Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ ५. है। यह विरुद्ध राज्यातिक्रम इसीसे चोरी है और इससे अचौर्य व्रत दूषित हो जाता है। यों भी वैध अनुमति के बिना किसी राज्य की सीमा का उल्लंघन — करना अतिचार है, क्योंकि वह दूसरे राज्याधिकारियों के लिए शङ्का का कारण - बन जाता है। ऐसा व्यक्ति, जो किसी दूसरे देश का प्रजाजन है, यदि किसी अन्य देश में चला जाय तो उसे गुप्तचर समझ कर गिरफ्तार कर लिया जाता .. है ।हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की सीमा के उल्लंघन से आधुनिक काल में ऐसी - - सैकड़ों घटनाएं घटित हुई और हो रही हैं। .. . अमेरिका के लिए रूस का और रूस के लिए अमेरिका का गगन 'मण्डल बिना अनुमति के निषिद्ध है, अतएव उसमें वायुयानों की उड़ान निषिद्ध है। उसमें भेद लेने की आशंका हो जाती है। यही कारण है कि एक देश के गगनमण्डल में बिना अनुमति प्राप्त किये यदि दूसरे देश का विमान उड़ता है तो उसे मार गिराया जाता है । इस प्रकार स्थलगत, जलगत और गगनगत, तीनों सीमाओं का अतिक्रमण करना दोष है। इसी प्रकार कोई स्वार्थ के वशीभूत होकर यदि देश की सुरक्षा के नियमों का उल्लंघन करता है एवं राजकीय नियमों से विरुद्ध कार्य करता है तो वह भी तीसरे व्रत का अतिचार है। . . राजकीय विधान के अनुसार कर न देना, सीमा प्रवेश का टैक्स न चुकाना, विना टिकिट रेलयात्रा करना आदि भी इस व्रत के अतिचारों में सम्मिलित है ! यह सब चोरी के ही विविध रूप हैं । ऐसा करने से मनुष्य नैतिक - दृष्टि से पतित होता है और जो नैतिक दृष्टि से पतित हो वह धार्मिक दृष्टि से । . . उन्नत कैसे हो सकता है ? नैतिकता की भूमिका पर ही धार्मिकता की इमारत खड़ी होती है । अतएव जो नीति भ्रष्ट है, वह धर्म से भी भ्रष्ट होगा। .. नीतिमान् सद्गृहस्थं इन सब अतिचारों से बचकर रहता है। फिर श्रावक का तो कहना ही क्या । उसका स्तर बहुत ऊंचा और सम्मानित है.।। यदि श्रावक आगम प्रतिपादित मार्ग पर चलता है तो उसके गार्ह स्थिक कृत्यों में किसी प्रकार की कठिनाई भी नहीं आती और वह राजकीय दंड से भी: सदा . - सर्वदा बंचा रह सकता है। वास्तव में जैन शास्त्रों में प्रदर्शित श्रावक धर्म किसी भी काल के आदर्श प्रजाजनों का एक सुन्दरतम आदर्श विधान है, जिसमें .

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 443