Book Title: Shrutsagar Ank 1996 01 002
Author(s): Manoj Jain, Balaji Ganorkar
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र का मुखपत्र श्रृत सागर आशीर्वाद : राष्ट्रसंत जैनाचार्य श्रीपद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. अंक : २ माघ वि.सं. २०५२, जनवरी १९९६ अंधान संपादक : मनोज जैन संपादक : डॉ. बालाजी गणोरकर शासन प्रभावना युक्त कलकत्ता का ऐतिहासिक चातुर्मास पूर्ण कर नेपाल की ओर राष्ट्रसंत का प्रस्थान चातुर्मास के चारों महिने कलकत्ता शहर में एक महोत्सव जैसा वातावरण बना रहा. पूज्य आचार्यश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. के दर्शन एवं प्रवचन श्रवण के लिये शहर एवं वाहर से आनेवालों की भीड़ लगी रहती. पूज्य आचार्यश्री के व्यक्तित्व से प्रभावित अनेक जनोंने व्रत-नियम आदि लेकर अपने जीवन को सफल वन्प्रया.प्रवचन के द्वारा हजारों युवकों में नई धर्मचेतना जागृत हुई है. श्राविकाओं में तपस्या की हारमाला लगी हुई थी. पर्युषण पर्व आदि प्रसंगों पर वोलियों ने एक रेकोर्ड बनाया है. चैत्य परिपाटी का भव्य वरघोड़ा (शोभा यात्रा) अपने आपमें एक अनोखा प्रसंग था. दादावाड़ी-श्री आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा बद्रीदास जैन टेम्पल में १० दिन को आचार्यश्री का संयम अनुमोदना - जन्म दिन के जैन सांस्कृतिक एवं श्रुत परंपरा का रक्षक निमित्त महोत्सव कलकत्ता के इतिहास में यादगार - अनुमोदनीय प्रसंग वन गया. इस अवसर पर पूज्य आचार्यश्री के दर्शनार्थ वम्बई - दिल्ली - मद्रास - अहमदाबाद से सम्राट् सम्प्रति संग्रहालय असंख्य दर्शनार्थी एवं केंद्रीय मंत्री सर्वश्री वुटासिंहजी, जगदीश टाईटलर, संतोष मोहन | श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा परिसर में दर्शनीय आचार्यश्री देव, डॉ. उर्मिलावेन पटेल आदि भी आये थे. गुजरात के भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्री छवीलदास | कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के महत्त्वपूर्ण भागरूप सम्राट् सम्प्रति संग्रहालय का भारत मेहता भूतपूर्व शहरी विकास मंत्री नरहरि अमीन, कलकत्ता हाई कोर्ट के मुख्य के संग्रहालयों में महत्त्वपूर्ण स्थान है. भगवान महावीरस्वामी के आदर्श सिद्धान्तों का न्यायाधिपति श्रीमान् अग्रवाल साहव, सांसद श्री गुमानमलजी लोढा, दैनिक विश्वामित्र | प्रसार-प्रचार एवं प्राचीन जैन सांस्कृतिक धरोहर और कलासंपदा का संशोधन-संरक्षण के संपादक आदि आचार्यश्री के गुणानुवाद करने आये थे. करना एवं इस हेतु लोक जागृति लाना इस संग्रहालय का प्रमुख उद्देश्य है. ___ पूज्य आचार्यश्री के चातुर्मास के अंतर्गत श्री संघ के कई महत्त्वपूर्ण कार्य संपन्न ___इस संग्रहालय में प्राचीन और कलात्मक पाषाण, धातु, काष्ठ, चंदन एवं हाथीदांत हुए हैं. श्री पार्श्वनाथ फाउन्डेशन की स्थापना भी पूज्यश्री के आशीर्वाद एवं गणिवर्य |की कलाकृतियाँ विपुल प्रमाण में संगृहित की गई हैं.इनके अलावा ताड़पत्र एवं कागज श्रीदेवेंद्रसागरजी म.सा. की प्रेरणा से हुई है. ५१ लाख रूपये का यह स्थाई फंड साधर्मिक पर बनी सचित्र हस्तप्रतें, प्राचीन चित्रपट, विज्ञप्ति पत्र, गट्टाजी,प्राचीन शैली के चित्र, वन्धुओं की भक्ति एव अनुकम्पा के कार्य में उपयोग किया जायेगा. आचार्यश्री के आगमन | सिक्के एवं परंपरागत कलाकृतियों का संग्रह किया गया है. इस संग्रहालय में विशेष और उनकी वाणी से जैन एकता का सुंदर दर्शन इस चातुर्मास में हुआ. दिगम्वर | रूप से जैन संस्कृति, जैन इतिहास और जैन कला का अपूर्व संगम है. समस्त संग्रह स्थानकवासी-तेरापंथी तथा अन्य समाज के लोग भी प्रवचन का लाभ लेने आते थे. की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए एक अद्यतन प्रयोगशाला भी बनाई गई है, जिसमें समयपूज्यश्री के शिष्य उपाध्याय श्री धरणेंद्रसागरजी म.सा. एवं पं. श्री वर्धमानसागरजी समय पर कलाकृतियों को रासायनिक एवं वैज्ञानिक प्रक्रिया द्वारा उपचार किया जाता है, म. सा. ने क्रमशः केनिंग स्ट्रीट एवं हंस पोखरीया में चातुर्मास करके वहाँ के संघों ____ संग्रहालय को आठ खंडों में विभक्त किया है.१. वस्तुपाल तेजपाल खंड,२. ठक्कर को भी सुंदर लाभ दिया है. चातुर्मास बिदाई समारोह का दृश्य भी अद्भुत था. कांकरिया | फेरु खंड, ३. परमार्हत् कुमारपाल खंड, ४. जगत शेठ खंड, ५. श्रेष्ठि धरणाशाह सेंटर में ५००० लोगों की उपस्थिति में आचार्यश्री को भावभीनी विदाई दी गई. इस खंड, ६. पेथडशा मन्त्री खंड, ७. विमल मंत्री खंड ८. दशार्णभद्र मध्यस्थ खंड. प्रसंग पर श्री कांकरिया परिवार की तरफ से सुंदर स्वामिवत्सल का आयोजन प्रशंसनीय | सम्राट सम्प्रति संग्रहालय में प्रदर्शित महत्त्वपूर्ण कलाकृतियाँ : रहा. आचार्यश्री भवानी पुर संघ चातुर्मास पूर्ण करके हावड़ा-मल्लिक फाटक श्री संघ । प्रथम एवं द्वितीय खंड में पाषाण एवं धातु की प्राचीन कलाकृतियों को प्रदर्शित की विनंती से श्री नूतन जिनमंदिर की अंजन शलाका-प्रतिष्ठा के लिये पधारे. अनुठे | किया गया है, जिनमें तीर्थंकर ऋषभदेव की वलुआ पत्थर से बनी वि. सं. ११७४ उत्साह के साथ प्रतिष्ठा का कार्य संपन्न हुआ. की प्रतिमा, वसंतगढ़ शैली की ७वीं से ९वीं शताब्दी की पंचधातु से बनी तीर्थंकर __ पूज्य आचार्यश्री को आगामी चातुर्मास के लिये उनकी जन्म भूमि अजीमगंज में | की प्रतिमाएँ अपनी अलौकिक एवं अभूतपूर्व मुद्रा के साथ प्रदर्शित है. तृतीय एवं चतुर्थ करने की विनती के लिये श्री अजीमगंज-जीयागंज-मूर्शिदाबाद श्री संघ के सैकड़ों सज्जन | खंड में श्रुत संबंधित जानकारियाँ दी गई है. ईसा. पूर्व ३ री शताब्दी से इ. १५ वीं आये थे.आचार्यश्री ने उनकी भावना-भक्ति-उत्साह देखकर अपनी स्वीकृति प्रदान की. शताब्दी तक ब्राह्मी लिपि का विकास, आलेखन माध्यम, आलेखन तकनीक, एवं इससे श्री संघ में एक अपूर्व प्रसन्नता छा गई है. आचार्यश्री धनबाद की ओर विहार | आलेखन संरक्षण के नमूने प्रदर्शित किये गये हैं. इनके अलावा आगम शास्त्र एवं अलगकिय है, वहा सवछरा पालित सघ ३०० व्यक्तियों का लकर शिखरजी पधारन अलग विषयों से संबधित हस्तलिखित ग्रंथ भी प्रदर्शित किये गये हैं. . शेष पृष्ठ ३ पर शेष पृष्ठ २ पर For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुत सागर, माघ २०५२ खामे मि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्ती मे सव्व भूएसु, वेरं मझं न केणइ ।। संस्थाना ज्ञानमंदिरना शिला स्थापन प्रसंगे रहेवानु थयु.