Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 4
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Atharva Shri Kailassarsur Gyarmandir कैलास श्रुतसागर जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड १.१.४) KAILASA ŚRUTASAGARA GRANTHASUCI Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts (Vol-1.1.4) शाहबममाणा बुदाणावादयाहास बदरिमामवमा वादमवणाराatani मानामा आचार्य श्री कैलाससागारमारि ज्ञानामांदिर कोब्बा तीर्थ मनाव For Private And Personal use only सातारमतारनपान Maiश्रीयादान Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न ४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची (१.१.४) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची : आशीर्वाद व प्रेरणा : आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महावीर आराधना ANIMATED SY Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमृतं तु विद्या प्रकाशक 6 श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५३३ ० वि.सं. २०६३ ० ई. २००६ For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न ४ Ācārya Śhri Kailāsasāgarasūri Smrti Granthasūci - Ratna 4 कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.४ Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci : 1.1.4 : Compiler : : सूचीकर्ता : मुनि निर्वाणसागर Muni Nirvansagar : संपादक: पं. मनोज र. जैन : Editor : Pt. Manoj R. Jain : खंड संयोजक : संजय र. झा : Part Co-ordinator : Sanjay R. Jha : सह संपादन : शैलेष प्र. महेता नवीन वि. जैन आशिष आर. शाह : Co-Editors : Shailesh P. Maheta Navin V. Jain Ashish R. Shah : कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग : केतन दी. शाह : Computer Programming : Ketan D. Shah For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न ४ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिरे देवद्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखितग्रंथानां विस्तृतसूची विभाग - १ : हस्तप्रत सूची • वर्ग - १ : जैन साहित्य खंड - ४ : आशीर्वाद व प्रेरणा : आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Descriptive Catalogue of Manuscripts Preserved in Dēvarddhigaại Kșamāśramaņa Hastaprata Bhāņdāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Section -I : Manuscripts' Catalogue * Class - I: Jain Literature Volume - 4 : Blessings & Inspirations : Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Published by6 Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, India 2006 For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 4 Kailasa Śrutasagara Granthasūci Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.4 Preserved in Devarddhigani Kṣamāśramaṇa Hastaprata Bhāṇḍāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir Copy rights reserved by Publisher 53 Deeksha Day of H. H. Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Maharaj Kartik Shukla 3, Vir Samvat 2533, Vikram Samvat 2063, 8th November 2006 Edition: First • प्रकाशन सौजन्यः श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर O Available at: Shruta Sarita Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Published by: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar 382009. INDIA Tel: (079) 23276204, 23276205, 23276252, 30927001 Fax: 23276249 Web site: www.kobatirth.org, E_mail: gyanmandir@kobatirth.org O Price: Rs. 750/= O ISBN 81-89177-00-1 (Set) 81-89177-04-4 (Vol.4) • Printed by: Neminath Printers, Shahibaug, Ahmedabad. Tel. No. 25625035 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परम पूज्य आचार्य श्री पद्मसागरसूरि म.सा. के ५३वें दीक्षा दिन के उपलक्ष्य में ( १९५५-२००६) For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatinh.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी For Private And Personal use only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: || अर्हम् नमः ।। मंगल कामना जिनकी वाणी में सरस्वती का निवास है, ऐसे श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंथित किया है; उस जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखने वाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित नियुक्तिकार -भाष्यकार चूर्णिकार टीकाकार आदि आचार्य भगवंतों का भी मैं ऋण स्वीकृति पूर्वक पुण्य स्मरण करता हूँ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह-संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग में भी कमजोरी आ गई. इन सब कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर सन् १९७४ में अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे सर्वप्रथम विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमत् कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रहित करने का कार्य प्रारंभ हुआ. धीरे-धीरे संग्रह समृद्ध बनता गया. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सुव्यवस्थित समृद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए आधुनिक साधनों से संपन्न यह ज्ञानमंदिर है. ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के कार्य में व उसके मार्गदर्शन में हमारे दो विद्वान मुनि श्री निर्वाणसागरजी और विशेष रूप से मुनि श्री अजयसागरजी ने जो सहयोग दिया है, वह कभी भुलाया नहीं जा सकता. मुनि श्री नयपद्मसागरजी आदि मुनिराजों ने भी यथायोग्य सहयोग दिया है. मैं उन सभी के कार्यों की भी हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण का कार्य किया है वह अपने आप में अनूठा व इतिहास सर्जक है. श्री मनोजभाई श्री संजयकुमार झा, श्री शैलेषभाई, श्री नवीनभाई, श्री आशिषभाई आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई एवं सभी सहयोगी कार्यकरों को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. संस्था के ट्रस्टी श्री किरीटभाई कोबावाला, श्री कल्पेशभाई, श्री गिरीशभाई एवं कारोबारी सभ्य श्री मोहितभाई आदि सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थ के संरक्षण, सूचीकरण व प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करने वाले दाताओं को भी धन्यवाद देता , पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों की अपने आप में विशिष्ट प्रकार की कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची जैन हस्तलिखित साहित्यखंड ४ व ५ प्रकाशित होने जा रहे हैं, यह ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. मुझे विश्वास है कि विश्व भर का विद्वद्वर्ग इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होगा. संस्था अपने विकास पथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है. १ For Private And Personal Use Only पद्मसागर‌सूरि Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 9 सादर समर्पण - कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के कर कमलों में... कि जिनकी बदौलत यह श्रुत परंपरा अक्षुण्ण रही. २ For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobirthora Acharya Shri Kailassegarsur Gyanmandir नाकोडा पार्श्वनाथ नाकोडा भैरवनाथ सौजन्य श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर For Private And Personal use only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: प्रकाशकीय जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के चतुर्थ व पंचम खंडों को परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की दीक्षा के ५३ वें वर्ष प्रवेश के पावन प्रसंग पर अनंत सिद्धों की सिद्धभूमि श्री सिद्धगिरिराज की पावनीय छत्रछाया में आदिज्ञानप्रवर्तक युगादिदेवश्री आदिनाथ प्रभु की परम कृपा से चतुर्विध संघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है. विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का जो बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है, वह भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है.. प्रस्तुत प्रकाशन में संस्था में ही विकसित किये गये कम्प्यूटर आधारित विशेष प्रोग्राम के अंदर प्रविष्ट हस्तप्रतों की विस्तृत सूचनाओं के आधार पर मात्र चुनी हुई सूचनाओं को यहाँ पर प्रकाशित किया जा रहा है. समग्र सूची और भी अधिक विस्तार से ज्ञानतीर्थ के कम्प्यूटरों पर वाचकों हेतु उपलब्ध है. हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रखरखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में पूज्य आचार्यदेव के सभी शिष्य प्रशिष्यों का विशेष योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों की प्रथम कच्ची सूची एवं बाद में पक्की सूची हेतु एक लाख से ज्यादा फॉर्म भरने का वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु पूज्य मुनिराज श्री अजयसागरजी, यहाँ के पंडितजनों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य मुनिराज श्री नयपद्मसागरजी का भी उल्लेखनीय योगदान रहा है. संस्था सभी की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिले-जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. नौ पंडितों के साथ करीब तीस कार्यकरों के माध्यम से श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बडी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या इसी तरह के अन्य अनुदान को न लेकर मात्र समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियों हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का भी आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो यह कार्य आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार-धन्यवाद दिया जाता है. खास कर शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी - अहमदाबाद की ओर से सूचीकरण के इस भगीरथ कार्य एवं ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों हेतु ज्ञानद्रव्य में से जो निरंतर योगदान मिलता रहा है, उसने हमेशा हमारी चेतना को विकस्वर रखा है. बाबू श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर, मुंबई व शेठश्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ, वालकेश्वर, मुंबई की ओर से मिले ज्ञानद्रव्य के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. सभी के हम सदैव ऋणी रहेंगे. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची- जैन हस्तलिखित साहित्य के इस चतुर्थ खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर व तीर्थ के ट्रस्टीगण के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस चतुर्थ रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है. ट्रस्टीगण सुधीरभाई यू. मेहता, कल्पेश जे. शाह, गिरीशभाई वी. शाह, हेमंतभाई सी. ब्रोकर, श्रीपालभाई आर. शाह, अरविंदभाई टी. शाह, प्रवीणभाई एन. शाह, सोहनलाल एल. चौधरी, भीखुभाई चोकसी, किरीटभाई कोबावाला, सेवंतीलाल ! एम. मोरखिया, चांदमल पी. गोलिया, घीसूलालजी डी. राठोड, खूबीलालजी एल. राठोड. श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट कोबातीर्थ, गांधीनगर ३ For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: प्राक्कथन कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य के प्रथम खंड के प्रकाशन के बाद परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की दीक्षा के ५३वें वर्ष प्रवेश के प्रसंग पर चतुर्थ व पंचम खंड का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विशेष खुशी की बात है कि संस्था द्वारा अपनाए गए श्रेष्ठता की ओर निरंतर सुधार व विकास के अभिगम से प्रेरित होकर खण्ड ३ के प्रकाशन के बाद सूचीगत सूचनाओं को उपयोगिता की दृष्टि से और भी ज्यादा सटीक व तर्कसंगत ढंग से प्राप्त व प्रस्तुत किया जा सके, इस हेतु से बड़े ही श्रम, समय व धन के व्यय पूर्वक सूचीकरण का कम्प्यूटर प्रोग्राम नए सिरे से बनाया गया है. अतः प्रस्तुत खंडों से सूचनाएँ ज्यादा स्पष्टतापूर्वक व योग्य स्थान पर मिलेगी. यथा पेटाकृति व कृति माहिती के स्तर पर भी प्रतिलेखक द्वारा तत्-तत् स्तर पर प्रदत्त प्रतिलेखन पुष्पिका का लेखन वर्ष, स्थल आदि सूचनाएँ मिलेंगी. कृति का अध्याय, गाथा आदि परिमाण जिस तरह का प्रतों में उपलब्ध होगा, उसी तरह से यहाँ दिया गया है. ध्यातव्य है कि कई बार एक ही कृति हेतु भिन्न-भिन्न प्रतों में परिमाण माहिती थोडी-बहुत न्यूनाधिक भी मिलती है. इसी तरह कृति परिवार वाले परिशिष्ट में भी अकारादिक्रम की ज्यादा उपयोगी पद्धति अपनाई गई है. इस तरह के छोटे-बड़े अनेक परिवर्तन देखने को मिलेंगे. 2 आशा है यह नई प्रस्तुति विशेष उपयोगी सिद्ध होगी. वर्तमान कार्य के परिणाम स्वरूप प्राकृत संस्कृत व मारुगुर्जर आदि देशी भाषाओं में मूल व व्याख्या साहित्य की छोटी-बड़ी कृतियाँ प्रचुर संख्या में अप्रकाशित ज्ञात हो रही है. इनमें से अनेक कृतियाँ तो बड़ी ही महत्वपूर्ण हैं. अनेक महत्व के विद्वानों की कृतियों भी अद्यावधि अज्ञात व अप्रकाशित हैं. ऐसा स्पष्ट जान पड़ता है. संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सब का विस्तृत विवरण संकेतों का स्पष्टीकरण पृष्ठ ११ पर मुद्रित है. इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान / व्यक्ति व टाइप सेटिंग सम्बन्धी सूचनाएँ पृष्ठ ६ एवं प्रयुक्त जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण का एक बहुत बड़ा महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक इन दो स्तरों पर ही आधारित, द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर यहाँ बहुस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरासामग्री इस तरह छः भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. ग्रंथालय सूचना पद्धति में कृति की विभावना स्वयं में अनूठी एवं बहूपयोगी सिद्ध हुई है. कृति को विविध भंडारों की हस्तलिखित प्रतों, प्रकाशनों व सामयिकों के साथ संयोजित किया गया है, जिससे किसी भी कृति से सम्बन्धित सभी हस्तप्रतों, सभी मुद्रित प्रकाशनों एवं सामयिकों की सूचनाएँ एक साथ मिल जाती हैं. इसी तरह व्यक्ति विद्वान का भी कृति सर्जक, हस्तप्रत प्रतिलेखक आदि व प्रकाशन, सामयिक के संपादक, संकलनकार, संशोधक, संयोजक, प्रेरक एवं प्राचीन मूर्ति आदि के प्रतिष्ठापक एवं मूर्ति भरवानेवाले इत्यादि आयामों में एकीकृत परिचय रखा गया है. इस प्रकार प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्ध कर एकीकृत किया गया है. समग्र कार्य दौरान पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी तथा श्रुताराधक मुनिराज श्री अजयसागरजी की ओर से मिली प्रेरणा व प्रोत्साहन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के शिष्य-प्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. मुद्रित ग्रंथों के आधार पर कृति संपादन हेतु श्री रामप्रकाश जगदीश झा, प्रतों की विविध प्रकार की प्राथमिक सूचनाएँ कम्प्यूटर पर प्रविष्ट करने एवं प्रत विभाग में विविध प्रकार से सहयोग करने हेतु श्री संजयभाई सोमाभाई गुर्जर तथा ग्रंथालय विभाग के श्री दिलावरसिंह प्रह्लादजी विहोल आदि सभी सहकार्यकरों को त्वरा से संदर्भ पुस्तकें तथा प्रतें उपलब्ध कराने हेतु हार्दिक धन्यवाद. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है, फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित भूलें रह भी गई होंगी. इन भूलों के लिए व जिनाज्ञा विरूद्ध किसी भी तरह की प्ररूपणा के लिए हम त्रिविध मिच्छा मि दुक्कडम् देते हैं. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रही भूलों हेतु हमारा ध्यान आकृष्ट करें एवं इसे और बेहतर बनाने हेतु अपने सुझाव अवश्य भेजें, जिससे अगली आवृत्ति व अगले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. ४ For Private And Personal Use Only संपादक मंडल Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir - कैलास श्रुतसागर सूची प्रकाशन की रूपरेखा इस परियोजना के तहत सूचीपत्र में मुख्य तीन विभाग किए गए हैं. १ हस्तप्रत माहिती. २ कृति माहिती. ३ विद्वान-व्यक्ति माहिती. यद्यपि कम्प्यूटर में सभी तरह की सूचनाएँ विस्तृत रूप से भरी जाती हैं एवं आगे भी उनमें परिष्कार, विस्तार जारी रखने का आयोजन है, तथापि प्रत्येक सूचीपत्र विभाग में मात्र तत्-तत् विभाग की सूचनाएँ शक्य विस्तार से देकर अन्य विभागों की संबद्ध सूचनाओं को आवश्यक हद तक संक्षेप में ही दिया जाएगा. इन संक्षिप्त सूचनाओं की विस्तृत माहिती के लिए संबद्ध विभाग के सूचीपत्र की अपेक्षा रहेगी. उपयोगिता एवं अनुकूलता के अनुसार उपरोक्त तीनों विभागों के सूचीपत्रों के क्रमशः प्रकाशन का आयोजन है. यहाँ पर सूची प्रकाशन रूपरेखा की मूल अवधारणा में हुए परिवर्तनों, परिवर्द्धनों के साथ संक्षिप्त ढांचा ही दिया गया है, विस्तारपूर्वक जानने हेतु कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची- जैन हस्तलिखित साहित्य खंड १.१.१ में पृष्ठ २२ से २४ देखें. १. हस्तप्रत विभाग इस विभाग में महत्तम उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए हस्तप्रतगत कृति की धर्म आदि प्रधानता के अनुसार निम्न वर्ग किए गए हैं. ये सूचियाँ यथोपलब्ध प्रत क्रमांक के अनुक्रम से होंगी. १.१ जैन कृति वाली प्रतें, १.२ धर्मेतर साहित्यिक आदि कृति वाली प्रतें, १.३ वैदिक कृति वाली प्रतें, १.४ शेष धर्मों की कृति वाली प्रतें. इनमें प्रथम, हस्तप्रत केन्द्रित - इस सूची में सूचनाएँ तीन स्तरों पर दी गई हैं. (१) प्रत माहिती स्तर : इस स्तर पर प्रत सम्बन्धी उपलब्ध सूचनाएँ उपयोगिता एवं सूची पुस्तक के कद की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए विविध अनुच्छेदों में शक्य महत्तम विस्तार से दी गई हैं. (२) पेटाकृति माहिती स्तर : इस द्वितीय स्तर पर यदि प्रत में क्रमशः स्वतंत्र पृष्ठों पर एकाधिक कृतियाँ मिलती हों तो उन पेटाकृतियों के नाम, पृष्ठांक, पूर्णता आदि सूचनाएँ यथायोग्य दी गई हैं. खंड ४ से यह स्तर व्यक्तरूप से अलग किया गया है. (३) कृति माहिती स्तर : इस तृतीय स्तर पर प्रत में रही कृतियों का निर्णय करने हेतु आवश्यक लघुतम सूचनाएँ ही दी गई हैं. पुस्तक के कद को मर्यादित रखने के लिए भी यह आवश्यक था. कृति की शक्यतम विस्तृत माहिती द्वितीय कृति विभाग वाली सूची में दिए जाने का आयोजन है. प्रत्येक खंड में तत्-तत् खंड में आए कृति परिवारों का मूल कृति के अकारादि क्रम से तत्-तत् कृति हेतु तत्-तत् खण्डगत प्रतों के क्रमांकों के साथ (१) संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषा की कृतियों हेतु एवं (२) मारुगूर्जर आदि देशी भाषा की कृतियों हेतु - इस तरह दो परिशिष्ट दिए गए हैं. १.५ हस्तप्रत विभाग के परिशिष्ट : इस वर्ग में हस्तप्रत विभागीय विविध परिशिष्टों का समावेश किया जाएगा. १.५.१ प्रत, पेटाकृति व कृति लेखनगत विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिकाओं का संग्रह., १.५.२ प्रतिलेखन वर्ष से प्रत क्रमांक. १.५.३ प्रतिलेखन स्थल से प्रत क्रमांक, १.५.४ विद्वान/व्यक्ति (प्रतिलेखक आदि) नाम से प्रत क्रमांक. १.५.५ प्रतिलेखन पुष्पिका श्लोक संग्रह - श्लोकानुक्रम से, १.५.६ प्र.पु.श्लोक - अकारादिक्रम से. २. कृति विभाग इस विभाग के तहत कृति को केन्द्र में रखकर उससे संबद्ध अनेकविध सूचनाएँ निम्नोक्त प्रकार से आएँगी. २.१ कृति पर से प्रत माहिती : यद्यपि खंड १.१.२ के प्रकाशन से प्रत्येक खंड के अंत में उस-उस खंड की कृतियों का यह परिशिष्ट संक्षिप्त रूप से दिया जा रहा है, तथापि सभी खंडों की कृतियों को अपनी महत्तम विस्तृत सूचनाओं के साथ संकलित रूप से देखने की सुविधा के लिए प्रतानुसार कृति माहिती के सभी खंड छप जाने के बाद निम्नोक्त प्रकार से अलग से भी प्रकाशित करने का आयोजन है. २.१.१.१ जैन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश भाषाओं की - स्थिर कृतियाँ, २.१.१.२ जैन मारूगुर्जर, गुजराती, राजस्थानी इत्यादि देशी भाषाओं की - स्थिर कृतियाँ, २.१.१.३ जैन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश - फुटकर कृतियाँ, २.१.१.४ जैन For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मारूगुर्जर आदि देशी भाषा - फुटकर कृतियाँ, २.१.२.१ से ४ धर्मेतर शेष - उपरोक्त चारों प्रकार की स्थिर व फुटकर कृतियाँ, २.१.३.१ से ४ वैदिक - इसी तरह की चारों प्रकार की कृतियाँ एवं २.१.४.१ से ४ अन्य धर्म - चारों प्रकार की कृतियाँ. २.२ आदिवाक्य से कृति माहिती, २.३ अंतिमवाक्य से कृति माहिती, २.४ विद्वान नाम से कृति माहिती, २.५ रचना वर्ष ___ से कृति माहिती, २.६ रचना स्थल से कृति माहिती, २.७ भाषा से कृति माहिती, २.८ विषय विभाग से कृति माहिती. ३. विद्वान/व्यक्ति व गच्छ माहिती विभाग इस विभाग में कृति व हस्तप्रतों से संबंधित विद्वान/व्यक्तियों एवं गच्छों की विविध प्रकार से सूचनाएँ देने का आयोजन है. ३.१ विद्वान/व्यक्ति माहिती : यह वर्ग विद्वान/व्यक्तियों से संबद्ध विस्तृत माहिती का होगा व विद्वान नाम/ उपनाम के अकारादि क्रम से यह सूची होगी. यह सूची अनेक उपवर्गों में विभक्त होगी. ३.१.१ जैन साधुओं की सूची, ३.१.२ जैन साध्वियों की सूची, ३.१.३ जैन श्रावकों की सूची, ३.१.४ जैन श्राविकाओं की सूची, ३.१.५ शेष विद्वान/व्यक्तियों की सूची. ३.२ विद्वान शिष्य/संतति माहिती, ३.३ विद्वान शिष्य परम्परा वंशवृक्ष. ३.४ विद्वान-गच्छ माहिती वर्ग : गच्छ को केन्द्र में रखते हुए निम्नोक्त वर्गों की सूचियाँ बनेंगी. ३.४.१ गच्छ माहिती, ३.४.२ गच्छ शाखा-प्रशाखा वंशवृक्ष, ३.४.३ गच्छानुसार विद्वान माहिती. सूची प्रकाशन की यह एक संभावित संक्षिप्त रूपरेखा है. अनुभवों, उपयोगिता एवं व्यावहारिक मर्यादाओं के आधार पर इसमें यथासमय योग्य परिवर्तन भी किया जाएगा. प्रस्तुत हस्तप्रत सूचीगत सूचनाओं का स्पष्टीकरण जैन हस्तप्रतों का समावेश करनेवाली हस्तप्रत आधारित इस सूची में सूचनाएँ तीन स्तरों पर दी गई हैं. (१) प्रत माहिती स्तर (२) पेटाकृति माहिती स्तर. (३) प्रत व पेटाकृतिगत कृति माहिती स्तर. पूर्व खंडों की तुलना में इस खंड से सूचनाओं में काफी बढ़ोत्तरी की गई है एवं सूचनाओं के क्रम में भी पर्याप्त फेरफार किया गया है. 'पेटाकृति माहिती स्तर' बढाया जाना यहाँ उल्लेखनीय है. यद्यपि मुख्यतः क्रम में फेरफार हुआ है, तथापि खंड १.१.१ के पृष्ठ ३३ से ३८ पर दिया गया इन सूचनाओं का परिचय विस्ताररुचि वालों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा. यहाँ पर मात्र संक्षिप्त रूप से व प्रथम खंड के प्रकाशन के बाद परिवर्तित व परिवर्द्धित सूचनाओं का ही परिचय दिया गया है. प्रत माहिती स्तर इस स्तर पर प्रत सम्बन्धी उपलब्ध सूचनाएँ विविध अनुच्छेदों में निम्नोक्त क्रम से शक्य महत्तम विस्तार से दी गई हैं. यद्यपि कम्प्यूटर पर ये सूचनाएँ और भी विस्तार से उपलब्ध हैं. १. प्रत क्रमांक : प्रत्येक प्रत का यह स्वतंत्र क्रमांक है. ग्रंथसूची के इस विभाग में मात्र जैन कृतियोंवाली प्रतों का ही समावेश होने से व बीच-बीच में जैनेतर आदि अन्य वर्गों की प्रतें भी अनुक्रम में होने से वे क्रमांक यहाँ नहीं मिलेंगे. यह क्रमांक अनुच्छेद-Paragraph की बायीं ओर निकला हुआ गाढ़े अक्षरों - Bold type में छपा है. २. प्रत महत्तादि सूचक चिह्न : प्रत की महत्ता का स्तर बताने के लिए क्रमांक के बाद कोष्ठक के अंदर इस तरह (+), (-), (#) चिह्न दिए गये हैं. २.१. प्रत संशोधित होने, टिप्पणक आदि से युक्त होने व कर्ता के स्वहस्ताक्षर से लिखित होने पर प्रत की महत्ता को बताने के लिए प्रत क्रमांक के बाद (+) का चिह्न लगाया गया है. यह चिह्न न होने का मतलब यह नहीं होता कि प्रत शुद्ध नहीं है या अल्प महत्व की ही है. सूची में इनका उल्लेख 'प्र.वि.' के तहत प्राप्त होगा. २.२ प्रत दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ वाली होने पर प्रत क्रमांक के बाद (.) का चिह्न लगाया गया है. इनका उल्लेख 'प्र.वि.' में प्राप्त होगा. २.३ कट, फट जाने आदि के कारण हुई प्रत व पाठ की विविध अवदशाओं की जानकारी कराने के लिए प्रत क्रमांक के For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir अंत में (#) का चिह्न लगाया गया है. सूची में इनका उल्लेख 'दशा वि.' के तहत प्राप्त होगा. ३. प्रतनाम : यह नाम प्रत में रही कृति/कृतियों की प्रत में उपलब्धि तथा कृति/कृतियों के प्रत में उपलब्ध नाम के आधार से बनता है. यथा- बारसासूत्र, आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति व टीका, कल्पसूत्र सह टबार्थ व पट्टावली, गजसुकुमाल रास व स्तवन संग्रह, स्तवन संग्रह, जीवविचार, कर्मग्रंथ आदि प्रकरण सह टीका... इत्यादि. प्रत माहिती स्तर व पेटाकृति माहिती स्तर में दिए गए नामों से सम्बन्धित विस्तृत विवरण प्रथम खंड के पृष्ठ ३३-३४ पर देखें. ४. पूर्णता - हस्तप्रत की उपयोगिता व स्पष्टता को ध्यान में रखते हुए पूर्णता निम्न प्रकार से वर्गीकृत की गई है. १. संपूर्ण : पूरी तरह से संपूर्ण प्रत, २. पूर्ण : मात्र एक देश से अत्यल्प अपूर्ण प्रतों को अपूर्ण न कह कर 'पूर्ण' संज्ञा दी गई है, ३. प्रतिपूर्ण : प्रतिलेखक द्वारा कोई खास अध्याय अंश मात्र ही लिखा गया हो और उतना संपूर्ण हो, ४. अपूर्ण : प्रत के आदि/अंत या मध्य का एक बड़ा अंश अनुपलब्ध हो.५. त्रुटक : बीच-बीच के अनेक पत्र अनुपलब्ध हों. ६. प्रतिअपूर्ण : प्रतिलेखक ने ही कोई खास अध्याय मात्र ही लिखा हो और उसमें भी पत्र अनुपलब्ध हो. ५. प्रतिलेखन संवत् : प्रत में विक्रम, शक आदि संवत् उपलब्ध हो तो वही वास्तविक रूप से दिया गया है, अन्यथा लेखन शैली, अक्षरों की लाक्षणिकता आदि के आधार पर विक्रम संवत् के अनुमानित शतक का उल्लेख किया गया है. इसके बाद प्रत में यथोपलब्ध वर्ष संख्या सूचक सांकेतिक शब्द - जो कि 'अंकानां वामतो गतिः' नियम से पढे जाते हैं - दिए गए हैं. तत्पश्चात वर्ष के संबंध में यदि कोई बात विचारणीय शंकास्पद लगी हो तो तत् सूचक '?' प्रश्नार्थ दिया गया है. उसके बाद मासनाम, अधिक मास संकेत, पक्ष तिथि, अधिक तिथि संकेत व वार यथोपलब्ध क्रमशः दिए गए हैं. क्वचित यथोपलब्ध वर्ष की एक अवधि भी दी गई है कि इन वर्षों के बीच यह प्रत लिखी गई है. ६. प्रत दशा प्रकार ('प्र. दशा') : श्रेष्ठ, मध्यम, जीर्ण. दशा सम्बन्धी विशेष माहिती अनुच्छेद १४ के अंतर्गत दी गई है. ७. पृष्ठ माहिती (पृ.) : प्रत के प्रथम व अंतिम उपलब्ध पृष्ठांक, घटते-बढते पृष्ठ का योग तथा पृष्ठांक एवं कुल उपलब्ध पृष्ठ, इतनी माहिती यहाँ आएगी. यथा - १ से ५०-४ (५,७, १५, २७) = ४६; ५ से ६०-३ (३*, १७, १८) = ५३; ५ से ६०-३ (३*, १७, २८) + २ (४, ३५) = ५५. यहाँ अंक पर * का चिह्न अवास्तविक घटते पत्र का सूचक है एवं '-' व '+' के चिह्न घटते व बढते पत्र के सूचक है. ८. कुल पेटाकृति : प्रत में यदि पेटाकृतियाँ हो तो उनका कुल योग यहाँ आएगा. ९. पूर्णता विशेष (पू.वि.) : प्रत के प्रारंभ से अंत तक के पाठ किसी कारण से अनुपलब्ध हो तो यहाँ पर मात्र अन्त के पत्र नहीं हैं, उसकी स्पष्टता की जाती है. इसके अतिरिक्त अपूर्णता प्रत में दिये पत्रांक से पता चल ही जाता है. पेटाकृति विहीन प्रत संपूर्ण नहीं होने पर कृति का कौन सा अंश उपलब्ध/अनुपलब्ध है, यह स्पष्टता भी यथाशक्य यहाँ देने का प्रयास किया गया है. यथा - दशवैकालिक सूत्र - अध्ययन ९ की प्रारंभिक ५ गाथा पर्यंत है. अथवा दूसरी चूलिका की अंतिम १९ गाथाएँ नहीं हैं. प्रत में यदि मूल के साथ टीका, टबार्थ आदि एकाधिक कृति हो और मूल की पूर्णता से यदि टीकादि की पूर्णता भिन्न हो तो ऐसे में पूर्णता की विशेष सूचना यहाँ न देकर कृति के साथ दी गई है. १०. प्रतिलेखन स्थल माहिति (ले.स्थल) : जिस स्थल पर प्रत-लेखन कार्य हुआ हो, उसका उल्लेख यहाँ दिया गया है. ११. प्रतिलेखक आदि : प्रत की प्रतिलिपि लिखने-लिखवाने वाले विद्वान या लहिया आदि के नाम गुरू, गच्छ माहिती के साथ यहाँ दिए गए हैं. उपदेशेन, क्रीत, गच्छाधिपति, पठनार्थे, प्रतिलेखक, राज्यकाल, लिखापितं, विक्रीत, व्याख्याने पठित, व्याख्याने श्रुत, समर्पित इत्यादि प्रकारों के विद्वान/व्यक्तियों का उल्लेख यहाँ दिया गया हैं.. १२. प्रतिलेखन पुष्पिका उपलब्धि संकेत (प्र.ले.पु.) : प्रत में प्रतिलेखन पुष्पिका (प्रतिलेखक सम्बन्धी विस्तृत परंपरा का उल्लेख) की उपलब्धि की मात्रा के अग्रलिखित संकेत यहाँ दिए गए हैं. जैसे- प्रतिलेखन पुष्पिका अंतर्गत १ से लेकर ३ विद्वानों तक की सूचनाएँ प्रत में प्राप्त होती हैं तो सामान्य दिया गया है, ३ से लेकर ५ तक मिल रहे विद्वानों की सूचनाओं को मध्यम तथा ५ से ज्यादा मिल रहे विद्वानों हेतु विस्तृत प्रतिलेखन पुष्पिका प्रकार दिया गया है. १३. प्रतविशेष (प्र.वि.): प्रत सम्बन्धी शेष उल्लेखनीय अन्य मुद्दों एवं प्रतगत कृति सम्बन्धी परन्तु सम्भवतः इसी प्रत में उपलब्ध ऐसी उल्लेखनीय बातों का समावेश यहाँ किया गया है. प्रत क्रमांक के साथ (+) (-) द्वारा सूचित प्रत विशेषताओं का उल्लेख भी यहाँ होगा. १४. दशा विशेष (दशा.वि.) : प्रत क्रमांक के साथ () द्वारा सूचित प्रत की जीर्ण दशा व उसकी मात्रा आदि सम्बन्धी स्पष्टता For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir यहाँ पर दी गई है. इसके आधार पर प्रत की उपयोगिता तय हो सकती है. १५. प्रतिलेखन श्लोक (प्र.ले.श्लो.) : प्रत के अंत में प्रतिलेखक द्वारा दिए जानेवाले हृदयोद्गार - श्लोकादि के संकेत अपने श्लोक क्रमांक के साथ यहाँ दिए गए हैं. यह श्लोक क्रमांक ज्ञानमंदिर में संग्रहित इस तरह के श्लोकों की सूची में से दिया गया है. यह सूची भविष्य में योग्य खंड में प्रकाशित की जाएगी. १६. लिपि माहिती : प्रत देवनागरी, जैन देवनागरी आदि जिस लिपि में लिखी गई है, उसका उल्लेख यहाँ किया गया है. १७. प्रत प्रकार : सामान्यतः कागज की बिना बंधे - छुट्टे पत्रों वाली प्रतों से भिन्न, किसी भी पदार्थ पर लिखी गई गुटका आदि प्रकार की प्रत होगी तो उसका उल्लेख यहाँ आएगा. अन्यथा 'प्रत सर्व सामान्य कागज के बिन बंधे पत्रों की है' यह समझ लिया जाना चाहिए. १८. लंबाई, चौड़ाई : प्रत की लंबाई-चौड़ाई आधे सेंटीमीटर के अंतर की शुद्धि के साथ यहाँ दी गई है. १९. पंक्ति-अक्षर : पृष्ठगत पंक्ति व पंक्तिगत अक्षरों को भी अंदाजन गिन कर लघुतम व महत्तम रूप से दिया गया है. पेटाकृति माहिती स्तर जिन प्रतों में पेटाकृतियाँ होंगी, उन्हीं प्रतों हेतु यह स्तर होगा. इस स्तर पर निम्न सूचनाएँ दी जाएँगी. १. पेटांक : प्रतगत पेटाकृति का क्रमांक. २. पेटाकृति नाम : (पे.नाम) प्रतनाम की ही तरह यहाँ पर भी कृति का प्रत में सूचित नाम दिया गया है. मूल यदि टीका, टबार्थ आदि युक्त हो तो प्रतनाम की तरह नियमानुसार 'सह' के साथ यह नाम दिया गया है. बहुधा कृति का मुख्य प्रस्थापित नाम यहाँ दिए गए नाम से भिन्न होता है. यह नाम Bold अक्षरों में दिया गया है. ३. पेटाकृति पृष्ठ : (पृ.) पेटाकृति का आदि अंत पृष्ठ क्रमांक. ४. पेटाकृति पूर्णता : यदि पेटांक की पूर्णता संपूर्ण के अतिरिक्त हो तथा उससे जुडी प्रथम कृति की पूर्णता पेटांक की पूर्णता से भिन्न हो तभी उसका उल्लेख यहाँ किया गया है. ५. पेटाकृति पूर्णता विशेष : (पू.वि.) पेटाकृति के पृष्ठों में यदि कोई कमी हो तो वह कमी आदि, मध्य या अंत किस भाग में है यह संकेत यहाँ दिया गया है. आदि, मध्य में कौन से पृष्ठ कम हैं, उसकी यथार्थ सूचना प्रत माहिती की पृष्ठ सूचना के अंतर्गत मिलेगी. यहीं पर अन्तर्गत तत्-तत् पेटांक में उपलब्ध कृति के अनुपलब्ध अंश का स्पष्ट उल्लेख भी किया गया है. इसमें कृति की पूर्णता संबंधी यथायोग्य सूचना दी जाती हैं. जैसे - प्रथम पत्र न हो तो 'प्रारंभिक गाथा १० नहीं है.' इसी प्रकार अन्य संकेतों हेतु भी समझे. ६. पेटाकृति प्रतिलेखन संवत्, ७. पेटाकृति प्रतिलेखन स्थल (ले. स्थ), ८. पेटाकृति प्रतिलेखक आदि, ९. पेटाकृति प्रतिलेखन पुष्पिका उपलब्धि संकेत (प्र.ले.पु.), १०. पेटाकृति प्रतिलेखन श्लोक (प्र.ले.श्लो.) - पेटाकृतिगत इतनी सूचनाएँ हस्तप्रत स्तर की ही तरह यहाँ पर भी पेटाकृति हेतु भिन्न रूप से प्रत में यथोपलब्ध दी गई हैं. ११. पेटाकृति विशेष : (पे.वि.) पेटाकृति के अन्य उल्लेखनीय तथ्यों का यहाँ समावेश किया गया है. जैसे - पेटाकृति प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गिनकर कुल गाथाएँ लिखी है. यह कृति प्रत में एकाधिक बार लिखी गई है. इत्यादि. कृति माहिती स्तर प्रत व पेटाकृति स्तर के नाम में उल्लिखित कृतियों की सूचना इस स्तर पर दी गई है. १. कृति नाम : कृति का प्रस्थापित/बहुप्रचलित नाम ही यहाँ देने का नियम रखा है. अतः यह नाम उपर दिए गए प्रत या पेटाकृति नाम से बहुधा भिन्न होगा. प्रत/पेटाकृति स्तर पर प्रत में उपलब्ध नामों को प्रायः ज्यों का त्यों दे दिया गया है. किसी भी कृति के वैविध्यतापूर्ण इन नामों का भी अपना एक अलग महत्व होता है. यदि पेटाकृति नाम और कृति नाम समान हो तो कृति माहिती स्तर पर कृति नाम नहीं दिया गया है. २. कृति स्वरूप : सामान्यतः कृति के टीका, टबार्थ आदि स्वरूप कृति नाम में ही उल्लिखित होते हैं, परंतु हिस्सा, संक्षेप व संबद्ध - इन तीन स्वरूपों में क्वचित ऐसा नहीं हो पाता. अतः इन तीन स्वरूपों को कृतिनाम के बाद अलग से भी दे दिया गया है. ३. कर्ता का स्वरूप व नाम, ४. कृति भाषा, ५. कृति का गद्य, पद्य आदि प्रकार, ६. कृति रचना संवत, ७.(आदि :) प्रत For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir में उपलब्ध प्रत का प्रथम व क्वचित द्वितीय आदि वाक्य, ८.(अंति:) प्रत में उपलब्ध प्रत का प्रथम व क्वचित द्वितीय अंतिम वाक्य. ९. कृति परिमाण : प्रत में उपलब्ध कृति का यथायोग्य अध्याय-ढाल-खंड आदि, गाथा/श्लोक आदि तथा ग्रंथाग्र की सूचना यहाँ दी गई है. कई बार विविध प्रतों के परिमाण में अनेक कारणों से न्यूनाधिकता मिलती है, जो कि प्रचलित कृति परिमाण से भिन्न भी हुआ करती है. यदि यह भेद ज्यादा बडा हो तो विभिन्न परिमाणों वाली एकाधिक कृतियों की स्वतंत्र प्रविष्टि का नियम है. यथा - बृहत् व लघु ऋषिमंडल स्तोत्र. १०. कृति पूर्णता : प्रतगत कृति की निजी पूर्णता को यहाँ दिया गया है. प्रत व पेटांक की पूर्णता (जिनका आधार मात्र पृष्ठों की उपलब्धि/अनुपलब्धि पर होता है) से कृति की यह पूर्णता भिन्न हो सकती है. यथा - एक पेटाकृति के तहत मूल व टबार्थ दो कृतियाँ हों, प्रतिलेखक ने मूल संपूर्ण लिखा हो एवं टबार्थ बीच में से लिखते लिखते अधूरा ही छोड दिया हो तो ऐसे में पेटाकृति माहिती स्तर पर पूर्णता 'संपूर्ण' आएगी, जबकि कृति स्तर पर मूल की पूर्णता 'संपूर्ण' एवं टबार्थ की पूर्णता 'प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण' इस तरह की जाएगी. क्वचित् प्रत/पेटाकृति स्तर पर पूर्णता में 'संपूर्ण न हो तो भी कृति स्तर पर यह 'संपूर्ण' हो सकती है. यथा - अंत के ही एक दो पृष्ठ न हो, ऐसी प्रत में मूल संपूर्ण हो सकता है एवं टीका का अंत भाग न होने की वजह से टीका 'संपूर्ण नहीं होगी. इस तरह कृति स्तर पर भी पूर्णता की अपनी स्वतंत्र उपयोगिता है. - इसके बाद कृति गत प्रतिलेखन पुष्पिका की निम्नोक्त सूचनाएँ ( ) ब्रेकेट में दी गई है. कृपया यहाँ दिए गए वर्ष व स्थल आदि को कृति की रचना प्रशस्ति मानने की भूल न करें. रचना प्रशस्ति से इनकी भिन्नता बताने के लिए ही इन्हें ब्रेकेट में दिया गया है. इसके अंदर प्रत/पेटांक नाम के अनुरूप संयोजित कृति की प्रत में उपलब्ध पाठ का स्पष्टीकरण किया जाता है. इसमें कृति यदि स्वशाखायुक्त होती है तो दर्शाये गये प्रत/पेटांक के पत्र अनुसार सभी अपूर्ण भी हो सकते हैं तथा कृति शाखा में से मात्र कोई एक ही अपूर्ण हो सकती है. जैसे - कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका. मूल - संपूर्ण तथा टीका - अपूर्ण. स्पष्टता - यहाँ भी अपूर्णता के सभी प्रकार आ सकते हैं. किन्तु संयोजित कृति के लिये जो लागू पडता हो उसी का चयन अपेक्षित रहता है. जैसे - अंत के पत्र नहीं है, श्लोक ४० तक टीका है अथवा अंतिम ५ श्लोकों की टीका नहीं है. ११. कृति प्रतिलेखन संवत, १२. कृति पूर्णता विशेष (पू.वि.), १३. कृति प्रतिलेखन स्थल (ले.स्थल.), १४. कृति प्रतिलेखक आदि, १५. कृति प्रतिलेखन पुष्पिका उपलब्धि संकेत (प्र.ले.पु.), १६. कृति प्रतिलेखन पुष्पिका श्लोक (प्र.पु.श्लो.), १७. कृति प्रतिलेखन विशेष (वि.) - कृति स्तरगत प्रतिलेखन संबंधी इतनी सूचनाएँ प्रत स्तर की ही तरह तत्-तत् कृति हेतु अलग से उपलब्ध होने पर यहाँ पर दी गई हैं. कई बार ऐसा पाया गया है कि मूल व टबार्थ दोनों की प्रतिलेखन पुष्पिका भिन्न होती है. खास कर ऐसे संयोगों में ही यहाँ पर ये सूचनाएँ मिलेंगी. कृति नाम के अंत में star *" हो तो वह कृति विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति रूप में जाननी चाहिए. ऐसा बहुधा टबार्थ व श्लोक संग्रह हेतु हुआ है. आदि, अंतिमवाक्य में अक्सर (१) व (२) कर के दो दो आदि/अंतिम वाक्य मिलेंगे. यह विभिन्न प्रतों में सामान्य या विशेष फर्क के साथ मिलनेवाले अनेक आदि/अंतिमवाक्यों की वजह से उत्पन्न होने वाले भ्रम को यथा संभव दूर करने के लिए किया गया है. टबार्थ, बालावबोध व स्तवन आदि देशी भाषाओं की कृतियों में ऐसा प्रचूरता से प्राप्त होता है. प्राकृत, संस्कृत भाषाबद्ध पाक्षिकसूत्र, उपदेशमाला जैसी कृतियों में भी प्रथम गाथा में फर्क पाया जाता है. आदि: कोलम में यदि प्रत में कृति जहाँ से प्रारंभ होती है, वह पृष्ठ न हो तो यहाँ पर आदि वाक्य की जगह (-) दिया गया है. यही बात अंतिमवाक्य के लिए भी लागू होती है. किसी कारण से अक्षर पढे नहीं जा रहे तो ऐसे में (अपठनीय) दिया गया है. कृति में कर्ता का नाम अनेक रूपों में मिलता है. यथा - उपा. यशोविजयजी हेतु यश, जश नाम भी प्रयुक्त मिलते है. ऐसे में तय होने पर कर्ता का मुख्य नाम ही यहाँ पर लिया गया है. कृति व विद्वान के एकाधिक अपरनाम यद्यपि कम्प्यूटर पर उपलब्ध हैं, फिर भी इस सूची में उनकी उपयोगिता अत्यल्प होने से व कद की मर्यादा होने से यहाँ नहीं दिए गए हैं. For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir अहमदाबाद मुंबई अमेरिका अहमदाबाद मुंबई हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), पालडी २. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव ३. जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया ४. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग ५. श्री शंभुकुमार कासलीवाल ६. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट ७. श्री सांताक्रुज तपागच्छ जैन संघ ८. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसीएशन इन नॉर्थ अमेरिका, "जैना" ह. डॉ. प्रेम गडा ९. एम. जे. फाउन्डेशन १०. कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी ११. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर १२. शेठश्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ, वालकेश्वर मुंबई मुंबई अमेरिका मुंबई मुंबई मुंबई मुंबई हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली मुंबई अहमदाबाद मुंबई मुंबई मुंबई १. श्री चौपाटी जैन संघ २. श्री सुलोचना नरोत्तम जीर्णोद्धार ट्रस्ट ३. श्री जे. एम. फाइनान्सीयल ट्रस्टी कु. प्रा. लि. ४. श्री विले पार्ले श्वे. मू. पू. जैन संघ एण्ड चेरीटीज ५. श्री कंपानी टेरीटेबल ट्रस्ट ६. श्री दशापोरवाड सोसायटी जैन संघ ट्रस्ट, पालडी ७. श्री श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ, नानपुरा ८. श्री सुमेर टावर जैन संघ ९. श्री आदिनाथ श्वे. मू. पू. जैनसंघ १०. श्री कांदीवली श्वे. मू. पू. जैन संघ ११. श्री शांताक्रुज तपागच्छीय जैन संघ, शांताक्रुज अहमदाबाद सूरत मुंबई नवसारी मुंबई मुंबई आप सभी धर्मप्रेमी श्रीसंघों तथा महानुभावों की उदार दानशीलता के कारण ही हस्तलिखित ग्रंथों के संरक्षण व संवर्द्धन की आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबातीर्थ की प्रस्तुत परियोजना सफलता पूर्वक प्रगति के सोपान पर अग्रसर है. अन्यथा यह कार्य इतना सरल नहीं था. १० For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत कृति /प्रत/पेटांक नाम के बीच : का, की, के, इत्यादि विभक्ति सूचक. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ - सूचक. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - प्रत की महत्ता सूचक - कर्ता द्वारा लिखित प्रत, कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित, प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, संशोधित पाठ, शुद्धप्राय पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत यथा- अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद चिह्न, संधिसूचक चिह्न, वचन विभक्ति चिह्न, क्रियापद सूचक चिह्न आदि वाली प्रत. कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान - यथा आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से उपयोगिता में कमी सूचक. इस हेतु दशा विशेष में निम्न संकेत हो सकते है. मूल पाठ का अंश नष्ट हो गया (खंडित). टीकादि का अंश नष्ट है. मूल व टीका का अंश नष्ट है. टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं. अक्षर मिट गये हैं. अक्षर पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं. जीर्णतावश नष्ट हो गये हैं. कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में प्रत की अपूर्णता सूचक. अपूर्ण, त्रुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. आदिवाक्य अनुपलब्ध. अप. अपभ्रंश (भाषा) अंति: अंतिमवाक्य (कृति माहिती) आ. आचार्य (विद्वान स्वरूप) आदिः आदिवाक्य (कृति माहिती) उप. जिस विद्वान के उपदेश से प्रत लिखी या लिखवाई गई हो, उसके लिए यह प्रकार आता है. (प्र. ले. पु. विद्वान) उपा. उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) ऋ. ऋषि (विद्वान स्वरूप) कवि (विद्वान स्वरूप) कुं. कुंडली (कृति स्वरूप) कुल ग्रं. मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्व ग्रंथाग्र (परिमाण - प्रत व पेटाकृति विशेष में) कुल पे. कुल पेटाकृति (प्रत माहिती स्तर) क्रीत. किसी के द्वारा प्रत खरीदी गई हो तो. (प्र. ले. पु. विद्वान) को. कोष्टक (कृति स्वरूप) गणि (विद्वान स्वरूप) गा. गाथा (परिमाण) गच्छा . गच्छाधिपति (विद्वान स्वरूप) गद्य बद्ध (कृति प्रकार) गुजराती (भाषा) गृही. गृहीत आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने वाला (प्र. ले. पु.विद्वान) ग्रंथाग्र (परिमाण) जैन कृति (कृति परिशिष्ट) जै.क. जैन कवि (विद्वान स्वरूप) जैन देवनागरी (लिपि) जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति. (कृति परिशिष्ट) दत्त. आदान-प्रदान में प्रत देने वाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) जैन दिगंबर कृति. (कृ. परि.) देवनागरी (लिपि) क. ग. गद्य. जैदे. दि. देना. ११ For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पठ. पद्य. पा. पु.हिं. पे.वि. प्रा. म. पठनार्थ जिस के पढने हेतु प्रत लिखी या लिखवाई गई हो. (प्र.ले.पु.विद्वान) प+ग पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार) पद्य बद्ध (कृति प्रकार) पाठक (विद्वान स्वरूप) पंजाबी (भाषा) पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप) पुरानी हिंदी (भाषा) पू.वि. पूर्णता विशेष (प्रत माहिती स्तर) पृष्ठ (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकृति स्तर पर) पे.नाम. पेटाकृति नाम पेटाकृति विशेष प्र.वि. प्रत विशेष, कृति प्रतिलेखन विशेष. प्रले. प्रतिलेखक, लहिया, Scribe (प्रतिलेखन पुष्पिका) प्र.ले.पु. प्रतिलेखन पुष्पिका की प्रत/पेटाकृति/कृति प्रतिलेखन के अंत में 'सामान्य, मध्यम' आदि उपलब्धि सूचक. प्र.ले.श्लो. प्रत, पेटाकृति व कृति प्रतिलेखन के अंत में प्रतिलेखक द्वारा लिखित प्रतिलेखन श्लोक (जलात् रक्षेत्... इत्यादि) प्राकृत (भाषा) प्रतलेखन प्रेरक. (प्र. ले. पु. विद्वान) बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) मराठी (भाषा) मा.गु. मारुगुर्जर (भाषा) मुनि (विद्वान स्वरूप) मूपू. जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट) यं. यंत्र (कृति स्वरूप) रा. राजा (विद्वान स्वरूप) राजस्थानी (भाषा) राज्यकाल जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी गई हो. राज्ये. जिस विद्वान के गच्छनायकत्व में प्रत लिखी या लिखवाई गई हो. लिख. प्रत लिखवाने वाला. (प्र.ले.पु. विद्वान) ले.स्थल. लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) वाचक (विद्वान स्वरूप) वी. वर्ष संख्या के पूर्व होने पर वीर संवत यथा वी. २०००. वर्ष संख्या पश्चात् होने पर 'वीं सदी' यथा- ८वीं सदी. वि. विक्रम संवत् (वर्ष माहिती), कृति प्रतिलेखन विशेष. विक्रेता - प्रत का. (प्र.ले.पु.विद्वान) व्याप. व्याख्याने पठित -विद्वान द्वारा. (प्र.ले.पु.विद्वान) वैदिक कृति. (कृति परिशिष्ट) शक संवत् (वर्ष माहिती) श्रावक (विद्वान स्वरूप) जो किसी विद्वान के व्याख्यान में श्रुत-श्रोता द्वारा. (प्र.ले.पु.विद्वान) जैन श्वेतांबर कृति (कृति परिशिष्ट) संस्कृत (भाषा) समर्पक. विद्वान या ज्ञानभंडारों को समर्पित करने वाला. सा. साध्वीजी (विद्वान स्वरूप) जैन श्वेतांबर स्थानकवासी (कृति परिशिष्ट) हिंदी (भाषा) वा. विक्र. श्राव. स्था. For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir अनुक्रमणिका मंगलकामना समर्पण प्रकाशकीय प्राक्कथन. कैलास श्रुतसागर सूची प्रकाशन की रूपरेखा ..... ..........5-6 प्रस्तुत हस्तप्रत सूचीगत सूचनाओं का स्पष्टीकरण ........ ..........6-9 हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत ... ........................ ....11-12 अनुक्रमणिका. ................ 13 हस्तप्रत सूची ... .........1-466 परिशिष्टः कृति परिवार की मूल कृति के अकारादि क्रम से - परिचय.... .467-469 १. कृति नाम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची (संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंशादि)... ...470-527 २. कृति नाम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची (मा.गु., प्राचीन हिन्दी, राजस्थानी आदि)... 528-590 प्रस्तुत सूची पत्र में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. ० प्रत क्रमांक - १३८२६ से १७३००. 0 इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से २५६२ प्रतों का समावेश इस खंड में हुआ है. ० समाविष्ट प्रतों में कुल २४८५ कृति परिवारों का समावेश हुआ है. ० इन परिवारों की कुल ३१९६ कृतियों का समावेश हुआ है. 0 उपरोक्त कृतियाँ प्रतों में कुल ५४२० बार आई हैं. For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ॥श्रीमहावीराय नमः॥ ॥ श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास-सुबोध-कल्याण-पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः ॥ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १३८२६. सीयल रास, संपूर्ण, वि. १७३६, कार्तिक कृष्ण, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. पत्तनपुर, प्रले. श्राव. कपुरचंद खेमचंद महेता; लिख. मु. नारायण (गुरु ऋ. जसराज), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४११, ११४३१-३२). शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउ प्रणाम करूं; अंति: एम श्रीविजयदेवसूरि, गाथा-७७. १३८२७. सीयल रास, संपूर्ण, वि. १६३३, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. अलवर, जैदे., (२५.५४११, १३-१४४३९-४३). शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुं प्रणाम करूं; अंति: वीनवइ गणि विजैदेव, गाथा-६८. १३८२८. शीयल रास व पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७२९, फाल्गुन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. योधपुर, जैदे., (२५.५४११, १८४४४). १. पे. नाम. शीलप्रकाश रास, पृ. १अ-६अ. आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो प्रणाम करौ; अंति:शील अखंडित पालज्यउ, गाथा-७८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६आ. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्राणसनेही हो साहिब; अंति: जिनहरष० मूकौ वीसारि, गाथा-७. (+) सुकराज रास, संपूर्ण, वि. १७७१-१८००, श्रेष्ठ, पृ. ५१, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित.,जैदे.. (२६४११.५, १३-१४४३५-३६). शुकराज चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: सकल सिद्धि दातार वर; अंति: गातां अति उल्हासो, खंड-४, गाथा-९०५, ग्रं. १४५९. १३८३०. शुकराजसाहेली रास, संपूर्ण, वि. १७६३, पौष कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२१.५४११, १४-१५४३४-३७). शुकराज सहेली कथारास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती हंसगमनी सदा; अंति: कहे दिन दिन लीलविलास, गाथा-१६७. १३८३१. (+) चंदराजा रास, संपूर्ण, वि. १७१७-१८००, श्रेष्ठ, पृ. ७२, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६४११, १५४३६-३७). चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: श्रीजिननायक समरीइं; अंति: सीलवंतनि जाउ भामणि, खंड-६, ढाल १०३. १३८२९. (५) सका For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३८३२. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२५४११, १५४४०-४३). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: करकमल जोडि करि सिद्ध; अंति: जिम भूपति श्रीपाल, ___गाथा-२७३, ग्रं. ३७५६. १३८३३. (+) श्रीपाल रास, पूर्ण, वि. १७२८, माघ शुक्ल, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६८-१(६४)=६७, लिख. श्राव. गोडीदास, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, ९४३१-३२). नसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: सकल सुरासुर जेहना; अंति: सहुं चित चंगै रे, ढाल-४०, ग्रं. १२३१, पूर्ण. १३८३४. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १४४४५). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: सकल सुरासुर जेहना; अंति: सहुं चित चंगै रे, ढाल-४०, गाथा-७५६, ग्रं. ११३१. १३८३५. श्रीपालमहाराय चतुष्पदिका, संपूर्ण, वि. १७८५, वैशाख शुक्ल, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले.स्थल. कानमेर, प्रले. ग. तिलकविजय (गुरु ग. सुखविजय, तपागच्छ); पठ. ग. रत्नविजय (गुरु ग. तिलकविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (४६२) मंगलं लेखकस्यापि, जैदे., (२६.५४११, १७-१८४३८-४३). श्रीपाल बृहद्रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: अरिहंत अनंतगुण धरीये; अंति: पातकवन लुणिज्ये रे, ढाल-४९, गाथा-८३२. १३८३६. (+) श्रीपालभूपालसंबंध रास, संपूर्ण, वि. १७५३, भाद्रपद शुक्ल, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. २८, ले.स्थल. ओरंगाबाद, प्रले. ऋ. जिनदास; राज्यकाल रा. औरंगसाहि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६४११, १४४४६-५२). श्रीपाल बृहद्रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण; अंति: पातकवन लुणिज्ये रे, ढाल-४८. १३८३७. श्रीपाल रास, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-२७१ तक हैं., जैदे., (२६.५४११, ११४४३-४६). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: करकमल जोडि करि सिद्ध; अंति: (-), पूर्ण. १३८३८. (+) श्रीपाल रास, पूर्ण, वि. १७३८-१८००, श्रेष्ठ, पृ. ५६, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, १३४४१-४४). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: (-), पूर्ण. १३८३९. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८१०, पौष शुक्ल, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५४, ले.स्थल. स्याणानगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (२१) जिहां ध्रुसायर चंद रवि, जैदे., (२५४११, १५४३८-४३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४, ढाळ ४१, ग्रं. १२४५. For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ , १३८४०. श्रीपाल रास, संपूर्ण वि. १८५८, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४९, ले. स्थल, लाकडीया, प्रले. पंन्या. परमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखक नाम अवाच्य है., जैवे. (२६.५x११.५, १५४४१-४६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय ; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी: अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४, डाळ ४१, गाथा १८२५. - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३८४१. (+) श्रीपाल रास सह वालावबोध खंड ३-४ प्रतिपूर्ण, वि. १८२७ माघ शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५९, पू. वि. खंड-३ ढाल ६ से अंत तक है., ले. स्थल, वीरजपुर, प्रले, मु. हेतविजय (गुरुग, दीपविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३८३, प्र. ले. श्लो. (२१) जिहां भु सायर चंद रवि, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७X१२, १४-१८X३७-५२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय ; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लह ज्ञान विशाला जी, प्रतिपूर्ण. श्रीपाल रास - दुहा का बालावबोध", मा.गु., गद्य, आदि (-); अंतिः थाओ ए मध्यगत जे, (प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रशस्तिवाली अंतिम मूलढाल का बालावबोध नहीं लिखा है.) १३८४२. (+) श्रीपाल रास सह टबार्थ खंड-४, प्रतिअपूर्ण, वि. १८४२ वैशाख कृष्ण १४, श्रेष्ठ, पृ. ५२-१ (१) -५१, पू.वि. खंड-४ ढाल-१ गाथा-४ अपूर्ण से हैं., ले. स्थल. सुरतबंदिर, प्रले. रतनचंद हर्षचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२५.५१२, ५X३०-३३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय ; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: ( - ); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, प्रतिअपूर्ण. श्रीपाल रास-टबार्थ, मा.गु., रा., गद्य, आदि: ( - ); अंति: क० मोक्ष पदवी पामें, प्रतिअपूर्ण. १३८४३. (*) श्रीपाल रास सह बालावबोध खंड-४, प्रतिपूर्ण, वि. १९०६ वैशाख अधिकमास शुक्ल, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५७, ले. स्थल बजांणानगर, प्रले. मु. देनेद्र (गुरु ग. जशोविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जी.... (२६४१२, ३-४४३८-३९). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पच, वि. १७३८, आदि (-); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, प्रतिपूर्ण. श्रीपाल रास दुहा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण १३८४४. श्रेणिकराजा रास, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०३, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा - १८१० तक हैं., जैदे., (२५.५X११.५, ११३१-३९). ३ श्रेणिकराजा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि आदि अनादि सरसती सदा; अंति: (-), पूर्ण. १३८४५. सत्यविजयपन्यास निर्वाण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैवे., (२५.५४११.५, १४४३६). सत्यविजय निर्वाण रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: श्रीजिनवरना चरणयुग; अंति: थयो जिनहर्ष सजाण, गाथा - १०६. १३८४६. (+) सम्यक्त्वकौमुदी रास, पूर्ण, वि. १६५२, भाद्रपद कृष्ण, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१ -१ ( १ ) = ३०, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, जैदे. (२६१२, १५X३७-३८). For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सम्यक्त्वकौमुदी रास, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पद्य, वि. १६२४, आदि: (-); अति: रिद्धि वृद्धि कल्याण, गाथा-६९३, ग्रं. १०५०, पूर्ण. १३८४८. सारशिखामण रास, संपूर्ण, वि. १७८२, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. पाटण, प्रले. ग. सत्यविजय (गुरु ग. ऋद्धिविजय); पठ. मु. जीवविजय (गुरु ग. सत्यविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४११, ११४४३-४५). सारशिखामण रास, उपा. संवेगसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५४८, आदि: श्रीजीराउलि पासनाह; अंति: नित्य मंगल जय करुए, गाथा-२४२. १३८४९. सारशिखामणरास, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२६४११.५,११४३५-३६) सारशिखामण रास, उपा. संवेगसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५४८, आदि: श्रीजीराउलि पासनाह; अंति: नित्य मंगल जय करुए, गाथा-२४६. १३८५०. सारशिखामण रास, संपूर्ण, वि. १८४५, चैत्र शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. मु. प्रमोदविजय (गुरु मु. गंभीरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३-१४४३५-३७). सारशिखामण रास, उपा. संवेगसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५४८, आदि: श्रीजीराउलि पासनाह; अंति: शिवसुख अविचल पामस्यइ, गाथा-२६८. १३८५१. सारशिखामण रास, दसश्रावक सझाय, दानछत्रीसी व सीलछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १८५७, पौष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ४, ले.स्थल. घाटिला, जैदे., (२४.५४११, १५४४८-४९). १. पे. नाम. सारशिखामण रास, पृ. १अ-८अ, ले.स्थल. टीकरनगर. उपा. संवेगसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५४८, आदि: श्रीजीराउलि पासनाह; अंति: नित्य मंगल जय करुए, गाथा-२४२. २. पे. नाम. १० श्रावकबत्रीसी, पृ. ८अ-९अ. १० श्रावक बत्रीसी, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५५३, आदि: जिन चोविसे करु; अंति: गच्छि पभणइ नंदसूरि, गाथा-३२. ३. पे. नाम. दानछत्रीसी, पृ. ९आ-१०आ. मु. राजलाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: दानतणा गुण परितिख; अंति: रंगरली सुख खेमजी, गाथा-३६. ४. पे. नाम. सीलछत्तीसी, पृ. १०आ-११आ. शीलछत्तीसी, मु. राजलाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: शांतिनाथ जिनवर पय; अंति: रामलाभ० दिनदिन लीलजी, गाथा-३६. १३८५२. (+) सिद्धचक्र रास, संपूर्ण, वि. १७३८, आश्विन शुक्ल, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. ग. वृद्धिविजय (गुरु पं. सौभाग्यविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १३४३४-३६). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: करकमल जोडि करि सिद्ध; अंति: जिम भूपति श्रीपाल, गाथा-२७२. १३८५३. श्रीपालराजा रास, संपूर्ण, वि. १७३७, माघ कृष्ण, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. स्थंभतीर्थ, जैदे., (२४.५४११, १३४३३-३६). For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: करकमल जोडि करि सिद्ध; अंति: जिम भूपति श्रीपाल, गाथा-२७२. १३८५४. रुपसेनसुजाणदेवी रास, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२, जैदे., (२६४११, १५४३३-३६). रुपसेनसुजाणदेवी रास, मा.गु., पद्य, आदि: संखेसरपुर मंडणो; अंति: तस घरि मंगलमाल रे, गाथा-२९२. १३८५५. (+) सुदर्शनसेठ रास, संपूर्ण, वि. १७८६, कार्तिक शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. पाटण, प्रले. मु. रत्नकुशल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६४११, १५४४४-४८). सुदर्शनशेठ रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७८५, आदि: सकल पदारथ साधवा सकल; अंति: कहे० ऋद्धि भराणी रे, ढाल-२४, गाथा-३७७. १३८५६. सुंदरराजा रास, संपूर्ण, वि. १६७२, कार्तिक शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२५४११, ११-१२४४८-५०). सुंदरराजा रास, मु. क्षमाकलश, मा.गु., पद्य, वि. १५५१, आदि: पहिलू परमेसर नमीं; अंति: तेह घरि जयजयकार, गाथा-१९१, ग्रं. २७५. १३८५७. लीलावती रास, संपूर्ण, वि. १८३८, फाल्गुन शुक्ल, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. धमडकानगर, प्रले. ग. खुशालविजय (गुरु ग. लालविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. शांतिजिन प्रसादात्., जैदे., (२६४११.५, १४-१५४३४). लीलावतीसुमतिविलास रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: परम पुरुष प्रभु पास; अंति: पामी सुखसंपद रसालजी, ढाल-२१. १३८५८. लीलावती रास, संपूर्ण, वि. १८४९, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. द्रांगद्रा, प्रले. पं. हर्षविजय (गुरु ग. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (५१०) यादृसं पुस्तकं दृष्टवा, जैदे., (२६४१२, १४४४०-४१). लीलावतीसुमतिविलास रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: परम पुरुष प्रभु पास; अंति: कहे० एकवीसमी ए ढालजी, ढाल-२१, ग्रं. ४९१. १३८५९. सुरसुंदरीरास, संपूर्ण, वि. १७२६, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. कोलदा, जैदे., (२५.५४११.५, १८४४८-४९). सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: आदि धर्मनी करिवाए; अंति: इम भणि आणंदपुरी, ढाल-२१, गाथा-५१७. १३८६०. (+) हंसराजवछराज रास, संपूर्ण, वि. १७५९, आश्विन शुक्ल, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले.स्थल. रविनगर, प्रले. ग. बुद्धिविजय (गुरु ग. तत्वविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १६-१७४४२-४५). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोवीसे; ___ अंति: दिन दिन हुयै जयजयकार, खंड-४, ढाल ४८, गाथा-९१३. १३८६१. हंसराजवछराज रास व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १५-१६४३८-५०). १.पे. नाम. हंसराजवत्सराज चौपाई, पृ. १अ-२६आ. आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोवीसे; अंति: श्रीहसने वछराज, गाथा-८९२. For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे नाम, जैन गाथा", पृ. २६आ. प्रा., पद्य, आदि (अपठनीय); अंति (अपठनीय), गाथा - २. १३८६२. शुकराज रास, पूर्ण, वि. १९०२, चैत्र शुरू, २ शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६४-१ (१) - ६३, ले. स्थल, बजांणानगर, प्रले. वा. देवकृष्ण (गुरु ग. जशोविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७X१२, १३x४०-४३). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शुकराज रास, मु. रतनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८११, आदि: ( - ); अंति: सीझे वंछीती कामोजी, ढाल - ६५, पूर्ण. १३८६३. सीयल रास, संपूर्ण, वि. १८४२, करयुगनागविधु, वैशाख शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. लंबिका, प्रले. मु. गुणचंद (गुरु ऋ. नगराजजी, लुकागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. ले. श्रो. (७६४) जब लगि वीर जिणंद को, जैदे., (२६.५x११.५, १६x४३). सीयन रास, मु. ज्ञानचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला अरिहंत प्रणमी; अंति: गणि करें एह वखाण. १३८६४. विमल रास, संपूर्ण, वि. १६६२, चैत्र शुक्ल, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. ६५, जैदे., ( २६ ११, १३-१५X३४-४०). विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६८, आदिः आदिजिनवर आदिजिनवर; अंति: घरि रिधिवृद्धि रमइ, खंड - ९+ + चूलिका. १३८६५. (+) विक्रमसेन रास, संपूर्ण, वि. १७९१, श्रेष्ठ, पृ. ३१, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X११, १९५४६-५४). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: परम ज्योति प्रकास; अंति: मइ उत्तमन गुणगावा, ढाल ६४. १३८६६. (+) विजयसेठविजयासती रास, संपूर्ण, वि. १६८६-१७००, श्रेष्ठ, पृ. ६ प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, जैवे (२६.५४११.५, ११४४१-४२). १३८६७. वसुदेवकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जै, (२७४११, १३४५४-५७). विजयसेठविजयासेठाणी रास- शीलविषये, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १६८६, आदि: ऋषभादिक जिन चवीसे; अंति: रच्यो ए कृत धरि मुदा, गाथा - ८९. वसुदेव रास, मु. हर्षकुल, मा.गु., पद्य, वि. १५५७, आदि: सकल मनोरथ सिद्धि; अंति: हर्षकुलज सिद्धी संतु, गाथा - ३५२. १३८६८, (४) वासुपूज्यजिन रास, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५x११, ११X३७-४४). वासुपूज्यजिन पुण्यप्रकाश रास, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ अजित संभव जिनो; अंति: सिरि संघ सुखविजय हो, ढाल-६१, गाथा-४५६. १३८६९. ललितांगकुमार रास, अपूर्ण, वि. १७८२, चैत्र शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (४) ५, जैवे. (२७४११.५, १७-१९४४४-४५). For Private And Personal Use Only ललितांगकुमार रास, मु. क्षमाकलश, मा.गु., पच, वि. १५५३, आदि: पहिलं सरसति पय नमी; अंतिः तेह घरि जय जयकार, गाथा-२२२, अपूर्ण. १३८७०. रोहणी आचोर रास, संपूर्ण, वि. १६८८-१७००, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र. वि. प्रत कर्ता के स्वहस्ताक्षर से लिखित लगती है, संशोधन आवश्यक है. जैवे. (२७.५x११, ११-१२४४०-४७). Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ रोहिणीयाचोर रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६८८, आदि: सार सकोमल बुधिभली; अंति: सुख पामे चिरकालोजी, गाथा-३४५. १३८७१. रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १७९७, वैशाख शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले.स्थल. धमडका, जैदे., (२६.५४१२, १६-१८४३९-४४). रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, म. सुरविजय, मा.ग., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीऋषभादिक जिन नम; अंति: वो जयजयकार रे, खंड-३, ढाल३२. १३८७२. मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, ले.स्थल. द्रंग, जैदे., (२६.५४११.५, १३४५०-५२). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल-४७. १३८७३. मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १८५८, कार्तिक कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ४०+१(२३)=४१, जैदे., (२६४११.५, १४४३८-४१). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल-४८. १३८७४. महाबल रास व श्लोक, संपूर्ण, वि. १६४०, कार्तिक कृष्ण, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. २५, कुल पे. २, पठ. सा. रीडा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ११-१४४३६-४६). १. पे. नाम. महाबल रास, पृ. २५अ-२५आ. ऋ. लाईआशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम देव नमो सदा; अंति: परि राखि रे सोहामणा, ढाल-४२, ग्रं. ५३७. २. पे. नाम. जैन श्लोक , पृ. २५आ. सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), श्लोक-१. १३८७५. (+) महाबलमलयसुंदरी रास, पूर्ण, वि. १९०४, आश्विन कृष्ण, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ११५-२(१ से २)+१(८०)=११४, ले.स्थल. बजांणानगर, प्रले. वा. देवकृष्ण (गुरु ग. जशोविजय); राज्ये गच्छा. देवेंद्रसूरि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (२५९) जलाद्रक्षे तिलाद्रक्षै, जैदे., (२७४११.५, १३४४१). मलयासुंदरी रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: (-); अंति: वाधो दोलत सवाइरे, ढाल-१२३, गाथा-२९७५, ग्रं. ४०८४, पूर्ण. १३८७६. मलयसंदरी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. ८८-२(६०*.७०*)+२(५९,६२)=८८.प्र.वि. प्रतिलेखक द्वारा १ व ६८ दोबारा लिखा गया है., प्र.ले.श्लो. (५६५) याद्रसं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४१२, १२-१५४४१-४७). मलयासुंदरी रास, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: सकल गुणागर पासजी; अंति: चोथा खंडनी ढाल रे, खंड-४, ढाल-९१, ग्रं. ३०००. १३८७७. (+) पुन्यसार चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१०.५, १४-१५४४३-४६). पुण्यसार रास, ग. साधुमेरु, मा.गु., पद्य, वि. १५०१, आदि: केवलज्ञानिइ अलंकरी; अंति: गणि० हुइ सर्व सिद्धि, गाथा-६०५, ग्रं. १०००. १३८७८. पूजाविधि रास, संपूर्ण, वि. १६८२-१७००, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदे., (२६.५४१२, १२-१३४३९-४७). For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पूजाविधि रास, क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: सरस वचन दिउं सरस्वती; अंति: अनंत सुख ते पावइजी, गाथा-५६६. १३८८०. नवतत्त्व रास, संपूर्ण, वि. १६७५, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. पोटला, प्रले. मु. विजयकीर्ति, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७४११, १९४५८-६८). नवतत्त्व चौपाई, मु. भावसागरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १५७५, आदि: आदि नमी आणंदहपूरि; अंति: गच्छधर० विबुध नर, गाथा-१३०५, ग्रं. ९०५१. १३८८१. नर्मदासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १७९७, फाल्गुन अधिकमास शुक्ल, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४६, प्र.वि. प्रतिलेखन मास-प्रथम फाल्गुन., जैदे., (२७४१२, १६-१७४४३-४४). नर्मदासुंदरी रास-शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि: प्रणमु चरणांबुज; अंति: मोहन वचन विलासजी, ढाल-६३. १३८८२. (+) दानशीलतपभावना रास, संपूर्ण, वि. १६९२-१७००, श्रेष्ठ, पृ. ३१, प्रले. ग. प्रेमविजय (गुरु मु. लब्धिविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६४११.५, १८४४६-५१). दानशीलतपभावना रास, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६९२, आदि: श्रीसरसति तुं सारदा; अंति: धर्मीजनइ वाच्यमानो, खंड-४, ढाल४९. १३८८३. नर्मदासुंदरी रास, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., रचना प्रशस्ति अधूरी है., जैदे., (२६.५४११, १३-१४४३७-३९). नर्मदासुंदरी रास-शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि: प्रभुचरणांबुजरजतणी; __ अंति: (-), पूर्ण. १३८८४. तेतलिपुत्र रास, संपूर्ण, वि. १६६१, माघ कृष्ण, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. भाडिज ग्राम, प्रले. ऋ. जेशंग; पठ. सा. पूरा, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४११, १३४४५-४८). तेतलीपुत्र रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५९५, आदि: शासनदेवि नमुं महासती; अंति: जिम हुइ जई सफल विहाण, गाथा-२५९. १३८८५. (+) तेजसार रास, संपूर्ण, वि. १७९७, आश्विन शुक्ल, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २६, ले.स्थल. भुजपुर, आश्विन शुक्ल, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २६, ले.स्थल. भुजपुर, प्रले. ग. सुबुद्धिविजय (गुरु ग. जीवविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., प्र.ले.श्लो. (५२१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७४११.५, १७-१८४५७-५८). तेजसारकुमार रास, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १७६४, आदि: ऋषभादिक चोविस जिन; अंति: कल्याण _हितकारी छै, ढाल-६३. १३८८६. ढालसागर १ से६ अधिकार, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदे., (२७४११.५, १९४६७-७२). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १३८८७. (+) जंबूस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १७३८-१८००, मध्यम, पृ. २१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६.५४१२, १५-१७४४४-५८). For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्म, वि. १७३८, आदिः प्रणमी पास जिनंदना; अंतिः दिन कोडि कल्याण छै, ढाल - ३५. १३८८८. जंबुकुमार रास, संपूर्ण, वि. १८०६, वैशाख शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ४८, ले. स्थल. राधनपुर, प्र. ले. लो. (६६३) जलं रक्षेत् तेलं रक्षेत जैवे. (२६.५x११.५, ११४३१-३५) जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः प्रणमी पास जिनंदना; अंतिः नितु कोडि कल्याण, ढाल - ३५. १३८८९. जंबुकुमार रास, संपूर्ण, वि. १७६७, आश्विन शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. वेराटनगर, जैवे. (२६.५x११, १३x४३-४४). जंबूस्वामी रास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १५२२, आदि: गोयम गणहर पय नमी; अंति: काज सरस्य तेहना, गाथा- १७६. १३८९०. (+) चंदराजा रास, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रेष्ठ, पृ. ८२, ले. स्थल. पाटणनगर, प्र. वि. श्रीपंचासराजी प्रसादात्., टिप्पणयुक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६.५४११.५, १५४४६-४८). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: वर्णव्या गुण चंदना, उल्लास-४, ढाल १०८. १३८९१. चंदराजा चरित्र, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२९, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र. पुष्पिका नहीं है. जैदे. (२६.५x१२, १३-१६X३३-४२). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: वर्णव्या गुण चंदना, उल्लास-४, ढाल १०८. १३८९२. चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १७४१-१८००, मध्यम, पृ. ३३-३ (१ से ३) - ३०, प्रले. क्र. वीरजी (गुरु मु. कानजी), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७११.५, १५-१६x३२-३९). चंद्रराजा रास, मु. तेजमुनि, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: (-); अंति: बोलइ० जय जय कार रे, खंड-४, ढाल ३६, ग्रं. ११७६, अपूर्ण. १३८९३. (+) सिद्धहेमशब्दानुशासन सह स्वोपज्ञबृहद्वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २७९ + २ ( ४ से ५ ) - २८१, प्र. वि. ८४ और ८५ नंबर के बीच में एक पत्र है., पदच्छेद सूचक लकीरें - वचन विभक्ति संकेत - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१२.५, १६-१७४६३). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: अहं सिद्धिः स्याद; अंतिः संस्कृतवत्सिद्धम्, अध्याय ८. सिद्धहेमशब्दानुशासन - स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंतिः प्रवृत्तिरिति १३८९४. जंबूस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १६४३, भाद्रपद कृष्ण, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले. स्थल. आनावाडा, जैवे., (२८.५x११.५, ११४३०-३१). जंबूस्वामी रास, आव, देपाल भोजक, मा.गु., पद्म, वि. १५२२, आदि गोयम गणहर पय नमी; अंतिः काज सरिस्वइ तेहना, गाथा- १७७. For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३८९५. (+) द्रव्यगुणपर्याय रास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०६, आश्विन शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१२.५, ५-६४४०-४१). द्रव्यगुणपर्याय रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीगुरु जितविजय मन; अंति: जसविजय बुध जयकरी, ढाल-१७, गाथा-३८३. द्रव्यगुणपर्याय रास-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजीतविजय श्रीनय; अंति: (अपठनीय). १३८९६. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १७४१, फाल्गुन कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. मंगलपुर, प्रले. पं. रामविजय; पठ. श्रावि. राधा, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७.५४१२, १३४४०). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: करकमल जोडि करि सिद्ध; अंति: सागर० तेहनी पोहचे आस, गाथा-२७७. १३८९७. प्रबुद्धरोहिणेयाभिधान नाटक व निर्भयभीम नाटक, संपूर्ण, वि. १९६६, माघ कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, कुल पे. २, जैदे., (२८.५४१२.५, १५४४८-५४). १. पे. नाम. प्रबुद्धरौहिणेय, पृ. १आ-२१आ. आ. रामभद्रसूरि, प्रा.,सं., प+ग., वि. १३वी, आदि: यस्योपदेशपदमप्यवगत्य; अंति: सुतीव्रचीरव्रतात्, अंक-६, ग्रं. ९६१. २. पे. नाम. निर्भयभीमव्यायोग, पृ. २१आ-२५आ. आ. रामचंद्रसूरि, सं., प+ग., आदि: तपोभिर्दुस्तपैर्येन; अंति: शाश्वती भीमसेनः, अंक-१, श्लोक-२६. १३८९८. कौमुदीमित्रानंद नाटक, संपूर्ण, वि. १९६६, माघ शुक्ल, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदे., (२८.५४१२, १५४४७-५२). कौमुदीमित्राणंद, आ. रामचंद्रसूरि, सं., प+ग., आदि: यः प्राप निर्वृति; अंति: स्वतंत्रश्चिरं भूयाः, अंक-१०. १३८९९. राजसागरसूरि रास, संपूर्ण, वि. १९७५, फाल्गुन कृष्ण, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. स्थंभनपुर, प्रले. कुबेरदास रणछोडदास पटेल; पठ. मु. धर्मविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२८x१३, १४४४२-४७). राजसागरसूरिनिर्वाण रास, आ. तिलकसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: वर्द्धमान जिनवर; अंति: लगिरे जीवयो गणधार, गाथा-२६६. १३९००. धातुपारायण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९५६, फाल्गुन शुक्ल, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. जामनवीनपुर, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७.५४१२, ४-१३४३९-४९). धातुपारायण, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: अहँ भूसत्तायां; अंति: बहुलमेतन्निदर्शनम्, ग्रं. ६००. धातुपारायण-अवचूरि, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: इह पूर्वाचार्य; अंति: धातूनां काचिदवचूरि. १३९०२. प्रवेशनक्षत्र व यति लोच कराववा मुहूर्त, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. चाणसवा, जैदे., (२७.५४१३, ११-१३४४६-५८). १.पे. नाम. प्रवेश नक्षत्र, पृ. ६अ. सं., गद्य, आदि: प्रवेश नक्षत्राणि; अंति: प्रकीर्तिताः. For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २. पे. नाम. यति लोच कराववा मुहूर्त, पृ. ६अ. साधुलोच कराने का मुहूर्त, सं., गद्य, आदि: ह। चि । स्वा। मृ; अंति: बु । चं। गुरुा. १३९०३. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १८७५, पौष कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. सरवाड, जैदे., (२७४१२.५, १४-१५४३६-४१). पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कूष्मा; अंति: गुरु भक्ति कर सही. १३९०६. भुवनदीपक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा टबार्थ अपूर्ण, गाथा-८६ तक है., जैदे., (२८x१२.५, ७X३४-३६). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७५. भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसरस्वतिने नमीने; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १३९०९. वास्तुशास्त्र रूपावतार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. जोधपुर, प्र.वि. पहले अध्याय-७ फिर १ से ४ इस प्रकार अध्यायक्रम दिया गया है., जैदे., (२८x१२, १६x६०-६४). देवतामूर्तिप्रकरण-वास्तुशास्त्र रूपावतार, सूत्रधार मंडन, सं., पद्य, आदि: ऋषभश्चाजितश्चैव संभव; अति: कामानवाप्नुयात्. १३९१०. (+) सारसंग्रह गणित सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १६८०, भाद्रपद कृष्ण, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. ५३, ले.स्थल. अहमदावाद राजपु, पठ. मु. रायमल्ल ब्रह्मचारी (परंपरा मु. रामकीर्ति, मूलसंघ); लिख. श्रावि. मालण मेघराज सा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५४१२.५, ८-९४३५-४८). गणितसार संग्रह, आ. महावीराचार्य, सं.,प+ग., आदि: अलंघ्यं त्रिजगत्सारं; अंति: एकोत्तरांत्यगच्छधनं, अध्याय-८. गणितसार संग्रह-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: मिथ्यादृष्टिभिः अनंत; अंति: रूपेणो गच्छ इत्यादि. १३९१२. अजितशांति स्तव सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ.८-१(७)=७, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अंतिम श्लोक की टीका नही लिखी गई है., जैदे., (२८.५४११, १६-१७४६३-६८). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०, पूर्ण. अजितशांति स्तव-बोधदीपिका टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६५, आदि: अजितशांतिजिनाधिपयोः; अंति: (-), पूर्ण. १३९१३. भक्तामरस्तोत्र भाषा, संपूर्ण, वि. १७४५, श्रावण शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. आगरा, प्रले. मु. सुंदररुचि (गुरु ग. नयनरुचि); पठ. श्रावि. लालीबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७.५४११.५, १२-१३४३०-३३). भक्तामर स्तोत्र-भाषानुवाद, मु. हेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: आदि पुरूष आदिस जिन; अंति: ते पावै शिवखेत, गाथा-४९. १३९१४.(2) अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय, संपूर्ण, वि. १८८६, फाल्गुन कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. योधनगर, प्रले. विनयचंद्र; पठ. मु. उदराज, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १०४२०-३०). For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: अर्हन्नामापि; अंति: पठनाज्जपात्, प्रकाश - १०. १३९१५. नवस्मरण सह टवार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६, पू. वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है., जैदे., (२७X१२.५, ३X३१-३६). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं हवइ; अंति: जैनं जयति शासनम्, प्रतिपूर्ण. नवस्मरण- टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार; अंतिः नाम सदाकाल मंगलिक हो, प्रतिपूर्ण, १३९१६. नवस्मरण सह टवार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १९२१ कार्तिक शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, पू. वि, कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है.. ले. स्थल, घनोपबंदर, जैवे. (२८४१३, ४-६५४२-४९). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: जैनं जयति शासनम्, प्रतिपूर्ण. नवस्मरण- टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने माहरो; अंति: शासन जयवंतो वत, प्रतिपूर्ण १३९२०. स्वादिशब्दसमुच्चय सह दीपिका टीका, संपूर्ण वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैवे. (२७.५x११.५, २१-२३४७६-९२). स्यादिशब्दसमुच्चय, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीशारदां हृदि अंतिः संख्या इतिस्तथा, उल्लास-४. स्यादिशब्दसमुच्चय- स्वोपज्ञ दीपिका अवचूरि, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि देवप्रक्रिया सुगमा; अंतिः शब्दशास्त्र विशारदैः, १३९२१. स्यादिशब्दसमुच्चय सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदे., (२७.५X११.५, १४X३७-४३). स्वादिशब्दसमुच्चय, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीशारदां हृदि; अंति: संख्या इतिस्तथा, उल्लास-४. स्यादिशब्दसमुच्चय- स्वोपज्ञ दीपिका अवचूरि, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (१) श्रीशारदामित्यादि, (२) देवप्रक्रिया सुगमा; अंति: लिंगोपिदर्शितः. १३९२२. (+) सिद्धांतरत्निका व्याकरण, संपूर्ण, वि. १८९९, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४३, ले. स्थल. राजनगर, प्रले. मु. अमृत (सागरगच्छ ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. जमालपुर-अहमदाबाद सागरगच्छे श्रीगोडीजी प्रसादेन. पद्मावती सहायकारी प्रत लिखवाने वाले की पुष्पिका मिटायी गयी है., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे., (२८४१३, ९४३०-४७). सिद्धांतरलिका व्याकरण, आ. जिनचन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदि श्रीमद्गुरुपदाम्भोजं; अति: अनन्तः शब्दवारिधिः, १३९२३. हैमविभ्रमसूत्र सह वृत्ति व मूलसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. २, प्र. वि. त्रिपाठ, जैदे., (२८x१२.५, १-११X३९-४७). १. पे. नाम. हैमविभ्रम सह तत्त्वप्रकाशिका टीका, पृ. १आ- २१अ. हैमविभ्रम, सं., पद्य, आदि: कस्य धातोस्तिवादीनाम; अंतिः चान्यदक्षेवयममीवयम्, श्लोक-२१. हैमविभ्रम-तत्त्वप्रकाशिका टीका, आ. गुणचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १२००, आदि निखिलजगदेकशरणं; अंति: (१)जयति स्थिरायाम्, (२) प्रायेण प्राणायि. २. पे. नाम हेमविभ्रम, प्र. २१-२२आ. सं., पद्य, आदि: कस्य धातोस्तिवादीनाम; अंति: चान्यदक्षेवयममीवयम्, श्लोक-२१. For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १३९२४. (+) हैमविभ्रमधातुसूत्र सह वृत्ति व मूलसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, कुल पे. २, ले.स्थल. वढवाण, प्रले. उपा. माधवजि जेष्टाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (२८४) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२७.५४१२.५, १-१०४३४-४६). १. पे. नाम. हैमविभ्रम सह तत्त्वप्रकाशिका टीका, पृ. १अ-२२आ. हैमविभ्रम, सं., पद्य, आदि: कस्य धातोस्तिवादीनाम; अंति: चान्यदक्षेवयममीवयम्, श्लोक-२१. हैमविभ्रम-तत्त्वप्रकाशिका टीका, आ. गुणचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १२००, आदि: निखिलजगदेकशरणं; अंति: जयति स्थिरायाम. २. पे. नाम. हैमविभ्रम, पृ. २४आ. सं., पद्य, आदि: कस्य धातोस्तिवादीनाम; अंति: चान्यदक्षेवयममीवयम्, श्लोक-२१. १३९२५. अभिधानचिंतामणी नाममाला सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, पू.वि. कांड-२ गाथा-९७ तक लिखा हैं., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७.५४१३, १४-१५४४२-४६). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अभिधानचिंतामणि नाममाला-वृत्ति, वा. वल्लभ वाचक, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीमदर्हतमानम्य; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १३९२७. सिद्धहेमकाव्यानुशासन सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२८x१३, १७X४६-५०). काव्यानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अकृतिमस्वादुपदा; अंति: (-), __ अपूर्ण. काव्यानुशासन-स्वोपज्ञ अलंकारचूडामणिवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-), अपूर्ण. १३९२८. हेमकाव्यानुशासनवृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८४, जैदे., (२८x१३, १५४४६-५४). काव्यानुशासन-स्वोपज्ञ अलंकारचूडामणिवृत्ति का स्वोपज्ञ विवेक विवरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, ___ सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: विवरीतुं क्वचिद्; अंति: बृहत्कथा भवति, ग्रं. ४०००. १३९२९. सिद्धहेम छंदानुशासन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२८x१२, ११४४१-५०). छंदोनुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: वाचं ध्यात्वार्हती; अंति: द्विघ्नानेकाध्वयोगः, अध्याय-८. १३९३०. छंदोनुशासन के स्वोपज्ञ टीका का पर्याय टिप्पणक व छंदोनुशासन-अध्याय-६ दोधकप्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९५७, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३७, कल पे. २. ले.स्थल. नागोर, जैदे., (२७४१३, १५४५३-५८) १. पे. नाम. छंदोनुशासन-स्वोपज्ञ वृत्ति का पर्याय टिप्पण, पृ. १आ-३३आ. सं., गद्य, आदि: छंदोनुशासनपर्यायाः; अंति: ६५२८० रूपा भवंति, ग्रं. १७५१. २. पे. नाम. छंदोनुशासन-प्रकरण-६ दोधकप्रकरण सह अवचूरि, पृ. ३३आ-३७अ. छंदोनुशासन-अध्याय ६ दोधकप्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: हे सखि मत्प्रियस्य; अंति: सुकरः. For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३९३१. छंदरत्नावली, संपूर्ण, वि. १९७०, कार्तिक शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदे., (२८x१२.५, १४४५३-५६). छंदोरत्नावली, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीशारदापदप्रौढप्रस; अंति: यमके द्विपदी विदुः, अध्याय-९. १३९३२. कीर्तिकल्लोलिनी, संपूर्ण, वि. १९७२, ज्येष्ठ शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. बालाराम ललितराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२.५, १२४५७-५८). कीर्तिकल्लोलिनी, पं. हेमविजय गणि, सं., पद्य, आदि: ऐद्रं वृदममंदमोद; अंति: गहनागाह्यमानाविरश्री, अधिकार-३. १३९३३. सिद्धहेमशब्दानुशासनस्वोपज्ञवृत्ति-अध्याय ३-४, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदे., (२७४१२.५, ११४४२-४६). सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १३९३४. पूजाविधि रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. खंभात, जैदे., (२६.५४१२, १४४५१-५२). पूजाविधि रास, क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: सरस वचन दिउं सरस्वती; अंति: अनंत सुख ते पावइजी, गाथा-५६६.. १३९३५. हेमलक्षणसूत्रार्थ १ से६ पाद, प्रतिपूर्ण, वि. १५३०, वैशाख शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. उज्जयिनी, लिख. श्राव. फतु, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४११, १७x६०). सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमलक्षणसूत्रार्थ १-४ अध्ययन, मु. गुणधीर, मा.गु., गद्य, आदि: (१)अहँ नत्त्वा तथा, (२)अर्ह० अर्ह इसिउ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १३९३६. प्रतिमासंबंधि बोल व जिनप्रतिमाहुंडि रास, संपूर्ण, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. नागोर, जैदे., (२४.५४१२.५, १३४३७). १. पे. नाम. प्रतिमासंबंधि बोल, पृ. १अ-४आ. मा.गु., गद्य, आदि: श्रावकनां बार व्रत; अंति: तेरमौ कह्यौ ते स्यं. २. पे. नाम. जिनप्रतिमाहुंडि रास, पृ. ४आ-७आ. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सुयदेवी हीयडै धरी; अंति: जिनहर्ष कहत के, गाथा-६७. १३९३८. ताजिकसारवृत्ति, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३०, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., रचना प्रशस्ति का अवशेष भागवाला पत्र नहीं है., जैदे., (२६.५४१२, १७-१८४३३-३६). ___ ताजिकसार-कारिका टीका, ग. सुमतिहर्ष, सं., गद्य, वि. १६७७, आदि: श्रीसूर्यचंद्रारबुधे; अंति: रचिता तनुताच्चिर. १३९४२. ज्योतिष संग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९९, फाल्गुन कृष्ण, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. ४, ले.स्थल. मधुवतीबिंदर, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५४१२, ११-१२४३५-४१). १. पे. नाम. मेघमाला सह बालावबोध, पृ. १आ-१२आ. मेघमाला, म. केवलिकीर्ति, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: हर्षेण हरिणा स्तुत्य; अंति: महघु जायते भृशं, श्लोक-२९६. मेघमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम कार्तिकमासे; अंति: ज्वर मानवीने थाए. २. पे. नाम. वृष्टिफलाफल विचार सह बालावबोध, पृ. १२आ-१३अ. वृष्टिफलाफल विचार, सं., पद्य, आदि: कृतिकायां घनो देवी; अंति: मान्या वृष्टि दोषदा, श्लोक-७. For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org वृष्टिफलाफल विचार- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: च्यार नक्षत्रना पाईय; अंति: थोडे बरसात ते दोष. ३. पे. नाम, नाडिभेद, पृ. १३-१४अ. नाडीभेद, सं., पद्य, आदि: अधातः संप्रवक्ष्यामि; अंति: योग प्रकीर्तिताः, श्लोक १६. ४. पे नाम ज्योतिष संग्रह सह टवार्थ, पृ. १४अ २१अ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योतिष संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (अपठनीय); अंतिः (अपठनीय). ज्योतिष संग्रह-बालावबोध * *, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). १३९५१. स्तवन, स्वाध्याय, स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २२, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२३.५x१२, १६x४१-४५) १. पे. नाम. जिराऊलानी वीनती, पृ. १अ - २अ. पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजीराउला मंडण अंतिः भणे० नवनिद्ध आंगणे, गाथा - ३८. २. पे. नाम. च्यारमंगल चौपाई, प्र. २अ २आ. ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धार्थ भूपति सोहे; अंति: उदेरत्न भाखे एम, गाथा - २०. ३. पे. नाम. गणधर संख्या, पृ. २आ-३अ. २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती आपे सरस वचन; अंति: वृद्धिविजय गु गाय, गाथा - ९. ४. पे नाम, बंभणवाड स्तवन, पृ. ३अ-४अ, पे. वि. प्रतिलेखक ने दो पदों को एक गाथा गिनकर गाथा संख्या ४१ लिखा है. महावीरजिन स्तवन- बामणवाडजी, आ. कमलकलशसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः समरवि समरवि सारदाऐ; अंतिः श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा-४१. ५. पे. नाम. शंखेश्वर अष्टक, पृ. ४अ. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर सेवे; अंति: जिनहर्ष अकल अविनास, गाथा - ८. ६. पे. नाम. पूजाविध स्तवन, पृ. ४आ. पूजाविधि स्तवन, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनचोविसे करु प्रणाम; अंति: लालविजे पुजा गुण कहे, गाथा - ११. १५ ७. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. ४आ-५आ. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापद श्रीआदिजिणंद; अंति: जिनहर्ष० नमुं करजोडी, गाथा-३२. ८. पे. नाम. राजुल गीत, पृ. ५आ. नेमराजिमती गीत, मु. कवियण, रा., पद्य, आदि: समुद्रविजय को नेमकुं; अंति: चरणें चित्त लावोनें, गाथा- ४. ९. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. ६अ - ६आ. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि आदि हे आदि जिणेसरु; अंति: लावण्यसमय० आप संपदा, गाथा - १२. १०. पे नाम. पार्श्व छंद, प्र. ६आ. For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सदा फल चिंतामणि; अंति: परो संघ जगीस हो, गाथा-५. ११. पे. नाम. शीखामण सज्झाय, पृ. ६आ-७आ. औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलं करण नमी जें; अंति: गरभावासमा न अवतरे, गाथा-२५. १२. पे. नाम. औपदेशिक छंद, पृ. ७आ-८अ. पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवति भारति चरण; अंति: धर्म रंग रातो रंगचोल, गाथा-१६. १३. पे. नाम. २४ जिन परिवार सज्झाय, पृ. ८अ. मा.गु., पद्य, आदि: चउवीस तीर्थंकरनो; अंति: ऊठीने करो प्रणाम, गाथा-५. १४. पे. नाम. शनी स्तोत्र, पृ. ८अ-८आ. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: यः पुरा राज्यभ्रष्टा; अंति: पीडा न भवंति कदाचन, श्लोक-९. १५. पे. नाम. राहु स्तोत्र, पृ. ८आ. ____सं., पद्य, आदि: ॐ नमो सैंहिकेयाय; अंति: राहुस्तस्य सुखप्रद, श्लोक-५. १६. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. ८आ. सं., पद्य, आदि: ॐ बृहस्पतिः सुरा; अंति: सुप्रतीस्तस्य जायते, श्लोक-५. १७. पे. नाम. रवि स्तोत्र, पृ. ८आ. सूर्याष्टक, क. सिंह, सं., पद्य, आदि: रक्तवर्ण महातेजो; अंति: सूर्य नामेन वांछितम्, श्लोक-८. १८. पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. ८आ-९अ. __ आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: शांतिविधि श्रुतम्, श्लोक-११. १९. पे. नाम. शनिश्चर स्तोत्र, पृ. ९अ-१०अ. शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: तु सुप्रसन्न शनिशरवर, गाथा-१७. २०. पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. १०अ. मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम, श्लोक-८. २१. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. १०अ-१०आ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मात पृथ्वी सुत प्रात; अंति: जस सौभाग्य दोलत सवाई, गाथा-९. २२. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १०आ. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनमुख पंकज; अंति: उदयसुसेवक तास तणो, गाथा-७. १३९५३. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ व बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्रले. मु. अमृतविजय (गुरु पं. गलालविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ४४४३-४५). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-८आ. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याण क० मंगलिक; अंति: प्रपद्यते क० पामइ. २. पे. नाम. बोल संग्रह *, पृ. ८आ, अपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १३९५५. (+) रामविनोद व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, ९४३१-३४). १. पे. नाम. रामविनोद, पृ. १आ-३९आ. पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धबुद्धदायक सलहीय; अंति: आणंदपूर शरीर वसै, समुद्देश-७. २. पे. नाम. आधासीसी को यंत्र, पृ. १अ. औषध संग्रह", मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). १३९५७. (+) जिनस्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६१, वैशाख कृष्ण, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ६, ले.स्थल. शेषपुर, प्रले. ग. प्रीतिसागर (गुरु मु. लक्ष्मीसागर, विधिपक्षगच्छ); पठ. श्रावि. बची अभयचंद दोसी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ११४३४-३६). १.पे. नाम. अजितशांति स्तव , पृ. १अ-५आ. आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: सुखी भवंतु लोकाः, गाथा-४७. २. पे. नाम. वीरजिन स्तोत्र, पृ. ५आ-६अ. महावीरजिन स्तव, प्रा., पद्य, आदि: जयइ नवनलिनकुवलयवियसि; अंति: दिसउ खयं सव्वदुरिआणं, गाथा-६. ३. पे. नाम. भयहर श्रीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ६अ-७आ. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: ईय नाहत्थणामि भत्तीए, गाथा-२५. ४. पे. नाम. जीरापल्लीपार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ७आ-८अ. पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला-महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: ॐ नमो देवदेवाय नित्य; अंति: लभेत् ध्रुवम्, श्लोक-१४. ५. पे. नाम. जंकिंचिसूत्र, पृ.८अ. प्रा., पद्य, आदि: जंकिंचि नाम तित्थम; अंति: ताई सव्वाई वंदामि, गाथा-१. ६. पे. नाम. लघु अजितशांति स्तोत्र, पृ. ८अ-९अ. अजितशांति स्तवलघु-अंचलगच्छीय, क. वीर गणि, प्रा., पद्य, आदि: गब्भ अवयार सोहम्मसुर; अंति: सुह सयल संपज्जए, गाथा-८. १३९५९. ज्वालामालिनी स्तुति, उपसर्गहर स्तोत्र गाथा विधि व गौतमस्वामीजाप मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१२, ९४२९-३२). १. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन सबीजमंत्र स्तोत्र, पृ. १अ-३आ. सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्री; अंति: नाशिनी नियतम. २. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र-भंडारगाथा ३ सह विधि, पृ. ३आ-५आ. For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उवसग्गहर स्तोत्र-भंडारगाथा, संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: ॐ णट्ठट्ठमयठाणे; अंति: सव्वेवि दासत्तं, गाथा-३. उवसग्गहर स्तोत्र-भंडारगाथा की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम शुभ मास लिजे; अंति: सर्वभय टलै मनोरथ फलै, गाथा-३. ३. पे. नाम. गौतमस्वामीजाप मंत्र, पृ. ५आ. सं.. गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीगौतम; अंति: कुरु कुरु स्वाहा. १३९६२. भक्तामर स्तवराज सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदे., (२७४११.५, १५४४०-५४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टीका, वा. मेघविजय, सं., गद्य, वि. १७०१-१७८२, आदि: (१)श्रीशंखेश्वरपार्श्व, (२)इह हि ___ भगवान् श्रीमान; अंति: शोध्यं विशुद्धाशयैः, ग्रं. १०००. १३९६३. (+) हैमव्याकरणप्रक्रिया-पंचसंधि, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. मेशाणा, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ९४२८-३२). सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमलघुप्रक्रिया, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, वि. १७१०, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; __ अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १३९६५. चेतोदूत काव्य, संपूर्ण, वि. १९५७, फाल्गुन कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. पाटडी, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ११४४१-४६). चेतोदूतम्, आ. उदयनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५०२, आदि: ते जीयासुर्जगति; अंति: काव्यमेतद् व्यधत्त, श्लोक-१२६. १३९६६. (+) दिग्विजय काव्य टिप्पण सर्ग-१ से ९, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, २७-२९४६०). दिग्विजय महाकाव्य-टिप्पण, उपा. मेघविजय, सं., गद्य, आदि: श्रीशंखेश्वरपार्श्व; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १३९६७. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५८, माघ कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू.वि. गाथा ९९ तक टबार्थ लिखा है., ले.स्थल. बालोचरमकसूदाबाद, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२०.५४१३, ३-१२४२०-२६). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: पाल्लभ्यते पदमव्ययम्, श्लोक-१०४. ऋषिमंडल स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आदिको अक्षर अंतको; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १३९६८. (+) गजसुकमाल रास, नवकार रास व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७३५, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. १०, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. ग. जिनविजय (गुरु ग. जसविजय); पठ. श्राव. कल्याणसुंदर गांगा परीख श्रीमालज्ञातीय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२४.५४१३.५, २३-२७४१७-२४). १. पे. नाम. गजसुकुमाल रास, पृ. १अ-५आ. मु. शुभवर्द्धन-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: देस सोरठ द्वारापुरी; अंति: वली अविचल संपदा थाइ, गाथा-९४. २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र रास, पृ. ५-७अ. मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो लीजि; अंति: घणां मुगति फल दातार, गाथा-२५. For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ.७अ-७आ. ग. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नयन सुकोमल कहें; अंति: दीजीइ कोडि कल्याण, गाथा-११. ४. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ७-८अ. ग. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी नितु विनवू; अंति: जिन नमइ भगवंत रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. ८अ. ग. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बेकर जोडी वीनरे; अंति: जसविजय० सोभागी लाल, गाथा-५. ६. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ. ग. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति सलूणां सांभलो; अंति: जिन नेक निजर निहाल, गाथा-५. ७. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. ८आ. ग. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रप्रभुस्युं मेरो; अंति: श्रीचंद्रप्रभु जिन, गाथा-५. ८. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. ८आ-९अ. ___ग. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्यनुं रे; अंति: जिन मुनि गुण गाय, गाथा-५. ९.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ९अ. ग. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद चरण नमी करी रे; अंति: प्रभु पाय जयकारी रे, गाथा-७. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९अ-९आ. ग. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर सेवीइ; अंति: मुख मटके मनमोहिउं, गाथा-७. १३९७०. श्रीपाल रास व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७३४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. ग. जिनविजय (गुरु ग. जसविजय); पठ. श्राव. कल्याणसुंदर गांगा परीख श्रीमालज्ञातीय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१४, २४-२५४१७-१८). १.पे. नाम. सिद्धचक्रविषये श्रीपाल रास, पृ. १अ-१४आ. श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: करकमल जोडि करि सिद्ध; अंति: जिम भूपति श्रीपाल, गाथा-२७८. २. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १४आ-१५आ. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. विजयराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय परमगुरु पाय; अंति: कुशल कमला ते वरो, गाथा-१८. १३९७३. शतार्थ सह विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, प्र.वि. योगशास्त्र द्वितीय प्रकाश द्वादश श्लोकस्य., जैदे., (२६.५४१३, १५४४०-४६). योगशास्त्र-हिस्सा परिग्रहारंभ श्लोक, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: परिग्रहारंभमग्ना; अंति: मीश्वरीकर्तुमीश्वरः, श्लोक-१. योगशास्त्र-हिस्सा परिग्रहारंभ श्लोक का शतार्थ विवरण, ग. मानसागर, सं., गद्य, वि. १७वी, आदि: (१)प्रणम्य परमप्रीत्या, (२)हभारंभे गोरिति नाम; अंति: (१)कथमिति संभवे व्ययः, (२)शतार्थीमिमाममलाम्, सूत्र-१०६. For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३९७९. (+) आरंभसिद्धिवृत्ति, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११७-३(१ से ३)=११४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१२.५, ११-१५४३७-४९). आरंभसिद्धि-सुधीशृंगारवार्तिक, ग. हेमहंस, सं., गद्य, वि. १५१४, आदि: (-); अंति: (१)मभ्युदयं प्रथयंति, (२)यतनीयं तत्वज्ञैः, ग्रं. ५५००, पूर्ण. १३९८३. विक्रमादित्य रास, संपूर्ण, वि. १८८१, कार्तिक शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ३३, ले.स्थल. सरसाला, प्रले. पं. हेमविजय; पठ, मोतीसाजी, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४२८-३१). विक्रमादित्य चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: पुरिसादाणी प्रणमीइं; अंति: तेहने सदा हुइ कल्याण, ढाल-२७, गाथा-६०३. १३९८४. वीरभाणउदेभाण चौपाई, संपूर्ण, वि. १८४९, माघ कृष्ण, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५४, ले.स्थल. द्रांगध्रा, प्र.वि. संभवनाथ प्रसादात्., जैदे., (२६.५४१२, १४-१५४३२-३९). वीरभाणउदयभाण रास, मु. कुशलसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४५, आदि: सदगुरुजी सानिध करो; अंति: घणी दिनदिन हरख अपार, ढाल-६५. १३९८५. यशोभद्र चरित्र, संपूर्ण, वि. १९७१, भूऋषिनिधिविधु, श्रावण शुक्ल, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. चांदपोलदरवाजा, प्रले. बालाराम ललितराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२.५, १६x६५-६७). खिमऋषि बलिभद्र यशोभद्रादिरास, म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८९, आदि: भारति भगवति मनि धरी; अंति: प्रहि करुं प्रणाम, खंड-३, गाथा-५१५. १३९८६. गुणवर्मा रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३७, प्र.ले.श्लो. (५२३) मंगलं लेखकानांच, जैदे., (२७४१२.५, १२-१३४३५-३६). १७ भेदी पजा रास, म. ज्ञानसागर, मा.ग., पद्य, वि. १७९७, आदि: सख संपति दायक सदा: अंति: जिम पोचे मन आस रे, ढाल-९५. १३९८७. रास संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८३-६(१ से ६)=७७, कुल पे. ८, जैदे., (२७४११, १६x४१). १. पे. नाम. सनत्कुमार चक्रवर्ति रास, पृ. ७अ-१६अ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सनत्कुमारचक्रवर्ति रास, आ. पुण्यरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: (-); अंति: सखी सिरवर जिनवरा, गाथा-२८२, अपूर्ण. २. पे. नाम. मंगलकलश रास, पृ. १६अ-२८आ. मु. ज्ञानरुचि, मा.गु., पद्य, वि. १५२५, आदि: आदि जिणवर जिणवर सुख; अंति: भवसायर हेला ऊतरउ, गाथा-३५०. ३. पे. नाम. मत्स्योदर रास, पृ. २८आ-३५अ. मु. जयराज, मा.गु., पद्य, वि. १५५३, आदि: देव अरिहंत देव; अंति: भवीय एकमना सुणु, गाथा-१६१. ४. पे. नाम. विद्याविलास पवाडउ, पृ. ३५अ-४३अ. आ. हीरानंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १४८५, आदि: पहिलं पणमिय पढम; अंति: लग; वापरु ए चरित्र, गाथा-२१५. ५. पे. नाम. चंदनराजा चौपाई, पृ. ४३आ-५०आ. पं. हीरविशाल, मा.गु., पद्य, आदि: मन रंगिइं जिनवर नमउ; अंति: जयवंत० हुइ आणंद, गाथा-२०४. For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६. पे. नाम. सिंहकुमार रत्नवती रास, पृ. ५० आ-५५अ. मु. राजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: सकल मनोरथ पूरवइ; अंति: सुंदर० फल पामइ तेह, गाथा- ११९. ७. पे. नाम. विजयसेनकुमरविजयाकुमारी रास, पृ. ५५अ-६०आ. विजयसेठ विजयाशेठाणी रास, मु. मनोहर, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: श्रीवर नेमिजिनेश्वरो; अंति: कहइ० लखमी घरि आंगण, गाथा- १३८. ८. पे. नाम. हरिबल रास, पृ. ६०आ-८३आ. मु. कुशलसंयम, मा.गु., पद्य, वि. १५५५, आदि: पहिलं प्रणमूं पास अंतिः ए भणता संपद विस्तरड़, खंड-४. १३९८८. (+) हीरविजयसूरि रास, संपूर्ण, वि. १७३६, श्रेष्ठ, पृ. ६३, ले. स्थल. सरखेज, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५X११, १९-२०५९-६१ ). हीरविजयसूरि रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६८५, आदि: सरसति भाषा भारती; अंति: नाम जपतां जि कोवे, गाथा- ३११९. १३९८९. स्तुतिचौवीसी, संपूर्ण, वि. १७९४ आश्विन शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल. चोबारी ग्राम प्रले. पं. तिलकविजय ( गुरुग. हेमविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, जैवे. (२६.५४११.५, १७४५७). , स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारतारावलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक- ९६. २१ १३९९० (+) स्तुतिचीवीसी सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५०६, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, शनिवार, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., ( २६४११, ११४५५). - - स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति- २४, श्लोक-१६. स्तुतिचतुर्विंशतिका- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: हे नाभिनंदन त्वं; अंति रक्षतात् इति संबंध: १३९९९. स्तुतिचौवीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५५, कार्तिक शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. २०, पू. वि. अंतिम ३ गाथाओं का बर्थ नही लिखा हैं., ले. स्थल. घांटीलानगर, प्रले. पं. उत्तमविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X१२, ४४४३-४४). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारतारावलक्षेमदा, स्तुति - २४, श्लोक-१६. स्तुतिचतुर्विंशतिका-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भव्यांभोज क० भव्यरूप; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १३९९२. स्तवनसंग्रह सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. पंचपाठ., जैदे., (२६x११, १३X३८-४०). अष्टादशस्तवी, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४९७, आदि: स्तुवे पार्श्व अंतिः सोमदेवगणिर्गुणी, स्तवन- १८. अष्टादशस्तवी- अवचूरि, आ. सोमदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १४९७, आदि: बहुव्रीहेरेकवचने; अंति: (१) श्रिये शिवसंपदे, (२) कृता चिरंजीयात्. १३९९३. (+) नवाणुप्रकारी पूजा विधिसहित, संपूर्ण, वि. १८८८, कार्तिक कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२७.५X१२, १२४३६-४२). ९९ प्रकारी पूजा- शत्रुंजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेसर पासजी; अंति: आतम आप ठरायो रे, ढाल - ११ + कलश, गाथा - १०५, ग्रं. १५५. For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२ www.kobatirth.org १३९९४. तिर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२८x१२.५, ११X३५-३८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुंजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: (१)जगजीवन जालम जादवा, (२) विमलाचल वाल्हा वारू; अंति: नित नमो गिरिराया रे, ढाल - ९. १३९९५. (+) जिनस्तुति सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९५७, पौष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. कलोल, प्रले. प्रह्लाद मोहनलाल बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., (२८x११.५, १५४४९-५७). साधारणजिन स्तुति, ग. साधुराज, सं., पद्य, आदि आंबारायण सेलडी खडहडी; अंतिः वितनोति लक्ष्मीम्, श्लोक-१२. साधारणजिन स्तुति-वृत्ति, ग. साधुराज, सं., गद्य, आदि: (१) श्रीमहावीरमानम्य, (२) हे श्रीजिन श्रीवीत; अंति: द्वादशवृत्तार्थः, १३९९६ (+) स्तवनचीवीसी सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९०९, आषाढ़ कृष्ण, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५०, ले. स्थल, बजांणानगर, प्रले. मु. यशोविजयजी-शिष्य, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टबार्थ लेखन मास - द्वितीय भाद्रपद, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x११.५, ३३२-३८). स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: ऋषभ जिणंदशुं प्रीतडी; अंति: पूर्णानंद समाजोजी, स्तवन- २४, (वि. १९०९, आषाढ़ कृष्ण, ९, शनिवार) स्तवनचौवीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ए संसारी जीव देवतत्त; अंति: पाय छे श्रीजिनभक्ति, (वि. १९०९, भाद्रपद अधिकमास कृष्ण, ६, सोमवार) , १३९९७. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९३२, आषाढ़ कृष्ण, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ९ - १ ( २ ) = ८, पू. वि. स्तवन ४ गाथा - १ से स्तवन ६ गाथा- २ अपूर्ण तक नहीं हैं., ले. स्थल. पाटण, प्रले. संकरकेवल भोजक; पठ. श्रावि. झरमर बाई, प्र.ले.पु. मध्यम, जैवे., (२७.५x१२, १०-११३१-३२). जिनस्तवनचवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जगजीवन जगवाल्हो; अंति: जीवन जीव आधारो रे, स्तवन- २४, अपूर्ण. १३९९८. स्तवनचौवीसी सह टवार्थ, पूर्ण, वि. १८९४-१८९५, श्रेष्ठ, पृ. ५३ - १ ( २ ) = ५२, पू. वि. स्तवन १ गाथा १ अपूर्ण से गाथा - ६ अपूर्ण तक नही हैं., ले. स्थल. राजनगर, प्रले. खुशीयालजी लहिया; लिख. श्राव. प्रेमचंद हेमाभाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. प्रति० स्थल - पांजरापोल, राजनगर, जैदे., (२७X१२.५, ३X२७-४० ). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: ( १ ) अनंत सुखनो सदा रे, (२) गाता अखय संपद अतिघणी, स्तवन- २४, (पूर्ण, वि. १८९४, फाल्गुन कृष्ण, ७, शुक्रवार) स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: आनंदघनस्यास्या गीत; अंति: आप सरुप भक्त छो, (पूर्ण, वि. १८९५ श्रावण शुक्र, ६, रविवार) , For Private And Personal Use Only १३९९९ (+) स्तुतिचौवीसी सह अवचूरि व लोकसंग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे., (२६.५X११, १३x४४-४७). १. पे नाम. स्तुतिचतुर्विंशतिका सह अवचूरि, पृ. १अ ६आ. स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंतिः हारतारावलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक- ९६. Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org स्तुतिचतुर्विंशतिका- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भव्यां० हे नाभिनंदन अंतिः (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २. पे. नाम. जैन सामान्यकृति, पृ. ६आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४०००. (+) स्तुतिचौवीसी, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६.५X११, १४४८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४००१. स्तवनचोवीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैवे. (२७४११.५, ११४३७-३९). " स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारतारावलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-१६. स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलगडी आदीनाथनी जो; अंति: रामविजय जयश्री लही, स्तवन- २४. १४००२. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., ( २६.५x१२, १३४३४-३८). स्तवनचीवीसी, उपा. लावण्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि आदि जिनेसर साहिबा अंति: (१) लावण्य के मन भाया, (२) लावण्य लीला जय करु, स्तवन- २४. १४००३ (+) चंद्रप्रभुस्वामी, अजापुत्र प्रबंध व संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२७११, १६-१७५५-५६). १. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन धवल प्रबंध, पृ. १अ - ४अ. आ. विनयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वचन विलास भल वरसतीए: अंति: बोलाइ० विजयदेवसूरिए, डाल- १३, गाथा - ८९. २३ २. पे. नाम. अजापुत्र रास, पृ. ४अ-१३आ. आ. विनयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचंद्रप्रभजिन; अंति: लहियइ सुख अपार रे, ढाल - २३, गाथा - २१६, प्र. ६७५. ३. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १३ आ. आ. विनयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: संभव जिनवर त्रिभुवन; अंतिः भणइ श्रीविनयदेवसूरि, गाथा-७, १४००४. (+) नमस्कारस्तव सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., ( २६.५x१०.५, १३४४८-५० ). नमस्कार स्तव, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः परमिट्टि नमुकार; अंतिः महिम सिद्धि सुहं लोक-३३. नमस्कार स्तव-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १४९७, आदि: (१) जिनं विश्वत्रयी, (२) व्याख्या परमेष्टिन; अंति: जलधिनंदमनुप्रमेब्दे. For Private And Personal Use Only १४००५ नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७२४-१८००, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल, धमडकानगर, जैदे. (२६४११, १५४३९). नेमिजिन ढाल, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: चंद्रकांति चंद्राननी; अंति: तत्वविजय कवि सुहंकरो, ढाल - १७, गाथा - १३२. Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४००६. वीरजिन स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७८५, श्रेष्ठ, पृ. १६, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अंतिम गाथाओं का बालावबोध नही लिखा गया है., ले.स्थल. बर्हानपुर, प्र.वि. त्रिपाठ., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११.५, ४-६४३४-३८). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, ___ आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: आणा शिर वहस्ये जी, ढाल-७. महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जत्थयजं जाणिज्जा; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १४००७. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२७४११.५, ११४४८). जिनस्तवनचौवीशी, आ. लब्धिसागरसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: नाभिराय कुल कुवलय; अंति: गुणागंभीरिमसागरो, स्तवन-२४, ग्रं. ३७५. १४००८. वीतराग स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, पू.वि. प्रकाश-३ गाथा-२ अपूर्ण तक नहीं हैं., ले.स्थल. मुम्माईबिंदीर, प्रले. कल्याणचंद्र; पठ. रगनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३-१५४३७). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: फलमीप्सितम्, प्रकाश-२०, __ अपूर्ण. १४००९. पुन्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४९, मध्यम, पृ.७, ले.स्थल. राजनगर, प्र.ले.श्लो. (१६७) जिहां लगे मेरु अडिग है. जैदे., (२६.५४१२, ११४३१-३२). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८. १४०१०. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. सुरत, प्रले. पं. गुलालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३-१४४४६-४९). स्तवनचौवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सुगुण सोभागी; अंति: मालाबालाने वरे रेलो, स्तवन-२४. १४०११. (+) वीरजिन स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८६०, पौष कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ८५, ले.स्थल. भावनगरबिंद्र, प्रले. पं. नायकविजय (गुरु पं. जयविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-द्विपाठ., जैदे., (२६.५४११, १-४४३७-४०). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: आणा सिर वहेस्येजी, ढाल-७. महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित-बालावबोध, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८४९, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: तिष्ठताच्छुद्धवासनः. १४०१२. नववाडि सज्झाय व अढारपापस्थानकादि नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११.५, १०४३०). १. पे. नाम. नववाडि सज्झाय, पृ. १आ-५अ. वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: नववाड राखो निरमली, गाथा-३८. For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org २. पे. नाम. १८ पापस्थानक नाम, पृ. ५अ. मा.गु., गद्य, आदि: पहलो प्राणातिपात; अंति: मिथ्यादर्शन शल्य. ३. पे. नाम. संयम के १७ भेद नाम, पृ. ५अ. मा.गु., गद्य, आदि: पृथिवीकाय संजमे १; अंति: संजमे १६ कायसंजमे १७. ४. पे. नाम. ७ भय नाम, पृ. ५आ. मा.गु., गद्य, आदि: इहलोक भय १ परलोक भय; अंतिः भय ६ अपकीर्तिभय ७. १४०१३. नववाडी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८३६, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., ( २६.५X११.५, १३×३४). नववाडी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमीश्वर चरणयुग; अंति: पालज्यो० मन रीझ्य, ढाल - ११. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४०१४. योगदृष्टि स्वाध्याय सह वालावबोध, संपूर्ण, वि. १८५८, माघ कृष्ण, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले. स्थल, वट्पद्रनगर, प्रले. पं. कनकचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमनमोहनपार्श्वनाथप्रसादे., जैदे., ( २६११.५, ३३३ ). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाव, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक जशने वयणेजी, ढाल -८, गाथा- ७६. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय- बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि ऐंद्रश्रेणिनतं; अंतिः छे श्रीखंभायतबंदरे, १४०१५. (+) संखेश्वरपार्श्वजिन चंद्राउला स्तवन, संपूर्ण, वि. १६७४, भाद्रपद कृष्ण, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. जैवे. (२६.५x११.५, १३४४५). पार्श्वजिन स्तवन- चंद्राउला, मु. राजपाल, मा.गु., पद्य, वि. १६७१, आदि: सरसति नइ समरी करी; अंति: वन नीपनुं तहीइ उदार, गाथा - ८८. . १४०१६. वीरजिन सत्तावीसभव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. हर्षविजय पठ, श्रावि. सूरज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५x१२, १२x२७-२८). महावीरजिन २७ भव स्तवन, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमलकमलदललोयणा दिसे; अंतिः विजय शिष्य जयकरो, डाल-६. १४०१७. शत्रुंजय स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२६X११, १३x४९-५१). आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, आ. विजयतिलकसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलं पणमीय देव; अंति: विजयतिलय निरंजणो, गाथा - २१. १४०१८. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७४११.५, ९x४० ). आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीविजयतिलक अंतिः छई निरंजणो पापरहित. २५ शांतिजिन स्तवन- निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांति जिणेसर केसर: अंति: वाचक जसविजय सिरि लही, ढाल ६. १४०१९. सीमंधरजिन, वीरजिन स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. १७६०, फाल्गुन कृष्ण, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, ले. स्थल. पत्तननगर, प्र.ले.पु. सामान्य, जीवे. (२६.५x११.५, ११x४६-५३). For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, पृ. १आ-७अ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१३१. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ७अ. मा.गु., पद्य, आदि: वेसाख सुद एकादी; अंति: अंवरीज हो ये गीतारथ, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७आ-१अ, वि. १७६०, ले.स्थल. सुरत, पठ. श्रावि. रामकुंवरबाई. मु. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासरडे इम जइ रे बाइ; अंति: सीवपुर लीई रे बाई, गाथा-९. १४०२०. सीमंधरजिनवीनती स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०३, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. जैदे., (२७४१२, ५४४८-५०). सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधर विनती%B अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५. सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हे श्रीसीमधरस्वामी; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. गाथा ११४ तक टबार्थ लिखा है.) १४०२१. स्तवन संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(२)=८, कुल पे. ७, जैदे., (२७४१२.५, १३४३७-६९). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ. मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिणेसर अरज सुणी; अंति: उदय० कारिज सीझै रे, गाथा-७. २. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-११ अपूर्ण तक है. मा.गु., पद्य, आदि: भवितुम्हे वंदो रे; अंति: (-), अपूर्ण. ३. पे. नाम. पांडव सज्झाय-शत्रुजयतीर्थगर्भित, पृ. ३अ-३आ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-१ से८ अपूर्ण तक नहीं ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जे सिद्धाचले हो लाल, गाथा-१९, अपूर्ण. ४. पे. नाम. शत्रुजय-चैत्यपरिपाटी, पृ. ३आ-८आ. उपा. देवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नमवि अरिहंत पयणंत; अंति: वीनव्यो जग हित करो, ढाल-४. ५. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ९अ. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: चालो मोरी सहीया; अंति: सकल मनोरथ सीझे है, गाथा-५. ६. पे. नाम. बाहुजिन स्तवन, पृ. ९अ-९आ. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: रमत रमिवा मैं गईथी; अंति: फल कीयो अवतार हे माय, गाथा-८. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गौडीजी, पृ. ९आ. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजी सुण हो तेवीसम; अंति: रूपचंद० ए वीनति भणी, गाथा-७. १४०२२. स्वाध्याय संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. १८, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२७.५४१२.५, ११४४१-४५). For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. वयरस्वामी सज्झाय, पृ. १आ-२आ. उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: सिंहगिरिसीस धनगिरिसु; अंति: सहई लाछि तस नामि रे, गाथा - १९. २. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २आ-४अ. उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: तुं जिनवदन भवननी; अंति: अबाह सुहसाहगो भणिउं, ढाल - ३, गाथा - २१. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ-४आ. उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: पभणति जगगुरू त्रिजग; अंति: नमई ते शिवपुरवासी, गाथा - १३. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४-५अ. उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जगजंतु पाणाण; अंति: जंतु तुपाणाण जताईणो, गाथा-८. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५अ - ६अ. उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: जेणि बहु गुणभरी नैव; अंति: भंडार पोतई भरावे, गाथा-१३. ६. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ-७आ. उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि दिइ दिइ दरिसन आपणं; अंतिः बंधवतुल्य तोलि रे, गाथा- ८. ७. पे. नाम. नेमिजिन सज्झाय, पृ. ७आ-८अ. उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: गोविंद हमकुं मारण; अंति: सकल कहई राजीमती रे, गाथा - १४. ८. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८अ ९अ. उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: कुठि घउटी घणूं चेतना; अंति: जीव करि पुण्य जाडो, गाथा - १३. ९. पे. नाम. हीरविजयसूरि सज्झाय, पृ. ९अ ९आ. उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: छंडिजा छंडिजा रे; अंतिः पास इम रहजे वरासई, गाथा-८, १०. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ. उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंदिर प्रकासिई; अंति: होई सकल सुख ठेठ रे, गाथा-६. ११. पे. नाम औपदेशिक चौपई. पू. १०अ ११अ. उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: भविक जीव चिति ध्यानि; अंति: भाव धरि श्रमण जाउ, गाथा - २१. १२. पे नाम हीरविजयसूरि सज्झाय, पृ. ११-१२अ. उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: बहु गुण लक्षण अभया; अंतिः सुरासुर दुंदुभी रे, गाधा - १२. १३. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १२अ. उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: गांठडी काढी कांजिणी; अंति: करूं कोडिने साल रे, गाथा-६. १४. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, प्र. १२-१२आ. उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: गांठडी काढी कां जणी; अंति: तुझ मोह परि जाप रे, गाथा - ६. १५. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १२ आ-१३अ. उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: एक अतुलाज लाजेणि; अंतिः क्षपकश्रेणि डंडी, गाथा-७, १६. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १३अ १३आ. For Private And Personal Use Only २७ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुरिसा मत मो माथा; अंति: हणी आभर कर्म रिपूना, गाथा-१०. १७. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १३आ-१४अ. उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: एक जगि उंटडी दैवनि; अंति: सिंवडी सिद्धि लाडी, गाथा-१२. १८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १४आ, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., अंतिम पदमात्र नहीं होना चाहिये. उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरे जंतु तुं चिंति; अंति: (-), पूर्ण. १४०२३. पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १८१९, भाद्रपद कृष्ण, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. ग. प्रतापविजय (गुरु पं. भाग्यविजय); पठ. श्रावि. जेठी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १०४३१-३३). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८+कलश. १४०२४. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९१६, चैत्र शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १३, प्रले. श्राव. गुणचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१३, १३४३१-३२). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: आनंदघन प्रभु जागरे, स्तवन-२४. १४०२५. स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२७.५४१३, १२-१३४४२-४६). स्तवनवीसी, मु. जसकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि: सुजन सुजन सोभागी; अंति: वीसी चढी प्रमाण, स्तवन-२०. १४०२६. श्रावक आराधना बालावबोध, परमेष्टि स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ३, जैदे., (२७.५४१३, १०४३८-४०). १. पे. नाम. श्रावक आराधना-बालावबोध, पृ. १अ-११अ. उपा. राजसोम, मा.गु., गद्य, वि. १७१५, आदि: इहां आराधनाने विषै; अंति: वय॑श्चाराधना चक्रे. २. पे. नाम. नमस्कारमंत्र स्तोत्र, पृ. ११अ-११आ. __मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंग; अंति: महिमा जास अपाररी माई, गाथा-९. ३. पे. नाम. दुहा संग्रह*, पृ. ११आ. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), गाथा-३. १४०२७. स्तुतिचौवीसी सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८४६, रसवेदानागचन्द्रे, कार्तिक शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५०, ले.स्थल. वढवाण, प्रले. नारणजी जेष्ठाराम उपाध्याय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १५४५४-५६). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारतारावलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. स्तुतिचतुर्विंशतिका-टीका, मु. जयविजय, सं., गद्य, वि. १६७१, आदि: प्रणम्य परमानंददायिन; अंति: सहस्रद्वितयं मया. १४०२८. चतुस्त्रिंशदअतिशय स्तवन सह स्वोपज्ञवृत्ति, संपूर्ण, वि. १९७२, वैशाख कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२८x१२.५, २-५४४४-४८). For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org ३४ अतिशय स्तवन, सं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीसुखदान्; अंतिः चंद्राय सांद्रम् श्लोक-२८. ३४ अतिशय स्तवन- स्वोपज्ञ वृत्ति, सं., गद्य, आदि: मनोज्ञमार्हतं ज्योति; अंति: (१) श्लोकद्वयार्थ, (२) जिनाज्ञाराधको भवेत्, १४०२९. पार्श्व स्तवन व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८८२, पौष शुक्ल २, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. पं. हेमविजय; पठ, मु. खुशालविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२८.५५१२.५, १२४३९-४८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी ५. १-६आ. पृ. मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: प्रणमुं नित्य; अंति: इम नेमविजय जयकार, २. पे नाम, जैन श्लोक, पृ. ६आ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढाल - १५. सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: ( अपठनीय). धर्मचंद्र (गुरु मु. १४०३०. . (+) नंदीश्वरद्वीप पूजा, संपूर्ण, वि. १८९६-१९००, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल. आमलनेर, प्रले. मु. कल्याणचंद्र, तपगच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२७.५X१२.५, १४X३४). नंदीश्वरद्वीप पूजा, मु. धर्मचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८९६, आदि: प्रणमुं शांति जिणंद; अंति: रे संघ सकल हरखायो रे, ढाल - १२ + कलश. ', १४०३१. हरिबल रास, संपूर्ण, वि. १७४१, मध्यम, पृ. २७, ले. स्थल. संकराणिग्राम, जैवे. (२६.५x११, १५X४२-४५). हरिबल रास, मु. कुशलसंयम, मा.गु., पद्य, वि. १५५५, आदि पहिलुं प्रणमूं पास अंतिः ए भणता संपद विस्तरड़, खंड-४, १४०३२. हरिबल रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-१ (१) २३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५x११, १५X४२-४४), हरिबल रास, मु. कुशलसंयम, मा.गु., पद्य, वि. १५५५, आदि: ( - ); अंति: (-), अपूर्ण. १४०३३. (+) हरिबल रास, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६x११, १८-१९×५२-५९). २९ हरिबल रास, मु. कुशलसंयम, मा.गु., पद्य, वि. १५५५, आदि: पहिलं प्रणमूं पास; अंतिः ए भणता संपद विस्तरड़, खंड-४. १४०३४. (*) हरिबल रास, संपूर्ण, वि. १८३१, माघ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ९६, प्रले. पं. विवेकविजय गणि (गुरु ग. शुभविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., प्र.ले. श्लो. (६६४) जादृष्टं पुस्तकं जस्या, (६६५) कल्याण समत्तु सुभंभवी, जैवे. (२४४११, १५X३६-३९). " For Private And Personal Use Only हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: प्रथम धराधर जगधणी; अंति: लब्धीनी वाचा फलयो रे, ढाल - ४ उल्लास ५९. " १४०३५. हीरविजयसूरि रास, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४३- २ (१,१४२) - १४१, जैवे. (२६४११.५, १३४३५ ). हीरविजयसूरि रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: नाम जपतां जि कोये, पूर्ण. १४०३६. अडसठआगम पूजा, संपूर्ण, वि. १८५६-१९००, मध्यम, पृ. ७, जैदे., (२५.५x११, १३४३९-४१). Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६८ आगम पूजा, क. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५६, आदि: (१)प्रथम विशाल जिन भुवन, (२)प्रवचन परमेस्वर; अंति: तीर्थपती राजा. १४०३७. ऋषिमंडल पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२४.५४१२, १७४३९-४०). ऋषिमंडल पूजा, संबद्ध, ग. शिवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १८७९, आदि: प्रणमी श्रीपारस विमल; अंति: आनंद संघ वधाया, ढाल-२४. १४०३८.(+) पंचकल्याणक पूजा, संपूर्ण, वि. १९१६, भाद्रपद शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २६, ले.स्थल. स्तंभनतीर्थ, प्रले. श्राव. लक्ष्मीचंद्र सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. विक्रम १९१५ अषाढादि (चैत्रादि मास क्रम से) वर्ष का उल्लेख मिलता है. स्थंभण पार्श्वनाथ प्रसादात्., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित.,प्र.ले.श्लो. (६४४) याद्रिशं पुस्तक द्रिष्ट्वा, जैदे., (२५४१२, १०४२८-३४). पंचकल्याणक पूजा-बृहत्, उपा. चारित्रनंदि, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: पण कल्याणक जिन तणा; __ अंति: (१)संतति शिव प्राप्त हे, (२)चारित्रनदि पाया, ग्रं. ५००. १४०३९. नवपद पूजा विधिसहित, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. पोरबींदर, जैदे., (२६४१२, १३-१४४२५-२६). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: तणा नाथ जीवानुजीवो. १४०४०. चैत्रीपूनम देववंदन व पुंडरीक पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. राजनगर, जैदे., (२५.५४१२, १७X४१-४२). १. पे. नाम. चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, पृ. १अ-५अ. ___ मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम चौमुख प्रतिमा; अंति: दान अधिक आणंद, देववंदनजोडा-५. २. पे. नाम. पुंडरीकपूजा विधिसहित, पृ. ५अ-६आ. पुंडरीकगणधरपूजा विधिसहित, मु. दानविजय, मा.गु., प+ग., आदि: सर्व श्रीसंघ उभा थइ; अंति: भणावीइ स्नात्र करीइ. १४०४१. स्नात्रपूजा, संपूर्ण, वि. १९२६, फाल्गुन शुक्ल, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. धोराजीनगर, पठ. जेसंकर दुर्लभ गोठी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३४३०-३३). स्नात्रपूजा, मु. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मुक्तालंकार विकार; अंति: समकित सुजस सवायो रे. १४०४२. तीरथमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. ग. सुमतिविजय (गुरु ग. धर्मसुंदर), प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (१५.५४९, १२४२८-३०). तीर्थमाला स्तवन, मु. मेघ, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: शेव्रुज सामी रिसह; अंति: पाप घट हुइ निरमलु, गाथा-८९. १४०४३. सिद्धाचलतीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७७, माघ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. खेटपुर, पठ. मु. जिनेंद्ररत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१२, १४-१५४३८-३९). शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: विमलाचल वाहला वारु; अंति: नीत नमो गीरीराया रे, ढाल-१०. For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १४०४५. (+) स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १७६३, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित.,जैदे., (२६४१०.५, १४४४५-४७). जिनस्तवनचौवीशी, मु. कपूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: ऋषभ जिणेसर राजिया; अंति: भलतांसह आपद नासें, स्तवन-२४. १४०४६. महावीर स्तुति सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११, ४४४५). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणामाहणा; अंति: व देवाहिव आगमिस्संति, गाथा-२९. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पुच्छिसुणं० पूर्वो; अंति: इति ब्रवीमि पूर्ववनु. १४०४७. स्तुतिचोवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पादरानगर, प्रले. श्राव. कुंअर; पठ. श्रावि. गोरी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३२). स्तुतिचौवीसी, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभजिणेशर केशर; अंति: इम मंगल करजो माय, गाथा-४०. १४०४८. स्तुतिचौवीसी, संपूर्ण, वि. १७१०, कार्तिक कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. देसुरीनगर, प्रले. ग. मुक्तिविजय (गुरु ग. अमृतविजय); पठ. मु. दीप्तिविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४११.५, ११४२७-२८). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनक; अंति: हारतारावलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. १४०४९. स्तुतिचौवीसी, संपूर्ण, वि. १७१०, मध्यम, पृ.८, ले.स्थल. वटपद्रनगर, प्रले. ग. दयाविजय (गुरु मु. प्रीतिविजय); पठ. श्रावि. धनबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४११, १३-१४४३४-३७). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारतारावलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. १४०५०. स्तुतिचौवीसी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२५.५४११, १३४४६-४७). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारतारावलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. १४०५१. स्तुतिचौवीसी, संपूर्ण, वि. १७५२, माघ कृष्ण, १०, रविवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. नासवण, प्रले. पं. सुंदरकुशल गणि; पठ. ग. हर्षविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४११, ११४४७). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारतारावलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. १४०५२. (+) स्तुतिचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १७४४४). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारतारावलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. १४०५३. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति व गुरुनामाष्टक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४१-१९००, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६.५४११, १५४४८). For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. स्तुतिचतुर्विंशतिका, पृ. १अ-४अ. वा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८०१-१८४१, आदि: सद्भक्त्या नतमौलि; अंति: मम चिराय संपाद्यताम्, स्तुति-२४, श्लोक-७७. २. पे. नाम. जिनभक्तिसूरि-गुरुणामष्टकम्, पृ. ४अ-४आ. वा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८०४, आदि: श्रीमच्चंद्रकुलेश्वर; अंति: समीहित सिद्धये, श्लोक-९. ३. पे. नाम. जिनलाभसूरि सद्गुरुणामष्टकम्, पृ. ४आ-५अ. वा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८३४, आदि: राग विभास तथा कडषौ; अंति: क्षमाधाम कल्याणकाराः, श्लोक-९. १४०५४. चतुर्विंशतिजिन स्तुति सहटीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प. ७. जैदे.. (२६४११.१३४४२-४३). २४ जिन स्तवन, श्राव. भूपाल, सं., पद्य, आदि: श्रीलीलायतनं महीकुल; अंति: भूयात् पुनदर्शनम्, श्लोक-२५. २४ जिन स्तवन-टीका, सं., गद्य, आदि: भो देव प्रातः; अंति: त्वदर्शनं भूयात्. १४०५५. स्तुतिचौवीसी सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १८४६, रसवेदानागचंद्रे, कार्तिक कृष्ण, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६६-१(५०)+१(४३)=६६, ले.स्थल. व्याराग्राम, जैदे., (२६४१२, १३-१४४४०-४३). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारतारावलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६, पूर्ण. स्तुतिचतुर्विंशतिका-टीका, मु. जयविजय, सं., गद्य, वि. १६७१, आदि: प्रणम्य परमानंददायिन; अंति: सहस्रद्वितयं मया, ग्रं. २३५०, पूर्ण. १४०५६. सर्वदेव स्तुतिसंग्रह सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-१०(१ से १०)=६, जैदे., (२५.५४१०.५, १७७५१-५४). सर्वदेव स्तुति संग्रह, सं., पद्य, आदि: श्रेयसं सकलं श्रीदं; अंति: दयोदयदयोदायोदयोवेदयो, अपूर्ण. सर्वदेव स्तुति संग्रह-टीका, सं., गद्य, आदि: कश्चिद्विपश्चित समता; अंति: यमर्थोत्रलिखितोस्ति, अपूर्ण. १४०५७. अंतरीक पार्श्वनाथजी अष्टभयनिवारण छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३४). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्ष, वा. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: जयो पास जय जय करण, गाथा-५१. १४०५८. छंद, स्तुति, सज्झाय व स्तवनआदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७०, कार्तिक शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. थीरा, प्रले. मु. तेजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०x१०.५, १७-१९४४०-४५). १. पे. नाम. सरस्वती स्तुति, पृ. १अ. सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो; अंति: ॐकाराय नमो नमः, श्लोक-१२. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद-अजारी, पृ. १अ-२अ. सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: वाचा फलस्ये माहरी, गाथा-३५. ३. पे. नाम. भरहेसर सज्झाय, पृ. २अ-२आ, वि. १८७०, कार्तिक शुक्ल, ११. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जस पडहो तियणे सयले, गाथा-१३. For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ४. पे. नाम. सोलसती सज्झाय, पृ. २आ-३अ. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर; अंति: लेसे सुख संपदा ए, गाथा-१७. ५. पे. नाम. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, पृ. ३अ-४अ, वि. १८७०, कार्तिक शुक्ल, १२, शुक्रवार, ले.स्थल. थीरा. ___ आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमुं सिरनाम; अंति: मनवंछित शिवसुख पावे, गाथा-२१. ६. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. ४अ, वि. १८७०, कार्तिक शुक्ल, १३. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेश्वरकेरो शिष; अंति: गौतम तुतु संपति कोड, गाथा-९. ७. पे. नाम. पार्श्व अष्टक, पृ. ४अ-४आ. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर सेवे; अंति: जिनहर्ष अकल अविनास, गाथा-८. ८. पे. नाम. गौतमस्वामीजी अष्टक, पृ. ४आ. गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी गौतम प्रणमी; अंति: उदय प्रगट्यो परधान, गाथा-८. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ. मु. विनयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मुरत श्रीपास; अंति: नवनीधी सदा आणंद घणे, गाथा-११. १०. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. ५अ. शQजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ जगन्नाथ; अंति: शासनं ते भवे भवे, गाथा-५. ११. पे. नाम. पार्श्वनाथजी छंद, पृ. ५अ-५आ. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, पृ. ५आ. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: आपो आप तुठा, गाथा-७. १३. पे. नाम. गोडीजी छंद, पृ. ५आ-६अ. पार्श्वजिन छंद-गोडीपार्श्वनाथ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: धवल धिंग गोडी धणी; अंति: दुखनी जाल त्रोडी, गाथा-७. १४. पे. नाम. थंभणपार्श्वनाथजी छंद, पृ. ६अ, वि. १८७०, कार्तिक शुक्ल, १४. पार्श्वजिन छंद-स्तंभण, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास जिणं; अंति: पार्श्वनाथ सुसाल, गाथा-१६. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-सुरतमंडण, पृ. ६आ. वा. देव, मा.गु., पद्य, आदि: सुरत मंडण पासजिणं; अंति: देव चीरंजीव घj, गाथा-९. १६. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. ६आ-७अ, वि. १८७०, कार्तिक शुक्ल, १५. गौतमस्वामी स्तोत्र, ग. विजयशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम गुरु प्रभात; अंति: जयशिखर कहे सुविलासि, गाथा-१३. १७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पृ. ७अ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुद्धे मन आणि आसता; अंति: सुंदर कहे सुख भरपुर, गाथा-६. For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४ www.kobatirth.org १८. पे. नाम. सीखामणना बोल, पृ. ७अ ७आ. औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि भगवति भारति चरण; अंतिः रंग धरज्यो मनि चोल, गाथा - १६. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९. पे. नाम. २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, पृ. ७आ-८अ. मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वति आपो सरस वचन; अंति: वृद्धिविजय गुण गाय, गाथा-९. २०. पे नाम. अमीद्वारा छंद, पृ. ८अ-८आ. पार्श्वजिन छंद - अमीद्वारा, मा.गु., पद्य, आदिः उठ प्रभात्तई अमिजरो; अति: अमीझरा एती पुरो आस ए, गावा- १९. २१. पे नाम. नवकार श्रीपाल छंद, पृ. ८- ९आ, वि. १८७० कार्तिक कृष्ण, २. नमस्कार महामंत्र छंद, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित ०श्रीजिनशासन; अंति: ऋद्धि वांछित लहे, गाथा - १७. २२. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. ९आ - १०अ. क. लाधो, मा.गु., पद्य, आदि: भयो भोर उठो भवि; अंति: कर वाणी इम लाधो वदे, गाथा १७. २३. पे. नाम. महावीरजिन छंद, पृ. १०अ १० आ. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदिः समरुं देवि सरस्वति; अंतिः कवियण कहैं० सरण, गाथा-९, २४. पे नाम. १४ स्वप्न स्तवन, पृ. १०आ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सोभागिण जाणि इण कारण; अंति: (-), अपूर्ण. १४०५९. स्तुतिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८८७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. १५, ले. स्थल. अजीमगंज, जैदे., (२५x११.५, १४४३०-३१). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १९अ. तिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न, अंति: देहि में सुद्धिनाणं, गाथा-४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १अ - २अ. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि पंचानंतक सुप्रपंच अंतिः सिद्धायिका त्रायिका श्लोक-४, - ३. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. २अ. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चउवीसे जिणवर प्रणमुं; अंति: इम जीवित जनम प्रमाण, गाथा-४. ४. पे. नाम. मौनएकादशी स्तुति, पृ. २आ. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रवज्या; अंतिः विस्मतरूदः क्षिती श्लोक-४. ५. पे. नाम. चडवीसजिन स्तुति, पृ. २आ-३अ. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरल कवल गवल; अंति देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४, ६. पे नाम, पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, पृ. ३अ-३आ. आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ट्रें दें कि धप; अंतिः दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति पलांकित जेसलमेरमंडन, पृ. ३आ. For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंतिः जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक ४. ८. पे नाम, पार्श्वजिन स्तुति समवसरणभावगभिंत, पृ. ३-४, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं अंतिः पमज्जन स्वस्तिनजाघः, श्लोक-४. ९. पे. नाम. वीसविहरमाण स्तुति, पृ. ४. विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय; अंति: जण मनवंछित सारै, गाथा-४. १०. पे नाम. धर्मनाथजिन स्तुति, पृ. ४-४आ. धर्मजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरति मन हरणी जाणै; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा- ४. ११. पे नाम. इग्यारस स्तुति, पृ. ४-५ अ. एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमिजिणेसर अंतिः पामैं सिद्ध सरूप, गाथा-४, १२. पे. नाम. नेमनाथजी स्तुति, पृ. ५अ. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुरअसुरबंदितपायपंकज, अंति: करी अंबिका देवियें, गाथा ४. १३. पे नाम, पार्श्व स्तुति, पृ. ५अ ५आ पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर वामा; अंति: कलत्र बहु वित्त, गाथा-४. १४. पे. नाम. नेमजिन स्तुति, पृ. ५आ-६अ. ३५ नेमिजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरनार सहिर पर नेम; अंति: आस फले सुजगीस, गाथा ४. १५. पे. नाम. आदिजिन स्तुति - अर्बुदगिरिमंडन, पृ. ६आ. प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तिअहार सुतारगण; अंतिः सुहाणि कुणे सुसया, गाथा-४, १४०६०. (+) चौवीसजिनस्तुति, चैत्यवंदन व कवित, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न., जैदे., ( २६x११, ८x२६). १. पे. नाम. तीर्थेशचुवीसीचैत्यवंदन तथा स्तवन, पृ. १-४आ. २४ जिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सर्व सुरासुरैर्वंद्य; अंति: वंश विवस्वता, श्लोक-२६. २. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. ४आ-५अ. सं., पद्य, आदि: पारीद्रककुंदं वीरं अंतिः नवरे दिव्यामरैसारदा, श्लोक १०. ३. पे नाम, औपदेशिक कवित्त, पृ. ५आ. औपदेशिक कवित, मा.गु., पद्य, आदि: चडै सो पडै पडै नहु; अंति: जी कोऊ कर हुहु करै, गाथा - १. १४०६१. स्तोत्रआदिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८६४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २०, ले. स्थल. दांगद्रा, मु. उत्तमविजय (गुरु मु. वनीतविजय); पठ. मु. अमरसी (गुरु मु. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. श्री संभवनाथप्रसादात्., ,जैदे., (२५x११.५, १६x४८-४९). प्रले. २. पे नाम, पारखीनो चैत्यवंदन प्र. १अ १आ. For Private And Personal Use Only सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: विसंभनिवूई भयवं लोक-३५. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ. Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य; अंति: पार्श्वनाथाय तायिने, श्लोक-११. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. २अ-२आ, पे.वि. क्रमश: गाथा क्रमांक-१ से १३. आ. वज्रस्वामि, सं., पद्य, आदि: स्वर्णाष्टाग्रसहस्र; अंति: भावतोर्चा नमामि, श्लोक-१३. ४. पे. नाम. जिनस्तुति प्रार्थना, पृ. २आ, पे.वि. क्रमशः गाथा क्रमांक-१४ से २४. सं., पद्य, आदि: प्रशमरसनिमग्न; अंति: धर्मं परम मंगलम्, श्लोक-११. ५. पे. नाम. समस्तजिन, पृ. २आ. साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जय श्रीजिनकल्याण; अंति: श्रेयः सुखास्पदम्, श्लोक-५. ६.पे. नाम. महावीरजिन नमस्कार, पृ. २आ. ___ आ. विजयसेनसूरि, सं., पद्य, आदि: वरवचनविलासप्रीणिता; अंति: सौख्यानि कुर्वन्, श्लोक-१. ७. पे. नाम. आदिनाथ स्तोत्र, पृ. २आ-३अ. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ जगन्नाथ; अंति: शासनं ते भवे भवे, गाथा-५. ८. पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. ३अ. मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक-८. ९. पे. नाम. शांति नमस्कारं, पृ. ३अ-३आ. शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. कुशलसागर, सं., पद्य, आदि: सकलदेवनरेश्वरवंदित; अंति: संपदः प्राप्नुवंति, श्लोक-१३. १०.पे. नाम. आदिनाथजिन स्तुति, पृ. ३आ-४अ. रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. ११. पे. नाम. चिंतामणि पार्श्व स्तोत्र, पृ. ४आ-५अ. ___पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. ५अ. सं., पद्य, आदि: सौभाग्यभाग्या; अंति: देवसदा स्वसेवं, श्लोक-१५. १३. पे. नाम. वीरजिन स्तोत्र, पृ. ५अ-५आ. महावीरजिन स्तोत्र, आ. विजयसेनसूरि, सं., पद्य, आदि: मनसि मानव मानव; अंति: लभते सुदृशां श्रियम्, गाथा-१०. १४. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पृ. ५आ-६अ. आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेन्द्र जिनेन्द; अंति: मम मंगलम्, श्लोक-९. १५. पे. नाम. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, पृ. ६अ-६आ. सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-१०. १६. पे. नाम. जिननमस्कार, पृ. ६आ. For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पंचपरमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. १७. पे. नाम. सीद्धचक्र स्तोत्र, पृ. ६आ. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: सिद्धचक्कं नमामि, गाथा-६. १८. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ६आ. आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्म; अंति: ददतां शिवं वः, श्लोक-१. १९. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पृ. ७अ-७आ. पंडित. संघविजय, सं., पद्य, आदि: वृषभलांछनलांछित; अंति: भवतु देहवतां सदैव, श्लोक-२९. २०. पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. ७आ-८आ. __ आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १६५२, आदि: ऋषभनम्रसुरासुरशेखर; अंति: जरसा रहितं पदम्, श्लोक-२९. १४०६२. पंचजिनस्तुति, स्तवनसंग्रह व नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. १२, जैदे., (२६४११.५, ११४२५-३५). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ. मा.गु., पद्य, आदि: कनक तिलक भाले हार; अंति: जयकारा होउ सेनाणधारा. गाथा-४. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ. उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: मयगल घरबारी नार; अंति: संघने सुख देवें, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १आ-२अ. मा.गु., पद्य, आदि: कुगति कुमति छोडी; अंति: देवा नेमिसेवै सुहेवा, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ. मा.गु., पद्य, आदि: जलण जल वियोगा नाम; अंति: चंदो जाणे अमृतबिंदो, गाथा-४. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ. मा.गु., पद्य, आदि: कठन करम मेली काठीआ; अंति: टाले संघना कोडि पाले, गाथा-४. ६. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-आदिजिन, पृ. २आ-३अ. ___ आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजा; अंति: मागुं मनने उल्लासे, गाथा-५. ७. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ. आनंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: देउइहपुरी दीपइं; अंति: समरथ तुहिं ज देवा, गाथा-५. ८. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ. ___ आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उज्जलगिरी अमहे जाइ; अंति: नंदसूरि सेवक उद्धरुए, गाथा-५. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभन, पृ. ४अ. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थमंडन, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मूरत त्रेवीसमो; अंति: सेवक उद्धरु ए, गाथा-५. For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०. पे. नाम. नेमिजिन नमस्कार, पृ. ४अ-४आ. मु. लक्ष्मण, मा.गु., पद्य, आदि: रिसह जिनवर० अवर; अंति: भणइ सफल करो अवतार, गाथा-१. ११. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-सांचोरमंडन, पृ. ४आ. आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: साचोरिपुरवर जगत्र; अंति: नंदसूरि शिव सुखदायक, गाथा-५. १२. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ. मु. विवेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिन भावे भवीजन; अंति: विजय० सुगुण सलाम, गाथा-८. १४०६३. स्तवनचौवीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४१, फाल्गुन शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३९+१(१७)=४०, ले.स्थल. सूरतबिंदर, प्रले. पं. नायकविजय (गुरु पं. जयविजय); पठ. मु. रूपचंद (गुरु पं. नायकविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रतिलेखक द्वारा टबार्थ स्तवन- १६ गाथा- ३ तक लिखा है. श्री सूर्यमंडण पार्श्वजिन प्रसादात, श्रीशान्तिनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२५.५४११.५, ४४३०). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: आनंदघन प्रभु जागरे, स्तवन-२४. स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: चिदानंदमय जिनवरु; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १४०६४. स्तवनचौवीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१६, वैशाख कृष्ण, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७, ले.स्थल. द्रापुरानगर, प्रले. पं. सदाविजय; पठ. श्राव. जेठा सा, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४११.५, ४४३०-३१). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: आनंदघन प्रभु जागरे, स्तवन-२४. स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: आनंदघनस्यास्या गीत; अंति: ते करी मोक्षपद पामे. १४०६५. (+) आर्यवसुधारा स्तुति व ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. पं. क्षीरसागर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४८). १. पे. नाम. वसुधारा, पृ. १अ-५अ. वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति. २. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. ५आ-६आ. आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: परमानंद नदितः, श्लोक-६३. १४०६६. (+) वीतरागएकांतनिरासस्तव सह अवचूरि व लोकतत्त्व निर्णय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत., जैदे., (२६४११, १७-१८४५१-५२). १. पे. नाम. वीतराग एकांत निरास स्तव सह विवरण, पृ. १अ-१०अ. वीतराग स्तोत्र-हिस्सा अष्टम प्रकाश, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: सत्वस्यैकांतनित्यत्व; अंति: वस्तुवस्तु सत्, श्लोक-१२. वीतराग स्तोत्र-हिस्सा अष्टम प्रकाश-टीका, सं., गद्य, आदि: ननु सिद्धं स्वयं; अंति: नेकांतो नानुमन्यते. For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २. पे. नाम. लोकतत्त्वनिर्णय, पृ. १०अ-१०आ. आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यैकमनेक; अंति: (-), श्लोक-२२, प्रतिपूर्ण. १४०६७. पंचकल्याणक स्तवन व सामायक के ३२ दोष, संपूर्ण, वि. १७६२-१८००, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ११४२८). १.पे. नाम. जिनकल्याणक स्तवन, पृ. ५अ-५आ. २४ जिनकल्याणक स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: निज गुरु पय प्रणमी; अंति: वृद्धि सुख थाय रे, ढाल-६. २. पे. नाम. सामायिक ३२ दोष, पृ. ५आ. मा.गु., गद्य, आदि: पालखी न बेसे १ अथिरा; अंति: कारजेहने सामायक होवे. १४०६८. गहुंली व भास संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. १५, जैदे., (२२.५४१०.५, ९४२५-२८). १. पे. नाम. केसीगोयम गहुंली, पृ. १आ-२अ. मा.गु., पद्य, आदि: सावथी उद्यानमा रे; अंति: गुहली रंगरसाल रे, गाथा-७. २. पे. नाम. सौधर्मगणधर भास, पृ. २अ-२आ. ___ मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयरी उद्यान रे; अंति: घुअली गीत भणेरी रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. सौधर्मगणधर गहुंली, पृ. २आ-३आ. मु. सोहव, मा.गु., पद्य, आदि: चेलणा लावे गहंली; अंति: श्रीजिनशासन रीति, गाथा-७. ४. पे. नाम. सुधर्मागणधर भास, पृ. ३आ-४अ. मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञानादिक गुणखाणि; अंति: गावे जिनशासन धणीजी, गाथा-९. ५.पे. नाम. गौतमस्वामी गहुंली, पृ. ४अ-४आ. मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही रलियामणि जिह; अंति: भावना वजडावो मंगलतुर, गाथा-५. ६. पे. नाम. गौतमस्वामी गहुंली, पृ. ५अ-५आ. मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चरण करण गुण आगरो रे; अंति: रे कीजे कोड जतन, गाथा-६. ७. पे. नाम. सौधर्म भास, पृ. ५आ-६अ. सौधर्मगणधर भास, ग. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चउनाणी चंपावने संयम; अंति: अतिसय च्यार निधानरे, गाथा-७. ८. पे. नाम. जंबूस्वामी भास, पृ. ६अ-६आ. मा.गु., पद्य, आदि: सहीयर म्हारी अरिहंत; अंति: सोहावो केवलश्रीफले, गाथा-५. ९. पे. नाम. गुरुगुण भास-गहुँली, पृ. ७अ. मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरुं हे सदगुरुं; अंति: सवियरो गावे भास, गाथा-५. १०. पे. नाम. गुरुगुण गहुली, पृ. ७आ-८अ. मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे शुभ परिणामें; अंति: उत्तमने मंगलमालो रे, गाथा-७. For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११. पे. नाम. गौतमस्वामी भास, पृ. ८अ-८आ. मा.गु., पद्य, आदि: मुनीवर हे कें मुनीवर; अंति: मानथी पामे लाभ अपार, गाथा-७. १२. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. ८आ-९आ. सुधर्मास्वामी गहली, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयरी उद्यानमा; अंति:चीत चाहे अमृतसुख सार, गाथा-७. १३. पे. नाम. गौतमस्वामी गहंली, पृ. ९आ-१०अ. मा.गु., पद्य, आदि: गोतम गणधर मुख्य; अंति: लहीइ सुख शास्वता, गाथा-५. १४. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. १०अ-११आ. मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरुं मुख चंदचकोर; अंति: सदा सद्बुद्धी रे, गाथा-१३. १५. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. ११आ-१२अ. मा.गु., पद्य, आदि: आतमरुची गुणधारणी रे; अंति: सुगुण सदागम मीत रे, गाथा-७. १४०६९. गणहरसंथवणसयं व ईर्यापथकी कुलक, संपूर्ण, वि. १६४४, भाद्रपद कृष्ण, ४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १५४५०). १. पे. नाम. गणहर संथवण सयं, पृ. ५अ. गणधरसार्धशतक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुणमणिरोहणगिरिणो; अंति: भवरवि संतावमवहरउ, श्लोक-१५०. २. पे. नाम. ईर्यापथकी कुलक, पृ. ५अ-५आ. इरियावही कुलक, प्रा., पद्य, आदि: चउदस पय अडचत्ता तिगह; अंति: पमाणमेयं सुए भणियं, गाथा-१०. १४०७०. (+) इग्यारगणधर देववंदन स्तुति स्तव, संपूर्ण, वि. १७०५, कार्तिक कृष्ण, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. पं. प्रीतिविजय (गुरु पंडित. दर्शनविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४३९). ११ गणधर देववंदन, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर गोयम गणहर; अंति: ते लहइ सुख संपया, स्तवन-११. १४०७१. इग्यारगणधर स्तव, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(२)=७, जैदे., (२६४११.५, ११४२८-३७). ११ गणधर देववंदन, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर गोयम गणहर; अंति: ते लहइ सुख संपया, स्तवन-११, पूर्ण. १४०७२. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., रचना प्रशस्ति का अंतिम भाग नही है., जैदे., (२४४११, १०४३०). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: प्रणमुं नित्य; अंति: (-), पूर्ण. १४०७३. गोडिपार्श्वस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. सोहीग्राम, प्रले. पं. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१७४१०, १६-१८x२७-२८). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: प्रणमुं नित्य; अंति: इम नेमविजय जयकार, ढाल-१५. १४०७४. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र सह स्वोपज्ञवृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ.७, पृ.वि. मूल गाथा-१० तक लिखा है., ले.स्थल. ईटाषोही, जैदे., (२६४११, १-३४२९-४५). For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३४ अतिशय स्तवन, सं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीसुखदान्; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३४ अतिशय स्तवन-स्वोपज्ञ वृत्ति, सं., गद्य, आदि: मनोज्ञमार्हतं ज्योति; अंति: श्लोकद्वयार्थः. १४०७५. (+) स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १७७३, फाल्गुन कृष्ण, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. देवकपत्तन, प्रले. पं. विद्याकुसल गणि (गुरु मु. देवकुशल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत., जैदे., (२६४११.५, १०४३२-३६). स्तवनचौवीसी, मु. देवकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती मात पसाउले रे; अंति: देवकुसल रंगे नमे रे, स्तवन-२४. १४०७६. चौदगुणस्थानक स्वाध्याय व ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, कुल पे. २, ले.स्थल. लौद्राणी, प्रले. पं. उत्तमविजय गणि; पठ. मु. अमृतविजय (गुरु मु. कीर्तिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १४४४४-५२). १. पे. नाम. १४ गुणठाणा स्तवन, पृ. १आ-६अ. १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. मणिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वरपुर धणी; अंति: मणि० जिनमतने अनुसार, ढाल-१६. २.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. ६अ-७अ. ग. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरी श्रुतदेवी सदा; अंति: भक्तिविजय जयंकरू, गाथा-१८. १४०७७. स्तवनचौवीसी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १०४३५-४३). १. पे. नाम. जिनस्तवनचौवीशी-१४ बोल, पृ. १आ-१०आ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेव नितु वंदिये; अंति: निज भजनमांदास राखो, स्तवन-२४. २. पे. नाम. जिनस्तवनचौवीशी-१४ बोल, पृ. १०आ-२२आ. स्तवनचौवीसी, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ रीषभ जिणंद निरखी; अंति: प्रतिदिन सयल जगीस, स्तवन-२४. १४०७८. स्तवनचोवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२४.५४११, १५-१६४३८-३९). स्तवनचौवीसी, मु. मेघविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३९, आदि: अलबेलो आदिसर सेवीइं; अंति: कहि० मंगलीक कोडी रे, स्तवन-२४. १४०७९. स्तवनचोवीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२५.५४११, १३-१५४३७). स्तवनचौवीसी, मु. मोहनरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभ जिणेसर साहिब; अंति: मोहन० दिल खोलो रे, स्तवन-२४. १४०८०. स्तवनचौवीसी, पूर्ण, वि. १७२५, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १६-१(१)=१५, पू.वि. स्तवन-१ गाथा-१ से ३ तक नही हैं., जैदे., (२५.५४११, ९४२९-३०). जिनस्तवनचौवीशी-१४ बोल, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: निज भजनमांदास राखो, स्तवन-२४, पूर्ण. १४०८१. स्तवनचोवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-२(२ से ३)=७, पृ.वि. स्तवन-२ गाथा-४ अपूर्ण से स्तवन-७ तक नही हैं., प्र.ले.श्लो. (५१०) यादृसं पुस्तकं दृष्टवा, जैदे., (२५४१०.५, १२४३६-४१). For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्तवनचौवीसी, म. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंद; अंति: मानविजय नितु ध्यावे, स्तवन-२४, अपूर्ण. १४०८२. स्तवन व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८, कुल पे. २७, जैदे., (२५.५४११, ९-१०४३०-३२). १. पे. नाम. चतुर्विंशतितीर्थंकर गीत, पृ. १आ-१२अ. स्तवनचौवीसी, आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कुलकर नाभिराया केरु; अंति: वीरचंद मुनि जयकारी, स्तवन-२४, ग्रं. १८४. २. पे. नाम. आदिजिन ज्ञानकल्याणक स्तवन, पृ. १२अ-१३आ. सा. विमलश्री, मा.गु., पद्य, आदि: वंदिवि आदिजिणिदुए; अंति: विमलश्रीआाणी, गाथा-८. ३. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. १३-१४आ. आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुणिसुणि कंत कामिनी; अंति: नेमिजिन सुप्रसन्न, गाथा-४. ४. पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. १४आ-१५अ. ___ आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अपरम अकल तूं अलख; अंति: वीरचंद० जीवन जगराया, गाथा-४. ५. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. १५अ-१५आ. आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ओही मेरा सालिम सबला; अंति: जिनवर जीवनांरे, गाथा-४. ६. पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. १५आ. आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल कारण त्रिभुवन; अंति: मुनि वीरचंद्र चाराय, गाथा-४. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-अजाहरा, पृ. १५आ-१६आ. आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुणिसुणि सजनी सहीअ; अंति: जयो पास अझारो रे, गाथा-७. ८. पे. नाम. आध्यात्मिक गीत, पृ. १६आ. आ. वीरचंदसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: चंगी सूरंगी नारी न; अंति: नजीक तेरे तू रहाई, गाथा-३. ९. पे. नाम. अतिशय वीनती, पृ. १६आ-१८आ. महावीरजिन स्तवन-३४ अतिशय विनतीगीत, आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणविवि वीरजिणींद; अंति: वीरचंद जिन उद्धरुंए, गाथा-२४. १०. पे. नाम. महावीरजिन गीत, पृ. १८आ-१९अ. __ आ. वीरचंदसूरि, सं., पद्य, आदि: सद्गुणसदनं हितमितगदन; अंति: आद्यमनाद्यममंदम्, श्लोक-४. ११. पे. नाम. नेमराजिमतीगीत, पृ. १९अ-१९आ. आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी तूं विण को; अंति: वीरचंद्र सुखकारी, गाथा-३. १२. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १९आ-२०अ. आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सोवन घडीकुं माणिक; अंति: माडी मरुदेवी मल्हावि, गाथा-८. १३. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. २०अ-२०आ. आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आज भवनुं भमण भय टलयु; अंति: वीरचंद० जिन मिलयु रे, गाथा-६. For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १४. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. २०आ. आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अथिर जोवनधनघरपरिवारि; अंति: वीरचंदसूरि० सुखी होई, गाथा-४. १५. पे. नाम. जीराउलापार्श्वजिन स्तवन, पृ. २०आ-२१अ. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चमकती चतुर चंद्राननी; अंति: सूरि० पास पाय पूजीइ, गाथा-५. १६. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. २१अ-२२आ. आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: छ दरसण छन्नविपाखंड; अंति: भणि० जिम तरो भव पार, गाथा-१५. १७. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २२आ-२३आ. आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर पणि चंग चारित्र; अंति: सूरि० जयो नेमिजिनेस, गाथा-९. १८. पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. २३आ-२४अ. आ. वीरचंदसूरि, म., पद्य, आदि: आई काजी जिन बाजी वन; अंति: तूम सरीखा सुंदरा, गाथा-४. १९. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. २४अ-२४आ. आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तोरी आंखडी अतीअणीआली; अंति: जिन जयु गिरनारि सीधो, गाथा-४. २०. पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. २४आ. आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आदि अनादि जुगादि; अंति: सेवित० जय जगदाधारा, गाथा-३. २१. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. २४आ-२५अ. आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि समरथ भगवंत भवीक; अंति: किहिं किह तूं, गाथा-३. २२. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. २५अ-२५आ. आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गोपति कुंभ कुलें; अंति: भणि श्रीमल्लिकुमार, गाथा-७. २३. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. २५आ-२६अ. ___आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दोकर जोडीनि जंपती; अंति: कंत कृपा करुं माहरी, गाथा-४. २४. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. २६अ-२६आ. आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आपि आप जस मुझु तमो; अंति: वीरचंद ऊजल जस करु, गाथा-४. २५. पे. नाम. पट्टावली दिगंबर, पृ. २६आ-२७आ. ___मु. देपाल, मा.गु., पद्य, आदि: आदि दिगंबर दरण आदि; अंति: जयु भणति कवि देपाल, गाथा-२. २६. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. २७आ. ___आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोटि ममेर गंभीर गुणि; अंति: वदन० तूम जयु श्रीपास, गाथा-२. २७. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. २८अ-३८अ. आ. रत्नभूषणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनमनसि जगज पंचानन; अंति: भूषण नामि शीसन रे, स्तवन-२४. १४०८३. स्तवनचोवीसी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३९-४१). For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४ www.kobatirth.org जिनस्तवनचीवीशी, आ. लब्धिसागरसूरि, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: नाभिराय कुल कुवलय; अंति: गुणागंभीरिमसागरो, स्तवन- २४. १४०८४. स्तवनचोवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., ( २४x१०.५, १२X३४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जिनस्तवनचौवीशी, क. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल करण विमल; अंति: विजय कहइ० तस द संग, स्तवन- २४. १४०८५. स्तवनचोवीसी, संपूर्ण, वि. १७९५, आश्विन अधिकमास शुक्ल, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. पं. ऋद्धिविजय; पठ श्रावि. अजबोबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x१०.५, ९४३४-३६). जिनस्तवनचौवीशी, मु. केसरकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: समरी अमरी सारदा सारद; अंति: देज्यो भवीभवी देव, स्तवन- २४. १४०८६. (+) स्तवनचोवीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. पं. सौभाग्यविजय गणि (गुरु पंडित. शुभविजय); पठ. श्रावि. कल्याणीबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत., जैदे., (२५X११, ११४३३). स्तवनचीवीसी, पंडित, शुभविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: ईक्षुरस ल्यें हो; अंतिः शुभविजय सुख पाया रे, स्तवन- २४. १४०८७. चौवीसजिनकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., ( २४.५X११, ११-१२३४-३८). २४ जिनकल्याणक स्तवन, मु. समरसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि; नमिव्य निय गुरु ०; अंतिः समरसिंघइ सदह्या, गाथा - ६५. १४०८८. . (+) स्तवनचोवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७- २ (१ से २ ) = ५, पू.वि. स्तवन- ९ गाथा - १ तक नही हैं., प्र. मु. बुद्धिविजय (गुरु ग. तत्त्वविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, जैदे., (२५x१०.५, १५४३९-४१). स्तवनचौवीसी, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: (-); अंति: भणइ एणी परइं मुदा, स्तवन- २४, अपूर्ण. १४०८९. छआरानुं स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६९ श्रावण शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ५, प्रले, पं. माणिक्यविजय गणि; लिख, श्राव, डुंगर सा, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५X११, १०x२९). महावीरजिन स्तवन- छट्टाआरानुं, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदिः सकल जिणंद पाय नमि; अंति: दास ० संघ मंगल करो, ढाल -५, गाथा - ६६. २, १४०९०. चौदगुणठाण सज्झाय व ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४८, फाल्गुन शुक्ल, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ले. स्थल, सणवाग्राम, प्रले. पं. भाग्यविजय (गुरु मु. वनीतविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., ( २६११.५, १७x४४). For Private And Personal Use Only १. पे. नाम. १४ गुणठाणा स्तवन, पृ. १अ-४आ. १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. मणिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वरपुर धणी; अंति: मणि० जिनमतने अनुसार, ढाल - १६. २. पे नाम ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. ४-५ आ. ग. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरी श्रुतदेवी सदा; अंति: भक्तिविजय जयंकरू, गाथा - १८. Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १४०९१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १६३१-१७००, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ६, जैदे., (२६४११.५, १५४५०-५३). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ. २४ दंडक स्तवन, मु. श्रीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६३१, आदि: पणमि आदिजिनेसर राय; अंति: ऋषभ महिमा तुम्ह तणइ, गाथा-४६. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ-४अ. २४ दंडक स्तवन, मु. श्रीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६३१, आदि: वीरजिन प्रणमी पाय; अंति: वीर महिमा तुम्ह तणइ, गाथा-३७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ-५आ. २४ दंडक स्तवन, म. श्रीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६३१, आदि: पासनाह जिण पाय; अंति: पास महिमा तुम्ह तणइ, गाथा-४२. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ५आ-६आ. २४ दंडक स्तवन, मु. श्रीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६३१, आदि: सांतिनाथ जिन प्रणमीय; अंति: सोलइ० श्रीविजय भणइ, गाथा-३७. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन-शांतिजिन स्तवन, पृ. ६आ-८आ. पार्श्व-शांतिजिन-१४ गुणस्थानक स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमिय संति जिणिंद; अंति: देओ तुम्ह पाय सेव, गाथा-६९. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन-शांतिजिन स्तवन, पृ. ८आ-१०आ. ६२ मार्गणाबोल स्तवन, म. श्रीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आठ उरद्धलोकनी मांडला; अंति: बिहं जिनवर तणइ, गाथा-६४. १४०९२. दंडकस्तवन, पुण्यफलकुलक, शत्रुजयचैत्रीपरवाडि व शत्रुजयकल्प, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११, १३४३३-३६). १. पे. नाम. शांतिजिनेसरवीनती दंडक स्तवन, पृ. १अ-३अ. शांतिजिन स्तवन-२४ दंडक विचार गर्भित, वा. चारुचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सांति जिणेसर सेवीयसा; अंति: वाचक गणि चारुचंद, गाथा-३५. २. पे. नाम. पुण्यफल कुलक, पृ. ३आ-४अ. प्रा., पद्य, आदि: छत्तीसदिणसहस्सा वासस; अंति: म्मि धम्मम्मि उज्जमह, गाथा-१६. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, पृ. ४अ-५अ. प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ; अंति: लहइ सेत्तुंजजत्तफलं, गाथा-२४. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ कल्प, पृ. ५अ-६आ, पूर्ण, पू.वि. मात्र अन्तिम पद नहीं है. आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सुअ धम्मकित्तिअंतं; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १४०९३. दीपावली स्तवन, सिद्धचक्र चैत्यवंदन व पद, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ४, ले.स्थल.डीसानगर, प्रले. मु. तेजविजय (गुरु पंन्या. हेमविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२१४९.५, १३४३४-३६). For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम गौतमस्वामी दीपालिका रास, पृ. १आ ५अ वि. १८७४ श्रावण अधिकमास कृष्ण, ६, मंगलवार, ले. स्थल, डीसा, कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: इंद्रभूति गौतम भणई; अंतिः कहें हीरगुरू विचारी, ढाल १३. २. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. ५अ, वि. १८७४, भाद्रपद कृष्ण, १३, ले. स्थल. डीसा. आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., पद्य, आदि : उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंतिः सिद्धचकं नमामि गाथा - ६. 9 ३. पे, नाम, सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. ५आ-६अ. मु. साधविजय - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता; अंति: तणो सीष्य कहे करजोडि, गाथा - ५. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६अ. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: मोटि वहुई मननुं रे; अंति: आनंदघन पद लीधु रे, गाथा - ५. १४०९४. मोहराजा धर्मराजा स्तवन, संपूर्ण, वि. १८०१, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. साणंद, जैदे., ( २४.५X१०.५, १०X३४-३५). धर्मजिन आत्मज्ञानप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१६, आदि: चिदानंद चित चिंतवु; अंतिः तणो विजयविनय रसपूरि गाथा- १३८. १४०९५. निश्चयव्यावहांरशांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रावण शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ५, प्रले. पं. माणक्यविजय; लिख श्राव. डुंगर सा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे, (२५x११, ११५२८). (+) शांतिजिन स्तवन- निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांति जिस सर; अंति: वाचक जसविजय सिरि लही, ढाल - ६. १४०९६. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., ( २५.५X११.५, ११x२८-३१). नेमिजिन स्तवन, मु. डुंगर, मा.गु., पद्य, आदि: सारदा सामिणि मनि; अंति: भणइ डुंगर मंगल करण, गाथा-७५. १४०९७. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. अहमदाबाद, जैदे. (२४.५४१०.५, १२४३२). नेमिजिन नवरसो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: सरसति सामणि पाय नमी; अंति: सु नेमिजिणेसरओ, गाथा- ७१. आणंदविजय (गुरु १४०९८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ३, ले. स्थल, सोहीग्राम, प्रले. मु. मु. लब्धिविजय, तपागच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत., जैदे., ( २४.५x११, ११-१७×३९-४९). १. पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. १अ ३अ. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देव सरसति पढम पणमेवि; अंति: लब्धि लीला विशेसिं, गाथा ६४. For Private And Personal Use Only २. पे. नाम. नाणपंचमी स्तवन, पृ. ३अ - ६अ. सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिणवर आदिजिणवर; अंति: लबधि सिरनामी रे, गाथा - ७१. ३. पे. नाम. पंचकल्याणकाभिधजिन स्तवन, पृ. ६अ-८अ. Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ पंचकल्याणक स्तवन, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसइ जिणचर नमी; अंति: पभणइ प्रबल जगिजगीसो, गाथा-३६. . १४०९९. वीरजिन स्तवन व नेमजिनबारमासो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, १०४३७). १. पे. नाम. सप्तवींसतिभवकघनपुर्वक श्रीमहावीरजीन स्तवन, पृ. १अ-५आ. महावीरजिन २७ भव स्तवन, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमलकमलदललोयणा दिसे; अंति: विजय शिष्य जयकरो, ढाल-६, गाथा-८३. २. पे. नाम. नेमिजिन बारमासो, पृ. ५आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-७ अपूर्ण तक हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सखी आव्यो रे मास; अंति: (-), अपूर्ण. १४१००. स्तवनचोवीसी, संपूर्ण, वि. १७७९, वैशाख शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. प्रतिलेखक नाम अवाच्य है., जैदे., (२५.५४११, १३४३५). स्तवनचौवीसी, ग. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर अरज अमारीजी; अंति: विनीतविजय गुण गाय, स्तवन-२४. १४१०१. वीरजिनस्तवन व मुहपतिपडिलेहनस्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७३२, आश्विन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १३४३८). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-१२४ अतिचारगर्भित, पृ. १अ-८अ. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सरसती भगवती शुभमती; अंति: विनीतविजय मंगल करू, गाथा-१२५. २. पे. नाम. मुहपत्तीपडिलेहनविचार सज्झाय, पृ. ८अ-८आ. मुहपत्तिपडिलेहण सज्झाय, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासनपति प्रभुवीरनई; अंति: विनीतविजय गुण गाय, गाथा-१५. १४१०२. वीरजिनसत्तावीसभव स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. मालतिनगर, प्रले. पं. रंगसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१२, ११४३१-३४). महावीरजिन २७ भव स्तवन, पंन्या. ज्ञानकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: पूरण प्रेमे प्रणमीइ; अंति: वीर जिनवर जय करो, ढाल-११, गाथा-८६. १४१०३. (+) वीरजिनस्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ५४४०). महावीरजिन स्तवन-२४ दंडक २६ द्वारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर स्वामी वीरजिन; अंति: मई लहीइं अविचल ठाण, गाथा-९१, ग्रं. १६२. महावीरजिन स्तवन-२४ दंडक २६ द्वारगर्भित-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीपन्नवणासूत्र, (२)अत्यंत सुखना करणहार; अंति: जेह ठाम थानक छइ, ग्रं. ५१३. For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४१०४. (+) वीरजिन स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८०६, भाद्रपद शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. घनौघबिंदर, प्र.वि. प्रतिलेखक ने अंतिम गाथा का बालावबोध नहीं लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १-६४३७-४२). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, __ आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: आणा शिर वहस्ये जी, ढाल-७. महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जत्थयजं जाणिज्जा; __ अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. १४१०५. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८१०, फाल्गुन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पं. कुशलविजय; पठ. सा. दला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३६). महावीरजिन स्तवन-सत्यावीसभवगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति दिओ मति; अंति: कहे धन मुझ एह गुरू, गाथा-८३. १४१०६. मल्लिजिन स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८४४, आषाढ़ कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पं. नायकविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११.५, २४३७). मल्लिजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मल्लिनाथ जगनाथ चरण; अंति: अक्षयपद आदरो रे, गाथा-७. मल्लिजिन स्तवन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हिवें श्रीमल्लिनाथ; अंति: आधार छे एहीज जीव छे. १४१०७. पार्श्वजिनमहादंडकस्तुति सह व्याख्या व पार्श्वजिनमहादंडकस्तुति, संपूर्ण, वि. १७६२, वैशाख शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. सांगानेर, जैदे., (२५.५४११, १८४५३-५५). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति सह व्याख्या, पृ. १अ-४अ. पार्श्वजिन स्तुति-२४ महादंडक, आ. भुवनहितसूरि, सं., पद्य, आदि: जिनपति विततिस्तनोतु; अंति: सदा सारदा शारदा, श्लोक-४. पार्श्वजिन स्तुति-२४ महादंडक-व्याख्या, वा. पद्मराज, सं., गद्य, वि. १६६६, आदि: (१)प्रणय विनयपूत स्थान, (२)जिनपतीनां ऋषभादि; अंति: (१)दंडक स्तुतिः, (२)तच्छोध्यं सहृदयैः. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-जेसलमेरमंडन, पृ. ४अ-६अ. मु. सहजकीर्ति, सं., गद्य, आदि: विदित निखिलभाव; अंति: श्रेयसे स्यात्. १४१०८. प्रतिमास्थापनवीरजिनस्तवन सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८३२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(१)=१७, जैदे., (२५.५४१२, ६-२०४३४-३८). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदिः (-); अंति: आणा सिर वहेस्येजी, पूर्ण. महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: नियुक्तिमध्ये छइं, पूर्ण. १४१०९. पुन्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४९, माघ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. मेडतानगर, प्रले. मु. गम्भीरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११, १४४३२). For Private And Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ४९ पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, गाथा-१०५. १४११०. वीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १६९६, श्रेष्ठ, पृ.६, प्रले. पं. कीका; पठ. मु. मोहन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ७४३४-३५). महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरानु, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंदह पयनमी; अंति: सयल संघ कल्याण्ण करो, ढाल-५, गाथा-६५. १४१११. वीरजिनसत्तावीसभववर्णन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, जैदे., (२३.५४१०.५, ९४२७-२८). महावीरजिन २७ भव स्तवन, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमलकमलदललोयणा दिसे; अंति: विजय शिष्य जयकरो, ढाल-६, गाथा-८८. १४११२. वीरजिन व शाश्वतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १२-१७४३१-४०). