Book Title: Aagam 35 BRUHAT KALP Moolam ev
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 9
________________ आगम (३५) “बृहत्कल्प” - छेदसूत्र-२ (मूलं) ---------- उद्देश: [३] --------- मूलं [२२] --------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३५], छेदसूत्र - [२] "बृहत्कल्प" मूलं प्रत सुत्राक [२२] दीप अनुक्रम [१०२] कटु संपवासए, कप्पद निर्माचाण या निर्णयीण या पाडिहारिय वा सागारियसंतियं वा सेजासंचारयं आयाए विगरण कटु संपचहत्तए '९३०।२शबह खलु निर्माधाण वा निर्गहाथीण या पारिवारिए या सागारियलिए पा सेजासंचारए विष्यणसेजा (परिभढे लिया) से य जणुगवेसियो सिया, से य अणुगयेसमाणे सभेजा तस्सेव पति(अणुपादायो सिया, से अगसमाणे नो कमेना एवं से कन्या दोषि उगई अणुष्णवेशा परिहार परिहरितए ९६४।२३। जदिवसं च समणा निर्माथा सेजासंधारय विपजहति तरिक्स पण अपरेसममा निम्गंधा हलमागच्छेवास मेष ओम्गहस्स प्राणपणा चिट्ठा अहाहन्दमवि उम्गह।२४३ अस्थि या इत्य फेड उपस्सयपरियावन्नए अचित्ते परिहरणारिहे सत्र उम्मइस पुचागुन्नपणा चिद अहालन्दमवि उम्मा १०७टारका से बत्यु अमावडेसु अबोगडे अपरपरिगहीएस सोच उन्मइसा पुवाचुन्नपणा चि हासनमपि उमाई । २६1 से पत्थूसु वावडेसु बोगडेसु परपरिमाहीएस निक्समावस अहाए दोषि उमाहे अपुल्नवेब सिया अहालनमवि उमाई '११.४१२७से अकरने का अमितीस Bा अपरियासु वा अगुफरिहासु पका अणुपयेसु वा जणुमेरासु वा सोच उन्मइसा पुवाणुल्नवणा चिवड महालन्दमपि उम्गाई '१११०१।२८ा से मामंसि पा जाब यहागीए (सनि. ससि) या पहिया सेणं संनिविड़ पेहाए कप्पा निर्माथाण वा निमांचीण वा तदिवस मिक्लायरियाए गंपूर्ण पदिनियनए, नो से कप्पद त स्थणि तस्येव उपाइगावेत्तए, जो खलु निधि वा निगची बात रखपि तस्येव उवाइणावेद उचाइणात वा साइना से दुहओ वीइकममागे आवाइ चाउम्मासिय परिहारहाणं अग्पाइर्ष ११५५।२९। से मामंसिवा जाव संनिवेससिया कप्पट निमांधाण वा निर्माचीन वा सालो सामंतासकोर्स जोपर्ण उम्मई जोगिहिला चिनिएसिमि ११९२ ॥३०॥डओ उदेसो तओ अणग्याच्या पता जहा-हत्वकम्मं करेमागे मेहुर्ण पटिसेवमाणे राइमायण भुजमाणे १२२।। तओ पारंचिया पश्चता जहा-दुढे पारंथिए पमने पारंथिए अन्नमन कोमाणे पारंथिए । F१८१॥शनओ अपनगण्या यात. साहम्मियाणं तेन्नं करमाणे परमम्मियाण नेनं करेमाणे हत्यायालं दलमाणे २६२।३।तो नो कप्पति पावेलए तै० पण्डए की पाइए ३१४।४। एवं मुण्डावेत्सए सिक्लावेनए मेहाचित्तए उबहावेत्तए संभुजिताए संचाशितए '३२१।