ज्ञानमंदिरना निर्माण कार्यनी [पंचप्रतिक्रमणसूत्र) दीर्घ दृष्टि जो ए मुजब कार्यरत बनी रहेशे तो विज्ञान अने धर्म बन्नेनी सापेक्षतानो अनुभव मैं सभी जीवों से क्षमा याचना करता हूँ सभी जीव मुझे भी क्षमा प्रदान करें. मेरी | करी शकाय तेवी शक्यता छे. उत्साहि कार्यकरो पूरे पूरा समर्पित तो छ ज पण सभी जीवों के साथ मैत्री है. किसी के साथ भी मेरा वैर नहीं है। 0 ज्ञानमंदिरनो निर्माण कार्य पूर्ण थता तेने चेतनवंतु बनाववा अथाग प्रयत्ननी जरूरियात आवश्यक बनी रहेशे. शासन देवने प्रार्थना छे सर्वने प्राचीन विद्याओगें एक प्रतिक संपादकीय) बनाववा सहाय करे. -आचार्य श्रीचंद्रोदयसूरि ___ अहिंर्नु परिसर घणुंज सुंदर ने रमणीय छे. तेम ज सम्यग् दर्शनने ज्ञाननी प्राप्तिने माननीय श्रुतभक्त, अने चारित्रनी आराधनाने अनुकूळ छे.आस्थळ वधु ने वधु विकसित थाय एवी शुभेच्छा. श्रुतसागर का प्रवेशांक आपको अपेक्षा से अधिक पसंद आया. इस संदर्भ में हमें -आचार्य श्रीविजयसूर्योदयसूरि अनेक पत्र एवं मौखिक शुभाशंसायें प्राप्त हुई हैं. एतदर्थ हम अपने सभी शुभचिंतकों| श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र में जैन धर्म की प्राचीनतम पुस्तकों के संग्रह का के आभारी हैं. प्रयास सराहनीय है. पुस्तकालय के निर्माण की योजना व दुर्लभ पुस्तकों के संरक्षण प्रस्तुत अंक में इस पत्रिका की पृष्ठ संख्या बढाई गई है. तदनुसार वाचन सामग्री | के नवीनतम साधनों के उपयोग के संबंध में प्रमुख ट्रस्टियों के साथ विचार विमर्श से तथा नये स्तम्भ प्रारम्भ करने का प्रयास हुआ है. 'जैन साहित्य' स्तम्भ के अन्तर्गत | लगा कि संभवतया यह भारत में अनूठा अद्भुत अनुपम प्रयास होगा. आचार्य भगवन् जैन आगम एवं कथा साहित्य का परिचय जिज्ञासुओं को होगा. इसी प्रकार 'इतिहास | श्रीपासागरसरीश्वरजी की विद्वत्ता व दरदर्शी दर्शन की योजना विश्व के जैन दर्शन के झरोखे से' आपको जैन धर्म एवं संस्कृति के पोषण एवं संवर्द्धन में अपनी भूमिका म यह नयी कड़ी होगी. - मुख्य न्यायाधीश (नि.) व सांसद गुमानमलजी लोढ़ा प्रस्तुत करने वाले ऐतिहासिक पात्रों का दर्शन हो सकेगा. ग्रंथावलोकन में नवप्रकाशित | जैन दुर्लभ साहित्य का संग्रह देखकर अभिभूत हुआ. निःसंदेह जैन संस्कृति और जनोपयोगी पुस्तकों की समीक्षा की जाती है. इस अंक को प्रस्तुत करने में सर्व श्री | ज्ञान के लिए जो प्रयास और श्रम-साधना की जा रही है, अनुकरणीय है. समर्पित भाव राम प्रकाश झा, आशित शाह, कौशिक पुरोहित, जिज्ञेश शाह तथा केतन शाह का | से इसका संरक्षण और विकास न केवल भारत अपितु विश्व के लिए अनूठा उदाहरण सहयोग मिला है. हमें विश्वास है कि श्रुतसागर का यह अंक आपकी अभिलाषा पूर्ण | सिद्ध होगा. 'स्कालर्स' के लिए ऐसा अन्य उपयोगी मंच मिलना मुश्किल है. कर सकेगा. __. मनमोहन जैन, प्रशासक, नाकोडा जैन तीर्थ ____ अपने सुझाव एवं प्रतिक्रिया लिखना न भूलें. पृष्ठ १ का शेष ((वृत्तान्त सागर) जैन सांस्कृतिक एवं श्रुत परंपरा का रक्षक... पाँचवे और छठे खंड में गुजरात की जैन चित्र शैली के इस्वी. ११वी शताब्दी श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र में से १८ वीं शताब्दी के चित्र, सचित्र हस्तप्रतें, सचित्र गुटके, आचार्य भगवंतों को चातुर्मास उपधान तप का भव्य समापन के लिए आगमन हेतु विज्ञप्तिपत्र एवं प्राचीन यंत्र चित्रादि वस्त्र पर प्रदर्शित किये गये हैं. गच्छाधिपति शासन प्रभावक आचार्य भगवंत श्री विजयमेरुप्रभसूरीश्वरजी म. सा. ___ सातवे खंड में चंदन एवं हाथी दांत की सुंदर कलाकृतियाँ प्रदर्शित की गई हैं. | के शिष्यरत्न पू. आ. श्री विजयमानतुंगसूरीश्वरजी म. सा. , पू. पंन्यास श्री जो दर्शकों का मन मोह लेती हैं. इनके अलावा परंपरागत कई पुरावस्तुओं का प्रदर्शन इन्द्रसेनविजयजी म. सा., पू. पंन्यास श्री सिंहसेनविजयजी म.सा. आदिकी निश्रा में भी किया गया है. श्रेष्ठिवर्य संधयी श्री छगनलालतिलोकचन्दजी (किवरलीवाला) साकरिया परिवार की सम्राट सम्प्रति संग्रहालय अपने विकास के पथ पर अग्रसर है. सभी कलाकृतिओं ओर से उपधान तप की आराधना बड़े ठाठ एवं होल्लास पूर्ण वातावरण में सम्पन्न को एक ही स्थान पर सुसंयोजित करना, संरक्षण करना, समय-समय पर विशिष्ट प्रदर्शन हुई. की योजना बनाना, संशोधन करना, कीटादि से बिगड़ी हुई कलाकृतियों को पुनः २१२ आराधकों में से१२८ आराधकों ने पुण्यात्मा माला परिधान की. पोष संस्कारित करना और जैन संस्कृति की प्राचीनता एवं भव्यता के प्रमाण पत्र समाज वद-१० मंगलवार दि-१६-२-१९९६ को रथयात्रा का वरघोड़ा (शोभा यात्रा) तक पहुँचाना इस संग्रहालय का ध्येय है, एवं मालारोपण का भव्य कार्यक्रम सुसम्पन्न हुआ. सोने में सुगंध की तरह- उपधान की तपश्चर्या के साथ-साथ चार मुनि भगवंतों पृष्ठ ८ का शेष) कम्प्यूटराइजेशन प्रोजेक्ट ___ सम्राट सम्प्रति संग्रहालय में संगृहीत एवं प्रदर्शित हस्तप्रतों, प्रतिमाओं, पुरावस्तुओं | प. पू. मुनि श्री विश्वसेनविजयजी म. सा., मुनि श्री सुव्रतसेनविजयजी म. सा., मुनि हेतु विशेष रूप से कम्प्यूटर प्रोग्राम तैयार किया गया है. इस प्रोग्राम के अन्तर्गत किसी | | श्री मलयसेनविजयजी म. सा. एवं मुनि श्री मतिसेनवजयजी म. सा. को श्री महा भी वस्तु/इकाई का बार-बार प्रत्यक्ष व्यवहार आवश्यक नहीं रह जाता. सभी संगृहित निशीथ का योगोद्वहन सुख-शाता पूर्वक परिपूर्ण हुआ है. वस्तुओं के फोटोग्राफ कम्प्यूटर में Scan कर लेने के वाद संशोधन हेतु मूल पुरावस्तु | ता. ५.१.९६ को पूज्य आचार्य श्री जिनभद्रसूरीश्वरजी म. सा., पू. आचार्य श्री को उपलब्ध कराने की आवश्यकता नहीं रह जाती. इससे मानव सहज असावधानी | यशोवर्मसूरीश्वरजी आदिठाणा का इस तीर्थ में दर्शनार्थ पदार्पण हुआ था. पूज्य आचार्य वश भूल से क्षति होने की सम्भावना नहीं रहती तथा साथ ही इनकी अधिकतम सुरक्षा | श्री यशोवर्मसूरीजी एक जाने माने प्रवचनकार हैं. भी सुनिश्चित हो जाती है. गणिवर्यश्री अमृतसागरजी महाराज साहेब को गांधीनगर में आध्यात्मिक पुस्तक मेला पंन्यास पद प्रदान समारोह गांधीनगर] ता. २३-१२-९५ से २५-१२-९५ तक प्र. व्र. ई. विश्वविद्यालय द्वारा सम्मेत शिखर] आगामी २४ जनवरी १९९६ को राष्ट्रसंत आचार्यश्री आयोजित आध्यात्मिक पुस्तक मेले में विविध धर्मों की २२ संस्थाओने भाग लिया. पद्मसागरसूरी म. सा. की निश्रा में नमस्कारादि मन्त्र-जाप सन्निष्ठ प. पू. गणिवर्य श्रीमहावीर जैन आराधना केन्द्र की ओर से सर्वश्री आशित शाह एवं कौशिक पुरोहित श्रीअमृतसागरजी म.