Book Title: Aagam 05 Bhagavati Daanshekhariyaa Vrutti Ang Sutra 5 Part 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 16
________________ आगम (०५) “भगवती- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) भाग-१ शतक [१], वर्ग H, अंतर्-शतक H. उद्देशक [१], मूलं [७-११] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-०५], अंगसूत्र-०५] "भगवती" मूलं एवं दानशेखरसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत शतके उद्देश: सूत्रांक [७-११] गाथा mishraichimnimalsimuuidinunciatioinamriduisiamentaries पदद्वयमर्थतः स्पष्टयन्नाह-'ऊससंति नीससंति वत्ति, यदेवोक्तमानमंति तदेवोक्तमुच्छ्वसंति यदेवोक्तं प्राणति तदेव निःश्वसन्ति, 'जहाऊसासपए ति एतत् प्रश्नोत्तरं प्रज्ञापनासप्तमपदे यथा तथा वाच्यं, तच्चेदं 'गोयमा! सययं संतयामेव आणमति वा पाणम० | उस० नीस 'सययंति-सततं निरन्तरमेव 'संतयामेव'त्ति नैकसमयेऽपि तद्विरहोऽस्तीतिभावः २ । अथ तेषामाहारं प्रश्नयबाह-'आहारहिति आहारमर्थयन्ते-प्रार्थयन्ते इत्येवंशीलाः आहारार्थिनः 'जहा पन्नवणाए'ति यथा प्रज्ञापनायाः 'आहार-|| पदस्याष्टाविंशतितमस्सोद्देशकः, पदशब्दलोपात , प्रथमे आहारोद्देशके तथा वाच्यो, नैरयिकाणां स्थित्यादिद्वारगांधामाह-'ठिति उस्सासाहार'चि स्थित्युच्छ्वासाचुक्तावेव 'आहार'त्ति आहारविधिर्वाच्या, स चैवं-नेरइयाण भंते ! केवइकालस्स आहारट्टे समुप्पञ्जा', आहारार्थः-आहारप्रयोजनम्, गोयमा! नेरइयाणं दुविहे आहारे पन्नत्ते, तंजहा-आभोगणिव्वतिए अणाभोगणिब्वत्तिए, आभोगनिर्वर्तितः–आहारयामीतीच्छापूर्वकनिष्पन्नः, अनाभोगस्त्वेवमाहारयामीतीच्छामन्तरेण, प्रावृट्काले प्रचुरतर|प्रश्रवणाद्यभिव्यङ्गयशीतपुद्गलाहारवट, तत्थ णं जे से अणाभोगणिव्व से णं अणुसमयमविरहिए आहारहे समुप्पाइ, अनुसमयRIप्रतिक्षणं अविरहितं (प्रति) समय नदनीयकर्मोदयत ओजाहारादिना प्रकारेण, तत्थ णं जे आभोगणिब्बत्तिए से णं असंखेजसमइए अंतोमुहुत्तिए आहारहे समुप्पजइ, आहारयामीत्यभिलाष एषामसंख्यसामयिकान्तमुहूर्तानिवर्तितः ४। 'किंवाहारैति'नि किंस्वरूप वा वस्तु नारका आहारयन्ति, गोयमा! दब्बओ अणंतपएसियाई-अनन्तप्रदेशवन्ति पुद्गलद्रव्याणि, तदन्येषामयोग्यत्वात् , खेचओ असंखेजपएसावगाढाई-असंख्यातप्रदेशावगाढानि, तन्न्यूनतरप्रदेशावगाढानि तु तेषां न ग्रहणप्रायोग्यानि, अनन्तप्रदेशावगाढानि तु न भवन्त्येव, सकललोकस्याप्यसंख्येयप्रदेशपरिमाणत्वात् , कालओ अण्णतरट्टियाई-जघन्यमध्यमोत्कृष्टस्थितिकानि, स्थितिवा दीप अनुक्रम [८-१५] ||४|| ... अत्र नारकाणां आहार विषयक वर्णनं क्रियते ~16~

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