Book Title: Aadhunik Hindi Jain Sahitya
Author(s): Saroj K Vora
Publisher: Bharatiya Kala Prakashan

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Page 2
________________ केवल बोध या चिन्तन-प्रणाली नीरस व जड़ क्रियावादी भी हो सकती हैं, लेकिन इसे ही ललित साहित्य के रूप में प्रस्तुत कर व्यापक व लोकप्रिय बनाया जाता है। अतः ऐसी रचनाओं को प्रकाश में लाकर उनका अनुशीलन- परिशीलन करने का प्रयास प्रस्तुत पुस्तक में किया गया है। प्रथम अध्याय में जैन धर्म की परिभाषा, महत्त्व, अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर के समय की परिस्थितियाँ, महावीर की विविध क्षेत्र में विश्व को देन, जैन धर्म के प्रमुख तत्त्व व उनकी आधुनिक युग में उपादेयता का विवेचन किया गया है। दूसरे अध्याय में आधुनिकता का महत्त्व, प्रारंभ व सानुकूल परिस्थितियों के चित्रण के साथ हिन्दी साहित्य में आधुनिक युग का प्रारंभ निर्दिष्ट कर हिन्दी जैन साहित्य में आधुनिक युग का प्रारम्भ और विकास बताया गया है। तृतीय अध्याय में प्रबंध और मुक्तकके आवश्यक तत्त्वों के परिचय के साथ उपलब्ध महाकाव्यों की कथावस्तु, रस, नेता, कल्पना, जीवन-दर्शन आदि पहलुओं पर विस्तृत विचार किया गया है। चतुर्थ अध्याय में आधुनिक युग में गद्य के महत्त्व, प्रारंभ व प्रसार पर दृष्टिपात करके आधुनिक जैन गद्य साहित्य की विविध कृतियों का विषयवस्तु परक परिचय विस्तृत रूप से प्रस्तुत किया गया है। पंचम अध्याय में पद्य के बाह्य सौन्दर्य के लिए आवश्यक महत्त्वपूर्णतत्त्वों के निरूपण के बाद आलोच्य जैन- प्रबन्ध काव्यों के सौन्दर्य पक्ष में छन्द, अलंकार प्रबन्धतत्त्व, भाषा-शैली, वर्णनात्मकता, सूक्ति प्रयोगों की चर्चा के साथ मुक्तक रचनाओं की भाषा-शैली, छन्द, अलंकारादि का विवेचन किया है। छठा अध्याय गद्य-साहित्य की विशिष्टता व्यक्त करनेवाले तत्त्वों के परिचय के साथ उपलब्ध प्रत्येक विधागत विशिष्ट कृतियों का भाषा-शिल्प, संगठनसौष्ठव, चारित्रिक विश्लेषण, संवाद, उद्देश्य, शैली आदि दृष्टियों से विवेचन किया गया है। I.S.B.N. : 81-86050-26-4 पृष्ठ सं० 538 + xvi, आकार 9"x5.75" संस्करण : 2000 मूल्य : 600.00

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