Book Title: Aajna Vignan Yug ma Jain Jiv Vicharnani Aahar Kshetra Prastutta
Author(s): N M Kansara
Publisher: ZZ_Anusandhan
Catalog link: https://jainqq.org/explore/229701/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आजना विज्ञानयुगमां जैन जीवविचारणानी आहारक्षेत्रे प्रस्तुतता डॉ. नारायण म. कंसारा (१) जैन जीवविचारणा जैन धर्ममां स्वीकारवामां आवेला नव मूळभूत पदार्थोमां एक ते छे जीव. आ जीवनां नीचे मुजबना गुणधर्मो गणाववामां आव्या छ : चैतन्यलक्षण; परिणामी; ज्ञान, दर्शन चारित्र, सुख, दुःख, वीर्य, भव्यत्व, अभव्यत्व, द्रव्यत्व, प्रेमयत्व, प्राणधारित्व, क्रोध वगैरे परिणतत्व, संसारित्व, सिद्धत्व, परवस्तुव्यावृत्तत्व वगेरे स्वपर पर्यायो रूपी धर्मोथी भिन्न छतां अभिन्नपणुं ; कर्ता ; साक्षाद् भोक्ता, स्वदेहपरिमाणवाळो, दरेक शरीरमां भिन्न, पौद्गलिक अने अदृष्टवान्, आ जीव बे प्रकारनो होय छे : मुक्त अने संसारी. मुक्त जीवना सकल कर्मोनो क्षय थइ गयेलो होय छे. सांसारिक जीव चार प्रकारनो होय छे : सुर, नारक, मनुष्य अने तिर्यक् . एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय अने पंचेन्द्रिय. एमां पण एकेन्द्रिय जीवो पृथ्वी, जळ, तेज, वायु अने वनस्पति ए पांच प्रकारना होय छे.. एकेन्द्रिय जीवोने स्पर्शनेन्द्रिय, कायबळ, श्वासोश्वास अने आयुष्य आ चार प्राण होय छे. द्वीन्द्रिय जीवोने आ चार उपरांत रसनेन्द्रिय अने वचनबळ अधिक होवाथी छ प्राण होय छे. त्रीन्द्रिय जीवोने उपर जणावेल छ उपरांत घ्राणेन्द्रिय होवाथी सात प्राण होय छे. चतुरिन्द्रिय जीवोने उपर्युक्त सात उपरांत श्रोत्रेन्द्रिय होवाथी आठ प्राण होय छे. असंज्ञि-पंचेन्द्रिय जीवोने उपर मुजबना आठ उपरांत नेत्रेन्द्रिय वधु होवाथी नव प्राण होय छे ; अने संज्ञि-पंचेन्द्रिय जीवोने उपर निर्देशेल नव उपरांत मनोबळ अधिक होवाथी दस प्राण होय छे.२ शुभविजयकृता प्रमाणनयतत्त्वप्रकाशिका स्वाद्वादभाषा (संपा. नारायण म. कंसारा, Sambodhi, Vol. XVIII, 1992-93), pp. 101-122, परि. ८ सू. ३ (पृ. ११६-११७). मुनि श्री विद्याविजयजी - जैनधर्म, श्री विजयधर्मसूरि ग्रंथमाळा - ५१, उज्जैन, वि.सं. १९९५, पृ. ७६. २. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 103 संसारी जीवोना बीजी दृष्टिए स्थावर अने त्रस एवा बे प्रकार पाडवामां आव्या छे. स्थावर जीवो ते छे जेमने केवळ शरीर ज होय छे अने तेओमां हलनचलननी क्रिया प्रत्यक्षरूपे जोवामां आवती नथी छतां आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा अने ग्रहण करवानी परिग्रहसंज्ञा जोवामां आवे छे. पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय अने वनस्पतिकाय ए पांच प्रकारो स्थावर जीवोना छे अने ते एकेन्द्रिय अथवा द्वीन्द्रिय होय छे. आ वैज्ञानिक जमानामां तो सूक्ष्मदर्शक वगेरे यंत्रो द्वारा पृथ्वी, जळ, तेज, वायु अने वनस्पतिमां चेतनलक्षण जीव होवा- प्रत्यक्ष करी बताववामां आव्युं छे.