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, पृ. १अ-७अ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: गरुआणा शिर बहेशेजी. २. पे. नाम. शाश्वतजिन स्तवन, पृ. ७अ-८आ. मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभाननजिन; अंति: हियडे अधिक आणी रंग ए, ढाल-७, गाथा-३१. १४११३. वीरजिन प्रतिमास्थापन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२४.५४११, १३४३७-३८). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: आणा सिर वहेस्येजी, ढाल-६. १४११४. (+) संजमश्रेणीगर्भितवीरजिनस्तवन सह स्वोपज्ञटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. लींबडी, प्रले. ऋ. आणंदजी; पठ. श्रावि. मुलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने अंतिम गाथा का टबार्थ नही लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ४४४०-४२). महावीरजिन स्तवन-संयमश्रेणिगर्भित, पंन्या. उत्तमविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: केवलज्ञान दिवाकरुजी; अंति: उत्तमविजय मल्हायो रे, ढाल-३. महावीरजिन स्तवन-संयमश्रेणिगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वर्द्धमान जिनं नत्वा, (२)समस्त ___ ज्ञानावरणीय; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १४११५. वीरजिननिर्वाण स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६.५४११.५, १४४४५-४७). महावीरजिन निर्वाणमहिमा स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रमणसंघ तिलकोपम; __ अंति: श्रीगुणहर्ष वधामणे, ढाल-१०, गाथा-१२५. १४११६. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८२९, चैत्र कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. सूत्राध्ययन लेशार्थ प्रकाशक स्वाध्याय है।, जैदे., (२६४११.५, १३४३४-३७). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरूपदपंकज नमीजी; अंति: ए गायो सकल जगीसे रे, सज्झाय-११. १४११७. दशवैकालिकदशाध्ययन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७८८, माघ शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४११.५, १७४३३). For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरूपदपंकज नमीजी; अंतिः ए गायो सकल जगीसे रे, सज्झाय - ११. १४११८. बारभावना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे. (२४.५x१०.५, १३-१४X३१-३६). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल १३, गाथा - १२९. १४११९. अवंतिसुकमाल, नंदमणिआर व नववाडि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, जैये.. (२५.५४१०.५, १३४४४). १. पे. नाम. अवंतिसुकमाल सज्झाय, पृ. १अ - २आ. मु. सोमकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर पाए नमी; अंति: शिवपुरिं सुख लहै, गाथा - २१. २. पे. नाम. नंदमणिआर सज्झाय, पृ. २आ-३अ. मु. लाभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदन देव गुरुनि करु; अंतिः धर्म करो एकी चितसुं गाथा - २१. ३. पे नाम, नववाडि सज्झाय, पृ. ३अ ५आ. क. धर्महंस, मा.गु., पद्य, आदि आदि आदि जिणेसर नमु; अंतिः अरिहंतजी एम बोलइ डाल ९, गाथा ५६. १४१२०. विजय आनंदसूरिनिर्वाण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. मु. मानविजय, जैदे., (२६X११.५, १३X३६). १. पे. नाम. विजयानंदसूरि निर्वाण सज्झाय, पृ. १अ - ३आ. मु. भावविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७११, आदि: श्रीसंखेसरपुर धणीजी; अंति: विजय भणइ० दिनकर चंद, गाथा-४२. २. पे. नाम. विजयानंदसूरि निर्वाण सज्झाय, पृ. ३आ-५आ. मु. भाणविजय, मा.गु., पद्म, आदि: सरसति सामिणी मनि; अंतिः भाणविजय गुण गाय रे, गाथा-४३. १४१२१. योगदृष्टि सझाय सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८०८, चैत्र कृष्ण, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३८, ले. स्थल. तरणीपुर, प्र. वि. प्रथमादर्श प्रति पर से लिखी जाने की संभावना है., द्विपाठ, जैवे. (२५.५x११, ३x२८). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक जराने वयणेजी, दाल-८, गाथा ७६, ग्रं. ८४. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय- बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि ऐंद्रश्रेणिनतं; अंतिः भूरि सुखावबोधार्थः, १४१२२. पंचमहाव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८६७, श्रावण शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ५, प्रले. पं. माणिक्यविजय गणि; लिख. श्राव. डुंगर सा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ९४२९). पंचमहाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पुरवे रे; अंति: कहे० धन अवतार रे, ढाल - ६. १४१२३. विजयसेठविजयासेठानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३२, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले श्राव, गणेशलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५x११, ७X२७). For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, ऋ. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: प्रथम नमु श्रीअरिहंत; अति: रामपुरे गुणगाया, गाथा-३१. १४१२४. (+) विजयरत्नसूरिनिर्वाण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७७९, श्रावण कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. सूरति, प्रले. मु. रामविजय (गुरु उपा. शुभविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५.५४११, ११४३८-४१). विजयरत्नसूरिनिर्वाण सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सुप्रसन्न आल्हादकर; अंति: गायो गुरु जयजय करो, गाथा-७३. १४१२५. सिद्धाचल स्तवन व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८१२, आश्विन कृष्ण, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १०-११४३१-३४). १.पे. नाम. सिद्धाचल महिमावर्णन स्तवन, पृ. १०अ-१०आ. शत्रुजयतीर्थ महिमावर्णन स्तवन, मु. मतिरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिने पाय; अंति: भाखे सकल संघ आणंदए. २. पे. नाम. जिनस्तुत्यादि संग्रह , पृ. १०आ. सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), श्लोक-१. १४१२६. (+) साधारणजिनस्तव सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १-२४३४-३५). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभो यं विधिन; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९. साधारणजिन स्तव-अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: हे प्रभो सत्वमया; अंति: द्विचत्वारिंशताधिकम्, ग्रं. १४२. १४१२७. प्रातिहार्य, नेमिजिन, सर्वज्ञस्तवन व पाक्षिकनमस्कार, संपूर्ण, वि. १४८९, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, ले.स्थल. पत्तननगर, जैदे., (२५.५४११, ११४४९). १. पे. नाम. प्रातिहार्य स्तवः, पृ. १अ. साधारणजिन स्तुति-अष्टप्रातिहार्यगर्भित, सं., पद्य, आदि: प्रातिहार्यकलितासम; अंति: मे निजपदाव्ययभक्तिम्, श्लोक-६. २. पे. नाम. नमस्कार, पृ. १अ-२अ. सकलार्हत स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: सकलाहत्प्रतिष्ठान; अंति: वंदे श्रीज्ञातनंदनम्, श्लोक-२७. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ-४अ. आ. विजयसिंहसूरि, सं., पद्य, आदि: नेमिः समाहितधियां; अंति: सोस्तु नेमिः शिवाय, श्लोक-२४. ४. पे. नाम. सर्वज्ञ स्तव, पृ. ४अ-५आ. एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., पद्य, ई. ११वी, आदि: एकीभावं गत इव मया; अंति: कल्याण कल्पद्रुमः, श्लोक-२५. For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४१२८. सम्यक्त्वस्तव सह टबार्थ व गुणठाणा जीवभेद, संपूर्ण, वि. १७९७, कार्तिक शुक्ल, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. लींबडी, जैदे., (२४.५४११.५, ५४३७-३९). १. पे. नाम. सम्यक्त्वपच्चीसी सह टबार्थ, पृ. १आ-६आ. सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा-३२. सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जह क० जिम ऊपसमिक; अंति: सम्यक्तनी प्राप्तिः. २. पे. नाम. १४ गुणठाणा जीवभेद, पृ. ६आ मा.गु., गद्य, आदि: पहिले गुणठाणे; अंति: चौदमां सुद्धि जाणवां. १४१२९. छंद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ५, जैदे., (२५४११.५, १३४३८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ-१आ. पार्श्वजिन स्तवन, शंकर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता सेवकां; अंति: जोड० पार्श्वदेवाधिवर, गाथा-७. २.पे. नाम. गिरनार छंद, पृ. १आ-२आ. मु. जिन, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठमे सोहामणो तिरथ; अंति: जिन वीनवे० गीरी धणी, गाथा-१४. ३. पे. नाम. दसपच्छक्खाण छंद, पृ. २आ. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दशमे प्रे उठी पचखाण; अंति: पामोने हवे निरवाण, गाथा-८. ४. पे. नाम. साधुवंदन छंद, पृ. २आ-४अ. साधुवंदना, ग. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: वीर जिणेसर प्रणमुं; अंति: विजय प्रणमुनीसदीस, गाथा-२९. ५. पे. नाम. समोसरणविचारगर्भित नेमिजिन स्तवन, पृ. ४अ-५आ. नेमिजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, म. सोमसंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: जादव कुल सिणगार; अंति: अनंती ते लहइ ए, कडी-३६. १४१३१. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन-चौढाली, संपूर्ण, वि. १९२४, भाद्रपद कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. गढनगर, प्रले. श्राव. जूमा पीतांबर धामी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १४४४३). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, म. धर्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर समरीने; अंति: धर्म साथे मन वाळीए, ढाल-४+कलश. १४१३२. षटआराविचारगर्भित आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७९८, वैशाख कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. नवानगर-हालारदेश, प्रले. पं. जीतरुचि गणि; पठ. मु. अमरविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४११.५, १६-१७४४५-४७). आदिजिन स्तवन-षट्आराविचारगर्भित, मु. आणंदरुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: श्रीसिद्धाचल नितनमी; अंति: महिमा जास वखाणीउं. १४१३३. शेव्रुजय स्तवन, संपूर्ण, वि. १७६९, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. पत्तननगर, जैदे., (२०.५४११.५, १३-१४४२८-३०). शत्रुजयतीर्थ परिपाटी स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १६९५, आदि: सकल सभारंजन कला दिओ; अंति: कहे० मनवंछित सुखपाया. For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १४१३४. विहरमानजिन स्तवनवीसी व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १४४४४-४८). १. पे. नाम. वीसविहरमाण स्तुति, पृ. १आ-८अ. विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर जिनवर; अंति: सुजस महोदय वृंदो रे, स्तवन-२०. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८आ. मु. जिन, मा.गु., पद्य, आदि: ते बलीया रे भाई ते; अंति: धन धन तेहना वंसा रे, गाथा-१२. १४१३५. स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३०-३१). स्तवनवीसी-अतीत, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जिणंदा तारा नामथी; अंति: चंद० होज्यो सदा सहाय, स्तवन-२१. १४१३६. (+) स्तवनचौवीसी व वीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१०, १४-१५४४४-४८). १. पे. नाम. जिनस्तवनचौवीशी, पृ. १अ-५आ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जगजीवन जगवाल्हो; अंति: तुं जीवजीवन आधारो रे, स्तवन-२४. २. पे. नाम. वीसविहरमान जसकृत स्तवन, पृ. ५आ-९आ. विहरमानजिन स्तवनवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुखलवई विजये जयो रे; अंति: वाचक जश इम बोले रे, स्तवन-२०. १४१३७. वीरजिन वसीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, प्र.वि. पेटांक १ में दी हुई प्रतिलेखन पुष्पिका देखने से पता चलता है कि संवत १७४९ पाटण में लिखित प्रति की नकल होने की संभावना है. प्रतिलेखन पुष्पिका पद्यबद्ध है., जैदे., (२३.५४१०.५, १३-१४४४७-४८). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, पृ. १अ-७आ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: आणा सिर वहेस्येजी, ढाल-६. २. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, पृ. ७आ-१२अ. उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमधर विनती; अंति: जसविजय वाचक जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५, ग्रं. १५०. १४१३८. (+) सीमंधरजिनविज्ञप्तिस्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३८, पौष शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७९, ले.स्थल. वीरमग्राम, प्रले. पं. नायकविजय (गुरु पं. जयविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, (६५५) जलात् रक्षेत् स्थलात् रक्षेत्, जैदे., (२५.५४११.५, ३४३२-३४). सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिब; अंति: शास्त्र मर्यादा भणी, ढाल-१७. सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन-३५० गाथा-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामी; अंति: गहिला छे ते डाहा छइ, ग्रं. ५३३. For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४१३९. स्वाध्याय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ५, जैदे., (२६४११.५, १३४४३-४५). १. पे. नाम. स्वाध्याय, पृ. १आ-३अ. ५ कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो सदगुरु गुण; अंति: सीसेण जणाण बोहठ्ठा, ढाल-६, गाथा-३९. २. पे. नाम. स्वाध्याय, पृ. ३अ-४आ. सुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरु एहवा सेविइ; अंति: गुणीणं साहूण जस सिणए, गाथा-४१. ३. पे. नाम. स्वाध्याय, पृ. ४आ-५अ. जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिन जिन प्रतिमा वंदन; अंति: किजै तास वखाण रे, गाथा-१५. ४. पे. नाम. १७ भेदी पूजा सज्झाय, पृ. ५आ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तर भेद पूजा फल; अंति: तेह तर्या ने तारे रे, गाथा-९. ५. पे. नाम. सीमंधरजिन विनतीस्तवन १२५ गाथा, पृ. ५आ-११आ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५. १४१४०. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२६४११.५, ११४३२-३३). सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; __ अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५ १४१४१. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४१२.५, १४४३४). सीमंधरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: अनंत चोवीसी जिन नमु; अंति: भविक जन मंगल करो, ढाल-७, गाथा-१०५. १४१४२. (+) सीमंधरजिन स्तवन व स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७१४, कार्तिक शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. मु. सिद्धिविजय (गुरु मु. भावविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५४१०.५, १४४४१). १.पे. नाम.सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ५अ. मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: अनंत चोवीसी जिन नमु; अंति: भविक जन मंगल करो, ढाल-७, गाथा-१०६. २. पे. नाम. विजयप्रभसूरि सज्झाय, पृ. ५आ. मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आवउ सजनी सह गुरु; अंति: भावविजय बुध सीसोजी, गाथा-९. १४१४३. सीमंधरजिनवीनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १७५१, चैत्र कृष्ण, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. कसुंबीआपाटक, प्रले. ऋ. हेमराज (पूर्णिमागछ); लिख. श्राव. गलाल साह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (६६८) पोथी प्यारी प्रेमकी, जैदे., (२५४११, १२-१३४३७-३९). For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org ५५ सीमंधरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: अनंत चोवीसी जिन नमुं; अंति: भविक जन मंगल करो, ढाल-७, गाथा - १०५. १४१४४. (+) स्तवनचौवीसी व स्तवनसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. १४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X११, १४X४३). १. पे नाम, जिनस्तव चतुर्विंशतिका, पृ. १अ ४अ. जिनस्तवचतुर्विंशतिका, सं., पद्म, आदि: श्रीनाभेयसुनाभेय; अंतिः मानवस्तवयो व्यधाह, स्तवन- २४. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ४अ. सं., पद्य, आदि: जिनेंद्र तव पादांतेभ; अंतिः सफली कुरु मे प्रभो, श्लोक ५, ३. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ४-४आ. सं., पद्य, आदि: सीमंधरं जिनाधीशं; अंति: शासने तेस्तु मेनिशं, श्लोक - ५. ४. पे. नाम. विहरमान २० जिन स्तवन, पृ. ४आ. सं., पद्य, आदि: वंदे सीमंधरं देवं; अंतिः जितवीर्यो जिताहितः, श्लोक ५. ५. पे. नाम. सप्ततिशतजिन स्तवन, पृ. ४आ. सं., पद्य, आदि: षष्ट्या युतं शतं; अंति: स्वर्णवर्णस्तु चेहता, श्लोक ५. ६. पे. नाम. अतीतअनागतवर्तमानजिन स्तव, पृ. ४आ. सं., पद्म, आदिः येतीता वर्तमाना; अंतिः रज्जुवदालंबनदा मम श्लोक ५. ७. पे. नाम. शाश्वतजिन स्तवन, पृ. ४-५अ. सं., पद्य, आदि: शाश्वतं तीर्थनाथ; अंतिः वारिषेणजिनश्रिये श्लोक ५. - ८. पे. नाम. शाश्वताशाच्चतजिन स्तवन, पृ. ५अ. शाश्वतजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: नामाकृतिद्रव्यभावैः; अंति: मदीये मदवर्जिते, श्लोक - ५. ९. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. ५अ. सं., पद्य, आदि आदिनाथ जगन्नाथ विमला; अंतिः तानि वंदे निरंतरम्, श्लोक ५, १०. पे नाम, नेमिजिन स्तवन- गिरनारतीथंमंडन, पृ. ५अ. सं., पद्य, आदिः उज्जयंतशैलेशतुंग; अंति: सुलभं तव दर्शनम्, श्लोक - ५. ११. पे. नाम. आदिजिन स्तवन- अर्बुदाचलमंडण, पृ. ५अ ५ आ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन-अर्बुदाचलमंडन, सं., पद्य, आदि: अर्बुदाद्रौ युगादीशं; अंति: रभ्रंलिहैः पवित्रितः, श्लोक-५. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभन, पृ. ५आ. पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थमंडन, सं., पद्य, आदि: स्तुवे श्रीस्तंभनां; अंतिः पूरयन्नरवांछितं श्लोक ५. १३. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. ५आ. सं., पद्य, आदि: अष्टापदनगोत्तंसान; अंतिः संसारे तिष्ठते सदा, श्लोक - ५. १४. पे. नाम. २० जिन स्तवन- समेतशिखर, पृ. ५आ. For Private And Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५६ www.kobatirth.org १. पे नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तव, पृ. १अ-२अ. सं., पद्य, आदि: कैवल्यावगमविदिता; अंतिः कृपाकूपारमामानतं, श्लोक-४०. २. पे नाम महावीरजिन स्तव, पृ. २अ. सं., पद्य, आदि: यस्मिन्नजितनाथादि; अंति: सर्वया सर्वदर्शिनः, श्लोक - ५. १४१४५. (+) स्तोत्रस्तुतिआदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे ३८, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न, जैदे., ( २६.५x११, १९×६६-६७). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. पादलिप्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गाहा जुअलेण जिणं; अंतिः स खयं सव्वदुरियाणं, गाथा-४. ३. पे नाम, पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. २अ २आ. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नम्रकम्रसुरराजमंडली; अंतिः स्पदमुदां परंपरा, श्लोक ९. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- तोटकछंदमय, प्र. २आ. पार्श्वजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: रुचिमंडलमंडितदिग्वलय; अंति: वासं शिवश्रीविलासं, श्लोक - १३. ५. पे नाम, महावीरजिन स्तोत्र, प्र. २आ. सं., पद्य, आदि: प्रतप्तहेम प्रतिमप्र; अंति: चेतः श्रीमहावीरनेतः, श्लोक - १५. ६. पे नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. २आ. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि पाथः पूरेधिमूर्ध्व; अंतिः क्षरत्यक्षराणि, श्लोक ८. ७. पे नाम, सिद्धसेनीया द्वात्रिंशिका चतुर्थी, पृ. ३अ-३ आ. द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: ( - ), प्रतिपूर्ण. ८. पे. नाम. साधारणजिन स्तव मुनिसुव्रतचरित्रगत, पू. ३-४अ. साधारणजिन स्तव, सं., पद्य, आदि; नमोस्तु तुभ्यं भुवनै; अंतिः मूर्ध्वा स एवोत्तमः, श्लोक ९. ९. पे नाम एक बहुजन स्तोत्र, पृ. ४अ. आ. धर्मघोषसूरि, सं., पद्य, आदि: देवेंद्रैरनिशं य; अंतिः वन्ये च तां भक्तिकां, श्लोक ८. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०. पे. नाम उपमितिभवप्रपंचा कथा हिस्सा विमल स्तुति, पृ. ४अ-४आ. ग. सिद्धर्षि गणि, सं., पद्य, वि. ९६२, आदि: अपारघोरसंसारनिमग्न; अंति: न शृण्वंति भवादृशाः, श्लोक - ३५. ११. पे नाम. अष्टापदतीर्थ कल्प, पू. ४-५अ. आ. धर्मघोषसूरि, सं., पद्य, आदि: वरधर्मकीर्तिऋषभो; अंतिः स जयत्यष्टापवगिरीशः, श्लोक-२४. १२. पे नाम. त्रिभुवनशाश्वतचैत्य स्तव, पृ. ५अ-६अ. आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्त्या प्रणम्य ऋषभं अंति: ( अपठनीय) श्लोक-३८. १३. पे. नाम. वीतराग स्तोत्र, पृ. ६अ. सर्वज्ञ स्तवाष्टक, सं., पद्य, आदि: कृतार्थोपि जगन्नाथ; अंति: लीन भृंगवन् मानस मम, १४. पे. नाम. पंचपरमेष्ठिरक्षा स्तोत्र, पृ. ६अ. वज्रपंजर स्तोत्र. सं., पद्य, आदिः ॐ परमेष्ठि अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक - ८. For Private And Personal Use Only श्लोक - ८. Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १५. पे. नाम. २४ जिन स्तव, पृ. ६अ-७अ. आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रथमजिनवरनिखिलनरनाथ; अंति: सकल जगत्रयधीर, श्लोक-२५. १६. पे. नाम. जैनसिद्धांत स्तवन, पृ. ७अ-८अ. सिद्धांत स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नत्वा गुरुभ्यः श्रुत; अंति: तत्समागमनोत्सवं, श्लोक-४६. १७. पे. नाम. सर्वज्ञसाधारणजिन स्तवन, पृ. ८अ. साधारणजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: शिवसिरसि निवासं यः; अंति: लक्ष्मी गरिष्ठां, श्लोक-१०. १८. पे. नाम. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, पृ. ८अ-८आ. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: अनंतविज्ञानमतीत; अंति: कृतसपर्याः कृतधियः, श्लोक-३२. १९. पे. नाम. अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, पृ. ८आ-९आ. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: अगम्यमध्यात्मविदाम; अंति: मयमुपाधिं विधृतवान्, श्लोक-३२. २०. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ९आ. ___ सं., पद्य, आदि: रक्षतु सवलितोपसर्ग; अंति: वीरस्य वो दृष्टयः, श्लोक-१. २१. पे. नाम. महावीरजिन स्तव-क्रियागुप्त, पृ. ९आ-१०अ. पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: चरमजिन तं कल्याणा; अंति: सेव्य नराभवदुःखपदं, श्लोक-१६. २२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १०अ-१०आ. पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: जगति शस्तवैराग्यरंग; अंति: स याति निर्वृति, श्लोक-३२. २३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तव, पृ. १०आ. ___आदिजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु नाभेयसुभाव; अंति: नो यच्छतु नाभिनंदनः, श्लोक-८. २४. पे. नाम. गुरुनामगर्भाष्टकदलकमल स्तोत्र, पृ. १०आ-११अ. सं., पद्य, आदि: रिरसारससंसार रसासीर; अंति: समालिंगति तनयस्थं, श्लोक-१७. २५. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ११अ. ___ सं., पद्य, आदि: जिनवरोक्षरभावरिपून; अंति: परमतारमतारमता च्युता, श्लोक-४. २६. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ११अ. सं., पद्य, आदि: मनसिरमाधामाधामा धामा; अंति: णि हारिणि हृदि भयस्य, श्लोक-४. २७. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ११अ. सं., पद्य, आदि: गुणास्ते प्रभविंदुना; अंति: माराम तमो हीनमहायते, श्लोक-३. २८. पे. नाम. परमात्मद्वात्रिंशिका, पृ. ११अ-११आ. सं., पद्य, आदि: ॐकाररूपः परमेष्टि; अंति: यात्यसौ पदमव्ययं, श्लोक-३३. २९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ११आ-१२अ. आ. धर्मघोषसूरि, सं., पद्य, आदि: विध्वस्ताखिलकर्मजाल; अंति: तस्मै मदीयं मनः, श्लोक-९. ३०. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरिपाटिका, पृ. १२अ-१२आ. For Private And Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., पद्य, आदि: नमेंद्रमंडलमणिमय; अंति: तत्तीर्थयात्राफलं, श्लोक-२४. ३१. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १२आ-१३अ. प्रा., पद्य, आदि: केवलनाणसणाहं विदेह; अंति: जइनाहो होइ भवियाणं, गाथा-२१. ३२. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १३अ-१३आ. आ. विजयसिंहसूरि, सं., पद्य, आदि: नेमिः समाहितधियां; अंति: सोस्तु नेमिः शिवाय, श्लोक-२४. ३३. पे. नाम. विविध श्लोकसंग्रह, पृ. १३आ. ____ सं., पद्य, आदि: सर्वदोषविनिर्मुक्तः; अंति: साक्षात्सुरद्रुमः, श्लोक-९. ३४. पे. नाम. महावीरजिन स्तव, पृ. १३आ-१४आ. प्रा., पद्य, आदि: नमिउण जिणं जइजीवबंधव; अंति: र सिवपयमणहं थिरं वीर, गाथा-४३. ३५. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, पृ. १४आ-१५अ. हिस्सा, सं., गद्य, आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: सिवं भवतु स्वाहा. ३६. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १५अ-१५आ.. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ३७. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तोत्र, पृ. १५आ. ____ आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमतं मगधेषु; अंतिः प्रभवो भवते गौतम नमः, श्लोक-२१. ३८. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १५आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., मात्र १ श्लोक है. सं., पद्य, आदि: अहो अमेघजावृष्टिरहो; अंति: (-), अपूर्ण. १४१४६. स्तवनसंग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. १८, जैदे., (२६.५४११, १९४६२). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ. सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्व संस्तुव; अंति: व्रज नयनवत्ध्यानवरतं, श्लोक-३२. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-छआरागर्भित, पृ. १आ-२अ. सं., पद्य, आदि: सुध्यान सुध्या नतपाद; अंति: कंदर्पदर्पोज्झितम्, श्लोक-३२. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, पे.वि. गुरुशिष्यनामयुतं षडरचक्रम्. सं., पद्य, आदि: महिमानल्पनेमेशा; अंति: भवारंभादनंतहतं, श्लोक-३२. ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २आ-३आ. आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: पदपावितभूमिमंडलं; अंति: स लभते भविको भवांतं, श्लोक-३२. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ. ___ सं., पद्य, आदि: ब्रह्माजिह्मलयं कृता; अंति: निर्माति मुक्तारणं, श्लोक-१०. ६. पे. नाम. साधारणजिन स्तव, पृ. ३आ-४अ. आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सरति सरति चेत स्तोतु; अंति: यस्तर्कयित्वा तथापि, श्लोक-११. ७. पे. नाम. श्रीपानापरजिन स्तव, पृ. ४अ-४आ. For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ पार्श्वजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: भास्वन्महाः सुमहिमाव; अंति: यामृतरमापि सा क्रमेण, श्लोक-१८. ८. पे. नाम. वर्द्धमानजिन स्तव, पृ. ४आ-५अ. महावीरजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: कलशकलशरादि प्रोल्लसल; अंति: दुःखतम्यारविं, श्लोक-१४. ९. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन-पंचवर्गपरिहार, पृ. ५अ-५आ. ____ सं., पद्य, आदि: शैवेयसार्वं सरसं; अंति: क्लेशराशेस्त्वमद्य, श्लोक-१९. १०. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-पंचवर्गपरिहार, पृ. ५आ. __ आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: सुरासुरश्रीसुविशाल; अंति: प्रभाभिः स्फुरन्, श्लोक-१४. ११. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-पंचवर्गपरिहार, पृ. ५-६अ. सं., पद्य, आदि: स्वश्रेयससरसीरुहसूर; अंति: जिन प्रभवंति तस्मिन, श्लोक-२६. १२. पे. नाम. महावीरजिन स्तव-पंचवर्गपरिहार, पृ. ६अ-६आ. सं., पद्य, आदि: सेवारससुरसाल श्रीवीर; अंति: शिवेहं सहसा श्रयेह, श्लोक-१३. १३. पे. नाम. श्रीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ६आ-७अ. पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वः श्रेयसे; अंति: येषामिह पंडितव्रजे, श्लोक-४४. १४. पे. नाम. शांतिजिन स्तव, पृ. ७अ-७आ. __आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीशांतिनाथो भगवान; अंति: हिमप्राग्भारमद्भारती, श्लोक-२०. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७आ. आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्व भावतः; अंति: जिनप्रभविष्णुना, श्लोक-९. १६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ७आ-८आ. पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: जगति शस्तवैराग्यरंग; अंति: स याति निर्वृति, श्लोक-३२. १७. पे. नाम. महावीरजिन स्तव-क्रियागुप्त, पृ. ८आ-९अ. पं. शीलशेखर गणि, सं., पद्य, आदि: चरमजिन तं कल्याणानि; अंति: सेव्य नराभवदुःखपदं, श्लोक-१६. १८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ९अ, पू.वि. प्रतिलेखन पुष्पिकावाला भाग नहीं है. मु. जिनपद्म, सं., पद्य, आदि: तमालनीलच्छविपिच्छला; अंति: सहितं सहितं समंतात्, श्लोक-७. १४१४७. स्तवन, स्वाध्याय वरेखताआदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. १३, जैदे., (२५.५४१२, १५४४६). १. पे. नाम. सिद्धाचलजी स्तवन, पृ. १अ. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी सिद्धाचल; अंति: मनमोहन जिनरायजी काई, गाथा-१०. २. पे. नाम. मेदनीपुरमंडण आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ. आदिजिन स्तवन-मेदनीपुरमंडन, मु. सत्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिणंद जुहारीयै; अंति: सत्यसागर गुण गाय, गाथा-७. ३. पे. नाम. धुलेवामंडण ऋषभदेवजी स्तवन, पृ. १आ. For Private And Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन-धुलेवानगर, मु. तखतसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभजिणेसर वंदीये; अंति: सेवो रे समकित साजनां, गाथा-७. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन-पद, पृ. १आ-२अ. मु. जसवत-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति सुरपति सुरपति; अंति: सीस० जोवण उछकछै अती, गाथा-९. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: बोलत चालत डोलतो मेरी; अंति: भूधर० चौरासीलख डोलतो, गाथा-६. ६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ. पुहि., पद्य, आदि: हम बैठे अपनी मोनसौ; अंति: संगति सुरझै आवागमनसौ, गाथा-४. ७. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २आ. पुहिं., पद्य, आदि: राजुल करै पुकार पीया; अंति: वधू मुक्ति कुंवरी, गाथा-५. ८. पे. नाम. गौतमस्वामीजी स्वाध्याय, पृ. २आ-३अ. गौतमस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहै तुमे गोतम; अंति: आप तेरै जणीणी तारे, गाथा-२६. ९. पे. नाम. मल्लिनाथजी वृद्ध स्तवन, पृ. ३अ-४आ. मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: नवपद समरी मन शुद्धे अंति: धरमराग मन मे ___धरी, ढाल-५. १०. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ४आ. पुहिं., पद्य, आदि: मुजे हे चाह दरसन; अंति: कारोगे तो क्या होइगा, गाथा-५. ११. पे. नाम. रेखता, पृ. ४आ. औपदेशिक रेखता, कुसल, पुहिं., पद्य, आदि: समजले जीव वे प्यारे; अंति: पडा सुख भर्म कै वसही, गाथा-६. १२. पे. नाम. रेखता, पृ. ४आ-५अ. आध्यात्मिक रेखता, पुहि., पद्य, आदि: कहूं वह ब्रह्म देखा; अंति: वलै सव सौ नियारा है, गाथा-५. १३. पे. नाम. रेखता, पृ. ५अ.. साधारणजिन रेखता, मु. नवल, पुहि., पद्य, आदि: किये आराधना तेरी; अंति: नवल चेरा तुमारा है, गाथा-५. १४१४८. स्तवचौवीसी व जिनस्तव, संपूर्ण, वि. १६६४, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, ले.स्थल. पत्तननगर, प्रले. मु. विजयसुंदर (गुरु ग. विनयसुंदर); पठ. ग. विनयविजय (गुरु पंडित. जयवंतविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. *ग्रंथ के अंतिम पत्र उपर स्वस्तिक किया हुआ है., प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२६४११, १३४४१). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, पे.वि. यह स्तवन दो बार लिखा है. सं., पद्य, आदि: अहो प्रभो प्रभावस्ते; अंति: महानंदमयं महः, श्लोक-६. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र. प. १अ-५अ. सं., पद्य, आदि: जय प्रथम तीर्थेश जय; अंति: चेतः स्फीतमोहतमोहरम, स्तवन-२४, श्लोक-१२०. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ५आ, पे.वि. यह स्तवन दो बार लिखा है. सं., पद्य, आदि: अहो प्रभो प्रभावस्ते; अंति: महानंदमयं महः, श्लोक-६. For Private And Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ___६१ १४१४९. (+) स्तवनसंग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १५४५८). १. पे. नाम. मंगलशब्दार्थ स्तवन, पृ. १अ. साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. मुनिसंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जय श्रीजिनकल्याण; अंति: तद्वितराचिरान्ममापि, श्लोक-६. २. पे. नाम. मंगलशब्दार्थ स्तवन, पृ. १अ. मंगलशब्दार्थ स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रियां धाम सुधामध; अंति: तद्वितराचिरान्ममापि, श्लोक-६. ३. पे. नाम. मंगलशब्दार्थस्तव, पृ. १अ. आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: समवाप्य जयश्रियं जग; अंति: तद्वितराचिरान्ममापि, श्लोक-५. ४. पे. नाम. मंगलशब्दार्थ स्तव, पृ. १अ-१आ. आ. मुनिसंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जगतां प्रभुतां प्राप: अंति: तद्वितराचिरान्ममापि. श्लोक-६. ५.पे. नाम. सकलजिन स्तवन. प. १आ. सकलजिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: त्रिजगत्प्रभुता; अंति: तद्वितराचिरान्ममापि, गाथा-६. ६. पे. नाम. युगादिदेव स्तवन, पृ. १आ. ___ आदिजिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रेयसां पद जिनेंद्र; अंति: तद्वितराचिरान्ममापि, श्लोक-७. ७. पे. नाम. युगादिदेव स्तवन, पृ. १आ-२अ. ____ आदिजिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रियामेकपदं; अंति: भावारिरणे जयश्रिये, श्लोक-९. ८. पे. नाम. सीमंधरस्वामि स्तवन, पृ. २अ. सीमंधरजिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रियाढ्यं कनकाभ; अंति: भविता प्रभुस्त्वम्, श्लोक-५. ९. पे. नाम. वर्द्धमानजिनाष्टक, पृ. २अ-२आ. महावीरजिन अष्टक, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जय श्रिये कर्ममहारि; अंति: स्तव पितुः समनामा, श्लोक-८. १०. पे. नाम. साहपुर पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ. पार्श्वजिन स्तवन-शाहपुरमंडन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रियां संगममाप्तु; अंति: तद्वितराचिरान्ममापि, श्लोक-१०. ११. पे. नाम. २४ जिन स्तव, पृ. २आ-३अ. आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रीदायिनः; अंति: ददतां मे शर्म निजमेव, श्लोक-५. १२. पे. नाम. चतुर्विंशति-विंशतिविहरमाण-शाश्वतजिन स्तवन, पृ. ३अ. चतुर्विंशति-विंशतिविहरमान-शाश्वतजिन स्तवन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रीसंगिनो नौमि%; ___ अंति: संतु मे शिवसंपदः, श्लोक-९. १३. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन विंशतिविहरमान शाश्वतजिन स्तवन, पृ. ३अ. For Private And Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चतुर्विंशति-विंशतिविहरमान-शाश्वतजिन स्तवन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रिये भवशत्रो; अंति: ददतां मम शर्म निजमेव, श्लोक-८. १४. पे. नाम. मंगल स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ. महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जयसिरिजिणवर तिहुअणजण; अंति: निअपयसुहदाणओ अइरा, गाथा-५. १५. पे. नाम. २४ जिनमंगल स्तव, पृ. ३आ. आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिआइजिणं वंदे; अंति: सासयसुहमसिद्धो, गाथा-५. १६. पे. नाम. वीरदंडक स्तुति, पृ. ३आ-४अ. __महावीरजिन स्तुति-२४ दंडक, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: त्रिभुवनविभवीप्सितार; अंति: क्रमोदंडदर्पोत्कटे, श्लोक-४. १७. पे. नाम. श्रीजिनमंगल स्तव, पृ. ४अ. साधारणजिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: आनंदाद्वैतदातार; अंति: तद्वितराचिरान्ममापि, श्लोक-६. १८. पे. नाम. जिनब्रह्म स्तव, पृ. ४अ-४आ. ___आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: परानंदपदामाईन्; अंति: तद्वितराचिरान्ममापि, श्लोक-६. १९. पे. नाम. जिनमहिम स्तव, पृ. ४आ. जिनमहिमा स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: शिवपदप्रभुतां दधता; अंति: तद्वितराचिरान्ममापि, श्लोक-६. २०. पे. नाम. जिनमंगल स्तव, पृ. ४आ. आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रभुतां शिवसंपदाम; अंति: तद्वितराचिरान्ममापि, श्लोक-६. २१. पे. नाम. जिनमंगल स्तव, पृ. ४आ-५अ. आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदिः परं श्रेयः पदं; अंति: तद्वितराचिरान्ममापि, श्लोक-६. २२. पे. नाम. श्रीजिनभक्ति स्तव, पृ. ५अ. साधारणजिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रभुरक्षरशर्मसंपदं; अंति: तद्वितराचिरान्ममापि, श्लोक-८. २३. पे. नाम. श्रीजिनराजभक्तिमंगल स्तवन, पृ. ५अ.. साधारणजिन स्तवन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: यैर्भवंति हृदयस्थितै; अंति: तद्वितराचिरान्मापि, श्लोक-७. २४. पे. नाम. मंगलशब्द स्तव:, पृ. ५अ-५आ. मंगलशब्द स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: त्रिभुवनाधिपमोहजय; अंति: त्वमघनाथ जिनोचितमाचर, श्लोक-७. २५. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ५आ. आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रियं यस्तनुते; अंति: तद्वितराचिरान्ममापि, श्लोक-६. १४१५०. सज्झाय, स्तवन व स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, कुल पे. ३०, जैदे., (२६.५४१२, १५४३९-४३). १.पे. नाम. वर्द्धमान सत्तावीसभवविस्तार स्तवन, पृ. १आ-४अ. For Private And Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ महावीरजिन २७ भव स्तवन, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमलकमलदललोयणा दिसे; __अंति: विजय शिष्य जयकरो, ढाल-६, गाथा-८३. २. पे. नाम. गुणठाणा स्तवन, पृ. ४अ-५आ. सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थान विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमति जिणंद सुमति; अंति: कहे एम मुनी धरमसी, ढाल-६+कलश, गाथा-३४. ३. पे. नाम. वीसथानक तपोविधि स्तवन, पृ. ५आ-९अ. २० स्थानकतप स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: श्रीजिनमुखकज वासनी; अंति: नितु नितु मंगळचारजी, ढाल-६, गाथा-८१. ४. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. ९अ-११अ. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिका नयरी; अंति: लहे ते मंगल अति घणो, ढाल-३. ५. पे. नाम. शोलेशतीरी सज्झाय, पृ. ११अ-१२अ. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर; अंति: लेसे सुख संपदा ए, गाथा-१७. ६. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १२अ. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मरुदेवीनो नंद माहरो; अंति: प्रभुसु मलि माचो रे, गाथा-३. ७. पे. नाम. जिनप्रतिमा स्तवन, पृ. १२अ-१२आ. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन जिनप्रतिमा; अंति: न नामे सुगुरुने सीस, ढाल-२, गाथा-२१. ८. पे. नाम. पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ. १३अ-१३आ. आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरुनी परि दोहिलो; अंति: श्रीविजयदेवसूर के, गाथा-१६. ९. पे. नाम. पिंडबत्रीसी सज्झाय, पृ. १३-१४आ. मु. सहजविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिणेसर प्रणम; अंति: पिंडबत्रीसी करी, गाथा-३२. १०. पे. नाम. संषेसरा स्तवन, पृ. १४आ. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: आपो आप तुठा, गाथा-७. ११. पे. नाम. सर्वजिन स्तुति, पृ. १४आ-१५आ. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके अंति: मनसा चित्तमानंदकारि, श्लोक-१०. १२. पे. नाम. सिद्धपद स्तवन, पृ. १५आ. मा.ग., पद्य, आदि: जगत भूषण विगत दषण: अंति: पूजो देव निरंजनं. गाथा-१४. १३. पे. नाम. षटआरास्वरूपकथक महावीर स्तवन, पृ. १५आ-१७आ. महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरानु, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाय नमि%B अंति: दास० संघ मंगल करो, ढाल-५, गाथा-६४. १४. पे. नाम. पंचनय स्तवन, पृ. १७आ-२०अ. ५ कारण छढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथ सुत वंदिये; अंति: परे विनय कहे आणंद ए, ढाल-६. For Private And Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५. पे नाम. सिद्धदंडिका स्तवन, पृ. २०अ २१ आ. पंन्या पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंतिः पद्मविजय जिनराया रे, ढाल -५, गाथा - ३८. १६. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि सज्झाय, पृ. २१ आ-२३अ. नमस्कार महामंत्र सज्झाव, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वारीजाउ अरिहंतनें अंति: ज्ञानविमल० वाधो रे, ढाल -५. १७. पे. नाम. इग्यारअंग १२ उपांग सज्झाय, पृ. २३अ. ११ अंग १२ उपांग सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अंग इम्बारे सोहांमणा; अंतिः ज्ञानविमल सुनेह तो, गाथा - ६. १८. पे. नाम. करणसत्तरीचरणसत्तरी सज्झाय, पृ. २३अ - २३आ. करणसत्तरी चरणसत्तरी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि पंचमाहाव्रत दशविधि; अंति: जग में सुजस वाघोजी, गाथा-७, १९. पे. नाम. नवकारगुणवर्णनमहिमा स्वाध्याय, पृ. २३-२४अ. नमस्कार महामंत्र सज्झाब, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: ए पंच परमेष्टि पद अंतिः एह से सिद्धसरूप, गाथा - ५. २०. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २४अ - २४आ. नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सकल कुशल कमलानो; अंति: दानविज रे, गाथा- २३. २१. पे नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. २४आ मु. जसवंत - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदिः सुमती जिणेसर साहिबा अंतिः सीसने अविचल धाम गाथा - ५, २२. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २५अ - २६आ. मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अचिरा नंदनंदन प्रणमी; अंति: सागर गुण गाया, गाथा - २५. २३. पे नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन- निश्चयव्यवहारगर्भित, पृ. २६आ-२८आ, पे. वि. वही कृति पत्रांक ३० पर (पेटांक नंबर - २६) भी है. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिब, अंति: वाचक जसविजय जयजय करो, ढाल - ४+ कलश, गाथा - ४१. २४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- समवसरणविचारगर्भित पृ. २८- २९आ. For Private And Personal Use Only मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पच, आदि: श्रीजिनशासन सेहरो; अंतिः पाठक धर्मवर्धन धारए, ढाल - २ + कलश, गाथा - २८. २५. पे. नाम. लब्धि स्तवन, पृ. २९-३० आ. आदिजिन स्तवन- २८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमं प्रथम जिनेसर; अंतिः प्रगट ग्यान प्रकाश, ढाल -३, गाथा - २५. Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २६. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, पृ. ३०आ-३२अ, पे.वि. यही कृति पत्रांक २६ पर। (पेटांक नंबर-२३) भी है. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिब; अंति: वाचक जसविजय जयजय करो, ढाल-४+ कलश, गाथा-४१. २७. पे. नाम. नेमिजिन नवरसो, पृ. ३२अ-३४आ. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: सरसति सांमिणि पाय; अंति: थुण्यो नेमिजिणेसरू, ढाल-५, गाथा-७२. २८. पे. नाम. विहरमानजिन स्तवन, पृ. ३४आ. बाहजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: रामतिम रमवा हूं गई; अंति: जिन० अवतार रे माय, गाथा-८. २९. पे. नाम. सप्तषष्टिभेदइ समकित स्वाध्याय, पृ. ३४आ-३५अ.. सम्यक्त्वसुखडी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चाखो नर समकित सुखडली; अंति: शुदर्शनने प्यारी रे, गाथा-५. ३०. पे. नाम. मुनिइग्यारसनुं गुणगुं, पृ. ३५अ-३७अ. मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: धूर प्रणमुं जिन; अंति: जसविजय जयसिरि लही, ढाल-१२. १४१५१. (+) सज्झाय, स्तवन व गीत आदिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १७६१, पौष कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. १२, प्रले. उपा. देवविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (१९४९, १४४३४-३५). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ. उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुभमति दीजे; अंति: देवविजय गुण गाया रे, गाथा-७. २. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ. उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबा सरसतिने; अंति: कहे० सुख लहे रे लो, गाथा-१३. ३. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ. उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु चरण नमी करी; अंति: देवविजय कहे एह, गाथा-७. ४. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ. उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब मुज सुणो वीनती; अंति: हो देव देयो सुखकंद, गाथा-११. ५. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ. ___ उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरु चरण नमी करी; अंति: देव लहे सुख वास, गाथा-७. ६. पे. नाम. राजिमतीसती सज्झाय, पृ. ३आ-४अ. उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: आव्यो ते मास भुजंग; अंति: गुणगाय० संपत लहीजी, गाथा-१५. ७. पे. नाम. नेमराजिमती बारमास, पृ. ४अ-५अ. उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: हुं सरसती ने पाए; अंति: देवविजय सुख पाया रे, गाथा-१७. ८. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. ५अ-५आ. For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६६ www.kobatirth.org उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल सांति जीणंद; अंतिः जिनजी कीजीई रे, गाथा ७. ९. पे नाम, राजिमतीसती सज्झाय, पृ. ५आ-६अ. उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे सखी सांभलो; अंति: रे० जयजय थाय रे जीवन, गाथा - ९. १०. पे नाम. नेमिजिन गीत, पृ. ६अ. उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वालो क्या छे रे; अंति: उत्तम अमृत पीधुं रे, गाथा - ३. ११. पे. नाम. भक्ति गीत, पृ. १अ. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५४४९-५३). पं., पद्य, आदि: तूसी क्या ज्यान्नै; अंति: घडी पल पल तीलदी रे, गाथा - १. १२. पे. नाम. कृष्णभक्ती गीत, पृ. १अ. कृष्णभक्ति गीत, मा.गु., पद्म, आदि; अब मुरली की टेर दै; अंति: है मोही बहीया, गाथा - १. १४१५२. अढारपापस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८१६, कार्तिक कृष्ण, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. पं. अमृतविजय; पठ. श्रावि. लखमीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये., ( २६४११.५, १४४४३-४६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थानक पहिलुं कहि; अंति: वाचकजस इम भाखेजी, सज्झाय- १८. १४१५३. अढारपापस्थानकपरिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल, बहरानपुर, जैदे, (२६x१०.५, अढारपापस्थानकपरिहार सज्झाब, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर रूप विचार चतुर; अंतिः वंदियो भवियण प्राणी, ढाल - १८, ग्रं. ३५०. १४१५४. अवंतीसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९५६, माघ कृष्ण, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल, पालिताणा, प्रले. हठिसिंग मानसिंग बारोट, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., ( २४.५X११, ९X३३). १४१५५. आषाढभूति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैवे. (२४४११, १०x३३-३५). " अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ती; अंति: हर्ष सुख पावी रे, ढाल - १३, गाथा - १०५. आषाढाभूति चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदिः समरी सारद स्वामिनी अंतिः श्रीसंघकुं सुखकारा, गाथा ७३. १४१५६. उत्तराध्ययनसूत्र भास, संपूर्ण, वि. १६६४, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदे., ( २६.५X११, ११X३१-३२). उत्तराध्ययनसूत्र-गीत, संबद्ध, उपा. राजशील, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मति अति निरमली अंतिः विजय लह हवइ जयजयकार, गीत - ३६. १४१५७. उत्तराध्ययनसूत्र स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७३१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले. स्थल. राजनगर, लिख. श्राव. हीरजी साहा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X११, ११३५-३६). For Private And Personal Use Only उत्तराध्ययनसूत्र- विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवी चित्तधरीजी; अंति: अमीरस पीजीई रे, सज्झाय - ३६. Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १४१५८. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सज्झाय-२५ तक हैं., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३४-३५). उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवी चित्तधरीजी; अंति: (-), अपूर्ण. १४१५९. निगोदविचार स्तवन, खंदकमुनिसझाय व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. *ग्रंथ में स्वस्तिक दिया हुआ है।, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४२८). १.पे. नाम. निगोदविचासमन्वित वीरजिन तवन, पृ. १आ-४अ. महावीरजिन स्तवन-निगोदविचारगर्भित, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वलि जाउं श्रीमहावीर; अंति: कहे धन दिन मुझ आज, ढाल-२, गाथा-४३. २. पे. नाम. खंधकमुनि सज्झाय, पृ. ४अ-५आ. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो खधक महामुनि; अंति: सेवक सुखियां कीजे रे, ढाल-२, ___गाथा-८+१२. ३. पे. नाम. गमारगुण श्लोक, पृ. ५आ. मा.गु., पद्य, आदि: रूपकला गुण चातुरी; अंति: होत निपुणमा लाग, गाथा-१. १४१६०. (+) दसविधियतिधर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२४९.५, १०४३२). १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतलता वन सींचवा; अंति: सुजस लीला अनुभवई, ढाल-११, गाथा-१३८, ग्रं. २१५. १४१६१. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२६४११, १७४५२). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जिनलब्धि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: सुखदायक लायक सुगुण; अंति: थिरदोलतियां थाये छे, ढाल-११. १४१६२. सीमंधरजिन स्तवन माहात्म्य, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२८x१२, १३४३६-३९). सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; __ अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५. १४१६५. आगमोद्धारविचार, पूर्ण, वि. १६२७, माघ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. २८-२(५ से ६)=२६, ले.स्थल. हालाग्राम, प्रले. मु. गोपजी (बिवंदणीकगच्छे), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १५४५०-५४) आगमोद्धार विचार, आ. प्रद्युम्नसूरि, प्रा., पद्य, आदि: पणयजण पूरिआसो; अंति: सवयणेणम्, गाथा-१०००, पूर्ण. १४१६६. (+) गुणस्थानक्रमारोह सह वृत्ति व पंचदशबंधविवरण, संपूर्ण, वि. १६८१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. ३, ले.स्थल. द्वीपबंदिर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १५४५२-५४). १. पे. नाम. गुणस्थानक्रमारोह सह स्वोपज्ञ टीका, पृ. १अ-२१आ. गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोहहत; अंति: चैव रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३४. For Private And Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४७, आदि: अहँ पदं हृदि; अंति: प्रकटित इत्यर्थः. २. पे. नाम. पंचदशबंधन विचार, पृ. २१आ-२२आ. सं., पद्य, आदि: औदारिकोदारमितिकिं; अंति: संहननं नहि. ३. पे. नाम. ७ समुद्धात, पृ. २२अ-२२आ. प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: वेयण कसाय विउवण; अंति: केवल समुद्धातः, गाथा-७. १४१६७. गुणस्थानक्रमारोह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९१०, चैत्र कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले.स्थल. बजाणानगर, प्रले. मु. जशविजय-शिष्य, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२८x१२, १५४४५-४६). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोह हत; अंति: चैव रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३६.. गुणस्थानक्रमारोह-बालावबोध, मु. श्रीसार, मा.गु., गद्य, वि. १६९२, आदि: (१)सुरासुरनराधिश, (२)जिहां जिहां पहिलओ; अंति: प्रकररूप प्रकट कयौं. १४१६९. आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदे., (२६४११.५, १४४३६-४१). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: प्रथम भव्य जीवन; अंति: तिथि सफल फली मन आस, ग्रं. २०००. १४१७०. तत्त्वसार भाषा, संपूर्ण, वि. १८९७, आषाढ़ शुक्ल, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.ले.श्लो. (४) जलं रक्षेत् स्थलं रक्षेत्, जैदे., (२६४१२, ११४३१-३२). तत्त्वसार भाषा, मु. देवसेन, मा.गु., पद्य, आदि: आदिसुखी अनंतसुखी; अंति: देखो जानो अनुभवो, गाथा-७९. १४१७१. (+) आलाप पद्धति व निमित्तउपादान दोहरा, संपूर्ण, वि. १७९३, पौष शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. मु. उद्योत, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १५४३५-३७). १. पे. नाम. आलाप पद्धति, पृ. १अ-६अ. आ. देवसेन, सं., गद्य, आदि: गुणानां विस्तर; अंति: यथा जीवस्य शरीरमिति. २. पे. नाम. निमित्तउपादान दोहरा, पृ. ६आ. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: गुरु उपदेस निमित्त; अंति: मे करेजू तेसौ भेस, गाथा-७. १४१७२. (+) तत्त्वार्थसूत्र व उमास्वाति वाचक प्रशस्ति, संपूर्ण, वि. १७९३, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, प्रले. पं. रिद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पंचपाठ., जैदे., (२७४११, ८-११४३५-४०). १. पे. नाम. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, पृ. १अ-११आ. वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदि: सम्यग्दर्शनशुद्ध; अंति: चिरेण परमार्थम्, अध्याय-१०, सूत्र-१९८. २. पे. नाम. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-उमास्वाति वाचक प्रशस्ति, पृ. ११आ-१२अ. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: प्रागेवैतददक्षिण; अंति: मुदेन संजायते केषाम्, श्लोक-९. १४१७३. प्रशमरतिप्रकरण सहटीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदे., (२६.५४१२, १६४५२-५७). For Private And Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ६ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ प्रशमरति प्रकरण, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदि: नाभेयाद्याः सिद्धा; अंति: साधनमर्हच्छासनं जयति, अध्याय-१०, श्लोक-३१४. प्रशमरति प्रकरण-टीका, सं., गद्य, आदि: प्रशमस्थेन येनेयं; अंति: कथमन्यद भावेन जयति, ग्रं. २५०५. १४१७४. प्रशमरतिप्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७.५४१२, १-२४४५-४७). प्रशमरति प्रकरण, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदि: नाभेयाद्याः सिद्धा; अंति: (-), अपूर्ण. प्रशमरति प्रकरण-टीका, सं., गद्य, आदि: प्रशमस्थेन येनेयं; अंति: (-), अपूर्ण. १४१७५. रत्नपाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १८००, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २२, ले.स्थल. हडियाणानगर, प्रले. मु. ऋद्धिविजय (गुरु ग. जीवविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४१२, १९४४२-४४). रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि:रीषभादिक जिनवर नमु; अंति: वो जयजयकार रे, खंड-३, ढाल३२, गाथा-७७१. १४१७६. चंद्रलेहा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७३, वैशाख शुक्ल, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले.स्थल. चुतराजीरागुढा, प्रले. अनोपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १६४३७-४६). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगवति नमी करी; अंति: त्रिभुवनपति हुवे तेह, ढाल-२९. १४१७७. आराधनासार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२६४१२, १३४३३-३६). आराधनासार, आ. देवसेन, प्रा., पद्य, वि. ९९०, आदि: विमलयरगुणसमिद्धि; अंति: हुज्जइ पवयण विरुद्धा, गाथा-११५. आराधनासार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम पहिलो सिद्धनें; अंति: कृपांग थइनेइं. १४१७८. समकितसडसठबोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८३०, चैत्र कृष्ण, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पत्तननगर, जैदे., (२६.५४११.५, १२४३६). समकितना सडसठबोलनी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२, गाथा-६८. १४१७९. अंजनासती रास व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १७-१८४४३). १. पे. नाम. अंजनासंदरीरास, पृ. १आ-१७अ. मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: श्रीगणधर गौतम प्रमुख; अंति: ऋद्धि वृद्धि मंगलमाल, खंड-३, ढाल २२. २. पे. नाम. जैन सामान्यकृति , पृ. १७अ. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). १४१८०. सीताराम चौपाई, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९-९(१६,४७ से ५४)=६०, जैदे., (२६.५४११.५, १७४४९-५५). रामसीता रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: आणंद कोडी कल्याणो रे, खंड-९, गाथा-२४१२, ग्रं. ३७००, अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४१८१. मृगध्वज गीत, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२६.५४१०.५, ११४४४). मृगध्वज गीत, मु. पद्मकुमार, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि सिरि गोयम गणहर; अंति: इम बोलइ पद्मकुमार, गाथा-९७. १४१८२. कर्मविपाक व कर्मस्तव अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, जैदे., (२८x१०.५, १७-१८४५५-५९). १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, पृ. १अ-७आ. सं., गद्य, आदि: श्रीवीरजिनं नत्वा; अंति: देवेंद्रसूरिभिः. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, पृ. ७आ-१२आ. सं., गद्य, आदि: तहथूणि० मिथ्यात्वादि; अंति: चरमसमये व्यवच्छेदः. १४१८३. श्रुतसिद्धांतविचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६९०, कार्तिक शुक्ल, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५१, ले.स्थल. कोरटा, पठ. ग. देवरुचि (गुरु ग. धर्मरुचि); लिख. श्राव. नेता, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४१०.५, १३४४८-४९). सिद्धांतहुंडी, पंन्या. सहजकुशल, प्रा., गद्य, आदि: नमिऊण जिणवराई सुय; अंति: जिवाणं च बोहित्थं. सिद्धांतहुंडी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनादिक प्रथम; अंति: भव्यजीवनि बूज्झविवउ. १४१८४. पदमरथ चौपाई, संपूर्ण, वि. १७०३, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. कइरुग्राम, जैदे., (२५.५४१०.५, १८४६२). पद्मरथ चौपाई, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: उत्तम ते आजनम लगि; अंति: तिणनइ नमइ मुनि माल, गाथा-१८२. १४१८५. गीत चौवीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६.५४११, १३४४३). जिनगीतचौवीसी, मु. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: प्रथम जिणसर प्रणमीइ; अंति: भंडार भरेस्यइ रे, गीत-२४. १४१८६. शालिभद्र रास व छोतिचौपाई, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, जैदे., (२८x१०.५, १५४४९-५२). १. पे. नाम. शालिभद्र रास, पृ. १अ-७अ. मु. साधुहंस, मा.गु., पद्य, वि. १४५५, आदि: देवि सरसति २ सकल; अंति: इम भणइ० घरि तेह तणइ, गाथा-२२०. २. पे. नाम. छोति चौपाई, पृ. ७अ-८आ. पानु, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि करु; अंति: पानु भणइ ए बोल जखरु, गाथा-६०. १४१८७. स्थुलिभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १५९५, आश्विन शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. मु. संघरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १४४३९-४३). स्थूलिभद्र चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १५३८, आदि: पहिलउ पणमउ आदिजिणंद; अंति: मनवंछित संघ पूजउ आस, गाथा-२१८. १४१८८. (+) सिंहासनबत्रीसी चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १७-१८४४३-४४). सिंहासनबत्रीसी चरित्र, मु. लब्धिसागर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पहिलू परमेश्वर नमी; अंति: पदि पदि सकल समृद्धि, कथा-३२. For Private And Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १४१८९. सम्यक्त्वकौमुदीचौपाई व श्लोकसंग्रह, पूर्ण, वि. १६२४ - १७००, श्रेष्ठ, पृ. २१ - १ (१) = २०, कुल पे. २, जैदे., (२७४११, १७४५०-५२). १. पे. नाम. सम्यक्त्वकौमुदी रास, पृ. २अ - २०आ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पच, वि. १६२४, आदि: (); अंति: सहगुरु मुखी संभारि गाथा- ७११, पूर्ण, २. पे. नाम. लोक संग्रह, पृ. २१अ - २१ आ. " प्रा., मा.गु., सं., हिं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: ( अपठनीय), गाधा - १६. १४१९० तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह भाष्य, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ५६, जैदे. (२६.५x१०, १५X४४-४७), तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति सं., पद्य, आदि: (१) सम्यग्दर्शनशुद्धं, (२) सम्यग्दर्शनज्ञान; अंतिः चिरेण परमार्थम्, अध्याय १०. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-स्वोपज्ञ भाष्य, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: सम्यग्दर्शनं सम्यग्; अंति: चिरेण परमार्थम्, अध्याय- १०. १४१९१. अनेकांतवादप्रवेश, संपूर्ण, वि. १९५१, फाल्गुन शुक्ल, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले. स्थल. मुंबाईबंदर, प्रले. श्राव. माणेकचंद खोडीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६.५x१०.५, १४४२-४४). 9 अनेकांतवादप्रवेश, आ. हरिभद्रसूरि, सं., प+ग., आदि: जयति विनिर्जितरागः; अंतिः एव रागद्वेषाभावः, ग्रं. ७८०. १४१९३. पंचासकसूत्र सह चूर्णि संपूर्ण, वि. १६१८, श्रेष्ठ, पृ. ७३ ले स्थल. अणहिलपट्टण, प्रले. आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु 9 आ. जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. जैदे., ( २६.५X११, १५X४८-४९). पंचाशक प्रकरण- हिस्सा प्रथम पंचाशक, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण वद्धमाणं सावग; अंतिः जायइ चारित्तपरिणामो, गाथा - ५०. पंचाशक प्रकरण हिस्से के प्रथम पंचाशक की चूर्णि हिस्सा, आ. यशोदेवसूरि, प्रा., गद्य वि. ११७२, आदिः नमिय भुवणेकभाणुं अंतिः समवनिउणेहिं, गाधा - ५०. १४१९४. कयवन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७१, कार्तिक शुक्ल, १२ गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले. स्थल. जोधपुर, प्रले. सा. नंदुजी पठ. सा. चंदणी (गुरुसा, नंदुजी), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे. (२६.५X११, १३-१६X३७-५०), " कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंतिः धरम करण मन उलसेजी, दाल-३१. ७१ For Private And Personal Use Only १४१९५. चौपाई संग्रह, संपूर्ण, वि. १६४४-१६४५, आषाढ़ कृष्ण, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५, कुल पे. ४, ले. स्थल. ग्राम प्रले. मु. लक्ष्मीसागरसूरि-शिष्य, प्र.ले.पु. मध्यम जैवे. (२७४१०.५, १५४४९-५३). १. पे नाम, वसुदेव रास, पृ. १अ १२अ, वि. १६४४. मु. हर्षकुल, मा.गु., पद्य, वि. १५५७, आदि: सकल मनोरथ सिद्धि; अंति: जिम पांमिउ अविहडरंग, गाथा - ३४४. २. पे. नाम जिनपालजिनरक्षित चौपाई, पृ. १२आ-१७अ. मु. भावसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६३४, आदि: सरसति सांमणि हंसगमनि; अंतिः सीस० पातिग जाइ पारि, गाथा - १६२. ३. पे. नाम रात्रिभोजन चउपई, पृ. १७२-२५ आ. Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जयसेन चौपाई रात्रिभोजन विषये, वा. धर्मसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पणमिय गोयम गणहरराय; अंतिः सिद्धि संपद ते लहई, गाथा - २५८. ४. पे नाम, ऋषिदत्तासती चौपा- शीलव्रतविषये, पृ. २६-३५आ. ऋषिदत्तासती चौपाइ - शीलव्रतविषये, मु. देवकलश, मा.गु., पद्य, वि. १५६९, आदि: श्रीसरसति सुपसाउलइ; अंतिः अलिय विधन सवि दूरि, गाथा- ३०६. १४१९६. (+) ऋषिदत्ता चौपाई, संपूर्ण, वि. १७५८, भाद्रपद शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. २८, ले. स्थल, नारायणा, प्रले. मु. प्रीतिसागर (गुरु मु. प्रीतिलाभ, खरतरगच्छ - कोटिगगण - चंद्रकुलशाखा), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, जैदे. (२६४१०.५, १३-१४४४२-४६), " ऋषिदत्तासती चौपाई, मु. प्रीतिसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७५२, आदि: पास जिनेसर पयनमी; अंति: सागर जय जयकार, ढाल - ३८. १४१९७. विक्रमसेनराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३ + १ (२८) = ३४, ले. स्थल. धांइलाग्राम, प्रले. गोडीदास; पठ. सा. प्रेमाजी (अविचलगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका प्रथम पेज पर लिखी हैं., जैदे., (२६X११, १५-१६४५०-५३), विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सुखदाता संखेश्वरो; अंतिः दिन दिन दोलति पाईजी, ढाल - ५२, ग्रं. १६२४. १४१९८. अंजनासतीरास, अपूर्ण, वि. १७०७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. १८-३ (१ से २,४)=१५, ले. स्थल, डगग्राम, प्रले. मु. तेजानंद (गुरु पंडित, जवानंद), प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२६x१०.५, १५-१६x४५-४८). अंजनासुंदरी रास, क. महानंद, मा.गु., पद्य, वि. १६६०, आदि (-); अंति महाणंद इम० जेहना रे, गाथा - ५१८, अपूर्ण. १४१९९. वैदरभी रास, संपूर्ण, वि. १७५९, चैत्र शुक्र १४, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. राणपुर, प्रले. मु. वालजी (गुरु ऋ. वरसिंह), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६X११, १३X३७). दमयंती रास, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: सानिद्ध जस कविता; अंति: दोलत सकलसंघे जयकरो, गाथा-१२३. १४२०० (+) विक्रमसेनराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १७५४, कार्तिक कृष्ण, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३९, ले. स्थल, गुढ़ा, प्र. ग. गौतमसागर (गुरु पंडित. कनकसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५.५X१०.५, १६x४९-५३). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदिः परम ज्योति प्रकास; अंति: मइ उत्तमना गुणगाया, ढाल - ६४. १४२०१. (+) षट्दर्शनसमुच्चय सह टीका, संपूर्ण, वि. १७८६, वैशाख शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले.स्थल. दिल्ली, प्र. मु. यशोरुपाकर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४११, १८४५६-५८). , षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि सं., पद्य, आदि: सद्दर्शनं जिनं नत्वा अंति: लोच्यः सुबुद्धिभिः, अधिकार- ७, श्लोक- ८७. For Private And Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ षड्दर्शन समुच्चय-लघुवृत्ति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., गद्य, वि. १३९२, आदि: सज्ञानदर्पणतले विमले; ___ अंति: द्वापंचाशदनुष्टुभाम्, ग्रं. १२५२. १४२०२. चौदगुणठाणास्वरुप विचार, अपूर्ण, वि. १७८४, श्रेष्ठ, पृ. २५-६(१ से ६)=१९, पू.वि. गुणठाणा २ अपूर्ण से हैं., प्रले. ग. हितविजय (गुरु पं. लालविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२६४११.५, १६x४२-४६). १४ गुणस्थानकस्वरुप विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: उपांग हुंती जाणवउ, अपूर्ण. १४२०३. आगमसारोद्धार, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२५.५४११, १५-१६x४५-५०). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: भव्य जीवने प्रतिबोध; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १४२०५. (+) चौदगुणस्थानस्वरुप, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १५४३६). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोह हत; अंति: चैव रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३६. १४२०६. गुणस्थानक्रमारोह सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, पू.वि. प्रशस्ति पत्र नही है।, जैदे., (२५४१०.५, १७X४५-४६). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोह हत; अंति: चैव रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३६. गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४७, आदि: अहँ पदं हृदि; अंति: प्रकटित इत्यर्थः. १४२०८. अव्यवहाररासी निगोद स्वरुप, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, ११४३८-४०). अव्यवहाररासी निगोदस्वरुप, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अव्यवहार स्वामि; अंति: (-), अपूर्ण. १४२११. आगमसारबालावबोध व निमीतउपादानदोहरा, संपूर्ण, वि. १८८६, माघ शुक्ल, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५०, कुल पे. २, ले.स्थल. गौत्रका, प्रले. मु. उत्तमविजय (गुरु मु. वनीतविजय); पठ. ग. जशोविजय (गुरु मु. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसुमतिनाथ प्रसादात्., जैदे., (२४.५४११, १३४४५-४६). १. पे. नाम. आगमसारोद्धार, पृ. १आ-५०अ. ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: प्रथम भव्य जीवनै; अंति: तिथि सफल फली मन आस. २. पे. नाम. निमित्तउपादान दोहरा, पृ. ५०आ. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: गुरु उपदेस निमित्त; अंति: मे करेजू तेसौ भेस, गाथा-७. १४२१२. आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १८९७, श्रावण शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ६२, ले.स्थल. कलकत्ताबिंदर, प्रले. य. वीरवैताल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १३४३५-३९). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: हिवै भव्यजीवने; अंति: तिथि सफल फली मन आस. १४२१३. आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९०२, कार्तिक कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ७३, प्रले. पं. मुक्तिलाभ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १३४३१-३२). For Private And Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: प्रथम भव्य जीवनै; अंति: तिथि सफल फली मन आस. १४२१४. आगमसारोद्धारबालावबोध, संपूर्ण, वि. १९३२, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. पाटण, प्रले. ऋ. कानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १८४५३-५५). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: भव्य जीवने प्रतिबोध; अंति: तिथि सफल फली मन आस. १४२१५. (+) शब्दतत्त्ववचनिका, संपूर्ण, वि. १९३२, वैशाख शुक्ल, १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. कडी, प्रले. ऋ. कानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १८४५८-६१). तत्त्वप्रकाश, श्राव. दलपतराय, पुहिं., गद्य, आदि: प्रथम शिष्य गुरदयाल; अंति: सिद्ध गती में वसे हे. १४२१६. पंचसूत्रप्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२१४११, ११४३९-४४) पंचसूत्र, आ. चिरंतनाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमोवीयरागाणं सव्व; अंति: पवज्जाफलसुत्तं, सूत्र-५. पंचसूत्र-अवचूरि, ग. उदयकलश, सं., गद्य, आदि: पा० पापप्रतिघातगुण; अंति: शुभप्रवृत्तिभावेन. १४२१७. पंचसूत्र, संपूर्ण, वि. १६३०, वैशाख शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. ग. विनयविजय (गुरु ग. विमलहर्ष), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १५४६१). पंचसूत्र, आ. चिरंतनाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमोवीयरागाणं सव्व; अंति: निस्सेयस साहगति, सूत्र-५. १४२१८. तत्त्वार्थसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९+१(७)=१०, जैदे., (२१४११, ११-१२४२९). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदि: सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: बहुत्वत्तः साध्याः, अध्याय-१०. १४२२१. अनेकांतमंजरी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५४१०.५, १६-१८४४६-५०). अनेकांतमंजरी, सं., पद्य, आदि: शब्दांभोधिर्यतोनंतः; अंति: समरो युद्धसंघयोः, अधिकार-३. १४२२२. रात्रिभोजन चौपाई-जयसेन, संपूर्ण, वि. १६९३, भाद्रपद कृष्ण, ७, रविवार, मध्यम, पृ.८, ले.स्थल. मदलगढ, प्रले. केसव मोहनदास, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४११, १८-१९४५०-५३). जयसेन चौपाई-रात्रिभोजन विषये, वा. धर्मसमद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पणमिय गोयम गणहरराय; अंति: सिद्धि संपद ते लहई, गाथा-२५८. १४२२३. रात्रिभोजन चौपाई-जयसेन, संपूर्ण, वि. १६३३, माघ शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. ग. चारित्रोदय (गुरु उपा. हर्षप्रिय); पठ. पं. हर्षसागर गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४१०.५, १५-१८४६१-६७). जयसेन चौपाई-रात्रिभोजन विषये, वा. धर्मसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पणमिय गोयम गणहरराय; अंति: सिद्धि संपद ते लहई, गाथा-२५४. १४२२४. लीलावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. हाजीवास, प्रले. ग. केशरविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १५-१७४५९-६०). लीलावती चौपाई-शीयलविषये, आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६०३, आदि: आदिजिनवर आदिजिनवर; __ अंति: पामीयै हेमरतन भरपूर, गाथा-४७२. १४२२५. वसुदेव रास, अपूर्ण, वि. १६९७, आश्विन कृष्ण, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. १२-३(१ से ३)=९, पू.वि. ९२ गाथा तक नही है., ले.स्थल. अलवर, प्रले. केसव मोहनदास, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४११, १४४५०-५७). For Private And Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org वसुदेव रास, मु. हर्षकुल, मा.गु., पद्य, वि. १५५७, आदि: (-); अंति: कहइ हरषकुल निसदीस, गाथा - ३५१, अपूर्ण. १४२२७. वसुदेव चौपाई, संपूर्ण, वि. १६७२, पौष शुक्ल, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. वौबझामा, जैदे., (२६X११, १८४४५-४९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वसुदेव रास, मु. हर्षकुल, मा.गु., पद्य, वि. १५५७, आदि: सकल मनोरथ सिद्धि; अंतिः जिम पामु अविहड रंग, गाथा - ३५९. १४२२८. विक्रमसेन चौपाई, पूर्ण, वि. १७६२, कार्तिक कृष्ण, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५९-१ (१) = ५८, पू.वि. ढाल - २ गाथा-१ तक नही हैं., ले.स्थल. नसरपर, प्र. ले. श्लो. (६५२) याद्रीसं पुस्तकं द्रीष्टा, जैदे., (२६X११, १३३२-४४). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: परमसागर आणंदा रे, ढाल - ६४, पूर्ण. १४२२९. (+) विक्रमादित्यपंचदंड चौपाई, संपूर्ण, वि. १७५१, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४९, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, जैदे., (२५.५४११, १९५०-६२). विक्रमराजा चौपई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: प्रणमु पासजिणंद पव; अंतिः अहनिस उच्छवरंग बधाई, खंड ६ | ७५. १४२३०. विद्याविलास, संपूर्ण, वि. १६२२, आश्विन कृष्ण, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. ९, प्र. ले. श्लो. (२८६) भग्ना पृष्टि कटि ग्रीवा, (६६७) तैलाद्रक्षेजलाद्रक्षेद्, जैदे., (२२.५४११, १३४४६). विद्याविलास पवाड, आ. हीरानंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १४८५, आदि: पहिलं पणमिय पढम; अंतिः बोलि वाणि विचारी, गाथा - १६०. १४२३१. वैदरभी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, जैदे., (२५.५X११, १३X३६). दमयंती चौपाई, ऋ. प्रेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: जिनधर्म मांहे दीपता; अंति: पहुंचइ मोक्ष मोझार, गाथा - २५१. १४२३२. वैदरभी चौपाई, संपूर्ण, वि. १७९९, कार्तिक शुक्ल, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. प्रतिलेखक अवाच्य है., जैदे., (२५.५X११, १४X३८-३९). दमयंती चौपाई, क्र. प्रेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: जिणधरमसुं जागता हुवो; अंति: गावतां पामई लीलविलास, गाथा - १८५. ७५ १४२३३. व्यवहारशुद्ध चौपाई, संपूर्ण, वि. १७६२, माघ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५x११, १६x३९). व्यवहारशुद्धि चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि: शांतिनाथ जिन सोलमो; अंति: सीझई वंछित काज, ढाल - ९, गाथा - १६१. १४२३४. (+) शांतिनाथ चौपाई, अपूर्ण, वि. १७३०, कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ४७-२ (४४ से ४५) + १ (३३)-४६, पू.वि. गाथा-१३५१ से १३९८ तक नही हैं., ले. स्थल. जालोरनगर, प्रले. पंन्या. मतिहंस (गुरु पंन्या. तत्त्वहंस), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, जैवे. (२५x११, १५-१७X४०-४१). - शांतिजिन रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सकलसुखसंपतिकरण गउडि; अंति: सरस सुरंगइ रे, ढाल ६६, ग्रं. २२०५, अपूर्ण, १४२३५. शालिभद्र रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदे., ( २६x१२, १२X४१-४२). For Private And Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल लेहस्ये, ढाल-२९. १४२३६. शालीभद्र चरित्र व स्त्रीलक्षणगाथा, पूर्ण, वि. १७२८, भाद्रपद शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. २, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४५-४७). १. पे. नाम. शालिभद्र चौपाई, पृ. १अ-१८आ. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल लेहस्ये, ढाल-३०. २. पे. नाम. स्त्री लक्षण, पृ. १८आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., पे.वि. अंतिम पंक्तिवाला भाग फटा है. मा.गु., पद्य, आदि: पुप्फवास पदमनी सहज; अंति: (-), पूर्ण. १४२३७. शालिभद्रचरित्र व सुभाषितसंग्रह, संपूर्ण, वि. १७४८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. २, ले.स्थल. संधाणनगर, प्रले. ग. किर्तिसागर (गुरु ग. सुखसागर); पठ. मु. कुमुदचंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३८-४१). १. पे. नाम. शालिभद्र चौपाई, पृ. १अ-१८अ. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल लेहस्ये, गाथा-५१४. २. पे. नाम. जैन सामान्यकृति , पृ. १८अ१८आ. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). १४२३८. सीलवतीचौपाई व सौदागरगीत, संपूर्ण, वि. १७२५, चैत्र शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २, ले.स्थल. मल्लपुर, प्रले. मु. रूपवर्धन (गुरु मु. रंगवल्लभ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १९४४३). १. पे. नाम. शीलाधिकारे सीलवती चउपई, पृ. १अ-१५अ. शीलवती चौपाई, मु. देवरतन, मा.गु., पद्य, वि. १६९८, आदि: पुरिसादाणी परगडउ; अंति: लक्ष्मी तणा कल्लोल, खंड-३. २. पे. नाम. आध्यात्मिक गीत, पृ. १५अ-१५आ. सोदागर गीत, केसौदास, मा.गु., पद्य, आदि: सौदागर सौदौ करै; अंति: तेहनइ सदा प्रणाम, गाथा-१८. १४२३९. शुकबहुत्तरी, संपूर्ण, वि. १७५०, वैशाख शुक्ल, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. ११०, ले.स्थल. जसनगर, जैदे., (२५.५४११, १३-१४४४०-४२). शुकबहोत्तरी कथा, मु. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: सयल सुरासुर माया; अंति: चोथो जिनशासन परधान, कथा-७३. १४२४०. पंद्रह तिथि व सप्तवार स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ.८-१(२)=७, कुल पे. २, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, १६-१७४४३-४६). १. पे. नाम. १५ तिथि ७ वार चरित्र, पृ. १अ-६अ, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. ___ मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमद् गोडी जगधणी; अंति: लब्धि लहे शुखसम रे, ढाल-१५, अपूर्ण. २. पे. नाम. ७ वार सज्झाय, पृ. ६अ-८आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-६ गाथा-१० तक हैं. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बोले आदित वार अहो; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ७७ १४२४१. (+) स्तवन, स्तुति, सझायसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८१६, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. १४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४१०.५, १८४४३-४५). १. पे. नाम. १४ गुणठाणा स्वाध्याय, पृ. १अ-४आ. १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. मणिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वरपुर धणी; अंति: मणि० जिनमतने अनुसार, ढाल-१७, गाथा-११९. २.पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. ४आ. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापद गिरि जात्रा; अंति: निस सुरनर नायक गावे, गाथा-८. ३. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ. ___ मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सीतलजिन सहेज सुरंगा; अंति: कुशल गुण गाया रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. कर्म सज्झाय, पृ. ५अ-५आ. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: नमो कर्म महाराजा रे, गाथा-१९. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ५आ. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर मनोहरु; अंति: मूगती वधुनो कंत, गाथा-७. ६.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ५आ. मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीतलजिन सहजानंदी; अंति: जिनविजय आणंद स्वभावि, गाथा-५. ७. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. ५आ-६अ. वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर; अंति: लेसे सुख संपदा ए, गाथा-१७. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पृ. ६अ-६आ. ___ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आणि मनसुध आसता देव; अंति: सुंदर कहे सुख भरपुर, गाथा-५. ९. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. ६आ. श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीइं; अंति: सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा-४. १०. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. ६आ. मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिन; अंति: जीत नमें नितमेवरे, गाथा-५. ११. पे. नाम. सेजानी थोइ, पृ. ६आ-७अ, वि. १८१६. ____शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमंडण; अंति: सूरि तुम्ह पाय सेवता, गाथा-४. १२. पे. नाम. श्रावक करणी सज्झाय, पृ. ७अ-७आ. श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणि दुखहरणि छे एह, __गाथा-२३. १३. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. ७आ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरे वखाणी राणी; अंति: पामीयो भव तणो पार, गाथा-७. १४. पे. नाम. भाभा पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७आ. For Private And Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, मु. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: वालाजी पांच मंगलवार; अंति: उदेरतन इम भणे रे लोल, गाथा-५. १४२४२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२६-१८२७, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ८, ले.स्थल. धमरुकानगर, प्रले. पं. रविविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १५४३५-३८). १. पे. नाम. दशार्णभद्रराजा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, वि. १८२६, माघ कृष्ण, ७, पे.वि. प्रतिलेखक ने दो पदों की एक गाथा की गिनती से १८ गाथा लिखा है. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाइ सेवक, अंति: लालविजय निसदीश, गाथा-१८. २. पे. नाम. निश्चयव्यवहार सज्झाय, पृ. १आ-२आ. आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीय जिनवर रे देशना; अंति: वीतराग एणि परे कहे, गाथा-१६. ३. पे. नाम. बाहुबल स्वाध्याय, पृ. २आ-४आ, वि. १८२७, भाद्रपद कृष्ण, ८. ___ भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: स्वस्ति श्रीवरवा; अंति: रामविजय जय श्रीवरे, ढाल-४. ४. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ४आ-५अ. मु. लावण्यसमय *, मा.गु., पद्य, आदि: वैकुठ पंथ बिहामणो; अंति: लावण्यसमय० जिननाथ, गाथा-२०. ५. पे. नाम. चित्रसंभूति सज्झाय, पृ. ५आ-६अ. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्त कहे ब्रह्मराय; अंति: भणइ० लहिस्यइं हो के, गाथा-१९. ६.पे. नाम. रात्रीभोजन सज्झाय, पृ. ६अ-६आ. रात्रिभोजन सज्झाय, वा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु चरणे रे भाव; अंति: विजय० सांभलजो निसदिस, ढाल-२. ७. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. ६आ-७आ, वि. १८२७, आश्विन शुक्ल, ९. मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: लाछलदे मात मल्लार; अंति: सिंघशोभाग० नामनेजी, गाथा-३६. ८. पे. नाम. सिद्धचक्र स्वाध्याय, पृ.८अ-८आ. नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सकल कुशल कमलानो; अंति: दानविजय जयकारा रे, गाथा-२२. १४२४३. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ५, ले.स्थल. पत्तननगर, जैदे., (२४४११, १६x४०-४३). १. पे. नाम. बाहुबलरीषी, पृ. १अ-२आ. भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: स्वस्ति श्रीवरवा; अंति: रामविजय जय श्रीवरे, ढाल-४. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, पृ. ३अ-५अ. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु; अंति: रामविजय० अधिक जगीसए, ढाल-३. For Private And Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org ३. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. ५अ-७आ. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिका नवरी; अंति: लहे ते मंगल अति घणो, डाल- ३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. पे. नाम. प्रत्याख्यान विचार, पृ. ७आ-८अ. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि धुरि समरुं सामिणी; अंतिः विनय संघ संपती वरे, ढाल -२, गाथा - १७. ५. पे. नाम. सोलसतीनी स्वाध्याय, पृ. ८अ - ८आ. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि आदिनाथ आदि जिनवर अंति: लेसे सुख संपदा ए, गाथा - १७. १४२४४. आत्मज्ञानस्वरूप सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २३, जैदे. (२६.५x११, १५X४०-४३). १. पे. नाम. आत्मप्रबोधज्ञापकद्रष्टिस्वरूप सज्झाय, पृ. १अ - ४अ. " ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक जशने वयणेजी, ढाल -८, गाथा- ७६. २. पे नाम. ३५ मार्गानुसारीगुण सज्झाय, पृ. ४अ ५अ. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहइ भविजन प्रतें; अंति: मान कहइ शुभ वाणि हो, गाथा - १७. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ५अ - ५आ. ग. मणिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रवण १ कीर्त्तन २; अंति: पदवी लहस्ये तेह, गाथा - ११. ४. पे नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ५आ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि जे देखूं ते तुज नही; अंति: चंद हवइ सीधला काज के, गाथा ७. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ५आ-६अ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि जेहनई अनुभव आतम; अंतिः आप सभावमई रातो रे, गाथा-५, ६. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ६अ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आतम अनुभव जेहनई; अंति: परमातम मे मन्न रे, गाथा ५. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ६अ - ६आ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि अनुभव सिद्ध आतम जे; अंतिः श्रीहरिभद्र बुद्ध रे, गाथा ५. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६आ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कोइ कीनहीकुं काज न; अंतिः दुःखादिकने प्रीछे रे, गाथा ६. ९. पे नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ६आ-७अ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि; चेतना चेतनकुं; अति: मणीचंद्र गुण जाणो रे, गाथा-७, १०. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ७अ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेतन में धरि; अंति: मणीचंद होये भवअंता, गाथा-५. ११. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ७अ-७आ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जग सरूप चेतन संभलावइ; अंति: मणिचंद्र गुण आवइ रे, गाथा - ९. For Private And Personal Use Only ७९ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ७आ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समकित तेह यथास्थित; अंति: यथास्थिति जाणो, गाथा-५. १३. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ७आ-८अ. मु. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आतमारामई रे मुनि; अंति: मणिचंद्र आतम वारि रे, गाथा-५. १४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८अ-८आ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन जब तुं ज्ञान; अंति: सुख संपति वाधई, गाथा-८ १५. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ८आ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अणविमास्युं करइ काइ; अंति: मणिचंद्र पामे ठकुराई, गाथा-६. १६. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ८आ-९अ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन तुमही आपईं; अंति: चंद्र० आपणी ठकुराई, गाथा-५. १७. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ९अ. ___ मु. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जो चेति तो चेतजे जो; अंति: पूरइ शिवपुर वास, गाथा-६. १८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९अ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: शिवपुरवासना सुख सुणो; अंति: जे सिद्ध पद पावे, गाथा-४. १९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९अ-९आ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आदित जाइने आपणी; अंति: मणीचंद सुद्धीवाणी, गाथा-८. २०. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ. मु. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: शुकलपक्ष पडवेथी निश; अंति: मणिचंद्र एह लखाणी जी, गाथा-९. २१. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १०अ. मु. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मिच्छत्व कहीजे; अंति: पर वस्तु म संचि, गाथा-७. २२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १०अ-१०आ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज का लहा लीजी कालि; अंति: चंद्र० परमाणंद साधइ, गाथा-८. २३. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १०आ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सम्मदीट्ठी ते यथा; अंति: समश्रेणि सिद्ध पावइ, गाथा-८. १४२४५. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. ८. कलपे. २१. जैदे.. (२६.५४१२.१२४३७-४१). १.पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ. ग. मणिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रवण १ कीर्तन २; अंति: पदवी लहस्ये तेह, गाथा-११. २. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २अ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जे देखु ते तुज नही; अंति: चंद हवइ सीधला काज के, गाथा-७. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जेहनई अनुभव आतम; अंति: आप सभावमई रातो रे, गाथा-५. For Private And Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org ४. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २आ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आतम अनुभव जेहनई; अंति: परमातम मे मन्न रे, गाथा ५. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २आ - ३अ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अनुभव सिद्ध आतम जे; अंतिः श्रीहरिभद्र बुद्ध रे, गाथा - ५. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि कोइ कीनहींकोउ काज न; अंतिः दुःखादिकने प्रीछे रे, गाथा ६. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ३अ - ३आ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेतना चेतनकुं; अंतिः मणीचंद्र गुण जाणो रे, गाथा-७. ८. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ३-४अ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेतन में धरि अंति: मणीचंद होये भवअंता, गाथा ५. ९. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ४अ -४आ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जग सरूप चेतन संभलावइ; अंतिः मणिचंद्र गुण आवइ रे, गाथा- ९. १०. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ४आ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समकित तेह यथास्थित; अंति: यथास्थिति जाणो, ११. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ४आ-५अ. मु. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आतमारामई रे मुनि; अंतिः मणिचंद आतम ठार रे, गाथा-५, १२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५अ - ५आ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन जब तुं ज्ञान; अंति: सुखसंपत्ति वाधे, गाथा - ८. १३. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ५आ. गाथा - ५. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अणविमास्युं करइ काइ; अंति: मणिचंद्र पामे ठकुराई, गाथा - ७. १४. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ५आ-६अ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन तुमही आपें; अंति: चंद्र० आपणी ठकुराई, गाथा - ५. १५. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ६अ. औपदेशिक सज्झाय, मु. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि जो चेते तो चेतजे जो; अंति: पूरे शिवपुर वास, गाथा ६. For Private And Personal Use Only १६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ - ६आ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: शिवपुरवासना सुख सुणो; अंति: मुनिचंद इम उपनय भावे, गाथा-४. १७. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६आ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि आदित जोयिने आपणी; अंति: मणीचंद शुद्ध वाणी, गाथा-८. १८. पे नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ६आ-७अ. मु. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदिः शुकलपक्ष पडवेथी निश; अंतिः मणिचंद्र एह लखाणी जी, गाथा ९. १९. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ७अ-७आ. ८१ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मिच्छत्व कहीजे; अंति: मणीचंद परवस्तु म संच, गाथा-७. २०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७आ-८अ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज का लाहा लीजीइं; अंति: लागी रहे परमनंद साधे, गाथा-८. २१. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ.८अ. ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सम्मदीट्ठी ते यथा; अंति: मणीचंद० सिद्ध पावे, गाथा-८. १४२४६. (+) अमृतमुखी चोपई, संपूर्ण, वि. १७३०, फाल्गुन शुक्ल, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. बाव, प्रले. मु. देवा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५४११, १९४४९-५१). अमृतमुखी चौपाई, मु. हीरजी, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: श्रीआदिसर आदिधरि; अंति: सदा हीर मुनी गुणधार, ढाल-३२, गाथा-४२८. १४२४७. (+) अमृतमुखीचतुःपदी, संपूर्ण, वि. १७२९, फाल्गुन कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. गुंदवचग्राम, प्रले. ऋ. मनोहर (गुरु ऋ. रामाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., प्र.ले.श्लो. (६७१) जादृस्यं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११, १९४५९-६१). अमृतमुखी चौपाई, मु. हीरजी, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: श्रीआदिसर आदिधरि; अंति: सदा हीर मुनी गुणधार, ढाल-३२, गाथा-४२८,ग्रं.७००. १४२४८. (+) इषुकारीसिंधु, संपूर्ण, वि. १८३३, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. अवंतीपुर, प्रले. मु. आनंदराम; पठ. श्रावि. अवलबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४१-४३). इक्षुकारसिद्ध चौपाई, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४७, आदि: परम दयाल दयाकरु आसा; अंति: खेम भणै० कोडि कल्याण, ढाल-४. १४२४९. ईलाकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. १७३५, पौष शुक्ल, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, पू.वि. ढाल-२ गाथा ७ तक नही हैं., जैदे., (२३.५४१०, ११४४५). भावविषये इलाचीकुमर चोपई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: (-); अंति: ज्ञान दर्शन अजूआले, गाथा-१८७, ग्रं. २६७, अपूर्ण. १४२५०. ईलाकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्रले. मु. जीतविमल; पठ. श्रावि. केसरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४४६-५०). इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकलसिद्धदायक सदा; अंति: ज्ञान दर्शन __ अजूआले, गाथा-२६७. १४२५१. कयवन्नाश्रेष्ठि चौपाई, संपूर्ण, वि. १७७८, फाल्गुन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. २३, ले.स्थल. किसनगढ, जैदे., (२५४११, १५४४०-४२). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: धरम करण मन उलसेजी, ढाल-३१. १४२५२. (#) गजसिंघ रास, संपूर्ण, वि. १७४७, मध्यम, पृ. १०, प्रले. ऋ. दयालजी (गुरु आ. विनयसागरसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १९-२०४४०-४१). For Private And Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ८३ गजसिंघकुमार रास, मु. सुंदरराज, मा.गु., पद्य, वि. १५५६, आदि: पास जिणेसर पय नमी; अंति: तन मनइ उच्छाहि, __खंड-४, गाथा-४२२. १४२५३. (+) शुकराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १८२४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ३३-३(१४ से १६)=३०, पू.वि. ढाल-१५ दुहा-३ से ढाल-१९ दुहा-२ तक नही हैं., प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३-१४४३७-३९). शुकराज चौपाई, मु. सोभाचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: श्रीसेव॒जय तीर्थ; अंति: गावे सोभाचंद० दीजीयो, ढाल-३७, गाथा-७८६, ग्रं. ११७९, अपूर्ण. १४२५४. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८८७, कार्तिक शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३३, ले.स्थल. महिमापुर, जैदे., (२३.५४१२, १५४४०). श्रीपाल बृहद्रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण; अंति: पातकवन लुणिज्ये रे, ढाल-४९. १४२५५. श्रीपालनरेंद्र कथा चौपाई, संपूर्ण, वि. १७५१, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. साहजिहांदवाद, जैदे., (२५४१०.५, १४-१५४४६-५४). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: ॐकर कमल जोडेवि करि; अंति: जिम राजन श्रीपाल, गाथा-२९७. १४२५६. (+) संग्रहणीसूत्र रास, संपूर्ण, वि. १७८३, चैत्र शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. देवली, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५.५४११, १८-२०४५०). बृहत्संग्रहणी-रास, संबद्ध, मु. प्रीतिविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७७७, आदि: अरिहंतादिक पांच जे; __ अंति: संघ चतुर्विध जयकरू, उल्लास-७, गाथा-५५०. १४२५७. सदयवछवीर रास, संपूर्ण, वि. १६५२, आश्विन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. २९, ले.स्थल. देवाली, प्रले. वा. पदमराज (गुरु उपा. विजयसुंदर); राज्यकाल रा. प्रतापसंघ, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२३.५४११, १३-१५४४१). सदयवच्छ रास, मा.गु., पद्य, आदि: माई महामाई मज्झे; अंति: सुह लच्छि विलास, गाथा-६६१. १४२५८. सुदवछसावलिंगचौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्रले. ग. ऋद्धिविजय (गुरु मु. प्रेमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १५४३७-४०). सदयवत्स सावलिंगा चउपई, मु. कीर्तिवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: स्वस्ति श्रीसोहगसुजस; अंति: करजो दया दयाल, गाथा-३९१. १४२५९. सागरचंदसुसीलासुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२५.५४११.५, १८४४१-४२). सागरचंद सुशीलासुंदरी चौपाई-शीलव्रतविषये, ऋ. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: श्रीआदेस्वर आद करी; अंति: लालचंद० गुण गाजेजी, ढाल-२१, गाथा-४१९. १४२६०. संबप्रद्युम्न रास, संपूर्ण, वि. १६५९-१७००, श्रेष्ठ, पृ. ३२, प्रले. मु. दूदा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १०४३९-४०). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंति: समयसुंदर० जय जयकार, खंड-२, ढाल २१. For Private And Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४२६१. संबप्रद्युम्नसंबंध, पंचमीविचार व अधीकमासफल, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. ३, ले.स्थल. वांजेवानगर, प्रले. ग. दयाविजय (गुरु ग. कनकविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १७-१८४४२-४३). १. पे. नाम. सांबप्रद्युम्न प्रबंध, पृ. १अ-१६आ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंति: पभणइ संघ सुजस जगीस ए, खंड-२,ढाल २२. २. पे. नाम. शुक्लपंचमी विचार, पृ. १६आ. शुक्लपंचमीतिथि विचार, सं., पद्य, आदि: चैत्य मासस्य पंचम्या; अंति: सवि शेषणाति शेषती, श्लोक-७. ३. पे. नाम. अधिकमास फल, पृ. १६आ. सं., पद्य, आदि: द्वि कार्तिके मध्यमं; अंति: पूर्वसूरिभिः, श्लोक-६. १४२६२. सिदूदत्त चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदे., (२५.५४११, १४४४२-४४). सिदूदत्त चौपाई, मु. धनजी, मा.गु., पद्य, आदि: चउविह मंगल मनिधर्मी; अंति: ते पामे सुख सार. १४२६३. सिंहलसुत प्रीयमेल चौपाई, संपूर्ण, वि. १६७२-१७००, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२४.५४११, ११४३८-३९). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति: कहइ० श्रावक दीजीइ रे, ढाल-११. १४२६४. प्रियमेलक चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२६४१०.५, १३-१४४३७-३८). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति: पुण्य अधिक परमोद, ढाल-११, गाथा-२३०. १४२६५. सुभद्रासती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६१, फाल्गुन शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदे., (२६४११.५, १५४३८-४३). सुभद्रासती चौपाई, ग. रूपवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि: आदिकरण आदिसलं सांति; अंति: सुणतां रंग रसालांजी, ढाल-२५. १४२६६. सिंहलसुत चौपाई, संपूर्ण, वि. १६७२-१७००, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४७-५२). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रण, सद्गुरु पाय; ___अंति: पुण्य अधिक परमोद, ढाल-११, गाथा-२२०. १४२६७.(+) सिंहलसुत चौपाई, संपूर्ण, वि. १६९९, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. शेषपूर, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५४१०.५, १४-१५४५१-५५). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति: पुण्य अधिक परमोद, ढाल-११, गाथा-२३२. १४२६८. (+) सिंहलसुत चौपाई, संपूर्ण, वि. १६८०, श्रावण कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५४११, १६-१७४४६-५१). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; __ अंति: कहइ समयसुंदर अधिकार, गाथा-२३०, ग्रं. ३०५. For Private And Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १४२६९. सिंहासनबत्रीसी चौपाई, अपूर्ण, वि. १७७१, भुविऋषिजलधिचंद्र, मध्यम, पृ. ५३-४(१ से २,४१,४८)+१(३९)=५०, जैदे., (२४४१०.५, १५-१६x४४-४६). सिंहासनबत्रीसी, ग. संघविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: लहि नर कोडि कल्याण, ___गाथा-१६४७, अपूर्ण. १४२७०. सिंहासनबत्रीसी चौपाई, अपूर्ण, वि. १६७६, चैत्र कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ७२-१३(२१ से ३३)=५९, ले.स्थल. पालि, प्रले. मु. विजयकीर्ति (गुरु ग. दयाकीर्ति, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४१०, १४४४८). सिंहासनबत्रीसी चौपाई-दानाधिकारे, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: आराहि श्रीरिषभप्रभु; अंति: रिद्धि पामइ बहु परइ, गाथा-१६९२, अपूर्ण. १४२७१. सीताराम प्रबंध, संपूर्ण, वि. १७८६, आश्विन कृष्ण, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ८३, ले.स्थल. शांतलपुर, प्रले. ग. तिलकविजय (गुरु ग. सुखविजय, तपागच्छ); पठ. ग. रत्नविजय (गुरु ग. तिलकविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२४.५४११, १७-१८४३९-४०). रामसीता रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: आणंद कोडी कल्याणो रे, खंड-९, गाथा-२४२२, ग्रं. ३७०५. १४२७२. प्रीयमेलक चौपाई, संपूर्ण, वि. १७२१, भाद्रपद शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. मु. खीमाशील, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १५४४२-४४). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति: पुण्ये अधिकुं प्रमोद, ढाल-११, गाथा-२३०, ग्रं. ४५५... १४२७३. (+) सुभद्रासती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. तोलीयासर, प्रले. ग. रूपवल्लभ (गुरु पा. विद्यानिधान, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५४११, १५-१९४३७-४७). सुभद्रासती चौपाई, ग. रूपवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि: आदिकरण आदिसरु सांति; अंति: सुणता रंग रसालांजी, ढाल-२५. १४२७४. सुभद्रासती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. उमेदगंज, जैदे., (२५४११.५, १६x४१). सुभद्रासती चौपाई, क्र. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: अरिहंत सिध समरं सदा; अंति: सतीना गुण ___ गायेजी, ढाल-७. १४२७५. सुरपतिराजर्षि चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२५४११, १६-१७४५४-५६). सुरपति राजारास-दानधर्मे, मु. दामोदर, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणमु स्वामी शांति; अंति: ऋद्धिवृद्धि कल्याण, गाथा-३६०. १४२७६. सुरसुंदरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-३(६ से ७,१७)+१(२१)=२०, जैदे., (२५४११, १३४४३-४४). सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: आदि धरमने करवा ए; अंति: इम भणि आणंदपुरी, गाथा-५१२, अपूर्ण. १४२७७. सुरसुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १७४५, कार्तिक शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्रले. ग. सौभाग्यचंद (गुरु ग. सिद्धिचंद्र), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४५-५०). For Private And Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: आदि धर्मनी करिवाए; अंति: एम भणे आनंदपूरि, गाथा-५०२. १४२७८. सुरसुंदरीसती चौपाई, पूर्ण, वि. १८८७, वैशाख शुक्ल, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २८-१(१२)=२७, ले.स्थल. आऊउवानगर, प्रले. मु. कर्पूरहंस (गुरु पंन्या. तिलोकहस), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४११.५, १४४३४-३५). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सासण जेहनउ सलहियइ; अंति: आनंद लील उमंगेजी, अध्याय-४, ढाल ४०, गाथा-६१९, ग्रं. ९००, पूर्ण. १४२७९. (+) हंसराज वछराजरास, तमाकुपरिहार व हीरविजयसूरि सज्झाय, पूर्ण, वि. १७३१, चैत्र कृष्ण, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५-१(१)=३४, कुल पे. ३, ले.स्थल. रामसेणनगर, प्रले. ग. विनयचंद्र (गुरु ग. तीथीचंद्र), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, जैदे., (२५.५४११, १३-१४४३६-४३). १. पे. नाम. हंसराजवत्सराज चौपाई, पृ. २अ-३५अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: ए हस अनै वच्छराज, खंड-४, पूर्ण, २. पे. नाम. तमाकुपरिहार सज्झाय, पृ. ३५अ-३५आ. मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती विनवे; अंति: तेहने कोडि कल्याण, गाथा-१७. ३. पे. नाम. हीरविजयसूरि सज्झाय, पृ. ३५आ. मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिणेसर प्रणमु; अंति: विजय प्रणमी निसदीस, गाथा-५. १४२८०. (+) आतमबोध सवैया, संपूर्ण, वि. १९२३, आषाढ़ शुक्ल, १०, गुरुवार, जीर्ण, पृ. ७, ले.स्थल. साणाना, प्रले. तलजाराम बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १०x४१-४६). औपदेशिक सवैया, मु. चिदानंदजी, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार अगम अपार प्रवचन; अंति: नरभव लाहो लीजीयो, गाथा-४४. १४२८१. सुरसुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३६, आषाढ़ शुक्ल, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. नोरंगावाद, प्रले. सा. करमेती आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १९-२१४५४-५६). सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: आदि धरमने करवा ए; अंति: एम भणे आनंदपूरि, ढाल-२१, गाथा-५०२. १४२८२.(+) कृष्णरुक्मणी वेलि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०२, भाद्रपद, श्रेष्ठ, पृ. २५, प्रले. मु. राजधर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, ६x४९-५२). कृष्णरुक्मणी वेलि, रा. पृथ्वीराज राठोड, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: परमेसर प्रणमि; अंति: तरु कीकमधजकल्याणउत, गाथा-३०४. कष्णरुक्मणी वेलि-टबार्थ, म. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, वि. १६३८, आदि: श्रीहर्षसारसद्गुरु; अंति: पुत्र पृथवीराज कृत. १४२८४. सुक्तावलीसंग्रह, संपूर्ण, वि. १७५०, पौष शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५१). सूक्तावली संग्रह, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: कीजइ धर्म सुहामणो; अंति: क० नासखी तुरकीया, गाथा-१०७४. १४२८५. त्रैलोक्य विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२४.५४११.५, १७X४३-५०). For Private And Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ त्रैलोक्यसार चौपाई, आ. सुमतिकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६२७, आदि: सुमतिनाथ पंचमो जिन; अंति: भूषण धरी मुगति जाय, गाथा-२०५. १४२८६. बारभावना, संपूर्ण, वि. १८५२, वैशाख कृष्ण, १२, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. जाटावाडा, प्रले. पं. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १५४४०). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल-१३, गाथा-१२९. १४२८७. नेमजिन विवाहलो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, जैदे., (२४४१०.५, १०x२८-३०). नेमिजिन विवाहलो, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: सरसती चरण समरी; अंति: विमला कमला झाक झमाल, ढाल-२२. १४२८८. पार्श्वजिन धवल, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२६४११, १३४४८-५०). पार्श्वजिन १० भव विवाहलो, श्राव. पेथो, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: सरसति सामिणि करुअ; अंति: इम बोलइ० अविचल रिधि. १४२८९. बारभावना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८-२(२ से ३)=६, जैदे., (२६४११, ११४३२-३३). १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: विमल कुल कमलना हंस; अंति: मुनिवर ध्यायवोरे, ढाल-१४, अपूर्ण. १४२९०. भरतबाहुबलीनवछंद, संपूर्ण, वि. १६६८-१७००, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. ऋ. केशव; पठ. ऋ. हीरजी (गुरु ऋ. केशव), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १६४४९). भरतबाहुबली नवछंद, मु. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: (१)स्मृत्वा श्रीनाभेयं, (२).पणमेवि पद आदिश्वर; अंति: सकल संघ मंगल करण, ढाल-४. १४२९१. मृगावती आख्यान व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. २, प्रले. ऋ. जीवा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १२४३७-३९). १.पे. नाम. मृगावती रास, पृ. १अ-२०अ. उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ नरपति कुलिं; अंति: भरू पुण्य तणा घडा, गाथा-४२१. २. पे. नाम. जैन गाथा*, पृ. २०अ. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). १४२९२. नवरसगीत व रामचंद्रलेख, संपूर्ण, वि. १७२३-१८००, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४७-४८). १. पे. नाम. नवरस गीत, पृ. १अ-४अ. स्थूलिभद्रनवरस सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: करी श्रृंगार कोश्या; अंति: कहि० हुं जाउ बलिहारी, ढाल-९. २. पे. नाम. रामचंद्र लेख, पृ. ४आ-६आ. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: स्वस्ति श्रीलंका; अंति: हृदय अमीरस थाय, ढाल-५. For Private And Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४२९३. वर्द्धमानजिन वेली, संपूर्ण, वि. १६५७, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२६४११, १३४३५). महावीरजिन हमचडी-कल्याणकपंचवर्णन, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: नंदनकुं त्रिशला; अंति: चरमजिणेसर वीरो रे, ढाल-३, गाथा-६६. १४२९४. (+) सनतकुमारचक्रवर्ति रास, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १२४३९-४१). सनत्कुमारचक्रवर्ति रास, वा. पद्मराज, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: पास जिणेसर पय पणमेवी; अंति: सिद्धि वंछित ते पावई, गाथा-१३३. १४२९५. साधुकल्पलता, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, जैदे., (२५४११, ११४३५-३८). साधुवंदना, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: तुं जिनवदन कमलनी; अंति: वंदइ तं सकलचंद मुणी, गाथा-१४५. १४२९६. साधु वंदना, पूर्ण, वि. १६७९, मध्यम, पृ. १०-१(२)=९, पू.वि. गाथा-५ से १२ तक नहीं है., ले.स्थल. स्तंभनगर, प्रले. मु. कान्हजी; पठ. श्रावि. राजलदे, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, ९४३२-३७). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: मनि आणंदई संथुआ, ढाल-७, गाथा-८८, पूर्ण. १४२९७. सूत्रकृतांगसूत्र अध्ययन ६ वीरस्तववृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५३-५७). सूत्रकृतांगसूत्र-वीरस्तववृत्ति, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, आदि: उक्त पंचममध्ययन; अंति: ब्रवीमीति पूर्ववत्, ___ अध्याय-६वां, ग्रं. ३००. १४२९८.(+) श्राद्धजीतकल्प, श्राद्धलघुजीतकल्प सह अवचूरि व प्रायश्चित्तादिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४५०-५९). १.पे. नाम. श्राद्धजीतकल्पसह अवचूरि, पृ. १अ-६अ, पे.वि. अवचूरि गाथा १३८ तक दी गई है व दो हिस्सों में पूर्ण होती है. पृष्ठ १अ-२आ में प्रथम हिस्सा और पृ.७अ-९अ में दूसरा हिस्सा दिया गया है. सयन्त्रक. श्राद्धजीतकल्प, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: कयपवयणप्पणामो जीयगय; अंति: रइयं सोहंतु ___ गीयत्था, गाथा-१४१. श्राद्धजीतकल्प-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: आचारवान ज्ञानादिपंच; अंति: (अपठनीय). २. पे. नाम. श्राद्धलघुजीतकल्प सह अवचूरि, पृ. ६अ-७अ. श्राद्धलघुजीतकल्प, आ. तिलकाचार्य, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं नमिउं; अंति: दसगं सव्वेसु नवपरउ, गाथा-३२. श्राद्धलघजीतकल्प-अवचरि, सं., गद्य, आदि: लघुपंचकं लघुदशकं; अंति: ख्यानभंगे तदेवतपः. ३. पे. नाम. जीतकल्पसूत्र प्रायश्चित संग्रह, पृ. १०अ. जीतकल्पसूत्र- प्रायश्चित संग्रह, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: मध्यम देवगुरुपुस्तका; अंति: शुद्धिः स्यात्. १४२९९. चतुःशरणप्रकीर्णक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. बाभणग्राम, पठ. मु. महेन्द्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४१०.५, २-४४३६-३९). For Private And Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज्ज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६०. चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सावज जोग विरइ; अंति: अवंध्य कारण छई. १४३००. लोकनाली सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १३४४१-४३). १.पे. नाम. लोकनालिद्वात्रिंशिका सह टीका, पृ. १अ-७अ. लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा जं; अंति: जहा भमह न इह _भमम्, गाथा-३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-टीका, सं., गद्य, आदि: जिनदर्शनं विना; अंति: भृशमत्यर्थं न भ्रमत, ग्रं. १८०. २. पे. नाम. लोकनालिद्वात्रिंशिका का विषमपद टिप्पण, पृ.७अ-८आ. लोकनालिद्वात्रिंशिका-विषमपद टिप्पण, सं., गद्य, आदि: समत्तचरण अस्य; अंति: जाणुत्तराई चउक्कम्मि. १४३०१. श्रुतास्वाद, संपूर्ण, वि. १६८२, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. ग. कल्याणचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १५४४८). आत्मशिक्षा प्रकरण, वा. सकलचंद्र, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धत्थ सुअं सिद्धं; अंति: सो सुहं लेइ मुखम्, गाथा-१६७. १४३०२. रत्नसंचय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४७, जैदे., (२३४११, ७४३३-३७). रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे उवया; अंति: धणु गाहा आगमे भणिया, गाथा-५२०. रत्नसंचय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरदेव प्रति; अंति: थकी कहिइ छे. १४३०३. सिद्धांतविचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५८६, वैशाख अधिकमास शुक्ल, ६, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४९, प्रले. पं. सौभाग्यविजय; पठ. ग. हर्षविजय (गुरु पं. सौभाग्यविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १३४४८-५४). सिद्धांतहंडी, पंन्या. सहजकुशल, प्रा., गद्य, आदि: नमिऊण जिणवराई सुअ; अंति: जिवाणंच बोहित्थं. सिद्धांतहडी-बालावबोध, मा.ग..गद्य, आदि: श्रीजिनादिक प्रथम: अंति: भव्यजीवनि बुज्झविवउ. १४३०४. सिद्धांतविचारगाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १६९५, श्रावण शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. वीजापुर, प्रले. पंन्या. धनविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३४-३७). १. पे. नाम. सिद्धांतविचार गाथासंग्रह, पृ. १अ-६अ. प्रा., पद्य, आदि: कंचणगिरि पव्वेस; अंति: तिन्निविपलिउव, श्लोक-२११. २. पे. नाम. सिद्धांत गाथा, पृ. ९आ. सिद्धांत श्लोक, सं., पद्य, आदि: अंडजाः पक्षिसर्पाद्य; अंति: जेतु ते चतुरिंद्रिया, श्लोक-१०. १४३०५. योगशास्त्र-प्रकाश १,२, प्रतिपूर्ण, वि. १८३६, चैत्र कृष्ण, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. अंजार, प्रले. ग. विनितविजय (गुरु ग. रत्नविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १४४४०-४५). ___ योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १४३०६. (+) कर्मग्रंथ १-२ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, कुल पे. २, प्रले. मु. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ३४२६-३२). १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १अ-१९आ. For Private And Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीकहेतां द्रव्य; अंति: श्रीदेवेंद्रसूरिइं. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १९आ-३१अ. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: तिमज स्तवना करीने; अंति: ते महावीरदेव प्रते. १४३०७.(+) कर्मग्रंथ- १,२,३ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ४४३९-४२). १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १अ-९अ. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिरिवीरजिणं क०; अंति: सूरीश्वरे लिख्यो. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ९आ-१४आ. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिण; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: बंध ते स्यु कहीयइ; अंति: श्रीमहावीर प्रतइ. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १४आ-१९आ. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्क; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ ,मा.गु., गद्य, आदि: अभिनव कर्मनो ग्रहवो; अंति: अकर्मस्तवन कणिइ. १४३०८. कर्पूरप्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१५८ अपूर्ण तक हैं., जैदे., (२३.५४१०, १३४३९-४०). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंति: (-), अपूर्ण. कर्पूरप्रकर-टीका, आ. जिनसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १५५१, आदि: लक्षजिनेशपेशलरद; अंति: (-), अपूर्ण. १४३०९. सिंदूर प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४०). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: माने निशमेति नाशम्, श्लोक-९८. सिंदूरप्रकर-टीका, सं., गद्य, आदि: पार्श्वप्रभोः क्रमयो; अंति: ज्ञानगुणारतनोतुः. १४३१०. (+) बलिनरेंद्राख्यानक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १२४३४-३८). भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., गद्य, आदि: अस्तीह जंबूद्वीपे; अंति: नरेंद्रर्षिः केवली. १४३११. पालगोपाल व रत्नवती कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १३४४६-५०). १. पे. नाम. पालगोपाल कथा, पृ. १अ-८अ. आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: ये शील सुख कुल्लील; अंति: जिनकीर्तिसूरिः, श्लोक-२३८. For Private And Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २.पे. नाम. रत्नवती कथा-विषयत्यागे, पृ. ८अ-११आ. सं., पद्य, आदि: शिवश्रीदायक; अंति: स्युर्जयश्रियः, श्लोक-१२८. १४३१३. (+) मदनसेन चौपाई, संपूर्ण, वि. १९०८, वसुव्योमग्रहधरा, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले.स्थल. अकबराबाद, प्रले. ऋ. लालचंदजी (गुरु ऋ. सांवतराम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित.,प्र.ले.श्लो. (६७२) पोथी अरु पदमनी, जैदे., (२५४११, १५४४९-५०). मदनसेन चौपाई, क्र. सांवतराम, मा.गु., पद्य, वि. १८९८, आदि: प्रथम नमी भगवंतनै; अंति: दुरगति दुर नसाइयै, ढाल-३१, ग्रं. १२००. १४३१४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व गाथासंख्या, संपूर्ण, वि. १७७२, श्रेष्ठ, पृ. १९३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ५४३४-३८). १. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-१९३आ. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: त्ति बेमि, अध्ययन-३६, (वि. १७७२, श्रावण कृष्ण, ६, मंगलवार, ले.स्थल. झोटाणा) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सं० संयोग बइ प्रकारइ; अंति: छत्रीस० वाल्हा हुई, (वि. १७७२, भाद्रपद शुक्ल, १५, शुक्रवार) २. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-गाथासंख्या, पृ. १९३अ. ___प्रा., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). १४३१५. धूर्ताख्यान बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७५८, कार्तिक शुक्ल, १२, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. उदैपुर, प्रले. पं. लक्ष्मीकीर्ति (गुरु ग. रत्नसुंदर, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १२-१४४३१). धूर्ताख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सदुपनिषदनेकग्रंथसंदर; अंति: अनुमोदवां ध्यावा. १४३१६. कर्मग्रंथ-६सप्ततिका यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८३+१(४३)=८४, ले.स्थल. हरीदुर्ग, प्रले. पं. विनयचंद्र (खरतरगच्छ); पठ. श्रावि. कीर्तिकवरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, जैदे., (२५.५४११). सप्ततिका कर्मग्रंथ-यंत्र, पंन्या. सुमतिवर्धन, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिन प्रते नम; अंति: कृष्णगडै शुभ वास. १४३१७. इरियावहियादि कुलक व विचारसार संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. ४, जैदे., (२१.५४११.५, ८४३२-३७). १. पे. नाम. इरियावही कुलक सह टबार्थ, पृ. १अ-२अ. इरियावही कुलक, प्रा., पद्य, आदि: चउदस पय अडचत्ता तिगह; अंति: रे जीव निच्चंपी, गाथा-१२. इरियावही कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जीव ताहरो उद्धार थाइ, (वि. प्रथम गाथा का टबार्थ नही लिखा गया है.) २. पे. नाम. पौषधकुलक सह टबार्थ, पृ. २अ-३अ. पुण्यफल कुलक, प्रा., पद्य, आदि: छत्तीसदिणसहस्सा वासस; अंति: म्मि धम्मम्मि उज्जमह, श्लोक-१५. पुण्यफल कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हवै सो वर्षना दिन; अंति: विषे उद्यम करो. ३. पे. नाम. सामायिक ३२ दोष सह टबार्थ, पृ. ३अ-३आ. For Private And Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सामायिक ३२ दोष गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पल्लत्थी अथिरासणं; अंति: वसे सव्व सुह लच्छी, गाथा-६. सामायिक ३२ दोष गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पालखीइं न बेसीइं; अंति: सुखलक्ष्मी होइ सही. ४. पे. नाम. विवधविचार संग्रह सह टबार्थ, पृ. ४अ-१६आ. विविध विचारसंग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: तस जीवाणविधाउ तेह; अंति: सव्वे कामा दुहावहा. विविध विचारसंग्रह-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). १४३१८. लीलावती भाषा, संपूर्ण, वि. १८९५, चैत्र शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदे., (१८.५४१०, ८x२६-२७). लीलावती-भाषानवाद, म. लालचंद, मा.ग., पद्य, वि. १७३६, आदि: सोभित सिंदर पुर; अंति: ऐ वरतो जनसुख काज, अध्याय-१६, गाथा-७०७. १४३२८. वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पठ. ग. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, ४-५४२७-३१). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०२. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: एह संसार मे जे; अंति: उद्यम करवो जीवइ. १४३२९. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १६६५, कार्तिक कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२६४११, १३-१५४१७-३० विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: समजवा हेतु सूत्रमाहि; अंति: वृत्ति मध्ये ए विचार. १४३३०. विचारश्रेणी व्याख्या, संपूर्ण, वि. १९६६, आषाढ़ कृष्ण, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६४११, १३४४३-४८). विचारश्रेणी-व्याख्या, आ. मेरुतुंगसूरि, सं.,प्रा., गद्य, आदि: जरयणि कालगओ इति; अंति: खरकरहाणं तु पणवीसं. १४३३१. विचारसंग्रह-बालावबोधवार्तारुप, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. मंडपदुर्ग, जैदे., (२५.५४११, १५४५२-५३). अल्पबहत्व विचार, आ. सोमसंदरसरि, मा.ग., गद्य, आदि: वीरं गुरूंश्च वंदित; अंति: अल्पबहत्व विचारिउ. १४३३२. प्रमाणवाद, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२६४११, ११४३६-३७). प्रमाणवादार्थ, मु. यशस्वत्सागर, सं., गद्य, आदि: ध्यात्वा वागीश्वरीं; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १४३३३. हेतुविडंबनस्थल, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२६४११, १५४५८-६०). हेतुविडंबनस्थल, उपा. जिनमंडन, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमदहँत; अंति: तनुते हेतोरिदं खंडनं. १४३३५. ऋषिमंडलस्तव, संपूर्ण, वि. १७५६, भाद्रपद शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. उपा. आनंदनिधान; पठ. पं. सुंदरविजय (गुरु उपा. आनंदनिधान, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४११, २०४५०). ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंति:सो लहइ सिद्धिसुहं, गाथा-२०९, ग्रं. २५९. १४३३६. (+) कर्म स्तवन-पूर्वार्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १७५८, वैशाख शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. रुपनगर, प्रले. मु. अजबसागर (गुरु मु. अनोपसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १३४४३). कर्म स्तवन, क. जसवंतसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर पय प्रणमे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १४३३७. (+) सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, ११४३९-४१). For Private And Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-९९. १४३३८. नवतत्त्व सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पठ. मु. धन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ३-७४३१-३६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४१. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)जीवतत्त्व अजीवतत्त्व, (२)पहिली गाथामांहि नव; अंति: हलूआं करी मोक्ष जाशि. १४३४१. महावीरजिन, सीमंधरजिन व ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १०४३४-३५). १.पे. नाम. गणधरप्रबोध श्रीवर्धमान स्तवन, पृ. १अ-४अ. गणधरवाद स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सो सुत त्रिसलादेवि; अंति: सेवक सकलचंद शुभाकर, गाथा-४८. २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, प. ४अ-५अ. मा.गु., पद्य, आदि: पुरिसुत्तम नीराग; अंति: हृदय वस्यो दीपंतो, गाथा-१५. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन-समतामुखलतागुणगर्भित, पृ. ५अ-६आ. वा. सकलचंद्र, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: विबुहाहियामयदिट्ठि; अंति: सेवक सकलचंद कृपा करी, गाथा-३१. १४३४५. अजितशांतिस्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९१, आश्विन कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. घनोघबंदिर, पठ. मु. हरजीवन; मु. कुयरजी, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४११, ६४४०-५०). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अजितनाथ जीता छइ सर्व; अंति: वचननई विषई आदर करो, (वि. १७९१, कार्तिक शुक्ल, १४) १४३४६. (+) भक्तामरस्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ९४३३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. १४३४७. पंचोपचारपूजाविधि वस्तोत्रआदिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)-७, कुल पे. ७, जैदे., (२०.५४१०, ९-११४२५-४०). १. पे. नाम. पंचोपचारपूजा विधि, पृ. १अ-५अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. सं.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: विसर्जनस्युई ज कीजै, अपूर्ण. २. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वस्तोत्र, पृ. ५अ-६आ. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. ३. पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. ६आ-७अ. सं., पद्य, आदि: पंचपरमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. For Private And Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. महालक्ष्मी स्तव, पृ. ७अ-७आ. ____ सं., पद्य, आदि: आद्यं प्रणवसंयुक्तं; अंति: दासोस्मि स्यादकिंकरः, श्लोक-११. ५. पे. नाम. अच्छुप्ताविद्यादेवी जापमंत्र, पृ. ८अ. सं., गद्य, आदि: अच्छप्तायै विद्या; अंति: कुरु कुरु स्वाहा. ६. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तोत्र, पृ. ८अ-८आ. ___ आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति; अंति: ते सुरपदं च देवा, श्लोक-९. ७. पे. नाम. जिन स्तुति-प्रार्थना, पृ. ८आ. साधारणजिन स्तुति-प्रार्थना, सं., पद्य, आदि: अद्य मे सफलं जन्म; अंति: तानि वंदे निरंतरम्, श्लोक-३. १४३४८. शालीभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १६७८-१७००, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२५.५४११, १९४५१-५४). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल लहिस्यइजी, ढाल-२९. १४३४९. योगशास्त्र-प्रकाश १-४, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२६४११, १७४५३). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १४३५०. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह, निवियातानाम व काउसग्गके दोष, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. ५, जैदे., (२६४१०.५, ११४४२-४५). १. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ-१०अ. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम. ६ विगइ ३० नीवीआता, पृ. १०अ-१०आ. प्रा., पद्य, आदि: पयसाडि खीर पेया; अंति: पंचमोपुत्तिकयपूउ, गाथा-४. ३. पे. नाम. वंदित्तुसूत्र, पृ. १०आ-१२आ. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ४. पे. नाम. कायोत्सर्ग १९ दोष, पृ. १२आ-१३अ. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: घोडानी परि एकइं पगि; अंति: महासतीनई न लागई. ५. पे. नाम. श्रृतदेवी स्तुति, पृ. १३अ. सं., पद्य, आदि: कमलदल विपुलनयना कमल; अंति: श्रुतदेवता सिद्धिम्, श्लोक-१. १४३५१. उपासकदसांगसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १५८५, आषाढ़ शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२६.५४११, १८४४९-५२). उपासकदशांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १११७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: कुर्वतां प्रीतये मे. १४३५४. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२६.५४११.५, २१४४८-५०). विविध विचारसंग्रह, प्रा.,सं., प+ग., आदि: उस्सेइम संसेइम चाउलो; अंति: भवनाधिक्य सद्भावात्. For Private And Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १४३५८. प्रतिष्टा विधि, संपूर्ण, वि. १६०१, श्रेष्ठ, पृ. १४, राज्ये गच्छा. जिनमाणिक्यसूरि ( खरतरगछ); पठ. ऋ. भुवनकीर्ति; लिख. श्राव. जयवंत, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७.५X११.५, १२X४४-४६). प्रतिष्ठा विधि संग्रह, प्रा., सं., प+ग, आदि: संपयं पयट्ठाविही; अंति: कुंकुमे मुकुरदृक्. १४३६० (+) पंचाख्यानवार्तिक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८४३, फाल्गुन कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले. स्थल, काकरग्राम, प्रले. ग. तेजविजय (गुरु पंन्या. रत्नविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संभवनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X१२, १७-१८×५१-५५). पंचाख्यान वार्तिक, सं., पद्य, आदि: कुश्रितं कुप्रनष्टं; अंतिः न कदा मया श्रुता, श्लोक-४८. पंचाख्यान वार्तिक- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: दक्षिणदेश तिहां महिल; अंतिः सीयाले श्लोक कह्यो. १४३६१. ऋषभदेव तेरभव वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., ( २६.५X१२, १४X३७-३८). आदिजिन १३ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: धण १ मिहुणा २ सुर; अंति: श्रीऋषभदेव भगवान. १४३६२. जसराज बावनी, संपूर्ण, वि. १८२७, वैशाख कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. कांनमेर, प्रले. ग. प्रतापविजय (गुरु पं. भाग्यविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले. श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२२.५X१२, १२×३२-३३). अक्षरबावनी, मु. जसराजजी मु. जिनहर्ष, पुहिं, पद्म, वि. १७३८, आदिः ॐकार अपार जगत आधार, अंति: गुण चितकु रिझाए है, गाथा - ५७, १४३६३. खंडाजोयन बोल - ९० द्वार, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९ - १ (१) = ८, प्रले. मु. उमेदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५x१२, १४४३४-३९). खंडाजोयन बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पन्नति माहेला छे, पूर्ण. १४३६४. आराधना, संपूर्ण वि. १९०५, भाद्रपद कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. कृति कर्तानाम वाली गाथा नहीं लिखी गयी है., जैदे., (२७X१२.५, १३X३५-३६). आराधना, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: सर्वज्ञं प्रमण्य; अंतिः आइसो जाइसवह विमाण, गाथा - ९५. १४३६५. विचारामृतसंग्रह, संपूर्ण, वि. १६६८, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ४८, प्र. वि. जैवे. (२६.५x११, १५x५३-५९). विचारामृतसार संग्रह, आ. कुलमंडनसूरि, सं. प+ग, वि. १४७३, आदि: श्रीवर्द्धमानसूर्यो; अंतिः रामाब्धिशक्राब्दके. "". १४३६६. विचारसंग्रह बालावबोधरूप, संपूर्ण, वि. १५६२, भाद्रपद अधिकमास कृष्ण, ४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्रले. मु. कीर्तिसुंदरजी (गुरु आ. देवसुंदरसूरि, सिद्धांतीगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६×१०.५, १३x४७-५२). ९५ विचार संग्रह - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१) वीरं गुरु वंदित्व, (२) पृथ्वी अप तेउ वाउ; अंति: अल्पबहुत्व विचारिउ. १४३६७. छ आरा मान, संपूर्ण, वि. १७५३, श्रावण शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. साचोर, जैदे., ( २६.५X११, १५X४२). ६ आरा मान, मा.गु., गद्य, आदि: वीस कोडाकोडि सागरोपम; अंति: महावीरदेव उपना. For Private And Personal Use Only १४३६९. सामुद्रिकशास्त्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६१९ फाल्गुन कृष्ण, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र. ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., ( २६.५X११, १६ - १८४५०-५१). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: वृद्धिं भवेद्यत, अध्याय-३६. Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: आउखा पाखइ लक्षण किसि; अंति: तिसी वृद्धि सुख हुइ. १४३७०. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. पं. चैनसुंदर; पठ. पंन्या. गुलालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३४३८-४३). जिनस्तवनचौवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जगजीवन जगवाल्हो; अंति: तुं जीवजीवन आधारो रे, स्तवन-२४. १४३७८. परमात्मप्रकाश सह टीका व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७२६, कार्तिक शुक्ल, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २३२, कुल पे. २, ले.स्थल. संग्रामनगर, प्रले. आनंदराम जोसी; लिख. श्राव. गूजरमल्लजी शाह, प्र.ले.पु. मध्यम, दे., (२७.५४११, ९४३३-३४). १. पे. नाम. परमात्मप्रकाश सह टीका, पृ. १आ-२३२आ. परमात्मप्रकाश, मु. योगींद्रदेव, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जे जाया झाणग्गियए; अंति: केवलो कोवि बोहो, गाथा-३४५. परमात्मप्रकाश-टीका, आ. ब्रह्मदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १६वी, आदि: चिदानंदैकरूपाय जिनाय; अंति: भावना कर्तव्येति. २. पे. नाम. जैन श्लोक*, पृ. २३२आ. सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). १४३८५. गुरुतत्त्वनिर्णय सह टीका, संपूर्ण, वि. १९५७, वैशाख कृष्ण, १४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २२३, प्रले. मुरलीधर व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४१२, १-४४३४-३७). गुरुतत्त्वविनिश्चय, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., पद्य, आदि: पणमिय पासजिणिद; अंति: एसा आणाए जिणिंदाणम्, उल्लास-४, गाथा-९०२. गुरुतत्त्वविनिश्चय-स्वोपज्ञ टीका, उपा. यशोविजयजीगणि, सं., गद्य, आदि: ऍद्र श्रेणिनतं; अंति: श्रियेस्तादयम्, उल्लास-४. १४३८६. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२.५४१०.५, ७४२५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४+४. १४३८८. (+) गुणकरंडकगणावली चौपाई, संपूर्ण, वि. १७६४, श्रावण शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. आगरालोहमंडी, प्रले. ऋ. कल्याण; पठ. ऋ. सेवा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६४११, १६४४८-५०). गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि: संपति सुखदायक सरस; __ अंति: थिर संपति जस थावैजी, ढाल-२७. १४३८९. सभाश्रृंगार, नाटिक स्तवन व वर्गमूल कवित, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२, १६४३६-४०). १. पे. नाम. सभाशृंगार, पृ. १अ-५अ. मा.गु., गद्य, आदि: जीव अजीव पुन्य पाप; अंति: झलर इत्यादिक वाजा. २. पे. नाम. नाटिक स्तवन, पृ. ५अ-५आ. For Private And Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ साधारणजिन स्तवन-देवनाटक विचार, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु आगल नाचें सुर; अंति: जोवण उछक छे अति, गाथा-९. ३. पे. नाम. वर्गमूल कवित, पृ. ५अ. मा.गु., पद्य, आदि: आदथें विषम संमलिक; अंति: भांत वर्गमुल करीयों. १४३९०. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८३०, ज्येष्ठ, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८२-४(३९ से ४२)=७८, पू.वि. टबार्थ कहीं कहीं लिखा हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ले.स्थल. साहजहानावाद, प्रले. ऋ. दयालदास (गुरु ऋ. ज्वालानाथ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (३७) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (४५४) मंगलं लेखकानां च, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६२७) जलात् रक्षे तैलात् क्षे, जैदे., (२७४११, ११-१७४६२-६७). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेण चंपाए; अंति: धम्मकहाओ सम्मत्ताउ, ग्रं. ६०००, अपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-), अपूर्ण. १४३९१. (+) उववाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ७-८४५१-५६). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-१८९. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: तिणी कालि चोथा आराने; अंति: सुख पाम्या थका. १४३९३. (+) पर्यंतआराधना, चतुःशरण व पिंडविशुद्धि सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३, प्रले. मु. विवेकविजय-शिष्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६.५४११, १३४४८-४९). १. पे. नाम. पर्यंताराधना, पृ. १अ-३अ. आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-६९. २. पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. ३अ-५अ. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६२. ३. पे. नाम. पिंडविशुद्धि प्रकरण सह अवचूरि, पृ. ५अ-८आ. पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदविंदवंदिय पयार; अंति: बोहिंतु सोहिंतु य, गाथा-१०३. पिंडविशुद्धि प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: इंद्रवृंदवंदित; अंति: कुर्वंतु इति योगः. १४३९४. (+) सत्तरीसयठाण सह टबार्थ एवं तीर्थंकरचकवर्ति व वासुदेव के नाम, शरीरमान व आयुष्य, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ७४४४-४९). १. पे. नाम. सत्तरीसयठाणा सह टबार्थ, पृ. १अ-२७अ. सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि , प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदि: सिरिरिसहाइ जिणिदे; अंति: जाइ सो सिद्धिठाणे, गाथा-३६०. सप्ततिशतस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभादिक जिनेंद्र; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. तीर्थंकर, चक्रवर्ति व वासुदेवनाम, अवगाहना व आयुष्य, पृ. २७आ. प्रा., प+ग., आदि: दो चक्की हरपणगं पणग; अंति: दो चक्की केशवा चक्की. १४४००. पंचवस्तु सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९५, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७४१२, ३-६४४४-५१). पंचवस्तुक, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: णमिऊण वद्धमाणं सम्म; अंति: सत्तरस सयाणि माणेण, गाथा-१७१४. पंचवस्तुक-स्वोपज्ञ शिष्यहिता व्याख्या, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (१)प्रणिपत्य जिनं वीरं, (२)तत्र शिष्टानामय; अंति: साध्यत्वादिति. १४४०१. तत्त्वार्थसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४८, जैदे., (२७४१२.५, १५४३४-३७). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदि: सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: बहुत्वत्तः साध्याः, अध्याय-१०. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-श्रुतसागरी टीका, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., गद्य, आदि: सिद्धोमास्वामि; अंति: टीकायां दशमोध्यायः. १४४०२. (+) सिद्धांतसार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९७२, द्विसप्तत्यधिकेकोनविंशतिशततमे, वैशाख अधिकमास कृष्ण, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २९५, ले.स्थल. योधपुर, प्रले. बालाराम ललितराम, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, १५-१६x६०-६२). दर्शनरत्नरत्नाकर, आ. इंद्रनंदिसूरि, सं., गद्य, वि. १५७०, आदि: परमब्रह्मरुपाय जगत्; अंति: (१)नाभेयं श्रेयसे स नः, (२)बुधवरैः सुधिया, तरंग-३. १४४०३. गहुंली वस्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९७४, कार्तिक कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २७, ले.स्थल. सीपरीछावणी, गु., (२७.५४१३, २२-३०x१५-२५). १. पे. नाम. मल्लिजिन चैत्यवंदन-भोयणी, पृ. १आ-२अ. मा.गु., पद्य, आदि: नरनारी तार्या पाप; अंति: भोयणी ईदा० आधारा, गाथा-८. २. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ३अ-३आ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नथी सार जगतमा भाई; अंति: छे धर्मरत्न सुखदाई, गाथा-१२. ३. पे. नाम. मुनिगुण सज्झाय, पृ. ३आ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: म्हारु मन मोह्यु; अंति: प्रणमे० महा मुनिराज, गाथा-९. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शामलीया, पृ. ४अ-४आ. मु. रत्नविजय, पुहिं., पद्य, आदि: शामलीया मौए जेशे; अंति: धर्मरत्न अब तारो, गाथा-१५. ५. पे. नाम. चंद्रमा गहुंली, पृ. ४आ-५अ. __मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वालो मारो चंद्रमा; अंति: धर्मरत्न विस्तार रे, गाथा-१०. ६. पे. नाम. सूर्य गहुली, पृ. ५अ-५आ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वालो म्हारो दिनकर; अंति: मन बुद्धि पवित्र रे, गाथा-१०. ७. पे. नाम. उपधानतपदोहा, पृ. ५आ-६अ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर उपदिशे; अंति: धर्मरत्न आराधवा, गाथा-१९. ८. पे. नाम. मुनिगुण गहुंली, पृ. ६आ. For Private And Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: क्यारे मलशेरे मुनि; अंति: त्यारे दर्शन थायो, गाथा-५. ९. पे. नाम. श्रुतज्ञान गहुंली, पृ. ६आ. आ. विजयधर्मसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञानी पुरुषनी जांऊ; अंति: चिंतामणि फलजो रे, गाथा-६. १०. पे. नाम. १४ स्वप्न गुहंली, पृ. ७अ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिशला निहाले; अंति: धर्मरत्न० लाख पसाय, गाथा-७. ११. पे. नाम. दीपावली गहुंली, पृ. ७अ-७आ. दीपावलीपर्व गहुली, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवियां आसो वदि; अंति: लब्धि सिद्धि थाय रे, गाथा-८. १२. पे. नाम. सोमसुंदरसूरि गहुली, पृ. ८अ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे मारे ठाम धर्म; अंति: सुरतरू नीपना रे लो, गाथा-७. १३. पे. नाम. मुनिगुण गुंहुंली, पृ. ८आ. मुनिगुण गहुली, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे चालो पोशाले; अंति: रसे संघ तमाम रे, गाथा-६. १४. पे. नाम. औपदेशिक गहुली, पृ. ८आ-९अ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सजनी मोरी आज थयो; अंति: परम पद धामे रे, गाथा-७. १५. पे. नाम. यशोविजय गहुंली, पृ. ९अ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वाचक वीरने वंदना; अंति: पद जेणे दीपाव्या, गाथा-६. १६. पे. नाम. हीरविजयसूरि गहुंली, पृ. ९आ-१०अ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हीरसूरि गुरु हीरला; अंति: धर्मरत्न दीपाव्या रे, गाथा-१७. १७. पे. नाम. उपधानतप गहुली, प्र. १०अ-१०आ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिगडे बेसी वीरजी; अंति: पामे वंछित भोग, गाथा-८. १८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- पेट विषये, पृ. १०आ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विश्वाश नही तेरे; अंति: नित नित मागे भीख, गाथा-७. १९. पे. नाम. नवकारवाली गहुंली, पृ. ११अ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बारगुणो अरिहंतजी; अंति: अजर अमर पद पाय हो, गाथा-७. २०. पे. नाम. भरतक्षेत्र गहुंली, पृ. ११अ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जंबुद्वीपनी दक्षिणे; अंति: भलो धर्मरत्न आधार हो, गाथा-६. २१. पे. नाम. ज्ञानपद गहुँली, पृ. ११आ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञान विना छे अंधारु; अंति: साये धर्मरत्न तरनारो, गाथा-६. २२. पे. नाम. मयणाश्रीपाल गहली, पृ. ११आ-१२अ. श्रीपालमयणा गहुंली, मु : रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुरुवचने तप आदर्या; अंति: धर्मरत्न बेडो पार हो. गाथा-९. २३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-मगसीजी, पृ. १२अ. For Private And Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखिया साहेब सुखिया; अंति: रत्न प्रभुप्यारा रे, गाथा-५. २४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-अवंती, पृ. १२अ-१२आ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उज्जयनी आवो रे पारश; अंति: रे कामित वृक्ष फल्यो, गाथा-६. २५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-अवंती, पृ. १२आ.. मु. रत्नविजय, पुहिं., पद्य, आदि: मेरा दिल साफ कर देना; अंति: दासकुं आपशों कीजे, गाथा-५. २६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-मांडवगढ, पृ. १२आ. मु. रत्नविजय, पुहिं., पद्य, आदि: तुमे तो भले बीराजो; अंति: धर्मरत्न सब साथ, गाथा-७. २७. पे. नाम. औपदेशिक पद्य संग्रह, पृ. १३अ-१४अ. मा.गु.,पुहिं., पद्य, आदि: स्थावर पण चाले घj; अंति: मिले टाले सर्व विकार. १४४०४. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८४, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ५, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. पं. उत्तमविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १५४५०). १.पे. नाम. १५ तिथि ७ वार चरित्र, पृ. १अ-५अ. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमत् गौडी जगधणी; अंति: लब्धि लहे शुखसम रे, ढाल-१५. २.पे. नाम. बीजतिथि सज्झाय, पृ. ५अ. मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज तणे दिन दाखवू; अंति: देवनां सर्यां काजरे, गाथा-९. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. ५अ-५आ. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरू चरण पसाउले; अंति: कांतिविजय गुण गाय रे, गाथा-७. ४. पे. नाम. अष्टमीतिथि सज्झाय, पृ. ५आ. मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसतिने चरणे; अंति: वाचिक देव सुसीस, गाथा-७. ५.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. ५आ. मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरुना हुं प्रणमी; अंति: वाचक देवनी पुरो जगीस, गाथा-५. १४४०५. स्तवन, सझाय व गुहलीआदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २७, जैदे., (२७.५४१३, २६-३०x१७-२८). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हुं नहि जाणु रे; अंति: करजो आप स्वरूप हो ला, गाथा-५. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर प्रभु जयकार नमु; अंति: राखो हमेशां पास, गाथा-६. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी नेमीसर भगवान; अंति: जन्म सुधारजो रे लो, गाथा-८. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १आ.. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अनुभविने एकला आनंदमा; अंति: तुही केहQरे, गाथा-६. For Private And Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org ५. पे नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २अ-२ आ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुप्रभातनो दहाडो; अंतिः लहिशुं पद निर्वाणजो, गाथा-९, ६. पे. नाम. पट्टावली गहुली, पृ. २आ. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे मारे स्वामी; अंति: रत्नविजय जय संपदा, गाथा - १३. मु. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अमे योगीयोना बाल; अंतिः रत्न० फरकावीए तत्काल, गाथा-४. ८. पे. नाम. गुरुविहार गहुंली, पृ. ३-४अ. मु. रत्नविजय, रा., मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी करूं वीनती; अंति: धर्मरत्न महाराज, गाथा - २५. ९. पे नाम, चोमासानी वीनती, पृ. ४अ. चातुर्मास विनती, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर चोमासो इहा करो; अंति: धर्मरत्न विस्तार, गाथा - ८. १०. पे नाम. तपस्या गहुली, पृ. ४-४आ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदिः मोहन वाजा वागीया; अंतिः पद थाय जगमां पूजाय, गाथा-९, ११. पे. नाम. पर्युषणपर्व गहुली, पृ. ४-५अ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सजनी मोरी पर्व पजुसण; अंति: धर्मरत्न पद धारी रे, गाथा - ९. १२. पे. नाम. पर्युषणपर्व गहुली, पृ. ५अ - ५ आ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अहो भवि पर्व दिवस; अंतिः धर्मरत्न पद अनुसरवु, गाथा- ८. १३. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५-६ आ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पामी सुगुरुनो सुपशाय: अंतिः कहे सफल करो धर्मरत्न, गाथा - ३६. १४. पे. नाम. औपदेशिक धोल- जीवकाया, पृ. ६आ-७अ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काया कामिनी वीनवे; अंति: रे धर्मरत्न पद एह रे, गाथा - ९. १५. पे नाम. आयंबिलतप सज्झाय, पृ. ७अ-७आ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only १०१ मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समवसरण बेशी करी मुख; अंति: रे धर्मरत्न पद थाय, गाथा - ११. १६. पे नाम. मुनिगुण गुहुंली, पृ. ७आ. मुनिगुण गहुली, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे चालो पोशाले; अंति: रसे संघ तमाम रे, गाथा ६. १७. पे. नाम. औपदेशिक गहुली, पृ. ७आ-८अ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि सजनी मोरी आज थवो; अंतिः परम पद धामे रे, गाथा-७, १८. पे. नाम. यशोविजय गहुली, पृ. ८अ ८.आ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वाचक वीरने वंदना; अंति: पद जेणे दीपाव्या, गाथा- ६. १९. पे. नाम. मासखमण गहुली, पृ. ८आ. मासखमणतप गहुंली, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्म, आदि: कर्म कठीन विदारवा; अंतिः प्रयत्न मले धर्मरत्न, गाथा- ८. २०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८- ९अ. Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. रत्नविजय, पुहिं., पद्य, आदि: हमोने नहि दुनिया से; अंति: पामे धर्मरत्न अभिराम, गाथा-९. २१. पे. नाम. औपदेशिक पद-वैराग्य पद, पृ. ९अ-९आ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काया रुप ए कतरी; अंति: खात्री मत करोरे, गाथा-१५. २२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-काया, पृ. ९आ-१०अ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पाम्यो नर तनु सुरतरु; अंति: रे धर्मरत्न पद पात्र, गाथा-२१. २३. पे. नाम. मुनिगुण सज्झाय, पृ. १०अ. म. रत्नविजय, मा.ग., पद्य, आदि: अहो अहो साधुजी समता; अंति: धर्मरत्न पद वरिया रे, गाथा-९. २४. पे. नाम. अमदावाद चैत्यपरिपाटी स्तवन संग्रह, पृ. १०आ-१५अ. अहमदाबादशहर यात्रादर्शन स्तवन, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९६७, आदि: श्रीसंखेश्वर साहेबो; अंति: धर्मरत्न० सुखकार, स्तवन-१७. २५. पे. नाम. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, पृ. १६अ. मु. रत्नविजय, पुहिं., पद्य, आदि: मुजको कोन सुधारे नाथ; अंति: धर्मरत्न बतलाओ रे, गाथा-७. २६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १६अ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अमे योगीओना बाल अमे; अंति: वावटो फरकावीए ततकाल, गाथा-४. २७. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १६आ. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मारो आनंदनो प्यालो; अंति: धर्मरत्न पीवाई रह्यो, गाथा-८. १४४०६. विविध विषय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२७.५४१३, १५-२७४६-२२). विविध विषय संग्रह, मा.गु., प+ग., आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). १४४०९. (+) शांतसुधारस सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८७, पौष शुक्ल, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. मु. दानविजय; पठ. मु. माणिक्यविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६६९) भग्नपृष्टी कटिग्रीवा, (६७०) जीहां लगे मेरु अडग रहे, जैदे., (२७.५४१२.५, ६४४०-४५). शांतसुधारस, उपा. विनयविजय , सं., पद्य, वि. १७२३, आदि: नीरंध्रे भवकानने; अंति: स्फुरद्वांगमयमातनोतु, भावना-१६, श्लोक-२३४. शांतसुधारस-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: किं विशिष्टे भवकानने; अंति: पामो ए आशीर्वाद छे. १४४१०. बृहन्न्यासगत उपसर्गविवरण, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२९x१३, १५४४८). सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिकाबृहद्वृत्ति का तत्त्वप्रकाशिकाप्रकाश शब्दमहार्णवन्यास, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३-१२००, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १४४११. (+) संग्रहणीसत्र सहटबार्थ, अपर्ण. वि. २०वी. श्रेष्ठ, प. ७.प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. गाथा २१ आयष्यद्वार प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे.. (२७.५४१३. ४४२६-२९) बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), अपूर्ण. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ,मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं कहीये नमस्कार; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १४४१२. तेरकाठिया प्रबंध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१० (३ से १२) = ५, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे.. (२८x१२.५, ९३७). १३ काठिया प्रबंध, सं., गद्य, आदिः श्रीविश्वोपकारकपरायण; अंति: (-), अपूर्ण. " १४४१३. प्रतिमा स्थापन वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, प्रले. छगन लक्ष्मीराम भट; पठ. श्राव. खेमचंद मोकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२७४१२.५, ८४३२-३६). महावीरजिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदिः प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंतिः आणा सिर वहेस्येजी, ढाल ६, गाथा- १५०. १०३ १४४१४. अंजनशलाका स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१५, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. वीरमग्राम, प्रले. छगन लक्ष्मीराम भट; लिख. श्राव. खेमचंद मोकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७१२.५, ८x२७-३५). शत्रुंजयतीर्थे मोतीशाट्रंक स्तवन- इतिहासयुक्त, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि उठी प्रभाते प्रभुः अंति: कहे विरविजय महाराज, ढाल - ६. ラ १४४१५. (+) रत्नसार कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८०-६७(१ से ६७ ) = १३, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X१२.५, १४४४८-५१). रत्नसार कथा, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४४१७. धर्मजिन स्तवन, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा १३६ तक है., जैवे. (२६.५x१३, १०-११x२४-२७). धर्मजिन आत्मज्ञानप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१६, आदि: चिदानंद चित चिंतवुः अंति: (-), पूर्ण. १४४२०. दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा - ९१ तक है., जैदे., (२६.५x१२, ८x२५-२९). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: (-), अपूर्ण. १४४२२. विचारप्रश्न संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २६.५x१२, १८-१९x४९). विचार प्रश्न संग्रह, सं., प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४४२६. शालिभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, ढाल २० अपूर्ण तक है., जैदे., (२६११.५, १७x४०-५८). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंतिः (-), अपूर्ण. १४४२७. लघुक्षेत्रसमास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३८, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले. स्थल. चीरईग्राम, जैदे., ( २६ ११.५, ६x३४-४० ). बृहत्क्षेत्रसमास- लघुक्षेत्रसमास, संक्षेप, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊणसजलजलहर निभस्सण; अंति: झाज्जा सम्मदिट्ठीए, अध्याय - ५, गाथा - २२३. बृहत्क्षेत्रसमास - लघुक्षेत्र समास का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बीरो विश्वेश्वरो अंतिः समकितदृष्टिह जाणवो. १४४२८. नेमिजिन श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैवे. (२३४१२, ८x२२-२३). " For Private And Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन सलोको, क. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धि बुद्धि दाता; अंति: न आवे श्रीनेमने तोले, गाथा-५७. १४४२९. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्याय १३ गाथा ९ तक मूल है एवं टबार्थ अध्याय १२ गाथा १५ तक है., प्र.वि. अवचूरि टबार्थ शैली में लिखी गयी है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१२.५, ७७३८-४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), अपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: संजोगा० संयोगान्; अंति: (-), अपूर्ण. १४४३१. प्रतिकमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पृ.वि. बीच-बीच में टबार्थ नही लिखा है., जैदे., (२५.५४१२, ५४३६-४३). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: तिखुत्तो आयाहिणं; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिनवार जिमणा कानथी; अंति: छउं दिवस सबंधीउ, (अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच में टबार्थ नही लिखा है.) । १४४३२. सत्तरभेदीपूजा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२७४१३, ५४३६-३७). १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत मुखपंकज वासि; अंति: स्यो फल चुंणीयो रे, ढाल-१७, गाथा-१०४. १७ भेदी पूजा-टबार्थ, मु. सुखसागर, मा.गु., गद्य, आदि: हवें स्नान कर्या; अंति: ए पद आण्युं छेइ. १४४३३. (+) हरीवंश रास, संपूर्ण, वि. १९०३, कार्तिक कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९४, ले.स्थल. बजाणानगर, प्रले. वा. देवकृष्ण (गुरु ग. जशोविजय); राज्ये गच्छा. देवेंद्रसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (५३६) जलाद रक्षेत् तैलात् रक्षेत्, (६१५) जाद्रिसं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२७४१२, १२४४३-४४). हरिवंश रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: अकल सकल अमरेशनी जिन; अंति: भवदुख हरे भाज्याजी, ढाल-१२७, गाथा-२५०६. १४४३४. मांसभक्षणनिषेध सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., कुछेक स्थलों पर प्रतिलेखक द्वारा टबार्थ अपूर्ण है., जैदे., (२६४१२, ५४२८-३१). मांसभक्षणनिषेध पाठ, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: यदुक्तं श्रावकदिनकृत; अंति: (-), अपूर्ण. मांसभक्षणनिषेध पाठ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. टबार्थ सर्वत्र क्रमशः नहीं १४४३५. बृहत्संग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा १४५ तक है., जैदे., (२७.५४१३, ६४३३-३८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), अपूर्ण. १४४३६. धनंजय नाममाला, अपूर्ण, वि. १९१८, आश्विन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. श्लोक १६० अपूर्ण तक है., प्रले. ऋ. नगराज; पठ. जेष्टीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वस्तुतः प्रत अपूर्ण है परन्तु प्रतिलेखक ने श्लोकांक १६० अपूर्ण के बाद ही प्रतिलेखन पुष्पिका देकर प्रत सम्पूर्ण कर दिया है. इसके साथ ही धनञ्जय नाममाला की जगह पुष्पिका में "श्रीहेमाचार्यकृत प्रथमो हुलास संपूर्णम्" इस प्रकार लिखकर पूरा कर दिया है., जैदे., (२५.५४१२.५, ११४३४-३५). धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: तन्नमामि परं ज्योति; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १०५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १४४४०. धरणपोरवाड व खेमाहडालिया रास, अपूर्ण, वि. १८९८, कार्तिक कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ९-३(१ से ३)-६, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१२.५, १४४४०-४५). १.पे. नाम. धरणपोरवाड संबंध रास, पृ. ४अ, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है., प्रारंभ से गाथा ९८ तक नहीं है. धरणपोरवाड संबंध, मांईदास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रे गुणगावे मांईदास, गाथा-१०८, अपूर्ण. २. पे. नाम. खेमाहडालिया रास, पृ. ४आ-९अ. मु. लक्ष्मीरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: आद्य जिनेसर आद्य; अंति: लक्ष्मीरत्न कहंदाजी, ढाल-४, गाथा-१३४. १४४४३. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६५, श्रेष्ठ, पृ. ११, पठ. मु. दयाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, ३४३४-३६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४८, (वि. १८६५, कार्तिक कृष्ण, १३, ले.स्थल. अजीमगंज) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, पा. रूपचंद्र गणि, मा.गु., गद्य, आदि: वीतरागं नमस्कृत्य; अंति: काला उपनाह्वये स्थले, (वि. १८६५, पौष कृष्ण, ५, मंगलवार, ले.स्थल. मगसुद्दाबाद) १४४४४. (+) पुण्यविषये विद्याविलास चौपी, संपूर्ण, वि. १८४८, फाल्गुन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.वि. अंतिम चिपकाए हुए पत्र पर सं. १८९४ कालीय लूंणसरा नामक गाँव में चलता धान्यभाव लिखा गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (७६९) जलादृक्षं तैलादृक्षं, जैदे., (२६.५४१२, १७-१८४५४). विद्याविलास चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७११, आदि: सरसति नित आपो सुमति; अंति: तीस ढाल सुख पायाजी, ढाल-३०. १४४४५. मौनएकादशी गणj, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.५, जैदे., (२०४१२.५, १५४२६). मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: धूर प्रणमु जिन; अंति: जसविजय जयसिरि लही, ढाल-१२, ग्रं. १२०. १४४४६. (+) कल्पसूत्र सह सुबोधिकाटीका, संपूर्ण, वि. १९५३, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २०६, प्र.वि. संशोधित-त्रिपाठ. कुल ग्रं. ५४००, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७४१२.५, २-४४४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, वि. १६९६, आदि: प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंति: (१)विद्वज्जनराश्रिता, (२)प्रतीदमुवाचेति. १४४४७. (+) सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र सह टिप्पण, पूर्ण, वि. १९६६, आषाढ़ शुक्ल, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५९-२(१ से २)=५७, ले.स्थल. बनारस, प्रले. रामचंद्र पुष्टिकर्णा ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३१६२, जैदे., (२८x१२.५, १४४४६). सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सोक्खुप्पाए सदापाए, प्राभृत-२०, पूर्ण. सूर्यप्रज्ञप्ति-टिप्पण*, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), पूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४४४८. अनुभवविलास - स्तवन १ से ६२, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १३-१(१२)=१२, पू.वि. पद-५४ अपूर्ण से पद-६० अपूर्ण तक नहिं है.,ले.स्थल. पालिताणा, प्रले. प्रेमचंद जेठाचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १३४४३). चिदानंदबहोत्तरी, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: पिया परघर मत जावो; अंति: प्रभु० जगत जस लिया, प्रतिअपूर्ण. १४४५०. अंजनासुंदरीपवनजयकुमार चउपई, संपूर्ण, वि. १७८५, फाल्गुन कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. थिराग्राम, पठ. मु. भीमविजय; प्रले. मु. नायकविजय (गुरु ग. जसविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, २२४५०-५२). अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: गणधर गौतम प्रमुख; अंति: सागर कहे० नरनारी, खंड-३, गाथा-६७५. १४४५२. चैत्यवंदन संग्रह व अष्टप्रकारीपूजाकाव्य, संपूर्ण, वि. १८६४, पौष शुक्ल, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २८, ले.स्थल. ध्रांगध्रा, प्रले. पं. उत्तमविजय गणि; पठ. मु. अमरसी (गुरु पं. उत्तमविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसंभवनाथ प्रशादात्., जैदे., (२५४११.५, १६४४७-५१). १.पे. नाम. नवपदवर्णन नमस्कार, पृ. १अ-१आ. नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमोनंत संत प्रमोद; अंति: विश्व जयकार पावे, गाथा-२१. २. पे. नाम. शाश्वताजिननु चैइत्यवंदन, पृ. १आ-२अ. शाश्वतजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: लाख बहोत्तेर कोडी; अंति: ज्ञानविमल सुख थाय, गाथा-४. ३. पे. नाम. अनागतचौवीसी चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ. अनागतचौवीशीजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मनाभ पहेला जिणंद; अंति: तणो नय वंदि निसदीस, गाथा-१४. ४. पे. नाम. व्रतमांन चैत्यवंदन, पृ. २आ. २४ जिन चैत्यवंदन, मु. भीमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल पदारथ मेलवे आदी; अंति: भीम नमे निसदीस, गाथा-४. ५. पे. नाम. वीसवेहरमांन चैत्यवंदन, पृ. २आ. विहरमान २० जिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पहेला जिनवर विहरमान; अंति: तणो नय वंदे करजोडी, गाथा-९. ६. पे. नाम. चैत्यवंदन, पृ. २आ-३अ. २४ जिनवर्णगर्भित चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभने वासपूज्य; अंति: तणो नय वंदे निसदीस, गाथा-३. ७. पे. नाम. नमस्कार, पृ. ३अ. साधारणजिन चैत्यवंदन, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: परमेश्वर परमात्मा; अंति: चिदानंद सुख थाय, गाथा-३. ८. पे. नाम. नमस्कार, पृ. ३अ. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-शंखेश्वर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर गाम मे; अंति: घणो पउमावै धरणेंद्र, गाथा-३. For Private And Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १०७ ९. पे. नाम. नमस्कार, पृ. ३अ. शत्रुजयतीर्थचैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजय सिद्ध; अंति: जिनवर करुं प्रणाम, गाथा-३. १०. पे. नाम. नमस्कार, पृ. ३अ. परमात्मा नमस्कार, मा.गु., पद्य, आदि: ईच्छं प्रमाणं प्रकाश; अंति: दिन दिन वद्धतो नुर, गाथा-३. ११. पे. नाम. नमस्कार, पृ. ३अ. २४ जिनवर्णचैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: सोल तीर्थंकर जाणीये; अंति: नित नमुं शिरनामी, गाथा-१. १२. पे. नाम. नमस्कार, पृ. ३अ. नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय कुलकेसरी; अंति: रामविजय जयकार, गाथा-३. १३. पे. नाम. चैत्यवंदन, पृ. ३अ-३आ. साधारणजिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय तुं जिनराज आज; अंति: मल्यो भवजल पार उतार, गाथा-३. १४. पे. नाम. नमस्कार, पृ. ३आ. आदिजिन नमस्कार, मा.गु., पद्य, आदि: आदि धरम जिणे उधों; अंति: मुकीया हइडे हरख अपार, गाथा-५. १५. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. ३आ. मा.गु., पद्य, आदि: अंगदेश चंपापूरी राजा; अंति: अनोपम तेहनी देह, गाथा-३. १६. पे. नाम. नमस्कार, पृ. ३आ. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव दिशि इशान कुण; अंति: द्यो पुरो संघ जगीश, गाथा-९. १७. पे. नाम. सिद्धचक्र चैइत्यवंदन, पृ. ४अ. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं अरिहंत; अंति: प्रणमुंबे करजोडी, गाथा-९. १८. पे. नाम. पंचमी नमस्कार, पृ. ४अ-४आ. पंचमीतिथि नमस्कार, मु. जीवविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीसर पंचबाण; अंति: जीवविमल गुणगाय, गाथा-२७. १९. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. ५अ. मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आदिकरण श्रीआदिनाथ; अंति: रायचंद० सुख अनंत, गाथा-५. २०. पे. नाम. चैत्यवंदन, पृ. ५अ. अष्टापदतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापद गढ उपरे भरते; अंति: नीतनीत करु प्रणाम, गाथा-३. २१. पे. नाम. नमस्कार, पृ. ५अ. विहरमान २० जिन चैत्यवंदन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर युगमंधर; अंति: नयविजय नमे नीसदीस, गाथा-३. २२. पे. नाम. चैत्यवंदन, पृ. ५आ. सीमंधरजिन चैत्यवंदन , उपा. विनयविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: श्रीसीमंधर वीतराग; अंति: विनय धरे तुम ध्यान, गाथा-३. For Private And Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २३. पे. नाम. सिद्धभगवाननी स्तुति, पृ. ५आ. सिद्धपद स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जगत भूषण विगत दूषण; अंतिः नमो सिद्ध निरंजनं, गाथा- १३. २४. पे. नाम. दीवाली चैत्यवंदन, पृ. ५आ. दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, मु. पद्म, मा.गु., पद्य, आदि: त्रीस वरस घर वास; अंति: करो चौवीह सुर मंडाण, गाथा - ३. २५. पे. नाम. पंचमी चैत्यवंदन, पृ. ५आ-६अ. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदिः युगला धर्म निवारिओ आ; अंतिः श्रीखिमाविजय जिणचंद, गाथा ९. २६. पे नाम. अष्टमी चैत्यवंदन, पृ. ६अ. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: अठावे गीरी संग भरपइ; अंति: मुगतिवधु लीला वरे ए, गाथा-९. २७. पे. नाम. इग्यारसनो चैत्यवंदन, पृ. ६ अ- ६आ. एकादशी तिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासन नायक वीरजी बहु; अंति: शासने सफल करो अवतार, गाथा - ९. २८. पे. नाम. अष्टप्रकारीपूजा काव्यानि, पृ. ६आ. ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., पद्य, आदि: विमल केवल भासन; अंति: मूलं दर्शनं सल्लभंति, श्लोक - ९. १४४५३. धर्मपरीक्षायां पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, जैवे. (२५.५४११, १३X३७-४१). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, सं., प+ग, आदि धर्मतः सकलमंगलावली; अंतिः जयो वांछितावाभिः, १४४५७. छंद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ९, जैदे., (२५.५X११.५, १७३८-४४), १. पे. नाम. अंतरिक छंद, पृ. १अ - २आ. पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्ष, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन द्यो सरसति; अंति: मानव जे श्रवणे सुणे, गाथा ५५. २. पे नाम, जीवदया सिखामण, पृ. २आ-३अ. दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सयल तीर्थंकर करु रे; अंति: कहे एह विचार, ३. पे. नाम. सेत्रुंजानो छंद, पृ. ३अ-४अ. आदिजिन वृहत्स्तवन- शत्रुंजय, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमवि सयल जिणंद; अंति: जीम पामो भवपार ए, गाथा- ४३. For Private And Personal Use Only गाथा - २५. ४. पे. नाम. चोत्रीसअतिशय छंद, प्र. ४अ-५अ. ३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतिदायक कुमति घायक; अंति: पय सेव मांगु भवभवे, गाथा - १२. ५. पे. नाम. संखेश्वरपासजिन छंद, पृ. ५अ. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. कुंअरविजय - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी प्रणमे पास; अंति: शिष्य गुण गाया, गाथा - ११. Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १०९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ६. पे. नाम. गोडीजीनो छंद, पृ. ५अ-५आ. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, म. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय गोडि पास धणि; अंति: गोडीजी देजो हितधरी, गाथा-११. ७. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथनो छंद, पृ. ५आ-६आ. पार्श्वजिन छंद-गौडी, मा.गु., पद्य, आदि: नमु सारदा सारपादार; अंति: सौख्यप्रदः सर्वदा, गाथा-१४. ८. पे. नाम. भारती स्तोत्र, पृ. ६अ-६आ. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता; अंति: मेधामाह्वयति नियमेन, श्लोक-९. ९. पे. नाम. शंखेश्वर छंद, पृ. ६आ. पार्श्वजिन स्तवन, मु. विनयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मुरत श्रीपास; अंति: वृद्धि सदा आनंद घणे, गाथा-९ १४४५९. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ३९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२, १६४३९-४५). १. पे. नाम. पडवेनी स्तुति, पृ. १अ. एकमतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात्व असंजम; अंति: नितु नितु होइ लीलाजी, गाथा-४. २. पे. नाम. बीजनी स्तुति, पृ. १अ. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. तृजनी स्तुति, पृ. १आ. तृतीयातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेयांस जिणेसर शिव; अंति: लीला होज्यो अति घणी, गाथा-४. ४. पे. नाम. चोथनी स्तुति, पृ. १आ. चतुर्थीतिथी स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सर्वारथ सिद्धथी चवी; अंति: नय धरी नेह निहालतो, गाथा-४. ५.पे. नाम. पांचमीनी स्तुति, पृ. १आ-२अ. पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंच रूप करि मेरुशिखर; अंति: हरयो विघन हमाराजी, गाथा-४. ६. पे. नाम. पांचमी स्तुति, पृ. २अ. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ७. पे. नाम. पांचमी स्तुति, पृ. २अ-२आ. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: ऋषभदास गुण गाय तो, गाथा-४. ८. पे. नाम. छट्टनी स्तुति, पृ. २आ. छट्टतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमि जिणेसर लैं; अंति: रस साथइ प्रीति धरो, गाथा-४. For Private And Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ११० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९. पे नाम. सप्तमि स्तुति, पृ. २आ. कल्लाणकंद स्तुति, प्रा., पद्य, आदि; कल्लाणकंदं पढमं अंतिः अम्ह सवा पसत्था, गाथा-४, १०. पे नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. २आ-३अ. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि मंगल आठ करी जिन आगल; अंतिः तपथी कोडि कल्याणजी, गाथा ४. ११. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. ३अ. अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमाद; अंतिः विघन देव दुरे हरे, गाथा-४. १२. पे. नाम. आठमनी स्तुति, पृ. ३-३आ. अष्टमीतिथि स्तुति, सं., पद्य, आदि: सिद्धं विधत्ते चरण; अंति: देहि मे देवी सारं, श्लोक-४. १३. पे. नाम. आठमनी स्तुति, पृ. ३आ. संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., प्रा., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं अंति: (-), श्लोक-४, (वि. कृति का मात्र प्रतीकपाठ दिया गया है.) १४. पे. नाम. पार्श्वजिनदसमीनी स्तुति, पृ. ३आ. पार्श्वजिन स्तुति, वा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर सेवे; अंति: देववाचक हितकारी, गाथा-४. १५. पे. नाम. दसमनी स्तुति, पृ. ४अ. पार्श्वजिन स्तुति - शंखेश्वर- पौषदशमीतिथि, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिणे; अंति: रंग अधिक जस वाधे जी, गाथा- ४. १६. पे नाम. दसमीनी स्तुति, पृ. ४-४आ पार्श्वजिन स्तुति, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम प्रभु परमेश्वर; अंति: भाणनी जयत करेवी, १७. पे नाम. दसमनी स्तुति, पृ. ४आ. गाथा-४. पार्श्वजिन स्तुति - पौषदशमीतिथि, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जय पास देवा करूं; अंति: केरी सयल आस्या पुरणी, गाथा ४. १८. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ४-५अ. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: वारो संघ तणा निशदिश, गाथा-४. For Private And Personal Use Only १९. पे. नाम. मौनएकादशी स्तुति, पृ. ५अ - ५आ. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: लालविजय हितकारी, गाथा-४. २०. पे. नाम. मौनएकादशी स्तुति, पृ. ५आ. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: नेमिजिन उपदेशी मीनएक अंतिः संघनी सुरवरा, गाथा ४. २१. पे. नाम. द्वादसीने रोहिणीनी स्तुति, पृ. ५आ-६अ. Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रोहिणीतप स्तुति, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुखदायक नायक ए; अंति: जो जिन भक्ते राचे जी, गाथा -४. २२. पे. नाम. चतुर्द्दशी स्तुति, पृ. ६अ. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४, २३. पे नाम. पुनिमनी स्तुति, पृ. ६-६ आ. १११ शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेत्रुंजेगिरि; अंति: पाय ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. २४. पे नाम, विमलाचलपुनिम स्तुति, पृ. ६आ-७अ. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल गिरिवर; अंति: अविचल मन तणी आस, गाथा-४. २५. पे. नाम ऋषभदेव पुनमनी स्तुति, पृ. ७अ-७आ. सौधर्मदेवलोक स्तुति, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सौधर्म देवलोक पहिलो; अंतिः श्रीसंघने सुख थाय, गाथा-४. २६. पे. नाम. ऋषभदेवनी पुनिम स्तुति, पृ. ७आ. आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. २७. पे नाम वीरजिन अमावस्थानी स्तुति, पृ. ७आ-८अ महावीरजिन स्तुति, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि गंधारे श्रीवीरजिणंद; अंति: जसविजय जयकारी, गाथा- ४. २८. पे. नाम. अमावस्यानी स्तुति, पृ. ८. महावीरजिन स्तुति, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जयकार साहेब वयेड; अंति: बुध सेवकने जयकार, गाथा-४. For Private And Personal Use Only २९. पे नाम, अमावस्यानी पुनिम स्तुति, पृ. ८अ शत्रुंजयगिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनमांहे तिरध; अंति: जीव सुखसंपत्ति वरे, गाथा- ४. ३०. पे नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ८अ ८आ. ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३, आदि: पेहले पद जपीए अरिहंत; अंतिः कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. ३१. पे. नाम. पजुसणनी स्तुति, पृ. ८आ - ९अ. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेदी जिनपूजा; अंति: पुरो देवी सिद्धाइजी, गाथा -४. ३२. पे नाम, पजुसणनी स्तुति, पृ. ९अ. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुसण पुण्ये; अंति: सुजस महोदय कीजे, गाथा-४. ३३. पे. नाम. दीपोछवी स्तुति, पृ. ९अ ९आ. दीपावलीपर्व स्तुति, पंडित. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: दीवाली दिन पर्व; अंति: सकल संघ आणंदाजी, गाथा-४. ३४. पे नाम वीर स्तुति, पृ. ९आ-१०अ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ११२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उठी सवेरे सामायिक; अंति: साधे ते शिवपद भोगीजी, गाथा-४. ३५. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १०अ. श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीइं; अंति: सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा-४. ३६. पे. नाम. श्रीमंधिर स्तुति, पृ. १०अ-१०आ. सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर मुझनै; अंति: शांतिकुशल सुखदाता जी, गाथा-४. ३७. पे. नाम. नंदीसरधीप स्तुति, पृ. १०आ. नंदीश्वरद्वीप स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसर वरद्वीप नीहाल; अंति: लालविजय जयकार, गाथा-४. ३८. पे. नाम. संप्रतिराजानी स्तुति, पृ. १०आ. महावीरजिन स्तुति-संप्रतिराजागुणगर्भित, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जास पटोधरनइ उपदेशी; अंति: आणी अतिहि उल्लासो जी, गाथा-४. ३९. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति-जावरापुरतीर्थमंडन, पृ. १०आ, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-१ अपूर्ण तक है. शांतिजिन स्तुति-जावरापुर, मु. पुन्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिकर शांतिकर; अंति: (-), अपूर्ण. १४४६०. (+) २६ द्वारगर्भित वीरस्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ५४४१-४२). महावीरजिन स्तवन-२४ दंडक २६ द्वारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर स्वामी वीरजिन; अंति: लहियइ अविचल ठाउ, गाथा-९१, ग्रं. १६५. महावीरजिन स्तवन-२४ दंडक २६ द्वारगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुखनउ करणहार ठाकुर; अंति: अविचल निश्चल स्थानक, ग्रं. २८५. १४४६२. (+) तीरथमाल, संपूर्ण, वि. १७४८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५४११, १४४३४-४५). तीर्थमाला, मु. शीलविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: अरिहंत देव नमुं सदा; अंति: अक्षय० तवन सोहामj, खंड-४. १४४६३. (+) आवश्यकसूत्र की नियुक्ति व भाष्य की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११३-९५(१ से ९५)=१८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४६४-६५). आवश्यकसूत्र-अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४०, आदि: (-); अंति: षोषध्यादयो गृह्यते, __ अपूर्ण. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४०, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ११३ १४४६४. थोईनी चोवीसी व मोनइग्यारस स्तुति, संपूर्ण, वि. १८४५, भाद्रपद शुक्ल, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, ले.स्थल. जाटावाड, प्रले. मु. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११.५, १४४१८-३६). १. पे. नाम. वनितविजेकृत थोईनी चोवीसी, पृ. १अ-८अ. स्तुतिचौवीसी, मु. वनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिनेसर समरो; अंति: वनीतविजय० सुधीर तो, गाथा-९६. २. पे. नाम. मोनइग्यारस स्तुति, पृ. ८आ. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. वनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारीका नगरी; अंति: वनीतविजय गुण गायाजी, गाथा-४. १४४६५. (+) शांतिनाथ चरित, अपूर्ण, वि. १८८०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १३५-२४(१ से २४)=१११, पू.वि. प्रस्ताव ३ गाथा १३ तक नही है., ले.स्थल. अमरावती, प्रले. मु. शंकर (गुरु पं. ऋद्धिरत्न), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंतरीक्षपार्श्वनाथजी प्रसादात्., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १५४४२-४३). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि: (-); अंति: स करोतु शांतिः, प्रस्ताव-६, श्लोक-१६२६, अपूर्ण. १४४६६. श्रीपालरास सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७-५८(१ से ५८)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., चतुर्थ खंड ढाल-१० अपूर्ण से ढाल-१३ अपूर्ण तक है., प्र.वि. टबार्थ कहीं-कहीं है., जैदे., (२६४११.५, ७४३१-३७). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४४६७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन ७ गाथा २ तक है., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १४४४६-४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), अपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-अधिरोहिणी वृत्ति, मु. भावविजय, सं., गद्य, वि. १६८९, आदि: ॐ नमः सिद्धि; अंति: (-), अपूर्ण. १४४६८. (+) पद्मिनी चरित्र, कवित व अक्षौहिणीसेना प्रमाण, संपूर्ण, वि. १७७८, इभाश्वमुनिचंद्राब्दे, पौष शुक्ल, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४८, कुल पे. ३, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. पार्श्वदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १२-१३४३०). १.पे. नाम. पद्मिनी चरित्र, पृ. १आ-४८अ. गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, वि. १७०७, आदि: श्रीआदिसर प्रथम जिण; अंति: अनुमाने लालचंद ___ कहइ, खंड-३, ढाल ३९, गाथा-८१६, ग्रं. ११५७. २. पे. नाम. कवित, पृ. ४८अ. औपदेशिक कवित, मा.गु., पद्य, आदि: चरण शरण चित्तधरण; अंति: नित नित उर धार सत, गाथा-१. ३. पे. नाम. अक्षौहिणी प्रमाण, पृ. ४८आ. अक्षौहिणीसैन्य मान, सं., पद्य, आदि: दशकोटी दंता त्रिगुणा; अंति: प्रमाणं मुनयो वदंति, श्लोक-१. For Private And Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ११४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४४०२. (+) पार्श्वजिन निसानी, छंद, दानसीलतपभावनाचौढालीयो व ऋषभगीत, अपूर्ण, वि. १७८२, वैशाख कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, कुल पे. ४, जैदे., (२५X११, १७X४३-४५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे नाम, पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, पृ. २अ २आ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे. वि. दो-दो पदो की एक गाथा गीनने से ५६ गाथा हुई है. वस्तुतः २७ गाथा ही है. मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: गुण जीनहर्ष कहंदा है, गाथा - ५६, अपूर्ण. २. पे नाम, दानशीलतपभावना संवाद, पृ. २आ-५आ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: रे धरम हीय धरो, ढाल- ४. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ५आ. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन मधुकर मोही रह्यउ; अंति: सेवे बे कर जोडी रे, गाथा ५. ४. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ५आ-६आ. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: वदन अनोपम चंदलो गोडि; अंतिः सेव करता सुख लह्यो, गाधा ४९. १४४०३. (*) दिवाली कल्प का बालावबोध, पूर्ण, वि. १८५०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३ रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १८-१ (१) १७, ले. स्थल. गावलिनगर, प्रले. ग. माणिक्यविजय; लिख. मु. नेमविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीणिस्वापार्श्वनाथ प्रसादात्., संशोधित., जैदे., ( २६.५X११.