Book Title: Aagam 19 NIRAYAVALIKA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
“निरयावलिका" - उपांगसूत्र-८ (मूलं+वृत्तिः) अध्ययनं [१] ---------
------ मूलं [१९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१९], उपांग सूत्र - [०८] "निरयावलिका" मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्ति:
(१९)
प्रत
सूत्राक
वासे जाई कुलाई भवति अट्टाई जहा दढप्पइयो जाब सिज्झिहिति बुझिहिति भाव अंतं काहिति । ते एवं खलु अंबू ! समणेणं भगवया जाव संपत्तेण निरयावलियाण पदमरस अज्झयणस्स अयमहे पन्नते ॥
॥ पढम अज्झयणं सम्मतं ॥१॥ जइ ण भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं निरयावलियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पन्नचे, दोबस्स णं भैते अन्झयणस्स निरयावलियाण समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं के अटे पन्नते? एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेण समएणं चंपा नामै नगरी होत्या । पुनभद्दे चेइए । कोणिए राया । पउमावई देवी । तस्य ण चंपाए नयरीए सेणियस्स रमो भज्जा कोणियस्स रनो चुल्लमाउया सुकाली नाम देवी होत्या, मुकुमाला । तोसे णं सुकालीए देवीए पुत्ते सुकाले नाम कुमारे होत्या, सुकुमाले । तते णं से मुकाले कुमारे अन्नया कयाति तिहिं दंतिसहस्सेहिं जहा कालो कुमारो निरवसेसं तं चेव जाव महाविदेहे वासे अंतं काहिति ॥२॥ . एवं सेसा वि अट्ट अज्झयणा नेयहा पढमसरिसा, णवरं मायातो सरिसणामाओ॥१०॥
। निरयावलियातो सम्मत्तातो । निक्खेवो सबेसि भाणियतो तहा ॥
॥ पढमो वग्गो सम्मत्तो॥
दीप
अनुक्रम
[१९]
॥ इति निरयावलिकाख्योपाङ्गब्याख्या ।।
मूलसूत्र-२०,२१
DIPIABPNaDROIN
मुनिश्री दीपरत्नसागरेण पुन: संपादित: (आगमसूत्र १९)
"निरयावलिका" परिसमाप्त:
~ 40~
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/21a5c50e1ecb2b1b3b612c1ab02e09e91072c6e04c636c3bae335b063110b12a.jpg)
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