३ जेने एक ज इन्द्रिय होय छे. तेवा जीवोने फक्त शरीर ज होय छे. मुख वगेरे नथी होतुं, तो पण तेमनामां ग्रहणशक्ति होवाथी तेओ आहार वगेरे करी शके छे. जेम के, वनस्पति पोतानो आहार जमीनमांथी रस चूसीने मेळवी ले छे. अग्निनो आहार वायु छे, अने ते जेटलो जोइए तेटलो ग्रहण करी ले छे. द्वीन्द्रिय जीवोने शरीर अने मुख ; त्रीन्द्रिय जीवोने शरीर, मुख अने नाक ; चतुरिन्द्रिय जीवोने शरीर, मुख, नाक अने आंख ; अने पंचेन्द्रिय जीवोने आ चार उपरांत कान होय छे. कृमि, गंडोला, जळो, शंख, कोडा वगेरे जीवो द्वीन्द्रिय छे ; कीडी, जू, मंकोडा, मांकण, इयळ, घीमेल वगेरे जीवो त्रीन्द्रिय छे ; माखी, भमरो, वींछी, बगाई वगेरे जीवो चतुरिन्द्रिय छ; अने मनुष्य, पशु, पक्षी, माछलां, देवता अने नारकी आ बधा जीवो पंचेन्द्रिय छे.५ । स्थावर अने त्रस बन्ने प्रकारना जीवो अपर्याप्ता, अर्थात् अपूर्ण पर्याप्तिओवाळा अने पर्याप्ता अर्थात् पूर्ण पर्याप्तिओवाळा कहेवाय छे. पर्याप्ति ए एक विशिष्ट शक्ति, जेने लीधे अमुक वस्तु ग्रहण कराय छे. जे शक्तिथी आहार ग्रहण कराय ते आहार पर्यासि , जे शक्तिथी शरीरनी संरचना थाय ते शरीर पर्याप्ति, जे शक्तिथी इन्द्रियो कार्य करे छे ते इन्द्रिय पर्यासि , जे शक्तिथी ३. ४. ५. एजन, पृ. ७७. एजन, पृ. ७८. एजन. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 104 श्वारोच्छवासनी किया थाय छे ते श्वासोच्छवास पर्याप्ति, जे शक्तिथी भाषा नो व्यवहार थाय छे ते भाषा पर्याप्ति, अने जे शक्तिथी मननो व्यापार थाय छे तेने मनः पर्याप्त कहेवामां आवे छे. एकेन्द्रिय एवा स्थावर जीवोमां प्रारंभनी चार पर्याप्तिओ - अर्थात् आहार, शरीर, इन्द्रिय अने श्वासोच्छवास पर्याप्तिओ होय छे. द्वीन्द्रिय थी चतुरिन्द्रिय जीवोमां मनने बाद करतां बाकीनी पांच पर्याप्तिओ होय छे. पंचेन्द्रिय जीवोमां संज्ञी अने असंज्ञी एवा बे प्रकार छे.. जेमने मन नथी होतुं तेवा पंचेन्द्रिय जीवो असंज्ञी गणाय छे अने तेमने मन सिवायनी उपरनी पांच पर्याप्तिओ होय छे, ज्यारे संज्ञी जीवोने उपर जणावेली छ पर्याप्तिओ होय छे. ६ (२) मोक्षमार्गी आचारव्यवस्था आ जीवविचारणाने लक्षमां राखीने मनुष्यने कर्मोना बंधनमांथी छोडावी मोक्षमार्गे वाळवा तथा अंते निर्वाण प्राप्ति कराववा माटे जैन तीर्थंकरोए एक विशिष्ट आध्यात्मिक मार्ग प्रवर्ताव्यो जेने आपणे 'जैनधर्म' तरीके ओळखीए छीए. कर्मबंधनोने लीधे ज जीव जन्ममरणनी घटमाळमां फसायेलो रहे छे. अने कर्यबंधनमांथी छूटवा माटे जीवे कषायोमांथी मुक्त करवा घोर तपश्चर्या जरूरी छे. आ तपश्चर्याना मार्गे जीवने क्रमशः वधुने वधु तीव्रतानी कक्षाए प्रवृत्त करवा गृहस्थधर्मनां बाखतो अने साधुधर्मनां पांच महाव्रतोनुं पालन करवानी व्यवस्था गोठववामां आवी छे. गृहस्थ माटेनां बार व्रतोमांना प्रथम पांच 'अणुव्रत' अथवा सूक्ष्म कहेवाय छे, कारण के ते साधुओनां पांच महाव्रतोनी तुलनाए घणां अल्प अथवा स्थूळ छे. गृहस्थोनां आ अणुव्रतो छे :- स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत, स्थूल मृषावाद विरमण व्रत, स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत, स्थूल मैथुन विरमण व्रत अने स्थूल परिग्रह विरमण व्रत ; ज्यारे साधुओनां पांच महाव्रतो छे:- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य अने अपरिग्रह. आ पांच महाव्रतो अने गृहस्थ माटेनां थोडीक अनिवार्य छूटछाटवाळां आ ज महाव्रतोनां पांच अणुव्रतो जैन धर्मना प्राणरूप छे. आ पांच महाव्रतोना ६. एजन, पृ. ७९-८०. