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श्रुत सागर, माघ २०५२
जानो।
तो
जानें
कोबा स्थित महावीरालय की विशिष्टता
श्रुत सागर गांधीनगर में कोबा स्थित श्रीमहावीर जैन आराधना केन्द्र परिसर में श्रीमहावीर
प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता -१ स्वामी के मंदिर का निर्माण प.पू. गच्छाधिपति आचार्यश्री कैलाससागरसूरीश्वरजी महाराज के दिव्य आशीष व प.पू. आचार्यश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. की प्रेरणा से हुआ
प्रश्नावलीहै.२२ मई १९८७ को दुपहर २.०७ बजे पूज्य गच्छाधिपति का अंतिम संस्कार इसी
१. तीर्थंकरों को 'जिन' क्यों कहा जाता है? परिसर में हुआ था. उनकी स्मृति को अमर करने के लिए उनके शिष्यों एवं प्रशिष्यों
२. आदीश्वर भगवान के माता-पिता के नाम लिखें. ने सूर्यगति की बृहद् एवं सूक्ष्मातिसूक्ष्म गणना कर महावीरालय के शिखर में इस प्रकार
३. 'प!षणपर्व' का क्या उद्देश्य है? की व्यवस्था करवायी है जिससे प्रतिवर्ष २२ मई को दुपहर २.०७ वजे सूर्य-किरणें
४. प्रतिक्रमण करने से क्या लाभ हैं? शिखर में से प्रविष्ट होकर भगवान श्रीमहावीरस्वामी के रत्नजडित तिलक को देदीप्यमान
५. जैन समाज में रात्रि-भोजन का निषेध क्यों है? करें.लगभग पांच मिनट तक इस अत्यंत अलौकिक एवं अद्भुत दृश्य को देखने प्रतिवर्ष
६.भगवान महावीर स्वामी के गणधरों में सबसे अधिक आयुष्य किसका
था? दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं एवं इस दृश्य का दर्शन कर अपने नेत्रों को धन्य मानते
७. महाप्रभाविक भक्तामर स्तोत्र की रचना किसने और कव की? हैं. अधिक से अधिक श्रद्धालु इस अलौकिक एवं अनुपम दृश्य को देख सकें इसके
८. ऋजुबालिका तीर्थ कहाँ है और क्यों प्रसिद्ध है? लिए इस अवसर पर पूरे परिसर में स्थान स्थान पर क्लोज़ सर्किट टी.वी. की व्यवस्था
९. आचार्य बुद्धिसागर सूरि जी म. सा. ने कितने ग्रंथ लिखे थे? उनके की जाती है.
द्वारा रचित किन्ही पाँच ग्रन्थों के नाम लिखें. जीवन में कम से कम एक बार अवश्य दर्शनीय दृश्य
१०. भगवती सूत्र आगम का कौन सा अंग है?
प्रश्नोत्तरी (क्विज़) प्रतियोगिता में भाग लेने की नियमावली१. इस प्रतियोगिता में १४ से २५ वर्ष तक की आयु का युवावर्ग भाग
ले सकता है. 'भारतीय संस्कृति की आरसी'
२. प्रश्नों के उत्तर सुपाठ्य एवं पृष्ठ के एक ही ओर लिखे होने चाहिए.
उत्तरपत्र के साथ अपना नाम और पूरा पता स्पष्ट लिखें. 'प्राचीन जैन ज्ञानभंडार जैन धर्म एवं भारतीय संस्कृति की आरसी है.'
३. प्रश्नोत्तर २९-०२-१९९६ तक संपादक, श्रुतसागर, श्री महावीर आज विश्व में कोई भी ऐसा इन्सान नहीं है जिस के पास एकाध क्षेत्र का भी ज्ञान
जैन आराधना केन्द्र, कोबा, गांधीनगर ३८२००९ को अवश्य प्राप्त उपलब्ध न हो. लेकिन यह ज्ञान केवल मर्यादित ज्ञान कहा जा सकता है, जो एक निश्चित
हो जाने चाहिये, विलम्ब से प्राप्त उत्तरों पर विचार नहीं किया जायगा. क्षेत्र या क्षेत्रों के लिए सीमित है. ज्ञान की कोई सीमा निश्चित नहीं की जा सकती.
४. सही उत्तरपत्रों में से विजेताओं के नाम लॉटरी द्वारा निकाले जायेंगे. ज्ञान तो एक गहरे समुद्र के समान है, जिसका कोई किनारा नहीं है. हम जैसे-जैसे
प्रथम द्वितीय एवं तृतीय पुरस्कार प्राप्त विजेताओं को क्रमशः १५०, उसमें उतरेंगे उसकी गहराई वढ़ती जायगी. इस ज्ञान रूपी समुद्र में मनुष्य हमेशा अतृप्त
१०० एवं ७५ रु. मूल्य की धार्मिक पुस्तकें प्रदान की जाएगी. तथा ही रहता है.