सा. को पंन्यास पद प्रदान करने हेतु भोमियाजी, सम्मेत शिखर ने जैन धर्म एवं संस्था की विविध गतिविधियों से जिज्ञासुओं को अवगत कराया. में समारोह आयोजित किया गया है. For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुत सागर, माघ २०५२ www.kobatirth.org सुभाषित लाभालाभे सुहे दुक्खे, जीबिए मरणे तहा। समो निंदापसंसासु, समो माणवमाणओ ।। १९-९१ उत्तराध्ययन सूत्र ] लाभ-हानि, सुख-दुःख, जीवन-मृत्यु, निंदा - प्रशंसा एवं मान-अपमान आदि प्रत्येक स्थिति में समभाव से रहता है वही वास्तविक साधु है. 838 36 36 96363888 त्रिभिर्वर्षैस्त्रिभिर्मासैस्त्रिभिर्पक्षैस्त्रिभिर्दिनैः । अत्युग्रपुण्यपापानामिहेव लभ्यते फलम् ।। अत्यन्त उग्र पुण्य अथवा पाप किया जाय तो इसी भव में उसका अच्छा या बुरा फल तीन वर्षों में, तीन महींनों में, तीन पक्षों ( पखवारों) में अथवा तीन दिनों में प्राप्त हो जाता है. 989836339 सोचते-सोचते.... वसन्त आया. पेड़ों में नवीन कोपलें फूटने लगी. चारों ओर खुशनुमा हवा चलने लगी बुलबुलने सोचा घोंसला बनाया जाए यहाँ बनाया जाय या वहाँ बनाया जाय यह सोचते सोचते बहार खत्म हुई और पतझड आ गया. O पृष्ठ १ का शेष ] नेपाल की ओर राष्ट्रसंत वाले हैं. माघ शुदि में वहाँ अंजनशलाका-प्रतिष्ठादि होने वाले हैं. यहाँ से ये पायापुरी पधारेंगे. उनके स्वागत की तैयारी जोर शोर से हो रही है. वहाँ से कुंडलपुर (नालंदा) श्री गौतम स्वामिजी की जन्मभूमि में नूतन जिनालय की प्रतिष्ठा हेतु आचार्य श्री पधारेंगे, तत्पश्चात् राजगीरजी यात्रार्थ जाने वाले हैं. वहाँ पर भी उनके भव्य स्वागत की तैयारी हो रही है. वहाँ से पटना होकर नेपाल की भूमि में सर्व प्रथम जैनाचार्य का आगमन होने वाला है. काठमांडू (नेपाल) पूज्यश्री के स्वागत एवं जिनमंदिर की सुंदर भव्य प्रतिष्ठा हेतु तैयारी में लगा हुआ है. आचार्यश्री दो महिने नेपाल में स्थिरता करने वाले हैं. 0 पृष्ठ ८ का शेष ] ग्रंथावलोकन बोलता है जब कि मूर्ख पहले बोलता है और फिर सोचता है. इस कथन की पुष्टि में आपने महानिशीथ सूत्र में वर्णित रज्जा साध्वी का वृत्तान्त उद्धृत किया है. जिसके विचार रहित वाणी से रज्जा के जीव को असंख्य योनियों में भटकने को विवश कर दिया था. अन्तिम दशम प्रवचन में जीवन व्यवहार का स्वरूप कैसा होना चाहिये बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया गया है. जीवन में परमात्मा की प्राप्ति हो इसके लिए दैनिक व्यवहार को नियमित करने की अत्यंत आवश्यकता है. नीतिनियमों को स्वीकार करने से जीवन नियमित होता है और कोई भी व्यक्ति अधर्म या अनीति के पाप के दलदल में फँसने से बच सकता है. पू. आचार्यश्री जैन संस्कृति और साहित्य के दिग्गज रक्षक तथा कला सहित भारतीय संस्कृति एवं साहित्य के मर्मज्ञ है. आपके इन प्रवचनों में अभिव्यक्त वाणी एवं भावना समस्त जीव मात्र के कल्याण के लिए उपयोगी है. इस ग्रंथ का पाठक किसी भी धर्म का अवलम्वन करता हो, निस्संदेह प. पू. गुरु भगवंत की वाणी का रसास्वाद कर अभिभूत हो जाएगा और उसे इस दिशा में और चिंतन करने के लिए प्रेरणा मिलेगी. ग्रंथनाम : जीवन दृष्टि, प्रवचनकार आचार्यश्री पद्मसागर सूरि, प्रथम संस्करण प्रेरक : पू. मुनिश्री देवेन्द्रसागरजी, संपादकः सुशील भंडारी एवं शांति प्रकाश सत्यदास वि. २०४२, मूल्य : २५/- (रू. पच्चीस मात्र), संस्करण : द्वितीय, वर्ष १९९६, वि. २०५२ प्रकाशक : अरूणोदय फाउण्डेशन, कोवा, गांधीनगर ३८२००९ : : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ जैन साहित्य १ परमात्मा महावीर देव ने तीर्थ स्थापना के २५०० वर्ष हो जाने के बाद भी जैन धर्म आज उतना ही गौरव प्राप्त किये हुए है. जैन अनुयायी धन समृद्धि वैभव से आम तौर पर सम्पन्न हैं फिर भी उनके अन्दर धार्मिकता की कोई कमी नहीं होती. उनके अन्दर वे दूषण अभी तक प्रवेश नहीं कर पायें है जो अन्य धन-वैभव से सम्पन्न लोगों में आ जाते हैं. जैन धर्म की जड़ें इतनी मजबूत है कि आज भी वह अपने प्राचीन रूप में गौरवमयी परम्परा की रक्षा करते हुए विद्यमान है. जैन साधु-साध्वी हो या श्रावक सभी वर्ग अपने एक मात्र लक्ष्य मोक्षमार्ग की उपासना में प्रवृत्त दिखते हैं.' . धनाढ्य श्रेष्ठी भी अधर्म से उतना ही डरता है जितना कोई सामान्य व्यक्ति. जैन धर्म केवल वर्तमान काल या इस 'भव' की ही बात नहीं करता बल्कि आने वाले भवों (जन्मों) में भी प्रत्येक जीव को जो अपने किये कर्मों का फल भोगता है, उसकी भी बात करता है. उसे इस दिशा में प्रवृत्त करता है कि वह अपने कर्मों को सुधार, कर्म सुधरेगा तो जीव का यह जन्म सुधरेगा, यह जन्म सफल हुआ तो निस्संदेह धीरे-धीरे जीव को मुक्ति मिल जाएगी. यह भावना कि हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है, हमें यह जन्म क्यों मिला हैं, हमारे पास जो कुछ भी आज है, वह क्यों है और क्या मेरा फिर जन्म हुआ तो यही और ऐसा ही मिलेगा ? इन प्रश्नों एवं वस्तुस्थिति का चिंतन जैन धर्म वड़ी ही सहजता से करता है जो अन्यत्र स्पष्ट एवं सरल नहीं है. २४ तीर्थकरों सहित भगवान श्री महावीर की वाणी आज भी लोगों को उतनी ही शांति एवं प्रेरणा दे रही है. इसका कारण क्या आप जानते हैं ? इसका कारण मात्र जैन श्रुत परम्परा की वाहक जैन श्रमण परम्परा एवं आगम साहित्य सहित विशाल जैन साहित्य है. इसकी इतनी बड़ी मात्रा में लोकप्रियता का कारण भी जैन साहित्य की भाषा थी, जो अधिकांशतः तत्कालीन लोक प्रचलित प्राकृत भाषा थी. जैन धार्मिक साहित्य सामान्यतः उस जमाने में इस प्रकार लिखे गए थे कि वे आम आदमी की सोच-समझ के अनुकूल हो. भाषा की सरलता के कारण जैन धर्म का अभूतपूर्व प्रचार-प्रसार एवं विकास हुआ है. लोक भाषा प्राकृत की रचनाओं पर वाद में संस्कृत में टीका, वृत्ति, टिप्पणी आदि लिखी गईं, जो विद्वद्भोग्य बनी. कालान्तर में प्राकृत लोकभाषा न रह सकी लेकिन यह भाषा श्रमण भगवंतों द्वारा फिर भी जीवित रही. For Private and Personal Use Only लगभग दसवीं शताब्दी के बाद से आधुनिक काल तक जहाँ एक ओर मूल आगम साहित्य पर अनेक अध्ययन लिखे गये लिखे गए, वहीं दूसरी ओर न्याय, व्याकरण, तत्वदर्शन, जिन चरित्र ग्रंथ, पद्यात्मक पुराण ग्रंथ, ललित साहित्य, दार्शनिक साहित्य, अनुष्ठानात्मक साहित्य, महाकाव्य, ऐतिहासिक काव्य, खण्डकाव्य, प्रवन्ध, एवं रूपक ग्रंथों की रचना हुई. इन रचनाओं के प्रकार खास तौर पर गद्य, पद्य, चंपू आदि रहें. इनकी रचना प्रायः अपभ्रंश, शौरसेनी, अर्द्धमागधी, मारुगुर्जर, प्राचीन हिन्दी,, कन्नड़, तमिल, मराठी के साथ ही आधुनिक भारतीय भाषाओं में हुई है. श्रमण जैन साहित्य अथाह सागर जैसा है. इसके संरक्षण, पोषण एवं प्रवर्धन का श्रेय विशेष रूप से जैन धर्म की सुदृढ़ श्रुत परम्परा एवं श्रमण समुदाय को जाता है. 