Book Title: Aagam 44 Nandisootra Haaribhadriyaa Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 90
________________ आगम (४४) "नन्दी”- चूलिकासूत्र-१ (मूलं+वृत्तिः ) .... मूल [४२-४३] | गाथा ||८१...|| प्रत सूत्रांक [४२-४३] | गाथा ||८१..|| नन्दी- | कप्पतरुसमूहाओ होंति किलेस विणा तेसि ॥ ३ ।। ते पुण दसप्पगारा कप्पतरु समणसमयकेतूहि । धीरेहि विणिदिवा मणोरहापूहारिभद्रीय रगा एए ॥ ४ ॥ मत्तगया १ य भिंगा २ तुडियंगा ३ दीव ४ जोति ५ चितंगा ६। चित्तरसा ७ मणियगा ८ गेहागारा ९ कालच अणियणा १० य ।। ५ ।। मत्तंगएसु मज्ज मुहपेजं भायणाणि मिंगसु । तुडियंगेसु य संगयतुडियाणि बहुप्पगाराणि ॥ ६॥ दीवसिहा जोतिसणामया य णिच्च करिति उज्जोयं । चिगंगेसु य मल्लं चित्तरसा मोषणढाए ॥७॥ मणियंगसु य भूसणवराणि * भवणाणि भवणरुक्षेसं । आयनेसु य इच्छियवस्थाणि बहुप्पगाराणि ॥८॥ एएसु य असु य नरनारिगणाण ताणमुवभोगो । भवियपुणन्भवरहिया इय सब्वन्नू जिणा बिति ॥९॥ तो तिमि सागरोवमकोडाकोडी उ वीयरागेहिं । सुसमत्ति समक्खाया पवाहरूवेण धीरेहिं ।। १० ।। तीए पुरिसाणमायु दोणि य पलियाई तह पमाणं च । दो चेव गाउयाई आईए भणंति समयन्नू ॥११॥ उपभोगपरीभोगा तेसिपि य कप्पपादवेहितो । होति किलसेण विणा नवरं ऊणाऽणुमावेहिं ॥ १२ ॥ तो मुसमदूसमाए पवाहरूवेण कोडिकोडीओ । अयराण दोण्णि सिट्ठा जिणेहिं जियरागदोसेहिं ।। १३ ।। तीए पुरिसाणमाउं एग पलियं तहा पमाणं च । एगं च गाउयं तीइ आदीए भणति समयण्णू ॥ १४ ॥ उवभोगपरीभोगा तेसिपि य कप्पपादवेहितो । हाति किलेसेण विणा | पायं ऊपाऽणुभावेहिं ॥ १५ ॥ सूसमदुसमावसेसे पढमजिणो धम्मणायगो भयवं | उप्पनो कयपुनो सिप्पकलादंसगो उसहो ॥ १६ ॥ तो दुसमसुस्समूणा बायालीसाए वरिससहसेहिं । सागरकोडाकोडी एगेव जिणेहि पण्णता ॥ १७॥ तीए पुरिसाणमायु 181 पुवपमाणेण तह पमाणं च । धणुसंखानिदिढ विसेससुत्ताओ णायव्वं ॥ १८ ॥ उवमोगा परीभोगा पवरोसहिमाइएहिं विण्णेया। ॥५॥ व जिणचकिवासुदेवा सब्वे य इमीए वोलीणा ॥ १९॥ इगवीससहस्साई वासाणं दूसमा इमीए य । जेविय माणुवभोगादीया व RSS दीप अनुक्रम [१३५ १३६] वज मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र - [४४], चूलिकासूत्र -[१] "नन्दीसूत्र" मूलं एवं हरिभद्रसूरिजी-रचिता वृत्तिः ~90~

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