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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र का मुखपत्र श्रृत सागर आशीर्वाद : राष्ट्रसंत जैनाचार्य श्रीपद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. अंक : २ माघ वि.सं. २०५२, जनवरी १९९६ अंधान संपादक : मनोज जैन संपादक : डॉ. बालाजी गणोरकर शासन प्रभावना युक्त कलकत्ता का ऐतिहासिक चातुर्मास पूर्ण कर नेपाल की ओर राष्ट्रसंत का प्रस्थान चातुर्मास के चारों महिने कलकत्ता शहर में एक महोत्सव जैसा वातावरण बना रहा. पूज्य आचार्यश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. के दर्शन एवं प्रवचन श्रवण के लिये शहर एवं वाहर से आनेवालों की भीड़ लगी रहती. पूज्य आचार्यश्री के व्यक्तित्व से प्रभावित अनेक जनोंने व्रत-नियम आदि लेकर अपने जीवन को सफल वन्प्रया.प्रवचन के द्वारा हजारों युवकों में नई धर्मचेतना जागृत हुई है. श्राविकाओं में तपस्या की हारमाला लगी हुई थी. पर्युषण पर्व आदि प्रसंगों पर वोलियों ने एक रेकोर्ड बनाया है. चैत्य परिपाटी का भव्य वरघोड़ा (शोभा यात्रा) अपने आपमें एक अनोखा प्रसंग था. दादावाड़ी-श्री आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा बद्रीदास जैन टेम्पल में १० दिन को आचार्यश्री का संयम अनुमोदना - जन्म दिन के जैन सांस्कृतिक एवं श्रुत परंपरा का रक्षक निमित्त महोत्सव कलकत्ता के इतिहास में यादगार - अनुमोदनीय प्रसंग वन गया. इस अवसर पर पूज्य आचार्यश्री के दर्शनार्थ वम्बई - दिल्ली - मद्रास - अहमदाबाद से सम्राट् सम्प्रति संग्रहालय असंख्य दर्शनार्थी एवं केंद्रीय मंत्री सर्वश्री वुटासिंहजी, जगदीश टाईटलर, संतोष मोहन | श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा परिसर में दर्शनीय आचार्यश्री देव, डॉ. उर्मिलावेन पटेल आदि भी आये थे. गुजरात के भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्री छवीलदास | कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के महत्त्वपूर्ण भागरूप सम्राट् सम्प्रति संग्रहालय का भारत मेहता भूतपूर्व शहरी विकास मंत्री नरहरि अमीन, कलकत्ता हाई कोर्ट के मुख्य के संग्रहालयों में महत्त्वपूर्ण स्थान है. भगवान महावीरस्वामी के आदर्श सिद्धान्तों का न्यायाधिपति श्रीमान् अग्रवाल साहव, सांसद श्री गुमानमलजी लोढा, दैनिक विश्वामित्र | प्रसार-प्रचार एवं प्राचीन जैन सांस्कृतिक धरोहर और कलासंपदा का संशोधन-संरक्षण के संपादक आदि आचार्यश्री के गुणानुवाद करने आये थे. करना एवं इस हेतु लोक जागृति लाना इस संग्रहालय का प्रमुख उद्देश्य है. ___ पूज्य आचार्यश्री के चातुर्मास के अंतर्गत श्री संघ के कई महत्त्वपूर्ण कार्य संपन्न ___इस संग्रहालय में प्राचीन और कलात्मक पाषाण, धातु, काष्ठ, चंदन एवं हाथीदांत हुए हैं. श्री पार्श्वनाथ फाउन्डेशन की स्थापना भी पूज्यश्री के आशीर्वाद एवं गणिवर्य |की कलाकृतियाँ विपुल प्रमाण में संगृहित की गई हैं.इनके अलावा ताड़पत्र एवं कागज श्रीदेवेंद्रसागरजी म.