५, १३३८-४२). १४४७४. दीपावलीपर्व कल्प- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: लगे जगतने विषे रहो, ग्रं. ६०५, पूर्ण. क्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाधा- ८८ तक है., प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६११, ९x४० ). वृहत्क्षेत्रसमास संक्षेप जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण सजलजलहर निभस्स; अंति: (), अपूर्ण, १४४७७. वर्द्धमानजिन स्तवन व दुविहार स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७७०, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले. स्थल. मसूदानगर, प्रले. ग. जगरुपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५१०, ११४४३). 9 १. पे. नाम. वर्द्धमानजिन स्तवन, पृ. १अ ४अ. महावीरजिन हमचडी-कल्याणकपंचवर्णन, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: नंदनकुं त्रिशला; अंतिः चरमजिणेसर वीरो रे, दाल-३, गाथा- ६७. २. पे नाम दुविहार स्वाध्याय, पृ. ४-५ अ. प्रत्याख्यान सज्झाय-दुविहार, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला प्रणमी सरसति: अंतिः दिन दीपह तपगच्छ नाह, गाथा - १६. १४४८१. (+) दंडक विचार, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ९३६-४२). २४ दंडक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: लेश्या ठित्ति अवगाहण; अंति: (-), अपूर्ण. १४४८४. १२ भावना सज्झाय व पंचषष्टीयंत्र स्तवन सह यंत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२६X११, १२-१३X२३-३७). For Private And Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. १२ भावना सज्झाय, पृ. १अ - ६आ. उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: विमल कुल कमलना हंस; अंति: सकल मुनि ध्याणे, ढाल - १४. २. पे. नाम. पंचषष्टियंत्र स्तवन सह यंत्र, पृ. ६आ. पंचषष्टियंत्र स्तोत्र, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि : आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक - ९. २४ जिन स्तोत्र-यंत्र, सं., पं., आदि (-); अंति: (-). १४४८५. १२ भावना स्वाध्याय व विजयाणंदसूरीश्वर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैवे. (२६११, १३४३४). १. पे. नाम. १२ भावना सज्झाय, पृ. १अ - ६आ. उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: विमल कुल कमलना हंस; अंतिः ध्यानि सकलमुनि आणे, ढाल १४. २. पे. नाम. तपागच्छाधिराज श्रीविजयाणंदसूरीश्वर सज्झाच, पृ. ६आ. विजयानंदसूरि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सहगुरु वंछित; अंतिः भविअण एह गुरु बंदीइ, गाथा- ७. १४४८६. न्यायसंग्रह सह वृहत्वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २४-३ (१ से २,२३*) = २१, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., ११५ (२६X१०.५, १५-१७X७६). न्यायसंग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. न्यायसंग्रह - न्यायार्थमंजूषा बृहद्वृत्ति, ग. हेमहंस, सं., गद्य, वि. १५१५, आदि (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४४८७. थंभणोपार्श्वनाथ सेरीसापार्श्वनाथ शंखेश्वरापार्श्वनाथ स्तवन व पद्मावतीदेवी मंत्र, संपूर्ण, वि. १८४४, आषाढ़ कृष्ण, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, ले. स्थल. लाकडी आनगर, प्रले. मु. विनयविजय (गुरु ग. विनितविजय, , तपागच्छ); राज्यकाल रा. नोंघणजी जाडेजा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२११) जेंस्यों देख्यों ग्रंथ मे, जैदे., (२२x११.५, १७-१८X३६-३८). १. पे. नाम. शंभणोपार्श्वनाथ सेरीसापार्श्वनाथ शंखेश्वरापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १-१५अ. पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थमंडन, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८११, आदि: सरसतीनें समरुं सदा; अंति: नेमविजय एक ध्याने, ढाल - २८, गाथा - ३२३. २. पे. नाम पद्मावतीदेवी मंत्र, पृ. १५अ. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, सं., प्रा., मा.गु., प+ग, आदि (-); अंति: (-). १४४९०. कल्याणमंदिर, भक्तामर स्तोत्र, नवतत्त्व व चतुः शरण प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ४, जैदे., ( २३X१०, ६X३५ ) . १. पे. नाम. कल्याणमंदिर, पृ. १आ-७अ. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यंते, श्रोक-४४. २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ७अ - १३आ. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, लोक-४४+४, ३. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १३आ-१७आ. For Private And Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ११६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४३. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. गाथा १४ तक ही लिखा गया है.) ४. पे. नाम. चतुःशरण प्रकरण, पृ. १७आ-२३आ. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. १४४९२. वच्छराज चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., खंड-२ ढाल-११ दूहा गाथा-३ तक है., जैदे., (२४.५४१०.५, १७४३३-४०). देवराजवछराज चौपाई, मु. नेमिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: अकलगति अंतरीक जिन; अंति: (-), अपूर्ण. १४४९३. समस्या श्लोक व प्रतिज्ञाकाव्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, २१४५०). १. पे. नाम. समस्या श्लोक संग्रह, पृ. १अ-४अ. __ आ. कुलमंडनसूरि, सं., पद्य, आदि: फणींद्रो यद्वक्रकृत; अंति: जलजवज्जबालवज्जालवत्, श्लोक-८८. २. पे. नाम. समस्या श्लोक संग्रह, पृ. ४अ-४आ. समस्या श्लोक, सं., पद्य, आदि: वंध्या: योंधः कुहुनि; अंति: करीर: फलितो ययानैः, श्लोक-४४. ३. पे. नाम. शत्रुजयमाहात्म्ये ऋषभचरित्राधिकारे बाल्यत्वेतिप्रयोग:, पृ. ४आ. __ आदिजिन बाल्यकाल वर्णन, सं., पद्य, आदि: मासेन मासे रमणप्रवास; अंति: संयमवत्प्रभुः, श्लोक-४. ४. पे. नाम. प्रहेलिका श्लोक, पृ. ४आ. क. अमर, सं., पद्य, आदि: नमन्मानववृंदस्य जिन: अंति: स्त्रीण्या भरणीनिभोः. श्लोक-२. ५. पे. नाम. प्रतिज्ञा श्लोकसंग्रह, पृ. ४-५आ. सं., पद्य, आदि: वीसलदेव नरदेवसंसदि; अंति: साढ़ विवादेच्छया. ६. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ५आ. __मु. कनकदेव, सं., पद्य, आदि: देवः केवलबोधिचक्षु; अंति: प्रामाणिक ग्रामणीः, श्लोक-२. ७. पे. नाम. कनकदेव स्तुति, पृ. ५आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक ४ तक है. सं., पद्य, आदि: जिनपति नतभालः शब्द; अंति: (-), अपूर्ण. १४४९४. (+) गौतमपृच्छा चुपि, संपूर्ण, वि. १६५५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मु. वीरविजय (गुरु पं. वृद्धिविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ११४३५-४२). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवइ; अंति: मन जे जिनवचने वसिउ, गाथा-१२१. १४४९५. सप्तस्मरण, शांतिस्तवन व भक्तामर सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-२(१ से २)=२३, कुल पे. ३, ले.स्थल. पाडलीपुर, जैदे., (२६४११, ५४४२-४३). For Private And Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ११७ १. पे. नाम. खरतरगच्छीय सप्तस्मरण सह टबार्थ, पृ. ३अ-१७अ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. उवसग्गहरं स्तोत्र प्रतिकपाठ मात्र लिखा है. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण-७, अपूर्ण. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. २. पे. नाम. शांति स्तवन सह टबार्थ, पृ. १७आ-१९अ, पे.वि. बालावबोध टबार्थ की तरह लिखा है. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. लघुशांति-बालावबोध, ग. दयाकीर्ति वाचक, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमानदेवाचार्य; अंति: तेहनउ पद स्थानक पामइ. ३. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १९अ-२५अ. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्त क० सेवा सहित; अंति: वसइ पामइ लक्ष्मी. १४४९६. वैराग्यशतक प्रकर्ण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४८, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. अयवंति, जैदे., (२५.५४११, ५४३५-३७). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार चार गतिरूप; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. गाथा-५७ तक लिखा है.) १४४९७. बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. २१-६(१ से ६)=१५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे.. (२६४११.५, ३४३३-३६). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४४९८. जीवविचार सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२४ अपूर्ण तक है., जैदे., (२४.५४११.५, १२४३८-४१). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), अपूर्ण. जीवविचार प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभोवनने विषि दीवा; अंति: (-), अपूर्ण. १४५०२. प्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, ६४३४-४०). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), अपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार हूंवउ; अंति: (-), अपूर्ण. १४५०४. (+) स्तवन, सझाय, स्वाध्याय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८१६, पौष कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. १०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्रले. पं. शुभविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१०.५, १९४४६). For Private And Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ११८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. सेत्रुजेउद्धार, पृ. १अ-४अ. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: नयसुंदर० जय करु, ढाल-१२, गाथा-१२०. २. पे. नाम. नाकोडापार्श्व स्तवन, पृ. ४अ-४आ. पार्श्वजिन छंद-नाकोडा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आपण घर बेठा लील करो; अंति: कहै गुण जोडो, गाथा-८. ३. पे. नाम. पंचिद्रीय सज्झाय, पृ. ४आ. पंचेंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: आपु तुजने शीख चतुरनर; अंति: सबंध लहो सुख सासता, गाथा-७. ४. पे. नाम. जीवभेद सिझाय, पृ. ५अ. जीवभेद सज्झाय, मु. जिन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद चितमें धरी; अंति: जिनवचन सदा सद्दहै, ढाल-२, गाथा-१८. ५. पे. नाम. अजीव स्वाध्याय, पृ. ५आ-६अ. अजीवभेद सज्झाय, मु. जिन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रुतदेवी सुपरें; अंति: जिन इणि परे उपदिशे ए, ढाल-२, गाथा-३५. ६. पे. नाम. सेतुजानो स्तवण, पृ. ६अ. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: इणि गिर सीधा साधु; अंति: पामे कोड कल्याणो रे, गाथा-७. ७. पे. नाम. आत्महितशिक्षित स्वाध्याय, पृ. ६अ. __ आत्महितशिक्षा सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु साथे प्रीत; अंति: उदयरतन इम बोले रे, गाथा-७. ८. पे. नाम. सीतासतीनी सिझाय, पृ. ६अ-६आ. सीतासतीशील सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जळजळती मिळती घणी रे; अंति: नीत प्रणमीजे पाय रे, गाथा-९. ९. पे. नाम. छठाव्रत स्वाध्याय, पृ. ६आ. रात्रिभोजन सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल धरममांसारज कहिइ; अंति: विजय० तस धन अवतार रे, गाथा-६. १०. पे. नाम. सामायिक ३२ दोष सज्झाय, पृ. ६आ, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा १ अपूर्ण तक है. मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गणधर प्रणमी; अंति: (-), अपूर्ण. १४५०५. उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१७३ तक है., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४२-४५). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), अपूर्ण. १४५०६. संबोधसित्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. थिरपद्र, प्रले. ग. कृष्णविजय, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ६४३८-४०). For Private And Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ११९ संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा-७३. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनइं त्रिणलोकना; अंति: भणइ गणइ वांचइ ते. १४५०७. (+) चिहुंगति वेली, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. गोयम; पठ. श्रावि. सवीरांबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, ९४३५-३८). ४ गति वेलि, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: देवदया पर नमीय; अंति: हुवाछु गुणठाण, गाथा-१३५, ग्रं. १५९. १४५०९. पूजा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३०-३३). १. पे. नाम. देव पूजा, पृ. १आ-३आ. सं., पद्य, आदि: जय जय जय णमोस्तु०; अंति: सत्कृता संतु शांतये. २. पे. नाम. सिद्ध पूजा, पृ. ३आ-५आ. सं., पद्य, आदि: ॐ उर्ध्वाधारयुत; अंति: सौभ्येति मुक्तिं. ३. पे. नाम. दशलाखणि पूजा, पृ. ५-६आ. प्रा.,सं., पद्य, आदि: उतिमादिक्षमाद्यत; अंति: देयफलाई सुमिट्ठई. ४. पे. नाम. १६ कारण पूजा, पृ. ६आ-७आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अंतिम कुछेक गाथाएँ नहीं है. सं., पद्य, आदि: ऐंद्र पदं प्राप्य; अंति: (-), अपूर्ण. १४५११. (+) महानिशीथसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०४-१४(२४ से ३७)=९०, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४४०-४४). महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: ॐ नमो अरहताणं सुयं; अंति: (-), अपूर्ण. १४५१२. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका सह स्याद्वादमंजरी टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., श्लोक-६ की टीका अपूर्ण तक है., जैदे., (२६४१०.५, १३४३६-४६). अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: अनंतविज्ञानमतीत; अंति: (-), अपूर्ण. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका-स्याद्वामंजरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., गद्य, श. १२१४, आदि: यस्य ज्ञानमनंतवस्तु; अंति: (-), अपूर्ण. १४५१३. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. कृति के अंत में प्रतिलेखक द्वारा कर्तानाम गौत(म?)स्वामी का नाम लिखा गया है., जैदे., (२४४११, ९४२९). पासाकेवली, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: हलि हलि चिली चिली; अंति: होइ जामे संदेह नाही. १४५१४. (+) देवराजवत्सराज कथानकंदानविषये, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४३९-४०). देवराजवत्सराज कथानक-दानविषये, सं., पद्य, आदि: अस्मिन्नसारे संसारे; अंति: स्वर्गमगुः क्रमात, श्लोक-४२६. For Private And Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जी., (२५.५x११, १४५१५. (+) विविधसज्झाय व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. १४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., १७५४६-५०). १. पे नाम. पृथ्वीचंदराजा गुणसागरशेठ संबंध, पृ. १-३अ. पृथ्वीचंद गुणसागर वेली, मा.गु., पद्य, आदि: सिरि नेमि जिणेसर; अंति: गुणसागर ऋषिराज, गाथा - ५४. २. पे. नाम. दशार्णभद्रऋषि सज्झाय, पृ. ३अ -४अ. दशार्णभद्रराजा सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि सारद बुद्धिदाई सेवक; अंति: लालविजय निसदीश, गाथा - ९. ३. पे नाम, जीवोत्पत्तिकारण सज्झाय, पृ. ४-४आ. मा.गु., पद्य, आदिः उतपति जोइनइ आपणी; अंति: लीजइ जनमनो लाहो रे, गाथा - ३१. ४. पे नाम, अनाथीऋषि स्वाध्याय, पृ. ४आ-५अ. अनाथीमुनि सज्झाय, मु. सिंहविमल, पुहिं., पद्य, आदि: मगध देश को राज राजे; अंतिः बोले छोड्यो गरभावास, गाथा - २१. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५अ. मु. इंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: ममता माया मोहिआ रे; अंति: सकल सुमति तुं जोइ रे, गाथा - १४. ६. पे नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ५आ-६अ. उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुरिसा म भमो माधा; अंति: हणिआ भर कर्मरिपूना, गाथा - ९. ७. पे. नाम. सार स्वाध्याय, पृ. ६अ - ६आ. औपदेशिक सज्झाय, पंडित लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगति भारती चरण नमेव; अंतिः मनि धरज्यो चोल, गाथा - १६. ८. पे. नाम. दशदृष्टांत सझाय, पृ. ६आ-७आ. मनुष्यभव १० दृष्टांत सज्झाय, वा. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी परमेसर वीर, अंतिः विजयसिंह गणधारी, गाथा - १२. ९. पे. नाम. पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ. ७आ. उपा. सकलचंदजी, मा.गु., पद्य, आदि: पंच महाव्रत तणो रे; अंति: नदीय महिरका नाणी रे, गाथा - ५. १०. पे नाम. विजयसेनसूरि सज्झाच, पृ. ७आ-८अ. मु. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विजयसेनसूरि० शिरोमणि; अंति: हेमविजय जयकारीजी, गाथा- ११. ११. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८अ. For Private And Personal Use Only मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चेतो आतमजी अधिर; अंति: करइ० तिम करी सविचारा, गाथा - ६. १२. पे नाम. विजयदेवसूरि गीत, पृ. ८आ. ग. धर्मदासजी, मा.गु., पद्य, आदि आसा ओरी सजनी वंदो; अंतिः कहइ० लही शिवपद सारी, गाथा - ३. १३. पे. नाम. विजयदेवसूरि गीत, पृ. ८आ. मु. कनकसोभागी, मा.गु., पद्य, आदि: मोरु मन मोहिउं रे; अंति: फल्यो पुण्यअंकुर, गाथा - ३. Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १४. पे. नाम. विजयदेवसूरि गीत, पृ. ८आ. ग. धर्मदासजी, मा.गु., पद्य, आदि: गछपति गाई हो लाल; अंति: सेवइ धर्मदास गुण गाय, गाथा-५. १४५१७. संबोधसत्तरी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-४(१ से ४)=१३, पू.वि. गाथा-१७ से है., पठ. ग. लब्धिलक्ष्मी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ११४३५-४०). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सोलहई नत्थि संदेहो, गाथा-७२, अपूर्ण. संबोधसप्ततिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जयशेखर जाणिवउं, अपूर्ण. १४५२०. पंद्रह तिथी थुइ संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, पू.वि. स्तुति-२ गाथा-३ तक नहीं हैं., जैदे., (२१.५४९.५, ९-१०४२८-२९). १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लीला लच्छि लहंति, स्तुति-१६, गाथा-६४, अपूर्ण. १४५२१. श्राद्धअतिचार, संपूर्ण, वि. १८४४, माघ कृष्ण, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. विनयविजय (गुरु ग. विनितविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११.५, १६४३३). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावक तणाइ; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १४५२२. हैमीनाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., द्वितीयकांड श्लोक-२२९ तक है., जैदे., (२४.५४१०, १३४३९-४०). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), अपूर्ण. १४५२४. संबोधसत्तरी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-८९ तक है., जैदे., (२६४११, ६४३०-३३). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: (-), अपूर्ण. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनि त्रैलोक्यनु; अंति: (-), अपूर्ण. १४५२५. लिंगानुशासनअवचूरि, संपूर्ण, वि. १७७९, मुनिनिधिऋषिरूवी, माघ शुक्ल, २, सोमवार, मध्यम, पृ. २३, ले.स्थल. अहीपूर, प्रले. ग. अजबसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १६-१८४४३-५३). हैमलिंगानुशासन-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: स्तु इति पृथक् संत; अंति: कालापकम् इत्यादि. १४५२६. पाक्षिकसूत्र व खामणा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११, १३४३५-४८). १.पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. १आ-६आ. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: मिच्छामि दुक्कड. २. पे. नाम. पाक्षिक क्षामणासूत्र, पृ. ६आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: (-), अपूर्ण. १४५२७. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. पत्तन, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३२-३३). For Private And Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन निर्वाणमहिमा स्तवन- दीपावलीपर्व, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः श्रमणसंघतिलकोपमं; अंतिः श्रीगुणहर्ष वधांमणई, डाल- १०, गाथा ११८. १४५२९. लीलावती रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८- १ (१) = ७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., ढाल - ४ दुहा-१ से ढाल - २५ गाथा - १४ तक हैं. जैवे. (२५x१०, २०४६०-६५ ). " " १४५३२. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२५x११, १३x४५-४६). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लीलावती रास, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४५३१. काव्यप्रकाशटीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३०-३२ (१ से ३२ ) = ९८, प्र. वि. प्रत में मूल पाठ भी होना संभव परन्तु चिप पत्र होने से भली-भाँति पाठ मिला पाना मुश्किल है., जैदे., (२६X११, १५x५१-५७). काव्यप्रकाश-सारदीपिका टीका, ग. गुणरत्न, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: धृतचिन्तामणिः सदा, अपूर्ण. पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदिः यत्सत्वं त्रिषु लोके; अंति: (१) तया पाशकढालनम्, (२) यामेन तथैकदिवसेन तु. १४५३३. (+) सुक्तावली, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-७ (१ से ७) =६, पू.वि. वर्ग-२ श्लोक-२२ तक नहीं है., प्र. ग. प्रेमकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५x१०.५, १२X४०-४३). , सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (); अंति: केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४, अपूर्ण. १४५३४. परमाणुपरिणामभांगा यंत्र व लब्धि यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, जैवे. (२५x१०.५, १७४४५). १. पे. नाम. परमाणुपरिणाम भांगा कोष्टक, पृ. १-६ आ. प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: परमाणु पोगालेण भंते; अंतिः दिष्टकानयनाम्नायः, २. पे नाम, भगवतीसूत्र के लब्धि का १२५ द्वार यंत्र, पृ. ७अ-७आ भगवतीसूत्र-यंत्र, मा.गु., पं., आदि (-); अंति: (-). १४५३६. स्तवन, सज्झाय आदिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८४४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४, कुल पे. २८, ले. स्थल. श्रीरवनगर, प्रले. मु. विनयविजय (गुरु ग. विनितविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., ( २१x११.५, १५X३४-३७). १. पे. नाम. पुण्यप्रकाश स्तवन, पृ. १अ - ५अ. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल - ८ + कलश, गाथा - १०५. २. पे. नाम. रामसीता लेख, पृ. ५अ-७आ, पे.वि. यह प्रति में कृतिरचना सं. १७२० लिखा गया है. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदिः स्वस्तिश्री लंका; अंतिः रुदे अमीरस थाय, ढाल ५. For Private And Personal Use Only ३. पे. नाम. चंदनबाला स्वाध्याय, पृ. ७आ - ९आ. चंदनबाला सज्झाय, मु. चतुरसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७०९, आदि: सरसती केरा रे पय; अंति: चतुर वदे इम वाणी, ढाल- ३, गाथा- ४८. ४. पे नाम, जंबुकुमार स्वाध्याय, पृ. ९आ-१०अ. Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १२३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी वसे; अंति: तास तणा गुण गाया रे, गाथा-१३. ५. पे. नाम. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, पृ. १०अ-१०आ. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं तुमारा पाय; अंति: जिण दीठा प्रत्यक्ष, गाथा-७. ६. पे. नाम. अनाथीऋषी स्वाध्याय, पृ. १०आ. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रयवाडी चड्यो; अंति: वंदे रे बे करजोडि, गाथा-१०. ७. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, पृ. ११अ-१३आ. ___ मु. चतुरसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७७९, आदि: प्रथम जिणेसर वीनवु; अंति: मंगलमाला वृद्धि, ढाल-५, गाथा-६४. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १३आ-१५आ. मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सरस्वती वचनसुधारस; अंति: गासे धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४. ९.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १५आ-१६आ. मु. सुमतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि: ऋषभ जिणेसर साहीबाजी; अंति: कहे सुमतिविजय सुखकार, ___गाथा-२२. १०. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र का सज्झाय संग्रह, पृ. १७अ-१९आ, पे.वि. अध्ययन नं.८,१०,२१,२२,२४,३२,३३ की सज्झाय हैं. उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११. पे. नाम. शाश्वतजिन स्तवन, पृ. १९आ-२१अ. मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभाननजिन; अंति: हियडे अधिक आणी रंग ए, ढाल-७, गाथा-३१. १२. पे. नाम. सनतकुमार चक्रवर्ती सज्झाय, पृ. २१आ-२२अ. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सरस वचन रस; अंति: लोग त्रीजे संभाली रे, गाथा-१६. १३. पे. नाम. राजीमती सीझाय, पृ. २२अ-२२आ. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. सुखविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल घरथी नीसरी रे; अंति: हे सुख कहे स्या वास, गाथा-१०. १४. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २२आ. मु. जयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुरुष पनोतों बहु गुण; अंति: मनवंछित फल साधेरे, गाथा-६. १५. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २२आ. मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जगनायक जगनायक; अंति: द्यौ दरसण सुखकंद, गाथा-५. १६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादानीय, पृ. २२आ-२३अ. For Private And Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसादाणी सांवल वरणो; अंति: कहै० करुणा करज्यौ, गाथा-७. १७. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २३अ-२३आ. मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे रथ वालो; अंति: मोहन कहे स्याबास, गाथा-७. १८. पे. नाम. जिनवंदन विधि स्तवन, पृ. २३आ-२४अ. मु. कीर्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जीन चोवीस करु; अंति: कीर्तिवमल सुख पावे ए, गाथा-११. १९. पे. नाम. बूध रास, पृ. २४अ-२६अ. बुधरास, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवी देवी अंबाई; अंति: जेह सुणे नरनार तुं, गाथा-६६. २०. पे. नाम. बाहुबली सज्झाय, पृ. २६आ-२७अ. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबली सुकल ध्याने; अंति: तेह समकित सिंधु ए, गाथा-१२, (वि. प्रतिलेखक द्वारा दो-दो गाथा की एक गाथा गिनी गयी है.) २१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २७अ-२७आ. मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: वादल दहदीस उनह्या; अंति: प्रतपो जगि जाण रे, गाथा-८. २२. पे. नाम. पंचइंद्रिय सज्झाय, पृ. २८अ. मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीउं विषय न राचीइ; अंति: सेवजो नीसदीसो रे, गाथा-१३. २३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. २८अ-२८आ. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज अनोपम मुरत माहरे; अंति: भव भव देज्यो सेवा, गाथा-९. २४. पे. नाम. सीमंधरजिनविनती स्तवन, पृ. २८आ-२९आ. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार एहवु; अंति: लाभै० पुरी ___आसा मनतणी, गाथा-१८. २५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २९आ-३०अ. ___वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रीगडे प्रभु सोंहइ; अंति: उदय प्रभु जयो रे, गाथा-१३. २६. पे. नाम. पद्मप्रभु स्तवन, पृ. ३०अ-३०आ. पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धनधन संप्रति साचो; अंति: दिज्यो भवभव सेव रे, गाथा-९. २७. पे. नाम. सुदर्शनकेवली सझाय, पृ. ३०आ-३३आ. सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: संयमीधीर सुगुरुपय; अंति: उदय हुइ सुजस सवाय रे, ढाल-६, गाथा-६८. २८. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. ३३आ-३४अ. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरीनो वासी; अंति: नही कोई तोले हों, गाथा-२६. १४५३७. शत्रुजयउद्धार, संपूर्ण, वि. १८३०, श्रावण शुक्ल, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. पं. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१०.५, १४-१५४३२-३३). For Private And Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल अंतिः द्यो दरिशन जयकरो, ढाल - १२, गाथा - १२१. १४५३८. स्तवनचोवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., स्तवन-१८ अपूर्ण तक हैं., जैदे., (२५.५X११.५, १४४४७). स्तवनचौवीसी, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंद अंति: (-), अपूर्ण. १४५३९. स्तवनसंग्रह व वयरस्वामी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. १२, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्रले. ग. मणिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x११, १३४३१). १. पे नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ९अ. आ. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: कांइ रिसहेसर अलवेसर; अंति: ऋषभ गुण लायकजी, गाथा- ७. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ १ आ. आ. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिनेसर इकमना; अंति: कहै चितडो मुझ जोइकै, गाथा - ५. ३. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ- २अ. आ. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मिलि करी आवै हो खेखो; अंति: जिहां सदाए सहाय करंत, गाथा- ७. ४. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. २अ. आ. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदिः आनन नेहूसम सोभतो; अंतिः कहे० अरज सुणो निसदीस, गाथा- ९. ५. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ. आ. ऋषभसागर, रा., मा.गु., पद्य, आदिः सुविधि सुविधि विधी; अंतिः सागर० करि चरण प्रणाम, गाथा ८. ६. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ -३आ. आ. ऋषभसागर, मा.गु., रा., पद्य, आदि: काइ जिनजीनै श्रीजिन; अंति: करी ऋषभ गुन गाइ नेहे, गाथा-५. ७. पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. ३-४अ. आ. ऋषभसागर, मा.गु., रा., पद्य, आदि: माहरी लय लागी तुम; अंति: कायमनो वलि वावरी, गाथा-११. ८. पे. नाम. वैरस्वामी स्वाध्याय, पृ. ४अ-४आ. वज्रस्वामी सज्झाब, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि गणधर दश पूरवधर सुंदर; अंतिः विजय प्रभु बंदा हो, गाथा - १३. ९. पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. ४-५अ. आ. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: विमलजिनेस्वर वीनवु; अंतिः ऋषभ० विमल विमल, गाथा - ५. १०. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ५अ. आ. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि सांभलि शांति जिनेसर; अंति: अवसरनु खतो पामी रे, गाथा ५. ११. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. ५अ - ५आ. आ. ऋषभसागर, मा.गु., रा., पद्य, आदि: मुनिसुव्रतसुं मनिधरि; अंतिः ऋषभ० लीयो छाइया रे, गाथा-५, १२. पे नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. ५आ, आ. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: द्वादसमो जिन सेवयो; अंतिः राखी काणिके जिनजी, गाथा ५. For Private And Personal Use Only १२५ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४५४०. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., स्तवन-२१ गाथा-५ तक हैं., जैदे., (२६४११.५, १४४४४). स्तवनचौवीसी, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणेसर पाय; अंति: (-), अपूर्ण. १४५४२. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.८-३(१ से ३)=५, कुल पे. ३, ले.स्थल. घोघाबंदर, प्रले. मु. धीरसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १५४४३-४५). १. पे. नाम. शांतिनाथगुण स्तवन, पृ. ४अ-५अ. शांतिजिन स्तवन-रागमाला, मु. सहजविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित पूरण मनोहरं; अंति: विनवै० सुख ते ___अनुभवै, गाथा-३०. २. पे. नाम. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, पृ. ५अ-६आ. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अरबुदगिर रलिआमणो रे; अंति: न्यानसागर जयकरु, गाथा-३२. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. ७अ-८आ. वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल तणी कल्प; अंति: पास जिनवरतणी राजगीता, गाथा-३६. १४५४३. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८२-४६(१ से ४,२१ से ४८,५५ से ६८)=३६, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११, ११-१६४३५-४८). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. उपासकदशांगसूत्र-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४५४४. शालिभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६७, आषाढ़ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२४४११, १६x४७-४८). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: भविक करो कछु वाधोजी, ढाल-२९, गाथा-५१०. १४५४५. इग्यारअंग सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८६१, पौष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पृ.वि. अंग-३ की गाथा-२ तक नहीं हैं., ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. मु. रूपचंद (गुरु ग. रंगविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४१०, ११४२८-२९). ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि: (-); अंति: रहीरे कीधो ए सुपसाय, स्वाध्याय-११, अपूर्ण. १४५५१. श्रेणिकराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२-४१(१ से ४१)=११, पू.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा-१४५५ से १८०१ तक हैं., जैदे., (२५४११.५, १६-१८४४०-५०). श्रेणिकराजा रास*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४५५२. पार्श्वपद्मावती छंद संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४८). १.पे. नाम. अंतरिक पार्श्वजिन छंदबद्धस्तवन, पृ. १आ-३आ. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्ष, वा. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारदा पाय प्रणमी; अंति: भणै जयो देव जय जयकरण, गाथा-४९. For Private And Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ छंद, पृ. ३आ-५अ. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, म. धरमसीह, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरसती एह; अंति: धरमसीह ध्याने धरण, गाथा-२९. ३. पे. नाम. पद्मावतिदेवी छंद, पृ. ५अ-६अ. हीरो, मा.गु., पद्य, आदि: देवीतो दीवाणं अनंत; अंति: तवई पासनाह पद्मावती, गाथा-४१. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्ष, पृ. ६आ-७आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-५० अपूर्ण तक हैं. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन द्यो सरसति; अंति: (-), अपूर्ण. १४५५३. (+) कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका व टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ४-१३४२९-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: (-), अपूर्ण. कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: (-), अपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४५५४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६३-४(२२,३७ से ३९)=५९, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-२२ की गाथा ३० तक है.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ७४३७-३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), अपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: संयोगादि प्रमुक्तस्य; अंति: (-), अपूर्ण. १४५५५. (+) संबोधसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. इलपुर, प्रले. मु. नित्यलाभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ७४४३). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, ___ गाथा-७३. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा नमस्कार; अंति: लहइ ईहां संदेह नही. १४५५६. अर्हदास चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२५४१०.५, १७-१८४५२-५४). अर्हदास चरित्र, सं., गद्य, आदि: अस्मिन् जंबुद्वीपे; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १४५५७. नलदवदंती चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., खंड-६ ढाल-७ की गाथा-१० अपूर्ण तक हैं., जैदे., (२४.५४११, २१४५०-५५). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: (-), अपूर्ण. १४५५९. (+) गुणस्थानक्रमारोह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६९२, यामलिनिधिरसकुमुदेश, कार्तिक शुक्ल, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १५, प्रले. श्रावि. पद्मावती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कृति रचना वर्ष में लिखी गयी प्रति. यह प्रत आदर्श प्रति होने की सम्भावना है., संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११, २-५४४३-५४). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोहहत; अंति: रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३६. For Private And Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गुणस्थानक्रमारोह-बालावबोध, मु. श्रीसार, मा.गु., गद्य, वि. १६९२, आदि: सुरासुरनराधीश नमस्कृ; अंति: प्रकररूप प्रकट कयौं. १४५६०. चित्रसेनपद्मावती कथानक, अपूर्ण, वि. १६८९, भाद्रपद कृष्ण, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १८-१३(१ से १३)=५, पू.वि. प्रारंभ से श्लोक ३६६ तक नहीं है., ले.स्थल. आगरानगर, प्रले. मु. लब्धिचंद्र (गुरु ग. धर्मचंद्र), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४१). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: (-); अंति: मकरोत् पाठकराजवल्लभः श्लोक-५०८, ग्रं. ५१२, अपूर्ण. १४५६१. प्रवचनसारोद्धार सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १६७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्रारंभ से गाथा-१६३६ तक है., जैदे., (२५.५४१०, ६x४२-४३). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंति: (-), अपूर्ण. प्रवचनसारोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ युगादि; अंति: (-), अपूर्ण. १४५६३. स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १७८८, फाल्गुन शुक्ल, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. जवेरीवाड, प्रले. मु. जससागर; पठ. श्राव. रूपचंद पानाचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४११, १५-१६x४३-४५). स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: ऋषभ जिणिंदसु प्रीतडी; अंति: पूर्णानंद समाजोजी. १४५६४. स्तुतिचौवीसी, स्तुति, कवित, पदआदिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८४५, आश्विन कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ८, प्रले. मु. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, २०-२१४४३-५०). १. पे. नाम. स्तुतिचौवीसी, पृ. १अ-६अ. मु. वनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिनेसर समरो; अंति: वनीतविजय० सुधीर तो, स्तुति-२४, गाथा-९६. २. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ६अ. मु. वनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारीका नगरी; अंति: वनीतविजय गुण गायाजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. पांचइद्रीना विषय, पृ. ६अ. ५इंद्रिय के विषय, मा.गु., गद्य, आदि: आठ कायाना ५ चक्षूना; अंति: २३ बोल जाणवा. ४. पे. नाम. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, पृ. ६अ. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: चउथेणं उपवास एक; अंति: पाखीपडिकमणानी जाणवी. ५. पे. नाम. स्त्री चरित्र कवित्त, पृ. ६आ. सारी-हीणीस्त्री कवित, क. गद, मा.गु., पद्य, आदि: वरष पनर षटमास; अंति: कवि गद कहे० वीमले, गाथा-२. ६. पे. नाम. मुनिगुण कवित्त, पृ. ६आ. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: पाला चालें पंथ शीश; अंति: सहेजसुंदर० रतिया सहे, पद-१. ७. पे. नाम. प्रहेलिका, पृ. ६आ. प्रहेलिका पद, मा.गु., पद्य, आदि: ऐकनकुंकर हाथ बोलावत; अंति: रहे न छिनलकी नेना, पद-१. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६आ. पुहिं., पद्य, आदि: प्रेम कटोरी लग रहि; अंति: प्रह उठी परभात, गाथा-४. For Private And Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १२९ १४५६५. स्तुतिचौवीसी वनमस्कारचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-२(१ से २)=७, कुल पे. २, ले.स्थल. सूर्यपूर, जैदे., (२५४१०.५, १२४३३-३५). १. पे. नाम. स्तुतिचौवीसी, पृ. ३अ-६अ. मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभजिणेशर केशर; अंति: इम मंगल करजो माय, स्तुति-२४. २.पे. नाम. चौवीसजिन नमस्कार, पृ. ४अ-९आ. ग. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिन युगादिदेव; अंति: जिननां सरियां काज, गाथा-२५. १४५६६. चिहुंतरि बोल प्रश्नोत्तर, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-६(१ से ६)=१३, जैदे., (२६.५४११, १३-१४४५२-५८). ७४ बोल प्रश्नोत्तर, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अह्मनइ परीबविज्यो, ग्रं. ८०१, अपूर्ण. १४५६७. योगशास्त्र-१ से २ प्रकाश, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२५.५४११, ९४२३-२९). ___योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १४५६९. (+) संग्रहणीसूत्र अवचूरि, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा २०५ तक अवचूरि है., प्र.वि. मूल का प्रतिकपाठ मात्र है., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, २०४६०-६५). बृहत्संग्रहणी-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नत्वा प्रणम्य; अंति: (-), अपूर्ण. १४५७०. (+) वाग्भट्टालंकार, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. परिच्छेद-४ के श्लोक-१९ तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-क्रियापद संकेत., जैदे., (२६४१०.५, ११४४७). वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १४५७१. चौमासीदेववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १८८०, फाल्गुन कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. पत्तन, जैदे., (२६४११.५, १२४३०-३४). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: पास सामलनु चेई १४५७२. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९१०, श्रावण कृष्ण, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. बजाणानगर, प्रले. मु. जसविजय-शिष्य (गुरु मु. जसविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशान्तिजिनप्रसादात्., जैदे., (१६४१०, ९४१५-१८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. १४५७३. वृद्धशांति सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., अंतिम गाथा अपूर्ण है., जैदे., (२६४११, ४४२९-३०). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, हिस्सा, सं., गद्य, आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: (-), पूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भो भो भव्य जीवो; अंति: (-), पूर्ण. १४५७४. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२४४१०, ११४४४-४६). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १४५७५. होली कथा सह टबार्थ वदोहा, अपूर्ण, वि. १९०५, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. १०-२(१ से २)=८, कुल पे. २, ले.स्थल. वटपद्रनगर, प्रले. मु. प्रेमचंद्र ऋषि; पठ. श्राव. कल्याणचंद; वा. कालूजी, प्र.ले.पु. सामान्य, For Private And Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (५६०) जलात् रक्षेत् थलात् रक्षे, (७३१) जीहां लगे मेरू महीधरा, जैदे., (२५.५४११.५, ७४२७-२८). १. पे. नाम. होतासणीरजोत्छव कथा, पृ. ३अ-१०अ, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-८ अपूर्ण तक नहीं है. होलिकापर्व प्रबंध, ग. पुण्यराज, सं., पद्य, वि. १४८५, आदि: (-); अंति: श्चिरं वाच्यताम्, श्लोक-३४, अपूर्ण. होलिकापर्व प्रबंध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: चीरकाल लगे वांचवी, अपूर्ण. २.पे. नाम. दोहा, पृ. १०अ. औपदेशिक दोहा, पुहिं., पद्य, आदि: समय समझे के कीजीऐ; अंति: घोरो को काह काम्म, गाथा-१. १४५७७. साधारणजिन स्तोत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-२(१ से २)=६, पू.वि. श्लोक-२ पूर्वपाद तक नही है., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४०). साधारणजिन स्तवन, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रियं देहि मे, श्लोक-८, अपूर्ण. साधारणजिन स्तवन-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: स्तवनस्य० पद प्रपंच, अपूर्ण. १४५७८. विजयरत्नसूरि रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अंत मे चित्र काव्य है।, जैदे., (२१.५४१२, १७-१८४२९-३१). रत्नरास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: सकल समीहित पूरण; अंति: (-), अपूर्ण. १४५७९. शांतिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११४-८६(१ से ८६)=२८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रस्ताव-५ श्लोक-१२१ से प्रस्ताव-६ के श्लोक-१३७ तक हैं., जैदे., (२६४१०.५, १३४३९-४५). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४५८०. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र- परिशिष्टपर्व (स्थविरावली), प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८+१०(१ से १०)=३८, पू.वि. सर्ग-२ श्लोक ३०३ से ४८६ तक नहीं है एवं सर्ग ३ के श्लोक ३ तक है., जैदे., (२५४११.५, १३४३७-३८). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदिः (-); अंति: (-), __ प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १४५८२. (+) कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १७५१, भाद्रपद कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १७३-१२२(१ से १००,११७ से १२०,१३४,१४५ से १६१)=५१, प्र.वि. प्रतिलेखन वर्ष सुधारा गया है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ७७००, जैदे., (२६४११.५, १५४३९-४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, अपूर्ण. कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: कल्पसूत्रस्य चेमाम्, ग्रं. ४१०९, __ अपूर्ण. १४५८३. (+) कल्पसूत्र की मांडणी, संपूर्ण, वि. १७९७, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. सुरत, प्रले. मु. जीवसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०.५४१२, १३४२७). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नाणं पंचविहं पन्नत्त; अंति: सूत्रनी वाचना कहीइ. १४५८५. भक्तामरस्तोत्रबालावबोध, संपूर्ण, वि. १५१८, माघ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. ग. तिलककल्याण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल का मात्र प्रतिकपाठ दिया है., जैदे., (२६४१०.५, १८-१९४५८-५९). For Private And Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ भक्तामर स्तोत्र- बालावबोध, मा.गु., सं., गद्य, आदिः किल इति संभावने; अंतिः समुपैति आव. १४५८६. विद्याविलास चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३६, आश्विन शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल. सीतामोहग्राम, प्रले. ऋ. पद (गुरु ऋ. जोगराज सामी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६११.५, २०४४४). १४५८७. www.kobatirth.org (+) विद्याविलास चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७११, आदि: सरसति नित आपो सुमति; अंति: तीस सुख पायाजी, ढाल - ३०. उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१२-७१ (४,७ से १५.३८ से ३९.४४ से ४७,५८,९२,१३३, २२० से २३५, २४३ से २७८ ) - २४१, पू. वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., श्रीषेणराजा कथा अपूर्ण तक है., प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६x११.५, ६-८x४५-४९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि; संजोगाविष्यमुक्कस्स; अंति: (-), अपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानजिनं अंति: (-), अपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४५८९. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-१ (१) - ९, कुल पे. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे., (२६.५X११.५, ११X३४-३७). १. पे. नाम. नंदीसरदीप स्तवन, पृ. २अ - ३आ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा - १० अपूर्ण तक नहीं है., पे. वि. अंतिम के उपर कागज चिपकाया गया है. (+) नंदीसरद्वीप स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ( - ); अंति: (-), अपूर्ण. २. पे. नाम. सास्वताजिनघर जिनप्रतिमापरिमाण स्तवन, पृ. ३आ-८अ. शाश्वतजिनप्रतिमा स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विधुमडल परे निर्मल; अंति: अनोपम अनुभव परमाणंद, ढाल - ४, गाथा - ६५. ३. पे. नाम. ३५ गुणवाणी स्तवन, पृ. ८अ - ९अ. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवाणी प्राणी सुणो; अंतिः विमल० समकित सहकार, गाथा - १५. ४. पे नाम, चौत्रीसअतिशय स्तवन, पृ. ९-१० आ. ३४ अतिशय स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं देवनो देव ए; अंतिः बोधि कारण आणीइं, ढाल - २, गाथा - १५. १४५९०. चतुः शरण प्रकीर्णक व पाखीखामणा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले. स्थल. वीरमग्राम, पठ. श्राव. वांछीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६.५x११.५, ९४२६). १. पे. नाम. चतु: शरण प्रकीर्णक, पृ. १अ - ७अ. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्म, आदि: सावज्ज जोग विरई अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा- ६४, १३१ For Private And Personal Use Only २. पे. नाम. पाक्षिक क्षामणासूत्र, पृ. ७अ ७आ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो पियं; अंतिः नित्थारगपारगाहोह, आलाप - ४. १४५९१. सीमंधरस्वामीवीनती स्तवन सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१, पू. वि. ढाल ५ की गाथा १०२ तक हैं., जैदे., ( २६.५X१२, ३X३३-४० ). Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमधर साहिब; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन-३५० गाथा-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथपदं; __ अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १४५९२. (+) योगप्रदीप, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सर्ग-३ श्लोक- २९ तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२७४११, १२४४४-५०). ज्ञानार्णव, आ. शुभचंद्र, सं., पद्य, आदि: ज्ञानलक्ष्मीघनाश्लेष; अंति: (-), अपूर्ण. १४५९३. (+) देवकुमार चरित्र, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक १-४३० तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १६-१७४५६-६०). देवकुमार चरित्र, सं., पद्य, आदि: किंचास्ति नियमो नायं; अंति: (-), अपूर्ण. १४५९६. (+) कुमारपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १७४६८-७०). कुमारपाल चरित्र, उपा. जिनमंडन, सं., प+ग., वि. १४९२, आदि: ॐ नमः श्रीमहावीरजिन; अंति: (-), अपूर्ण. १४५९७. वृद्धक्षेत्रसमास की अवचूरि, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३-१(१)=१२, जैदे., (२६४११, २०-२१४७८-८४). बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-अवचूरि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: स्वपरार्थमेताम्, पूर्ण. १४५९८.(+) सप्तसंधान काव्य सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सर्ग-२ के श्लोक-१४ तक है., प्र.वि. पंचपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६४११.५, ५-९४३०-३१). सप्तसंधान महाकाव्य, उपा. मेघविजय, सं., पद्य, वि. १७६०, आदि: श्रीनाभिजन्मान्वयपद; अंति: (-), अपूर्ण. सप्तसंधान महाकाव्य-वृत्ति, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य सर्वान् सकला; अंति: (-), अपूर्ण. १४५९९. कर्मग्रंथ ६ नो विचार व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३५, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. २, प्रले. मु. नित्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १७-१९४५०-५२). १.पे. नाम. कर्मग्रंथ छट्रानो विचार, पृ. १अ-२०आ. सप्ततिका कर्मग्रंथ-यंत्रसंग्रह, मा.गु., यं., आदिः (-); अंति: (-). २.पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. २०आ. मा.गु., गद्य, आदि: तथा आठ आत्म मध्यप्रद; अंति: सहीत उपजे च्यवे. १४६००. व्याकरणसमुच्चय सह लघुवृत्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-८(१,११ से १७)=१६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. दुर्लभ प्रत., जैदे., (२६.५४११, १९-२०४६०). विद्यानंद व्याकरण, आ. विद्यानंदसूरि, सं., गद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. विद्यानंद व्याकरण-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. विद्यानंदसूरि, सं., गद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १४६०१.(+) सिद्धहेमशब्दानुशासन सह बृहद्वृत्ति का लघुन्यास, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १५३-३३(१ से ३३)=१२०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., अध्याय १ पाद ४ अपूर्ण से अध्याय ३ पाद २ अपूर्ण तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १३४४८-५३). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. सिद्धहेमशब्दानुशासन-तत्त्वप्रकाशिकाबृहद्वृत्ति की न्याससारसमुद्धार टीका, आ. कनकप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १२९८, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. तक्रमणसूत्र सह विवरण, अपूर्ण, वि. १८७१, चन्द्राद्रिकरिरसा, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(१)=१४, प्रले. मु. मानवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ११४३८-३९). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: जिण पास पयच्छउ वंछिय, अपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-विवरण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: प्रयच्छतु वांछितानि, अपूर्ण. १४६०७. सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., तीसरी कथा अपूर्ण तक है., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३५-३६). सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा, ग. क्षेमकर, सं., प+ग., आदि: अनंत शब्दार्थ गतोपयो; अंति: (-), अपूर्ण. १४६१०. भगवतीसूत्र टीप, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२६.५४११, ३७-५२४१०-३७). भगवतीसूत्र-हंडी, क्र. धर्मसिंह, मा.गु., गद्य, वि. १८८२, आदि: भगवती० नवकार दस; अंति: भगवतीनी टीप पूरी थई. १४६११. पिंडविशुद्धि प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-९७ तक है., जैदे., (२६.५४११, ९x४२-४३). पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदविंदवंदिय पयार; अंति: (-), अपूर्ण. १४६१२. (+) जिनशतक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६.५४११, १५४५६). जिनशतक, मु. जंबू कवि, सं., पद्य, वि. १००१-१०२५, आदि: श्रीमद्भिः स्वैर्महो; अंति: वागसौ द्राग्विधेयात्, परिच्छेद-४, श्लोक-१००. १४६१३. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२६४११, १३-१४४३८-४०). महावीरजिन स्तवन, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सयल गुणनिधि० वीरजिन; अंति: समर० शिवरमणि वरई, गाथा-५३. १४६१५. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह अक्षरार्थलवलेश टीका व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २१०-१६४(१ से १६४)=४६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., अध्ययन ३० गाथा १ से अध्ययन ३६ गाथा १९६ तक है., प्र.वि. कहीं पर संस्कृत छाया है कहीं पर बालावबोध तो कहीं पर दोनो मिलते है., संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३८-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पूण. १३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४६१६. कुमारसंभव की टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सर्ग-७ श्लोक-१९ तक है., जैदे., (२६.५४११, १७४६२-६३). __कुमारसंभव-शिशुहितैषिणीटीका, ग. चारित्रवर्द्धन, सं., पद्य, आदि: तनोतु शांतिं पदमादि; अंति: (-), अपूर्ण. १४६१७. अध्यात्मकल्पद्रुम, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, पू.वि. श्लोक-१ से ४४ नहीं है., जैदे., (२६.५४११.५, १८-१९४५७-६२). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: जयश्रिया शिवश्रीः, अधिकार-१६, श्लोक-२७८,ग्रं. ५५०, अपूर्ण. १४६१८. श्रेणिक रास, संपूर्ण, वि. १७७८, कार्तिक कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. १०,ले.स्थल. वडाला, जैदे., (२६४१०.५, १३४४२-४४). श्रेणिकराजारास, मा.गु., पद्य, आदि: गौतमनै सिर नामीए मन; अंति: आवंती चोवीसी होइ सइए, गाथा-२२५. १४६१९. आरामशोभा कथानक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, जैदे., (२६.५४११, ११-१२४३६). आरामशोभा कथानक, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: मोक्षं यास्यतः, अपूर्ण. १४६२०. (+) ढुंढकमतखंडन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५-३(१ से २,३४)=३२, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १७४४५-४९). ढुंढकमतखंडन, सं.,प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४६२१. (+) स्तवनचोवीसी, प्रतिपूर्ण, वि. १७६५, श्रेष्ठ, पृ. १०, पृ.वि. २२ स्तवन तक लिखा है।, ले.स्थल. पत्तननगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ११४४४-४५). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १४६२२. योगशास्त्र-१ से ४ प्रकाश, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१ से २)=५, पू.वि. प्रारंभ से प्रकाश-२ श्लोक ७५ तक नहीं है., जैदे., (२६.५४११.५, १७-१८४६५). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४६२३. (+) षड्दर्शनसमुच्चय सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अधिकार ७ श्लोक ८५ तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १७४५५-५७). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सद्दर्शनं जिनं नत्वा; अंति: (-), अपूर्ण. षड्दर्शन समुच्चय-लघुवृत्ति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., गद्य, वि. १३९२, आदि: सज्ञानदर्पणतले विमले; अंति: (-), अपूर्ण. १४६२४. तर्कभाषाटीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११, १३४४३). जैन तर्कभाषा, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४६२५. (+) तत्त्वार्थसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-३(१ से २,९)=८, पू.वि. अध्याय-१ के ५ सूत्र व अध्याय-७ के सूत्र ३३ से अध्याय ८ तक नहीं है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १०-११४३१-३५). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: बहुत्वत्तः साध्याः, अध्याय-१०, अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १३५ १४६२६. उपदेशमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-११० तक है., जैदे., (२६.५४११.५, ६४३७). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), अपूर्ण. उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण कहीइ नमीनइ; अंति: (-), अपूर्ण. १४६२७. भयहर, उवसग्गहर व तीर्थमालाटीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, कुल पे. ३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११, १७-२०४५१-५४). १. पे. नाम. भयहरस्तवार्थ संस्तुति, पृ. २अ-३अ. नमिऊण स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नमिऊण. अहो भव्या; अंति: भक्त्या स्तुवीमि. २. पे. नाम. उपसर्ग स्तवार्थ, पृ. ३अ. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ कीटीका*,सं., गद्य, आदि: अहो भव्या अह; अंति: भक्तिभरनिभरण. ३. पे. नाम. तीर्थमाला स्तव-टीका, पृ. ३अ-७आ, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., रथावर्त तीर्थस्वरूप व श्लोक ६५ की टीका अपूर्ण तक है. सं., गद्य, आदि: अरिहंतभगवंत० अर्हतं; अंति: (-), अपूर्ण. १४६२८. निशीथसूत्र, अपूर्ण, वि. १५७९, चैत्र शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ. २९-२२(१ से २२)=७, पू.वि. प्रारंभ से उद्देश १४ किंचित् अपूर्ण तक नहीं है., ले.स्थल. जीर्णकोट, प्रले. पं. मुनिमेरु गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४११, ११४३७-४२). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: पसिस्सोवभोजं च, उद्देशक-२०, ग्रं. ८१२, अपूर्ण. १४६३०. स्तवनचौवीसी-अतीत, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, पू.वि. स्तवन-२ से १७ तक हैं., जैदे., (२६.५४१२, १२४३६-४०). स्तवनचौवीसी-अतीत, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४६३१. अगडदत्त चरित्र व मीनासकुन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १५४४६-५१). १. पे. नाम. अगडदत्त रास, पृ. १अ-११आ. वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६२५, आदि: पास जिणेसर पय नमी; अंति: सुखसंपति थाई आपणइ, गाथा-३१९. २. पे. नाम. मिनासकुन, पृ. ११आ. मा.गु., पद्य, आदि: चंचे चूणण पंखिमरण नय; अंति: छे ते जोई इते ठीक, गाथा-२. १४६३२. (+) इंद्रियपराजयशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६१, माघ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. रुपनगर, प्रले. मु. अमरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११, ६x४४-४६). इंद्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदि: सुच्चिअसूरो सो; अंति: संवेग रसायणं निच्चं, गाथा-१०२. इंद्रियपराजयशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेहिज सूर तेहिज; अंति: संवेग रसायन नित्यं. १४६३३. चौवीसदंडक विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११.५, १३४३७-४३). For Private And Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३६ www.kobatirth.org २४ दंडक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४६३४. मंगलकलस कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७-१ (१) - ६, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैवे., ( २६.५x११, १६-१९४६१-६२). मंगलकलश कथा, सं., पद्य, आदि: ( - ); अंति: (-), अपूर्ण. १४६३५. स्तवन व सज्झाय संग्रह, पूर्ण, वि. १७४९, श्रेष्ठ, पृ. १३ -१ ( १ ) = १२, कुल पे ३६, प्रले. मु. मयगलसागर (गुरु मु. अनोपसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५x१०.५, १८-२१x६५-६९). १. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. २अ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: राम० लहीये उत्तम ठाम, गाथा १५, अपूर्ण. २. पे नाम, मनकमुनि सज्झाय, पृ. २अ. मु. लब्धि, मा.गु., पच, आदि; नमो रे नमो मनक; अंति: पामो सद्गति सारो रे, गाथा - १०, ३. पे. नाम, कठियारा सज्झाय, पृ. २अ-२ आ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची - मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विरजिनवर रे गौतम; अंति: गुणविजय० पद इम पामीए, गाथा - १४, (वि. प्रतिलेखक ने दो-दो गाथा की एक गाथा गिनने से गाथा ७ लिखी है.) ४. पे नाम, मधुबिंदुवा सज्झाय, पृ. २आ-३अ पे.वि. चार पदो के हिसाब से कुल ५ गाथाएँ दी गयी हैं. मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरण प्रमोद शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मति रे मात; अंतिः पड़ परमसुख मइ मांगिओ, गाथा - ५. ५. पे. नाम. गुरु महिमा सज्झाय, पृ. ३अ. ग. कल्याणसागर, मा.गु., पथ, आदि: गुरु आराधो गुरुः अंति: गुरु० कवि कल्याण रे, गाथा - १०, ६. पे. नाम. वीसथानक सज्झाय, पृ. ३अ. २० स्थानकतप सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोअम प्रणमी पभणुं; अंति: तिर्थंकर पद लीजीयइं, गाथा- ७. ७. पे नाम, धनासालिभद्र सज्झाय, पृ. ३अ-३ आ. शालिभद्र सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाल तणे भवे; अंति: सुंदरनी वाण इम भौजी, गाथा - १८. ८. पे. नाम. धन्ना अणगार सज्झाय, पृ. ३आ. धन्नाअणगार गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद समोसर्याजी; अंति: निरुपम सिवसुख थाय, गाथा - ९. For Private And Personal Use Only ९. पे. नाम. पांडव सज्झाय, पृ. ३-४अ. पंचपांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर वर भलुं; अंति: मुज आवागमन निवार रे, गाथा - १९. १०. पे. नाम. निंदक सज्झाय, पृ. ४अ. परनिंदानिवारक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: म करि हो जीव परताति; अंति: एह हित सीख मानै, गाथा - ९. Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org ११. पे. नाम. रात्रीभोजन सज्झाय, प्र. ४-४आ. रात्रिभोजन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनीतलि नयरी वसैजी; अंति: सार्यां आतम काज रे, गाथा - १९. १२. पे. नाम. थावच्चाकुमार भास, पृ. ४आ-५अ. श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: नयरी द्वारामती जाणीइ; अंति: करइ ते सिवपुरि जाई, गाथा - १९. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पू. ५-५आ. आ. हर्षमंगलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि तुम्ह; अंति: जपै तास समरण किज्जए, गाथा - १८. १४. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. ५आ. मा.गु., पद्य, आदि श्रेणिक नर वयराजिओ; अंति पहुंता मोख्य दुवार, गाथा - १६. १५. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन- संप्रतिराजावर्णगर्भित, पृ. ५आ-६अ. पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धनधन संप्रति साचो; अंतिः दिज्यो भवभव सेव रे, गाथा - ९. १६. पे. नाम. थंभणपुर स्तवन, पृ. ६अ. पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थमंडन, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास जिणं; अंति: मंडण पासनाह चउसालो, गाथा - ८. १७. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. ६अ. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि आदि ए आदि ए आदिजिने; अंति: लावण्यसमै इम भणे ए. गाथा - १२, (वि. प्रतिलेखकने दो-दो गाथा की एक गिनी है.) १८. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. ६अ. मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि सही ए पदमप्रभु पूजन; अंतिः छई सहूने बरदाई है, गाथा ५. १९. पे नाम ज्ञानपंचमीपर्वमहावीरजिन स्तवन- बृहत्, पृ. ६अ ६आ. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल ३. २०. पे नाम. चिंतामणिपास स्तोत्र, पृ. ६आ. पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, ग. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्ध वधू वरवा लहोजी; अंति: शिष्य कहै कल्याण, गाथा - ११. १३७ For Private And Personal Use Only २१. पे. नाम. आदीश्वरबीनती स्तवन, पृ. ७अ-७आ. आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: श्रीआदीसर बंदु पाय; अंति: बोले पाय आलोड आपणां, गाथा ५७. २२. पे. नाम. संखेसरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ७आ-८अ. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, ग. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: भगवती भारती चित्तधरी; अंति: कल्याणसागर जय करो, गाथा - ३६. Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २३. पे. नाम. संखेसरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ८अ-८आ. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: समरथ साहिब सांवलो; अंति: कल्याण. सानिधि करइ, गाथा-२०. २४. पे. नाम. बंभणवाडि स्तवन, पृ. ८आ, पे.वि. चार पाद की एक गाथा के हिसाब से गाथा संख्या दी गई है. महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, आ. कमलकलशसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरथ सारदा; ____ अंति: श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा-२१. २५. पे. नाम. थूलिभद्र स्वाध्याय, पृ. ९अ-१०अ. स्थूलिभद्र एकवीसो, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५५३, आदि: आव्यो आव्यो रे जलहर; अंति: बोलइ अंगी निरमल थाईइ, गाथा-४२. २६. पे. नाम. सोल स्वप्न सज्झाय, पृ. १०अ. १६ स्वप्न सज्झाय, मु. विद्याधर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि मन धरि; अंति: करी गिरुआ एह गुणेयो, गाथा-१८. २७. पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. १०अ-१०आ. मु. संघविवेक, मा.गु., पद्य, आदि: समोसरण सिंघासनइंजी; अंति: म गोयम करीस प्रमाद, गाथा-९. २८. पे. नाम. पच्चक्खाण सज्झाय, पृ. १०आ. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविह प्रह उठी; अंति: पामी निश्चै निर्वाण, गाथा-८. २९. पे. नाम. आराधना स्वाध्याय, पृ. १०आ-११अ. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: पापथी छुटे तत्काळ, ढाल-३, गाथा-३३. ३१. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. ११अ. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पांचसयां धन परिहरि; अंति: लब्धिविजय निसदीसे रे, गाथा-१६. ३२. पे. नाम. छ लेसीसज्झाय, पृ. ११अ-११आ. ६ लेश्या सज्झाय, पुहि., पद्य, आदि: ग्यानई दीवो रे लोका; अंति: सोइ सुकल लेसी धार ए, गाथा-१६. ३३. पे. नाम. कलियुग सज्झाय, पृ. ११आ. मु. प्रीतिविमल, पुहि., पद्य, आदि: यारो कूडो कलियुग; अंति: सुकृत एक सवायो, गाथा-१२. ३४. पे. नाम. लीख-जू सज्झाय, पृ. ११आ-१२अ. मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६७५, आदि: सरसति मति सुमति द्यो; अंति: जिम अमरापुर पदवी वरै, गाथा-१२. ३५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १२अ. मा.गु., पद्य, आदि: पहिला धुरि समरु; अंति: जिम लहे जीव भवनो पार, गाथा-१९. ३६. पे. नाम. दानविषये कयवन्ना सज्झाय, पृ. १२अ-१३अ. For Private And Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १३९ कयवन्ना सज्झाय-दानविषये, मु. लालविजय, मा.ग., पद्य, वि. १६८०, आदि: श्रीआदि जिणेसर जिनवरः अंति: लालविजय कहे० उलट आणी, गाथा-२८. ३७. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. १३अ. मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायिक मन सुद्धे; अंति: व्रत पालो निसदिस, गाथा-५. १४६३७. पंचकल्याणक पूजा, संपूर्ण, वि. १९२०, श्रावण कृष्ण, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२६.५४१२, ११४३२-३५). पंचकल्याणक पूजा-पार्श्वजिन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: श्रीशंखेश्वर साहिबो; अंति: वंछित दाय सहायो रे. १४६३८. प्रवचनविचारसार सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-४(१ से ४)=२६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., अधिकार १ अंतिम भाग से अधिकार ५ अपूर्ण तक है., जैदे., (२६.५४११.५, १५४५४-५६). प्रवचनविचारसार, उपा. नयकुंजर, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४६३९. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-२(१० से ११)=१०, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., तीसरे कांड के श्लोक-३२४ तक है., प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १६-१७४६४-६८). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), अपूर्ण. अभिधानचिंतामणि नाममाला-अवचूरि*, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: सिद्धं प्रतिष्ठा; अंति: (-), अपूर्ण. १४६४०. (+) चोवीस दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८५, फाल्गुन शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. आगलोड, प्रले. मु. कल्लाणविजय (गुरु ग. उदयविजय); पठ. श्रावि. नाथीबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संवत् १७८३ में आगलोड में सुमतिनाथप्रसाद की प्रतिष्ठा हुई का उल्लेख है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ३४३५-३८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४२. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिनं नत्वा मनवचनकाया; अंति: ए० हीतनी करण हारी छे. १४६४१. उपदेशमाला प्रकरण, अपूर्ण, वि. १६७९, फाल्गुन शुक्ल, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २४-१२(१२ से २३)=१२, पू.वि. गाथा-२४८ से ५२३ तक नहीं है., जैदे., (२७४११, ११४३९-४१). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४, अपूर्ण. १४६४२. (+) चौदगुणठाणा विचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७४१, आश्विन शुक्ल, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४, ले.स्थल. अक्कबराबाद, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ११४४४-४७). पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित, मु. राजसमुद्र, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: नमिअ सिरिपासजिणसुजणं; अंति: णदिणयर सयलअतिसयसंजुओ, ढाल-३, गाथा-१९. पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित-बालावबोध, ग. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, आदि: गुणस्थानक बंधादि; अंति: शिवनिधाने विनयवचनं. For Private And Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४६४३. सिद्धांतषट्विंशिका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(१७)=१८, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., अधिकार ३३ अपूर्ण तक है., जैदे., (२६४११, १३४४३-४६). सिद्धांतषविंशिका, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथमं तावत्जिनाज्ञै; अंति: (-), अपूर्ण. १४६४४. (+) तत्त्वार्थसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. आद्यन्त में ग्रन्थमाहात्म्यगर्भित स्वाध्याय दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १२४३३-३६). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदि: सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: बहुत्वत्तः साध्याः, अध्याय-१०. १४६४५. (+) जातक पद्धति, अपूर्ण, वि. १७६२, मध्यम, पृ. ६२-३२(१ से २९,३७ से ३८,५०)=३०, ले.स्थल. नरायणाग्राम, प्रले. पं. यशस्वत्सागर (गुरु ग. यशस्सागर, तपगच्छीय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. रचयिता के द्वारा ही यह प्रत लिखित है इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है-"लिवीकृतापि यशस्वत्सागरेण". सारिणी सहित., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे.. (२६४१०.५.१३४४३). जातकराज पद्धति, पं. यशस्वत्सागर, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: रेषालिविचक्रे, अपूर्ण. १४६४६. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७४५, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. आगरा, प्रले. मु. सुंदररुचि (गुरु ग. नयनरुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, ५४३४-३५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४७. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: हुआ० अनंता गुणा छे. १४६४९. (+) प्रश्नोत्तररत्नमालासह व्याख्या व कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ.८-३(५ से ७)=५, पू.वि. श्लोक-१८ अपूर्ण से २५ अपूर्ण तक नहीं है. टीका व कथा प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ..जैदे.. (२६४१०.५. २x६०). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९, अपूर्ण. प्रश्नोत्तररत्नमाला-कल्पलतिका वृत्ति, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १४२९, आदि: श्रीनाभिभूर्जिनवरः; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. प्रश्नोत्तररत्नमाला-कथा, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १४६५१. (+) पृथ्वीचंद्रराजर्षि चरित्र, अपूर्ण, वि. १६४७, वैशाख शुक्ल, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १००-८२(१ से ८२)=१८, पू.वि. प्रारम्भ से प्रस्ताव ९ के श्लोक १२ तक नहीं है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३५-३६). पृथ्वीचंद्र चरित्र, उपा. जयसागर, सं., पद्य, वि. १५०३, आदिः (-); अंति: तेन सिद्धिं लभंति, प्रस्ताव-११, ग्रं. २६५४, अपूर्ण. १४६५२. कल्पसूत्र सह बालावबोध, त्रुटक, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२-५४(१ से ४२,४४,४७,४९ से ५०,५३ से ५५,६४ से ६८)=१८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७४११, ११४३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), त्रुटक. कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), त्रुटक. १४६५३. शुकसप्तति कथासंग्रह व पद, संपूर्ण, वि. १६५५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, कुल पे. २, प्रले. मु. चापा (गुरु वा. ज्ञानसुंदरजी, उवएसगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४११, १७४५४-५७). For Private And Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १. पे. नाम. शुकसप्तति कथा संग्रह, पृ. १आ-२५आ. शुकसप्तति कथासंग्रह, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य शारदां देवीं; अंति: दिनं सुखानि भुक्ते, कथा-७०. २. पे. नाम. प्रासंगिक दोहा, पृ. १अ. दुहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), पद-१. १४६५५. ब्रह्मरुपनिरुपण ब्रह्मबावनी, संपूर्ण, वि. १९०७, फाल्गुन कृष्ण, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. बजांणानगर, प्रले. मु. देवानंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४११.५, १२-१३४४२-४५). ब्रह्मबावनी, मु. निहालचंद, पुहिं., पद्य, वि. १८०१, आदि: ॐकार अमर अमार आप; अंति: कै गुनकों गहीजियो, गाथा-५२. १४६५८. (+) शत्रुजयमाहात्म्य, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ९२-१८(१,१६,२१,२५ से २९,३१ से ३२,३६,३९,४१ से ४२,४७,४९,५२,६२)=७४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्रथम सर्ग के श्लोक १० से सर्ग-१४ के श्लोक ५८ तक है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१०.५, १२४४६-४९). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४६५९. (+) कुवलयमाला व सुभाषित श्लोक सह टीका, अपूर्ण, वि. १४३८, वैशाख शुक्ल, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १३१-८०(१ से २१,३१ से ८९)=५१, कुल पे. २, ले.स्थल. पत्तन, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२८x११, १२४४१-४६). १. पे. नाम. कुवलयमाला कथा, पृ. २२अ-१३१आ, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. आ. रत्नप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: तटालंकारहार श्रिय, अध्याय-४, ग्रं. ३८०४, अपूर्ण. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह सह टीका*, पृ. १३१आ. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं.,हिं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). श्लोक संग्रह-टीका*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १४६६२. हैमीनाममाला, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., कांड ६ के श्लोक १७५ तक है., जैदे., (२९.५४१२, १७४५४-५५). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), अपूर्ण. १४६६४. धर्मचर्चा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-३(१ से ३)+२(१२ से १३)=२२, जैदे., (२९x१२, ९४२७-३७). धर्मचर्चा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: खुसाली थइ मोकली छे, अपूर्ण. १४६६८. वस्तुपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७७-४६(१ से ४६)=३१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रस्ताव ५ के श्लोक १२५ से प्रस्ताव ७ के श्लोक ९४ तक है., जैदे., (२९.५४११, १५४६२-६३). वस्तुपालमंत्री चरित्र, ग. जिनहर्ष, सं., पद्य, वि. १४९७, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४६६९. विक्रमसेनलीलावती प्रबंध चौपई, संपूर्ण, वि. १८०३, आश्विन शुक्ल, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५१, ले.स्थल. सीरोहिनगर, प्रले. मु. ऋद्धिविजय (गुरु ग. प्रमोदविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १३४४४). For Private And Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विक्रमसेनलीलावती प्रबंध चौपई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: परम ज्योति प्रकाशकर; अंति: सागर० नवनिध थायो रे, गाथा-१३२८. १४६७०. (#) रत्नपाल चरित्र-दानाधिकारे, संपूर्ण, वि. १८०२, पौष कृष्ण, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४२, ले.स्थल. वढवाणग्राम, प्रले. ग. कनकरत्न (गुरु पंन्या. हस्तिरत्न, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (६४५) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११.५, १५४४८). रत्नपाल चरित्र-दानाधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि में दुर; अंति: मोहनविजय विलासजी, खंड-४, ढाल ६६, गाथा-१५७२. १४६७१. (+) मंगलकलश रास, संपूर्ण, वि. १९००, श्रावण कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३३, ले.स्थल. जोरागाम, प्रले. कुंवर बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १३४३७). मंगलकलश रास, मु. दीप्तिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७४९, आदि: प्रणमुं सरसति स्वामी; अंति: दिप्तिनी फली आसो रे. १४६७२. गोराबादल चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३१, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले.स्थल. आहोरनगर, प्रले. पं. चतुरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४११.५, १४४४५-५१). गोराबादल चौपाई, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, वि. १७०७, आदि: श्रीआदिसर प्रथम जिण; अंति: अनुमाने लालचंद कहइ, खंड-३. १४६७४. योगसार दोहा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२७.५४१२, ६४२७). योगसार, मु. योगींद्रदेव, अप., पद्य, आदि: णिम्मलझाणपरिट्ठया; अंति: कया दोहा इक्कमणेण, गाथा-११५. योगसार-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: निर्मल ध्यान विषै; अंति: दोहै एक मन करी. १४६७५. (+) कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १८८१, भाद्रपद कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. मगनचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, जैदे., (२५.५४१२, १३४३७-४२). कालिकाचार्य संबंध, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., वि. १६६६, आदि: प्रणम्य श्रीगुरुं; अंति: संघः प्रवर्त्तताम्, ग्रं. ४५१. १४६७६. (#) विचारसारोद्धार, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५६-३(१ से २,४१)=५३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १४४४५-५२). विचारसारोद्धार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, अपूर्ण. १४६७७. (+) सूत्रकृतांगसूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, ५४३३). सूयगडांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज तिउद्देज्ज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: दिबु जीवाज्य कर्म; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १४६७८. २४ दंडक २६ द्वार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२, जैदे., (२७४१२, १२४३०-३६). २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर अवगाहणा संघयण; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १४६८०. अणुतरववाइ सुत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्रले. य. अचलदास (ओयसगच्छ); पठ. श्राव. आणंदरूप सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, ५४२९-३७). For Private And Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ अनुत्तरोववाइदसाओसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेण० नवमस्स; अंति: अणुत्तरोववाईदसाणं. १४६८१. प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, संपूर्ण, वि. १९६८, भाद्रपद कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. २८, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. कृपाचंद महात्मा (खरतरगच्छ), जैदे., (२६.५४१२.५, १३४४१-४३). प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, वि. १८५३, आदि: पहिलै बोलै तीर्थंकर; अंति: शास्त्रमै कह्यो छे, प्रश्न-१५१. १४६८३. (+) अजितशांति स्तव सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., (३०x१२, १७-१८४६०-६३). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: संजमे नंदिगाहा, गाथा-३९. अजितशांति स्तव-टीका, आ. गोविंदाचार्य, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्याजितशांती; अंति: कल्मषनिर्जरार्थमियम. १४६८४. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२८x१२, १४४४२-४५). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरूपदपंकज नमीजी; अंति: ए गायो सकल जगीसे रे, सज्झाय-११, गाथा-१८५. १४६८५. (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०७, पू.वि. सूत्र-४५ से है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१२.५, ४४२७-३२). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: पस्से पस्सावणीए णमो, प्रतिपूर्ण. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: भणी नमस्कार थाओ, प्रतिपूर्ण. १४६८६.(+) नन्दीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५०, भाद्रपद कृष्ण, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८६, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ६-२१४३९-५१). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: तदुभयेणं अणुजाणामि, गाथा-७००. नंदीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नंदी ते आनंदनी देण; अंति: (-), पूर्ण. १४६८७. (+) उवाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९६, ले.स्थल. राजासर, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ७०००, जैदे., (२५.५४११, ६-३२-३६). उवाइसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वंदित्वा श्रीजिनं, (२)तिणी कालि चोथा आराने; अंति: सुख पाम्या थका. १४६८८.(+#) राजप्रश्नीय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६२४, श्रेष्ठ, पृ. १२०, प्र.वि. टबार्थ ग्रन्थाग्र २२ को सुधारकर २७०० किया गया है.अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ६x४८). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: पसुंदणाए णामो, सूत्र-१७५, ग्रं. २२००. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, आदि: (१)देवदेवं जिनं नत्वा, (२)नमस्कार हुवो अरिहंत; अंति: भगवंतनी वाणी एहवी छइ, ग्रं. ४५००. For Private And Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४६८९. आत्मानुशासन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९०६, आषाढ़ कृष्ण, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १४९, ले.स्थल. जालना, पठ. श्राव. आनन्दरूप सेठजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जालना का लसकरमध्य श्रीगौडीपार्श्वनाथजी के मंदिर में यह प्रत लिखी गयी है., जैदे., (२५.५४१२, ११४३६). आत्मानुशासन, मु. गुणभद्र, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मी निवास निलय; अंति: कृतिरात्मानुशासनं, श्लोक-२७०. आत्मानुशासन-बालावबोध, पंडित. टोडरमल, पुहिं., गद्य, आदि: श्रीजिनशासनगुरु नमो; अंति: कमलतुल्य भ्यासै है, ग्रं. ३९००. १४६९०. (+) रायपसेणी बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८०२, वैशाख शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९१, प्र.वि. द्विपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ८x२९-३२). राजप्रश्नीयसूत्र-बालावबोध, मु. श्रवणशिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: हवि पुण्यवंत हुइ ते; अंति: ते भणी नमस्कार थाओ. १४६९१. (#) विक्रमादित्य चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३३, आश्विन शुक्ल, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. २७, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पं. सुंदरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४२८-३२). विक्रमादित्य चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: पुरिसादाणी प्रणमीइं; अंति: तेहने सदा हुइ कल्याण, गाथा-६०५. १४६९२. ग्रहविलास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५+१(२)=१६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२, २०४२९). ग्रहविलास, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४६९३. (+) पंचमहाव्रत कथा, संपूर्ण, वि. १९४७, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. झोटाणा, पठ. मु. विवेकवर्द्धन (गुरु पं. हंसवर्द्धन गणि), प्र.वि. श्रीसुपार्श्वप्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, १८-२१४५५-५७). पंचमहाव्रत कथासंग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: बालक जीवने हितने; अंति: सुखसंपदा ने जीव पामे, अध्याय-५. १४६९४. कल्पसूत्र व्याख्यान-९ सह टबार्थ, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, पू.वि. साधु सामाचारी तक लिखा है., जैदे., (२६.५४११.५, ५४२५-२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १४६९५. नंदीसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२७४११.५, १-९४२३-४२). नंदीसत्र, आ. देववाचक. प्रा.. प+ग..आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ: अंति: वीसमणन्नाइं नामाइं. ग्रं. ३२०० नंदीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नंदी कहतां आणंदनो; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. पत्रांक-४२ तक बालावबोध लिखा है.) १४६९६. वानारसी विलाश संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०५, फाल्गुन कृष्ण, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ९७, कुल पे. ७०, पठ. श्राव. आनन्दरूप सेठजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंतमें अनुक्रमणिका संलग्न है., जैदे., (२६४१२, ११४३७). १. पे. नाम. भाषासहस्र नाम, पृ. १आ-७अ. जिनसहस्रनाम स्तोत्र, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९०, आदि: परम देव परनाम करि; अंति: प्रगट्यो नाम कवित्त, शतक-१०, गाथा-१०३. For Private And Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २. पे. नाम. सुक्तिमुक्तावलि, पृ. ७अ-१९अ. -पद्यानुवाद भाषा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९१, आदि: सोभित तपगजराज सीस: अंति: वानारसि० विस्तार, गाथा-१०४. ३.पे. नाम. वानारसीदासनामांकित ज्ञानबावनी, पृ. १९अ-२५आ. ज्ञानबावनी, श्राव. बनारसीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६८६, आदि: ॐकार सबद विहदया के अंति: गुणग्रहि लीजीयौ, गाथा-५२. ४. पे. नाम. वेदनिर्नय पंचासिका, पृ. २६अ-२९आ. वेदनिर्णयपंचासिका, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: जगत विलोचन जगतहित; अंति: नर विवेक भुजबल रहित, गाथा-५०. ५. पे. नाम. सलाकापुरुष नाम, पृ. २९आ-३२अ. शलाकापुरुष नाम, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: नमो जिनवर० देव चौवीस; अंति: बनारसी कीजै मोख उपाय, गाथा-२७. ६. पे. नाम. कर्मप्रकृति विधान, पृ. ३२अ-४१अ. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७००, आदि: परमसंकर परमभगवान; अंति: तव यह भयो सिद्धत, गाथा-१७५. ७. पे. नाम. कल्याणमंदिर भाषा, पृ. ४१अ-४३आ. कल्याणमंदिर स्तोत्र- पद्यानुवाद चौपाई, क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: परमज्योति परमातमा; अंति: कारन समकित शुद्धि, गाथा-४४. ८. पे. नाम. साधुवंदना, पृ. ४३आ-४५आ. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिन भाषित भारती; अंति: रसी पावइ अविचल मोक्ष, गाथा-३१. ९. पे. नाम. मोक्षमार्ग पैडी, पृ. ४५आ-४७अ. मोक्षमार्गपयडी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: इक्क समैं रुचिवंतनों; अंति: यों मूढ न समझैलेस, गाथा-२२. १०. पे. नाम. कर्मछत्तीसी, पृ. ४७अ-४८आ. कर्मछत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: परम निरंजन परमगुरु; अंति: करै मूढ वढावै सिष्टि, गाथा-३७. ११. पे. नाम. ध्यानबत्तीसी, पृ. ४८आ-५०आ. ध्यानबत्रीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, आदि: ग्यानसरूप अनंतगुन; अंति: यथा सकति परवान, गाथा-३४. १२. पे. नाम. अध्यात्मबत्तीसी, पृ. ५०आ-५२अ. जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, आदि: शुद्ध वचन सदगुरु; अंति: आवागमनु न होइ, गाथा-३२. १३. पे. नाम. ग्यानपचीसी, पृ. ५२अ-५३अ. ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: सुरनर तिर्यग जग जोनि; अंति: आपको उदे करण के हेतु, गाथा-२५. १४. पे. नाम. शिवपचीसी, पृ. ५३अ-५४आ. For Private And Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४६ www.kobatirth.org शिवपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं, पद्य, आदि: ब्रह्मविलास विकासधर; अंतिः वनारस० शिव रीति, गाथा - २६. १५. पे नाम. सिंधु चतुर्दशी, पृ. ५४-५५अ. सिंधुचतुर्द्दशी, पुहिं., पद्य, आदि: जैसे काहु पुरुष कौ; अंति: मुनि चतुर्दशी होइ, गाथा-१४. १६. पे. नाम. अध्यात्म फागु, पृ. ५५अ-५६अ. अध्यात्म फाग, जै. क. बनारसीदास, पुहिं, पद्य, आदि अध्यातम बिनु क्यों अंतिः वनारसि० मोहदधि पासि, गाथा - १७. १७. पे. नाम. पंद्रह तिथि, कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पृ. ५६-५७अ. १५ तिथि चोपाई, मु. तुलसी, मा.गु., पद्य, आदि परिवा प्रथम कला घटि; अंतिः साधु तुलसी वनवासी, गाधा - १६. १८. पे. नाम. तेरह काठिया, पृ. ५७-५८अ. त्रयोदशकाठिया सज्झाय, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: जेवट पारेवाटमैं करहि; अंति: दसा कह रह तिनि, गाथा - १७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९. पे. नाम. सुमतिइकतीसी, पृ. ५८-५९अ. जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि मेरा मनका प्यारा जो अंतिः वनारसी० सदा इक ठाम गाथा - ३१. २०. पे. नाम. पंचपद विधान, पृ. ५९अ - ५९आ. पंचपदविधान वर्णन, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: नमो ध्यान धर पंचपद; अंति: पद उलटि सदा शिव होइ, गाथा - १२. २३. पे. नाम. सवैयाइकतीसा प्र. ६१ अ ६२आ. 9 २१. पे. नाम. सुमतिदेवी शतक, पृ. ५९आ-६०अ. सुमतिदेवी के अठोत्तरशतनाम दोहरा, पुहिं., पद्य, आदि: नमो सिद्धसाधक पुरुष; अंतिः यह सुबुद्धिदेवी वरनी, गाथा-६. २२. पे. नाम. सारदाष्टक, पृ. ६० अ-६१अ. शारदाष्टक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि; नमो केवल रुप भगवान; अंतिः सुख तजे संसार कलेस, गाथा - १०. नवदुर्गा विधान, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम हि समकितवंत; अंति: अनेक भांति वरनी, गाथा - ९. २४. पे नाम. नामनिर्णय विधान, पृ. ६२-६३अ. पुहिं., पद्य, आदि का दिन काहू समै; अंतिः दाहे ते निरास निरलेप, गाथा ११. - २५. पे. नाम. नवरत्न कवित, पृ. ६३अ - ६४आ. पुहिं., पद्य, आदि: धन्वंतरि छिपनक अमर अंतिः ए जगमें मूरख विदित गाथा - ११. २६. पे नाम. जिनपूजा अष्टप्रकारी वर्णन, पृ. ६४आ-६५अ. जिनपूजा अष्टक, पुहिं., पद्य, आदि: जलधारा चंदन पुहए; अंतिः दीजे अरथ अभंग गाथा - १०. २७. पे. नाम. दशदान विधि, पृ. ६५अ - ६५आ. For Private And Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १० दान दोहरा, पुहिं., पद्य, आदि: गो सुवर्ण दासी भवन; अंति: हित अहित आन की आन, गाथा-१४. २८. पे. नाम. दश बोल, पृ. ६५अ-६६आ. १० बोल, पुहिं., पद्य, आदि: जिन की बात कह; अंति: कहिए जिनमत सोइ, गाथा-१२. २९. पे. नाम. कहरानामा कीचालि, पृ. ६६आ-६७अ. कहरानाम की चाली, पुहिं., पद्य, आदि: कुमति सुमति दोउ व्रज; अंति: भई यहै सौति घर छांहि, गाथा-११. ३०. पे. नाम. प्रश्नोत्तर दोहा, पृ. ६७अ-६७आ. प्रश्नोत्तर दोहरा, पुहि., पद्य, आदि: कौन वसु वपुमाह रै; अंति: मै कंचन पाहन माहि, गाथा-१०. ३१. पे. नाम. प्रश्नोत्तर मालिका, पृ. ६७आ-६८आ. __ प्रश्नोत्तरमालिका, बनारसीदास, पुहि., पद्य, आदि: नमित सीस गोविंदसौ; अंति: भान सुगुरु परसाद, गाथा-२१. ३२. पे. नाम. अवस्थाष्टक, पृ. ६८आ-६९अ. ____ मा.गु., पद्य, आदि: चेतन लक्षण नियतनय; अंति: निराकार निरद्वंद, गाथा-८. ३३. पे. नाम. षट्दर्शनाष्टक दोहा, पृ. ६९अ-६९आ. ___षड्दर्शनाष्टक, पुहिं., पद्य, आदि: शिवमत बोध सुवेदमत; अंति: खंड सौ दशा छानवै और, गाथा-८. ३४. पे. नाम. चारिवरण, पृ. ६९आ. चारवर्ण दोहरा, पुहि., पद्य, आदि: जो निहचे मारग गहे; अंति: सूद्र वरण सो जानि, गाथा-४. ३५. पे. नाम. अजितनाथ कौ छंद, पृ. ६९-७०अ. अजितजिन छंद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६७०, आदि: गोयम गनहर पर नमीं; अंति: सेवक सिरीमाल वनारसी, गाथा-५. ३६. पे. नाम. शांतिनाथ का छंद, पृ. ७०अ-७०आ. शांतिजिन छंद, पुहिं., पद्य, आदि: सहिएरी दिन आज सुहाया; अंति: धन्य सयानी सहीए, गाथा-२. ३७. पे. नाम. शांतिनाथ त्रिभंगी छंद, पृ. ७०आ-७१अ. शांतिजिन त्रिभंगी छंद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: विश्वसेन कुल कमल; अंति:शांतिदेव जय जितकरन, गाथा-९. ३८. पे. नाम. नवसेना विधान, पृ. ७१आ-७२आ. पुहिं., पद्य, आदि: प्रथममहिपत्तिनाम दल; अंति: अच्छौहिनि परवानकिय, गाथा-१२. ३९. पे. नाम. नाटक कवित्त, पृ. ७२आ-७३अ. समयसारसिद्धांतनाटक के कवित, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम अग्यानी जीव; अंति: अष्टकर्म विनाशए, गाथा-४. ४०. पे. नाम. मिथ्यात्व वाणी, पृ. ७३अ-७३आ. मिथ्यात्ववाणी, पुहि., पद्य, आदि: नारायन देव कौं कहैं; अंति: वयनम्मि खवेई कप्पूर, गाथा-४. ४१. पे. नाम. प्रस्ताविक कवित्त, पृ. ७३आ-७६अ. प्रास्ताविक कवित्त, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, आदि: पूरव कि पछिम हो; अंति: जागृत्शुषुप्तिषु, गाथा-२३. For Private And Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४२. पे. नाम. गोरखनाथ वचन, पृ. ७६अ-७६आ. गोरख वचनिका, पुहिं., पद्य, आदि: जो भग देखि भामिनी; अंति: वादविवाद करे सो अंधा, गाथा-७. ४३. पे. नाम. वैद्यक लक्षण चौपई, पृ. ७६आ-७८आ. वैद्यलक्षणादिप्रस्ताविक कवित्त, पुहिं., पद्य, आदि: करमरोग की पर किति; अंति: सहज पुष्टता सोइ, गाथा-४०. ४४. पे. नाम. वचनिका, पृ. ७८आ-८०अ. व्यवहार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: एक जीव द्रव्यता के अंति: व्यवहारातीत कहिए. ४५. पे. नाम. आगम अध्यात्मकौ स्वरूप, पृ. ८०अ-८२आ. आगम अध्यात्म स्वरुप, पुहि., गद्य, आदि: आगमवस्तु को जु भावसो; अंति: कौनाउ मिश्रव्यवहार. ४६. पे. नाम. परमार्थ वचनिका, पृ. ८२आ-८३आ. हेयज्ञेयउपादेय विचार, पुहिं., गद्य, आदि: हेय त्यागरुपनो अपने; अंति: भाग्य प्रमान. ४७. पे. नाम. चौभंगीरूपकारण वचनिका, पृ. ८३आ-८७आ. निमित्तकारण उपादानकारणनिर्णय संग्रह, पुहिं., गद्य, आदि: प्रथम ही कोई पूछता; अंति: अशुद्ध रुपविचार. ४८. पे. नाम. निमित्त उपादान दोहा, पृ. ८८अ. निमित्तउपादान दोहरा, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: गुरु उपदेस निमित्त; अंति: मे करेजू तेसौ भेस, गाथा-७. ४९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८८अ-८८आ. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: या चेतन की सब सुद्ध; अंति: तब सुख होत बनारसीदास, गाथा-४. ५०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८८आ. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन तूं तिहुं काल; अंति: जीउ होइ सहज सुरझेला, गाथा-४. ५१. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ८८आ-८९अ. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: मगन होइ आराधो साधो; अंति: वनारसि वह जैसेकातैसा, गाथा-५. ५२. पे. नाम. जिनप्रतिमा स्तवन, पृ. ८९अ. पुहिं., पद्य, आदि: जिन प्रतिमा जिन सारख; अंति: अवंदनी निरदै संसारी, गाथा-१०. ५३. पे. नाम. मूढशिक्षा पद, पृ. ८९अ-८९आ. ___ मूढशिख्या पद, पुहि., पद्य, आदि: ऐसे क्युं प्रभु पाईइ; अंति: विना तूं समजत नाही, गाथा-८. ५४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८९आ-९०अ. परमार्थ अष्टपदी, पुहि., पद्य, आदि: ऐसै यों प्रभु पाइये; अंति: एकहि तबको कहि भेटै, गाथा-८. ५५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९०अ. आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुं आतम गुण जाण रे; अंति: अवर न कोई छुडावनहार, गाथा-४. ५६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९०अ-९०आ. For Private And Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: रे मन करु सदा संतोष; अंति: को भूपति को रंक, गाथा-४. ५७. पे. नाम. उधवावर वैराग, पृ. ९०आ. उधवावर वैराग्य, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: वालभ तुहंत न; अंति: वनारसि० नरोत्तम हेतु, गाथा-२६. ५८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९१आ. श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, आदि: चेतन उलटी चाल चाले; अंति: आगि जौ दबी पहार तले, गाथा-३. ५९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९१आ. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन नै कुन तोहि; अंति: सुमिरन भजन आधार, गाथा-३. ६०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९१आ-९२अ. मा.गु., पद्य, आदि: दुविद्या कबजे हैया; अंति: वलिवलि वाछिण की, गाथा-३. ६१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ९२अ. पुहि., पद्य, आदि: हम बैठे णपने मवनसौ; अंति: संगति सुरझै आवागमनसौ, गाथा-३. ६२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९२अ-९२आ. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: सुखदायक मुख एव जगत; अंति: की करत वनारसि सेव, गाथा-४. ६३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९२आ. रामायन अष्टपदी, पुहिं., पद्य, आदि: विराजै रामायन घटमां; अंति: निहचै केवल राम, गाथा-७. ६४. पे. नाम. सुगुरु पद, पृ. ९२आ-९३अ. ___ सद्गुरुआलाप दोहरा, पुहि., पद्य, आदि: ज्यौं दातार दयाल होइ; अंति: तूं चातक हौं मेह, गाथा-६. ६५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९३अ-९३आ. औपदेशिक अष्टपदी-भोंदुभाई, पुहिं., पद्य, आदि: भोंदूभाई समुझु सबद; अंति: कै गुरुसंगति खोलइ, गाथा-७. ६६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९३आ-९४अ. औपदेशिक अष्टपदी-भोंदुभाई, पुहि., पद्य, आदि: भोंदूभाई ते हिरदै; अंति: निरविकलप पद पावै, गाथा-७. ६७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९४अ. श्राव. बनारसीदास, मा.गु., पद्य, आदि: तुंरं भ्रम भुलत रे; अंति: बनारसी बंदा तेरा, गाथा-३. ६८. पे. नाम. परमार्थ हिंडोलना, पृ. ९४अ-९५अ. परमार्थहिंडोल अष्टपदी, केसोदास, पुहिं., पद्य, आदि: सहज हिंडोलना हरख; अंति: विधि सौ नमत केसोदास, गाथा-८. ६९. पे. नाम. अष्टपदी, पृ. ९५अ-९५आ. औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: देखो भाई महाविकल; अंति: वनारसि होइ० धन लूटे, गाथा-८. ७०. पे. नाम. बनारसीदास प्रशस्ति, पृ. ९५आ. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७७१, आदि: नगर आगरेमें अगरवाल; अंति: भई यह वनारसी भाष, गाथा-३. For Private And Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४६९७. (+) विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३१, आषाढ़ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ७४, प्र.वि. सेठ मलूकचंदजी की माजी झमकूबाई की निश्रा से ली (खरीदी)गयी है सुरत में. आर्यिका इन्द्राजी की निश्रा में., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ७४३९-४६). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२, अध्ययन २०, ग्रं. १२५०. विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अथ विपाकश्रुत किसउ; अंति: सूत्रे कह्यो तिम. १४६९८. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१, जैदे., (२५४१२, १५४४५-४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: त्ति बेमि, अध्ययन-३६. १४६९९. (+) दशाश्रुतस्कन्ध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१४, वैशाख कृष्ण, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, ६४४३-४९). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: सुयं मे आउसं तेण; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, दशा-१०. दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मु. केशव ऋषि, मा.गु., गद्य, वि. १७०८, आदि: वर्द्धमानं जिनं; अंति: देखाडइ पूर्ववत्. १४७००.(+) विचारषविंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८७, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. सिवाणा, प्रले. मु. रामजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ४४४१-४३). विचारषत्रिंशिका प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४१. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं क० नमस्कार करी; अंति: क० आत्मानइ हितुइ. १४७०२. (+) पंचज्ञान विवरण आदि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १६-२३४५६-६२). १.पे. नाम. पंचज्ञान विवरण, पृ. १अ-२आ. ५ ज्ञान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मतिज्ञान श्रुतज्ञान; अंति: केवल ग्यान कहीइ. २. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. ३अ-७आ, पे.वि. दर्शन ४, गुप्ति ३, योग ३ आदि धार्मिक विचारों का संग्रह. विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १४७०३. श्राद्धदिनकृत्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५९, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ४६, प्र.वि. लिखावट के आधार से यह प्रत १९वी उत्तरार्द्ध की लगती है, वस्तुतः यह प्रत सं.१७५९ वाली कोई प्रत पर से लिखी जाने की संभावना है., जैदे., (२६४१२, ४४३५). श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वीरं नमिऊण तिलोयभाणु; अंति: मिच्छामिह दुक्कडंति, श्लोक-३४०. श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वीरं कहीइ श्रीमहावीर; अंति: मिच्छामि दुक्कडं इति. १४७०४. (+) संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १९३०, पौष कृष्ण, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३०, ले.स्थल. वीदासर, प्रले. श्राव. हुलासचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१२, ९४२८-३३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३६०. For Private And Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १५१ १४७०५. (+) सुसढचरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, ६x४०). सुसढ चरित्र, प्रा., पद्य, आदि: जे परमाणंदमय परप्पमा; अंति: जयणा चेय धम्मकमा, गाथा-५१८, ग्रं.८००. सुसढ चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)जे परम आनंदमय सिद्ध; अंति: समोसरि प्रकाश्यो. १४७०६. (+) दंडकविचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२४, वैशाख कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. अहिपुर, प्रले. मु. हरकरण ऋषि, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ४४३५-३८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४०. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मु. यशसोम-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: (१)ऐंद्रराजं जिनं नत्वा, (२)मन वचन कायाई नमस्का; अंति: हितनी करणहारी. १४७०७. (+) शतक नव्य पंचम कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०२, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३३, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, जैदे., (२६४१२.५, ३४२७-२९). शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००, ग्रं. १५०. शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे पहिलु द्वार; अंति: संभारवानइ अर्थइ, ग्रं. १००६. १४७०८. (+) नवतत्त्व प्रकरण सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ५४२७-४५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५२. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: दशविध प्राण धरइ ते; अंति: (-), पूर्ण. १४७१०. (+) चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९४४, पौष कृष्ण, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. झोटाणा, प्रले. मु. विवेकवर्द्धन (गुरु पं. हंसवर्द्धन गणि), प्र.वि. सुपार्श्वप्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, १२-१६४३२-४४). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य परमानन्द, (२)सामाअकावश्यकपौषधानी; अंति: दुक्कडं देवरावओ. १४७११. अन्तगडदशांगसूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९७८, भाद्रपद कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. सरदारशहर, प्रले. मु. केसरीचंद महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२.५, ७४४३-४७). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: अयमढे पण्णत्ते, अध्याय-३३, ग्रं. १९२, (वि. १९७८, भाद्रपद कृष्ण, ७) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आठमां अंतगडदशांगने; अंति: परि तिमज जाणिवा, (वि. १९७८, भाद्रपद कृष्ण, १४, गुरुवार) १४७१२. कार्तिकसेठ चौढाल्यौ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.५, जैदे., (२५४१२.५, ११४३७). कार्तिकशेठ पंचढालियो, ऋ. जैमल, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहन्त सिद्ध साधु; अंति: जेमल उप्यौ गज राखी, ढाल-५. For Private And Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४७१३. २४ दंडक व देव भेद बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, जैदे., (२५x१२, ११x२४-३३). १. पे नाम, २४ दंडक बोल संग्रह, पृ. १२-८आ. २४ दंडक बोलसंग्रह, मा.गु., गद्य, आदि शरीर उगाहणा संघयण; अंतिः सिद्धसिला उंची जाणवी. २. पे. नाम. देवभेद विचार संग्रह, पृ. ८आ. देवभेद बोलसंग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: देव भोगी के त्यागी; अंतिः भाव देव एवं जाणवा. १४७१४. (+#) नवतत्त्व, जीवविचार व दण्डक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९०४, वेदखग्रहेन्दु, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ३, ले. स्थल. पादलिप्तनगर, प्रले. मु. वीरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x१३, ९२३ ). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह अवचूरि, पृ. १आ-६आ. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (१) बोहिय इक्कणिक्काय, (२) एयं बंध ठिईमाणं, गाथा - ५१+ ६. नवतत्त्व प्रकरण- टिप्पण, सं., गद्य, आदि: जीवति दशविधान्; अंति: (-). २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ७अ - ११ आ. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुदाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ३. पे नाम, लघुसंग्रहदंडक विज्ञप्ति, पृ. १९आ-१५ आ. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा - ४१. १४७१५. जम्बूस्वामी आदि कथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैवे. (२५x१२, २१x६०-६५). " कथा संग्रह, मा.गु., पद्म, आदि: राजगृहनगर ऋषभदत्त अंतिः पाली देवलोक पोहूतो. १४७१६. नवपद विवेचन, संपूर्ण, वि. १९४७, माघ शुक्ल, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. १९, कुल पे २, ले. स्थल, चांदुर लिख. मु. विवेकवर्द्धन (गुरु पं. हंसवर्द्धन गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री नमीनाथ प्रसादात्., प्र.ले. श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (४) जलं रक्षेत् स्थलं रक्षेत्, (६६) भणे गणे जे सांभले, ( २६०) यादृशं लिखितं दष्टं (५२९) जब लगे मेरु थिर रहे, जैवे. (२४.५x१२.५, १८४३५-३७). १. पे. नाम. नवपद वचनिका, पृ. १अ - १९आ. मा.गु., गद्य, आदिः ॐ ही नमो अरिहंताण; अंतिः आराधतां केवल लहे. २. पे. नाम. नवपद तप, पृ. १९आ. नवपद तपविधि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं नमो अरिहंत; अंति: ह्रीं नमो तस्स. १४७१७. पार्श्वनाथजीरो छंद व मुहम्मद शाह विसलनगर यात्रा विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे, २, जैदे., (२६X११, ११X३२-४० ). १. पे नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १-४अ. पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन आपो शारदा मया; अंतिः तवियो छंद देशांतरी, गाथा-४७. २. पे नाम, पातिसाह महिमद साह विसलनगरयात्रा विवरण, पृ. ४अ -५अ. For Private And Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ मुहम्मदशाह पातिशाह विसलनगरयात्रा वर्णन, रा., गद्य, वि. १७९९, आदि: आगरासु कौस ३०० लाहौर; अंति: तणे सर्व वात कही छै. १४७१८. एषणाशतक भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४३६-३८). एषणाशतक भाषा, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन समवडइं; अंति: तसु पय नामउं सीस, गाथा-१०४. १४७१९. विक्रमसेनलीलावती रास, संपूर्ण, वि. १८५४, पौष शुक्ल, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५९, ले.स्थल. वैराट,धोलका, प्रले. पंन्या. हर्षसौभाग्य (गुरु ग. जयसौभाग्य), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वदेव प्रसादाः, प्र.ले.श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (१२२) जब लग मेरु स्थिर रहें, (६१५) जाद्रिसं पुस्तकं दृष्टा, (७१३) लेखण उर मचिड बडि, (७३३) जला रक्षे थलां रक्षे, (७३४) भणे गणे जे सांभले, जैदे., (२६४१२, १५४३५). विक्रमसेनलीलावती रास, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: परम ज्योति प्रकास; अंति: परमसागर आणंदो रे, ढाल-६४. १४७२०. क्षेत्रसमास प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९८, वैशाख कृष्ण, ३०, बुधवार, मध्यम, पृ. १६८+१(१३४)=१६९, ले.स्थल. जालना, प्रले. पं. अचलसुन्दर (गुरु पं. सौभाग्यसुन्दर, उपकेश गच्छ); पठ. श्राव. आणंदरूप सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. यन्त्र सहित.यन्त्र श्लोक ७८४ व सूत्रवृत्ति ग्रन्थाग्र ५८६९, जैदे., (२७४१२, १२४३६-३९). क्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: कुसलरंगमयं पसिद्धं, अधिकार-६, गाथा-२६६. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)अर्हमिति ब्रह्मपदं०, (२)हुं ब्रह्मज्ञाननू; अंति: आचंद्रार्क० विस्तरो. १४७२२. सारचतुर्विंशतिका, संपूर्ण, वि. १९०३, चैत्र कृष्ण, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १५०, ले.स्थल. इंद्रगढ, प्रले. द्वारका ॐकार व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७.५४१२, ९४३१-३४). सारचतुर्विंशतिका, मु. सकलकीर्ति, सं., पद्य, आदि: श्रीमान्योनाभिसूनुः; अंति: ग्रंथस्यासुलेख्यकै, ग्रं. २५२५. १४७२४. (+) ठाणांगसूत्रसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७९, अन्य. श्राव. कीस्तुरचंद गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, ६४३६-४०). ठाणांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: अणंता पण्णत्ता, स्थान-१०. मद्वीरजिनं नत्वा; अंति: पुद्गल अनंता कहिआ, ग्रं. १२८००. १४७२५. प्रवचनसारोद्धारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४६, जैदे., (२७.५४११.५, ६४३५-३८). प्रवचनसारोद्धारसूत्र, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंति:नंदउ बहु पढिजतो, श्लोक-१६१८. प्रवचनसारोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ युगादि; अंति: समृद्ध पणउ पामउ. १४७२६. कर्मविपाक, संपूर्ण, वि. १८८८, फाल्गुन कृष्ण, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १३९, जैदे., (२७४११.५, ९४३८-४०). कर्मविपाक, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकारबिंदु संयूक्तं; अंति: नरा ते सब जाणो बाध, गाथा-२४०८. For Private And Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४७२७. (+) योगसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१९, फाल्गुन कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्रले. पं. चतुरविजय, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ४४३९-४२). योगसार, मु. योगींद्रदेव, अप., पद्य, आदि: णिम्मलझाणपरिट्ठया; अंति: कया दोहा इक्कमणेण, गाथा-१०८. योगसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: निर्मल ध्यानने विषइ अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम दो गाथाओं का टबार्थ नहीं लिखा है.) १४७२८. दशाश्रुतस्कन्धसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८३, वैशाख कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ६०, ले.स्थल. घगरी, प्रले. मु. मानाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, जैदे., (२५.५४११.५, ८x२९). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, दशा-१०, ग्रं.८००. दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार होओ अरिहन्त; अंति: बाहुस्वामी प्रतिक. १४७२९. भरतबाहुबलि कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६४१२.५, १३४३२). भरतबाहबलि कथा, मा.गु., गद्य, आदि: हिवइ भरत श्रीमरुदेवी; अंति: (१)परिषदामै जाय बैठा, (२)इंद्रमहोत्सव थयो. १४७३२. निर्जरा तत्त्व, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदे., (२६४१२.५, १०४३६). निर्जरा तत्त्व, पुहिं.,मा.गु., गद्य, आदि: निरजरा तत्व किणने; अंति: सर्व १२ भेद जाणवा. १४७३५. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, जैदे., (२७४१२.५, १२४३३). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरूपदपंकज नमीजी; अंति: ए गायो सकल जगीसे रे, सज्झाय-११. १४७३६. (+#) अभिधानचिन्तामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ११४३३-३८). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६. १४७३७. (+) व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८२, अठारै बीयासी, फाल्गुन शुक्ल, मध्यम, पृ. ४३-१(३४*)=४२, ले.स्थल. वगडी, प्रले. सा. मानाजी आर्या (गुरु सा. कुशला आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ८४३०-३२). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्खू मासियं; अंति: महापज्जवसाणे भवइ, उद्देशक-१०. व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे० जे कोइ भि० साधु; अंति: क्षय करवारूप फल हुइ. १४७३९. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, संपूर्ण, वि. १८५९, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ११, पठ. मु. सौभाग्यविजय, प्र.वि. प्रारंभ में पीठिकारूप ग्रन्थ की प्रशंसा तथा अन्त में फलश्रुतिरूप परिशिष्ट श्लोक संलग्न है., जैदे., (२८x१२, ९x४२). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदि: सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: बहुत्वत्तः साध्याः, अध्याय-१०. १४७४०. सज्झाय व गहुँली संग्रह, संपूर्ण, वि. १७४२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ११, प्रले. सा. सलतानबाई (गुरु सा. सखरबाई), जैदे., (२६४१२, ११४२७). १.पे. नाम. क्रोध सज्झाय, पृ. १अ. For Private And Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडवां फल छे क्रोधना; अंति: निर्मली उपशमरसे नाही, गाथा-६. २. पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. १अ-१आ. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीए; अंति: मानने देजो देशवटोरे, गाथा-५. ३. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. १आ-२अ. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकित मुल जाणीये; अंति: ए मारग छे शुद्ध रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. लोभ सज्झाय, पृ. २अ-२आ. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: तमे लक्षण जोजो लोभना; अंति: लोभ तजे तेहने सदा रे, गाथा-७. ५. पे. नाम. साधुगुण गहुँली, पृ. २आ-३अ. मु. क्षमाविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सागर सम समता मुनीवरा; अंति: परिणामे सुख पावे रे, गाथा-७. ६. पे. नाम. प्रथममहाव्रत सज्झाय, पृ. ३अ-३आ. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवे रे; अंति: प्रेमे प्रणमे पाय रे, गाथा-६. ७. पे. नाम. बीजाव्रतनी सज्झाय, पृ. ३आ-४अ. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: असत्य वचन मुखथी नवि; अंति: कांतिवि० सुद्ध आचार, गाथा-५. ८. पे. नाम. त्रीजामहाव्रत सज्झाय, पृ. ४अ. अदत्तादानविरमणव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रीजामहाव्रत सांभलो; अंति: तेहना पाय नमे करजोडि, गाथा-६. ९. पे. नाम. चोथामहाव्रत सज्झाय, पृ. ४आ-५अ. चोथाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती केरा रे चरणकमल; अंति: सीयल पालो नरनारी, गाथा-८. १०. पे. नाम. पांचमाव्रत सज्झाय, पृ. ५अ-५आ. पांचमा महाव्रतनी सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज मनह मनोरथ अतिघणो; अंति: सज्झाय भणेते सुख लहे, गाथा-७. ११. पे. नाम. रात्रिभोजन विरमण सज्झाय, पृ. ५आ-६अ. रात्रिभोजन सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल धरममा सारज कहिइ; अंति: पाले तस धन अवतारो रे, गाथा-७. १४७४१. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, श. १७६६, आश्विन शुक्ल, १५ अधिकतिथि, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्रले. रामचंद्र रघुनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२, ११४३४). १. पे. नाम. चंदगुप्त सोला सपन, पृ. १अ-३अ. १६ स्वप्न सज्झाय, ऋ. जैमल, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपूर नामें नगर; अंति: उहीनाणी अभिरामोरे, गाथा-३८+५. २. पे. नाम. शीलमहिमा सज्झाय, पृ. ३अ-४आ. For Private And Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५७, आदि: सीयलतणी महिमा सांभल; अंति: भरजोवन माही, गाथा-२४. ३. पे. नाम. रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. ४अ-५आ. ऋ. जैमल, मा.गु., पद्य, आदि: रात्रिभोजनमाहे दोष; अंति: पालजो नर अतिचारक, गाथा-१७. १४७४३. कुदेवकुगुरुकुधर्मस्वरूप व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१, ले.स्थल. जालना, प्रले. मु. अचलसुंदर; पठ. श्राव. आनन्दरूपजी सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १४४३५-३८). ___ कुदेवकुगुरुकुधर्मस्वरूप विवेचन, मा.गु., गद्य, आदि: देवधरमगुरु वंदी पद; अंति: ते परम मंगल पद पामै. १४७४४. (+) उपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८७, कार्तिक शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ११४, प्रले. ऋ. खेतसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ५६४०, प्र.ले.श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, (७३६) यावन्नभसीचंद्रार्का, जैदे., (२५.५४१२, ३४२७-३०). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, श्लोक-५४४. उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: जेवाणी श्रुतदेवताने. १४७४७. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६३९-१७००, श्रेष्ठ, पृ. ४५४, ले.स्थल. सहाबलीपुर, प्रले. मु. लालजी, प्र.वि. इस ग्रंथमें वृत्ति के कर्ता हीरविजयसूरि विरचितायां एसा लिखा है., त्रिपाठ., जैदे., (२६४११, ३-५४३५-३९). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताण० तेण; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ४१४६. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६३९, आदि: जीयात तेजस्त्रिभुवन; अंति: शिष्यं प्रति ब्रवीति, ग्रं. १४२५२. १४७४८. (+) दशवैकालिकसूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, ४४३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०, चूलिका २, गाथा-७००. दशवकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मरूपीओ मंगलिक; अंति: शिष्य प्रति कह्यो. १४७४९. (+#) सूत्रकृतांगसूत्र-प्रथमश्रतस्कन्ध सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १७५२, आश्विन कृष्ण, मध्यम, पृ. ६७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ६४३२-३४). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज तिउट्टेज; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. १७५२, आश्विन कृष्ण) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: छ जीव निकाय स्वरूप; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १४७५२. स्थानांगसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६५४, फाल्गुन कृष्ण, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. २३२, ले.स्थल. राजपुर, प्र.ले.श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (४९९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३८-४०). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: अणंता पण्णत्ता, स्थान-१०. स्थानांगसूत्र की वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: श्रीवीरं जिननाथं; अंति: सहस्राणि चतुर्दशः, स्थान-१०, ग्रं. १४२५०. For Private And Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १४७५३. कल्पसूत्र बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८०२, आषाढ़ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १४७, ले. स्थल. अवरंगाबाद, प्र. ग. लक्ष्मीकुशल (गुरुग, बल्लभकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५X११.५, १०X३६-४२). (+) www.kobatirth.org (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४७५४. नंदीसूत्र टीका, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९९-१ (१) = १९८, जैदे., ( २६.५४११, १३४४५-५०% नंदीसूत्र- टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (१) तदेतत्परोक्षमिति, (२) जैनोधर्मश्च मंगलम्, पूर्ण. १४७५५. । उत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधा लघुटीका, संपूर्ण, वि. १६५७, माघ कृष्ण, ३, रविवार, मध्यम, पृ. २४३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित., प्र. ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., ( २६ ११, १७५३-६५). उत्तराध्ययनसूत्र - सुखबोधा लघुटीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदि: प्रणम्य विघ्नसंघात; अंतिः तदनतिक्रमेण यथायोगम्, ग्रं. १४०००. १४७५६. उत्तराध्ययनसूत्र- अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०१, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - त्रिपाठ., जैदे., (२६x११, ५-८x१८-२२). - कल्पसूत्र - बालावबोध, पं. कृपाविजय गणि, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० इहा; अंति: बालावबोध कर्यो छै. १५७ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स; अंतिः ति बेमि, अध्ययन- ३६. उत्तराध्ययन सूत्र- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: संजोगा० संयोगान्; अंतिः तदधीनत्वात्तस्येति. " १४७५७. ढालसागर, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४६-१ (१) = ४५, पू.वि. ढाल - ८५ गाथा - ६१ से ढाल - १२६ के दुहा गाथा-३२ तक है., प्र. वि. पत्रांक १ से ४५ है. किन्तु प्रत का प्रारंभ अपूर्ण प्रतीत हो रहा है. अतः काल्पनिक रूप से प्रथम व अंतिम पत्र का क्रमशः २ व ४६ पत्रांक दिया है., जैदे., (२७X१२, १२X३४). डालसागर, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (); अंति: (), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १४७५८. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८५७ श्रावण कृष्ण, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८६, ले. स्थल, भुजनगर, प्रले. खीमजी छगनजी त्रवाडी, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१२, ४X३२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गइं त्ति बेमि, अध्ययन-१०. For Private And Personal Use Only दशवेकालिकसूत्र - टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः ध० धर्म म० मंगलिक; अंति: करनुं प्ररूप्यो, ग्रं. ३०००. १४७६० (+) औपपातिकसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८५४, भाद्रपद कृष्ण, १२, सोमवार श्रेष्ठ, पृ. १२३+१ (९७) = १२४, पू.वि. पत्रांक नं २१-२२ एक ही पेज पर लिखा है. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., (२७.५४११.५, ५X३३-३७). " उववाईयसूत्र, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, ग्रं. १२५७. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणेकाले चोथो; अंति: सुद्धार्थ सुत्रार्थ. १४७६१. जंबुद्वीपपन्नत्ति, संपूर्ण, वि. १६१९, माघ कृष्ण, ११, रविवार, मध्यम, पृ. १६६, पठ. मु. जगमाल, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. ऋषिश्रीमानजी प्रसादात्., प्र. ले. श्लो. (५१८) तैलाद्रक्षे जलाद्रक्षेत्, ( ७४६) वक्र द्रष्टी कटी ग्रीवा, ( ७४७) नाणंपढेहनाणंगुणेह, (७४८) नाणेणजाणइभावे, जैदे., (२७.५X११.५, ११×३६-४२). जंबुद्वीपपन्नत्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: उवदसे त्ति बेमि, वक्षस्कार- ७, ग्रं. ४१४५. Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४७६२. आचारांगसूत्र सह बालावबोध, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४७, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२७.५४११.५, ३-१०x२२-३०). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विमुच्चंति त्तिबेमि, प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मानोयं चिरं नंद्यात्, प्रतिपूर्ण. १४७६३. नर्मदासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १८३०, वैशाख अधिकमास शुक्ल, १२, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५७, ले.स्थल. आहोरनगर, प्रले. पं. चतुरविजय (गुरु मु. ऋद्धिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७४११.५, १३४४३-४७). नर्मदासुंदरी चरित्र, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि: प्रभुचरणांबुजरजतणी; अंति: मोहन वचन विलासजी, ढाल-६३, गाथा-१४५४. १४७६४. शांतिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १८६९, भाद्रपद शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १५४, ले.स्थल. विकानेर, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४०-५२). शांतिनाथ चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: प्रणिपत्यार्हतः सर्व; अंति: स करोतु शांतिः, प्रस्ताव-६, ग्रं. ६५६५. १४७६५. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२, ले.स्थल. स्याणा, प्रले. ग. जसवंतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसुविधिनाथ प्रसादात्. प्रथम पत्र पर भगवान आदिनाथ का चित्र है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (५९८) लेखणी पुस्तिका रामा, जैदे., (२६.५४१२, ७-१४४३३-३७). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कलपवेलि कवियण तणी; अंति: च्यार खंड सुहायाजी, खंड-४, ढाळ ४१, गाथा-१८२५. श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञान विशाल लेस्ये, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र चौथे खंड में टबार्थ है.) १४७६६. (+) द्रव्यानुयोगतर्कणा सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १७९३, भाद्रपद कृष्ण, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४६, प्रले. ग. वीरमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-त्रिपाठ., जैदे., (२७४१२, १९४३६-५४). द्रव्यानुयोगतर्कणा, मु. भोजसागर, सं., पद्य, आदि: श्रीयुगादिजिनं नत्वा; अंति: द्रव्यानुयोगतर्कणा, अध्याय-१५. द्रव्यानुयोगतर्कणा-स्वोपज्ञ टीका, मु. भोजसागर, सं., गद्य, आदि: श्रियं निवासं निखिला; अंति: समापत्ति प्रकीर्तिता. १४७६७. (+#) सूत्रकृतांगसूत्र-प्रथमश्रुतस्कन्ध सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ५४३४). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.. १४७६९. (+) निशीथसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६१, ज्येष्ठ शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५३, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. गोपीकिशन बोडा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन मास- प्रथम ज्येष्ठ मास शुक्लपक्ष., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२,७४५८-६३). For Private And Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १५९ निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जे भिखु हत्थ कम्म; अंति: जाव तेण पर छम्मासा, उद्देशक-२०. निशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवो सु०; अंति: लिखी छे सर्व पहिली. १४७७०. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ११४३४-३९). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: शरीरधरे भविस्सत्तीति, अध्याय-१०, गाथा-१२५०. १४७७१. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२९-१९३०, श्रेष्ठ, पृ. ८१, ले.स्थल. मालीया, प्रले. मु. कीर्तिसागर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (७४९) पाप करे तो पापकर, जैदे., (२५.५४११.५, ५४३८-४०). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्याय-१०, ग्रं. ८१२, (वि. १९२९, आश्विन कृष्ण, ५, शनिवार, ले.स्थल. मालीया) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीर, (२)ते काल चोथा आराने; अंति: समुद्देश अनुज्ञा ते, (वि. १९३०, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, रविवार) १४७७२. (+) नंदीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१४, कार्तिक शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५, प्रले. मु. तेजसागर (गुरु मु. क्षमासागर, विधिपक्ष गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १-७X५०-५६). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: वीसमणुन्नाइं नामाई. नंदीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नंदी कहतां आणंदनो; अंति: अनुज्ञाना नाम जाणवा. १४७७३. (+) व्यवहारसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ७-१०४३७-३९). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्खू मासिय; अंति: महापज्जवसाणे भवइ, उद्देशक-१०. व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे भिक्खू साधु मा०; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १४७७४. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दूसरे अध्ययन की पहली गाथा अपूर्ण तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ९x४३-४६). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (१)नमो अरिहंताणं० लोए, (२)तेणं कालेण० चपाए; अंति: (-), अपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीवीरतरागनइ नमस्का, (२)ते० तेणइ का० कालइ; ___ अंति: (-), अपूर्ण. १४७७५. श्रेणिक चरित्र, संपूर्ण, वि. १९९०, आश्विन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६५, ले.स्थल. नागोर, जैदे., (२५.५४११, १५४४३-४६). श्रेणिक चरित्र, ऋ. तिलोक, मा.गु., पद्य, वि. १९३९, आदि: जे जे जे जिन जग गुरु; अंति: (१)तेही भवजल से तिरेजी, (२)जन्मादि अधिकार, ढाल-८४. १४७७७. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२७, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., ग्रन्थाग्र १२०० तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ६-१७४४१-४९). For Private And Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), पूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ते वर्तमान अवसर्पिणी; अंति: (-), पूर्ण. कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीर; अंति: (-), पूर्ण. १४७७८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५९-१३७(१ से १३५,१६४,१७७)+२(१६३,१८२)=१२४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., अध्ययन-१० अपूर्ण से अ. १९ अपूर्ण तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२४.५४११.५, १३४४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४७७९. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८१२, भाद्रपद कृष्ण, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. १५०, ले.स्थल. नवानगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ९०००, जैदे., (२६४११.५, ७-१७४३५-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)णमो अरिहंताणं० पढम, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: आठकर्मरुप अरि जे; अंति: एहवू कहता हवा. कल्पसूत्र-कल्पप्रदीप बालावबोध, मु. भानुविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७२४, आदि: श्रीपार्वं प्रणिपत; अंति: ते संघ बाहिर काढवो. १४७८०. अंजनासुन्दरी पवनंजयकुमारसंबद्ध चोपड़, संपूर्ण, वि. १८७५, आश्विन शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४३, ले.स्थल. मांडवी, प्रले. मकनजी वासुदेवजी जानी; लिख. श्रावि. मूलीबाई; पठ. श्रावि. भाणबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ऋषि देवराजजी को यह प्रत वहोरायी गयी है., जैदे., (२६.५४११.५, १०४३०-३५). पवनंजय अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: श्रीगणधर गौतम प्रमुख; अंति: ऋद्धि वृद्धि मंगलमाल, खंड-३, ढाल २२, ग्रं. ९६५. १४७८१. (+) उवाइसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, ४४२६). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, मु. राजचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्वा श्रीजिन; अंति: सुख पाम्या थका. १४७८२. (+) दृष्टान्तशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९२, वैशाख कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पृ. ३०, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. ग. ज्ञानसागर; पठ. मुरारिदास, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, ४४३४-३७). दृष्टांतशतक, ऋ. तेजसिंघ, सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीवृषभं सदा; अंति: धीरैर्विशोध्यं वरैः, श्लोक-१०२, __ (वि. १७९२, वैशाख कृष्ण, ८, रविवार) दृष्टांतशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनई; अंति: (-), (वि. १७९२, वैशाख कृष्ण, १३, शुक्रवार) १४७८३. (+) उपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६१, आषाढ़ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ११४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, ३४२८-३३). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, श्लोक-५४४. For Private And Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org . १६१ उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) नत्वा श्रीवृषभजिनं, (२) नमस्कार करीने तीर्थं; अंति: वाणी श्रुतदेवता Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४७८४. योगचिंतामणि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८४ - ३ (४१ से ४२, ४४) = ८१, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २५.५X११, १३३८ ). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः यत्र वित्रासमायांति; अंति: (-), अपूर्ण. १४७८५. (+) आचारांगसूत्र सह टवार्थ- प्रथमश्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १८७२ आषाढ शुक्ल, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १२७, प्रले. प्रेमचंद रूपचंद पांडे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ४०००, जैबे, (२५.५X११, ४x२९). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र- टबार्थ, क्र. धर्मसी, मा.गु., गद्य, आदि: सु० शांभल्युं मे० मे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १४७८६. कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६८२, चैत्र कृष्ण, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १२१, ले. स्थल. रोह ग्राम, लिख श्रावि पुहती वीरा साह; प्रले. मु. गुणराज पठ. मु. वीरविजय ऋषि मु. रुपाजी अन्य. मु. चतुरविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. जैये., (२५x११, ५X३४-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ ति बेमि, व्याख्यान- ९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तेणि कालि तेणि समि; अंति: स्वामि पूर्वोद्धृतः, ग्रं. १८०० . १४७९८. कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४६, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ९०, ले. स्थल. श्रीभगूनगर, प्रले. पं. सुगुणसमुद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६१२, ६-१८x४२-४८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (१) नमो अरिहंताणं नमो, (२) तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान ९. कल्पसूत्र - टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: हिवै श्रीकल्पसिद्धां; अंतिः आगे एहवी कहता हुआ. १४८०० क्रियाकोष, संपूर्ण, वि. १८०० आश्विन कृष्ण, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५०, प्रले, य. तेजसागर; लिख, ऋ. सरूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६.५X१२, २२४३२-३९). " क्रियाकोष, क. किशनसिंह सुखदेव आवक, पुहिं., पद्य, वि. १७८४, आदि; समवसरणलक्ष्मी सहित; अंति: किसन० कर तिनकी जतां, गाथा- १८८८. १४८०९. पाक्षिक सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२, ले. स्थल पाटण, प्रले. गेरमल पुनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. देवसाने पाडे., जैवे. (२७.५x१२, ४x२९ ) - पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: एमब्भखमियव्वं. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - श्वेतांबर - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीतीर्थंकर प्रते; अंति: तीर्थंकरनी० प्रकासी. १४८०२. कल्पसूत्र व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३२-४४ (१ से १४, ३६ से ६५ ) - ८८, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैवे. (२७.५x१३, १३०४६). कल्पसूत्र - बालावबोध-अनुवाद, पुर्हि, गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४८०४. भक्तामर स्तोत्र सह मंत्र, पंचपरमेष्टि स्तोत्र व पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९६०, आषाढ़ शुक्ल, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २६, कुल पे. ३, ले.स्थल. शीवपुर, प्रले. मु. फुलचंद्र भट्टारक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मंत्र, ऋद्धिमंत्र, यंत्र व विधि सहित. श्रीआदिनाथ प्रसादेन., जैदे., (२६४१२.५, १४४२९). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह मंत्र, पृ. १आ-२५अ. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४+४. भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अर्ह णमो; अंति: नमः स्वाहा, मंत्र-४८. २. पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. २५आ. पंचपरमेष्ठिनमस्कारमंत्रमय स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ३. पे. नाम. कलिकुंडदंडस्वामी पार्श्वस्तोत्र, पृ. २५आ-२६अ. पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकुंड, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं तं नमह; अंति: स्वामिने नमः स्वाहा, श्लोक-४. १४८०५. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८४-४३(८ से ११,२८ से ६६)=४१, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-२७ गाथा-३६ तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१३, ७५३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), अपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), अपूर्ण.. १४८०७. (+) कर्मविपाक, कर्मस्तव व बंधस्वामित्व सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९६१, माघ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३१-१०(२ से ११)=२१, कुल पे. ३, प्रले. जेठालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१२.५, ३४२४). १.पे. नाम. कर्मविपाक सह टबार्थ, पृ.१-१२अ, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., प्रथमगाथा व अंतिमगाथा का अंश मात्र है. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६०, अपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर जिन प्रति; अंति: श्रीदेवेंद्रसूरि, अपूर्ण. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. १२अ-२०आ. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर तीर्थंकर; अंति: श्रीमहावीरदेव प्रति. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. २०आ-३१आ. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: बंधविहाण कहता कर्मना; अंति: कर्मस्तव सांभलीनई. १४८०८. (+) कर्मविपाक सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-६३ अपूर्ण तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१२.५, १२४३३). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: (-), पूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिरि क० लक्ष्मीइं कर; अंति: (-), पूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १४८०९. (+) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १९१४, फाल्गुन शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. खेडा, प्रले. मु. रामचंद (गुरु क्र. खुस्यालचंद्र, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१७९) पोथी प्यारी प्राणथी, (६७२) पोथी अरु पदमनी, जैदे., (२६.५४१३, ५४३०). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण-७. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अजितनाथ जीता छइ सर्व; अंति: पार्श्व० चंद्रमासमान. १४८१०. (+) कल्पसूत्र मांडणी, संपूर्ण, वि. १८६३, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, १३४३८). कल्पसूत्र-वार्तिक मांडणी, मु. लक्ष्मण, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहताणं० ॐकार; अंति: सांभले विधि पूर्वक, ग्रं. ५३४. १४८११. निरयावलिकादि पंचोपांग सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८२, कार्तिक कृष्ण, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४८, कुल पे. ५, जैदे., (२६.५४१३, १२४३३). १. पे. नाम. कप्पिया सहटबार्थ, पृ. १अ-१७आ. निरयावलिका-प्रथमवर्ग, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: अयमढे पण्णत्ते, अध्ययन-१०. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते तेण उसर्पिणीनउ; अंति: प्ररुप्या ते कह्या. २. पे. नाम. कप्पवडिंसिया सह टबार्थ, पृ. १७आ-१८अ. निरयावलिका-द्वितीयवर्ग, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिद्धे, अध्ययन-१०. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जजउ भव्हे भगवंत स०; अंति: महाविदेहइ सीझस्यइ. ३. पे. नाम. पुप्फिया सह टबार्थ, पृ. १८अ-४१अ. निरयावलिका-तृतीयवर्ग, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जौ हे पूज्य०; अंति: पुफीयासूत्र समाप्त. ४. पे. नाम. पुप्फचुला सह टबार्थ, पृ. ४१अ-४३आ. निरयावलिका-चतुर्थवर्ग, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन-१०. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जउ हे पुज्य तपस्वीइ; अंति: चोथो वर्ग समाप्त. ५. पे. नाम. वह्निदसा सह टबार्थ, पृ. ४३आ-४८आ. निरयावलिका-पंचमवर्ग, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: मइरित्त एक्कारससु वि, अध्ययन-१२. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जउ हे पूज्य तपस्वीइ; अंति: वर्गना बार उद्देसा. १४८१२. प्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदे., (२८x१३, ४-१३४२५-३०). साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: पगाम सिज्झाए निगाम; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७४९, आदि: (१)एँ नत्वा पार्श्वनाथ, (२)पगाम कहता अतिहि; अंति: तीर्थंकर जिन प्रति. For Private And Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४८१३. कल्पसूत्रवृत्ति सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०७, पू.वि. नवमी वाचना के प्रारंभ तक लिखा है., जैदे., (२५४११.५, ११४२७-३०). कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र-कल्पलता टीका का बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: अहो भव्य जीवो असरण; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १४८१४. ब्रह्मविलास, संपूर्ण, वि. १८९८, आश्विन शुक्ल, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १५३, ले.स्थल. जालना, प्रले. पं. अचलसुन्दर (गुरु पं. सौभाग्यसुन्दर, उपकेश गच्छ); पठ. श्राव. आणंदरूप सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंतमें अनुक्रमणिका है., जैदे., (२७४१२.५, १२४३३-३६). ब्रह्मविलास, श्राव. भगोतीदासलालजी ओसवाल, पुहिं, पद्य, वि. १७५५, आदि: प्रथम प्रणमि अरहंत; अंति: भगौतीदास० वहे भगवान. १४८१५. चोवीसदंडक पांत्रीशद्वार व गुरुमहिमा श्लोक, संपूर्ण, वि. १९३५, वैशाख अधिकमास शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ४७, ले.स्थल. पाली, प्रले. अमरदत्त ब्राह्मण मेवाडा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (४६) भग्न पृष्टी कटी ग्रीवा, (६२) मंगलं लेखकानां च, (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे, जैदे., (२७४१२.५, १२४३८-४०). २४ दंडक ३५ द्वारविचार, मा.गु., गद्य, आदि: संसारी जीवो च्यार; अंति: करिनें वाचवू सहि. १४८१६. यतिप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, अन्य. सा. मगनश्रीजी, जैदे., (२७.५४१२, १३४३७). यतिप्रतिक्रमणसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: पगाम सिज्झाए निगाम; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र का टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७४९, आदि: एँ नत्वा ___पार्श्वनाथ; अंति: तीर्थंकर जिन प्रति. १४८१७. धन्नाशालीभद्र रास, संपूर्ण, वि. १८५५, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६८, ले.स्थल. मांडवी, प्रले. मु. वर्धमान, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३, १६x४१-४५). दानकल्पद्रुम रास, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: ऐंद्रश्रेणिं नत क्रम; अंति: सीख पाये सच्छायो रे. खंड-४, ढाल ८५, गाथा-२१४२, ग्रं. २५७०. १४८१८. शत्रुजयतीरथ महात्म्यवरण उद्धार, संपूर्ण, वि. १९२५, श्रावण शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. बालगिरि बावा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२, ११४३१). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: नयसुंदर० जय करुं, ढाल-१२, गाथा-११६. १४८२०. सिद्धचक्र माहात्म्य, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-२(१५ से १६)=२३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२८x१३, ११४३०-३३). श्रीपालराजा चरित्र*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४८२१. जंबू चरित्र, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदे., (२७४१२.५, १३४३६). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: हवे चोथा आराने विषे; अंति: भव भवने विशे पामशे. For Private And Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १६५ १४८२३. (+) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१२.५, ४४२६-३०). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर जिन प्रति; अंति: श्रीदेवेंद्रसूरि. १४८२४. (+) चौमासी देववंदन, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ऋषभ चन्द्रानन देववंदन अपूर्ण तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१३, १३४३२-३५). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: (-), पूर्ण. १४८२५. (#) धर्मपाठ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७.५४१२.५, १२४३२). आवश्यकसूत्र-खरतरगच्छीय पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं० जयउ; अंति: (-), अपूर्ण. १४८२६. बंधत्रिभंगी यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., जैदे., (२८x१२.५). बंधत्रिभंगी-यंत्र, मा.गु.,सं., यं., आदि: (-); अंति: (-). १४८२७. श्रावक पडिकमणविधि-देवसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. थराद, प्रले. श्राव. मयाराम माणकचंद; पठ. मघा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२.५, १५४३५). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १४८२९. गुणावली रास, संपूर्ण, वि. १९वी, चैत्र शुक्ल, ५, जीर्ण, पृ. १७, प्रले. मु. लाभशील (गुरु मु. लाभनिधान), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन वर्ष में प्रारंभिक अंक १८ मिलता है, इसके बाद का अंकभाग दीमकभक्षित पत्र होने से अज्ञात है., जैदे., (२५४१२, १५४३९-४८). गुणावली रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: पभणइ हो जिनहरष सुसीस. १४८३०. सिद्धपंचाशिका सह बालावबोध, संपूर्ण, श. १७७३, श्रावण कृष्ण, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १८+१(१३)=१९, पठ. श्राव. आनंदरूप सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत में विक्रम वर्ष १०८, हिजरी सन १२६७ तथा १२६८ एवं ईस्वी सन् १९५१ तथा १९५२ का भी उल्लेख है., जैदे., (२५.५४१२, १५४३९-४६). सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंति: लिहियं देविंदसूरिहिं, गाथा-५०. सिद्धपंचाशिका प्रकरण-बालावबोध, आ. विद्यासागरसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७८१, आदि: (१)सिद्धर्थ राजतनयं, (२)सिद्ध प्राभृत महा; अंति: लोद्वीमितेशरदिहर्षतः, ग्रं. ७००... १४८३१. जीवाजीवविभक्त्यध्ययन, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. जैदे., (२६४११.५, १५४२७-२९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. १४८३२. राजुलपच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. अवरंगाबाद, प्रले. मु. उदा ऋषि, जैदे., (२५.५४११, १३४२९-३४). For Private And Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची राजुलपच्चीसी, श्राव. विनोदीलाल, मा.गु., पद्य, वि. १७५३, आदि: पहली वलि प्रणमु हो; अंति: पामइ परम किलाण, गाथा-९६. १४८३३. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, प्रले. सा. मानाजी आर्या (गुरु सा. कुशला आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १५४३२). साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पंच भरत पंच इरवत जाण; अंति: देवमुनि ते संथुण्या, ढाल-१३, गाथा-३७७. १४८३४. १४ गुणस्थानक २४ द्वार, संपूर्ण, वि. १९१५, भाद्रपद कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. नागोरनगर, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १४४३३-३८). १४ गुणस्थानक २४ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: अथ चवदैगुणठाणे जीव; अंति: सूक्ष्मबादर सब लेवा. १४८३६. (+) सूरोदयज्ञान, संपूर्ण, वि. १९१८, वैशाख शुक्ल, ४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, पठ. मु. दयालचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. खरतरगच्छीय दौलतचंदजी की प्रत पर से लिखी गयी प्रति., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३५). स्वरोदयज्ञान, मु. कपुरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०५, आदि: नमो आदि अरिहंतदेव; अंति: चिदानन्द चितधार, गाथा-४५३. १४८३९. (+) संग्रहणी सूत्र, पूर्ण, वि. १८४८, चैत्र कृष्ण, ११, रविवार, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, पू.वि. गाथा-१८ तक नहीं है., ले.स्थल. राजपुरा, प्रले. पं. लब्धिकमल, जैदे., (२५.५४१२, १७४३९). संग्रहणी प्रकरण, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: णिम्मिया अत्तपढणट्ठा, गाथा-३९५, पूर्ण. १४८४०. (#) पद्मावती आराधना व दीवाली रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १५४२८-३०). १. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. १अ-३अ. ___ आलोयणा छत्तीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: पापथी छुटे तत्काळ, गाथा-३८. २. पे. नाम. दीवाली रास, पृ. ३आ-५अ. दीपावलीपर्व रास, ऋ. जेमल, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करो भगवानरो गणधर; अंति: जैमल० दिवालीनै मान, गाथा-४३. १४८४१. (#) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रावण अधिकमास शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ३४, प्रले. लाडुडी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १४४३८-४०).. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२५०. १४८४२. ६२ मार्गणा यन्त्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है. इसी कृति की एक-एक पन्ने की ६ प्रतियां है., जैदे., (२६४१२). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु.,सं., को., आदि: (-); अंति: (-). १४८४३. (+#) संबोधसित्तरि प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२१, फाल्गुन शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १६, प्रले. पंन्या. रविविजय गणि (गुरु पं. राजविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ४४३०-३५). For Private And Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १६७ संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा-१२५, (वि. १८२१, फाल्गुन शुक्ल, १४) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनने मनवचन; अंति: किस्यौ संदेह नही, (वि. १८२१, चैत्र, बुधवार) १४८४४. आर्द्रकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२६४१२, ११४४०-४५). आर्द्रकुमार रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: सकल सुरासुर जेहना; अंति: कही० दोलती गेहे रे, ढाल-१९, गाथा-४१०, ग्रं. ४५१. १४८४५. (+) भाषा लीलावती, संपूर्ण, वि. १९०७, श्रावण कृष्ण, ११, रविवार, मध्यम, पृ. २८, ले.स्थल. जालना, प्रले. श्राव. शिवचंद छावडा; पठ. श्राव. आनन्दरूपजी सेठ, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ११४३१-३६). लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सोभित सिंदूर पुर; अंति: ऐ वरतो जनसुख काज, अध्याय-१६. १४८४६. (#) गौतमपृच्छासह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४४०-४६). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा-६४. गौतमपृच्छा-बालावबोध, उपा. क्षमामूर्ति, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वर्द्धमानं जिनं, (२)पहिलू ग्रंथकारक; __अंति: चिरकाल सीमना थउ. १४८४७. शतक नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३६, माघ शुक्ल, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९१, प्र.वि. मूल पत्रानुक्रम ६१-९१ है. नव्य कर्मग्रन्थ चतुष्क या कर्मग्रन्थ षट्क कर्मग्रन्थ संपुट में से निकली हुई यह प्रत लगती है. सं.१९०३ फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के दिन सरूपचंदराय ने यह प्रत अणदरूपजी को दी., जैदे., (२६.५४१२, ३४२७-३१). शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: परमात्मानइं भव्य; अंति: संभारवानइ अर्थइ. १४८४८. (+) सूत्रकृताङ्गसूत्र-प्रथमश्रुतस्कन्ध सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १८३६, चैत्र शुक्ल, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४४, पू.वि. अध्ययन १६, प्र.वि. बालावबोध टबार्थ शैली मे है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, ३-६x४४-५६). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज तिउट्टेज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)आदिदेवं नमस्कृत्य, (२)बुझे छ जीवनिकायनु; अति: (-), प्रतिपूर्ण. १४८४९. (+) कल्पसूत्र सहटबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०२-५४(१ से ४६,५० से ५४,९७ से ९८,१०१)=४८, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., पाँचवी वाचना अपूर्ण से आठवीं वाचना अपूर्ण तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ७-१३४३८-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४८५१. (+) समाधिमरण स्तवनरूप सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७८, कार्तिक शुक्ल, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. गिरधारीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, ११४३६). समाधिमरण स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीजिनराजकु; अंति: देखी करत मोहनमालए, ढाल-११, गाथा-१८९. १४८५२. (+) संबोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १८३९, पौष, श्रेष्ठ, पृ. ५, पठ. मु. गुमानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, १२४३४-३९). संबोधसत्तरी, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सोलहई नत्थि संदेहो, गाथा-८५. १४८५३. खंडाजोयण विचार व औपदेशिक पदसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९०२, वैशाख शुक्ल, १५, बुधवार, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, ले.स्थल. रीया, प्रले. सा. रायकवरी (गुरु सा. पाराजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (७३८) आमु जामु करमदा, जैदे., (२६४१२.५, १७४३६-४०). १. पे. नाम. खंडाजोयण विचारसंग्रह, पृ. १आ-१०आ, वि. १९०२, वैशाख शुक्ल, १३, शुक्रवार. खंडाजोयण बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: लाख जोयणनो जंबूद्वीप; अंति: रोहितानी परै जाणवी. २. पे. नाम. औपदेशिक पदसंग्रह, पृ. १०आ-११आ, वि. १९०२, वैशाख शुक्ल, १५, बुधवार. पुहिं., पद्य, आदि: सतगुर तुम तो भूल गया; अंति: सकल परभु सुखकारो, गाथा-२५. १४८५९. (+) प्राकृतव्याकरण सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४१-१(१)=४०, पू.वि. प्रथम पाद सूत्र १४ से पाद ४ सूत्र ३७६ तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२.५, ११-१५४५२). प्राकृत व्याकरण, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा ____अपूर्ण. प्राकृत व्याकरण-स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १४८६०. आउर पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३३). आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., आदि: देसिक्कदेसविरओ; अंति: खयं सव्वदुक्खाणम्, गाथा-६०. १४८६१. संखेश्वरपार्श्वनाथविचारगर्भित ढुंढकप्रतिबोधनिमित्तजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२७७१३, ११४३८). शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन ढूंढकप्रतिबोधनिमित्त विचारगर्भित, मु. धर्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर समरीने; अंति: धर्म साथे मन बालीइं, ढाल-४+कलश. १४८६२. हीरसूरि प्रबन्ध, संपूर्ण, वि. १९७०, पौष शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदे., (२७.५४१२.५, ११४२९). हीरविजयसूरि प्रबंध, मा.गु., गद्य, आदि: संवत पन्नर त्र्यासिए; अंति: लेशमात्र लिख्यो छै. १४८६३. (+) अणुत्तरोववाइयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६७, कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. बिलाडा, प्रले. सा. मानी (गुरु सा. कुशला आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, ८४३४). For Private And Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: तहा णेयव्वं, अध्याय-३३, ग्रं. १९२. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणइ कालइ चउथा; अंति: त० तिमज ने जाणवो. १४८६५. (+) जम्बूद्वीपसंग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. पल्लिपुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, ४४२७-३२). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं. लघुसंग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने जिन; अंति: श्रीहरिभद्रससूरिइं. १४८६६.(+) व्यवहारसूत्र व बृहत्कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९३६, वैशाख कृष्ण, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. भीनमाल, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, ३२४७६-८४). १. पे. नाम. व्यवहारसूत्र, पृ. १अ-४आ. आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्खू मासिय; अंति: महापज्जवसाणे भवइ, उद्देशक-१०, ग्रं. ३७३. २. पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र, पृ. ४अ-६आ. आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गथाण; अंति: कप्पट्टिई त्तिबेमि, अध्याय-६. १४८६७. संबोधसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७९, वैशाख कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पं. न्यायकुशल; पठ. श्रावि. हर्षबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५८०) जां ध्रु सायर चंद्र रवि, जैदे., (२६.५४१२, ५४२६-२९). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा-९३. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ तिन; अंति: जयशेखर० नवी संदेह. १४८६८. (+) चोविसदंडक ओगणत्रिसद्वार, संपूर्ण, वि. १९४३, आषाढ़ शुक्ल, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्रले. गोपीनाथ ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ११४३४). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: अनंत गुणे अधिक जाणवा. १४८६९. (+) भगवतीसूत्र शतक-१२ उद्देश-१, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १३४३६-३७). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १४८७१. भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. भोजा, जैदे., (२६४११, १३४३६). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३. १४८७४. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२५४१२, १२४३१). पार्श्वजिन स्तवन, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: भावधरी भजन कर आपे; अंति: नेमविजय जयकार, ढाल-१५. १४८७५. चोविसदंडकना त्रीस बोल, संपूर्ण, वि. १९७२, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्रले. मोतिचंद, जैदे., (२५४१२, १२४३१). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नाम द्वार बीजो; अंति: अधिका जाणवा सहि. For Private And Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४८७६. सुक्तावली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७९, फाल्गुन शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३३, ले.स्थल. रानेर, प्रले. मु. रंगविजय; लिख. मु. जयवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मनमोहनपार्श्वनाथ प्रसादात्. आदिजिनप्रसादात्. पं. नानवर्द्धनजी हेत्सत्क की ५७ वी प्रत., जैदे., (२६४११, ४४४३). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलकुशलवल्लिवृंद; अंति: केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४. सूक्तमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: नामे थया तेहने रची, (पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा प्रारंभ के ३ श्लोकों ___ का टबार्थ नहीं लिखा है.) १४८७७. संग्रहणी प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९२८, भाद्रपद अधिकमास शुक्ल, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. अलायनगर, प्रले. मु. पुण्यविजय, जैदे., (२७.५४१३, १२४३०-३९). संग्रहणी प्रकरण, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३९३. १४८७८. गौतमपृच्छा सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८४, कार्तिक कृष्ण, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६०+१(३१)=६१, प्रले. मु. धनरूपविजय (गुरु पं. कस्तुरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.२४१२.२, १३४३२-३७). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा-६४. गौतमपृच्छा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा कहतां नमिनइ; अंति: वीरप्रभुजी कह्यु. गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. जिनसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा श्रीवीरं जिन; अंति: सूरेण हर्षपूरण भावतः. १४८७९. (+#) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८३२, श्रेष्ठ, पृ. १३१, ले.स्थल. सुरति बंदर, प्र.वि. शेठजी मलूकचंद कीमाजी- झमकुबाइ.अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ७-९४२४-२९). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: सरीरधरे भविस्सइति, अध्याय-१०, ग्रं. १३५०. प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: जाइ अनंतासुख पामइ, ग्रं. ७२५०. १४८८०. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९७, पौष, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६९, ले.स्थल. जालना, प्रले. पं. अचलसुन्दर (गुरु पं. सौभाग्यसुन्दर, उपकेश गच्छ); पठ. श्राव. आणंदरूप सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (७३७) कर कट ग्रहीवा नयन मुख, जैदे., (२७.२४१२.३, ६४२८-३२). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नाम नयरी; अंति: दिवसेसु अगं तहेव, अध्याय-१०. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: महावीरस्वामी. १४८८१. पजोसवणाकप्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२४, चैत्र कृष्ण, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ८६, प्रले. जुलकर्ण मिश्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, ७४३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं पढम; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९. ग्रं. १२१६. For Private And Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंतने नमस्कार; अंति: वार उपदेस्यो कह्यो. १४८८२. ज्योतिषसार सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१२, चैत्र कृष्ण, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६३, लिख. श्राव. परसोत्तम हेमजी सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शांतिसागरसूरि राज्ये., त्रिपाठ., जैदे., (२७.५४१२.५, ४-७४३२-३५). ज्योतिष नारचंद्र, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: भवत्सिद्धिकरस्तदा, श्लोक-३७२. ज्योतिषसार-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवितराग शब्द छ; अंति: अधिक मासंदुच्यते. १४८८३. (+#) सूत्रकृतांगसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १७६+१(१)=१७७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.७४११, ७-११४३०-३४). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज; अंति: विहरति त्ति बेमि, अध्याय-२३, ग्रं. २०००. सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: बुज्झेज कहता जाणइ; अंति: प्रतिइं कहउंछउं. १४८८७. (+#) राजप्रश्नीयसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १६५०, कार्तिक शुक्ल, १४, रविवार, मध्यम, पृ. ६९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १६x४९-५४). राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: प्रणमत वीरजिनेश्वर; अंति: ताडनानि कशादिघाताः, ग्रं. ४०७५. १४८९५. वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. जालना, प्रले. मु. अचलसुंदर, जैदे., (२७४१२, ६४३२-३५). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहसि जहा सासयं ठाणं, श्लोक-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: (१)वीरं वारिधिगंभीर, (२)अस्मिन् संसारे असारे; अंति: थानं मोक्षस्य लक्षण. १४९१४. नववाड आदि सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८७, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. १३, प्रले. पं. राजेंद्ररुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, १३४४०-४३). १.पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. १अ-४अ, वि. १८८७, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, गुरुवार, ले.स्थल. नारदपुर. मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर इम भणे; अंति: केशरकुसल गुण गाय रे, ढाल-९. २.पे. नाम. क्रोधपरिहार स्वाध्याय, पृ. ४अ-४आ. क्रोध सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न करिये भोला; अंति: उपशम आणो पासे रे, गाथा-९. ३.पे. नाम. मानपरिहार स्वाध्याय, पृ. ४आ. मान सज्झाय, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अभिमान न करस्यो कोई; अंति: नवनगर रहि० चोमासे हो, गाथा-८. ४. पे. नाम. मायापरिहार स्वाध्याय, पृ. ४आ-५अ. मायापरिहार सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: माया मूल संसारनो; अंति: लहे सुख निर्वाण, गाथा-७. ५.पे. नाम. लोभ सज्झाय, पृ. ५अ-५आ. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: पहोचे सयल जगीस रे, गाथा-८. For Private And Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६. पे. नाम. अनंतकाय सज्झाय, पृ. ५आ-६अ. मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतकायना दोष अनंता; अंति: ये भावसागर आनंदा रे, गाथा - १२. ७. पे. नाम. रात्रिभोजनरी सिझाय, पृ. ६अ ६आ. रात्रिभोजन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनीपुर वारुं वसेजी; अंतिः सार्यां आतम काज रे, गाथा - २०. ८. पे. नाम. चावतरी सज्झाय, पृ. ६आ. . लब्धि, मा.गु., पच, आदि; चावत म करो परतणी; अंति: मानवी पामै अमर विमान, गाथा - ५. ९. पे. नाम. पडीकमणारी सज्झाय, पृ. ६आ-७आ. प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणुं भावशु; अंति: रावक इण संसार लाल रे, गाथा - १८. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७आ. मा.गु., पद्य, आदि: पारसना पसायची रे; अंति: वणीयर लील विलास, गाथा - ७. ११. पे. नाम. विजयसेठ अने सेठाणौरी सज्झाच, पृ. ८अ ९अ प्र. ले. लो. (१४४) कर गावड कर बेवडी. विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: भरतक्षेत्रे रे समुद अंतिः कुशाल नित घर अवतरे, ढाल - ३, गाथा- २३. १२. पे. नाम. अनाथीरी सज्झाय, पृ. ९अ - १० आ. अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिप श्रेणिक अंतिः हम बोले मुनि राम के, गाथा - ३०. १३. पे. नाम. श्रावकरी सज्झाय, पृ. १० आ. श्रावकधर्म सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक धर्म करो सुखद अंति: हुवा प्रतमाहाधारी रे, गाथा - ११. १४९१९. नैषधीयचरित सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १७१, पू.वि. पत्रांकहीन अस्तव्यस्त पत्र, प्रारंभ व अंत नहीं है, प्र. वि. अपूर्ण व पत्र चिपके होने से पत्रानुक्रम अव्यवस्थित है. अतः पत्रांक काल्पनिक दिया गया है., त्रिपाठ, जैवे., (२७X१०.५, १७X५१-६१). नैषध चरित्र, क. हर्ष, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: ( - ), अपूर्ण. नैषध चरित्र - टीका, आ. चारित्रवर्द्धन वाचनाचार्य, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४९२६. दशवैकालिकसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६३, ले. स्थल. बुंदेलखंड, जैवे. (२४.५x११.५, ६५३२-३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, बी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि; अंतिः गई त्ति बेमि, अध्ययन - १०, ग्रं. ७५०. For Private And Personal Use Only १४९२७. गुणानुराग कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र. वि. किसी अन्य विद्वान द्वारा मूलपाठ से सम्बन्धि प्राकृत व संस्कृत भाषाबद्ध १६ प्रक्षेप श्लोकों का संकलन मूल के साथ किया है. कुल गाधाएँ मूल २८ व प्र. श्लोक १६-४४ है., जैवे., (२५.५x११.५, ५४२५-२९). Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १७३ गुणानुराग कुलक, मु. जिनहर्ष, प्रा., पद्य, आदि: सयल कल्लाण निलय; अंति: सो पावइ सव्वनमणिज्जो, श्लोक-२८. ग्रं. ५५. गुणानुराग कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सकल कल्याणना निवास; अंति: रूप पदने पामे, ग्रं. ११५. १४९२८. (+) दंडक स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मु. भाग्यविजय, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ४४३५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४४. दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने चोवीस; अंति: हितने अर्थे लखी छे. १४९२९. वसुधाराधारिणी व वसुधारामंत्रजप विधि, संपूर्ण, वि. १८८०, कार्तिक कृष्ण, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ३, ले.स्थल. बांता, प्रले. पं. तिलोकहस गणि; पठ. श्राव. रिधकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ११४२९). १. पे. नाम. वसुधाराधारिणी स्तोत्र, पृ. १अ-९अ. वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति. २. पे. नाम. वसुधारा विधि, पृ. ९अ. वसुधारा स्तोत्र-विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं क्ली; अंति: लाभश्च शुभं भवतु. ३. पे. नाम. पृ. १अ-९अ. १४९३०. अंजनासती संबंध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२६४११, १३४३९). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहलेने कडावै हो पाय; अंति: सती ने सिरोवण गावीए, गाथा-१६३. १४९३१. इलाकुमार रास, संपूर्ण, वि. १७८२, फाल्गुन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. योधपुर, जैदे., (२५.५४११, १३४३८-४१). इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धिदाइ सदा; अंति: न्यानसागर अजुआलइ छे, ढाल-१६. १४९३५. (+#) आराधना प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. हमीरविजय (गुरु ग. सांगा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६६७) तैलाद्रक्षेजलाद्रक्षेद, जैदे., (२६४११.५, ६x४०). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०. पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: गुरु नमस्करीनइ गिलाण; अंति: लहइ ते सासतउ सुख. १४९३६. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-क्रियापद संकेत., जैदे., (२५.५४१०.५, ९४२४-३२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्ष प्रपद्यते, श्लोक-४४. १४९३९. (+) नंदीसूत्र सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८५२, आश्विन शुक्ल, १५, मंगलवार, मध्यम, पृ. १८३, ले.स्थल. भुज, लिख. सा. वाछीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ग्रन्थाग्र २५००, जैदे., (२६४११, ४-१२४३२-३५). For Private And Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: वीसमणुन्नाई नामाई. नंदीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नंदी शब्दनो स्यो, (२)विषइ कषायना जीपणहार; अंति: अनुज्ञाना नाम जाणवा. नंदीसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे ज्ञाननुं स्वरुप; अंति: ए बुद्धि वेश्यानी, कथा-८८, ग्रं. १३००. १४९४४. नेमराजेमतीनी स्नेहवेल, संपूर्ण, वि. १९२४, पौष शुक्ल, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्रले. ऋ. सरूपचंद्र; पठ. ऋ. पुनिमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१८४८, ८x२१-२४). नेमराजिमती स्नेहवेली, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७६, आदि: श्रीशंखेसर पासजी; अंति: उत्तमविजय स्याबास रे, ढाल-१५. १४९४७. (+) सिद्धहेमशब्दानुशासन सह स्वोपज्ञ लघुवृत्ति- अध्याय ३ पाद ३ से अध्याय ४ पाद ४, प्रतिपूर्ण, वि. १५वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४८.५, ११-१२४३३-४०). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १४९४९. स्तवन, सझाय, दोहाआदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९२८, श्रेष्ठ, पृ. ३२-२(१,३१)=३०, कुल पे. १८, प्रले. मु. प्यारचंद महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (६७४) कड कुबडी कर बेवडा, जैदे., (१५.५४११.५, १०x१७-१८). १. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. २अ-९आ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मनवंछित आस्या फले ए, गाथा-५५, पूर्ण. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १०अ-१०आ. रा., पद्य, आदि: जी बीराजे बंगलामे; अंति: मारीया वागमणनी वार, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १०आ-११आ. ___ रा., पद्य, आदि: नेमीस्वर बनडो बण्यो; अंति: मोरी लीजी हे ये माय, गाथा-७. ४. पे. नाम. शेजा तवन, पृ. ११आ-१३अ. जिनबिंबस्थापन स्तवन, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: भरतादिके उद्धारज; अंति: वाचक जसनी वाणी हो, गाथा-१०. ५. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १३अ-१३आ. म. जिनदास, रा., पद्य, आदि: सुणो सुणो सीमंधर; अंति: कर राख अपणो जाणीजी, गाथा-६. ६.पे. नाम. धर्मरूचिअणगार सज्झाय, पृ. १३आ-१५आ. ऋ. रतनचंद, रा., पद्य, वि. १८६५, आदि: चंपानगरी निरुप सुंदर; अंति: धर्मरुचि रीष वंदु, गाथा-१५. ७. पे. नाम. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. १५आ-१७आ. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: दीधो मुनीवर दान नयरी; अंति: सहिजसुंदरनी वाणि, गाथा-१५. ८. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १७आ-२०आ. For Private And Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ मु. पुनो, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद समोसर्याजी; अंति: पावे भवपार हो स्वामी, गाथा-२२. ९. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. २०आ-२२अ. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीए; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-१७. १०. पे. नाम. माणिभद्र छंद, पृ. २२आ-२५आ. माणिभद्रवीर छंद, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दो सरसती; अंति: पाठक० जय जय करण, गाथा-२९. ११. पे. नाम. नवअंगपूजा दोहा, पृ. २६अ-२७अ. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: परम उपगारी चरणकज; अंति: आनंदघन चित्तलाय, गाथा-९. १२. पे. नाम. बिबडोदमंडण आदिजिन स्तवन, पृ. २७अ-२७आ. आदिजिन स्तवन-बीबडोदमंडन, मु. धनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजीणेसर यलवेलो; अंति: धनमुनी दरसण लाधो रे, गाथा-७. १३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २७आ-२९अ. मु. नेत, मा.गु., पद्य, आदि: ओ भव रतन चिंतामणी; अंति: धन ते नरनारि० धारीजी, गाथा-१०. १४. पे. नाम. ब्राह्मीसुंदरी सज्झाय, पृ. २९अ-३०आ. मा.गु., पद्य, आदि: आदनाथ गर जनमीया ज्या; अंति: घर घर मंगलाच्यार, गाथा-१३. १५. पे. नाम. नेमजीरी लावणी, पृ. ३२अ, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: नीत उठ जाता दरसण कुं, गाथा-५, अपूर्ण. १६. पे. नाम. ज्ञान महिमा दुहा, पृ. ३२अ. ___ ज्ञानमहिमा दुहा, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञान समो कोइ धन; अंति: लोभ समो नही दुःख, गाथा-१. १७. पे. नाम. कोयल वर्णन, पृ. ३२आ. मा.गु., पद्य, आदि: कोयल समे तु बोल रहे; अंति: भई सो रोवंत राता नेण, गाथा-१. १८. पे. नाम. विद्यार्थी पंचलक्षण श्लोक, पृ. ३२आ. सं., पद्य, आदि: काकचेष्टा बको ध्यानं; अंति: पंच लक्षणो, श्लोक-१. १४९५१. स्तवन, सझाय, पूजाआदिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९०८-१९०९, मध्यम, पृ. १११-६२(२ से ५७,६३ से ६८)=४९, कुल पे. ११, प्रले. पं. नोबलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१६.५४१२, ११४२१-२५). १. पे. नाम. साधारणजिन आरती, पृ. १अ. मु. द्यानत, मा.गु., पद्य, आदि: एह विधि मंगल आरती; अंति: सुरग मुक्ति सुखदानी, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५८अ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: होवै सौ खबरदार रहिजौ, अपूर्ण. ३. पे. नाम. शीलचुंदडी सज्झाय, पृ. ५८अ-५९अ. मु. करण, मा.गु., पद्य, आदि: सील मुद्रडी खरीय; अंति: आवागमन निवारजी, गाथा-८. For Private And Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. सवासौ सीख, पृ. ५९अ-६२, अपूर्ण. १२५ सीख, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसद्गुरु उपदेस; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ रास, पृ. ६९अ-७७आ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ___ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: (-); अंति: ए सुणता आणंद थाय, ढाल-६, अपूर्ण. ६. पे. नाम. कृष्णशुक्लपक्षशील चौढालीयो, पृ. ७७आ-८०आ. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी रे पंच; अंति: कुसल नित घर ___ अवतरे, ढाल-३, गाथा-१९. ७. पे. नाम. आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, पृ. ८०आ-८३अ. मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमुं प्रथम जिनेसर; अंति: प्रगट ग्यान प्रकाश, ढाल-३, गाथा-२५. ८. पे. नाम. समोवसरण स्तवन, पृ. ८३अ-८६अ, वि. १९०८, प्रले. मु. रूपाजी, पे.वि. पत्र ८६आ रिक्त है. पार्श्वजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन सेहरो; अंति: पाठक धर्मवर्धन धारए, ढाल-२+कलश, गाथा-२८. ९. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित, पृ. ८७अ-९४आ. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: सारखी कही सूत्र मझार, ढाल-८. १०. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. ९४आ-९९आ. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: गंगा मागध क्षीरनिधि; अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति. ११. पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. ९९अ-१११अ. उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: कोई नये न अधूरी रे. १४९५२. अंबड चरित्र, संपूर्ण, वि. १९३८, माघ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ४३, प्रले. पं. पद्मोदय मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (२९४) अज्ञानदोषान्मतिविभ्रमाद्वा, (६६६) अक्षरमात्रस्वरपदहीनं, जैदे., (१८x११, ११-१३४२८-३२). अंबड चरित्र, पं. अमरसुंदर, सं., गद्य, आदि: धर्मात् संपद्यते; अंति: सर्वसुखावहः. १४९५६. स्तवन चोवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२२४१२.५, १३४२६-२९). स्तवनचौवीसी, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभरीषभ जिणंद निरखी; अंति: प्रतिदिन सयल जगीस, स्तवन-२४. १४९५७. दशविध यतिधर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. घनोघबंदिर, प्रले. पं. प्रेमकुशल गणि; पठ. मु. हरजीवन; मु. कुयरजी (गुरु पं. प्रेमकुशल गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१२, १७X४१). १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतलता वन सींचवा; अंति: सुजस लीला अनुसरे, ढाल-११. १४९५८. नंदीश्वरद्वीपेबावनजिनालय अष्टानीकमहोछव स्तवन व सुक्तावलीश्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४१२.५, १५-१७४३३-३५). १. पे. नाम. सुक्तावली श्लोक संग्रह, पृ. १अ. मा.गु., पद्य, आदि: नीज बालकने स्तनपान; अंति: कुंअरी को शीर बडेरी, गाथा-४. For Private And Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २.पे. नाम. नंदीश्वरद्वीपबावनजिनालय अष्टाह्निकामहोच्छव पूजा, पृ. १आ-३१आ. नंदीश्वरद्वीप ५२ जिनालय अष्टाह्निकामहोच्छव पूजा, मु. माविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८२, आदि: (१)ॐ ह्रीं नंदीश्वर, (२)विरजीणंद गुरुपय नमी; अंति: खेमविजय जयवाणी रे. १४९५९. तीर्थमाला, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रावण शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. वेजलपूर, प्रले. पं. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१३, १७-१९४३५-३७). शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: (१)जगजीवन जालम जादवा, (२)विमलाचल वाल्हा वारू; अति: नित नमो गिरिराया रे, ढाल-१०+कलश. १४९६०. नवाणुंप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८८८, ज्येष्ठ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. जांमपर, प्रले. पं. तेजविजय; पठ. मु. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१३, १५-१६४३४-३८). ९९ प्रकारी पूजा- शत्रुजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.ग., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेसर पासजी; अंति: आतम आप ठरायो रे, ढाल-११+कलश, गाथा-१०८. १४९६२. तीरथमाला, संपूर्ण, वि. १७९०, पौष कृष्ण, १२, रविवार, श्रेष्ठ, प. १९, ले.स्थल.खभाइतबिंदर, प्रले. ग. गणेसविजय (गुरु पं. केसरविजय); पठ. श्राव. गलालचंद भाईचंद सा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१२.५, १३४२६-२७). तीर्थमाला, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८५, आदि: आणंददाई आगरे प्रणम्य; अंति: सौभागविजय जय करो, गाथा-३१२, ग्रं. ४१३. १४९६३. पाक्षिकसूत्र, गुरुवंदन व पाक्षिक खामणा, संपूर्ण, वि. १९५७, कार्तिक शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१२, ११४३२-३३). १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-१४आ. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. गुरुवंदनसूत्र, पृ. १४आ-१५अ. गुरुवंदनसूत्र-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: इच्छा० संदि० अब्भुट; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३. पे. नाम. पाक्षिक क्षामणासूत्र, पृ. १५अ-१५आ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: नित्थारगपारगाहोह, सूत्र-४. १४९६४. स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १८७७, कार्तिक कृष्ण, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. कलकतानगर, जैदे., (२४.५४१२, १६४३६-४२). स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: ऋषभ जिणिंदसु प्रीतडी; अंति: पूर्णानंद समाजोजी, स्तवन-२४. १४९६५. नरकदुःख रास, संपूर्ण, वि. १८९२, ज्येष्ठ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. आगरा, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४३२-३४). नरकदुःख रास, मा.गु., पद्य, आदि: घर रे भार जुता घणा; अंति: वले पाडै घना हवाल, गाथा-२७२. १४९६६. पाक्षिकसूत्र, गुरुवंदन व खामणा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२, १५४३४-४०). १. पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. १आ-१०आ. For Private And Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पाक्षिक गुरुवंदनसूत्र, पृ. १०आ. गुरुवंदनसूत्र-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: इच्छा० संदि० अब्भुट; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३. पे. नाम. पाक्षिक क्षामणासूत्र, पृ. १०आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: (-), अपूर्ण. १४९६७. स्तोत्र, सझाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ५, जैदे., (२६४१२, १२-१४४३४-३६). १. पे. नाम. कायानी सज्झाय, पृ. १अ-४अ. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, पा. