प्रकार पाडवामां आव्या छे. स्थावर जीवो ते छे जेमने केवळ शरीर ज होय छे अने तेओमां हलनचलननी क्रिया प्रत्यक्षरूपे जोवामां आवती नथी छतां आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा अने ग्रहण करवानी परिग्रहसंज्ञा जोवामां आवे छे. पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय अने वनस्पतिकाय ए पांच प्रकारो स्थावर जीवोना छे अने ते एकेन्द्रिय अथवा द्वीन्द्रिय होय छे. आ वैज्ञानिक जमानामां तो सूक्ष्मदर्शक वगेरे यंत्रो द्वारा पृथ्वी, जळ, तेज, वायु अने वनस्पतिमां चेतनलक्षण जीव होवा- प्रत्यक्ष करी बताववामां आव्युं छे.३ जेने एक ज इन्द्रिय होय छे. तेवा जीवोने फक्त शरीर ज होय छे. मुख वगेरे नथी होतुं, तो पण तेमनामां ग्रहणशक्ति होवाथी तेओ आहार वगेरे करी शके छे. जेम के, वनस्पति पोतानो आहार जमीनमांथी रस चूसीने मेळवी ले छे. अग्निनो आहार वायु छे, अने ते जेटलो जोइए तेटलो ग्रहण करी ले छे. द्वीन्द्रिय जीवोने शरीर अने मुख ; त्रीन्द्रिय जीवोने शरीर, मुख अने नाक ; चतुरिन्द्रिय जीवोने शरीर, मुख, नाक अने आंख ; अने पंचेन्द्रिय जीवोने आ चार उपरांत कान होय छे. कृमि, गंडोला, जळो, शंख, कोडा वगेरे जीवो द्वीन्द्रिय छे ; कीडी, जू, मंकोडा, मांकण, इयळ, घीमेल वगेरे जीवो त्रीन्द्रिय छे ; माखी, भमरो, वींछी, बगाई वगेरे जीवो चतुरिन्द्रिय छ; अने मनुष्य, पशु, पक्षी, माछलां, देवता अने नारकी आ बधा जीवो पंचेन्द्रिय छे.५ । स्थावर अने त्रस बन्ने प्रकारना जीवो अपर्याप्ता, अर्थात् अपूर्ण पर्याप्तिओवाळा अने पर्याप्ता अर्थात् पूर्ण पर्याप्तिओवाळा कहेवाय छे. पर्याप्ति ए एक विशिष्ट शक्ति, जेने लीधे अमुक वस्तु ग्रहण कराय छे. जे शक्तिथी आहार ग्रहण कराय ते आहार पर्यासि , जे शक्तिथी शरीरनी संरचना थाय ते शरीर पर्याप्ति, जे शक्तिथी इन्द्रियो कार्य करे छे ते इन्द्रिय पर्यासि , जे शक्तिथी ३. ४. ५. एजन, पृ. ७७. एजन, पृ. ७८. एजन. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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