५नो नो कम्पन्ति पाएनए न० अविनीए निगई परिपचे अविजोसवियपा डे, तो कम्पन्ति पाएनएत-विणीए नो विगपडियदे विओमवियपाहुढे ३३५ तिजो दुस्समप्या प० त-हुढे मुझे बुग्गाहिए ३५८1७सो सस्समप्पा 4. अब E अमूटे अनुमाहिए '३६०'10 निर्मार्थ चणे गिलायमाणं माया या भगिणी वा प्या वा पलिस्सएना तं च निम्मन्थे साइनेजा मेहुणपतिसेवणपसे आवमा चाउम्मासिय परिहा राणे अगुग्याइयं ।। निगचिव निलायमाणि पिया बा माया या पुते या परिसाएजावेच निगान्धी गाइजेजा मेहणपहिशेषणपत्ता आवजा चाउम्मासिय परिहारहाण असुम्याइये ३८७०1१०1नो कप्पद निगन्याण वा निग्नन्धीण वा असणं बा० पदमाए पोरिसीए पडिग्गाहेता पउत्य पणिाम घोरिस उवाइणावेसए, से य आहब उमारणारिए सिया नो अपणा भनेजा नो असि अणुपदेना एगन्तमन्ते बहफापुए पएस (पहिले) पटिलहिता पशिना परिवेय सिया, अप्पणा भुजमाणे अमेसि वा रस (अणु-13 पदे मागे आमजद चाउम्मासियं परिहाराणं उग्याइये । ११ नो कम्पा निग्गन्धाण वा निगान्धीण वा अस वापरं अद्धजोवपमेराए उचाइमावेत्तए, सेव आहब उचाइणाविए | सिया तनो अपणा मुरेजा नो असि अणुपदेजा एगन्तमन्ते बहुफामुए पएसे पहिलेहिता पममिता परिद्ववेयो सिया, व अन्यणा भुञ्जमागे अमेसि वा दलमाणे आपला बाउमासिय परिहारहार्य उग्धाइयं "४३९।१२। निम्मन्येण यमाहानहकुल पिण्डवायपडियाए अपुष्पपिडेम अन्नवरे अचित्ते अप्रेसभिजे पागमोयणे पडिमाहिए सिया अस्थि य इत्थ के सेहतराए अणुपट्टावियए कप्पद से तस्स दाउँ वा अणुप्पदाउँ यानास्थि य इत्य केद्र सेहवराए अणुबहावियाएतं नो अप्पमा भुजेजा नो असि दावए (अगुपदेना) एमन्ते पहफागुए पाएक परिलहिता पमजिना परिहयो सिधा "१६३।१३। जे कटे कप्पद्वियार्ण कप्पा से अप्पद्वियाग नो से कप्पा कापट्ठिया, जे कडे अप्पटियाणं नी 11 सेकपा कापलिया कणा से अफापट्ठियार्ग, कणे ठिया कपाठिया अकणे ठिया अकप्पट्ठिया '४' भिक्लप गवाओ अनकम होना अर्थ गण उपसंपविता | पिडरितए नो से कप्पा अणापचिहत्ता आपरियं वा उमझायं वा पतिवारंवा गणिवा गनहरं वागणापच्छेदयं वा अर्ज गण उपसंपमित्तार्ण विहरितए, कप्पड से आप. बिला आयरिय वा जाव गणावच्छेदय वा अर्थ गर्ण उपसंपजिनाच विहरित्तए, ने य से वियोजा एव से कापड अन्नं गणं उपजिलाणं रिहरित्तए, ते बसे नो वियरेका एक से नो कापा अन्न गण उपसंपमित्तागं पिहरितए "५७४।१५ागणावोइए व गणासो अबसम्म इच्छेला असं गणं उपसंपमित्तान पिहरितए नो कप्पा गमावलेवयस्स गना- 12 बाबमोइवर्स अनिविसविता अमर्ण उपसंपजिताण चिहरितए, कपन से मणाचच्छेहवस्स मगाचच्छेइयत्त निविसविता अभंगगं उपसंपनिता पिहरितए, नो सेकपा अमानुष्ठित्ता S९६५ हत्कण्यभूत्र, उरो- मुनि दीपासावर अत्र उद्देशक:४ आरब्धः ~8~

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