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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुत सागर, माघ २०५२ खामे मि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्ती मे सव्व भूएसु, वेरं मझं न केणइ ।। संस्थाना ज्ञानमंदिरना शिला स्थापन प्रसंगे रहेवानु थयु.ज्ञानमंदिरना निर्माण कार्यनी [पंचप्रतिक्रमणसूत्र) दीर्घ दृष्टि जो ए मुजब कार्यरत बनी रहेशे तो विज्ञान अने धर्म बन्नेनी सापेक्षतानो अनुभव मैं सभी जीवों से क्षमा याचना करता हूँ सभी जीव मुझे भी क्षमा प्रदान करें. मेरी | करी शकाय तेवी शक्यता छे. उत्साहि कार्यकरो पूरे पूरा समर्पित तो छ ज पण सभी जीवों के साथ मैत्री है. किसी के साथ भी मेरा वैर नहीं है। 0 ज्ञानमंदिरनो निर्माण कार्य पूर्ण थता तेने चेतनवंतु बनाववा अथाग प्रयत्ननी जरूरियात आवश्यक बनी रहेशे. शासन देवने प्रार्थना छे सर्वने प्राचीन विद्याओगें एक प्रतिक संपादकीय) बनाववा सहाय करे. -आचार्य श्रीचंद्रोदयसूरि ___ अहिंर्नु परिसर घणुंज सुंदर ने रमणीय छे. तेम ज सम्यग् दर्शनने ज्ञाननी प्राप्तिने माननीय श्रुतभक्त, अने चारित्रनी आराधनाने अनुकूळ छे.आस्थळ वधु ने वधु विकसित थाय एवी शुभेच्छा. श्रुतसागर का प्रवेशांक आपको अपेक्षा से अधिक पसंद आया. इस संदर्भ में हमें -आचार्य श्रीविजयसूर्योदयसूरि अनेक पत्र एवं मौखिक शुभाशंसायें प्राप्त हुई हैं. एतदर्थ हम अपने सभी शुभचिंतकों| श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र में जैन धर्म की प्राचीनतम पुस्तकों के संग्रह का के आभारी हैं. प्रयास सराहनीय है. पुस्तकालय के निर्माण की योजना व दुर्लभ पुस्तकों के संरक्षण प्रस्तुत अंक में इस पत्रिका की पृष्ठ संख्या बढाई गई है. तदनुसार वाचन सामग्री | के नवीनतम साधनों के उपयोग के संबंध में प्रमुख ट्रस्टियों के साथ विचार विमर्श से तथा नये स्तम्भ प्रारम्भ करने का प्रयास हुआ है. 'जैन साहित्य' स्तम्भ के अन्तर्गत | लगा कि संभवतया यह भारत में अनूठा अद्भुत अनुपम प्रयास होगा. आचार्य भगवन् जैन आगम एवं कथा साहित्य का परिचय जिज्ञासुओं को होगा. इसी प्रकार 'इतिहास | श्रीपासागरसरीश्वरजी की विद्वत्ता व दरदर्शी दर्शन की योजना विश्व के जैन दर्शन के झरोखे से' आपको जैन धर्म एवं संस्कृति के पोषण एवं संवर्द्धन में अपनी भूमिका म यह नयी कड़ी होगी. - मुख्य न्यायाधीश (नि.) व सांसद गुमानमलजी लोढ़ा प्रस्तुत करने वाले ऐतिहासिक पात्रों का दर्शन हो सकेगा. ग्रंथावलोकन में नवप्रकाशित | जैन दुर्लभ साहित्य का संग्रह देखकर अभिभूत हुआ. निःसंदेह जैन संस्कृति और जनोपयोगी पुस्तकों की समीक्षा की जाती है. इस अंक को प्रस्तुत करने में सर्व श्री | ज्ञान के लिए जो प्रयास और श्रम-साधना की जा रही है, अनुकरणीय है. समर्पित भाव राम प्रकाश झा, आशित शाह, कौशिक पुरोहित, जिज्ञेश शाह तथा केतन शाह का | से इसका संरक्षण और विकास न केवल भारत अपितु विश्व के लिए अनूठा उदाहरण सहयोग मिला है. हमें विश्वास है कि श्रुतसागर का यह अंक आपकी अभिलाषा पूर्ण | सिद्ध होगा. 'स्कालर्स' के लिए ऐसा अन्य उपयोगी मंच मिलना मुश्किल है. कर सकेगा. __. मनमोहन जैन, प्रशासक, नाकोडा जैन तीर्थ ____ अपने सुझाव एवं प्रतिक्रिया लिखना न भूलें. पृष्ठ १ का शेष ((वृत्तान्त सागर) जैन सांस्कृतिक एवं श्रुत परंपरा का रक्षक... पाँचवे और छठे खंड में गुजरात की जैन चित्र शैली के इस्वी. ११वी शताब्दी श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र में से १८ वीं शताब्दी के चित्र, सचित्र हस्तप्रतें, सचित्र गुटके, आचार्य भगवंतों को चातुर्मास उपधान तप का भव्य समापन के लिए आगमन हेतु विज्ञप्तिपत्र एवं प्राचीन यंत्र चित्रादि वस्त्र पर प्रदर्शित किये गये हैं. गच्छाधिपति शासन प्रभावक आचार्य भगवंत श्री विजयमेरुप्रभसूरीश्वरजी म. सा. ___ सातवे खंड में चंदन एवं हाथी दांत की सुंदर कलाकृतियाँ प्रदर्शित की गई हैं. | के शिष्यरत्न पू. आ. श्री विजयमानतुंगसूरीश्वरजी म. सा. , पू. पंन्यास श्री जो दर्शकों का मन मोह लेती हैं. इनके अलावा परंपरागत कई पुरावस्तुओं का प्रदर्शन इन्द्रसेनविजयजी म. सा., पू. पंन्यास श्री सिंहसेनविजयजी म.