Book Title: Aagam 03 STHAN Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

Previous | Next

Page 18
________________ आगम (०३) प्रत सूत्रांक [3] दीप अनुक्रम [१] सूत्र वृत्तिः श्रीस्थाना- ४ युषा यशः कीर्त्त्यायुषा चाधिकार इति, एवं शेषपदाना यथासम्भवं निक्षेपो वाच्य इति ॥ उक्तः सूत्रालापकनिष्पन्ननिक्षेपः पदार्थः पुनरेवम्-इह किल सुधर्म्मस्वामी पञ्चमो गणधरदेवो जम्बूनामानं स्वशिष्यं प्रति प्रतिपादयाञ्चकार-श्रुतम् आकर्णितं 'मे' मया 'आउ'ति आयुः जीवितं तत्संयमप्रधानतया प्रशस्तं प्रभूतं वा विद्यते वस्यासावायुष्मांस्तस्यामन्त्रणं हे आयुष्मन् !-शिष्य ! 'तेणं' ति यः सन्निहितव्यवहितसूक्ष्मवादरबाह्याध्यात्मिकसकलपदार्थेष्वव्याहतवचनतयाऽऽप्तत्वेन जगति प्रतीतः अथवा पूर्वभवोपासतीर्थकरनामकर्मादिलक्षणपरमपुण्यप्राग्भारो विलीनानादिकालालीनमिथ्यादर्शनादिवासनः परिहृतमहाराज्यो दिव्याद्युपसर्गवर्गसंसर्गाविचलितशुभध्यानमार्गों भास्कर इव धनधा| तिकर्म्मघनाघनपटल विघटनोल्लसितविमलकेवलभानुमण्डलो विबुधपतिषट्पद्पटलजुष्टपादपद्मो मध्यमाभिधानपुरीप्रथमप्रवर्त्तितप्रवचनो जिनो महावीरस्तेन 'भगवता' अष्टमहाप्रातिहार्यरूपसमयैश्वर्यादियुक्तेन 'एव' मित्यमुना वक्ष्यमाणेनैकत्वादिना प्रकारेण 'आख्यात' मिति आ-मर्यादया जीवाजीवलक्षणासङ्कीर्णतारूपया अभिविधिना वा समस्तवस्तुविस्तारव्यापनलक्षणेन ख्यातं कथितं आख्यातमात्मादि वस्तुजातमिति गम्यते, अत्र च 'श्रुत'मित्यनेनावधारणाभिधायिना स्वयमवधारितमेवान्यस्मै प्रतिपादनीयमित्याह, अन्यथाऽभिधाने प्रत्युतापायसम्भवात् उक्तश" किं एत्तो पावयरं ? सम्मं अणहिगयधम्मसन्भावो । अन्नं कुदेसणाए कयरागंमि पाडेइ ॥ १ ॥ त्ति, 'मये 'त्यननोपक्रमद्वाराभिहितभावप्रमाणद्वारगतात्मानन्तरपरम्परभेदभिन्नार्गमेऽयं वक्ष्यमाणो ग्रन्थोऽर्थतोऽनन्तरागमः सूत्रतस्त्वात्मागम १ किमेतस्मात् कष्टकर सम्बम् अनधिगतसमयसद्भावः । अन्यं कुदेशनया कष्टतरागति पातयति ॥ १ ॥ २ भिन्नागमोऽयं प्र ॥७॥ “स्थान” - अंगसूत्र- ३ ( मूलं + वृत्ति:) मूलं [१] "स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः स्थान [१], उद्देशक [-], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [०३], अंग सूत्र [०३ ] Education Internation 'आउस' शब्दस्य निक्षेपा:, 'भगवत' आदि शब्दस्य अर्था: For Parts Only ~ 17~ स्थानाध्ययने आयुनिंक्षे पाः स० ॥७॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 ... 1059