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जो जो आपणी मन; अंति: इम कहे श्रीसार ए, गाथा-७२. २. पे. नाम. सरस्वती काव्य, पृ. ४अ-४आ. सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. ३. पे. नाम. सरसती माताजी छंद, पृ. ४आ-६आ. सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: आस्या फलस्यें माहरी, गाथा-३७. ४. पे. नाम. १४ सूपन, पृ. ६आ. १४ स्वप्न, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलै गजवर दीठो मुज; अंति: वामादेवि ततखिण, गाथा-३. ५. पे. नाम. कागद परिष्या, पृ. ६आ. कागद परीक्षा, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम लाख पावसेर; अंति: तीहवो काजल नाखवो. १४९६८. अध्यात्मगीताबहोत्तरी, संपूर्ण, वि. १९१०, वैशाख शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. रतलाम, प्रले. य. रीषभदास (गुरु य. रूपचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, १५-१६४३३-४०). आनंदघन गीतबहोत्तरी, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: क्या सोवेउठि जाग; अंति: भागे आंनव सीठडे, पद-७२. १४९६९. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८८५, ज्येष्ठ शुक्ल, २ अधिकतिथि, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. मकसूदाबाद-महिमा, प्रले. पं. उद्योतविजय (तपागच्छ); पठ. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२.५, १६४२७-२८). स्तवनचौवीसी-अनागत, मु. सुग्यानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आगमनां उपदेशथी साहिव; अंति: (१)सुग्यानसु ___धामी रे, (२)ज्यौर सागरसुग्यान कै, स्तवन-२४. १४९७०. स्तुतिचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८७५, चैत्र कृष्ण, २, सोमवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. बालापुर, प्रले. पं. जयविजय गणि; पठ. श्रावि. बाइ रत्नश्री, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४१२.५, १५-१६४३३-३४). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारतारावलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. १४९७१. अध्यात्मगीता, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२५४१२.५, १३४२८-३०). अध्यात्मगीता, उपा. विनयविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: इष्टदेव प्रणमी करी; अंति: जोतसुजोत मिलाय, ढाल-९. For Private And Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १४९७२. (+) पार्श्वजिन स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. श्लोक४०१, जैदे., (२६४१२.५, ११४३६). पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रघुनाथ, सं., पद्य, वि. १८५७, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंति: लिखितो मुमोद भरतः, श्लोक-४०+१. १४९७३. गौतम कुलक सह बालावबोध व कथा, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, पू.वि. मूल व बालावबोध गाथा ५ तक है., जैदे., (२६४१३, १५४४३-५३). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. गौतम कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा श्रीदेवगुरुन्; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. गौतम कुलक-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: कलेस जे देशथी एहवो; अंति: पुहता इम इम तप कीजै, प्रतिपूर्ण. १४९७४. नंदीषेण व आर्द्रकुमार रास, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३६-१(४)=३५, कुल पे. २, प्रले. मु. हर्षविजय (गुरु मु. दानविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१३.५, १४४२७-२८). १. पे. नाम. नंदिषेणमुनि रास, पृ. १अ-१७आ, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: सिद्धि नित गेहइ रे, ढाल-१६, पूर्ण. २.पे. नाम. आर्द्रकुमार रास, पृ. १७आ-३६. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: सकल सुरासुर जेहना; अंति: दोलति गेहइ रे, ढाल-१९. १४९७५. चौमासिपर्व देववंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. माडल, प्रले. मु. हीराचंद; पठ. पं. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१३.५, १४४२३-२४). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: पास सामलनु चेई रे. १४९७६. (+) नामलिंगानुशासन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१३.५, ११४३६-३७). हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: पुल्लिंगं कटणथपभमयर; अंति: शासनानि लिंगानाम्, श्लोक-१३९. १४९७८. हंसराज वछराज, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९६-१(६०)=९५, जैदे., (२०x१३, १०-११४२०-२१). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोवीसे; अंति: ए हंस अनै वच्छराज, खंड-४, ढाल ४८, गाथा-९०९, पूर्ण. १४९८०. स्थुलीभद्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-४(१ से ४)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., ढाल-६ की गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-१७ गाथा-७ तक हैं., जैदे., (२६४१४, १२४३१-३५). स्थूलिभद्र शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १४९८६. पांत्रीसबोल संक्षेप, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२१.५४१३.५, १२४२३). ___३५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहले बोले गति चार; अंति: श्रावकरा २१ गुण जाणो. १४९८७. सज्झाय, स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, कुल पे. ११, जैदे., (१९x१५, २०-४५४३५-४१). १. पे. नाम. स्थूलिभद्र नवरसो ढाल व दूहा, पृ. १अ-२आ. For Private And Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८० www.kobatirth.org २. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २आ. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: (१) मनोरथ वेगे फल्या रे, (२) कहा भणतां मंगलमाल, दाल-९. पुहिं., पद्य, आदि: अपने मन कछु ओर हे; अंति: करु तेरे दीलमें नाय, गाथा - २. ३. पे. नाम. पुन्यसार रास चरित्र, पृ. ३अ-५अ. पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., पच, वि. १६६६, आदि: नाभिराय नंदन नमु; अंतिः नवनिधि होय तस गेह, ढाल ९. ४. पे. नाम. अर्जुनमाली सज्झाय, पृ. ५आ. मु. कानजी, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: सहगुरु चरण नमी कहूं; अंतिः सेवक कानजी गुणगाय, गाथा - १६. ५. पे नाम, सीतासती सज्झाय, प्र. ५आ. मु. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हुं नाम; अंति: नित्य होजो प्रणाम, ६. पे नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. ५आ-६अ. मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: अहो मुनिवरजी माहरी अंतिः पद निश्चल पावे, गाथा- ११. ७. पे नाम, रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. ६अ. मा.गु., पद्य, आदि: काउसग्ग थकी नेमी; अंति: धन धन ते अणगार रे, गाथा - ८. ८. पे. नाम. रीषभदेवजीनो तवन, पृ. ६आ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ९. आदिजिन स्तवन, ऋ रईदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरीषभदेव जिणंदा; अंतिः रईदास गुण गाये रे, गाथा-५. ९. पे नाम रीषभदेवजीनो स्तवन, पृ. ६आ. आदिजिन स्तवन, मु. माधव, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: परमेसर तमे खराजी; अंति: रे गाय ० हीयडे न माय, गाथा - १०. १०. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७अ, पे. वि. पत्र ७आ खाली है. ऋ. कानजी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतथी प्रभु पास; अंति: कानजी ० रीदये आणो रे, गाथा - ५. ११. पे. नाम. कर्णपीसाचनी मंत्र, पृ. ८अ. कर्णपिशाचनी मंत्र, सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं अहं नमोजि; अंतिः कर्णपिशाचनी स्वाहा. १४९९२. प्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह व स्तव, सझाय व स्तोत्रआदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७५४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७८+३ (२० से २१,२७) = ८१, कुल पे. २१, ले. स्थल, बालापूर, प्रले, ऋ. चोखा (गुरु पं. रुपाजी); पठ. श्रावि, नाथीबाई संभूदास, प्र.ले.पु. मध्यम, जैवे. (२३.५X१५.५, ७-१९x१२-१४). १. पे नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - वे.मू. पू. *, पू. १-११आ. For Private And Personal Use Only संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: सवे मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. जिन गीतचौवीसी, पृ. १२अ - २३ आ. जिनगीतचौवीसी, मु. आनंद, मा.गु., पद्य, वि. १५८१, आदिः आदि जिणंद मया करो; अंति: आणंद मुनि गुणगाया, स्तवन- २४. Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३. पे. नाम. सीमंधरजिन गीत, पृ. २४आ-२५अ, पे.वि. पत्र २४अव २५आ खाली है. __ मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: मुज ही डो हेजालुओ; अंति: कहइ मत मुंको विसारी, गाथा-७. ४. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति-स्नातस्या, पृ. २६अ, पे.वि. पत्र २६आ खाली है. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ५. पे. नाम. विहरमान २० जिन स्तवन, पृ. २०अ-२१आ, वि. १७५४, प्रले. मु. नानजी ऋषि (गुरु मु. देवचंद), प्र.ले.पु. सामान्य. मु. श्रीपाल, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: सारदा प्रणमी पाय; अंति: निश्चय पदवी पामसें, गाथा-३१. ६. पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. २७अ. रुचिर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रात समें प्रभु; अंति: केरी सार करीज्ये, गाथा-६. ७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २७अ-२७आ, वि. १७५४, पठ. श्राव. वृंदावनदास शेठ. रुचिर, मा.गु., पद्य, आदि: चरनकमल की आस प्रभुजी; अंति: पामें लील विलास, गाथा-५. ८. पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. २७अ-४०अ, पठ. श्रावि. ठकुराणी. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ९. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ४०आ-४९आ, पे.वि. पत्र ५० खाली है. ___प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४. १०. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ५१अ-५५आ. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. ११. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, पृ. ५५आ. आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पासं; अंति: भवे भवे पासजिणचंद, गाथा-५. १२. पे. नाम. जीवकाया सज्झाय, पृ. ५६अ, पे.वि. पत्र ५६आ खाली है. मु. रंगविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम तणो मुझ ओपरइं; अंति: विमल० चासो दीन दयाल, गाथा-७. १३. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. ५७अ, पे.वि. पत्र ५७आ खाली है. ऋ. भीमजी-शिष्य, रा., पद्य, आदि: पद्मप्रभु जिनराजसुं; अंति: नामि सुख थाय हो, गाथा-५. १४. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ५८अ, पे.वि. पत्र ५८आ खाली है. ऋ. भीमजी-शिष्य, रा., पद्य, आदि: अजित जिणेसर सांभलो; अंति: भवि तुम्हचो सेवोरे, गाथा-५. १५. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ५९अ-६३आ. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. १६. पे. नाम. जिनवर विनती, पृ. ६४आ-६५अ, पे.वि. पत्र ६४अखाली है. आत्महितविनंति छंद, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पाय लागी करूं; अंति: सामी सदा सुख देस्ये, गाथा-१०. १७. पे. नाम. साधु वंदना, पृ. ६७अ-७५आ, पे.वि. पत्र ६५आ से ६६आ तक खाली है. For Private And Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: मनि आणंदई संथुआ, ढाल-७, गाथा-९१. १८. पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. ७५आ. मा.गु., पद्य, आदि: सरिसूरां का नाखीयइ; अंति: अवरसुं बोलि न बोलइ, गाथा-३. १९. पे. नाम. सामायकपारवानी विधि, पृ. ७६अ-७६आ. आवश्यकसूत्र-सामायिक पारने की विधि, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम खमासमण देई; अंति: जुत्तो ए गाथा कहेवी. २०. पे. नाम. सामायक लेवानी विधि, पृ. ७७अ-७७आ. आवश्यकसूत्र-सामायिक लेनेकी विधि, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम वस्त्र उतारी; अंति: पछे ध्यान स्मरण करे. २१. पे. नाम. गोवींद बारमासी, पृ. ७८अ-७८आ. गोविंद बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: सखी चैत्र महीनि अंति: आण मिलाई हो लाल, गाथा-१५. १४९९३. भक्तामर स्तोत्र व रघुवंश काव्य सह टीका, संपूर्ण, वि. १८७६-१८७९, श्रेष्ठ, पृ. ३६+३६(१ से ३६)=७२, कुल पे. ३, ले.स्थल. जालणापुर, प्रले. मु. चतुरभुज (खरतरबृ.आचार्यग.), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४१५.५, १२-१८x२४-३०). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, पृ. १अ-३६आ, वि. १८७९, आषाढ़ कृष्ण, १०, शुक्रवार, प्र.ले.श्लो. (२९५) जाण बुज मैं ना लिख्यौ. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४+४. भक्तामर स्तोत्र-टीका, मु. रायमल्ल ब्रह्म, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीवर्द्धमानं; अंति: नत्वा श्रुतादिकं. २. पे. नाम. रघुवंश - सर्ग २ से ३, पृ. १अ-१३आ, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. रघुवंश, कालिदास, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. रघुवंश सह संजीवनी टीका - सर्ग २, पृ. १४अ-३७आ, श. १७४१, पौष शुक्ल, ६, बुधवार, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है.कुल ग्रं. श्लोक-७५. रघुवंश, कालिदास, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. रघुवंश-संजीवनी टीका, कोलाचल मल्लिनाथसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १४९९७. (+) अनंतव्रत पूजन, अपूर्ण, वि. १९०८, माघ कृष्ण, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, पू.वि. श्रीअनंतनाथ पूजा तक हैं., प्रले. चिमनलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४१६.५, १२४३४). अनंतव्रत पूजन, मु. ब्रह्मशांतिदास, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: भाद्रपद सितैकादश्याम; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १४९९९. सिद्धहेमशब्दानुशासन की लघुटुंढिकावृत्ति- अध्याय ६,७, प्रतिपूर्ण, वि. १९६१, श्रेष्ठ, पृ. ८८, प्र.वि. जैदे., (२९.५४१६.५, १३४४८-५२). For Private And Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org सिद्धहेमशब्दानुशासन- लघुटुंढिकावृत्ति, आ. मुनिशेखरसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमन्; अंतिः च सामर्थ्यमित्यर्थः, अध्याय ७, ग्रं. ३६७५, प्रतिपूर्ण. १५००१. (+) करुणावज्जायुध नाटक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे., (२९.५x१६, १४४५०-५४). १५००४. करुणावज्रायुध नाटक, क. बालचंद्र, सं., पद्य, आदिः देवः पायादपायात्; अंतिः परा वाचः कवीनामपि, लोक-१३६. १५००२. बारसासूत्र, संपूर्ण, वि. १९३७, कार्तिक कृष्ण, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३९, ले. स्थल. मलकापुर, प्रले. मु. गुलाबचंद ( गुरु पं. हेमचंद); लिख. क्र. रुघनाथदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. सुपार्श्वनाथ प्रशादात्., प्र. ले. श्लो. (५७८) यासं पुस्तकं द्रष्ड्डा, जैवे. (२८.५४१६ १३४४२). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पदमं; अंति: उवदंसेइ ति बेमि, व्याख्यान ९, सूत्र- १२५०. १५००३. (+) सिद्धहेमशब्दानुशासन सह चंद्रप्रभा प्रक्रिया प्रथमवृत्ति, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६४, प्र. वि. संशोधित., जैवे., (२८.५x१५, १६४४५). " (+) सिद्धमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य वि. ११९३, आदि: अहं सिद्धिः स्याद; " अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २१x६३-६७). सिद्धहेमशब्दानुशासन- चंद्रप्रभा प्रक्रिया, उपा. मेघविजय, सं., गद्य, वि. १७५७, आदि: प्रणम्य श्रीमदर्हतं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण रत्नावकरावतारिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२९.५X१५.५, १५००७. जीवविचार सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. लक्ष्मणापुर, प्रले. मु. ईश्वरचंद्र पठ. श्राव. पन्नालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१३.५, ५x२७). १८३ प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार- स्याद्वादरत्नाकर टीका की रत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः सिद्धये वर्द्धमान; अंति: ( - ), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुवसमुद्दाओ, गाथा - ५१. जीवविचार प्रकरण टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अहं कहिये में अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. गाथा १७ तक बार्थ है) १५०१०. रत्नसारकुमार कथा, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २६, प्र. वि. पत्र के दोनो और नंबर है., जैवे., (२९x१५.५, १४५४६-४७). For Private And Personal Use Only रत्नसारकुमार कथा, मा.गु., गद्य, आदि: संपत्तिना मोटा निवास अंति: (), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५०१४. व्रतउच्चार विधि संग्रह, छिंक विचार व स्थापनापरीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९६५, भाद्रपद कृष्ण, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुलपे, ४, ले. स्थल, विसन्नगर, प्र. वि. अंत में कोई अन्य उच्चारविधि में किस प्रकार नाम बदलकर वह विधि करें उसकी पद्धति दी गयी है, जैदे. (२९४१५, १५X४२-४४). Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८४ www.kobatirth.org १. पे. नाम. व्रतोच्चार विधि संग्रह, पृ. १आ-८अ. प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: महोत्सवपुर्वका नालिक; अंति: विधि विस्तारे छे. २. पे. नाम. छींक विचार, पृ. ८अ. मा.गु., सं., गद्य, आदि: पाखी पडिकमणा करता; अंति: संघ मलीने पूजा भणावे. ३. पे. नाम. स्थापनापरीक्षा विधि, प्र. ८अ ८आ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभद्रबाहुस्वामी; अंतिः लाई हाथी बांधाई. ४. पे. नाम. वीशस्थानक तप उचराववानी विधि, पृ. ८- ९अ. २० स्थानकतप उच्चारविधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: चोथा व्रतनी विधिमां; अंतिः दुक्कडं कहेवु. १५०१५. अंजनासती रास, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३० - १ (२४) २९, जैदे., (२७.५x१४.५, १२-१४x२४-३२). अंजनासुंदरी रास, क. महानंद, मा.गु., पद्य, वि. १६६०, आदि : आदिजिनवर आदिजिनवर; अंति: जगमाहि जेहना रे, पूर्ण. १५०१८. जैनेंद्रव्याकरण सह टीका आख्यातप्रकरण, प्रतिअपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे., (२८.५४१५.५, १६४४४). जैनेंद्र व्याकरण, आ. देवनंदी, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, जैनेंद्र व्याकरण- टीका, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १५०२१. (+) चैत्यवंदन चौवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैवे., (३०x१५, १२x४९). १. पे नाम. स्तुतिचतुर्विंशतिका, पृ. १अ ५आ. वा. क्षमाकल्याण, सं., पद्म, वि. १८०९-१८४९, आदि: सद्भक्त्या नतमौलि; अंतिः मम चिराय संपाद्यताम्, स्तुति - २४, श्लोक - ७२. २. पे. नाम. जैन श्लोक, पृ. ५आ. सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: ( अपठनीय) श्लोक-१. १५०२७. पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२८x१४, १३X३८). पद्मावती स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ अस्य श्रीमंत्रराज; अंति: क्षमस्तु परमेश्वरि, श्लोक-४०. १५०२८. व्यवहारसूत्र वचनिका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२ - १ (२१* )= २१, जैदे., (२७.५X१३.५, १३X२०-४१). व्यवहारसूत्र - वचनिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जे साथ अथवा साध्वी; अंतिः नि० मोटो लाभ है, उद्देशक १०. १५०३०. (+) सिद्धहेमशब्दानुशासन सह स्वोपज्ञलघुवृत्ति व लघुवृत्ति की अवचूरि- अध्याय १ से ७, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७२+३९(१ से ३९)= १११, प्र. वि. प्रत्येक पत्र पर अध्याय व पादसूचक अंक दिये गये हैं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (३०.५X१४, १४-१५x५०-५८). 2 For Private And Personal Use Only सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: (१) अह सिद्धिः स्याद, (२) प्रणम्य परमात्मानं; अंतिः समर्थः पदविधिः, अध्याय-७, ग्रं. २१००. Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १८५ सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: अर्हमित्येतदक्षरं; अंति: वपेक्षैव सामर्थ्यम्. सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति की अवचूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), ग्रं. १७०० १५०३५. (+) तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, पृ.वि. अंतिम फलश्रुति गाथा नहीं है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ.. जैदे.. (२८x१३.५. ९४४०-५४). तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., आदि: निजरिय जरामरणं; अंति: मुच्चह सव्वदुक्खाणं. तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याणवल्ली नतिथार; अंति: सर्वदुख थकी मुकाइ. १५०४४. अनेकांतवादप्रवेश प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२९.५४१४, १६४५२-५४). अनेकांतवादप्रवेश, आ. हरिभद्रसूरि, सं., प+ग., आदि: जयति विनिर्जितरागः; अंति: एव रागद्वेषाभावः, ग्रं. ७२०. १५०४८.(+) तत्वार्थसूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१५, ३४३२). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदि: सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: बहुत्वत्तः साध्याः, अध्याय-१०. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: (१)सम्यग्दर्शन सम्यग, (२)तीनकाल भूत भविष्यत: अंति: (१)तै जानने ऐसै जानना, (२)गति के दुखनि तै छूटै. १५०५०. (+#) नवपद चैत्यवंदन स्तवन स्तुतिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९१८, आश्विन शुक्ल, १२, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मु. अबीरचंद जती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पठनार्थे के नामवाला भाग फटे होने से अज्ञात है., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२४४१४, १४४४२-४४). नवपद चैत्यवंदन स्तवन स्तुति संग्रह, मु. अबीरचंद जती, मा.गु., पद्य, वि. १९१७, आदि: जयजय श्रीअरिहंतदेव; अंति: भववनमें ते नवि भमें, अध्याय-९+९+९. १५०५१. त्रीसचोवीसीजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०७, कार्तिक शुक्ल, १५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. ध्रांगधरानगर, प्रले. हरिमुलजी सेवक; पठ. श्राव. जीवा रुपा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२९x१४.५, १२४३१-३५). ३० चोवीसीजिन स्तवनसंग्रह, वा. सुजयसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर चरण कमल; अंति: लिखित निज मनि आणीइं, स्तवन-३०. १५०५५. योगशास्त्र सह स्वोपज्ञटीका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १०४-६(१,२७ से २८,१०० से १०२)=९८, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्रकाश-१ से प्रकाश-३ महाश्रावककर्त्तव्य तक है., प्र.वि. प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., (३०.५४१३, १९४५६-५९). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १५०५८. रूपसेनकुमार रास, संपूर्ण, वि. १८७९, माघ कृष्ण, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले.स्थल. पुरणानगर, प्रले. ग. पद्मविजय (गुरु पं. हस्तिविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (६७५) लखणहार अति चतुरहें, जैदे., (२९x१३.५, १३-१५४४७). रूपसेनकुमार रास-दानविषये, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७८, आदि: विश्वविधाता विरजी; अंति: घरी घरी कोड कल्याण, ढाल-३६. For Private And Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५०५९. (+-) स्तुतिचतुर्विंशतिका सह स्वोपज्ञअवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ-त्रिपाठ., जैदे., (२८.५४१३.५, १-५४४९-५२). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. सिद्धांतसार, सं., पद्य, आदि: अभिनवनुतिमार्ग त्वा; अंति: दसदयान भास्वद्रम, श्लोक-९६. स्तुतिचतुर्विंशतिका-स्वोपज्ञ टीका, मु. सिद्धांतसार, सं., गद्य, वि. १५७०, आदि: अनंतचिन्मयं मुक्तं; अंति: इमा स्तुतिरकरोत्. १५०६०.(+) आप्तमीमांसा सह अष्टशतीभाष्य की अष्टसहस्री टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४८+३(२२ से २४)=१५१, पू.वि. टीका-१० परिच्छेद तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३०x१४, १४-१६४५४-५७). आप्तमीमांसा, आ. समंतभद्र, सं., पद्य, आदि: देवागमनभोयानचामरादि; अंति: नाना परे समुपासते. आप्तमीमांसा-अष्टशतीभाष्य की अष्टसहस्रीटीका, आ. विद्यानंदस्वामी, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानमभि; अंति: स्याद्वादमार्गाग्रणी. आप्तमीमांसा की अष्टशतीभाष्यटीका का टिप्पण, सं., पद्य, आदि: विद्यानंदसूरिणा ननु; अंति: (-). १५०६१.(+) तत्त्वार्थसूत्र सह भाष्य व टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६२, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, (१२२) जब लग मेरु स्थिर रहें, जैदे., (२९.५४१४, १५४४५-४७). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदि: (१)सम्यग्दर्शनशुद्धं, (२)सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: (१)चिरेण परमार्थम्, (२)बहुत्वत्तः साध्याः, अध्याय-१०, सूत्र-१९८. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-स्वोपज्ञ भाष्य, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: सम्यग्दर्शनं सम्यग; अंति: चिरेण परमार्थम, अध्याय-१०, ग्रं. २२००. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-टीका #, ग. सिद्धसेन, सं., गद्य, आदि: (१)जैनेंद्रशासनसमुद्रम, (२)इदमाद्यमनवयं; अंति: (१)च द्वाविंशतिशतानि वै, (२)मचिरेण प्राप्स्यतीति, ग्रं. १८२८२. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-संबंधकारिका आदि, संबद्ध, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदि: सम्यग्दर्शनशुद्ध; अंति: मार्ग प्रवक्षामि, श्लोक-३१. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-आद्य संबंधकारिका की टीका , आ. देवगुप्तसूरि, सं., गद्य, आदि: (१)वीरं प्रणम्य सर्वज्ञ, (२)सम्यगर्हत्प्रवचनम; अंति: धर्मार्थिना मता, ग्रं. १८२८२. १५०६२. सिद्धहेमशब्दानुशासन सह स्वोपज्ञ बृहद्वृत्ति-अध्याय १-७, संपूर्ण, वि. १९४७, पौष कृष्ण, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६१०, ले.स्थल. हालार-जामनगर, प्रले. मु. चारित्रविजय; पठ. जटाशंकर मदनजी कंडोलिया; लिख. मु. अमीविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रत्येक पत्र पर अध्याय व पादसूचक अंक दिये गये हैं., जैदे., (३०x१३.५, १३४३९-४०). सिद्धहमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: (१)अहँसिद्धिः स्याद, (२)प्रणम्य परमात्मानं; अंति: समर्थः पदविधिः, अध्याय-७. सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: प्रवृत्तिरिति. १५०६३. मुहूर्त्तमुक्तावली सह टबार्थ व ज्योतिषश्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. पं. चेनकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२९.५४१३, ७४३९-४३). १. पे. नाम. मुहूर्तमुक्तावली सह टबार्थ, पृ. १अ-६आ. For Private And Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १८७ मुहर्तमुक्तावली, आ. परमहंस परिव्राजक, सं., पद्य, आदि: श्रीशं श्रीहरशारदां; अंति: विधि प्रकरोति पुंसां, श्लोक-४९. मुहर्तमुक्तावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथं; अंति: औषधीरोपणं रोपवं. २. पे. नाम. ज्योतिषसंग्रह", पृ. ६आ. __ ज्योतिष संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), अज्ञात-२. १५०६४. सिद्धहेमशब्दानुशासनप्रक्रिया सह स्वोपज्ञवृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८४-१(१०३)+१(३१६)=४८४, पू.वि. आख्यातप्रक्रिया के कुछ अंश तक है., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२९.५४१३, ११४४५-४७). सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमलघुप्रक्रिया, उपा. विनयविजय,सं., गद्य, वि. १७१०, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; ___ अंति: (-), अपूर्ण. सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमलघुप्रक्रिया की स्वोपज्ञ हैमप्रकाश वृत्ति, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १७१०-१८००, आदि: प्रणम्य पार्श्व; अंति: (-), अपूर्ण. १५०६९. भरतबाहुबली काव्य, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२२, जैदे., (२८x१२.५, ७४३९-४४). भरतबाहुबली महाकाव्य, ग. पुण्यकुशल, सं., पद्य, वि. १६५९, आदि: अथार्षभिर्भारतभूभुजा; अंति: सति कीर्तिरनुत्तराभा, सर्ग-१८. १५०७०. तत्त्वार्थसूत्र सह भाष्य व टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७५-१(२३९)+२(६३,२३०)=२७६, कुल पे. २, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्रांक-२३८ और २३९ दोनो एक साथ है., दे., (२६.५४१३, ११४३७-३९). १. पे. नाम. तत्त्वार्थसूत्र-संबद्धकारिका सह टीका, पृ. १आ-१९आ. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-संबंधकारिका आदि, संबद्ध, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदि: सम्यग्दर्शनशुद्ध; अंति: मार्ग प्रवक्षामि, श्लोक-३१. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-आद्य संबंधकारिका की टीका, आ. देवगुप्तसूरि, सं., गद्य, आदिः (१)वीरं प्रणम्य सर्वज्ञ, ___ (२)सम्यगर्हत्प्रवचनम; अंति: धर्मार्थिना मता. २. पे. नाम. तत्त्वार्थसूत्र सह भाष्य व सिद्धसेनीया टीका, पृ. १९आ-२७५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदि: सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: (-), अपूर्ण. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-स्वोपज्ञ भाष्य, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: सम्यग्दर्शनं सम्यग; अंति: (-), अपूर्ण. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-टीका #, ग. सिद्धसेन, सं., गद्य, आदि: जैनेंद्रशासनसमुद्रम; अंति: (-), अपूर्ण. १५०७१. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८२८, श्रावण शुक्ल, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २३१, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. ग. आणंदविजय (गुरु ग. हर्षविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. व्याख्यान का किंचित् पाठ मारुगुर्जर भाषा में लिखा है. शुरुआत के कुछ ही पत्रों में टबार्थ है., जैदे., (२७.५४१४.५, ६-११४३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२००. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानं जिन; अंति: (-). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, सं., गद्य, आदि: अयं पंचमाआरका साधवो; अंति: (-). For Private And Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५०७२. (+) अनेकांतजयपताकाटीका, अपूर्ण, वि. १९६१, श्रेष्ठ, पृ. २१५-२१ (९,५१ से ७०) + १ (४) = १९५, प्रले. लाला बटुकप्रसाद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखक ने यशोविजयजी संस्कृत पाठशाला के लिये यह प्रति लिखी है मुनि धर्मविजय के आदेश से., दे., (२८.५X१४.५, १३x४८-४९). अनेकांतजयपताका- स्वोपज्ञ टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: स्वपरोपकृतये अनेकांत; अंति: (१)वाग्देवतायै भगवत्यै, (२) ग्रंथकारत्वमागता, ग्रं. ८६५०, अपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५०७३. तत्त्वार्थधिगमसूत्र सह भाष्य व टीका, अपूर्ण, वि. १७९३, मार्गशीर्ष शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ. ७१३-१२६ (१ से ७९,८८ से १३४)-५८७, पू.वि. अध्याय १ के १ से १४ व १९ से ३५ सूत्र नहीं है., प्रले. मु. ज्ञानसागर (गुरु आ. विद्यासागरसूरि, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. जैदे., ( २८x१४, १३X३१-३३). तत्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति सं., पद्य, आदि: (-); अंतिः चिरेण परमार्थम्, अध्याय- १०, सूत्र- १९८, अपूर्ण. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र- स्वोपज्ञ भाष्य, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: चिरेण परमार्थम्, अध्याय- १०, ग्रं. २२००, अपूर्ण. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र - टीका #, ग. सिद्धसेन, सं., गद्य, आदि: ( - ); अंति: (१) च द्वाविंशतिशतानि वै, (२) मचिरेण प्राप्स्यतीति ग्रं. १८२८२, अपूर्ण. १५०७४. रघुवंश रास, संपूर्ण, वि. १८६१, कार्तिक शुक्ल, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १४८, लिख. पं. हीरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैवे. (२७४१२.५, १५X४२-४५). ラ ढालमंजरी, मु. सुज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, बि. १८२२, आदि: मंगल सहजानंद सुख; अंति: (१)मुक्ति रमणी ते वरे, (२) राम निर्वाण गमनौ नाम, खंड-६, ग्रं. ५८६९. १५०७५. (+) सिद्धहेमशब्दानुशासन की चंद्रप्रभा प्रक्रिया, अपूर्ण, वि. १९५२, वैशाख शुक्ल, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २११-८१ (१ से ८१ ) = १३०, पू. वि. प्रथमावृत्ति नहीं है, ले. स्थल, जामनगर, प्रले, जटाशंकर मदनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५X१३.५, १३३३-३८). सिद्धहेमशब्दानुशासन- चंद्रप्रभा प्रक्रिया, उपा. मेघविजय, सं., गद्य वि. १७५७, आदि: (-); , अंतिः लक्षणान्वितयाश्रये, अपूर्ण. १५०७६. (+) नवस्मरण व लघुशांति स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६५+१ (२३) = ६६, कुल पे. २, ले. स्थल. पाटणनगर, पठ. मु. नेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. शांतिनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२८.५x१२.५, ३-४X३०-३३). १. पे. नाम. नवस्मरण सह टबार्थ, पृ. १आ - ६५आ. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: निब्धंतं निच्चमच्चेह, स्मरण - ९. नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हो अढार दोष; अंति: एहनइ पुजो वांदो. २. पे. नाम. लघुशांति स्तोत्र सह टवार्थ, पृ. ४५ अ-४८अ. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: जैनं जयति शासनम्, गाथा - १९. For Private And Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org १८९ लघुशांति-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशांतिनाथ शांतिनु अंतिः जिनेसर भगवंत तीर्थकर, (वि. 'सर्वमंगल' नामक अंतिम गाथा का टबार्थ नहीं लिखा है . ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५०७७. शतार्थ सह विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४७, प्र. वि. प्रतिलेखन वर्ष हेतु मात्र संमत १९' इस प्रकार लिखा हुआ है, लिपि देखने से प्रति सं. १८१९ सही वर्ष हो सकता है. वोरा गेला गणेश ने इस प्रति को पाटडी में मुनि धर्मविजयजी को वहोरायी., जैवे., (२८.५४१३.५, १५४३६-४२). योगशास्त्र - हिस्सा परिग्रहारंभ श्लोक, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः परिग्रहारंभमप्रा; अंति: मीश्वरीकर्तुमीश्वरः, श्लोक - १. योगशास्त्र - हिस्सा परिग्रहारंभ श्लोक का शतार्थ विवरण, ग. मानसागर, सं., गद्य, वि. १७वी, आदि: (१) प्रणम्य परमप्रीत्या, (२) हंभारंभे गोरिति नाम; अंति: (१) कथमिति संभवे व्ययः, (२) शतार्थीमिमाममलाम्. १५०७८. इर्यापचिकाषड्विंशिकासूत्र सह स्वोपज्ञवृत्ति, संपूर्ण, वि. १९६६, भाद्रपद कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्रले, अरजनदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कहीं-कहीं मूलपाठ नहीं हैं., त्रिपाठ, जैदे., (२७.५x१२.५, १-३४४८-४९). ईयांपधिकषट्त्रिंशिका कुलक, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पच, आदि: पणमिअ जिणवर वीरं; अंतिः सिरिहीरविजय जुगपवरा, गाथा - ३६. ईयापथिकषट्त्रिंशिका कुलक-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्यात्मविदं वीरं; अंति: (१) धर्मधियेति, (२) सुनिश्चिताः, ग्रं. ७४७. १५०८०. (*) पंचसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९, प्र. वि. प्रतिलेखक रिद्धिकरण जोसी होना चाहिए, कारण कि इसी प्रत के समान ही प्रत नं. १५०८२ में उक्त लहिये के नाम आदि का उल्लेख है, संशोधित त्रिपाठ, जैदे., (२७.५५१२.५, २-४X४३-४४). - पंचसूत्र, आ. चिरंतनाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो वीतरागाणं सव्ब, अंति: निस्सेअ अससाहिगति, सूत्र ५. पंचसूत्र- टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (१) सत्वाः सुखिनः संतु, (२) वसीत्यधिकानि, ग्रं. ८८०. १५०८२. (+) पंचसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९५१, भाद्रपद कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३९, ले. स्थल. नागौर, प्रले. रीद्धीकरण जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें क्रियापद संकेत-संशोधित त्रिपाठ, जैदे., (२७.५x१२.५, २-४X४०-४१). पंचसूत्र, आ. चिरंतनाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो वीतरागाणं सव्व; अंतिः निस्सेअ अससाहिगत्ति, सूत्र -५. पंचसूत्र- टीका, आ. हरिभद्रसूरि सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं अंति: (१) सत्वाः सुखिनः संतु, (२) वसीत्यधिकानि, ग्रं. ८८०. १५०८३. गुरुतत्त्वप्रदीप, संपूर्ण, वि. १९७०, खमुनिग्रहविध्वब्द, माघ शुक्ल, १२, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल, सुभटनगर, प्रले. बालाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका पद्यबद्ध है, प्रायः शुद्ध पाठ., जैवे., (२७४१२.५, १३X५२-५३ ). गुरुतत्त्वप्रदीप, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरम; अंतिः तन्मिथ्यादुः कृतं मम, विश्राम ८. १५०८४. सनतकुमारचक्रवर्ति चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, जैदे., (२७.५x१३, १४४४५-४७), For Private And Personal Use Only सनत्कुमारचक्रवर्ति चौपाई, मु. कीर्तिहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १५५१, आदि: स्वामी जीरापुल्लि; अंतिः नरनारी अफल्या फलइ, गाथा- २३३. Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५०८५. आत्मप्रबोध सवैया, संपूर्ण, वि. १९४०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३५-३६). औपदेशिक सवैया, मु. चिदानंदजी, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार अगम अपार प्रवचन; अंति: नरभव लाहो लीजीयो, गाथा-४४. १५०८८. (+) वीसस्थानक स्तवन-पूजा, संपूर्ण, वि. १८८०, वैशाख शुक्ल, ६, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. कास्मीरपुरनगर, प्रले. पं. सुमतीसोम गणि (गुरु आ. आणंदविमलसोमसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१३.५, १३४३६-३७). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: सयल संघ मंगल करो, ढाल-२०. १५०८९. नवपद व सत्तरभेदीपूजा, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रावण कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १३, कल पे. २. प्रले. पं. लालविजय. प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१३.५, १४४२९-३१). १. पे. नाम. नवपद लघु पूजा, पृ. १अ-७आ. आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: सिद्धि शर्माणि वीर, ढाल-९. २. पे. नाम. १७ भेदी पूजा, पृ. ७आ-१३आ. उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत मुखकज वासिनी; अंति: मूनिसर० संथूणीओ रे, ढाल-१७. १५०९१. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. जामनगर, प्रले. य. खुबचंद्र; पठ. मु. चारित्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१३.५,१५४४०-४१). सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिब; अंति: शास्त्र मर्यादा भणी, ढाल-१७, गाथा-३५३. १५०९२. इलाचीकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६६, आश्विन कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. अरणोदग्राम, प्रले. पंन्या. चतुरविजय (गुरु पंडित. धनविजय, आणंदसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१३, १८४४१). इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकलसिद्धदायक सदा; अंति: घर संपति बहु पावे छे, ढाल-१६, ग्रं. २६७. १५०९३. साधु वंदना, अपूर्ण, वि. १८९९, श्रावण शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १५-१०(१ से १०)=५, ले.स्थल. मेडतानगर, प्रले. अखयचंद्र; पठ. सा. रामा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३, १३४४०). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिसहजिण पमुह; अंति: मन आणंद संथुण्या, ढाल-७, गाथा-८८. १५०९४. महावीरजिन स्तवन का बालावबोध, पूर्ण, वि. १८४९, ज्येष्ठ कृष्ण, ३०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २२-१(१)=२१, जैदे., (२९x१३, १८४५२-५५). महावीरजिन स्तवन-समकितविचारगर्भित-स्वोपज्ञ बालावबोध, मु. न्यायसागर, मा.गु., गद्य, वि. १७७४, आदिः (-); अंति: रूपकारपरैर्महामतिभिः, पूर्ण. १५०९५. पंचाख्यान भाषा, संपूर्ण, वि. १८४८, पौष कृष्ण, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदे., (२७.५४१३, १७४५२-६८). पंचाख्यान भाषा, श्राव. निरमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जपौं अरिहंत; अंति: श्रावक निरमल नाम, संधि-५. For Private And Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १९१ १५०९६. वस्तुपालतेजपालचरित्र, संपूर्ण, वि. १९५७, वैशाख कृष्ण, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले.स्थल. अणहिल्लपत्तन, प्रले. पं. हिम्मतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१३, १५४५६-६१). वसंतविलास महाकाव्य, आ. बालचंद्रसूरि सिद्धसारस्वत, सं., पद्य, आदि: श्रीकांतनाभिप्रभवानन; अंति: (१)गिरा पौरोगवस्तादृशः, (२)नुर्द्धनानः पुनाति, सर्ग-१४, ग्रं. १५१६. १५०९७. स्तवन संग्रह, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, जैदे., (२६४१३.५, १६४३५-३६). १. पे. नाम. चंद्रप्रभुजिन स्तवन, पृ. १अ. ऋ. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १९७८, आदि: जगनायक जगपति जिनराया; अंति: रामचंद वंदै पाया रे, गाथा-१०. २. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १आ-९आ, पू.वि. पार्श्वजिन स्तवन-२३ लिखा है. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १५०९८. सीमंधरजिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, प्र.वि. जैदे., (२७७१३, ४-५४२७-२८). सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५. सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, आदि: हे श्रीसीमधरस्वामी; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५०९९. चोमासाना देववंदन, संपूर्ण, वि. १९१६, भाद्रपद कृष्ण, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२८.५४१३, १२४३४-३८). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: पास सामलनु चेई रे. १५१०१. योगशत सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२९४१३, ९-१०४३०-३४). योगशतक, धन्वंतरी, सं., पद्य, आदि: कृत्नस्य तंत्रस्य; अंति: देहे तेषां हि लक्षणं, गाथा-११४. योगशतक-टीका, मु. पूर्णसेन, सं., गद्य, आदि: (१)श्रीवर्धमानं प्रणिपत, (२)कृत्यस्येति० कृत्स्न; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. श्लोक-८८ तक है.) १५१०२. आलोयणा विचार, संपूर्ण, वि. १९०१, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२८x१३, १६-१७४४८-४९). श्रावक आलोयणा विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम मुहूर्तं; अंति: पणन्नवियडस्स पछिन्न. १५१०३. अनेकांतजयपताकावृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदे., (२८x१३, १५४३८-४०). अनेकांतजयपताका-उद्योतदीपिका टीका, आ. मनिचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: शेषमतिमतिशयाना; ___ अंति: हितं तद्युतत्वेनेति, ग्रं. १६५०. १५१०४. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९०७, श्रावण कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. हरीमाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, जैदे., (२८x१३.५, १-२४४०-४६). २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १६५२, आदि: ऋषभनम्रसुरासुरशेखर; अंति: जरसा रहितं पदम्, श्लोक-२९, ग्रं. ४४. २४ जिन स्तुति-टीका, ग. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: प्रणम्य परया भक्त्या; अंति: श्लोकैरधिका समजायत, ग्रं. ४५७. For Private And Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५१०५. ८) ज्योतिससार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४२, चैत्र कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३९, ले.स्थल. वढवाण, लिख. श्राव. माणकचंद अमावीदास पारेख; प्रले. नारणजी जेष्ठाराम उपाध्याय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७.५४१४, ५४३७-४३). ज्योतिषसार, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: लग्नं लग्नपतिर्बलान; अंति: यत्नेन परिवर्जयेत्, श्लोक-३३४. ज्योतिषसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लग्नरौ स्वामी लग्न; अंति: यत्नै करि वर्जीजैइ. १५१०६. (+) उदयदीपिका, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३+४(१ से ४)=१७, पृ.वि. पहले क्रम का पत्रांक ४ था प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७७१३.५, १६४४८-५६). उदयदीपिका, उपा. मेघविजय, सं., गद्य, आदि: नत्वाहँतं पार्श्व; अंति: भूयादुदयदीपिका, प्रकरण-१२, पूर्ण. १५१०८. जीवविचार प्रकरण सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. रामलाल ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३.५, ४४२६-२८). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवण क० स्वर्गमृत्यु; अंति: क० श्रुतसमुद्रथकी, ग्रं. २५०. १५११०. प्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह, प्रतिक्रमणआदिविधिसंग्रह व चैत्यवंदन, स्तवन, थोय, सजाय, छंदआदि, संपूर्ण, वि. १९३३, श्रेष्ठ, पृ. २४, कुल पे. १०, ले.स्थल. पाटण, पठ. संतोकबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१४, ११-१२x२९-३१). १. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, पृ. १आ-१५आ. संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: जीव कहे भवसायर तरूं. २. पे. नाम. महावीरजिन छंद, पृ. १५-१६आ. महावीरजिन स्तोत्र-प्रभाती, म. विवेक, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो वीरने चित्तमां; अंति: में प्रभु दर्श तेरो, गाथा-१५. ३. पे. नाम. गणधर स्तवन, पृ. १६आ-१७अ. ११ गणधर छंद, मु. रतनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एकादश गणधरनां नाम; अंति: रतनविजय वंदे निशदिश, गाथा-५. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १७अ. ___ उपा. विनयविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीसीमधर वीतराग; अंति: विनय धरे तुम ध्यान, गाथा-३. ५. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १७अ-१७आ. उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुक्खलवइ विजया जयो; अंति: रे भयभंजण भगवंत, गाथा-७. ६. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १७आ. ___ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर जिनवर सुखकर; अंति: ज्ञानविमल गुणखाणी, गाथा-१. ७. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १८अ. मा.गु., पद्य, आदि: शजय सिद्ध; अंति: जिनवर करुं प्रणाम, गाथा-३. ८. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १८अ. For Private And Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १९३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: विमलाचल नित वंदीये; अंति: लहे ते नर चिर नंदे, गाथा-५. ९.पे. नाम. सिद्धाचलजीनी थोय, पृ. १८अ-१८आ. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरगिरी महीमा आगम; अंति: कर्म विपातक छोड, गाथा-१. १०. पे. नाम. प्रतिक्रमणादि विधिसंग्रह-तपागच्छीय, पृ. १८आ-२४अ. प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १५१११. सूरिमंत्रकल्प, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. चौथी पीठिका विधि अधूरी है., जैदे., (२८x१३.५, १६४५०). सूरिमंत्रबृहत्कल्प विवरण, आ. जिनप्रभसूरि, सं., प+ग., आदि: अहँ बीजं नमस्कृत्य; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५११५. जैनकुमारसंभवकाव्य, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदे., (२७.५४१४, १३४३२-३५). जैन कुमारसंभव, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, आदि: अस्त्युत्तरस्यां; अंति: महाकाव्येयमेकादशः, सर्ग-११, ग्रं. १२२५. १५११७. हैमविभ्रम सह वृत्तिव हैमविभ्रम मूल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, कुल पे. २,प्र.वि. त्रिपाठ., प्र.ले.श्लो. (६८२) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२८x१४, १०४३५-३८). १. पे. नाम. हैमविभ्रम सह तत्त्वप्रकाशिका टीका, पृ. १आ-२६आ. हैमविभ्रम, सं., पद्य, आदि: कस्य धातोस्तिवादीनाम; अंति: चान्यदक्षेवयममीवयम, श्लोक-२१. हैमविभ्रम-तत्त्वप्रकाशिका टीका, आ. गुणचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १२००, आदि: निखिलजगदेकशरणं; अंति: जयति स्थिरायाम्. २. पे. नाम. हैमविभ्रम, पृ. २६आ-२७आ. सं., पद्य, आदि: कस्य धातोस्तिवादीनाम; अंति: चात्यदक्षेपयममीवयं, श्लोक-२१. १५११८. ध्यानस्वरुप निरुपण प्रबंध, संपूर्ण, वि. १९७१, आषाढ़ शुक्ल, १५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्रले. मोरेश्वर लक्ष्मीनारायण शर्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१४, १२४२८-३०). ध्यानस्वरुपनिरुपण प्रबंध, मु. भावविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि: सकल जिणेसर पाय वंदे; अंति: मुगति सुख सरवर सेवो, ढाल-९, गाथा-१६३. १५१२१. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्रले. गौरीशंकर गोविंदजी भट्ट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२.५, १०-११४३०-४६). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १५९७, आदि: वर्द्धमानं जिनं; ___अंति: वर्द्धमान० सद्गुणैः. १५१२२. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७८, ज्येष्ठ कृष्ण, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. जेतपुर, प्रले. ऋ. बेचर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १०४३१). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भोगं च करोति. For Private And Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५१२३. समवसरण स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९३०, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. त्रिपाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तक दृष्टं, जैदे., (२६४१३, २४३४). समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलीवत्थं; अंति: कुणउ सुपयत्थं, गाथा-२४. समवसरण स्तव-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)ऐंद्रश्रेणि प्रणतं, (२)थुणिमोति ग्रंथकार; अंति: करो तीर्थंकर भगवान. १५१२५. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदे., (२३.५४१२.५, १०-११x१९-२१) पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. १५१२७. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९५४, ज्येष्ठ कृष्ण, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, पू.वि. १० अध्ययन + चूलिका, ले.स्थल. नागोर, जैदे., (२४४१३, १५४३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: कहणायवि आलणा संघे, अध्ययन-१०, चूलिका २. १५१२८. नवपद चैत्यवंदन, स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २७, जैदे., (२३.५४१३, १०x१४-१६). १.पे. नाम. अरिहंतपद स्तुति, पृ. १अ. नवपद चैत्यवदन, पा. हीरधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: जयजय श्रीअरिहंत भानु; अंति: रहित हीरधर्म अलिसंत, गाथा-३. २. पे. नाम. अरिहंतपद स्तवन, पृ. १अ-२अ. मु. कुशल, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीतेरम गुण बसिकै; अंति: आपोसा जगकुं नित सेव, गाथा-५. ३. पे. नाम. अरिहंतपद स्तुति, पृ. २अ. मा.गु., पद्य, आदि: सकल द्रव्य पर्याय; अंति: आराधो गुण भुरोजी, गाथा-१. ४. पे. नाम. सिद्धपद चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ. पा. हीरधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशैलेसी पूर्व; अंति: हीरधर्म० शुभ भाव, गाथा-३. ५. पे. नाम. सिद्धपद स्तवन. प. २आ-३आ ___ पंचकल्याणक स्तवन, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टवरस नगमा सहीये; अंति: जगजीव मिलोगा तेहमे, गाथा-५. ६. पे. नाम. सिद्धपद स्तुति, पृ. ३आ. मा.गु., पद्य, आदि: अष्ट करमकुं दमन करी; अंति: केवलग्यानी भासीजी, गाथा-१. ७. पे. नाम. आचार्यपद स्तुति, पृ. ३आ-४अ. आचार्यपद चैत्यवंदन, पा. हीरधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: जिनपद कुल मुखरस अनिल; अंति: धर्म अठोत्तरसो वार, गाथा-३. ८. पे. नाम. आचार्यपद स्तवन, पृ. ४अ-५अ. मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: खंती खडगथी जेणे; अंति: जीव कुशलता सेवो हो, गाथा-५. For Private And Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org ९. पे. नाम आचार्यपद स्तुति, पृ. ५अ. मा.गु., पद्य, आदि: पंचाचारकुं पालै; अंति: आचारज गुण ध्यानीजी, गाथा - १. १०. पे. नाम. उपाध्यायपद चैत्यवंदन, पृ. ५अ - ५आ. पा. हीरधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन श्रीउवज्झाय; अंति: हीरधर्म० पाठकवर्य, गाथा-३. ११. पे. नाम. उपाध्यायपद स्तवन, पृ. ५-६ आ. मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: हुबने हुयने हुयने; अंतिः चेतन कुशलता पाय, गाथा ५. १२. पे. नाम. उपाध्यायपद स्तुति, पृ. ६आ. मा.गु., पद्य, आदि: अंग इग्यारे चउदेपूरव; अंति: पाठक पूजो अविकारीजी, गाथा - १. १३. पे. नाम. साधुपद चैत्यवंदन, पृ. ६आ-७अ. पा. हीरधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: दंसण नाण चरित्त करी; अंति: मत है हीरधर्म के काज, गाथा - ३. १४. पे. नाम. साधुपद स्तवन, पृ. ७अ-७आ. मु. कुशल, मा.गु., पद्म, आदि निकषाया जगजन कहै; अंतिः कुसल भवतु जगती वहो, गाथा ५. १५. पे. नाम. साधुपद स्तुति, पृ. ७-८अ. मा.गु., पद्य, आदि: सुमति गुपति कर संजम; अंतिः दम पद गुण उपजावैजी, गाथा- १. १६. पे, नाम, दर्शनपद चैत्यवंदन, पृ. ८अ ८आ. पा. हीरधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: हुय पुग्गल परिअठ्ठ; अंति: अहनिश करत प्रणाम, गाथा - ३. १७. पे. नाम. दर्शनपद स्तवन, पृ. ८- ९अ. मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि देव श्रीजिनराज गुरु; अंति: जीव लाभ कुसल कलारी, गाथा ५. १८. पे. नाम. दर्शनपद स्तुति, पृ. ९अ. मा.गु., पद्य, आदि: जिनपन्नत तत्त सुधारस अंतिः भवसागरको तीरा जी, गाथा १. १९. पे. नाम. ज्ञानपद चैत्यवंदन, पृ. ९अ - ९आ. पा. हीरधर्म, पुहिं., पद्य, आदि: क्षिप्रादिक रस राम; अंति: नित चाहत अवकाश, गाथा-३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०. पे. नाम. ज्ञानपद स्तवन, पृ. ९आ-१०अ. मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर भाषित आगम भणिय; अंति: दिन कुसलता निरखे जी, गाथा ५. २१. पे. नाम. ज्ञानपद स्तुति, पृ. १०अ १०आ. मा.गु., पच, आदि: मति श्रुत इंद्रिय; अंतिः भविजनने सुखकारो जी, गाथा १. २२. पे नाम. चारित्रपद चैत्यवंदन, पू. १० आ-११अ. पा. हीरधर्म, पुहिं., पद्य, आदि: जस्स पसाये साहु पाय; अंति: नमन करत नितसंग, गाथा - ३. २३. पे. नाम. चारित्रपद स्तवन, पृ. ११अ - ११ आ. मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: निर्विकल्प अज; अंतिः कुशल भवतु अभिराम गाथा - ५. " २४. पे. नाम. चारित्रपद स्तुति, पृ. ११ आ. For Private And Personal Use Only १९५ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १९६ www.kobatirth.org मा.गु., पद्य, आदि: कर्म अपचय दूर खपावे; अंति: आतम गुण हितकारे जी, गाथा - १. २५. पे. नाम. तपपद चैत्यवंदन, पृ. ११-१२अ. पा. हीरधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभाविक तीर्थनाथ; अंतिः दूर भवतु भवकूप, गाथा- ३. २६. पे. नाम. तपपद स्तवन, पृ. १२अ -१३अ. पा. हीरधर्म, मा.गु., पद्य, आदि : बारस भेद भए जिनराजै; अंतिः पद कुशलाकुं भासै रै, गाथा - ५. २७. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. १३अ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची तपपद स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: इच्छारोधन तप ते; अंति: इश्वरसे मुख भाखीजी, गाथा - १. १५१२९. सरस्वती स्तोत्र, पूर्ण, वि. १८४७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (१) = ६, पू. वि, श्लोक १ से ५ नहीं है., प्रले. ऋ. कृष्ण (गुर्जर लुकागछ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रायः शुद्ध पाठ, जैदे., (२५४१२, ११४३७). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, मु. पद्मसुंदर, सं., पद्य, आदि (-); अंतिः पद्मसुंदर० तारावधिः, श्लोक ६२, पूर्ण. १५१३०. ज्योतिषसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४२, माघ शुक्ल, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५०, ले. स्थल. कासोलिनगर, प्रले. श्राव. मोतिलाल (कमलगच्छ-वृधशाखा.); पठ. श्राव. समर्थलाल (कमलगच्छ-वृधशाखा.), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५x१२.५, ५४३३-३५). For Private And Personal Use Only ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंतिः भवत्सिद्धिकरस्तदा श्लोक - ३४१. ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: केतां अरिहंत लक्ष्मी; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५१३१. जिनप्रतिमाचर्चा, स्वाध्याय आदि, अपूर्ण, वि. १९२६, श्रेष्ठ, पृ. ४०-९ (१,३,६,८,११ से १२,२४,२७ से २८) -३१, कुल पे. १३, जैवे., (२७४१२.५, १४४४२). १. पे नाम, देवसीयप्रतिक्रमणविधि स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. पासचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पासचंद मनवंछित लहउ, गाथा - २१, अपूर्ण. २. पे. नाम. सूत्रसाक्षि, पृ. २आ. मा.गु., गद्य, आदिः उत्तराध्ययन १; अंति: पुछी निर्णय कीज्यौ . ३. पे. नाम. विधिविचार चौपाई, पृ. २आ - ९आ, पू. वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर पय प्रणमे; अंति: जिणवाणी खमिज्यो सहू, गाथा - १५१, अपूर्ण. ४. पे. नाम. जीवना भेद ५६३, पृ. १०अ १०आ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५६३ जीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: साते नरके सात भेद; अंति: (-), अपूर्ण. ५. पे नाम, ब्रह्मचर्य दश समाधिस्थान कुलक, पृ. १३-१३आ, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ब्रह्मचर्य १० समाधिस्थान कुलक, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति धारी पासचंदि नमसिया, गाथा - ४१, (अपूर्ण, पू. वि. गाथा २५ से हैं.) ६. पे नाम, आत्मशिक्षा, प्र. १३आ-१९९अ. आ. पार्श्व चंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन समवडइं; अंतिः भणे तसु मनि धरम सनेह गाथा - १२३. ७. पे. नाम. चारित्रमनोरथमाला, पृ. १९अ-२१अ. आ. पाचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः सुह गुरु पय प्रणम; अंतिः मिली शिवसुखदायक होइ, गाथा - ४१. Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १९७ ८. पे. नाम. उपदेससार रत्नकोस स्वाध्याय, पृ. २१अ-२३अ. उपदेशसार रत्नकोश स्वाध्याय, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तिथंकर चउवीसहउं वंदउ; अंति: समरसिंघ इम भाषियइ, गाथा-६०. ९. पे. नाम. अभक्ष्यअनंतकाय स्वाध्याय, पृ. २३अ-२३आ. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मु. समरसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर पयनमी; अंति: समरसिंघ इम उच्चरइए, गाथा-७. १०. पे. नाम. साधुगुणवर्णन सज्झाय, पृ. २३आ. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचन निरतां सद्दहइ; अंति: पासचंद० गूण प्रधान, गाथा-८. ११. पे. नाम. जीवदयाप्रतिबोध गीत, पृ. २३आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ___ आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दुलहउ नरभव भवि भमता; अंति: (-), अपूर्ण. १२. पे. नाम. महावीरजिन निर्वाणकल्याणक सज्झाय, पृ. २५अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-१८ अपूर्ण तक नहीं है. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हरखधरी श्रीपासचंद, गाथा-२२, अपूर्ण. १३. पे. नाम. लूंके पुछया तेहना उत्तर, पृ. २५अ-४०अ. जिनप्रतिमापूजा चर्चा, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो अरिहंताणं; अंति: जंजिणेहिं पवेइयं, प्रश्न-१३. १५१३३. नवकारविषये श्रीमतिकथादि संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्रीमतिकथा संपूर्ण व शिवकुमारकथा प्रारंभ मात्र तक है., जैदे., (२६.५४१२.५, ५४३५-३७). आवश्यकसूत्र-कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: नवकार इक्कखरेणं पावं; अंति: (-), अपूर्ण. आवश्यकसूत्र-कथा संग्रह का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नवकारमंत्रना अख्यर; अंति: (-), अपूर्ण. १५१३४. सातेस्मरण स्तोत्र सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १८५९, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले.स्थल. बूआडा, प्रले. मु. रामविजय; मु. पद्मविजयजी; पठ. पं. दीपविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पार्श्वनाथजी प्रासादात्. कल्याणमंदिरस्तोत्र नहीं है., जैदे., (२५४१२, ५४२९-३२). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: जैनं जयति शासनम, प्रतिपूर्ण. नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइं माहरो; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १५१३५. (+) उपदेशमालासह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३१, श्रेष्ठ, पृ. ४४, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका के अवशेष भागवाला पत्र नहीं है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, ७४३६-४२). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, श्लोक-५४४. उपदेशमाला-बालावबोध, म. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७१३, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: वाणी श्रुतदेवता ते. For Private And Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५१३७. श्रीपाल रास, प्रतिअपूर्ण, वि. १८६९, वैशाख शुक्ल, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४३-२(२ से ३)=४१, पृ.वि. खंड-३ ढाल-५ से हैं., ले.स्थल. समीनगर, प्रले. ग. रंगविजय; पठ. ग. वल्लभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, ५-६४३७-४०). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय ; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, प्रतिअपूर्ण. १५१३९. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९२४, माघ कृष्ण, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. मु. राजविजय; पठ. श्रावि. नवलबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १०४३१). जिनस्तवनचौवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जगजीवन जगवाल्हो; अंति: जीवन जीव आधारो रे, स्तवन-२४. १५१४१. साधु समाचारी, संपूर्ण, वि. १९०९, भाद्रपद कृष्ण, ४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. काशीदेश-वाराणशी. प्रले. मु. वृद्धिचंद्र (खरतरगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ११-१२४४६-४९). साधु समाचारी, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: तिणकाल तिणसमैं के; अंति: आचार संपूर्णम्, समुद्देश-२८. १५१४३. (+) सिंदूरप्रकरण सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८४७, फाल्गुन शुक्ल, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ९६, ले.स्थल. पीराणपाटण, प्रले. ग. भानुसुंदर; पठ. पं. भाण (गुरु ग. सौभाग्यवल्लभ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, ५-१५४२८-३५). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-१०२. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथनै; अंति: करि प्रसिद्ध छु. सिंदूरप्रकर-कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: यतः येषां न विद्या; अंति: नामा श्रावकनी कथा. १५१४४. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८९८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. बनारस, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२५.५४१२, ८x२२-२४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. १५१४६. (+) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १३४३९). १.पे. नाम. अष्टभयहरनीवारण पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-२आ. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथलपति थलदेशें; अंति: नमो नमो गोडीधवल, गाथा-३७. २. पे. नाम. अंतरिकपार्श्वनाथजीस्तवन, पृ. २आ-५अ. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्ष, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन द्यो सरसति; अंति: मुदा० सुख संपदा, गाथा-५४. १५१४७. (+) पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, पू.वि. पाट ७० तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, १३४३४-३६). पट्टावली, सं., गद्य, आदि: अथात्र श्रीपर्दूषणा; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १५१४८, (+) नवतत्त्व सह अवचूर्णि संपूर्ण, वि. १८५५ फाल्गुन शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले. स्थल. रेणुकाचर, प्र. मु. कस्तूरसागर, पठ, मु. खूबसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२४.५४१२, १४४३६-४३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिकाय, गाथा- ३०. नवतत्त्व प्रकरण- अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीर; अंति: सेधनादनेकसिद्धाः .. १५१४९. सीयलवेल व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९२६, आश्विन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, ले. स्थल, भालुसणा, प्रले. मु. रिद्धीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४४१२, १२x२५-२७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. वैरागदीपका मदनजीपक सीयलवेल, पृ. १आ - १६अ. स्थूलिभद्र शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सीबल सुहंकर पासजी, अंतिः विमला कमला वरशे रे, ढाल - १८, गाथा - १९१. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १६अ. मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञान समो कोइ धन; अंति: लोभ समो नही दुःख, गाथा - १. १५१५०. नवतत्त्वबोलआदि बोल संग्रह, पूर्ण, वि. १८८२ माघ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (१) ६, कुल पे. ४, ले. स्थल, मेडता, प्रले. मु. दोलसुंदर (कवलागच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, जैदे., (२५x१२). १. पे. नाम, नवतत्वबोल संग्रह, पृ. २आ-७आ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. नवतत्त्व प्रकरण-विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एक सिद्ध अणेक सिद्ध, पूर्ण. २. पे नाम, मनुष्य क्षेत्र, पृ. ७आ. मनुष्यक्षेत्र वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि एक कर्मभूमिना १ बीजी; अंति: दादा उपर जाणवा ३. पे. नाम. १० संज्ञा नाम, पृ. ७आ. रा., गद्य, आदि : आहारसंज्ञा भयसंज्ञा; अंति: लोकसंज्ञा ओहसंज्ञा. ४. पे. नाम, साढापचीसदेस नाम, पृ. ७आ. साढापच्चीसदेश नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मगधदेस १ अंगदेस २; अंतिः स्वेतांबिकानगरी अर्ध. १५१५१. (+) जीवविचार बोल, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ - १ (१) = ६, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५x१२, १३४३५ ). जीवविचार बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, १५१५२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे, ३, जैदे, (२५.५X१२, १३x२७-२९). १. पे. नाम. दसवैकालिक गीत, पृ. १अ ५आ. दशवैकालिकसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदिः धर्ममंगल महिमा निलो; अंतिः सदाजी जयतसी जयजय रंग, अध्याय १०. २. पे नाम, जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. ५आ-६अ. मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर सीस सुजाण रे; अंतिः सिद्धि दीयो रे, गाथा - ७. For Private And Personal Use Only १९९ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. रथनेमि गीत, पृ. ६अ-६आ. राजिमती गीत, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि चतुर सुजाण; अंति: सीस जपे इम जेतसी हो, गाथा-८. १५१५३. (+) दीपोत्सव, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, १३-१४४३४). दीपोत्सव, वा. जयरंग, सं., गद्य, वि. १८७५, आदि: वर्द्धमानं जिनं वंदे; अंति: हास्य मा कुर्या. १५१५४. से@जयकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४१२.५, ४४२७). शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ; अंति: लहइ सेत्तुंजजत्तफलं, गाथा-२५. शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अइमुत्तोय केवलीइं; अंति: फल पामे नमस्कार. १५१५५. पाक्षिकसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२.५, १७४३५-३७). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-९आ. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पाक्षिक क्षामणासूत्र, पृ. ९आ-१०अ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिय; अंति: नित्थारग पारगा होह, सूत्र-४. १५१५६. दानशीलतपभावना चोढालियो, संपूर्ण, वि. १९३३, वैशाख कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, पठ. श्रावि. विजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक नाम अवाच्य है., जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३१-३३). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-५. १५१५७. चैत्रीपूनमदेववंदन व सेजयएकवीसनाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, प्रले. त्रिभोवनदास पटेल; पठ. मोतिकुंवर बहन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२.५, ११४२८-३१). १. पे. नाम. चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, पृ. १आ-११अ. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (१)प्रथम प्रतिमा ४ माडी, (२)आदीश्वर अरिहंत देव; अंति: धर्म शर्म घरि आवी रे. २. पे. नाम. शत्रंजयतीर्थ २१ नाम, पृ. ११आ. मा.गु., गद्य, आदि: सेव॒जो १ श्रीपुंड; अंति: २० अकर्म २१ सर्वकामद. १५१५८.(+) जीवरा पानसोत्रेसठ भेद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२.५, १०४३२-३४). ५६३ जीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नारकीना सात पर्याप्त; अंति: अप्रेशी अनित्य नित्य. १५१५९. पुन्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६२, आषाढ़ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. पेथापूर, प्रले. जेठालाल चुनिलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१३, १२४३४). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८+कलश, गाथा-९९, ग्रं. १२७. For Private And Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १५१६०. औपदेशिक पद आदिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९५४-१९६१, कार्तिक शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३३, ले.स्थल. अगस्तपुर, प्रले. पं. दोलतरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१३, १९-२०४३४-३८). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ.. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वेगलो छे वेरागरे; अंति: अमृत सुख अनुरागरे, गाथा-६. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भुंडा धरी धरी भेष; अंति: अमृत सुख आवेसरे, गाथा-७. ३. पे. नाम. अयोग्य को दीक्षा, पृ. १अ.. औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुंडे भुंडाने मुंडे; अंति: तत्व न जेहने तुंड रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. पाखंडी उपदेश पद, पृ. १अ-१आ. औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रगट्या बहु पाखंड; अंति: चालें कपटमां चंड रे, गाथा-६. ५. पे. नाम. सच्चा साधु, पृ. १आ. __ औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साधु ते तो साचो रे; अंति: मुनिवेस दसे साधु, गाथा-४. ६. पे. नाम. कुगुरु पद, पृ. १आ. ___ औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तजीयें गुरुओ दुर्मती; अंति: सुखमां जो अनुरागो, गाथा-५. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कोई नथी करनार रे; अंति: अमृत सुख अवीकार रे, गाथा-७. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तारु कुण तु जोने; अंति: सुख पामे सुचिअंगी, गाथा-५. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भणी भणीने मत भुल रे; अंति: मोहर्नु छेदने मूल रे, गाथा-४. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नथी नथी कोईनो नेह; अंति: अंतर समजो जो एह रे, गाथा-५. ११. पे. नाम. पाखंडी गुरु त्याग, पृ. २आ. पाखंडीचरित्रनाटक पद, मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: संसारमा सुगुरु सार; अंति: वीमल सुख वरीये, गाथा-४. १२. पे. नाम. कुगुरुसाधु पद, पृ. ३अ. मु. अमृतविजय, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: कछु कछ साधु कहे तब; अंति: लोकिक किर्ति लहे, गाथा-४. १३. पे. नाम. सुगुरु पद, पृ. ३अ. मु. अमृतविजय, मा.गु.,पुहिं., पद्य, आदि: जानीये सुध जती तब; अंति: अमृत सुखद अती, गाथा-४. १४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ. मु. अमृतविजय, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: मानु में वाकुं मुनी; अंति: गर्व विमुक्त गुनी, गाथा-४. १५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ. For Private And Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. अमृतविजय, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: विषय तें जोहे बच्यो; अंति: लालच ते न लच्यो, गाथा-४. १६. पे. नाम. धर्मधुतारा साधु पद, पृ. ३अ-३आ, वि. १९५४. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धीग धीग तेओने ते; अंति: सुखना भोगी न एतो, गाथा-११. १७. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. ३आ-४अ. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो नीरंजन अरज; अंति: सुख० संग नीवारणमें, गाथा-१६. १८. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ४अ-४आ. __मु. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन कर्मतणी गती; अंति: अखय दोलत अधिकारी, गाथा-११. १९. पे. नाम. असार संसार पद, पृ. ४आ. संसार असारतानिरूपक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नथी नथी कोई नथी सगु; अंति: अमृत रुपी० पंथ पथी, गाथा-४. २०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ. म. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मननो मार्यो मरे पोते; अंति: धृतिमति कीर्ति धरे. गाथा-४. २१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करि करिने शुभ काम; अंति: अमृत सुख अभिराम रे, गाथा-४. २२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धरि धरिने निज धर्म; अंति: सुंदर अमृत सर्म रे, गाथा-४. २३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तजी तजीने खरु तत्त्व; अंति: सुख० अनंत अजत्व रे, गाथा-४. २४. पे. नाम. मुनिगुण गरबो, पृ. ४आ-५अ. ___मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनने वश करे ते मुनी; अंति: अमृत सुखभोगी परात्मा, गाथा-८. २५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५अ. ___ मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लालचि ललनाना लाखो; अंति: सुखना तो ए अधिकारी, गाथा-८. २६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५अ. ___ मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पसु परे पासमां ते; अंति: सुखने तो ते अनुसारी, गाथा-८. २७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५अ-५आ. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साचा समरथो तेओ ज; अंति: अमृत सुख एज वरे छे, गाथा-८. २८. पे. नाम. पुद्गलबत्तीसी, पृ. ५आ-६अ, वि. १९५५. ____ मु. दोलतरुचि, मा.गु., पद्य, वि. १९५५, आदि: हो जीउरा पुद्गल संग; अंति: वरतत जे जेकारो, गाथा-३३. २९. पे. नाम. कुगुरूत्याग पद, पृ. ६आ. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: तजु तजु में उन; अंति: कूगुरु संग निवारी हे, गाथा-४. ३०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६आ. For Private And Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, रा., पद्य, आदि: मन सुण रे थारी सफल; अंति: जिनदास मन नही मावें, गाथा - ५. ३१. पे. नाम. परनिंदा त्याग पद, पृ. ६आ-७अ. परनिंदात्याग पद, मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: किसी की नंद्या न करी; अंति: जिन दरसण सहीये, गाथा-४. ३२. पे. नाम औपदेशिक पद, प्र. ७अ. ४. पे. नाम. मंगलाचरण, पृ. ८अ. मा.गु., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो; अंति: कुसल लच्छी लीला करंत, गाथा-४, ५. पे. नाम. १६ सती स्तुति, पृ. ८अ - ८आ. सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंतिः कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक - १. ६. पे नाम. नवग्रह मांगलिक लोक, पृ. ८आ. जैन गाथा, प्रा. सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: ( अपठनीय), गाथा - २. श्राव. हीराचंद अमुलक, मा.गु., पद्य, आदि: एतो फल पाप धरम के; अंति: हीराचंद० मनमें लावे, गाथा - ५. ३३. पे. नाम. धूलेवाजी छंद, पृ. ७अ ७आ. आदिजिन छंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रमोद रंग धारणी; अंति: ऋद्धिसिद्धि पाईए, गाथा - ८. १५१६१. स्तवनआदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ७, ले. स्थल. उमेटा, गु., ( २४.५x१२, १०-११x२९). १. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ-७अ. सु. उदयवंत, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंति: उदयवंत आसा पले ए, गाथा ४९. २. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. ७अ ७आ. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेश्वरकेरो शिष; अंतिः गौतम तुठे संपति कोड, गाथा-९, ३. पे. नाम. ११ गणधर छंद, पृ. ७आ-८अ. मु. रतनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एकादश गणधरनां नाम; अंतिः रतनविजय वंदे निशदिश, गाधा - ५. २०३ ७. पे. नाम. ४ मंगल पद, पृ. ८आ - ९आ. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धार्थ भूपति सोहे; अंति: उदयरत्न भाखे एम, गाथा-४, १५१६२. जीवविचारस्तवन व चौवीसतीर्थंकरस्तुति, संपूर्ण, वि. १८५१, माघ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले. स्थल. अगस्तपुर, प्रले. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५x१३.५, १२X३३-३९). १. पे. नाम. जीवविचार स्तवन, पृ. ५. मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीसरसती रे वरसती; अंति: विजय पभणे आनंदकारी, ढाल - ९. २. पे नाम, २४ तीर्थंकर स्तुति, पृ. ५आ. मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीय पास जिणेसर; अंति: गुणविजय० अती घर्णे, गाथा-४. १५१६३. चौमासी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १६, जैवे. (२४४१३, १५x२७-३१). For Private And Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चातुर्मासिक व्याख्यान, मा.गु., प+ग., आदि: (१)प्रणम्य परमानंद पंचा, (२)भो भव्या एतानि चतुर; अंति: मरणे अ आसंस पओगे. १५१६४. ऋषभजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पठ. मु. रत्नचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१३, १०-१२४२६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. १५१६५. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३२, फाल्गुन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ७, प्रले. मु. लब्धिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (८९) कड कुंभी कड वांकडा, (६५४) जला रक्षे स्थलात् रक्षे, जैदे., (२५.५४१२.५, ५४२१). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ. __ उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जगजीवन जग वालहो; अंति: सुखनो पोष लाल रे, गाथा-५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २आ-३आ. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिणेसर प्रीतम; अंति: अर्पणा आनंदघन पद रेह, गाथा-६. ३. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ४अ-५अ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतिनाथ गुणशुं मिली; अंति: मुझ प्रेम प्रकार, गाथा-५. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ५अ-६आ. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आदिसर सुखकारी हो; अंति: प्रभु आवागमण निवार, गाथा-५. ५. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. ६आ-८अ. वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादसी रे नणदल; अंति: वाचक० लीला लेहस्य, गाथा-७. ६.पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. ८अ-९अ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: समयसुंदर सुख पाया रे, गाथा-७. ७. पे. नाम. पदमप्रभजिन स्तवन, पृ. ९अ-१०आ. पद्मप्रभजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभूजी रे जइ; अंति: जस कहे ठाम ठामोजी, गाथा-५. १५१६६. (+#) प्रतिक्रमण सूत्र संग्रह, स्तुति संग्रह, स्तवन, स्तोत्र, छंद, सज्झाय व चैत्यवंदन संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-२(१५ से १६)=२२, कुल पे. ५४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६४३२-३६). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ-५आ. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: साहुदेह साधारणा. २.पे. नाम. मंगलीक स्तुति, पृ. ५आ-६अ. कल्लाणकंद स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंद पढम; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ३. पे. नाम. बीजनी स्तुति, पृ. ६अ. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. For Private And Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. पे नाम, पंचमी स्तुति, पृ. ६अ ६आ. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ५. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. ६आ. संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., प्रा., पद्य, आदि: संसारदावानलवाहनीर; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ६. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ६आ-७अ. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: सीस० संघ नीसदीस, गाथा ४. ७. पे. नाम. चौदश स्तुति, पृ. ७अ ७आ पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्म, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः सर्वकार्येषु सिद्धं श्लोक-४, ८. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. ७आ. आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी वंदो ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ९. पे नाम, शांतिजिन स्तुति, पृ. ७आ-८अ आव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरी; अंतिः सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा- ४. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ८. पार्श्वजिन स्तुति-भीलडीपुरमंडन, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भीलडीपुर मंडण सोहे; अंतिः सुख संपत्तिदातार, गाथा-४. २०५ ११. पे नाम, साधारण स्तुति, पृ. ८अ. शत्रुंजयगिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनमांहे तिरथ; अंतिः जीव ते संपदा वरे, गाथा ४. १२. पे. नाम. पजोसणनी स्तुति, पृ. ८आ. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि सत्तरे भेदे जिन पूजा; अंतिः पुरो देवी सिद्धाइजी, गाथा-४. १३. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ८- ९अ. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण सुदि दिन अंतिः ए सफल करो अवतार तो, गाथा-४. For Private And Personal Use Only १४. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. ९. मु. जीवविजय; मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८४-१८००, आदि: पंचमी दिन जनम्या; अंति: सीस जीवविजय जयकार, गाथा- ४. १५. पे नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ९अ ९आ. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल आठ करी जिन आगल; अंतिः तपथी कोड कल्याणजी, गाथा-४, १६. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. ९आ-१०अ. आव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजो तीरथ अंतिः पाय ऋषभदास गुण गाय, गाथा ४. Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १०अ-१०आ. वा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र सेवो; अंति: विनय वंदे नीसदीस, गाथा-४. १८. पे. नाम. आदिजिन स्तुति-मरुदेवामाता केवलज्ञान, प्र. १०आ. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गजकुंभे बेसी आवे; अंति: विबुधनो मोहन जयजयकार, गाथा-४. १९. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १०आ. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: सन्नो देवीदेयादंबा, श्लोक-१. २०. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १०आ. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामी; अंति: आवागमण निवार निवार, गाथा-१. २१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ११अ. पौषदशमीपर्व स्तुति, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पोसी दशमी दिन पास; अंति: राजविजय सेवा मागेजी, गाथा-४. २२. पे. नाम. नेमजिन स्तुति, पृ. ११अ-११आ. पंन्या. महिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगिरनार शिखर; अंति: दिन दिन नित्य दीवाळी, गाथा-४. २३. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. ११आ. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु वीर जिणंदनुचरी; अंति: लालविजय० संकट हरे, गाथा-४. २४. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. ११आ. मु. भालतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: जयजय कर मंगलदीपक; अंति: कमला भालतिलक वर हीर, गाथा-१. २५. पे. नाम. सांतिजिन स्तुति, पृ. ११आ-१२अ. शांतिजिन स्तुति, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणंद जोहारीइं; अंति: वृद्धिविजय मंगलकरो, गाथा-४. २६. पे. नाम. सीमंधरस्वामी चैत्यवंदन, पृ. १२अ. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला प्रणमुं; अंति: तणोए नय वंदं करजोडि, गाथा-६. २७. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १२अ. मा.गु., पद्य, आदि: नगरी तो चंपापुरी; अंति: अनोपम तेहनी देह, गाथा-३. २८. पे. नाम, आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १२अ. क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अरिहत नमु; अंति: आदिदेव महिमा घणो, गाथा-३. २९. पे. नाम. अजितजिन चैत्यवंदन, पृ. १२अ-१२आ. क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: अजितनाथ अवतार सार; अंति: चरे अजित नित्ये जपो, गाथा-३. ३०. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १२आ. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धक्षेत्र; अंति: जिनवर करु प्रणाम, गाथा-३. ३१. पे. नाम. नवकार चैत्यवंदन, पृ. १२आ. For Private And Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २०७ पंचपरमेष्ठिगुणगर्भितजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बार गुण अरिहंतदेव; अंति: नय वंदे निरधार, गाथा-३. ३२. पे. नाम. पंचतीर्थी चैत्यवंदन, पृ. १२आ. पंचतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत देवा चरणोनी; अंति: भव होजो ताहरी सेवा, गाथा-५. ३३. पे. नाम. बावन्नसतानीसज्झाय, पृ. १३अ. भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जस पडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. ३४. पे. नाम. संखेसरपार्श्व स्तोत्र, पृ. १३अ-१३आ. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. ३५. पे. नाम. गोडीपार्श्वजि स्तोत्र, पृ. १३आ-१४अ. पार्श्वजिन स्तवन, मु. विजयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मुरती श्रीपास; अंति: सिद्धि आनंद घणे, गाथा-११. ३६. पे. नाम. विहरमान २० जिन स्तवन, पृ. १४अ-१४आ. पंन्या. हेतविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: मन सुद्धे समरुं सरस; अंति: भावे जिनना गुण गाय, गाथा-९. ३७. पे. नाम. सोलसतीनी सिझाय, पृ. १४आ. १६ सती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती माता प्रणमी; अंति: रूपविजय भावे गुण गाय, गाथा-७. ३८. पे. नाम. सोल सती सज्झाय, पृ. १४आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-३ तक है. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आदिनाथ आदेरे जिनवर; अंति: (-), अपूर्ण. ३९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १७अ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-७ तक नहीं है. ___पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: धर्म रंगरातो बोल, गाथा-१६, अपूर्ण. ४०. पे. नाम. शांतिजिन स्तोत्र, पृ. १७अ-१८अ. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमुं सिरनाम; अंति: मनवंछित शिवसुख पावे, गाथा-२२. ४१. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथजीनो छंद, पृ. १८अ-१९अ. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: लब्धि० मुदा प्रणम्य, श्लोक-३२. ४२. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १९आ-२०अ. वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित पूरे विविध; अंति: ऋद्धि वांछित लहे, गाथा-१७. ४३. पे. नाम. नवकारनो छंद, पृ. २०अ-२१अ. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुख कारण भवीयण समरो; अंति: काज घणाना सीद्ध, गाथा-११. ४४. पे. नाम. चिंतामणी पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २१अ. For Private And Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आणी मनसुद्धे आसता; अंति: सुंदर कहे सुख भरपुर, गाथा-७. ४५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, पृ. २१अ. मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनमुख पंकज; अंति: उदयसुसेवक तास तणो, गाथा-७. ४६. पे. नाम. गौतमनी सिझाय, पृ. २१आ. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेश्वरकेरो शिष; अंति: गौतम तुलै संपति कोड, गाथा-९. ४७. पे. नाम. गोतमस्वामीनी सिझाय, पृ. २१आ-२२अ. गौतमस्वामी अष्टक, मु. धीर, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो गणधर वीरनो रे; अंति: साउले धीर नमे निसदीस, गाथा-८. ४८. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथजीनो स्तोत्र, पृ. २२अ-२२आ. पार्श्वजिन छंद-गोडीपार्श्वनाथ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: धवल धिंग गोडी धणी; अंति: दुखनी जाल त्रोडी, गाथा-८. ४९. पे. नाम. पंचतीर्थी स्तवन, पृ. २२आ-२३अ. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदे आदिजिनेसरू; अंति: तस घर नवे निधान रे, गाथा-६. ५०. पे. नाम. शनीश्वरनो छंद, पृ. २३अ-२३आ. शनिश्चर छंद, मा.गु., पद्य, आदि: छायानंदन जगिजयो रवि; अंति: वली वली एम वखाणीए, गाथा-१६. ५१. पे. नाम. शनीसरनो स्तोत्र, पृ. २३आ-२४अ. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: यः परा रायप्रतिष्टाय; अंति: पीडा न भवंति कदाचन, श्लोक-८. ५२. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. २४अ. सं., पद्य, आदि: ॐ बृहस्पतिः सुरा; अंति: बृहस्पति नमोस्तु ते, श्लोक-५. ५३. पे. नाम. ऋषभदेव चैत्यवंदन, पृ. २४अ. आदिजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तिर्थंकर आदि; अंति: धणी रुप कहे गुणगेह, गाथा-३. ५४. पे. नाम. अजितजिन चैत्यवंदन, पृ. २४अ. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित अजोध्यानो धणी; अंति: प्रभु आवागमन निवार, गाथा-३. १५१६७. स्तुतिचौविसी सह टीका, श्लोक व पंचतीर्थिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८९८, सिद्धिनंदेनागचंद्रे, माघ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ७४, कुल पे. ३, ले.स्थल. कृष्णवल्लभपूरी, प्रले. मु. रूप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक १ पर छंदसंकेत का उल्लेख है. पेटांक २-३ एवं प्र.पु. का श्लोकानुक्रम क्रमशः है., प्रायः शुद्ध पाठ., प्र.ले.श्लो. (३९५) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, (४६२) मंगलं लेखकस्यापि, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.२४१२, १४-४०x१४-४०). १. पे. नाम. शोभन स्तुति सह वृत्ति, पृ. १आ-७३आ. स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनक; अंति: हारतारावलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. For Private And Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २०९ स्तुतिचतुर्विंशतिका-टीका, मु. जयविजय, सं., गद्य, वि. १६७१, आदि: प्रणम्य परमानंददायिन; अंति: सहस्रद्वितयं मया, ग्रं. २३५०. २.पे. नाम. दीपनमस्कार, पृ. ७४अ. सं., पद्य, आदि: शुभं भवतु कल्याण अंति: दीपज्योति नमोस्तुते, श्लोक-१. ३. पे. नाम. पंचतीर्थीजिन स्तुति, पृ. ७४अ. सं., पद्य, आदि: आदिनाथ युगाधीशः; अंति: पंचतीर्थानि वंदयेत्, श्लोक-१. १५१६९. श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र सह बालावबोध-कथा व नरब्रह्म कथा, संपूर्ण, वि. १७२९, वैशाख कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३८, कुल पे. २, ले.स्थल. सीरोहीनगर, प्रले. मु. पद्मरूचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १८-१९४४२). १. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध+कथा, पृ. १अ-३६आ. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०. वंदित्तुसूत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सर्व तीर्थंकरने; अंति: तीर्थंकर वादं छु. २.पे. नाम. षडावश्यकवृत्तिवार्तिकगत सम्यक्त्वविषये नरवर्मकथा, पृ. ३६आ-३८आ. नरब्रह्म कथा, पा. राजवल्लभ, सं., पद्य, वि. १५३०, आदि: यथा देवे जिनो देवः; अंति: वाच्यमाना सुहृजनैः, श्लोक-९३. १५१७०. (+) षट्दर्शन समच्चय सह तर्करहस्यदीपिका वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८७७, पौष कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १३९. ले.स्थल. भुजनगर, प्र.वि. अंतिम श्लोकांक ८७ का मात्र पूर्व पाद ही है. श्रीचिंतामणजिनप्रसादात्. अंचलगच्छे., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १३४४१-४५). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सदर्शनं जिनं नत्वा; अंति: लोच्यः सुबुद्धिभिः, अधिकार-६, श्लोक-८७. षड्दर्शन समुच्चय-तर्करहस्यदीपिका टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति विजितरागः केवला; अंति: च तत्र कुशलमतिभिः, ग्रं. ४६००. १५१७१. मुनिपति चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३९, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदे., (२५.५४११.५, ६x४०-४३). मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११७२, आदि: नमिऊण महावीरं चउ; अंति: रम्म हरिभद्दसूरीहिं, गाथा-६५०. मुनिपति चरित्र-टबार्थ, मु. लब्धिहंस-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनं; अंति: रचिउ हरिभद्र नामे. १५१७२. (+) सीलमहात्म्ये गजसिंहनृप रास, संपूर्ण, वि. १८४७, फाल्गुन कृष्ण, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३९, ले.स्थल. पेथापूर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १६४५०). गजसिंहनृप रास-सीलमहात्म्ये, मु. देवरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८१५, आदि: प्रथम इष्ट पदेष्ट; अंति: सुखलच्छि रसाला हे, खंड-४, ढाल ५१, गाथा-१५००. १५१७३. (+) योगशास्त्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४७-१०२(१ से १०२)=४५, पू.वि. प्रकाश-१ से ४ नहीं है., प्रले. पंन्या. अविचलविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १५४५२-५७). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रीहेमचंद्रेण सा, प्रकाश-१२, अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची योगशास्त्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५०८, आदि: (-); अंति: (१)बालावबोधमचीकरत्, (२) योगशास्त्र कहीजै, अपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५१०४. सूयगडांगसूत्र सह बालावबोध- प्रथमश्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. ८४, पू. वि. अध्ययन- १६, प्रले. वख्तावर प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैवे. (२४.५x११.५, ३-४४४०-४६). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: बुज्झिज्ज तिउज्ज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण, सूत्रकृतांगसूत्र- प्रथमश्रुतस्कंध वालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: (-), प्रतिपूर्ण, १५१७५. आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १८७५, कार्तिक कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पू. ३४, प्रले. पंडित. फत्तेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५.५x११, १३४३८). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: भव्य जीवने प्रतिबोध; अंति: तिथि सफल फली आस. १५१७८. नवस्मरण, लघुशांति व पार्श्वजिन स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. ५, ले. स्थल. सुरत, मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २५X११.५, १३X३९). प्रले. १. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १अ - १३आ. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं० हवइ अंतिः जैनं जयति शासनम्, स्मरण ९. २. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ८आ. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय अंतिः पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक ५. ३. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १०अ ११अ. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत; अंति जैनं जयति शासनम्, श्लोक १९. ४. पे नाम, पार्श्वजिन स्तोत्र-गौडी, पृ. १३आ- १४आ. पार्श्वजिन स्तोत्र - गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: नमु सारदा सार; अंतिः सौख्यप्रदः सर्वदा, गाथा - १४. ५. पे नाम, पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, पृ. १४ आ-१५अ. आ. हंसरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: महानंदलक्ष्मीघना; अंति: श्रीपद्मरत्नायितम्, श्लोक - ११. १५१८१. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५८, फाल्गुन कृष्ण, १०, रविवार श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल भृगुपुर, प्रले. पं. प्रेमविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैवे. (२५.५x११.५, ४४३४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंतिः मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पार्श्वनाथना चरणकमल; अंतिः कहीइ मोक्षसुख पानीइं. १५१८३. स्तोत्र व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३४ श्रावण शुक्ल, २ शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २३, ले. स्थल. नाडोल, प्रले. हिम्मतमल पदमाजी सोनीगरा; पठ. मु. प्रताप, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, ९४२४ - २८). १. पे नाम, शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १आ. मा.गु., पद्य, आदि आदिनाथ जुगनाथ विमला; अंति: शासनं ते भवे भवे, गाथा ५. २. पे. नाम चतुर्विसतीजिन यंत्रबद्ध स्तोत्र, पृ. १आ-२आ. For Private And Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २४ जिन स्तोत्र, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि आदौ नेमिजिनं नौमि; अंतिः मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक - ८. ३. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ संप्रभावकस्तोत्र, पृ. २आ-४आ. पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक - ११. ४. पे. नाम. त्रिलोक्य स्तव, पृ. ४आ-६अ. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि सद्भक्त्या देवलोके; अंतिः सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक १०. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूरव दिशि इशान कुण; अंतिः द्यो! पूरव दिशि इशान कुण; अंति: द्यो पुरो संघ जगीश, गाथा - ८. १२अ - १२आ. ५. पे. नाम. एकीभावेसम स्तव, पृ. ६अ. साधारणजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: जय वीतमोह: जय वीतदोष; अंति: सुचंद्राभिरूपः, श्लोक - ५. ६. पे नाम, सीमंधरजिन स्तोत्र, प्र. ६अ ६आ. आ. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: अनंत कल्याणकर; अंति: तेषां वर साधुरूपा, श्लोक - ५. ७. पे. • नाम, चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पृ. ६आ-७आ. २४ जिननामगर्भित मंगलाष्टक, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेंद्रजिनेंद्र, अंतिः मम मंगलम्, श्लोक ९. ८. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. ७आ-८अ. आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जय श्रीजिनकल्याण; अंति: वृद्धितराचिरात्ममापि, श्लोक-६. ९. पे नाम, पार्श्वजिन स्तोत्र, प्र. ८अ ८आ. सं., पद्म, आदि: प्रणमामि सदा प्रभु अंतिः पार्श्वजिनं शिवदम्, श्लोक ७. १०. पे. नाम. साधारणजिन स्तव, पृ. ८आ - ९आ. आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि देवाः प्रभो यं विधिन; अंतिः भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक ९. ११. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तोत्र, पृ. ९आ-१०अ. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., पद्य, आदि : उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: सिद्धचक्कं नमामि, गाथा - ६. १२. पे नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १०अ ११ आ. मु. साधविजय- शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता; अंतिः तणो सीष्य कहे करजोडि, गाथा-५, १३. पे नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. ११-१२अ. मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: १४. पे नाम, ऋषभजिन चैत्यवंदन, पृ. २११ For Private And Personal Use Only शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर आददेव; अंति: तुम तरीया मुज तार, गाथा - ८. १५. पे नाम. पंचतिर्थ चैत्यवंदन, पृ. १२आ- १३अ. पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुर समरुं श्रीआदिदेव; अंति: कहै त्यां घर जयजयकार, गाथा - ६. १६. पे. नाम. ऋषभजिन चैत्यवंदन, पृ. १३अ. Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि आदिदेव अरिहंत नमु; अंति: आदिदेव महिमा घणो, गाथा - ३. १७. पे नाम. अजितजिन चैत्यवंदन, पृ. १३-१३आ. क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: अजितनाथ अवतार सार; अंतिः चरे अजित नित्ये जपो गाथा-३, " १८. पे. नाम संभवजिन चैत्यवंदन, पृ. १३ आ. क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदिः संभवजिन सुकमाल सील; अंति: संभव जिन सेवो सदा, १९. पे नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १४अ. क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: वंदू पार्श्वजिणंद; अंतिः समर्या सानिध कीध, गाथा - ३. २०. पे. नाम. पंचतीर्थी स्तव, पृ. १४अ - १४आ. पंचतीर्थीजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: प्रणत मानव दानव नायक; अंति: द्रव्यदाने धर्मेंद्रा, श्लोक ६. २१. पे नाम. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. १४-१५अ. गाथा - ३. मु. २२. पे नाम ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, पृ. १५ अ-१६अ. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचंद्रप्रभु नित्य; अंति: ते पामो भवि पार ए, गाथा-५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि त्रिगडे बेठा वीर अंतिः रंगविजय लहो सार, गाथा - ९. २३. पे. नाम. २४ जिनवर्णगर्भित चैत्यवंदन, पृ. १६अ. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभने वासपूज्य; अंतिः नयविमल कहे शिस, गाथा-३, १५१८४. रास संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२ - ३ (१ से ३) = १९, कुल पे. ५, जैदे., ( २६.५X१२, १६-१७X४०-४५). १. पे. नाम. भावनाविषए इलापुत्ररिषि चरित्र, पृ. ४अ-६आ, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा- ८८ अपूर्ण तक नहीं है. इलापुत्र रास, वा. मतिशेखर, मा.गु., पद्य, वि. १६, आदि: (-); अंति: अष्टमहासिद्धि लहइ, गाथा - १६३, अपूर्ण. २. पे. नाम. तपविषए कूरगडू चरित्र, पृ. ६आ-१२ आ. कुरगडुऋषि रास, वा. मतिशेखर, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: रिसह जिणिदह पयकमल; अंति: मति० भ संपद लहइ, गाथा - १७९. ३. पे नाम, चंदणवालामहासती दानविषये चतुष्पदी, पृ. १२-१७अ. चंदनबाला चौपाई, श्रव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणवर पाय पणमेवि; अंति: तीह नरनारी अफला फलइ, गाथा - १२८. ४. पे. नाम. मननिरोध चौपाई. पू. १७अ २०अ. For Private And Personal Use Only आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सजन जन मन रंजणु; अंतिः चित्त निरोध विचार, गाथा- ९७. ५. पे. नाम. पोसह रास, पृ. २०अ २२आ, पू. वि. प्रारंभिक ३ गाथाएँ नहीं लिखी गयी है. मा.गु., पद्य, आदि: (); अंति: रमणि पछे वरै ए, प्रतिपूर्ण, , १५१८५. प्रतिक्रमणसूत्र व जिनवीनती संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १०-१ (१) = ९, कुल पे. ५, जैदे., ( २६.५x११.५, ११४३५-३६). १. पे नाम, प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - वे.मू. पू. * पृ. २अ ७आ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २१३ संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: अप्पाणं वोसिरामि, अपूर्ण. २. पे. नाम. नेमिनाथ वीनती, पृ. ७आ-८अ. नेमिजिन वीनती, मा.गु., पद्य, आदि: हरखु माहि हियडइ किमइ; अंति: देजे तुझ पाय वास, गाथा-११. ३. पे. नाम. वीतरागवीनती, पृ.८अ-९अ. वीतराग विनती, मा.गु., पद्य, आदि: वीतराग तुम्ह पाय; अंति: देज्यो सुबुद्धि, गाथा-१२. ४. पे. नाम. जिराउला पार्श्वजिन विनती, पृ. ९अ-९आ. __ पार्श्वजिन विनती-जिराउला, मा.गु., पद्य, आदि: जिराउला देव करउं; अंति: करी सेवक मइ जे थापउ, गाथा-१०. ५. पे. नाम. सर्वज्ञजिन विनति, पृ. ९आ-१०आ. मा.गु.,प्रा., पद्य, आदि: केवल लछि विलास वास; अंति: विलसइ दहदिसि कित्ति, गाथा-१२. १५१८६. स्तवन व सज्झायआदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८४१, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्रले. मु. वीर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १४४३९-४४). १.पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. १अ-१आ. महावीरजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नणदल हे नणदल सीधारथ; अंति: रूपविजय गुण गाय, ___ गाथा-१३. २. पे. नाम. नेमराजिमती तेरमासा, पृ. १आ-६आ. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: प्रणमुं विजया रे; अंति: तेर मासा० अचल थाई, गाथा-१२८. ३. पे. नाम. नेमिजिनछढालीयो, पृ. ६आ-७आ. नेमिजिन छढालीयो, मु. शिवजी गणि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर सारदा; अंति: संघने द्यो संपदा, ढाल-६. ४. पे. नाम. सीता सज्झाय, पृ.७आ-८आ. सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: छोडी हो पिउ छोडि; अंति: हो धरम हीये धरीजी, गाथा-११. ५. पे. नाम. छमासीतप गर्भित, पृ. ८आ. महावीरजिन स्तवन-छमासीतप वर्णनगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण दो मति; अंति: दरसण दुरे पलाय, गाथा-९. ६.पे. नाम. १६ स्वप्न सज्झाय, पृ.८आ-१०आ. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नयरी चंद्र; अंति: छंडो समझौ नयविवहारजी, गाथा-३६. ७. पे. नाम. ७-रतनगुरु जीवनचरित्र सज्झाय, पृ. ९आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: रतन गुरु गुण मीठडा; अंति: (-), अपूर्ण. १५१८७. स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.६, कुल पे. ७, प्रले. पंन्या. उमेदविजय, जैदे., (२६४११.५, १२४३६). १.पे. नाम. पांचबोलगर्भित महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-३आ. For Private And Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५ कारण छढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथ सुत वंदिये; अंति: परे विनय कहे आणंद ए, ढाल-६, गाथा-५८. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ३आ-५अ. आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुजय, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु सयल जिणंद; अंति: जीम पामो भवपार ए, गाथा-४१. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुपद पंकज पासन; अंति: प्रीत प्रतीत रे, गाथा-७. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनेश्वर परमेश्वर; अंति: आनंदघन माहाराज, गाथा-७. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक दूहा संग्रह, पृ. ६अ. आध्यात्मिक दूहासंग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: अणजोवंतां लाख जोवो; अंति: रहै छुटौ इक ठोरि, गाथा-४. ६.पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. ६आ. उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर नर सामायिक; अंति: ज्ञानवंत के पासे, गाथा-८. ७. पे. नाम. नवकारशीतपव्रत वंदना, पृ. ६आ.. मा.गु., पद्य, आदि: धन्य ते गाम नगर; अंति: तेहने त्रिकाल वंदना, गाथा-१ १५१८८. सज्झाय संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-२(७,११)=२०, कुल पे. ४१, जैदे., (२५.५४११, १२४४२-४५). १. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. १अ-४अ. मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर इम भणे; अंति: केशरकुसल गुण गाय रे, ढाल-९. २. पे. नाम. ब्रह्मचर्य स्वाध्याय, पृ. ४अ-४आ. ब्रह्मचर्य सज्झाय, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जीणेसर भाखीयो; अंति: केसर परमाणंद हो, गाथा-७. ३. पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. ४आ-५अ. मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझने रे मात; अंति: परमसुख इम मांगीइ, गाथा-१०. ४. पे. नाम. सप्तव्यसन सज्झाय, पृ. ५अ-५आ. ७ व्यसन सज्झाय, मु. गजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ नृप कुल; अंति: कहेजी० सीवपुर वास, गाथा-११. ५. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. ५आ-६अ. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिने वंदणा; अंति: कहे जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा-९. ६. पे. नाम. रात्रीभोजन सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-१७ अपूर्ण तक हैं. __ रात्रिभोजन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनितल वारु वसेजी; अंति: (-), पूर्ण. ७. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., मात्र आदिवाक्य नहीं है. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नही कोई तोले हों, गाथा-१२, पूर्ण. ८. पे. नाम. हेतसीक्ष्या सज्झाय, पृ. ८आ-९अ. For Private And Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २१५ परनिंदानिवारक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: म कहो जीव परतात; अंति: एह हित सीख माने, गाथा-९. ९. पे. नाम. नवकारमंत्र सज्झाय, पृ. ९अ-९आ. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपुं अरिहंतना; अंति: रे नित नित नवकार, गाथा-९. १०. पे. नाम. सतीसीता सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ. सीतासतीशील सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जलजलती मिलती घणी रे; अंति: नीत प्रणमीजे पाय रे, गाथा-९. ११. पे. नाम. संसार अनित्य सज्झाय, पृ. १०अ-१०आ. संसारअनित्यभावना सज्झाय, ऋ. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: करज्यो मति अहंकार ए; अंति: एक धरम मनमें धरो, गाथा-११. १२. पे. नाम. वीसस्थानक सज्झाय, पृ. १०आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., मात्र अंतिम दो पाद नहीं है. २० स्थानक सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन चरणे करी; अंति: (-), पूर्ण. १३. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १२अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-२ अपूर्ण तक नहीं है. आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सोमविमल० एहनी जोड रे, गाथा-९, पूर्ण. १४. पे. नाम. कर्म सज्झाय, पृ. १२अ-१२आ. मु. दान, मा.गु., पद्य, आदि: सुखदुःख सरज्यां पामी; अंति: धरम सदा हितकार रे, गाथा-९. १५. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १२आ. मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंति: छुटे भव भव पास, गाथा-५. १६. पे. नाम. जीवशिखामण सज्झाय, पृ. १२आ-१३अ. औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय *, मा.गु., पद्य, आदि: जीव कहे सुणी जीवडली; अंति: भ्रांत अब भागीरे, गाथा-७. १७. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १३अ. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहो रहो रहो वालहा; अंति: रुपविजय जयकार, गाथा-५. १८. पे. नाम. क्रोध सज्झाय, पृ. १३आ. मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न करीइ भोला; अंति: उपसम आणी पासे रे, गाथा-९. १९. पे. नाम. मानउपरे सझाय, पृ. १३आ-१४अ. औपदेशिक सज्झाय-मानोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अभिमान म करज्यो कोई; अंति: भवनगर रहि चौमासैरे, गाथा-८. २०. पे. नाम. मायापरीहार सज्झाय, पृ. १४अ-१४आ. मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: माया मूल संसारनो; अंति: कहे० सुख निरवाण हो, गाथा-७. २१. पे. नाम. लोभोपरी सझाय, पृ. १४आ. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: पामे सयल जगीस, गाथा-७. For Private And Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१६ www.kobatirth.org गाथा - १८. २३. पे नाम. द्वादसव्रतीपरी सज्झाय, पृ. १५आ. २२. पे. नाम. तमाकुनी सज्झाय, पृ. १४-१५ आ. तमाकुपरिहार सज्झाय, मु. कविवण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती वीनवे; अंतिः तेहने कोडि कल्याण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दान सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि रसीवा राचौ दान तणे; अंतिः तिलकविजय जयकार, गाथा - ५, २४. पे. नाम. कर्मपरिक्षा सज्झाय, पृ. १६अ - १६आ. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घर घोडा हाथीबाजी; अंतिः दान तणे परीमाण रे. गाथा १३. २५. पे. नाम नमिराजर्षि सज्झाय, पृ. १६आ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो मीथुला नवरीनो; अंतिः सुंदर कहे० मंगल च्यार, गाथा-७, २६. पे. नाम जीवदया सज्झाय, पृ. १७अ. औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: धर्म म मुकीस विनय म; अंति: सो चिरकाले नंदो रे, गाथा - ९. वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मचर्यना दश; अंति: गुरु धन्य रे, गाथा-६. ३०. पे नाम, प्राणातीपात प्रथमपापनास्थानिक सज्झाय, प्र. १८अ १८आ. २७. पे. नाम. ईरीयावहीमाथे कहेवाने सझाय, पृ. १७-१७आ. इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नारी मे दीठी इक आवती; अंति: करज्यो घणी सेवरे, गाथा - ६. २८. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १७-१८अ. मु. पद्मकुमार, मा.गु., पद्य, आदि: सूण सूण जीवडा रे; अंतिः भव तणा सुख लीजीये, गाथा-४. २९. पे. नाम ब्रह्मचर्याध्ययन सज्झाय, पृ. १८अ. For Private And Personal Use Only प्राणातिपात प्रथमपापनास्थानिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थानिक पहिलूं; अंतिः रे हिंसा नाम बलाइ रे, गाथा ६. ३१. पे. नाम सारसिखामण सज्झाय, पृ. १८-१९अ. औपदेशिक सज्झाय, मु. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बापडला रे जीवडला; अंति: कहे० चढत सवाई रे, गाथा - १०. ३२. पे. नाम. राजीमती सझाय, पृ. १९अ - १९आ. नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पियुजी पियुजी रे; अंति: नेम भेटे आशा फली, गाथा-७. ३३. पे. नाम. बाहूबल सझाय, पृ. १९आ-२०अ. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंतिः समवसुंदर वंदे पाय रे, गाथा- ७. ३४. पे. नाम. सीतासती गीत, पृ. २०अ २० आ. Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: छोडी हो प्रीया छोडी; अंति: पग भावे करीजी, गाथा - ११. ३५. पे नाम, प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, प्र. २०-२१अ. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं तुमारा पाय; अंतिः जिण दीठा प्रत्यक्ष, गाथा-७, ३६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-मांकण, पृ. २१अ, पे. वि. प्रतिलेखक ने दो पद के हिसाब से १६ गाथा लिखा है. मु. माणिक, मा.गु., पद्य, आदि: मांकणनो चटको दोहिलो; अंति: कहे करज्यो जयणा हो, गाथा-१६. ३७. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. २१अ - २१ आ. मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदिः समदम गुणना आगरुजी अंतिः साधु तणी ए सज्झाय, गाथा - १३. ३८. पे. नाम. नाणावटी सज्झाय, पृ. २१आ - २२अ. आव. साहजी रुपाणी, रा., पद्म, आदि: हो नाणावटी नाणुं; अंतिः रुपाणी० भवि जिनवाणी, गाथा-८, ३९. पे. नाम. मोक्षरी सझाय, पृ. २२अ - २२आ. मोक्ष सज्झाय, मु. सहजसुंदर, रा., पद्य, आदि: मोक्षनगर मांरो सासरो; अंति: मोक्षरो ठाम रे लाला, गाथा ५. ४०. पे. नाम. पांचइंद्रीउपरी सझाय, पृ. २२आ. ५ इंद्रिय सज्झाय, रा., पद्य, आदि: मात उरे मयगल वनमाहि; अंति: ते पामे सीव मार्ग, गाथा - ७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१. पे. नाम. रहस्य, पृ. २२आ. विजययंत्र कवित, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम पुरख थाप आंक; अंतिः जय जंत्र ईण परे भरो, गावा- १. १५१८९. (+) एकीभाव स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न -अन्वय दर्शक अंकयुक्त पाठ - टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X११, ६X३४). एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., पद्य, ई. ११वी, आदि: एकीभावं गत इव मया; अंति: वादिराजमनुभव्य सहाय लोक-२६. १५१९१. (+) सरस्वती स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-६ (१ से ६) -८, कुल पे. ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित., जैदे., ( २५X१२, ८x२६-३०). १. पे नाम, सिद्धसारस्वत स्तव, पृ. ७अ ७आ, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रारंभिक श्लोक ३ नहीं है, , सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि (-); अंतिः भवत्युत्तम संपदः, श्लोक ९, अपूर्ण. २१७ २. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. ७आ- ९अ. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, मु. उत्तमसागर, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वचनं; अंतिः समुत्पादयतीह शस्वत् श्लोक-१३. For Private And Personal Use Only ३. पे. नाम. सारदाष्टक, पृ. ९-१०अ. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता; अंति: मेधावी बुद्धिविभवेन, श्लोक - ९. ४. पे. नाम, सरस्वती महास्तोत्र, प्र. १०अ ११अ. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि (१) सरस्वती महाभागे वरदे, (२) सरस्वती मया दृष्टा; अंतिः निर्मल बुद्धिमंदिरं, श्लोक-१५. ५. पे. नाम. जगबदंबाछंद, पृ. ११-१४आ. जगदंबा छंद, सारंग कवि, मा.गु., पद्य, आदि: विजया सांभलि बीनती अंतिः भगति भाव इणि परि भणड, गाथा - २८. Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५१९२. स्तवन, स्तोत्र व छंद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. १०, प्रले. मु. हेतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, ११४२८-२९). १.पे. नाम. सीमंधरजिनविनती स्तवन, पृ. १आ-३अ. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हु; अंति: पुरि आस्या मन तणी, गाथा-१४. २. पे. नाम. चौत्रीस अतिसय स्तोत्र, पृ. ३अ-४अ. ३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुमति दायक कुमति; अंति: पय सेव मांगु भवभवे, गाथा-११. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, पृ. ४आ-५अ. मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पासजी ताहरो; अंति: आनंदवर्धन विनवे, गाथा-९. ४. पे. नाम. च्यारमंगल प्रभाति, पृ. ५अ-६आ. ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धार्थ भूपति सोहे; अंति: उदयरत्न भाखे एम, गाथा-२१. ५. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. ६आ-८अ. वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित पूरे विविध; अंति: ऋद्धि वांछित लहे, गाथा-१७. ६. पे. नाम. नवकारनो छंद, पृ. ८अ-९आ. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुख कारण भवीयण समरो; अंति: काज घणाना सीद्ध, गाथा-११. ७. पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद, पृ. ९आ-१०अ. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: आपो आप तुठा, गाथा-७. ८. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १०अ-१०आ. पार्श्वजिन छंद-गोडीपार्श्वनाथ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: धवल धिंग गोडी धणी; अंति: दुखनी जाल त्रोडी, गाथा-८. ९. पे. नाम. गोडीपार्श्व स्तोत्र, पृ. १०आ-११आ. पार्श्वजिन स्तवन, मु. विजयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मुरती श्रीपास; अंति: निधि सिद्धि आणंद घणे, गाथा-११. १०. पे. नाम. चिंतामणीपार्श्वनाथ छंद स्तोत्र, पृ. ११आ. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आणि मनसुध आसता देव; अंति: सुंदर कहे सुख भरपुर, गाथा-७. १५१९३. स्तवन, सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ६, जैदे., (२६.५४१२, १३-१५४३७-३९). १. पे. नाम. ज्ञानदर्शनचारित्रनु स्तवन, पृ. १अ-४आ. महावीरजिन स्तवन-ज्ञानदर्शनचारित्रसंवादरूपनयमतगर्भित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: श्रीइंद्रादिक भावथी; अंति: पभणे संघने जयकार ए. For Private And Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदिः कर्मरूप अंतरालिगट अंतिः आनंदघन पद भावे रे, गाथा- ३. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदिः ॐ हं सोहं का करो; अंति: आनंदघन पद वरनें रे, गाथा - ३. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ. मा.गु., पद्य, आदि: अविचल पदवी पावे; अंति: कृत्याकृत्य सोभा ए, गाथा- ४. ५. पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पृ. ५अ-६आ. पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पच, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथ नंदन नमु; अंति: रामचंद्र तपविधि भणे, ढाल ३, गाथा - ३३. ६. पे. नाम. घडपण सज्झाय, पृ. ६आ. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: घडपण तुझ केणे तेडिओ; अंति: रुपविजय गुण गाय, गाथा-८. १५१९५. विविध विचार संग्रह, त्रुटक, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०६ - ९७ (१ से १०,१२ से २२, २४ से ३४, ३७ से ८२,८४ से ८७,८९ से १००,१०२ से १०४) - ९, कुल पे. १४, प्रले. ऋ. बहेचर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६.५x११, १३-१५X३७-३८). १. पे. नाम. कास्यनी श्रेष्ठिनुं प्रमाण, पृ. ११अ, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति (अपठनीय), अपूर्ण. २. पे नाम. तीर्थादि विविध नाम संग्रह, पृ. ११अ ११ आ. तीर्थादि विविधनाम संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: अग्नितीर्थ कामतीर्थ; अंति: धुंधमार वखाणीई. ३. पे. नाम. लेखणनो श्लोक, पृ. ११ आ. लेखिनी दोहा, मा.गु., पद्म, आदि; माथा गठि मत्त हरे; अंतिः तेने निचे दंदे राय, गाथा - १. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. पे. नाम. चंद्रसूर्यनाडी विचार, पृ. २३अ - २३आ, पू. वि. बीच के पत्र हैं. ज्योतिष अपूर्ण ग्रंथ, सं., प्रा., मा.गु., प+ग, आदि (-); अंति: (-), अपूर्ण. ५. पे नाम, प्रासंगिक दूहा संग्रह, पृ. ३५-३६आ, पू. वि. बीच के पत्र हैं, दोहे १८ से ६० तक है. काव्य / दुहा/कवित्त / पद्य, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), अपूर्ण. ६. पे. नाम. नवग्रह विचार, पृ. ८३अ - ८३आ. मा.गु., पद्य, आदि: समी भोमीथी तारा जेह; अंति: इम इंदु बिजादिक जोय, गाथा-१६. ७. पे नाम. यंत्रफल चौपाई, पृ. ८८ अ-८८आ, पे. वि. यंत्र की विधि भी दी गयी है. पंडित. अमरसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चोविशना पय प्रणम; अंतिः पूजे ते परमारथ लहे, गाथा - १६. ८. पे. नाम. रूपऋषि पट्टावली पद, पृ. १०१अ. मा.गु., पच, आदि रूप ऋषजी गछ स्थापकि; अंतिः एतो ऋषि उजुवालणो, गाथा-२. ९. पे. नाम. रतनसी भास, पृ. १०१अ - १०१आ. For Private And Personal Use Only २१९ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२० www.kobatirth.org (+) मु. नानजी, मा.गु., पद्य, आदि: बंद रे वंद गुणवंत; अंतिः रतनगुर किरतकारी, गाथा-७, १०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पू. १०१आ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा २ अपूर्ण तक है. 9 मा.गु., पद्म, आदि: दिल की बात पीछानी अंतिः (-), अपूर्ण. ११. पे. नाम. पौषध के १८ दोष *, पृ. १०५अ, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., दोष १ से १२ वाला पत्र नहीं है. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (अपठनीय), अपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२. पे. नाम. असमादियाना बोल २०, पृ. १०५ अ. असमाधि के २० बोल, मा.गु., गद्य, आदिः उतावलो चालें तो; अंतिः न रहे तो असमादिउ १३. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. १०५ आ-१०६अ. मु. कमलविजय - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गणधर प्रणमी; अति: श्रीकमलविजय गुरु सीस, गाथा- १३. १४. पे. नाम. समकित के ६७ भेद, पृ. १०६अ - १०६आ, अपूर्ण. सम्यक्त्व के ६७ भेद, मा.गु., गद्य, आदि: परमारथ जाणनो अभ्यास; अंति: (), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५९९६. । साधु श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र विधि सह स्तवन, सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१४, कार्तिक कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. १०, ले. स्थल, विक्रमपुर-बिकान, प्रले. क्र. रणधीर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२५.५X११, २१x६०-६३). १. पे नाम, साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह विधि सहित, पृ. १-४, साधु प्रतिक्रमणसूत्र - तेरापंथी, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि इच्छामि णं भंते अंतिः णमो जियाणं जियभयाणं. २. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह विधिसहित, पृ. ४अ-६आ. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - तेरापंथी, संबद्ध, प्रा., प+ग., वि. १९वी आदि नमो अरिहंताणं नमो अंति: दो नमुत्थुणं पढणा. ३. पे. नाम. पच्चक्खाण छट्टं अज्झयणं, पृ. ६आ-७अ. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: उग्गए सुरे नमुक्कारस; अंति: गारेण वोसिरामि. ४. पे. नाम. पच्चक्खाणप्रमाण विधि, पृ. ७अ. मा.गु., गद्य, आदिः आवलें १ उपवास हुवै; अंतिः करि देखाच्या छ ५. पे. नाम. प्रायश्चित प्रमाण, पृ. ७अ-७आ. प्रायचित्त प्रमाण, मा.गु., गद्य, आदि: निरस सरस आहार परठवें अंतिः भागलने संधारो देणे. For Private And Personal Use Only ६. पे नाम, पंचमहाव्रत भांगा, पृ. ७आ-८अ. मा.गु., गद्य, आदि: पांचमहाव्रतना भांगा; अंतिः भांगा २२५ थाये. ७. पे नाम. साधुरक्षित ५२ जीवभेद, पृ. ८अ. मा.गु., गद्य, आदि: एकेंद्रीना ४ अंति: मनषणा ८ एवं ५२ थया. ८. पे नाम, चरणसत्तरीकरणसत्तरी गाथा, पृ. ८अ. चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वय समणधम्म संजम वेया; अंति: ४ चेव कर्णतु, गाथा - २. Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ९.पे. नाम. वीर तवन, पृ.८अ. महावीरजिन स्तवन, ऋ. रणधीर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर वंदीये; अंति: महेसर सहिर चोमास, गाथा-१३. १०. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. ८अ-८आ. महावीरजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: श्रीवीर जिणंद सासणधण; अंति: ईया धन धन वीर जिणंद, गाथा-१०. १५१९७. छंदसंग्रह आदि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-२(१ से २)=६, कुल पे. ८, जैदे., (२६४१०.५, १७४५६). १. पे. नाम. पश्यमाधीश छंद, पृ. ३अ-३आ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. क. विदुर, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: ध्यावो पश्यमरो धणी, गाथा-२४, अपूर्ण. २. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-गोडी, पृ. ३आ-४अ. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति द्यो मुझ; अंति: एह धवलधिंग गौडी धणी, गाथा-९. ३. पे. नाम. गौडीपारसनाथ छंद, पृ. ४अ-४आ. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. करमसी, मा.गु., पद्य, आदि: गवरीपुत्र गणेशवर; अंति: रिद्ध नवनिध दीयै, गाथा-८. ४. पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. ४आ-५अ. क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: सुप्रसन शनीस्वर वरि, गाथा-१७. ५. पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद-फलवर्धि, पृ. ५अ-५आ. पार्श्वजिन छंद-फलवधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: परिता पूरण प्रणमीये; अंति: सेवकने सानिध करै, गाथा-२२. ६. पे. नाम. भवानी छंद, पृ. ५आ-८अ. भवानीदेवी छंद, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: जणीमाता जालंधरी जणी; अंति: दीपक दूनीयं दीपती, गाथा-७१. ७. पे. नाम. गणपतिजाप मंत्र विधिसहित, पृ. ८अ. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो गंगा गणपत; अंति: गणेश आगि मुकीजै. ८. पे. नाम. हनुमंत छंद, पृ. ८अ. हनुमंतदेव छंद, मा.ग..रा.. पद्य, आदि: पवनपुत्र परिणाम कर: अंति: रामभीच रक्ष्या करि, गाथा-९. १५१९८. (+) इकवीसठाणा, बारपर्षदा सह टबार्थ व स्वसरणविचार, पूर्ण, वि. १८६९, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(१०)=१८, कुल पे. ४, ले.स्थल. श्रीमालनगर, प्रले. पं. सुखसागर (तपगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ४४२५-२८). १.पे. नाम. इकवीसठाणक सह टबार्थ, पृ. १आ-१६अ, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., गाथा-४२ टबार्थ सहित अपूर्ण एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-६८, पूर्ण. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: च्यवन विमाननाम नगरी; अंति: समय साधारणइ कह्या, पूर्ण. २. पे. नाम. १२ पर्षदा विचार सह टबार्थ, पृ. १६आ. For Private And Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२ पर्षदा स्तुति, सं., पद्य, आदिः आमेवां गणभूद्रिमान अंतिः संभूषितं पातु वः, श्लोक १. १२ पर्षदा स्तुति - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अग्निकुणे गणधर विमान; अंति: देव माहरी रक्षा करो. ३. पे. नाम. समवसरण विचारसंग्रह, पृ. १७अ - १९आ. मा.गु., गद्य, आदि: हिवे बारे परषदा कहे; अंति: परषदानो समोसरणे थाई. ४. पे नाम, समवसरण क्षेत्रमानादि विचार संग्रह, पृ. १७-१९आ, पू. वि. मूल गाथा - २+६. विचार संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: ( अपठनीय); अंति: (अपठनीय). १५१९९. (+) वीसस्थानक पूजा, तपविधि व छअठाइ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-२ (१ से २) ६, कुल पे. ३, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५x११, १६x४४-४९). = १. पे. नाम. २० स्थानक पूजा, पृ. ३अ-८अ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: (-); अंति: सवल संघ मंगल करो, ढाल २०, अपूर्ण, २. पे. नाम. बीशस्थानकतप विधि, प्र. ८अ. २० स्थानकतप आराधनविधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि ए वीशधानक तप; अंतिः कही संक्षिप्त विधि. ३. पे, नाम, ६ अड्डाइ स्तवन, पृ. ८अ ८आ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: श्रीस्याद्वाद शुद्धो; अंति: (-), अपूर्ण. १५२०२. (+) कर्मग्रंथ १-५ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६६६, माघ कृष्ण, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५३, कुल पे. ५, प्र. मु. जनसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें, जैये., (२५x११, १३४५६). १. पे, नाम, कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. १-१२आ. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि सिरिवीरजिणं बंदिय; अंतिः लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा - ६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानजिनं नत्वा; अंति: देवेंद्रसूरि० काउ. २. पे नाम, कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह वालावबोध, पृ. १२-१७अ. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्म, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तिम श्रीमहावीर प्रति; अंति: १४ आतैका १५ एवं १५. ३. पे नाम, बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. १७अ-२१अ. स्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि; बंधविहाणविमुक्त; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोडं, गाथा - २४. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ बालावबोध मे, मा.गु., गद्य, आदि: बंध सामित्त विचार; अंति: बंधसामित्व जाणिवड. ४. पे. नाम षडशीति नव्य कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. २१-३२अ. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा -८६. For Private And Personal Use Only षडशीति नव्य कर्मग्रंथ- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वीतरागदेव नमस्कार; अंति: लिखि देवेंद्रसूरिहिं. ५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पू. ३२-५३ आ. Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिय जिणं ध्रुवबंधोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणड्डा, गाथा - १००. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वीतराग नमस्करीनइ; अंति: कीधउ परोपकारनइ काजि . १५२०५. सिंदूरप्रकर सह टबार्थ व कथा, पूर्ण, वि. १७८९ श्रेष्ठ, पृ. ६७-१ (६६) - ६६, ले. स्थल. भिनमालनगर, प्रले. पं. मेघराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखक ने सशिष्य भीनमाल के चातुर्मास में प्रत लिखने का उल्लेख किया है., जैदे., (२५.५X११, १४-१५X४३). सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः माने निशमेति नाशम्, श्लोक ९८, पूर्ण. सिंदूरकर - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदूरनो प्रकर समुह; अंति: अनिसं सदा नाश माड, पूर्ण. सिंदूरप्रकर- कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म करवाने प्रसादे; अंति: साधुनी क्रिया जाणवी, १५२०६. (+) दीपालीकल्प सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७८६, चैत्र शुक्ल १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ८०, ले. स्थल, राजनगर, प्रले. . कांतिविजय (गुरु ग. मानविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. सं. १७८६ वाली प्रत की प्रतिलिपि होनी चाहिये, क्योकिं प्रत देखने से २०वी की लगती है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र. ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६X११, ४x२४). २२३ दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये, श्लोक-४३५. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., गद्य, वि. १७६३, आदि: अहं नत्वाल्पबुद्धि; अंतिः तिवार लगें प्रतपो, ग्रं. १०००. १५२०७. (+) शतक नव्य कर्मग्रंथ सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९० प्र. वि. त्रिपाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें -संधि सूचक चिह्न, जैदे., (२५X११, १-२४३३). शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिव जिणं ध्रुवबंधोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणड्डा, गाथा - १००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः यो विश्वविश्वभविनां; अंतिः सर्वोपि तेन जनः, ग्रं. ४३४०. १५२०८. भक्तामरस्तोत्र सह टीका व कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८, प्र. वि. प्रथम पत्र पर भक्तामर - आम्नाय है., जैदे., (२६X११, १५x५० ). ,श्रेष्ठ, पृ. ५५, १५२१०. गौतमपृच्छा सह व्याख्या व कथा, संपूर्ण, वि. १८८१, वैशाख कृष्ण, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, ले. स्थल, हरडुवागंज, प्रले. ऋ. जोतरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६११, १३४३६). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा - ६४. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र- गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि: (१) पूजाज्ञानवचोपायापगमा, (२) सम्यग् जिनपादयुगं; अंति: पमतिः ० प्रायशः संति, ग्रं. १५५०. भक्तामर स्तोत्र - कथा, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, आदि: पुरामरावती जविन्यां अंतिः धर्मं च पालयामास, कथा - २८. For Private And Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदि: नत्वा तीर्थनाथं जान; अंति: सुगमा सुखबोधिका, ग्रं. १६८२. गौतमपृच्छा-कथा, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, आदि: एकस्मिन ग्रामे एको; अंति: मोक्षं यास्यति. १५२१६. (+) सम्यक्त्वकौमुदी, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सप्तमी कथा अपूर्ण तक है., जैदे., (२६४११, १३४५३). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: (-), अपूर्ण. १५२१७. चतुर्मास व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १७७९, फाल्गुन कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ.७, प्रले. मु. गुणनिधान-शिष्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०, १३-१६४३१-३४). चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणम्य परमानंदात्; __ अंति: चतुर्मासिकव्याख्याम्, ग्रं. २१३. १५२१८. (+) मुनिपति चरित्र, संपूर्ण, वि. १४०७, फाल्गुन शुक्ल, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४, प्र.वि. प्रायः शुद्ध पाठ. कुल ग्रं. ६३५, जैदे., (२५४९.५, १३४३६). मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११७२, आदि: नमिऊण महावीरं चउ; अंति: रम्म हरिभद्दसूरीहिं, गाथा-६३०. १५२२०. कथाकोश, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११७, जैदे., (२५४१०, १३-१४४४१-४४). जैन कथाकोश, सं., गद्य, आदि: यांति दृष्टं दुरितान; अंति: मोक्षं यास्यतः, कथा-२८. १५२२४. भरहेसर सज्झाय सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्रेणिककथा प्रारंभिक अंश तक है., जैदे., (२४४१०.५, १२४३४). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: (-), अपूर्ण. भरहेसर सज्झाय-वृत्ति, ग. शुभशील, सं., गद्य, वि. १५०९, आदि: युगादौ व्यवहाराध्वा; अंति: (-), अपूर्ण. १५२२५. (+) आगमसारोद्धार व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे. २, ले.स्थल. जालोरगढ, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२३.५४१०.५, १७४४०). १. पे. नाम. आगमसारोद्धार सह बालावबोध, पृ. १-२३आ. आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: हिवै भव्यजीवने; अंति: तिथि सफल फली मन आस. आगमसारोद्धार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: तिहां प्रथम जीव; अंति: (१)ते समकीत जाणवो, (२)तिथि सफल फली मन आस. २. पे. नाम. जैन सामान्यकृति , पृ. २३आ. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). १५२२६. महावीरजिन व नेमिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१०(१ से १०)=५, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १५-१६४३८-५०). १. पे. नाम. महावीर स्तवन जन्मोच्छवाधिकारगर्भित, पृ. ११अ-१५आ. For Private And Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २२५ महावीरजिन स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: सकल कुशल तरुयर सजल; अंति: स्तव्यो जिन जग जयकरो, ढाल-७, गाथा-१३६. २.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १५आ. मु. विमल-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात पसाउलइ रे; अंति: सीस० भाव धरी घणो, गाथा-१२. १५२२९. विक्रमसेनलीलावती रास, संपूर्ण, वि. १८४५, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६२, ले.स्थल. कालद्री, प्रले. मु. रुपविजय (गुरु पंडित. मानविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (२३) जब लग मेरु अडग है, (५१०) यादृसं पुस्तकं दृष्टवा, जैदे., (२५.५४११, १३४३४). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: परम ज्योति प्रकास; अंति: परमसागर आणंदा रे, ढाल-६४. १५२३०. (+) नंदीसूत्रस्थविरावली व आवश्यकसूत्रनियुक्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८४, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., (२६४११, १३४५०-५३). १. पे. नाम. नंदीसूत्र-स्थविरावली, पृ. १अ-२अ. संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीविआणओ; अंति: नाणस्सपरूवणं वुच्छं, गाथा-५०. २. पे. नाम. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , पृ. २आ-८४आ. आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: जणो लहउ मोक्खं. १५२३१. (+) ज्ञातधर्मकथांगसूत्र सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४७+१(४९)=१४८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १३४४४). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपाए; अंति: धम्मकहाओ सम्मत्ताउ, अध्ययन-१९, ग्रं. ५७६१. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टिप्पण *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १५२३३. भरहेसरवृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२१-१७(१ से १७)=१०४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., श्रेणिक कथा से आर्यरक्षितकथा अपूर्ण तक है., जैदे., (२६४११, १३-१५४४६). भरहेसर सज्झाय-वृत्ति, ग. शुभशील, सं., गद्य, वि. १५०९, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १५२३४. योगचिंतामणि सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७०७, वैशाख शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७८, ले.स्थल. जालोरदुर्ग, प्रले. ग. भोजरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, ४८४५४). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: सप्तमको मिश्रकाध्याय, अध्याय-७. योगचिंतामणि-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम स्त्री योग्य; अंति: सः सप्तमः संपूर्णः. १५२३५. श्रीपालरास सह बालावबोध खंड-२,३, प्रतिअपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. ४५, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा खंड-३ की ढाल-८ की दसवी गाथा से लिखा है, ले.स्थल. कोरटानगर, प्रले. पं. मानविजय (गुरु ग. ऊदेविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १-६४३६-४२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय ; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, प्रतिअपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रीपाल रास-दुहा का बालावबोध', मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५२३६. श्रीपाल रास खंड-१,२,३, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, प्र.वि. जैदे., (२५.५४११, १३-१४४३४-४०). श्रीपाल रास. उपा. विनयविजय ; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १५२३७. (+) पंचाख्यान चौपाई, पूर्ण, वि. १६५८, कार्तिक कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १००-१(८३)=९९, ले.स्थल. पत्तन, प्रले. मु. खीमसी (गुरु मु. जीवा, भावडारगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४८-५२). पंचाख्यान चौपाई, मु. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६२२, आदि: प्रणम्य पूर्वं; अंति: सुगुरू कवि पूरइ आस, अधिकार-५, गाथा-२६२६, पूर्ण. १५२३८. उत्तराध्ययनसूत्र भास, पूर्ण, वि. १६४५, चैत्र कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. २३-१(८)=२२, ले.स्थल. नवानगर, पठ. सा. हंसाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४३५-३८). उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: अमीयसमाणी वाणी वरसता; अंति: मंगलिक माला लहिसिइ, सज्झाय-३६, पूर्ण. १५२३९. विमलमंत्री रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६६-१(१)=६५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., खंड-१ गाथा- ९ से खंड-१० गाथा-१६७ तक है., जैदे., (२६४११, १५-१७४२९-३३). विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६८, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १५२४०. जिन रस, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२४४११, १३४३२-३६). जिनरस, मु. वेणीराम, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: गणपत सारद नमी आखु; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५२४१. पासाकेवलीभाषा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२४.५४११.५, ७-९४२६-३२). पाशाकेवली-भाषा *, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम थानक लाभ; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५२४२. (+) अभिधानचिंतामणिनाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., कांड-२ श्लोक २४४ तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२५४१०.५, १३४४२). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), ___अपूर्ण. १५२४४. सिद्धांतसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १८६९, माघ शुक्ल, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८९, ले.स्थल. सीवपूरी, प्रले. मु. देवेंद्रविजय (गुरु मु. केशरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१२४) हेतकर पोथी लखी, (५३३) मंगलं लेखकानां च, (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, (६७६) भणज्यो गुणज्यो सीषज्यो, (६७७) ज्यां लग मेरू अडग है, जैदे., (२६४११.५, १०-१६x२५-५०). ___ सिद्धांतसारोद्धार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीप विगत ५२६; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १५२४५. श्रीपाल रास व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८७९, कार्तिक कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ७९, कुल पे. २, ले.स्थल.टांपी, प्रले. पं. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १२४२७). १. पे. नाम. श्रीपाल रास, पृ. १-७९. उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४, ढाळ ४१. For Private And Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २२७ २. पे. नाम. जैन श्लोक , पृ. ७९अ. सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). १५२४६. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८५३, पौष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. कालद्री, प्रले. मु. किसनचंद (गुरु पं. नायकविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४११, १०-१२४३६). जिनस्तवनचौवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जगजीवन जगवाल्हो; अंति: तुं जीवजीवन आधारो रे, स्तवन-२४. १५२४७. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह अर्थदीपिकावृत्ति, संपूर्ण, वि. १६५२, आश्विन कृष्ण, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२७, ले.स्थल. मूडाडा, प्रले. मु. सहसमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-प्रायः शुद्ध पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १८४५३-५९). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०, ग्रं. ४११. वंदित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४९६, आदि: जयति सततोदयश्रीः; अंति: जीयादियं च चिरम्, अधिकार-५, ग्रं. ६६४४. १५२४८. (+) मौनएकादशी व पोसदसमी कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. मु. कीर्तिविमल (गुरु ग. ज्ञानमेरुजी, बृहत्खरतरगच्छ.), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४०). १. पे. नाम. मौनएकादशी कथा, पृ. १अ-४अ. मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: सादादानंदमाला भवतु. २. पे. नाम. पोसदसम कथा, पृ. ४अ-६आ. पौषदशमीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: अभिनवमंगलमालाकरणं; अंति: स्मरणादानंदमाला भवतु. १५२४९. शीलोपदेशमाला सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२३, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका श्लोक के अधूरे भागवाला पत्र नहीं है., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैदे., (२७४११, १४-१५४५३). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अबालबंभआरि नेमिकुमार; अंति: आराहइ लहइ बोहि फलं, कथा-४३, गाथा-११५. शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, ग. मेरुसंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदि: श्रीवामेयममेयश्रीसहि; अंति: राइ मोक्षफल पणि पामउ, ग्रं. ५२००. शीलोपदेशमाला-कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: लाख जोअण प्रमाण जंबू; अंति: सर्वसुखनु पात्र हुई. १५२५०. (+) सूक्तिमुक्तावलि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, प्रले. गौरीशंकर गोविंदजी भट्ट; पठ. श्राव. प्रागजी शाहा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ४४३०). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-९८. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदूरनो प्रकर समुह; अंति: मुनीश्व० मानवा योग्य. १५२५१. शामशतक, संपूर्ण, वि. १९१८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६४११.५, १०४३२). समताशतक, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: समता गंगा मगनता उदास; अंति: सुसीख ए आप आपकु देत, गाथा-१०७, ग्रं. १२०. For Private And Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५२५२. नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२६.५x११.५, १४४४२). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं हवइ अंतिः मोक्षं प्रतिपद्यंते, स्मरण ९. १५२५४. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७११, १०x४०). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंति: विजयभद्र० भए, गाथा - ८१. (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५२५५. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १० -२ (६ से ७) = ८, पू.वि. सज्झाय - ६ की गाथा-४ से सज्झाय-८ तक नहीं है., जैदे., ( २६.५X११.५, ११x२८). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरूपदपंकज नमीजी; अंति: ए गायो सकल जगीसे रे, सज्झाय- १०, अपूर्ण. १५२५६. (+०) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२६११.५, ५X३४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिवंत जे अमर कहिय; अंति: लक्ष्मी क० लाछि, ग्रं. २५०. १५२५७. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. क्र. धना; पठ. सा. रुपाइ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२७X११.५, ५X३० ). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इणइ पहिलइ काव्यह; अंति: लक्ष्मी द्रव्यादिक. १५२६०. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, प्रले. करसन वेलजी दवे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कथा व मंत्राम्नाय भी है., जैदे., (२७X११.५, १०X३५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र- बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदि: (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं, ( २ ) श्रीमहावीर प्रणमी; अंति: तेहनी सर्व आपदा जाई. भक्तामर स्तोत्र - कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: एकदा जिनमतना द्वेषी; अंतिः कीधो राज्य भोगव्यू, कथा - २८. १५२६१. (+) अजितशांति स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल. भावनगर, प्रले. करसन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीऋषभदेवप्रसादात्., जैदे., (२७X११.५, ४X३४). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आवरं कुणह गाथा -४०. अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अजितनाथ जीता छद सर्व; अंतिः वचन तेहने विषे आदरवो. १५२६२. (+) कर्मग्रंथषट्क सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५०, वैशाख शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ८७, कुल पे. ६, ले.स्थल. सुभटपुर-जोधपुर, प्रले. मु. न्यानविजय (गुरु पंडित. दौलतविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२६.५x१२, ३४३२). , १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य प्रथम कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १आ - १४अ. For Private And Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २२९ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर जिन प्रति; अंति: सूरिने शिष्यै रचौ. २. पे. नाम. कर्मस्तव द्वितीय नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १४अ-२२अ. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: हवे बीजा कर्मग्रंथनो; अंति: करु ते महावीर प्रतै. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व तृतीय नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. २२अ-२८अ. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्क; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउ, ___ गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बंधविहाण कहता कर्मना; अंतिः स्तव भणी सांभलीनइ. ४. पे. नाम. चतुर्थ कर्मग्रंथ षडशीतिका सहटबार्थ, पृ. २८आ-४७अ. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदीनइं तीर्थंकर; अंति: श्रीतपागच्छनायकइ, ग्रं. १३५०. ५. पे. नाम. शतक पंचम कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ४७अ-६९अ. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिण आयसरणट्ठा, गाथा-१००, ग्रं. १४७. शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमीनइ जिनप्रतइ; अंति: संभारवानइ अर्थइ, ग्रं. ५०७. ६.पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ६९अ-८७अ. सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगुणा होइ नउइओ, गाथा-९३. सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्ध निश्चल पद छइ; अंति: उणी नेउ गाथा होइ. १५२६३. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८५७, पौष कृष्ण, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६८, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पंन्या. मोतीविजय (वडीपोसालगच्छ); पठ. श्राव. मलुकचंद वखतचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १३४३५-३८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४, ढाळ ४१. १५२६४. हंसराजवछराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १८९०, कार्तिक कृष्ण, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३६, ले.स्थल. मांडावा, प्रले. ऋ. हीरचंद (गुरु ऋ. खुबचंद), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३६). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोवीसे; अंति: ए हंस अनै वच्छराज, खंड-४, ढाल ४८. १५२६६. (+) आगमिक विविध विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, २-२३४४८-७६). विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). For Private And Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५२६७. मुनिपति चरित्र, संपूर्ण, वि. १९३६, वैशाख शुक्ल, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५०, ले.स्थल. मोरबी, प्रले. श्राव. हिराचंद मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२, ९x४४). मुनिपति चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणिपत्य पार्श्वनाथ, (२)इहां त्रेवीसमा; अंति: सिद्ध पामस्ये, ग्रं. १२००. १५२७०. भुवनभानुकेवली चरित्र, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७७, पू.वि. मात्र प्रशस्ति भाग नहीं लिखा है., जैदे., (२६.५४१२, १५४४०). भुवनभानुकेवली चरित्र-बालावबोध, मु. हरिकलश, मा.गु., गद्य, आदि: (१)सिरिवीरं नमीअजिणं, (२)तथाहि एह जंबूद्वीप; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५२७१. जंबू चरित्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९८, चैत्र कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४१, ले.स्थल. भाणवडनगर, प्रले. पं. विनीतविजय (गुरु पं. रामविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री ऋषभदेवजी प्रसादात्., जैदे., (२६.५४१२, ७X४३). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे: अंति: से आराहगा भणिया. उद्देशक-२१. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनि विषइ ते; अंति: ते आराधक जीव कह्या. १५२७२. धन्नाचरित्र व जैनश्लोक सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८५०, श्रेष्ठ, पृ. १०७-१(१)=१०६, कुल पे. २, ले.स्थल. इलादुर्ग, प्रले. मु. कल्याणविजय (गुरु पंडित. रूपविजय गणि); पठ. मु. रामचंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (३०१) डालो सायर ससही, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६०८) जिहां लगे मेरू अडग हैं, जैदे., (२६४१२, ६x४०). १.पे. नाम. धन्यशालिभद्र चरित्र सह टबार्थ, पृ. २अ-१०६आ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रारंभिक श्लोक-६ तक नहीं हैं. दानकल्पद्रुम, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रीदानकल्पद्रुमः, पल्लव-९, ग्रं. १५००, (पूर्ण, _ वि. १८५०, कार्तिक कृष्ण, ७) दानकल्पद्रुम-टबार्थ, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८३३, आदि: (-); अंति: प्रति जीयात्, ग्रं. ३०६१, (पूर्ण, वि. १८५०, पौष शुक्ल, ८) २. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह सह टबार्थ, पृ. १०७अ. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), श्लोक-२. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). १५२७६. दशाश्रुतस्कंधसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२०, कार्तिक कृष्ण, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४६, प्रले. सा. सिंदुरा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x११.५, ६x४६). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, दशा-१०. दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार थावो अरिहंत; अंति: जंबू प्रते कह्यो, ग्रं. ८००. १५२७८. गीत, श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, २६-३३४१६-२०). १. पे. नाम. आगम स्वाध्याय, पृ. १अ-२अ. वाघो, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चतुष्टय रे आतमा; अंति: इणी वावि झिलुणु वामि, गाथा-१२. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह , पृ. २आ. For Private And Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २३१ प्रा.,मा.गु.,सं.,हिं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). १५२७९. सुभाषित संग्रह, विचार संग्रह आदि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५-१८(१ से ९,११ से १४,१६ से २०)=१७, कुल पे. १५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. प्रतिलेखक की भूल से पाठानुसंधान क्रम में पत्रांक व्यवस्थित नहीं लिखा गया है. पाठ मिलाकर पत्रों को क्रमशः किया गया है., जैदे., (२७.५४११.५, ११४३०-३५). १. पे. नाम. औपदेशिक सवैया संग्रह, पृ. १०, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., पे.वि. सवैया-५९ से ६४ तक है. ___ औपदेशिक पद्य संग्रह, मु. मुनिचंद, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १५अ. मु. धर्मसिंह, पुहि., पद्य, आदि: वीर पुरुष बलवान एक; अंति: शास्त्ररीति वखाणिई, गाथा-२. ३. पे. नाम. प्रासंगिक विविध जैन सुभाषित संग्रह, पृ. १५अ-३१अ, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., पे.वि. प्राकृत, संस्कृत व देशी भाषाबद्ध सुभाषितों का संग्रह है. जैनकाव्य संग्रह*, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), अपूर्ण. ४. पे. नाम. विचार संग्रह , पृ. ३१अ-३२आ. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). ५. पे. नाम. देववंदनसूत्र के कोष्ठक, पृ. ३२आ. देववंदनसूत्र के पद आदि संख्या कोष्टक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३३अ, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा पत्र-२७ लिखा गया सही नहीं है इसे गिनती क्रम में ३३ नं.पर रखा गया है. क. दिन, पुहिं., पद्य, आदि: किनकी विगरी उनकी; अंति: विन नहीं सुधरे विगरी, गाथा-४. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३३अ. क. दिन, पुहिं., पद्य, आदि: किनकु फिट रे उनकुं; अंति: दिन कहे उनकुं फिट रे. ८. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ३३अ. ___क. दिन, पुहि., पद्य, आदि: किनकुं ध्रिग हे उनकु; अंति: कहे जिनकुं ध्रिग हे. ९. पे. नाम. श्रावक के १४ प्रकार, पृ. ३३आ. ___ सं., पद्य, आदि: मृता चालिणी महिख हश; अंति: भुवि चतुर्दशधा भवंति, श्लोक-१. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३३आ. श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, आदि: इस नगरी में किस विध; अंति: सायब लुट गया डेरा. ११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३३अ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-५ अपूर्ण तक है. पुहिं., पद्य, आदि: सजन मत जानो प्रीत; अंति: (-), अपूर्ण. १२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३५अ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा २ अपूर्ण तक नहीं है. आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: सकल समीहित कीना हो ज, गाथा-६, अपूर्ण. १३. पे. नाम. औपदेशिक दोहे, पृ. ३५अ-३५आ. पुहि., पद्य, आदि: खेती पाती वीणती; अंति: नही हुला डारी भुवा. For Private And Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ३५आ. क. मान, मा.गु., पद्य, आदि: काया की सगाइ नही; अंति: नहीं सास की सगाइ है, गाथा-२. १५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३५आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१ तक है. मा.गु., पद्य, आदि: स्वान भये पनगडसे; अंति: (-), अपूर्ण. १५२८०. सकलार्हत् स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९३३, वैशाख कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ.८, प्रले. गौरीशंकर गोविंदजी भट्ट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४१२, २-६४३९-४६). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान%3; अंति: श्रीवीरजिननेत्रयोः, श्लोक-२६. सकलार्हत् स्तोत्र-टीका, ग. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५४, आदि: वयम् आर्हत्य; अंति: शोधनीयेयमादरात्, ग्रं. २८२. १५२८१. महावीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४१२, ११४३०). महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु; __ अंति: नामे लही अधिक जगीस ए, ढाल-३. १५२८२. अष्टोत्तरीस्नात्र, शांति व शांतिस्नात्रविधि, अपूर्ण, वि. १८७२, आश्विन शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(२)=१०, कुल पे. ३, प्रले. पदमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, १२-१३४२८-३४). १. पे. नाम. बृहत्शांतिस्नात्र विधि संग्रह, पृ. १अ-४अ, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तथा प्रथम उपरण मेलवा; अंति: रक्ष रक्ष स्वाहा, अपूर्ण. २. पे. नाम. शांतिपूजा विधि, पृ. ४अ-७आ. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ननु संघादीनां विघ्नो; अंति: श्च दूरतो यांति. ३. पे. नाम. शांतिस्नात्रविधि भाषा, पृ. ७आ-११अ. __ मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तिहां चंद्रबल योगइ; अंति: जलइ करी सींचउ घालीयइ. १५२८३. (+) पाक्षिक सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्र.वि. संशोधित., गु., (२८x१२.५, ८-११४२८-३१). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: जेसि सुयसायरे भत्ति. १५२८४. सत्तरिसयठाणं सूत्र, संपूर्ण, वि. १९२३, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्रले. कल्याणदास भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, ११४३४-३८). सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि , प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदि: सिरिरिसहाइ जिणिंदे; अंति: जाइ सो सिद्धिठाणे, गाथा-३६०. १५२८६. प्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह व स्तुतिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. ११, ले.स्थल. गोधावी, प्रले. पं. जतनकुशल, जैदे., (२८x१२, ११४३३). १.पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, पृ. १आ-१६आ. संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: जस्सउतिहुअण सयले. २. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १६आ-१७अ. For Private And Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १७अ १७आ. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: ए सफल करो अवतार तो, गाथा-४. ४. पे नाम, अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १७-१८अ. २३३ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल आठ करी जिन आगल; अंतिः तपथी कोडि कल्याणजी, गाथा-४. ५. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १८अ. मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: वारो संघ तणा निशदिश, गाथा-४. ६. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति स्नातस्या, पू. १८अ - १८ आ. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ७. पे नाम, कलाकंद स्तुति, पृ. १८आ-२०अ. प्रा., पद्य, आदि कलाणकंदं पदमं; अति अम्ह सया पसत्था, गाथा-४, For Private And Personal Use Only ८. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १९अ - १९आ. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाइ, गाथा-४. ९. पे नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १९आ. मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेशर अति अलवेसर; अंति: सानिध करज्यो मायजी, गाथा-४. १०. पे नाम. पर्युषण पर्व स्तुति, पृ. २०अ. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेदी जिनपूजा; अंतिः पुरो देवी सिद्धाइजी, गाथा-४. ११. पे नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. २० आ. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु वीरजिणेसर तमचरी; अंति: लाल० संकट सवि हरे, गाथा-४. १५२८७. चउसरण पयन्ना सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १३, ले. स्थल पत्तन, प्रले. मु. हिम्मतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१२.५, ३X३७). चतुः शरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि; सावज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुः शरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणिपत्य महावीर; अंति: छे ए अध्ययन इत्यर्थः . ラ १५२८८. (*) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैये. (२५x१२, १०x३८). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्म, वि. १४१२, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंति: बंछित फल मुझ फल्याए, गाथा - ६७. १५२८९. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६२, फाल्गुन कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा टबार्थ अपूर्ण. गाथा १० तक ही टवार्थ है., राज्ये गच्छा, जिनरत्नसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५x१२.५, ६४३९-४९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: दुचक्की केसचक्कीय, गाथा - १००, नवतत्त्व प्रकरण-वार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः प्रणिपत्य जिनाधीशं; अंतिः (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५२९०. बारे भावना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैवे., (२७.५x१३, १५४४५). Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२ भावना पद, रा., पद्य, आदि: हां रे जीव गढ मड पौल; अंति: मोरा देवी माताने भाई, भावना-१२. १५२९१. (-) सज्ज्ञाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-३(१ से ३)=११, कुल पे. ११, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, १२-१३४२७-३०). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१८ अपूर्ण से है. मु. मेघ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सरणे राख जिनेसयरं, गाथा-२५, अपूर्ण. २. पे. नाम. सुगुरु महिमा सज्झाय, पृ. ४आ-५अ. सुगुरुमहिमा सज्झाय, रा., पद्य, आदि: दोय जोगी आय नीअमां; अंति: गुरु सरववीरत बतलावरी, गाथा-१०. ३. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. ५अ. रा., पद्य, आदि: तुम सुनीयो कुरना; अंति: प्रभु पार कीजो जी, गाथा-४. ४. पे. नाम. दान सज्झाय, पृ. ५अ-६अ. मु. जयैतादास, मा.गु., पद्य, आदि: दान एकमन दे रे जीवडा; अंति: ए कहे जंकीदासय रे, गाथा-१४. ५. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. ६अ-७अ. मु. दुर्गादास, रा., पद्य, वि. १८३१, आदि: अरिहंत पहले पद जानी; अंति: आसां फलतंत सारी, गाथा-१४. ६. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. ७अ-९आ. पुहिं., पद्य, आदि: दुर्लभ लाधो मनुष्य; अंति: क्रोध लोभ अहंकार नही, गाथा-२०. ७. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०अ. म. दियाल, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीसंत जीणेसर संत; अंति: दियाल० होवय परीत धरो, गाथा-१४ ८. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १०अ-११अ. जटमल, रा., पद्य, आदि: असो रे सुभट नर निकले; अंति: धरम के भाव जटमल गाये, गाथा-१०. ९. पे. नाम. महावीरजिन चौदस्वप्नगर्भित स्तवन, पृ. ११अ-१३अ. महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., पद्य, आदि: एक मन वंधु श्रीवीर; अंति: पुरो मन वंछत घणी, गाथा-२८. १०. पे. नाम. साधुपद सज्झाय, पृ. १३अ-१४अ, पे.वि. रचनावर्ष अंतर्गत माघ मास दिया गया है व रचनाप्रशस्तियुक्त अंतिम गाथा नहीं लिखी गयी है. मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: समकितधारी सुधमतीजी; अंति: कोइ सोली किनी सार, गाथा-१६. ११. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १४अ-१४आ. मु. वालचंद, पुहि.,रा., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत देव देवकर; अंति: कर सोव मुढ काई रे, गाथा-३. १५२९२. स्तवन, स्तोत्रआदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ११, जैदे., (२७.५४१२.५, १३४३४-३७). १. पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १अ-२अ. ___मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शशिकर जिनकर सम; अंति: पुजो नित सरस्वति, ढाल-३, गाथा-१४. २. पे. नाम. संखेश्वर छंद, पृ. २अ. For Private And Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २३५ पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर सेवे; अंति: जिनहर्ष अकल अविनास, गाथा-८. ३. पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. २अ-३अ. सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, पृ. ३अ-५अ. मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: मुदा प्रसन्नः, श्लोक-३२. ५. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ५अ. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ६. पे. नाम. जिनदेहरे जावा लाभ छंद, पृ. ५अ-६अ. शांतिजिन स्तोत्र, म. उत्तमरत्न, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: स्मर शांति जिन जिन; अंति: कर्यो छे हे श्वजना, श्लोक-१५. ७. पे. नाम. नोकार छंद, पृ. ६अ-७अ. नमस्कार महामंत्र छंद, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित पुरण वीवीध; अंति: सिद्धि वंछित लहे, गाथा-१३. ८. पे. नाम. अष्टप्रकारीपूजाविधि स्तवन, पृ. ७अ-७आ. मु. प्रीतविमल, मा.गु., पद्य, आदिः सुवधिनाथनी पूजा सार; अंति: विमल कहे मन उल्लास, गाथा-१३. ९. पे. नाम. संषेश्वर छंद, पृ. ७आ-९अ. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. कनकरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७११, आदि: सरसति सार सदा बुध; अंति: कनक सदा० मन सिद्धो, गाथा-२५. १०. पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. ९अ-९आ. आ. भद्रबाहस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहाणां शांति हेतवे, श्लोक-११. ११. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. ९आ. सं., पद्य, आदि: श्रीमद्युगादिदेवाय; अंति: संभवेस्तु नमो नमः, श्लोक-४. १५२९४. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, लिख. श्रावि. जासुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१३, ३४२७-३०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: दुसय छसत्त नवतत्ते, गाथा-६७. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनाज्ञा वचं एव; अंति: २७६ भेद जाणवा. १५२९५. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ६, जैदे., (२६.५४१३, १७४४३-४६). १.पे. नाम. चरचारी ढाल, पृ. १आ-२आ. आनंदश्रावक सज्झाय, म. कनीराम, रा., पद्य, वि. १८८६, आदि: पडिमाधारी आणंद: अंति: मिथ्यातरो नासो रे. गाथा-४४. २.पे. नाम, जीवदया सज्झाय, पृ. २आ-५अ. म. कनीराम, रा., पद्य, वि. १८९४, आदि: आप हणे हणावे नही पर; अंति: सुणज्यो ज्ञान वीचार, गाथा-७०. For Private And Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. कुमतित्याग सज्झाय, पृ. ५अ-५आ. ऋ. जवानमल, रा., पद्य, वि. १९११, आदि: जिनआगम वेण सुणीनें; अंति: कीधी जोड प्रकासोरे, गाथा-२८. ४. पे. नाम. निह्नव सज्झाय, पृ. ५आ-६अ. रा., पद्य, आदि: अरिहंत वचन उथापीया; अंति: सरसी ज्यारा काजो रे, गाथा-१८. ५. पे. नाम. जीवउत्पत्ती स्वाध्याय, पृ. ६-८आ. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, पा. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: ऊतपत्ति जोज्यो जीव; अंति: इम कहे श्रीसार ए, गाथा-८६. ६.पे. नाम. श्रावकरीसीखामण सज्झाय, पृ.८आ-९आ. श्रावक ४ प्रकार पद, मु. मोतीचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: वृद्धमान्न सासण धणी; अंति: तसुं सांभलजो नरनारजी, गाथा-३६. १५२९६. वीरजिन स्तवन व सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२८x१३, १३४३२). १. पे. नाम. महावीरजिन २७ भव स्तवन, पृ. १अ-५अ. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमलकमलदललोयणा दिसे; अंति: शुभविजय शिष्य जयकरो, ढाल-६, गाथा-८६. २.पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. ५अ-५आ. सरस्वतीदेवी छंद, मु. खुशालकपूर, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन आपे सदा तुं; अंति: सेवक सुख करीइं, गाथा-१३. १५२९७. (+) अंतगडदशांगसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२८x१२, ९४३५). अंतकृदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२. अंतकृद्दशांगसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदि: अथांतकृतदशासु किमपि; अंति: विवरणादवसेयमेवं च. १५२९८. अध्यात्मकल्पद्रुम-शांतरसवर्णन, संपूर्ण, वि. १९१७, कार्तिक शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७२, प्रले. श्राव. लवजी मोतीचंद; लिख. श्राव. अमथा हकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२७४१३.५, १२४३६). अध्यात्मकल्पद्रुम-शांतरसवर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: अहो भव्य जीवो सदाकाल; अंति: चाखे तो परमपद पामइ. १५२९९. नयचक्रसार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९६८, कार्तिक शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ८०, प्रले. दोलतराम मंगलजी भट, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७७१३, १०x४२). नयचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणम्यपरमब्रह्म; अंति: परममंगलभावमश्नुते. नयचक्रसार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीजिनागमने विषे; अंति: कृति भणता परमानंद. For Private And Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १५३००. आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९६७, आश्विन कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५०, प्रले. दोलतराम मंगलजी भट, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१३, १०x४०). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: भव्य जीवने प्रतिबोध; अंति: बहुश्रुत कहे ते खरु. १५३०१. जंबू चरित्र छाया, संपूर्ण, वि. १९६३, श्रावण शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५, प्रले. रुगनाथ शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. (अध्ययन संस्कृत)., जैदे., (२८x१३, १३४४७). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-छायानुवाद, मु. मानसिंघ, सं., गद्य, आदि: महावीरं जिनं नत्वा; अंति: धका भणिता ज्ञातव्या. १५३०२. अध्यात्मसार, संपूर्ण, वि. १९५९, चैत्र कृष्ण, ७, रविवार, मध्यम, पृ. ४४, ले.स्थल. पालितणा, प्रले. रणछोड सवजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १२४३६). अध्यात्मसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणिनतः श्रीम; अंति: मानंदावह भवतु, प्रबंध-७. १५३०३. मुनिपति चरित्र बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५५, जैदे., (२७.५४१३, ११४३३). मुनिपति चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणिपत्य पार्श्वनाथ, (२)इहां त्रेवीसमा; अंति: सिद्ध पामस्ये. १५३०४. पासाकेवली भाषा, संपूर्ण, वि. १९७३, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. पाटण, प्रले. मु. जयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ऋषभः प्रसादात्., जैदे., (२७४१२.५, १३४३६). पाशाकेवली-भाषा*, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति कुष्मांड; अंति: सही शकुन श्रीकार छै. १५३०५. कर्मग्रंथ-१ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-४४ तक है., जैदे., (२७.५४१३.५, २-५४३२-४०). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: (-), अपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ , मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०३, आदि: प्रणिपत्य जिनं वीर; __ अंति: (-), अपूर्ण. १५३०६. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९३८, श्रावण अधिकमास शुक्ल, १४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. शिवदान गुमानीराम लहिया; पठ. श्रावि. डाईबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३.५, ११४२८-३१). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १५३०८.(+) पाक्षिकसूत्र व खामणाआदि, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १४, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१३, १२-१३४३०-३३). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-१४अ. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पाक्षिक गुरुवंदनसूत्र, पृ. १४अ. गुरुवंदनसूत्र-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: इच्छा० संदि० अब्भुट; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३. पे. नाम. पाक्षिक क्षामणासूत्र, पृ. १४अ-१४आ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासणौ पिअं; अंति: नित्थारग पारगा होह, सूत्र-४. ४. पे. नाम. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, पृ. १अ. For Private And Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे; अंति: वितहायरणइ आरो, गाथा-१. ५. पे. नाम. क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, पृ. १अ. सं., पद्य, आदि: सर्वे यक्षांबिकाद्या; अंति: द्रुतं द्रावयंतु नः, श्लोक-१. १५३१२. कयवन्नाचौपाई व लावणी, अपूर्ण, वि. १९३५, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. मसूदाग्राम, प्रले. ऋ. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३, १४-१५४५०). १. पे. नाम. कयवन्ना चौपाई, पृ. १अ-१६अ. मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: धरम करण मन उलसेजी, ढाल-३१, गाथा-५६४, ग्रं. ७९२. २. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १६अ-१६आ. धनीदास, पुहिं., पद्य, आदि: तु तोड करम झंजीर; अंति: घट जाय सुरज जु चंदा, गाथा-५. ३. पे. नाम. जैन सामान्यकृति*, पृ. १६आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२ तक है. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १५३१३. संग्रहणीसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२७४१२.५, २३४९४). बृहत्संग्रहणी-वृत्ति, आ. हेमसूरि, सं., गद्य, आदि: तिष्ठति नारकादि; अंति: दद्वारमपि प्रागुक्तं. १५३१५. पर्युषणाद्यष्टाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८९०, आश्विन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२८.५४१३.५, १२४४३-४५). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्ता; अंति: पद्यबंध विलोक्य तत्. १५३१६. (+) चौवीसदंडक विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२८x१३, १०-११४३४). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: जीव अनंतगुणाधिका. १५३१७. मदनसेन चौपाई, संपूर्ण, वि. १९४०, आश्विन शुक्ल, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. ऋ. मूलचंद्र (गुरु ऋ. कीस्तुरचंद); पठ. मु. हरनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४१३, २०४५२-५९). मदनसेन चौपाई, ऋ. सांवतराम, मा.गु., पद्य, वि. १८९८, आदि: प्रथम नमी भगवंतनै; अंति: दुरगति दुर नसाईये, ढाल-३१. १५३१८. (+) सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. मु. खुश्यालचंद; पठ. मु. हर्षचंद (गुरु मु. खुश्यालचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत., जैदे., (२७.५४१२.५, ११४३६-३८). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-९९. १५३१९. पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, संपूर्ण, वि. १९६५, कार्तिक शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. जेठालाल चुनिलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२.५, १३४४५-५०). For Private And Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, सं., प+ग, आदि धर्मतः सकलमंगलावली; अंतिः जयो वांछितावाभिः, ग्रं. ५२५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५३२०. पंचमीस्तवन व भरहेसर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२८x१२.५, १२-१३X२६). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन प्र. १आ-६अ. पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: सकल भवि मंगल करे, ढाल - ६. २. पे. नाम. भरहेसर सज्झाय प्र. ६-६आ. " संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय अंति: जस पडहो तिहुयणे सयले, गाथा- १३. १५३२१. सुदर्शन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९६२, चैत्र शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २८, ले. स्थल, पाटण, जैदे., (२७.५X१२.५, १२X४०-४६). सुदर्शनसेठ चरित्र, मु. सकलकीर्ति, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंतिः श्रीसुदर्शनयोगिनः, परिच्छेद-८. १५३२२. नवतत्त्व यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र. वि. *पंक्ति - अक्षर अनियमित है।, जैदे., (२८.५X१२). नवतत्त्व प्रकरण-यंत्र, मा.गु., को., आदि (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५३२३. भगवतीसूत्र बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२७.५X१२.५, २५×५२-६५). , भगवतीसूत्र - बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: एक मासनी दिक्षा सुभ; अंति: बोलनी हाण जाणज्यो. १५३२४. बावीसपरिसह चौपाई, संपूर्ण, वि. १८९७, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. सिंघाणा, प्रले. मु. सोभागराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, २०x४२-४६ ). १५३२५. संघयणी सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२७X१२.५, ४X३४). २२ परिसह चौपाई, मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिश्वर आददे; अंति: मीछामिदुकहुं मोयो रे, ढाल २२, गाथा - २१८. २३९ लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिय जिणं सव्वन्नुं अंतिः रईया हरिभद्दसूरिहिं गाधा- ३०. लघुसंग्रहणी - टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः नमीय कहेता नमस्कार; अंतिः थई रची हरिभद्रसूरिइ. १५३२८. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८८२ ज्येष्ठ कृष्ण, ३०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल. गुजरांवा, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न, जैदे., (२७.५X१२.५, १५-१६३८-४३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४२. भक्तामर स्तोत्र- टीका, सं., गद्य, आदिः किल इति सत्ये अहमपि; अंतिः वर्णविचित्रपुण्फाम्. १५३२९. कायस्थितिविचार पन्नवणासूत्रे, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैये. (२८४१२.५, १७-२०x४६-५०% , कावस्थिति विचार, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: जीव १ गई २ दिय ३ अंति: १८ में पदमें कह्या. १५३३०. विवहारसूत्रचूलिका, संपूर्ण, वि. १९३०, चैत्र शुक्ल, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. हुसियारपुरनगर, प्रले. मु. गुलाबचंद साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५x१२.५, ६x३९). व्यवहारसूत्र - चुलिका, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० पाडलीपु; अंति: वसई सो सुहिय भविस्सई. For Private And Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५३३१. कर्मविपाक प्रश्नोत्तरभाषा, संपूर्ण, वि. १९२७, वैशाख अधिकमास, ७, श्रेष्ठ, पृ. ९+१(९)=१०, ले.स्थल. म्याणीनगर, प्रले. ऋ. मणसा; ऋ. मुरारी (गुरु ऋ. मंगली); पठ. ऋ. मधुसूदन, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (४५४) मंगलं लेखकानांच, जैदे., (२८x१२.५, १३४४६-४९). कर्मविपाक प्रश्नोत्तरभाषा, मा.गु., पद्य, आदि: ग्याताधर्मकथामाहि; अंति: जो उतरे भव पार, गाथा-२११. १५३३२. महाविजिन सत्तावीसभव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. पाटण, प्रले. मणीलाल हरिनंद श्रीमाली ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१३.५, १२४३४-३८). महावीरजिन २७ भव स्तवन, पंन्या. ज्ञानकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: पूरण प्रेमे प्रणमीइ; अंति: वीर जिनवर जय करो, गाथा-८७. १५३३३. पच्चक्खाणविधि, चौवीसदंडकस्तवनआदि, संपूर्ण, वि. १९६९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ४, जैदे., (२६.५४१३.५, १२-१३४३४-३८). १.पे. नाम. पच्चक्खाणविधि स्तवन, पृ. १अ-२आ, पे.वि. प्रथम पत्र का उपरी भाग फटा होने से आदिवाक्य अनुपलब्ध है. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथ नंदन नमुं; अंति: रामचंद्र तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३. २. पे. नाम. चौवीसदंडक स्तवन, पृ. २आ-४आ. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, पा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पास जिणेसर; __ अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४. ३. पे. नाम. जीवउत्पत्ति के चौदहस्थान, पृ. ४आ. जीवउत्पत्ति के १४ स्थान, मा.गु., गद्य, आदि: वली नीत ने विषे उपजे; अंति: असुचीने विशे उपजे. ४. पे. नाम. वीस वसानी दया, पृ. ५अ. २० वसा जीवदया, मा.गु., गद्य, आदि: त्रसने थावर तेमा; अंति: सवा वीसवानी दया रहे. १५३३५. विंशतिस्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदे., (२८.५४१३.५, १०४२७-३०). २० स्थानक पूजा, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: सुख संपति दायक सदा; अंति: (१)विधि तणी रचना करी, (२)जिन पंक विखंडनाय. १५३३६. (+) सिद्धांतगाथा संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-१(४)=२९, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१३.५, ३-४४३०-३५). सिद्धांतगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), अपूर्ण. सिद्धांतगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: (-), अपूर्ण. १५३३८. तिलोकसुंदरी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. कोटला, प्रले. सा. प्रेमा (गुरु मु. छोटाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१३, १७-१८४३२-३५). त्रैलोक्यसुंदरी चौपाई, क्र. कनीरामजी, मा.गु., पद्य, वि. १८११, आदि: अरिहंत सिद्ध अनंतगुण; अंति: दायक फल लुणसी रे लो, ढाल-२२. १५३३९. पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०९, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२७७१३, १०-११४२६). ताप. For Private And Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २४१ महावीरजिन पंचकल्याणक वधावा स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदी जगजननी ब्रह्माण; अंति: तीरथ फल महाराज वाला, ढाल-५. १५३४०. तेतीसबोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. कीसनगढ, प्र.वि. प्रतिलेखक अवाच्य है., जैदे., (२७७१३, २२४४३). ३३ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: सात भयना स्थानक एह; अंति: वीचारी जेवु तु कहीजे. १५३४१. सौभाग्यपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४३५). सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: श्रीगुरु चरणे नमी; अंति: केसरकुशल जयकरो, गाथा-७५, ग्रं. ११०. १५३४२. अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १९६२, आश्विन कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. मंमाइ, जैदे., (२७४१२.