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 105 अनुषंगे बाकीनां सात व्रतो प्रयोजायां छे, जेमांनां दिग्वत, भोगोपभोग विरमण व्रत अने अनर्थदंड विरमण व्रत, ए त्रण गुणव्रतो कहेवाय छे, केमके पांच अणुव्रतोने ते सहायरूप नीवडे छे, ज्यारे छेल्लां चार अर्थात् सामायिकव्रत, देशावगासिकव्रत, पौषधव्रत अने अतिथिसंविभागवत, शिक्षाव्रतो कहेवाय छे, केमके ते रोजबरोज अभ्यास करवा योग्य छे." जे गृहस्थ श्रावक आ बार व्रतोने स्वीकारे छे ते श्रावक कहेवाय छे, अने पछी उत्तरोत्तर एना पालनमा स्थूळताथी वधुने वधी सूक्ष्मता आणे छे त्यारे अंते ते साधु कक्षाए पहोंचे छे. आ मार्गे प्रयाण करी, सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान अने सम्यक् चारित्रना बळे कर्मोना क्षय करी कर्मबंधनोमांथी छूटकारा रूप निर्जरा प्राप्त करी, क्रमश: शुद्धतम आत्मभावने प्राप्त करी, अंते जीव निर्वाण प्राप्त करे छे. जीवविचारणा- अंतिम लक्ष निर्वाण छे, जे मनुष्य मात्रनुं आ संसारमा चरम ध्येय छे. जैनधर्ममां आ चरम ध्येयना अनुषंगे सर्वसामान्य जैन गृहस्थ माटे जे बार व्रतो प्रबोधवामां आव्यां छे तेमानुं प्रथम स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत आहारने क्षेत्र साथे सीधुं संकळायेलुं छे, कारणके तेना पायामां अहिंसा ए प्रथम महाव्रत रहेलुं छे. आ महाव्रतनो विस्तार घणो मोटो छे, पण आहारना क्षेत्रे निरपराधी जीवोनी हिंसानो त्याग एमां समाविष्ट थयो छे ए दृष्टिए प्रस्तुत विषय साथे एनो संबंध रहेलो छे. अहिंसाना अनुषंगे जैनधर्ममां दयाने प्राधान्य आपवामां आव्युं छे. दान, शील, तप, भाव, परोपकार वगेरे जेटली पण शुभ क्रियाओ छे ते बधार्नु मूळ दया ज छे, तेथी ते धर्मनी जननी के मूळ गणाई छे. अहिंसा अने दया वच्चे घणो फरक छे. कोइ जीवने हेरानगति न पहोंचाडवी, मारवो नहिं, सताववो नहि, तेना हैयाने दुःख न पहोंचाडवू ए 'अहिंसा' छे. परंतु दया ए अंतःकरणनो भाव छे. एवो भाव जेना हृदयमां होय ए ज अहिंसानु सेवन करी शके. दुःखीने देखीने आपणा हृदयमां दर्द थाय अथवा मारी क्रियाथी बीजाने दुःख ७. एजन, पृ. ४१. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 106 थशे एवो विचार थवो तेने दया कहे छे. जैन शास्त्रोमां दयाना आठ प्रकार गणाव्या छ : द्रव्यदया, भावदया, स्वदया, परदया, स्वरूपदया, अनुबंधदया, व्यवहारदया अने निश्चयदया. आमांथी द्रव्यदया, स्वदया, परदया अने स्वरूपदयानो सीधी के आडकतरी रीते आहारक्षेत्र साथे संबंध आवे छे. (३) आहारनुं प्रयोजन, प्रकारो अने मानवशरीर माटेनी तेनी जरूरियात आहारतुं प्रयोजन केवळ पेट भरवा पूरतुं, तंदुरस्ती जाळववा पूरतुं के स्वाद संतोषवा पूरतुं ज नथी, बल्के मन अने चारित्र्यनो विकास करवानुं पण छे. 