सा. आदिकी निश्रा में भी किया गया है. श्रेष्ठिवर्य संधयी श्री छगनलालतिलोकचन्दजी (किवरलीवाला) साकरिया परिवार की सम्राट सम्प्रति संग्रहालय अपने विकास के पथ पर अग्रसर है. सभी कलाकृतिओं ओर से उपधान तप की आराधना बड़े ठाठ एवं होल्लास पूर्ण वातावरण में सम्पन्न को एक ही स्थान पर सुसंयोजित करना, संरक्षण करना, समय-समय पर विशिष्ट प्रदर्शन हुई. की योजना बनाना, संशोधन करना, कीटादि से बिगड़ी हुई कलाकृतियों को पुनः २१२ आराधकों में से१२८ आराधकों ने पुण्यात्मा माला परिधान की. पोष संस्कारित करना और जैन संस्कृति की प्राचीनता एवं भव्यता के प्रमाण पत्र समाज वद-१० मंगलवार दि-१६-२-१९९६ को रथयात्रा का वरघोड़ा (शोभा यात्रा) तक पहुँचाना इस संग्रहालय का ध्येय है, एवं मालारोपण का भव्य कार्यक्रम सुसम्पन्न हुआ. सोने में सुगंध की तरह- उपधान की तपश्चर्या के साथ-साथ चार मुनि भगवंतों पृष्ठ ८ का शेष) कम्प्यूटराइजेशन प्रोजेक्ट ___ सम्राट सम्प्रति संग्रहालय में संगृहीत एवं प्रदर्शित हस्तप्रतों, प्रतिमाओं, पुरावस्तुओं | प. पू. मुनि श्री विश्वसेनविजयजी म. सा., मुनि श्री सुव्रतसेनविजयजी म. सा., मुनि हेतु विशेष रूप से कम्प्यूटर प्रोग्राम तैयार किया गया है. इस प्रोग्राम के अन्तर्गत किसी | | श्री मलयसेनविजयजी म. सा. एवं मुनि श्री मतिसेनवजयजी म. सा. को श्री महा भी वस्तु/इकाई का बार-बार प्रत्यक्ष व्यवहार आवश्यक नहीं रह जाता. सभी संगृहित निशीथ का योगोद्वहन सुख-शाता पूर्वक परिपूर्ण हुआ है. वस्तुओं के फोटोग्राफ कम्प्यूटर में Scan कर लेने के वाद संशोधन हेतु मूल पुरावस्तु | ता. ५.१.९६ को पूज्य आचार्य श्री जिनभद्रसूरीश्वरजी म. सा., पू. आचार्य श्री को उपलब्ध कराने की आवश्यकता नहीं रह जाती. इससे मानव सहज असावधानी | यशोवर्मसूरीश्वरजी आदिठाणा का इस तीर्थ में दर्शनार्थ पदार्पण हुआ था. पूज्य आचार्य वश भूल से क्षति होने की सम्भावना नहीं रहती तथा साथ ही इनकी अधिकतम सुरक्षा | श्री यशोवर्मसूरीजी एक जाने माने प्रवचनकार हैं. भी सुनिश्चित हो जाती है. गणिवर्यश्री अमृतसागरजी महाराज साहेब को गांधीनगर में आध्यात्मिक पुस्तक मेला पंन्यास पद प्रदान समारोह गांधीनगर] ता. २३-१२-९५ से २५-१२-९५ तक प्र. व्र. ई. विश्वविद्यालय द्वारा सम्मेत शिखर] आगामी २४ जनवरी १९९६ को राष्ट्रसंत आचार्यश्री आयोजित आध्यात्मिक पुस्तक मेले में विविध धर्मों की २२ संस्थाओने भाग लिया. पद्मसागरसूरी म. सा. की निश्रा में नमस्कारादि मन्त्र-जाप सन्निष्ठ प. पू. गणिवर्य श्रीमहावीर जैन आराधना केन्द्र की ओर से सर्वश्री आशित शाह एवं कौशिक पुरोहित श्रीअमृतसागरजी म.सा. को पंन्यास पद प्रदान करने हेतु भोमियाजी, सम्मेत शिखर ने जैन धर्म एवं संस्था की विविध गतिविधियों से जिज्ञासुओं को अवगत कराया. में समारोह आयोजित किया गया है. 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SR No.525252
Book TitleShrutsagar Ank 1996 01 002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain, Balaji Ganorkar
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year1996
Total Pages8
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size1 MB
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