५, ११४३८-४२). अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, आ. भद्रबाहस्वामी, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीपार्श्व; अंति: तानि विवर्जयेत्. १५३४४. सुदर्शनसेठना कवित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदे., (२६४१२.५, २०४४८-५१). सुदर्शनसेठ रास, मु. दीपचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: वांदु श्रीजिन वीर; अंति: भविक जल सांभलौ, गाथा-११८. १५३४५. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२६.५४१२.५, ४-५४२५-३०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४७. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम जीवतत्त्व अजीव; अंति: एक सिद्ध अनेक सिद्ध. १५३४६. (+) युष्मत्अस्मत्साधना सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १-१२४२५-३६). युष्मदस्मसाधनिका विधि, सं., गद्य, आदि: प्रथमा एकवचनं युष्मत; अंति: शीघ्रं झटिति तूर्णं. युष्मदस्मद्साधनिका विधि-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अथेति संज्ञा संधि; अंति: इत्यादयोः सद्यादिगण. १५३४८. तपविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६३, आषाढ़ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्रले. चकुभाइ भावसार, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१३, १६-१७४३२-३७). तपविधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अथ अक्षयनिधितप विधि; अंति: ज्ञाननी पूजा भणाववी. १५३४९. कर्मग्रंथ १, २ यंत्र, संपूर्ण, वि. १८८३, वैशाख शुक्ल, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे. २, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, जैदे., (२८.५४१३). १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, पृ. १आ-१४अ. मु. सुमतिवर्द्धन, रा., गद्य, आदि: श्रीवीरजिन प्रते; अंति: अंतराय कर्म बांधे. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, पृ. १४आ-२१. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १५३५०. (+) प्रतिष्ठाकल्प, संपूर्ण, वि. १९६४, आषाढ़ कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले.स्थल. अहीपूर, प्रले. रामधन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२.५, ११४४३-४५). For Private And Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य स्वस्ति, (२)तिहां प्रथम भव्य; अंति: (१)गच्छ२ स्वाहा, (२)विसर्जन मंत्र. १५३५१. शांतिजिन कलश, संपूर्ण, वि. १९३९, पौष कृष्ण, ३०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. मुंबई, प्रले. हरगोवन मोतिराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १२४३०-३६). शांतिजिन जन्माभिषेक कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (१)श्रीजयजयमंगला भो, (२)श्रीशांति जिनवर सयल; अंति: श्रीशांतिजिन जयकार. १५३५२. षट्दर्शनदृष्टांत, ब्रह्मबावनीआदि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ७, जैदे., (२७.५४१३, १९४४३-४७). १. पे. नाम. मत पक्ष, पृ. १अ. ___षट्दर्शन दृष्टांत, पुहिं., पद्य, आदि: सिवमत बोध रुवेदमत; अंति: जो जाने सो जैन, गाथा-७. २. पे. नाम. ब्रह्मबावनी, पृ. १अ-५अ. मु. निहालचंद, पुहिं., पद्य, वि. १८०१, आदि: ॐकार अपार परमेश्वर; अंति: कै गुनकों गहीजियो, गाथा-५२. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ५अ. पुहि., पद्य, आदि: जोर नार रंग रसै मान; अंति: हुया ब्रह्मज्ञान रे, गाथा-२. ४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ५अ-५आ. क्र. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: दमडी रे काज दुनिया; अंति: ए ते रंग सदा बिदरंग, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ५आ. मु. निर्भयानंद, पुहिं., पद्य, आदि: वाचक ज्ञानी जगत में; अंति: निर्भयानंद० ग्यानी, गाथा-१. ६. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ५आ. म. निर्भयानंद, पुहिं., पद्य, आदि: खोयो समय अमोल तें; अंति: नंद राह दिखाऊं, गाथा-२. ७. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ५आ. मु. निर्भयानंद, पुहि., पद्य, आदि: बात सुनाऊ कौन को; अंति: नंद० बात सुनाऊ, गाथा-२. १५३५३. नारिकेलकल्प व सिद्धचक्रयत्र, संपूर्ण, वि. २१वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१३.५, १४-२०४२३-३२). १. पे. नाम. नारिकेल कल्प-विधिसहित, पृ. १अ. ___ मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीँ श्रीँ क्लीं; अंति: सर्वकामप्रदाय नमः. २. पे. नाम. सिद्धचक्र यंत्र, पृ. १आ-१७आ. सं.,मा.गु., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). १५३५४. चौवीसदंडक ओगंत्रीसद्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२८x१३, १०४२९-३५). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: जीव अनंतगुणाधिका. १५३५५. साधुप्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-२०(१ से २०)=१८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७४१२.५, १०-११४२३-२७). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १५३५६. तप विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२८x१२.५, १३४३२). तपविधि संग्रह, सं., गद्य, आदि: श्रीकेवलज्ञानि जिनाय; अंति: आरण्यवासनाथाय नमः. १५३५७. जैनसिद्धांत, सिवशास्त्र व विविधनामादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, जैदे., (२७.५४१२.५, १३४३२). १. पे. नाम. जैन धर्म सिद्धांत, पृ. १आ-३अ. जैनधर्म सिद्धांत, मा.गु., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमोअंति: १४ चौद राजलोक छे. २. पे. नाम. विविध विषय संग्रह, पृ. ३अ-६अ. शिववमार्ग वार्ता, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमो जगदातार कल्प; अंति: कल्प स्वस्तिकल्प. ३. पे. नाम. विविधनामआदिसंग्रह, पृ. ४अ-६अ. विविधनामआदि संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: आदौ उभु परमाण; अंति: पातसा पात साहब. १५३५८. (+) भगवती सूत्र उद्देशसंग्रह- शतक-१८ उद्देश ७, ३-१,२,५-४ व ११-१२, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. सोभागचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१२.५, १९-२१४४९-५२). भगवतीसूत्र-उद्देशसंग्रह *, संक्षेप, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १५३५९. स्वाध्याय व स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ५, जैदे., (२६४१३, १०४३४). १. पे. नाम. श्रावक करणी सज्झाय, पृ. १आ-३अ. श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणि दुखहरणि छे एह, गाथा-२२. २. पे. नाम. दशश्रावक स्तुति, पृ. ३अ. १० श्रावक सज्झाय, गढमल, मा.गु., पद्य, आदि: आनंदै आनंद हवे; अंति: आपो अविचल सेव, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३आ-४अ. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपास चिंतामणी; अंति: सेवक सदा पूरो मनरली, गाथा-८. ४. पे. नाम. ४ शरण सज्झाय, पृ. ४अ-४आ. क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो मंगलिक कह; अंति: वास जीवडो नवि लहै, गाथा-६. ५. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पृ. ४-५अ. २४ जिन स्तोत्र, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक-८. १५३६०. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २१वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ६, जैदे., (२४.५४१३, १०४२५-२९). १.पे. नाम. पंचमी चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ. पंचमीपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: युगला धर्म निवारि; अंति: खिमाविजय जिनचंद, गाथा-३. २.पे. नाम. अष्टमीतिथि नमस्कार, पृ. २अ-३अ, पे.वि. कृति में १७ गाथा होती है परंतु प्रतिलेखक ने प्रत में अलग तरह से क्रमांक दे कर ४ गाथाओं में समावेश किया है. पंडित. खीमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैतर वदि आठम दिने; अंति: प्रातिहार्य समृद्ध. For Private And Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. विहरमान २०जिन चैत्यवंदन, पृ. ३अ-३आ. विहरमान २० जिन चैत्यवंदन, मु. अमीयविजय *, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला सीमंधर नमो; अंति: मोक्ष तणा सुख लेवा, गाथा-१०. ४. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, पृ. ४अ-४आ. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिगडे बेठा वीर; अंति: रंगविजय लहोसार, गाथा-९. ५. पे. नाम. पंचमी नमस्कार, पृ. ४आ-५अ. पंचमीपर्व नमस्कार, मा.गु., पद्य, आदि: उज्वल कार्तिक पंचम; अंति: लहे रत्नधाम निरवान, गाथा-८. ६. पे. नाम. वीरजिन नमस्कार, पृ. ५अ-५आ. महावीरजिन निर्वाण चैत्यवंदन, मु. शांति, मा.गु., पद्य, आदि: कार्तिक मास मनोहरु; अंति: सांति० भवोदधि याज, गाथा-७. १५३६३. पजुसणपर्वव्याख्यान सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, जैदे., (२६.५४१३.५, १२४३५). कल्पसूत्र नव व्याख्यान सज्झाय, संबद्ध, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण आविया; अंति: बुध माणेक मन भाय, सज्झाय-११. १५३६४. महावीरजिन सतावीसभव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मणीलाल हरिनंद श्रीमाली ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१३.५, १२४३७). महावीरजिन २७ भव स्तवन, पंन्या. ज्ञानकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: पूरण प्रेमे प्रणमीइ; अंति: वीर जिनवर जय करो, ढाल-११, गाथा-८७. १५३६५. साधुप्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह, प्रत्याख्यान आगारसंग्रह गाथा व जयतिहुअण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९५१, श्रावण शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ३, ले.स्थल. लाजफनगर, प्रले. लिछमी महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१३, २०४४२). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १-९अ. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: वंदामि जिणे चउव्वीसं. २. पे. नाम. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, पृ. ९अ. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: इम गंठिस्सहि मुठसहि; अंति: हवंति सेसेसु चत्तारि, गाथा-३. ३. पे. नाम. स्तंभनक तीर्थराज श्रीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४आ-६अ. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंति: विण्णवइ अणिंदिय, गाथा-३०. १५३६६. (-) ग्रहस्तोत्र, छंदसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९०४, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. १५, ले.स्थल. धोलेराबिंदर, प्रले. पंन्या. कस्तुरविजय गणि; पठ. मु. फतेचंद (गुरु मु. चतुरविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. शांतिनाथ प्रसादात्., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४१३.५, १४-१५४२६-२७). १. पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. १आ-३अ. For Private And Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण मति दीयो; अंति: ललितसागर इम कहे, गाथा ३१. - २. पे. नाम. शनिभार्या नाम, पृ. ३अ. सं., पद्य, आदि: ध्वजनी धामनी चैव; अंतिः न भवंति कदाचन, श्लोक-२. ३. पे नाम, शनिवर छंद, पृ. ३अ-३आ. पंडित. धर्महंस, मा.गु., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं; अंतिः हंस० सर्व सिद्धि लहे, गाथा - १४. ४. पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. ३आ-५अ. क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंतिः तु सुप्रसन्न शनिशरवर, गावा- १७. ५. पे. नाम. सूर्य छंद, पृ. ५अ-५आ. क. मुकुंद, मा.गु., पद्य, आदि: पूर्वदिससु प्रमाण; अंति: नमो देव सूरज किरण, गाथा - ११. ६. पे. नाम. सूर्यद्वादशनाम स्तोत्र, पृ. ५-६ अ. सं., पद्य, आदि आदित्यं च नमस्कार; अंति: लभ्यते मोक्षमेव च श्लोक ७. ७. पे. नाम. सूर्यषट्नाम श्लोक, पृ. ६अ. सं., पद्य, आदिः आदित्यं भास्करं भानु; अंति: नामानि महामंगलकारणं, श्लोक - १. ८. पे. नाम. सूर्याष्टक, पृ. ६अ -६आ. क. सिंह, सं., पद्य, आदि: रक्तवर्णो महास्तेजं; अंति: च भवेज्जन्मनि जन्मनि, श्लोक - ६. ९. पे. नाम. सूर्य स्तोत्र, प्र. ६आ. सं., पद्य, आदि: सूर्य स्मरति सदा; अंति: लक्ष्मी च प्राप्यते श्लोक-४. १०. पे नाम, विंशतिचंद्रनाम स्तोत्र, पृ. ६आ-७अ. सं., पद्य, आदि: हिमांशु प्रथमं नाम; अंतिः विशुद्धानंददायक श्लोक-६. ११. पे. नाम. मंगल स्तोत्र, पृ. ७अ. सं., पद्य, आदि: मंगलो भूमिपुत्रश्च; अंतिः प्राप्नोति निश्चल, श्लोक-४. १२. पे नाम, बुध स्तोत्र, पृ. ७अ. सं., पद्य, आदि: बुधः चतुर्थप्रस्थ अंतिः तस्य शांति भवे श्लोक-३. १३. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. ७अ ७आ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only २४५ सं., पद्य, आदि: बृहस्पतिः सुराचार्यो; अंतिः सुप्रीत तस्य जायते, श्लोक-५. १४. पे नाम. शुक्र स्तोत्र, पृ. ७आ. सं., पद्य, आदि: प्रथमं शुक्रनामश्च; अंति: ऋद्धिवृद्धिदयस्तथा, श्लोक-३. १५. पे. नाम. शनिश्चर स्तोत्र, पृ. ७आ-८अ. सं., पद्म, आदिः यः पुरा राज्यभ्रष्टा; अंतिः पीडा न भवंति कदाचन, श्लोक १०. १५३६७. नवाणुंप्रकारीपूजा सह विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. भूसणदास भावसार, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५X१४, १२x२४-२८). " Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir प, गावा७. २४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९९ प्रकारी पूजा- शत्रुजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: आतम आप ठरायो रे, ढाल-११+कलश, गाथा-१०५. १५३६८. दीपावली देववंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४१३, ११४२६-२८). दिपावलीपर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनवर वीर जिनवर; अंति: ज्ञानविमल सकलगुण खाण. १५३६९. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५.५४१३, १२४२८-३१). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंति: वृद्धि कल्याण करो, गाथा-६६. १५३७०. सूरसेन चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२६.५४१३, २९-३२४४१-५०). सूरसेन चौपाई, क्र. हीराचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९६२, आदि: पद पंकज पारस नमु; अंति: कहे जन्म सफलो होय ए, ढाल-४१. १५३७१. उपधानतपस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.५, जैदे., (२४.५४१२.५, ८x१८). महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, उपा. विनयविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीवीरजिणेसर सुपरे; अंति: वा मुझ देज्यो भवोभवे, गाथा-२७. १५३७२. बृहद्अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८७४, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२४४१२.५, १३४३०-३२). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: अजर अमर अकलंक जे; अंति: (१)देवना० समवड थापीये, (२)मोक्षं हि वीराः, ढाल-९+कलश. १५३७३. (+) श्रृंगारवैरागतरंगणी, संपूर्ण, वि. १९२६, आश्विन शुक्ल, १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१३, १२४२७-३०). शृंगारवैराग्यतरंगिणी, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: धर्मारामदवाग्निधूम; अंति: निशमेति नाशं, श्लोक-४६. १५३७४. आठकर्म, त्रेवीसपदवी, जीवभेद विचार व देवादिचारगतिथी जीव आव्याना लक्षण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, प्रले. पं. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १५४३८-३९). १. पे. नाम. ८ कर्मप्रकृति विवरण, पृ. १आ-३अ. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम ज्ञानावरणी; अंति: संबंध विचार. २. पे. नाम. देवआदिचारगतिथी जीवआव्यानां लक्षण, पृ. ३अ. देवादिचतुर्गति आगत जीवलक्षण, मा.गु., गद्य, आदि: देवता माहेथि आव्याना; अंति: मनुष्य गति चिंते. ३. पे. नाम. २३ पदवी विचार, पृ. ३अ-४अ. मा.गु., गद्य, आदि: चक्ररत्न पदवी १ छत्र; अंति: थावरकाये ५ जंगमकाय ६. ४. पे. नाम. पांचसेंत्रेसठ भेद जीवनो विचार, पृ. ४अ-५आ. ५६३ जीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ७ नरकना भेद १४; अंति: ९९ देवता ७ नरग. १५३७५. जिनबिंबसंख्या व प्रतिमा विचार, संपूर्ण, वि. १८१३, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. दरभावती-डभोई, प्रले. मु. हितविजय; पठ. श्राव. केसवजी सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १३-१४४३१-३९). For Private And Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १.पे. नाम. शाश्वता जिनबिंब प्रासाद विचार, पृ. १अ-६अ. शाश्वता जिनबिंबप्रासाद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सौधर्म देवलोके अंति: माहरो नमस्कार हो. २. पे. नाम. प्रतिमा विचार, पृ. ६अ-६आ. सं., गद्य, आदि: अथ पुनः काः प्रतिमा; अंति: समाचरतीत्येकादशी. १५३७६. (+) लघुस्तव सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११, १६-१८४५०-५४). त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लध्वाचार्य, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रस्यैव शरासनस्य; अंति: यस्मान्मयापि ध्रुवम्, श्लोक-२१. त्रिपुराभवानी स्तोत्र-ज्ञानदीपिका टीका, आ. सोमतिलकसूरि, सं., गद्य, वि. १३७९, आदि: सर्वज्ञ पुंडरीक; अंति: प्रवर्त्तता, ग्रं. ४७०. १५३७७. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ५००, जैदे., (२६.५४११.५, ४४३४-३६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्त जे अमर देवता; अंति: करी प्रगटपणइ काउ. १५३७८. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. जैदे., (२७४११.५, २-५४३४-३९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-९८. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, ग. मानविजय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरजिनं नत्वा; अंति: स्वान्योपकाराय. १५३७९. नवतत्त्व सह टबार्थ व समवायांगसूत्र-२७, ३० व ३२ समवाय, संपूर्ण, वि. १६९७, चैत्र शुक्ल, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, ले.स्थल. राजनगर, जैदे., (२५.५४११, ३४२३-२७). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-१४अ. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४७. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजैनमतनि विषे; अंति: ए सिद्धजीवना पनर भेद. २. पे. नाम. समवायांगसूत्र-२७, ३० व ३२ समवाय, पृ. १४आ-१४अ, प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. मात्र प्रथम व अंतिम पत्र पर लिखा है. समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५३८०. नवतत्त्व सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. स्थंभतीर्थ, प्रले. मु. रामदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ६-७X२९-३३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: यथावस्थित साचउंजे; अंति: इति अर्थसुगमं. १५३८३. (+) समवायांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प. १४१+१(१३)=१४२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४११.५, ४-५४४०-४४). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयं मे० इह खलु समणे; अंति: अज्झयणति त्तिबेमि, अध्ययन-१०३, सूत्र-१५९, ग्रं. १६६७. For Private And Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, वि. १७उ, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: आगलि कहं छु, ग्रं. ४५७५. १५३८५. (+) सिंदूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १५८१, चैत्र कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. अहमदाबाद, प्रले. मु. रत्नमाणिक्य (गुरु आ. जिनमाणिक्यसूरि, बृहत्तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, ११४४२-४४). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: मानेन शमेति नाशम्, श्लोक-१००. १५३८६. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११, ११४३७-३९). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: शरीरधरे भविस्सत्तीति, ग्रं. १३५०. १५३८७. आवश्यकसूत्रनियुक्ति-प्रथमवरवरीया, प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १५-१६४५२-५८). १. पे. नाम. नंदीसूत्र-स्थविरावली, पृ. १अ-२अ. संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीविआणओ; अंति: नाणस्सपरूवणं वुच्छं, गाथा-५० २. पे. नाम. आवस्यकसूत्रनियुक्ति-पढमावरवरिया, पृ. २अ-८आ. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १५३८९. पंचकारणगर्भितवीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६.५४१०.५, ८४३५-३८). ५ कारण छढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथ सुत वंदिये; अंति: परे विनय कहे आणंद ए, ढाल-६, गाथा-५८. १५३९०. चंद्रकुमाररी वार्तादि, संपूर्ण, वि. १८२६, आषाढ़ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. सीरोही, जैदे., (२६४१२, १५४४०). १. पे. नाम. चंद्रकुमार वार्ता, पृ. १अ-५अ. ____ मा.गु., पद्य, आदि: समरु सरसती माय गणपती; अंति: या गुनवे गुनसार, गाथा-९३. २. पे. नाम. जैनेतर सामान्यकृति पेटांक बाकी*, पृ. ५अ-५आ. जैनेतर सामान्यकृति-पेटांक बाकी*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). १५३९१. थुलिभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. मु. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, १२-१३४३२-३४). स्थूलिभद्र नवरसो ढाल व दूहा, वा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (१)सुखसंपति दायक सदा, (२)कहे थुलभद्र सुण भूपत; अंति: (१)मनना रे सवि फल्या रे, (२)कहा भणतां मंगलमाल, ढाल-९, गाथा-७४ १५३९२. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२७४१२, १२-१३४३२). जिनस्तवनचौवीशी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आदिकरण अरिहंतजी ओलगड; अंति: अखय अनंत सुखपावइ, स्तवन-२४. For Private And Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १५३९३. पार्श्वजिन स्तवन व सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, जैदे., (२७११.५, १४-१५४३६-३८). २. पे नाम, गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ ७आ. काजलमेघा चौढालिया- गोडीजीपार्श्व, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: प्रणमुं नित परमेश्वर; अंतिः नेम कहे० दुर्लभ था, ढाल १५. २. पे. नाम. सरस्वती भगवती छंद, पृ. ७आ- ९अ. शारदामाता छंद, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, वि. १६७८, आदि: सकल सिद्धि दातारं; अंति: होउ सया संघकल्लाणम्, श्लोक-४४. १५३९५. जिनशतक सह पंजिका टीका, संपूर्ण, वि. १५१९ फाल्गुन कृष्ण, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १० प्र. वि. पंचपाठ - प्रायः शुद्ध पाठ., प्र. ले. श्लो. (६८३) करकृतमपराध:, जैदे., ( २६.५X११, ९-११x४२-४७). २४९ जिनशतक, मु. जंबू कवि सं., पद्य, वि. १००१-१०२५, आदि: श्रीमद्भिः स्वैर्महो; अंतिः वागसौ द्राविधेयात्, " परिच्छेद- ४, श्लोक - १००. जिनशतक - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: रागादिदोष जेतृत्वा; अंतिः श्रन्यान्विधियादिति. " १५३९६. कल्पसूत्र व्याख्यान १ सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, प्रतिअपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २३ ९ (१ से ९ ) - १४, जैवे., (२६.५x१२, ५-१४X३४-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, कल्पसूत्र - टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (), प्रतिअपूर्ण. १५३९७. नवतत्त्व सह वालावबोध, संपूर्ण, वि. १६३९, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र. वि. धर्म प्रसादात्., पंचपाठ., जैदे., (२७४१२, ३४१७-२१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अनंतगुणा, गाथा- ४४. नवतत्त्व प्रकरण बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (१) प्रणम्य श्रीमहावीर, (२) यथा यथास्थित साचतं; अंतिः जयंति जिनशासने विमलो. १५३९८. श्रद्धप्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह सह बालावबोध व कथा, पूर्ण, वि. १८१७, मार्गशीर्ष शुक्र ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०९-१(५०)=१०८, ले. स्थल. समीनगर, प्रले. पं. हंसविजय (गुरु पंन्या. गजविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७X१२, ५-१७X३८-४४). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंतिः वोसिरियं० मएगहियं, पूर्ण. For Private And Personal Use Only श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय-वालावबोध, मु. जिनविजय, मा.गु, गद्य, वि. १७५१, आदि: बार गुणे करि सहित; अंतिः लिलेखार्कपूरे मुदेति, पूर्ण. आवक प्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: भरतक्षेत्रे पोतनपुर: अंतिः पामी देवलोके पोहता, पूर्ण. १५३९९. हुंडीनी ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल - ३ गाथा - १४ तक है., जैदे., (२६.५x१०.५, १३४३१-३५). Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हुंडी डाल, मा.गु., पद्य, वि. १८८०, आदि अववरती सुध साध कया; अंति: (-), अपूर्ण. १५४०१. भक्तामर स्तोत्र चतुर्थपादसमस्या काव्य सह टीका, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., रचनाप्रशस्ति व प्रतिलेखन पुष्पिका पत्र नहीं है., प्र. वि. त्रिपाठ, जैदे., (२७४११.५, १-४४४९-५३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमिभक्तामर, आ. भावप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर त्वदुपसेवन; अंतिः वशा समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. नेमिभक्तामर-वृत्ति, आ. भावप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: नत्वा श्रीपार्श्वनाथ; अंतिः मानतुंग मानोन्नतमपि. १५४०२. दशाश्रुतस्कंधअर्थ, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३-१ (१) १२, जैदे., ( २६११, १५४३५). दशाश्रुतस्कंधसूत्र - अर्थ, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: चारित० सोहिल हुइ, पूर्ण. १५४०४. सुदर्शनसेठ चौपाई, संपूर्ण, वि. १८४१, वैशाख कृष्ण, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. अकबराबाद, प्रले. सा. चदुजी (गुरु सा. लाछाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१२, २६-२८४६०-६८). सुदर्शनशेठ चौपाई, ऋ. ब्रह्म, मा.गु., पद्म, आदि: श्रीजिणचरण प्रणीमइ अंति सुख पावै ते सासता, ढाल - ३७, गाथा - ८३९. १५४०७. यथाक्रमबीजक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., ( २६.५X११.५, १३-१४४४०-५२). यथाक्रमबीजक संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: प्रभु प्रणम्य प्रथमं; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५४०९. नवतत्त्व पयन्ना, संपूर्ण, वि. १७६०, फाल्गुन शुक्ल, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. जेठा, पठ, मु. खेमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संवत् १७६० में लिखी हुई प्रत की प्रतिलिपि होने की संभावना है, वस्तुतः लिखावट से प्रत २० लगती है., प्र. ले. लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७४११.५, ४४४९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा- ४४. १५४११. चौवीसदंडक ओमंत्रीसद्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९-१ (६) -८, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., द्वार-२३ तक है., जैदे., (२७४११.५, १३४३७-४२). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: (-), अपूर्ण. १५४१२. नवतत्त्व विचार, पूर्ण, वि. १९१५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. ३४-१ (१) - ३३ ले. स्थल. खंभातबिंदर, प्र. ग. फतेसागर (गुरु पंन्या. रंगसागर); पठ. ग. देवसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X११.५, ११x४८-४९). नवतत्त्व विचार *, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंतिः श्रीऋषभप्रभुजी १५, पूर्ण. १५४१४. हैमलिंगानुशासन सह स्वोपज्ञवृत्ति, संपूर्ण, वि. १६५६, वैशाख शुक्ल, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७६+२(१७,७१)=७८, प्रले. राम पंड्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. आचार्य सेनसूरि शिष्य रामविजयजी द्वारा पंचदशलक्षमय चित्कोश ज्ञानभक्ति हेतु विहित का उल्लेख अलग से प्रशस्ति में किया गया है., जैदे., ( २६.५x११.५, १५X४५-५०), हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: पुल्लिंग कटणधपभमयर; अंति: शासनानि लिंगानाम्. हैमलिंगानुशासन- स्वोपज्ञ विवरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: श्रीसिद्धहेमचंद्र; अंतिः त्वाल्लिंगस्येति च. - " 19 १५४१५. निश्चयव्यवहार शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैवे. (२७४११.५, ९४३३-३५). शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांति जिणेसर केसर: अंति: वाचक जसविजय सिरि लही, डाल-६. For Private And Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २५१ १५४१६. चौपाई संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६७, भाद्रपद कृष्ण, ४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ४, ले.स्थल. भिणाय, प्रले. जगन्नाथ ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, २०४३८). १. पे. नाम. चेलणाराणी चौपाई, पृ. १अ-६अ. रा., पद्य, आदि: मगधदेसना अधिपति; अंति: वै मोख निधान रे, ढाल-९. २. पे. नाम. भाग्यलक्ष्मी चौपाई, पृ. ६अ-९अ. मु. सबलदास, रा., पद्य, आदि: जिनवर वचन धर्म आराधि; अंति: ग्यानी वचनरी प्रतीत, ढाल-७. ३. पे. नाम. देवदत्ता चौपाई, पृ. ९अ-१०आ. मु. रत्नधर्म, रा., पद्य, वि. १८९१, आदि: एकादसमां अंगमां नवमो; अंति: रत्नधर्म शुद्ध लीध, ढाल-७. ४. पे. नाम. नंदणमणियार चौढालियो, पृ. १०आ-१२आ. नंदनमणियार चौढालियो, रा., पद्य, आदि: ग्यातारा तेरमां अधेन; अंति: कीजो आतमरो उद्धार ए, ढाल-४. १५४१७. (7) मयणरेहा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. सरबींदर, प्रले. सा. छाजुजी-शिष्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७४११.५, १६-१८४३७-४०). मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: सात कुव्यसनरा तीजा; अंति: रीजवी न रीजे पाया, गाथा-१७६. १५४१८.(+) कायस्थिति सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १५४३०-३४). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुहदसणरहिओ कायठि; अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४. कायस्थिति प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वर्द्धमानं जिनं, (२)इहइ ए कायस्थिति श्री; अंति: भावार्थः मोक्ष मागइ. १५४२०. (-) चंदनमलयगिरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रेष्ठ, पृ.७, प्रले. सा. चतुर (गुरु सा. जतुजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७४१२, १८-१९४४२-४४). चंदनमलयागिरी रास, पं. क्षेमहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७०४, आदि: नमु जीनवर चोवीसमो; अंति: मुनि उत्तमगत पामी रे, ढाल-१६. १५४२१. प्रतिक्रमणहेतुगर्भित सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८११, वैशाख कृष्ण, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. पाटण, प्रले. पं. वृद्धिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन स्थल-मलकापुर भी लिखा है., जैदे., (२७४१२, १४-१५४४३-४५). प्रतिक्रमणहेतुगर्भित स्वाध्याय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: श्रीजिनवर प्रणमी; अंति: देजो मंगलकोडी, ढाल-१९. १५४२२. सिंदूर प्रकरण व प्रस्ताविक श्लोक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९१, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४३, कुल पे. २, ले.स्थल. हीरांबत्त, प्रले. ग. जसविजय (गुरु मु. खेमाविजय); मु. जसवंतविजय; पठ. श्राव. खुबचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रतिलेखन स्थल में जावाल का उल्लेख है. सुमतिजिन प्रसादात., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४१२, ३४२९-३१). १. पे. नाम. सिंदूरप्रकर सह टबार्थ, पृ. १आ-४१आ. For Private And Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-१०२. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथनै; अंति: करि प्रसिद्ध छु. २. पे. नाम. प्रस्ताविक श्लोकसंग्रह सह टबार्थ, पृ. ४२अ-४२आ. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), श्लोक-३. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). १५४२३. चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१(२)=१९, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., उल्लास-२ ढाल-२ दुहा-४ तक है., जैदे., (२७.५४११, १५-१७४३६-४०). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: (-), अपूर्ण. १५४२४. गुणावली चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले.स्थल. कसनगड, प्रले. सा. जतुजी (गुरु सा. रतुजी), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७४११.५, १५४३३). गुणावलि चौपाई, ग. गजकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: नितनित सुख आणदा, ढाल-२९, गाथा-५१९. १५४२५. (+) चतु:शरण प्रकीर्णक सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९६३, चैत्र अधिकमास कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. जोधपूर, प्रले. छबीलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-त्रिपाठ., जैदे., (२७.५४१२, १५-१६४४८-५७). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारी मंगलं अरिहंत; अंति: कारणं निढुयसुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: इदमध्ययनं परमपद; अंति: भवतीति गाथार्थः. १५४२७. (+-) शांतिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१२.५, १०४३५-३८). शांतिनाथ चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: प्रणिपत्यार्हतः सर्व; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५४२९. (+) अष्टाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१२, १३४४२). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्ता; अंति: पद्यबंध विलोक्य तत्. १५४३०. शाश्वतजिनप्रतिमा स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९०, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. जावालनगर, प्रले. मु. खुबचंद (गुरु मु. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., प्र.ले.श्लो. (१२२) जब लग मेरु स्थिर रहें, (६५०) मंगलं लिखितार्थ च, जैदे., (२८x२२.५, १५-१७४५६). शाश्वतजिनप्रतिमा स्तवन, मु. हर्षसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर पय नमि; अंति: पछे सीवसुख सार रे, गाथा-२०. शाश्वतजिनप्रतिमा स्तवन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सकल क० समग्र; अंति: मान ए प्रकारे जाणवू. १५४३१. सिंहासनबत्रीसी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, जैदे., (२८x१२, १८४४७-५०). For Private And Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २५३ सिंहासनबत्रीसी, ग. संघविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सकल मंगल धर्म धुरि; अंति: (१)संघ तणी० कृपणई तजइ, (२)संघ० पद्मावती पद्मनी, ग्रं. ८०५. १५४३२. अल्पबहुत्वराअठाणुबोल-चौवीसदंडकविचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.५, जैदे., (२८x१२.५, ११४३९-४३). अल्पबहत्व ९८ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सर्वथकी थोडा; अंति: जीव पण प्रक्षेपवाथी. १५४३३. सियलवेल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२८x१२, १३-१४४२७-३१). स्थूलिभद्र शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहंकर पासजी; अंति: विमला कमला वरशे रे, ढाल-१८. १५४३४. प्रश्नोत्तररत्नमाला सह टीका व कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. मूलपाठ संपूर्ण, परंतु टीका १-२६ श्लोक तक तथा कथा ७८वीं सहस्रमल्लकथा तक है., प्रले. ऋ. कान्हजीस्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७.५४१२, १-५४४४-५१). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९. प्रश्नोत्तररत्नमाला-कल्पलतिका वृत्ति, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १४२९, आदि: अहं प्रश्नोत्तररत्न; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. प्रश्नोत्तररत्नमाला-कथा, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: अत्रार्थे गुरुवचन; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५४३५. अणुत्तरोववाइदसा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, जैदे., (२७.५४१२, ६४३९-४७). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: अयमढे पण्णत्ते. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणइ कालइ चउथा; अंति: अपरा अर्थ प्ररुप्या. १५४३६. (+) पण्णवणासूत्र-शरीरपद सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१२.५, ३-८४५०-५२). प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा शरीरपद, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: कतिण भंते सरीरा पं; अंति: णप्पमाणमेत्ताउ सेढीउ, अध्याय-पद १२वा. प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा शरीरपद का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)हिवइं इग्यारमा पद, (२)केतलि भेदे भगवन शरीर; अंति: गुण हीण छइ शेष तिमज. १५४३७. (+) अंतगडदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५०, फाल्गुन शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३७, ले.स्थल. सिंघाणा, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१२, ९x४२-४९). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२. अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणि कालि चउथइ आरि; अंति: छइ तिम जाणवा. १५४३८. (+) नलदवदंती रास व नेमिजिन होरी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१२, १८-२०४४७-५१). १. पे. नाम. नलदमयंतीरास, पृ. १आ-२०आ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: चतुर माणस चित वसी, खंड-६, ढाल ३९. For Private And Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. नेमिजिन होरी, पृ. २०आ. मु. वर्द्धमान, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमी जिनेश्वर; अंति: खेलै आवागमन मिटाव, गाथा-१०. १५४३९. (+) चतुर्विंशतिदंडकविचारगर्भ वीतराग स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११.५, ४-५४३४-३६). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४३. दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभादिक महावीर; अंति: आत्माना हितनइ काजि. १५४४०. (+) विपाकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, पृ. ५५-२७(१ से २७)=२८, पू.वि. अध्ययन-५ प्रारंभिक अंश तक नहीं हैं., ले.स्थल. सिंघाणा, प्रले. क्र. नूणाजी (गुरु ऋ. सवरामदास), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२.५, ९४३६-४४). विपाकसत्र, आ. सधर्मास्वामी, प्रा..गद्य, आदिः (-): अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रतस्कंध-२, अध्ययन २०. ग्रं. १२५०, (अपूर्ण, आश्विन शुक्ल, २, बुधवार) विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सूत्रे कह्यो तिम, (अपूर्ण, कार्तिक कृष्ण, ८, बुधवार) १५४४२. दंडक स्तोत्र सह टबार्थ व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, जैदे., (२७.५४११.५, ३४३८-४१). १. पे. नाम. विचारषत्रिंशिका सह टबार्थ, पृ. १आ-८आ. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३९. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं कहितां नमस्कार; अंति: वीनती आपणा हितनइ काज. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, पृ. ८आ. सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), श्लोक-२. १५४४४. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७४४, कार्तिक कृष्ण, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. अंत में शंकास्पद पाठ संदर्भ में स्पष्टता की गयी है., पंचपाठ., जैदे., (१७.५४११, २-१३४३३-३६). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० करेमि; अंति: वोसिरामि. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंतनइ नमस्कार; अंति: कारण सामायिक विधि. १५४४५. (+) उपासकदसांगसूत्र सह विषमस्थल टिप्पण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३४, ले.स्थल. बाबरा, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x११.५, ११४३९-४२). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नाम नयरी; अंति: दिवसेसु अंग तहेव, अध्याय-१०. उपासकदशांगसूत्र-विषमस्थल टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: उपासगदसा० सातमा अंग; अंति: अरुणसिट्ठ इम कहवउ. १५४४६. उपदेशमाला सह अवचूरि व उपदेशमालागाथा शकुन विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१-७(१ से ७)=२४, कुल पे. २, जैदे., (२८x११.५, ८-९४३५-४१). १.पे. नाम. उपदेशमाला प्रकरण सह अवचूरि, पृ. ८अ-३१आ, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-११२ तक पाठ नहीं हैं. For Private And Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: (); अंति: वयण विणिग्या वाणी, गाथा-५४४, अपूर्ण. उपदेशमाला - अवचूरि, सं., गद्य, आदि (-); अंति: वाणी श्रुतदेवता, अपूर्ण, २. पे. नाम. उपदेशमाला गाथा शकुन सह विधि, पृ. ३१आ. उपदेशमाला गाथा शकुन, प्रा., पद्य, आदि सच्चं भासइ अरिहा; अंति: सच्चेणमे भवउ स्वाहा, गाथा - १. उपदेशमाला गाथा शकुन जोवानी विधि, मा.गु., गद्य, आदिः उपदेसमालानी गाथाना; अंतिः करवी अनशन करावियइ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५४४७. (+) भगवतीसूत्रयंत्र शतक - २४ उद्देश- २४, संपूर्ण वि. १८७८, कार्तिक कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले. स्थल. पटियाला, प्रले. मु. रतनचंद ऋषि ( गुरु मु. हरजीमल ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. * पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे., (२८x१२.५). गम्माशतक यंत्र- भगवतीसूत्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ( - ). १५४४८. चौमासी देववंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२८x१२, १२X३२-३७). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि : आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: पास सामलनु चेई रे. १५४४९. नवाणुंप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२, १६X३६-३७). ९९ प्रकारी पूजा- शत्रुंजयमहिमागभिंत, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेसर पासजी; अंति: आतम आप ठरायो रे, ढाल ११+कलश. १५४५१. (+) अजितशांति स्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३६, माघ शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले. स्थल. मेडतानगर, प्रले. सोभाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंतिम पंक्ति का टबार्थ नहीं है., संशोधित., जैदे., (२६X१२, ४x२२-२८). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजिवं जिय सव्वभयं; अंतिः जिणववणे आवरं कुणह गाथा- ४०. अजितशांति स्तव टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अजिव क० अजितनाथजी; अति (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५४५२. (*) भक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६८२ श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. पं. देवविमल गणि; पठ. मु. विनयविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- संशोधित - त्रिपाठ., जैदे., (२६४११, २-३४५२-५४). २५५ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक - ४४, ग्रं. ७७. भक्तामर स्तोत्र- बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: प्रणम्य परमानंददायक; अंतिः संख्या निवेदिता, ग्रं. ६१६. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं अंति: (-), अपूर्ण, कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवो० अरिहंत; अंति: (-), अपूर्ण. कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि नमः श्रीवर्द्धमानाय अंति: (-), अपूर्ण. , १५४५४. (+) | कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ग्रंथा ११०० से थोड़ा अधिक तक है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५४११.५, ६३३-३६). For Private And Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५४५६. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक ३५ तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ५४३०-३३). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: (-), अपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मांगलिक्यनउ निकेतन; अंति: (-), अपूर्ण. १५४५८. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६९५, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदे., (२५.५४११, ११४३७-४१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशंकर जिनाधीश; अंति: लक्ष्मी स्वयंवर वरइ. १५४५९. आठकर्म एकसोअठ्ठावन प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, जैदे., (२६४११.५, १४४४२). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलं कर्म; अंति: पर्वत पासे उपजें. १५४६३. (+) कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १६७६, माघ शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. ७०-१(१)=६९, ले.स्थल. करहडानगर, प्रले. मु. अनंतविजय (गुरु पं. विनयविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ९-१०४३०-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, पूर्ण. १५४६४. उपदेशरत्नकोष, गौतम कुलक सह टबार्थ, औषधव सवाइया, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ४, ले.स्थल. कालद्री, प्रले. ग. जोतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, ६x२८-३१). १. पे. नाम. उपदेशरत्नकोश सह टबार्थ, पृ. १आ-४अ. उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: हियए रमइ संसारो, ___ गाथा-२५. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपदेश रूपीया रत्न; अंति: सदा रमे श्रीये करी. २. पे. नाम. गौतम कुलक सह टबार्थ, पृ. ४अ-६आ. द्वा नरा अत्थपरा; अंति: सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभीया मनुष्य अर्थनइ; अंति: पामे अनुक्रमे साधु. ३. पे. नाम. तावरो औषध, पृ. ६आ. औषध संग्रह **, सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). ४. पे. नाम. विविध लोकभाषामय सवैया संग्रह, पृ. १अ. सवैया संग्रह , मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). १५४६५. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. नागिणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ५-६४२६-३२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: आश्री अनंतगुणा छई. For Private And Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २५७ १५४७१. (+#) सिंदूरप्रकरण, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ७-१(५)=६, पू.वि. श्लोक-६५ से ७९ नहीं है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १३४४४-४६). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-१००, अपूर्ण. १५४७२. वसुधाराकल्प सह विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४११, १३४४१-४६). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति. वसुधारा स्तोत्र-विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: एषा श्रीआर्यवसुधारा; अंति: वाद्वृद्धयः संपद्यते. १५४७३. (+) जीवविचार सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-९(९,११ से १८)=१६, प्रले. ग. रत्नसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५-१७४३९-४२). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, ___ गाथा-५१, अपूर्ण. जीवविचार प्रकरण-टीका, पा. रत्नाकर, सं., गद्य, वि. १६१०, आदि: सद्ज्ञानभास्करं वीरं; अंति: पाठकरत्नाकरः सुगमम्, अपूर्ण. १५४७४. (#) नवतत्त्व विचार, सोलवचन नाम सह बालावबोध, चौदगुणठाणस्थिति आदि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, कुल पे. ५, प्रले. ऋ. भवान; पठ. जणेश जगनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३५-३९). १. पे. नाम. नवतत्त्व विचार, पृ. १आ-६आ. नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)जीवाजीवा पुन्नं पावा, (२)श्रीवीतराग परम पुरुष; अंति: ते समकीती जाणवो. २. पे. नाम. सोलवचन नाम सह बालावबोध, पृ. ६आ-७अ. १६ वचन नाम, प्रा., पद्य, आदि: एगवयणे १ दुवयणे २; अंति: पच्चक्खवयणे परोखवयणे, गाथा-१. १६ वचन नाम-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: वृक्षः घटः पटः; अंति: ए कार्य तेणें कीधोइं. ३. पे. नाम. चौदगुणठाणावर्णस्थिति, पृ. १अ. मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व गुणठांणा; अंति: स्थीती अईउऋल. ४. पे. नाम. अजीवपुद्गल पांचसोत्रीसभेद-पनवणावृत्तौ, पृ. १अ. अजीवपुद्गल ५३० भेद-पनवणावृत्तौ, मा.गु., गद्य, आदि: वर्ण १०० गंध ४६ रस; अंति: फरस १८४ संस्थान १००. ५. पे. नाम. ताव चौत्रीसो यंत्र, पृ. १अ. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). १५४७५. समयसार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६११, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२६४१०.५, ११४४३-४९). समयसार प्रकरण, आ. देवानंदसूरि, प्रा., गद्य, वि. १४६९, आदि: सव्वन्नु मोक्खमक्खंत; अंति: हेऊ सययं सिवं दितु, अध्याय-१०. समयसार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वज्ञदेव मोक्ष; अंति: सदाइ सिवमोक्षि पदनो. For Private And Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५४७६. (+) जीवविचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. सा. अमृतश्री; पठ. मु. छगनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११-१२४३६-३८). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: भुवण कहिता तीने; अंति: सिद्धांत समुद्र थकी. १५४७८. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. १२, जैदे., (२४४११, १३४४३-४८). १. पे. नाम. रोहामुनि सज्झाय, पृ. १आ. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्दहणा सूधी मनि; अंति: मानविजय धरे प्यार रे, गाथा-७. २. पे. नाम. वैशिकपुत्र सज्झाय, पृ. १आ-२अ. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पारसनाथ संतानीओ काला; अंति: नित मुनि मान रे, गाथा-१५. ३. पे. नाम. खंधामुनि सज्झाय, पृ. २अ-३अ. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनधरम लहइ ते; अंति: मान कहइ एह धन्न, ढाल-२, गाथा-१५. ४. पे. नाम. थिविर सज्झाय, पृ. ३अ-३आ. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदिः श्रुतधरा श्रुतबलइ; अंति: कहइ मानविजय उवझाय, ढाल-२, गाथा-२०. ५. पे. नाम. तिष्यकुरुदत्त सज्झाय, पृ. ३आ-४अ. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोखइ चित्तइ चारित्र; अंति: रिषिराज तणो सज्झाय, गाथा-१०. ६. पे. नाम. अग्निभूतिवायूभूति सज्झाय, पृ. ४अ-४आ. अग्निभूति-वायुभूति सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु ते ऋषिरायनइ; अंति: सद्दहणा भाव के, गाथा-११. ७. पे. नाम. गुरुकुलवास सज्झाय, पृ. ४आ-५अ. ___ उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीर वदइ भविप्राण; अंति: गुरु सेवो हितकार रे, गाथा-११. ८. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. ५अ-५आ. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुण आदरीइ प्राणीया; अंति: रे मान धरइ बहु प्यार, गाथा-७. ९. पे. नाम. नारद सज्झाय-पुद्गलविचारगर्भित, पृ. ५आ-६अ. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रुतग्यानी रे; अंति: चित्तमां वस्युं, गाथा-५. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्थविर सज्झाय, पृ. ६अ-६आ. ___ उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासनमा कहिउं; अंति: मान कहइ धरी प्रेम रे, गाथा-९. ११. पे. नाम. लोभ सज्झाय, पृ. ६आ-७अ. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ तजोरे प्राणी; अंति: विनयी मानविजय उवझाय, गाथा-७. १२. पे. नाम. नागत्तुउश्रावक वरुण सज्झाय, पृ. ७अ, अपूर्ण. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन्य ते जग माहे कहीइ; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २५९ १५४८०. स्तोत्रभाषा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१२, आश्विन शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ५, जैदे., (२४४११.५, १६४३४-३६). १.पे. नाम. श्रीपाल विनती स्तुति, पृ. १अ-१आ. मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नम सिधे मनधरि संत; अंति: दृष्टि मुक्तिहि गया, गाथा-२२. २. पे. नाम. पंचकल्याणक मंगल, पृ. १आ-५अ. मु. रूपचंद्र, पुहि., पद्य, आदि: पणमवि पंच परम गुरु; अंति: जिनदेव चौ संघहि जयो, ढाल-५, गाथा-२५. ३.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र-भाषानुवाद, पृ. ५अ-७आ. मु. हेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: आदि पुरूष आदिस जिन; अंति: ते पावै शिवखेत, गाथा-४८. ४. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र- पद्यानुवाद चौपाई, पृ. ७आ-९अ. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: परमज्योति परमातमा; अंति: कारन समकित शुद्धि, गाथा-४३. ५. पे. नाम. विषापहार भाषा, पृ. ९आ-१०आ. आ. अचलकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: विसउनाथ विमल गुनईस; अंति: श्रीजिणवर को नाम, गाथा-४१. १५४८२. (+) कर्मग्रंथ १-६, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १३४५७-६०). १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १अ-२आ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६१. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. २आ-४अ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ४अ-४आ.. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२४. ४. पे. नाम. छयासीयं, पृ. ४आ-७आ. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरी हिं, गाथा-८६. ५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ सह टिप्पण, पृ. ७आ-१०आ. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिण आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-टिप्पण, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ६. पे. नाम. सत्तरी, पृ. १०आ-१३अ. सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थ; अंति: एगूणा होइ नउईउ, गाथा-९३. ७. पे. नाम. गुणस्थान विचारगाथा, पृ. १३अ-१३आ. प्रा., पद्य, आदि: मिच्छे सासणमीसे; अंति: अंतमुहू सेसगुणठाणा, गाथा-२२. ८. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १३आ. For Private And Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा.,मा.गु.,सं.,हिं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), गाथा-२. १५४८३. अंजनासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१५४ तक है., जैदे., (२६४११.५, १५४३८-४०). अंजनासुंदरीरास, मा.गु., पद्य, आदि: पहलै कडावैजी पाय; अंति: (-), अपूर्ण. १५४८४. लघुसंग्रहणी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८७१, पौष शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ३६, ले.स्थल. बालोतरा, प्रले. प. सुमतिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४६-५०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७४. बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं कहतां नमस्कार; अंति: ए शात्र चिरं नंदउ. १५४८५. समवायांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १६५२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदे., (२६४११.५, १३४४०). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयं मे० इह खलु समणे; अंति: अज्झयणंति त्तिबेमि, अध्ययन-१०३, सूत्र-१५९, ग्रं. १६६७. १५४८६. (+) बृहत्शांति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ४४२७-३०). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, हिस्सा, सं., गद्य, आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भो भो भव्य जीवो; अंति: जयवंतु वरतो शासन सदा. १५४८७. वीसस्थानक पूजा, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(८)=११, पू.वि. पत्रांक ८ का आधा टुकडा है., जैदे., (२६४११.५, १२४३३-३६). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: साहमीवच्छल. ___करवो, ढाल-२०, पूर्ण. १५४८८. भाष्यत्रय, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्रारंभ से प्रत्याख्यानभाष्य गाथा ४१ तक है., जैदे., (२६४११.५, १५४३४-३६). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: (-), पूर्ण. १५४८९. दशाश्रुतस्कंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९७७, माघ कृष्ण, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदे., (२५.५४११.५, ६-७४३७-३९). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं. हवइ; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, दशा-१० दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार थावो अरिहंत; अंति: जंबू प्रते कह्यो. १५४९०. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, पू.वि. टीका मध्य भाग तक ही है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ११४३९-४४). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्याय-१०. उपासकदशांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १११७, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २६१ १५४९१. पिंडनियुक्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदे., (२६४१०.५, १४४४९-५२). पिंडनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पिंडे उग्गम उप्पाय; अंति: विसोहिजुत्तस्स, गाथा-७०१. १५४९२. (+) राजप्रश्नीयसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९२-२(१,४८)=९०, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, ५४३४-३५). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १५४९३. जंबूस्वामी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४१०.५, १३४३७-३८). जंबूस्वामी कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (१)सुप्रभावं जिनं, (२)त्रैलोक्यना नायक; अंति: (-), अपूर्ण. १५४९४. नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदे., (२५४१०.५, १२४३२-३४). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: सेत्तं परोक्खणाणं. १५४९५. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ७, जैदे., (२५४११, १५४४३-४७). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. १५४९७. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-१४(१ से १४)=१२, पृ.वि. श्लोक-१ नहीं है., प्र.वि. घटते पत्र १-१४ में सटीक भक्तामर स्तोत्र या कोई और कृति होने की संभावना है. क्योंकि १४ पत्र में मात्र १ ही श्लोक नहीं हो सकता., त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत. कुल ग्रं. ७२७, जैदे., (२५४११, २-३४३५-४०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४, पूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: (-); अंति: श्लोकानामिहमंगलम्, ग्रं. ६५०, पूर्ण. १५४९८. मंगलकलश चौपाई, मंत्र व यंत्र, संपूर्ण, वि. १८८०, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. ३, प्र.वि. प्रतिलेखक अवाच्य है., जैदे., (२४.५४११, १३४३३-३५). १. पे. नाम. मंगलकलस चौपाई, पृ. १८. मंगलकलश चौपाई, मु. जीवण, मा.गु., पद्य, वि. १७०८, आदि: पणमवि सीमंधर प्रमुख; अंति: जीवण भणणइ० सुखदाइ. २. पे. नाम. सर्पविष मंत्र, पृ. १८आ. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो छारीया वीर; अंति: की सगति मोरी भगत. ३. पे. नाम. यंत्र, पृ. १८आ. मा.गु.,सं., यं., आदि: (-); अंति: (-). १५५००. सत्तरभेदीपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५, प्रले. गोपाल जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १२४४२-४४). For Private And Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: ज्योति सकल जग जागती; अंति: सब लीला सुख साजै, ढाल-१७. १५५०१. मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२६४११.५, ११४२४). मेघकुमार सज्झाय, मु. जयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सारद स्वामिनी; अंति: प्रेमे प्रणमे पाय. १५५०४. पाक्षिकसूत्र व खामणा, अपूर्ण, वि. १७६३, कार्तिक शुक्ल, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ११-२(१,१०)=९, कुल पे. २, ले.स्थल. सूर्यपूर, प्रले. मु. दानरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १३४३७-४१). १. पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. २अ-९आ, पू.वि. बीच के पत्र हैं. पाक्षिकसत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग.. आदिः (-): अंति: (-). अपर्ण. २. पे. नाम. क्षामणकसूत्र, पृ. ११अ-११आ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: नित्थारग पारगा होह, सूत्र-४, अपूर्ण. १५५०५. जंबूअध्ययन सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८७७, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ५८-१(५७)=५७, ले.स्थल. साथसीणनगर, प्रले. पं. देवेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जैदे., (२६.५४११, ६४३२-३५). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१, पूर्ण. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: ते काल चउथा आरानै; अंति: ते आराधक कह्या, पूर्ण. १५५०६. संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४२-४८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३७३. १५५०७. दशवैकालिकसूत्र सझाय व छिंक विधि, पूर्ण, वि. १९४६, श्रावण शुक्ल, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, प्र. ९-१(१)=८, कुल पे. २, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. जीवणसींह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११, १०४३८). १.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, पृ. २अ-९अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., दूसरे सज्झाय की गाथा-२ अपूर्ण से हैं. ___ संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ए गायो सकल जगीसे रे, सज्झाय-११, पूर्ण. २. पे. नाम. क्षुद्रोपद्रवनिवारण विधि, पृ. ९अ-९आ. मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पाखी प्रमुख पडिकमणा; अंति: करवू छींक दोसटले. १५५०८. कोकचौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, पृ.वि. प्रकाश २ गाथा-३६० तक ही लिखा है., जैदे., (२६४११, १७X४३-४६). कोकसार, आ. नर्बदाचार्य, मा.गु., पद्य, वि. १६५६, आदि: मातंगी मति आपीये; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५५०९. नवकारमंत्र सह बालावबोध व आयुप्रमाण, संपूर्ण, वि. १७२९, माघ शुक्ल, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. सा. कमलसुंदरी; पठ. श्रावि. पूतलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३२). १. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, पृ. १आ-५अ. For Private And Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २६३ नमस्कार महामंत्र, शाश्वत ,प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवई मंगलम्, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंतनइ माहरु; अंति: भणी सिद्ध वडां कहीइं. २. पे. नाम. आयु प्रमाण, पृ. १अ. मा.गु., गद्य, आदि: हस्ती १२० मनुष्य; अंति: २४ भेंस २४ घोडा ३२. १५५११. (+) सौभाग्यपंचमी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १०-११४३४-३७). वरदत्तगुणमंजरी कथा, सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: मुक्तिं गतः. १५५१२. नवाणुप्रकारी पूजाविधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२५४११.५, ९४२९-३२). ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेसर पासजी; __ अंति: आतम आप ठरायो रे, ढाल-११+कलश, गाथा-१०५... १५५१३. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४१-४४). साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पंच भरत पंच एरवय; अंति: देवमुनि ते संथुण्या, ढाल-१३. १५५१४. रास व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-६(६ से ९,१४ से १५)=१२, कुल पे. ९, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १९-२०४४६-५३). १. पे. नाम. उंबरदत्त रास, पृ. १अ-२आ. रा., पद्य, आदि: विपाकसुत्र अद्धेन; अंति: जासी मुकत मझार, ढाल-५, गाथा-८८. २. पे. नाम. धन्नाअणगार रास, पृ. २आ-५आ. रा., पद्य, आदि: तिण कालनै तिणसमै; अंति: उधार समतारस आणन ए, ढाल-९, गाथा-१४८. ३. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. ५आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-३ तक है. रा., पद्य, आदि: सासण नायक सुमरीय; अंति: (-), अपूर्ण. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १०अ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अंतिमढाल की गाथा-५ से है. रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अखै अजरामर थासीजी, अपूर्ण. ५. पे. नाम. अर्जुनमाली ढाल, पृ. १०अ-१२आ. मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२०, आदि: वर्धमान जिनवर नमुं; अंति: (-), ढाल-९, गाथा-११६, (पू.वि. रचनाप्रशस्तिवाली अंतिम गाथा नहीं लिखी गयी है.) ६. पे. नाम. उदाईराजा रास, पृ. १३अ-१३आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-४ की गाथा-४ तक है. रा., पद्य, आदि: श्रीआदिसर आदेदे; अंति: (-), अपूर्ण. ७. पे. नाम. ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, पृ. १६अ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., मात्र ७ वी ढाल है. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुख पाम्या रिसालै, ढाल-७, गाथा-७४, अपूर्ण. ८. पे. नाम. जिनरक्षितजिनपाल चौढालिया, पृ. १६अ-१८अ. रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी आगे हुई; अंति: माहाविदेह जासी मोक्ष, ढाल-४. ९. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. १८अ-१८आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private And Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रा., पद्य, आदि ति कालेनें तिण समें; अंति: (-), अपूर्ण. १५५१५. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८०७, पौष शुक्ल ९, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल, वापिनगर, पठ, श्रावि मानकुंअर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, ११४२५-३०), सीमंधरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: अनंत चउवीसि जिन नमुं; अंति: भविक जन मंगल करो, डाल-७, गाधा १०३. १५५१७. शत्रुंजयउद्धार व पार्श्वजिनस्तवन, संपूर्ण, वि. १८८७, फाल्गुन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले. स्थल. महावडनगर, प्रले, पं. सुंदरविजय; पठ, श्रावि. झवेरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले, लो, (३०२) जब लगें मेरु थीर रहें, जैदे., (२५४११.५, १३४३४-३८). १. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, पृ. १आ-७अ. मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: द्यो दरिशन जयकरो, गाथा - १२१. २. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७आ. वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि पास प्रभूना चरण नमी; अंतिः वाते घणो रागी रे, गाथा ९. १५५१८. भुवनदीपक सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १६१८, चैत्र कृष्ण, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १३-१ (१)-१२, ले.स्थल. महिम्मदाबाद, प्रले. मु. हंसवल्लभ, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, जैदे., (२५x११, १५-१७X३६-३९). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३, आदि: (-); अंति: श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः, श्लोक-१६३, पूर्ण. भुवनदीपक - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सून्य हुइनु सून्य, पूर्ण. १५५२०. चौदस्वप्न विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैये, (२५x१०.५, १३x४२-४४). १४ स्वप्न विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलइ स्वप्नि सिंह; अंतिः सिखा देखी जागी. १५५२१. नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, ले. स्थल. खेरालु, प्र. वि. अंत के अनुपूरित कुछ पत्र संवत २०वी के हैं., जैवे. (२४४११, १२x२२-२६). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० हव अंतिः स्तूयमाने जिनेश्वरे, स्मरण - ९. १५५२२. अढारपापस्थानकवर्जन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. ग. खुशालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x११.५, ११४३३). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानक पहिलं क अंतिः सेवक वाचकजस हम आखेजी, सज्झाय १८. १५५२४. (*) पिस्तालीसआगम पूजा, संपूर्ण, वि. १८८९, कार्तिक कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. वलाद, प्र. मु. खुसालरत्न (गुरु मु. शिवरत्न, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैवे., (२४.५४११.५, १३-१४X३४). ८ प्रकारी पूजा - पिस्तालीसआगमगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंतिः संघने तिलक करायो रे. For Private And Personal Use Only १५५२५. पट्टावली-तपागच्छ, संपूर्ण, वि. १८५९, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. धुणाम, प्रले. पं. जीर्णेद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये., ( २६११.५, १३-१४४३३-३६). Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: विजय मुनिचंद्रसूरि. १५५२६. जंबूद्वीपलघुसंग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५४१२, ४४३०-३६). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. लघुसंग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी जिन सर्व; अंति: पर उपकार वास्ते. १५५३१. (+) वीसस्थानक विचारामृत संग्रह, संपूर्ण, वि. १६८३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७६, प्रले. राजनिवास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४५). विचारामृतसार संग्रह, ग. जिनहर्ष, सं., पद्य, वि. १५०२, आदि: श्रीभूर्भुवः स्व; अंति: (१)कलितां सततानुभावां, (२)वाच्यमानो निरंतरं, कथा-२०, ग्रं. ३०००. १५५३३. (+) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. ४४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३८). १. पे. नाम. साधारण स्तुति, पृ. १आ. ___कल्लाणकंद स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढम; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. २. पे. नाम. बीजशुक्ल स्तुति, पृ. १आ-२अ. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहै पूर मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. कृष्णपक्षपंचमी स्तुति, पृ. २अ. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: समुद्रभूपालकुलप्रदीप; अंति: देवी जगतः किं लंबा, श्लोक-४. ४. पे. नाम. शुक्लपंचमीदिन स्तुति, पृ. २अ-२आ. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ५. पे. नाम. शुक्लअष्टमीदिन स्तुति, पृ. २आ-३अ. संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि, सं.,प्रा., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ६. पे. नाम. कृष्णअष्टमीदिन स्तुति, पृ. ३अ. अष्टमीतिथि स्तुति , मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमाद; अंति: नंदीसर विघन दूरे हरे, गाथा-४. ७. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ३अ-३आ. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: सीस० संघ तणा नीसदीस, गाथा-४. ८. पे. नाम. चतुर्दशीदिन स्तुति, पृ. ३आ-४अ. __पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ९. पे. नाम. महावीर स्तुति, प्र. ४अ-४आ. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक श्रीमहावीर; अंति: द्यो सरसती वाणीजी, गाथा-४. For Private And Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ४आ-५आ. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: संघनां विघन निवारी, गाथा-४. ११. पे. नाम. सूखडीढोयण आदीश्वर स्तुति, पृ. ५आ-६अ. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: जो तुसे देवी अंबाई, गाथा-४. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ६अ-६आ. पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, मु. लब्धिरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन गोडीपार्श्व; अंति: लब्धिरुचि जयकार, गाथा-४. १३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ६आ-७अ. मु. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो; अंति: वाचक० उत्तम सीस सवाई, गाथा-४. १४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ७अ-७आ. मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आसो चैत्र आंबिल ओली; अंति: नितनित जयजयकारीजी, गाथा-४. १५. पे. नाम. पजूसणापर्व स्तुति, पृ. ७आ-८अ. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण पुन्थे; अंति: शांतिकुशल गुण गायाजी, गाथा-४. १६. पे. नाम. शैजुंज आदिजिन स्तुति, पृ. ८अ-८आ. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहिं., पद्य, आदि: आगे पूरव वार निवाणु; अंति: कारज सिद्ध हमारीजजी, गाथा-४. १७. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ८आ-९अ. मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर मुझनै; अंति: शांतिकुशल सुखदाता जी, गाथा-४. १८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ९अ. मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपास जिणेसर पुजा; अंति: सुखसंपत्ति हितकार, गाथा-४. १९. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति-फलवर्द्धि, पृ. ९अ-९आ. ___ मु. देवकुशल, रा., पद्य, आदि: फलवधीरो मंडण सांति; अंति: कुशलनी आसा सफल करे, गाथा-४. २०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमी, पृ. ९आ-१०अ. पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमीतिथि, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जय पास देवा करूं; अंति: पूरणी अम आस्या पूरणी, गाथा-४. २१. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १०अ-१०आ. मा.गु., पद्य, आदि: सुरअसुरवंदितपायपंकज; अंति: करतु अंबिक देवीया, गाथा-४. २२. पे. नाम. संगीतपाठमयी जिनस्तुति, पृ. १०आ. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. For Private And Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २३. पे. नाम. ऋषभस्तुति, पृ. ११अ. आदिजिन स्तुति-चतुर्थीतिथि, सं., पद्य, आदि: उद्यत्सारं शोभागार; अंति: भूत्यैस्तात्, श्लोक-४. २४. पे. नाम. विजयरत्नसूरि स्तुति, पृ. ११अ-११आ. ___सं., पद्य, आदि: नृपतिनाभिकुलांबरभास; अंति: गणाद्विपती श्रियम्, श्लोक-४. २५. पे. नाम. आदिजिन स्तुति-वीसलपुरमंडन, पृ. ११आ. ____ मु. देवकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: विसलपुर वांदु; अंति: संघना विघन निवार, गाथा-४. २६. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ११आ-१२अ.. सं., पद्य, आदि: आनंदानम्रकम्रत्रिदशप; अंति: तां विघ्नमर्दीकपर्दी, श्लोक-४. २७. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १२अ-१२आ. मु. भालतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: जयजय कर मंगलदीपक; अंति: भालतिलक भर हीर, गाथा-४. २८. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १२आ. मा.गु., पद्य, आदि: जय मानव सेवित; अंति: तीर्थाधिप सुरराज, गाथा-४. २९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १२आ. सं., पद्य, आदि: कल्याणानि समुल्लसंति; अंति: सत्कल्याणमाहात्म्यतः, श्लोक-१. ३०. पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. १२आ. ____ आदिजिन स्तुति, मु. सौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरगिरिस्वामी आदि; अंति: सौभाग्यनो दातार, गाथा-१. ३१. पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. १२आ. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरिकमंडण पाय; अंति: द्यो सुख कंदाजी, गाथा-१. ३२. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. १२आ-१३अ. मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धवधु केरो सिणगार; अंति: पुर आस्या सवि मन तणी, गाथा-४. ३३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १३अ. क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ३४. पे. नाम. परब पजूसण स्तुती, पृ. १३आ. पर्युषणपर्व स्तुति, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्यनो पोषण पापनो; अंति: दिन दिन अधिकी वडाईजी, गाथा-४. ३५. पे. नाम. शैर्बुजारी थुई, पृ. १३आ-१४आ. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजय तीरथसार; अंति: पाय ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ३६. पे. नाम. सास्वतिप्रतिमाजिन स्तुती, पृ. १४आ-१५अ. शाश्वतजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ चंद्रानन वंदन; अंति: पद्मविजय नमे पायाजी, गाथा-४. For Private And Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १५अ. मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर अतिअलवेसर; अंति: भणे बुधविजय जयकारीजी, गाथा-४. ३८. पे. नाम. समकीतदृष्टिरी स्तुति, पृ. १५आ. ___नवतत्त्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीवाजीवपुन्यपावा; अंति: गुण चित धरज्योजी, गाथा-४. ३९. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १५आ-१६अ. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल आठ करी जस आगल; अंति: तपथी कोड कल्याणजी, गाथा-४. ४०. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १६अ-१७अ. आदिजिन स्तुति, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सौधर्म देवलोक पहिलो; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. ४१. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १७अ. श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीइं; अंति: सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा-४. ४२. पे. नाम. दसमी स्तुति, पृ. १७अ-१७आ. पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वरपासजिणेस; अंति: धीरविजयने० सुख थायजी, गाथा-४. ४३. पे. नाम. रोहिणीतप स्तुति, पृ. १७आ-१८अ. मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवर वासपूज; अंति: देवी लब्धिरूची जयकार, गाथा-४. ४४. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १८अ, अपूर्ण, पू.वि. गाथा २ तक है. क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५५३४. (+) निरियावलियादिपंचोपांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५४, भाद्रपद शुक्ल, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०६+१(८२)=१०७, कुल पे. ५, ले.स्थल. धोलेराबंदर, प्रले. ललुवल्यम् शेठ; रंगनाथवल्यम् शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल व टबार्थ के प्रतिलेखक दोनो क्रमशः हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१०.५, ५४३२-३६). १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सहटबार्थ, पृ. १आ-४१अ. कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: मायातो सरिसणामाओ, अध्ययन-१०. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतरागदेवने नमस; अंति: तानां नाम सरिषा नाम. २. पे. नाम. कल्पवडिंसियासूत्र सह टबार्थ, पृ. ४१अ-४५अ. कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिज्झीहिति, अध्ययन-१०. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जउ भं० हे पूज्य; अंति: विदेह खेत्रै सीझस्यै. ३. पे. नाम. पुफीयासूत्र सह टबार्थ, पृ. ४५अ-८६अ. पष्पिकासत्र, प्रा.. गद्य, आदि: जइणं भंते समणेण०; अंति: चेइयाई जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जो भं० हे पूज्य; अंति: गाथा माहे छे तिम. ४. पे. नाम. पूप्फचूलासूत्र सह टबार्थ, पृ. ८६अ-९३अ. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन-१०. For Private And Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २६९ पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जो हे पूज्य स०; अंति: सर्व पाछली परे कहेवो. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ९३अ-१०६अ. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते० पंचमस्स; अंति: मइरित्त एक्कारससु वि, अध्ययन-१२. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जो हे पूज्य श्रमण; अंति: वर्गना बार उद्देसा. १५५३५. प्रश्नशतक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७४११, १६-१७४३४). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-प्रश्नशतक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञाताधर्मकथा साढि; अंति: तेहनइं प्रतापइं. १५५३६. सिद्धान्तचन्द्रिका प्रक्रिया-यङन्त से लकारार्थ सह सदानंदी टीका, प्रतिअपूर्ण, वि. १९१०, वैशाख शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. २५-१(५)=२४, पू.वि. यङन्त ९वे सूत्र से प्रारंभ है., जैदे., (२७४११.५, १२४३८-४५). सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १५५३७. (+) अभिधानचिंतामणी नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., कांड-३ श्लोक-३६३ तक है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १३-१४४४५-४८). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), अपूर्ण. १५५३८. (+) कुमारपाल चरित्र व कुमारपाल कीर्तिगाथा, अपूर्ण, वि. १५१९, आश्विन शुक्ल, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(७) =८, कुल पे. २, प्रले. देवा मंत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण अंतर्गत कुमारपालप्रबंध का उल्लेख है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, ११४३९-४३). १. पे. नाम. कुमारपाल चरित्र, पृ. ९, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., श्लोक ५३ से ७७ नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: यो दिवं ययौ, श्लोक-२२१, अपूर्ण. २. पे. नाम. कुमारपाल कीर्तिगाथा, पृ. ९आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मा.गु., गद्य, आदि: राजा कुमारपालनइ चारइ; अंति: (-), अपूर्ण. १५५३९. इक्षुकारसिधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२७४१०.५, १२४३६-४१). इक्षुकारसिद्ध चौपाई, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४७, आदि: परम दयाल दयाकरु आसा; अंति: खेम भणै० कोडि कल्याण, ढाल-७. १५५४०. आरंभसिद्धि सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., विमर्श ५ श्लोक ८५ तक है., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२७४११, ११-१४४४३-५९). आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: ॐ नमः सकलारंभसिद्धि; अंति: (-), अपूर्ण. आरंभसिद्धि-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १५५४१. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थव कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३०-६(१ से ६)=२४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रारंभिक पीठिका भाग व अंत के पाठ नहीं है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, ३-५४३२-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), अपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने नमस्कार; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १५५४२. (+) ऋतुसंहार सह टीका, संपूर्ण, वि. १७१८, पौष कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले.स्थल. भुरुंदा, प्रले. पं. प्रेमसुर (गुरु पंडित. प्रेमरंग गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६.५४११, १७४४६-५२). ऋतुसंहार, कालिदास, सं., पद्य, आदि: प्रचंडसूर्यः स्पृहणी; अंति: गृह्यति शीतलत्वात्, सर्ग-६. ऋतुसंहार-टीका, आ. अमरकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनाधीश; अंति: लिखनोद्यममादधे, ग्रं. १६२५. १५५४४. रघुवंश सह सुबोधिका टीका-सर्ग ५, प्रतिअपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १३-१(१)=१२, पू.वि. मूल श्लोक४२, जैदे., (२७.५४११, ८-९४३२). रघवंश, कालिदास, सं., पद्य, आदिः (-): अंति: (-). प्रतिअपर्ण. रघुवंश-सुबोधिका टीका, ग. श्रीविजय, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १५५४६. (+) नमस्कार स्तव सह टीका, संपूर्ण, वि. १६५५, फाल्गुन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ., जैदे., (२७४११, १-३४४७-५०). नमस्कार स्तव, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परमिट्ठि नमुक्कार; अंति: महिम सिद्धि सुह, गाथा-३३. नमस्कार स्तव-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १४९७, आदि: जिनं विश्वत्रयी; अंति: जलधिनंदमनुप्रमेब्दे. १५५४८. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११, १३४३७-४०). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपाए; अंति: धम्मकहाओ सम्मत्ताउ, अध्ययन-१९, ग्रं. ६०००. १५५४९. चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १००-४२(१ से ४२)=५८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रारंभमें उल्लास-३ की ढाल-५ वीं की गाथा-१२ अपूर्ण से है. अंतमें मात्र प्रशस्ति का भाग नहीं है., जैदे., (२८x११, १३४३३-४५). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १५५५०. (+) सिंदूरप्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. संशोधित-पंचपाठ., जैदे., (२७४११, ३-१०४३१-३८). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-९८. सिंदूरप्रकर-टीका, आ. चारित्रवर्द्धन वाचनाचार्य, सं., गद्य, वि. १५०५, आदि: पार्श्वप्रभोः; अंति: कर्तुं समर्थः स्यात्. १५५५१. खंडाजोयण व अढीद्वीप विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, जैदे., (२८.५४११, १५-१७४३८-४६). १.पे. नाम. खंडाजोयण, पृ. १आ-११अ. खंडाजोयन बोल, मा.गु., गद्य, आदि: लाख जोयणनो जंबुद्वीप; अंति: रोहितानी परे जाणवो. २. पे. नाम. अढीद्वीप विचार, पृ. ११अ-११आ. For Private And Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २७१ मा.गु., गद्य, आदि: अढीदीप जोयण सोलै इक; अति: जोजन झाजेरी छै. १५५५३. (+) पुण्यपाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १७१५, श्रावण शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. शुद्धदंती, प्रले. पं. महिमाकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६.५४११, १८४४६-५०). पुण्यपाल चौपाई-दानविषये, पं. क्षेमहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७०४, आदि: अकल अगोचर अलख गति; अंति: ते पामइ सुख वृद, ढाल-१३. १५५५५. (+) यतिप्रतिक्रमणसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. संशोधित-त्रिपाठ., जैदे., (२७४११, १-५४६२-६६). पगाम सज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: करेमि भंते चत्तारि०; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-५०, ग्रं. ६५५. पगामसज्झायसूत्र-अर्थनिर्णयकौमुदी टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६४, आदि: नत्वा श्रीवीरजिन; अंति: सर्वमनवद्यम्. १५५५६. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६८७, आषाढ़ शुक्ल, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. लाभपुर, प्रले. पं. मनोहर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२६.५४११, ३४३८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४९. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: साचा वस्तुनो स्वरूप; अंति: हुइ ते अनेक सिद्ध १५. १५५५७. (+) इंद्रिय, वैराग्यशतक व आदिनाथदेशनोद्धार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६१३, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. ३, ले.स्थल. बोहीया, प्रले. मु. मान (चैत्रगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ८४४०-४४). १. पे. नाम. इंद्रियशतक सह टबार्थ, पृ. १अ-७अ. इंद्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदि: सुच्चिअसूरो सो; अंति: संवेग रसायणं निच्चं, गाथा-९७. इंद्रियपराजयशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेहिज सूर तेहिज; अंति: संवेग रसायन नित्यं, ग्रं. २८२. २. पे. नाम. भववैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. ७आ-१४अ. वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०३. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: सुखनु ठाम लहई, ग्रं. २८४. ३. पे. नाम. आदिनाथदेशनोद्धार सह टबार्थ, पृ. १४अ-१९अ. आदिनाथदेशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदि: संसारे नत्थि सुह; अंति: सिवं जंति, गाथा-८७. आदिनाथदेशनोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसारमांहि नथी सुख; अंति: शिव मोक्ष पहुंचइ. १५५५८. (+) हैम धातुपाठ, संपूर्ण, वि. १५८२, वैशाख कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. अहमदाबाद, प्रले. पं. हंससंयम गणि; पठ. सा. हर्षसुंदरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११,११४४०-४२). सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमधातुपाठ, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: भू सत्तायां पां पाने; अंति: षहण मर्षणे. For Private And Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५५५९. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १६५६, वैशाख कृष्ण, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७५-६१(६ से ६६)=१४, पू.वि. अध्ययन ३ गाथा ११ से अध्ययन ३६ गाथा ५६ तक नहीं है., ले.स्थल. असारुआ, जैदे., (२६४११, ११४४१-४४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: पुव्वरिसी एव भासंति, __ अध्ययन-३६, अपूर्ण. १५५६२. (+) नवतत्त्व सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८२७, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. सूरतिबंदिर, प्रले. ग. तेजसागर; पठ. श्राव. फूलचंद जयचंद भणशाली, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ११४३७-३९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: नाहं मरणस्स बीयम्मि, गाथा-१००. नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५५६३. जीवविचार सह टबार्थ व चौवीसजिनगर्भावासकाल, संपूर्ण, वि. १८८४, माघ शुक्ल, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, ले.स्थल. भावनगरबिंदर, प्रले. ऋ. बेचरबर्द्ध; पठ. मु. ऋद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, ४४३०-३५). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-८आ. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२, ग्रं. ६४. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, आदि: स्वर्ग मृत्यु पाताल; अंति: (१)मतीनां विबोधकृते, (२)ते माहेथी उद्धर्यो, ग्रं. १९२. २. पे. नाम. २४जिन गर्भावासकाल, पृ. ८आ. २४ जिन गर्भावास काल, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). १५५६४. (+) सौभाग्यपंचमी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४५, आश्विन शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. व्यारा, प्रले. पं. ज्योतिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ३-७४३२-३६). वरदत्तगुणमंजरी कथा, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१४८. वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)पार्श्वदेव छे ते, (२)शोभावंत श्रीपार्श्व; अंति: बाता सारो मेडतानगरे. १५५६५. छत्रीसीसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८७९, वैशाख शुक्ल, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, ले.स्थल. मुबीबंदर, प्रले. मु. प्रेमचंद (गुरु मु. जीवचंद); पठ. ऋ. लालचंद (गुरु मु. प्रेमचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, १३-१५४३३). १. पे. नाम. खीमाछत्रीसी, पृ. १अ-२आ. क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव क्षमागुण; अंति: संघ सदा सुजगीसजी, गाथा-३६. २. पे. नाम. पुण्यछत्रीसी, पृ. २आ-४अ. For Private And Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ पुण्य छत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: पुण्यतणां फल परतखि; अंति: फल परतक्ष जी, गाथा-३६. ३. पे. नाम. कर्मछत्रीसी, पृ. ४अ-५आ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: कर्म थकी छूटे नही; अंति: धरमतणै परमाण जी, गाथा-३६. १५५६६. सौभाग्यपंचमी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७६, फाल्गुन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२५४११, ४४४०-४१). वरदत्तगुणमंजरी कथा, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे. श्लोक-१५२. वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: लीधी मेडतानगरने विषे. १५५६७. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५३, पौष कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १३, पठ. श्रावि. खेमकुंयरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ९-१०४२७-३०). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: आणा शिर वहस्ये जी, ढाल-६. १५५६८. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८१४, पौष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. तरणीपुर, जैदे., (२५४११, १३४३४-३७). स्तवनचौवीसी, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिनेश्वर ऋषभ; अंति: पद्मविजय गुण गाया रे, स्तवन-२४. १५५६९ (+) कल्याणमंदिर स्तोत्रसह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १७४४२-४५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: किल इति संभावनाया; अंति: सुगुरुप्रसादात्. १५५७०. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२६४११, १२४३९-४१). सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५, ग्रं. १७५. १५५७१. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३६-१५(१ से १३,६८ से ६९)=१२१, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ५-१५४३१-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १५५७२. (+) नेमजिनचौवीसचोक, संपूर्ण, वि. १८५१, आषाढ़ कृष्ण, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ.६, ले.स्थल. लींबडी, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६४११.५, १३४३४). For Private And Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसै नेमकुंवर; __ अंति: तस सीस अमृत गुण गाया, चोक-२३. १५५७३. आचारांगसूत्र - द्वितीय श्रुतस्कंध, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०८-३६(१ से ३६)=७२, जैदे., (२६.५४११, ११४३५-३८). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विमुच्चति त्ति बेमि, प्रतिअपूर्ण. १५५७४. गौतमस्वामीरास, चौवीसजिनस्तवन व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, १३-१४४३०-३२). १.पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ-४अ. श्राव. शांतिदास, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सरस वचन दायक सरसती; अंति: गौतमरिषी आपो सुखवास, गाथा-६२. २. पे. नाम. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, पृ. ४अ-५आ. मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमु; अंति: तास सीस प्रणमु आणंद, गाथा-२९. ३. पे. नाम. जैन दुहा संग्रह , पृ. ५आ. प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), गाथा-१. १५५७५. आत्मप्रबोध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८१९, पौष शुक्ल, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४११.५, १३४३४). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक जशने वयणेजी, ढाल-८. १५५७६. चौवीसदंडक ओगणत्रीसद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९४४, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. अहमदाबाद, प्रले. सा. खीमकोरश्रीजी; पठ. सा. पुनसरीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४२९-३२). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: जीव अनंतगुणाधिका. १५५७७. शालीभद्रधन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १९२९, कार्तिक कृष्ण, १२, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २६, प्रले. रामनाथ व्यास; पठ. मु. पद्मसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १०४३६-३८). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल लहिस्यैजी, ढाल-२९. १५५७८. पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. कारोडा, प्रले. पृथ्वीराज बारोट; पठ. संतोकबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १०४२१-२३). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: सकल भवि मंगल करे, ढाल-६. १५५७९. स्तवन व सज्झाय संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-२(२,७)=२३, कुल पे. ३३, प्रले. खूमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, ११-१३४२७-३२). १.पे. नाम. विहरमान २० जिन स्तवन, पृ. १आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., मात्र अंतिम कुछेक शब्द नहीं है. ग. खिमाविजय, मा.ग., पद्य, आदि: सीमंधर युगमंधर बाह; अंति: (-), पूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २. पे. नाम. बाहुजिन स्तवन, पृ. ३अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-४ अपूर्ण से है. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिन० अवतार रे माय, गाथा-८, अपूर्ण. ३. पे. नाम. शालिभद्र धन्ना सज्झाय, पृ. ३अ-३आ.. वा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: अजिया मुनि० वेभारगिर; अंति: पाम्या भवजल तीर रे, गाथा-७. ४. पे. नाम. स्वार्थ सज्झाय, पृ. ३आ. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: स्वारथ की सब हेरे; अंति: एक धर्म सखाई, गाथा-६. ५. पे. नाम. पांचमी वाडरी सझाय, पृ. ४अ. पंचमवाड सज्झाय, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम पुछे श्रीवीरने; अंति: केशरकुशल जयकार हो, गाथा-७. ६. पे. नाम. मोक्षरी सझाय, पृ. ४आ. मोक्ष सज्झाय, मु. सहजसुंदर, रा., पद्य, आदि: मोक्षनगर माहरु सासरु; अंति: मोक्षरो ठाम रे लाला, गाथा-५. ७. पे. नाम. आत्महेतुं सिझाय, पृ. ४आ-५आ. औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विणजारा रे ऊभो रहे; अंति: सीख समयसुंदर इम उचरे, गाथा-१२. ८. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ. नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: यादवजी हो समुद्रविजय; अंति: जयो शिवादेवी मल्हार, गाथा-७. ९. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: एतो बाल थकी ब्रह्म; अंति: ए दंपतिनी बलीहारी रे, गाथा-८. १०. पे. नाम. शत्रुजयरायणवृक्ष स्तवन, पृ. ६आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., अंतिम कुछेक शब्द मात्र नहीं है. शत्रुजयतीर्थरायणवृक्ष स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नीलुडी रायणतरु तले; अंति: (-), पूर्ण. ११. पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. ८अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-३ से है. मु. सत्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: शिवसुख शरणा रसाल, गाथा-८, अपूर्ण. १२. पे. नाम. नवपल्लवपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ. पार्श्वजिन स्तवन-नवपल्लव, मु. विजयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पूजो पास जिनेसर देव; अंति: विजयचंद भव सायर तरे, गाथा-४. १३. पे. नाम. गोडिजिन स्तवन, पृ.८आ-९अ. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. वसता, रा., पद्य, आदि: जोर बन्यो जोर बन्यो; अंति: वसता० जोर बन्यो राज, गाथा-१५. १४. पे. नाम. छ आवश्यक सज्झाय, पृ. ९अ-९आ. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: संझतणु पडिक्कमणु; अंति: तेह जेहेने सद्दयू, गाथा-१०. १५. पे. नाम. कुगुरुनी स्वाध्याय, पृ. ९आ-११अ. For Private And Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर प्रणमी; अंति: भणे तेजपाल सुखदाय, गाथा-२५. १६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ११अ-११आ. मु. महेंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: जगगुरु वामानंदन भगवा; अंति: रम महेंद्र पद अनुसरे, गाथा-६. १७. पे. नाम. आत्मभावना स्तवन, पृ. ११आ-१२अ. सम्यक्त्व स्तवन, ग. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समकित द्वार गभारे; अंति: विजय जिन आगम रीत रे, गाथा-६. १८. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १२अ-१२आ. मा.गु., पद्य, आदि: हे लिं श्रावणीयों आ; अंति: गुण राजीद गावे हें, गाथा-८. १९. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १२आ-१३अ. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलंबडे मत खिजो प्रभु; अंति: वृषभ लंछन बलिहारी, गाथा-७. २०. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १३अ-१४अ. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी चालोतो तुमने; अंति: रुपविजय जय जयकारजो, गाथा-१२. २१. पे. नाम. नेमराजिमती कागल, पृ. १४अ-१५आ. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीरेवंतगिर; अंति: रूपविजय उलास रे, गाथा-१९. २२. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. १५आ-१७अ. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंति: संघ सकल सुखदाय रे, ढाल-५. २३. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. १७अ-१७आ. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कुंथु जिणेसर जाणज्यो; अंति: लाल मानविजय उवझाय रे, गाथा-६. २४. पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. १७आ-१८आ. ___मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझने रे मात; अंति: परमसुख इम मांगीये, गाथा-१०. २५. पे. नाम. इरियावहि सज्झाय, पृ. १८आ-१९आ. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सूखदायक अरिहंत; अंति: मेरुविजेय. निसदिस, गाथा-१६. २६. पे. नाम. असज्झाय सज्झाय, पृ. १९आ-२०आ. मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवी समरी मात; अंति: ज्ञान सिवलसी ते वरे, गाथा-१६. २७. पे. नाम. सतीसीयलोपर सझाय, पृ. २०आ-२१अ. रथनेमिराजिमती स्वाध्याय, मु. हितविजय, रा., पद्य, आदि: प्रणमी सदगुरुपाय; अंति: पद राजुल लडोजी, गाथा-११. २८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २१आ. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: काया पुर पाटण मोकलौ; अंति: सहिजसुंदर वेश रे, गाथा-६. २९. पे. नाम. तुंबडी सज्झाय, पृ. २२अ-२२आ. For Private And Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २७७ मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहि गुरुपाय प्रणमी; अंति: लालविजय गुण गाय, गाथा-१०. ३०. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. २२आ-२३अ. मु. रिद्धिकिर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबा रे संभव जिनरी; अंति: मन मोहे रे, गाथा-६. ३१. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २३अ. म.ज्ञानउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: अटके नयनं जिन चरणां; अंति: नयनां जिन चरणां, गाथा-३. ३२. पे. नाम. दसश्रावक भावीक सझाय, पृ. २३अ-२३आ. १० श्रावक सज्झाय, मु. सौभाग्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: दश श्रावक भगवंतना; अंति: कहे सोभाग्यरतन हो, गाथा-१४. ३३. पे. नाम. श्रावकना २१ गुण स्वाध्याय, पृ. २३आ-२५अ. श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहिए मिलस्ये रे; अंति: सफल जन्म तिण लाधो जी, गाथा-२१. १५५८०. (+) श्रावकविधिप्रकाश भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, १५४३७-४१). श्रावकविधि प्रकाश, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, वि. १८३८, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: विधिप्रकाशो निर्मितः. १५५८१. (+) वैराग्यशतक सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५०, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. मु. अमरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (६८४) दृष्ट लगे अरु मन लगे, (६८५) सत्गुरु के प्रसादथी, (६८६) समत उनीसाढा कहा, जैदे., (२५४१३, ५४४०-४६). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसारने विषे असारपणु; अंति: लहे पांमे जि० एह जीव. १५५८३. (+) रूपसेनचरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०५, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५६, ले.स्थल. बिकानेर, प्रले. घूघरराम पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक द्वारा टबार्थकार का नाम नहीं लिखा गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२.५, ७४३१-३४). रूपसेनकनकावती चरित्र-चतुर्थव्रत पालने, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, आदि: आरोग्यभाग्याभ्युदय; अंति: सुकृताय कृता कथा, श्लोक-२२१. रुपसेनकनकावती चरित्र-टबार्थ*,ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर निरोग पामैं; अंति: रूपसेनमुनिनी कथा. १५५८५. (+) जंबूस्वामी रास, पूर्ण, वि. १८६०, वैशाख शुक्ल, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २९-२(३,२२)=२७, ले.स्थल. श्रीपुरीजी, प्रले. मु. संतदास (गुरु मु. उद्योतचंद, जिनचंद्रसूरि गच्छ), प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित.. प्र.ले.श्लो. (६१५) जाद्रिसं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४३४-३६). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-जंबू चरित्र, मु. चेतनविजय, हिं., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीअरिहंत नमो सदा; अंति: लायके सब जन करते सेव, गाथा-५२३, पूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५५८६. पंचवाकीसुकनावली व ज्योतिषआदिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३९-४२). १. पे. नाम. पंचवाक्य शुकनावली, पृ. १आ-९आ. मा.गु., गद्य, आदि: ऐ माणसथी लाभ कहेवो; अंति: जे धारण घण थाइ. २.पे. नाम. ज्योतिषसंग्रह , पृ. १अ. ज्योतिष संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). १५५८७. प्रतिष्ठाविधिसंग्रह-आचारदिनकरेत्, प्रतिपूर्ण, वि. १७९७, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पत्तन, प्रले. ग. दानचंद्र (गुरु ग. जिनचंद्र),प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अठारह अभिषेक व कलश ध्वज प्रतिष्ठा विधि., जैदे., (२५.५४११.५, १६-१८४४०-४४). प्रतिष्ठा विधि संग्रह, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), प्रतिपूर्ण. १५५८८. अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १७९७, चैत्र शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२५.५४११.५, १६-१७४४०). अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, आ. भद्रबाहुस्वामी, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीपार्श्व; अंति: तानि विवर्जयेत्. १५५९४. प्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह व स्तुतिसंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४-३१(१ से ३०,६१)=३३, कुल पे. १४, जैदे., (२५.५४१२.५, ११-१३४२४-२७). १. पे. नाम. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, पृ. ३१अ-५२आ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडं, अपूर्ण. २. पे. नाम. पनरेतिथारी स्तुति, पृ. ५३अ-५९अ. १५तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम; अंति: नयविमल० नाम तणो गुणी, स्तुति-१६, गाथा-६४. ३. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ५९आ. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ४. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ५९आ-६०अ. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: ए सफल करो अवतार तो, गाथा-४. ५. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ६०अ-६०आ. मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चौवीसे जिनवर प्रणमु; अंति: जीव० जीवत जनम प्रमाण, गाथा-४. ६. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ.६०आ, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: (-), पूर्ण. ७. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ६२अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भणे बुधविजय जयकारीजी, गाथा-४, पूर्ण. ८. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ६२अ-६२आ. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेदी जिनपूजा; अंति: पूरवे देव अंबाइजी, गाथा-४. For Private And Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ६२-६३अ. मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर मुजमन वाल्हो; अंतिः शांतिकुशल सुखदाता जी, गाथा-४. १०. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ६३अ - ६३आ. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर नर; अंतिः करतां मंगल मालाजी, गाथा-४, ११. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. ६३आ - ६४आ. मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासण नायक श्रीमहावीर; अंतिः द्यो सरसती वाणीजी, गाथा- ४. १२. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. ६४आ. मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरिकमंडण पाय; अंतिः यो सुख कंदाजी, गाथा- १. १३. पे नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. ६४ आ. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: देवि दयादंभ, श्लोक - १. १४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ६४आ. मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरस्वामी केवला; अंतिः आवागमण निवार निवार, गाथा - १. १५५९५. कवित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., ( २६.५X१२.५, ११X३१-३५). औपदेशिक कवित, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: धूल साल देखें मूल; अंति: परनम पात्र विशेषर्ते, गाथा- ४४. १५५९६. समयसार नाटकभाषा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१ ( २ ) = १६, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा १८२ तक है., जैदे. (२६.५११, १७४२-४६). - समयसार नाटक- पद्यानुवाद, आव, बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर; अंति: (-), अपूर्ण. १५५९७. दानकथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. ग. विनयविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४११.५, १८x४२). २७९ वसतिदानादि विषयक दृष्टांत कथासंग्रह, प्रा., सं., गद्य, आदि वसही सवणासण भत्तपाणे; अंतिः भवे मोक्षं यास्यति, कथा - ८. १५५९९. आश्चर्ययोगमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, जैदे., (२७X११.५, १३X३९). आश्चर्ययोगमाला, मु. गुणाकर भिक्षु, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि: गुर्वाभिप्राय समुद्र; अंति: भिक्षुणाज्जयति, सूत्र - १४०. १५६०० उपदेशरसाल सह वालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १८५३ ज्येष्ठ शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६८, जैदे., (२६x१२.५, १६-२१X३७-४० ). For Private And Personal Use Only सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलसुकृतवल्ली; अंति: गम्य विचारणीयं, वर्ग-४. सूक्तमाला - बालावबोध, मु. प्रतापविजय, मा.गु., गद्य, आदि: तदनुक्रम संग्रहो; अंतिः स्वरुप ते एहज विचार. सूक्तमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: श्री आदेश्वरजीनी सेवा अंति: खेद पामीने निकल्या. १५६०१. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-५ (१ से २, ४, ८, १४) - १४, कुल पे. १९, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५x११.५, १५X४९-५२ ) . Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. महावीरजिन हमचडी-कल्याणकपंचवर्णन, पृ. ३अ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-५५ अपूर्ण से है. उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: चरमजिणेसर वीरो रे, गाथा-६६, अपूर्ण. २. पे. नाम. महावीरजिन हुंडि, पृ. ३अ-३आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-२० अपूर्ण तक हैं. ___ महावीरजिन स्तवन-हुंडि, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: आसीन्मनो यस्य रसे; अंति: (-), अपूर्ण. ३. पे. नाम. गणधरवाद स्तवन, पृ. ५अ-६अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., मात्र आदिवाक्य का भाग नहीं है. ___वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सेवक सकलचंद शुभाकर, गाथा-४८, पूर्ण. ४. पे. नाम.सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ६अ-७आ. वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: परम मुणि झाणवण गहण; अंति: सेवक सकलचंद कृपा करो, गाथा-३२. ५. पे. नाम. जिनवाणी स्तवन, पृ. ७आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-१४ अपूर्ण तक है. __मा.गु., पद्य, आदि: विबुध सुबुद्धि विधाय; अंति: (-), अपूर्ण. ६.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, प. ९अ-९आ. प.वि. प्रथम पत्र नहीं है..गाथा-७ से हैं ___ मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: चिंतामणि चिंतिअ देई, गाथा-२७, अपूर्ण. ७. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०आ. चौवीसजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: करि कच्छपी धरती; अंति: सेवक सकलचंद सुतारणं, गाथा-३७. ८. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १०आ-११अ. मा.गु., पद्य, आदि: पुरिसोत्तम निराग; अंति: हृदय वस्यो दीपंतो, गाथा-१५. ९. पे. नाम. शंभुवरप्रकृति स्तुति, पृ. ११अ-११आ. मु. सकल, मा.गु., पद्य, आदि: शंभुवर प्रकृति शक्ते; अंति: नीरागिणी कोन दूजी, गाथा-१४. १०. पे. नाम. ऋषभ समतासुयलता स्तवन, पृ. ११आ-१२आ. आदिजिन स्तवन-समतामुखलतागुणगर्भित, वा. सकलचंद्र, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: विबुहाहियामयदिट्ठि; __ अंति: सेवक सकलचंद कृपा करी, गाथा-३१. ११. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १२आ-१३आ. वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जिनमुख वासिनि अमृत; अंति: सकलचंद चित्त खोले, गाथा-२९. १२. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १३आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-९ तक हैं. मा.गु., पद्य, आदि: वीर निर्वाण कालि; अंति: (-), अपूर्ण. १३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १५अ-१५आ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-१४ अपूर्ण से हैं. ___ वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सेवक सकलचंद दया करो, गाथा-३०, अपूर्ण. १४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १५-१६आ. वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु तुम सीमधरु; अंति: सकलचंद कृपा करो, गाथा-३७. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १६आ-१७अ. For Private And Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २८१ वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मति तंबोल भर्या जसु; अंति: जिन सकल सुखाला, गाथा-३१. १६. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १७आ-१८आ. वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सकल गुणराशि जिनराज; अंति: सेवक सकलचंद दया करउ, गाथा-३३. १७. पे. नाम. पार्श्वजिन प्रभाव स्तवन, पृ. १८-१९अ. पार्श्वजिनप्रभाव स्तवन, वा. सकलचंद्र, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: वामोदर सरोवर जिनहस; अंति: कयं हवइ सुह जुत्तं, गाथा-२१. १८. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १९अ-१९आ. वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: गिरिमां गोरु गिरुओ; अंति: फल तेहनां कुणिम बीजइ, गाथा-२४. १९. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १९आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-३ तक हैं. मा.गु., पद्य, आदि: तुं कृपा कुंभ शंभो; अंति: (-), अपूर्ण. १५६०३. (+) कर्मग्रंथषट्क सूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ११४४४). १.पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १अ-३आ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६०. २. पे. नाम, कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ३आ-५अ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ५अ-६अ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२४. ४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ६अ-१०अ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. ५.पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १०अ-१४आ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००. ६. पे. नाम. सत्तरी, पृ. १४आ-१८आ. सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगूणा होइ नवईउ, गाथा-९३. १५६०४. पंचकल्याणक पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदे., (२५४१२, ७४२२-२६). पंचकल्याणक पूजा-पार्श्वजिन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: श्रीशंखेश्वर साहिबो; अंति: वंछीत दाय सुहायो रे. १५६०५. आद्रकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १७६७, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२६.५४१२, १५-१८४३३-४०). आर्द्रकुमार रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: सकल सुरासुर जेहना; अंति: कही० दोलती गेहे रे, ढाल-१९, गाथा-२९८. १५६०६. योगविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४२, फाल्गुन शुक्ल, १२, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. पं. प्रेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १५-१६x४१-४५). For Private And Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची योगोहनविधि संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: श्री आवश्यक सुअक्खंधो अंतिः मास ६ दिन ९ लगई. १५६०७. प्रतिष्ठाविधिसंग्रह व दीक्षामुहूर्त संपूर्ण, वि. १८८५, माघ कृष्ण, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. २८, कुल पे. २, प्रले. पं. गुलाबविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X१२, १४X३५-४० ). १. पे. नाम. प्रतिष्ठा विधि संग्रह, पृ. २८अ - २८आ, पे. वि. प्रतिष्टा नवमांशफल व उदयास्त शुद्धि संलग्न हैं. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (१) प्रणम्य स्वस्ति, (२) तिहां प्रथम भव्य; अंति: (१) गच्छ२ स्वाहा, (२) समये विचारणियम्. २. पे. नाम दीक्षा मुहुर्त, पू. २८आ. सं., गद्य, आदि: ( - ); अंति: (-). १५६०९. स्तवन, लावणी, पदआदिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १८८५, श्रेष्ठ, पृ. १८-५ (१ से ५) = १३, कुल पे. १०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रले. किसनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७१२, १०-१२४३२-३६). १. पे. नाम. शनिश्चर कथा, पृ. ६अ १२अ, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाधा ८६ अपूर्ण से हैं. पुहिं., पद्य, आदि (-); अंतिः कष्ट हव ततकाल, गाथा १८०, अपूर्ण. २. पे. नाम. प्रभाती पद, पृ. १२आ-१३अ. सुखदेव, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसा कलियुग आवे राजा; अंतिः सुखदेव० चीन लावेगा, गाधा १०. ३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १३अ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. प्रमाणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नव भव केरी प्रीत; अंति: भव भवना मुज बंधण छोड, गाथा - ९. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १३-१४अ. मु. दीपसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: जे जे आदजणंद आज आणंद; अंतिः दीपसौभाग कहेरी, गाथा - १५. ५. पे नाम, नेमराजिमती लावणी, पृ. १४अ - १४आ. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि तुम तजी एक राजुल अंतिः जिनदास सुनो जिनवर रे, गाथा - ५. ६. पे. नाम औपदेशिक लावणी, पृ. १४-१५अ. मा.गु., पद्य, आदि नगरी मध्ये माल मे; अंति: एक जीनदरसण वंदीये, गाथा ५. ७. पे नाम, कृष्णजीवारमासो, पृ. १५-१६ आ कृष्ण बारमासो, मु. रीषहजी, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन दुबारामती; अंतिः ध्यान ध्वावे रीषहजी, गाथा-२७. ८. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. १६ आ १७अ. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तिरथ अष्टापद नित; अंति: सीस पयंपे० नेमजी, गाथा - ८. ९. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १७अ १८अ. ऋ. चौथमल, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुखमाल देवकीनंदन; अंति: कहे ० हुस करी गाई, गाथा - २०. १०. पे. नाम. मनभमरा सज्झाय, पृ. १८अ, अपूर्ण, पू. वि. गाथा - ६ अपूर्ण से गाथा - १३ तक लिखा है और अंतिम पत्र नहीं है. महमद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १५६१०. नववाडि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८७, आषाढ़ शुक्ल, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. कस्तुरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १०-११४२९-३०). नववाडि सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: हो तेहने जाउ भामणे, ढाल-१०. १५६१२. (+) कर्पूरप्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १७६१, वैशाख शुक्ल, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३८, ले.स्थल. पट्टणानगर-सुलता, प्रले. मु. मयगलसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत., जैदे., (२६४११.५, २-७४४५-४९). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंति: नेमिचरित्रका , श्लोक-१७७. कर्पूरप्रकर-टीका, आ. जिनसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १५५१, आदि: लक्षजिनेशपेशलरद; अंति: सुभाषितावली कृता. १५६१४. पाक्षिक सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२.५, १५४३०-३३). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (-), अपूर्ण. १५६१५. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५७-१३४(१ से ६७,७० से १३६)=२३, कुल पे. २, प्र.वि. अंत में सामान्य पट्टावली दी गयी है., जैदे., (२६४१२, ५४३३-३७). १. पे. नाम. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पृ. ६८अ-१५४आ, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२००, अपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: घरमै नवनिधि होइ, अपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), अपूर्ण. २. पे. नाम. प्रतिक्रमणादि फलदर्शक गाथासह टबार्थ, पृ. १५५अ-१५७अ. प्रतिक्रमणादिफलदर्शक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: आवस्सएण एण सावय जो; अंति: कस्य किं स्यान्नमस्य, गाथा-१६. प्रतिक्रमणादिफलदर्शक गाथा संग्रह-टबार्थ, रा., गद्य, आदि: पडिकमणो कीयांसं जो; अंति: जीवदया पालणी कही. १५६१६. संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४६, प्र.वि. अंत में भरतक्षेत्रमान बीजक रूप में दिया गया है., जैदे., (२६४११, ४-६४३२-३४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई थिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३३७. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतादि पांच पदनि; अंति: श्रीवीरना तीर्थलगि, ग्रं. २०००. १५६१७. उत्तराध्ययनसूत्र-जीवाजीवविभत्ति अध्ययन, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्रले. सा. जाना, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १७४२७-३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. १५६१८.(#) नंदीसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प्र. ४४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पंचपाठ., जैदे.. (२४.५४११.५, २-१३४२५-२८). For Private And Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: (-), अपूर्ण. नंदीसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: जय० विषय कषायादिक; अंति: (-), अपूर्ण. १५६२१. नवतत्त्व विचार, संपूर्ण, वि. १८९४, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले.स्थल. सिंघाणा, प्रले. मु. गुलाब (गुरु मु. तुलसीराम), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, २२-२४४५०-५२). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: उत्तराध्येयन सूत्र; अंति: खंध एकजातीयो मिलैतो. १५६२२. चौवीसठाणा यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११,प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, जैदे., (२६४११.५). २४ स्थानक यंत्र *, प्रा.,मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). १५६२३. अष्टप्रवचनमाता सज्झाय, पूर्ण, वि. १८२५, फाल्गुन कृष्ण, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ.७-१(१)=६, ले.स्थल. द्रागधरा, प्रले. प. मोहनरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १३४३६). अष्टप्रवचनमाता सज्झाय, पा. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: परम मंगल सुख संपदा, ढाल-९, पूर्ण. १५६२४. अंजनासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १८६९, चैत्र कृष्ण, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४+१(९)=१५, ले.स्थल. चमलाणा, जैदे., (२५४११, १५४४१-४४). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: सील समोवर को नही; अंति: भार्या जगतनी मात तओ, गाथा-१६५. १५६२५. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदे., (२६४१२, १६-१७४३७-४२). साधुवंदना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: शांतिनाथ जिन सोलमउ; अंति: सुगुरू प्रासादो, ढाल-१८. १५६३१. अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८८२, माघ कृष्ण, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. जंबुसरबंदर, प्रले. पं. केशरविजय (गुरु क. दीपविजय); पठ. श्रावि. गुलाबबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १३४३१). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: अजर अमर अकलंक जे; अंति: मोक्षं हि वीराः, ढाल-९+कलश. १५६३३. स्नात्रपूजा, स्तवन व थोय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८२, वैशाख शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे.८, ले.स्थल. पंचपद्रा, जैदे., (२५४१२, १४-१६४४४-५२). १. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित, पृ. १अ-४अ. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदिः (१)अंग शुद्ध करी स्वभाल, (२)चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: सारखी कही सूत्र मझार, ढाल-८. २. पे. नाम. ८ प्रकारी पूजा, पृ. ४अ-६आ. मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: स्वस्ति श्रीसुख; अंति: करावी मुखै इम कहै. ३. पे. नाम. नवपद सिद्धचक्रजीरी पूजा, पृ. ६आ-११आ. नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (१)प्रथमतो क्षेत्रपाल, (२)उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: (१)कोई नये न अधूरी रे, (२)कीजै पछै आरती कीजै. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ११आ. मु. लालचंद, रा., पद्य, आदि: श्रीसिद्धसक्र पद; अंति: चाहै सेवा नित्त रे, गाथा-७. For Private And Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org ५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ११आ - १२अ. मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: समरु सुखदायक मन; अंतिः श्रीजिनचंद्रनी वाणी, गाथा-४, ६. पे. नाम. चैत्रीआराहण विधि, पृ. १२अ. रा., गद्य, आदि: पुनमरै दिन प्रथमतो; अंति: पुनमरो स्तवन कहीजै.. ७. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १२ आ. मु. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकल कुशल वर मंदरु ए; अंतिः तणीए उत्तम गुणनो गेह, गाथा १०. ८. पे. नाम. जैन सामान्यकृति", पृ. १२ आ. प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि (अपठनीय); अंति (अपठनीय), १५६३५. अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., ( २४.५x११.५, १२x२८-३१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., पा, वि. १८२१, आदि: अजर अमर अकलंक जे; अंतिः मोक्षं हि वीराः, ढाल - ९+ कलश. १५६३७. (*) हंसराजबछराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २५, ले. स्थल, कालसारी, प्रले. क्र. राजपाल (गुरु ऋ. दलाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X१२, १६ - १७४०-४७). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि : आदिसर आदे करी चोवीसे; अंतिः दिन दिन हुये जयजयकार, खंड-४, डाल ४८. १५६४०. गौतमपृच्छा सह व्याख्या व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७४ -२७ (४ से ३०) = ४७, पू.वि. बीच अंत नहीं हैं., गाथा-५६ व मृगापुत्र कथानक तक है., जैदे., ( २६११.५, १७ - १८x४४-४८). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि नमिकण तित्थनाहं; अंति: (-), अपूर्ण, गौतमपृच्छा- टीका * सं., गद्य, आदिः यद्ज्ञानदर्पणतले; अंति: (-), अपूर्ण. 9 गौतमपृच्छा - कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. " १५६४१. कल्पसूत्र का भास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६-७ (३ से ४, १३, १८ से २१) १९, ले. स्थल, लीबडी, प्रले. पं. देवविजय; पठ. श्रावि. माणकबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६११.५, ११x२६ - २९). कल्पसूत्र भास, संबद्ध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसति ध्याउं; अंतिः ज्ञान अनंतु पावेजी, -१७, अपूर्ण. २८५ १५६४४. वीसस्थानकतप विधि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. राधनपुर, प्रले. पं. जय, प्र.ले.पु. सामान्य, जीवे. (२४.५x११, १४-१५X३४-३७). २० स्थानकतप स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: श्रीजिनमुखकज वासनी; अंति: नितु नितु मंगळचारजी, ढाल -६, गाथा-८१. For Private And Personal Use Only १५६४५. (+) कामध्वजनरेंद्र प्रबंध, संपूर्ण, वि. १६६९, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले. स्थल. आम्रस्थल, प्रले. ग. मेघरत्न (गुरु आ. हंसरत्नसूरि, तपागच्छ-प्राग्वंश), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५X१०.५, १८ - २०५२-५५). Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८६ www.kobatirth.org (+) कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कामध्वजनरेंद्र प्रबंध, ग. मेघरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: सयल सुहकर सयल सुहकर; अंति: पंच खंड परिपूरण धया, खंड- ५. १५६४६. पाक्षिकसूत्र व खामणा एवं पाक्षिक थोय, संपूर्ण, वि. १७९५, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, कु पे. ३, प्रले. ऋ. जगनाथ; पठ. ऋ. चतुर्भुज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., १५X३०-३८). (२४×११, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ - ११अ. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: अन्नाणमोह दलणी जणणी; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे नाम, पाक्षिक क्षामणासूत्र, पृ. ११-१२अ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो पियं; अंतिः नित्थारगपारगाहोह, सूत्र-४, ३. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति, पृ. १२अ - १२आ. आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य अंतिः सर्वकार्येषु सिद्धं श्लोक-४. १५६४७. मौनएकादशी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., ( २६.५X११.५, ५X३६-३८). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि; अन्यदा नेमिरीशाने; अंति: हम्मीरपुरसंस्थितैः, श्लोक - ११७. मौनएकादशीपर्व कथा - टबार्थ, मु. सौभाग्यचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: मौनएकादशीपर्वस्य; अंतिः विषे रहने चतुर्मासु. १५६४९. कान्नडकठीयारा चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२५x११.५, १२४३३), कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुं सदा; अंति: दिनदिन रंग डाल - ९. " १५६५१. स्नात्रपूजा व अष्टप्रकारीपूजा, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे., (२५X११.५, १०-१२x२१-२३). १. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित, पृ. १अ - ७आ. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: सारखी कही सूत्र मझार, ढाल - ८. २. पे. नाम. ८ प्रकारी पूजा, पृ. ७आ-१०आ, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. मु. देवचंद्र, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: स्वस्ति श्रीसुख; अंति: (-), अपूर्ण. १५६५२. पार्श्वनाथ कल्याणमंदिर स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल. पत्तननगर, प्रले. मु. देवविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११.५, ४X३२-३४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंतिः मोक्षं प्रपद्यंते, लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याण क० शुभ प्रधान; अंति: पामिं मोक्ष जाई. For Private And Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २८७ १५६५३. प्रतिक्रमण सूत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १५२३, आषाढ़ शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. द्यावडग्राम, प्रले. पं. जयसिंह (गुरु आ. देवगुप्तसूरि, उकेसगच्छ.); पठ. मु. मुक्तिनंदन (उकेशगच्छ.), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४१०.५, ७-९४४८-५२). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-उपकेशगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-उपकेशगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरु नमस्कारु; अंति: करी मनि की वादउं. १५६५४. (+) भक्तामर स्तोत्र सहटीका व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७८६, रसाष्टमुनिपूषाब्दे, चैत्र शुक्ल, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. २, प्रले. मु. भाग्यसागर (गुरु मु. अजबसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १-२४३८-४०). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, पृ. १आ-१९अ. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: (-); अंति: संख्या निवेदिता, ग्रं. ६९३. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह , पृ. १९आ. प्रा.,मा.गु.,सं.,हिं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), गाथा-१. १५६५६. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पं. धर्मविनय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३४-४०). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंति: नितनित मंगल उदय करो, गाथा-४८. १५६५८. कर्मविपाक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२६४११, ३४३६-४१). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६२. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वीरजिन वांदीनइ कर्म; अंति: श्रीदेवेंद्रसूरियइ. १५६५९. विचारषट्विंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७९, चैत्र कृष्ण, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. गढसवांणा, प्रले. मु. जयसागर (गुरु पं. माणिकसागर, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ५४३०-३६). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४६. दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमीनई चउवीस; अंति: आत्माना हितनइ काजि. १५६६०. साधुपाक्षिक अतिचार, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, ८४३२-३६). साधुपाक्षिकअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: (-), पूर्ण. १५६६२. () जयतिहुयण स्तोत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १६९८, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)-५, पू.वि. गाथा १ से ३ नहीं है., ले.स्थल. गीर, प्रले. मु. लब्धिकुशल (गुरु पंडित. क्षमाकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ५४३९-४३). For Private And Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ૨૮૮ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: विन्नवइ आणदिइ, गाथा-३०, ग्रं. ४९, पूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र-टबार्थ, पं. शुभकुशल गणि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: त्रैलोक्यनइ श्लाघनिक, ग्रं. २२१, १५६६६. प्रज्ञापनासूत्र की मलयगिरीया वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १११-३(१ से ३)=१०८, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., पद १० प्रारंभिक अंश तक है., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४१-४३). प्रज्ञापनासूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १५६६७. नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. ऋ. हरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १४४३३-३५). नववाड सीयलवेल, श्राव. मकन, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: श्रीसरसती समरुं सदा; अंति: दुक्कडं होय जी, ढाल-८+कलश. १५६६८. सप्तनय स्तवन विवरण, संपूर्ण, वि. १८८६, पौष कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. वलाद, प्रले. मु. खूसालरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १२४३५-३७). महावीरजिन स्तवन-ज्ञानादिनयमतविवरणगर्भित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: श्रीइंद्रादिक भावथी; अंति: पभणे संघने जयकार ए, ढाल-८+कलश. १५६६९. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. राजनगर, जैदे., (२५४११, ३४२४-२६). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: विणा न पामंति, गाथा-६४. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावद्ययोग कहतां पाप; अंति: विना पामता दोहिला. १५६७०. विक्रमसेन रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-५ गाथा-१७ तक हैं., जैदे., (२५.५४११, १४४३८-४२). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: परम ज्योति प्रकाशकर; अंति: (-), अपूर्ण. १५६७१. (+) भुवनदीपक व ग्रहदृष्टि श्लोक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २०, कुल पे. २, ले.स्थल. नारदपुरी, प्रले. मु. कुशलविजय; पठ. काना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (६१८) जलाद क्षेत् स्थलाद क्षेत्, जैदे., (२५.५४१०.५, ५४३२-३६). १. पे. नाम. भुवनदीपक सह टबार्थ, पृ. १आ-२०अ. भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७५. भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम मंगलाचरणे; अंति: ईस्ये आचार्य कह्यो. २. पे. नाम. ग्रहदृष्टि श्लोक सहटबार्थ, पृ. १९आ-२०अ. ग्रहदृष्टि श्लोक, सं., पद्य, आदि: ज्ञार्केदु शुक्रात; अंति: चतुरस्र कुज क्रमात्, श्लोक-२. ग्रहदृष्टि श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्य चंद्र बुध शुक; अंति: पनर विश्वा मंगल देखे. For Private And Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २८९ १५६७२. (+) अंतगडदशांग सूत्र, पूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-१(२)=२३, प्र.वि. प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित प्रत-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १३-१५४४१-४९). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: (१)अयमट्टे पण्णत्ते, (२)धम्मकहाणं नायव्वा, अध्याय-९२, ग्रं. ८१२, पूर्ण. १५६७३. नवतत्त्व विचार आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११, १४४३७-४२). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण-विचार, पृ. १अ-२०आ. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व १ अजीव; अंति: माहरी वंदना होज्यो. २. पे. नाम. तीर्थंकरबल वर्णन, पृ. २०आ. पुहि., गद्य, आदि: बारां पुरुष का बल; अंति: अंगुलीमै अगर भागमै. ३. पे. नाम. १० प्रकार यतिधर्म, पृ. २०आ. मा.गु., गद्य, आदि: खंती क० साधु क्षमा; अंति: नववाड सहित सील पालै. ४. पे. नाम. ८ कर्म दृष्टांत, पृ. २०आ. रा., गद्य, आदि: ग्यानावरनी करम को; अंति: भंडारीनी परै. १५६७४. संग्रहणी सूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२६.५४११, ११४३८-४१). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई थिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१२. १५६७५. (#) माघकाव्य अवचरि, त्रुटक, वि. १७१६, कार्तिक कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ८०-५८(१ से ५,७,९,११ से १९,२१,२३ से २४,२६ से ३१,३३ से ३७,३९ से ४०,४२ से ४६,४९ से ५१,५४ से ५६,५८ से ६०,६३ से ६६,६९ से ७०,७२,७४ से ७८)=२२, पू.वि. सर्ग-१ श्लोकटीका ७१ से हैं.,ले.स्थल. नाडूल, प्रले. ग. जीवरूचि (गुरु ग. पुण्यरूचि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १७-२२४६०-६४). शिशुपालवध-अवचूरि, वा. मेरुचंद्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: चारित्र० शोभायमानं, ग्रं. ७२६५, त्रुटक. १५६७६. चंद्रलेहा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदे., (२६४११, १३४३२-३८). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगति नमी करी; अंति: त्रिभुवनपति हुवे तेह, ढाल-२९. १५६७७. गौतमपृच्छा व चौदनियमगाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५४, कार्तिक शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, ५४३५-३७). १. पे. नाम. गौतमपृच्छा प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-८अ. गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा-६४. गौतमपृच्छा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंति: बोधवानइ काजे कही. २. पे. नाम. श्रावक चौद नियम गाथा सह टबार्थ, पृ. ८अ. श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा-१. श्रावक १४ नियम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जल आदि सचित; अंति: अंघोल भातनी संख्या. For Private And Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २९० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५६७८. रात्रिभोजन चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा २५० तक हैं., जैदे., (२५x११, १९-२०X३४-३६). रात्रिभोजन चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: पणमि गोयम गणहर राय; अंति: (-), अपूर्ण. १५६८१. (+) इंद्रियशतक, भववैराग्यशतक, आदिनाथदेशनासारोद्धार व प्रमादपरिहारकुलक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X११, १३५२-५४). १. पे नाम. इंद्रियपराजयशतक, पृ. १अ ४अ. प्रा., पद्य, आदि: सुचिअ सूरो सो; अंति: संवेग रसायणं निच्चं, गाथा - १०१. २. पे. नाम. वैराग्यशतक, पृ. ४अ-७अ. प्रा., पद्म, आदि: संसारंभि असारे नत्थि; अंति; लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा - १०४. ३. पे. नाम, आदिनाथदेशनोद्धार, पृ. ७अ ९आ. - प्रा., पद्य, आदि: संसारे नत्थि सुह; अंति: सिवं जंति, गाथा - ८८. ४. पे. नाम. प्रमादपरिहार कुलक, पृ. ९आ १० आ. प्रा., पच, आदि मणवंछिअ सुहजणगे अणिट; अंति: जिणपयसेवाफलं रम्मं, गाथा - ३२, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६८२. जीवशिक्षा कुलक सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रेष्ठ, पृ. २९, पू.वि. चौथी गाथा तक ही बालावबोध व कथा है., ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. नीतवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, १३-१४X३३-३७). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१) नत्वा श्रीदेवगुरुन्, (२) लोभ संयुक्त पुरुष; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गौतम कुलक-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. (+) १५६८३. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., श्लोक - ४० तक है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे. (२४.५x१०.५, ३३३-३६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), पूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्त जे अमरदेवता; अंति: (-), पूर्ण. १५६८४. नाडीपरीक्षा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैये. (२५x१०.५, ७४२६). नाडीपरीक्षा, सं., पद्य, आदिः श्रीवीरचरणी नत्वा; अंति: उडित्वे संसृतापि हि श्लोक-२२. नाडीपरीक्षा बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः एता नाडीनाम स्नायु; अंति होय तिका भी छोडीने, १५६८५. सालिभद्रधन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, जैवे. (२६४१०.५, १३x४० ). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल लहस्यैजी, ढाल - २९. , १५६८७. नवतत्त्व सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७९३, कार्तिक कृष्ण, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १४-२ (१,१२) =१२, प्रले. ग. माणिकसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., ( २६४१०.५, १३-१४४३५-४७). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: भेएहिं उदाहरणं, गाथा - ५०, अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध*,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उदाहरणं करि कहिइ, अपूर्ण. १५६८८. (+) नलदवदंती रास, संपूर्ण, वि. १७४६, आश्विन शुक्ल, ६, जीर्ण, पृ. २९, ले.स्थल. नवहर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १७४३७-४६). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: समयसुंदर __भणै भावसुं, खंड-६, ढाल ३९, गाथा-९३१, ग्रं. १३५१. १५६८९. साधुवंदना व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.६, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५,११४२९-३२). १. पे. नाम. साधुवंदना लघु, पृ. १आ-६आ. ऋ. जेमल, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमु अनंत चोविसी; अंति: रिष जेमलजी इम कहे, गाथा-५९. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, पे.वि. अशुद्ध पाठाधिक्य है. मा.गु., पद्य, आदि: परभव मे तु जासी; अंति: छावरु गामकी आग्य सुल, गाथा-६. १५६९१. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७०१, आश्विन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ३५-१(३४)+१(१९)=३५, ले.स्थल. आगर, प्रले. मु. हरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ६४५१-५८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गए त्तिबेमि, अध्ययन-१०, पूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट; अंति: तुज प्रतै को छई, पूर्ण. १५६९२. लघु संग्रहणी सूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२१, कार्तिक शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ८०, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. ऋ. चिमनराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १४४४६-४८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७४. बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथं फल; अंति: संसारीक सर्वसुख पामै, ग्रं. ४०००. १५६९३. मृगावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रावण कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. हीरालाल (गुरु मु. रतनचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १५-२४४३३-३७). मृगावतीरास, मु. फतेचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: समरु पास जिणंदने अंति: सीयल गुण वषांण जी, ढाल-११+कलश. १५६९४. कलावती रास, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४१२, १९-२०४३८-४४). कलावतीसती चौपाई, ऋ. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: जुगमिंदर जिन जगतगुरु; अंति: मेडतेनगर चोमास, ढाल-१६, गाथा-१५९. १५६९५. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०७, वैशाख कृष्ण, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. भाणपूर, प्रले. मु. हरजी; पठ. मु. नरसिंघजी (गुरु मु. हरजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, ४४२५-३०). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलु छ आवश्यकरी; अंति: छे ए अध्ययन इत्यर्थः. For Private And Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५६९६. पंचमी देववंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२, १२४३१-३४). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (१)प्रथम बाजठ उपरि तथा, (२)श्रीसौभाग्यपंचमी; अंति: (-), अपूर्ण. १५६९७. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १९४३, आषाढ़ शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. सिंघाणा, प्रले. ऋ. रघुनाथ (गुरु मु. मंगलसेन), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, २-५४२६-३२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य प्रथमं देवं; अंति: क० राज्यादिक संपदा. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: राज्यादिक संपदा एतलइ. भक्तामर स्तोत्र-कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: एकदा जिनमतना द्वेषी; अंति: कीधो मोटे महिमा हूवउ, कथा-२८. १५६९८. (+) वरदत्तगुणमंजरी कथा, संपूर्ण, वि. १६५५-१७००, श्रेष्ठ, पृ. ७, पठ. मु. हिमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., (२७४११.५, १३४३७-३९). कार्तिकसौभाग्यपंचमी कथा, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१५१. १५६९९. (+) सूयगडांग सूत्र सह टबार्थ-प्रथमश्रुतस्कंध, प्रतिअपूर्ण, वि. १८५०, आषाढ़ कृष्ण, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५०-१(१)=४९, पू.वि. अध्ययन-१६, ले.स्थल. कांधलानगर, प्रले. ऋ. सनेहीराम (गुरु क्र. मानकचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, ६x४३-४५). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. ८००, प्रतिअपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. १२००, प्रतिअपूर्ण. १५७००. भाष्यत्रय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-१७(१ से १७)=२१, पू.वि. चैत्यवंदनभाष्य नहीं है., जैदे., (२७४११.५, ३४३१-३४). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३, अपूर्ण. भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: नही छइ एहवा प्रतइ, अपूर्ण. १५७०१. तेतीसको थोकडो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदे., (२६४११.५, १५-१६x४१-४७). ३३ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: सात्त भये इहलोक भय; अंति: वेयणा ३५ समोग्घाए ३६. १५७०२. मैणरेहासती संबंध, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. करवर, प्रले. य. हेमराज; पठ. सा. केसरीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १२४३७-४०). मदनरेखासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्धने आयरिय; अंति: राजवीया० राज पीयारो, गाथा-१६६. १५७०४. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-५(१ से ३,८ से ९)=५, पू.वि. आदिनाथ कल्याणक तक है., प्र.वि. व्याख्यान का कुछ पाठ संस्कृत में भी है., जैदे., (२६४११.५, ७-१३४४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २९३ कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १५७०५. (+) द्रव्यानुयोगविचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२५१ अपूर्ण तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ४४३१-४३). द्रव्यगुणपर्याय रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीगुरू जीतविजय; अंति: (-), अपूर्ण द्रव्यगुणपर्याय रास-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणिनतं नत्वा; अंति: (-), अपूर्ण. १५७०७. पज्ञापनासूत्र-तृतीयपद महादंडकद्वार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४१२, ४-५४४३). प्रज्ञापनासूत्र तृतीयपद-हिस्सा महादंडक द्वार, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: अहं भंते सव्वजीवा; अंति: सव्वजीवा विसेसाहिया, ग्रं. २६७. प्रज्ञापनासूत्र तृतीयपद का हिस्सा महादंडकद्वार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवइ भगवान सर्वजीवा; अंति: सिद्ध पिण प्रक्षेपवा. १५७०८. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२+१(१७)=२३, जैदे., (२६४११.५, १३४३८-४१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (१)मुच्चइ त्ति बेमि, (२)कहणा पवियालणा संघे, अध्ययन-१० चूलिका २. १५७१०. संघयणरो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६४११.५, १४४३२-३४). संग्रहणी स्तवन, मु. चारित्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति वरसति सकतिरूप; अंति: कीधी सुहकरो, ढाल-११, गाथा-७७. १५७११. प्रदेशीराजा संधि, संपूर्ण, वि. १८८१, फाल्गुन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. लसकर, प्रले. रतनचंद्र दोलतराय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंतमें सेतंबका नगरीका विवरण है., जैदे., (२६४११, १७४४९-५४). प्रदेसीराजा रास, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: सुरीयाभदेव वीर; अंति: (१)सुत्रथी काढे रे, (२)पन्नवणानी शाखि छे, ढाल-२१. १५७१२. नेमिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४१२, ११४३५-३७). नेमिजिन नवरसो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: सरसति सामिनी पाय; अंति: थुण्यो नेमि जिनेसरू, गाथा-७१. १५७१३. नेमराजुलतेरमास व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८२६, माघ कृष्ण, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. मु. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३१-३३). १. पे. नाम. नेमराजुल त्रयोदसमास, पृ. १अ-६आ. नेमराजिमती तेरमासा, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: प्रणमु विजया रे; अंति: तेर मासा० अचल थाई, गाथा-१२२. २. पे. नाम. जैन दुहा संग्रह*, पृ. ६आ. प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). For Private And Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २९४ (+) www.kobatirth.org १५७१४. सामुद्रिकशास्त्र, संपूर्ण, वि. १७४३ भाद्रपद शुक्ल, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. गलता, प्रले. रामदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११.५, १३-१५X४०-४२). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि आदिदेवं प्रणम्यादी अंतिः वृद्धिं भवेद्यत श्लोक-२७६, १५७१५. नवतत्त्व बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५X११, ९X३२-३६). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, रा., गद्य, आदि: (१) जीवा१ जीवा २ पुन्नं, (२) जिणमांहि जीव चेतना; अंति: (-), अपूर्ण १५७१६. आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १८७०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४४, ले. स्थल. अजीमगंज, प्रले. पं. ऋद्धहंस (गुरु ग. चारित्रोदय, बृहत्खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., ( २६x१०.५, १७-१९X३८-४२). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: हिवै भव्यजीवने; अंति: तिथि सफल फली मन आस. १५७१७. तत्त्वज्ञानतरंगणी, संपूर्ण, वि. १८१८, मार्गशीर्ष शुक्र, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले. स्थल, कृष्णगढ़, प्रले. पंडित. कृष्णदास; राज्यकाल रा. भाद्रसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, जैदे., ( २६११, ९४३५-३८). तत्त्वज्ञानतरंगिणी, आ. ज्ञानभूषण, सं., पद्य, वि. १५६०, आदि: प्रणम्य शुद्धचिद्रप; अंतिः स्तदेयं निर्मिताकृति, अध्याय- १८. (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५७१८. (+) सिंदूरप्रकरण, अपूर्ण, वि. १७७४, चैत्र शुक्ल, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (५) =६, पू.वि. श्लोक - ५९ से ७४ नहीं है., प्रले. ऋ. जयचंद; पठ. ऋ. श्रीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न, जैदे., (२५.५४११, १४४३८-४७ ). १५७१९. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तप: अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक १००, अपूर्ण. भक्तामर स्तव सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्र. वि. संशोधित - त्रिपाठ - पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत. कुल ग्रं. ७५८, जैदे., (२५X११, १-३X३१-४४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र - बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: प्रणम्य परमानंददायक; अंति: संख्या निवेदिता. १५७२०. नवतत्त्व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८७८ आश्विन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैवे. (२५x११, १३४४१-४३). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हवे विवेकि सम्यग्; अंति: होइ तेमाथी मोक्ष जाइ, ग्रं. २००. १५७२१. विचारषट्त्रिंशिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १७४९, पौष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र. वि. त्रिपाठ, जैदे., (२५x११, For Private And Personal Use Only १-३X४१-४३). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा- ४४. दंडक प्रकरण- टीका, मु. रूपचंद्र, सं., गद्य, वि. १६७५, आदि: प्रणम्य परया भक्त्या; अंतिः शतं जातमनुष्टुभाम्, प्र. ५३६. १५७२२. चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २०-७ (१,३ से ६, ८ से ९) = १३, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४.५X११, ९-१०X३४-३९). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २९५ १५७२३. विदग्धमुखमंडण, संपूर्ण, वि. १७६३ वैशाख, ५, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले. स्थल, सांगानेर, पठ. क्र. हरदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६.५x११, १३४३८-४२). विदग्धमुखमंडन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, आदिः सिद्धीषधानि भवदुःख; अंति: मेकांत मदनोत्तरम्, परिच्छेद-४. १५७२४. राजनगर तीरथमाला, संपूर्ण, वि. १९२७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, पठ. श्रावि. मूलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६११, १०X३६-३९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजनगर तीर्थमाला, मु. रतनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९०४, आदि: वचन सुधारस वरसति; अंति: रतन० सज्जन गुणमणीजी, ढाल - ४. १५७२६. नवतत्त्व भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२५x१०.५, १५-१६X५२-५७), 9 नवतत्त्व प्रकरण- बालावबोध, रा., गद्य, आदि जीवाजीवा० जीवतत्त्व; अंतिः सिद्धा अनेक सिद्धा, १५७२७. दसविधिपच्चखाणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४५, आषाढ़ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ८- १ (१)=७, पू.वि. पच्चक्खाण १-३ नहीं है., ले.स्थल. सूरतबिंदर, प्रले. पं. दौलत, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, ४x२७-३०). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: ( - ); अंति: गारेणं वोसिरामि, अपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र- टवार्ध", मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति थकी वोसरावुं छु, अपूर्ण, १५७२८. जीवविचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. पत्तन, पठ. सा. जतनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५x११, १३४३४-३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५०. जीवविचार प्रकरण - बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनमांहि दीवा; अंति: माहिथी उद्धरिउ, १५७२९. मृगुपुरोहितचीढालीयो, उपदेशछत्रीशी व अक्षरबावनी, अपूर्ण, वि. १८२० पौष शुक्ल ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(३)=७, कुल पे. ४, प्रले. खुस्यालचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X११, १५ - १६x४७-५०). १. पे. नाम. भृगुपुरोहितचौढालीयो, पृ. १अ-२आ. भृगुपुरोहित चौढालीयो, मा.गु., पद्य, आदि देव हुंता भव पाछलैजी; अंतिः रे होवै जय जयकार, ढाल ४. २. पे. नाम. नंदीषेणरुषि स्वाध्याय, पृ. २आ. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरीनो वासी; अंति: कमला कीरति पावे हो, ढाल- ३. ३. पे नाम, उपदेशछत्तीसी, पृ. ४अ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है, मात्र अंतिम दो गाथा है, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मोकुं दिजीयो, गाथा - ३६, अपूर्ण. ४. पे. नाम. मातृकाक्षरबावनी, पृ. ४अ ८आ. अक्षरबावनी, मु. उदैराज, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: अकल अवतार अपरंपर; अंतिः तिको अनैक वातां कहे, गाथा - ५९. १५७३०. द्वादश भावना, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., ( २६११.५, १०-११४३१-३३). For Private And Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: विमल कुल कमलना हंस; अंति: ध्यान सकल मुनि आणो, ढाल-१४. १५७३१. खंडाजोयन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. देवराज गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १४४३१-३५). लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीप एक लाख; अंति: हजारने नेऊ नदीउ थइं. १५७३२. संबोधसत्तरी सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. रोहीडाग्राम, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, १०x२८-३०). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सोलहई नत्थि संदेहो, ___ गाथा-७२. संबोधसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नत्वा त्रैलोक्य गुरु; अंति: स लभते नैवात्र संशयः. १५७३३. वासपज्यजिन महिमावर्णन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२६४१२, ११४३१-३३). वासुपुज्यजिन स्तवन-महिमावर्णन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वासुपूज्य जिणंदने; अंति: सकल संघ मंगल लहे, ढाल-१२. १५७३५. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, पू.वि. गाथा-६६ तक है., जैदे., (२५४११.५, १३४२९-३३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलु जीवतत्व बीजु; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५७३६. चंदनबाला रास, संपूर्ण, वि. १९३५, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. हुस्यारपुर, जैदे., (२४.५४११.५, १६-१७४३६-३९). चंदनबाला रास, मु. बृह्मराय, मा.गु., पद्य, आदि: असुभ करम के हरणकुं; अंति: दुक्कडं मोयतो, गाथा-८३. १५७३८. (+) मेणरेहासती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६६, ज्येष्ठ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. बदीचंद (गुरु मु. लालचंद्र); पठ. सा. चेना आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १६-१७४३६-४४). मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: जुवां मास दारु तणो; अंति: पोहोचे मोख मझारि, गाथा-१५९. १५७४०. मेणरेहा रास, संपूर्ण, वि. १९३९, आश्विन शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अवाच्य है., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११.५, १५-१६x२४-३४). मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: (१)जलकी सोभा कमल है, (२)जूआ मांस दारु तणी; अंति: राजवियानइ राज पियारो, गाथा-१७८. १५७४१. क्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८४६, वैशाख शुक्ल, ९, रविवार, मध्यम, पृ. २७, ले.स्थल. पाडु, प्रले. सा. फतु आर्या (गुरु सा. अखुजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ. कुल ग्रं. ४८६७, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, (३०४) हीनाक्षरं पदभ्रष्ट, (४५९) मंगलं लेखकस्यापि, (५८४) तैलाद्रक्षे जलाद्रक्षे, जैदे., (२५४११, १-३४६०). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: कुसलरंगमई पसिद्धिं, अधिकार-६, गाथा-२६२. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, पंन्या. दयासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १५२९, आदि: अहँ अर्हमिति; अंति: लगें विस्तरउ, ग्रं. ४११७. For Private And Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १५७४२. सुकमाला चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले. स्थल, नवहरपुर, जैदे., ( २६.५४११, १७४६६). सुकुमाल चरित्र, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदिः ॐ नम सिद्धिकौ ध्यान; अंति: सुखसंपति सहि नाणी जी, सर्ग ९. १५७४४. चतुर विचार, संपूर्ण, वि. १८९०, आषाढ़ शुक्ल, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., ( २४.५X११, १०x४१-४६). चतुर विचार, रा., पद्य, आदि: भगवंतै भ्रम भाखीयौ; अंति: चोरासीमें रुलसी रे, गाथा - १३४. १५७४५. (+) दंडकविचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाधा ३४ तक है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे., (२५x११, ५४३६). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: (-), अपूर्ण. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चउवीस तीर्थंकरदेवनई; अंति: (-), अपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५७४७. विक्रमनरेश्वर चौपाई, संपूर्ण, वि. १८५१, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५५, ले. स्थल. पीही, प्रले. ऋ. नोलराय (गुरु ऋ. फतेचंद), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६X१०.५, १२-१४X३४-३७). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदिः परम ज्योति प्रकास; अंति: परमसागर आणंदारे, ढाल - ६४. १५७४८. पट्टावली सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे., ( २६.५X११.५, १-३X१५-४२). तपागच्छ पट्टावली, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिमंतो सुहहेउ; अंति: (१) दिंतु सिद्धिसुहं, (२) दिंतु भई गावा- २१. - २९७ तपागच्छ पट्टावली-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, आदि: सिरिमंतोत्ति यत्तदो; अंति: (१) मम भद्रं प्रयच्छंतु, (२) शिवविजयगणिरलिखत्. १५७४९. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्रले. ग. माणिक्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६११, १०-१२३४-५३). १. पे. नाम. स्तवनचौबीसी, पृ. १-८अ. स्तवनचौवीसी, उपा. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन जगआधार; अंतिः भावे मेघ वाचक जिनवरु, स्तवन- २४. २. पे. नाम. नेमराजिमती स्वाध्याय, पृ. ८आ. उपा. अमरसी, मा.गु., पद्य, आदि पंथीडा हरकर कहे रे; अंतिः अमरसी कहे उवझाय, गाथा - ९. १५७५०. बारभावना, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५X११, ११x४१-४४). १२ भावना, मु. विद्याधर, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलीय भावना भविज्यो; अंतिः भावि भणसइ तेहना, ढाल - १२. १५७५१. दर्शनसप्ततिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे., ( २६११, ४-६X५१-५४). सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दंसणसुद्धिपयासं; अंति: दंसणसुद्धिं धुवं लहइ, गाथा-७०. सम्यक्त्वसप्ततिका अवचूरि, मु. सोमप्रभसूरि-शिष्य, सं., गद्य, आदि: दृश्यते यथावत्पदार्थ; अंतिः मंगलपूजाकृता, १५७५२. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोधरूप, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल, वीरमपुर, प्रले, ग. जयतिलक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६.५X११, १९×६२-६८). For Private And Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अयाणमाणे विसम्मत्तं, गाथा-३१. नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीर; अंति: शीघ्रं प्राप्नुवंति. १५७५४. नंदीसूत्र सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ११४४०). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: सेत्तं परोक्खणाण, गाथा-७००. नंदीसूत्र-टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५७५५. वाक्यप्रकाश, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७४११, १३-१४४३४-३६). वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदि: प्रणम्यात्मविद; अंति: हितो वाक्यप्रकाशोयम्, श्लोक-१२५. १५७५६. नवतत्त्व सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७२६, श्रेष्ठ, पृ.८, प्रले. मु. सुमतिहस (गुरु पं. कनकहस गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ३-५४२६-३१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४२. नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीर; अंति: शीघ्रं प्राप्नुवंति. १५७५९. साधुपाक्षिकअतिचार, संपूर्ण, वि. १९०५, कार्तिक कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पोटला, पठ. मु. कस्तुरचंद (खरतरगच्छ-खेमकीर्तिशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ८-१०४३०-३४). साधुपाक्षिकअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १५७६०. (+) पाक्षिकसूत्र वखामणा एवं पंचमीस्तुति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. ३, प्र.वि. खामणा सूत्र व पंचमी स्तुति कोई अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद मे लिखी गयी है., संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३४-३७). १.पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. १आ-१४अ. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पाक्षिक क्षामणासूत्र, पृ. १४अ-१४आ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: नित्थारग पारगा होह, सूत्र-४. ३. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. १४आ. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. १५७६१. (+) उपदेश संग्रह व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. पाटण, प्रले. पंन्या. महिमासुंदर गणि (गुरु ग. पुण्यसुंदर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १९४५०-५२). १. पे. नाम. उपदेश संग्रह, पृ. १-९. सं., पद्य, आदि: प्रणम्य पुण्यपद्मा; अंति: सत्कर्मणो भवेत, श्लोक-४३९. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ९आ. प्रा.,मा.गु.,सं.,हिं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). १५७६२. प्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(१)=१३, जैदे., (२६४११.५, ४२४२९-३३). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कड, पूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वांछउ मिछामि दुक्कडं, पूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १५७६३. लोकनालिद्वात्रिंशिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६८४, चैत्र शुक्ल, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. गुदवच-मारवाड़, प्रले. ऋ. किसना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११, ३-५४४६-४८). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा जं; अंति: जहा भमह न इह भिस, गाथा-३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-वार्तिक, ऋ. मोल्हा, मा.गु., गद्य, आदि: आदिदेवं नमस्कृत्य; अंति: कायाः वार्तिकावबोधः. १५७६४. प्रियमेलक चौपाई, संपूर्ण, वि. १७६१, चैत्र शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. राणपूर, प्रले. ग. शुभविजय; पठ. मु. सुमतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १५-१६x४६-५२). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमु सद्गुरु पाय%; अंति: पुण्य अधिक परमोद, ढाल-११, गाथा-२२८. १५७६५. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदे., (२५४११, ४४४०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४५. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: जीव मोक्षे नहीं जाई. १५७६६. ढालसागर, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२९४ तक हैं., दे., (२६४११, ११४३०-३२). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: (-), अपूर्ण. १५७६७. साधुप्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह व अष्टमी थुई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १२४३२-३५). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., पृ. १अ-६अ. संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २.पे. नाम. अष्टमी थई, पृ. ६अ-६आ संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि, सं.,प्रा., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर; अंति: देहि मे देवि सारम, श्लोक-४. १५७६८. पार्श्वनाथजीरी कथा-आदित्यवार, संपूर्ण, वि. १७७७, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. निवाई, प्रले. ग. नयणसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १५-१६४३७-४७). आदित्यवार कथा, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहनाह प्रणमौ; अंति: नर सुरंग देवता होय, गाथा-१४७. १५७७०. कल्पसूत्र सह टीका- पहली वाचना, प्रतिअपूर्ण, वि. १७५२, श्रावण शुक्ल, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ.६-१(१)=५, ले.स्थल. विलावस, प्रले. पं. उदैभाण (गुरु पंडित. जसकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १५४३८-४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. कल्पसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १५७७१. (+) सिंदूरप्रकरण सह टबार्थव श्लोक, संपूर्ण, वि. १७४०, माघ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. २, ले.स्थल. सूरतिबंदर, प्रले. पं. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत., जैदे., (२६४११.५, ५४३७-४१). For Private And Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. सिंदूरप्रकर सह टबार्थ, पृ. १आ-१८आ. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: स जानाति जनाग्रतः, श्लोक-९७. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदूरनो प्रकर समुह; अंति: ते जाणइं लोक आगलइं. २. पे. नाम. व्याख्यानश्लोक संग्रह, पृ. १८आ. __प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जिनेंद्रपूजा गुरू; अंति: जन्मवृक्षसफलान्नमूनि, गाथा-१. १५७७२. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. टबार्थ की प्रथम पंक्तिवाला भाग फटा है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ५४४४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४८. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ते पाठक पुरुषनी आवी. १५७७३. सुरसुंदरराजर्षि चतुष्पदी-भावनाविषये, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. बीकानेर, जैदे., (२६.५४११, १८-१९४५४-५९). सुरसुंदर चौपाई, वा. मालदेव, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर पय नमी; अंति: जनम तिणि सफलौ कीयउ, गाथा-६५२. १५७७४. सिद्धांतसारोद्धार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२४.५४११.५, १८४४९-५४). सिद्धांतसारोद्धार, मा.गु., गद्य, आदि: एक बोलनो विचार प्रथम; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५७७५. विद्याविलास रास व दुहासंग्रह, संपूर्ण, वि. १७००, आश्विन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. वीरमगाम, जैदे., (२६४११.५, १४४३५-४१). १. पे. नाम. विद्याविलास रास, पृ. १अ-९अ. विद्याविलास पवाडउ, आ. हीरानंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १४८५, आदि: पहिलं पणमिय पढम; अंति: सूरि० पभणइ आणंदसूरि, गाथा-१९५, ग्रं. २९५. २. पे. नाम. जैन दुहा संग्रह , पृ. ९अ... प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), गाथा-६. १५७७६. शांतरसभावनास्वरूप-अध्यात्मकल्पद्रुम, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२६.५४११.५, १५४५५). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदिः (१)अथाय श्रीमान् शांत, (२)जयश्रीरांतरारीणां; __ अंति: जयश्रिया शिवश्रीः, अधिकार-१६, श्लोक-२७८. १५७७८. गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२६४११.५, १-२४२८-३१). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: लुब्धा नरा अर्थो; अंति: सुख पामै सुख लहै. गौतम कुलक-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: राजगृहे मूमण; अंति: पुहता इम इम तप कीजै. १५७७९. चौदस्वप्न विचार व आयष्यमान विचार. संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प.६. कल पे. २. जैदे.. (२६४१२. १४-१७४३४-३८). १. पे. नाम. १४ स्वप्न विचार, पृ. १अ-६आ. For Private And Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३०१ मा.गु., गद्य, आदि: तिणे रात्रने विषे; अंति: क्षत्री राणी देखे. २. पे. नाम. आयुष्य विचार *, पृ. ६आ. मा.गु., गद्य, आदि: ए युगलने मनुष्य आउखा; अंति: सगले आरे सरिखो हूई. १५७८०. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५४१२, १५४२७-३३). प्रस्ताविक श्लोकसंग्रह-, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: विद्या भल पण अधांग; अंति: वीरस्त्रिलोकीगुरु, गाथा-११३. १५७८१. सप्तनय सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. मु. सुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४१२, १-३४४२-५१). सप्तनय, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ त्रिशलातणो; अंति: सयल संघ मंगल करो, ढाल-२. सप्तनय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रथम नयनुं लक्षण, (२)श्रीवीतराग मतनें; अंति: देवं भुतोभीमन्यते. १५७८४. शांतिनाथ विवाहलो व स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, ११४३६-४३). १. पे. नाम. शांतिजिन विवाहलो, पृ. १आ-२४आ. मु. आनंदप्रमोद, मा.गु., पद्य, वि. १५९१, आदि: सरसति सामिणी हंसला; अंति: लहइ ऋद्धि वृद्धि, ढाल-६४. २. पे. नाम. गुरुगुण स्वाध्याय, पृ. २४आ-२५अ. म. ऋद्धिचंद्र, मा.ग., पद्य, आदि: गुरु विना ज्ञान; अंति:रीद्धिचंदनउ निवाजइ, गाथा-९. ३. पे. नाम. विजयदेवसूरि स्वाध्याय, पृ. २५अ-२५आ. देवसूरि स्वाध्याय, मु. ऋद्धिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिण ध्याउ; अंति: सीस कहइ रीद्धिचंदा ए, गाथा-७. १५७८५. बासठ बोलमार्गणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२६४११.५, १५४३०-३२). ६२ बोल मार्गणा, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (१)श्रीगुरुवचन लही करी, (२)गइ इंदिय काये जोए; अंति: सागर दीयै इम आशीस ए, ढाल-१३, गाथा-१८३. १५७८६. ईकवीसठाणा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा टबार्थ अपूर्ण. गाथा-१३ तक है., प्रले. ऋ. नन्निग, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ६x४३-४६). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: अवसेस साहारणा भणिया, गाथा-६९. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे विमानथका चव्या; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५७८७. गजसिंह रास, संपूर्ण, वि. १९५३, वैशाख शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. कालावड, प्रले. वशराम आंबाभाई खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४३-४७). गजसिंह रास, ग. मयाचंदजी, मा.गु., पद्य, वि. १८१५, आदि: सांतिजिणंद सुखसंपदा; अंति: गावे सतावीसमी ढाल रे, ढाल-२७. १५७८८. रत्नपाल रास. संपूर्ण, वि. १९३४. भाद्रपद शक्क. १३. सोमवार, श्रेष्ठ, प. ३९. ले.स्थल. लींबडी. प्रले. रामचंद्र नारणजी दवे, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. जैदे., (२६.५४१२,१३४२८-३३) रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीऋषभादिक जिन नमुं; अंति: वो जयजयकार रे, खंड-३ ढाल३४. For Private And Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५७८९. जंबुद्वीप संघयणि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२७, आषाढ़ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. उमीयापुर, प्रले. भाईचंद्र नागर; पठ. मु. नयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीकुंथुनाथ प्रसादात्., जैदे., (२७X१२, ४X३०-३५ ). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमीयुं जिण सव्वनुं अंति: रईया हरिभदसूरिहिं गाथा - ३०. लघुसंग्रहणी - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः नमिय क० नमस्कार करी; अंति: हरिभद्रसूरि रची छे १५७९०. अष्टाह्निकाव्रत कथानक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., ( २६.५X१२, १२ - १३३०-३७). अष्टाह्निकाव्रत कथानक, सं., पद्य, आदि: सिद्धार्थे सिद्धये; अंति: मे सुश्रियं वस्तु, श्लोक - २६३. १५७९१. (+) शतपंचाशीतिका संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८८२ माघ कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. दादरी, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२६४१२.५, ९४४८-५१). , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शतपंचाशीतिका संग्रहणी, मु. उत्तम, प्रा., पद्य, वि. १६८९, आदिः नमिठं उसभाइ जिणे; अंतिः रइया उत्तमेण सुद्धेण, गाथा - १८६. शतपंचाशीतिका संग्रहणी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनें ऋषभ; अंति: तथा निर्दोष गुणे करी. १५७९३. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल. पाटण, जैदे., (२५.५X११.५, ११-१२ ३०-३२). स्तवनचौवीसी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जग चिंतामणी जगगुरु; अंति: विजय कहें० दुख जाय, स्तवन- २४. १५७९४. सुभद्रा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. दुनीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४११.५, १७४३८-४१). सुभद्रासती चौपाई, ऋ. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: अरिहंत सिध समरं सदा; अंति: लालचंद० चित् लायजी, ढाल ७. १५७९५. नयविचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., ( २४.५X११.५, १५-१६X३७-४१). नयविचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनवरेंद्र; अंति: गुणे हे साधु ए नयसार. १५७९६. अंजनासती रास, संपूर्ण, वि. १८९९, भाद्रपद शुक्ल, १४, रविवार, मध्यम, पृ. १७, ले. स्थल. दादरी गाम, प्र. वि. अंतिम दो पत्र नये हैं., जी., (२५४१२, १८४४४-४६). अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पच, वि. १६८९, आदि गणधर गौतम प्रमुख; अंतिः सती ए शीरोमण गाई ए. १५७९७. (+) मंत्र व औषध संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९-२ (६ से ७)-७, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- पंचपाठ., जैवे. (२६११.५, १६-२०x३८-४० ). १. पे नाम. आदिजिन मंत्र सर्वमनोरथ सिद्धिकर, पृ. १अ. सं., गद्य, आदिः ॐ नमो वृषभनाथ मृत्य; अंति: कुरु कुरु स्वाहा. २. पे. नाम औषध संग्रह, पृ. १- ९आ. मा.गु., गद्य, आदि: ( अपठनीय); अंति: (अपठनीय). १५८०१. स्तवन, स्वाध्याय व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, जैदे., (२५X११.५, १२-१३X२६-३२). १. पे. नाम. छआवश्यक विचार स्तवन, पृ. १आ - ३आ. वा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसइं जिन चींतवीं; अंति: वाचक कहे० जे आराधई, गाथा-४४. For Private And Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org २. पे. नाम. गौतमगणधर स्वाध्याय, पृ. ३आ-४अ. गौतमस्वामी वीरविरहविलाप स्तवन, मु. खिमाविजय, पुहिं., पद्य, आदि: तो सुं प्रीति बंधानी; अंतिः तिस्युं जोति मलावी, गाथा ९. १. पे. नाम ब्रह्मवावनी, प्र. १आ ५आ. १आ-५आ. ३. पे. नाम. शुद्धचेतन वचनविला आत्मबोध स्वाध्याय, पृ. ४अ - ५अ. आत्मप्रबोध सज्झाय, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि पिउडा रे पिउडा नरभव; अंतिः चतुर रमो मुज साथि रे, गाथा - ९. ४. पे. नाम. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, पृ. ५अ - ५आ. गाथा - ५. मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक वीरजी प्रभु; अंति: शासने सफल करो अवतार, १५८०३. क्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९१४, कार्तिक शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल, लुहारी, प्रले. ऋ. ख्यालिराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे. (२४.५x११.५, ४-९४३४-३८). , बृहत्क्षेत्रसमास - लघुक्षेत्रसमास, संक्षेप, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊणसजलजलहर निभरसण अंति: झाज्जा सम्मदिडीए अध्याय ५, गाथा - १८८. बृहत्क्षेत्रसमास - लघुक्षेत्रसमास का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण कहेता नमीना; अंति: करइ सम्यग्दृष्टी. १५८०४. ब्रह्मबावनी व पद आदि, अपूर्ण, वि. १९३७, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ले. स्थल. हाथरस, प्रले. सा. जीयोजी (गुरु सा. जसोदा), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५x११.५, १६X५२-५६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. निहालचंद, पुहिं., पद्य वि. १८०१, आदि: (१) सिवमत बीध रुवेदमत, (२) ॐकार अमर अमार आप; अंतिः कीनी० गुनको कहिजीयों, गाथा-५२. २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ५आ. पुहिं., पद्य, आदि: जवें चिदानंद निज; अंति: पुरव करम फल फंदसौं, गाथा- ४. ३. पे. नाम. दुहा संग्रह", पृ. ५आ, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. ३०३ प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), २. पे नाम, अरजनमालीनो चोदालीयो, पृ. १आ-४अ. प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि (अपठनीय); अंतिः (-), अपूर्ण. १५८०६. (+) अर्जुनमाली चौढालीयो, सज्झाय दूहा आदि, अपूर्ण, वि. १८२४ वैशाख कृष्ण, मध्यम, पृ. ७-२ (५ से ६) = ५, कुल पे. ५, प्रले. वखतु, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११.५, १६-१८X३३-३६). १. पे. नाम जैन सामान्यकृति, पृ. १अ. ३. पे. नाम. उपदेशबत्तीसी, पृ. ४-४आ, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा- २३ अपूर्ण तक हैं. मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि: आतमराम सवाने तें; अंति: (-), अपूर्ण, ४. पे. नाम. श्रावक करणी सज्झाय, पृ. ७अ - ७आ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा - ५ अपूर्ण से हैं. अर्जुनमाली ढाल, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२०, आदि: वर्धमान जिनवर नमु; अंति: सुद पुनम सुभ ठाया, ढाल - ९. For Private And Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: करणि दुखहरणि छे एह, गाथा-२३, अपूर्ण. ५. पे. नाम. काया दूहा, पृ. ७आ. मा.गु., पद्य, आदि: भषतु अति घणो साख; अंति: नही काइ बाहरने बुब, गाथा-१०. १५८०७. दशवैकालिकसूत्र, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., चूलिका-२ की गाथा-१० तक है., जैदे., (२५.५४११.५, १६४५३-५७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), पूर्ण. १५८०८. (+) माधवानल चौपाई, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-५२४ तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १५४४०-४५). माधवानल चौपाई, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: देवि सरसति देवि सरसत; अंति: (-), पूर्ण. १५८०९. शोभनस्तुतयः, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२५.५४१०, १२-१४४४०-४४). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारतारावलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. १५८१०. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७६५, भाद्रपद कृष्ण, ४, रविवार, मध्यम, पृ. ६१-७(१ से ६,३०)=५४, जैदे., (२५.५४११, ११४३१-३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, अपूर्ण. १५८१२. (+) भक्तामर स्तोत्र-षष्ठ स्मरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८३१, चैत्र शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३०-२५(१ से २५)=५, ले.स्थल. वडगडी, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२५.५४११.५, ४४३१-३४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४, अपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एहवु प्रगट कीधु, अपूर्ण. १५८१३. नवतत्त्व सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(३)=१३, जैदे., (२६४११.५, ११४४१-४३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४२, पूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: यथावस्थित साचउंजे; अंति: आज्ञा प्रमाण करिवी, पूर्ण. १५८१४. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदे., (२६४११.५, ११४३८-४६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: मुच्चइ त्ति बेमि, अध्ययन-१०. १५८१५. कयवन्नाचौढालियो व धना चरित्र, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १७X४४-४७). १. पे. नाम. दानाधिकारे कयवन्नाचौढालीयो, पृ. १अ-३अ. कयवन्ना चौढालियो-दानाधिकारे, म. फतेचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: पार्श्वनाथ प्रणमी; अंति: वद ग्यारस सुहाय, ढाल-४. २. पे. नाम. धन्ना चौढालिया, पृ. ३अ-५आ, पूर्ण, पू.वि. मात्र प्रशस्ति भाग नहीं लिखा है. मु. फतेचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सकल अमर सेवत सदा; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गरपा, पूण. For Private And Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०५ 2. अ. हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १५८१६. ऋषभपंचासिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११.५, १-२४३७). ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: जयजंतुकप्पपायव चंदाय; अंति: बोहित्थ बोहिफलो, गाथा-५०. ऋषभपंचाशिका-टीका, आ. प्रभानंदसूरि, सं., गद्य, आदि: जयत्ति व्याख्या हे; अंति: पंचाशत्तमगाथार्थः. १५८१८.(#) सिंदरप्रकरणटीका व औषधसंग्रह, अपूर्ण, वि. १६५५-१७००, मध्यम, पृ.८, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४४-५२). १. पे. नाम. सिंदूरप्रकर-टीका, पृ. १आ-८आ, अपूर्ण. आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २. पे. नाम. वृच्चिकविष चिकित्सा, पृ. १अ. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १५८१९. ताजिकसारटीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदे., (२५.५४११, ११-१५४३४-४२). ताजिकसार-कारिका टीका, ग. सुमतिहर्ष, सं., गद्य, वि. १६७७, आदि: श्रीसूर्यचंद्रारबुधे; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५८२१. बारव्रत स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४११.५, ९४३६). १२ व्रत सज्झाय, मु. विमलसोमसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६९२, आदि: श्रीशीतलजिन पय नमी; अंति: गुरु० सही भवतु पारकि, गाथा-४५. १५८२२. (+) नवतत्त्व सह टीका व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १७९८, पौष शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, ले.