Book Title: Aagam 44 Nandisootra Haaribhadriyaa Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 60
________________ आगम (४४) "नन्दी”- चूलिकासूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:) ....... मूलं [२२] / गाथा ||१९|| नन्दीहारिभद्रीय वृत्ती प्रत सूत्रांक [२२] गाथा ||५९|| ॥ ५५॥ मतिसुतादीणं । णधि जुगवीषयोगो सब्वेमु तहेव केवलिणी ॥ १५ ॥ भणियंपि य पनत्तीपन्नवणादीसु जह जि-के केवलज्ञानं णो समयं जं जाणती न पासा तमणुरयणप्पभादीणं ॥ १६ ॥ इदं गाथात्रयमपि प्रकटार्थम् । अधुना ये केवलज्ञा-14 नदशेनाभेदपादिनस्तनमतमुपन्यस्याह-जह किर वीणावरण देमन्नाणाण संभवो न जिणे । उभयावरणादीते त-14 ह केवलदसणस्साचि ।। १७॥ निगदसिद्धा । सिद्धान्तवाद्याह-देमन्त्राणोवरमे जह केवलणाणसंभवो भणिओ। देस-1 ईसणविगमे तह केवलदंसणं होउ ।। १८॥ अह देसणाणदंसणविगमे तुह केवलं मयं णाणं । ण मतं केवलदंसणमेच्छामेत्तं णणु तवेयं ।।१९।। भण्णइजहोहिणाणी जाणइ व पासइव भासितं सुत्ते। न प णाम ओहिदसणणाणेगत्तं तह इमंपि ॥ २०॥ जह पासह तह पामतु पासति सो जेण-दंसणं तं से। जाणति य जेण अरहातं से णाणंति बत्तव्वं ॥ २१॥ स्वपक्षसमर्थनार्थव सिद्धान्तवाचाह---णाणम्मि दंसणम्मि य एत्तो एगतरयम्मि उपउत्तो।।४ सबस्स केवल लिस्सा जुगणं वो णस्थि उबओगा ॥२२॥ उवओगी एगयरो पणुवीसतिमे सते सिणायस्स । भणिओ वियद्वत्थो च्चिय छडुद्देसे विसेसेउं ।। २३ ॥ गाथाद्वयमपि निगदसिद्ध, नवरं भगवस्या पंचविंशतितमे शतेऽधि-12 कारोपलधिते 'सिणायस्स' ति स्नातकस्य केवलिनः । सिद्धान्तवाद्यनुभूतत्वमागमभक्तिं च परां ख्यापयवाह--कस्स पर णाणुमतमिर्ण जिणस्स जदि होज्ज दोषि उवओगा। पूर्ण ण होति जुगवं जेण णिसिंद्वा सुते बहुसो ॥ २४ ॥8॥५५॥ | निगदसिद्धैवेत्यलं प्रसंगेन, प्रकृतं प्रस्तुमः। 'अह' गाहा ॥(५९-१३४)। इह मनःपर्यायज्ञानानन्तरं सूत्रक्रमोदेशतः शुद्धिलाभतश्च प्राक्केवलज्ञानमुक्तं, तदुपन्यस्तय दीप अनुक्रम [९०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र - [४४], चूलिकासूत्र -[१] "नन्दीसूत्र" मूलं एवं हरिभद्रसूरिजी-रचिता वृत्ति: ~60~

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