5 भगवंतों ने इन ग्रंथों की रचना अपने को ग्रंथकार कहलाने के लिए नहीं वल्कि अपने शिष्य परिवार की आत्मोन्नति में सहायक सिद्ध हो सके, उन्हें बोध करा सकें, इस हेतु से की थी. इस साहित्य में जैनधर्म एवं संस्कृति के अद्भुत रहस्य छिपे हुए हैं. दुर्भाग्य से कालान्तर में अनेक शास्त्रीय ग्रंथ एवं साहित्य लुप्त हो गए हैं, अतएव इस अनमोल खजाने का अध्ययन, मनन एवं संरक्षण आवश्यक हो गया है. वर्त्तमान समय में इसे हम प्राचीन काल की अपेक्षा निश्चित तौर पर ज्यादा अच्छी तरह से सुरक्षित एवं संरक्षित कर सकते हैं. विज्ञान का उपयोग इन शास्त्रों के अध्ययन, अध्यापन, संरक्षण में किया जाए तो जैन धर्म एवं संस्कृति का और संवर्धन हो सकता है. साहित्य जैन धर्म की नाड़ी एवं धमनी का कार्य कर रहा है. कहीं इसकी गति मन्द शेष पृष्ठ ७ पर] यह Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वटपार १५ जमुई GGG : गाँव स्थान वण्डेल श्रुत सागर, माघ २०५२ प. पू. राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत कि.मी. दिनांक स्थान बराकर १८ श्री पद्मसागरसूरीश्वर जी म. सा. का २७-०१-९६ धर्मशाला गिरिडीह १४ २८-०१-९६ कमलसींगजी रामपुरिया के संभवित विहार कार्यक्रम बंगले में संपर्क सूत्र वेगावाद ११ २८-०१-९६ शाम स्कूल दिनांक ०२-१२-९५ से ०५-०४-९६ तक पत्र व्यवहार का पता बुरचुट्टा १९१/२ २९-०१-९६ स्कूल C/o एस.के. सिंघी शेरोन १० ३०-०१-९६ स्कूल ९, गरियाहाट रोड,सिंघी हाऊस - कलकत्ता - ७०००१९ १५ ३१-०१-९६ स्कूल दूरभाष : ४७५४२१२ - ४७५६६११ आमुदह ९१/२ ३१-०१-९६ स्कूल दिनांक ०६-०४-९६ से २६-०५-९६ तक पत्र व्यवहार का पता वटिया १३१/२ १-१-९६ वनविभाग ओफिस C/o Umesh Chand Jain सोनो १-१-९६शाम ग्राम पंचायत G.P. BOX 3888, KATHMANDU (NEPAL) झाझा २-१-९६ मारवाड़ी धर्मशाला TEL.(O)474994-476189,475203,(R)217453. FAX:977-1-474994 गिधोर २-१-९६शाम संस्कृत स्कूल चातुर्मास स्थल का पता १७ ३-२-९६ स्कूल C/o श्री नेमिनाथजी जैन मंदिर भंडार काकन्दी ४-२-९६ स्कूल अजीमगंज - ७४२१२२मुर्शिदाबाद, (प. बंगाल ) जमुई ५-२-९६ स्कूल(नहर रास्ता) कि. मी. दिनांक सिकन्दरा ६-२-९६ कलकत्ता लच्छवाड ६-२-९६शाम धर्मशाला हावड़ा (महावीर ४ प्रातः २-१२-९५ सिकन्दरा ८-२-९६ भवन से विहार) अलीगंज ९-२-९६शाम लीलुआ ३ २ -१२-९५ सोनाचंद वैद के घर आरहां ९-२-९६ स्कूल रीसड़ा ३-१२-९५ डागाजी के घर पक्करीवरमाँ १०-२-९६ स्कूल महेशश्रीरामपुर वाकीवडीहा १०-२-९६शाम हनुमान मंदिर भद्रेश्वर (वैद्यवाटी) ४-१२-९५ श्यामनगर जूट मील गुणीयाजी ११-२-९६ धर्मशाला ५-१२-९५ ____ गेजेज जूट मील | ओढनपुर ११-२-९६शाम स्कूल पंडुआ ६-१२-९५ पंडुआ कोल्ड स्टोरेज | गिरियक १२-२-९६ स्कूल(पटना राँची रोड) शीमलागढ़ ६-१२-९५ शाम प्रतिभा प्रायमरी स्कूल पावापुरी १३-२-९६ से मेमारी ७-१२-९५ शारदा सॉ मील १६-२-९६ मंदिर धर्मशाला शक्तिगढ ८-१२-९५ कुण्डलपुर १५ १९-२-९६ मंदिर धर्मशाला वर्धमान ९-१२-९५ शेठीया कोल्ड स्टोरेज राजगिरिजी का पता : श्वेताम्बर कोठी (कानाइनारशाल) पोस्ट-राजगीर-८०३११६ जिला नालंदा कुलघरीया १०-१२-९५ मद्राशा स्कूल ०(०६११९) ५३०९, ५२२० जलसी विद्यालय १०-१२-९५ ११-१२-९५ हिन्दी माध्यमिक विद्यालय बुदबुदचट्टी राजगीर २४-२-९६ से ३-३-९६ मंदिर धर्मशाला विरूदिया कुण्डलपुर ४-३-९६ मंदिर धर्मशाला १५ १२-१२-९५ लालबाब का आश्रम विहारशरीफ दुर्गापुर (बेनापट्टी) मंदिर धर्मशाला १३-१२-९५ ५-३-९६ धर्मशाला (लक्ष्मीनारायण वैना मंदिर) १३-१२-९५ शाम हायरसेकन्डरी स्कूल धरहारा ६-३-९६शाम धूपचूड़ीया स्कूल(बख्तियार पुर से) रानीगंज १४-१२-९५ ७-३-९६ धनसनपुर गुरुद्वार वैदपुर आसनसोल महादेव मंदिर - धर्मशाला ८-३-९६ मंदिर-उपाश्रय १५-१२-९५ जेहली मंदिर कल्टी १६-१२-९५ स्कूल (रानीतोला भरोल्लेम) ८-३-९६शाम निरसा खडकीया गेस्ट हाऊस पटना/सिटी ९-३-९६से १७-१२-९५ गोविन्दपुर १८-१२-९५ धर्मशाला १५-३-९६ धनबाद १९-१२-९५ मंदिर-उपाश्रय पटना का सम्पर्क सूत्र: झरीया २०-१२-९५ मंदिर-उपाश्रय ताजबहादुर सिंह (राजा बाबू) कतरासगढ २१-१२-९५ मंदिर-उपाश्रय बिन्नी शो रूम, न्यू मार्केट, पटना जंक्शन - ८००००१ तोपचाची २२-१२-९५ वाटर बोर्ड के गेस्टहाऊस ||०(०६१२) दुकान २२-३९५१, ऑफिस : २२०३०१ घर : ६५-३७७४ ईसरीबाजार २३-१२-९५ आ. क. पेढी देव कुमार पटवारी, २२८९४१ फैक्स:२३७१० धाबारोड २४-१२-९५ सोनापुर १६-३-९६ हाईस्कूल कल्याणनिकेतन २४-१२-९५शाम कल्याण निकेतन भवन हाजीपुर १६-३-९६ गाँधी आश्रम सम्मेतशिखर मधुवन ३ २५-१२-९५ से चानीधनुकी १७-३-९६ स्कूल २६-०१-९६ कोठी भोमिया भवन लालगंज १७-३-९६ स्कूल शिखर जी का पता : जैन श्वेताम्बर सोसायटी वैशाली १८-३-९६ दि० मंदिर-धर्मशाला पोस्ट - शिखरजी - ८२५३२९ मधुवन - जिला - गिरीडीह(बिहार) वासुकुण्ड १८-३-९६ दि० मंदिर-धर्मशाला ०(०६५३२), ३२२६०, ३२२२६ कजराचट्टी १३ १९-३-९६ दि० मंदिर F०००० स्कूल १८ स्कूल १३ १० १५ For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाँव - स्थान १८ धुंभा गोर रमौन ११ दुमका १५ श्रुत सागर, माघ २०५२ गांव कि. मी. दिनांक कि.