स्थल. गुंदवचनगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ., प्र.ले.श्लो. (६८९) यादृशं दृष्ट्वा तादृशं लिखतामस्ति, जैदे., (२६.५४११.५, १-३४३५-३७). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-१५आ. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: तिन्निवि ए उववाए वा, गाथा-४६. नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीर; अंति: शीघ्रं प्राप्नुवंति. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , पृ. १५आ. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (अपठनीय). १५८२३. योगशास्त्र-१ से ४ प्रकाश, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२, जैदे., (२६.५४११, १५४४४-४९). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: श्रीहेमचंद्रेण सा, प्रतिपूर्ण. १५८२४. महावीरजिनविचार स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७३८, कार्तिक शुक्ल, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. मध्यवर्तीनी, प्रले. मु. लक्ष्मीविजय (तपागच्छ),प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ. कुल ग्रं. ७५०, जैदे., (२५.५४११.५, ३-६४३६-४७). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: आणा शिर वहस्ये जी, ढाल-६. For Private And Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जत्थयजं जाणिज्जा; अंति: नियुक्तिमध्ये छई. १५८२५. कल्पसूत्र की नवकारमहिमापीठिका, संपूर्ण, वि. १८२३, आषाढ़ कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. सिवयुध, प्रले. ऋ. गौडीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १४-१५४३७-४३). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीवर्द्धमानं जिनं, (२)हिवे पंचपरमेष्टि; अंति: (१)नही मुक्तगति पामै, (२)पर्युषणं जगत्रए. १५८२६. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७९, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२५.५४११, ४४४०-४२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४५. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि:साचा वस्तुनो स्वरूप; अंति: वचने हइ ते प्रमाण. १५८२७. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. जसवंत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कोई अवचूरि पर से टबार्थ लिखा गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ६४३७-४१). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जन्मजरामरणरूप; अंति: सुखरूप मोक्ष पामइ. १५८२८. (+) श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र संग्रह सहटबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६२-१(३१)=६१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, २-१७४३२-४२). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: (-), अपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बार गुणे सहित; अंति: (-), अपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मु. जिनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७५१, आदि: बार गुणे करि सहित; अंति: (-), अपूर्ण. १५८३०. (+) द्रव्य संग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७९७, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५.५४११.५, १५-२६x६२-६७). द्रव्य संग्रह, म. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: जीवमजीवं दव्वं जिणवर; अंति: मुणिणा भणियं जं, अधिकार-३, गाथा-५८. द्रव्य संग्रह-बालावबोध, मु. रामचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपरमपुरुषपरिचरणं; अंति: (१)द्रव्यसंग्रहः, (२)यतीश्वर शुद्ध करहु. १५८३१. (+) ऋषिमंडल पूजादि विधिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, प्रले. पं. मोहन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, २२-२४४४८-५४). १.पे. नाम. ऋषिमंडल मंत्र कल्प, पृ. १अ-५अ. मु. गुणनंदि मुनींद्र, सं., प+ग., आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीश; अंति: नंदी गुणादिर्मुनिः. २. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तव यंत्र, पृ. ५अ-५आ. ऋषिमंडल स्तोत्र-यंत्र, संबद्ध, आ. सिंहतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानमीशं; अंति: जिनबीजस्य बीजकम, श्लोक-३६. For Private And Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३०७ ३. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तवाम्नाय, पृ. ५आ. ऋषिमंडल स्तोत्र-आम्नाय, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रां हिँ हूं; अंति: दर्शनादेशश्च भवति. ४. पे. नाम. ऋषिमंडलपूजा विधि, पृ. ५आ. ऋषिमंडल स्तोत्र-पजाविधि, संबद्ध, सं.. गद्य, आदि: ॐ ह्रां अ० ॐ ह्रीं: अंति: अणिमा सिद्धये स्वाहा. १५८३२. (+) चउवीसदंडक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१९, आश्विन कृष्ण, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. योधपुर, प्रले. आ. जिनोदयसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. गाथा ४१, जैदे., (२६४११.५, ३-४२४४२-४६). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४१. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ; अंति: हेतइनी करणहार. १५८३३. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३३, पौष कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदे., (२५४११, ६४३५). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेण० चंपा नाम नयरी; अंति: दिवसेसु अंग तहेव, अध्याय-१०. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीवर्धमानमानम्य, (२)जे कालने विषे जे; अंति: ते दिवसे अणुजाणै. १५८३५. तिलोकसुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १९४२, कार्तिक कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ.५, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. ऋ. छतमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १९-२०४३९-४३). त्रैलोक्यसुंदरी रास, ऋ. सबलदास, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: विहरमान वीसे नमुं; अंति: जिण घर लील विलासो रे, ढाल-१२. १५८३६. प्रदेशीराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९४७, भाद्रपद अधिकमास कृष्ण, १२ अधिकतिथि, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. भवानीराम वोरा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १४४४२-४७). प्रदेशीराजा चौपाई, ऋ. जेमल, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: रायप्रसेणी सुत्रमे; अंति: वीर कहे सुणो गोयमा, ढाल-१७. १५८३७. सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२५४११.५, १३-१४४३१-४०). सत्तरभेदी पूजा, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार शिवशर्ममय शिव; अंति: पटराणी रे भविका. १५८३८. स्तवनचोवीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. कालुपुर, प्रले. ग. विबुधविजय; पठ. श्रावि. हेजकुंअर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३४४२-४३). स्तवनचौवीसी, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आदि पुरुषए आदिजी; अंति: करो सेवकनी सार, स्तवन-२४. १५८३९. अढारपापस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, जैदे., (२६४११.५, १३४३६-३८). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानक पहिलूंका; अंति: सेवक वाचकजस इम आखेजी, सज्झाय-१८. १५८४०. पाखी सूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १८५६, आश्विन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १६-१७४३८-४०). For Private And Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. १अ-५आ. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. क्षामणकसूत्र, पृ. ५आ. हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जं भे; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि, सूत्र-४. १५८४१. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२५.५४११, ९४२८-३२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. १५८४३. संघयण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, जैदे., (२६४११, १३-१५४४०-४३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७८. १५८४४. बारभावना, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१११ अपूर्ण तक हैं., जैदे., (२५.५४११, १२-१४४३४-३८). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: (-), पूर्ण. १५८४६. (+) वैद्यजीवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७८, पौष शुक्ल, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३६, प्रले. ग. सत्यधीर (गुरु पा. शिवनंदन गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१०.५, ४-५४४०-४३). वैद्यजीवन, क. लोलिंबराज, सं., पद्य, आदि: प्रकृति सुभगगात्रं; अंति: लोलिम्मराजः कविः, विलास-५. वैद्यजीवन-टबार्थ, पंडित. ज्ञानतिलक गणि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीपार्श्वेशं जिनं, (२)कथं भूतं धाम प्रकृत; __ अंति: लोलिम्मराज पंडितः. १५८४७. (+) संग्रहणी सूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. संशोधित-प्रायः शुद्ध पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, १३-१४४५३-५८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७७. १५८४८. (+) भगवतीसूत्र बीजक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्रले. मु. कनकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, २२-२३४५२-५७). भगवतीसूत्र-बीजक, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परया भक्त्या ; अंति: बीजकं समाप्तम्, ग्रं. ४०९. १५८५०. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८६०, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(१)+२(२,१२)=१३, पू.वि. श्लोक-१ नहीं है., ले.स्थल. सवराड, प्रले. ऋ. मानजी (गुरु पंडित. जैतसिंह ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक लेखन व्यवस्थित नहीं है. पत्रांक १०आ कोरा है परन्तु पाठ क्रमशः चलता है. पहले क्रम में उल्लिखित प्रतिलेखन संवत् १८५६ तथा दूसरे क्रम में संवत् १८६० से पता चलता है कि संवत् १८५६ में लिखित प्रत पर से इस प्रत को लिखी जाने की सम्भावना है., जैदे., (२६४११, ३४३०-३५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४, पूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: प्रपद्यते हतां पामइ, पूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १५८५२. मनोरमा नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-३७१ तक है., जैदे., (२५.५x१०.५, १३-१४X३०-४३). (+) लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-), अपूर्ण. १५८५३. 'उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन- ११ तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २६.५x१०.५, १-१५X४२-४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविष्पमुकस्स; अंति: (-), अपूर्ण. उत्तराध्ययनसून टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः पूर्वसंयोग मातादिकनो; अंतिः (-), अपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: एक आचार्यनई एक चेलो; अंति: (-), अपूर्ण. १५८५४. नाममाला व मघवन् शब्दनिरूपण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २४, कुल पे. २, जैदे. (२४.५X१०,५, " . ६x२७-३१). १. पे. नाम. धनंजय नाममाला, पृ. १आ-२४अ. धनंजयनाममाला, जै. क. धनंजय, सं., पद्म, आदि; तन्नमामि परं ज्योति; अंतिः शब्दाः समुत्पीडिताः, श्लोक - २००, ग्रं. २४०. ३०९ २. पे. नाम. मघवन् शब्दनिरूपण, पृ. १अ. सं., गद्य, आदि: मघवा बहुलमिति पक्षे; अंति: रूप्यमेव सिद्धं. १५८५५. (+) चंपककथा चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें क्रियापद संकेत ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., ( २४.५X१०.५, १३x४४-४८). चंपकश्रेष्ठ कथा, मु. प्रीतिविमल, सं., पद्य, वि. १६५६, आदि श्रेयः संततिकर्त्तार; अंतिः न० श्लोकाश्चरित्रस्य, श्लोक-४७९. १५८५७. (+) आदिनाथवीनती स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७०७ कार्तिक शुक्ल, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, मु. वीरवास (गुरु पं. केसव); पठ. श्रावि हरषा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६११, १५X४४-४९). प्रले. आदिजिन स्तवन- देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि पहिलो पणमिय देव; अंतिः विजयतिलय निरंजणो, गावा-२१. आदिजिन स्तवन- देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: मंगलीक्य भणी पहिलो; अंति: जयवंत तिलक प्राय छइ. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: विषे उद्यम करवो, पूर्ण. १५८६०. चतुः शरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५X११, ९३२-३८). १५८५८. प्रतिष्ठाविधि, अपूर्ण, वि. २००९, श्रेष्ठ, पृ. २२, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ले. स्थल. पाटण, प्रले. मोहन भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, १७३८-४०). प्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-), अपूर्ण. १५८५९. आठकर्म १५८ प्रकृतिविचार, पूर्ण, वि. १९३१, चैत्र कृष्ण, ५, मंगलवार, जीर्ण, पृ. ६-१ (२) -५, प्रले. मु. रूपविजय ( गुरु पं. मेघविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५x११, १३-१४४३३-३६). " For Private And Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा- ६३. १५८६१. (+) आचारांगसूत्र- प्रथम श्रुतस्कंध सह टवार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. ६४, पू. वि. अध्याय-९, ले. स्थल, बडोतनगर, लिख. पं. नुणकर्ण; प्रले. तुलसीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५X१२, ५-६X३८-४० ) . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: ( - ), प्रतिपूर्ण आचारांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) सु० सुधर्मस्वामी, (२) प्रथम अंग ते आचारांग अंति: (-), प्रतिपूर्ण, १५८६३. श्रावकाराधना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५X११, १५X४३-४५). श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वशं प्रणिपत अंति: मुनिषड्रसचंद्रवर्षे, अधिकार- ५. १५८६४. कल्पसूत्र पीठिका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७, प्रले. ऋ. मयाचंद, प्र. ले. पु. सामान्य, जैवे., (२५x१०.५, १३४३३-३६). कल्पसूत्र- पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (१) श्रीवर्द्धमानं जिनं, (२) हिवे पंचपरमेष्टि; अंति: (१) नही मुक्तगति पामै, (२) गोयम ते तरंति. १५८६५. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, समोवसरण, सीमंधरजिन स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८२७, आश्विन शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुलपे ४, प्रले. श्राव. फतेचंद सूरसिंघ संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५.५x११.५, १३४४९-५३). १. पे नाम श्रद्धपाक्षिकादि अतिचार, पृ. १आ-६अ. श्रावक पाक्षिक अतिचार तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (१) नाणंमि दसणंमि०, ( २ ) विशेषतः श्रावक तणाइ; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम. समोसरण स्तवन, पृ. ६अ-८अ. नेमिजिन स्तवन- समवसरणविचारगर्भित, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: जायव कुल सिणगार सिरि; अंति: अनंती ते लहइ ए, गाथा - ३६. ३. पे. नाम. सीमंधरजिनवीनती स्तवन, पृ. ८अ ८आ. सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. नेमसागर, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: तें मोरू मन मोहीओ; अंति: नेमसागर० परमेसर लाल, गाथा - ११. ४. पे. नाम. वणजारानी सज्झाय, पृ. ८आ. औपदेशिक सज्झाब, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नरभव नगर सोहामणु; अंति: तुं पामीस अविचल ठाम, गाथा - ५. १५८६६. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., ( २६.५x११.५, १३-१७X३०-३३). स्तवनचीवीसी, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि आदि पुरुषए आदिजी; अंतिः करो सेवकनी सार, स्तवन- २४. १५८६८. साधु वंदना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., ( २६११.५, ११x४२-४३). साधुवंदना, आ. पार्श्व चंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंतिः मनि आणंदई संधुआ, ढाल - ७, गाथा - ८७. For Private And Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३११ १५८६९. कल्पसूत्र बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२-७(१५ से २१)=१५, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, १४-१५४३९-४४). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: साध चौमासो करै तिवार; अंति: (-), अपूर्ण. १५८७०. सौभाग्यपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५४११, १०४३०-३५). सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: श्रीगुरु चरणे नमी; अंति: केसरकुशल जयकरो, ढाल-५, गाथा-७५, ग्रं. ११०. १५८७१. गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. १७८८, माघ शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. सिद्धपुर, प्रले. पं. दीपचंद्र (गुरु ग. दानचंद्र), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३४३७-३९). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: समय० जेन ____धर्मइ वसिउं, गाथा-११८. १५८७२.(+) उत्तराध्ययनसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., अध्ययन-६ गाथा-१६ तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ६x४१-४५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), अपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: संयोग बिहुं प्रकारे; अंति: (-), अपूर्ण. १५८७३. भगवतीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८९, आश्विन शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ.८०८+१(६२)=८०९, प्र.वि. तीन प्रतों को देखकर यह प्रत लिखे जाने का उल्लेख है. टबार्थवाली पंक्ति में सं.१८६६ व शक१७३१ का उल्लेख है जो आधार ३ प्रतों में से किसी एक का होना चाहिये., जैदे., (२५४१२, ७४३८-४८). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहताणं० सव्व; अंति: देउ अविग्धं लिहतस्स, शतक-४१. भगवतीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने माहरो; अंति: मते देवो लेखकने तीन. १५८७४. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६०, फाल्गुन शुक्ल, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ३९१, प्रले. ऋ. चेतराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १४५२५, जैदे., (२६४११, ६४३२-३९). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेण० चपाए; अंति: कहासुयखधो समत्तो, अध्ययन-१९, ग्रं. ५५२५. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञाताधर्मकथांगस्य; अंति: धर्ममुक्तगामीकथा, ग्रं. ९०००. १५८७५. (+) शत्रुजय माहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६५८, प्रले. पंन्या. खुशालविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (५३३) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२५.५४११, ६४३६-४२). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति: सांभोनिधिं ग्रंथ एषः, सर्ग-१४. शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीयुगादीशं; अंति: ए ग्रंथ चिरं नंदतु. १५८७६. आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व मूलनियुक्तिभाष्य तीनों की संयुक्त शिष्यहिताटीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५२१-८६(१ से ७२,२२७,२३० से २३५,२५१,२५९ से २६०,२९०,३८४ से ३८६)+३(२४६,३९८,४७६)=४३८, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४०-४८). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ, अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छंतीति गाथार्थः, ग्रं. २२०००, अपूर्ण. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: चरणगुणट्ठिओ साहू, अपूर्ण. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छंतीति गाथार्थः, ग्रं. २२०००, अपूर्ण. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२५३, अपूर्ण. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), ग्रं. २२०००, अपूर्ण. १५८७९. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला सह स्वोपज्ञवृत्ति, संपूर्ण, वि. १८०२, भाद्रपद कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १९६, ले.स्थल. हरिदुर्ग, प्रले. आ. जिनललितसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १००००, प्र.ले.श्लो. (१५) अदृष्टदोषात् मतिविभ्रमात् च, (५३३) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४५-५८). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६. अभिधानचिंतामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२१६, आदि: धर्मतीर्थकृतां वाचा; अंति: निपात्यंते पदे पदे. १५८८२. चंदकेवली चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३४-१(८)=१३३, पू.वि. अध्ययन-३ श्लोक-२३८ तक है. टबार्थ पत्र ७ तक ही है., जैदे., (२४.५४१२, ६४३२-३५). श्रीचंद्रकेवलि चरित्र, मु. सिद्धर्षि, सं., पद्य, वि. ५९८, आदि: ॐ ध्यात्वा श्रीजिना; अंति: (-), अपूर्ण. श्रीचंद्रकेवलि चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ॐकार सिद्धनो ध्यान; अंति: (-), अपूर्ण. १५८८३. मल्लीनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, पू.वि. सागरदरशाह संबंध अपूर्ण तक है., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४५२-५६). मल्लिजिन चरित्र, प्रा.,सं., गद्य, आदि: इक्खागुरायवसहो पडि; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५८८४. (+) प्रज्ञाप्रकाशषविंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ६४२७). प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, आ. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन; अंति: मयका प्रणीता, श्लोक-३७. प्रज्ञाप्रकाशषत्रिंशिका-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: प्रज्ञा क० बुद्धि; अंति: कीधी रूपसी नामकेन. १५८८७. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ व मृत्युज्ञान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, ले.स्थल. बंबई, प्रले. जगन्नाथ ब्राह्मण; लिख. मु. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, ४०४३८-४२). १. पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, पृ. १आ-१०अ. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., गद्य, आदि: ऊँ नत्वा चतुःशरण; अंति: रचित बालावबोधाय. २. पे. नाम. ज्योतिष , पृ. १०आ. For Private And Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३१३ मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). १५८८८. नवतत्त्वबालावबोध, वीरजिन स्तवनतप व तपस्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२, १२४३०-३६). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण का बालावबोध, पृ. १आ-२१अ. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो जीवतत्त्व बीजो; अंति: ने अजीवने मिश्र कहीइ. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, पे.वि. पेन्सिल से लिखी गयी है. मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीद्धार्थकुल; अंति: इहां छे कोट कल्याण, गाथा-७. ३. पे. नाम. तप स्वाध्याय, पृ. २१आ, पे.वि. पेन्सिल से लिखी गयी है. मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामी नरा; अंति: जन्मनो लावो लेजो रे, गाथा-८. १५८८९. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९१९, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. ऋ. नेणसुखदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ५४४०-४२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. १५८९१. भवणद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९१६, माघ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३२, ले.स्थल. बडोत, प्रले. क्र. ने ऋ. ख्यालीराम), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, १८४४३-४५). भवणद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: लोक में अलोक में जे; अंति: मोक्ष रूप शाश्वत छइ. १५८९४. उत्तमकुमार चौपाई, पूर्ण, वि. १८८५, फाल्गुन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४१-१(१)=४०, पू.वि. ढाल-१ गाथा-५ तक नहीं है., ले.स्थल. बिकानेर, प्रले. सा. उमा (गुरु सा. ग्यानाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, १८-२०४३१-३८). उत्तमकुमार चौपाई, मु. तत्त्वहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: (-); अंति: सुणीयो सहु मन रंगरे, ढाल-५१, ग्रं. १६३६, पूर्ण. १५८९५. श्रावक पाक्षिकादि अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, जैदे., (२६४१२.५, ११४२७-२९). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (१)नाणमि दसणंमि०, (२)विशेषतः श्रावक तणाइ; अंति: मिच्छामि दुक्कड. १५८९६. श्राद्धदिनकृत्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३४, श्रेष्ठ, पृ. ३४, ले.स्थल. साथशिणनगर, प्रले. ठाकरसी विप्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (६९०) अद्रस्यं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४१२.५, ६४३१-३५). श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वीरं नमेऊण तिलोअभाणु; अंति: मिच्छामिह दुक्कडंति, गाथा-३४२, (वि. १९३४, फाल्गुन शुक्ल, १२) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरस्वामी; अंति: मिच्छामि दुक्कडं इति, (वि. १९३४, चैत्र शुक्ल, ४) १५८९७. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प्र. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-४४ तक है., जैदे.. (२५४१२.५, ४४२२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम नवतत्त्व; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. टबार्थ गाथा-३९ तक है.) १५९००. (+) सप्तस्मरण सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., षष्ठ स्मरण तक ही है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, १०४२४-२५). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअं जिअ सव्वभयं; अंति: (-), अपूर्ण. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-टिप्पण*,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १५९०१. श्रीपाल लघु रास, संपूर्ण, वि. १८४८, वैशाख शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२५४१२.५, १३४३७-३९). श्रीपाल रास-लघु, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: चउवीसे प्रणमु जिनराय; अंति: सुणतां सदा कल्याण, ढाल-२०, गाथा-२७५. १५९०३. चंदनबालारो चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४१२.५, १५-१६५३०-३६). चंदनबाला चरित्र, ऋ. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चंपारे नगरी हो जाणी; अंति: कहै ढाल रसाला, ढाल-१३. १५९०५. अष्टाह्निका महोत्सव व्याख्यान सह टबार्थ व दृष्टांतकथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०३, श्रावण शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. २५, कुल पे. ३, ले.स्थल. पालिपुर, प्रले. मु. प्रेमचंद (गुरु क्र. ताराचंद, चंद्रगच्छ); पठ. मु. ऋषभचंदजी (गुरु मु. प्रेमचंदजी, चंद्रगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, ७४३६). १. पे. नाम. पर्युषणपर्वाष्टाह्निका आद्यदिनत्रय व्याख्यान सह टबार्थ, पृ. १आ-२४अ. पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: मिहातिहर्षात्. पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: पार्श्वनाथ भगवान; अंति: चौमासउ अठै रह्या थका. २. पे. नाम. वसूराजा कथानक, पृ. २४अ-२५अ. मा.गु., गद्य, आदि: मुक्तिमती नामा नगरी; अंति: वचन बोलवानो आदर करो. ३. पे. नाम. तृतीयाश्रवपरित्यागे परधनग्रहण विवर्जनीय काव्य, पृ. २५अ. कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अति: (अपठनीय). १५९०७. वीसस्थानक पूजा, रात्रिका, स्तवनादि, पूर्ण, वि. १८७३, वैशाख शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २३-१(१)=२२, कुल पे. ३, ले.स्थल. अजीमगज, प्रले. ग. शिवचद्र; प. रतनचद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, १२४२८-३०). १. पे. नाम. २० स्थानक पूजा, पृ. २अ-२२अ, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: (-); अंति: (१)विधि तणी रचना करी, (२)जिन पंक विखंडनाय, पूर्ण. २. पे. नाम. २० स्थानकतपस्तवन, पृ. २२अ-२३अ. मु. वखतचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वीशस्थानक तप सेवीयै; अंति: कहै वसतो मुनिवरु, ढाल-३, गाथा-१९. ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. २३आ. आदिजिन स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनराज नाम तेरा राखु; अंति: भाषै. हमारा घटमै, गाथा-५. For Private And Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १५९१०. बालचंदवत्रीसी व समवसरण स्तवन, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२५.५४१२.५, १२४३०). १. पे. नाम वालचंदयत्रीसी, पृ. १-६अ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. समोवसरण स्तवन, पृ. ६अ - ६आ, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा - १५ अपूर्ण तक हैं.. मु. शुभवीर, मा.गु., पद्य, आदि: समोसरणनी शोभा जेणे; अंति: (-), पूर्ण, अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर पद परमेसरकुं; अंति: बालचंद० छंद जाणीइं, गाथा - ३३. १५९१२. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २७, ले. स्थल. पाली, प्रले. पं. कपूरविजय; पठ. सा. माणिक्यश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. लो. (२५५) भन्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैवे., (२५X१२.५, ११x२८-३२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: किल इसइ साचइ हु; अंति: लक्ष्मी स्वयंवर वरइ. भक्तामर स्तोत्र-कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमालवदेशमाहि; अंति: कीधौ मोटे मान्यौ, कथा-२८. १५९१३. अंजनासती रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले. स्थल, कोटला, प्रले, सा. प्रेमदेई (गुरु सा. अमरताजी), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६x१२.५, १६-१८४३५-३८). अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: श्रीगणधर गौतम प्रमुख; अंति: रास भणुजी स अंजणा, खंड ३, डाल २२, गाथा - ६३२. ३१५ १५९१४. सम्यक्त्वकौमुदी कथाष्टक, संपूर्ण, वि. १९२९ पौष शुक्ल १४, श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले. स्थल रोतासगढ़, प्रले. आत्माराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५.५x१२.५, १५४५१-५३). सम्यक्त्वकौमुदी कथाष्टक, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्म, वि. १८८५, आदि: विजयमान श्रीवीरजिन; अंति: ग्रंथ बखाण्यों, ढाल - ४२, ग्रं. १८००. " श्रीपाल चरित्र, मु. १५९१७. श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६X१३, १४X४६-४८). ,जयकीर्ति-शिष्य, सं., गद्य, वि. १८६८, आदि: प्रणम्य सिद्धचक्रं; अंति: (-), अपूर्ण. १५९१८. बूढलारी चौपई, संपूर्ण, वि. १९०७ आश्विन शुक्ल, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले, स्थल, मकसूदाबाद, प्रले. ऋ. जोतिरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१३, १५-१६४३५-३८). बुढ़ापा रास, मु. चंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि दवाज माता वीनवु गणधर अंतिः सुणी कलियुग निसाणी, ढाल - २२. For Private And Personal Use Only १५९२०. आणंदसंधी व स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९०८, कार्तिक शुक्ल, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, ले. स्थल. बणोली, प्रले. मु. शोभाराम ऋषि (गुरु मु. डालूराम ), प्र.ले.पु. मध्यम जैदे., (२५.५X१३, १९-२०X३५-३८). १. पे. नाम. आनंदधावक संधि, पृ. ८. पा. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमान जिनवर चरण; अंति: पभणइ मुनि श्रीसार, ढाल - १५, गाथा - २५०. २. पे. नाम औपदेशिक स्वाध्याय, पृ. ८आ. Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: नित उठी गामें जावै; अंति: जावै दुख जन्म जंजारे, गाथा - ९. १५९२१. नवपदक्षमाश्रमणदान विधि, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७-२ (१ से २) ५, पू. वि. पद ५ क्षमाश्रमण २ तक नहीं है., जैवे., (२५x१३, १२-१३४३३-३६). नवपदक्षमाश्रमणदान विधि, सं., गद्य, आदि (-); अंतिः भावोत्सर्गतपसे नमः, पद-९, अपूर्ण, १५९२२. गौतमस्वामी रास व अष्टक, संपूर्ण, वि. १९०२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे २, जैदे., (२५x१३, १४४२५-२८). १. पे. नाम गौतमस्वामी रास, पृ. १अ ५अ. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंतिः विजयभद्र कवियण भणे ए गाथा - ६१. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम गौतमस्वामी छंद, पृ. ५अ ५आ. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेश्वरकेरो शिष; अंति: गीतम तुठे संपति कोड, गाथा ९. १५९२५. सारस्वत व्याकरण की दीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१२, ले. स्थल, जिदुवारा प्रले. य. भवानीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१४.५, १५X३४-३९). " सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नमोस्तु सर्वकल्याणपद; अंतिः प्रभुचंद्रकीर्त्तिः, वृत्ति - ३, प्र. ७०००. १५९२८. श्लोक संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (२) = ६, जैदे., (२५X१६, १९x२३-२७). लोक संग्रह जैनधार्मिक, सं., पद्म, आदि: (अपठनीय); अंतिः (अपठनीय), अपूर्ण. लोक संग्रह जैनधार्मिक- बालावबोध", मा.गु., गद्य, आदि (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), अपूर्ण. १५९२९. नवस्मरण, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पू. वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है., ले. स्थल. पठ. मु. भगतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४X१३, १६-२२X३१-३९). गवाडाग्राम, नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं हवइ; अंतिः जैनं जयति शासनम्, प्रतिपूर्ण. १५९३०. नेमनाथ तपकल्याणक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैवे. (२६.५x१३.५, १५-१७X३६-४४). नेमजिन तपकल्याणक, मु. सुनंदलाल, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: अरि गुरु गणधर देव; अंति: सुनंदलाल ० नेम जिनंद, गाथा ४२. १५९३१. अंजनासती रास, संपूर्ण, वि. १९०६ आश्विन शुक्ल, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले. स्थल, पीसागण, प्रले, ऋ. उत्तमचंद; पठ. श्राव. जसराज वछराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१४, १६-१८X३७-३९). जैदे., अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: शील समो वड को नही; अंति: चालसी सीता सबंध तो, गाथा - १५७. (२७X१४, १५९३२. बुद्धिसागर, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्रले. रामधन लहीआ, प्र.ले.पु. सामान्य, १२x२९-३५). बुद्धिसागर, आव. संग्रामसिंह नरदेव सोनी, सं., पद्य, वि. १९४०, आदिः श्रीवीतरागाय मोठ; अंति: ग्रंथमेतमलीलिखत्, तरंग-४, ग्रं. ५०२. For Private And Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ 19 १५९३३. तपविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैवे. (२७४१३, १५-१७४२३-४०). तपविधि संग्रह, मा.गु., सं., गद्य, आदि: अनागत चोवीसी कल्याणक; अंतिः आरंभादिकमां जैयणा. १५९३४. जीरणसेठ स्तवन व औषदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२७१३.५, १२x२६-३३). १. पे. नाम. जीरणसेठजी स्तवन, पृ. १अ - १ आ. महावीरजिन पारणाविनती स्तवन- जीरणसेठभाव, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (१) जीरणसेठजी भावना भावे, (२) चोमासी पारणो आवे; अंतिः शुभवीर वचनरस गावे रे, गाथा-८. २. पे नाम औषध संग्रह, पृ. १आ-६आ. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १५९३६. कुम्मतीउत्थापण चर्चा संपूर्ण, वि. १९१० पौष शुक्ल १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले. स्थल. कृष्णगड, प्रले. सुखलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१३.५, ९४३४). ढूंढकमत कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहिं., गद्य, आदि: ढुंढियो कहे हुं; अंतिः पन्नत्तीए बुच्छं. " १५९३७. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. विशेषत श्रावकतणे धर्मे。 से शुरुआत., जैदे., (२६.५x१४, १४-१५X३५-३८). ३१७ श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावक तणाइ; अंति: मिच्छामि दुक्क. १५९४०. वृद्धिघंटाकर्ण कल्प, अपूर्ण, वि. १९४७, भाद्रपद कृष्ण, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ११-५ (५ से ९) = ६, ले. स्थल, अजमेर, प्रले. श्राव. वृधीचंद नथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१३.५, १०x३२). घंटाकर्ण कल्प, मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रणम्य गिरिजाकांत; अंति: क्षमस्व परमेश्वर, अपूर्ण. १५९४१. महावीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२७१३.५, ७-८X१८). महावीरजिन स्तवन- पंचकल्याणक मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि शासननायक शिवकरण बंदु अंतिः रामविजय० अधिक जगीसए, ढाल ३. " १५९४२. (+) नंदीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, " जैवे., (२७४१३.५, ६x४०-४३). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: (-), अपूर्ण. नंदीसूत्र - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि नंदी कहतां आणंदनो; अंति: (-), अपूर्ण. १५९४३. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९१६ आश्विन शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. भावनगर, पठ. मु. भावविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये., (२७४१४, १६-१८४३३-३८). For Private And Personal Use Only जिनस्तवनचीवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि जगजीवन जगवाल्हो; अंतिः तुं जीवजीवन आधारो रे, स्तवन- २४. १५९४४. गौतमस्वामी रास व पद, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-१ ( १ ) =५, कुल पे. ५, ले. स्थल, करेडा, जैदे., ( २६.५४१४, १०X२४). Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३१८ www.kobatirth.org १. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. २अ-४अ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा - ३ अपूर्ण से हैं., पे. वि. इस प्रति में रचनावर्ष १८७६ दिया गया है जो गलत प्रतीत होता है. ऋ. रायचंद, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: (-); अंति: गोतमसांमीमां गुण घणा, गाथा - १४, पूर्ण. २. पे नाम, साधारणजिन गीत, प्र. ४आ-५अ. १५९५२. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुहिं., पद्य, आदि: साधु सुपात्र बडे; अंति: अजर अमर पद पाउंगा, गाथा - १०. ३. पे. नाम. भक्ति पद, पृ. ५-५आ. गोरखनाथ, मा.गु., पद्य, आदि: कांइ वावु कासी जीम; अंति: भांग लीन गाव गोरखनाथ, गाथा - ६. ४. पे. नाम. कलयुग पद, पृ. ५आ-६अ. मा.गु., पद्य, आदि: छपे कलजुग आये वरती; अंति: लगाव तोइ वताव टोटाह, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६अ - ६आ. मीयाराम संत, मा.गु., पद्य, आदि: हंसातो वासीरह कउवा; अंतिः संगत यसी कर रे, गाथा-३, १५९४५. श्राद्धपाक्षिकादि अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. ऋ. कल्याणचंद्र; पठ. श्रावि. पुतली बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पत्रांक १२ से २१ है. प्रारंभिक ११ पत्र तक कोई और कृति होनी चाहिये जो इस प्रत में नहीं है. उपलब्ध पत्र में प्रस्तुत कृति सम्पूर्ण है. अतः इसे क्रमशः पत्र नं. देकर सम्पूर्ण प्रत बना दिया गया है., प्र. ले. श्रो. (३०६) पोथी मे मेहनत करी, जैदे., ( २६.५X१४, ११-१३X२५-२८). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (१) नामि दंसणंमि०, (२) विशेषतः श्रावक तणाइ; अंति: पक्षदिवस मांहि. १५९४८. (०) धनाशालिभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १९३४, फाल्गुन शुक्ल, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले. स्थल, छबडा, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (६२०) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., ( २६x१४.५, ११-१३X३०-३२). (+) १५९४९. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८८३, कार्तिक शुक्ल, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३३, ले. स्थल, वलाद, प्रले. मु. खुसालरत्न (गुरु मु. शिवरत्न, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७X१४, १४-१५X३४-३९). पट्टावली चौरासीगच्छीय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमान स्वामी; अंतिः नगरे दिवांता, "" १५९५१. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २७, जैये. (२६.५x१४.५, ६ १७४३५-३७). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहंताणं० पंचिद अंतिः वोसिरियं० मएगहियं श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत विहरमाण माहरो; अंति: निश्चलमनइं करी. श्रीपालचरित्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू. वि. गाथा - १२३ तक है., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१४, ५४४६). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, बि. १६७८, आदि: सासणनायक समरीई; अंति: मनवंछित फल लहियेजी, डाल- २९, गाथा ५१०. For Private And Personal Use Only सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पच, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाई झायित; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सिरिसिरिवाल कहा- अवचूरि, मु. हेमचंद्र, सं., गद्य, आदि ध्यात्वा नवपद; अंति (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३१९ १५९५३. प्रश्नोत्तर, पूर्ण, वि. १९१४, कार्तिक कृष्ण, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, पू.वि. प्रश्न १ से १४ नहीं है., ले.स्थल. पेथापूर, प्रले. मु. केशरचंद; पठ. श्राव. हरचंद निहालचंद पारेख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सुविधिजिनप्रसादे., प्र.ले.श्लो. (६३६) यादृशं पुस्तके दृष्टा, (६९१) जले रक्षेत् स्थले रक्षेत्, जैदे., (२८.५४१४.५, १६-१७X४२-४९). प्रश्नोत्तरमाला, ग. विमलविजय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: छै ते प्रिछज्यौ, पूर्ण. १५९५५. प्रतिक्रमणगर्भहेतु, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२८.५४१४, १२४४३-४५). प्रतिक्रमणगर्भहेतु, संबद्ध, आ. जयचंद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, वि. १५०६, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: (-), अपूर्ण. १५९६२. (+) श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७-७(१ से ७)=१०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., इरियावही प्रतिक्रमण से उजिंतसियलसिहरे तक पाठ है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१३.५, ३-४४२२-२८). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १५९६३. जीवविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०६, श्रावण शुक्ल, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ.८, प्रले. मु. गोरधन (नैणावलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१४, १०४२४-२७). जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: सरसतीजी वरसती वचन; अंति: विजय पभणे आनंदकारी, ढाल-९. १५९६५. (+) अनुपानमंजरीसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१२-१९१३, मध्यम, पृ.७, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. पुण्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७७१३, ८४४१). अनुपानमंजरी, आ. विश्रामाचार्य, सं., पद्य, वि. १८४३, आदि: यस्य ज्ञानमयी; अंति: कृतवान ग्रंथमुत्तमं, समुद्देश-५, (वि. १९१२, आश्विन शुक्ल, २, ले.स्थल. नागोर) अनुपानमंजरी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे प्रभुनी ज्ञानमयी; अंति: उत्तम ग्रंथ प्रतइं, (वि. १९१३, चैत्र शुक्ल, १५) १५९७०. (+) नवतत्त्व व सवैया सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७७, आषाढ़ कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, ले.स्थल. राधणपुर, प्रले. पं. मानविजय गणि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. चिंतामणि पार्श्वनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२८.५४१३.५, ३४३१-३३). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सहटबार्थ, पृ. १आ-११अ. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४८. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीश्रावक नवतत्त्व; अंति: समझवा ए नाम छई. २. पे. नाम. सवैया संग्रह सह बालावबोध, पृ. ११आ. सवैया संग्रह , मा.गु., पद्य, आदि: अली आय खरी सन्मुख; अंति: कही कसू बोलीबी नाही, गाथा-१. सवैया संग्रह-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: एकदा समे द्वारिका; अंति: ३२ हजार राणी मुकी. १५९७२. दंडक विचार व जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२७.५४१३.५, १०-११४३४-३७). For Private And Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. दंडकविचारविज्ञप्ति, पृ. १आ-३आ. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४६. २.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ३आ-६अ. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीर नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२. १५९७३. स्वाध्याय, स्तवन, उपधानविधिआदि, अपूर्ण, वि. १८५६, श्रेष्ठ, पृ. १०३-७४(१ से २८,४६ से ४७,५० से ७०,७७,८१ से १०२)=२९, कुल पे. १७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्रले. गलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४१३, १५४३८-४५). १.पे. नाम. योगपावडी, पृ. २९अ-३०अ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-२४ अपूर्ण से हैं. गोरखनाथ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहे० सोई परमपद पावें, गाथा-६९, अपूर्ण. २. पे. नाम. चंद्रावति स्वाध्याय, पृ. ३०आ-३१अ. चंद्रावतीभीमसेन सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जस मुख सोहें सरसति; अंति: विवेकहर्ष भजो ___जगदीस, गाथा-२१. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन आरती-गोडी, पृ. ३१अ. सुजान, मा.गु., पद्य, आदि: पहेंली आरती अरीहत; अंति: गोडीजिन आरति गाई. गाथा-११. ४. पे. नाम. दानमहिमा दूहो, पृ. ३१अ. मा.गु., पद्य, आदि: धर्मलाभ जइ उच्चों ; अंति: दिन दिन दोलति थाय, गाथा-१. ५. पे. नाम. ज्ञानपच्चीसी, पृ. ३१आ-३२अ. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: सुरनर तिर्यग जग जोनि; अंति: कौ उदै करण के हेत, गाथा-२५. ६. पे. नाम. फूरकां वीचार, पृ. ३२अ. ___ अंगस्फुरण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मांथो फूरकें तो; अंति: फूरके तो चालवू थाइं. ७. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ३२अ-३२आ. मु. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: माहरा आतमराम किणे; अंति: परमानंद पद पास्यूं, गाथा-७. ८. पे. नाम. अध्यात्मबत्रीसी, पृ. ३२आ-३३आ. __ जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: सुध वचन सदगुरु कहें; अंति: एह तत लहि पावे भवपार, गाथा-३३. ९. पे. नाम. ध्यानबत्रीसी, पृ. ३३आ-३४आ. श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, आदि: ग्यानसरूप अनंतगुन; अंति: यथा सकति परवान, गाथा-३६. १०. पे. नाम. शीखामण स्वाध्याय, पृ. ३४आ-३५आ. औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमीजे चरण; अंति: गर्भावासे न अवतरे, गाथा-२५. ११. पे. नाम. आदिजिन नमस्कार, पृ. ३५आ. मु. धनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेत्रुजें ऋषभ; अंति: सो धनहर्ष मनरंग, गाथा-१२. १२. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, पृ. ३६अ-४१अ. For Private And Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३२१ उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: आणा सिर वहेस्येजी, ढाल-७, गाथा-१४८. १३. पे. नाम. सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन-३५० गाथा, पृ. ४१आ-४९आ, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिब; अंति: (-), अपूर्ण. १४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ७१अ-७१आ, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-२१ से हैं. जिनगुण स्तोत्र, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: वसुननामा, गाथा-३२, अपूर्ण. १५. पे. नाम. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, पृ. ७१अ-७६आ. उपा. यशोविजयजीगणि, मा.ग.. पद्य, आदि: पापथानक पहिलंका : अंति: वाचक जस इम आखिजी, सज्झाय-१८. १६. पे. नाम. १२ भावना, पृ. ७८अ-८०आ, पू.वि. बीच के पत्र हैं. ____ मु. विजयसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १७. पे. नाम. उपधान तपविधि, पृ. १०३अ-१०३आ, पू.वि. बीच के पत्र हैं. उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १५९७४. भाष्यत्रय सह टबार्थव पच्चक्खाण के ४९ भांगा, संपूर्ण, वि. १८५९, आषाढ़ शुक्ल, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, प्रले. पं. गुलाबसागर (गुरु पं. कल्याणसागर गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२८.५४१३, ५-६४४५-५३). १. पे. नाम. भाष्य प्रकरण सहटबार्थ, पृ. १आ-१५अ. भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३. भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदवा योग्य जे; अंति: अबाधा पीडारहित. २. पे. नाम. प्रत्याख्यान ४९ भांगा, पृ. १५अ-१५आ. मा.गु., गद्य, आदि: मनइंन करुं वचने न; अंति: नही अनुमोदु नही. १५९७५. (+) श्रावक आराधना व जीवराशि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६४, भाद्रपद शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. खीचंद, प्रले. पं. दलिचंद (उपकेशगच्छ); पठ. श्राव. नारायण, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीफलवर्द्धिकामध्ये., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१२.५, १६४४८). १. पे. नाम. श्राद्ध आराधना, पृ. १अ-४आ. श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रपंपण; अंति: (१)जैनं जयति शासनं, (२)मासजावज्जीवं वा कुरु, अधिकार-५. २. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. ४आ-५आ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: पापथी छुटे तत्काळ, गाथा-३५. १५९७६. प्रायश्चित विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२९x१३, १३४३८-४०). श्रावक आलोयणा विधि, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं जिनें; अंति: क्षमाकल्याणसाधुना. For Private And Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५९७७. रत्नसार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२८x१२, १२X४०). रत्नसार संग्रह, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: हवें पल्योपमनो; अंति (-), अपूर्ण, १५९७८. सौभाग्यपंचमीदेववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९०४ पौष शुक्ल १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. पालिताणां, प्रले. प्रेमचंद जेठाचंद भोजक; पठ. पंन्या. कल्याणविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२९x१२, १०X३८-४०). ज्ञानपंचमी पर्व देववंदन विधि, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्म, आदि: (१) प्रथम बाजठ उपरि तथा, (२)श्रीसौभाग्यपंचमी; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज. १५९८०. उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९७१, चैत्र शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ४२१, प्र. वि. त्रिपाठ. कुल ग्रं. १६२५५, जैदे., (२८x१२.५, १२४५६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स; अंति: पुव्वरिसी एवं भासंति, ग्रं. २०००. अध्ययन- ३६, उत्तराध्ययनसूत्र-अधिरोहिणी वृत्ति, मु. भावविजय, सं., गद्य, वि. १६८९, आदि: ॐ नमः सिद्धि; अंतिः दिशतु मंगलैकगृहम् ग्रं. १४२५५. १५९८१. श्रावकाचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२९x१२.५, ९-१०X३५-३९). श्रावकाचार, आ. देवसेन, अप., पद्य, आदि: णवकारे प्पिणु पंच; अंतिः सुणइ सो पावड़ सिउ जाय, गाथा - २२४. १५९८२. दंडक व आयुष्यविचार, संपूर्ण, वि. १८२४, श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे २, जै, (२९x१२.५, १२X४३-४४), १. पे. नाम. ५६३ जीवभेदानां गत्यागति विचार, पृ. १-२१अ. २४ दंडक ५६३ जीवभेद, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक १ लेस्सा २ ठिति; अंति: १११भेदा देवेषु यांति. २. पे. नाम. आयुष्य विचार *, पृ. २१अ. मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्यनउ वरस १२५; अति: संघनउ वरस ४८. १५९८३. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४० आश्विन शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ६७, ले. स्थल. दिली, प्रले. गुणाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२९x१२.५, ४-५X३४-३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, बी. रवी, आदिः धम्मो मंगलमुकि; अंतिः मुच्चइ ति बेमि, अध्ययन - १०, चूलिका २. दशवैकालिकसूत्र - टवार्थ, पुहि., गद्य, आदि: (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२) दुर्गति पडिता जीव; अंतिः प्रकार से वि० कहौ हो. १५९८६. दोढसोकल्याणक मौनइग्यारस स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैवे. (२९x१२.५, १२४३३). " मौनएकादशीपर्व स्तवन- १५० कल्याणक, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: धुरि प्रणमुं जिन अंति: जसविजय जयसिरि लही, ढाल १२. For Private And Personal Use Only १५९८७. (+) कर्मविपाकादि कर्मग्रंथ सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे ४, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२९x१३, ११-१२X३६-३७ ). १. पे. नाम. कर्मविपाकसूत्र सह अवचूरि, पृ. १आ-४अ. Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३२३ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्रियाष्टप्रतिहार्य; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ४अ-६अ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ६अ-८अ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. ४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ८अ, अपूर्ण, पू.वि. गाथा ७ तक है. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५९८९ (+) जीवविचार सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६,ले.स्थल. पत्तण, प्रले. पं. धर्मचंद्र गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२८.५४११.५, ४४४३-५०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टीका, सं., गद्य, आदि: अस्यां गाथायां पूर्व; अंति: तस्मादिति गाथार्थः. १५९९१. चंदनमलयगिरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. ऋ. दोलतराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४१३, १५४३५). चंदनमलयागिरी चौपाई, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: सुख संपति दायक नमु; अंति: पामे बहु भोगविलास, ढाल-२२. १५९९९. पाखीसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, जैदे., (२९x१३, ११४३३-३४). १. पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. १आ-१४आ. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पाक्षिक क्षामणासूत्र, पृ. १४आ-१५अ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: नित्थारग पारगा होह, सूत्र-४. १६०००. उपधान विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२९x१३.५, १२४३९). उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहिलुं नवकार-; अंति: अंतिम त्रीजी वाचना. १६००३. स्वरोदयसार, संपूर्ण, वि. १९३९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदे., (२८.५४१३, ९४३०-३६). स्वरोदयसार, मु. कपुरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०७, आदि: नमो आदि अरिहंत देव; अंति: नंद चंद चित्त धार, गाथा-४५३. १६००५. (+) धन्यचरित्रबालावबोध, पूर्ण, वि. १९५४, आश्विन अधिकमास शुक्ल, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५९५-१(५१४)=५९४, ले.स्थल. भावनगरबंदर, प्रले. श्राव. चुनिलाल मेघाजी; पठ. म. मोहनविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे, (६४९) जब लग मेरू थीर रहे, जैदे., (२९x१३.५, ११४३५-३८). For Private And Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची धन्य चरित्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)स्वस्ति श्रीसुखद, (२)हिवे श्रीधन्नाचरित्र; अंति: मूक्तिये पिण जासे, पूर्ण. १६००६. अक्षयनिधितप स्तवन व विधिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ४, जैदे., (२९x१३, ११-१२४४१-४४). १. पे. नाम. अक्षयनिधितपस्तवन, पृ. १आ-४अ. __पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: श्रीशंखेश्वर शिर; अंति: नाचवा घर बारणे, ढाल-५, गाथा-५१. २.पे. नाम. अक्षयनिधितपखमासमण दूहा, पृ. ४अ-५अ. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर संखेश्वर नमी; अंति: होज्यो ज्ञानप्रकाश, गाथा-२६. ३. पे. नाम. अक्षयनिधितपगर्भित पार्श्वजिन, पृ. ५अ-५आ. पार्श्वजिन स्तवन-अक्षयनिधितप गर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: तपवर कीजे रे अक्षय; अंति: पद्मविजय फल लीधो, गाथा-१२. ४. पे. नाम. अक्षयनिधितप विधि, पृ. ५आ-६आ. मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण वदी चौथने; अंति: चित्रामण करवा जोईइ. १६००७. पाशाकेवली, नाडीपरीक्षा व लवंगादिक क्वाथ, संपूर्ण, वि. १८६८, श्रावण शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ३, जैदे., (२९x१३.५, ११-१२४२९-३१). १.पे. नाम. गर्गर्षिभाषितांपाशाकेवली, पृ. १आ-१०अ, वि. १८६८, श्रावण शुक्ल, ३, सोमवार. पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कुष्मां; अंति: सत्योपासक केवली. २. पे. नाम. नाडी परीक्षा, पृ. १अ. नाडीपरीक्षा, सं., पद्य, आदि: अंगुष्टमूले हस्तस्य; अंति: जीवितं दुर्लभं भवेत्, श्लोक-७. ३. पे. नाम. लवंगादिक क्वाथ, पृ. १अ, पे.वि. श्लोकानुक्रम उपलब्ध नहीं है. सं., पद्य, आदि: लविंग क्षुद्रा दशमूल; अंति: लविंगादिक नामधेया. १६००८. अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १९६२, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, गुरुवार, जीर्ण, पृ. २६, ले.स्थल. मुंबई, प्रले. श्राव. हरगोवन मोतीराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२९.५४१३.५, १२-१४४३१-३७). बृहत्शांतिस्नात्र विधि संग्रह, म. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु.,सं., गद्य, वि. १८१४, आदि: प्रणम्य पार्श्वपादा; अंति: (१)साधर्मिने जीमाडे, (२)शोध्यं हि बुधैः वरैः. १६००९. (+) सज्जनचित्तवल्लभ कथा सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०६, शशिग्रहकार्तिकमुख, चैत्र, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मु. मंगल; पठ. मधुसूदन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वर्षसूचक संख्यावाची शब्दानुसार "शशिग्रहकार्तिकमुख" का १९०६ होता है परन्तु प्रतिलेखक ने १८०६ दिया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२८x१३.५, ६४२८-३०). सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: नत्वा वीरजिनं जगत्त्; अंति: संसार विच्छित्तये, श्लोक-२५. सज्जनचित्तवल्लभ काव्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करकै श्रीवीर; अंति: ये समुद्र को तरैगा. For Private And Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १६०१२. हंसराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५३-१ (४४) - ५२, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल ४४ की गाथा - ७ अपूर्ण तक हैं., जैवे. (२७४१३, ११x२५-२८). "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि आदिसर आदे करी चोवीसे; अंति: (-), अपूर्ण. १६०१३. (+) सिद्धचक्रयंत्रोद्धारपूजनविधि, संपूर्ण, वि. २१वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२+३ (१ से ३) = ३४, ले. स्थल, सुरत, प्रले. श्राव. फकीरचंद नगीनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, वे. (२८x१३.५, ७८४३१-३४). सिद्धचक्रयंत्रोद्धार पूजनविधि, सं., गद्य, आदि: विधि महोत्सवे; अंति: को जाणइ सयल सब्भाव. १६०१६. भंगप्रस्तार व २४ जिन के नामगण आदि का यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२८x१३, ११x६२-६५). १. पे नाम, भंगप्रस्तार, पृ. १२-६अ, - गांगेयभंगप्रस्तार, गांगेय, मा.गु., सं., को., आदि: एक संयोगे ७ भांगा; अंतिः षष्ठ ३९२ सा. ६७. २. पे नाम, चौवीसतीर्थंकर के नाम-गण-योनि-नक्षत्र राशि-लंछनयंत्र आदि, पृ. ६आ. चौवीसतीर्थंकर के नाम - गण - योनि - नक्षत्र - राशी - लंछनयंत्र आदि, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). १६०१७. सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैवे. (२७४१२, १२४३६). १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत मुखकज वासिनी; अंति: सकल कर जोडि०- सुरनर, ढाल - १७. १६०१८. नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १८७८, भाद्रपद कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२८x१२.५, १२-१३X२७). नवपद पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: श्रीगोडी पासजी नीति; अंति: उत्तमविजय जगीस रे, ढाल १०. १६०२०. पूजन प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैवे. (२८.५x१३, ९३०-३२). 19 पूजन प्रकरण, मा.गु., प+ग, आदि: करम घात हनि विश्व अंतिः चढाइ स्वाध्याय करै, १६०२१. सीमंधरजिनस्तवन सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५० - २ (२ से ३ ) = ४८, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. गाधा - २२७ तक हैं. जैये. (२८.५४१२.५, ३x४०-४२). , सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन- ३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिब; अंति: (-), अपूर्ण. ३२५ सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन-३५० गाधा बालावबोध, क. पद्मविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८३०, आदिः (१)पार्श्वनाथपदद्वंद्वं, (२) ए स्तवनमां प्राये; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only १६०२२. . (+) तत्त्वतरंगिणी सह स्वोपज्ञ वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९५३, श्रेष्ठ, पृ. २९, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें - त्रिपाठ., जैदे., (२८x१३, १- ३X३९-५०). तत्त्वतरंगिणी, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, वि. १६१५, आदि: नमिऊण वद्धमाणं तित्थ; अंतिः रइ तत्ततरंगिणी जयउ, गाथा - ६२. तत्त्वतरंगिणी - स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्या; अंतिः सागररतिरिति गाथार्थः, ग्रं. ११०२. Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६०२३. श्राद्धपाक्षिक अतिचार व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, जैदे., (२८x१३, ११४३०). १.पे. नाम. श्राद्धपाक्षिकादिअतिचार, पृ. १आ-१०आ. श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमिदंसणंमि०; अंति: पक्षदिवस माहि. २.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १०आ-११अ. मु. मोहन *, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतलडी बंधाणी रे; अंति: मोहन कहे मनरंग जो, गाथा-५. १६०२४. अध्यात्मसार प्रश्नोत्तर, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, पू.वि. ४८२-प्रश्नोत्तर तक लिखा हैं., जैदे., (२८x१३, १७-२७४४४-४९). अध्यात्मसार प्रश्नोत्तर, मु. अमीकुंअर, मा.गु., गद्य, वि. १८८२, आदिः (१)चेतःकैरव कौमुदी सहचर, (२)जय भगवान त्रिलोक्य; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १६०२५. हरिबलऋषि चौपाई, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रावण कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ३६, ले.स्थल. सूरत, प्रले. ग. वल्लभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२.५, १३४४०). हरिबल रास, मु. जितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखदाई समरु सदा; अंति: पूरे शंखेसर आसो रे. १६०२६. स्तवनचौवीसी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१३(१ से १३)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., स्तवन-४ गाथा-१ से स्तवन-५ गाथा-३ तक है., जैदे., (२७.५४१२.५, १३-१५४३५-४२). स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. स्तवनचौवीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १६०३१. (+) जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८९१, आश्विन कृष्ण, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५०-१(२२१)+१(७१)=३५०, ले.स्थल. लाकडीया, प्रले. पं. नायकविजय; पं. हेतविजय गणि; राज्यकाल रा. देवाजी जीवणजी जाडेजा, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. जीवाभिगम व विपाकसूत्र दोनो की कीमत रकम ३६ देकर प्रत खरीदने का उल्लेख है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १४०००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, (१९) यावत् लवणसमुद्रो, (१११) भग्नपृष्टिकटीग्रीवा, (३९५) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, (४६२) मंगलं लेखकस्यापि, (६९५) जा लगि मेरु अडग है, (६९६) स्मार स्मारं भारतीपादयुग्मं, जैदे., (२७४१२.५, ६४३६-४०). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० णमो; अंति: सव्वजीवा पण्णत्ता, प्रतिपत्ति-१०, ग्रं. ४७००, पूर्ण. जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. जिनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७७२, आदि: (१)प्रणम्य ज्ञानविज्ञान, (२)अरिहंतने ___नमस्कार; अंति: संपूर्ण थई, पूर्ण.. १६०३२. ताजिकसारवृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदे., (२८x१२.५, १६-१८४३६-३९). ताजिकसार-कारिका टीका, ग. सुमतिहर्ष, सं., गद्य, वि. १६७७, आदि: श्रीसूर्यचंद्रारबुधे; अंति: रचिता तनुताच्चिरं. १६०३४. उपासकदशांगवृत्ति, संपूर्ण, वि. १९६६, श्रावण शुक्ल, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. स्थंभपूर, प्रले. कुबेरदास पटेल (पिता अन्य. रणछोडदास पटेल), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४१२.५, १५४५१-५४). उपासकदशांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १११७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: कुर्वतां प्रीतये मे, ग्रं. १०१६. For Private And Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३२७ १६०३६. भुवनदीपक सह टीका, संपूर्ण, वि. १८५५, भाद्रपद कृष्ण, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र.वि. त्रिपाठ. कुल ग्रं. २००, जैदे., (२८x१२.५, २-५४३३-५४). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः, श्लोक-१७४. भुवनदीपक-टीका, सं., गद्य, आदि: सर्वान् देवान्नमस्कृ; अंति: तत्रयोग स्मृतो बुधैः. १६०३७. षट्पुरुच चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्रले. छबील वीरचंदजी व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२.५, १३-१४४३५-४५). षट्पुरुष चरित्र, ग. क्षेमंकर, सं., प+ग., आदि: श्रीअर्हतश्चतुस्; अंति: श्रीमत्तीर्थंकरा, ग्रं. ७६०. १६०३८. (+) निसीहजयणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०३, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६२, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा टबार्थ अपूर्ण. उद्देश ५ अपूर्ण तक है., प्रले. श्राव. प्रेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में कोष्ठक अंतर्गत प्रायश्चित की विधि दी गयी है., जैदे., (२८x१२.५, ७-८४२७-३३). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जे भिखु हत्थ कम्म; अंति: पसिस्सोवभोजं च, उद्देशक-२०. निशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे कोई भि० अणगार; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १६०३९. दसविधयतिधर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पठ. सा. सखरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १३-१४४३२-३६). १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतलता वन सींचवा; अंति: सुजस लीला अनुभवई, ढाल-११, गाथा-१३६. १६०४०. अष्टादशपापस्थानकवर्जन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. वडनगर, जैदे., (२७४१२, १०-११४३६-४०). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानक पहिलू का; अंति: सेवक वाचकजस इम आखेजी, सज्झाय-१८. १६०४३. ढोलामारुचौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-३(१ से ३)=१४, पृ.वि. गाथा-९५ तक नहीं है., जैदे., (२६.५४१२, १७-१९४५०-६४). ढोलामारु चौपाई, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: (-); अंति: इम कहे० पावि संपदा, अपूर्ण. १६०४४. धनंजयी नाममाला, संपूर्ण, वि. १८२०, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. मु. श्रीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२, १२४३८-४२). धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: तन्नमामि परं ज्योति; अंति: शब्दाः समुत्पीडिताः, श्लोक-२०८. १६०४६. चंद्रलेहा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदे., (२६.५४१२, १७४३५-४९). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरस्वति भगति नमी; अंति: त्रिभुवनपति हुवे तेह, ढाल-२९. १६०४८. (+) रत्नाकरपच्चीसी सह टबार्थ व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८८०, पौष कृष्ण, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. दमण, प्र.वि. श्रीऋषभजिन प्रसादात्., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२७.५४१२, ४४३०-३३). For Private And Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे नाम. रत्नाकरपचीसी सह टवार्थ, पृ. ९अ ५आ. रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रेयः श्रियां मंगल; अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये श्लोक २५. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः श्रेयः कहितां मंगलिक; अंति: एहवु पीण नाम जाणवु. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, पृ. ५आ. सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). १६०४९. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, जैवे. (२७४१२, ३x२३-२६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुबसमुद्दाओ, गाथा - ५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन क० स्वर्ग; अंति: क० सूत्रसमुद्र थकी. १६०५०. रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रावण कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले. स्थल. रेवाडी, प्रले. प्राणसुख तिवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६१२.५, १३ - १६५०-५५). रत्नपाल रास-दानाधिकार, मु. कविवण, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: श्रीऋषभदेव जिनवर अंतिः वरल्यो जय जयकारजी, खंड-३, ढाल ३६. १६०५१. व्रतविधान, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२७१२.५, १२५३३-३६). , व्रतविधान, मा.गु., सं., गद्य, आदि: अथ शील कल्याण उपवास; अंति: उवज्जेजिणों. १६०५३. दीवाली देववंदन व जिनचैत्य स्तुति, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैवे. (२७४१२, ११४३०). १. पे नाम, दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, प्र. ५. दीपावली पर्व देववंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्म, आदि: वीर जिनवर वीर जिनवर अंतिः प्रगटे सकल गुण , खाण. २. पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र - जिनभवन स्तुति, पृ. ५अ. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: अवनितलगतानां कृत्रिम; अंति: भावतोहं नमामि श्लोक - १. १६०५४. स्नात्रपूजा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., ( २६.५४१२, १३४३९-४१). For Private And Personal Use Only स्नात्रपूजा, मा.गु., पद्य, आदि: मुक्तालंकारविकारसार; अंतिः उतारी राजा कुमारपाले, गाथा- ६४. १६०५५. चौवीसदंडक त्रीसद्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल. वीरमगाम, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७१२.५, ९-१०X३५). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नाम द्वार बीजो; अंतिः जीव अनंतगुणा अधिक, १६०५६. कल्पसूत्र वाचना ३ सह बालावबोध, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जीवे. (२५.५x१३, १३x२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. , कल्पसूत्र - बालावबोध *, मा.गु., रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १६०५८. इर्यावहिछत्रीसी व सुयदेवस्तुति, संपूर्ण, वि. १९६३ माघ शुक्ल, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २८, कुल पे. २, ले. स्थल. जामनगर, प्रले. मणीलाल लखमीचंद पांडे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे., (२८x१२.५, ११-१२४४३-४५). Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३२९ १.पे. नाम. ईर्यापथिकषत्रिंशिका कुलक, पृ. १आ-२८अ. उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: पणमिअजिणवर वीर; अंति: सिरिहीरविजय जुगपवरा, गाथा-३६. ईर्यापथिकषत्रिंशिका कुलक-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्यात्मविदं वीर; अंति: धर्मधियेति, ग्रं. ७५५. २. पे. नाम. श्रुतदेवी स्तुति, पृ. २८अ. प्रा., पद्य, आदि: सुयदेवयाय जक्खो कुंभ; अंति: अविग्घ लिहतस्स, गाथा-१. १६०५९. श्राद्धपाक्षिकादिअतिचार, नवकारस्तोत्र व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९३३, वैशाख शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ४७, कुल पे. ३, ले.स्थल. पालि, प्रले. पोखरदत्त ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १२x२८-३०). १. पे. नाम. श्राद्धपाक्षिकादिअतिचार, पृ. १अ-७अ. श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावक तणाइ; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. नमस्कारमहामंत्र सज्झाय, पृ. ७अ-७आ. ___ मु. गुणप्रभुसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: प्रभुसुंदर सीस रसाल. ३. पे. नाम. पंचपरमेष्ठिगुणगर्भितजिन चैत्यवंदन, पृ. ७आ. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बार गुण अरिहंतदेव; अंति: नय प्रणमै जग सार, गाथा-१. १६०६०. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७४१२, ११४३५). महावीरजिन स्तवन-सत्यावीसभवगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति दिओ मति; अंति: कहे धन मुझ एह गुरू, गाथा-८३. १६०६१. तेतीस को थोकडो, संपूर्ण, वि. १९३०, श्रावण कृष्ण, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. वदरख, प्रले. मु. गुलाबचंद; पठ. मु. पूर्णचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १९-२०४५२-५५). ३३ बोल थोकडो, मा.गु., गद्य, आदि: एक संजय एक असंजम; अंति: बेसे तो आसातना लागै. १६०६२. वीरजिन, चतुर्विंशतिजिन व ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३५, फाल्गुन कृष्ण, १२, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ३, ले.स्थल. उजेण, जैदे., (२७४१३, ११-१२४३४-३७). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-८आ. मु. माणिकरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १६२८, आदि: सरसति सरसति सामिण; अंति: सरण राखे आपणे, गाथा-१३७. २. पे. नाम. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, पृ. ८आ-१०अ. मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंति: तास सीस प्रणमु आणंद, गाथा-२९. ३. पे. नाम. रीषभजिन स्तवन, पृ. १०अ-११आ. शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडी विनवूजी; अंति: भव भव तोरी सेव, गाथा-३१. १६०६३. षष्टिशतप्रकरण सह संस्कृतछाया, संपूर्ण, वि. १९५१, पौष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. पाटण, प्रले. कीस्नदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७X१२.५, ४-१२४३८-४६). For Private And Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भांडागारिक, प्रा., पद्य, आदि: अरहं देवो सुगुरु; अंति: पठंतु जाणंतुव्वंपि, श्लोक-१६१. षष्टिशतक प्रकरण-टीका, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वज्ञदेव सुसाधु; अंति: गच्छंतु मोक्षम्. १६०६४. पचीस को थोकडो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५४१३, १७-१८४२८-३२). २५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (१)पहली बोलें गत च्यार, (२)नरकगति १ तिर्यंचगति; अंति: (-), अपूर्ण. १६०६५. चौमासी देववंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सम्मेतशिखर स्तवन गाथा-४ तक हैं., जैदे., (२७७१३, ११-१२४२९-३३). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: (-), अपूर्ण. १६०६७. बारभावनानो थोकडो, संपूर्ण, वि. १९४१, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. श्राव. हकमचंद डोसाभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७७१३, १५४४३). १२ भावना थोकडो, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम बार भावनानां; अंति: निराबाध० सुख पामसे. १६०६८. पाक्षिकसूत्र, खामणा व पाक्षिकादितप, संपूर्ण, वि. १८१६, कार्तिक कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ३, प्र.वि. सं.१८१६ की प्रति उपरसे लिखी गई प्रत., जैदे., (२६.५४१३, ११४५४-५८). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-९आ. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पाक्षिक क्षामणासूत्र, पृ. ९आ-१०अ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि, सूत्र-४. ३. पे. नाम. पाक्षिकादि तप आलापक, पृ. १०अ. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: यथाशक्ति तप पोहचाडयो. १६०६९. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९१५, वैशाख कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३५-१०(८ से १७)=२५, जैदे., (२८x१३.५, ३-१५४२४-३४). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, अपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बार गुणे सहित; अंति: प्रते मंगलीक भणी, अपूर्ण. १६०७३. शांतिचक्र पूजा, संपूर्ण, वि. १९१२, पौष कृष्ण, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. अमरलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१३, ९४२६-३१). शांतिचक्र पूजा, सं., गद्य, आदि: अर्हद्वीजमनाहतं च; अंति: कुरु कुरु स्वाहा. १६०७४. पिस्तालीस आगम गरj, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२७७१३, १३४२७-४२). पीस्तालीसआगम गणगुं, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम श्रीनंदीसूत्र; अंति: ययन उपांगसूत्राय नमः, ग्रं. २१०. For Private And Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३३१ १६०७५. महाबलमलीयासुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९५४, चैत्र कृष्ण, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२, ले.स्थल. सिंघाणा, पठ. मु. रूघनाथ (गुरु पं. मंगलसेन), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७७१३, १७-१९४३६-४०). महाबलमलयसुंदरी चौपाई, मु. भक्तविमल, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीपार्श्वनाथ; अंति: शुकलपंचमी खरी ए, खंड-४. १६०७७. होलीकथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७४, आश्विन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. आमलनेर, प्रले. मु. मोहनविजय (तपागच्छ); पठ. श्राव. नानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीगीरुआ पार्श्वप्रसादात्., जैदे., (२६४१२, ५४२६-३१). होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: ऋषभस्वामिनं मन्ये; अंति: यतो धर्मस्ततो जयः, श्लोक-६९. होलिकापर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: रुषभं कर्पूक नोमि; अंति: तेतलोज जय होवे छे. १६०७९. मेणरेहा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९०८, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. मसूदौ, प्रले. क्र. उतमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १७-१८४३६). मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: जुवां मास दारु तणो; अंति: हिरसेवग चितलाई रे, गाथा-१५३. १६०८०. भवणद्वार, संपूर्ण, वि. १९०५, आश्विन शुक्ल, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, प्रले. मु. रतनचंद ऋषि (गुरु मु. हरजीमल ऋषि); पठ. सा. राजकवर (गुरु सा. पनाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १९-२०४४२-४७). भवणद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: लोक में अलोक में जे; अंति: मोक्ष रूप शाश्वत छइ. १६०८२. (+) साधुविधिप्रकाश, अपूर्ण, वि. १८३८-१९००, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., शक्रस्तव पंचक विधि के प्रारंभिक अंश तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२.५, १४४५०-५८). साधुविधि प्रकाश, वा. क्षमाकल्याण, प्रा.,सं., गद्य, वि. १८३८, आदि: प्रणम्य तीर्थेशगणेश; अंति: (-), अपूर्ण. १६०८३. जीवविचार स्तवन, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., ढाल-९ गाथा-८३ अपूर्ण तक हैं., जैदे., (२७४१२.५, ११४३३-३६). जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीसरसती रे वरसती; अंति: (-), पूर्ण. १६०८४. अढारपापस्थानक सज्झाय, उपदेशबत्रीसी व जिनस्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, प्रले. गोविंदराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२.५, २१४४५). १.पे. नाम. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, पृ. १अ-४अ. उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थानक पहिलु कहि; अंति: सेवक वाचकजस इम आखेजी, सज्झाय-१८. २. पे. नाम. उपदेशबत्तीसी, पृ. ४अ-५अ. मु. राज, पुहि., पद्य, आदि: आतमराम सयाने तें; अंति: सदगुरु शीख सुणीजै, गाथा-३२. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ५अ. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवी तूमें वंदो रे; अंति: कहे० अरीयादेव जिणंदा, गाथा-११. १६०८५. नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैदे., (२७४१२.५, ११४२७-२९). नवपद पूजा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदि: श्रुतदायक श्रुतदेवता; अंति: पद्मविजय गुण गायो, ढाल-९+कलश. For Private And Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६०८७. चंदनबाला रास, संपूर्ण, वि. १८८४, पौष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७४१२, १७X४४). चंदनबाला चौपाई, मु. ब्रह्म, पुहिं., पद्य, आदि: मोह पिसाच वसकरणकुं; अंति: भणे० चिहु गति फंदतो, गाथा-१६०. १६०८९. वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, ?, मध्यम, पृ. १२-७(१ से ५,९ से १०)=५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७४१२, ६४३७-४०). वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १६०९०. भावसंग्रह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२६४१२.५, १४४४२-४७). भावत्रिभंगी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)जिनाधीशं नमस्कृत्य, (२)घननिवड घातियाकर्म ४; __ अंति: भव्यत्व १ अभव्यत्व १. १६०९२. जंबूकुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. १८९६, श्रावण शुक्ल, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले.स्थल. सिंघाणा, प्रले. तखसी सेवगराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, १९४४७-५६). जंबूस्वामी चरित्र, मु. पद्मचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: शारद पाय प्रणमुं; अंति: पदमचंद० गुण गाया, ढाल-५८, गाथा-१५००. १६०९३. अनुयोगद्वारसूत्र सह बालावबोध-सूत्र ३०५ से अन्त पर्यन्त, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११.५, १-६x४३-४५). अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षित, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: साहू से तं नए, प्रतिपूर्ण. अनुयोगद्वारसूत्र-बालावबोध, ऋ. मोहन ऋषि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (१)पादानविधिकुशलैः, (२)पणि समाप्त थयु, ग्रं. २०००५, प्रतिपूर्ण. १६०९६. (+) ज्योतिषसार भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८.५४१२, ११४४४). ज्योतिषसार-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: पडवा सठइग्यारस नंदा; अंति: (-), अपूर्ण. १६०९७. (+) स्तवनचौवीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९७, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ५-६x४२-४४). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: आनंदघन पदराज, स्तवन-२२. स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: शुद्ध चेतना अने आत्म; अंति: तवन एतला २२ दीसई छै. १६०९८. इकवीसप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९१२, पौष शुक्ल, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. पाटण, प्रले. नरभेराम अमुलख ठाकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२, १२४३५-३७). २१ प्रकारी पूजा, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं प्रथम जिणंद; अंति: हीरो जेम जडियो रे. For Private And Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३३३ १६१००. (+) प्रतिष्ठासार संग्रह, संपूर्ण, वि. १६३१, मार्गशीर्ष, श्रेष्ठ, पृ. २६, प्रले. आ. नेमिचंद्रदेव (गुरु आ. धर्मचंद्रदेव, सरस्वतीगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२९४१२, ११४३७-४०). प्रतिष्ठासार संग्रह, मु. वसुनंदि सैद्धान्तिक, सं., पद्य, आदि: सिद्ध सिद्धात्म; अंति: कथयन्तु महर्षयः, अध्याय-६. १६१०१.(+) संग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १६७८, कार्तिक कृष्ण, ९, शनिवार, मध्यम, पृ. ३५-४(१,१० से ११,२३)=३१, ले.स्थल. महमनगर, प्रले. मु. छाजू (गुरु मु. धर्मदास), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३२८, जैदे., (२८.५४११, ४-६x४३-५१). संग्रहणी प्रकरण, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३२८, अपूर्ण. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: केवल समुद्धात करइ, अपूर्ण. १६१०२. ध्यानविचार व वीनीतभेदविचार, अपूर्ण, वि. १८६५, श्रेष्ठ, पृ. २१-१(९)+१(५)=२१, कुल पे. २, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. कुचामण, प्रले. सा. अमरु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x११.५, १७-१९४३७-४६). १. पे. नाम. ४ ध्यान विचार, पृ. १आ-१९आ, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम आरितध्यान जीका; अंति: विषे यो अधिकार जाणवा, पूर्ण. २. पे. नाम.७ प्रकार के विनयका विचार, पृ. १९आ-२१आ. ७ प्रकार के विनय का विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ए च्यारि ध्यान; अंति: आतमाने प्राप्ति थाय. १६१०३. दशाश्रुतस्कंध-मूल, नियुक्ति व चूर्णि, संपूर्ण, वि. २०वी, ?, श्रेष्ठ, पृ. १४३, कुल पे. ३, जैदे., (२८x११, १२४३५-३९). १. पे. नाम. आयारदसा, पृ. १आ-६५अ. दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, दशा-१०. २. पे. नाम. दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति-१, ८, ९ व १० अध्ययन, पृ. ६५आ-६९आ, पू.वि. अध्ययन ८ वां पर्युषणाकल्पाध्ययननियुक्ति गाथा ५९ से शुरु किया हुआ है. दशाश्रुतस्कंधसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: वदामि भद्दबाहु; अंति: संसारमहन्नवं तरई, प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. दशाश्रुतस्कंध-नियुक्ति की चूर्णि, पृ. ६९आ-१४३आ. दशाश्रुतस्कंधसूत्र-चूर्णि#, प्रा.,सं., गद्य, आदि: मंगलादीणि सत्थाणि०; अंति: णयाणं गाथा, ग्रं. ४३२१. १६१०५. नंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८७२, मध्यम, पृ. १८-२(१ से २)=१६, पू.वि. प्रारंभिक गाथा १-४० नही है।, जैदे., (२७.५४१०, १४-१६४३२). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: से त्तं परोक्खणाणं, अपूर्ण. १६१०७. दशवैकालिकसूत्र गीत, संपूर्ण, वि. १९६२, वैशाख कृष्ण, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. फलोधी, प्रले. पं. हरिसागर; पठ. सा. देवश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४११.५, ६४१७). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धर्ममंगल महिमा निलो; अंति: सदाजी जयतसी जयजय रंग, अध्याय-१०. For Private And Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६१०९. (+) संग्रहणीसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १५११, मार्गशीर्ष, श्रेष्ठ, पृ. ४४, प्रले. ग. विनयसेन प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे., (२९.५४११.५, १७-१९X७२-८२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: सन्नि गईरागई वेए, गाथा - २७३. बृहत्संग्रहणी - टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (१) अत्यद्भुतं योगिभि ( २ ) इहाद्यपादेनेष्टदेवता; अंति: (१) वृत्तिः समर्थिता, (२) लोकानां सर्वसंख्यया, ग्रं. ३५००. १६११०. गणधरवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२९x१२, १६X५४-५७). गणधरवाद - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हवे श्रमण भगवंत; अंतिः रचे इग्यारमो गणधरवाद, १६१११. पार्श्वनाथ चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८६७, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५७० - ५३४ (१ से ५३४) = ३६, पू.वि. सर्ग ८ शलोक ६४ तक नही है।, ले. स्थल. दधीपत्र, प्रले. पं. भक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. जैदे., (२९.५X१२, ५X३८). पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १३१२, आदि (); अंतिः सहस्राण्यनुष्टुभाम्, ग्रं. ६४७४, अपूर्ण. सर्ग-८, " पार्श्वनाथ चरित्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एतलो श्लोकमान कह्यौ, सर्ग-८, अपूर्ण. १६११२. मोक्षमार्ग प्रकाश वचनिका, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४६-१ ( २८ ) - ४५, जीवे. (२९x१२, १५-१६५२-६१ ). मोक्षमार्ग प्रकाश, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९८, आदि: (१) चतुर्विंसति जिणाणं, (२) अरिहंत तारण तिरण कौ; अंतिः तथा चरण सरण श्रीकार. १६११३. (+) संग्रहणीसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५३२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले. स्थल. पत्तन, प्रले. आ. कृष्णदास (आगमगच्छ); अन्य. मु. जसराज ( अज्ञा. ऋ. धर्मसी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - प्रायः शुद्ध पाठ- पंचपाठ., जैवे. (२९.५४११.५, २-९४३७-४६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताइं ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा - २७९. बृहत्संग्रहणी - अवचूर्णी, सं., गद्य, आदि नमिक० आदी शास्त्रकार अंतिः वेदाश्च प्रागुक्ताः. प्रले. १६११४. अणुत्तरोववातियदसाणसूत्र, संपूर्ण, वि. १६७४, चैत्र कृष्ण, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. कर्णपुर, मु. मामू; पठ. सा. मथुरा; राज्यकाल रा. सलेम साह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२९x१२, ११-१३x४४-४७). अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि तेण कालेनं० नवमस्स अंतिः तहा णेयव्वं, अध्याय - ३३, ग्रं. १९२. For Private And Personal Use Only १६११५. आचारांगसूत्र, पूर्ण, वि. १६वी, ?, श्रेष्ठ, पृ. ४७, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., श्रुतस्कन्ध-२, के अध्ययन - १५ के सूत्र ५४० अपूर्ण तक है., प्र. वि. आचाराङ्गसूत्र की मात्र पहली गाथा नियुक्ति की है, बाकी पूरी प्रत में मूलपाठ ही है., जैदे., (२९.५x१२, १५-१६x४५-५२). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), पूर्ण. Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३३५ १६११६. हेतुगर्भप्रतिक्रमणविधि, पूर्ण, वि. १९वी, ?, श्रेष्ठ, पृ. २७-१(१५*)+१(१४)=२७, दे., (२९x१२, १४-१५४४२-४४). हेतुगर्भप्रतिक्रमण, संबद्ध, आ. जयचंद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, वि. १५०६, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; __ अंति: मिथ्यादुष्कृतं तस्य, पूर्ण. १६११७. शीलकुलक, अजापुत्र कथा व शुभकांता कथा, पूर्ण, वि. १५वी, ?, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(१०)=१८, कुल पे. ३, प्र.वि. जैदे., (२९.५४१२, १७७५१-५३). १. पे. नाम. शीलकुलं, पृ. १अ. शीलगुप्ति कुलक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीर भणामिह; अंति: अचिरेण विमाणवासं वा. २. पे. नाम. सत्त्वविषये अजापुत्र कथा, पृ. १अ-१४अ, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., श्लोक-४३५ अपूर्ण से ४८२ तक नहीं है. अजापुत्र कथा-सत्त्वविषये, सं., पद्य, आदि: गुणेषु सत्वमैवैक; अंति: विवशान् दिवसान्निनाय, अपूर्ण. ३. पे. नाम. सम्यक्त्वफलख्यापके सम्यक्त्वकल्पलतानाम्निकथानके हरिविक्रमचरित्रे दुगंछाकर्मोपरि शुभकांतादृष्टांत, पृ. १४अ-१९अ. शुभकांता दृष्टांत, प्रा., पद्य, आदि: अह हरि विक्कमराओ जाओ; अंति: कायव्वा सा न नियमेण. १६११९. (+) मुनिपति चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०९, आश्विन शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७०, ले.स्थल. गोधावी, प्रले. ग. जतनकुशल (गुरु ग. अमृतकुशल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. वीर वर्द्धमानस्वामी प्रसादेन. प्रतिलेखन वर्ष मात्र १८९ लिखा हुआ है अतः १८०९, १८९० या इसके समीप का कोई वर्ष होना संभव है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, जैदे., (२८.५४१२, ५४३७-४१). मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११७२, आदि: नमिऊण महावीरं चउ; अंति: सो पावई सासयसुखं, गाथा-६८२. मुनिपति चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीजिनं, (२)नमिऊण कहेता नमिने; अंति: सुख प्रते जीव. १६१२२. विद्याविलास, बप्पभट्टसूरि व विजयाविजयश्रेष्टि कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. ३, जैदे., (२७.५४१२, १३४४०-४३). १. पे. नाम. विद्याविलास कथानक पुण्यप्रभावे, पृ. १आ-७आ. विद्याविलास कथानक-पुण्यप्रभावे, सं., गद्य, आदि: इहैव भारते क्षेत्रे; अंति: किं न साध्यते. २. पे. नाम. बप्पभट्टि व आम्रनृप दृष्टान्तकथा, पृ. ७आ-१३आ. बप्पभट्टसूरि व आम्रनृप दृष्टान्तकथा, सं., पद्य, आदि: अथ सहित्ति सखा मित्र; अंति: मित्रदृष्टान्तभावना. ३. पे. नाम. विजयाविजयश्रेष्टि कथा, पृ. १३आ-१६आ. मु. हेमविजय, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य हरिवंशाब्धि; अंति: शीलगुणश्रेणिमणिजलधि. १६१२३. कैवना चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२६४१२, १७-१९४४५). कयवन्ना चौपाई, मु. गंगाराम, मा.गु., पद्य, वि. १९२०, आदि: पूरण वंछित सुखकरण; अंति: मत निरमल राखी रे, ढाल-२९. For Private And Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६१२४. सिखामण रास, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२७४११.५, ११४४०). सारशिखामण रास, उपा. संवेगसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५४८, आदि: श्रीजीराउलि पासनाह; अंति: नित्य मंगल जय करुए, गाथा-२३०. १६१२५. दंडकनामद्वार, संपूर्ण, वि. १९२१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२६.५४११.५, १०-११४२३-२९). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: जीव अनंतगुणाधिका, ग्रं. ३०१. १६१२६. नंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, ?, मध्यम, पृ. २१-२(१,१९)=१९, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., स्थविरावली गाथा-११ से सूत्र-१५० अपूर्ण तक है., जैदे., (२७.५४११, ११४३७-३९). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १६१२८. (+) व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, ?, श्रेष्ठ, पृ. ७२, प्र.वि. संशोधित-प्रायः शुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २५००, प्र.ले.श्लो. (६८३) करकृतमपराधः, जैदे., (२६४११, ५४२७-३९). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्खू मासियं; अंति: महापज्जवसाणे भवइ, उद्देशक-१०. व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे० जे कोइ भि० साधु; अंति: होइ इम हुं कहुं छउं. १६१२९. (+) क्षेत्रसमास प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. कुल ग्रं. २६४, जैदे., (२७४११, १३४३३-३९). क्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: कुशलरंगमयं पसिद्धिं. १६१३०. (+) गुरावली, अपूर्ण, वि. १८वी, फाल्गुन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ११-२(१ से २)=९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १३४४४-५२). पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १६१३२. ओघनियुक्ति, संपूर्ण, वि. १४८३, कार्तिक कृष्ण, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, प्र.वि. प्रायः शुद्ध पाठ. कुल ग्रं. ११६४, जैदे., (२७४११, १५-१७४४९-५४). ओघनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: अरहते वंदित्ता चउदस; अंति: अहिएहिं संगहिआ. १६१३३. विचार व बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. ७, जैदे., (२६.५४११.५, ९-१७४५५-६०). १.पे. नाम. जीवविचार १३ स्थानक, पृ. १अ-९अ. विचार संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वीरं गुरुश्च वंदित्व, (२)पृथ्वी अप तेउ वाउ; अंति: आऊषा आबाधाकाल कहियउ. २. पे. नाम. अष्टकर्मबंध लक्षण, पृ. ९अ-१७अ. ८ कर्मबंध विचार, मा.गु., गद्य, आदि: घट पटादिशेषरूप वस्तु; अंति: वीर्यांतराय. ३. पे. नाम. चरणसत्तरीकरणसत्तरी गाथा सह टबार्थ, पृ. १७अ-१८अ. चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वय ५ समण धम्म १०; अंति: ४ चेव कर्णत. चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलं बोल वय पंचमहा; अंति: एतले करण सत्तरी हुवइ. For Private And Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ४. पे. नाम. २५ भावना विवरण, पृ. १८अ-१८आ. मा.गु., गद्य, आदि: मनोगुप्ति १ एषणासमित; अंति: शब्द ऊपरि राग नही. ५. पे. नाम. ३० निवियाता, पृ. १८आ. निवीयाता विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दूधनां नीवीयतां ५; अंति: अधकटो रस सेलडीनो. ६.पे. नाम. पाणी एकवीस, पृ. १८आ. २१ प्रकारे प्रासुक पाणी, मा.गु., गद्य, आदि: वाघरानूं धोयण १ पीठा; अंति: धोयण आंवलीनुं धोयण. ७. पे. नाम. सामायिक ३२ दोष गाथा, पृ. १८आ. प्रा., पद्य, आदि: पालद्धी अथिरासण दिसि; अंति: गमणागमण विरई, गाथा-३. १६१३७. (+) नेमिजिनचौवीस चोक व सुवधिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४०, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२७४१०.५, १२-१४४३३-३७). १. पे. नाम. चौवीस चौक, पृ. १अ-५अ. नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, म. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसै नेमकुंवर; अंति: अमृतविजये गुण गाया, चोक-२४, गाथा-९६. २. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, आदि: मे कीनो नही तुम बिन; अंति: लीजें भक्ति पराग, गाथा-५. १६१३८. नवतत्त्व सह टबार्थव षड्द्रव्यादि, संपूर्ण, वि. १८००, आश्विन कृष्ण, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ.७, कुल पे. ३, ले.स्थल. सरसानगर, प्रले. पं. जीवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ४-५४३६-४०). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सहटबार्थ, पृ. १अ-७आ. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५३. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: एक सिद्ध अनेक सिद्ध. २. पे. नाम. ६ द्रव्यपरिणाम विचार, पृ. ७आ. षड्द्रव्यपरिणाम विचार, प्रा., पद्य, आदि: परिणामि जीव मुत्ता; अंति: तिन्निविए ए उवाएआ. ३. पे. नाम. जीव पर्याप्ती के ३२ भेदगाथा, पृ. ७आ. जीव पर्याय सपर्याय के ३२ भेद, प्रा., पद्य, आदि: पण थावर सुहमियरा; अंति: जीव बत्तीसं, गाथा-१. जीव पर्याय सपर्याय के ३२ भेद-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पांच थावर बादर पांच; अंति: एवं ३२ भेद जाणवा. १६१४०. अघटकुमारादि कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६५, वैशाख कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ३४, कुल पे. ५, जैदे., (२७.५४१२, १३४४२). १. पे. नाम. अघटकुमार कथा, पृ. १आ-७अ. अघटकुमार चरित्र, सं., पद्य, आदि: प्राणिनामसहायानामपि०; अंति: स्युः कदापि. २. पे. नाम. ऋषिदत्तमहासती कथा, पृ. ७अ-१४अ. ऋषिदत्तासती कथा, सं., गद्य, आदि: शीलं नाम नृणा; अंति: सिद्धिं गमिष्यथः, ग्रं. २३५. ३. पे. नाम. चतुःपर्वी कथा, पृ. १४अ-२७अ. For Private And Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चतुष्पर्वी कथा, सं., गद्य, आदि: यस्य ध्यानानुभावाद्भ; अंति: कथासौलसतां प्रथाः,ग्रं. ४३४. ४. पे. नाम. नमस्कारफल दृष्टान्त, पृ. २७अ-३३अ. नमस्कारफल दृष्टांत, सं., गद्य, आदि: इहलोगमि तिदंडी; अंति: मंत्रं सदा सौख्यदं. ५. पे. नाम. गांधार कथानक, पृ. ३३अ-३४आ. मन्त्रशंकाविषये-गांधार कथानक, सं., पद्य, आदिः सम्यक्त्व यत्नेन; अंति: सम्यक्त्वफलकग्रहात्, गाथा-३९. १६१४२. (+) ग्यान्नपंचमी देववंदन, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. पूर्णानगर, पठ. मु. हंसविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, ११-१५४२८-३४). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (१)प्रथम बाजठ उपरि तथा, (२)श्रीसौभाग्यपंचमी; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज, ग्रं. २५०. १६१४३. (+) वसुधारा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-१(२)=५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ११-१३४३०-३४). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: सौख्यं करोति, अपूर्ण. १६१४४. ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-३८६ तक है।, जैदे., (२६४११.५, १५४३६). नारचंद्र ज्योतिष, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), अपूर्ण. १६१४६. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, आश्विन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. सिंघाणा, अन्य. मु. लक्ष्मीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११.५, १-२४४१-४७). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं०; अंति: अप्पाणं वोसिरामि. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार माहरो हुओ; अंति: गुणता १४७ भांगा हुइ. १६१४८. योगशास्त्र व संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १६५६, भाद्रपद कृष्ण, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. २, ले.स्थल. राइणबिंदर, लिख. मु. वच्छराज (गुरु पं. धनमेरु, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४११, १५४४२-४७). १.पे. नाम. योगशास्त्र-१ से ४ प्रकाश, पृ. १आ-१३अ. योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), ग्रं. ४६२, प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. संघयणी, पृ. १३अ-२२अ. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३००. १६१४९. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८६३, आषाढ़ कृष्ण, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १६-७(१ से ७)=९, पू.वि. अध्ययन ५ गाथा ३८ तक के पाठ नही हैं., ले.स्थल. सिंघाणा, जैदे., (२६.५४११.५, १५४५५-५७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: कहणा पवियालणा संघे, अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १६१५०. नवस्मरण, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., कल्याणमंदिर स्तोत्र काव्य-३८ तक है., जैदे., (२६४११, १५४४२-४५). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), पूर्ण. १६१५१. स्तवनचौवीसी, प्रतिपूर्ण, वि. १७५५, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. स्तवन-२२ तक लिखा है., जैदे., (२६४११, १२४३५). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: आनंदघन पदराज, ग्रं. ३९८, प्रतिपूर्ण. १६१५२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र का हिससा समाचारीनामाध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ५४४४). उत्तराध्ययनसूत्र का हिस्सा सामाचारी अध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: सामायारी पव्वक्खामि; __ अंति: संसार सागरं त्तिबेमि, गाथा-५३. उत्तराध्ययनसूत्र का हिस्सा सामाचारी अध्ययन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)पंचवीसमि अध्ययनि, (२)सामाचारीनि कहीस ते; अंति: स्वरूप पणि कहइ छि. १६१५३. महादंडकत्रीसद्वार, संपूर्ण, वि. १८४०, चैत्र कृष्ण, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. गुहाणा, प्रले. लक्षमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (८७) सर्वमंगल मांगल्यं, जैदे., (२७४११, १८-२३४५६-७०). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक १ लेसा २ ठिइ ३; अंति: उत्कृष्टा १०८ जाइ. १६१५५. (+) क्षेत्रसमास प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्र.वि. रंगीन यंत्र., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. २६०, जैदे., (२७४११, १५४४२). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपट्ठिय; __ अंति: कुसलरंगमयं पसिद्धं, अधिकार-६, गाथा-२६०. १६१५६. ऋषिमंडल स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२८, कार्तिक शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २३, ले.स्थल. योधपुर, प्रले. पं. पुण्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ५४३५-३७). ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंति: सो लहइ सिद्धिसुहं, गाथा-२१३. ऋषिमंडल प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्ति कहतां भक्ति; अंति: मोक्षना सुख पामइं. १६१५७. (+) प्रतिष्ठाकल्पविधि विचार, संपूर्ण, वि. १९५६, आश्विन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २९, प्र.वि. विविध यन्त्र व चक्र सहित., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११, १३४४०-४९). प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य स्वस्ति; अंति: गच्छर स्वाहा. १६१५८. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदे., (२७४११, ५४३३-३६). आवश्यकसूत्र-तपागच्छीय श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: तियागारेणं वोसिरामि. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरउ नमस्कार अरिहंत; अंति: अध्यवसाय वोसरावं. १६१५९. कुसुमसारराजर्षि चतुष्पदिका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदे., (२७४११, १३४४३-४९). For Private And Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कुसुमसार चौपाई, मु. विनयसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीआदीश्वर पयनमी; अंति: विनयसागर० मंगलमाल रे, खंड- ४. १६१६१. (+) अनुयोगद्वारसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८०१, भाद्रपद शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८७, ले. स्थल. उदयपुर, प्रले. मु. . मोवजीराम (गुरु मु. खेमचंद), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., जैदे. (२६.५४११.५, ६-७४३८-४५). अनुयोगद्वारसूत्र, आ. आर्यरक्षित, प्रा., प+ग., आदि: नाणं पंचविहं; अंति: साहू से तं नए. अनुयोगद्वारसूत्र - टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ना० ज्ञान पंच प्रकार अंतिः तं० ए नव नाम चतुर्थ, प्रले. मु. १६१६२. (+) भाष्यत्रय सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८४३ आश्विन कृष्ण, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. २८, ले. स्थल, वीरमगाम, . हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६१२, ४x२८-३१). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदितु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणावाहं, भाष्य-३, गाथा - १४५. भाष्यत्रय - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदी नमस्कार करीन; अंतिः बाधा पीडा रहित. १६१६३. मु. (+) नवतत्त्व सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८२१ कार्तिक कृष्ण ७, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल, तोत्रस्याम, प्रले. मु. मउजीराम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६×१२, ६×३२-३९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय हक्कणिकाय. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवंत सत्य सचेतन; अंतिः एक सिद्ध अनेक सिद्ध. १६१६४. स्तवनचौवीसी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., स्तवन-१४ तक हैं., जैदे., (२५.५X१२, २३ - २८X५४-६६ ) . लखनी (गुरु स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: (-), अपूर्ण. स्तवनचौवीसी-टबार्थ, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गद्य, आदि: अंति: (-), अपूर्ण. १६१६५. जंबूस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १७६६, भाद्रपद कृष्ण, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्रले. पं. कनकरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १६-१७४४५-४७). जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: प्रणमी पास जिणंदना; अंति: दिनको कल्याण छै, ढाल - ३५, गाथा - ६००, ग्रं. ११०१. १६१६६. रत्नपाल रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. खंड-४ ढाल १८ दुहा-६ तक है., जैदे., " (२७X१२, १७-१८x४२-४९). रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि में दुर; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only १६१६७. (+) धर्मपरीक्षा कथा सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८७७, श्रावण शुक्ल, ८, मध्यम, पू. ३३, ले. स्थल. कलकत्ता, प्रले. पं. मोतीहंस गणि (तपगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ऋषभदेव प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ११६५, प्र.ले. श्लो. (२०१) कटी कूबड कर बेगडी, (४२४) जब लग मेरु गिरंद हैं, जैदे., (२६X१२, ७X३०-३८). धर्मपरीक्षा कथा, ग. देवविजय, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य प्रणितं देवं; अंतिः विजयस्य कृते, लोक-३६७. धर्मपरीक्षा कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमीनें प्रणम्या; अंति: देवविजय तेहने अर्थे. १६१६८. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. २०वी, १, श्रेष्ठ, पू. ६, जैवे. (२६.५४१२, ६३६-४० ). " Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३४१ कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याण क० मंगलिक; अंति: पद्यते पडवजे पामे. १६१६९. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९६३, पौष शुक्ल, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. छबीलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १४-१५४४१-४८). उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवी चित्तधरीजी; अंति: विजय वाचक० नवय निधान, सज्झाय-३६, ग्रं. ५००. १६१७०. श्राद्धपाक्षिकादि अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२६.५४१२, १०४३२-३५). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडं, ग्रं. २००. १६१७१. (+) जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३६, चैत्र कृष्ण, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. पाली, प्रले. पोखरदत्त ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, ५४३०-३२). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि:त्रण भुवनने विषे; अंति: थकी कह्यौ छे. १६१७२. लघुक्षेत्रसमासस्वोपज्ञटीका, संपूर्ण, वि. १८वी, ?, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. लखणेऊ, जैदे., (२६४११.५, २४-२५४५४-६७). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: अर्हमिति ब्रह्मपदं; अंति: (१)सत्तपसः श्रेयसे संतु, (२)सादमाधाय तत्सर्वम्, अध्याय-६. १६१७३. राजप्रश्नीयसूत्र, त्रुटक, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. ५४-२४(१७ से २९,३१,३४,३७,३९ से ४०,४२ से ४३,४८,५० से ५१,५३)=३०, जैदे., (२७४११, १३४४२-५१). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहताणं० तेणं; अंति: पस्से पस्सावणीए णमो, सूत्र-१७५, ग्रं. २१००, त्रुटक. १६१७४. गढ चीतोड की गजल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. गंधाहर, प्रले. अर्जुनगीर; पठ. परसा ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत देखने से २०वी की लगती है परंतु संवत १७९३ का उल्लेख किया गया है. वर्ष १७९३ की प्रत पर से प्रतिलिपि की जाने की संभावना है., जैदे., (२६४११, ९-१०४२३-२५). चितोडगढ की गजल, क. खेताक यति, पुहिं., पद्य, वि. १७४८, आदि: चरण चतुरभुज घाईऐ चित; अंति: की खुब गजल खुब गाई, गाथा-५५. १६१७६. नंदीसूत्र स्थविरावली व आवश्यकसूत्रनियुक्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, ?, मध्यम, पृ. ३७, कुल पे. २, प्र.ले.श्लो. (१२७) शिवमस्तु सर्वजगतः, जैदे., (२६४११, १८-२०४५७-७३). १.पे. नाम. नन्दिसूत्र-स्थविरावली, पृ. १आ-२अ. नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: नाणस्सपरूवणं वुच्छं, गाथा-५०. २. पे. नाम. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, पृ. २अ-३७आ. For Private And Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: चरणगुणट्ठिओ साहू, ग्रं. ३१००. १६१७७. चतुर्दशस्वरस्थापनवादस्थल, संपूर्ण, वि. १८वी, ?, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. विद्याविलास (गुरु वा. कमलहर्ष), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १५४४७). सारस्वत व्याकरण-चतुर्दशस्वर स्थापनवादस्थल, संबद्ध, वा. वल्लभ वाचक, सं., गद्य, आदि: श्रीसिद्धी ___ भवतांतरां; अंति: (१)सर्वशास्त्रानुसारतः, (२)संज्ञानुयायित्वात्. १६१७८. सूयगडांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., श्रुतस्कन्ध-१ अध्याय १ उद्देश २ __ गाथा २० तक है।, जैदे., (२५४११.५, ५४३६-४२). सुयगडंग, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज; अंति: (-), अपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बु० जिनाज्ञा सहित; अंति: (-), अपूर्ण. १६१८१. कल्पसत्र-साधसमाचारी(अधिकार-३) सह बालावबोध, प्रतिअपर्ण, वि. १७१४. श्रेष्ठ, प. ३१-१(३०)=३०. पू.वि. अधिकार ३ तक है., ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. मु. शिववर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १३४५१-५६). पज्जोसवणाकप्प, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, प्रतिअपूर्ण. कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत; अंति: कल्याण प्रवर्त्तइ, प्रतिअपूर्ण. १६१८२. (+) कर्मग्रंथ ४,५,६ सह टबार्थ व गुणस्थानक्रमारोह विचार, संपूर्ण, वि. १८३०, आश्विन शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ३९, कुल पे. ४, ले.स्थल. पालीनगर, प्रले. आ. जिनसंभवसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, जैदे., (२६४११, ५४३४-३८). १. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १अ-१०अ, वि. १८३०, आश्विन शुक्ल, ११. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करि जिन; अंति: देवेंद्रसूरि आचार्यइ. २. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १०अ-२५आ. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमीने जिन प्रति; अंति: संभारवानै काजै. ३. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. २५-३९अ. सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगूणा होइ नवईड, गाथा-९३. सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्ध निश्चल पद छइ; अंति: उणी नेउ गाथा होइ. ४. पे. नाम. गुणस्थानकक्रमारोह विचार, पृ. ३९आ. जैन सामान्यकृति-पेटांक बाकी*, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). १६१८३. (+) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य-१ से ८ व्याख्यान, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, पू.वि. व्याख्यान ८ में वज्रस्वामी चरित्र तक है.,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६.५४११, १३४४२-५१). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जयति जगदेकचक्षुः कमल; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३४३ १६१८४. (+) उववाइसूत्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४७- २ (१ से २ ) = ४५, पू. वि. सूत्र - ३ अपूर्ण तक नही है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें पंचपाठ, जैवे. (२६.५x११.५, ११४४२-४४). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि (-); अंतिः सुही सुहं पत्ता, सूत्र - १८९, ग्रं. १६००, अपूर्ण. औपपातिकसूत्र - विषमपद टिप्पण, सं., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १६१८६. (+) रामविनोद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., समुदेश-३ गाथा - २५ तक हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे. (२६५११, १८-१९६२-६६ ). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि सिद्धबुद्धदायक सलहीय; अंति: (-), अपूर्ण. १६१८८. दशवैकालिकसूत्र, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., चूलिका - २ गाथा ४ तक है।, जैदे., (२६X११, १२-१३X३५-४४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), पूर्ण. १६१९०. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७००, माघ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. सा. सुमतिशोभा; पठ. सा. लालशोभा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४१०.५, ५X३३-३७). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अनंतगुणा, गाथा - ४१. तत्व प्रकरण-वार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंतिः कालइ अनंतगुणा छइ. " १६१९१. जंबूस्वामीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., ( २६.५X११, ७X२३-२७). जंबुस्वामी सज्झाय, मु. रुपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूस्वामि जोवन घर; अंति: रूप नमे वारंवार, ढाल ७. १६१९२. (+) यतिप्रतिक्रमणसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, ४४४७-५१), आवश्यक सूत्र- साधुप्रतिक्रमणसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: करेमि भंते० चत्तारि०; अंतिः वंदामि जिणे चडवीस, ग्रं. २०४. आवश्यक सूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र का टवार्थ, पंन्या. सुमतिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा श्रीमहावीर; अंतिः उबीसेतिया प्रतइ त, ग्रं. २४५०, १६१९३. इलापुत्रऋषि रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल - १५ गाथा - १० अपूर्ण तक हैं., जैदे., ( २६x११, १५- १८X३९-५० ). इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकलसिद्धदायक सदा अंति: (-), अपूर्ण. १६१९४. विविध कथा संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., ( २६.५४११, १४-१५४४२-४५). विविध कथासंग्रह, मा.गु., गद्य, आदिः अथ एह उपरि भरतेश्वर अंति: (), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १६१९५. (*) पाक्षिकसूत्र की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे., (२७X११, १८X५३-५६). पाक्षिक सूत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तित्थंकरे० च शब्दाद; अंति: नाभिहितत्वात्, ग्रं. ६१४. १६१९६. (+) महापुरिसचरित्र- चउव्विहसमणसंघुष्पत्तिनामउद्देश, प्रतिपूर्ण, वि. १४६१, वैशाख शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १३५६, जैदे. (२६.५४११, १९६१-६४). For Private And Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महापुरिस चरिय, प्रा., पद्य, आदि: (-); अति: (-),प्रतिपूर्ण. १६१९८. नलदवदंती चौपई, संपूर्ण, वि. १८५०, माघ अधिकमास शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. काकोदरपुर, प्रले. ऋ. जीवणराम; पठ. ऋ. रामचंद्र; ऋ. सिरदासमल (गुरु ऋ. जीवणराम), प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२६४११.५, १९४४७-५८). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: चतुर माणस चित्त वसी, खंड-६, ढाल ३९, ग्रं. १२८९. १६२००.(+) सिंदूरप्रकरण सह (मा.गु.)टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७३, माघ शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. लोटोधरी, प्रले. मु. केसर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६४११, ७४५४-५७). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: ज्ञानगुणा स्तनोतु, श्लोक-१००. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदूरनो समूह छे तप; अंति: ज्ञान गुणनै विस्तरै. १६२०१. भगवतीसूत्रबीजक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२६४११.५, १३४३७-४३). भगवतीसूत्र-बीजक, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परया भक्त्या; अंति: (१)सा विचित्रार्थकोशः, (२)सर्वोपि भगवतीसत्कः, ग्रं. ४९०. १६२०२. सिद्धचक्रखमासमण, अनानुपूर्वी व नवपदफल, अपूर्ण, वि. १८५४, आश्विन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १०-३(१ से ३)=७, कुल पे. ३, ले.स्थल. दडीबा, प्रले. मु. गुलाबचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १२-१७४२५-३७). १. पे. नाम. नवपदखमासमणदणविचार, पृ. ४अ-८अ, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., आचार्य गुण १८ तक नही है. नवपद खमासमणदेण विचार, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. २. पे. नाम. अनानुपूर्खि, पृ. ८आ-१०अ. अनानुपूर्वी, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. नवपदफल, पृ. १०अ. मा.गु., पद्य, आदि: आदि वीरनो उपदस्यो; अंति: ततखिण सिद्धि होई, गाथा-२. १६२०३. गजसुकुमालमुनीश्वर चतुष्पदी, संपूर्ण, वि. १८०८, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. पं. देवीचंद (गुरु मु. क्षमासुंदर-शिष्य), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३-१४४४८-५१). गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६९९, आदि: नेमिसर जिनवरतणा चरण; अंति: जिणवर चरण नमीजे छे, ढाल-३०, ग्रं. ७५०. १६२०५. (+) लहुखित्तसमास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १३४३९-४१). बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास, संक्षेप, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊणसजलजलहर निभस्सण; अंति: झाएज्जा सम्मदिट्ठीए, अध्याय-५. १६२०६. छआरा व वीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१२(१ से १२)=५, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १०-११४३१). १. पे. नाम. छठाआरानो स्तवन, पृ. १३अ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., मात्र अंतिम कलश है. For Private And Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३४५ महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरानु, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदिः (-); अंति: दास० संघ मंगल करो, गाथा-६४, अपूर्ण. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, पृ. १३अ-१७अ. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: श्रीसासननायक सीव; अंति: रामविजय० अधिक जगीसए, ढाल-३. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १७अ-१७आ. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी वीर जिणंदने; अंति: भवोभव तुम पाय सेव हो, गाथा-५. १६२०७. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थव कथा, संपूर्ण, वि. १९४३, आश्विन शुक्ल, १५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्रले. मंगलसेन; पठ. सा. चंद्रावल आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१६४१२, ३-१६४३६-४७). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)एकदा जिनमतना द्वेषी; अंति: कीधो मोटे महिमा हूवउ, कथा-२८. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य प्रथमं देवं; अंति: क० राज्यादिक संपदा. १६२०८. पन्नवणासूत्र पद ३ द्वार २७ सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५४१२, ५४४४-४७). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १६२०९. (+) वीतराग स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०७, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मानसिंह; पठ. पं. लब्धिविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ४४३५-४३). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रेयः कल्याण अनइ; अंति: बीज हु प्रार्थं छु. १६२१०. (+) पाक्षिकसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ११४२९-३४). १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-१६आ. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (१)मिच्छामि दुक्कडं, (२)जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पाक्षिक क्षामणासूत्र, पृ. १६आ-१७आ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (१)इच्छामि खमासमणो पियं, (२)पियं च मे जं भे; अंति: (१)नित्थारग ___ पारगा होह, (२)इच्छामो अणुसटुिं, आलाप-४. १६२१२. भगवतीसूत्र सहटबार्थ-शतक २६ व ३०, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२.५, ७४३६-४०). १. पे. नाम. बंधशतक सह टबार्थ, पृ. १आ-९आ. बंधशतक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जीवाय १ लेस्स २ पखिय; अंति: भत्तेत्ति जाव विहरई, अध्याय-११. बंधशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जी. जीव प्रति उद्देश; अंति: हे भगवन् जावत् विचरे. For Private And Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. समवसरणशतक सह टबार्थ, पृ. ९आ-१७आ. समवसरणशतक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: कतिणं भंते समोसरणा; अंति: एकारसस्सवि उद्देसगा. समवसरणशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: केवल हे भगवन्; अंति: उद्देसा पणि जाणवा. १६२१३. नलदवदंती चौपाई. संपूर्ण, वि. १८६८, फाल्गुन शुक्ल, १५, रविवार, जीर्ण, पृ. २९, प्रले. मु. लालजीमल (गुरु मु. हरजीमल), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १८-१९४३१-३७). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: चतुर माणस चित्त वसी, खंड-६, ढाल ३९, गाथा-९४१. १६२१५. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०७, कार्तिक कृष्ण, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६१, ले.स्थल. आसपुर, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्र. ३१५१, जैदे., (२६.५४१२,५-६४३३-४४). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नाम नयरी; अंति: (१)पन्नत्ते त्ति बेमि, (२)दिवसेसु अंगं तहेव, अध्याय-१०. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., गद्य, वि. १६९३, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: (१)बिहु दिवसे अंग तहेव, (२)सुधिभिः संशोधनीयश्च. १६२१६. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४५-७५(१ से ७४,१००)=७०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ४९००, प्र.ले.श्लो. (५५) अज्ञाने च मतिभ्रंसा, (३०८) यावज्जिनवर समयो, जैदे., (२६४११.५, १-५४३८-४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, अपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एतले गुरुक्त जणाविउ, अपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), अपूर्ण. १६२१७. (+) प्रश्नोत्तरसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९५०, माघ कृष्ण, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १४८, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४०-४५). प्रश्नोत्तररत्नाकर, मु. शुभविजय, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य परं ज्योति; अंति: प्रघोषः श्रुतोस्तीति, उल्लास-४. १६२१८. (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ-प्रथमश्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १६४८, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ६३, ले.स्थल. दीवबंदर, प्र.वि. अन्त में टबार्थ क्रमशः नहीं है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ६४३३-३८). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सु० एहवउ सांभलउ मे०; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १६२१९. (+) पिंडविशुद्धि प्रकरण आदिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १५५०, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २५७-३५(१ से ३५)=२२२, कुल पे. ११, ले.स्थल. देवकपत्तन, पठ. श्राव. साहा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३२-३८). १. पे. नाम. पिंडविशुद्धि प्रकरण, पृ. ३६अ-४०आ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रारंभिक १७ गाथाएं नहीं है. __आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: बोहिंतु सोहिंतु य, गाथा-१०४, अपूर्ण. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ४०आ-४३अ. . For Private And Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवण पईवं वीरं; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५१. ३. पे. नाम. गौतमपृच्छा, पृ. ४३अ-४६अ. प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्खनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा - ६४. ४. पे. नाम. भाष्यत्रय, पृ. ४६अ -५२अ. प्रा., पद्य, आदि तिन्नि निसीही इच्चाइ; अंतिः पउंजियव्वं तु कारणए, भाष्य-३. ५. पे. नाम. विवेकमंजरी, पू. ५२-५९अ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्राव. आसड कवि, प्रा., पद्य वि. १२४८, आदि: सिद्धिपुरसत्थवाहं; अंतिः जलहिदिणेस वरिसम्मि, गाथा - १४४. ६. पे. नाम. पुष्पमाला प्रकरण, पृ. ५९अ - ८४आ. आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धं कम्ममविग्गह; अंतिः सया सुहत्थिहिं, गाथा-५०५. ७. पे. नाम. योगशास्त्र- १ से ४ प्रकाश, पृ. ८४ - १०५अ. योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति (-), प्रतिपूर्ण, ८. पे. नाम. वीतराग स्तोत्र, पृ. १०५अ ११३ आ. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः यः परात्मा पर अंतिः फलमीप्सितम्, प्रकाश - २०. ९. पे नाम, संग्रहणीसूत्र प्रकरण, पृ. ११३आ-१२८अ. वृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिठं अरिहंताई ठिङ: अंतिः सन्नि गईरागई बेए, गाथा - २८३. (+) १०. पे नाम. नंदीसूत्र - स्थविरावली, पृ. १२८अ १३०आ. संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: नाणस्सपरूवणं वुच्छं, गाथा - ५१. ११. पे. नाम. आवश्यकसूत्र की नियुक्ति, पृ. १३० आ-२५७अ. आवश्यक सूत्र- नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः आभिणिबोहियनाणं अंति: (१) चरणगुणडिओ साहू, (२) भुवणेसुयदेवय जेवा. १६२२१. (+) भगवतीसूत्र सह पर्यायार्थ, संपूर्ण, वि. १६४९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. २७७, ले. स्थल. विक्रमनगर, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे. (२६११, १७५४६-५५), भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहंताणं० सव्व; अंति: उद्दिसिज्झंति, शतक - ४१, ग्रं. १५७७५. ३४७ भगवतीसूत्र - पर्यायार्थ, मा.गु., सं., गद्य, आदि: अथ विवाहपन्नत्तित्ति; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. पर्यायार्थ पेज-११६ तक लिखा है.) For Private And Personal Use Only १६२२२. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ११५, प्र. वि. पत्रानुक्रम सुधारा गया है. अनुपूरित पत्र १९वी की है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., (२७४११, ७२१-२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ ति बेमि Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६२२३. नंदीसूत्र सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १९५९, आश्विन शुक्ल, १२, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १०४, ले.स्थल. माडवीबिंदर, पठ. मु. कीर्तिचंद्र (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१७) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, जैदे., (२७४११, ४-१२४३३-५१). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: वीसमणुन्नाई नामाई, ग्रं. ७००. नंदीसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: जय० विषय कषायादिक; अंति: अनुज्ञाना नाम जाणवा, ग्रं. ४०००. नंदीसूत्र-कथा संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: कुडग० घडानइ दृष्टान्; अंति: वेसाला नगरी लीधी, कथा-८८. १६२२४. जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५४, प्र.वि. इस प्रति में टीकाकार का नामोल्लेख हीरविजयसूरि किया गया है., त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४११, १-७४१५-५१). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ४१४६. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६३९, आदि: जीयात् तेजस्त्रिभुवन; अंति: शिष्यं प्रति ब्रवीति, ग्रं. १४२५२. १६२२५. (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१९, आषाढ़ कृष्ण, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ११०६+३(२७९,६८४,९७४)=११०९, ले.स्थल. स्वदामापुर, प्रले. पं. विनोदरुचि (गुरु पं. वीररुचि), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पत्रांक ५८४ और ५८५ दोनो एक ही पत्र पर है. सम्वत्१८७६ धोराजी मे शाह भाणजी बाई जीवी द्वारा मुनि रूपचन्द्रजी को यह प्रति बहोरायी गयी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ६४३१-३४). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहताणं० सव्व; अंति: देव अविग्धं लिहतस्स, शतक-४१. भगवतीसूत्र-टबार्थ, मु. देवकुशल, मा.गु., गद्य, वि. १७९०, आदि: श्रीमद्वीरजिनं नत्वा; अंति: (-). १६२२७. शालिभद्रऋषि चौपाई, संपूर्ण, वि. १७००, माघ कृष्ण, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. १९, ले.स्थल. पावा, प्रले. ग. गजकुशल (गुरु पंन्या. दर्शनकुशल, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन वर्ष १७०० को सुधारकर १२५० किया गया है., जैदे., (२६४११, १३४५१-५५). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासणनायक समरीई; अंति: मनवंछित फल लहिस्यइजी, गाथा-५०९. १६२२८. विवेकविलास, पूर्ण, वि. १६वी, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. २७-१(१)=२६, पू.वि. उल्लास १ गाथा ४६ तक नहीं है.,प्र.वि. संवत १७८९ प्रथम आषाढ वद १३ को पं. दौलतसागरजी ने स्वश्रेयार्थ इस प्रत को भांडागार में रखी., जैदे., (२७४११, १५४५७). विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: लोकोत्तरं शाश्वतम्, उल्लास-१२, पूर्ण. १६२२९. श्रीपालराजामयणासुंदरीनो रास, संपूर्ण, वि. १८१९, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ४०, ले.स्थल. इडरगढ, प्रले. मु. मनरूप (गुरु पंडित. दीपचंद); पठ. जगनाथभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १२-१३४३२-३८). श्रीपालराजा रास, म. लक्ष्मीविजय, मा.ग., पद्य, वि. १७२७, आदि: सकल मनोरथ पुरविं; अंति: जन शिवरमणी वरेयोजी, गाथा-८०५. १६२३०. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १७७८, पौष शुक्ल, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२६४११.५, १५-१६x४३). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: करकमल जोडि करि सिद्ध; अंति: जिम भूपति श्रीपाल, गाथा-२७३. For Private And Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३४९ १६२३१. दानविषये मृगावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, जैदे., (२६४११.५, १२-१३४२५-३०). मृगावती चौपाई, मु. चंद्रकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: आदिनाथ प्रणमुं मुदा; अंति: ए भणत गुणत उछाह, ढाल-१६. १६२३२.(+) कर्मग्रंथ १,२,३ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०-८(१ से ३,८ से ९,११ से १२,२२)=२२, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, ३-४४२८). १.पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ४आ-१५अ, पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., गाथा-१, २७-३२ व ३९-४८ नहीं है. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६०, अपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: लिख्यो देवेंद्रसूरि, अपूर्ण. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १५अ-२२अ. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बंध ते स्यु कहीयइ; अंति: श्रीमहावीरदेव प्रति. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. २२अ-३०आ. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: बंधना कारण ५७ हेतु; अंति: कर्मस्तवथी सांभलीनइ. १६२३३. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-३(१,४ से ५)=९, पू.वि. प्रथम एक, बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., गाथा-४ से १५ व २९ से ६२ तक है. अन्तिम ६३ वी गाथा का प्रथम पद तक है., जैदे., (२५४१०.५, १०-१३४३३-४३). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १६२३४. सुरसुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८२६, चैत्र कृष्ण, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४२, प्रले. मु. दीपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १०-१२४३१). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सासण जेहनउ सलहियइ; अंति: आनंद लील उमंगेजी, ढाल-४०, गाथा-६१९, ग्रं. ९००. १६२३५. चतु:शरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२६४११, ४४३२-३४). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चउसरणपइनाना अर्थ०; अंति: मोक्षना सुखनउ करणहार. १६२३६. (+) च्यारप्रत्येकबुद्ध रास, संपूर्ण, वि. १८०५, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ३८, ले.स्थल. अवरंगाबाद, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १२-१३४३०-३६). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ; अंति: आणंद लील विलास, ढाल-४५. For Private And Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६२३७. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सहटबार्थ व वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२९, माघ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ.७, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, ५-६x२४-२८). १. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-७आ. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. वंदित्तुसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: वांदी नमस्कार करीने; अंति: चउवीस तिर्थंकर प्रति. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ७आ. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर विनयें; अंति: करे सुपसाय जिणेसर, गाथा-५. १६२३८. गौतम कुलक व उपदेसरत्नमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९०, वैशाख, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, ५-६x२४-२८). १. पे. नाम. गौतम कुलक सह टबार्थ+बालावबोध, पृ. १अ-४अ. गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: लु० बुधवंत तत्वना; अंति: फलाई जइवावी नीवाणइ. २. पे. नाम. उपदेशरत्नमाला सह टबार्थ+बालावबोध, पृ. ४अ-१०आ. उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: वच्छलिइ रमइ सच्छाए, गाथा-४२. उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: भगवंत श्रीमहावीरने; अंति: चक्रेश्वरी केसरी. १६२३९. पुराणहंडीसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३५, भाद्रपद कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, प्र. २८, ले.स्थल. रौतासगट, प्रले. आत्माराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, ६४३०-३५). पुराणहंडी, सं., पद्य, आदिः श्रूयतां धर्मसर्वस्व; अंति: स एव गोरवरः, श्लोक-२८६. पुराणहुंडी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ध० धर्म सघलाई सांभल; अंति: गोरवर तुल्य जाणवो, ग्रं. ८००. १६२४०. सेबूजाउद्धार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२६.५४१२, १०४२६-२९). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: नयसुंदर० जय करूं, ढाल-१२. १६२४१. आदिनाथदेशनोद्धारशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२६४११.५, ७-८४४०). आदिनाथ देशनोद्धारशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारे नत्थि सुह; अंति: सिवं जंति. आदिनाथदेशनोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसारमांहि नथी सुख; अंति: शिव मोक्ष पहुंचइ. १६२४२. गजसुकमाल चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-२७ गाथा-१ तक हैं., जैदे., (२६४११, १८४४९-५३). गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६९९, आदि: नेमिसर जिनवरतणा चरण; अंति: (-), अपूर्ण. १६२४३. दंडक प्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६८४, वैशाख शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. मालपुर, पठ. मु. कल्याण (गुरु मु. टोडर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४११, १-६४३६-४६). For Private And Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३५१ दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३८. दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदि: श्रीवामेयं महिमामेयं; अंति: मत्वेदं बालचापल्यम्. १६२४४. चौवीसदंडक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदे., (२५.५४११, १३४३६-३८). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक लेश्या ठित्ति; अंति: केतला मोक्ष जाइ १०८. १६२४५. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२२, कार्तिक शुक्ल, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. बडोत, प्रले. मु. ख्यालीरामशिष्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ३-४४३६-३८). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)ग्रंथनी आदि मंगलिक, (२)सावज क० सावद्य; अंति: मोक्षना सुख पामीइ. १६२४६. नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८८६, कार्तिक शुक्ल, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. सा. जतु (गुरु सा. वधुजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १६-१८४४३-४७). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: सेत्तं परोक्खणाणं. १६२४७. नवतत्त्वसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७६३, कार्तिक शुक्ल, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३८, ले.स्थल. सूर्यपूर, प्रले. मु. दानरत्न (गुरु आ. भावरत्नसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४३५-३७). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-२९. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, ग. हर्षवर्द्धन, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानप्रभु; अंति: धेयं तु जिनागमविद्या. १६२४९. आषाढभूति रास, संपूर्ण, वि. १७९१, चैत्र शुक्ल, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. सूर्यपूर, प्रले. पं. तेजरत्न; पठ. मु. योतीरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३४३४-४१). आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंति: होजो परम कल्याणो रे, ढाल-१६, ग्रं. ३५१. १६२५०. शत्रुजय तीर्थमाला, अपूर्ण, वि. १८६०, माघ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १०-५(१ से ५)=५, पू.वि. ढाल-५ की गाथा-२ अपूर्ण तक नहीं हैं., जैदे., (२७४११.५, १०४३४). शत्रुजय तीर्थमाला, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: (-); अंति: नित नमो गिरिराया रे, ढाल१०, अपूर्ण. १६२५१. सम्यक्त्वकौमुदी व सुभाषित संग्रह, संपूर्ण, वि. १६३०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३८, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१०, १५४५३-५९). १. पे. नाम. सम्यक्त्वकौमुदी कथा, पृ. १आ-३८अ. आ. गुणाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १५०२, आदि: तस्मै नित्यं चिदानंद; अंति: (१)श्रोतृणां तु विशेषतः, (२)सम्यक्त्वकौमुदी, श्लोक-१५०६, ग्रं. १५२५. २. पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. ३८अ. अजैन सुभाषित*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. For Private And Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६२५२. जंबुस्वामीपंचभव चरित्र, संपूर्ण, वि. १६५२, श्रेष्ठ, पृ.७, प्रले. मु. चारित्रसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४१). जंबूस्वामी रास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १५२२, आदि: गोयम गणहर पय नमी; अंति: काज सरिस्यइ तेहना, गाथा-१८०, ग्रं. २६१. १६२५३. अजितशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६.५४११.५, ९४२८-३२). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. १६२५४. भाष्यत्रय, कवित्त व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११.५, १३४३४-३६). १. पे. नाम. भाष्यत्रय, पृ. १-८आ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा-१५१. २. पे. नाम. पद संग्रह, पृ. ८आ. ___ धर्मोपदेशक दोहे, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्ध सदा सुख अनुभवै; अंति: होई निव्वाणं. ३. पे. नाम. १४ उपगरण कवित, पृ. ८आ. साधु के १४ उपकरण कवित, मु. जिनहरष, मा.गु., पद्य, आदि: पात्र प्रथम झोली; अंति: ए चउदें राखे यती, गाथा-१. ४. पे. नाम. दृष्टिगूढ श्लोक, पृ. ८आ. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य , मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). १६२५५. आराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२६४१२, ६४३७). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सोक्ख, गाथा-७०. पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: भगवंतने नमस्करीने; अंति: सुख अनंता पामइ. १६२५८. वीसस्थानक पूजा, अपूर्ण, वि. १९१२, कार्तिक शुक्ल, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १७-२(१ से २)=१५, पू.वि. पद-२ की गाथा-४ तक नहीं है., ले.स्थल. पादलीप्त, प्रले. पं. चतुरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. आदिनाथ प्रसादात्., जैदे., (२६.५४१२, १०४२६-२८). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: (-); अंति: सयल संघ मंगल करो, ढाल-२०, __ अपूर्ण. १६२५९ (+) श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १५४३२). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. १६२६१.(+) कर्मग्रंथ २-३ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१०(१ से १०)=८, कुल पे. २, पू.वि. कर्मविपाक नव्य प्रथम कर्मग्रन्थ नहीं है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६.५४१२, ५-६x४०-४३). १. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ११अ-१५अ. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३५. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तथा तिम स्तवउं; अंति: वीरनइ तुम्हे वांदओ. For Private And Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १५अ-१८आ. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: बंधविधान कर्मबंधना; अंति: कर्मस्तवथी सांभलीनइ. १६२६२. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८०६, चैत्र शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. पं. भाग्यविजय (गुरु ग. विनयविजय); पठ. श्रावि. रतन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १२-१३४३८-४३). जिनस्तवनचौवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जगजीवन जगवाल्हो; अंति: जीवन जीव आधारो रे, स्तवन-२४. १६२६३. द्विजमुखचपेटा व वीतरागस्तोत्र- सप्तम प्रकाश, संपूर्ण, वि. १९५२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, जैदे., (२७४११.५, १३४४०-४४). १. पे. नाम, द्विजवदनचपेटा, पृ. १आ-१५आ. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: सद्भत भाव्यर्थ विका; अंति: हारितं ताम्रभाजनं, श्लोक-४२१. २. पे. नाम. वीतरागस्तोत्रे-जगत्कर्तृनिरास स्तव सप्तम प्रकाश, पृ. १५आ. वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १६२६४. ऋषभदेवस्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७४६, रसवेद हि नगचंद्र, आषाढ़ कृष्ण, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. रामनाथ प्रोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १२४३८). आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउ पणमिय देव; अंति: विजयतिलक निरंजणो, गाथा-२१. आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जिवारै मोटो कार्य; अंति: विजयतिलक कहै इम भणै. १६२६५. समकितसडसठिबोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२७४१२, १२४३०-३२). समकितना सडसठबोलनी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२, गाथा-६८, ग्रं. १२५. १६२६६. पुन्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. वलाद, प्रले. श्राव. खीमचंद पीतांबर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, ८-९४२७-२९). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: थुण्यो जिन चौविसमो, ढाल-८+कलश. १६२६८. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १७४६, आश्विन कृष्ण, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. उदयरत्न (गुरु मु. अमररत्न, तपगच्छ); पठ. श्रावि. भाग्यवती रायपाल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. राजनगर झवेरीवाड मे यह प्रत लिखी गयी है., जैदे., (२४.५४११, ११४३४). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. १६२६९. मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १७७१, कार्तिक शुक्ल, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले.स्थल. राजद्र(इं)ग, प्रले. मु. रत्नविजय (गुरु पंन्या. रविविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १६-१९४४१-४३). For Private And Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद __ पदांबुजे; अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल-४७. १६२७३. दंडकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. पं. जिनेंद्र; पठ. पं. विमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ४४३३-३५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४४. १६२७४. शांतिरसभावनास्वरूप-जयथ्यंक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२६.५४११, १५४५३-५७). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रीरांतरारीणां; अंति: जयश्रिया शिवश्रीः, अधिकार-१६. श्लोक-२७८, ग्रं. ४४२. १६२७५. सुश्रावकालोचना, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६४११, १३४४४-४९). श्रावक आलोयणा विचार, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: प्रथमं महत; अंति: स्वाध्यायेन उपवासः १६२७६. आर्यवसुधारा, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. मन्त्र सहित., जैदे., (२६४११, ११४३०-३५). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति. १६२७७. नवतत्त्व सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-१ नहीं है व मोक्षद्वार अपूर्ण तक है., जैदे., (२६.५४११, १५४४३-५४). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), पूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीर; अंति: (-), पूर्ण. १६२७८. (+) सुक्तावली संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८१९, माघ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ३५-३(१ से ३)=३२, ले.स्थल. पीहीनगर, प्रले. मु. आसानंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ४-६४३७-४२). सूक्तावली संग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रवरं हि दानं, अपूर्ण. सूक्तावली संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १६२८०. लघुस्नात्र पूजा, पूर्ण, वि. १८५८, कार्तिक शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १३-१(४)=१२, ले.स्थल. भात, प्रले. मु. शिवरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीवासुपूज्यप्रभु (प्रसादात्)., जैदे., (२६४११.५, १३४२४-२६). स्नात्रपूजा संग्रह , मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: मुक्तालंकार विकार; अंति: समकित सुजस सवायो रे, (पूर्ण, वि. महावीरकलश मंगलसूरि कृत तथा पार्श्वजिन स्तवन शिवरतन रचित भी संकलित है.) १६२८१. चतुःशरण प्रकीर्णक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. उदयनन्दिसूरिशिष्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११, ५-१०४३६). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: इदमध्ययनं परमपद; अंति: भवतीति गाथार्थः. १६२८२. (+) षष्टिशतक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४०-४३). षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भांडागारिक, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरू; अंति: जिणंतु जंतु सिवं, गाथा-१६०. For Private And Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १६२८३. भक्तामरस्तोत्रअवचूरि, संपूर्ण, वि. १७९५, आषाढ़ कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. रैवासा, प्रले. सुखराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १०-११४३३-३६). भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: किल इति सत्ये अहमपि; अंति: वर्णविचित्रपुष्पताम्, ग्रं. ४६. १६२८४. (+) श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५. १०४२७-३०). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: पक्षदिवस माहि. १६२८५. वंकचूल रास, पूर्ण, वि. १६८६, श्रावण शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(६)=६, पू.वि. गाथा-६५ से ८० तक नहीं है., ले.स्थल. आणा, प्रले. मु. लखतु (गुरु मु. शवजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १०४३१-३७). वंकचूल रास, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिनवर आदि जिनवर; अंति: सयल संघनी पूरइ आस, गाथा-९१, पूर्ण. १६२८६.(+) कर्मग्रंथ ४-५-६ सहटबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४, कुल पे. ३, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ५४४२). १. पे. नाम. षडशीतिका चतुर्थ नव्य कर्मग्रन्थ सह स्वोपज्ञ टीका, पृ. १आ-११अ. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८९. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: क्रमकमलचंचरीकैरिति, (वि. प्रारंभ में टबार्थ तथा बाद में स्वोपज्ञ टीका है.) २. पे. नाम. शतक पंचम नव्य कर्मग्रन्थ सह अवचूरि, पृ. ११अ-२३अ. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिण आयसरणट्ठा, गाथा-१००, (वि. भाष्यगाथा भी संलग्न है.) शतक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीजिनं नत्वा षट; अंति: क्षये ज्ञानी भवति, (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, __पू.वि. टबार्थ मात्र ९० गाथा तक है.) ३. पे. नाम. सप्ततिका षष्ठ कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. २३अ-३४आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-८९ अपूर्ण तक है. षष्ठ प्राचीन कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: (-), पूर्ण. १६२८७. रत्नपाल चरित्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, प्र.ले.श्लो. (३०९) थिर नग मेरु वसुमति, जैदे., (२६४१२, १७-१८४३७). रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि में दुर; अंति: मोहनविजय विलासजी, खंड-४, ढाल ६८, गाथा-१३६१. १६२८९. (+) योगशास्त्र-१ से ४ प्रकाश, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१०.५, १३४४९). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १६२९०. सेठसुदरसण रास, संपूर्ण, वि. १८५३, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. चांणोद, प्रले. ऋ. निहालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १०४३६-३८). सुदर्शनसेठ रास, मु. दीपचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: वांदु श्रीजिन वीर; अंति: कहै एम दीपो कवित्त, गाथा-१२१. १६२९१. स्तवनचौवीसी-अतीत स्तवन १-९, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२७X११, ९४३१). For Private And Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३५६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्तवनवीसी अतीत, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि जिणंदा तारा नामथी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण, १६२९२. पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (१) = ६, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६X११, १४-१५X३७). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: ( - ), अपूर्ण. १६२९३. अनेकार्थध्वनिमंजरी व औषधश्लोक, संपूर्ण, वि. १६६७, आषाढ़ कृष्ण, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्रले. गजपति मिश्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४११.५, ११-१४४४०-५३). १. पे नाम. अनेकार्थध्वनिमंजरी, पृ. १आ-७आ. सं., पद्य, आदि: शुद्धवर्णमनेकार्थं; अंति: श्रद्धावतांनिशं, अधिकार- ३. २. पे नाम, औषध लोक, पृ. ७आ. औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (), (वि. औषधश्लोक-१.) १६२९४. (+) चेतनकर्म चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११.५, १२४३५-३७). चेतनकर्म चरित्र, श्राव. भगवतीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७३६, आदि: जिनचरण प्रणाम करि; अंति: रचना कही अनादि, गाथा - २९७. १६२९५. सेठसुदर्शन संबंध, पूर्ण, वि. १६३७, आश्विन कृष्ण, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९-१ ( २ ) = ८, पू. वि. गाथा १ से ९ अपूर्ण तक नहीं है., ले.स्थल. ऊनाऊया, प्रले. मु. हरजी (गुरु मु. लक्ष्मीरत्न, बिवंदणीकगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५X१०.५, १५X३७-४४). सुदर्शनसेठ रास, मु. मुनिसुंदरसूरि - शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १५०१, आदि: (-); अंति: चतुर्विध संघ प्रसन्न, गाथा-२३८, ग्रं. ३५०, पूर्ण. १६२९६. स्तवनचौवीसी व सीता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४५, आषाढ़ कृष्ण, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्रले. ऋ. वालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५X११.५, १२X३३-३६). १. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १अ ७आ. For Private And Personal Use Only आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मनमधुकर मोही रह्यो; अंतिः हिव करी आप समान रे, स्तवन- २४. २. पे. नाम. सीतासतीशील सज्झाय, पृ. ७आ. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जळजळती मिळती घणी रे; अंति: नीत प्रणमीजे पाय रे, गाथा- ९. १६२९९. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टवार्थ, पूर्ण, वि. १७६५, फाल्गुन कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१४-२ (१,२५४)-३१२, ले. स्थल लिंचनगर, प्रले. पं. मानविजय (गुरुग, विनयविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पत्र २५३ और २५४ एक ही पृष्ठ पर है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १४०००, प्र. ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (७०८) बद्धमुष्ट कटौ ग्रीव्या, जैदे., ( २६.५X१२, ७३२-३९). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंतिः कहासुखंधो समत्तो, अध्ययन-१९, ग्रं. ५५००, पूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: स्कंध संपूर्ण कहिउं प्र. ८५००, पूर्ण. Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १६३००. शत्रुजयमाहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२७, भाद्रपद शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ५७२, ले.स्थल. पत्तण, पठ. पं. रत्नसागर गणि (गुरु आ. पुण्यसागरसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपंचासरपार्श्व प्रसादात्.,प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (२१) जिहां ध्रु सायर चंद रवि, (१३६) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२६.५४१२, ६-७४३९-४२). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति: संघस्य सर्वेष्टदम्, सर्ग-१४, ग्रं. १००००. शजय माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य युगादीशं; अंति: वांछितनो देणहारो छइं. १६३०१. आत्मानुशासन सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-११ तक है।. जैदे., (२७४१०.५, ९४३०-३४). आत्मानुशासन, मु. गुणभद्र, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मी निवास निलयं; अंति: (-), अपूर्ण. आत्मानुशासन-बालावबोध, पंडित. टोडरमल , पुहिं., गद्य, आदि: श्रीजिनशासन गुरु नमौ; अंति: (-), अपूर्ण. १६३०२. श्रावकाचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२७४११, १०४३३-३६). श्रावकाचार चौपाई, ग. खेमराज, मा.गु., पद्य, वि. १५४६, आदि: जगबंधव सामी जिणराय; अंति: श्रावकविधि उचरी, गाथा-७९. १६३०३. दशवैकालिकसूत्र, पूर्ण, वि. १८७९, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, पृ.वि. अध्ययन१- ३ तक नहीं है., ले.स्थल. सररामपुर, प्रले. सा. जतु (गुरु सा. वधुजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक २ के साथ पुच्छिस्सुणं-वीरथुइ का पत्र चिपका हुआ है., जैदे., (२६४१०, २०-२२४४८-५४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०, पूर्ण. १६३०४. उपासकदशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, पू.वि. कामदेव आख्यान तक है., जैदे., (२६.५४१०.५, ५४३९-४१). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १६३०६. (+) वृत्तरत्नाकरबृहद्वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्रले. उपा. रत्ननिधान (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि); पठ. पं. रत्नजय मुनि (गुरु मु. रत्नराज), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १६-१७४५८-६२). वृत्तरत्नाकर-बृहद्वृत्ति, ग. सोमचन्द्र, सं., गद्य, वि. १३२९, आदि: यत्पादाग्रनखांशुराजि; अंति: (१)जातानि किंचिदधिकानि, (२)दितायामजनिष्ट षष्ठः, ग्रं. ११९०. १६३०७.(+) आर्यवसुधाराविद्या, संपूर्ण, वि. १७०१, माघ कृष्ण, मध्यम, पृ.६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६.५४११, १३४३४-३९). आर्यवसुधारा, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति. १६३०९. श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२६.५४११, ७४३९-४१). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहताणं० पंचिद; अंति: तियागारेण वोसिरामि. For Private And Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: समोसरणि वइठा अरिहन्त; अंति: मोकली प्रकृति छांडउ. १६३१०. पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १८१७, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. सिरुंज, प्रले. जैसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १३-१४४४०-४२). पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदि: (१)यत्सत्यं त्रिषु लोके, (२)ॐ नमो भगवती कूष्मां; अंति: सत्योपासक केवली, श्लोक-१८६. १६३११. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७४६, आश्विन शुक्ल, १२, सोमवार, जीर्ण, पृ. ७-२(१ से २)=५, पू.वि. का. १ से १२ तक नहीं है., ले.स्थल. रखीतर, प्रले. मु. देवा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११, ५x भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४, अपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मानवंत पुरुषनई वरइ, अपूर्ण. १६३१२. (+) जिनबिंब प्रतिष्ठाविधिसंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७-२(२६,३४)=३५, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६.५४११.५, १६४३९-५७). __ प्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-), अपूर्ण. १६३१३. (+) अघटकुमार, कुलध्वजकुमार वदामन्नक कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२७४११, १७४४२-५०). १. पे. नाम. जीवदयाविषये अघटकुमार कथा, पृ. १अ-७अ. अघटकुमार कथा, सं., पद्य, आदि: प्राणिनामसहायानामपि3; अंति: मासादयति स्म राज्यम, श्लोक-३१६. २. पे. नाम. कुलध्वजकुमार कथा-परस्त्रीविषये कथानक, पृ. ७अ-१०अ. कुलध्वजकुमार कथा, सं., पद्य, आदि: जंबूद्वीपाभिधे; अंति: क्रमान्निर्वाणमायसः, श्लोक-१६३. ३. पे. नाम. दामन्नक चरित्र, पृ. १०अ-११आ. सं., पद्य, आदि: अत्राभूद् भरतक्षेत्र; अंति: गतप्रमादा सदा यत्नं, गाथा-९८. १६३१४. पिंडविशुद्धि प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १५५२, माघ शुक्ल, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६,प्र.वि. पंचपाठ. कुल ग्रं. ६९५, जैदे., (२६.५४११, ८-१३४३५-४२). पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदविंदवंदिय पयार; अंति: बोहिंतु सोहिंतु अ, गाथा-१०४. पिंडविशुद्धि प्रकरण-दीपिका टीका, आ. उदयसिंहसूरि, सं., गद्य, वि. १२९५, आदि: तं नमत श्रीवीर; अंति: क्तु इति गाथार्थः. १६३१६. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. २०, जैदे., (२७४११.५, १५४३३-३७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०. १६३१८. पंचपरमेष्ठि गुणवर्णन गीता, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३१-३६). For Private And Personal Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५९ पंचपरमेष्ठि गुणवर्णन गीता, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमीई प्रेमस्युं; अंतिः परमेष्टि गीता, गाथा - १३१. १६३१९. (+) सिद्धहेमशब्दानुशासनसूत्र - १ से ७ अध्याय, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्रले. पं. कृष्ण अमरदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x११, १३४३८-५१). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: अहं सिद्धिः स्याद; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १६३२०. पर्व्वराजमहोत्सव, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, अधिकार २७ तक है।, जैदे., (२७X११, १५- १८x४३-४८). पर्वराजमहोत्सव, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: (-), अपूर्ण. १६३२२. पुरंदर कथा, संपूर्ण, वि. १६६९, भाद्रपद शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २५, ले. स्थल. आगरा, प्रले. ऋ. कल्याण (गुरु ऋ. कपुरचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५X११, ९X३४-३९). पुरंदरकुमार रास, वा. मालदेव, मा.गु., पद्य, आदि: वरदाई श्रुतदेवता; अंति: कहे मालदेव आनंद, गाथा - ३६९. १६३२३. सामुद्रिकशास्त्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४५, ज्येष्ठ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले. स्थल. सादडी, प्रले. मु. लछीराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x११, ७X३६-३९). श्लोक-२२६. सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: वृद्धिं भवेद्यत, अध्याय-३६, सामुद्रिकशास्त्र-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि आदि देव नमस्कार करी; अंतिः स्त्री शुभनी करणहारी. १६३२४. (+) निरावलियादिपंचोपांगसूत्र सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. ५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ - पंचपाठ. कुल ग्रं. ११०९, जैदे., (२७४११.५, १७X५६-५८). १. पे नाम, कल्पिकासूत्र सह टिप्पण, पृ. १आ-७आ. कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: अयमट्ठे पण्णत्ते, अध्ययन-१०. कल्पिकासूत्र - टिप्पण, सं., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टिप्पण, पृ. ७आ-८आ. कल्पातंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि, जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः महाविदेहे सिज्झीहिति, अध्ययन - १०. कल्पावसिकासूत्र - टिप्पण, सं., मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), .पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टिप्पण, पृ. ८-१५आ. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः चेइवाई जहा संगहणीए अध्ययन - १०. पुष्पिकासूत्र - टिप्पण*, सं.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टिप्पण, पृ. १५-१६आ. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन-१०. पुष्पचूलिकासूत्र - टिप्पण, सं., मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ५. पे नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टिप्पण, पृ. १६आ - १८अ. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: मइरित्त एक्कारससु वि, अध्ययन-१२. For Private And Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वृष्णिदशासूत्र - टिप्पण, सं., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), १६३२५. भरडकबत्रीसी कथा, संपूर्ण, वि. १७१९ फाल्गुन शुक्ल, ४, रविवार, मध्यम, पृ. ८, जैवे., (२७.५x११.५, १९-२३४४७-५३). भडकवत्रीसी कथा संग्रह, ग. आनंदरत्न, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: देवदेवं नमस्कृत्य; अंतिः एव एवंविधोयोपि कथा - ३३. (+) भुवनभानुकेवली चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५x११.५, १७४५०-५५). भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., गद्य, आदिः अस्तीह जंबूद्वीपे अंति: नरेंद्रर्षिः केवली. १६३२८. पंचजिन चरित्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५X११, ७३४-३८ ) . १. पे नाम. आदिनाथ चरित्र सह टवार्थ, पृ. १-२ आ. नाभेय स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणमुसभमुभयंस; अंति: देहि मयं नेहि परमपयं, गाथा - २५. नाभेय स्तोत्र - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी जिन; अंति: परमपद मोख्यनइ विषइ. २. पे. नाम. शांतिनाथ चरित्र सह टबार्थ, प्र. ३-५ आ. शांतिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अप्पडिहयधम्मचक्केण; अंति: गाय जिणवल्लहपचंवेसु, गाथा - ३३. शांतिजिन चरित्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि अप्रतिहत अस्खलित; अंतिः स्तोत्रकर्तानाम ३. पे नाम, नेमि चरित्र सह टवार्थ, प्र. ३अ ५आ. नेमिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: मयनाहसरिस बिलसिर; अंति: पत्तह कुणसुसिवं, गाथा - १५. नेमिजिन चरित्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. ६आ, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., मात्र पहली गाथा अपूर्ण तक है. पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुणमणिनिहिणो जस्सु; अंति: (-), अपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: गुणरूप रतननउ निधान; अंति: (-), अपूर्ण. १६३२९. सिद्धहेमशब्दानुशासन सह टीका- अध्याय ३४, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७-५ (१ से ५) = ३२, पू.वि. अध्याय-३ के पाद १-३ व चौथे पाद का कुछ अंश नहीं है., जैदे., (२७X११.५, १७X६४-६८). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. For Private And Personal Use Only १६३३०. चंद्रलेहा रास, संपूर्ण, वि. १८५४, आषाढ कृष्ण, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले. स्थल. पीही, प्रले. ऋ. नोलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १५४४६). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदिः सरसति भगवति नमी करी; अंतिः त्रिभुवनपति हुवे तेह, ढाल - २९, गाथा - ६२४. Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १६३३१. (+) कर्पूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५X११, १५-१७X३८-४६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंति: नेमिचरित्रकर्त्रा श्लोक-१९२, ग्रं. ३५०. १६३३२. (+) पंचनिग्रंथी सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पठ. ग. कुशलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., (२७X११, ७-९३१-४२). भगवतीसूत्र - अभयदेवीय टीका का हिस्सा पंचनिर्ग्रथी प्रकरण, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १९२८, आदि: पन्नवण वेय रागे कप्प; अंति: रइया भावत्थसरणत्थं, गाथा - १०६. पंचनिग्रंथी प्रकरण अवचूरि, सं., गद्य, आदि पत्रवण इति द्वारगाथा; अंतिः पृथक्त्वात्तेषाम्. " १६३३३. पंचप्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पंचपाठ., जीवे. (२६.५x१९, १-१३४२८-३८ ) . ३६१ आवश्यक सूत्र- तपागच्छीय पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं; अंति: (-), अपूर्ण. पंचप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय-अवचूरि, सं., गद्य, आदि आदी सूत्रलक्षणं; अंति: (-), अपूर्ण, १६३३४. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११६-१२ (१ से १२) = १०४, पू. वि. बीच के पत्र हैं., सूत्र - १ से १५ नहीं है तथा कल्पसूत्र वाचन लोक अपूर्ण है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित पंचपाठ., जैवे. (२६.५४११. ७-९४२६-२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), अपूर्ण १६३३५. थुलभद्र नवरसो, पूर्ण, वि. १८७४, वैशाख शुक्ल, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६-१ ( १ ) = ५, ले. स्थल. कसनगढ़, प्रले. सा. जतु (गुरु सा. वधुजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५X११, १६x४४). स्थूलभद्र नवरसो, वा उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: मनोरथ वेगे फल्या, ढाल - ९, पूर्ण. १६३३६. जिणरस, संपूर्ण, वि. १८८४, माघ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. मु. हंसविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५X१२, १४४३८-४२). जिणरस, मु. वेणीराम, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: गणपद सारद पाय नमी; अंति: राम कही ० जिनरस अष्य, गाथा - १९५. For Private And Personal Use Only १६३३७. (*) पंचमी, वीरजिन स्तुति व लघुशांति सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८९८, भाद्रपद कृष्ण, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३, ले. स्थल. गोधावी, प्रले. पं. जतनकुसल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. वीरवर्द्धमानस्वामी प्रसादात्., टिप्पणयुक्त विशेष पाठ, प्र. ले. श्लो. (८७) सर्वमंगल मांगल्यं, जैदे., (२९x१२, ३४३८). १. पे नाम, पंचमी स्तुति सह टवार्थ, पृ. १आ-३अ. पंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्री कहेता आठ; अंतिः एकाग्रमन सहित एहवी. २. पे नाम पाक्षिक स्तुति-स्नातस्या सह टवार्थ, पृ. ३-४अ पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. पाक्षिक स्तुति-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे भगवंत केहवा छे; अंतिः कार्य ने विषे सिद्धि. Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. लघुशांति सह टबार्थ, पृ. ४आ-८आ. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, श्लोक-१८. लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: शांति कहता शान्तिनाथ; अंति: ज्ञानवंत एहवा जीनराज. १६३४०. अंतगडदसांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०९, भाद्रपद शुक्ल, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५१, ले.स्थल. सुनाम, प्रले. मैयादास गोसांई; पठ. मु. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. नारायणदास मलकिया के दुवाणखाने में लिखी गयी., जैदे., (२७.५४१२, ६-७४४८-५३). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२. अंतकद्दशांगसत्र-टबार्थ, मा.ग.. गद्य, आदि: अंतगडसत्र ते स्या; अंति: तेमांहि कह्यौ छै जिम. १६३४१. अध्यात्मसारमाला व अध्यात्मवाणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२, १३४४३-४६). १. पे. नाम. अध्यात्मसारमाला, पृ. १आ-७अ. क. नेमिदास रामजी शाह कवि, मा.गु., पद्य, वि. १७६५, आदि: श्रीजिनवाणी नितु नमी; अंति: अचल अनुभव अनुभवो, पीठ-५, गाथा-१०८, ग्रं. २३०. २. पे. नाम. अध्यात्मवाणी सज्झाय, पृ. ७अ-७आ. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: ए अध्यातमनी वाणी; अंति: विमल० जिनवाणी हो लाल, गाथा-१०. १६३४४. चैत्यवंदन प्रथमभाष्य सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४+१(६)=१५, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. लाभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२, ३-४४२४-२६). चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. चैत्यवंदन भाष्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदीनइं वांदिवा योग; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १६३४६. अध्यात्मबिंदु-प्रथमद्वात्रिंशिका सह स्वोपज्ञ वृत्ति, प्रतिपूर्ण, वि. १९५४, श्रावण शुक्ल, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७४११, १२-१३४३८-४०). अध्यात्मबिंदुद्वात्रिंशिका, मु. हर्षवर्द्धन, सं., पद्य, आदि: ब्रूमः किमध्यात्ममहत; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. अध्यात्मबिंदुद्वात्रिंशिका-स्वोपज्ञ व्याख्या, मु. हर्षवर्द्धन, सं., गद्य, आदि: (१)अनंतविज्ञानविभूति, (२)अथातः शुद्धात्मानुभव; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १६३४७. ऋषभपंचाशत सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९५३, श्रावण कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले.स्थल. नागौर, प्रले. रीद्धीकरण जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७४१२, १-२४४२-४५). ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: जयजंतुकप्पपायव चंदाय; अंति: बोहित्थ बोहिफलो, गाथा-५०. ऋषभपंचाशिका-टीका, आ. प्रभानंदसूरि, सं., गद्य, आदि: जयत्ति व्याख्या हे; अंति: पंचाशत्तमगाथार्थः. १६३४८. वंकचूल चौपाई, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पृ.वि. गाथा-२७ तक नहीं है., जैदे., (२७४११.५, १८-२१४५८-६०). For Private And Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३६३ वंकचूल चौपाई, मु. तीकम, मा.गु., पद्य, वि. १७०६, आदि: (-); अंति: तीकम आणंद० सूख कंद, ढाल-१७, ___गाथा-३४१, पूर्ण. १६३४९. (+) नवतत्त्वविवरणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३-१४४३५-३९). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण-टीका, पृ. १अ-१२आ. आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (१)श्रीवर्द्धमानजिनपति, (२)इह हि श्रीमज्जिनशासन; अंति: स्यादिति गाथार्थः. २. पे. नाम. जैन सामान्य कृतिसंग्रह, पृ. १२आ. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. १६३५३. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति सह अवचूरि, स्तोत्र वस्तव, संपूर्ण, वि. १७वी, ?, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३८-४२). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति सह अवचूरि, पृ. १अ-६आ. स्तुतिचतुर्विंशतिका, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, आदि: नरेंद्रमौलिगलितो; अंति: याधमं बाधमंबा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. स्तुतिचतुर्विंशतिका-स्वोपज्ञ अवचूरि, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., गद्य, आदि: पारिजाताः कल्पद्रुमा; अंति: बाधमपनीयादिति संबंधः. २. पे. नाम. पंचपरमेष्टि स्तोत्र, पृ. ६आ. आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: स्वश्रियं श्रीमद; अंति: ते भवंति जिनप्रभा, श्लोक-५. ३. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तव, पृ. ६आ. सं., पद्य, आदि: ऋषभजिनमजितनाथ; अंति: शिवपदमचिरादि सो लभते, श्लोक-४. १६३५४. स्तवनवीसी, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., स्तवन-२० की गाथा-३ अपूर्ण तक हैं., जैदे., (२७४१२, १३४४०-४३). विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर जिनवर; अंति: (-), पूर्ण. १६३५५. आषाढभूति रास, अपूर्ण, वि. १८३६, चैत्र कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(५ से ७) =५, पू.वि. ढाल-७ की गाथा-७ से । ढाल-१६ गाथा-११ तक नहीं है., ले.स्थल. धमडकानगर, प्रले. पं. धनसागर (गुरु पंन्या. उमेदसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४११.५, १६x४३-४५). आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंति: कहे० परम कल्याण रे, ढाल-१६, अपूर्ण. १६३५६. पंचमहाव्रत कथा, अपूर्ण, वि. १८८२, श्रावण शुक्ल, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २९-३(१ से ३)=२६, प्रले. मु. गुलाबविजय (गुरु पंन्या. दीपविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७.५४११.५, १४४२९-३९). पंचमहाव्रत कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: दशभवनो विस्तार कह्यो, अपूर्ण. १६३५७. चौमासी देववंदन, पूर्ण, वि. १८९९, ज्येष्ठ, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २०-१(१)=१९, ले.स्थल. लिंबडी, जैदे., (२७.५४११.५, ११४३०-३४). For Private And Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पास सामलनु चेई रे, पूर्ण. १६३५८. भुवनदीपक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-२०३ तक है। श्लोक ६ तक ही टबार्थ है., जैदे., (२७४११.५, ७-११४३१-३६). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: (-), अपूर्ण. भुवनदीपक-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती सबंधी यो मह; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १६३५९. (-) षट्त्रिंशतजुल्फविचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६८, प्रले. सीव जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७.५४१२, ११४४०-४६). षट्विंशजल्पविचार संग्रह, मु. भावविजय, सं., गद्य, वि. १६७९, आदि: नमः पार्श्वनाथाय; अंति: ग्रंथश्चिरं नंदतात्. १६३६१. (+) जयतिहूयण स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १७४४९). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंति: विनवइ आणदिइ, गाथा-३०. जयतिहुअण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: अत्रायं वृद्धसंप्रदा; अंति: स्त्रिलोकलोकश्लाघितः, ग्रं. २५०. १६३६२. (+) कल्पसूत्र का व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पांचवां व्याख्यान प्रारंभ तक हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११, १४-१५४४७-५४). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य परमं ज्योति; अंति: (-), अपूर्ण. १६३६३. नवतत्त्व बालावबोध, पूर्ण, वि. १९५२, कार्तिक कृष्ण, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(१)=१३, प्रले. रणछोड जोइता, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १३-१४४३९-४४). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अजीव ते मिश्र कहिइं, पूर्ण. १६३६४. पद्मचरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५५, जैदे., (२६.५४११.५, ११४४५-५०). राम चरित्र, संबद्ध, पंन्या. देवविजय, सं., प+ग., वि. १६५२, आदि: अथ श्रीसुव्रतस्वामि; अंति: नंद प्रपेदे पदम्, सर्ग-१०, ग्रं. ५०००. १६३६५. चारप्रत्येकबुद्ध रास, पूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., खंड-४ ढाल-८ की गाथा-१८ अपूर्ण तक हैं., जैदे., (२७४११, १३४५६-५९). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ; अंति: (-), पूर्ण. १६३६७. मानतुंगमानवती रास, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३५, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., ढाल-४७ की गाथा-१४ अपूर्ण तक हैं. मात्र रचना प्रशस्ति का अंतिम भाग नहीं है., जैदे., (२६.५४१२, १५-१६x४१). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, __ आदि: श्रीऋषभजिणंद पदांबुज; अंति: (-), पूर्ण. १६३६८. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., स्तवन-२१ की गाथा-८ अपूर्ण तक हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३४-४१). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३६५ १६३६९. सिद्धाचलमहिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२७४११.५, १०४३३-४०). शत्रंजयतीर्थ महिमावर्णन स्तवन, म. मतिरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनें पाय; अंति: भाखे सकल संघ आणंदए. १६३७०. सेनंजयतीर्थराजउद्धार रास, संपूर्ण, वि. १८०९, फाल्गन कृष्ण, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. सुरतबंदर, प्रले. पं. दीपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १२-१३४३३-३९). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: नयसुंदर० जय करु, गाथा-१२१. १६३७१ (+) दंडकविचारगर्भित सहटबार्थ, संपर्ण. वि. १८०९. भाद्रपद कष्ण. ३. गरुवार, श्रेष्ठ. प. ५. ले.स्थल. ध्रांग प्रले. मु. मोहनरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ४-५४३८-४३). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४३. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभादिक महावीर; अंति: आत्माना हितने काजि. १६३७२. चौमासी देववंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-३(५,७ से ८)=१०, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., पार्श्वजिन स्तुति तक हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १०४२७-३५). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: (-), अपूर्ण. १६३७३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र कथासंग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., लघुपुत्रोदाहरण से आषाढभूतिसूरि पर्यन्त है।, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७४११,१५४५३-५६). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह , सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १६३७४. (+) मेघदत काव्य सह शिष्यहितैषिणीटीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत., जैदे., (२७४११.५, ३-६४४२-४५). मेघदूत, कालिदास, सं., पद्य, आदि: कश्चित्कांताविरहगुरु; अंति: युगलं कालिदासश्चकार, श्लोक-१२६. मेघदूत-शिष्यहितैषिणीटीका, वा. लक्ष्मीनिवास, सं., गद्य, आदि: (१)श्रीमद्वीर धराधीर, (२)कश्चित् अनिर्दिष्ट; अंति: योगे विनोदः इत्यर्थः, ग्रं. १०००. १६३७५. (+) ऋषिमंडल स्तव सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-क्रियापद संकेत-संशोधित-प्रायः शुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६.५४११, १२-१५४४९-५१). ऋषिमंडल स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंति: सो लहइ सिद्धिसुहं, गाथा-१७५. ऋषिमंडल प्रकरण-टिप्पण, सं., गद्य, वि. १६वी, आदि: अहं कर्ता तं बाहुब; अंति: सफल पाठ हुओ. १६३७६. छ आराना बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२७४११.५, १२४३८-४१). ६ आरा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: दस कोडाकोड सागरोपमना; अंति: धरम करसे ते सुखी थशे. १६३७७. (+) गणहरसंथवणसयं, पूर्ण, वि. १६४७, श्रावण कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, पू.वि. गाथा-१-१३ नही है।, ले.स्थल. महिमावती, प्रले. पं. रत्ना; पठ. श्राव. राजसिंह (पिता श्राव. कुंवरा), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४११, ११४४३-५१). For Private And Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गणधरसार्धशतक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: भवरवि संतावमवहरउ, गाथा-१५०, पूर्ण. १६३७८. जिनपालजिनरुष चौढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-४ गाथा ३२ अपूर्ण तक हैं., जैदे., (२६४११, १३४३०). जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञातारा नुमा; अंति: (-), अपूर्ण. १६३८०. पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. खानपुर, प्रले. पं. दलपतिरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १७-१८४३८-४५). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथा, सं., गद्य, आदि: बुधैर्विधीयतां सम्यग; अंति: संपद्यते पुंसां. १६३८१. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १५३२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २८, पठ. पं. भुवनधर्म गणि; लिख. श्रावि. पुराई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. इस प्रत की दो प्रतियाँ लिखवायी गयी., जैदे., (२६.५४११.५, १९४५८-६४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: पुव्वरिसी एव भासंति, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००. १६३८२.(+) भाष्यत्रय सह अवचूर्णि, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्रत्याख्यानभाष्य गाथा-४० तक ___है., प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ५-१०४३२-४८). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: (-), पूर्ण. भाष्यत्रय-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: वंदि० वंदनीयान् सर्व; अंति: (-), पूर्ण. १६३८४. ऋषिमंडल प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२६.५४११, ११४३२-३७). ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंति: सोलहइ सिद्धिसुह, गाथा-२०९. १६३८५. रत्नसार रास, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.ले.श्लो. (६२०) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४११, १३४३२-३५). रत्नसारकुमार रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५८२, आदि: सरसति हंसगमनि पय; अंति: आणी बुद्धि प्रकाश रे, गाथा-२०३, ग्रं. ४५०. १६३८६. आवश्यकसूत्रनियुक्ति- पीठिका से सामायिक नियुक्ति पर्यन्त, प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३१, प्र.वि. प्रारंभिक ५० गाथाएँ नंदीसूत्रस्थविरावली की गाथा है परन्तु नियुक्ति के साथ इसका क्रमशः पाठ चलता है., जैदे., (२६.५४११.५, १४४३९-४३). आवश्यकसत्र-निर्यक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः (१)जयइ जगजीव जोणी विआण, (२)आभिणिबोहियनाण; अंति: (-).