दो अनुमोदन पुरस्कार दिये जायेंगे. विजेताओं का नाम अगले अंक आज जव कि शिक्षण केवल पुस्तकीय और यांत्रिक बन गया है, वन रहा है, तब
में प्रकाशित किया जाएगा तथा व्यक्तिगत सूचना भी दी जाएगी. हरेक व्यक्ति के पास से धार्मिक और कल्याणकारी वैज्ञानिक ज्ञान की अपेक्षा रखना
५.इस प्रतियोगिता में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र से सम्बन्धित कोई संभव नहीं है. आज की शिक्षण प्रणाली को देखते हुए हम कह सकते हैं कि व्यक्ति
भी कार्यकर्ता या उनके परिवार के सदस्य भाग नहीं ले सकते है. अपने क्षेत्र में हो रही नई गतिविधियों से भी कभी-कभी परिचित नहीं हो पाता. आज
६. सम्पादकों का निर्णय अन्तिम निर्णय माना जायगा. का विद्यार्थी मात्र पाठकीय एवं अभ्यासकीय पुस्तकों के दो जिल्दों के बीच ही सीमित हो गया है, तब अपने धर्म एवं संस्कृति की ओर कौन ध्यान देगा?
(पृष्ठ ३ का शेष)
जैन साहित्य - १ पर हाँ! आज जिन ज्ञानभंडारों, संस्थाओं तथा व्यक्तियों को अपने देश की, अपने | न पड़ जाए इसलिए इनका अध्ययन मनन आवश्यक है. इनका पूरा परिचय किसी धर्म की गरिमा जारी रखने में रूचि है. उन्होंने अपने लिए एवं भावी पीढी के लिए | को तत्काल एक साथ तो नहीं मिल सकता लेकिन किसी ग्रंथ या कृति का नाम लेते भारतीय संस्कृति को अक्षुण्ण रखने के लिए अलभ्य/अप्राप्य ज्ञान का संग्रह किया हुआ | ही उसकी
ही उसकी संक्षिप्त रूपरेखा या उसका चित्र मस्तिष्क में अवतरित हो जाय ऐसा प्रयास है. हमको सिर्फ इस ज्ञान का संग्रह, संरक्षण और पुनः उपलब्धि जहाँ की जाती है वहाँ |
अवश्य हो सकता है. यह स्तम्भ इसी उद्देश्य को मद्दे नजर रखते हुए प्रारम्भ किया जाकर इस ज्ञान रूपी आरसी में मात्र झाँकना ही है, कि इस ज्ञान रूपी समुद्र में हम |
जा रहा है. जिससे जैन साहित्य से विशाल वाचकवर्ग परिचित हो सकें तथा विशेष कहाँ पर है. कहीं जीवन की इस दौड़ में हम पीछे तो नहीं रह गये हैं? हर रोज हम | उत्सुक होकर गहन अध्ययन के लिए प्रेरित हो सके.
-क्रमशः काफी समय दर्पण के सामने वीताते हैं! उसकी वजाय ज्ञानभंडारों में जाकर ज्ञान रूपी
७ पाठकों से नम्र निवेदन दर्पण में कभी देखेंगे तो हमको निश्चित रूप से एहसास होगा कि हमारे सांस्कृतिक विकास में ज्ञानार्जन कितना जरूरी है. यह ज्ञान संग्रह अवश्य ही हमारे गुणों का विकास
यह अंक आपको कैसा लगा, हमें अवश्य लिखें. आपके सुझावों की हमें प्रतीक्षा है.
आप अपनी अप्रकाशित रचना/लेख सुवाच्य अक्षरों में लिखकर/टंकित कर हमें करने के साथ ही हमारे जीवन को सफल बनायेगा. जैन ज्ञानभंडारों में उपलब्ध साहित्य जसकते अपनी रचनालेखों के साथ उचित मल्यका टिकट लगा लिफाफा अवश्य अवश्य ही हमको भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत कर देगा. साथ ही इस वैज्ञानिक युग | भेजें अन्यथा हम अस्वीकृति की दशा में रचना वापस नहीं भेज सकेंगे. में भी हमारा जैन धर्म भारतीय संस्कृति, परंपरा, विचारों एवं मूल्यो के महत्व का पूरा- · श्रुतसागर, आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर पूरा एहसास करायेगा.
-क्रमशः श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा, गांधीनगर ३८२००९.
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