मी. दिनांक मुजफ्फरपुर २०-३-९६ मारवाड़ी धर्मशाला दि. घर वड़ियारपुर १७ १७-६-९६ इ. ब. रे. स्टे. रामपुरहरी २१-३-९६ हाईस्कूल सुलतानगंज १८-६-९६ इ. ब. रे. स्ट्रे. रून्नि २२-३-९६ अंबर चरखा विद्यालय | तिलकपुर १९-६-९६ दुर्गामंदिर २२-३-९६ संस्कृत विद्यालय चंपापुरी तीर्थ २०-६-९६ से सीतामढी २३-३-९६ अग्रवाल के घर ३०-६-९६ धर्मशाला सभाससोल १८ २४-३-९६ स्कूल | भागलपुर ३०-६-९६ से २५-३-९६ स्कूल ६-७-९६ जैन मंदिर उपाश्रय लेकहा ११ २६-३-९६ स्कूल, नेपाल सीमा प्रारम्भ फुलवरिया ६-७-९६ टीचर ट्रेनिंग कॉलेज चिमडाहा २७-३-९६ रामचरितसिंह कामह ७-७-९६ पंचायती मकान वरियापुर २७-३-९६ मड़ रक्सौल हि. अंतिम रे. स्टेश. | मसुदनपुर(नवटोलिया) ८-७-९६ वीरगंज २८-३-९६ प्रेमचंद बोथरा ४५ घर बौंसी ८-७-९६ मारवाड़ी धर्मशाला जीतपुर २९-३-९६ गौशाला रामपोखर ९-७-९६ डाक बंगला सीमरा २९-३-९६ विमानधर, वेईटींग रूम में | हंसडीहा १०-७-९६ यहाँ से देवघर ४५ कि.मी. अमलेशगंज ३०-३-९६ मारवाड़ी के घर एवं दुमका की ओर रोड .. काठमांडु तक पहाड़ी प्रदेश | नोनीहाट ११-७-९६ दुर्गाप्रसाद धर्मशाला-स्कूल रोईसेसचोकी ३१-३-९६ चोकी में बाराप्लासी १२-७-९६ स्कूल हटोडा ११ १-४-९६ मारवाड़ी के ४ घर - चेनराजजी | महरो १२-७-९६ स्कूल भैसिया १०२-४-९६ १३-७-९६ मारवाड़ी धर्मशाला भीमफेरी ३-४-९६ ८१२६ फूट की चढ़ाई भीम- | कुरवा हीडवाकी शादी काडीजुड़ाया १३-७-९६ गाँव से एक कि.मी.दूर स्कूल कुलखानी ३-४-९६ धर्मशाला - १२० कि.मी. का | सिकारीपाड़ा १४-७-९६ १२कि.मी.की घाटी का जंगल त्रिभुवन पथ सरसडागा १५-७-९६ गोपाल चंद जी शाह का घर चितलांग ४-४-९६ धर्मशाला-बीच में चेकींग कड़ाइ | मुकुन्दपल्ली १६-७-९६ बिहार सीमा समाप्त : बंगाल से। (गढी में) सीमा प्रारंभ थानकोट १० ५-४-९६ झरने और पहाड़ (हाथ से ही खेती) रामपुरहाट १६-७-९६ घेवरचंदजी बोहरा स्टेट बैंक के कालीमाटी १० ६-४-९६ आठवीं सदी में भद्रबाहु स्वामिध्यान पास काठमांडु ७-४-९६ से नलहटी १७-७-९६ हनुमान मंदिर शामप्रसाद भगत २६-५-९६ नूतन मंदिर -उपाश्रय सागरदीघी १९-७-९६ मुकुलचंद एसो. एजेन्टवाले २७-५-९६ अजीमगंज स्टे० २०-७-९६ मंदिर-उपाश्रय भक्तपुर २७-५-९६ अजीमगंज चातुर्मास प्रवेश २१-७-९६ को होगा । बनेपा २८-५-९६ विहार के अंतर्गत कार्यक्रम पनौती २८-५-९६ मंगलपुर १५-११-९५ भवानी पुर (कलकत्ता) से प्रस्थान १८ २९-५-९६ खल्तेचनपुर ३०-५-९६ ०१-१२-९५ मल्लिकफाटक-हावड़ा में अं० प्रतिष्ठा ढल्काबार ३१-५-९६ २०-१२-९५ धनबाद से शिखरजी छारी पालित संघ प्रयाण महेन्द्रनगर १-६-९६ .रे. हा. २५-१२-९५ सम्मेतशिखरजी में संघ प्रवेश . जनकपुर १-६-९६ रे. स्टे. रे. हा. २७-१२-९५ सम्मेतशिखरजी में माला परिधान जयनगर २० २-६-९६ रे.स्टे. २९-१२-९५ मद्रास से सम्मेतशिखरजी संघ स्पेश्यल ट्रेईन संघ की माला परिधान खजौली ३-६-९६ रे. स्टे. .रे. हा. २५-१-९६ भोमियाजी भवन में अंजनशलाका ४-६-९६ २६-१-९६ श्री जैन श्वे० कोठी में प्रतिष्ठा सकरी ५-६-९६ डा. ब. रे. हा. रि. रू. २३-२-९६ कुण्डलपुर(नालन्दा)में प्रतिष्ठा दरभंगा ६-६-९६ रे. स्टे. २५-४-९६ काठमाण्डु में नूतन जिन मंदिर में प्रतिष्ठा लहेरियासराय ६-६-९६ २१-०७-९६ अजीमगंज(मुर्शिदावाद) में भव्य चातुर्मास प्रवेश समस्तीपुर ७-६-९६ डा. ब. इ. ब. रि. रू दलसिंगसराय २१ ८-६-९६ पृष्ठ ६ का शेष] इतिहास के झरोखे से तेघरा १२ ९-६-९६ रि. रू. इ.व. २. शरणागतवज्रपंजर, ३.विचारचतुर्मुख, ४. परमार्हत, ५. राजर्षि, ६. प्राणदाता, वरौनी १०-६-९६ ७. मेघवाहन आदि अनेक उपाधियाँ धारण की. संघभक्ति, साधर्मी वात्सल्य, हाथीदह ११-६-९६ त्रिकालपूजा, उभयकाल आवश्यक, पर्वदिनों में पौषध, जिनशासन की प्रभावना, दीनों बड़हिया १२-६-९६ का उद्धार, शास्त्र-श्रवण, गुरू-सेवा आदि अनेक पुण्यकार्य करके अपनी आत्मा को लखीसराय १३-६-९६ | सद्गति प्राप्त कराया. सूर्यगढा १४-६-९६ सत्त्वानुकम्पा न महीभुजां स्यादित्येष क्लृप्तो वितथः प्रवादः । शिवकुण्ड १५-६-९६ जिनेन्द्रधर्म प्रतिपद्य येन, श्लाघ्यः स केषां न कुमारपालः ।। १६-६-९६ डा. ब. स.हा. र.हा. ||"राजाओं के हृदय में जीवदया का भाव नहीं रहता है" यह लोकोक्ति व्यर्थ है. जिन्होंने मेडिकल एशोसियसन होकर किया कमारपाल लन || जैन धर्म अंगीकार किया है, कुमारपाल किसके द्वारा स्तुत्य नहीं हैं? . हिमी १२ १८ मधुबनी १९ काशष] ११ १९ AA to ni २० मुंगेर For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुत सागर, माघ २०५२ www.kobatirth.org भारत वर्ष का इतिहास क्षत्रिय राजाओं के बीच युद्ध-सन्धि व विजय-पराजय की रोमांचकारी घटनाओं से भरा पडा है. ऐसे अनेकों पराक्रमी राजा इस भरत क्षेत्र पर शासन कर चुके हैं, जिनकी यशोगाथा की सुगंध आज भी इतिहास के पन्नों में व्याप्त है. परन्तु चौलुक्य वंश में उत्पन्न त्रिभुवनपाल के पुत्र कुमारपाल के जैसा कोई अहिंसा प्रतिपालक राजा नहीं हुआ, जिन्होंने न केवल अपनी माता काश्मीर देवी की कुक्षि को पवित्र किया, बल्कि आचार्य हेमचन्द्र सूरि की निश्रा में ३० वर्षों तक राज्य कार्य सम्हालते हुए परमार्हत्' की उपाधि से अलंकृत होकर इतिहास में अमर हो गया. इतिहास के झरोखे से परमार्हत कुमारपाल : एक अद्वितीय जैन सम्राट् कुमारपाल भूपाय विमेकं वति ? | जिन्दधर्ममासाद्य, यो जगतन्मयं व्यधात्। पृथ्वी पर राजा कुमारपाल के किस एक गुण का वर्णन करें ? जिन्होंनें जैन धर्म को नहीं आएगा और मेरी जीत होगी. कुमारपाल यह सुनकर चिन्तित हुए, आचार्य हेमचन्द्र अपना कर सारे संसार को जैन धर्ममय बना दिया. सूरि के पास जाकर सारी बात सुनाई, सूरिजी ने उन्हें पद्मासन लगाकर एक जाप करने को कहा, जाप पूरा होते ही तुर्किस्तान का बादशाह पलंग सहित हवा में तैरता हुआ कुमारपाल के समक्ष पहुँचा. सूरिजी ने उससे कहा अगर अपना भला चाहते हो तो अभी कुमारपाल से क्षमा माँगो और अपने राज्य में प्रति वर्ष छः महीने जीव दया का पालन करवाओ, तो तुम्हारा छुटकारा हो सकता है, उसने यह शर्त सहर्ष स्वीकार की... ईदृग् जगद्गुरु शक्तिभुक्तिमुक्ति प्रदायका । ईदृग्दृतो राजा बाजा काले कली कृतः । शक्ति, सौभाग्य और मुक्ति देनेवाले ऐसे जगद्गुरू (हेमचंद्राचार्य) और दृढव्रती (सुश्रावक कुमारपाल) इन दोनों का संयोग इस कलिकाल में कहाँ ? कुमारपाल के जीवन का ५० वर्ष कष्टों से भरा था. पुत्रहीन सिद्धराज जयसिंह को जब कलिकाल सर्वन आचार्य हेमचन्द्रसूरि से यह ज्ञात हुआ कि त्रिभुवनपाल का पुत्र कुमारपाल उसके राज्य का उत्तराधिकारी होगा तो उसने कुमारपाल को मरवाने की बहुत चेष्टा की. कुमारपाल जान बचाने के लिए वेश बदलकर जहाँ-तहाँ मारामारा फिरता था. एक दिन सिद्धराज के सैनिकों के द्वारा पीछा किए जाने पर कुमारपाल भयभीत होकर सूरिजी के उपाश्रय में आया, दयालु सूरि जी ने गुप्त रीति से पुस्तकों के भंडार में