'जेवो आहार तेवो ओडकार' अथवा 'जेवो आहार तेवो मनुष्य' ए कहेवतो आजना जमानामां पण मनुष्यने लागु पडे छे. माणसनो विविध प्रकारना खोराकनो शोख तेनी वर्तणुंक अने चारित्र्यनो सूचक बनी रहे छे. तेथी आपणा खोराकनो उद्देश एवो होवो जोइए के जेथी आपणे जे खोराक खाइए ते आपणा शारीरिक, नैतिक, सामाजीक अने आध्यात्मिक उन्नतिने उपकारक बने अने स्नेह, वात्सल्य, दया, अहिंसा, शान्ति अने एवा बीजा सद्गुणोनो पोषक बनी रहे. ___ आपणा आहारना प्रकारो एवा होवा जोइए जेमांथी ऊर्जा, स्वास्थ्य अने उष्मा उत्पन्न थाय. आ माटे आपणा खोराकमां प्रोटीनो, शर्करा, विटामिनो, खनिजो अने तैली पदार्थो पूरता प्रमाणमां होवा जोइए जेथी सारी गुणवत्तावाळा नवा कोशो अने लाल रक्तकणो सतत उत्पन्न थता रहे. आपणा शरीरमांना बधा ज कोशो तथा पेशीओ छ महीनामां साव ज बदलाइ जाय छे अने नवी उत्पन्न थइ जाय छे.१० आपणा शरीर अने एमांना फेरफारोनो आधार आपणा खोराक पर होय छे. वळी आपणो खोराक एवो होवो जोइए जेनाथी आपणा शरीरनी रोग-प्रतिकारक संरक्षण व्यवस्था सचवाइ रहे अने मजबूत बने, अने एमां रोगकारक तथा स्वास्थ्य विनाशक तत्त्वो सदंतर होवां जोइए . आ माटे कुदरते ८. एजन, पृ. ६१-६२. ९. अग्रवाल गोपीनाथ - वेजीटेरियन ऑर नॉन-वेजीटेरियन ; यूझ यॉर सेल्फ (अंग्रेजी), जैन बुक एजन्सी, न्यु दिल्ही, पांचमी आवृत्ति, १९९१, पृ. ५. १०. एजन. Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 107 अनेक प्रकारनां अनाज, फळो, काष्ठफळो, करियाणां, शाक-पांदडां वगेरे सरज्यां छे, जेमां पूरता प्रमाणमां पोषक तत्त्वो रहेला होय छे. सामान्यतः पुरुषने रोज २३५० थी २७०० केलरी, स्त्रीने १८०० थी २१०० केलरी, छोकराने २४०० केलरी अने छोकरीने २०५० केलरी खोराक जरूरी होय छे. आ माटे अनाजमांथी १३८४, द्विदलमांथी २०९, शाक-पांदडांमांथी ४८, कंदमूळमाथी ७२, फळोमांथी २४, दूधमांथी १६८, तेलिबींयामांथी २२५ अने साकरमाथी १२० एम कुल मळीने २२५० केलरी मळी रहे छे.११ ।। घणा माणसो भूखमाराने बदले वधु पडता खोराकथी ज मरता होय छे. वधु पडतुं खावा करतां थोडंक ओर्छ - पेट थोडंक खाली रहे तेवी रीते, ऊनोदर रहीने, खोराक लेवो जोइए. आपणे जीववा माटे खावू जोइए नहीं के खावा माटे जीववं. आ माटे जेटला खोराकनी भूख होय तेनाथी थोडंक ओछु खावू जोइए. जे लोको भूख करतां वधु पडतुं खाय छे तेओ स्थूळता, आळस, अपचो, कबजीयात अने बीजा रोगोना भोग बने छे. मोटा भागना रोगोनुं कारण वधु पडती खाणीपीणी ज होय छे.१२ भूख दरेक माणसने व्याकुळ करी मूके छे अने माणसने कुमार्गे वाळे छे. पण शरीरनी भूख सीमित होय छे, अने थोडाक खोराकथी तृप्त थइ शके छे. कदी न संतोषाय तेवी भूक तो मननी होय छे. एने जेटली संतोषो एटली वधु भडके छे अने ते कुटेवोमां परिणामी छतरपीडी, बीक, तनाव, गुस्सो, धिक्कार वगेरेमां परिणामे छे.१३ । जैन धर्ममां अहिंसानी प्रधानताने लीधे जीवहिंसानो सदंतर निषेध होवाथी मांसाहारने कोइज अवकाश नथी. तेथी जो आजना वैज्ञानिक युगने लक्षमा राखी, मनुष्यना शरीरनी शाकाहारी प्राणीओ जेवी ज संरचना छे.१४ मांसाहारी प्राणीओ जेवी नथी ज. ए वैज्ञानिक हकीकतने लक्षमा राखी जैनधर्मना एक ११. एजन, पृ. ६. १२. एजन, पृ. ६-७. १३. एजन, पृ. ७. १४. एजन, पृ. ८-९. