Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ मृत्यु और व्याधि का संक्रमण नहीं और न प्राधि या उपाधि का ही कोई संयोग है। जहां मनोकामनाओं को छोड़कर प्रात्मा से तुष्ट श्रात्मानंद को प्राप्त मारता है, जहां दुःख की उद्विग्नता और सुखेच्छा नहीं है तथा वीतरागता जहां ठाठे मारती हैं. जहा शुभ और अशुभ वस्तुओं के लिए अभिनन्दन और कैप की भावना नहीं है। वस्तुवः मानव मात्र का वही गन्तव्य देश और प्राप्तव्य लक्ष्य है। सत्संगति या संतवाणी के दिव्यालोक में जब एक बार यह यात्मा आलोकित हो उठता है तो फिर उने नो मुख या आनन्द की उपलब्धि होती है, वह वर्णन से परे है । प्रात्म ज्योति को जगाने में तेल, वाती आदि साधनों की अपेक्षा नहीं होती, वह तो मात्र संयम और नियमन से ही प्रज्वलित होती है। आवश्यकता इस बात की है कि शुद्ध श्रद्धा और सद्विवेक से उन वचनों का अनुशीलन कर जीवन को कल्याणमय वनाया जाय । निश्चय इन प्रवचनों के द्वारा साधक स्व साध्य-सिद्धि में सफल होंगे, ऐसी . प्रबन पाता है। बहुत कुछ सावधानी रखते हुए भी लेखन, मुद्रण व सम्पादन में त्रुटि रहना .. संभव है, तदर्थ विज्ञ पाटकों से क्षमा प्रार्थना करता हुया, शुद्धि हेतु मार्गदर्शन की अपेक्षा रखता है। अगर पाठकों ने इससे थोड़ा भी लाभ उठाया तो वे स्वयं इसकी महती ' उपयोगिता का मूल्यांकन में सफल होंगे। मुनेषु किं बहुना विनयावनत शशिकान्त झा .

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 443