छिपाकर उस शरणागत की रक्षा की. वहाँ सें जाते-जाते कुमारपाल ने सूरिजी से पूछा कि मेरे संकट कव टलेंगें. सूरि जी ने भविष्यवाणी की कि ११९९ मार्गशीर्ष कृष्ण, चतुर्थी, रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र में दिन के तीसरे प्रहर तुम्हें राज्य मिलेगा. कुमारपाल ने नम्र होकर कहा कि यदि मुझे राज्य मिला तो वह आपको अर्पित कर मैं जीवन भर आपकी सेवा करूंगा. इसी प्रकार भटकते हुए एकबार उज्जयिनी नगरी में कुण्डलेअर के मन्दिर में लगे शिलालेख पर उसकी नजर पड़ी, लिखा था : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६ परम दयालु महाराज कुमारपाल ने कर्णाटक, गुजरात, कोंकण, जालंधर, मेवाड़ आदि अपनी सत्ता के अठारह देशों में दान, विनय, वल और मैत्री पूर्वक जीवदया का पालन करवाया, उनके राज्य में जूं और कुंथु जैसे छोटे जीवों को मारने की भी सख्त मनाई थी. कुमारपाल द्वादश व्रतों का नियम पूर्वक पालन करते थे. राजा के इस नियम की खवर सर्वत्र फैल गई. तुर्किस्तान के एक बादशाह ने चातुर्मास में राजा कुमारपाल पर चढाई की. उसका इरादा था कि राजा इस समय में फौज लेकर सामने आचार्य हेमचन्द्रसूरिजी के व्याख्यानों से प्रभावित होकर राजा कुमारपाल ने स्वर्गी वात्सल्य और गरीबों के दुःखों को दूर करने के लिए एक विशाल दानशाला बनवायी. प्रत्येक उपवास के पारणे पर स्वधर्मी लोगों के साथ बैठ कर भोजन किया करते थे, दानादि द्वारा सहस्रों अन्य धर्मावलम्वियों को भी जैन धर्म का अनुरागी बनाया. इस प्रकार उन्होंने कलिदुष्टकों को जीतकर सत्युग की जागृति की. उन्होंने पाटण में २५ हाथ ऊँचा ७२ जिनालय युक्त मंदिर बनवाया, उसमें १२५ अंगुल ऊँची श्री नेमिनाथ स्वामी की प्रतिमा भरवायी. देशाटन करते हुए एक बार कुमारपाल के द्वारा प्रमाद से एक चूहे की हिंसा हुई थी, उसके प्रायश्चित में 'मूषकविहार' नाम से चैत्य वनवाया. जिनागम की आराधना करने में तत्पर चौलुक्यपति कुमारपाल ने २१ ज्ञानभंडार वनवाये. आचार्य हेमचन्द्र सूरिजी के लिखे त्रिषष्टिशलाकापुरूषचरित्र को सोने चाँदी के अक्षरों से लिखवाया, ११ अंग व १२ उपांगों की भी एक-एक प्रति स्वर्णाक्षरों से लिखवाई. एक बार छ'री' पालित संघ में यात्रा के दौरान गिरनार पर्वत के ऊपर चढ़ते हुए अचानक पर्वत काँपने लगा. राजा ने डरते हुए आचार्य हेमचन्द्रसूरिजी से इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि वृद्ध पुरुषों का ऐसा कथन है कि इस पर्वत पर दो भाग्यशाली एक साथ नहीं चढ सकते; अगर चढते हैं तो उपद्रव होता है. तव राजा पुणे वाससहस्से सयाण वरिसाण नवनवई कलिए । होहि कमरनरिन्दो तुह विक्कमराय सरिच्छो ।। हे विक्रमराजा ! ११९९ वर्ष व्यतीत होने के बाद तुम्हारे जैसा कुमारपाल नामक प्रतापी ने सूरिजी से आगे जाने का निवेदन किया और स्वयं उनके पीछे गये. राजा होगा. वस्तुतः कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य तथा गूर्जरेश्वर परमार्हत् कुमारपाल का संयोग जैन धर्म के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है. वि.सं. १२२९ में आचार्य हेमचन्द्रसूरिजीने अपनी नश्वर काया को छोडकर कालधर्म प्राप्त किया. इसके छः महिने के बाद राजा कुमारपाल भी अपने राज्य के लोलुप उत्तराधिकारी अजयपाल के द्वारा विष दिये जाने के कारण अन्तिम अवस्था को प्राप्त हुए. उनकी इस अवस्था को देखकर कोई कवि बोला एक वृद्ध विद्वान से पूछने पर ज्ञात हुआ कि पूर्वकाल में राजा विक्रमादित्य ने एकवार आचार्य श्री सिद्धसेन दिवाकर से पूछा था कि मेरे बाद मेरे जैसा कोई जैन राजा होगा या नहीं? इसके उत्तर में आचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने यह गाथा कही थी. ११९९ वर्ष पहले की गई इस भविष्य वाणी से प्रभावित होकर राजा कुमारपाल के मन में जैन धर्म तथा जैनाचार्य के प्रति अपार श्रद्धाभाव प्रगट हुआ. विविध कष्टों व झंझावातों का साहस पूर्वक सामना करते हुए जीवन के पचासवें वर्ष में पाटण की राजगद्दी ने कुमारपाल का स्वागत किया. अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार राजा कुमारपाल ने आचार्य हेमचन्द्र सूरि को समस्त राज्य अर्पित करने की अभिलाषा प्रकट की, परन्तु त्यागी साधुओं को राज्य से क्या प्रयोजन? उन्होंने अपने उपकार के बदले कुमारपाल से तीन वचन माँगे १. प्राणी मात्र का वध बंद कर सभी जीवों को अभय दान दो, २. प्रजा की अधोगति के मुख्य कारण दुर्व्यसन, द्यूत, मद्य, मांस, शिकार आदि पर प्रतिबंध लगाओ, ३. परमात्मा महावीर की पवित्र आज्ञा का पालन करते हुए सत्य धर्म का प्रचार करो. राजा कुमारपाल ने यावज्जीवन इन तीनों वचनों का अक्षरशः पालन किया. अपने शासन में हिंसा, चोरी, सप्तव्यसन आदि अनिष्टों को दूर कर दिया. वे प्रतिदिन सूरीश्वरजी का धर्मोपदेश सुनने लगे. दिन प्रतिदिन जैन धर्म में उनकी आस्था वढने लगी, संसार की असारता का अनुभव होने लगा. कुछ ही दिनो में उन्होंने जैन शास्त्रोक्त द्वादशव्रत स्वरूप श्रावकधर्म अंगीकार कर लिया, अनेक प्रकार से जैन धर्म की प्रभावना करने लगे, सर्वत्र जैन धर्म का जय जयकार होने लगा. यह सब देख कर श्री हेमचन्द्राचार्य अपने जीवन को सफल मानने लगे. कृतकृत्योऽसि भूपाल ! कलिकालेपि भूतले । आमंत्रयति तेन त्यां, विधिः स्वर्गे यथा विधि ।। हे महाराज ! आप इस कलिकाल में भी अपने पुण्यकर्मों के कारण समस्त पृथ्वी पर कृतकृत्य है, इसलिये भाग्य आपको उत्साहपुर्वक स्वर्ग से आमंत्रित करता है. वि.सं. १२३० में राजगद्दी के ३० वर्ष ९ मास और २७ दिन भोग कर अन्त में उन्होंने सर्वज्ञदेव जिनेश्वर, कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य तथा सर्वज्ञकथित धर्म का स्मरण करते हुए स्वर्गमन किया. For Private and Personal Use Only महाराज कुमारपाल इस कलियुग में एक अद्वितीय आदर्श नृपति थे. वे न्यायप्रिय, दयालु, परोपकारी, पराक्रमी और धर्मात्मा थे. इस परमार्हत् ने १४०० प्रासाद वनवाये, ७२ सामंतों पर अपनी आज्ञा चलाई, १८ देशों में जीवदया का प्रसार किया, १६,००० जिनमंदिरों का उद्धार कराया, १४४४ नये जिन चैत्यों पर कलश चढाए, ९८ लाख रूपया दान किया. तारंगा तीर्थ क्षेत्र में भारतवर्ष की शिल्पकला का अद्वितीय नमूना स्वरूप उत्तुंग जिनालय आज भी कुमारपाल की जैनधर्म प्रियता को जग जाहिर कर रही है. उन्होंने ७ वार तीर्थयात्राएँ कीं, 9. परनारी सहोदर, [शेष पृष्ठ ५ पर Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुत सागर, माघ २०५२ जानो। तो जानें कोबा स्थित महावीरालय की विशिष्टता श्रुत सागर गांधीनगर में कोबा स्थित श्रीमहावीर जैन आराधना केन्द्र परिसर में श्रीमहावीर प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता -१ स्वामी के मंदिर का निर्माण प.