सा. की प्रेरणा से हुई है. ५१ लाख रूपये का यह स्थाई फंड साधर्मिक पर बनी सचित्र हस्तप्रतें, प्राचीन चित्रपट, विज्ञप्ति पत्र, गट्टाजी,प्राचीन शैली के चित्र, वन्धुओं की भक्ति एव अनुकम्पा के कार्य में उपयोग किया जायेगा. आचार्यश्री के आगमन | सिक्के एवं परंपरागत कलाकृतियों का संग्रह किया गया है. इस संग्रहालय में विशेष और उनकी वाणी से जैन एकता का सुंदर दर्शन इस चातुर्मास में हुआ. दिगम्वर | रूप से जैन संस्कृति, जैन इतिहास और जैन कला का अपूर्व संगम है. समस्त संग्रह स्थानकवासी-तेरापंथी तथा अन्य समाज के लोग भी प्रवचन का लाभ लेने आते थे. की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए एक अद्यतन प्रयोगशाला भी बनाई गई है, जिसमें समयपूज्यश्री के शिष्य उपाध्याय श्री धरणेंद्रसागरजी म.सा. एवं पं. श्री वर्धमानसागरजी समय पर कलाकृतियों को रासायनिक एवं वैज्ञानिक प्रक्रिया द्वारा उपचार किया जाता है, म. सा. ने क्रमशः केनिंग स्ट्रीट एवं हंस पोखरीया में चातुर्मास करके वहाँ के संघों ____ संग्रहालय को आठ खंडों में विभक्त किया है.१. वस्तुपाल तेजपाल खंड,२. ठक्कर को भी सुंदर लाभ दिया है. चातुर्मास बिदाई समारोह का दृश्य भी अद्भुत था. कांकरिया | फेरु खंड, ३. परमार्हत् कुमारपाल खंड, ४. जगत शेठ खंड, ५. श्रेष्ठि धरणाशाह सेंटर में ५००० लोगों की उपस्थिति में आचार्यश्री को भावभीनी विदाई दी गई. इस खंड, ६. पेथडशा मन्त्री खंड, ७. विमल मंत्री खंड ८. दशार्णभद्र मध्यस्थ खंड. प्रसंग पर श्री कांकरिया परिवार की तरफ से सुंदर स्वामिवत्सल का आयोजन प्रशंसनीय | सम्राट सम्प्रति संग्रहालय में प्रदर्शित महत्त्वपूर्ण कलाकृतियाँ : रहा. आचार्यश्री भवानी पुर संघ चातुर्मास पूर्ण करके हावड़ा-मल्लिक फाटक श्री संघ । प्रथम एवं द्वितीय खंड में पाषाण एवं धातु की प्राचीन कलाकृतियों को प्रदर्शित की विनंती से श्री नूतन जिनमंदिर की अंजन शलाका-प्रतिष्ठा के लिये पधारे. अनुठे | किया गया है, जिनमें तीर्थंकर ऋषभदेव की वलुआ पत्थर से बनी वि. सं. ११७४ उत्साह के साथ प्रतिष्ठा का कार्य संपन्न हुआ. की प्रतिमा, वसंतगढ़ शैली की ७वीं से ९वीं शताब्दी की पंचधातु से बनी तीर्थंकर __ पूज्य आचार्यश्री को आगामी चातुर्मास के लिये उनकी जन्म भूमि अजीमगंज में | की प्रतिमाएँ अपनी अलौकिक एवं अभूतपूर्व मुद्रा के साथ प्रदर्शित है. तृतीय एवं चतुर्थ करने की विनती के लिये श्री अजीमगंज-जीयागंज-मूर्शिदाबाद श्री संघ के सैकड़ों सज्जन | खंड में श्रुत संबंधित जानकारियाँ दी गई है. ईसा. पूर्व ३ री शताब्दी से इ. १५ वीं आये थे.आचार्यश्री ने उनकी भावना-भक्ति-उत्साह देखकर अपनी स्वीकृति प्रदान की. शताब्दी तक ब्राह्मी लिपि का विकास, आलेखन माध्यम, आलेखन तकनीक, एवं इससे श्री संघ में एक अपूर्व प्रसन्नता छा गई है. आचार्यश्री धनबाद की ओर विहार | आलेखन संरक्षण के नमूने प्रदर्शित किये गये हैं. इनके अलावा आगम शास्त्र एवं अलगकिय है, वहा सवछरा पालित सघ ३०० व्यक्तियों का लकर शिखरजी पधारन अलग विषयों से संबधित हस्तलिखित ग्रंथ भी प्रदर्शित किये गये हैं. . शेष पृष्ठ ३ पर शेष पृष्ठ २ पर For Private and Personal Use Only
SR No.525252
Book TitleShrutsagar Ank 1996 01 002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain, Balaji Ganorkar
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year1996
Total Pages8
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size1 MB
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