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 108 मात्र स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रतनो ज स्वीकार आवती एकवीसमी सदीमां सर्वानुमते स्वीकार थाय तो जगतमांना घणा रोगोना मूळ नाबूद करी शकाय. आजनुं शरीरविज्ञान स्पष्ट जणावे छे के शाकाहारी प्राणीओना दांत सपाट जडबांमां बेसेला होय छे, अने तेना नख मात्र फळ फूल चूंटी शके तेवा ज होय छे, ज्यारे मांसाहारी प्राणीओना दांत अने नख अणीदार अने प्राणीओनां शरीरोने फाडी नाखे एवा मजबूत होय छे. शाकाहारी प्राणीओनुं नीचे जडळ उपरनीचे अने डाबेजमणे हाली चाली शके छे ज्यारे मांसाहारी प्राणीओनुं नीचेनुं जडबु मात्र उपरनीचे हाली शके छे. शाकाहारी प्राणीओनी जीभ नरम अने सुंवाळी होय छे, ज्यारे मांसाहारी प्राणीओनी जीभ लांबी अने खरबचडी होय छे अने पाणी बहार नीकळे छे. शाकाहारी प्राणीओनां आंतरडां तेना धड करतां बारगणां लांबा होय छे ज्यारे मासांहारी प्राणीओनां आंतरडा तेमना धड करतां छ गणा लांबा होय छे. आम मांसाहारी प्राणीओनां आंतरडा प्रमाणमां वधु ढूंका होय छे. शाकाहारी प्राणीओ करतां मांसाहारी प्राणीओनां यकृत अने मूत्रशय प्रमाणमां वधु मोटा होय छे. शाकाहारी प्राणीओ करतां मांसाहारी प्राणीओना जठरमां पडता पित्तरसमां हाइड्रोक्लोरिक तेजाबनुं प्रमाण दस गणुं वधारे होय छे. शाकाहारी प्राणीओना मुखमांनी लाळ आलकली तत्त्व धरावे छे, ज्यारे मांसाहारी प्राणीओना मुखनी लाळ तेजाब तत्त्व धरावे छे. शाकाहारी प्राणीओना लोहीमां ऊंचुं ब्लड बी.एच. होय छे अने आलकली तरफी वलण होय छे, ज्यारे मांसाहारी प्राणीओना लोहीमां नीचुं ब्लड बी.एच अने तेजाब तत्त्व तरफी वलण होय छे. शाकाहारी प्राणीओ करतां मांसाहारी प्राणीओनुं रक्तलिपो-प्रोटीन जुदा प्रकारचें होय छे. शाकाहारी प्राणीओ करतां मांसाहारी प्राणीओनी घ्राणेन्द्रिय खूब प्रबळ, अने आंखो रात्रे जोइ शकनारी तथा खूब चमकती होय छे. शाकाहारी प्राणीओनी तुलनाए मांसाहारी प्राणीओनो अवाज घणो रूक्ष अने भयप्रद होय छे. शाकाहारी प्राणीओने जन्मतां ज साधारण दृष्टि प्राप्त थाय छे, ज्यारे मांसाहारी प्राणीओनी दृष्टि जन्म पछी अठवाडीया सुधी लगभग शून्य होय छे. आ बधां वैज्ञानिक तथ्यो लक्षमा लेतां स्पष्ट जणाय छे के मनुष्य कुदरती रीते मूलत: शाकाहारी प्राणी छे. अने प्राचीन ऋषिमुनिओए Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 109 आ कारणे जे संस्कारी मनुष्य माटे मांसाहारनो निषेध कर्यो छे. जैनधर्म तो आजना बधा धर्मोमां आहारना क्षेत्रे सौथी वधु वैज्ञानिक होवाथी आगामी एकवीसमी सदीमां तेणे प्रबोधेलुं मात्र एक स्थूलप्राणातिपात विरमण व्रत ज सर्वांशे सर्व देशोमां स्वीकार पामे तो पण जगतमा मंगलमयता व्यापी रहे, तो बीजां व्रतो स्वीकार पामे तो मंगलमयतामा केटली बधी वृद्धि पामे तेनी कल्पना ज आपणने आनंदविभोर करी मूके तेम छे. आ दृष्टिए ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः....' ए मांगलिक भावनाने प्रत्यक्ष जीवनमां साकार करवा माटे जैनधर्मनी जीवविचारणा खूब महत्त्वनो फाळो आगामी सदीमां आपी शके तेम छे.