Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 13
________________ m-. · सांधना का परिपाक होता है तो वे सूक्ष्म स्रोत भी अवरुद्ध हो जाते हैं और एकान्त निर्जरा का तीव्र प्रवाह चालू हो जाता है।.. साधना की वह उत्कृष्ट स्थिति धीरे-धीरे, प्रचण्ड पुरुषार्थ से प्राप्त होती है। आज आप के लिए वह दूर की कौड़ी है। आपको कर्मास्त्रव के मोटे द्वार अभी बन्द करने हैं । वे मोटे द्वारा कौने-से हैं ? शास्त्र में पांच मोटे द्वार कहे गए हैं हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्मचर्य और परिग्रह । यह पांच प्रास्रव भी कहलाते हैं। - आशंका हो सकती है कि प्राणातिपात यदि पाप है तो उसे आस्रव क्यों कहा गया है ? पाप और प्रास्रव में भेद है ।. जब तक प्राणातिपात का कारण रूप हिंसा चल रही हैं, तब तक वह क्रिया हैं, आस्रव है और कार्य रूप मे हो चुकने पर पाप है। किन्तु पाप और प्रास्रव में सर्वथा भेद भी नहीं समझना चाहिए। प्रास्रव के दो रूप हैं शुभ और अशुभ । अशुभ प्रास्रव पाप रूप है। यहां यह बतलाने की आवश्यकता नहीं कि हिंसा आदि अशुभ व्यवहार - कर्मास्रव के कारण होने से पाप ही कहलाते हैं। कोई व्यक्ति व्रतादि करके तप तो करे किन्तु हिंसा जारी रक्खे तो उसको पाप आता रहेगा, क्योंकि उसने प्रास्रव द्वार खुला रक्खा हैं। बहुत बार तो ऐसा होता हैं कि नवीन बन्ध अधिक और निर्जरा कम होती है । निर्जरा का परिणाम इतना कम होता हैं कि आने वाला पाप बढ़ जाता है। किसी को कमाई प्रतिदिन एक रुपया हो और खर्च आठ रुपया, तो ऐसा व्यक्ति लाभ में नहीं रह सकता, घाटे में ही रहेगा। वह अपना भार बढ़ा भले ले, घटा नहीं सकता। अतएव यह आवश्यक है कि उपवास के साथ ही साथ हिंसादि आस्रवों का भी त्याग किया जाय । नूतन पाप के आगमन के द्वार बन्द कर दिये जाएं। - श्रावक आनन्द की व्रतचर्या से इस विषय पर स्पष्ट प्रकाश पड़ता है। उसने व्रतों को अंगीकार करके पाप का मार्ग छोटा कर दिया था । तीसरे व्रत के पांच दूषणों में से दो की चर्चा पहले की जा चुकी है, जो इस . प्रकार हैं- . . .

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