पू. गच्छाधिपति आचार्यश्री कैलाससागरसूरीश्वरजी महाराज के दिव्य आशीष व प.पू. आचार्यश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. की प्रेरणा से हुआ प्रश्नावलीहै.२२ मई १९८७ को दुपहर २.०७ बजे पूज्य गच्छाधिपति का अंतिम संस्कार इसी १. तीर्थंकरों को 'जिन' क्यों कहा जाता है? परिसर में हुआ था. उनकी स्मृति को अमर करने के लिए उनके शिष्यों एवं प्रशिष्यों २. आदीश्वर भगवान के माता-पिता के नाम लिखें. ने सूर्यगति की बृहद् एवं सूक्ष्मातिसूक्ष्म गणना कर महावीरालय के शिखर में इस प्रकार ३. 'प!षणपर्व' का क्या उद्देश्य है? की व्यवस्था करवायी है जिससे प्रतिवर्ष २२ मई को दुपहर २.०७ वजे सूर्य-किरणें ४. प्रतिक्रमण करने से क्या लाभ हैं? शिखर में से प्रविष्ट होकर भगवान श्रीमहावीरस्वामी के रत्नजडित तिलक को देदीप्यमान ५. जैन समाज में रात्रि-भोजन का निषेध क्यों है? करें.लगभग पांच मिनट तक इस अत्यंत अलौकिक एवं अद्भुत दृश्य को देखने प्रतिवर्ष ६.भगवान महावीर स्वामी के गणधरों में सबसे अधिक आयुष्य किसका था? दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं एवं इस दृश्य का दर्शन कर अपने नेत्रों को धन्य मानते ७. महाप्रभाविक भक्तामर स्तोत्र की रचना किसने और कव की? हैं. अधिक से अधिक श्रद्धालु इस अलौकिक एवं अनुपम दृश्य को देख सकें इसके ८. ऋजुबालिका तीर्थ कहाँ है और क्यों प्रसिद्ध है? लिए इस अवसर पर पूरे परिसर में स्थान स्थान पर क्लोज़ सर्किट टी.वी. की व्यवस्था ९. आचार्य बुद्धिसागर सूरि जी म. सा. ने कितने ग्रंथ लिखे थे? उनके की जाती है. द्वारा रचित किन्ही पाँच ग्रन्थों के नाम लिखें. जीवन में कम से कम एक बार अवश्य दर्शनीय दृश्य १०. भगवती सूत्र आगम का कौन सा अंग है? प्रश्नोत्तरी (क्विज़) प्रतियोगिता में भाग लेने की नियमावली१. इस प्रतियोगिता में १४ से २५ वर्ष तक की आयु का युवावर्ग भाग ले सकता है. 'भारतीय संस्कृति की आरसी' २. प्रश्नों के उत्तर सुपाठ्य एवं पृष्ठ के एक ही ओर लिखे होने चाहिए. उत्तरपत्र के साथ अपना नाम और पूरा पता स्पष्ट लिखें. 'प्राचीन जैन ज्ञानभंडार जैन धर्म एवं भारतीय संस्कृति की आरसी है.' ३. प्रश्नोत्तर २९-०२-१९९६ तक संपादक, श्रुतसागर, श्री महावीर आज विश्व में कोई भी ऐसा इन्सान नहीं है जिस के पास एकाध क्षेत्र का भी ज्ञान जैन आराधना केन्द्र, कोबा, गांधीनगर ३८२००९ को अवश्य प्राप्त उपलब्ध न हो. लेकिन यह ज्ञान केवल मर्यादित ज्ञान कहा जा सकता है, जो एक निश्चित हो जाने चाहिये, विलम्ब से प्राप्त उत्तरों पर विचार नहीं किया जायगा. क्षेत्र या क्षेत्रों के लिए सीमित है. ज्ञान की कोई सीमा निश्चित नहीं की जा सकती. ४. सही उत्तरपत्रों में से विजेताओं के नाम लॉटरी द्वारा निकाले जायेंगे. ज्ञान तो एक गहरे समुद्र के समान है, जिसका कोई किनारा नहीं है. हम जैसे-जैसे प्रथम द्वितीय एवं तृतीय पुरस्कार प्राप्त विजेताओं को क्रमशः १५०, उसमें उतरेंगे उसकी गहराई वढ़ती जायगी. इस ज्ञान रूपी समुद्र में मनुष्य हमेशा अतृप्त १०० एवं ७५ रु. मूल्य की धार्मिक पुस्तकें प्रदान की जाएगी. तथा ही रहता है. दो अनुमोदन पुरस्कार दिये जायेंगे. विजेताओं का नाम अगले अंक आज जव कि शिक्षण केवल पुस्तकीय और यांत्रिक बन गया है, वन रहा है, तब में प्रकाशित किया जाएगा तथा व्यक्तिगत सूचना भी दी जाएगी. हरेक व्यक्ति के पास से धार्मिक और कल्याणकारी वैज्ञानिक ज्ञान की अपेक्षा रखना ५.इस प्रतियोगिता में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र से सम्बन्धित कोई संभव नहीं है. आज की शिक्षण प्रणाली को देखते हुए हम कह सकते हैं कि व्यक्ति भी कार्यकर्ता या उनके परिवार के सदस्य भाग नहीं ले सकते है. अपने क्षेत्र में हो रही नई गतिविधियों से भी कभी-कभी परिचित नहीं हो पाता. आज ६. सम्पादकों का निर्णय अन्तिम निर्णय माना जायगा. का विद्यार्थी मात्र पाठकीय एवं अभ्यासकीय पुस्तकों के दो जिल्दों के बीच ही सीमित हो गया है, तब अपने धर्म एवं संस्कृति की ओर कौन ध्यान देगा? (पृष्ठ ३ का शेष) जैन साहित्य - १ पर हाँ! आज जिन ज्ञानभंडारों, संस्थाओं तथा व्यक्तियों को अपने देश की, अपने | न पड़ जाए इसलिए इनका अध्ययन मनन आवश्यक है. इनका पूरा परिचय किसी धर्म की गरिमा जारी रखने में रूचि है. उन्होंने अपने लिए एवं भावी पीढी के लिए | को तत्काल एक साथ तो नहीं मिल सकता लेकिन किसी ग्रंथ या कृति का नाम लेते भारतीय संस्कृति को अक्षुण्ण रखने के लिए अलभ्य/अप्राप्य ज्ञान का संग्रह किया हुआ | ही उसकी ही उसकी संक्षिप्त रूपरेखा या उसका चित्र मस्तिष्क में अवतरित हो जाय ऐसा प्रयास है. हमको सिर्फ इस ज्ञान का संग्रह, संरक्षण और पुनः उपलब्धि जहाँ की जाती है वहाँ | अवश्य हो सकता है. यह स्तम्भ इसी उद्देश्य को मद्दे नजर रखते हुए प्रारम्भ किया जाकर इस ज्ञान रूपी आरसी में मात्र झाँकना ही है, कि इस ज्ञान रूपी समुद्र में हम | जा रहा है. जिससे जैन साहित्य से विशाल वाचकवर्ग परिचित हो सकें तथा विशेष कहाँ पर है. कहीं जीवन की इस दौड़ में हम पीछे तो नहीं रह गये हैं? हर रोज हम | उत्सुक होकर गहन अध्ययन के लिए प्रेरित हो सके. -क्रमशः काफी समय दर्पण के सामने वीताते हैं! उसकी वजाय ज्ञानभंडारों में जाकर ज्ञान रूपी ७ पाठकों से नम्र निवेदन दर्पण में कभी देखेंगे तो हमको निश्चित रूप से एहसास होगा कि हमारे सांस्कृतिक विकास में ज्ञानार्जन कितना जरूरी है. यह ज्ञान संग्रह अवश्य ही हमारे गुणों का विकास यह अंक आपको कैसा लगा, हमें अवश्य लिखें. आपके सुझावों की हमें प्रतीक्षा है. आप अपनी अप्रकाशित रचना/लेख सुवाच्य अक्षरों में लिखकर/टंकित कर हमें करने के साथ ही हमारे जीवन को सफल बनायेगा. जैन ज्ञानभंडारों में उपलब्ध साहित्य जसकते अपनी रचनालेखों के साथ उचित मल्यका टिकट लगा लिफाफा अवश्य अवश्य ही हमको भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत कर देगा. साथ ही इस वैज्ञानिक युग | भेजें अन्यथा हम अस्वीकृति की दशा में रचना वापस नहीं भेज सकेंगे. में भी हमारा जैन धर्म भारतीय संस्कृति, परंपरा, विचारों एवं मूल्यो के महत्व का पूरा- · श्रुतसागर, आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर पूरा एहसास करायेगा. -क्रमशः श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा, गांधीनगर ३८२००९. For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुत सागर, माघ 2052 आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर ग्रंथावलोकन का कम्प्यूटराइजेशन प्रोजेक्ट जीवन दृष्टि ग्रंथ प.