Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

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Page 8
________________ में अपना काफी अच्छा विकास मान लीया है। अत: आध्यात्मिक विकास का विचार तक नहीं आता है । लेकिन जिस दिन भेदज्ञान होगा उस दिन आंखे खुलेगी । शायद तब तक बहुत देर भी हो चूकी होगी। . योगानुयोग बेंगलोर के नए स्थापित अक्की पेट जैन संघ में चातुर्मास हुआ और “आध्यात्मिक विका यात्रा' शीर्षक देते हुए पुस्तक लिखने की अतःस्फुरणा ने काफी जोर पकडा । उत्कट हुई। प्रवचनमाला की धारा भी इसी विषय पर चली । जिज्ञासु श्रोताओं को सचित्र शैली से समझाने में सरलीकरण करने के फायदे में जटील एवं रुक्ष विषय भी काफी सरल-सुगम एवं सुबोध हुआ। परिणाम स्वुरुप विस्तार भी काफी ज्यादा जरुर हुआ । लेकिन वह निरर्थक नहीं - सार्थक ही हुआ । मुद्रण व्यवस्था में काफी विलम्ब ने चित्त को काफी विक्षिप्त जरुर किया। लेकिन भवितव्ता पर छोडकर निश्चिन्त हुआ । आखिर मुनि हेमन्तविजय के पुरुषार्थ से तीनों भाग प्रसिद्ध हो रहे हैं । इसका आनन्द अवश्य हो रहा है। सिद्धान्त के क्षेत्र में सर्वज्ञ वचन विरुद्ध अंश मात्र लिखा गया हो तो त्रिविध क्षमायाचना सह मिच्छामिदुक्कडं । विद्वद्वर्ग ध्यान खिंचेगे तो अवश्य सुधारणा करुंगा । संसार की सब आत्माओं का आध्यात्मिक विकास हो ऐसी शुभ कामना। अषाढी गुरु पूर्णिमा - अकणविजय ३० जुलाइ २००७ - पुना भावना भव नाशिनी _ अनित्यादि १२ भावना तथा मैत्री आदि ४ भावना ऐसे १६ भावना योग का यह मानसशास्त्रीय मनोवैज्ञानिक विश्लेषण आध्यात्मिक उत्थान के सोपान सर करानेवाला सुंदर सात्विक सचित्र विवेचन इस पुस्तक में किया गया है। संसार से विरक्ति पाने में मददरुप बनेगा यह पुस्तक। भटकते मन पर काबू पाने के लिए भावनाओं का चिंतन बहुत आवश्यक है। पू.पंन्यास डॉ. अरुणविजयजी म.सा. ने बहुत सरल शैली से यह पुस्तक का लेखन किया है। गुजराती एवं हिन्दी भाषा IS में श्री महावीर रिसर्च फाउन्डेशन संस्था ने प्रकाशित किया है।

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