ग्रं. १२००, प्रतिपूर्ण. १६३८७. गच्छाचार पयन्ना व सिद्धांत हुंडी, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, जैदे., (२७४११, १४-१५४५६-५९). १. पे. नाम. गच्छाचार प्रकीर्णक, पृ. १अ-४अ. प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीरं; अंति: इच्छंता हिअमप्पणो, गाथा-१३७. २. पे. नाम. सिद्धांत हुंडी, पृ. ४अ-११. प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुं लुंका कन्हइ; अंति: तिमा करिवी ते अक्षर. For Private And Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३६७ १६३८८.(+) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८९१, आश्विन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १०४३३-३५). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. १६३८९. निरयावलियादिपंचोपांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १६२०, आश्विन कृष्ण, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४, कुल पे. ५, ले.स्थल. अकमिपुर, प्रले. पंन्या. देवविजय (गुरु आ. राजविजयसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि.प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, (१७) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, जैदे., (२६.५४११, १३४३९-४७). १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. १आ-१४अ. प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: णवमायातो सरिसणामातो, अध्ययन-१०. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. १४अ-१५आ. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वा सेज्झिहिंति, अध्ययन-१०. ३. पे. नाम. पुप्फियासूत्र, पृ. १५-२८अ. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. २८अ-३०आ. ___प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन-१०. ५.पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. ३०आ-३४अ. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: मइरित्त एक्कारससु वि, अध्ययन-१२. ११. (#) योगशास्त्र प्रकाश १ व २ सह बालावबोध, प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, प. ११, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १७-१८४६४-६६). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. योगशास्त्र-हिस्सा १ से २ प्रकाश का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरजिनं भक्त्या; अंति: संतोष भूषण ___ आभरण हुइ, प्रतिपूर्ण. १६३९२. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदे., (२६.५४११.५, १९४४५-६०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि: पूजाज्ञानवचोपायापगमा; अंति: पमतिः० प्रायशः संति, ग्रं. १५७३. १६३९४. (+) संघयणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ११४४२-४६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई थिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३०४. १६३९५. (+) संग्रहणीसूत्र, पूर्ण, वि. १६८९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, पू.वि. गाथा १ से १४ नहीं है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १३४३९-४३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१२, पूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६३९६. स्थूलभद्रस्वामि चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र.वि. किसी पुरानी प्रत की लिपि का अनुकरण किया गया है, इससे स्पष्ट है कि कोई पुरानी प्रत पर से लिखी गयी है., जैदे., (२७४११, १३४३८). स्थूलिभद्र चरित्र, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: वीरं विश्वेश्वर देव; अंति: शुद्धशीलप्रवृद्धि, श्लोक-६८४. १६३९७. सालभद्रधना रास, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., मात्र प्र.पु. का पत्र नहीं है., जैदे., (२७४११, १४४३४-३७). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल लहिस्यइजी, ढाल-२९. १६३९८. पांचमंगल रास व पार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १८७९, माघ शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, ले.स्थल. देसणोक, प्रले. ऋ. उमेदचंद्र; पठ. सा. जीता, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १४४४६-५०). १. पे. नाम. पांच मंगल, पृ. १अ-७अ. ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी जिण नमु; अंति: ज्यु पोहचो निरवाण, ढाल-५. २.पे. नाम. अंतरिकपार्श्वनाथजिन वृद्धस्तवन, पृ. ७आ-१०अ. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्ष, वा. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: भणै जयो देव जय जयकरण, गाथा-६३. १६३९९ (+) विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १५७५, श्रावण कृष्ण, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५, ले.स्थल. अणहिल्लपुर, प्र.वि. पत्र १ पर भगवान का सुन्दर रंगीन चित्र है., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैदे., (२६४११, १३४४५-४७). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२, अध्ययन २०, ग्रं. १२५०. १६४००. (+) उपदेशमाला सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १६७१, आषाढ़ शुक्ल, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २८-१(१)=२७, पू.वि. गाथा १-१० नहीं है., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ५-८४४८-५१). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४, पूर्ण. उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वचन थकी नीकली वाणी, ग्रं. ११६६, पूर्ण. १६४०२. षट्दर्शनसमुच्चय सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. मु. इंद्रशेखर (गुरु ग. सत्यशेखर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११, ६-७४३६-३९). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सद्दर्शनं जिनं नत्वा; अंति: लोच्यः सुबुद्धिभिः, अधिकार-७, श्लोक-८७. षड्दर्शन समुच्चय-लघुवृत्ति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., गद्य, वि. १३९२, आदि: सज्ञानदर्पणतले विमले; अंति: समुच्चयसूत्रटीका. १६४०३. सुक्तावली संग्रह, संपूर्ण, वि. १४९२, श्रेष्ठ, पृ. ४४, ले.स्थल. मज्जापद्र, प्र.वि. सं.१४९२ वाली प्रत पर से यह प्रत लिखी होने की संभावना है., जैदे., (२७४११.५, १७४६४-६६). सूक्तावली संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वीरं विश्वगुरुं; अंति: कुर्याद्वचनप्रमाणं. १६४०४. शालीभद्र चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५+१(१३)=१६, जैदे., (२६.५४११.५, १६-१९४६९-७३). For Private And Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शालिभद्र चरित्र, पंडित धर्मकुमार, सं., पद्य, वि. १९३३४, आदि: श्रीदानधर्मकल्पद्रु अंतिः विस्तारिधर्मोन्नतिः, प्रक्रम-७, ग्रं. १२२४. १६४०७. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६.५X११.५, ११४३६-३८). ३६९ उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं० चंपा नाम नयरी; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्याय-१०, ग्रं. ८१२. उपासक दशांगसूत्र- बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: (-). १६४०८. चत्वारोप्रत्येकबुद्धसंबंध चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२७११.५, १४-१५X३९-४३). चारप्रत्येकबुद्ध चरित्र, सं., पद्य, आदि: करकंडू कलिंगेषु अंतिः चत्वारोपि मोक्षगता, अध्याय-९, १६४०९. संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ६३ - २६ (१ से २५, ५६ ) - ३७, पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा १-१३० तक नही है। प्रतिलेखक द्वारा टबार्य गाथा १७९ तक का ही, प्र. वि. रंगीन यंत्र चित्र हो, जैवे., (२६.५x११.५, ४-५x२४-४१). " बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. बृहत्संग्रहणी - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १६४१०. (+) दीपोत्सव कल्प व दीपालिका कल्प, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, प्र. वि. पक् पाठ., जैदे., (२६.५X११, १४-१५X४७-४९). १. पे नाम. दीपावलीपर्व कल्प, पृ. १अ ७आ. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि संतु श्रीवर्द्धमानस; अंतिः चिंतयतः केवलमुत्पेदे, श्लोक-२६१. २. पे. नाम. दीपालिका कल्प, पृ. ७आ-८आ, पे. वि. दीपालिका कल्प के चुने हुए श्लोकों का संकलन है. कुल ग्रं. श्लोक - ४०. दीपावलीपर्व कल्प, आ. विनयचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १३४५, आदि: (-); अंति: दीपालिकाकल्पं, प्रतिपूर्ण. १६४११. सोहण वेलि संपूर्ण, वि. १७०० आश्विन शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल, मालपुरनगर, प्रले. प्र. मु. प्रेमजी (गुरु गच्छा. शिवजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४११.५, १६३७). 9 , शिवजी आचार्य रास, क्र. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य वि. १६९२, आदि आदिपुरुष आदिसरु; अंति: मुनि० सेवकजन सुखकार, डाल- २५, गाथा १५७. For Private And Personal Use Only १६४१२. (+) सुक्तमाला, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. केलवानगर, प्रले. पं. कपूरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६११.५, १२-१५X३१-४२). " सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलमुकृत्यवीवृंद अंतिः केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४ १६४१३. शालिभद्रधन्नाऋषि चौपई, अपूर्ण, वि. १८९१, माघ शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१-७ (१ से ७) = २४, ले. स्थल, लक्ष्मणपुर, प्रले. मु. दीप ( खरतरगच्छ); पठ, श्राव. रूपा श्रीमाल राज्ये गच्छा. जिननंदीवर्द्धनसूरि ( खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५x११.५, १०x३२-३४). Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: सारें० फल लहस्ये जी, ढाल-२९, अपूर्ण. १६४१४. (+) सुक्तावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १३-१४४२९-३६). सूक्तावली संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वीरं विश्वगुरुं; अंति: (अपठनीय), श्लोक-३३०. १६४१५. चौबोलीरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, १३४३८-४३). विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; __ अंति: (-), अपूर्ण. १६४१६. (+) सीमंधरजिन वीनती स्तवन सह टबार्थ-स्वोपज्ञ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-११ तक हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ५-६x४०-४४). सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; ___अंति: (-), अपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, आदि: अहो श्रीसीमधरस्वामी; अंति: (-), अपूर्ण.. १६४१७. (+) श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह, अपूर्ण, वि. १७९८, चैत्र कृष्ण, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २०-१३(१ से २,५ से ७,११ से १८)=७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ११४३२-३८). आवश्यकसूत्र-तपागच्छीय श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, अपूर्ण. १६४१८. अंजनसिलाका रास, संपूर्ण, वि. १८९३, भाद्रपद शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. लिंबडी, प्रले. श्राव. कुंवरजी डाया सा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, ११४३६). शत्रुजयतीर्थे मोतीशाट्रंक स्तवन- इतिहासयुक्त, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उठी प्रभाते प्रभु; अंति: कहे विरविजय महाराज, ढाल-७. १६४१९. (+) श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८३२, चैत्र शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पं. रूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (७११) कमलदलविलनयणा, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३७-४२). आवश्यकसूत्र-तपागच्छीय श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अति: भूयान्नः सुखदायिनी. १६४२०. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२६४११.५, ११४३०-३४). पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कूष्मां; अंति: सत्योपासक केवली. १६४२१. (+) पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९१२, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. रोहगुप्त कथा प्रसंग तक लिखा है., ले.स्थल. मालेगाम, प्रले. पं. खेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, १७-१८४४१-४९). पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: वीरने पाटें सुधर्मा; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १६४२२. वीरस्तवन व गहुंली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२६.५४१२, ११४३२-३८). For Private And Personal Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३७१ १. पे. नाम. महावीरजिन निर्वाण महिमा स्तवन-दीपावलीपर्व, पृ. १आ-९आ. महावीरजिन निर्वाणमहिमा स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रमणसंघ तिलकोपम; ____ अंति: श्रीगुणहर्ष वधामणइं, ढाल-१०, गाथा-१२५. २. पे. नाम. गौतमस्वामी गहुंली, पृ. ९आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-३ अपूर्ण तक है. मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चरण करण गुण आगरो रे; अंति: (-), अपूर्ण. १६४२३. (+) पासाकेवली सुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. कलकता, प्रले. मु. मानविजय; पठ. श्राव. सोभाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १२-१३४३९-४२). पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कूष्मां; अंति: सत्योपासक केवली. १६४२४. बारभावनावेली, अपूर्ण, वि. १९७४, पौष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १०-३(१ से ३)=७, पृ.वि. ढाल-४ की गाथा-६ तक नहीं है., ले.स्थल. राधनपुर, जैदे., (२६.५४११, १०४३०-३६). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: (-); अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल-१३, अपूर्ण. १६४२५. वीसस्थानकपूजा विधिसहित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२६४१२, १२-१३४३३-३९). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: (१)सयल संघ मंगल करो, (२)२० तवन कहीने पूजे, ढाल-२०. १६४२६. संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९०३, आषाढ़ शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. जोडियाबिंदर, प्रले. झवेर शिवजी ऋषि; पठ. गोपाल झवेरजी; जादव झवेरजी; प्रागजी झवेरजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (७१२) जे भणे गणे तने, जैदे., (२६.५४१२, ११४३४-३६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३२५. १६४२७. कल्पसूत्र-साधुसमाचारी सह बालावबोध, प्रतिअपूर्ण, वि. १६८९, कार्तिक शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २५-१(१)=२४, ले.स्थल. समद्रडी, प्रले. मु. मानसिंघ (गुरु मु. कनकचंदजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १६४४०-४७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १६४२८. (+) क्षेत्रसमास प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९००, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२, ले.स्थल. सवराड, प्रले. मु. हुकमचंद ऋषि (बृहत्लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ.,प्र.ले.श्लो. (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे, जैदे., (२५.५४१२, ५४३३-३७). क्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: कुशलरंगमयं पसिद्धिं, अधिकार-६, गाथा-२६५. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: वीर श्रीमहावीर केहवउ; अंति: रंगमय प्रसिद्धि पामे. For Private And Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६४२९. (+) अनुत्तरोववाइदशांगसूत्र सह टीका व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६८, कार्तिक शुक्ल, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. नारनवल, प्रले. मु. लखजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ७४४३-५२). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: तहा णेयव्वं, अध्याय-३३, ग्रं. १९२. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अथानुत्तरौपपातिकदशा; __ अति: न शायमिति क्षमा. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालने विषे ते; अंति: तिमही ज जाणवो. १६४३१. समकितसडसठबोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२५४१२, ८४३२). समकितना सडसठबोलनी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोलइ जी, ढाल-१२, गाथा-६८. १६४३४. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६७८, चैत्र कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. उज्जैन, प्रले. मु. शांतिविजय; मु. सहसकरणशिष्य ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे, जैदे., (२६.५४११.५, ७-९४२०-३२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-अवचूरि*, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: विशिष्टाःस्वर्गसंपदः. कल्याणमंदिर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: किल इति संभावनाए हं; अंति: प्रभाश्वर झलहलती छइ. १६४३५. (+) श्राद्धमंडणग्रंथ, संपूर्ण, वि. १९०७, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. मेडता, प्रले. आ. देवगुप्तसूरि (उपकेश गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित प्रत., जैदे., (२५.५४१२, १४४४१-४५). श्राद्धमंडणग्रंथ, मु. रत्नविजय, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वकुं प्रणमु सदा; अंति: के सेव हुवे निस्तार, प्रश्न-११. १६४३६. वरदत्तगुणमंजरी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. राधनपुर, लिख. श्राव. हीरचंद डाघी सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रभात काल में ही लिखवाकर वहोराये (अर्पण किये जाने का उल्लेख है., जैदे., (२६.५४११.५, ११४२९-३१). वरदत्तगुणमंजरी कथा, सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: प्रपाल्य मुक्तिं गतः. १६४३७. मध्यलोकमानादि विचारसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६४११.५, १२-१३४४६-५४). विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १६४३८. (+) कर्मविपाक प्रथम कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-१(१)=१५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा ३ से ६२ तक है।, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ३४३०-३३). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), पूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पूर्ण. १६४३९. सामुद्रिकशास्त्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १२-१५४२९-३४). For Private And Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३७३ सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: (-), अपूर्ण. १६४४०. भक्तामर स्तोत्र सह सवैया व चौपाईबद्ध पद्यानुवाद, पूर्ण, वि. १८९४, मृगांकसिद्धनिधियुग, आश्विन शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(१)=१८, पू.वि. श्लोक १-२ तक नहीं है., ले.स्थल. अलिपुर, पठ. श्राव. नवनिधराय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक का नाम सुस्पष्ट नहीं है., जैदे., (२५.५४११.५, १२-१५४३७-३९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४८, ग्रं. ७७, पूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-सवैयाबद्ध पद्यानुवाद, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: विन ताकी मति मैली है, का.-४८, पूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-भाषानुवाद, मु. हेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ते पावै शिवखेत, गाथा-४८, पूर्ण. १६४४२. सौभाग्यपंचमी कथा, संपूर्ण, वि. १८५३, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. बांतानगर, प्रले. पं. क्षमासौभाग्य; लिख. श्राव. वच्छराज शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीलीलाविलाशपार्श्वनाथजी प्रसादात्. रात्रसमये दीपोद्योते लिखितं. श्रीवृद्धपंचमी ऊज्जमणार्थे., जैदे., (२६४१०.५, १२४२९-३८). कार्तिकपंचमी महात्म्य विषये वरदत्तगुणमंजरी कथा, सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: प्रपाल्य मुक्तिं गतः. १६४४४. भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, प्रले. तलजा बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, २-५४३०-३६). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३, गाथा-१५२. भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्तु क० वांदीने; अंति: अबाधा पीडारहित. ९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे.. (२६४११.५, ४४२६-३२). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा-१५२. भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्तु क० वांदीने; अंति: कहता बाधारहित. १६४४६. सीमंधरस्वामी फरदी, संपूर्ण, वि. १८९०, फाल्गुन शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. अजमेरगढ, प्रले. नाथूराम ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, ११४३०-३४). सीमंधरजिन पत्र, क. नर, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमहाविदेह; अंति: कीयु विधि नोवत वाजै. १६४४७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थव कथा -अध्ययन १९ वाँ (मृगापुत्र), संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. मूल पत्रानुक्रम-१०३-११७ संभव है कि प्रारंभिक १-१०२ पत्र अध्ययन १-१८ तक के होंगे., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ६-१३४४०-४४). उत्तराध्ययनसूत्र का हिस्सा १९वां मृगापुत्र अध्ययन, प्रा., पद्य, आदि: सुग्गीवे नयरे रम्मे; अंति: गुणावहं तिबेमि, गाथा-९९. उत्तराध्ययनसूत्र का हिस्सा १९वां मृगापुत्र अध्ययन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुग्रीवनामा नगर रमणी; अंति: मोटउ तेहनी प्राप्तः. उत्तराध्ययनसूत्र का हिस्सा १९वां मृगापुत्र अध्ययन-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: सर्व सगलाई मन वचन; अंति: संयमनइ विषै हुओ. For Private And Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६४४९. हरिबल रास, अपूर्ण, वि. १८८८, कार्तिक शुक्ल, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१-१२(१ से १२)=१९, पू.वि. ढाल-१५ की गाथा-१९ तक नहीं हैं., ले.स्थल. भीवालीया, प्रले. मु. अनोपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १२४४१-४५). हरिबल रास, मु. जितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पूरे शंखेसर आसो रे, ढाल-३५, गाथा-८८४, ग्रं.१०४८, अपूर्ण. १६४५०. (+) क्षेत्रसमास सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-१४(१ से १४)=७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा ९४ से १९५ तक है। गाथा १३१ तक टबार्थ नही है।, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ८४८-५२). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), अपूर्ण. १६४५१. (+) प्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लव जैदे., (२६४११.५, १-५४३९-४६). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: वायगवंसं पवयणं च. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरजिनाधिपतिं; अंति: च पुनः प्रवचन वंदे. १६४५३. (+) वीरद्वात्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८८, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. सुरतबंदर, प्रले. पं. जैनेंद्रसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत-संशोधित., जैदे., (२०.५४११.५, ४४३३-३६). महावीरद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: सदा योगसाम्यात् समुद; अंति: तांश्चक्रिशक्रश्रियः, श्लोक-३३. महावीरजिनद्वात्रिंशिका स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सदा सर्वदा मन वचन; अंति: पदनी लक्ष्मी वरे. १६४५५. सुकनावली पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. शांडेरांनगर, प्रले. रविंद्रभाई; पठ. सुखसागरभाई. प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. चक्र सहित., जैदे., (२६४११.५, १०-११४१७-२९). पाशाकेवली-भाषा*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)ॐ रीद्धि नमो भगवति, (२)१११ उत्तम थानक लाभ; अंति: करै सर्व लाभ थास्यै. १६४५६. प्रकरणचतुष्क, श्लोक व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९३, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ४, ले.स्थल. तुंआव, प्रले. पं. ज्ञानविजय गणि; पठ. श्राव. फतमल, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४११, ९४३०-३४). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-४अ.. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ४अ-८अ. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पण्ण पावा: अंति: पन्नं पावामि अजीवा. गाथा-५९. ३. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. ८अ-११अ. मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४३. For Private And Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 7 हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३७५ ४. पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. ११अ-११आ. *, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-४. १६४५७. दंडकद्वार बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-२(१ से २)=६, जैदे., (२६४११, १८-२५४२७-३९). दंडकद्वार बोलसंग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: प्राण नही २६ योग नही, अपूर्ण. १६४५८. भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति व कथा, संपूर्ण, वि. १७८१, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले.स्थल. जयतारण, प्रले. पं. प्रीतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १७४४८-५८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४, ग्रं. ७७. भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि: पूजाज्ञानवचोपायापगमा; अंति: पमतिः० प्रायशः संति, ग्रं. १५७२. भक्तामर स्तोत्र-कथा, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, आदि: पुरामरावती जयिन्या; अंति: धर्मं च पालयामास, __कथा-२८. १६४५९. संग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७८३, वैशाख कृष्ण, ३०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १५-२(१ से २)=१३, पू.वि. गाथा-१ से ३० नही है., ले.स्थल. झगीग्राम, पठ. ग. विबुधविजय (गुरु ग. कांतिविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३३-३९). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३११, अपूर्ण. १६४६०. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, पू.वि. सूत्र-२७ अपूर्ण तक है., जैदे., (२५.५४११.५, २-६४३७-४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)णमो अरिहंताणं पढम, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-). प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (१)माहरो नमस्कार हुवौ, (२)ते काल अवसर्पिणीनो; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानजिन; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १६४६१. गौतमपृच्छा सह बालावबोधव कथा, संपूर्ण, वि. १७९५, मध्यम, पृ. ४४, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. कुशलसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४३३-४२). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा-६३. गौतमपृच्छा-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नत्वा वीरजिनं, (२)तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंति: ते इणमाही ज जाणिवा. गौतमपृच्छा-कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: वसंतपुर नगरने विषे; अंति: सिद्धि उपना एकावतारी, कथा-३५. १६४६२. (+) संग्रहणी सह टबार्थ व बीजक, पूर्ण, वि. १७५७, भाद्रपद कृष्ण, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २३-२(२,४)=२१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ७४३७-४३). १.पे. नाम. बृहत्संग्रहणीसह टबार्थ, पृ. १आ-२३अ, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., गाथा-८-१९ व ३३-४५ नहीं है. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७८, पूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३७६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्संग्रहणी - टबार्थ, मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने अरिहंत; अंतिः श्रीमहावीरनो शासन छै, पूर्ण. २. पे. नाम संख्यामान, पृ. २३आ. जैन यंत्रसंग्रह, मा.गु., पं., आदि (-); अंति: ( - ). १६४६४. पर्यंताराधनासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२५.५X११.५, ५X३५-३७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , आराधना सूत्र, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भनाइ एवं भयवं; अंतिः ते सासयं सुक्खं गाथा - ७०. पर्वताराधना-बार्थ, मु. लावण्यविजयवाचक शिष्य, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर तीर्थकर, अंतिः सुख लहड़ पामइ. १६४६५. (+) जीतकल्पसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३७+१ (१५) ३८, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित., जैदे., ( २६x११, १५X४९-५३). जीतकल्पसूत्र, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि कयपवयणप्पणामो; अति: सुपरिच्छिय गुणम्मि, गाथा - १०५. जीतकल्पसूत्र- टीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२७४, आदि: वंदे वीरं तपोवीर; अंतिः शुध्यतः सिध्यतश्चेति, ग्रं. १७००. १६४६६. पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-२ (२ से ३ ) = १०, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं है., जैदे., (२५x११, ११४३४-३९). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि तित्यंकरे अ तित्थे अंति: (-), अपूर्ण. १६४६८. (+) कल्पसूत्र-पार्श्वजिनकल्याणक व्याख्यान सह टीका, प्रतिपूर्ण, वि. १८४०, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. जेसलमेरु, प्रले. पं. ऋषभदास (गुरु उपा. भीमराज), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५x११, १२x२९-३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र- टीका में, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: ( - ), प्रतिपूर्ण १६४७०. पाखीसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १७९९, आषाढ़ शुक्ल, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, ले. स्थल. नीबेडा, मु. .प्रीतसौभाग्य (गुरुग, जयसौभाग्य); राज्यकाल रा. सवाइ सिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १४४३३-३७). प्रले. १. पे नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ १० आ. हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि तित्थंकरे व तित्थे; अंति: जेसिं सुवसायरे भत्ति, ग्रं. ३६०. , २. पे नाम, पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १०-११अ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासणौ पिअं; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि, सूत्र- ४. ) नवतत्त्व सह टवार्थ विस्तृत, संपूर्ण वि. १८३८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. जगतारणी, प्रले. मु. . क्षमासौभाग्य (गुरु ग. रामसौभाग्य), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२५x११, (+) १६४७१. ३X३२-३५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अनंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा - ५०. For Private And Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३७७ नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, पा. रूपचंद्र गणि, मा.गु., गद्य, आदि: वीतरागं नमस्कृत्य; अंति: कालाऊनाह्वये स्थले. १६४७२. (+) क्षेत्रसमास सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा १११ तक है।, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ६४३४-४१). जंबूद्वीप प्रकरण, संक्षेप, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहर निभस्स; ___ अंति: (-), अपूर्ण. बृहत्क्षेत्रसमास-संक्षेप जंबूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनि पाणी; अंति: (-), अपूर्ण. १६४७३. क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १९४०, चैत्र कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. आगरा, प्रले. श्राव. पनालाल; पठ. मु. खूबसागर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. चिन्तामणि पार्श्वनाथ प्रसादात्., जैदे., (२६४११, १२४३३-३६). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; ___ अंति: कुसलरंगमयं पसिद्धं, अधिकार-६, गाथा-२६६. १६४७४. पासाकेवली शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. चना जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ९४३०-३४). पाशाकेवली-भाषा*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)ॐ नमो भगवति कुष्मांड, (२)१११ उत्तम थानक लाभ; अंति: सत्या पासाय केवली. १६४७५. (+) क्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१-४(१ से ४)=१७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा ५९ से २३७ तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, ११४४०). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १६४७६. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८८७, पौष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ११, पठ. मु. छगनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १०-१२४३४-३८). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: आनंदघन प्रभु जागै जी, स्तवन-२४. १६४७७. दशवैकालिकसूत्र- १ से ४ अध्ययन, प्रतिपूर्ण, वि. १८१३, चैत्र शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. अकबराबाद, प्रले. मु. सांवलजी (गुरु मु. वस्ताजी, अहिपुरगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, ९४३२-३९). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १६४७८. ललितविस्तरानाम चैत्यवंदनसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदे., (२६.५४११, १७७५५-६०). चैत्यवंदनसूत्र-ललितविस्तरा वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य भुवनालोकं; अंति: मात्सर्यविरहः परः. १६४७९. (+) भक्तामर स्तोत्र सह सुखावबोधिका टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. अंतिम अनुपूरित दो पत्र १९वी की है., संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४४९-५६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: किल इति सत्ये किलेति; अंति: विबुधैः शोध्यतामियम्. For Private And Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३७८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६४८०. नवस्मरण की वृत्ति नवकार, उपसर्ग व भयहर स्तोत्र, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. संशोधित प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., ( २६x११, १७५२-५५). (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवस्मरण-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १६४८१. पिंडविशुद्धि व यतिप्रतिक्रमणसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे. २, जैवे. (२६४११, १५x५३-५७). १. पे. नाम. पिंडविशुद्धि प्रकरण, पृ. १आ - १५आ. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदविंदवंदिय पयार; अंति: बोहिंतु सोहिंतु अ, गाथा - १०३. पिंडविशुद्धि प्रकरण- दीपिका टीका, आ. उदयसिंहसूरि, सं., गद्य वि. १२९५, आदिः तं नमत श्रीवीर अंतिः स्नेहेन संपुष्यताम् " २. पे नाम साधु प्रतिक्रमणसूत्र सह टीका, पृ. १५आ-२१ आ. आवश्यक सूत्र- साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: करेमि भंते० चत्तारि०; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. आवश्यक सूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र की लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरजिनाधिपतिं; अंतिः श्रेय एवेति मन्यते. १६४८३. श्रद्धप्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, वंदितु सूत्र ४१ वी गाथा तक है., जैदे., (२५x११, १५X३२-४१). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: (-), अपूर्ण. १६४८४. (+) नवस्मरण, वृद्धशांति, लघुशांति, गौतमस्वामीस्तुति व अष्टक, अपूर्ण, वि. १७९५, कार्तिक शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १५-४(३ से ६)=११, कुल पे. ६, ले. स्थल. हुरडा, प्रले. ऋ. जगनाथ; पठ. चतुर्भुज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४X११, १५-१६X३१ - ३५). १. पे. नाम. सातिस्मरण, पृ. १आ-११अ, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा., सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं हवइ; अंति: कित्तणे अजियः शान्ति, अपूर्ण. २. पे. नाम. वृधशांति स्तोत्र- तपागच्छीय, पृ. ११अ - १३अ, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, हिस्सा, सं., गद्य, आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ३. पे. नाम महावृधिशांति, पृ. १३-१४अ. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंतिः सूरिः श्रीमानदेवञ्च लोक- १७. ४. पे नाम, बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. १४-१५अ पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, हिस्सा, सं., गद्य, आदि भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ५. पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. १५आ. गौतमस्वामी स्तुति, सं., पद्य, आदि: सर्वारिष्टप्रणाशाय; अंति: गौतमस्वामिने नमः, श्लोक - १. ६. पे. नाम, मध्यशांति, पृ. १४-१५अ. गौतमाष्टक, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति; अंति: लभते नितरां क्रमेण, श्लोक - ९. For Private And Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ (+) www.kobatirth.org १६४८५. दामन्नक रास, संपूर्ण, वि. १७८७, वैशाख कृष्ण, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल. खेडाग्राम, प्रले. मु. लालरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, जैवे., (२५.५x११, १३४३०-३२). दामन्नक रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७८२, आदि: अकल सकल अमरेशने; अंति: उदय० दीयो सुरसा रे, ढाल - १३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६४८७. (+) गौतमपृच्छा सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५X११, १६-१९X३५-४५). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: पावए पुरिसो, गाथा- ६२. गौतमपृच्छा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंतिः थोडे कालि मोक्ष जाई. गौतमपृच्छा - कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: एकै गामै एक वाणीयो; अंति: हुओ मोक्ष पामिस्य, कथा-३३. १६४८८. (+) वीतराग स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६x११, ७X४०-४४). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः यः परात्मा परं; अंतिः फलमीप्सितम्, प्रकाश - २०, ग्रं. ५५०. वीतराग स्तोत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे स्वामी परमात्मा; अंति: तलइ जि संतोष पामिसु १६४८९. क्षेत्रसमासअवचूरि, संपूर्ण, वि. १४८५ आश्विन शुक्ल, १२, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२७४११.५, २९-३१x६९-७१). बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नत्त्वा वीरं बृहत्; अंति: वृत्तनामादि नोक्तम्. १६४९०. (+) क्षेत्रसमास बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-३ (१ से ३) = १३, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X११, १५-१६x४१-४६). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण - बालावबोध, मु. वत्सराज, मा.गु., गद्य, वि. १६६५, आदि (-); अंति: बोधं मुनिवत्सराजः, अपूर्ण. १६४९१. (+) वीतराग स्तोत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९ - ३ ( ४ से ६) = ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्रकाश - १४ अपूर्ण तक है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., ( २६४११, १७-१८४५८-६८). , वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः यः परात्मा पर अंति: (-), अपूर्ण. वीतराग स्तोत्र - अवचूरि, मु. विशालराजसूरि-शिष्य, सं., गद्य, वि. १५१२, आदि: जयति श्रीजिनो वीरः; अंति: (-), अपूर्ण. १६४९२. (*) अंतगडदशांगसूत्रवृत्ति व जैनधार्मिक लोक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., ( २६.५४१९, १५X४६-५३). - १. पे. नाम. अंतकृदशांगसूत्र टीका, पृ. १आ-८अ. आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदि: अधांतकृतदशासु किमपि; अंतिः विवरणादवसेयमेवं च ग्रं. ३५१. २. पे. नाम, जैनधार्मिक लोक, पृ. ८अ. जैन सुभाषित*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक - १. ३७९ For Private And Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६४९३. आचारांगसूत्रनियुक्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू.वि. गाथा ३६७ तक है।, जैदे., (२६४११, १३४४४-४८). आचारांगसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: वंदितु सव्वसिद्धे; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १६४९४. समवसरण स्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६.५४११, ४४२८-३६). समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलीवत्थं; अंति: कुणउ सुपयत्थं, गाथा-२४. समवसरण स्तव-टबार्थ, पंन्या. रुपविजयजी, मा.गु., गद्य, आदि: स्तवनां करुं छु; अंति: टबार्थ प्रयत्ननमिदं. १६४९५. मंगलकलश फाग, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२६४११, १३४३१-३४). मंगलकलश फाग, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४९, आदि: सासण देवीय सामिणी ए; अंति: मंगल चरित्त जगीस, गाथा-१४२. १६४९६. द्वादशभावना स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९०८, चैत्र कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. श्राव. बेचरदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १०४२९-३२). १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: विमल कुल कमलना हंस; अंति: सकल मुनी चित्ति __ आणो, ढाल-१२. १६४९७. सीमंधरजिन वीनतीस्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-२(८,११)=१०, पृ.वि. बीच-बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., गाथा-१२४ अपूर्ण तक हैं., जैदे., (२५.५४११, ९४२८-३०). सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; __ अंति: (-), अपूर्ण. १६४९८. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, जैदे., (२५४११.५, ६-७X४१-४४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: निच्चला होसु, अध्ययन-१०, चूलिका २. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जिनधर्म उत्कृष्ट; अंति: चित्तवा धर्म करइ. १६४९९. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८, प्र.वि. जैदे., (२६४११.५, ५-६४३८-४९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: निच्चला होसु, अध्ययन-१०, चूलिका २, गाथा-७००. दशवकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट; अंति: विषि निश्चल होयो. १६५०१. (+) भक्तामर स्तोत्र सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ६, प्रले. ग. इंद्ररत्न (गुरु आ. सुधानंदसूरि, अज्ञात); पठ. मु. क्षेमदेव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११, ७-८४३३-३६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४, ग्रं. ७७. भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सम्यग् जिनपादयुग; अंति: समुपैति समागच्छति. १६५०२. (+) वीरजिन स्तवन सह टबार्थ व सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८५८, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, कुल पे. ३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रले. पं. वीरविजय (गुरु ग. शुभविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६.५४११.५, ५-६४३८-४१). For Private And Personal Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३८१ १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन सह टबार्थ, पृ. २अ-१०अ. महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५७, आदि: गुरूक्रम पंकज भ्रमर; अंति: सेवक वीरविजयो जयकरो, ढाल-६+कलश. महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (१)शंखेश्वरं प्रणम्याथ, (२)गुरूना क्रमने पगने; अंति: भव्यनें जयकारी हज्यो. २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १०अ-१०आ. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुणनिधि साहिब सेवीये; अंति: आपजो वीर कहे परमत्थ, गाथा-१२. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १०आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-७ अपूर्ण तक हैं. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जिनवर जग हितकारी; अंति: (-), पूर्ण. १६५०३. देवकुमार चौपाई, पूर्ण, वि. १६५२, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, पू.वि. गाथा-४० अपूर्ण तक नहीं है., ले.स्थल. अहमदाबाद, प्रले. पं. खीमा (संडेरागछ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १७४६०). देवकुमार चौपाई, ग. सोभागसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६२७, आदि: (-); अंति: घरि उच्छव घणउ, गाथा-३३७, १६५०४. साधुसमाचारी सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्र.वि. २८ सामाचारी., जैदे., (२६४११, १५४४५-५१). कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समय; अंति: उवदंसे त्तिवेमि. कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन-टीका, सं., गद्य, आदि: तस्मिन् काले तस्मिन; अंति: आषाढचतुर्मासादारभ्य. १६५०५. दंडक स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६४१०.५, १७४५६). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४०. दंडक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: इहां चोवीस दंडसान्नइ; अंति: दंडक विचार रूप स्तवन. १६५०६. ज्ञानपंचमी देववंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२६.५४११.५, १४४४२). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (१)प्रथम बाजठ उपरि तथा, (२)श्रीसौभाग्यपंचमी; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज. १६५०८. समेताचलतीर्थमाला व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. आउयानगर, प्रले. ग. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १५४३५-३८). १.पे. नाम. समेताचलतीर्थमाला, पृ. १अ-५आ. सम्मेतशिखर तीर्थमाला, मु. जयसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: प्रणमीय प्रथम परमेसर; अंति: थुइ भणी बहु सुख धरी, गाथा-१३२. २.पे. नाम. जैनकाव्य संग्रह , पृ. ५आ. मा.गु., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), का.-५. १६५०९. पुण्यसार व आषाढभूति चौपाई, संपूर्ण, वि. १८२१, मार्गशीर्ष कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, ले.स्थल. समदरडी, जैदे., (२६४११, १६-१७४३७-४५). For Private And Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. पुण्यसार चउपई, पृ. १अ-६आ. पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: नाभिराय नंदन नमु; अंति: इम भणै० __नवनिधि थाय, ढाल-९, गाथा-१९७, ग्रं. २०१. २. पे. नाम. पिंडविशुद्धिविषये आषाढभूति चउपई, पृ. ६आ-१३आ. आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंति: होजो परम कल्याणो रे, ढाल-१६, गाथा-२१८, ग्रं. ३५१. १६५१०. मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४१०.५, १४४४६-४९). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: सादादानंदमाला भवतु. १६५१२. एकविंशतिस्थानक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८११, चैत्र शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. पं. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ४४३९-४२). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-७०. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीचोविस जे; अंति: भणीया कहितां कह्या. १६५१३. बारभावना, संपूर्ण, वि. १९०९, पौष शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २१, प्रले. मु. कल्याणविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ८-१०x२१-२७). १२ भावना, मा.गु., गद्य, आदि: अपरांच बिजं; अंति: संबल छे जीव स्वअर्थे. १६५१४. नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १९५८, कार्तिक शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ.८, प्रले. मु. शिवरतन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १३४२७-२९). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: कोई नये न अधूरी १६५१६. ज्योतिषसार व थिरवास श्लोक, संपूर्ण, वि. १८३६, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, प्रले. मु. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १५४३६-४०). १. पे. नाम. ज्योतिषसार, पृ. १आ-१६अ. आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: दशायाः क्रमात्. २. पे. नाम. थिरवास श्लोक, पृ. १६अ. ज्योतिष श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. १६५१८. नलदवदंती रास, पूर्ण, वि. १७६०, कार्तिक कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३६-१(१२)=३५, ले.स्थल. धनोरा, प्रले. ग. सत्यविजय (गुरु ग. ऋद्धिविजय); पठ. मु. मोहनविजय (गुरु ग. सत्यविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १३-१६५३६-४१). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: चतुर माणस चित वसी, खंड-६, ढाल ३९, गाथा-९१३, ग्रं. १३५०, पूर्ण. १६५२०. इक्षुकारी संधि, संपूर्ण, वि. १८१७, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. उदांवाडाद, प्रले. मसतुजी किसनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १६-१८४३१-३४). For Private And Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ इक्षुकारसिद्ध चौपाई, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४७, आदि: परम दयाल दयाकरु आसा; अंति: खेम भणै० कोडि कल्याण, ढाल-४. १६५२१. (+) प्राकृतलक्षण सह अवचूरि-व्यंजनविधान से भाषांतरविधान, प्रतिपूर्ण, वि. १९१२, चैत्र कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. प्रमोद व्यास; मु. रामचंद्र (गुरु मु. वृद्धिचंद्र), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-त्रिपाठ., जैदे., (२५४११, ६४२१-३२). प्राकृतलक्षण, क. चंड कवि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य शिरसा वीरं; अंति: भाषाश्च प्रकीर्तिताः, प्रतिपूर्ण. प्राकृतलक्षण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: प्रकृतिः संस्कृत; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १६५२३. आषाढभूति रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. पं. तेजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १६x४२-४४). आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंति: सागर० परम ___ कल्याणो हो, ढाल-१६, ग्रं. ३५१.. १६५२४. मौनएकादसी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रावण कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. मु. खुशालरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ४४३६-३८). मौनएकादशीपर्वमाहात्म्य, मु. धीरविजय, सं., पद्य, वि. १७७४, आदि: श्रीवर्द्धमानतीर्थेश; अंति: लभंते ___ शिवसंपदः, श्लोक-१०५. मौनएकादशीपर्व माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीवर्द्धमा, (२)श्रीतीर्थना ठाकुर एह; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. श्लोक-२३ तक टबार्थ है.) १६५२५. सिद्धगीरीमोतिसासेठ जिनभवनअंजनशलाका स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. जयसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १०४३०-३४). शत्रुजयतीर्थे मोतीशाट्रंक स्तवन- इतिहासयुक्त, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऊठी प्रभाते सदा नमिइ; अंति: कहे विरविजय महाराज, ढाल-७. १६५२६. (+) नंदीसूत्रवृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११.५, १५४४४). नंदीसूत्र-टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति भुवनैकभानुः; अंति: (-), अपूर्ण. १६५२८. शीलोपदेशमाला, स्तुति व आणंदविमलसूरि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३५-४१). १. पे. नाम. शीलोपदेशमाला प्रकरण, पृ. ६. शीलोपदेशमाला, आ. जयवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: आबाल बंभयारि नेमि; अंति: जयवल्लहा० बोहि फलं, गाथा-११५. २. पे. नाम. सर्वतीर्थ स्तुति, पृ. ६आ. प्रा., पद्य, आदि: अट्ठावयम्मि उसभो; अंति: वीसं परनवुआ वंदे, गाथा-२. ३. पे. नाम. आणंदविमलसूरि स्वाध्याय, पृ. ६आ. मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी वीर जणेसरराय; अंति: मझनइ भवसायर उतारि, गाथा-७. For Private And Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६५२९. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६५, माघ कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. फलोदी, प्रले. मु. लाभचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २५X११.५, १०-११x२३-२६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. अनोपचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि: श्रीजिन वदन निवासनी; अंति: य धवल धीग गौडीधणी, ढाल - ८. १६५३१. (+) यशोधर चरित्र व यशोधरचंद्रमति ७भव, संपूर्ण, वि. १७६९, कार्तिक कृष्ण, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. २, प्र. मु. खुशालप्रमोद लिख. मु. प्रेमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न. प्र. ले. श्लो. (७१५) उपगारी होय जीव, जैवे. (२४.५x११.५, १५-१६४४८-५० ). " " १. पे. नाम. यशोधर चरित्र, पृ. १आ - २२अ. मु. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., पद्य, आदिः नमः श्रीविश्वनाथाय; अंतिः स्वास्य सुलेखकैः सर्ग-८, लोक- ८६०, २. पे नाम, यशोधर व चंद्रमतिकेसातसातभव, पृ. २२आ. यशोधर व चंद्रमति के ७ भव, मा.गु., गद्य, आदि: जसोधर मोर झावो; अंति: छाली हुई भेसो कुकडी. १६५३२. पट्टावली व वाचनाविधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैवे. (२५x११.५, १०-१२४२७-३८). , १. पे. नाम. तपागच्छ पट्टावली, पृ. १अ - ५आ. पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानदेव; अंति: कल्पो लुंकामत माहेसु. २. पे. नाम. वाचना विधि, पृ. ५आ. प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: मुहपति पडिलेहवी; अंति: अनुयोग पडिकमई. १६५३३. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२३, कार्तिक शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३९, ले. स्थल. पारानयर, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं जैदे., (२५.५x१२, ७५३८-४४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुकि; अंतिः गई ति बेमि, अध्ययन- १०, गाथा - ७००. दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ध० श्रीजिनधर्म; अंति: गुरु ए वचन प्रमाण छै १६५३५. (+) प्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टवार्थ व बालावबोध व चौदनियमगाथा सह वालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २७, कुल पे. २, प्र.वि. अन्त में सूत्रानुक्रम दिया हुआ है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., जैवे. (२४.५x१२, २-६४३६-४२). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ व बालावबोध, पृ. १-२७अ. आवश्यकसूत्र - स्थानकवासी प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदिः नमो अरिहंताणं०; अंतिः आउट्टण पसारेणं. आवश्यकसूत्र-स्थानकवासी प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकार जो तुम्हारी; अंति: (अपठनीय). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - स्थानकवासी - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअणुयोगद्वारमध्ये अंतिः संपत्ताणं णमो जिणाणं. २. पे. नाम. १४ नियम गाथा सह बालावबोध, पृ. २७अ - २७आ. For Private And Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ श्रावक चौदनियम, प्रा., पद्य, आदि सचित दव्व विगई पणह; अंतिः दिसि न्हाण भतेसु, गाथा - १. आवक १४ नियम गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि श्रावक नित प्रति; अंतिः श्रावकनै नित्य करवी. १६५३६. बारभावना वेली, अपूर्ण, वि. १८९५, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ९-२ (१,५)=७, ले.स्थल. पालीनगर, जैदे., (२५.५X१२, १०X३१-३५ ) . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: (-); अंति: भणी जेसलमेर मझार, डाल- १३, अपूर्ण. १६५३७. संघयणीसूत्र, पूर्ण, वि. १९७४, आषाढ़ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १२-१ (१) ११, पू. वि. गा. १-१४ नही है., प्रले. य. गणेशलाल; राज्ये गच्छा. जिनरत्नसूरिजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१२, १२X४५-४९). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पच, वि. १२वी, आदि (-); अंति: जा वीरजिण तित्वं, गाथा-३१८, पूर्ण. १६५३८. हीरसूरि प्रबंध, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १७, जैवे. (२५.५४१२, १२४३३-३६). 19 विजयसूरि प्रबंध, मा.गु., गद्य, आदि: संवत पन्नर त्र्यासिए; अंति: लेशमात्र लिख्यो छै. १६५३९. (+) सिंदूर प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८९३-१९०९, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्रले. मु. ,जिनचंद्र (गुरुग, सागरचंद्र, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५१२, ५३५-३७), सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक १००, (वि. १८९३, माघ शुक्ल, ११, ले. स्थल. भेलसा) (+) सिंदूरकर - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ए भगवंतना पगनो नख; अंतिः प्रत्युक्त वर्णवी ते, (वि. १९०९, श्रावण कृष्ण, ४, ले. स्थल, पाली) १६५४१. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र अध्ययन १ सह टवार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८५, प्र. वि. टवार्थ के मंगलाचरण का भी टबार्थ उपलब्ध है., संशोधित कुल ग्रं. ११०५, जैये., (२५x१२.५, ६४३३-३८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेण कालेनं० चंपाए; अंति: ( - ), प्रतिपूर्ण ३८५ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२) तेणइ कालइ जे चथ; अंति: ( - ), प्रतिपूर्ण. १६५४३. गुणसुंदरी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैवे. (२६४१२.५, १०x३२-३५). गुणसुंदरी कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीपार्थं नमस्कृत; अंतिः पाल्य उभी मोक्षं गतः. १६५४४. कामधर चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पू. वि. श्लोक - ६९ अपूर्ण तक है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २६१२.५, १५४४८-५०). कामघट कथानक, सं., प+ग., आदि: धर्मतः सकलमंगलावली; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १६५४५. रात्रिभोजन चौपाई, संपूर्ण, वि. १९४५, चैत्र अधिकमास कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्रले. ऋ. छगनचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X१२.५, १५-१७२८-३०). रात्रिभोजन चौपाई, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८७, आदि: श्रीअरिहंतसुसिद्धजी; अंति अमरविजय० धरमनो पंथ, ढाल - २३. For Private And Personal Use Only १६५४६. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११-१ (१०) १०, पू. वि. तपाचार के बाद का पत्र नहीं है., जैवे., (२५.५x१३, १०x३० ). Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडं, पूर्ण. १६५४७. तपागच्छ पट्टावली, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. आ. मुनिसुंदरसूरि तक पटटावली है., जैदे., (२५४१२.५, १२४३०-३४). पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, आदि: कल्याणकारणं शुद्धं; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १६५४८. श्रुतबोध सह टीका, संपूर्ण, वि. १८९४, चैत्र कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. विद्युतपुर, प्रले. ग. नरेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रारंभिक दो श्लोक अन्य छन्दोग्रन्थ के दृष्टान्त श्लोक होने चाहिये., त्रिपाठ., जैदे., (२५४१३, ३४३९). श्रुतबोध, कालिदास, सं., पद्य, आदि: मयरसतजभनमस्त्रिगुरु; अंति: रग्धरा सा प्रसिद्धा, श्लोक-४३. श्रुतबोध-मनोरमा टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: (१)श्रीमत्सारस्वत धाम, (२)अहं तत् श्रुतबोधनाम; अंति: स्रग्धरा कीर्त्तितेय. १६५५०. बारखडी ढाल, संपूर्ण, वि. १९१०, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५४१३, ९४२६-३२). बाराक्षरी ढाल, मु. पार्श्वदास, मा.गु., पद्य, वि. १८९९, आदि: श्रीजिन जिन वृषकू; अंति: यह कीन० गुण लीन, गाथा-३६. १६५५१. बृहत्शान्तिस्नात्र विधिसंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. अभिषेक-२८ अपूर्ण तक है., जैदे., (२५.५४१३.५, १२४२६-२९). बृहत्शांतिस्नात्र विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १६५५३. श्राद्धपाक्षिकअतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२६४१३.५, १३४२३-२५). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणमि०; अंति: पक्षदिवस माहि. १६५५४. नेमनाथविवाह गरबो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२६४१३, १३४३५). नेमिजिन विवाहलो, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: सरसती चरण सरोज रमी; अंति: कमला झाकामाला लाल, ढाल-२२. १६५५५. ज्ञानपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६४१३, १३४२८-३२). ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: सकल कुशल कमलावली; अंति: (१)रुपविजय गुणगाया रे, (२)उपर भेला ५१ थापिइं. १६५५७. स्तवनचौवीसी व नंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, कार्तिक कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १४-५(१,५ से ७,१३)=९, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२.५, ११-१२४३२-३४). १.पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. २अ-१४अ, पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वसीयो तु विसवावीस रे, स्तवन-२४, अपूर्ण. २. पे. नाम. नंदीसूत्र-स्थविरावली, पृ. १४अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र दूसरी गाथा तक ही लिखा है.. संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३८७ १६५५८. श्राद्धपाक्षिक अतिचार व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४१, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. २, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. ऋ. मोतीचंद; पठ. श्रावि. समरथ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१३, १२४३६). १. पे. नाम. श्राद्धपाक्षिकअतिचार, पृ. १अ-८अ. श्रावकअतिचार-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नाणमिदंसणम्मिअ; अंति: अतिचार पक्षदिवसमांहि. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ८आ. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मारग देशक मोक्षनो; अंति: देवचंद्र पद लीधरे, गाथा-९. १६५५९. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८५३, माघ कृष्ण, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले.स्थल. सवाईजैनगर, प्रले. मु. जयरंग (गुरु ग. सौभाग्यसुंदर), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४१२.५, १४-१५४३६-४३). श्रीपाल बृहद्रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण; अंति: पातकवन लुणिज्ये रे, ढाल-४९. १६५६१. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ-विस्तृत, संपूर्ण, वि. १९६८, माघ शुक्ल, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५४, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैदे., (२६.५४१३, ४-६४३३-३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०, गाथा-७००. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मु. श्रीपाल, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीर, (२)हिवे विघ्न टालवाने; अंति: तुज प्रतइ कहु छु. १६५६२.() श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९३४, पौष शुक्ल, १०, रविवार, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. मांडल, प्रले. श्राव. भायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अवाच्य., जैदे., (२५.५४१२.५, ११-१२४२६). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमिदंसणमि०; अंति: पक्षदिवस माहि. १६५६३. सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९०४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२६.५४१२.५, १६४३४-३५). सिंदूर प्रकरण, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-१०१. १६५६५. बावनाचंदन चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६७, कार्तिक शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ४६, लिख. श्रावि. अमरसिंघ भार्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १३-१४४२९-३४). वैरसिंहकुमार चौपई-जीवदयाशील विषये, पंन्या. मोहनविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: प्रणमुंसारद सामनी; अंति: बावनाचंदन बालो रे, ढाल-३८. १६५६६. नवस्मरण, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२६.५४१२, ११-१३४३५-३८). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: जैनं जयति शासनम, प्रतिपूर्ण. १६५६८. नवतत्त्व सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८३१, श्रावण कृष्ण, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले.स्थल. सीवपूरी, प्रले. पं. वृद्धिविजय गणि; पठ. पं. श्यामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १३४३६-४०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-३०. For Private And Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. सोमसुंदरसूरि शिष्य, मा.गु., गद्य, आदिः यथा स्थित साचउंजे; अंति: अर्द्धमाहि मोक्ष जाइ. १६५६९. जातकपद्धति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६९, माघ शुक्ल, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. ऋ. अनोपचंद; पठ. मु. लालचंद ऋषि (गुरु ऋ. अनोपचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, ६-७४३५-४४). जातक पद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेश; अंति: एषा जातकदीपिका, श्लोक-९५. जातक पद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवनै; अंति: (-). १६५७०. वीसस्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. १९३२, कार्तिक कृष्ण, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. संकरकेवल भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, ११-१२४३२-३६). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: सयल संघ मंगल करो, ढाल-२०. १६५७१. दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन १-४, प्रतिपूर्ण, वि. १८८७, कार्तिक कृष्ण, ३०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. साहेपुरा, प्रले. मु. जगराय, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४१२, १९४३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १६५७२. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, पू.वि. गा. ३१ तक टबार्थ है., जैदे., (२५४१२.५, ४४२७-३१). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तीन भुवन विषइं; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १६५७३. अवंतीसुकमाल, अमरकुमार व नेमराजुलनी सझाय, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२, १४-१६४३९-४१). १. पे. नाम. अवंतिसुकुमाल रास, पृ. २अ-५अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., ढाल-३ की गाथा-८ तक नहीं है. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: (-); अंति: घरे आवी इम भाषे, ढाल-१३, पूर्ण. २. पे. नाम. अमरकुमार सज्झाय, पृ. ५अ-६आ. म. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी भली; अंति: सिद्धगतिमांजासी रे, गाथा-५०. ३. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. ६आ. मु. सीवजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु चरणे रे; अंति: सीवजी कहे सीरनामी, गाथा-५. १६५७४. पंचमहाव्रतदृष्टांत कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-४(५ से ८)=१८, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२, १२४३२-३५). पंचमहाव्रत कथा, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीपे महाविदेह; अंति: (-), अपूर्ण. १६५७५. (#) सौभाग्यपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १०४३२-३६). For Private And Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३८९ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुपास जिनेसर; अंति: गुणविजय रंगे मुनि, गाथा-४४. १६५७६. (+) सिंदूर प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा २७ तक है. गाथा २४ तक टबार्थ है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ५४२३-२९). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: (-), अपूर्ण. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदूरनो प्रकर कहिता; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १६५७७. (+) पोषदशमी चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. श्रीहेमचंद्राचार्य रचित सवा लाख ग्रन्थों में यह कथानक से संकलन का उल्लेख मिलता है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१३, ४-७४३७-३९). पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकाचार्य, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथा; अंति: सुखं प्राप्स्यन्ति. पौषदशमीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने; अंति: मोक्षनां सूख पामेइं. १६५७८. सिद्धाचलरो रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. शांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७७१३, १२४३६). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: ए सुणतां आणंद थाय, ढाल-६. १६५७९. (2) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८, पृ.वि. गा. ११ तक टबार्थ है., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७७१३, ५४२६-२७). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५१. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १६५८०. गजसुकमालचौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२७४१२.५, १५-२१४४९-६०). गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६९९, आदि: नेमिसर जिनवरतणा चरण; अंति: जिणवर चरण नमीजे छे, ढाल-३०, गाथा-५६१, ग्रं. ७५०. १६५८१. मृगलेखा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१(१)=१९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., ढाल-२ गाथा-२ से ढाल-५७ गाथा-३ तक हैं., जैदे., (२६.५४१२.५, १७-१८४३५-३९). मृगांकलेखा चौपाई, ऋ. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १६५८२. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२६.५४१२.५, १५४३९-४४). स्तवनचौवीसी, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसह जिण वीनवउं देव; अंति: मुगति कारणि वीनवउ, स्तवन-२४. १६५८३. सत्तरप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९१३, वैशाख कृष्ण, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. कल्याण लक्ष्मीचंद पटेल; पठ. श्रावि. रुखमणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३, ११४३२-३९). १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत मुखकज वासिनी; अंति: सफले थुणियोरे, ढाल-१७, गाथा-१०८, ग्रं. १९८. १६५८४. अवंतीसुकमालचौपाई, धारणीमाता सज्झाय व मेघकुमारचौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ३, ले.स्थल. नागोर, प्रले. रामधन लहीआ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, ११-१२४२८-३५). For Private And Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. अवंतिसुकुमाल रास, पृ. १आ-७अ. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ती; अंति: शांतिहरख सुख पावे रे, ढाल-१३. २. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. ७आ. धारणीमाता सज्झाय, रा., पद्य, आदि: ने धारणी राणी बोले; अंति: लागा मुक्तसु पीतो रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. मेघकुमारचौढालीयो, पृ. ७आ-९आ. मेघकुमार चौढालियो, रा., पद्य, आदि: मोटी बणाकुं एक सेवका; अंति: समोसर्या हो मेघजी, ढाल-५. १६५८५. (+) सम्यक्त्व स्तव सह टबार्थ, अपूर्वकरणदृष्टांत व करणत्रय विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, ३४३७-३९). १. पे. नाम. सम्यक्त्वपच्चीसी सह टबार्थ, पृ. १आ-६अ.. सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: होउ सम्मत्त संपत्ती, गाथा-२५. सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिम सम्यक्तनु; अंति: ताहरी कृपासु नजरथी. २. पे. नाम. अपूर्वकरणदृष्टांतद्वयगाथासप्तक, पृ. ६अ. अपूर्वकरणदृष्टांतद्वय गाथासप्तक, प्रा., पद्य, आदि: (१)अपूरव करणे पधिक, (२)जह इह तिन्नि मणुस्सा; अंति: कम्मठिइ विवड्ढी, गाथा-४+३. ३. पे. नाम. सम्यक्त्व प्राप्ति के करणत्रय विचार, पृ. ६अ-६आ. सम्यक्त्व प्राप्ति के करणत्रय विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: प्रवृत्तकरण१ अपुर्व; अंति: विशेष ते अध्यवसाय. १६५८६. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२६.५४१२, १०x२९-३४). महावीरजिन स्तवन-सत्यावीसभवगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति दिओ ___मति; अंति: वंदे० धन मुझ ए गुरो, गाथा-८४. १६५८७. दीवाली-वीरनिर्वाण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२५.५४१२, ११४४०-४४). महावीरजिन निर्वाणमहिमा स्तवन-दीपावलीपर्व, म. गणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसमण संघ तिलकोपम; अंति: श्रीगुणहर्ष वधामणां, ढाल-१०. १६५८८. कुंडलीया व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८०, आषाढ़ कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.ले.श्लो. (६८७) लैषण मसी अरू डबडी, जैदे., (२६४१२, १३४३३-३६). १.पे. नाम. कुंडलीया, पृ. १अ-८अ. औपदेशिक कंडलिया, अगर, हिं., पद्य, आदि: जो दिन जाय आनंद में; अंति: रावरा कथै महाजन लौग, गाथा-५७. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ८आ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंति: नित नित गुण गाय के, गाथा-५. १६५८९. आदिनाथदेशनोद्धार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा ८० तक हैं., जैदे., (२६४१२.५, १२४३१-४३). आदिनाथदेशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदि: संसारे नत्थि सुह; अंति: (-), अपूर्ण. आदिनाथदेशनोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसारमांहि नथी सुख; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३९१ १६५९०. स्नात्रपूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६.५४१२, १२-१३४३२-३६). स्नात्रपजा विधिसहित. ग. देवचंद्र, मा.ग., पद्य, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: सारखी कही सूत्र मझार. १६५९१. सिद्धाचल दूहा १०८ खमासमण विधिसहित, संपूर्ण, वि. १९१८, चैत्र कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. गौरीशंकर गोविंदजी भट्ट, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, ११४२९). शत्रुजयतीर्थ १०८ खमासमण दूहा, मु. कल्याणसागरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल समरो सदा; अंति: (१)जय जय सिद्धगिरी, (२)पाम्या कहिक पामस्ये, गाथा-१०८, ग्रं. १९०. १६५९२. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९२९, श्रावण शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ९-२(१ से २)=७, ले.स्थल. सानंद, प्रले. अमृतलाल विश्वनाथ वैद्य जानि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक द्वारा सं. १९२९ की जगह २९२९ लिखा गया है. लखामण ३० रूपैयो अडधो का उल्लेख है., जैदे., (२६४१२, ११४३१-३४). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, ग्रं. २००, अपूर्ण. १६५९३. (#) आचारांगसूत्र मूल व नियुक्ति की संयुक्त वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२८-१(४१)=१२७, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., उद्देश-४ अध्ययन ५ अपूर्ण तक है.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १५४४९-५१). आचारांगसूत्र-टीका #, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, आदि: जयति समस्तवस्तु; अंति: (-), अपूर्ण. आचारांगसूत्र-नियुक्ति की टीका #, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, आदि: तत्र वंदित्वा सर्व; अंति: (-), अपूर्ण. १६५९४. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १६४९, माघ कृष्ण, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २२-२(१३ से १४)=२०, पू.वि. पत्र १५ तक टबार्थ है., ले.स्थल. लाद्दापल्ली, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६.५४११, ६४३३-३६). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंति: वंदामि जिणे चउव्वीस, पूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत जे राग द्वेष; अंति: (-), अपूर्ण. १६५९५. (+) सेट् अनिट् विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १७-१८४४७-६१). सेट् अनिट् विवरण, सं., पद्य, आदि: प्रत्यूह व्यूहव्यपोह; अंति: (-), अपूर्ण. १६५९६. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, पू.वि. मात्र गाथा ३ तक का ही टबार्थ है., जैदे., (२७४१०.५, ३४३०-३२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५१. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: सचेतन जीवतत्त्व; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १६५९९. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६६४, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. अमरनगर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १३४४४-५३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणतगुणा, गाथा-४६. For Private And Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण--बालावबोध, मु. साधुकीर्ति, मा.गु., गद्य, आदि: पार्वं नत्वा सुबोध; अति: महान्त लाभ छइ. १६६००. (+) सप्तस्मरण व लघशांति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. तिमिरीनगर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, १३४३७). १.पे. नाम. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, पृ. १आ-९आ, पठ. श्राव. विजयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअ सव्वभयं; अंति: निब्भत निच्चमच्चेह, स्मरण-७. २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ८अ-९अ, पू.वि. सप्तस्मरण के बीच लघुशान्ति दी गयी है. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. १६६०१. कयवन्ना चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-३(३,१२,१९)=२३, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-३० की गाथा-७ तक हैं., जैदे., (२६४१०, ११-१३४३८-४०). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: (-), अपूर्ण. १६६०३. (+#) अंतगडदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, १५४४६-४८). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: अयमढे पण्णत्ते, अध्याय-९२, ग्रं. ९००. १६६०४. (+) भयहर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.,जैदे., (२६४१०.५, ११-१२४४०-४३). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: सयल भुवणच्चिअचलणो, गाथा-२१. नमिऊण स्तोत्र-अभिप्रायचंद्रिकाटीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६५, आदि: श्रीपार्श्वस्वामिन; अंति: मुनीनां प्रभुः, ग्रं. ३००. १६६०५. (+) नवस्मरण सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १७५७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, पू.वि. कल्याणमंदिर के अलावा सभी स्मरण है., ले.स्थल. रणासण, प्रले. पं. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १२००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, (१२) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२६४११, ५४३०-३४). नवस्मरण, म. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं हवइ; अंति: जैनं जयति शासनम, प्रतिपूर्ण. नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत ३ चोवीसीना; अंति: शासन जयवंतो वर्ता, प्रतिपूर्ण. १६६०७. अनुकंपास्वरूपचौढालीयो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-४(४ से ७)=७, पू.वि. ढाल-२ की गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-४ की गाथा-३ तक नहीं है., पठ. श्राव. वनजी पदमसी संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १२४३४-३८). अनुकंपास्वरूप चौढालीयो, मा.गु., पद्य, आदि: अनुकंपाने आदरी किजो; अंति: समझो ग्यान विचार, ढाल-४, __ अपूर्ण. १६६०८. उववाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२५, जैदे., (२५.५४११, ४-५४२६-३३). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता. For Private And Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org औपपातिकसूत्र- टवार्थ, मु. राजचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि (१) वंदित्वा श्रीजिनं, (२) तेण कालि अवसर्पिणीन अंति: सुख पाम्या थका, ग्रं. ५५००. १६६१०. विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४०, जैदे., ( २६.५X११.५, ५x२९ - ३१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध -२, अध्ययन २०, ग्रं. १२५०. विपाकसूत्र-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अथविपाकश्रुतमिति कः; अंतिः इन्यार अध्ययन कह्या. १६६१३. छंदसत्तक व कवित्तनाम, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, जैवे. (२५.५x११, १५X३७-४५). १. पे. नाम. छंदशतक, पृ. १अ-७अ. छंदः शतक, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परमं ज्योति; अंति: कवित एम पिंगल कहीय, अधिकार - २, गाथा - ११२. २. पे. नाम. कवितनाम, पृ. ७अ ७आ. कवित नाम, प्रा., गद्य, आदि: अजय विजय वलिवंत वार; अंति: जो चक्खण गुण णवय गह. १६६१४. गजसुकमाल रास, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२६X११, १३x४१-४३). गजसुकुमाल रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: देस सोरठ द्वारापुरी; अंतिः गातां हुवइ रे आणंद, गाथा - ९९. १६६१५. (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पणयुक्त जैदे., ( २६११, ४-५X४६-५४), आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुवं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), अपूर्ण, आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सु० एहवउ सांभलउ मे०; अंति: (-), अपूर्ण. १६६१६. (+) कल्पसूत्र सह टीका व कथा - साधुसमाचारी अधिकार-३, प्रतिपूर्ण, वि. १८७७, पौष कृष्ण, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले. स्थल. लक्ष्मणा पुर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, ३-६X३६-४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण, कल्पसूत्र - टीका, सं., गद्य, आदि: (); अंति: भुज्जो मुहुः उपविशति, प्रतिपूर्ण, कल्पसूत्र- कथा संग्रह *, मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: र्त्ततां श्रेयो भवतु, प्रतिपूर्ण. " १६६१७. (+) सिद्धचक्र रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, गाथा - ७४९ तक हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X११, १३ - १६x४७-५६). ३९३ श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय ; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कविय तणी; अंति: (-), अपूर्ण. १६६१८. कल्याणमंदिर स्तवन सावचूर्णिक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. त्रिपाठ., जैवे. (२६११, ३-६X४२-५२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि कल्याणमंदिरमुदारम; अंतिः मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. For Private And Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३९४ www.kobatirth.org (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्याणमंदिर स्तोत्र- टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीपार्थजिनमानम्य; अंतिः सुगुरुप्रसादात्, १६६१९. (+) दीपमालीका कल्प, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, जैदे., (२६x२१, " १७-१८X४७). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: संतु श्रीवर्द्धमानस; अंति: याण वल्लि फलदा भवंतु, श्लोक - ३१३, ग्रं. ४०५. १६६२०. (+) सुभाषित संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६.५४११, ११४४४). सुभाषित संग्रह, सं., पद्य, आदि: सामायिकं स्तवः; अंतिः दिवा च हरिकीर्तनं श्लोक-४०६. १६६२१. भक्तामर व कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न क्रियापद संकेत., जैदे., ( २४.५X१०.५, २०४५५-५८). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, पृ. १आ - १४अ. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४, ग्रं. ७७. भक्तामर स्तोत्र - बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: (१) प्रणम्य परमानंददायकं, (२) भक्ता० यः संस्तुत ०; अंति: (१) मावातीति मंगलम्, (२) संख्या निवेदिता, ग्रं. ६९३. २. पे नाम, कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, पृ. १४आ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., काव्य दो अपूर्ण तक है. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: (-), अपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र - टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य वि. १६५२, आदि: (१) प्रणम्य पार्श्व, (२) कल्या० यस्य० इत्यनयो; अंति: (), अपूर्ण. " (+#) १६६२३. सामुद्रिक लक्षण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X११, १७-१८X५१-५६). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: सा नारी लभते सुखं, अध्याय - ३६, श्लोक - २२४. सामुद्रिकशास्त्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिला आउखौ जोइजे पाल; अंति: ते स्त्री सुखिणी हुइ. (+) १६६२४. वीतराग स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पठ. उपा. शुभविजय (गुरु उपा. विमलविजय), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न क्रियापद संकेत संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २४.५x११, १५-१६x४२-४६). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः यः परात्मा परं; अंतिः नातः परं ब्रुवे, प्रकाश - २०. १६६२५. (४) उपाशकदशांगसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २१, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (२५.५४११, १५-१६X४६-४९). उपासक दशांगसूत्र- वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १११७, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः कुर्वतां प्रीतये मे. नं. ९७७. For Private And Personal Use Only १६६२६. गुर्वावली व कल्पसूत्र व्याख्यान १ सह कल्पलता टीका व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. २, जैवे. (२५x११, ८-१३३६-४० ). Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे नाम. पट्टावली खरतरगच्छीय, पृ. १आ - ११ आ. गुर्वावली खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: गुवरग्रामवासी वसुभूत; अंतिः संघ जयवंता प्रवर्त २. पे. नाम. कल्पसूत्र सह कल्पलता टीका व टबार्थ - प्रथम व्याख्यान, पृ. ११आ-२२आ. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पदमं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण, कल्पसूत्र - कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदिः नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र - टबार्थ *, सं., गद्य, आदि: नमो अर्हद्भ्यः अर्हन; अंति: (-), प्रतिपूर्ण १६६२८. (*) जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पठ. सा. रूपी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जै, (२५x१०.५, ५४३१-३४ ). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुदाओ सुवसमुद्दाओ, गाथा - ५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रण भुवनने विषे; अंति: समुद्र थकी उधरिओ. १६६३०. विक्रमादित्य चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदे (२४४१०.५, १४x२७-३३). ३९५ विक्रमादित्य चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: पुरसादाणी प्रणमीयै; अंति: तेहने सदा हुइ कल्याण, ढाल - २७. १६६३१. (+) सिद्धांतरहस्य विचारसंग्रह, संपूर्ण, वि. १५१४, माघ शुक्ल ८, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. मु. सुमतीवीर पठ. ग. दयाधीर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैये. (२६.५x११, १८-२२५२-६१ ). सिद्धांतरहस्य विचारसंग्रह, प्रा., पद्म, आदिः नमिऊण महावीरं नरिंद; अंतिः बुद्धबोहिक्कणिकाया. १६६३२. (+) उववाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८२, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित - टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१०.५, ५-६X३९-४८). ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. ४९अ-५३अ. प्रा., गद्य, आदि: जह णं भंते समणेणं०; अंतिः वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन- १०. औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता. १६६३३. औपपातिकसूत्र - टबार्थ, आ. पाचंचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: तिणी कालि चोथा आराने; अंतिः सुख पाम्या थका (d) निस्यावलियादिपंचोपांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५९, कुल पे ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५x११.५, ६-९४३५-३८). " १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पू. १आ-२३ आ. प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: भणियव्वो तहा, अध्ययन - १०. २. पे नाम, कल्पावर्तसिकासूत्र, पृ. २३आ-२६अ, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वा सेज्झिहिंति, अध्ययन - १०. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. २६-४९अ. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन- १०. For Private And Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३९६ www.kobatirth.org राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः सुपस्से पस्सवणा नमो. राजप्रश्रीयसूत्र - टिप्पण, सं., गद्य, आदि: अध कस्मात् इदं उपांग, अंति: ( - ). ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. ५३ ५९आ. प्रा., गद्य, आदि जइ णं भंते पंचमस्स; अंतिः मइरित एक्कारससु वि, अध्ययन- १२. १६६३४. (+) राजप्रश्नीयसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८१+१ (२१)=८२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित., जैदे., ( २६ ११, ११३६-४१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६६३७. (+) जिभादंत संवाद व रात्रिभोजन रास, अपूर्ण, वि. १७५९, फाल्गुन शुक्ल, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१) = ८, कुल पे. २, प्रले. ऋ. जेठा (गुरु ऋ. वेलजी, लुकागच्छ वृद्धपक्ष); पठ. मु. खीमजी ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. वस्तुत प्रत अपूर्ण है, प्रतिलेखक ने पहली कृति को अधूरी छोड़कर दूसरी कृति को पत्रांक १ से क्रमबद्ध लिखा है. वास्तव में पहली कृति की ४० गाथाएँ पत्र १ पर होनी चाहिये. अतः कुल पत्र ८ की जगह ९ किया गया है व १ला पत्र अपूर्ण किया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले. श्लो. (६१) भग्नपृष्टि कटीग्रीवा, ( ३१३) अनंतपारं किलसर्वशास्त्रं, (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६८८) आरोग्य बुद्धि बिनयोद्यमशास्त्र रागः, जै.... (२६.५x११.५, १६-१८x४६-५४). १. पे. नाम. जिभादंत संवाद, पृ. २अ, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रारंभ से गाथा ४० तक नहीं है. मु. नारायण, मा.गु., पद्म, आदि (-); अंतिः नारायण० पामो भवपार, गाथा ५८, अपूर्ण. २. पे. नाम. रात्रीभोजन रास, पृ. १आ-८आ. जयसेन चौपाई रात्रिभोजन विषये, वा. धर्मसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीस गोयम गणहरराय; अंतिः वाचक० संपति ते लहइ, गाथा - २५५. १६६३८. (+) षडावशयकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र. वि. षडावश्यक मूलमात्र ही है अन्य संबंधित दूसरे सूत्र नहीं है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६x११, ५X४०-४६). षडावश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि: णमो अरहंताणं० सव्वसा; अंतिः मिच्छामि दुकडं, अध्ययन-६. , आवश्यक सूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंतिः दुष्कृत फोक थाओ. १६६३९. कालिकाचार्यकथा बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८७९, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले. स्थल पोकर्ण, प्रले. पं. उमेदचंद (गुरु पं. लालचंद, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले, श्लो. (१६७) जिहां लगे मेरु अडिग है, ( ३१५) सुभ मुर्त्तत कीधी भली (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जीवे. (२६४११.५, १३-१४X३६-४०). 19 कालिकाचार्य कथा #, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां पूर्वइ स्थविरा; अंतिः बखाणी ते वर्तमानयोग. १६६४०. चारगोलीयादि, सनतकुमार व सगडराजाचौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९६९, आश्विन शुक्ल, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्रले. जयराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६४१०.५, १७४३-४८), १. पे. नाम. चारगोलेयादिचौढालीयो, पृ. १आ - ३अ. For Private And Personal Use Only चारगोलेयादि चौढालीयो, मु. धनदास, रा., पद्य, आदि: (१) संतनाथजी सोलमा सांति, (२) शांतिनाथजी सोलमा; अंति: सुभ भाव तुम राखो, ढाल - ४. २. पे नाम, संतकुमारचक्रवरती चोदालीया, पृ. ३-४ आ. Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ३९७ सनत्कुमारचक्रवर्ति चौढालियो, श्रावगदास, रा., पद्य, वि. १९१७, आदि: जिन को प्रनाम कर; अंति: चरणा चित लाइ रे भाई, ढाल-४. ३. पे. नाम. सगडराजाचौढालीयो, पृ. ४आ-५आ. सगडराजा चौढालीयो, मु. रतनचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८९८, आदि: सगडराएनी वारता करता; अंति: सुन उपदेस सतगुर तनी, ढाल-४. १६६४७. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १७८९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. मु. रत्नचंद्र (गुरु उपा. ज्ञानसागर, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४४२). श्रीपाल रास-लघु, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: चउवीसे प्रणमु जिनराय; अंति: सुणतां सदा कल्याण, ढाल-२०, गाथा-२७१. १६६५१. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन ८ की गाथा ५७ तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, ४४४०-४७). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), अपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १६६५२. (+) राजसिंघ चरित्र, अपूर्ण, वि. १८२४, चैत्र कृष्ण, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५१-३१(१ से ३१)=२०, पू.वि. ढाल-३६ का दुहा-३ तक नहीं हैं., प्रले. मु. युक्तिविजय; पठ. मु. ललितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (३१६) ध्रुव मेरु फूंनी चंद रवी, जैदे., (२५.५४१२, १५-१६४३३-४०). राजसिंघ रास, ग. कपूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: (-); अंति: लहीइ लछी बालाजी, ढाल-५३, गाथा-१३८५, अपूर्ण. १६६५३. (#) मदनराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८०८, आश्विन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले.स्थल. घेटी, प्रले. मु. कस्तूरविमल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३७-४३). मदननरेश्वर चौपाई, मु. दामोदर, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: आदि जिणेसर अतुलबल; अंति: परभवि सुर शिव लील, गाथा-५५७, ग्रं. ९३८. १६६५४. पार्श्वस्तवन, इग्यारगणधरदेववंदनविधि व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पठ. सा. चंदनश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १६-१७४५१-५५). १. पे. नाम. कल्याणपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ. पार्श्वजिन स्तवन-कल्याण, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्याण पास पद कमले; अंति: पद्म दिई सिव मेवा, गाथा-१०. २. पे. नाम. ११ गणधर देववंदन, पृ. १आ-५अ. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बिरुद धरी सर्वज्ञनु; अंति: तो शुद्ध समकित लहिये. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२९ तक हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चड्या पड्यानो अंतर; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६६५६. (4) वीमलसाह श्लोको, संपूर्ण, वि. १८८८, वैशाख, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. रामदास फोजुराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०, ९४३३-३८). विमलमंत्री श्लोक, पंडित. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति समरूं बेकरजोड; अंति: विनीतविमले गुण गाय, गाथा-१११. १६६५७. एकादसगणधर देववंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, जैदे., (२७४१२, १२-१३४२८-३५). ११ गणधर देववंदन, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर गोयम गणहर; अंति: ते लहें सुख संपदा, स्तवन-११. १६६५८. (+) बारेसो सूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-५(१ से ३,६ से ७)=३३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ११-१५४३९-४८). बारसासूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १६६५९. नवतत्त्व व खंडाजोयण विचार, संपूर्ण, वि. १८९८, आश्विन अधिकमास शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, ले.स्थल. बडोत, प्रले. सा. पन्ना; पठ. सा. भोगा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १६-१८४३९-४१). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण-विचार, पृ. १आ-११आ. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नवतत्त्व नाम जीव; अंति: एक सिद्ध अणेक सिद्ध. २. पे. नाम. लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल*, पृ. ११आ-१५आ. __संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खंडा १ जोयण २ वास ३; अंति: पहुलो पावकोसनो दल. १६६६०. (+) श्रीपालरास सह बालावबोध खंड-४, प्रतिपूर्ण, वि. १८६९, श्रेष्ठ, पृ. ६८, ले.स्थल. सोझतनगर, प्रले. मु. हर्षसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, ४-६x२६-३३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय ; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहसे ___ ज्ञान विशाला जी, ढाल-४१, प्रतिपूर्ण. श्रीपाल रास-दुहा का बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: समया समापती कुर्वति, प्रतिपूर्ण. १६६६१. (+) धन्नाशालभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १९६२, श्रेष्ठ, पृ. ४८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, १६x६०-६३). धन्नाशालिभद्र रास, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: ऐंद्रश्रेणिं नत क्रम; अंति: सीख पाये सुच्छायो रे, खंड-४, ढाल ८५. १६६६३. (+) सूयगडांगसूत्र सह टबार्थ-प्रथमश्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १८८८-१८९१, श्रेष्ठ, पृ. ६३, प्रले. मु. गुलाब (गुरु मु. तुलसीराम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. २८००, जैदे.. (२६४१२.५, ५-६x२९-३९). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज; अंति: (-), ग्रं. ८००, (प्रतिपूर्ण, वि. १८८८, वैशाख अधिकमास कृष्ण, १४, बुधवार, ले.स्थल. ग्वालेर) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिम आज्ञा सहित सम्यक; अंति: (-), ग्रं. २०००, (प्रतिपूर्ण, वि. १८९१, वैशाख शुक्ल, १०, रविवार, ले.स्थल. सिंघाणा, प्रले. मु. गुलाब (गुरु मु. तुलसीराम), प्र.ले.पु. सामान्य) १६६६४. वीसस्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. १९१३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२९x१२, १०४२६-२९). For Private And Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: पभणै सयल संघ जयकरू, ढाल-२०. १६६६५. (+) सूयगडांगसूत्र सह टबार्थ-प्रथमश्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १९४१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ८४, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. गणेश महात्मा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२.५, ३-५४३५-४०). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नमः श्रीवर्द्धमानाय, (२)छ काय जीवनो स्वरूप; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १६६६६. (+) साधुगुणमाला व देवाधिदेवरचना, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, प्रले. क. नैनसुखदास (पिता अन्य. ख्यालीराम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १७-१८४४९-५९). १. पे. नाम. साधुगुणमाला, पृ. १अ-७अ, आश्विन कृष्ण, १३, बुधवार, ले.स्थल. अबरसेरनगर. श्राव. हरजसराय जैन, पुहिं., पद्य, वि. १८६४, आदि: श्रीत्रैलोकाधीस को; अंति: गाया नाथजी आस पूरे, गाथा-१२५. २. पे. नाम. देवाधिदेव रचना , पृ. ७अ-११आ, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, गुरुवार, ले.स्थल. पसुरू देवाधिदेव रचना, हिं., पद्य, वि. १८६०, आदि: सकल जगतपद परमपद पूरण; अंति: देहु प्रभु समता घणी, गाथा-८५. १६६६८. (+) खंडाजोयण, पदवीविचार व ५६३ जीवभेद विचार, संपूर्ण, वि. १८८७, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, ले.स्थल. सिंघाणा, प्रले. ऋ. लक्ष्मीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, २०४४०-४३). १. पे. नाम. खंडा योजण, पृ. १अ-५आ. लघुसंग्रहणी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजंबूद्वीप लाख; अंति: ४०० पचास ५० नदी छई. २. पे. नाम. पदवी विचार, पृ. ५आ-६अ. पदवी विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: भरतक्षेत्र माहि; अंति: ३ मंडलीक राजानी ४. ३. पे. नाम. ५६३ जीवविचार बोलसंग्रह *, पृ. ६अ. मा.गु., गद्य, आदि: ५६३ भेद माहिला; अंति: १४९ एवं सर्व ५६३ थया. १६६६९. भुवनदीपक व चंद्रोदयश्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१२.५, १४-१५४३२-३५). १. पे. नाम. भुवनदीपक, पृ. १अ-७आ. आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७४. २. पे. नाम. चंद्रोदयश्लोक, पृ. ७आ. ज्योतिष श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१.. १६६७०. (+#) मेणरेहा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९०३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. हाथरस, पठ. जसोदा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १७४३१-४१). For Private And Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: जुवा दारु मास तणी; अंति: मीछामी दुकडं मोईयो, गाथा-१६८. १६६७१. महाबलमलयसुंदरी प्रबंध, संपूर्ण, वि. १९३२, माघ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ८४, प्रले. सा. जीयोजी (गुरु सा. जसोदा), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १७४४०-४७). मलयासंदरी रास, म. जिनहर्ष, मा.ग., पद्य, वि. १७५१. आदिः श्रीशांतिजिनेसर सोलम: अंति: पभणे जिनहर्ष विचार, खंड-४, ढाल१४८, गाथा-१३४४, ग्रं. ३८७०. १६६७२. आठकर्मनी एकसोअठावनप्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२५.५४१२.५, १३-१४४३८). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रथम अष्टकर्म कहीइ, (२)पहीलौ ज्ञानावरणी; अंति: सिद्ध बल फोरवे नही. १६६७६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १६८२, श्रेष्ठ, पृ. २०८-१९(१६८ से १८६)=१८९, प्रले. मु. सहसा (गुरु मु. झांझण), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ५-७४२५-३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: त्ति बेमि, अध्ययन-३६, (पूर्ण, फाल्गुन शुक्ल, १२, सोमवार, ले.स्थल. मुरडाहा) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: संयोग बे प्रकारे; अंति: बेमि हुं कहुं छु, (पूर्ण, चैत्र कृष्ण, १०, ले.स्थल. वगडी) १६६८०. सिंदूर प्रकरण मुक्तावली, संपूर्ण, वि. १८०६, रसाभ्रवसुचंद्र, माघ शुक्ल, १५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्रले. मु. कर्मचंद ऋषि (विजयगछ); पठ. मु. धनराज ऋषि (विजयगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १०४२२-२८). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-१००. १६६८१. बासठ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. उदेपुर, प्रले. पं. ज्ञानलाभ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १२-१३४३१-३८). ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गई इंद्रिय काय जोए; अंति: १० लेस्या ६ स्तोक. १६६८२. मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(१)=१८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., ढाल-१ की गाथा-९ अपूर्ण से ढाल-१४ की गाथा-१६ तक हैं., जैदे., (२५४१०.५, ११-१२४२५-२७). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १६६८३. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. पं. दयाविजय; पठ. मु. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, ८x२२-२५). ___ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. १६६८४. (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८६१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, ८-११४२४-३३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणतगुणा, गाथा-९८. १६६८५. (+) चौवीसदंडक स्तवन सह टबार्थ व राजमान, संपूर्ण, वि. १८२१, श्रावण शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. नडुलाइ, पठ. पं. अमीविजय; मु. कपूरविजय; सा. तेजश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ४४२८-३३). For Private And Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ४०१ १. पे. नाम. चउवीस दंडक तवन सह टबार्थ, पृ. १अ-७आ. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३८. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी चउवीस; अंति: गुणवु जाणवा सरूप छेइ. २. पे. नाम. राजनो मान, पृ. ७आ. राजमान, मा.गु., गद्य, आदि: एक हजारभार मणनो; अंति: थायै एक राज थाये. १६६८६.(#) जंबूचरित्र, संपूर्ण, वि. १८०७, माघ शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. उपा. हितविजय; पठ. पं. मनोहरविजय (गुरु उपा. हितविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७X४२-४४). जंबूस्वामी चरित्र, मा.गु., प+ग., आदि: एकदा समें श्रीमहावीर; अंति: केवल पामी मुगते गया. १६६८८. पार्श्वजिन स्तवन संग्रह व प्रसन्नचंद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११.५, १४४४२-४७). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-५आ. काजलमेघा चौढालिया-गोडीजीपार्श्व, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: भाव धरी भजनां करूं; अंति: इम नेमविजय जयकार. २. पे. नाम. थंभणपुरा पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ५आ-७आ. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थमंडन, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभू प्रणमुरे; अंति: आणी कुशललाभ पयंपए, ढाल-५. ३.पे. नाम. प्रसनचंदरुषिराय सज्झाय, पृ. ७आ. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं तुमारा पाय; अंति: हर्ष कहि० तुमारा पाय, गाथा-७. १६६९०. (+) ज्योतिषसार, संपूर्ण, वि. १७९५, माघ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्रले. मु. प्रवीणसागर; पठ. हरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १३-१५४२८-४४). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: कालोयं मुनिभाषितः, श्लोक-४४४. १६६९१. अष्टादशपापस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४९, आश्विन कृष्ण, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, पठ. श्रावि. कंकु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १०४३२-३४). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानक पहिलू का; अंति: वाचक जस इम आखिंजी, सज्झाय-१८. १६६९२. (+) श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, ६४३६-३९). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: माहरु नमस्कार अरिहंत; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६६९५. कल्पसूत्र पीठिका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५X११, ११-१२X३२-३४). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नम श्रीवर्द्धमानाय, (२) अज्ञानतिमिरांधानां; अंति: (-), अपूर्ण. १६६९६. । वीतराग स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७१२, वैशाख शुक्ल, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल विक्रमपूर, प्रले. मु. नरसिंह (गुरु पं. ठाकुरसी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६x१०.५, १५४४५). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः यः परात्मा पर अंतिः फलमीप्सितम्, प्रकाश - २०. १६६९७. (+) धन्यचरित्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८५०, चैत्र शुक्ल, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १३१, ले. स्थल. विजापूर, प्र. मु. खांतिविजय (गुरुग. उमेदविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X११, ५X३३-३८). । धन्य चरित्र शाली, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदिः स श्रेयत्रिजगद्; अंतिः श्रीदानकल्पद्रुमः, पल्लव ९. अन्य चरित्र शाली-टवार्थ, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८३३, आदि: श्रीऋषभस्वामी के हवा; अंति: (१) भूमिप्रमिते धन्यशालि, (२) सुधी जयवंतो वर्तो. १६६९८. सीताजी की आलोयणा, पूर्ण, वि. १८५२, फाल्गुन शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६ -१ ( २ ) = ५, ले. स्थल. दिलि, प्रले. पं. सुखसागर (तपगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४११, ११४३६). सीतासती कृत आलोयणा, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सती न सीता सारिखी; अंति: शाश्वता केवलकुशल कहत, ढाल -६, गाथा - ९३, पूर्ण. १६६९९. सारस्वतीप्रक्रीया सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४- ३ (२ से ३ १३) = ११, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र. वि. त्रिपाठ, जैदे. (२६.५x११, २-४४४०-४४). 9 सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-), अपूर्ण. सारस्वत व्याकरण- दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदिः नमोस्तु सर्वकल्याणपद; अंति: (-), अपूर्ण. १६७०१. (+) इकवीसठाणा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७८, माघ कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल. वीक्रमपुर, प्रले. पं. मोहनविजय (गुरु पं. राजविजय); पठ. श्रावि. केसीबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र. ले. श्लो. (१२) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२६X१०.५, ६X३२-३६). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नवरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा - ६९. For Private And Personal Use Only एकविंशतिस्थान प्रकरण-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चवणद्वार विमानद्वार; अंतिः समय साधारणइ कह्या, १६७०२. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ७, जैदे., ( २५X११, ११-१२X३४-३७). साधुवंदना, उपा. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पंच परमेठि पयकमल; अंति: सागर कहइ० सुख कारण, गाथा -८६. Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ४०३ १६७०३. (+) संबोधसत्तरी सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ६४३२-३५). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा-७५. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ; अंति: ते निश्चइ मोक्ष पामइ. १६७०४.(+) से@जाउद्धार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ११४३९-४१). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: द्यो दरिशन जयकरो, गाथा-११७. १६७०५. भववैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, पठ. सा. भगक्ता, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ७X४४-४७). भववैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ए संसार असार जांणिउ; अंति: लहइजीव शाश्वतु ठांम. १६७०६. (+) लोकनालिद्वात्रिंशिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(४)=७, पृ.वि. गाथा-१३ से १७ तक नही हैं., प्रले. मु. धनविजयशिष्य (गुरु मु. धनविजय, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६४१०.५, ३४२९-३८). लोकनालिद्वात्रिंशिका. आ. धर्मघोषरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा ज; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३३, अपूर्ण. लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७१९, आदिः (१)पणमिय जिणपयपंकयरयेमि, (२)जिनना दर्शन सम्यक्त; अंति: (१)वर्षे वरभाद्रपदमासे, (२)नहीं अनइ सुख पामो, अपूर्ण. १६७०७. शेव्रुजयउद्धार, पूर्ण, वि. १९वी, आश्विन कृष्ण, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. गाथा-१ से ११ अपूर्ण तक नहीं है., जैदे., (२६४११, १२४३८-४१). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: (-); अंति: द्यो दरिशन जयकरो, गाथा-१२०, पूर्ण. १६७०८. अजितशांति सह टबार्थ व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, प्रले. पं. फतेंद्रसागर; पठ. श्राव. आणंदा; क्रीत. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ५४३५-३६). १. पे. नाम. अजितशांति स्तव सह टबार्थ, पृ. १अ-८आ. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: अजिअसंति जिणनाहस्स, गाथा-४२. अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अजितनाथ प्रतिइं जिय; अंति: वचननइं विषई आदर करो. २. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक, पृ. ८आ. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-). १६७१०.(+) क्षेत्रसमास सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(६)=६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा ६२ से ७५ तक नही है तथा अंतिम गाथा ८८ तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५०-६१). For Private And Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्क्षेत्रसमास-संक्षेप जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहर निभस्स; अंति: (-), अपूर्ण. बृहत्क्षेत्रसमास-संक्षेप जंबूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनइ नमस्कार करीनइ; अंति: (-), अपूर्ण. १६७१२. सीयल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्रले. मु. क्षेमवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १२-१३४३५). शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुं प्रणाम करूं; अंति: एम श्रीविजयदेवसूरि, गाथा-७०. १६७१३. (+) सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८०७, चैत्र कृष्ण, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. नाडुल, प्रले. मु. कस्तुरविजय (गुरु पंन्या. देवेंद्रविजय गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीशान्तिनेमिपद्मप्रभुप्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३४-३८). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-१००. १६७१४. कर्मग्रंथ ५ से ६, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १३४४१-४७). १. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १अ-५आ. ___ आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००. २. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ, पृ. ५आ-८आ, अपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १६७१५. अढारपापस्थानक चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.७, जैदे., (२६४११, १२-१३४३४-३९). १८ पापस्थानक चौपाई, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६५२, आदि: सारद मात नमउ निसदिस; अंति: गुणसागर० हरख अपार, गाथा-१४६. १६७१६. आषाढभूति रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-१६ गाथा-५ अपूर्ण तक हैं., जैदे., (२६४११, १५-१६x४०). आषाढाभूति चौपाई, म. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंति: (-), अपूर्ण. १६७१७. (+) विदग्धमुखमंडण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ.,प्र.ले.श्लो. (१२७) शिवमस्तु सर्वजगतः, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३६-४१) विदग्धमुखमंडन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, आदि: सिद्धौषधानि भवदुःख; अंति: मेकांत मदनोत्तरम्, परिच्छेद-४. विदग्धमुखमंडन काव्य-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: ग्रंथादौ धर्मदासनामा; अंति: कामेन उत्कृष्टं. १६७१९. स्नात्रपूजा व अष्टप्रकारीपूजा के दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १०x२४-२५). १. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित, पृ. १अ-८अ. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (१)त्रिगडोमांडी पंच, (२)चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: सारखी कही सूत्र मझार, ढाल-८. For Private And Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ २. पे. नाम. ८ प्रकारी पूजा, पृ. ८आ. मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: गंगा मागध क्षीरनिधि; अंति: गिनें जिन मेट करेह, श्लोक-८. १६७२३. (+) श्राद्धपाक्षिकअतिचार, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, ११-१२४३०). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: (-), पूर्ण. १६७२६. स्नात्रपूजा व नवपदपूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. सादडीपुर, जैदे., (२५.५४११.५, १४-१७४३२-३६). १. पे. नाम. स्नात्र पूजा, पृ. १अ-२आ. श्राव. देपाल भोजक, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: (१)पूर्वे बाजोट ऊपर, (२)मुक्तालंकारविकारसार; अंति: तस घर मंगलमाला जी. २. पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. २आ-७आ. उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: कोई नये न अधूरी रे. १६७२८. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ४४३३-३६). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. वंदित्तुसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदी करी सब कह; अंति: वांदउ जन तीर्थंकर. १६७३०. दंडकविचारषट्त्रिंशिकासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. गाथा-९ तक ही टबार्थ है., ले.स्थल. भीलाडा, प्रले. पं. जिणसुंदर (कवलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, ४४३३-३६). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४० दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)ऐंद्रराजं जिनं नत्वा, (२)मन वचन कायायै; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १६७३१. (#) तपागच्छीय पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४३०-३५). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: पाट मोहसव किधो. १६७३२. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८२४, कार्तिक कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. योधपुर, जैदे., (२५.५४११, १०४३५). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भोगं च करोति. १६७३३. विक्रमसेन चौपाई, अपूर्ण, वि. १८०९, फाल्गुन कृष्ण, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६१-९(१ से ७,२५,४५)=५२, पू.वि. ढाल-६ की गाथा-११ तक नहीं है., ले.स्थल. लाखाला, प्रले. पं. अविचलसागर (गुरु ग. विनीतसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५, १३४३३-४०). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: मइ उत्तमना गुणगाया, ढाल-६४, अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६७३४. कालीकाचार्य कथा व पद्मप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५२, चैत्र शुक्ल, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२, १२-१३४२८-३१). १.पे. नाम. कालिकाचार्य कथा, पृ. १आ-७आ. कालिकाचार्य कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: अतित्थ भरहवासे कमला, अतित्थ भरहवासे कमला; अंति: लोको धर्ममारग समासरो. २. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णगर्भित, पृ. ७आ. पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धनधन संप्रति साचो; अंति: दीजो भवजीन सेवरे, गाथा-९. १६७३५. पंचमी स्तवन व रोहणी स्तवन, अपूर्ण, वि. १८०२, चैत्र शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(२)=६, कुल पे. २, ले.स्थल. आगरा, जैदे., (२५.५४१२, ११४३४-३८). १. पे. नाम. पंचमीतिथी स्तवन, पृ. १अ-४आ, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. पंचमीतिथि स्तवन, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल मनोरथ पूरबैं; अंति: सौभाग्यविजय जयकार, ढाल-५, अपूर्ण. २. पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. ४आ-७अ. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासण देवता सामणीए; अंति: सफल मन आस्या फली. १६७३६. (+) जंबूकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-२(१ से २)=२१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., ढाल-३ से ढाल-३१ गाथा-१ तक हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १४-१६४३४-३८). जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १६७३७. (+) चंदनमलयगिरी ढाल व श्लोक, पूर्ण, वि. १८८८, वैशाख शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, कुल पे. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. ऋ. जैतकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, १५४३१-३५). १. पे. नाम. चंदनमलयागिरिरास, पृ. २अ-८आ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रथम कलिका की गाथा-१४ अपूर्ण तक नहीं मु. भद्रसेन, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: फले सुवंछित भोग, अध्याय-५, गाथा-१९७, पूर्ण. २. पे. नाम. जैन सामान्यकृति , पृ. ८आ. जैन श्लोक , सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. १६७३८. जीवोत्पत्ति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०१, भाद्रपद शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. विक्रमपुर, पठ. श्रावि. गुलाबि बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, ७४१८-२०). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, पा. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उत्पति जोज्यो आपणी; अंति: इम कहे श्रीसार ए, गाथा-७२. १६७३९. (+) संघ्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, ९४३६-३८). For Private And Personal Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ४०७ बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१३. १६७४१. (+) पंचमी देववंदन, संपूर्ण, वि. १९१६, चैत्र शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. मुडाडानगर, प्रले. ग. नरेंद्रविजय (गुरु पं. भक्तिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १२४३४-३८). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (१)प्रथम बाजठ उपरि तथा, (२)श्रीसौभाग्यपंचमी; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज. १६७४३. () नवपद वासक्षेप पूजा व नवपदगुण जाप, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं-अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं-अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ८x२६-२९). १. पे. नाम. नवपदवासक्षेपपूजा, पृ. १अ-२अ. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अरिहंत पद ध्यातो; अंति: आतमध्यानप्रमाणो रे. २.पे. नाम. नवपद गुण, पृ. २अ-१२आ. नवपद जाप, मा.गु., गद्य, आदिः (१)अशोकवृक्षः सुरपुष्प, (२)अशोकवृक्षप्रातिहार्य; अंति: उत्सर्ग तपसे नमः. १६७४५. साधु श्राद्ध प्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८९६, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, ले.स्थल. सांडेरा, प्रले. मु. तीर्थसागर (गुरु पं. जसरूपसागर); पठ. श्राव. तिलोकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशान्तिनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२६४११.५, १२४२७-३१). १. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-३अ. आवश्यकसूत्र-श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. २. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ३अ-६आ. आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र-२१. ३. पे. नाम. लघुशान्ति स्तव, पृ. ६आ-७आ. लघुशांति स्तव, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. १६७४६. (+) प्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-१(८)=१७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ९४२४-२८). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.ग., प+ग., आदिः (१)वंदामि नमसामि सकारे, (२)नमो __अरिहंताणं०; अंति: धेयं ठाणं संपत्ताणं, पूर्ण. १६७४८. (+) वीसस्थानक तपविधि, पूर्ण, वि. १९४६, वैशाख शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(४)=६, प्रले. पं. चिमनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १२४४४-४९). २० स्थानकतप विधि, सं., पद्य, आदि: अशोकवृक्षप्रातिहार्य; अंति: ॐ नमो तित्थयस लो ४, पूर्ण. १६७५०. सीमंधर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२६४११, १२४३८-४४). सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५. For Private And Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६७५१. नमस्कारआद्यपदस्यएकादशधिकशतार्थविवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७.५४१२, १८-१९४४८-५३). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: (-). नमस्कार महामंत्र-आद्यपद विवरण, सं., गद्य, आदि: नमोर्हद्भ्यः इति; अंति: हंतेति कोमलामंत्रणे. १६७५३. सुक्तमाला, प्रतिपूर्ण, वि. १९२१, भाद्रपद कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. जोदपुर, प्रले. जोरावरमल अग्रवाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १२-१३४३८-४४). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलकुशलवल्लिवृंद; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १६७५४. (+) शालीभद्र रास, संपूर्ण, वि. १८४६, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्रले. मु. नवलविजय (गुरु ग. जिनविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १३-१६४३७-४१). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल लहस्येजी, ढाल-२९. १६७५६. (#) नव्वाण्णुप्रकारीपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १०४३६). ९९ प्रकारी पूजा-शQजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेसर पासजी; ___ अंति: आतम आप ठरायो रे, ढाल-११+कलश. १६७५७. (+) आर्यवसधारा, संपूर्ण, वि. १८१६, आश्विन शुक्ल, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. वेहरा, प्रले. मु. पुण्यसोम (गुरु मु. केसरसोम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, १२-१३४३०). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति. १६७५८. कार्तिकशुक्लपंचमी माहात्म्य सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-५६ तक है., जैदे., (२६.५४११.५, ६x२८-३४). वरदत्तगुणमंजरी कथा, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: (-), अपूर्ण. वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ प्रतै; अंति: (-), अपूर्ण. १६७५९. ज्ञानपंचमी कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-३(३ से ४,८)=१२, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ७-८x२०-२२). वरदत्तगुणमंजरी कथा, सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: मुक्तिं गतः, अपूर्ण. १६७६०. (+) प्रश्नचिंतामणी व प्रश्नचिन्तामणिबीजक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९-८(१,४,६ से ८,१० से ११,३४)=७१, कुल पे. २, ले.स्थल. अहमदाबाद, प्रले. मोहनलाल मोतिदास पटेल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अहमदाबाद में शाहापुर मांगलागांधी की पोल में यह प्रत लिखी गयी है. शंखेश्वरपार्श्व प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१२, १२४४१-४४). १. पे. नाम. प्रश्नचिंतामणी, पृ. २अ-७४अ, पृ.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. प्रश्नचिंतामणि, ग. वीरविजय, सं., गद्य, वि. १८६८, आदि: (-); अंति: चिरं नंदंतु चोत्तमाः, खंड-२, ग्रं. २२००, ___ अपूर्ण. २. पे. नाम. प्रश्नचिन्तामणि बीजक, पृ. ७४अ-७९आ. For Private And Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ४०९ प्रश्नचिंतामणि-बीजक, मा.गु., गद्य, आदि: ब्राह्मी सुंदरी; अंति: पहेरावे के आगल मुके. १६७६२. (+) जीवविचार-१३स्थाने, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्रले. ऋ. पूजा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, जैदे., (२७४११.५, १५-१९४५३-६०). विचार संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वीरं गुरुश्च वंदित्व, (२)पृथ्वी अप तेउ वाउ; अंति: अल्पबहुत्व विचारिउ. १६७६६. चौदगुणठाणा इकवीसद्वार, संपूर्ण, वि. १८८९, ज्येष्ठ शुक्ल, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८+१(८)=९, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. सा. छोटी (गुरु सा. रतुजी), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७४११.५, १६-१८४३०-३५). १४ गुणठाणा २१ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार १ लखण २; अंति: द्रष्टांत जीव जाणवा. १६७६७. (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ-प्रथमश्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १८४५, मध्यम, पृ. ६२, ले.स्थल. सिंघाणा, प्र.वि. प्रतिलेखक पत्रांक ३ से ही ग्रन्थलेखन किया है. वस्तुतः प्रत में घटते पत्र नहीं है. प्रतिलेखक द्वारा दिया गया पत्र ३-६४ है., पदच्छेद सूचक लकीरें-क्रियापद संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, ६-८४३६-४३). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, आषाढ़ शुक्ल, ४) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सांभलु मै हे आउखा; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, श्रावण कृष्ण, ९, रविवार) १६७७०. साधुप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९६२, फाल्गुन शुक्ल, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. फलवर्द्धि, प्रले. पं. केशरिसागर; पठ. किसनीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशान्तिनाथजी प्रसादात., जैदे., (२६.५४११.५, ९४२२-२६). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-६अ. पगाम सज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः (१)करेमि भंते० चत्तारि०, (२)नमो अरिहंताणंसाहणं; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. २. पे. नाम. साधुपाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. ६अ-७आ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (१)इच्छामि खमासमणो पियं, (२)पियं च मे जंभे; अंति: (१)नित्थारग पारगा होह, (२)मणसा मत्थएण वंदामि, आलाप-४. १६७७१. (#) पापबुद्धिराजाधर्मबुद्धिमंत्री रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १३-१५४३३-४०). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६८, आदि: श्रीजिन सरस्वती संत; अंति: नित होय मंगलमाल रे, ढाल-२७, गाथा-४१६, ग्रं. ५३२. १६७७२. दसअछेरा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२६.५४१२, १२-१४४३४-३७). १० आश्चर्य वर्णन, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: उवसग्ग१ गब्भहरण; अंति: जीणविचीली, सुखीथया. १६७७३. (+) क्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा १६५ तक है.,प्र.वि. पदच्छेद सुचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७४११, १०४३०-३३). For Private And Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची __ लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपट्ठिय; अंति: (-), __ अपूर्ण. १६७७४. मृगलेखा रास, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., ढाल-६२ गाथा-५ अपूर्ण तक हैं., जैदे., (२७४११.५, १५-१७४३५-३८). मृगांकलेखा चौपाई, ऋ. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदि: आदीसर जिन आदी दे; अंति: (-), पूर्ण. १६७७५. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७६२, चैत्र कृष्ण, ९, रविवार, मध्यम, पृ. २३-७(१ से ७)=१६, पू.वि. अध्ययन ५ उद्देश १ गाथा २२ तक नही है., प्रले. मु. ताराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, १२४३६-४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः (-); अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०, अपूर्ण. १६७७८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ११०-५(१ से ५)=१०५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., अध्ययन २ गाथा १७ से अध्ययन ३६ गाथा २६८ तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, ९४३६-३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १६७७९. रात्रीभोजन रास, आनंदसंधिव नववाडी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. श्रीवधनगर, जैदे., (२६.५४११, १४-१५४३५-३९). १. पे. नाम. रात्रिभोजन चौपाई, पृ. १अ-११अ. ___ मा.गु., पद्य, आदि: पणमि गोयम गणहर राय; अंति: उछव सिधि संपद ते लहि, गाथा-२२८. २. पे. नाम. आणंद श्राद्ध संधि, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू.वि. गाथा ३ तक लिखा हुआ है. मु. विजयचंद, प्रा., पद्य, आदि: सिरि वीर जिणिंदह; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३. पे. नाम. नववाडि सज्झाय, पृ. ११अ-११आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१४ अपूर्ण तक है. ___ क. धर्महंस, मा.गु., पद्य, आदि: आदि आदि जिणेसर नमुं; अंति: (-), अपूर्ण. १६७८१. (#) भरतबाहुबली सवैया, संपूर्ण, वि. १७८३, पौष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. क्र. सिवराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२७४११, १०४३८-४०). भरतबाहुबली सवैया, मु. सभाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष धरा जुगल; अंति: चंदन जगतमे शोभ चढावे, गाथा-३५. १६७८२. विचारसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-१(७) =७, प्रले. मु. रूपविजयजी; पठ. मु. जोधविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १४४४८-५०). विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: अद्दामलग पमाणे पूढवि; अंति: केवलसमुद्धात, अपूर्ण. १६७८३. (+#) कल्याणमंदिर सह टबार्थ व मंत्र, संपूर्ण, वि. १८७६, भाद्रपद शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, ले.स्थल. नीबोल, प्रले. मु. विनेरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ५४३४-३६). १.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सहटबार्थ, पृ. १अ-८अ. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: (१)मोक्षं प्रपद्यते, (२)मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. For Private And Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम मंगलीक भणी; अंति: प्रपद्यंते हतां पाम. २. पे. नाम. मंत्रसंग्रह, पृ. ८अ, पे. वि. गायत्री व रूद्रगायत्री मंत्र है. गायत्रीमंत्र संग्रह, सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (वि. ब्रह्मगायत्री व रुद्रगायत्री मंत्र अन्त में लिखा गया है.) १६७८५. आचारांगसूत्र सह सुखावबोध वालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८९-४४ (१ से ४३,८१) = ४५, पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्रथम श्रुतस्कन्ध के अध्ययन ५ उद्देश २ अपूर्ण से अध्ययन ९ उद्देश ४ अपूर्ण तक है।, जैदे., (२६.५x११, १७४५७-६०). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-), अपूर्ण. आचारांगसूत्र- बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४११ १६७८६. संथारा पयन्ना सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८४६, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र. वि. बालावबोध लेखन टबार्थ शैली में है., जैवे., (२७X११.५, २-७X४८-५२). संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंति: सुहसंकमणं सया दिंतु, गाथा - १२०. संस्तारक प्रकीर्णक- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः शाखन प्रारंभ; अंतिः सुख आपो इत्यर्थः १६७८७. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १४७०, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले. स्थल. डूंगरपूर, प्र. वि. अन्त में उत्तराध्ययन निर्युक्ति की माहात्म्यदर्शक चार गाथाएँ है., जैवे. (२६.५४११, १९७२-७६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (१) त्ति बेमि, ( २ ) पुव्वरिसी एव भासंति, अध्ययन-३६. For Private And Personal Use Only १६७८८. (+) आचारांगसूत्र सह टवार्थ प्रथमश्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १८३९, फाल्गुन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ६१, प्रले. देवकर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रारंभिक पत्रांक १ को सुधारकर ३ किया गया है तथा इसी क्रम से अन्त तक सुधारा गया है. पाठ क्रमशः मिलता है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७११.५, ४-६X३६-४९). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सु० सुधर्मस्वामी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १६७८९. (#) धनदत्तमित्रकथा, छंदअक्षरश्लोक व श्लोक, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३ - १ ( १ ) = १२, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५४११, १६-१७४४९-५७). १. पे. नाम. धनदत्तमित्र कथानक, पृ. २अ १३आ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है, श्लोक १८ तक नहीं है. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: धनमित्रसाधुः शिवंगतः, गाथा- १८८, पूर्ण. २. पे. नाम. छंद अक्षर संख्याश्लोक, पृ. १३ आ. सं., पद्य, आदि: अनुष्टुप् अष्ट अक्षर; अंति: रामेकविंशकः, लोक-२. ३. पे. नाम श्लोक, पृ. १३आ. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, सं., पद्य, आदि: ( - ); अंति: (-), श्लोक - १. Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६७९०. (+) सम्यक्त्व कौमदी, संपूर्ण, वि. १५६४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. ६७, ले.स्थल. अणहिलपुरपत्तन, प्रले. अचल त्रिवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७.५४११, ११४३५-४०). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: धर्मो वितीर्यता. १६७९१. (+) भगवतीसूत्र वणा-१४३ वाँ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अधिकार १४३ वाँ है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x११, ११४३०-३४). भगवतीसूत्र-हिस्सा*, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १६७९४. (+) सील रास, संपूर्ण, वि. १७९९, चैत्र कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. मेडता, प्रले. ऋ. अणदा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४११, १२-१३४३८-४०). शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुं प्रणाम करूं; अंति: इम श्रीविजयदेवसूरि, गाथा-७३. १६७९६. चौदगुणठाणै जीवस्थानक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.७, जैदे., (२७.५४११, १३४३९-४२). १४ गुणठाणा जीवभेद, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम मिथ्यात्व गुण; अंति: भेद मनुष्यना लाभै १४. १६७९८. (#) षडावश्यकसूत्र, पार्श्वजिन स्तोत्र व सप्तस्मरण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. ३, ले.स्थल. विक्रमनगर, पठ. श्रावि. कसुभाबाई सखू, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १३४४३-४६). १. पे. नाम. षडावश्यकसूत्रं, पृ. १आ-७अ. खरतरगच्छीय श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा; अंति: (१)जिनदत्तसूरिः, (२)आलोयणामाहि आलोइसु. २. पे. नाम. स्तंभनकपार्श्वनाथ अभयदेवसूरिकृत नमस्कारः, पृ. ७अ-९अ. जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंति: अभयदेव विनवइ आणंदिय, गाथा-३०. ३. पे. नाम. सप्तस्मरणानि, पृ. ९अ-१५आ. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभय; अंति: भवे भवे पास जिणचंद. १६७९९. क्षेतसमास प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, अन्य. मु. सखरा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४११, ९-१०४३१-३५). बृहत्क्षेत्रसमास-संक्षेप जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहर निभस्स; अंति: समयखेत्तस्स परिरओ, गाथा-१४१. १६८०१. नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८६३, आषाढ़ कृष्ण, १२, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. सा. जतु (गुरु सा. वधुजी), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७४११, १६-१८४३७-४३). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: से तं नंदी सम्मत्ता. For Private And Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १६८०२. सूक्तावली, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक - ३७३ तक है।, जैदे., (२६.५X११, १३x४०-४१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूक्तावली, सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र; अंति: ( - ), अपूर्ण. १६८०३. सप्तस्मरण व लघुशांति, संपूर्ण, वि. १८७८, वैशाख शुक्ल, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, ले. स्थल. वडालि, प्रले. मु. . चंद्रविजय (गुरु पं. माणिक्यविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., जैवे. (२८४१२, ९-१०X२७-३१), १. पे. नाम, सप्तस्मरण, पृ. ९आ-१४आ, पू. वि. कल्याणमंदिर के सिवाय आठ स्मरण है. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं हवइ; अंति: जैनं जयति शासनम्, प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १४-१५आ. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांत; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक - १७+२. १६८०४. (+) पडिकमणां सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, प्रले. मु. कुंजलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२९x११.५, ४-६४३५-४१). साधु प्रतिक्रमणसूत्र - तेरापंथी, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि इच्छामि णं भंते; अंति: मिच्छामि दुकडं. साधु प्रतिक्रमणसूत्र - तेरापंथी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांछु छु हे भगवान; अंति: तेहनु मिथ्या फोक थाउ. १६८०६. आत्मनिंदा, संपूर्ण, वि. १९६२, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. पं. हरीसागर; पठ. सा. लीखमश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये., (२९x११.५, ६x२०-२२). आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गद्य, आदि हे आत्मा हे चेतन ऐ; अंतिः सो नर सुगुण प्रवीन. १६८०७, (+) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३१, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है., खंड ३ ढाल -५ गाथा ७ तक हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५x१२, ११-१३३७-४७). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय ; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: (-), अपूर्ण. १६८०८. धर्मपरीक्षा रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा ४९१ तक हैं., जैवे., (२७.५X११.५, २२४५९-६२). ४१३ धर्मपरीक्षा रास, संबद्ध, पुहिं., पद्य, आदि: प्रणमूं अरहंतदेव गुर; अंति: (-), अपूर्ण. १६८०९. (+) जंबूस्वामीकथा, अक्षोहणीमान व श्लोक, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २४-१ (२) - २३, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैवे. (२८x१२, १०-१४४४५-४९). " " १. पे. नाम, जंबूस्वामी कथा, पृ. १आ-२४आ, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है, श्लोक ११ अपूर्ण से श्लोक ३१ तक नहीं है. मा.गु., पद्य, वि. १६४२, आदि: पढम पंचपरमेठिहि; अंति: मन वंछित फल पावै सोइ, गाथा-४९०, पूर्ण. २. पे. नाम. अक्षौहिणीसैन्य मान, पृ. २४आ. मा.गु., को., आदि: ६५६१०० र ६५६१०० अंति: (-). For Private And Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. जैन श्लोक , पृ. २४आ. सं., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), श्लोक-१. १६८११. (+) नव्वाणुप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९३४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१२, ११-१३४३१-४४). ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेसर पासजी; अंति: आतम आप ठरायो रे, ढाल-११+कलश. १६८१५. (-) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. अशद्ध पाठ., जैदे., (२६४११.५. ९४३५-३७). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, __ श्लोक-४४. १६८१६.(+) स्थानांगसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., द्वितीय स्थानक तृतीय उद्देशक अपूर्ण तक है., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-त्रिपाठ., जैदे., (२८x१२.५, १२४५४-६०). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: (-), अपूर्ण. स्थानांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: श्रीवीर जिननाथ; अंति: (-), अपूर्ण. १६८१७.(+) दंडकविचारषत्रिशिकासूत्र सह टबार्थ-विस्तृत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ३४४२-५२). दंडकषत्रिंशिका, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४०. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मु. यशसोम-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनै मनवचन; अंति: (१)टबार्थं दंडकस्तवे, (२)हितनी करणहारी. १६८१८.(+) अध्यात्मगीतसंग्रह व अध्यात्मफाग, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२.५, १४४३३-३८). १. पे. नाम. आनंदघन गीतबहोत्तरी, पृ. १आ-१३अ. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: क्या सोवेउठि जाग; अंति: मानो यह जनरापरोधको, पद-७८. २. पे. नाम. अध्यात्म फाल, पृ. १३अ. आध्यात्मिक गीत, म. लब्धिविजय, पुहिं., पद्य, आदि: जबलगि विषय घटा न; अंति: कहे विषय वेलि कटि, गाथा-५. १६८१९. पंदरतिथि, सातवार सज्झाय, दोहा व कवित, संपूर्ण, वि. १८५८, आश्विन कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. ४, ले.स्थल. आणंदपुर-वडनगर, प्रले. ग. हस्तीविजय (गुरु ग. माणिक्यविजय); पठ. पंन्या. गलाबसागर (गुरु ग. कल्याणसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४१२.५, १३४३२-३५). १.पे. नाम. पन्नरतिथी स्वाध्याय, पृ. १आ-८आ. १५ तिथि ७ वार चरित्र, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमद् गोडी जगधणी; अंति: लब्धि लहे शुखसर्म रे, ढाल-१५. २. पे. नाम. औपदेशिक दहा, पृ. ८आ. For Private And Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ सं., पद्य, आदि: रात्रुपर्तनिदिदेवा; अंति: मुक्ति नास्ति दीगंबर, श्लोक-१. ३. पे. नाम. हीरगुरु कवित, पृ. ८आ. क. सोम, मा.गु., पद्य, आदि: सबे भृग नयन चलीगु; अंति: कवि सोम कहे० पेटनटा, गाथा-१. ४. पे. नाम. ७ वार सज्झाय, पृ. ९अ-१४अ. म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बोले आदित वार अहो; अंति: लबधिविजेंयें कह्यो, ढाल-७. तेरापंथी चर्चा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२७४१२, २०-२२४५३-६३) तेरापंथी चर्चा, लक्ष्मीचंद, हिं., गद्य, आदि: अथ तेरापंथियाकी; अंति: लक्ष्मीचंद वर्न. १६८२३. (+) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र सह टबार्थ-पाहुड १० से १५, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू.वि. पाहुड १० वे के २२ वे प्राभृतप्राभृत के अंतिम कुछेक अंश से १५ वे पाहुड तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, ६-८७५४-६४). चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १६८२४. (+) गजसुकमालसंधी, नागीलासती, क्रोध सज्झाय व ज्ञानगरबो, संपूर्ण, वि. १८५०, आश्विन शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, ले.स्थल. नागोर, प्रले. ऋ. जीवणराम; पठ. ऋ. जयचंद (गुरु ऋ. जीवणराम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, १९४५७-६३). १. पे. नाम. गजसुकमालमुनी संधि, पृ. १अ-५अ. गजसुकुमालमुनि संधि, मु. देव, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: नमिय निरंजन नेमि; अंति: सदा० परम कल्याण्ण, ढाल-१४, गाथा-२२२. २. पे. नाम. नागलासती सज्झाय, पृ. ४अ-४आ. नागीला भवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भूदेव भाई घर आवीया; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-१७. ३. पे. नाम. ग्यान गरबो, पृ. ५आ. मु. भूधर, मा.गु., पद्य, आदि: आदिशकति आस्यु नोरतै; अंति: भूधर० जयकारमांजी, गाथा-१०. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधोपरि, पृ. ५आ. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडूवो फल छै क्रोधना; अंति: निर्मली उपशमरसे नाही, गाथा-६. १६८२५. (+) प्रज्ञापनासूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८४८, कार्तिक शुक्ल, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. २९७-१(२५८)=२९६, __ ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३१०००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, जैदे., (२६.५४१२.५, ७-९४४४-५३). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० ववगयज; अंति: सुही सुहं पत्ता, ग्रं. ९७०७, पूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: छै ते सिद्ध छै, पूर्ण. १६८२६. (+) व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-१(२)=२१, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., नौवे उददेश की गाथा ४ तक है।, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, ५-९४४०-५१). For Private And Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४१६ (+) www.kobatirth.org व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि जे भिक्खू मासिवं; अंति: (-), अपूर्ण, व्यवहारसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे० जे कोइ भि० साधु अंति (-), अपूर्ण, ; १६८२७. आवसकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८६०, भाद्रपद शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ३१-२३(१ से २३)=८, ले.स्थल. दादरी, प्रले. मु. देवकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६१२, २६x४२-६२). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडं, अपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अतिचार० निवर्त्तु छउ, अपूर्ण. १६८२९. जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०४, श्रेष्ठ, पृ. २८६ + १ (२०५) = २८७, प्रले. मु. . शोभाराम ऋषि (गुरु मु. डालूराम ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. पृष्ठ नं. २०७७ २०८ अ पर जम्बूद्वीप- नन्दीश्वरद्वीप का चित्र है., प्र. ले. श्लो. (२५) भग्नपृष्ठकटिग्रीवा, जैवे. (२५X१२.५, ४-१०४३७-४३). (+) — कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः णमो उसभादियाणं चउवीस अंतिः सेत्तं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति- १०, ग्रं. ४८००, (, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, १२, गुरुवार, ले. स्थल. कांधलार) जीवाभिगमसूत्र - टवार्थ, मु. धनविमल, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवो माहरु; अंतिः सर्वजीव कह्या छ, ग्रं. २२७२१, (, आषाढ़ कृष्ण, ८, सोमवार, ले. स्थल. वडवत ) १६८३२. पांडव चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, पू.वि. गाथा - ५८४ तक लिखा हैं., जैदे., (२५४१२.५, १३-१५X३१-३४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 9 पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १६८३३. . (+) अजियसांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित., जैदे., (२५X१२.५, ७X२०). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा- ४०. १६८३८. आवश्यकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्रले. मु. तोलाराम महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X१२.५, ४-६X३४-४२). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - श्वेतांबर संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० करेमि; अंतिः खमामि सव्वस्स अहयंपि. १६८३९. तेरा द्वार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., ( २४x१२.५, १७३६-३८). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - श्वेतांबर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीतीर्थंकर प्रते; अंतिः तीर्थंकरनी० प्रकासी, १३ द्वार, रा., गद्य, आदि: गाथा मूल द्रष्टांत; अंति: रूपीयो मोक्ष जाणवो, द्वार - १३, ग्रं. ३१०. १६८४०. (+) कथाकोश, संपूर्ण, वि. १९५९, पौष शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०१, ले. स्थल. नागोर, प्रले. जोगीदास व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७१३, १४X३९-४४), जैन कथाकोश, सं., गद्य, आदि: यांति दृष्टं दुरितान; अंतिः मोक्षं यास्यतः, ग्रं. ४०००. For Private And Personal Use Only १६८४१. आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९१८, भाद्रपद कृष्ण, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७०, ले. स्थल. मुंबाई, प्रले. पं. जसविजय; पठ. श्राव. खेताजी बिसापोरवाडज्ञातीय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये., (२७४१३, १४-१५३३ ४० ). Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org ४१७ आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: हवें भव्य जीवनें; अंतिः तिथि सफल फली मन आस, ग्रं. २३००. १६८४२. (+) पाक्षिकसूत्र व खामणासूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७.५X१२.५, १३४३०-३२). १. पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. १आ-१३अ. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (१) जेसिं सुयसायरे भत्ति, (२) मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. खांमणा, पृ. १३अ १३आ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो पियं; अंतिः नित्थारग पारगा होह, आलाप ४. १६८४३. (*) समेतशिखरगिरि पार्श्वनाथपंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. बालगरजी बावा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., ,जैदे., (२८४१३, ११x२९-३१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन पंचकल्याणक स्तवन- समेतशिखर, मु. शिव, मा.गु., पद्य, वि. १९२७, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: मंगल करो नितु सवायो, ढाल - ३ + कलश. १६८४५. सिद्धाचलवर्णन महातत्य, संपूर्ण, वि. १८८२, फाल्गुन कृष्ण, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले. स्थल खेरालु, प्रले. मु. , रंगविजय (गुरु पंन्या. शुभविजय); पठ, मु. लक्ष्मीविजय ( राजसूरगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१३, १५४३४-३८). शत्रुंजय माहात्म्य, मा.गु., गद्य, आदि: ए श्रीविमलाचल; अंति: अकर्म २० सर्वकामद २१. १६८४७. (+) समवसरण स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९१, पौष कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १०, ,ले. स्थल सरसपुर, डुंगरजी; लिख. मु. ऋद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - त्रिपाठ - संशोधित., जैदे., (२६.५X१३, १-४४३१-३५). प्रले. समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि थुणिमो केवलीवत्वं; अंतिः कुण्ड सुपयत्थं, गाथा - २४. समवसरण स्तव- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणि प्रणतं अंतिः करो तीर्थंकर भगवान, १६८४८. मेघकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १९३९, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. मंगलसेन ( गुरु मु. ख्यालीराम), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १८-१९x३९-४२). मेघकुमार चौपाई, सा. जीयोजी, मा.गु., पद्य, वि. १९३१, आदि: श्रीपार्श्वप्रभुनें; अंतिः जोड० मुनिवर भावसुं ढाल - ११. १६८५०. अंजनासती रास, संपूर्ण, वि. १९०२, कार्तिक कृष्ण, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले. स्थल. आगरा, प्रले. सा. पन्ना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. दोहे की गाथा संख्या अलग से दी है., जैदे., (२७X१३, १८-२०X३२-३७). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध समरु; अंति: भारजा जगतनी मायतो, गाथा - १५६. १६८५१. वैरागशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले, सा. रलीकी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे, (२५X१३, ५-६X४१-४५). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं, गाथा - १०४. वैराग्यशतक - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चतुर्गति रूप संसारने; अंति: स्थानक कुण मोख रूप. For Private And Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६८५२. सेबूंजा रास, संपूर्ण, वि. १९१०, आषाढ़ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. श्राव. जीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१३, ११४२६-२८). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: रिसहें जिनेसर पय; अंति: ए सुणतां आणंद थाय, ढाल-६, गाथा-१०८. १६८५३. चौमासी देववंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. मूल २४ जिन देववंदन., जैदे., (२६४१३, १०-११४२९-३१). चौमासीपर्व देववंदन, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पढम जिनवर० पाय; अंति: (१)नंदसूरि शिवसुख दायक, (२)भणे सफल करो अवतार. १६८५५. इकवीसठाणा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७७, माघ कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. खेटकपुर, प्रले. मु. खुसालरत्न (गुरु मु. शिवरत्न, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. भीडभंजनपार्श्वजिनप्रासादे., जैदे., (२७४१३, ४४२९-३८). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-६६. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चवण विमाण नगरि जिन; अंति: ए साधारण भणिया कह्या. १६८५७. (+) भीखमपंथी का मतखंडन, संपूर्ण, वि. १८४५, फाल्गुन शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४४, ले.स्थल. सिंघ प्रले. मु. रूघनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७७१३, १६-२०४३६-४१). दानदयाउथापकश्रधान उपर सिद्धांतनें न्याय उत्तरनी चर्चा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: केइ एक क्रिया वादी; __ अंति: प्रतिबोधणे वास्ते. १६८५८. पोरवाड गच्छ की चर्चा, संपूर्ण, वि. १९११, चैत्र शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. अहीपुर, प्रले. पं. रतनचंद (कमलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३.५, १४-१७४३४-४३). वडोदरा में पोडवाड गच्छ की चर्चा, मु. दीपविजय, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम दशवैकालिक की; अंति: परंपरा राखी चाहीजै. १६८६६. सिद्धांतरत्नव्याकरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., तद्धित प्रकरण अपूर्ण तक है., जैदे., (२८x१२.५, ११४४०-४८). सिद्धांतरत्निका व्याकरण, आ. जिनचन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीमद्गुरुपदाम्भोज; अंति: (-), अपूर्ण. १६८६७. विचारसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२८x१२, १४४५१-५७). विचार संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: जोअणसयं तु गंता अणहा; अंति: कृतं तु गृह्णीयात्, ग्रं. ५३०. १६८६८. उपदेशरसाल सह बालावबोध, त्रुटक, वि. १९२५, आषाढ़ कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८१-३०(१ से ५,२० से २५,४७ से ५२,५४ से ५८,६२,७२ से ७७,८०) ५१, ले.स्थल. खेटकपुर, प्रले. वरजलाल पटेल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. भीडभंजन पार्श्वनाथ प्रसादात्. अंग्रेजी प्रतिलेखन वर्ष-३० जुलाई १८६९., प्र.ले.श्लो. (४४०) तैलाद रक्षेद् जलाद रक्षेद्, जैदे., (२७.५४१३, १६-१९४३४-३७). उपदेशरसाल, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंति: गम्य विचारणीय, वर्ग-४, त्रुटक. सूक्तमाला-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कहेता विचारुवु, त्रुटक. For Private And Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १६८७०. आचारदिनकर-३२ से ३३ उदय, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२९x१२.५, १५-१७४४७-५४). आचारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १६८७१. नवतत्त्व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२८x१३, १७-१९४४०-४४). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: समकित विना ज्ञान; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १६८७२. जंबूपृच्छा रास, संपूर्ण, वि. १९२८, आषाढ़ शुक्ल, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२८x१२.५, १३-१४४३४-४०). जंबूपृच्छा, मु. वीरजी, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सकल पदारथ सरवदा पुरे; अंति: वीरजी मुनि सुखकारी, ढाल-१३. १६८७३. सीमंधरजिन स्तवन व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९२८, भाद्रपद कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. रालु, प्रले. खेमचंद अंबाराम भोजक; पठ. श्राव. खेमचंद विरचंद सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२.५, १२-१३४३५-३८). १.पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, पृ. १अ-७अ. उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमधर विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५, ग्रं. १७९. २. पे. नाम. श्लोक-विद्या, पृ. ७आ. जैन गाथा*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). १६८७४. (+) नवतत्त्व सह अवचरि, संपूर्ण, वि. १८६८, वैशाख कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. पाटण, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५४१२.५, १-४४४०-४५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-६८. नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीर; अंति: शीघ्रं प्राप्नुवंति. १६८७६. ज्ञानदर्शनचारित्र वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १२४३८-४२). महावीरजिन स्तवन-ज्ञानदर्शनचारित्रसंवादरूपनयमतगर्भित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: श्रीइंद्रादिक भावथी; अंति: पभणे संघने जयकार ए, ढाल-८, गाथा-८१. १६८७७. महावीर दिवाली स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२७४१२.५, १०४३२-३६). महावीरजिन निर्वाणमहिमा स्तवन-दीपावलीपर्व, म. गणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसमण संघ तिलकोपम; अंति: श्रीगुणहर्ष वधामणइं, ढाल-१०, गाथा-१२३. १६८७८. समकितसडसठ बोल, संपूर्ण, वि. १८८९, वैशाख कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. पाली, प्रले. पं. हीरविजय; पठ. श्राव. गोडीदास धोका, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (६९२) कर गाबड कर बेवडी, (६९३) वस्तु ठीकाणे पाइये, (६९४) अहि मुष पड्यौ सो विष भयो, जैदे., (२८x१२.५, ११४२६-२८). समकितना सडसठबोलनी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोले रे, गाथा-६७. For Private And Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६८७९. महावीरजिन हुंडि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. लेबडि, प्रले. मु. दलपतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२.५, १२-१४४३२-३७). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, __ आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अति: आणा सिर वहेस्येजी, ढाल-६, गाथा-२२५. १६८८०. बालचंद्रबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १८८२, अज्ञात शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ.५, ले.स्थल. राधिकापुर, पठ. मु. प्रेमविमल (संविज्ञपक्षीय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२.५, १२४३३-३५). अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर पद परमेसरकुं; अंति: बालचंद० छंद जाणीइं, गाथा-३३. १६८८१. आध्यात्मिक दहासंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा १०८ + २४ तक है।, जैदे., (२७.५४१२, ११४३४-३६). आध्यात्मिक दूहासंग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: परमातम परमानही; अंति: (-), अपूर्ण. १६८८२. सम्यक्त्वस्तवना सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७.५४१२, १-३४३३-३९). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: होउ सम्मत्त संपत्ती, गाथा-२५. सम्यक्त्वपच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जहसमत्त० यथायेनौपशमि; अंति: (१)भवत्विति सुगममन्यत, (२)तवावचुरि स्वगुरुवाचा. १६८८३. चांदराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(२)=५, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-७ गाथा-१० तक हैं., जैदे., (२७४१२.५, १६-१७४३५-४१). चंदनमलयागिरि चौपाई, क. केसर, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: सानीधकारी सारदा समरू; अंति: (-), ___ अपूर्ण. १६८८४. संबोधसत्तरी, कल्याणमंदिर व महावीर स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-१०(१ से १०)=६, कुल पे. ३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२८x१२, ५४४४). १. पे. नाम. संबोधिसत्तरि सह टबार्थ, पृ. ११अ, पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-६९ तक नहीं है. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा-७२, अपूर्ण. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: इहां संदेह कोइ नही, अपूर्ण. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. ११अ-१६आ. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मांगलिक्यनउ निकेतन; अंति: मोक्ष सिद्धि पामइ. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन सह टबार्थ, पृ. १६आ, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-२ अपूर्ण तक है. महावीरजिन वृद्धस्तवन, आ. अभयसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भयवं; अंति: (-), अपूर्ण. महावीरजिन वृद्धस्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जयवंत हुइ तपस्वी; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १६८८६. कर्पूर प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-२५ तक है., जैदे., (२८x१२.५, ११-१४४२७-३४). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंति: (-), अपूर्ण. कर्पूरप्रकर-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: व्याख्याननी बेलाने; अंति: (-), अपूर्ण. १६८८७. वत्छराज रास, संपूर्ण, वि. १९०१, फाल्गुन शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८९, ले.स्थल. गोधावी, प्रले. पं. जतनकुशल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२.५, १२४३२-३४). वच्छराज रास, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८२, आदि: श्रीसुहंकर आदिदेव; अंति: ऋषभविजय कहे जय जयकार, उल्लास-४, ढाल ५६, गाथा-१५२८, ग्रं. २०१६. १६८८८. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०३, आश्विन कृष्ण, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. सवाईजैपुर, प्रले. मु. चैनसुख ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५४१२,४-५४३६-३९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५०. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: अनेक सेला सिद्ध हुआ. १६८९०.(+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०१, आश्विन शुक्ल, मध्यम, पृ. १२, प्रले. ऋ. करमचंद (गुरु मु. दीपचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२९x१२.५, ५४४०-४४). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: आवसही इच्छाकारेण; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आवसही कहेतउ सावधान; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १६८९१. लुंकारी हुंडी, संपूर्ण, वि. १८७६, आश्विन शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२९४१२.५, ११४२९-३१). लुंकारी हुंडी, रा., गद्य, आदि: गये काल का भाव केवली; अंति: गृहस्थासु कहे नही. १६८९२. दानशीलतपभावना कुलक सह धर्मरत्नमंजुघोषा टीका, संपूर्ण, वि. १९४६, माघ शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३००+१(२७४)=३०१, ले.स्थल. अमदाबाद, प्रले. रणछोडदास जोइताराम पटेल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन स्थल संकेत- अहमदाबाद मांडवीपोल के लालाभाई पोल में खंभाती डेला मध्ये., जैदे., (२८x१३, १५४३६-४२). दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिअरज्जसारो; अंति: सोलहइ सिद्धिसुह, वक्षस्कार-४, गाथा-८१. दानशीलतपभावना कुलक-धर्मरत्नमंजूषा टीका, ग. देवविजय, सं., गद्य, वि. १६६६, आदि: ॐ नमो नाभिभूपाल संभव; अंति: सुखमिति गाथार्थः, ग्रं. १२०१६. १६८९४. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. २०११, श्रावण शुक्ल, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ८७, ले.स्थल. अणहिल्लपुरपाटण, प्रले. गोवर्धनदास लक्ष्मीशंकर त्रिवेदी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२९x१३.५, ११४३४-३६). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, __ अध्याय-१०, ग्रं. ८१२. उपासकदशांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १११७, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: कुर्वतां प्रीतये For Private And Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६८९५. भवभावनानाटक सह टबार्थ कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा - २९६ व कथा ३२ अपूर्ण तक है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२९.५X१३.५, १-१४X३९-५५). भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: णमिऊण णमिरसुरवर मणि; अंति: (-), अपूर्ण. भवभावना-टबार्थ, पंन्या. शांतिविजय गणि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: (-), अपूर्ण. भवभावना-कथा, ग. शान्तिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: जम्बूद्वीपे भरत; अंति: (-), अपूर्ण. १६८९६. यतिदिनकृत्य, संपूर्ण, वि. १७६१, रसारसतुरंगरसा, आश्विन १४, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्रले. मु. भावरत्नसूरि (गुरु आ. महिमाप्रभसूरि, पूनमगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रथमादर्श लेखक रूप में ये प्रतिलेखक हैं. वस्तुतः यह प्रत २० की है. प्रथमादर्श प्रति पर से लिखी जाने की संभावना है., जैदे., (२९४१३, १२४३८-४३). (+) (+) www.kobatirth.org यतिदिनकृत्य, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १७१६, आदि: श्रीवीरः श्रेयसे; अंति: भवत्यपि दुःषमाकाले, श्लोक - ४१९, ग्रं. ४८५. १६९००. शतकत्रय सह टीका, अपूर्ण, वि. १८९६, वैशाख कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. २८ - १ (१)=२७, कुल पे. ३, पू.वि. नीतिशतक- श्लोक-२ से शृंगारशतक श्लोक - ११ तक है., प्रले. सुरतराम त्रिवेदी; पठ. दौलतराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२९.५X१३.५, ४-६x४१-५०). १. पे. नाम. नीतिशतक सह टीका, पृ. २अ१४आ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रथम श्लोक नहीं है. नीतिशतक, भर्तृहरि, सं., पद्य, आदि (-); अंति: प्रत्युपकारभीरवः, श्लोक ११३, पूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - नीतिशतक टीका, पा. धनसार उपाध्याय, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि (-); अंति: विकरति तथा राजहंसो न, पूर्ण. २. पे. नाम. शृंगारशतक सह टीका, पृ. १५ अ-२७अ. शृंगारशतक, भर्तृहरि, सं., पद्य, आदि: चूडोत्तंसितचारुचंद्र; अंति: नाम काम: सरोजिन्याः, श्लोक-१०६. शृंगारशतक - टीका, पा. धनसार उपाध्याय, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: हरो महेशः योगिनामवगत; अंति: (१) विदधे धनसारनाम्ना, (२) सुधांशौ रमणीवेपि. ३. पे. नाम. वैराग्यशतक सह टीका, पृ. २७-२८आ, अपूर्ण, पू. वि. सटीक श्लोक ११ तक है. वैराग्यशतक, भर्तृहरि, सं., पद्य, आदि: दिक्कालाद्यनवच्छिन्न; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. वैराग्यशतक - टीका, पा. धनसार उपाध्याय, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: तस्मै शांताय तेजसे; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ,जैदे., १६९०१ (+) प्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टवार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., (२८.५X१३.५, ५X३७-३९). 9 श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंति: ( - ), प्रतिपूर्ण श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुआ केहनई; अंति: ( - ), प्रतिपूर्ण. १६९०२. स्तुतिचतुर्विंशतिका व चैत्यवंदनचतुर्विंशतिका, पूर्ण, वि. १९७९, फाल्गुन कृष्ण, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, ले. स्थल. बलाद, प्रले. मु. चरणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. इस प्रति को क्लाद ग्राम में मुनि विवेकविजयजी ने संशोधन किया., जैदे., (२८.५४१३.५, १३४२२-३५). १. पे. नाम. स्तुतिचतुर्विंशतिका, पृ. १आ ६आ, पूर्ण, पू. वि. पार्श्वजिन स्तुति तक है. For Private And Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंतिः (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २. पे नाम, चैत्यवंदन चौवीसी, पृ. ७अ १२आ. स्तुतिचतुर्विंशतिका, वा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य वि. १८०१-१८४१, आदि: सद्भक्त्वा नतमीलि; अंतिः मम चिराय संपाद्यताम्, स्तुति - २४, श्लोक ७७. १६९०८. (*) पर्युषणापर्व कथा, संपूर्ण, वि. १९१७, माघ कृष्ण, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल, पीपलिया, प्रले. मु. रत्नसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखक द्वितीयचतुर्थमासे (चातुर्मासर) का उल्लेख किया है. मुनिसुव्रतजिनबिंबा त नमस्तु ते., संशोधित., जैदे., (२९x१४, १४X३८-४१). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्त्ता; अंति: च सर्वेष्टसिद्धिः ४२३ १६९१०. जंबूद्वीपपन्नत्ती यंत्र, पूर्ण, वि. १८५६, पीष कृष्ण, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४-१ (११) ३३, ले. स्थल. अमदाबाद, प्रले. श्राव. गलाबचंद हीराचंद मेहता; लिख. इंद्रजी गंगाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१४, १८-२०x४२-५८). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - यंत्र संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पूर्ण. १६९११. अणुत्तरोववाइदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१४, पौष कृष्ण, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले. स्थल. योधनगर, प्रले. मु. रत्नसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५X१४, ८X४०-४५). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधमांस्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः तहा णेयव्वं, अध्याय-३३, ग्रं. १९२. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणे काल चउथा० तेणइ; अंति: तिमही ज जाणवो. १६९१४. चौदगुणठाणा के बोल, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे., (२७.५x१३.५, १४-२०X३८-४८). १४ गुणस्थानक के बोल, मा.गु., गद्य, आदि: एकसौ अडतालीस प्रकृति; अंति: (-), अपूर्ण. १६९१६. षड्प्राभृत, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२-१ ( ३ ) - २१, पू. वि. दूसरे प्राभृत की १-१५ गाथाएँ नहीं है, जैदे., (२८.५X१३, ११४३२-३५ ). अष्टप्राभृत, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., पद्य, आदि: काऊण णमोवारं जिणवर अंति: (-), ग्रं. ५३५ प्रतिअपूर्ण. १६९१७. (+) शब्दार्थनामनिर्घट, संपूर्ण, वि. १६०७, माघ शुक्ल, २, गुरुवार, जीर्ण, पृ. १५, प्र. वि. प्रतिलेखक द्वारा प्रतनामपुष्पिका मे प्रथम परिच्छेद का उल्लेख किया है., पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न - संशोधित, जैदे., (२८.५X१३.५, १०X२८-३० ). For Private And Personal Use Only निघंटु, जै. क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: तन्नमामि परं ज्योति; अंतिः शब्दाः समुत्पीडिताः. १६९१९. ज्ञानसारअष्टक व जैनधार्मिक श्लोक, अपूर्ण, वि. १९०५, वैशाख शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १२-३ (१ से ३) =९, कुल पे. २, पू. वि. प्रारंभ से अष्टक ११ के श्लोक-४ तक नहीं है, ले. स्थल. सुरतबिंदर, जैवे. (२८x१३, १३४३२-३४). १. पे. नाम. ज्ञानसार, पृ. ४अ - १२आ, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (१) स्वीयं कृतं मंगलम्, (२) मेषाकृति प्रीतये, अष्टक - ३२, अपूर्ण. २. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक, पृ. १२अ. Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं.,हिं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अति: (-), गाथा-१. १६९२२. (+) युक्तिप्रकाश सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. पाटण, प्रले. मणीलाल लखमीचंद पांडे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२९४१३, १-२४३६-४३). युक्तिप्रकाश सूत्र, ग. पद्मसागर, सं., पद्य, आदि: प्रणत्य व्यक्तभक्त्य; अंति: चकारार्हत शासनस्थः, गाथा-२८. युक्तिप्रकाश सूत्र-स्वोपज्ञ टीका, ग. पद्मसागर, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: सुकरमेवेदं वृत्तमिति, ग्रं. ३००. १६९२३. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., अंतिम गाथा का अंतिम पाद अधूरा है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२८x१३, ४४२६-३०). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: (-), पूर्ण. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणिपत्य महावीर; अंति: (-), पूर्ण. १६९२४. बासठमार्गणा यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२८x१३, २८-३०४३४-५२). ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नरकगति मनुषगति; अंति: (-), अपूर्ण. १६९२७. दानशीलतपभावनासंवाद व क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१३.५, ११४२९-३१). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. १अ-६आ. उपासमयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: सुंदर० सुप्रसादा रे, ढाल-५. २. पे. नाम. क्षमाछत्रीसी, पृ. ६आ-९आ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव क्षमागुण; अंति: चतुर्विध संघ जगीसजी, गाथा-३६. १६९२८. नवतत्त्व यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैदे., (२७७१३.५, १२-१५४१२-२३). नवतत्त्व यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व प्राण चेतन; अंति: एकसिद्ध अनेकसिद्ध, ग्रं. १६०. १६९२९. से@जयउद्धार, पूर्ण, वि. १८९४, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक नहीं हैं., ले.स्थल. अजमेर, प्रले. मु. जवानकुसल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१४, ११४२५-२७). सेत्तुंजयउद्धार, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदिः (-); अंति: दर्शन जय करो, ढाल-११, गाथा-११४, ग्रं. २००, पूर्ण. १६९३१. अष्टकप्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १९५०, वैशाख कृष्ण, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७०, ले.स्थल. एमदवाद, प्रले. रामकृष्ण बोडा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्त में खरतरगच्छनायक आचार्य जिनचन्द्रसूरि म.सा. की विस्तृत प्रशस्ति दी गयी है., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैदे., (२७४१२.५, १५-१६४५३-५४). अष्टकप्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: यस्य संक्लेशजननो; अंति: (१)भवंतु सुखिनो जनाः, (२)मभिधातुं न शक्यते, अष्टक-३२. अष्टकप्रकरण-वृत्ति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., गद्य, वि. १०८०, आदि: आविष्कृताशेषपदार्थसा; अंति: (१)हरिभद्रसूरेरिति, (२)लोकानां सप्ततिस्तथा, ग्रं. ३३७०. For Private And Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १६९३२.(+) विवाहपन्नत्तीसूत्र-शतक १२ उद्देश २ जयंती को अलोऊ सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १८६७, कार्तिक कृष्ण, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. कीसनगढ, प्रले. सा. रूपा (गुरु सा. कस्तुरा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१२, ६४४२-४४). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. भगवतीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १६९३४. (+) नयचक्र व जिनपार्षद परिमाण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२८x१३, १५-१६x४३-४८). १. पे. नाम. नयचक्रसार, पृ. १अ-५आ. ग. देवचंद्र, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि: गुणानां विस्तर; अंति: यथा जीवस्य शरीरमिति. २. पे. नाम. जिनपर्षदासंख्या गाथा, पृ. ५आ. जिनपर्षदा परिमाणगाथा, प्रा., गद्य, आदि: वीरजिण २४ अट्ठट्ठ; अंति: बारस परिसाउ सव्वेसिं. १६९३५. आगम पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पठ. हेमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२, १३-१४४४१-४५). पीस्तालिस आगमनी पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: संघने तिलक करायो रे. १६९३६. एकविसतिस्थानक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२७४१२, ४४३८-४१). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-७३. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकरदेव जे विमान; अंति: पदे भण्या कह्या छे, ग्रं. ३७४. १६९३७. (+) कर्मग्रंथ ४-षडशीति सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५१, माघ शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. २०,ले.स्थल. राजद्रग, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, ३-४४३०-३३). षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८८. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. श्रुतसागरशिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: (१)गुरुक्तचिंतामणि, (२)त्रिकरण शुद्ध; अंति: देवेन्द्रसूरीइ. १६९३८. सम्यक्तकोमदी कथा, संपूर्ण, वि. १९४७, फाल्गुन शुक्ल, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४, प्रले. सूरजमल ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२.५, १०४३७-४१). सम्यक्त्वकौमुदी कथा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमा० महावीर; अंति: (१)उपरे मोक्षे पोहता, (२)अनंतसुख पामस्यै. १६९३९. (+) व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१२, ५४३३-३६). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्खू मासियं; अंति: महापज्जवसाणे भवइ, उद्देशक-१०. व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे० जे कोइ भि० साधु; अंति: क्षय करवारूप फल हुइ. For Private And Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६९४०. (+) पाक्षिकसूत्र व क्षामणक, संपूर्ण, वि. १८७२, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१२, १०४२६-३३). १. पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. १आ-२२अ. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति, ग्रं. ४००. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. २२अ-२२आ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिय; अंति: नित्थारग पारगा होह, सूत्र-४. १६९४१. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२८x१२, १०४३७-४०). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहताणं० पंचिद; अंति: (-), अपूर्ण. १६९४२. आषाढाभूतिरी चोपी, संपूर्ण, वि. १९३६, कार्तिक शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२८x१२, ११-१३४३६-४६). आषाढाभूति चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: सासण नायक सुखकरू; अंति: मानसागर० रे लाला, ढाल-७, गाथा-४१४. १६९४३. (+) गणधरवाद सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९५, आषाढ़ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. वीसलनगर, प्रले. खेमायेठा ठाकोर; पठ. मु. माणिकविजय; लिख. पंडित. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. कल्याणपार्श्वनाथजी प्रासादात्. श्रीजीसत्क द्वारा वहाँ की प्रत पर से उतारी गयी है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १२१, जैदे., (२८.५४१२, ७४३६-४०). गणधरवाद, सं., गद्य, आदि: अत्रान्तरे भगवन; अंति: जानातीति गणधरवादः. गणधरवाद-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इण अवसरे केवलज्ञान; अंति: । अनुज्ञा करई. १६९४४. (+) पंचमीदेववंदनविधि व पंचमी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८.५४१२, १०४३२-३४). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन, पृ. १अ-१२अ. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (१)प्रथम बाजठ उपरि तथा, (२)श्रीसौभाग्यपंचमी; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज. २.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. १२अ-१४अ. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंति: संघ सयल सुखदाय रे, ढाल-५. १६९४५. हरिश्चन्द्र कथानक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२८x१२, १४४४८-४९). हरिश्चंद्रराजा कथानक, सं., पद्य, आदि: सत्वमेव नृणां तत्त्व; अंति: पालयामास काश्यपीम्, श्लोक-४७५. १६९४६. (+) मृगसुंदरी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२८x१२.५, १३४४०-४४). मृगसुंदरी कथा, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य प्रथमं देवं; अंति: तेषां स्युः सुखसंपदः, श्लोक-१४७. १६९४७. मांडलीआजोग विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७.५४१३, ११४२९-३२). मांडलीयाजोगप्रवेश विधि, मा.गु., गद्य, आदि: स्थापनाजी पडीलेही; अंति:प्र० १ नो० अवधि०. For Private And Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ४२७ १६९४९. रत्नपालरत्नवती रास, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रावण कृष्ण, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ८८, ले.स्थल. धाकडी, प्रले. पं. लक्ष्मणसागर (गुरु पं. रत्नसागर); पठ. सा. वालश्रीजी (गुरु सा. चेनश्री), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (६५४) जला रक्षे स्थलात् रक्षे, जैदे., (२८x१३, १०-११४२९-३१). रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि में दुर; अंति: मोहनविजय विलासजी, खंड-४ ढाल ६६, गाथा-१४०४, ग्रं. १७५०. १६९५०. उपदेशमाला सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६१, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२८x१३, १२-१४४५२-५४). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. उपदेशमाला-वृत्ति, ग. रामविजय, सं., गद्य, वि. १७८१, आदि: (१)श्रेयस्कर कामितदानद, (२)नमिऊण इति नमिऊणशब्दे; अंति: (१)दृशी वाणी श्रुतदेवी, (२)च्यमानो विजयतां सदा, ग्रं. ७६००. १६९५१. अंजना रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२८x१३, १६-१७४४४-४८). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: शील समो वृत कौ नही; अंति: सतीय सीरोमणी अंजना, गाथा-१६५. १६९५२. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८४९, माघ शुक्ल, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२८.५४१३, ३४३४-४१). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि-टीका, सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथस्य; अंति: इत्येकादशपद्यार्थः. १६९५३. (+) कर्मग्रंथ १-२-३ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४८, मार्गशीर्ष, २, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. ३, ले.स्थल. बीजापुर, प्रले. मु. कांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१३, ४-५४३५-३८). १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १आ-९आ. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)आचिरेयं नमस्कृत्य, (२)श्रीमहावीरदेव प्रतइ; अंति: देवेंद्रसूरीइं को. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ९आ-१६अ. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिण; अंति: वंदियं नमह तं वीर, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे बीजा कर्मग्रंथ; अंति: कर्मग्रंथ माहइ का. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १६अ-२०आ. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिव त्रीजउ कर्मग्रंथ; अंति: लिख्यो कीधो जाणवो. १६९५४. बारभावना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्रले. मु. कल्याणविमलल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४१३.५, १२४२८-३०). बारभावना, मा.गु., गद्य, आदि: अपरं च बिजू श्रीजिन; अंति: संबल छे जीव स्वअर्थे. For Private And Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४२८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६९५५. (+) षट्पुरुषचरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२८.