पू. राष्ट्रसंत आचार्यश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. के [गतांक से आगे] प्रवचनों का संग्रह है. पाली (राजस्थान) में सं.२०४०के चातुर्मास की अवधि में पं. ज्ञान मंदिर में संरक्षित एवं संगृहित हस्तलिखित प्रतों में काल जन्य दोष से जीर्ण, | पू. गुरु भगवंत ने श्री संघ का नियमित उद्बोधन किया था. उनके प्रवचन सरल, सुबोध अस्पष्ट, खण्डित अंशों/भागों/अक्षरों हेतु तथा प्रत लेखक द्वारा किन्हीं कारणों से रह | सर्व हृदय ग्राही एवं सर्व कल्याणकारी हैं. उनके प्रवचनों में अथाह गूढ़ चिन्तन का रहर गई भूल को कम्प्यूटर की सहायता से सुधारा जा सकता है. इसके लिए Scannar | झलकता है. उन्होंने किसी उपदेश या शिक्षा को प्रदान करने के लिए छोटे-छोटे रूपकी की सहायता ली जाती है. सर्व प्रथम हस्तप्रत को कम्प्यूटर पर स्केन करके उसका चित्र का अत्यंत श्रेष्ठ प्रयोग किया है. उनकी एक छोटी सी उपमा भी अपने आप में बहुत लिया जाता है. इस चित्र में कटे-फटे, जीर्ण पाठ के स्थान को साफ (Clean) कर कुछ कह दे रही है. दस भागों में विभक्त प्रवचनों के संग्रह में 10 विभिन्न किसी भी देते हैं और वहाँ पर यथेष्ट/वांछित शब्दों/अक्षरों को हस्तप्रत में ही उपलब्ध अक्षरों | व्यक्ति के लिए परमावश्यक मुद्दों की चर्चा की गई है. को क्रमशः एक-एक कर वांछित स्थान पर रखते हैं. ('पेस्ट' करते हैं.) इस विधि सर्व प्रथम मंगल प्रवचन से किसी भी व्यक्ति के जीवन की पूर्णता को अभिव्यक्त द्वारा किसी हस्तप्रत की यथावत् कम्प्यूटर प्रति तैयार की जा सकती है. इस विधि किया गया है. आचार्यश्री दूध की उपमा देते हैं. चाहे कितना भी दूध हो एक चमच का अन्य लाभ यह है कि प्राचीन हस्तप्रतें मानवीय भूलों या असावधानी से नष्ट या दही का मिश्रण पूरे दूध को दही बना देता है. उसी प्रकार परमात्मा के मंगल प्रवचन क्षतिग्रस्त हो सकती हैं जबकि दुर्लभ हस्तप्रतों को Scan कर कम्प्यूटर पर अथवा इनके का यदि थोड़ा भी चिन्तन कर लिया जाय तो जीवन सार्थक हो जाएगा. थोड़ा सा प्रवचनप्रिन्ट निकाल कर अध्ययन हेतु उपलब्ध किया जाय तो हमारी प्राचीन अमूल्य दुर्लभ श्रवण जीवन को रूपांतरित कर देता है. दूसरे प्रवचन में सब से सुन्दर धर्म कौन है विरासत निस्संदेह संरक्षित एवं सुरक्षित रह सकेगी. यह सबसे बड़ी उपलब्धि मानी इसका उत्तर दिया गया है. "जहाँ पर जिस आत्मा की अन्तर आत्मा निर्मल हो, पवित्र जानी चाहिए. | हो, वही विश्व का सबसे बड़ा धर्म व सुन्दर धर्म है. प्रवचन और चौथे प्रवचन में सत्य कम्प्यूटर केन्द्र में संस्था द्वारा प्रकाशित पुस्तकों के प्रकाशन हेतु DTP Work| और सदाचार का जीवन में महत्त्व बताया गया है. चारित्र एवं सदाचार के महत्त्व को भी किया जाता है. अभी तक नौ पुस्तकों की सुन्दर कम्पोजिंग हो चुकी है. जैन धर्म | प्रतिपादित करने के लिए आचारांगसूत्र, रामायणादि तथा पाश्चात्य चरित्रों के रूपक के एकमात्र प्रत्यक्ष पंचाग का सूक्ष्म गणित कम्प्यूटर पर कुछ सप्ताहों में ही यहाँ पर वर्णित किये गये हैं. यहाँ आहार शुद्धि से विचारों में पवित्रता, रात्रिभोजन के दुष्परिणाम, हो जाता है जो कि मैन्यूअल करने में कई माह लगेंगे. शेष पृष्ठ 2 पर | दीर्घायु का नुस्खा, शब्दों का चमत्कार आदि बहुत ही सहज ढंग से प्रस्तुत हुए हैं. छठे प्रवचन में भक्ति की शक्ति का वर्णन है. भक्ति आत्मसमर्पण का रूप है, इससे With Best Compliments From : अहंकार का नाश होता है. गुरुदेव कहते हैं अन्न जल के बिना चल सकें परन्तु प्रभु के विना एक क्षण भी नहीं चल सके....प्रभुजीवी बनना - अन्तर साक्षी भाव रखकर वाह्य दृष्टि को क्षोभ पूर्वक भूला देना ही शांति की चाबी है. जिनाज्ञा पालन - यह सच्ची जिन भक्ति है, भक्ति योग अर्थात् भाव देना. भाव देना अर्थात् हृदय सौंपना, हृदय के सिंहासन पर इष्ट को प्रतिष्ठित करना, जो सामग्री प्राप्त हुई है उसका भक्ति द्वारा सदुपयोग करना चाहिए. सातवें प्रवचन में भारतीय संस्कृति में तप-साधना की महत्ता प्रतिपादित की गई है.जैन साधना का लक्ष्य मोक्ष है, शुद्ध आत्म तत्त्व की उपलब्धि है जो तप से ही सम्भव है. जैन साधना में तप का कितना महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है; इस तथ्य के साक्षी जैनागम ही नहीं है, प्रत्युत वौद्ध और हिन्दू आगमों में भी जैन साधना के तपोमय स्वरूप का चित्रण उलब्ध होता है. तप के द्वारा आत्मा की अकुशल चित्त BHARAT INDUSTRIAL ESTATE वृत्तियों को क्षीण किया जाता है. आठवें प्रवचन में ध्यान और साधना के लिए बहुत T.J. ROAD, SEWREE BOMBAY - 400015, INDIA ही सरल मार्ग दर्शाया गया है. नौंवें प्रवचन में मितभाषिता को साधना बताया गया TEL : (O)4132435,4137253 है. बोलना एक कला है. मुँह से निकले हमारे प्रत्येक शब्द का श्रोता पर क्या प्रभाव FAX : 91-22-4130747 पड़ेगा, इसका पूरा विचार करके फिर मुँह खोलना चाहिए. मूर्ख और विद्वान में अन्तर TELEX: 11-71001. करते हुए आचार्यश्री कहते हैं कि विद्वान पहले सोचता है और फिर शेष पृष्ठ 3 पर GRAM : STANCOR Book Post/Printed Matter MECO INSTRUMENTS PVT. LTD. Manufacturers & Exporters To Electrical Mesuring Instruments Shrut Sagar Printed at: DhwaniGraphics, Jaisri Ranchhodnagar, Vasana,Ahmedabad. 06634333 Published & Despatched by Secretary, Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba, Gandhinagar-382009.0 (02712)76204,76205,76252 If undelivered please return to: Sri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba, Gandhinagar-382009 (India) For Private and Personal Use Only