५X१४, १४X३९-४५). षट्पुरुष चरित्र, ग. क्षेमंकर, सं., प+ग, आदि: श्रीअर्हतञ्चतुम; अंतिः श्रविणं विचारम्. १६९५८. (+) प्रतिष्ठाविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५१, पौष कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. सादरी, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५X१३.५, १२-१३३३-३६). जिनविवप्रवेश विधि, मा.गु., गद्य, आदि: हवें पूर्वोक्त शुभ; अंतिः करे साधर्मी साचवे. १६९५९. स्नात्रपूजा, संपूर्ण, वि. १८९९, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल. अजमेर, जैवे., (२८.५x१३.५, १०x२६-२८). स्नात्रपूजा विधिसहित ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मुक्तालंकारविकारसार; अंतिः सारखी कही सूत्र मझार, " ढाल - ८, गाथा - ६०. १६९६०. चैत्यवंदन विधि, स्तवन व थोय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ६, जैवे., (२८x१३.५, ७X२२-२६). १. पे. नाम. चैत्यवंदन विधि, पृ. १अ - ६अ. प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: इछामि खमासमणो कही; अंतिः अपाणं बोसिरामी, २. पे नाम. जिनाष्टक, प्र. १-२ आ. साधारणजिन अष्टक, सं., पद्य, आदि: सिद्धि बुद्धि परं; अंतिः श्रीमानभूदराचित, गाथा - ९. ३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ३-४आ. मु. मोहनरुचि, मा.गु., पद्य, आदि अजित जिणेसर साहिब, अंति: सिवरमणी सुख पावे, गाथा-६, ४. पे नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ६.अ. मु. सौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरगिरिस्वामी आदि; अंतिः सौभाग्यनो दातार, गाथा- १. ५. पे. नाम. शत्रुंजयगीरनारतीर्थ स्तुति, पृ. ६आ, शत्रुंजयगिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनमाहे तिरध; अंतिः भव परभव सुखसंपत वरे, गाथा ४. ६. पे. नाम. सिद्धाचलजी चैत्यवंदन, पृ. ७अ. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेत्रुंजो सिद्ध; अंति: दुख जाये सब दूर. १६९६१. स्तवन, सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २४, कुल पे ४, जैदे., (२८१३, १०x३१-३२). १. पे. नाम. स्तवनवीसी अतीत, पृ. १आ-१५ अ. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जिणंदा तारा नामथी; अंति: चंद० होज्यो सदा सहाय, स्तवन- २१. २. पे. नाम. अष्टप्रवचनमाता सज्झाय, पृ. १५अ - २२आ. समिति - गुप्ति सज्झाय, पा. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदिः सुकृत कल्पतरु श्रेणि; अंति: गुरु गुण वृद्धोजी, ढाल - ८. ३. पे. नाम. मुनिवर सज्झाच, पृ. २२- २४अ. For Private And Personal Use Only मुनि सज्झाय, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नाण चरण संपन्न सुगुण; अंतिः सयल समृद्धि, गाथा - १९. ४. पे. नाम. निग्रंथवंदन स्तवन, पृ. २४- २४आ. Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ४२९ निग्रंथवंदन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: तेतरीया आभाइ तेतरीया; अंति: देवचंद० मंगल सुख सदा, गाथा-८. १६९६२. मुनिमाल व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०९, माघ शुक्ल, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ४, ले.स्थल. माणसा, प्रले. पं. मनरूपसागर गणि (अज्ञा. ग. माणिकसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२.५, १२-१३४२८-३०). १. पे. नाम. मुनि मालिका, पृ. १अ-४अ. मु. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: ऋषभ प्रमुख जिन पय; अंति: सदा कल्याण कल्याण, गाथा-३६. २. पे. नाम. त्रिषष्टिशलाकापुरुष स्तवन, पृ. ४अ-५आ. मु. वसतौ, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु चरणकमल मन; अंति: नमै मुनि वसतौ मुदा. ३. पे. नाम. विहरमान २० जिन स्तवन, पृ. ५आ-८अ. ___ पा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वंदु मन सुधे वेरमाण; अंति: इम करें मुनी धरमसी. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ. मु. विजयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मुरती श्रीपास; अंति: निद्धि सदा आणंद घणे, गाथा-११. १६९६५. चौवीसदंडकत्रीसबोल, संपूर्ण, वि. १८५३, चैत्र कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्रले. कांति, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१३, १६x४६-४८). चोविसदंडकनात्रीस बोल, मा.ग., गद्य, आदि: दंडक १ लेसा २ ठिइ ३; अंति: ६ मासनं आंतरु पडै. १६९६६. सुश्रावकश्राविका आलोयणा, संपूर्ण, वि. २००१, आषाढ़ शुक्ल, १२, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. पत्तन, प्रले. श्राव. मोहन गिरधर भोजक; लिख. आ. भक्तिसूरि (गुरु आ. विजयधर्मसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पंडित श्रीरत्नविजयगणि के शिष्य पं. गुलालविजय द्वारा संवत् १७८५ प्रथमवैशाख सुदि १४ शुक्रदिने पत्तन मे लिखित प्रत पर से लिखी हुई प्रत तथा विजयभक्तिसूरि थरा गाम शान्तिजिनप्रासाद के चौमासे में पाटणनिवासी गिरधरभाई हेमचंद के हस्तलिखित प्राचीन पुस्तकसंग्रह में से पाटण वागोलपाडो ऋषभजिनप्रासाद में लिखायी गयी प्रत., जैदे., (२८.५४१३.५, ११४४५-४८). श्रावक आलोयणा विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथमं मुहर्त; अंति: सझाये उपवास पुंहचे. १६९६७. सुव्रतरी कथानक, संपूर्ण, वि. १९३६, आश्विन अधिकमास कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. खेरवा, प्रले. ग. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२९x१३.५, १३-१५४३७-४०). ___ मौनएकादशीपर्व कथा, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीर नमिऊण पुच्छ; अंति: तह मुक्खसुक्खं, गाथा-१६३. १६९६८. मुनिपडिकमण विधि सूत्र सह, संपूर्ण, वि. १८०७, चैत्र, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. ८, पठ. मु. मंगल ऋषि (गुरु मु. महताव ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२८x१३.५, १७४४५-५३). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा; अंति: गुरुना पग ताइ. १६९६९. (+) धर्मपरीक्षा सह छाया, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(२)=१४, पू.वि. गाथा ८ से १४ नही है., ले.स्थल. नागोर, प्रले. देवकृष्ण जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२९.५४१३, ८x२८-३१). धर्मपरीक्षा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., पद्य, वि. १७४४, आदि: पणमिय पासजिणिंद; अंति: तंगीअत्था विसेसविऊ, गाथा-१०५, पूर्ण. धर्मपरीक्षा-छाया, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वजिनेन; अंति: गीतार्था विशेषविदः, श्लोक-१०५, पूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६९७०. (+) सीमंधरस्वामी विज्ञप्ति, संपूर्ण, वि. १९१९, भाद्रपद कृष्ण, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्रले. बालगिर बावा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२.५, ११४३२-३५). सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिब; अंति: शास्त्र मर्यादा भणी, ढाल-१७, गाथा-३५४, ग्रं. ५५३. १६९७१. पुराणसार समुच्चय, संपूर्ण, वि. १९६१, फाल्गुन कृष्ण, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. धोलेरा, प्रले. श्राव. दुलभजी सुंदरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२.५, ११-१३४४१-४७). पुराणहंडी, सं., पद्य, आदि: श्रूयतां धर्मसर्वस्व; अंति: यदि भाग भविष्यते, श्लोक-२५८. १६९७२. यतिप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदे., (२८.५४१२, ४-१३४२९-४१). यतिप्रतिक्रमणसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: पगाम सिज्झाए निगाम; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७४९, आदि: ऍनत्वा पार्श्वनाथ; अंति: तीर्थंकर जिन प्रति, ग्रं. ९००. १६९७३. मौनएकदाशी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२२, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्रले. पं. विशेषरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२.५, ७-८x२९-३४). मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य ऋषभदेव; अंति: सागरशररसशशिप्रमिते, श्लोक-२००. मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेवने नमीने; अंति: पड्यो होई ते सोधवो. १६९७५. (+) प्रतिष्ठाकल्प, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२८.५४१२.५, १०४३४-३६). प्रतिष्ठा कल्प, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: शुभ दिनै विद्यावंत ज; अंति: कारवाली१ गुणै दिन १०. १६९७६. (+) श्रीपालरास सह टबार्थ-खंड ४, प्रतिपूर्ण, वि. १९११, फाल्गुन कृष्ण, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३७, पू.वि. ढाल-१५, ले.स्थल. एमदानगर, प्रले. ऋ. मगनीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. मू.गा. ५७८, जैदे., (२७.५४१३, ७४३५-३८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहसे ___ज्ञान विशाला जी, ग्रं. ९९७, प्रतिपूर्ण. श्रीपाल रास-टबार्थ*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञान पामिजै, प्रतिपूर्ण. १६९७७. प्रतिष्ठाकल्प, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदे., (२७७१३, १६-१९४४१-४५). प्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १६९७८. सिंदूरप्रकर सह टबार्थ-विस्तृत, संपूर्ण, वि. १९४५, चैत्र कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. पालिनगर, प्रले. मु. धनरूपसागर; पठ. सा. गुलाबश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१३, ५४३३-३७). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: ज्ञानगुणा स्तनोतु, श्लोक-१००. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कवीश्वर ग्रंथनें; अंति: तनोतु कहता विस्तारो. १६९७९. शालीभद्रधन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदे., (२७.५४१३, ९-१३४३६-४१). For Private And Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ शालभद्रधन्नारी चौपई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासणनायक समरीई; अंति: मनवंछित __ फल लहिस्यैजी, ढाल-२९. १६९८१. (+) गतिआगति यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१४, १६-१८४४४-५६). जीवगति आगति यंत्र, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १६९८२. (+) आगति यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१३.५). आगति यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १६९८३. सामुद्रिकशास्त्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९१८, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. वडलू, प्रले. पं. तिलकरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक २ अवास्तविक घटते पत्र रूप में है. वस्तुतः पाठ क्रमशः मिलता है., जैदे., (२८.५४१४, १२४३२-४२). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: शुभाशुभफलप्रदं, अध्याय-३६, श्लोक-१३३. सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: पुरुष स्त्रीना लक्षण; अंति: करे अपकिरत वधारे. १६९८४. (+) कर्मग्रंथ-१-कर्मविपाकयंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१४, १२-१३४१८-३७). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, म. समतिवर्द्धन, रा., गद्य, आदि: श्रीवीरजिन प्रते; अंति: अंतराय कर्म बांधे. १६९८५. सिद्धपाहड सह टीका, संपूर्ण, वि. १९६०, कार्तिक कृष्ण, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २३. ले.स्थल, बिकानेर. प्रले. जयगोपाल पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ. कुल ग्रं. १०५२, जैदे., (२८x१४.५, १-५४२७-४४). सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: तिहुयणपणए तिहुयणगुणा; अंति: सुयाणुसारेण णेयव्वं, गाथा-१२०. सिद्धप्राभत प्रकीर्णक-टीका, सं., गद्य, आदि: सकलभवनेशभतान्निखिल; अंति: टीकाकद्भिश्चिरंतनैः. १६९८६. जीवविचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९४०, माघ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. पाली, जैदे., (२७.५४१४, १४-२०४३५-३९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२. जीवविचार प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवण कहेतांत्रणभुवन; अंति: सिद्धांत समुद्र थकी. १६९८७. मंगलकलस चौपाई, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रावण शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३६, ले.स्थल. धाकडी, प्रले. मु. लीछमणसागर; पठ. सा. वालश्रीजी (गुरु सा. चेनश्री), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (३१८) पोथी लेखण पद्मणी, (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, (६५४) जला रक्षे स्थलात्र रक्षे, (६९९) भग्न प्रष्टि कडि ग्रिवा, (७००) लेखणा पूस्तीकारांमा, (७०१) जब लग मेरु अडग है, जैदे., (२७.५४१४, १२४२६-३२). मंगलकलश चौपाई, मु. लक्ष्मीहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: प्रह उठी नीत प्रणमीय; अंति: लहरे उछै एह प्रमोद, ढाल-२७. १६९८८. छवीसद्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७, प्रले. सा. जसोदा (गुरु सा. पन्नाजी); पठ. सा. वछा (गुरु सा. जसोदा), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७७१३.५, १९४३०-३३). For Private And Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर अवगाहणा संघयण; अंति: जोगवचन१ कायार. १६९८९. धर्मपरीक्षा सह छाया, संपूर्ण, वि. १९४१, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र.वि. प्रतिलेखन मास-द्वितीय ज्येष्ठ मास., जैदे., (२८x१३.५, ८x२३-२८). धर्मपरीक्षा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., पद्य, वि. १७४४, आदि: पणमिय पासजिणिंद; अंति: तं गीअत्था विसेसविऊ, गाथा-१०५. धर्मपरीक्षा-छाया, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वजिनेन; अंति: गीतार्था विशेषविदः, श्लोक-१०५. १६९९०. जीवविचारयंत्र, संपूर्ण, वि. १८८२, कार्तिक कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. मु. देवजी ऋषि (गुरु मु. गलालचंद शामजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, जैदे., (२७.५४१३). जीवविचार प्रकरण-यंत्र, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवना २ भेद एक मुक्त; अंति: सादि अनंत स्थिति छे. १६९९१. नवतत्त्वयंत्र, संपूर्ण, वि. १८८२, कार्तिक कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. मु. देवजी ऋषि (गुरु मु. गलालचंद शामजी ऋषि); लिख. मु. करसनजी भीमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, जैदे., (२८x१३.५). नवतत्त्व प्रकरण-विचार यंत्र, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व प्राणचेतना; अंति: एक सिद्ध अनंत सिद्ध. १६९९२. दंडकयंत्र, संपूर्ण, वि. १८८२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. मु. देवजी ऋषि (गुरु मु. गलालचंद शामजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३, १७४१३-३५). ___ दंडक यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १६९९३. (+) संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ-विस्तृत, संपूर्ण, वि. १९१२, पौष शुक्ल, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७, ले.स्थल. शुणढ, प्रले. ग. नन्दलाल (गुरु मु. माणकचंद ऋषि, लुंकागछ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. यन्त्र कोष्ठक सहित., पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ५०९८, जैदे., (२८x१३.५, ४-६x४३-५१). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३९४, (वि. १९१२, पौष शुक्ल, ३, गुरुवार) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिओ कहता वांदीने; अंति: अनन्ता सुख उपार्जे, (वि. १९१२, माघ कृष्ण, १२, रविवार) १६९९४. त्रैलोक्यसार चौपाई, संपूर्ण, वि. १९४६, भाद्रपद शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२८x१३.५, ११४३५-४३). त्रैलोक्यसार चौपाई, आ. सुमतिकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६२७, आदि: सुमतिनाथ पंचमो जिन; अंति: भूषण धरी मुगति जाय, ग्रं. २८०. १६९९५. प्रश्नोत्तर, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पू.वि. बोल ५१ वा अधूरा है।, जैदे., (२७७१३, ११-१६x४३-४६). प्रश्नोत्तर बोल, रा., गद्य, आदि: प्रथम गुणठाणारा धणी; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १६९९६. आत्मशिक्षाबालावबोध, संपूर्ण, वि. १९२१, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२, प्रले. बालगीर बावा; पठ. श्राव. दलसुक जेठा सा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७७१३, १२४३२-३४). आत्मशिक्षा बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम ए आत्मा; अंति: आज्ञानो आराधक थाइं. १६९९८. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६.५४१३, ६४३४-३५). For Private And Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५१. जीवविचार प्रकरण- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवन मांहे दीवा; अंति: संखेपइ विचार कह्यो. १६९९९. शांतिशास्त्र-प्रतिष्ठाकल्प, संपूर्ण, वि. १९०४, फाल्गुन शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. भावनगरबंदर, प्रले. पं. आनंदकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२६.५४१३, १२४३७-४५). " शांतिस्नात्र विधि, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., सं., पद्य, आदि प्रतिष्टायो वा; अंतिः जावा रस्ते धारा देवी, १७०००. प्रश्नवाद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७X१३, ११४३९-४२). प्रश्नवाद, मा.गु., गद्य, आदि: ढुंढक साथे वाद करवो; अंति: प्रथम वाद करवो. १७००१. पुण्यप्रकास स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. गोधावी, प्रले. पं. जतनकुसल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (१६.५x१३, ११x२५-२७). " पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंतिः नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल - ८ + कलश. १७००२. अवंतीसुकमाल चौढालीयो, संपूर्ण, बि. १९३१, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल, सोजत, प्रले. पं. शिवचंद (खरतरबृ.आचार्यग.); पठ. मु. लालचंद ( गुरु पं. शिवचंद, खरतरबृ. आचार्यग.), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X१३, १२३०-३६). अयवंतीसुकमाल चोढालीयो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि आदिदेव आदे करी मुनि; अंतिः शांतीहर्ष सुख पावे, ढाल - १३, गाथा - १०८. ४३३ १७००३. चौबोलीरीचौपाई - विक्रमचरित्रे, संपूर्ण, वि. १९३१, वैशाख शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले. स्थल. सोजत, प्रले. पं. शिवचंद ( खरतरबू. आचार्यग.); पठ. मु. लालचंद (गुरु पं. शिवचंद, खरतरबू. आचार्यग.), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२६.५x१२, १३४३०-३६). विक्रमचरित्रे चडवोलिनी चोपी, वा. अभवसोम, मा.गु., पद्म, वि. १७२४, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; अंतिः मतिमंदिर काजे कही, डाल-१७. १७००४. वीरजिनसत्तावीसभव स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९४, भाद्रपद कृष्ण, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. अजमेर, मु. जवानकुसल, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., ( २६.५X१३.५, १०X३०-३८). प्रले. महावीरजिन २७ भव स्तवन, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमलकमलदललोयणा दिसे; अंतिः शुभविजय शिष्य जयकरो, गाथा-८६. १७००५. चंद चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २९, पू.वि. उल्लास - २ ढाल - २ दोहा - ३ तक लिखा है., जैदे., (२७.५X१३.५, ११-१२X४०-४३). For Private And Personal Use Only चंद चरित्र, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०००६. श्रद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १० -१ ( २ ) = ९, पू.वि. बीच के पत्र हैं, जैदे., (२७१४, १४x२८-३० ). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति: (-), अपूर्ण. Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७००७. उपदेशसार सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदे., (२७४१४, २४-२६x४६-५०). उपदेशसार, ग. कुलसार, सं., पद्य, वि. १६६२, आदि: यत्कल्याणकरोवतारसमय; अंति: संघार्चादि मंगलम्, अध्याय-५९. उपदेशसार-वृत्ति, सं., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं. मंगलं; अंति: यतीनां विशेषतः. १७००८. कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२६४१३, १४४३०-३१). कालिकाचार्य कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां पूर्वइ स्थविरा; अंति: वखाणी ते वर्तमानयोग. १७००९. पूजासार समुच्चय, संपूर्ण, वि. १९८१, भाद्रपद शुक्ल, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५०, ले.स्थल. नागोर, प्रले. अरजुनदास शर्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१४.५, १८४३९-४८). पूजासार समुच्चय, मु. इन्द्रनंदि, सं., गद्य, आदि: विज्ञानं विमलं यस्य; अंति: श्रीजैनपूजाक्रमः. १७०१०. मल्लीजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५४१३, १०-११४१७). मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: नवपद समरी मन शुद्ध; अंति: धरमराग मन मे धरी. १७०१२.(+) समकितना सहसठिबोलनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१३, १०४२३-२४). समकितना ६७ बोलनी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२. १७०१४. हरिबल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९३५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४५, ले.स्थल. अंबाला, प्रले. मु. निहाल ऋषि (गुरु मु. वखतावर), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३.५, ८-११४३३-४१). हरिबल चरित्र, सं., गद्य, आदि: जिनमुखातारामशोभायाः; अंति: नितरमेव पृथगुरुः. १७०१५. सप्तस्मरण व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९११, श्रेष्ठ, पृ. १२-३(१ से ३)=९, कुल पे. २, जैदे., (२६४१३, १०x२८-३४). १. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. ४अ-११आ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., भयहर स्तवन की गाथा ३ तक पाठ नहीं है. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जैन जयति शासनम्, स्मरण-७, अपूर्ण. २२. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ११आ-१२आ. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशात; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, श्लोक-१७+२. १७०१६. जीवविचारनु स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, जैदे., (२६.५४१३, १०४२७-२९). जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: सरसतीजी वरसती वचन; अंति: विजय पभणे आनंदकारी, ढाल-९, गाथा-८४. १७०१८. (+) कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत., जैदे., (२६४१३.५, १५४३२-३६). For Private And Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ www.kobatirth.org कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., वि. १६६६, आदि: प्रणम्य श्रीगुरुं; अंति: भावना भावयंति. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७०२० आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. पत्रानुक्रम दो प्रकार से मिलता है-१ से ६ व ५६ से ६९., जैदे. (२६४१३.५, १४४३१-३३ ). आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम गृहस्थी अविरत; अंति: आलोयण तप फर दीजे. १००२२. चैत्रीपुनमदेववंदन विधिसहित, संपूर्ण, वि. १८७०, आषाढ़ शुक्ल, ७, रविवार श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल भृगुकछबंदिर, प्रले. मु. भाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X१४, १५X३४-३६). , चैत्री पूर्णिमापर्व देववंदन विधि, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (१) चैत्री पुनिमदिने, (२)नाभि नरेश्वर वंश; अंति: भक्ति करीयें, देववंदनजोडा-५. ४३५ १७०२३. लघुसंग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५४, आषाढ़ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. उजमलाल नरभेराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४१४, ३४१८-२३). १७०२८. आंतरा, पूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८-१ (१) =७, जैदे., (२५x१३.५, १३-१४४२८-३१). आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: उणानुं आंतर जाणवु, पूर्ण. १७०२९. पर्युषणापर्वअठाई स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैवे. (२५४१३.५, १०x१७). " लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणसव्वन्नं जय; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा - ३०. लघुसंग्रहणी - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमीऊं के० नमस्कार; अंतिः सूरि आचार्ये को. १७०२६. दानसीलतपभावनासंवाद व सर्वार्थसिद्धचंद्रोदयसझाय, संपूर्ण, वि. १९३०, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. नरभेराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१४, १५२८-३२). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद रास ढालीया, पृ. १अ - ५अ. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंतिः भणे० सुप्रसादो रे, बाल ५. २. पे. नाम. सर्वार्थसिद्धचंद्रोदवनी सझाव, पृ. ५२-५ आ. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्म, आदि जगदानंदन गुणनीलो रे; अंतिः पुण्य थकी फले आशरे, गावा- १५. १७०२०. श्रद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८५६ श्रावण कृष्ण, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल, माणसा, प्रले. पं. पुण्यसागर (गुरु मु. भावसागर); पठ. श्राव. हीराचन्द दयाचंद साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीऋषभदेवजी प्रसादात्., जैवे., (२४.५४१३.५, १५-१६४३३-३८). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावक तणाइ; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं. For Private And Personal Use Only अट्ठाईपर्युषणा पर्व, मु. हेमसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं पास जिणंदा, अंतिः जपे हेम सोभाग हो, गावा- ३७. १७०३०. (+) सुक्तमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६ - १ ( १ ) = २५, पू. वि. बीच के पत्र हैं., वर्ग - १ गाथा- ४ से वर्ग-४ गाथा- १५ तक है।, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१३.५, ४-५X३१-३५). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (); अंति: (-), अपूर्ण. Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४३६ (+) www.kobatirth.org १७०३२. सूक्तमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १७०३१. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९११, पौष कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल, अजमेर, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., (२५x१३, १०x२५-३१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक - ४४. गणधरवाद सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५X१३.५, ६-७X२८-३४). गणधरवाद, सं., गद्य, आदि: अत्रान्तरे भगवन्; अंतिः जानातीति गणधरवादः, गणधरवाद - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इण अवसरे केवलज्ञान; अंति: नें अनुज्ञा कर ई. १७०३३. सिंदूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., ( २६x१२, ११-१२x१९-२८). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः ज्ञानगुणास्तनोति, श्लोक १००. १७०३४. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७X१३, ४x२२-२८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: (-), अपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरउ नमस्कार अरिहंत; अंति: (-), अपूर्ण. १७०३५. नवग्रहपूजा व दसदिग्पालपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८९५, माघ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्रले. पं. मनरूपसागर; पठ. मु. भगवान (गुरु पं. मनरूपसागर), प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., ( २६१२.५, १४४३२-३५). १. पे. नाम. नवग्रहथापन विधि, पृ. १अ-४आ. नवग्रहपूजा विधि, मा.गु. सं., पद्य, आदिः सवन नो पाटलो शुद्ध; अंतिः अथवा दक्षणांग थापीई. २. पे नाम, दशदिग्पालपूजा विधि, पृ. ४आ-७आ दशदिग्पाल पूजाविधि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: हवे बलि सहाय दानना; अंतिः पूजा ए ऋण पदक जाण. १७०३६. (+४) जीवविचार व नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८८२, वैशाख शुक्ल, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०-१ (५) - ९, कुल पे. २, ले. स्थल. पोरबंदर, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x१२.५, ६X३९-४३). For Private And Personal Use Only १. पे नाम, जीवविचार प्रकरण सह टवार्थ, पृ. १आ ४आ, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है, गाथा ४३ अर्धपाद तक तथा ११वी गाथा का चार्थं प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण तक है, जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), अपूर्ण. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवण कहता त्रन लोक; अंति: (-), अपूर्ण. २. पे नाम, नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, पृ. ६अ १०आ, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रारंभिक दो गाथाएँ नहीं है. नवतत्त्व प्रकरण, आ. धर्मसूरि, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: सिरिधम्मसूरीहिं, गाथा ६०, अपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १७०३८. नवतत्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८४, आश्विन कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल. वेराउलबिंदर, प्रले. पंन्या. गणेशरुचि (गुरु मु. हरिरुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५x१२, ४४३९). Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ४३७ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४९. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व जेह प्राण; अंति: १५ भेद सिद्धना जाणवा. १७०४०. सालिभद्रमहामुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १८०४, आश्विन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ३२, जैदे., (२७४१३, १०४३६). शालिभद्रमहामुनि चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासणनायक समरीई; __ अंति: मनवंछित फल लहिस्यैजी, ढाल-२९. १७०४२. ४५ आगम पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२५.५४१३.५, ११४३१-३३). पिस्तालिसआगमगर्भित अष्टप्रकारी पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: संघने तिलक करायो रे. १७०४३. (+) इरयावहिचर्चा व धार्मिक प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, ११-१४४२७-३०). १. पे. नाम. सामायिकसूत्र इरियावही साक्षिपाठ, पृ. १अ-१०आ. सामायिकसूत्रेइरियावही साक्षिपाठ, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीमहानिशीथसूत्रनो; अंति: ए वातनी चर्चा लिखी. २. पे. नाम. धार्मिक प्रश्नोत्तर, पृ. १०आ. __ जैन प्रश्नोत्तर संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १७०४४. (+) समवसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९२, चैत्र शुक्ल, १२, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. मु. प्रेमजी (गुरु ग. अमरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. बीच-बीच में बालावबोध भी है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६.५४१२, ११-१२४३३-३९). समवसरण स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८९२, आदि: महावीर जग मुगटमणि; अंति: कविराज० जिनशासनराज, ढाल-७. १७०४५. (+) सुयगडांगसूत्र सह बालावबोध-प्रथमश्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३१, पू.वि. अध्ययन-१६ तक है., ले.स्थल. सुधान, प्रले. सा. केसरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. बालावबोध टबार्थ शैली लिखा हुआ है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ८-९४५२-५४). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज तिउट्टेज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, मु. रत्नसीशिष्य, मा.गु., गद्य, वि. १७४४, आदि: श्रीआचारांग कहिनइ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १७०४६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका व कथा, त्रुटक, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३६-२१६(१ से ४०,४३ से ४९,५१ से ६६,७४ से ८२,८४,८७ से ९८,१०२ से १७९,१८१ से २३२,२३४)=२०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., अध्ययन ५ गाथा १९ से अध्ययन-२० गाथा ३४ तक है., प्र.वि. द्विपाठ-त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१३, १६-१८४४२-४६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह , सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७०४७. समाधितंत्रदोधक, संपूर्ण, वि. १९२३, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. सर्वसुख पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१३, १२४३०-३३). समाधिशतक दोधकछंदमय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, आदि: प्रणमी सरसति भारती; अंति: कही जाणो निश्चय बुध, गाथा-१०५. १७०४८. (+) योगदृष्टि सजझाय सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९२६, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२, ले.स्थल. भावनगरबंदर, प्रले. गोपाल वेलजी दवे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७७१२.५, ४-१२४३२-३६). योगद्रष्टिना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक जशने वयणेजी, ढाल-८, गाथा-७६. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणिनतं; अंति: करीने लख्यो छे. १७०४९. प्रतिक्रमणहेतुगर्भित स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. द्विपाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, १०४३६-३८). प्रतिक्रमणहेतुगर्भित स्वाध्याय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: श्रीजिनवर प्रणमी; अंति: देयो मंगल कोडि. १७०५१. ज्ञानपंचमीदेववंदन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२७, कार्तिक शुक्ल, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, ले.स्थल. पाताणा, प्रले. कृष्ण सोढा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, १०४३०-३३). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन, पृ. १अ-१३अ. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (१)प्रथम बाजठ उपरि तथा, (२)श्रीसौभाग्यपंचमी; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. १३अ-१४आ.. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंति: संघ सकल सुखदाय रे, ढाल-५. १७०५२. ४५ आगम पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२, १४-१६४३५-३७). पिस्तालिसआगमगर्भित अष्टप्रकारी पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: संघने तिलक करायो रे. १७०५३. ध्यानस्वरूप व चौवीसतीर्थंकरअंतरकाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४१२, १५४५५-६४). १. पे. नाम, ध्यानस्वरूप, पृ. १अ-५अ. मु. सुखानंद, मा.गु., प+ग., वि. १७९०, आदि: तत्र ध्याई जइते; अंति: लहीयै शिवराज. २. पे. नाम. चतुर्विंशतितीर्थंकरअंतरकाला, पृ. ५अ-५आ. चतुर्विंशतिजिन अंतरकाल, मा.गु., गद्य, आदि: चउवीसमा महावीरनई; अंति: २४ तीर्थंकराणाम्. For Private And Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ४३९ १७०५४. षट्पंचाशिका, भुवनदीपक व ज्योतिष लोकसंग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १२-७ (१ से ७) = ५, कुल पे. ३, पठ. केल्हण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., ( २६.५X११, १४४४२-४६). १. पे. नाम षट्पंचाशिका, पृ. ८अ, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अध्याय ६ श्लोक १ तक के पाठ नहीं है. आ. पृथुयशा, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: जातिश्च लग्नपात्, अध्याय ७, श्लोक - ५६, अपूर्ण. २. पे नाम, भुवनदीपक, पृ. ८आ-१२आ. आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः, श्लोक १६१. ३. पे. नाम. ज्योतिषश्लोक, पृ. ८आ - १२आ. ज्योतिष श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. १७०५५. शतक व सप्ततिका कर्मग्रन्थ, संपूर्ण, वि. १८०७, फाल्गुन कृष्ण, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, प्रले. श्राव. शीलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पत्रांक १९अ - ३०आ व प्रकरण पत्रांक १अ - १२आ है., जैदे., (२६.५X१२, ११-१२X३५-३८). १. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १अ ७अ पे. वि. मूल पत्रांक १९ अ २५ अ व प्रकरण पत्रांक १अ ७अ है. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं ध्रुवबंधोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणड्डा, गावा- १००, २. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ, पृ. ७अ - १२आ, पे. वि. मूल पत्रांक २५अ - ३०आ व प्रकरण पत्रांक ७अ - १२आ है. प्रा., पद्य, आदि सिद्धपएहिं महत्वं; अंति: एगूणा होइ नवईड, गाथा - ९३. १७०५६ (-) ज्ञानबिंदु प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५०, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैदे., (२७१३, ११४३५-३८). " ज्ञानबिंदु प्रकरण, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदि: ऐंद्रस्तोमनतं नत्वा; अंतिः भृदाख्यातवान्, १७०५७. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १६५८, आश्विन कृष्ण, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २८, प्रले. मु. सवसी ऋषि (गुरु मु. मंगल ऋषि); पठ. सा. तेजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१२, ११-१२x३७-३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी, रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्ति; अंतिः गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७०५८. योगचिंतामणि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९६- ३१ (१ से १५,२३,४४,५३ से ६५,८२) + १ (३४) = ६६, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैवे., (२५.५x१२, १०-११४३३-३८). योगचिंतामणि, आ.हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी आदि (-); अंति: (-), अपूर्ण. १७०५९. श्रीपाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १८५९, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ४२, ले. स्थल. महिमापुर, प्रले. पं. महिमासोम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६x१२, १३x३१-३५). श्रीपाल बृहद्रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पच, वि. १७४०, आदि श्रीअरिहंत अनंतगुण; अंतिः पातकवन लुणिज्ये रे, ढाल-४९. १७०६० (+) नवतत्त्व व जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२६.५x१२, ३-६४३२-३५). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ - १०आ. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा - ५१. For Private And Personal Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीव असाधारणे द्रव्य; अंति: एक सिद्ध अनेक सिद्ध. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १०आ-१६आ. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-४९. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन स्वर्ग मृत्यु; अंति: तिम संक्षेपथी जाणवौ. १७०६२. यतिप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४९, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, __ पृ. २३+१(१७)=२४, प्र.वि. जैदे., (२६४१२, ३-१३५१६-४४). यतिप्रतिक्रमणसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: पगाम सिज्झाए निगाम; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र का टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७४९, आदि: ऐं नत्वा पार्श्वनाथ; अंति: तीर्थंकर जिन प्रति. १७०६३. भुवनभानुकेवली चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-१७ गाथा-१३ तक है।, जैदे., (२६४१२.५, १५-१६५३९-४१). भुवनभानुकेवली चौपाई, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: सकलसिद्धिदायक सदा; अंति: (-), अपूर्ण. १७०६४. पंचमहाव्रत कथा, संपूर्ण, वि. १८७८, आषाढ़ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. पाटण, प्रले. मु. वीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४१२.५, १४-१५४४३-४८). पंचमहाव्रत कथा, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीपे महाविदेह; अंति: दशभवनो विस्तार कह्यो, सर्ग-५, ग्रं. ४६४. १७०६५. गौतमपृच्छा सह बालावबोधव कथा, संपूर्ण, वि. १९५०, आषाढ़ कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, प्रले. पं. कुशलसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, १६-१७४४०-४७). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा-६४. गौतमपृच्छा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा वीरजिनं; अंति: ते इणमाही ज जाणिवा. गौतमपृच्छा-कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: एकै गामै एक वाणीयो; अंति: सिद्धि उपना एकावतारी, कथा-३५. १७०६६. चौदगुणठाणा-एकतालीसद्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. सा. सुंदर आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १९-२०४३८-४३). १४ गुणठाणा ४१ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: नाम द्वार लक्षण; अंति: ते निगोदना जीव जाणवा. १७०६७. (+) सिंदूरप्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १८४२, आषाढ़ शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. पाल्हणपूर, प्रले. पं. ललितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथप्रसादात्., त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १६-१८४४८-५०). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-१०१. सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: पार्श्वप्रभोः श्री; अंति: वृत्तिमिमामकार्षीत्. १७०६८. (+) धर्मोपदेश श्लोकसंग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., उपदेश ६ अपूर्ण तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, ६४३५-४९). For Private And Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ४४१ धर्मोपदेश श्लोकसंग्रह, सं., गद्य, आदि: मंगलं भगवानवीरो; अंति: (-), अपूर्ण. धर्मोपदेश श्लोकसंग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भगवंत श्रीमहावीरनु; अंति: (-), अपूर्ण. १७०७१. नवपद खमासमण व स्तुतिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९४६, आश्विन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ४, जैदे., (२६.५४१२, ११-१५४१४-१७). १.पे. नाम. नवपद खमासमणभेद, पृ. १आ-७आ. नवपद खमासण विचार, पुहि.,सं., गद्य, आदि: (१)प्रथम सर्व ठीकाणे, (२)अशोकवृक्ष प्रतिहारि; अंति: उपसर्गतपसे नमः. २. पे. नाम. आदिजिन श्लोक, पृ. ७आ. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सुवर्णवर्णं गजराजगाम; अंति: ऋषभं जिनोत्तमं, श्लोक-१. ३. पे. नाम. जैनधर्मप्रभावक श्लोक, पृ. ७आ. नमस्कारमाहात्म्य श्लोक, सं., पद्य, आदि: नमस्कार समो मंत्रः; अंति: न भूतो न भविष्यति, श्लोक-१. ४. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. ७आ. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्सिद्धार्थवंशा; अंति: कमला देहि मे जिन, श्लोक-१. १७०७२. (+) त्रैलोक्यदीपिका संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४१, आषाढ़ कृष्ण, ८, शुक्रवार, जीर्ण, पृ. ६३, प्रले. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (३१९) जब लग मेरु थिर रहे, (६०७) जलं रक्षे थलं रक्षे, जैदे., (२७७१३, ५४३०-३१). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३४५. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नत्वा गुरुपदयुग्मं, (२)नमस्कार करीने अरिहंत; अंति: तिहां लगे अखंड रहो. १७०७३. पंचकल्पभाष्य, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदे., (२७X१२.५, १४-१५४४४-४८). पंचकल्पसूत्र-भाष्य, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: वंदामि भद्दबाहुं; अंति: व्वोच्छित्तट्ठया चेव, गाथा-२५७४, ग्रं. ३१३५. १७०७५. (+) वैद्यकसारसंग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५६, पू.वि. अधिकार ५ अपूर्ण तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, १३-१६४३७-४३). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. योगचिंतामणि-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम स्त्री योग्य; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १७०७६. ज्ञानपंचमीदेववंदन विधि व स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९१५, चैत्र कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२.५, ११४३०-३४). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमी देववंदन, पृ. १अ-१२अ. For Private And Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (१) प्रथम बाजठ उपरि तथा, (२)श्रीसौभाग्यपंचमी; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्वाध्याय, पृ. १२अ - १३आ. ज्ञानपंचमीपर्व स्वाध्याय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंतिः संघ सवल सुखदाय रे, ढाल - ५. १७०७७. (+) सीमंधरविज्ञप्ति स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२७, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६८, प्रले. गोपाल बेलजी दवे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७X१३, ४-७X२९-३१). सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन- ३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर साहिब आगई; अंति: शास्त्र मर्यादा भणी, ढाल - १६, गाथा - ३५४. सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन-३५० गाथा-टवार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदिः प्रणम्य पार्श्वदेव; अंति: (-), (पू.वि. कलश का टवार्थ नहीं लिखा है.) १७०७८. कर्मग्रंथपंचकम्, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, कुल पे. ५, जैदे., (२७X१२.५, ११४३६-४१). २. पे नाम, कर्मविपाक, प्र. १-५अ. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि सिरिवीरजिणं बंदिय; अंतिः लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा - ६०. २. पे. नाम. कर्मस्तव, पृ. ५अ-७अ. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्म, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधसामित्तं, पृ. ७अ - ९अ. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि बंधविहाणविमुक्त; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा - २४. ४. पे. नाम. पडशीति काव्य चतुर्थः, पृ. ९अ १४अ. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा -८६. ५. पे. नाम. शतकं, पृ. १४अ - २०आ. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणड्डा, गाथा - १००. , १७०७९. इक्कवीसठाणाप्रकर्ण सह टवार्ध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र. वि. जैदे. (२६.५x१२.५, ५४३०-३२). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: अवसेस साहारणा भणिया, गाथा ६९. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मु. उत्तम, मा.गु., गद्य, आदि: केहा विमानेथी चव्या; अंति: (१) संशोध्य वाच्यम्, (२) शेष बोल समुचइ कह्या. १७०८०. पैतालीसआगम पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, जैदे., ( २६१२.५, ९-१०x२५-२९). For Private And Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ पैतालीस आगमरी पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: संघने तिलक करायो रे. १७०८१. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.५, जैदे., (२६.५४१२.५, ९x४२-४५). साधुवंदना लघु, ऋ. जेमल, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमु अनंत चोविसी; अंति: जैमल एही तिरणनो दाव, गाथा-४९. १७०८२. धनपालपंचासिका सह ललितोक्ति वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, १३-१४४४८-५०). ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: जयजंतुकप्पपायव चंदाय; अंति: बोहित्थ बोहिफलो, गाथा-५०. ऋषभपंचाशिका-टीका, आ. प्रभानंदसूरि, सं., गद्य, आदि: जयत्ति व्याख्या हे; अंति: पंचाशत्तमगाथार्थः. १७०८३. हंसराजवच्छराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १८२१, चैत्र कृष्ण, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. २३, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्रले. प. सोभाचद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५,१६-१९४३६-४०). पुन्यऊपर हंसराजवछराज चौपई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोवीसे; अंति: सूरि० हंस अनै वछराज, खंड-४. १७०८४. गजसिंघकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७१, कार्तिक शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. कुंकोल्या, प्रले. सा. रेखा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, ११-१४४३०-३५). ___ गजसिंघकुमार रास, मु. सुंदरराज, मा.गु., पद्य, वि. १५५६, आदि: पास जिणेसर पय नमी; अंति: तन मनइ उच्छाहि, खंड-४, गाथा-४२८. १७०८५. वैराग्यसतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२६४१३, ३-४४२२-२७). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, श्लोक-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसारने विषे सर्व; अंति: जिव शास्वतो स्थानक, ग्रं. ४४४. १७०८६. आणंदश्रावक संधि, संपूर्ण, वि. १८७९, वैशाख कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. पालिपुर, प्रले. मु. प्रेमरत्न (गुरु मु. तारारत्न, चंद्रगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १३-१५४३५-३६). आनंदश्रावक संधि, पा. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमान जिनवर चरण; अंति: पभणइ मुनि श्रीसार, ढाल-१५. १७०८७. (+) मदनकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १९५३, फाल्गुन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले.स्थल. सिंघाणा, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१३, १८-२०४३३-४०). मदनसेन चौपाई, ऋ. सांवतराम, मा.गु., पद्य, वि. १८९८, आदि: प्रथम नमी भगवंतनै अंति: पुन्यथी पुगे मन रलि, ढाल-३१. १७०८८. गणधरवाद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदे., (२७४१३, १२४३०-३३). गणधरवाद-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे श्रीमहावीर; अंति: संघ स्थापना थई. १७०८९. गच्छाचार पयन्ना सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदे., (२७४१२.५, १५४४५-६२). गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीर; अंति: इच्छंता हियमप्पणो, गाथा-१३७. For Private And Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गच्छाचार प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण कहीइ नमस्करी; अंति: श्रीसूत्रने घणीखमवउं. १७०९२. सीमंधरजिनविज्ञप्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९०, माघ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४५, ले.स्थल. पाली, प्रले. य. पूर्णानंद यति (गुरु मु. ताराचंदजी, चंद्रगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जैदे., (२७.५४१३, ४-१७४३८-३९). सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर साहिब आगई; अंति: शास्त्र मर्यादा भणी, ढाल-१७, गाथा-३५४, ग्रं. ५३३. सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन-३५० गाथा-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीपार्श्व; __ अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. गाथा-३३६ तक टबार्थ लिखा हैं.) १७०९३. दशवेयालियं सुत्तं सह टबार्थ-विस्तृत, संपूर्ण, वि. १९५१, चैत्र कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ६८, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. पं. वासदेव (कवलागछ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१३, ५-७४२५-३१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: निच्चला होसु, अध्ययन-१० चूलिका २. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीवर्धमानमानम्य, (२)ध० दुर्गत पडता जीवनइ; अंति: तुजने प्रायश्चित नथी. १७०९४. अजितशांति स्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, जैदे., (२४४१३, १०x१९-२३). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. १७०९६. ज्योतिषसार का बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०२६, आश्विन शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. जोधपूर, प्रले. बालाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वि.सं. १८७१ में लिखी गई प्रत के आधार से दूसरी बार वि. स. २०१९ मे लेखन किया गया. उसके आधार से तीसरी बार लिखी गई यह प्रति है., जैदे., (२६४१३, १३४५०-६३). ज्योतिषसार-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमानंददायकं; अंति: शुक्रभवा निरुक्ता. १७०९७. पंचकल्याणक विधि, संपूर्ण, वि. २०२३, वैशाख शुक्ल, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. खिमेल, प्रले. बालाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१३, १४४१४-५५). पंचकल्याणक विधि, मु. मनोहरविजय, मा.गु., गद्य, वि. २०२३, आदि: प्रथम दिवस विधि; अंति: मनोहरविजय० शुभ दिने. १७०९८. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४१३, १५४२७-२९). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभते पदमव्ययम्, श्लोक-९३. १७०९९. (+) सुशीलाभीमसेन चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-२(२ से ३)=१५, पू.वि. गाथा २२ से १०३ तक नही है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२.५, १५४४०-४७). सुशीलाभीमसेन चरित्र, मु. विजय ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९९६, आदि: आद नमु अरिहंत प्रभु; अंति: विजय ऋषिजी, गाथा-५६५, अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org - हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १७१००. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, टीका व टीकार्थ, पूर्ण, वि. १८९०, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २८-१(१)=२७, प्रले. मु. केसरविजय (गुरु पं. ज्ञानविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न क्रियापद संकेत टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे, (२५४१३, १४४३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक - ४४, (पूर्ण, पू. वि. प्रथम व द्वितीय श्लोक नहीं है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रथम दो श्लोक व अंतिम श्लोक का बार्थ नहीं है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र - टीका, मु. क्षमाविजय, सं., गद्य, वि. १८४२ - १८९०, आदि: नत्वा श्रीमज्जिनाधीश; अंति: (१) विहितासुपुण्यकृते, (२) ग्रंथांतराज्ज्ञेयम्, कल्याणमंदिर स्तोत्र - टीका का अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हुं सिद्धसेननाम जे; अंतिः सिद्धिं प्रतें पामे. १७१०१. पासाकेवली सुकनावली, संपूर्ण, वि. १९०४, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. विनयसुंदर (कलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४१२, १४४४४). , पाशाकेवली - भाषा *, मा.गु., गद्य, आदि: (१)ॐ नमो भगवति कुष्मांड, (२) १११ ए सुकन घणो अंतिः कियां भलो थास्यै. १७१०२. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२२, आश्विन शुक्ल, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैवे. (२६४१२.५, ११-१३x४०-४२). ४४५ महावीरजिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: आणा सिर वहेस्येजी, ढाल - ६, गाथा - १४८, ग्रं. २६५. १०१०३. (+) छत्तीसवोल को धोकडो, संपूर्ण, वि. १९९४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. २६, ले. स्थल, नागोर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४X१३, १५X३५-४३). छत्तीसबोलको थोकडो, मा.गु., गद्य, आदि: एगे असंजमे १ एगे; अंति: रिख्या करवी. १०१०४. ऋषिदत्ता चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, ढाल ७ गाथा- २ तक है., जैदे., (२४.५X१२.५, १२-१४२७-२९). ऋषिदत्तासती चौपाई, मु. वीरमसागर, मा.गु., पद्य, आदि चडवीसे जिन चितधरी; अंति: (-), अपूर्ण. १७१०६. वृद्धशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८९६, चैत्र शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ५, पठ. श्राव. चंदनमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x११.५, ८-१६x१९). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, हिस्सा, सं., गद्य, आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. १७१०७. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९३०, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., ( २४x१२.५, २१४३६). पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजेसलमेर का भंडार; अंति: आगे केवली० सो प्रमाण. १७१०८. कल्पसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९४६, ज्येष्ठ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १३७, ले. स्थल. शुभटपुर, प्रले. पं. चमनमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x१२.५, १३४४५-४९). कल्पसूत्र - बालावबोध, आ. शांतिसागरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति: है सो आराधवा योग्य. For Private And Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७१०९. पासाकेवलीभाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. लाकडीया, प्र.वि. यन्त्र सहित. शान्तिजिनप्रसा०., जैदे., (२६४१२.५, १३४३२-३४). पाशाकेवली-भाषा*, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति कुष्मांड; अंति: सुखनो देनार सुकन छै. १७११०. पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्रीस्वर रास, अपूर्ण, वि. १८२३, वैशाख कृष्ण, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. २५-९(१ से ३,६ से ११)=१६, जैदे., (२६४१२.५, ९-११४११-३०). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६८, आदिः (-); अंति: नित होय मंगलमाल रे, ढाल-२७, अपूर्ण. १७१११. नवतत्त्वनवद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. दादरी, प्रले. मु. तुलसीराम (गुरु मु. लक्ष्मीचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, २१४४९-५१). नवतत्त्व ९ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मूल लक्षण द्वार १; अंति: नवमो नय दुबार समत्त. १७११२. सप्तस्मरण, प्रतिपूर्ण, वि. १९११, चैत्र कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. पालीतणा, लिख. मु. गजविमल; प्रले. श्राव. पानाचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, ११४३२-३५). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताण हवइ; अंति: जैन जयति शासनम्, प्रतिपूर्ण. १७११५. (+) गुणस्थानकक्रमारोह सह वार्त्तिक, संपूर्ण, वि. १९२४, चैत्र शुक्ल, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. करसन दवे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १४४३७-४३). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोहहत; अंति: रत्नशेखरसूरिभिः, गाथा-१३६. गुणस्थानक्रमारोह-बालावबोध, मु. श्रीसार, मा.गु., गद्य, वि. १६९२, आदि: सुरासुरनराधीश नमस्कृ; अंति: (१)सुखबोधाय चाभवत्, (२)प्रकररूप प्रकट कयौं. १७११६. (+) अष्टस्मरण व पार्श्वजिन छंद, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, कुलपे. २, प्रले. पं. कांतिविजय गणि; पठ. मु. देवचन्द (गुरु पं. कांतिविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ११४२९-३४). १. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १आ-१५आ. म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: जैनं जयति शासनम, प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद, पृ. १५आ-१६अ. पार्श्वजिन स्तवन, मु. विनयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मुरत श्रीपास; अंति: वृद्धि सदा आनंद घणे, गाथा-११. १७११७. अढीद्वीपव्याख्या-गणितानुयोगे, संपूर्ण, वि. १८७९, चैत्र, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. पूर्णानगर, प्रले. मु. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४१२.५, १६-१७४३८-३९). अढीद्वीपव्याख्या-गणितानुयोगे, मु. दीपविजय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानाख्य; अंति: मंगलमालिका पामे. १७११९. चैत्यवंदनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२४.५४१२, १०-११४२५-२७). २४ जिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर आदि; अंति: रुप सदा आणंद, चैत्यवंदन-२५, गाथा-७५. For Private And Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ४४७ १७१२०. इग्यारसनु स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३२, आश्विन कृष्ण, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. पं. लक्ष्मीकुसल; पठ. श्रावि. कंकु बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १२४२०-२५). मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: धुरि प्रणमुं जिन; अंति: जसविजय जय श्रीलही. ढाल-११+कलश. १७१२१. मौनएकादशी देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. सरसपूर, प्रले. मोतीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १०४३०). मौनएकादशीपर्व देववंदन विधि, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नगर गजपूर पुरंदर; अंति: रूपविजय० लिजिइ ललना. १७१२३. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४६, भाद्रपद कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. बुलाखी गणपतराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, ४४३१-३२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावध व्यापरनइ विषय; अंति: सुखनुं देणहार. १७१२४. अंगचूलिया, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदे., (२५४१२.५, १३४४०-४४). अंगचूलिका प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, आदि: नमो सुय० नमो अरि०; अंति: पवेइयं त्तिबेमि. १७१२५. जीवविचार, संपूर्ण, वि. १८५५, वैशाख कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. मु. केसरविजय (गुरु पं. ज्ञानविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, ४४३४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५०. १७१२७. सालभद्रमहामुनी चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले.स्थल. बौणोलि, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३६-३७). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासणनायक समरीई; अंति: सारें० फल लहस्ये जी, ढाल-२९, ग्रं. ४९३. १७१२९. कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १८५३, आषाढ़ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. बारेजा, प्रले. मु. हर्षरत्न; पठ. मु. सिवरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १४-१७४३६-४३). कालिकाचार्य कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: इयं च चउत्थीए जोणकयं; अंति: लेइनें स्वर्गे पोहता. १७१३०.(+) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतकम्, संपूर्ण, वि. १८५४, चैत्र कृष्ण, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७०, ले.स्थल. मेसाणा, प्रले. ग. मुक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२७४१२.५, १४-१६४३६-३८). प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८५१, आदि: श्रीसर्वज्ञं नत्वा; अंति: धचक्रं शरणं ममास्तु, प्रश्न-१५१. १७१३१. एकसौआठ बोल, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. १०२ बोल तक लिखा है।, जैदे., (२५४१२.५, १३४३८-४०). साधु आचार १०८ बोल, रा., प+ग., आदि: साध थइनै आधाकरमादि; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७१३२. ब्रह्मचर्यनी ढालां, संपूर्ण, वि. १९७९, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैवे. (२४.५x१२.५, १२-१३४४१-४३). शीलनववाड डाल, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रणमूं पंच परमेसरू; अंतिः धन ए व्रत वीर पर्यापे, ढाल १०. १७१३३. देवकीरी ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५. ५X१२, १६३६). देवकी ढाल, मा.गु., पद्य, आदि: इण अवसर श्रीनेमजी; अंतिः उपज्यो एह संताप. १७१३४. खंधकचौढालीयो, छजीवप्रबंध व महावीरजिनचौढालीयो, अपूर्ण, वि. १९४३, फाल्गुन शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, प्रले. मु. रतन ऋषी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे (२६४१२, १९३४४१-४४). १. पे नाम, खंधकचीढालीयो, पृ. ९-४आ. खंधकमहामुनि चौडालियो, मु. तिलोक ऋषी, मा.गु., पद्य, वि. १९३९, आदि: प्रणमु जग नायक सदा; अंति: धर्म सदा सीरेकार रे, ढाल -४, गाथा-८८. २. पे. नाम. भृगुप्रोहीत, जसाभारजा, इक्षकुमारकमलावती, देवभद्र, जसोभद्र छजीवप्रबंधपंचढालीयो, पृ. ४आ- ९आ. भृगुप्रोहीत, जसाभारजा, इक्षकुमारकमलावती, देवभद्र, जसोभद्र छजीवप्रबंध पंचडालीयो, मु. तिलोक ऋषी, मा.गु., पद्य, वि. १९३९, आदि: प्रणमु सासण स्वामजी; अंति: तिलोक० वरते मंगलचार, ढाल - ५. ३. पे. नाम. महावीरस्वामीचौडालीया, पृ. ९आ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन चौढालीया, मा.गु., पद्य, आदि: सारण नायक सुरतरु; अंति: (-), अपूर्ण. १७१३५. विपाकसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८९९ आश्विन शुक्ल, १ बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ८२, ले. स्थल, नागपुर, प्रले. आ. जिनकीर्तिसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. जैदे., (२५.५X१२.५, ६-७X३४-४१). " विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण; अति: सेवं भंते सेवं भते श्रुतस्कंध - २, अध्ययन २०, ग्रं. १२२६. विपाकसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिण समयने विषे; अंति: हे भगवन् सत्यं, ग्रं. २०००. १७१३६. जंबूअध्ययन बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९३६, माघ शुक्ल, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ९८, प्रले. मु. मोतीविजय (गुरु पं. डुंगरविजय); लिख. मु. सोमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६१२.५, १४-१५X३८-४२). जंबू अध्ययन प्रकीर्णक- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल० चोथा आराना; अंति: वांछित सिद्ध होस्ये. १७१३७. वर्द्धमानदेशना, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८५-६ (१ से ६) =७९, जैदे., (२५.५X१२.५, १७५४-५६). वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: शोधयंतु गतमत्सराः, उल्लास- १०, अपूर्ण. १७१३८. गौतमस्वामी रास व च्यारमंगल, संपूर्ण, वि. १९३४, श्रावण कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ३, प्रले. श्राव. चंद्रभाण पीतांबर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१२, ९-११x२१-२७). १. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ ८अ. For Private And Personal Use Only उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंतिः विजयभद्र० इम भणे ए. २. पे. नाम औपदेशिक दोहा, पृ. ८.अ. Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ४४९ मा.गु., पद्य, आदि: सजन बोलावी अमोवला; अंति: पथर न भेजे कोर, गाथा-२. ३. पे. नाम. ४ मंगल पद, पृ. ८अ-९आ. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धार्थ भूपति सोहे; अंति: उदयरत्न भाखे एम. १७१३९. (+) षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, ५-१७४३२-५२). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामी खमासमणो वंदी; अंति: (-), अपूर्ण. षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: बार गुणे करी सहित; अंति: (-), अपूर्ण. आवश्यकसूत्र-कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: नवकार इक्कखरेणं पावं; अंति: (-), अपूर्ण. १७१४०. प्रदेसी प्रबोध चउपई, संपूर्ण, वि. १८०५, माघ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३२, ले.स्थल. तलावदा, प्रले. य. उदैराम; पठ. श्रावि. ताराबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ११४४१). प्रदेसीकेसी वचनाप्त प्रदेसीप्रबोध चउपई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमी श्रीअरिहंत; अंति: जीवदया अधिकार, ढाल-४१, गाथा-५९१. १७१४१. मृगलेस्या रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-३(२ से ४)=२५, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-५९ तक है., जैदे., (२५.५४१२, १४४३५-४०). मृगांकलेखा चौपाई, ऋ. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदि: आदेसर जिन आद दे; अंति: (-), अपूर्ण. २७१४२ (+) लीलावती चौपाई. संपर्ण, वि. १८२९. चैत्र शक. १. श्रेष्ठ, प. २०. पठ. पं. विशेषरुचि. प्र.ले.प.स प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १९-२०४३३-३८). लीलावती चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: त्रेवीसमो त्रिभुवन; अंति: ऋद्धि वृद्धि सुखकार, ढाल२९, गाथा-६००. १७१४३. (+) छ:रीपालितसंघयात्रा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १४४३९-४२). छ:रीपालीतसंघयात्रा स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: सारद मात मया करो रे; अंति: नामे कोडि कल्याण ए. १७१४४. उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदे., (२६४१२, १४४४१-४४). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: सोहियव्वं पयत्तेण, गाथा-५४१, ग्रं. ७५०. १७१४५. (+) तेतीसबोलको थोकडो, संपूर्ण, वि. १९६५, माघ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ५, प्रले. गणेशलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १६४३७-४३). ३३ बोल थोकडो, मा.गु., गद्य, आदि: एक संजय एक असंजम; अंति: बेसे तो आसातना लागै. १७१४६. श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह, पूर्ण, वि. १९०४, वैशाख कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. २१-१(२)=२०, प्रले. सामलदास प्रह्लादजी बारोट; लिख. श्रावि. पुरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, ९४२७-३१). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताण; अंति: जैन जयति शासनम्, पूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७१४८. (+) क्षेत्रसमास प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८६५, चैत्र शुक्ल, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. वटपद्र, प्रले. मु. सोभागचन्द्र (गुरु मु. हर्षचन्द्र); पठ. श्राव. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १४-१५४३७-३८). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: कुसलरंगमयं पसिद्धं, अधिकार-६, गाथा-२६९. १७१५०. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९०९, श्रावण कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. माणशा, प्रले. पं. मनरूपसागर; पठ. मु. भगवानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १२-१३४२९-३३). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंति: सयल संघ आनंद करो, गाथा-५९. १७१५३. चर्चा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, जैदे., (२४४१२). चर्चा, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमः चेइ वृर्ष; अंति: अलोक लगइ जाणवा. १७१५४. पंचकल्याणक पूजा, संपूर्ण, वि. १९१०, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. शंखेश्वर, प्रले. पं. हरखविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १५-१६x२७-३७). पंचकल्याणक पूजा-पार्श्वजिन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: श्रीशंखेश्वर साहिबो; अंति: वांछित दायो सहायो रे. १७१५५. सुरसुंदरी चौपाई, पूर्ण, वि. १८८१, माघ कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. २१-१(१)=२०, ले.स्थल. वडलुग्राम, प्रले. मु. मालचंद ऋषी (गुरु मु. प्रेमचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १६-१७४३६-४१). सुरसंदरी चौपाई, म. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदिः (-); अंति: धर्मवर्धन उमंगैजी, अध्याय-४, ढाल ४०, पूर्ण. १७१५६. वरदत्तगुणमंजरी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५०, वैशाख अधिकमास कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. वखतापूर, जैदे., (२५.५४१२, ५४३४-४१). वरदत्तगुणमंजरी कथा, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१५२. वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. श्लोक-११० तक टबार्थ है.) १७१५७. वीतराग स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. जगजीवन पानचंद, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, ४४२९-३१). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. १७१५८. अष्टप्रवचनमाता चौपाई, संपूर्ण, वि. १९७४, श्रावण कृष्ण, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. शुभटपुर, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४३-४६). आठप्रवचनसुमतिगुप्ति चौपाई, ऋ. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: पांचसुमत तीनगुप्त आठ; अंति: कहे. जे जेकार हो, ढाल-८. For Private And Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ४५१ १७१५९. (+) संग्रहणीसूत्र यंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२). बृहत्संग्रहणी-अंकयंत्रसंग्रह *, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १७१६०. (+) हेमदंडक व हेमदंडकभाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ११-१२४३९-४१). १. पे. नाम. हेमदंडक, पृ. १अ. ___प्रा., पद्य, आदि: जीवभेया सरीराहार; अंति: अप्पाबहुदंडगम्मि, गाथा-५. २. पे. नाम. हेमदंडक-भाषाटीका, पृ. १अ-९आ. मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: जो ध्रुव अलख अमूरती; अंति: कीनौ हेमदंडग सुजगीस, गाथा-१०६. १७१६१. (+) विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, २२-२३४६०-८१). विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: नारकी नाम धमा वंसा; अंति: (-), अपूर्ण. १७१६२. मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १८१५, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ३४, ले.स्थल. दीव, प्रले. मु. राघवजी ऋषि (गुरु पं. त्रीकमजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १७-१८४३७-३८). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल-४७. १७१६३. गणधर देववंदन, संपूर्ण, वि. १७९८, कार्तिक कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२५.५४१२, ९४३२-३४). ११ गणधर देववंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बिरुद धरी सर्वजनु; अंति: तो शुद्ध समकित लहिये. १७१६४. छत्तीसनियंठा, संपूर्ण, वि. १९वी, फाल्गुन कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. सिंघाणा, जैदे., (२६४१२, १३-२१४४८-४९). ३६ नियंठा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवतीजी सतक २५; अंति: हजार कोडि जीव होइ. १७१६५. (+) पर्यंताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१०, चैत्र शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. योधपूर, प्रले. मु. सवाईसागर (गुरु मु. विजयसागर, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमहावीरजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२६४१२, ७X४१-४४). पर्यंताराधना, आ. सोमसरि, प्रा.. पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०. पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने कल्याण; अंति: लहइ ते शाश्वता सुख. १७१६६. (+) पाक्षिकसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ग्रन्थाग्र ३५०., जैदे., (२६४११, १५-१९४६३-६६). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ-५अ. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. खामणासूत्र, पृ. ५अ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. For Private And Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४५२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७१६७. नरकदुःखवर्णन व सवाइया, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५x१२, १८X५४-५७). १. पे नाम, नरकदुः खवर्णनसवइया, पृ. १अ ५अ. नरकदुः खवर्णन सवइया, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अरू अंतजीन; अंति: भीज रह्यो संसार, गाथा - २४५. २. पे. नाम. सवैइया, पृ. ५अ - ५आ, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., गाथा - ९ अपूर्ण तक है. राजनीति सवैया, क. देवीदास, हिं., पद्य, आदि नीतहीते धरम धरम; अंति: (-), अपूर्ण. , १७१६८. (+) जीवविचार प्रकरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, गाथा ४३ तक है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६४११.५, ३४३४-३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), अपूर्ण. जीवविचार प्रकरण टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (१) प्रणम्य परमानन्द, (२) स्वर्ग मृत्यु पाताल; अंति: ( - ), अपूर्ण. १७१७१. मेंणरेया चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा १४० तक है., जैदे., (२५.५X१२, १२३४-३७). मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: जूवा मांस दरू तथा; अंति: (-), अपूर्ण. १७१७२. नवतत्त्व, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५x११.५, १०X३० ). (+) नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: एक सम अनेकसिद्धा, गाथा-६४. १७१०३. अष्टप्रकारीपूजा, क्षेत्रपाल पूजा, आरति व मंगलदीवो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X१२, ११x२४-२८). १. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित पृ. १ आ-७आ. अष्टप्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७२४, आदि (१) प्रथमहंती सगली, (२) सुचि सुगंधवर कुसमयुत: अंति: दर्शनसलभंते, श्लोक ८, (वि. यह प्रत में कृति का र वर्ष १७३४ मिलता हैं.) २. पे. नाम. क्षेत्रपाल अधिष्ठायक पूजा, पृ. ७आ. सं., पद्य, आदि: क्षेत्रपालाय जज्ञा; अंति: जक्षकाले, श्लोक-४. ३. पे नाम, शांतिजिन आरति, पृ. ८अ. शांतिजिन आरती, पुहिं., पद्य, आदि; जय जय आरति शांति; अंतिः नरनारी अमर पद पावे, गाथा-७, ४. पे. नाम. मंगल आरति, पृ. ८अ -८आ. मु. सकलचंद, मा.गु., पद्य, आदिः आज म्हारै च्यारु; अंति: आनंदघन उपगार, गाथा- ७. १७१०४. विपाकसूत्र सह टवार्थ सुखविपाक, प्रतिपूर्ण, वि. १९७४ श्रावण कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२६४१२, ८-९४४३-४८). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सेसं जहा आयारस्स, प्रतिपूर्ण. विपाकसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सूत्रे कह्यो तिम, प्रतिपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ४५३ १७१७५. (#) सुरसुंदरीसती चरित्र, पूर्ण, वि. १६८१, कार्तिक, १, शनिवार, मध्यम, पृ. २७-२(१,९)=२५, ले.स्थल. खेडावारा, प्रले. हरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, ११-१३४३९). सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: (-); अंति: एम भणे आनंदपूरि, गाथा-५११, पूर्ण. १७१७७. पाक्षिकसूत्र वखामणा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, ले.स्थल. सुवर्णगिरि, जैदे., (२४.५४११, १३४३२-३६). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-११अ. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पाक्षिक खामणा, पृ. ११अ-११आ. पाक्षिकखामणा, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: आलाप-४. १७१७९. सौभाग्यपंचमी कथा, संपूर्ण, वि. १७८८, पौष शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. नागपुर, जैदे., (२५४११, १४४४९). सौभाग्यपंचमीपर्व कथा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनाधी; अंति: वार्तिकमातनोत्. १७१८०. (+) सुव्रतऋषि कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२, ६-७४२५-२७). सुव्रतऋषि कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीरं नत्वा; अंति: माराधनतत्पराः समभवन्. १७१८३. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२६४१२, ११४२७-३१). राईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहताणं नमो; अंति: व० मिच्छामि दुक्कडं. १७१८४. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२४.५४१२, १३४३४). स्तवनचौवीसी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जग चिंतामणी जगगुरु; अंति: कहे दुख जाय सनेही, स्तवन-२४. १७१८५. सुदर्शनसेठ रास सीलाधिकारे, संपूर्ण, वि. १८०८, माघ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. ग. मेघविजय पं. (गुरु ग. जीवविजय पंडित), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १७-१८४३९-४१). सुदर्शनशेठ रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४९, आदि: प्रह उठी प्रणमु; अंति: द्यउ जिनहरष आणंद, ढाल-२१, गाथा-३८२. १७१८६.(+) श्रेणिक चरित्र-पद्मनाभपुराणे, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९७, पृ.वि. पर्व-१५, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १०-११४४१-४२). पद्मनाभ पुराण, आ. शुभचंद्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. २५००, प्रतिपूर्ण. १७१८७. श्राद्धपाक्षिकअतिचार, संपूर्ण, वि. १८८९, कार्तिक शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. वलाद, प्रले. मु. खुशालरत्न; पठ. श्रावि. माणकबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १३४२९-३३). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १७१८९. दशदृष्टांत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्रले. पं. विनयरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १४४३५-४०). For Private And Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १० दृष्टांत, मा.गु., गद्य, आदि: (१)चुल्लग १ पासग २ धन्न, (२)चोलरा क० भोजन तेहनो; अंति: जाणवो ते छेत्राइ नही. १७१९०.(+) दानशीलतपभावनाचौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ९४३०). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; __ अंति: सकल संघ सुजगीसो रे, ढाल-४. १७१९१. (+) वीरभाणउदेभाण चौपाई, संपूर्ण, वि. १८२७, वैशाख शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६८, ले.स्थल. पोरबंदिर, प्रले. पं. रामकुशल गणि (गुरु पंन्या. प्रसिद्धकुशल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १२-१३४३२-३६). वीरभाणउदयभाण रास, मु. कुशलसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४५, आदि: सदगुरुजी सानिध करो; अंति: घणी दिनदिन हरख अपार, ढाल-६५. १७१९२. (+) वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ५-६x२२-२४). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार चतुर्गतिरूप; अंति: ते कुणसो मोक्ष _उ. १७१९३. लग्नसंबोधी दोहा-विवाहशास्त्रे, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. पूना, प्रले. मु. दीपा जती, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, ९-१०x२९-३२). लग्नसुबोधी एकोत्तरी, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८०८, आदि: गुरु सारद पाय नमी; अंति: चातुरजन के चीज, गाथा-८६. १७१९५. (+) अजीवभेद, बासठमार्गणा व जीवभेदविवरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, १३-१५४३२-३३). १. पे. नाम. अजीवनापांचसोसाठभेद, पृ. १अ. अजीव ५६० भेद, मा.गु., गद्य, आदि: पांच संस्थान तेना; अंति: पांचसेने ६० भेद छै. २. पे. नाम. बासठमार्गणा बंधहेतु विवरण, पृ. १अ-६आ. ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: हवे बासठमार्गण; अंति: बंधहेतु थाइ. ३. पे. नाम. जीवनापांचसोभेदेसमकित विचार, पृ. ६आ-९आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ जीव के पांचसोभेदे समकितविचार, मा.गु., गद्य, आदि: बेस्येन्ने बें २०२; अंति: (-), अपूर्ण. १७१९६. भावविषये ईलापुत्र चउपई, संपूर्ण, वि. १७६६, चैत्र कृष्ण, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. झंझूवाडा, प्रले. मु. तेजरत्न; पठ. मु. दानरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १४-१५४४६-४८). इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धिदाई सदा; अंति: न्यानसागर __ अजुआलइ छे, गाथा-१९१, ग्रं. २९१. १७१९७. (+) सात स्मरण सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ५-६४३२-३४). For Private And Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: जैनं जयति शासनम, प्रतिपूर्ण. नवस्मरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: समोसरणि बइठा; अंति: देवतानी आहुति दिउ, प्रतिपूर्ण. १७१९८. ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-३(१ से ३)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., श्लोक- ४८ से २६० तक है., जैदे., (२६४११.५, १४-१५४४०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १७१९९. अटोत्तरीस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १८७९. फाल्गन शक्त, ७. श्रेष्ठ, प. २१. ले.स्थल. आमलनेर, पठ. श्राव. भाग्यचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४२७-३०). बहत्शांतिस्नात्र विधि संग्रह. प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, आदि: प्रथम उपगरण लख्यते; अंति: प्रमुखनई दान दीजई. १७२००. समवसरण स्तवावचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२६४११.५, ९४२६-२९). समवसरण स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तीर्थंकरं समवसरणस्थं; अंति: मोक्षपदस्थं करोतु. १७२०१. पडिलेहण कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मु. गोविंददास साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जैदे., (२६४११.५, ३४२६-२८). पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: पडिलेहणा विशेषं; अंति: सीसेणं विजयविमलेणं, गाथा-२७. पडिलेहण कुलक-टबार्थ, ग. विजयविमल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रतिलेखना विशेषइ; अंति: विजयविमल० काजी. १७२०३. उत्तराध्ययनसूत्रगाथा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्रथम अध्ययन अपूर्ण तक है., जैदे., (२४.५४११.५, ९-१०४२९-३१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: एक आचार्यनइं एक चेलो; अंति: (-), अपूर्ण. १७२०४. गुर्वावली, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. वज्रस्वामि पर्यन्त., जैदे., (२६४११.५, १३४२८-३४). पट्टावली खरतरगच्छीय, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३०, आदि: प्रणिपत्य जगन्नाथं; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १७२०६. (+) पुन्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ११-१३४१९-३२). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, गाथा-९८. १७२०७. अभिधानचिंतामणीनाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., कांड २ श्लोक २४८ तक है., जैदे., (२५४११, ११४३१-३४). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), अपूर्ण. १७२०८. (#) नंदीसूत्र सह पर्याय-बालावबोध व अनुज्ञानंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४५, कुल पे. २, प्र.वि. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११.५, १५-१७X४७-५४). For Private And Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. नंदीसूत्र सह पर्याय-बालावबोध, पृ. १आ-४३अ. नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: सेत्तं परोक्खणाणं, गाथा-७००. नंदीसूत्र-बालावबोध ,मा.गु., गद्य, आदि: जय० विषय कषायादिक; अंति: ए परोक्ष श्रुतज्ञान. २. पे. नाम. अनुज्ञानंदी, पृ. ४३अ-४५अ. लघुनंदीसूत्र-अनुज्ञानंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, आदि: से किं तं अणुण्णा; अंति: वीसमणुण्णाए णामाई, सूत्र-३०. १७२०९. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२६.५४११.५, १५४५२-५४). स्तवनचौवीसी, म. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: आनंदघन परभू जागे रे, स्तवन-२४. १७२१०. (+) नवतत्त्व सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(८)=८, पू.वि. गा. ३५ से ४१ तक नहीं है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (६५५) जलात् रक्षेत् स्थला क्षेत्, जैदे., (२६४११.५, ४४२५-२९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-४६, अपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व जे प्राण धरे; अंति: मोक्ष पहूतउ छइ, अपूर्ण. १७२११. शोभनविहिताः स्तुतयः व लघुशांति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, ११४४०-४२). १. पे. नाम. शोभनविहिता: स्तुतयः, पृ. १आ-७आ. स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारतारावलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. शुरुआत की ५ गाथा तक है. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १७२१२. जीवविचार सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१९, भाद्रपद शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ७, लिख. श्राव. ललुभाई प्रभुदास शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वृताल(वडताल)निवासी शेठ ललुभाई प्रभुदासने स्वपठनार्थ यह प्रति लिखवाई., जैदे., (२५.५४११.५, ५४३१-३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भुवण क० तीनभुवन; अंति: एहवा समुद्रथी. १७२१३. भवभावना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३५-४३). भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: णमिऊण णमिरसुरवर मणि; अंति: वलीइ कीरउ अलंकारो, गाथा-५२८. १७२१५. (+) कर्मग्रंथ १ से ६ व गुणठाणास्थिति काल, संपूर्ण, वि. १७१५, चैत्र शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. १९, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ११४४६-५१). १. पे. नाम. कर्मविपाक सूत्र, पृ. १आ-३आ. For Private And Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६०. २. पे. नाम. कर्मस्तव सूत्र, पृ. ३आ-५आ. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिण; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्तं, पृ. ५आ-६आ. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. ४. पे. नाम. षडशीतिक सूत्र, पृ. ५आ-११अ. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. ५. पे. नाम. शतक सूत्र, पृ. ११अ-१५आ. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००. ६. पे. नाम. सप्ततिका सूत्र, पृ. १५आ-१९अ. सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थ; अंति: एगूणा होइ नउईउ, गाथा-९०. ७. पे. नाम. गुणठाणास्थिति काल, पृ. १९अ. गुणस्थानकस्थिति काल, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्या० स्थिति अनंतो; अंति: अइउकल पंचाक्षराणि. १७२१६. हरीबलचौपाई, संपूर्ण, वि. १८४६, कार्तिक कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६२, ले.स्थल. द्रांगध्रा, प्रले. पं. नायकविजय गणि (गुरु ग. सुबुद्धिविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४१२, १७-२१४३२-५०). हरिबलचौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: प्रथम धराधव जगधणी; अंति: लब्धिनी० ____ फलज्यो रे, उल्लास-४, ढाल ५९, ग्रं. ३५५१. १७२१७. ऋषभजिनविवहलो व स्तुति, अपूर्ण, वि. १६६१, चैत्र कृष्ण, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १२-२(१ से २)=१०, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १३४३३-३६). १. पे. नाम. आदिजिन विवाहलु, पृ. ३अ-१२आ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ऋषभ विवाहलु, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: इम बोलइ सेवक इम मुदा, अपूर्ण. २. पे. नाम. अजितशांति स्तुति *, पृ. १२आ, अपूर्ण. अजितशांति स्तव-अजितशांति स्तुति *, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: विवंगइकलकलसांणवि; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रारंभिक पाठ है.) १७२१८. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १८१६, पौष कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९-२(१ से २)=७, पू.वि. स्तवन-६ अपूर्ण से हैं., ले.स्थल. सुरतिबंदिर, प्रले. मु. वनीतलाभ (गुरु ग. दयालाभ, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १०-११४३८). स्तवनचौवीसी, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: द्यो संपति सुखदाय, स्तवन-२४, अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७२२०. (+) वीतराग स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ६४३१). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः यः परात्मा पर; अंति: फलमीप्सितम, प्रकाश-२०. वीतराग स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे स्वामी परमात्मा; अंति: तलइ जि संतोष पामिसु. १७२२२. रघुवंशटीका-सर्ग १-३, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७२, पू.वि. सर्ग १-३ तक है।, प्र.वि. अप्रकाशित प्रायः., जैदे., (२६४१२, १२-१४४३०-३९) रघुवंश-सुबोधिका टीका, ग. श्रीविजय, सं., गद्य, आदि: (१)श्रीशंखेश्वरपार्श्व, (२)अहं कालिदासनामाकविता; ____ अंति: सोपानो व्रजेदिति, प्रतिपूर्ण. १७२२४. (+) मानतूंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४-२(४३,४६)=५२, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १२४३०-३४). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: (-), अपूर्ण. १७२२६. प्रश्नोत्तरसमुच्चय, संपूर्ण, वि. १७४३, कार्तिक शुक्ल, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले.स्थल. मधुमतिबंदिर, प्रले. ग. दयालुसागर (गुरु ग. दीप्तिसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वि.सं. १६५२ में संशोधित आवृत्ति अनुसार लेखन., जैदे., (२५४११, १८४४३-४६). हीरप्रश्न, उपा. कीर्तिविजय, सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रियो निदान; अंति: तु तत्वविद्वेद्यमिति, प्रकाश-४. १७२२७. नवपदक्रिया व पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १०-११४२९-३२). १. पे. नाम. नवपदवंदनक्रीया, पृ. १अ-३अ. नवपद वंदनक्रिया, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम प्रभाते; अंति: संसार पारनीस्तार करू. २. पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. ३अ-५आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: त्रीजेभव वरथानक तप; अंति: (-), अपूर्ण. १७२२८. तेर द्वार, संपूर्ण, वि. १८७९, फाल्गुन कृष्ण, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. कीनसीर, जैदे., (२५.५४११.५, १९-२०७४३-४७). १३ द्वार, रा., गद्य, आदि: जीवतीथ १ अजीवतीथ २; अंति: रूपीयो मोक्ष जाणवो, द्वार-१३. १७२२९. संबोधसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. पं. विनोदरुचि (गुरु पं. वीररुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ४४४७-५२). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरु; अंति: सोलहई नत्थि संदेहो, गाथा-९९. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीतीर्थनायक महावीर; अंति: थानक इहां संदेह नथी. For Private And Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १७२३०. (+) नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०९, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, प्रले. मु. लालकुशल कवि; पठ. श्रावि. राजबाई; श्रावि. सिंघबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ३४२७-३२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मु. लालकुशल कवि, मा.गु., गद्य, वि. १७०९, आदि: (१)श्रीगुरुणां प्रसादेन, (२)चेतनावंत जे जीव; अंति: (१)लिहिओ कविलालकुसलेणं, (२)अनंता अधिका थाकइ छइ. १७२३१. कर्मग्रंथ-६ सप्ततिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. जैदे., (२६४११.५, ५४३२-३५). सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगूणा होइ नउईउ, गाथा-९४. सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्ध निश्चल पद छइ; अंति: उणी नेउ गाथा होइ. १७२३२. (+) सत्तरीसयठाणा सह टबार्थ व उपदेशमालागणवानोविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५९, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ५-८४३२-३५). १.पे. नाम. सप्ततिशतस्थान प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-५९अ. सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदि: सिरिरिसहाइ जिणिंदे; अंति: जाइ सो सिद्धिठाणे, गाथा-३६१. सप्ततिशतस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्री ऋषभादिकजिनेंद्र; अंति: सिद्धस्थानकनइ विषइ. २. पे. नाम. उपदेशमाला गणवानी विधि, पृ. ५९आ. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: उभय काल पडिक्कमणु; अंति: चेतना एक ठामज्य. १७२३३. जंबूस्वामी रास, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-२(१ से २)=२२, पू.वि. ढाल-३ गाथा-१२ अपूर्ण से है., जैदे., (२६४११.५, १५-१६४४७-४९). जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: नितु कोडि कल्याण, ढाल-३५, गाथा-६०८, ग्रं. १०३९, पूर्ण.. १७२३४. साधु वंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४११.५, १३-१४४३४-३६). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: मनि आणदि संथुया, ढाल-७, गाथा-८७. १७२३५. नंदीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७६, जैदे., (२५.५४११, ५-६४३३-३९). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: वीसमणुन्नाइं नामाई, गाथा-७००. नंदीसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: नंदी कहता आणंदनो; अंति: अनुज्ञाना नाम जाणवा. १७२३६. गुणस्थानक्रमारोह प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३+१(८)=१४, जैदे., (२५.५४११, ६४३१). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोहहत; अंति: रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३६. For Private And Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गुणस्थानक्रमारोहप्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: गुणठाणनइ विषइ क्रमइ; अंति: श्रीरत्नशेखरसूरिकृत. १७२३८. चमत्कारचिंतामणी कीटीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., केतुफल कथन पर्यन्त है., जैदे., (२५४१०.५, १६-१८४४५-५०). चमत्कारचिंतामणि--टीका, मु. पुण्यहर्ष-शिष्य, सं., गद्य, आदि: श्रीपुण्यहर्षमानम्य; अंति: (-), अपूर्ण. १७२४०. श्रीपालनृपचौपाई, संपूर्ण, वि. १७३४, आश्विन शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले.स्थल. वेलाकूलबंदर, जैदे., (२५.५४११, १६-१७४३५-४४). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: सकल सुरासुर जेहना; अंति: सह चितचंगई रे, ढाल-४०, गाथा-७५६, ग्रं. ११३१. १७२४१. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६९-१(१)=६८, पू.वि. पीठिका का प्रारंभिक अंश नहीं है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ६-७४२९-३२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: मुच्चइ त्ति बेमि, __ अध्ययन-१०, चूलिका २, गाथा-७००. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अर्थ संपुर्ण, पूर्ण. १७२४२. (+) कर्मग्रन्थ ६ सह टबार्थ व गाथार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १२-१४४३८-५१). सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगूणा होइ नउईउ, गाथा-९३. सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्ध निश्चल पद छइ; अंति: उणी नेउ गाथा होइ. सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्ध निश्चल जे छइ; अंति: उणी नेउ गाथा जाणवी. १७२४४. (+) रूपसेनचरित्र, संपूर्ण, वि. १८५६, भाद्रपद कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले.स्थल. नाथुसर, प्रले. पं. खुशाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४३९-४३). रूपसेनकनकावती चरित्र-चतुर्थव्रत पालने, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, आदि: आरोग्यभाग्याभ्युदय; अंति: सुकृताय कृता कथा, श्लोक-२२४. १७२४५. वंकचूल चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. जयपूर, प्रले. नानगराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १८-२०४४७-५१). वंकचूल चौपाई, मु. तीकम, मा.गु., पद्य, वि. १७०६, आदि: श्रीरिसहेसर पायनमी; अंति: (१)तीकम आणंद० सूख ___कंद, (२)मुनितीकम० वंकचुल, ढाल-१७. १७२४६. (+) पोशदशमी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ११४३४-३६). पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकाचार्य, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथां; अंति: इदं संबंध रचनीयम्. १७२४७. उत्तराध्ययनसूत्र गीत, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. ग. अमरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १३४४१-४५). उत्तराध्ययनसूत्र-गीत, संबद्ध, उपा. राजशील, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मति अति निरमली; अंति: विजय लहइ हवइ जयजयकार, गीत-३६. For Private And Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ४६१ १७२४८. स्नात्रपूजाविधि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२६४११, ५४३६-४०). स्नात्रपूजा संग्रह*, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (१)मुक्तालंकार विकार, (२)पूर्वदिसइ तथा उत्तरइ; अंति: कणया० पयाहिणंदितो. स्नात्रपूजा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मोतिना आभर्ण विशेष: अंति: मंगलदीवो उतारीइं. १७२५०. रत्नसंचय, संपूर्ण, वि. १८१४, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले.स्थल. देवकापाटण, जैदे., (२४.५४११, १२-१३४२८-३२). रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणं वीरं उवया; अंति: धणु गाहा आगमे भणिया, श्लोक-५४७. १७२५१. (+) धर्मसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्रले. ग. विमलकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १६-१७४५४-६०). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: अयमढे पण्णत्ते, अध्याय-९२, ग्रं. ८९९. १७२५५. रत्नपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदे., (२६४११, १२-१३४३५-३७). रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि में दुर; अंति: मोहनविजय विलासजी, खंड-४, ढाल ६६. १७२५७. (+#) बारव्रत मर्यादा, संपूर्ण, वि. १९६८, वैशाख कृष्ण, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. कीरपाचंद महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४४०-४५). १२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सम्यक्त्व; अंति: जं जिणेहं पवेहियं. १७२५९. (+) अजितशांति स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-क्रियापद संकेत., जैदे., (२५४११, ६४४१-४५). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. अजितशांति स्तव-अवचूरि*, सं., गद्य, आदि: (१)नत्वा चिदानंदमयं जिन, (२)अक्षक्रीडायां भगवति; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. गाथा ३० तक है.) १७२६१. दाढालारी वार्ता व पद, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-१(१०)=१३, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १५४२५-२७). १. पे. नाम. दाढालारी वात, पृ. १अ-१४अ, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. दाढाला कथा, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप भरतखंड; अंति: कीधी सुखसुं रहै, पूर्ण. २. पे. नाम. पद, पृ. १४अ-१४आ. पहेली पद, मा.गु., पद्य, आदि: कीयो न कीयो पीयो न; अंति: दान लीयो न लीयो, पद-१. १७२६२. देवकी पुत्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल- १० गाथा- ५ तक है।, जैदे., (२५.५४११, १२४३३-३५). देवकी सज्झाय, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: अरिट्ठनेमी नाम हवा; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७२६३. कंडरिकपुंडरिक रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पठ. श्रावि. वाछुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ४८-५२४-१). कंडरिकपुंडरिक रास, मु. नारायण, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: श्रीजिनवयण आराधिइ; अंति: नारायण रंग __ अपार ए, ढाल-२१, गाथा-१३५. १७२६४. वरदत्तगुणमंजरी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६०, फाल्गुन कृष्ण, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले.स्थल. सूरतबिंदर, प्र.वि. शाब्दिक अंक "गुणर्तुसरितांपतिचंद्र" अनुसार प्रतिलेखन वर्ष गुण ३ ऋतु ६ सरितांपति ७ चन्द्र १ से वर्ष १७६३ होता है. पुनः दिये हुए वर्षोल्लेख में १८६० स्पष्ट मिलता है. अतः १७५५ में लिखी प्रति पर से यह प्रति लिखी जाने की सम्भावना है., जैदे., (२६४११.५, ४४३०-३५). वरदत्तगुणमंजरी कथा, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मितसद्गुणम, श्लोक-१५०. वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमंत शोभा लक्ष्मी; अंति: रूडै गुण युक्त छइ. १७२६५. (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १७X४८-५४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०. १७२६६. अनुत्तरोववाईदशांगसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८३२, फाल्गुन कृष्ण, ७, रविवार, मध्यम, पृ. १५-१(१)=१४, ले.स्थल. नागोर, प्रले. सा. अखु (गुरु सा. गुमानाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ५-७४३९-४७). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: तहाणेयव्वं, अध्याय-३३, ग्रं. १९२, पूर्ण. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: परि तिमज जाणिवा, पूर्ण. १७२६७. निरियावलीयादिपंचोपांगसूत्र, पूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३९-१(१)=३८, कुल पे. ५, पू.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है., प्रतिलेखन पुष्पिकावाला पत्र नही है., जैदे., (२६४११, ११४३९-४२). १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. २अ-१५आ, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रथम आलापक का प्रारंभिक भाग नहीं है. ___प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: मायातो सरिसणामाओ, अध्ययन-१०, पूर्ण. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. १५आ-१७अ. प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिज्झीहिति, अध्ययन-१०. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. १७अ-३२आ. __प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. ३२आ-३५अ. प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते समणेणं०: अंति: वासे सिज्झिहिति, अध्ययन-१०. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. ३५अ-३९आ. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते पंचमस्स; अंति: मइरित्त एक्कारससु वि, अध्ययन-१२. For Private And Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ ४६३ १७२६८. चौवीसतीर्थंकररोलेखो, संपूर्ण, वि. १८४०, आषाढ़ कृष्ण, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. सा. गुमानी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १७-१८४३४-४१). २४ तीर्थंकर लेख, रा., प+ग., आदि: प्रथम श्रीआदिसर; अंति: हुज्यौ त्रिकाल, अध्याय-२४. १७२६९. निशीथसूत्र बीजक, संपूर्ण, वि. १९२९, वैशाख कृष्ण, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. जालरापाटण, प्रले. मु. पनालाल महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ३१४५३-५८). निशीथसूत्र-बीजक, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हो सूत्र०; अंति: ए छ परठववा. १७२७०. अभिधानचिंतामणी नाममाला, संपूर्ण, वि. १८२२, श्रेष्ठ, पृ. ७६, ले.स्थल. देवकपत्तन, पठ. ग. लब्धिरुचि (गुरु पं. रामजीरुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत्येक नामसमूह के पहले मा.गु. भाषाबद्ध शब्द परिचय., जैदे., (२६.५४१२, १८४३२-३५). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२. १७२७१. नलदवदंती रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, प्रले. पं. सोभाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १६x४०-४६). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: चतुर माणस चित वसी, खंड-६, ढाल ३९, गाथा-९१३. १७२७२. महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, प्रले. ग. मानविजय (गुरु उपा. लावण्यविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १२४३७). महावीरजिन स्तवन, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमलकमलदललोयणा दिसे; अंति: विजय शिष्य जयकरो, ढाल-६, गाथा-८५. १७२७३. वीरजिननिर्वाणदीवाली स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६३, फाल्गुन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. सूर्यपुर, प्रले. पं. ज्ञान; पठ. श्रावि. प्राणकोरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३८). महावीरजिन निर्वाणमहिमा स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रमणसंघ तिलकोपम; ___ अंति: श्रीगुणहर्ष वधामणई, ढाल-१०, गाथा-१२२. १७२७५. जंबूअध्ययनप्रकीर्णक बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदे., (२५.५४१२, १३४३५-३७). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: हवे चोथा आराने विषे; अंति: भव भवने विशे पामशे. १७२७६. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८७८, पौष शुक्ल, २, बुधवार, मध्यम, पृ. १६३, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. पं. कस्तुरविजय (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ७-१७४४४-४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)तेणं कालेणं० समणे, (२)णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-८, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (१)अरिहंत भगवंत वीतराग, (२)नमो क० माहरो नमस्कार; अंति: (१)अध्ययन संपूर्ण थयउ, (२)आपणा शिष्यने कहे. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: भरतक्षेत्र पोतनपुर; अंति: अनेराने नहीं लेवा. For Private And Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७२७७. कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८१३, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १६३, ले. स्थल, वल्हीनगर, प्रले. पं. रुपविजय (गुरुग, देवेंद्रविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x११.५, ६-१५X३४-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान- ९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालन विषह चतुर्थ; अंतिः शिष्य प्रतह को. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: ( १ ) प्रणम्य श्रीमहावीरं, ( २ ) नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: दुक्कडम न देवो. www.kobatirth.org १७२७८. (+) अनुयोगद्वारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१२, आश्विन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १४८, ले. स्थल. मांगरोल, प्र. वि. श्रीनवलख प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६११.५, ५X३०). अनुयोगद्वारसूत्र, आ. आर्यरक्षित, प्रा., प+ग, आदि: नाणं पंचविहं; अंति: साहू से तं नए. अनुयोगद्वारसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ना० ज्ञान पंच प्रकार; अंति: ते संपउति नगरं पविठा. श्रेष्ठ, १७२७९. । कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १७८३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, शुक्रवार, पृ. १९३-१(१)=१९२, पू. वि. पीठिका का प्रारंभिक अंश नहीं है., पठ. मु. रूपचंद (गुरुग. चतुरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन स्थल मिटाया हुआ है., संशोधित., प्र.ले. श्लो. (१७) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, जैदे., (२५.५x११.५, ५-१३X२६-३०). (+) १७२८०. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (+) कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तेणइ कालि जे अवसर्पि; अंति: आपणा शिष्यने कहे. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कड दीधु, पूर्ण. कल्पसूत्र सह कल्पलता टीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २०७, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X१२, १४-१६X३७-४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ ति बेमि, व्याख्यान ९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ ति बेमि, व्याख्यान ९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र- कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंतिः समयादिमसुंदराः. १७२८१. (+) सीलोपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २५X११, १२X३८-३९). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि आबालबंभयारिं नेमि; अंतिः आराहिय लहइ बोहिफलं, गाथा - ११५. " १७२८२. नवकार सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२५X१०.५, ७X३०). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवई मंगलम्, पद- ९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने माहरो; अंति: (-), पूर्ण. १७२८४. पार्श्वनाथ दशभव, नेमिनाथ नवभव व आदीश्वर तेराभव, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, जैदे., (२६११, १६-१७४६४-६६ ). For Private And Personal Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४६८ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.४ १. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरा दशभव, पृ. १अ-२आ. पार्श्वजिन १० भव, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप भरतक्षेत्र; अंति: भव सूत्र थकी जाणवो. २. पे. नाम. नेमिनाथजीरा नवभव, पृ. २आ-५आ. नेमिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप भरतक्षेत्र; अंति: नवमोभव सूत्रथी जाणवो. ३. पे. नाम. आदिश्वजीरा तेराभव, पृ. ५आ-७आ, अपूर्ण. आदिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीपइ पश्चिममहा; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १७२८५. तपागच्छ पट्टावली सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-३(१ से ३)=१४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा ५ अपूर्ण से गाथा १९ अपूर्ण तक व परम्परा इन्द्रदिन्नसूरि से हीरसूरिजी तक है., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११, १२४५२). तपागच्छ पट्टावली, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. तपागच्छ पट्टावली-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १७२८६. (+) ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक ३१३ तक है.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, १२४३३-४१). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), अपूर्ण. १७२८९. चउमासीवखाण बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पं. विद्याविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, १५४५७-५९). चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान- बालावबोध, मु. सूरचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर सूरचंद्र; अंति: कविभिर्विशेषव्यं. १७२९०. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, लिख. श्रावि. हरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ४-५४२८). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चउसरणपइनाना अर्थ०; अंति: अनइ मुक्तिना सुख लहइ. १७२९१. (#) चौवीसदंडक सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ५४४५-४८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४६. १७२९२. साधुवंदना व पंचमंगल पाठ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. मु. कोका (गुरु ऋ. वस्ताजी); पठ. रेडा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १४४३७-३८). १. पे. नाम. साधुवंदना, पृ. १अ-५आ. साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: मनि आणदि संथुया. २. पे. नाम. पंचमंगलपाठ, पृ. ५आ. पंचमंगल पाठ, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंता मंगलुं मुझ; अंति: वोसरामि ते पावगं, गाथा-५. For Private And Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७२९३. सप्तस्मरणानि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्रले. मु. हर्षनंदन; पठ. मु. मीमा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १३४५०). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण-७. १७२९५. (+) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७३-५९(१ से ५९)=१४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., छप्पनदिक्कुमारी महोत्सव अपूर्ण से महावीरजिन चरित्र अपूर्ण तक है.,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ., जैदे., (२५४११, ११-१३४४०-४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. कल्पसूत्र-टीका*,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), अपूर्ण. १७२९६. (+) भाष्यत्रय सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६३५, आश्विन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४३९-४०). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३, गाथा-१५१. भाष्यत्रय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीमद्वीरजिनः, (२)एह श्रीमहावीरजिन भवि; अंति: सौख्य० __पामिसिइ, भाष्य-३. १७२९९. (+) नवतत्त्व सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १६६१, चैत्र शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०-१(१)=२९, पू.वि. मात्र पहली गाथा नहीं है., प्रले. मु. देवजी (गुरु मु. मेघराज, नागोरीतपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १२-१५४४६-४८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४६, पूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मुर्द्ध करिवू, पूर्ण. १७३००. उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २१, जैदे., (२६४११.५, १२-१३४४२-४४). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: सोहियव्वं पयत्तेण, गाथा-५४४. ॥ इति श्री कैलासश्रुतसागरे हस्तप्रतविभागे जैनसाहित्ये चतुर्थः खंडः ॥ For Private And Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: परिशिष्टः कृति परिवार अनुसार प्रत-पेटाकृति अनुक्रम संख्या यद्यपि भविष्य में कृति की विस्तृत सूचनाओं के साथ इस तरह के परिशिष्टों के स्वतंत्र खंड २.१ आदि प्रकाशित करने का आयोजन है, तथापि विद्वानों की मांग तथा उपयोगिता को दृष्टि में रख कर कैलास श्रुतसागर- जैन हस्तलिखित साहित्य के द्वितीय खंड से सूची के अंत में दो परिशिष्ट कृति परिवार अनुसार हस्तप्रतों की अनुक्रम संख्या के प्रकाशित किए जा रहे हैं. परिशिष्ट १ में संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं के कृति परिवार अनुसार प्रत क्रमांक दिए गए हैं. परिवार की मुख्य कृति की भाषा के अनुसार पूरा परिवार इस परिशिष्ट में समाविष्ट कर लिया गया है. मुख्य कृति के पुत्र-पौत्र-प्रपौत्रादि स्तर की देशी भाषाओं की कृतियों को भी यहीं सम्मिलित कर लिया गया है. ध्यान रहे कि ऐसी कृतियों को परिशिष्ट - २ में पुनः सम्मिलित नहीं किया गया है. इसी तरह एकाधिक भाषा वाली कृतियों में संस्कृत आदि व देशी भाषा दोनो हों, वैसी कृतियाँ मात्र इस परिशिष्ट में सम्मिलित की गई हैं. परिशिष्ट - २ में मात्र देशी भाषाओं वाली मूल कृति परिवार अनुसार प्रत क्रमांक दिए गए हैं. इनके संस्कृत आदि भाषा के पुत्रपौत्रादि का समावेश भी यहीं कर लिया गया है. इस परिशिष्ट में कृति की - कृतिनाम, कर्तानाम, भाषा, अध्याय-ढाल आदि संख्या, गाथा / श्लोक संख्या, ग्रंथाग्र, रचना संवत, गद्य-पद्य आदि कृति प्रकार, धर्म संकेत व मुख्य आदिवाक्य इतनी सूचनाओं का समावेश किया गया है.. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - (२) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका (३) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका का टवार्थ • इस परिशिष्ट में मूल आदि स्व-स्व स्तर के अकारादि क्रम से कृति परिवार को क्रमशः मूल व मूल के ऊपर रचित उसकी संतति स्वरूप कृतियों को प्रथम स्तर - पिता, द्वितीय स्तर पुत्र, तृतीय स्तर पौत्र, चतुर्थ स्तर प्रपौत्र, इत्यादि सदस्य के रूप में वंशवृक्ष शैली में प्रकाशित किया जा रहा है. प्रथम स्तर के बाद द्वितीय, तृतीय आदि प्रत्येक स्तर का सूचक अंक (२), (३) इत्यादि कृति नाम के प्रारम्भ में ही दे दिया गया है. यथा कल्पसूत्र कृतियाँ परिवारानुसार दी गई हैं. यथा- लोगस्स, शक्रस्तव, चैत्यवन्दन, प्रतिक्रमण, पच्चक्खाण आदि स्वतन्त्र तत्-तत् अक्षर पर न मिलकर आवश्यकसूत्र के परिवार में स्व-स्व स्तर पर मिलेंगे. कृतियाँ निम्न तरह के अकारादि क्रम में दी गई हैं.. • सभी मूल कृतियाँ कृति नाम कर्ता नाम व आदिवाक्य इस तरह त्रिस्तरीय अकारादि क्रम से दी गई हैं. यानि प्रथम अकारादिक्रम से समान नामवाली कृतियाँ एक साथ दी गई हैं. उसमें भी समान कर्तानाम वाली कृतियाँ एक साथ कर्ता नाम के अनुक्रम से दी गई है और उन समान कर्ता नाम वाली कृतियों को भी आदिवाक्य के अकारादिक्रम से रखा गया है. ० मूल कृति के परिवार की पुत्र-पौत्रादि कृतियों स्व-स्व द्वितीय, तृतीय आदि स्तरों पर स्व-स्व परिवार के साथ अपने निर्युक्ति आदि कृति स्वरूपों के अनुसार दी गई है. यह क्रम कृति स्वरूप के अकारादि क्रम का न होकर कृति स्वरूप की महत्ता के अनुसार निम्न क्रम से रखा गया है. ० कृति स्वरूप क्रम : मूल, निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका, वृत्ति, व्याख्या, वार्तिक, अवचूर्णि, अवचूरि, अनुवाद, भाषा, भावार्थ, अर्थ, टबार्थ, बालावबोध, अन्वय, प्रक्रिया, विवरण, टिप्पण, प्रवचन, अंतर्वाच्य, कथा, अनुक्रमणिका, बीजक हिस्सा, संबद्ध, संक्षेप, चयन, यंत्र, आधारित. ४६७ • इस क्रम में समान स्वरूप की एकसाथ आनेवाली टीका आदि कृतियों को पुनः उपरोक्त कृतिनाम, कर्तानाम व आदिवाक्य के अकारादि क्रम से दिया गया है. For Private And Personal Use Only " Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir आशा है यह क्रम-विन्यास, आवश्यक सूत्र' 'कल्पसूत्र' आदि बडे कृति परिवारों में एवं २४ जिन स्तुति' जैसी समान नाम वाली अनेक कृतियों के समूह में कृति को ढूंढने में उपयोगी सिद्ध होगा. • कृति को उसके पर्यायवाची नामों से भी खोजें. यथा- नमस्कार हेतु नवकार, पंचपरमेष्ठि; नवपद हेतु सिद्धचक्र आदि. • सामान्य पद, सज्झाय, लघुकाव्यों आदि को औपदेशिक एवं आध्यात्मिक इन नामों से अभिहित कर बाद में विषयानुसार नामाभिधान करने का प्रयत्न किया गया है. • कृति नाम में यदि कोई संख्यावाचक शब्द है, तो एकरूपता लाने के लिए वह संख्या यथासम्भव अंकों में ही लिखी गई हैं. इससे अष्टकर्म व आठकर्म की जगह ८ कर्म लिखा होने से वे अलग-अलग न मिलकर एक ही जगह मिलेंगे. जहाँ तक हो सका है, संख्याओं को नाम के प्रारम्भ में ही ले लिया गया है. • प्रत व पेटाकृति नाम के रूप में कृति के प्रतिलेखक द्वारा प्रत में उल्लिखित नाम को ही रखकर कृति नाम के रूप में कृति का यथार्थ व बहुमान्य नाम रखने का नियम अपनाया गया है. इस वजह से प्रत, पेटाकृति नाम व उसके नीचे आने वाली कृति नाम में उल्लेखनीय भिन्नता मिल सकती है. इससे एक ही कृति के अनेकविध प्रचलित नामों का भी पता चल जाता है. यथाप्रत नाम - बारसासूत्र या पज्जोसणा कप्पो या दशाश्रुतस्कंध अष्टम अध्ययन. कृति नाम - कल्पसूत्र • जिन कृतियों के अंत में प्रत क्रमांक की जगह <प्रतहीन> ऐसा लिखा हो, वहाँ यह समझना होगा कि प्रस्तुत कृति मात्र उसके नीचे दिए गये पुत्रादि कृति का संबंध बताने हेतु है. कृति नामों में विशेषण अंत में दिए गए हैं ताकि मूल नामों में एकरूपता बनी रहे और अकारादि क्रम में एक साथ आएँ. यथा- २४ अनागत जिन स्तवन के स्थान पर २४ जिन स्तवन-अनागत लिखा गया है. इसी तरह शंखेश्वरमंडन पार्श्वजिन स्तवन की जगह पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडन दिया गया है. • प्रत की अपूर्णता आदि कारणों से जिन कृतियों के आदिवाक्य नहीं मिल सके हैं, वहाँ आदिवाक्य में (--) ऐसा दिया गया • गाथा आदि छोटे परिमाणवाली मारूगुर्जर भाषा की कृतियों में क्वचित् वास्तव में राजस्थानी, गुजराती तथा प्राचीन हिन्दी भाषा होने की संभावना हो सकती है. कई बार कालांतर व क्षेत्रांतर की वजह से 'गुजराती, राजस्थानी' आदि देशी भाषा की एक ही कृति की भाषा के स्वरूपों में विभिन्न प्रतों में इतना परिवर्तन मिलता है कि यथार्थ भाषा का निर्धारण दुरुह हो जाता है. ऐसे में सुविधा की दृष्टि से उस कृति की भाषा के रूप में पश्चिमोत्तर भारत की प्राचीन भाषा मारुगूर्जर' लिखने का नियम रखा है. • संभावित अप्रकाशित कृतियों का नाम (आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर की कम्प्यूटर आधारित सूचना प्रणाली में अब तक उपलब्ध माहिती के अनुसार) italics में मुद्रित किया गया है. यथा-अजितशांति स्तव-बोधदीपिका टीका. चूंकि अनेक प्रकाशनों की विस्तृत सूचना अभी भी कम्प्यूटर में प्रविष्ट करनी बाकी है एवं बहुत-सी प्रविष्ट कृतिगत सूचनाओं का अंतिम पुष्टिकरण भी बाकी है - इत्यादि अनेक कारणों से कुछ एक प्रकाशित कृतियाँ भी सम्भवतया अप्रकाशित के रूप में यहाँ आ गई हैं. खासकर लघु कृतियों हेतु यह सम्भावना अधिक है. अतः कृपया इसे एक संकेत मात्र के ही रूप में देखा जाय. • इन परिशिष्टों हेतु यद्यपि कृति-एकीकरण का शक्य प्रयत्न किया गया है, तथापि यह सम्भव है कि एक ही कृति भिन्न-भिन्न नामों से एकाधिक जगहों पर भिन्न-भिन्न प्रतों के साथ मिल सकती है. इस कार्य में सांगोपांगता तो भविष्य में सुसंपादित होकर प्रकाशित होनेवाले-कृति पर से प्रत माहिती वाले खंडों के प्रकाशन के समय ही आ सकेगी. क्वचित् ऐसा भी प्राप्त हुआ है कि एक ही कृति के लिए भिन्न-भिन्न कर्ताओं के नाम मिले हैं. कृति का प्रायः सब कुछ एक समान होते हुए भी मात्र रचना प्रशस्ति में अन्तर मिलता है. ऐसी स्थिति में सामान्यतः प्रत्येक कर्ता के अनुसार उस कृति की एकाधिक स्वतंत्र प्रविष्टियाँ दी गई हैं. . अनेक कृतियों के एकाधिक प्रचलितनाम भी मिलते हैं, इनमें से यहाँ पर सूचीपत्र का कद बढ़ने के भय से मात्र एक मुख्य ४६८ For Private And Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir नाम ही दिया गया है. यथा- बारसासूत्र आदि के लिए कल्पसूत्र ही दिया गया है. इसी प्रकार कृतियों के सामान्य या विशेष फर्क के साथ एकाधिक आदिवाक्य भी मिलते हैं. उन सब की प्रविष्टि कम्प्यूटर पर तो कर दी जाती है परंतु इनमें से यहाँ मात्र एक ही आदिवाक्य दिया गया है. जबकि सूचीपत्र में तो तत्-तत् प्रतगत प्रथम स्तर व क्वचित् कृति के ज्यादा सही निर्धारण हेतु मंगल आदि के बाद के द्वितीय स्तर के आदिवाक्य भी दिए गए हैं. जो कि सम्भवतः यहाँ दिए गए आदिवाक्य से न भी मेल खाते हों. ऐसा ज्यादातर टबार्थ व बालावबोधों में पाया गया • प्रत में प्रस्तुत कृति यदि प्रतिपूर्ण है अर्थात् प्रतिलेखक ने कृति को संपूर्ण न लिख कर प्रति में उपलब्ध अंश मात्र को ही लिखा है तो प्रत क्रमांक टेढ़े Italic अंकों में दिखाए गए हैं. यथा-५८१६. • कृति के आदिवाक्य के पहले कृति का धार्मिक स्रोत चिह्नित करने हेतु मूपू., स्था., ते., श्वे., दि., जै., वै., बौ. इन संकेतों का प्रयोग क्रमशः जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक, जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी, जैन श्वेतांबर, जैन दिगंबर, जैन, वैदिक व बौद्ध के लिए किया गया है. जहाँ पर ये संकेत नहीं हैं वे सामान्य कृतियाँ हैं. इन संकेतों को यथोपलब्ध सूचनाओं के आधार पर दिया गया है तथा इनकी कहीं-कहीं अंतिम रूप से पुष्टि होनी बाकी है. कहीं पर धर्म स्रोत की निःशंक परिपुष्टि न हो पाई हो उन धर्म संकेतों के साथ प्रश्नार्थ चिह्न किया गया है. जैसे बौ?, जै?. • वाचकों की सुविधा एवं उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए कृति के साथ दिए हुए प्रत क्रमांक क्रमशः प्रत की शुद्धि आदि महत्ता, संपूर्णता, दशा, अपूर्णता व अशुद्धि की वरीयता से दिए गए हैं. शुद्धता सूचक निशानी (+) वाले प्रत क्रमांकों को सर्वाधिक महत्व दिया गया है, उसके बाद संपूर्ण, पूर्ण व प्रतिपूर्ण प्रत क्रमांकों को तथा अंत में ($) (E) (-) निशानी वाले प्रत क्रमांकों को रखा गया है. अतः प्रत क्रमांक अपने स्वाभाविक अनुक्रम से नहीं मिलेंगे. • कृति माहिती के सामने प्रत क्रमांक तथा यदि प्रत में एकाधिक कृतियाँ हैं तो प्रस्तुत कृति प्रत में किस क्रमांक की पेटाकृति है, वह पेटांक भी दिया गया है. यथा प्रत क्रमांक १०२०७ के तीसरे पेटांक में महावीरजिन स्तवन है, इसका क्रमांक इस प्रकार लिखा गया है - १०२०७-३. पाप ताप के हरण को, चंदन रस श्रुतज्ञान | श्रुत अनुभव रस राचिये, माचिये जिन गुण तान ।। | दुषम काल जिन बिम्ब जिनागम | भवियण कुं आधारा || श्रुतथी शुभमति संपजे, श्रुतथी जाय विकार, श्रुत वासित जाणे भला, तत्त्वातत्त्व विचार || ४६९ For Private And Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट ४ प्रत्येकबुद्ध चरित्र, सं., अ. ९, पद्य, पू., (करकंडू कलिंगेषु), १६४०८ ६ द्रव्यपरिणाम विचार, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (परिणामि जीव मुत्ता), १६१३८-२ ६ विगइ ३० नीवीआता, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (पयसाडि खीर पेया), १४३५०-२ ७ समुद्धात, प्रा.,मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (वेयण कसाय मरणे), १४१६६-३(+) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., श्लो. ८, वि. १७२४, पद्य, पू., (गंगा मागध क्षीरनिधि), १७१७३-१(+), १४९५१-१०, १५६३३-२, १६७१९-२, १५६५१-२६) ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (विमल केवल भासन), १४४५२-२८ १० आश्चर्य वर्णन, प्रा.,मा.गु., ग्रं. ११३, पद्य, मूपू., (उवसग्ग१ गब्भहरणं), १६७७२ ११ गणधर देववंदन, प्रा.,मा.गु., स्त. ११, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर गोयम गणहर), १४०७०(+), १४०७१, १६६५७ १२ पर्षदा स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (आग्नेयां गणभृद्विमान), १५१९८-२(+) (२) १२ पर्षदा स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अग्निकूणे गणधर विमान), १५१९८-२(+) १३ काठिया प्रबंध.सं.. गद्य. मप.. (श्रीविश्वोपकारकपरायण), १४४१२() १४ गुणस्थानकस्वरुप विचार, सं., पद्य, मूपू., (--), <प्रतहीन>. (२) १४ गुणस्थानकस्वरुप विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (--), १४२०२(क) १६ कारण पूजा, सं., पद्य, मूपू., (ऐंद्र पदं प्राप्य), १४५०९-४(5) १६ वचन नाम, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (एगवयणे १ वयणे २), १५४७४-२(२, (२) १६ वचन नाम-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (वृक्षः घटः पटः), १५४७४-२(#) १६ सती स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ब्राह्मी चंदनबालिका), १५१६१-५ २० जिन स्तवन- समेतशिखर, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (यस्मिन्नजितनाथादि), १४१४४-१४(+) २० स्थानकतप आराधनविधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथमनालिकेरादि),१५१९९-२(+) २० स्थानकतप उच्चारविधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नादि सर्व उपधान), १५०१४-४ २० स्थानकतप विधि, सं., पद्य, मूपू., (ॐ नमो अरिहंताणं), १६७४८(+) २४ जिननामगर्भित मंगलाष्टक, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (नतसुरेंद्रजिनेंद्र), १४०६१-१४, १५१८३-७ २४ जिनमंगल स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिरिआइजिणं वंदे), १४१४९-१०(+) २४ जिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, पू., (जयश्रीदायिनः), १४१४९-७(+) २४ जिन स्तव, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (प्रथमजिनवरनिखिलनरनाथ), १४१४५-१५(+) २४ जिन स्तवन, श्राव. भूपाल, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (श्रीलीलायतनं महीकुल), १४०५४ (२) २४ जिन स्तवन-टीका, सं., गद्य, म्पू., (भो देव प्रातः), १४०५४ २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २९, वि. १६५२, पद्य, मूपू., (ऋषभनम्रसुरासुरशेखर), १४०६१-२०, १५१०४ (२) २४ जिन स्तुति-टीका, ग. कनककुशल, सं., ग्रं. ४५७, वि. १६५२, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परया भक्त्या ), १५१०४ For Private And Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४७१ २४ जिन स्तुति, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (सर्व सुरासुरैवैद्य), १४०६०-१(+) २४ जिन स्तोत्र, मु. सुखनिधान, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (आदौ नेमिजिनं नौमि), १३९५१-२१, १४०६१-८, १४४८४-२, १५१८३-२, १५३५९-५ (२) २४ जिन स्तोत्र-यंत्र, सं., यं., मूपू., (--), १४४८४-२ २४ स्थानक यंत्र @, प्रा.,मा.गु., को., मूपू., (--), १५६२२ ३४ अतिशय स्तवन, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखदान्), १४०२८, १४०७४ (२) ३४ अतिशय स्तवन-स्वोपज्ञ वृत्ति, सं., गद्य, मपू., (मनोज्ञमाहतं ज्योति), १४०२८, १४०७४ ६२ मार्गणा यंत्रम्, मा.गु.,सं., को., मूपू., (--), १४८४२ ७४ बोल प्रश्नोत्तर, प्रा.,मा.गु., ग्रं. ८०१, गद्य, श्वे., (--), १४५६६($) अंगचूलिका प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, मप., (नमो सय० नमो अरि०), १७१२४ अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ९२, ग्रं. ८९९, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० चंपा०), १५२९७(+), १५४३७(+), १५६७२(+), १६६०३(+#), १७२५१(+), १६३४० (२) अंतकृद्दशांगसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, मूपू., (अथांतकृतदशासु किमपि), १५२९७(+), १६४९२-१(+) (२) अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अंतगड शब्दस्य कः), १५४३७(+), १६३४० अंबड चरित्र, पं. अमरसुंदर, सं., गद्य, मूपू., (धर्मात् संपद्यते), १४९५२ अक्षौहिणीसैन्य मान, सं., श्लो. १, पद्य, (दशलक्षदंति त्रिगुणां), १४४६८-३(+) अघटकुमार चरित्र, सं., श्लो. ६३७, पद्य, मूपू., (प्राणिनामसहायानामपि०), १६१४०-१ अघटकुमार चरित्र, सं., श्लो. २९८, पद्य, मूपू., (प्राणिनामसहायानामपि), १६३१३-१(+) अच्छुप्ताविद्यादेवी जापमंत्र, सं., गद्य, मूपू., (अच्छुप्तायै विद्या), १४३४७-५ अजापुत्र कथा-सत्त्वविषये, सं., श्लो. ६५६, पद्य, मूपू., (गुणेषु सत्वमैवैक), १६११७-२(5) अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू., (अजियं जिय सव्वभयं), १३९५७-१(+), १४६८३(+), १५२६१(+), १५४५१(+), १६८३३(+), १७२५९(+), १३९१२, १४३४५, १६२५३, १६७०८-१, १७०९४ (२) अजितशांति स्तव-टीका, आ. गोविंदाचार्य, सं., गद्य, मपू., (अजितं अजितनामानं), १४६८३(+) (२) अजितशांति स्तव-बोधदीपिका टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., ग्रं. ७४०, वि. १३६५, गद्य, मूपू., (अजितशांतिजिनाधिपयोः), १३९१२ (२) अजितशांति स्तव-अवचूरि @, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा चिदानंदमयं जिन), १७२५९(+) (२) अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अजितनाथ जीता छइ सर्व), १५२६१(+), १५४५१(+), १४३४५, १६७०८-१ (२) अजितशांति स्तव-अजितशांति स्तुति , संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (विवंगइकलकलसाणवि), १७२१७-२ अजितशांति स्तवलघ-अंचलगच्छीय, क. वीर गणि, प्रा., गा. ८, पद्य, मपू., (गब्भ अवयार सोहम्मसुर), १३९५७-६(+) अजैन सुभाषित , सं., पद्य, वै., (--), १६२५१-२ अतीतअनागतवर्तमानजिन स्तव, सं., श्लो. ५, पद्य, म्पू., (येतीता वर्तमाना), १४१४४-६(+) For Private And Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ अधिकमास फल, सं., श्लो. ६, पद्य, श्वे., (द्वि कार्तिके मध्यम), १४२६१-३ अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., अधि. १६, श्लो. २७२, पद्य, मूपू., (जयश्रीरांतरारीणां), १५७७६, १६२७४, १४६१७(६) (२) अध्यात्मकल्पद्रुम-शांतरसवर्णन, मा.गु., ग्रं. १८५०, गद्य, मूपू., (अहो भव्य जीवो सदाकाल), १५२९८ अध्यात्मबिंदुद्वात्रिंशिका, मु. हर्षवर्द्धन, सं., श्लो. १२८, पद्य, मूपू., (ब्रूमः किमध्यात्ममहत), १६३४६ (२) अध्यात्मबिंदुद्वात्रिंशिका-स्वोपज्ञ व्याख्या, मु. हर्षवर्द्धन, सं., गद्य, मूपू., (वयमध्यात्ममहत्वं), १६३४६ अध्यात्मसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., प्रबं. ७, श्लो. ९४९, पद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिनतः श्रीम), १५३०२ अनंतचतुर्दशी पूजा, मु. ब्रह्मशांतिदास, मा.गु.,सं., प+ग., दि., (आह्वयामि अरिहंत), १४९९७(+) अनानपूवी, सं., गद्य, जै., (--), १६२०२-२ अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ३३, ग्रं. १९२, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० नवमस्स), १४८६३(+), १६४२९(+), १४६८०, १४७११, १५४३५, १६११४, १६९११, १७२६६ (२) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., वि. १२वी, गद्य, मूपू., (अथानुत्तरौपपातिकदशा), १६४२९(+) (२) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काल चउथाआराने), १४८६३(+), १६४२९(+), १४७११, १५४३५, १६९११, १७२६६ अनुपानमंजरी, आ. विश्रामाचार्य, सं., समु. ५, वि. १८४३, पद्य, जै., (यस्य ज्ञानमयी), १५९६५(+) (२) अनुपानमंजरी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, जै., (जे प्रभुनी ज्ञानमयी), १५९६५(+) अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षित, प्रा., गा. १६०४, प+ग., मूपू., (नाणं पंचविह), १६१६१(+), १७२७८(+), १६०९३ (२) अनुयोगद्वारसूत्र-टबार्थ@, मा.गु., गद्य, श्वे., (ना० ज्ञान पंच प्रकार), १६१६१(+), १७२७८(+) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-बालावबोध, ऋ. मोहन ऋषि, मा.ग., गद्य, मप.. (प्रणिपत्य जिन).१६०९३ अनेकांतजयपताका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अ. ६, ग्रं. ३७५०, गद्य, मूपू., (जयति विनिर्जितरागः स), <प्रतहीन>. (२) अनेकांतजयपताका-स्वोपज्ञ टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. ८२५०, गद्य, मूपू., (स्वपरोपकृतये अनेकांत), १५०७२(+$) (२) अनेकांतजयपताका-उद्योतदीपिका टीका, आ. मुनिचंद्रसूरि, सं., ग्रं. २०००, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (शेषमतिमतिशयाना), १५१०३ अनेकांतमंजरी, सं., अधि. ३, पद्य, मपू., (शब्दांभोधिर्यतोनंतः), १४२२१ अनेकांतवादप्रवेश, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. ७३०, प+ग., मूपू., (जयति विनिर्जितरागः), १४१९१, १५०४४ अनेकार्थध्वनिमंजरी, सं., अधि. ३, पद्य, मूपू., (शुद्धवर्णमनेकार्थं), १६२९३-१ अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (अनंतविज्ञानमतीत), १४१४५-१८(+), १४५१२($) (२) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका-स्याद्वायजरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., श. १२१४, गद्य, मपू., (यस्य ज्ञानमनंतवस्तु), १४५१२(5) अपूर्वकरणदृष्टांतद्वय गाथासप्तक, प्रा., गा. ७, पद्य, जै., (अपूरव करणे पधिक), १६५८५-२(+) For Private And Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४७३ अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., कां. ६, ग्रं. १४५२, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्यार्हतः), १४६३९(+$), १४७३६(+#), १५२४२(+६), १५५३७(+5), १५८७९(+), १३९२५, १७२७०, १४५२२(६), १४६६२(६), १७२०७(s) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-वृत्ति, वा. वल्लभ वाचक, सं., वि. १६६७, गद्य, मूपू., (श्रीमदर्हतमानम्य), १३९२५ (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १२१६, गद्य, मूपू., (धर्मतीर्थकृतां वाचां), १५८७९(+) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-अवचूरि@, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (सिद्धं प्रतिष्ठा), १४६३९(+$) अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (अगम्यमध्यात्मविदाम), १४१४५-१९(+) अर्हदास चरित्र, सं., गद्य, मूपू., (अस्मिन् जंबुद्वीपे), १४५५६ अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १०, पद्य, मूपू., (अर्हन्नामापि), १३९१४(#) अव्यवहाररासी निगोदस्वरुप, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (अव्यवहार स्वामि), १४२०८(5) अष्टकप्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अष्ट. ३२, पद्य, मूपू., (यस्य संक्लेशजननो), १६९३१ (२) अष्टकप्रकरण-वृत्ति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., ग्रं. ३३७०, वि. १०८०, गद्य, मूपू., (इह हि सुगृहितनामधेयो), १६९३१ अष्टप्राभृत, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., प्राभृ. ८, पद्य, दि., (काऊण नमुक्कारं जिणवर), १६९१६(६) अष्टमीतिथि स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सिद्धं विधत्ते चरण), १४४५९-१२ अष्टादशस्तवी, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., स्त. १८, वि. १४९७, पद्य, मूपू., (स्तुवे पार्श्व), १३९९२ (२) अष्टादशस्तवी-अवचूरि, आ. सोमदेवसूरि, सं., वि. १४९७, गद्य, भूपू., (बहुव्रीहरेकवचने), १३९९२ अष्टापदतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (वरधर्मकीर्तिऋषभो), १४१४५-११(+) अष्टापदतीर्थ स्तवन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (अष्टापदनगोत्तंसान), १४१४४-१३(+) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८६०, गद्य, मूपू., (शांतीशं शांतिकर्ता), १५४२९(+), १६९०८(+), १५३१५ अष्टाह्निकाव्रत कथानक, सं., श्लो. २६३, पद्य, मूपू., (सिद्धार्थे सिद्धये), १५७९० अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, आ. भद्रबाहुस्वामी, मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (नत्वा श्रीपार्श्व), १५३४२, १५५८८ आगमोद्धार विचार, आ. प्रद्युम्नसूरि, प्रा., श्लो. १०००, पद्य, मूपू., (पणयजण पूरिआसो), १४१६५ आचारदिनकर , आ. वर्द्धमानसूरि, सं., उद. ३६, प+ग., मूपू., (तत्त्वज्ञानमयो लोके),१६८७०(६) आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. २५, ग्रं. २६४४, प+ग., मप., (सुयं मे आउसं० इहमेगे), १४७८५(+), १५८६१(+), १६२१८(+), १६६१५(+$), १६७६७(+), १६७८८(+), १६११५, १४७६२, १५५७३($), १६७८५ (5) (२) आचारांगसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ३४६, पद्य, मूपू., (वंदितु सव्वसिद्ध), १६४९३ (३) आचारांगसूत्र-नियुक्ति की टीका #, आ. शीलांकाचार्य, सं., वि. ९१८, गद्य, मूपू., (तत्र वंदित्वा सर्व), १६५९३(#5) (२) आचारांगसूत्र-टीका # , आ. शीलांकाचार्य, सं., ग्रं. १२०००, वि. ९१८, गद्य, मूपू., (जयति समस्तवस्तु), १६५९३(#$) (२) आचारांगसूत्र-टबार्थ, ऋ. धर्मसी, मा.गु., ग्रं. १२५५४, गद्य, मूपू., (भगवंत श्रीसुधर्मा), १४७८५(+) For Private And Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ (२) आचारांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपु., (श्रीवीतरागने नमस्कार), १५८६१ (५) १६२१८* १६६१५ (+३), १६७६७), (+), १६७८८(*) (२) आचारांगसूत्र - बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीश), १४७६२, १६७८५ (३) आणंद श्राद्ध संधि, मु. विजयचंद, प्रा., गा. ७५, पद्य, मूपू., (सिरि वीर जिणिंदह), १६७७९-२ आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ७१, प+ग., मूपू., (देसिक्कदेसविरओ), १४८६० आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., गा. ३०, पद्य, म्पू., (अरहंता मंगलं मज्झ), <प्रतहीन. (२) पंचमंगल पाठ, संबद्ध, प्रा., गा. ८, पद्य, मृपू., (अरिहंत मंगल मज), १७२९२-२ आत्मशिक्षा प्रकरण, वा. सकलचंद्र, प्रा., श्लो. १६७, पद्य, मूपू., (सिद्धत्थ सुअं सिद्धं), १४३०१ आत्मानुशासन, मु. गुणभद्र, सं., श्लो. २७१, पद्य, दि., (लक्ष्मी निवास निलयं), १४६८९, १६३०१ ($) (२) आत्मानुशासन- (पु.हि.) बालावबोध, पंडित. टोडरमल, पुहिं., गद्य, दि., (श्रीजिनशासन गुरु नमी), १४६८९, १६३०१ (३) आदिजिन चैत्यवंदन, सं. श्री. ४, पद्य, मूपू., (श्रीमद्युगादिदेवाय), १५२९२-११ " आदिजिन बाल्यकाल वर्णन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (मासेन मासे रमणप्रवास), १४४९३-३ आदिजिन मंत्र- सर्वमनोरथ सिद्धिकर, सं., गद्य, जै.?, (ॐ नमो वृषभनाथ मृत्य), १५७९७-१(+) आदिजिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., ( जयश्रियामेकपदं ), १४१४९-३(+) आदिजिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (श्रेयसां पद जिनेंद्र), १४१४९-२(+) आदिजिन स्तव, सं., श्लो. ८, पद्य, मृपू., ( नमोस्तु नाभेयसुभाव), १४१४५ - २३+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन-अर्बुदाचलमंडन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (अर्बुदाद्रौ युगादीशं), १४१४४-११ (+) आदिजिन स्तवन- समतामुखलतागुणगर्भित, वा. सकलचंद्र, प्रा., मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपु., (विचुहारियामयदिडि), १४३४१-३, १५६०१-१० आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (आनंदानम्रकम्रत्रिदशप), १५५३३-२६(+) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (मनसिरमाधामाधामा धामा), १४१४५-२६(+) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सुवर्णवर्णं गजराजगाम), १७०७१-२ आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., गा. ४, पद्य, म्पू., (वरमुक्तिवहार सुतार), १४०५९-१५ आदिजिन स्तुति-चतुर्थीतिथि, सं., श्लो. ४, पद्य, मृपू., (उद्यत्सारं शोभागार), १५५३३-२३(+) आदिनाथदेशनोद्धार, प्रा., श्लो. ८८, पद्य, मूपू., (संसारे नत्थि सुहं), १५५५७-३ (+), १५६८१ - ३(+), १६२४१, १६५८९(s) (२) आदिनाथदेशनोद्धार - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसारमांहि नथी सुख), १५५५७ - ३ (+), १६२४१, १६५८९($) आप्तमीमांसा, आ. समंतभद्र, सं., श्लो. ११५, पद्य, दि., (देवागमनभोयानचामरावि), १५०६० (+) (२) आप्तमीमांसा - अष्टशतीभाष्य, आ. अकलंकदेव, सं., ग्रं. ८००, गद्य, दि., (उद्दीपीकृतधर्मतीर्थम), <प्रतहीन>. (३) आप्तमीमांसा अष्टशतीभाष्य की अष्टसहस्रीटीका, आ. विद्यानंदस्वामी, सं., ग्रं. ८०००, गद्य, दि., (श्रीवर्द्धमानमभि), १५०६०(+) (४) आप्तमीमांसा की अष्टशतीभाष्यटीका का टिप्पण, सं., पद्य, दि., ( विद्यानंदसूरिणा ननु), १५०६०(+) For Private And Personal Use Only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७५ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., विम. ५, ग्रं. ४६०, वि. १३वी, पद्य, स्पू., (ॐ नमः सकलारंभसिद्धि), १५५४०(5) (२) आरंभसिद्धि-सुधीशृंगारवार्तिक, ग. हेमहस, सं., वि. १५१४, गद्य, मूपू., (शं सुखाय भवतीत्येवं), १३९७९(+) (२) आरंभसिद्धि-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अर्हाणां पूज्यानां), १५५४०(६) आराधनासार, आ. देवसेन, प्रा., गा. ११५, वि. ९९०, पद्य, दि., (विमलयरगुणसमिद्धि), १४१७७ (२) आराधनासार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, दि., (प्रथम पहिलो सिद्धनें), १४१७७ आरामशोभा कथानक, सं., गद्य, मूपू., (सद्धर्ममूलसम्यक्त्व), १४६१९(६) आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., गद्य, दि., (गणानां विस्तर), १४१७१-१(+) आवश्यकसूत्र, प्रा., अध्य. ६, सू. १०५, प+ग., मूपू., (णमो अरहताणं० सव्वसा), १६६३८(+), १५८७६() (२) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २५५०, ग्रं. ३१००, पद्य, मूपू., (आभिणिबोहियनाणं), १५२३०-२(+), १६२१९-११(+), १६१७६-२, १५३८७-२, १६३८६, १५८७६(5) (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., गा. २५३, पद्य, मूपू., (अवरविदेहे गामस्स), १५८७६(६) (४) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (--), १५८७६(5) (४) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (--), १४४६३(+$) (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. २२०००, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), १५८७६ (६) (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., वि. १४४०, गद्य, मूपू., (--), १४४६३(+$) (२) आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. २२०००, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), १५८७६(5) (२) आवश्यकसूत्र-अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., वि. १४४०, गद्य, मूपू., (प्रेक्षावतां प्रवृत), १४४६३(+$) (२) आवश्यकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १६६३८(+) (२) आवश्यकसूत्र-कथा संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (नवकार इक्कखरेणं पाव), १७१३९(+$), १५१३३(5) (३) आवश्यकसूत्र-कथा संग्रह का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नवकारमंत्रना अख्यर), १५१३३(६) (२) चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), <प्रतहीन>. (३) चैत्यवंदनसूत्र-ललितविस्तरा वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. १५४५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य भुवनालोकं), १६४७८ (२) आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), १७१३९(+$) (३) षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतने नमस्कार), १७१३९(+$) (२) आवश्यकसूत्र-सामायिक पारने की विधि, संबद्ध, मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम खमासमण देई), १४९९२-१९ (२) आवश्यकसूत्र-सामायिक लेनेकी विधि, संबद्ध, मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम वस्त्र उतारी), १४९९२-२० (२) कायोत्सर्ग १९ दोष, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (घोडानी परि एकई पगि), १४३५०-४ (२) गुरुवंदनसूत्र-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (इच्छा० संदि० अब्भुट), १५३०८-२(+), १४९६३-२, १४९६६-२ (२) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), १४८२७, १७१४६ (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० जयउ), १४८२५ (#$) For Private And Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७६ (३) श्रावकअतिचार-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणंमि दंसणम्मिअ), १६५५८-१ (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, मृपू., ( नमो अरिहंताणं), १६३३३(३) (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र - तपागच्छीय अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (आदी सूत्रलक्षणं), १६३३३(३) १) पगाम सज्झायसूत्र संबद्ध, प्रा. सू. २१, गद्य, भूपू., (करेमि भंते० चत्तारि०), १५५५५ (+), १६१९२०) १४८१२, ., १४८१६, १६४८१-२, १६७४५-२, १६७७०-१, १६९७२, १७०६२ (३) पगामसज्झायसूत्र-अर्थनिर्णयकौमुदी टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., वि. १३६४, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीवीरजिनं), कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ १५५५६०) (३) पगामसज्झायसूत्र- लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., ग्रं. २९६, गद्य, मूपू., ( श्रीवीरजिनाधिपतिं), १६४८१-२ (३) पगामसज्झायसूत्र - टवार्थ, आ, ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., वि. १७४९, गद्य, मूपु., (ऍनत्वा पार्श्वनाथ), १४८१२, १४८१६, १६९७२, १७०६२ (३) पगामसज्झायसूत्र - टवार्थ, पंन्या. सुमतिविजय, मा.गु., गद्य, म्पू., (नत्वा श्रीमहावीरं ), १६१९२ (+) " (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपु. ( इच्छाकारेण संविसह ), १४५६४-४, १६०६८-३ (२) प्रतिक्रमणगर्भहेतु, संबद्ध, आ. जयचंद्रसूरि, प्रा.,सं., वि. १५०६, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १६११६, १५९५५ ($) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., ( देवसिय आलोय पडिकंत्त), १५११०-१० (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मयाचंद, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (कर पडिकमणुं भावशुं), १४९१४-९ (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे. मू. पू. @, संबद्ध, प्रा., मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., ( नमो अरिहंताणं नमो ), १५१६६-१(+#), १६६९२(*), १४९९२ १ १५७६२, १५१८५-११) (३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - श्वे. मू. पू. - टबार्थ@, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे वीतरागदेव तुमे), १६६९२(+), १५७६२ (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- श्वेतांबर@, संबद्ध, प्रा., सं., प+ग., म्पू, नमो अरिहंताणं० करेमि ), १६८३८(+), १५४४४ (३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - श्वेतांबर टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीगुरुदेवजीकुं), १६८३८ (+), १४८०१ (३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - श्वेतांबर - बालावबोध@, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंतनइ नमस्कार), १५४४४ " (२) प्रतिक्रमणहेतुगर्भित स्वाध्याय, संबद्ध, उपा, यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १९, वि. १७४४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर प्रणमी), १५४२१, १७०४९ (२) प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, भूपू., ( उग्गए सुरे नमुकारसिय), १५१९६-३ (+), १५७२७(5) (३) प्रत्याख्यानसूत्र- टवार्थ@, मा.गु., गद्य, भूपू (सूर्यनइ उदये वै घटिक), १५७२७१४) " (३) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (दो चेव नम्मोकारे), १५३६५-२ (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., म्पू., ( नमो अरिहंताणं नमो ), १७१८३ (३) भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (भरहेसर बाहुबली अभय), १५१६६ - ३३ (+#), १४०५८-३, १५३२०-२, १५२२४३) For Private And Personal Use Only (४) भरहेसर सज्झाय-वृत्ति, ग. शुभशील, सं., अ. २, वि. १५०९, गद्य, मूपू., ( युगादौ व्यवहाराध्वा), १५२२४(s), १५२३३($) (२) वंदितुसूत्र संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (वंदितु सव्वसिद्धे), १५२४७(+), १६७२८(+), १४३५०-३, १५१६९-१, १६२३७-१, १६७४५-१ Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ (३) वंदित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., अधि. ५, ग्रं. ६६४४, वि. १४९६, गद्य, मूपू., (जयति सततोदयश्रीः), १५२४७(+) (३) वंदित्तुसूत्र - टबार्थ@, मा.गु., गद्य, मूपू., ( वंदितु क० वांदीने), १६७२८ (+), १६२३७-१ (३) वंदित्सूत्र - बालावबोध, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., ( सर्व तीर्थंकरने ), १५१६९-१ (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र (श्वे. मू. पू.), संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहं० सव्वसाहूण), १४६०५ (+$), १६५९४(+), १६९०१(०), १४३५०-१ (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइ नमस्कार हुआ), १६५९४(+$), १६९०१(+) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - विवरण, सं., गद्य, मूपू., (--), १४६०५ (+$) (३) श्रावक पाक्षिक अतिचार तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, भूपू., (नाणंमि दंसणंमि०), १६२५९(*), १६२८४(*), १६७२३(०), १४५२१, १४५७४, १५३०६, १५८६५-१, १५८९५ १५९३७, १५९४५, १६०२३-१, १६१७०, १६२६८, १६५४६, १६५५३, १७०२७, १७१८७, १६०५९ १ १६५९२३) १६५६२ (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- उपकेशगच्छीय, संबद्ध, प्रा.सं., प+ग, भूपू., ( नमो अरिहंताणं नमो ), १५६५३ (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - उपकेशगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (माहरु नमस्कारु), १५६५३ , (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, भूपू (णमो अरिहंताणं णमो ), १५४९५, १६७९८-१(७) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र -तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. प+ग, भूपू., ( नमो अरिहंताणं० पंचिद), १५८२८ (३) १५९६२(७), १६४१७(+), १६४१९(+), १५११०-१, १५२८६-१, १५३९८, १५९५१, १६१५८, १६३०९, १६०६९(३), १६४८३(३), १६९४१ (४) १७००६(३), १७०३४३) १४४३१ ४७७ (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू., (माहरउ नमस्कार अरिहंत), १५८२८ (+३) १५९६२ (+8), १५९५१, १६१५८, १६३०९, १४५०२६), १६०६९(६), १७०३४(४) , (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय- बालावबोध, मु. जिनविजय, मा.गु., वि. १७५१, गद्य, मूपू., ( बार गुणे करि सहित), १५८२८(०४), १५३९८ (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - तपागच्छीय - कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., ( भरतक्षेत्रे पोतनपुर), १५९६२ (+$), १५३९८ (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - तेरापंथी, संबद्ध, प्रा., वि. १९वी, प+ग., मूपू., ते., (नमो अरिहंताणं नमो), १५१९६-२(+) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, भूपू., स्था., ( नमो अरिहंताणं० तिखुत), १६८२७ (+३), For Private And Personal Use Only (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू., स्था., ( नमस्कार हो कर्मरूप), १६८२७(+३), १४४३१(३) (२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० करेमि), १५३६५-१ (२) साधु प्रतिक्रमणसूत्र - तेरापंथी, संबद्ध, प्रा., प+ग. म्पू, ते., ( इच्छामि णं भंते ), १५१९६-१ (+), १६८०४(क) " " (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र - तेरापंथी - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ते., (वांछु छु हे भगवान), १६८०४(+) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग, मूपू., (णमो अरिहंताणं० आवस्स), १६९६८ (२) साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह थे.मू. पू., संबद्ध, प्रा., प+ग, मृपू., ( नमो अरिहंताणं नमो ), १६४५१ (१), १६८९० (+), १५७६७-१, १५३५५ ($) Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनवरेंद्रान्), १६४५१(+) (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आवसही कहेतउ सावधान), १६८९०(+) (३) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., आला. ४, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो पियं), १४५९०-२(+), १५३०८-३(+), १५६४६-२(+), १५७६०-२(+), १६२१०-२(+), १६८४२-२(+), १६९४०-२(+), १७१६६-२(+), १४९६३-३, १५१५५-२, १५८४०-२, १५९९९-२, १६०६८-२, १६४७०-२, १६७७०-२, १७१७७-२, १४५२६-२(), १४९६६-३(६), १५५०४-२(s) (३) पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., मूपू., (तित्थंकरे य तित्थे), १५२८३(+), १५३०८-१(+), १५६४६-१(+), १५७६०-१(+), १६२१०-१(+), १६३८८(+), १६८४२-१(+), १६९४०-१(+), १७१६६-१(+), १४५२६-१, १४८०१, १४९६३-१, १४९६६-१, १५१२५, १५१५५-१, १५८४०-१, १५९९९-१, १६०६८-१, १६४७०-१, १७१७७-१, १५५०४-१(६), १५६१४(६), १६२९२(६), १६४६६(६) (४) पाक्षिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनं नत्वा), १६१९५(+) (३) साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सयणासणन्नपाणे), १५३०८-४(+) (३) साधुपाक्षिकअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणम्मि दंसणम्मि०), १५६६०, १५७५९ (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), १४५०२(६), १५५९४-१(5) (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., स्था., (नमो अरिहंताणं०), १६५३५-१(+), १६७४६(+), १६१४६ (३) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., स्था., (नमस्कार हो कर्मरूप), १६५३५-१(+), १६१४६ (३) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, स्था., (श्रीअणुयोगद्वारमध्ये), १६५३५-१(+) आश्चर्ययोगमाला, मु. गुणाकर भिक्षु, सं., सू. १४०, वि. १२९६, गद्य, मूपू., (गुर्वाभिप्राय समुद्र), १५५९९ इंद्रियपराजयशतक, प्रा., गा. १००, पद्य, मूपू., (सुच्चिअ सूरो सो), १४६३२(+), १५५५७-१(+), १५६८१-१(+) (२) इंद्रियपराजयशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (तेहिज सूर तेहिज), १४६३२(+), १५५५७-१(+) इरियावही कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (चउदस पय अडचत्ता तिगह), १४०६९-२, १४३१७-१ (२) इरियावही कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चौदह नारकी ४८ तीर्यच), १४३१७-१ ईर्यापथिकीषविंशिका कुलक, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (पणमिअजिणवर वीरं), १५०७८, १६०५८-१ (२) ईर्यापथिकीषत्रिंशिका कुलक-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., ग्रं.७४७, गद्य, मूपू., (प्रणम्यात्मविदं वीरं), १५०७८, १६०५८-१ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्य. ३६, ग्रं. २०००, प+ग., मूपू., (संजोगाविप्पमुक्कस्स), १४३१४-१(+), १४४२९(+६), १४४६७(+$), १४५५४(+8), १४५८७(+S), १४६१५(+S), १४७५६(+), १४७७८(+६), १४८०५(+5), १५८५३(+5), १५८७२(+$), १६६७६(+), १६७७८(+$), १७०४६(+$), १४६९८, १५९८०, १६३८१, १६७८७, १४८३१, १५६१७, १५५५९(६), १७२०३() For Private And Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) उत्तराध्ययनसूत्र- अधिरोहिणी वृत्ति, मु. भावविजय, सं. ग्रं. १४२५५, वि. १६८९, गद्य, भूप, (ॐ नमः सिद्धि), १४४६७(१४), १५९८० (२) उत्तराध्ययनसूत्र - लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, मूपू., (भिक्षो विनयं प्रादुष), १४६१५ (+$) (३) उत्तराध्ययनसूत्र - लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (भिक्षु महात्मानइ), १४६१५ (०६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा लघुटीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., ग्रं. १२०००, वि. ११२९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य विघ्नसंघात), १४७५६०) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., ग्रं. १५३००, वि. १८, गद्य, मूपू., (अर्हतो ज्ञानभाजः), १४७७८(+), १७०४६(४) (२) उत्तराध्ययनसूत्र- अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (संजोगा० संयोगान्), १४४२९ (+), १४५५४(+$), १४७५६ (+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., ( वर्द्धमानजिनं नत्वा), १४३१४-१०) (२) उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ @), मा.गु., गद्य, मूपू., (संयोग वे प्रकारे), १४८०५ (+), १५८५३(+), १५८७२(+३) १६६७६ (+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थकथा संग्रह, मु. पार्थचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (पूर्वसंजोग मातापिता), १४५८७•8) (२) उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह@, मा.गु., गद्य, वे., (एक आचार्यनई एक चेलो), १५८५३(+३), १७२०३(३) (२) उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह@, सं., पद्य, म्पू., (), १६३७३(+४), १७०४६(+६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र - गाथासंख्या, प्रा., गद्य, मूपू., (--), १४३१४-२ (+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र का हिस्सा १९वां मृगापुत्र अध्ययन, प्रा., गा. ९९, पद्य, मूपू., (सुग्गीवे नयरे रम्मे), १६४४७(+) (३) उत्तराध्ययनसूत्र का हिस्सा १९वां मृगापुत्र अध्ययन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुग्रीवनामा नगर रमणी), १६४४७(+) (३) उत्तराध्ययनसूत्र का हिस्सा १९वां मृगापुत्र अध्ययन - कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (सर्व सगलाई मन वचन ), १६४४७ (+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र का हिस्सा सामाचारी अध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ५३, प+ग, मूपू., (सामायारी पव्वक्खामि), १६१५३(०) (३) उत्तराध्ययनसूत्र का हिस्सा सामाचारी अध्ययन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू., (पंचवीसमि अध्ययनि), १६१५२(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-गीत, संबद्ध, उपा. राजशील, मा.गु., गी. ३६, पद्य, मूपू., (सरसति मति अति निरमली), १४१५६, ४७९ १७२४७ (२) उत्तराध्ययनसूत्र- विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, वा. उदयविजय, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (पवयणदेवी चित्तधरीजी), १४१५७, १६१६९, १४५३६ - १०, १४९५८ ($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, मु. ब्रह्म, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (अमीयसमाणी वाणी वरसता), १५२३८ उदयदीपिका, उपा. मेघविजय, सं., प्रक. १२, गद्य, मूपू., (नत्वार्हतं पार्श्व), १५१०६(+) उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., गा. ५४४, पद्य, मृपू., (नमिऊण जिनवरिये इंद), १४७४४(*), १४७८३(+), १५१३५०), १६४००(*), १६९५०, १७१४४, १७३००, १४५०५ (४) १४६२६(१), १४६४१(३), १५४४६ -१(३) 9 (२) उपदेशमाला - वृत्ति, ग. रामविजय, सं. ग्रं. ७६०० वि. १७८१, गद्य, म्पू., ( श्रेयस्करं कामितदानद), १६९५० , (२) उपदेशमाला - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा जिनवरेंद्रान), १५४४६ - १($) (२) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहीइ नमीनइ), १४७४४(+), १४७८३(+), १६४०० (+), १४६२६ ($) For Private And Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ (२) उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., वि. १७१३, गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनइ जिण), १५१३५(+) (२) उपदेशमालागणवानी विधि, संबद्ध, मा.ग..गद्य, मप.. (उभय काल पडिक्कमण), १७२३२-२(+) (२) उपदेशमाला गाथा शकुन, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सच्चं भासइ अरिहा), १५४४६-२ (३) उपदेशमाला गाथा शकुन जोवानी विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपदेसमालानी गाथाना), १५४४६-२ उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (उवएसरयणकोसं नासिअ), १५४६४-१, १६२३८-२ (२) उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (उपदेशरूप रतन तेहनो), १५४६४-१ (३) उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (भगवंत श्रीमहावीरने), १६२३८-२ उपदेश संग्रह, सं., श्लो. ४३९, पद्य, मूपू., (प्रणम्य पुण्यपद्मा), १५७६१-१(+) उपदेशसार, ग. कुलसार, सं., उप. ५९, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (यत्कल्याणकरोवतारसमय), १७००७ (२) उपदेशसार-वृत्ति, सं., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० मंगल), १७००७ उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पहिलुं नवकारर्नु), १६०००, १५९७३-१७६६) उपमितिभवप्रपंचा कथा, ग. सिद्धर्षि गणि, सं., अ.८ प्रस्ताव, ग्रं. १६०००, वि. ९६२, पद्य, मपू., (नमो निर्नाशिताशेषमहा), <प्रतहीन>. (२) उपमितिभवप्रपंचा कथा-हिस्सा विमल स्तुति, ग. सिद्धर्षि गणि, सं., श्लो. ३५, वि. ९६२, पद्य, मूपू., (अपारघोरसंसारनिमग्न), १४१४५-१०+) (२) धर्मजिन आत्मज्ञानप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मा.गु., गा. १३८, वि. १७१६, पद्य, मूपू., (चिदानंद चित चिंतवू), १४०९४, १४४१७ उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, ग्रं. ८१२, प+ग., मूपू., (तेणं० चंपा नामं नयरी), १५४४५(+), १५४९०(+), १६२१५(+), १६४०७(+), १६८९४(१), १४७७१, १४८८०, १५८३३, १६३०४, १४५४३(६) (२) उपासकदशांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., वि. १११७, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १५४९०(+), १६८९४(+), १४३५१, १६०३४, १६६२५(#) (२) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., वि. १६९३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), १६२१५(+) (२) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १६४०७(+), १४७७१, १४८८०, १५८३३, १४५४३(5) (२) उपासकदशांगसूत्र-विषमस्थल टिप्पण, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपासगदसा० सातमा अंग), १५४४५(+) (२) उपासकदशांगसूत्र-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १४५४३(5) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (उवसग्गहरं पासं पास), १४९९२-११ (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की टीका@, सं., गद्य, मूपू., (अहो भव्या अहं), १४६२७-२ (२) उवसग्गहर स्तोत्र-भंडारगाथा, संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (ॐ णट्ठमयठाणे), १३९५९-२ (३) उवसग्गहर स्तोत्र-भंडारगाथा की विधि, संबद्ध, मा.ग..गद्य. मप.. (प्रथम शभ मास लिजे). १३९५९-२ ऋतुसंहार, कालिदास, सं., स. ६, पद्य, वै., (प्रचंडसूर्यः स्पृहणी), १५५४२(+) (२) ऋतुसंहार-टीका, आ. अमरकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., वै., (कविः श्रृंगाररसम), १५५४२(+) ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा., गा. ५०, वि. ११वी, पद्य, पू., (जयजंतुकप्पपायव चंदाय), १५८१६, १६३४७, १७०८२ For Private And Personal Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४८१ (२) ऋषभपंचाशिका-टीका, आ. प्रभानंदसूरि, सं., गद्य, मूपू., (जयत्ति व्याख्या हे), १५८१६, १६३४७, १७०८२ ऋषिदत्तासती कथा, सं., गद्य, मूपू., (शीलं नाम नृणां), १६१४०-२ ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २०९, ग्रं. २५९, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (भत्तिब्भरनमिरसुरवर), १६३७५(+), १४३३५, १६१५६, १६३८४ (२) ऋषिमंडल प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्ति घणी करी नम्या), १६१५६ (२) ऋषिमंडल प्रकरण-टिप्पण, सं., वि. १६वी, गद्य, मूपू., (अहं कर्ता तं बाहुब), १६३७५(+) ऋषिमंडल मंत्र कल्प, मु. गुणनंदि मुनींद्र, सं., ग्रं. ३८०, प+ग., दि., (प्रणम्य श्रीजिनाधीशं), १५८३१-१(+) ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ९२, ग्रं. १५०, पद्य, मूपू., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्य), १३९६७(+), १४०६५-२(+), १७०९८ (२) ऋषिमंडल स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (आदिको अक्षर अंतको), १३९६७(+) (२) ऋषिमंडल पूजा, संबद्ध, ग. शिवचंद्र, मा.गु.,सं., ढा. २४, वि. १८७९, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीपारस विमल), १४०३७ (२) ऋषिमंडल स्तोत्र-आम्नाय, संबद्ध, सं., गद्य, म्पू., (ॐ ह्रां हिँह), १५८३१-३(+) (२) ऋषिमंडल स्तोत्र-पूजाविधि, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रां अ० ॐ ह्रीं), १५८३१-४(+) (२) ऋषिमंडल स्तोत्र-यंत्र, संबद्ध, आ. सिंहतिलकसूरि, सं., श्लो. ३६, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमीशं), १५८३१-२(+) एकबहुजिन स्तोत्र, आ. धर्मघोषसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (देवेंद्रेरनिशं य), १४१४५-९(+) एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ६६, पद्य, मूपू., (चवण विमाणा नयरी जणया), १५१९८-१(+), १६७०१(, १५७८६, १६५१२, १६८५५, १६९३६, १७०७९ (२) एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मु. उत्तम, मा.गु., गद्य, मूपू., (केहा विमानेथी चव्या), १७०७९ (२) एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चोवीस तीर्थंकरना २१), १५१९८-१(+), १६७०१(+), १५७८६, १६५१२, १६८५५, १६९३६ एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., श्लो. २६, ई. ११वी, पद्य, दि., (एकीभावंगत इव मया), १५१८९(+), १४१२७-४ ओघनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ११६४, पद्य, मूपू., (अरहते वंदित्ता चउदस), १६१३२ औपदेशिक दूहा, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (रात्रुपर्तनिदिदेवा), १६८१९-२ औपपातिकसूत्र, प्रा., सू. १८९, ग्रं. १६००, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० चंपा०), १४३९१(+), १४६८७(+), १४७६०(+). १४७८१(+), १६१८४(+$), १६६३२(+), १६६०८ (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, पू., (वंदित्वा श्रीजिन), १४३९१(+), १४६८७(+), १६६३२(+) (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ, मु. राजचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्वा श्रीजिन), १४७८१(+), १६६०८ (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ@, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउथा आरानइ विषइ वरस), १४७६०(+) (२) औपपातिकसूत्र-विषमपद टिप्पण@, सं.,मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १६१८४(+) औषध संग्रह @, सं., पद्य, ?, (--), १५४६४-३, १५७८२-३ कथा संग्रह@, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (हिवे छ आरानु नाम), १५९०५-३ कनकदेव स्तुति, सं., पद्य, मूपू., (जिनपति नतभालः शब्द), १४४९३-७(5) For Private And Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ करुणावज्रायुध नाटक, क. बालचंद्र, सं., श्लो. १३६, पद्य, मूपू., (देवः पायादपायात्), १५००१(+) कर्णपिशाचनी मंत्र, सं., गद्य, श्वे., (ॐ ह्रीँ अहँ नमोजि), १४९८७-११ कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., श्लो. १७९, पद्य, मूपू., (कर्पूरप्रकरः शमामृत), १५६१२(+), १६३३१(+), १४३०८(s), १६८८६(5) (२) कर्पूरप्रकर-टीका, आ. जिनसागरसूरि, सं., वि. १५५१, गद्य, मूपू., (व्याख्यायां धर्म), १५६१२(+), १४३०८(६) (२) कर्पूरप्रकर-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (व्याख्याननी बेलाने), १६८८६() कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (सिरिवीरजिणं वंदिय), १४३०६-१(+), १४३०७-१(+), १४८०७-१(+$), १४८०८(+), १४८२३(+), १५२०२-१(+), १५२६२-१(+), १५४८२-१(+), १५६०३-१(+), १५९८७-१(+), १६२३२-१(+६), १६४३८(+), १६९५३-१(+), १७२१५-१(+), १५६५८, १७०७८-१, १५३०५(६) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रियाष्टप्रतिहार्य), १५९८७-१(+), १४१८२-१ (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., वि. १८०३, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनं वीरं), १५३०५() (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आचिरेयं नमस्कृत्य), १६९५३-१(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिन वांदी), १४३०६-१(+), १४३०७-१(+), १४८०७-१(+६), १४८०८(+), १४८२३(+), १५२६२-१(+), १६२३२-१(+5), १६४३८(+), १५६५८ (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान प्रति), १५२०२-१(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, रा., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिन प्रते), १६९८४(+), १५३४९-१ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४, पद्य, मूपू., (तह थुणिमो वीरजिणं), १४३०६-२(+), १४३०७-२(+), १४८०७-२(+), १५२०२-२(+), १५२६२-२(+), १५४८२-२(+), १५६०३-२(+), १५९८७-२(+), १६२३२-२(+), १६२६१-१(+), १६९५३-२(+), १७२१५-३(+), १७०७८-२ (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तथा वीरजिनं स्तुम), १४१८२-२ (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तह क० तिम हवे बिजा), १६२६१-१(+), १६९५३-२(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (बंध ते स्यु कहीयइ), १४३०६-२(+), १४३०७-२(+), १४८०७-२(+), १५२६२-२(+), १६२३२-२(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध@, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिम श्रीमहावीर प्रति), १५२०२-२(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १५३४९-२ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., व्याख. ९, ग्रं. १२१६, गद्य, मप्., (तेणं कालेणं० समणे), १४४४६(+), १४५५३(+$). १५८२(+$), १४७७७(+), १४७७९(+), १४८४९(+$), १५०७१(+), १५४५४(+$), १५४६३(+), १५५४१(+s), १५५७१(+$), १६२१६(+६), १६२२२(+), १६३३४+६), १६४६८(+), १६६१६(+), १६६५८+S), १७२७६(+), १७२७९(+), १७२८०(+), १७२९५(+$), १४६९४, १४७८६, १४७९८, १४८८१, १५००२,१६४६०, १७२७७, १६०५६, १६६२६-२, १४६५२(७), १४८४१(#), १५३९६($), १५६१५-१(६), १५७०४(६), १५७७०(६), १५८१०(६), १६१८१(६), १६४२७($) (२) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., ग्रं. ४१०९, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानस्य), १४५५३(+६), १४५८२(+$) (२) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., ग्रं.७७००, वि. १६८५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योतिः), १७२८०(+), १४८१३, १६६२६-२ For Private And Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८३ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (३) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका का बालावबोध @, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीमन्महावीर), १४८१३ (२) कल्पसूत्र-टीका @, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेष), १६४६८(+), १६६१६(+), १७२९५(+६), १५७७०(5) (२) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय , सं., ग्रं. ६५८०, वि. १६९६, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमश्रेयस्कर), ___ १४४४६(+) (३) कल्पसूत्र-कल्पसुबोधिकाटीका का हिस्सा गणधरवाद वक्तव्यता, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, मूपू., (वेदपदानि च विज्ञान), <प्रतहीन>. (४) गणधरवाद-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे श्रीमहावीर), १६११०, १७०८८ (२) कल्पसूत्र-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइ माहरो), १४७७७(+), १४७७९(+), १४८४९(+६), १५०७१(+), १५४५४(+६), १५५४१(+६), १५५७१(+$), १६२१६(+5), १७२७६(+), १७२७९(+), १४६९४, १४७८६, १४७९८, १४८८१, १६४६०, १७२७७, १५३९६(s), १५६१५-१(s), १५७०४६ (२) कल्पसूत्र-टबार्थ @, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरचरित्रबीज), १४५५३+६), १६६२६-२ (२) कल्पसूत्र-कल्पप्रदीप बालावबोध, मु. भानुविजय, मा.गु., वि. १७२४, गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्व प्रणिपत), १४७७९(+) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध, पं. कृपाविजय गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० इहां), १४७५३ (२) कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. खीमाविजय, मा.गु., वि. १७०७, गद्य, मपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), <प्रतहीन>. (३) कल्पसूत्र-बालावबोध-अनुवाद, पुहिं., गद्य, मूपू., (--), १४८०२(5) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध, आ. शांतिसागरसूरि, मा.गु., गद्य, पू., (प्रणम्य परमं ज्योतिः), १७१०८ (२) कल्पसूत्र-बालावबोध @, मा.गु.,रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं), १४७७७(+), १६०५६, १४६५२(६), १५८६९(s), १६१८१(६), १६४२७(5) (२) कल्पसूत्र-वार्तिक मांडणी, मु. लक्ष्मण, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० ॐकार), १४८१०(+) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यानकथा @, सं., गद्य, मूपू., (तत्रादौ श्रीऋषभदेव), १४८४९(45), १५०७१(+) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यानकथा @, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), १५४५४(+$), १५५७१(+$), १६२१६(+$), १६३६२(+$), १७२७६(+), १७२७९(+), १६४६०, १७२७७, १५३९६ (६), १५६१५-१(s), १५७०४(६) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जयति जगदेकचक्षुः कमल), १६१८३(+) (२) कल्पसूत्र-कथा संग्रह @, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (बलदेव बलिदेव वासुदेव), १५५४१(+5), १६६१६(+) (२) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं तेणं समय), १६५०४ (३) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन-टीका, सं., गद्य, मूपू., (तस्मिन् काले तस्मिन्), १६५०४ (२) कल्पसूत्र-नवव्याख्यान सज्झाय, संबद्ध, मु. माणेक, मा.गु., सज्झा. ११, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण आवीया), १५३६३ (२) कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहँत भगवंत उत्पन्न), १४५८३(+), १५८२५, १५८६४, १६६९५() (२) कल्पसूत्र-भास, संबद्ध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. १७, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति ध्याउं), १५६४१(६) कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जति णं भंते समणेणं०), १५५३४-२(+), १६३२४-२(+), १४८११-२, १६३८९-२, १७२६७-२, १६६३३-२(#) (२) कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जौ हे भगवंत समण०), १५५३४-२(+), १४८११-२ For Private And Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ (२) कल्पावतंसिकासूत्र-टिप्पण@, सं.,मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १६३२४-२(+) कल्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं०), १५५३४-१(+), १६३२४-१(+), १४८११-१, १६३८९-१, १७२६७-१, १६६३३-१(#) (२) कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागदेवने नमस), १५५३४-१(+), १४८११-१ (२) कल्पिकासूत्र-टिप्पण@, सं.,मा.गु., गद्य, श्वे., (--), १६३२४-१(+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (कल्याणमंदिरमुदारम), १४९३६(+), १५१४४(+), १५४५६(+६), १५४९७(+), १५५६९(+), १५८२७(+), १६६२१-२(+5), १६७८३-१(+#), १७१००(+), १३९५३-१, १४४९०-१, १४९९२-१५, १५१८१, १५६५२, १५८५०, १५८८९, १६१६८, १६४३४, १६६१८, १६८८४-२, १६८१५०) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, मु. कनककुशल, सं., ग्रं. ६५०, वि. १६५२, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्व), १५४९७(+), १६६२१-२(+$) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, मु. क्षमाविजय, सं., वि. १८४२-१८९०, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीमज्जिनाधीश), १७१००(+) (३) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका का अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हुं सिद्धसेननाम जे), १७१००(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, आ. गुणरत्नसरि, सं., गद्य, मप., (सर्वज्ञ जिनमानम्य), १६६१८ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अहं श्रीसिद्धसेन), १५५६९(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-अवचूरि @, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (रागादि शत्रूणां), १६४३४ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र- पद्यानुवाद चौपाई, क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४४, पद्य, मूपू., दि., (परमज्योति परमातमा), १४६९६-७, १५४८०-४ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (केहबुं छे कमल ते), १५८२७(+), १३९५३-१, १६१६८, १६८८४-२ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथजीरा चरण), १५४५६(+$), १६७८३-१(+#), १७१००(+), १५१८१, १५६५२, १५८५० (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-बालावबोध @, मा.गु., गद्य, मूपू., (किल इति संभावनायां), १६४३४ कल्लाणकंद स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (कल्लाणकंदं पढम), १५१६६-२(+#), १५५३३-१(+), १४४५९-९, १५२८६-७ कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (जह तुहदसणरहिओ कायठि), १५४१८(+) (२) कायस्थिति प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिन), १५४१८(4) कायस्थिति विचार, प्रा.,मा.गु., पद्य, श्वे., (जीव १ गई २ दिय ३), १५३२९ कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., ग्रं. ४४१, वि. १६६६, प+ग., मूपू., (प्रणम्य श्रीगुरुं), १४६७५(+), १७०१८(+) काव्यप्रकाश, आ. मम्मटाचार्य, सं., अ. १० उल्लास, प+ग., वै., (नियतिकृतनियमरहितां), <प्रतहीन>. (२) काव्यप्रकाश-सारदीपिका टीका, ग. गुणरत्न, सं., गद्य, मूपू., वै., (--), १४५३१(६) काव्यानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ. ८, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (अकृतिमस्वादुपदां), १३९२७($) For Private And Personal Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४८५ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) काव्यानुशासन स्वोपज्ञ अलंकारचूडामणिवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. ग्रं. २८००, वि. १२वी, गद्य, मूपु., (प्रणम्य परमात्मानं ), १३९२७ ($) (३) काव्यानुशासन- स्वोपज्ञ अलंकारचूडामणिवृत्ति का स्वोपज्ञ विवेक विवरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १२वी, गद्य, मूपू., (विवरीतुं क्वचिद्), १३९२८ कीर्त्तिकल्लोलिनी, पं. हेमविजय गणि, सं., अधि. ३, पद्य, भूपू., (ऐद्रं वृदममदमोद), १३९३२ कुमारपाल चरित्र, सं., श्लो. २२१, पद्य, भूपू (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १५५३८-१(+) कुमारपाल प्रबंध, उपा. जिनमंडन, सं., वि. १४९२, प+ग, मूपू., (ॐ नमः श्रीमहावीरजिन), १४५९६ (+$) कुमारसंभव, कालिदास, सं., स. १७, पद्य, वै., (अस्त्युत्तरस्या), १७२९८ (२) कुमारसंभव - शिशुहितैषिणीटीका, ग, चारित्रवर्द्धन, सं., स. ७, पद्य, मूषू., वै., (उत्तरस्यां कौबेयाँ), १४६१६ (5) कुलध्वजकुमार कथा, सं., श्लो. १६८, पद्य, भूपू (जंबूद्वीपाभिधे), १६३१३-२(५) १४२०६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुवलयमाला कथा, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., अ. ४, ग्रं. ३८९४, पद्य, भूपू (आदित्यवर्णं तमसः), १४६५९-१ (०३) कौमुदीमित्राणंद, आ. रामचंद्रसूरि, सं., अंक. १०, प+ग, मूपू., ( यः प्राप निर्वृतिं), १३८९८ क्षुद्रोपद्रवनिवारण विधि, मा.गु., सं., प+ग., मूपू., (अमृतरीजी पाखीपडीकमणा), १५५०७-२ क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपु. ( सर्वे यक्षांबिकाद्या), १५३०८-६) क्षेत्रपाल अधिष्टायक पूजा, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., ( क्षेत्रपालाय जज्ञा), १७१७३-२(+) गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., गा. १३७, पद्य, म्पू, (नमिऊण महावीरं), १६३८७-१, १७०८९ (२) गच्छाचार प्रकीर्णक- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मृपू., (नमिऊण कहीइ नमस्करी), १७०८९ गणधरवाद, सं., गद्य, भूपू., (अत्रान्तरे भगवन्), १६९४३ (०), १७०३२(*) (२) गणधरवाद-टबार्ध, मा.गु., गद्य, भूपू., (इण अवसरे केवलज्ञान), १६९४३ (+), १७०३२(+) गणधरसार्धशतक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. १५०, पद्य, मृपू., (गुणमणिरोहणागिरिणो), १६३७७(२) १४०६९-१ गणपतिजाप मंत्र विधिसहित, मा.गु., सं., गद्य, वै., ( ॐ नमो गंगा गणपत), १५१९७-७ गणितसार संग्रह, आ. महावीराचार्य, सं., अ. ८, प+ग, दि., (अलंघ्यं त्रिजगत्सार), १३९१०+) (२) गणितसार संग्रह टिप्पण, सं., गद्य, दि., ( मिथ्यादृष्टिभिः अनंत), १३९१०(+) गांधार कथानक, सं., गा. ३९, पद्य, मूपू., (सम्यक्त्व यत्नेन ), १६१४०-५ गायत्री मंत्र, सं., पद्य, वै., ( ॐ भुर्भुवः स्वः ॐ ), १६७८३-२(+#) गुणसुंदरी कथा, सं., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वं नमस्कृत), १६५४३ " गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि सं., श्लो. १३५, वि. १४४७, पद्य, मूपू., (गुणस्थानक्रमारोहहत), १४१६६-१(०), १४२०५०), १४५५९१), १७११५१, १४१६७, १४२०६, १७२३६ (२) गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., वि. १४४७, गद्य, मूपू., (अर्हं पदं हृदि), १४१६६-१(+), (२) गुणस्थानक्रमारोहप्रकरण-टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुणठाणनइ विषइ क्रमइ), १७२३६ - For Private And Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ (२) गुणस्थानक्रमारोह-बालावबोध, मु. श्रीसार, मा.गु., वि. १६९२, गद्य, मूपू., (सुरासुरनराधीश नमस्कृ), १४५५९(+), १७११५(+), १४१६७ गुणस्थान विचारगाथा, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (मिच्छे सासणमीसे), १५४८२-७(+) गुणानुराग कुलक, मु. जिनहर्ष, प्रा., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (सयल कल्लाण निलयं), १४९२७ (२) गुणानुराग कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (स० समस्त क० सुख तेहन), १४९२७ गुरुतत्त्वप्रदीप, सं., विश्रा. ८, श्लो. २४१, पद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरम), १५०८३ गुरुतत्त्वविनिश्चय, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., उल्ला. ४, गा. ९०३, पद्य, मूपू., (पणमिय पासजिणिंद), १४३८५ (२) गुरुतत्त्वविनिश्चय-स्वोपज्ञ टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., उल्ला. ४, गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिनतं नत्वा), १४३८५ गुरुनामगर्भाष्टकदलकमल स्तोत्र, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (रिरंसारससंसार रसासीर), १४१४५-२४(+) गौतम कुलक, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (लुद्धा नरा अत्थपरा), १५४६४-२, १५६८२, १५७७८, १६२३८-१, १४९७३ (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोभीया मनुष्य अर्थनइ), १५४६४-२ (२) गौतम कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीदेवगुरुन्), १५६८२, १४९७३ (२) गौतम कुलक-बालावबोध @, मा.गु., गद्य, मूपू., (लुद्धा० लोभी नरा), १५७७८, १६२३८-१ (२) गौतम कुलक-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (कलेस जे देशथी एहवो), १५६८२, १५७७८, १४९७३ गौतमपृच्छा, प्रा., गा. ६४, पद्य, मूपू., (नमिऊण तित्थनाह), १६२१९-३(+), १६४८७(+), १४८७८, १५२१०, १५६७७-१, १६४६१, १७०६५, १४८४६(#), १५६४०(१) (२) गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., ग्रं. १६८२, वि. १७३८, गद्य, मूपू., (वीरजिनं प्रणम्यादौ), १५२१० (२) गौतमपृच्छा-टीका @, सं., गद्य, मूपू., (यद्ज्ञानदर्पणतले), १५६४०(5) (२) गौतमपृच्छा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), १५६७७-१ (२) गौतमपृच्छा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा वीर जिन), १४८७८ (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध, उपा. क्षमामूर्ति, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिन), १४८४६ (#) (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. जिनसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा कहता नमीने), १४८७८ (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध@, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), १६४८७(+), १६४६१, १७०६५ (२) गौतमपृच्छा-कथा, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, मूपू., (एकस्मिन् ग्रामे एको), १५२१० (२) गौतमपृच्छा-कथा संग्रह @, मा.गु., कथा. ३५, गद्य, मूपू., (वसंतपुर नगरने विषे), १६४८७(+), १६४६१, १७०६५, १५६४०६) गौतमस्वामीजाप मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते श्रीगौतम), १३९५९-३ गौतमस्वामी स्तवन, आ. वज्रस्वामि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (स्वर्णाष्टाग्रसहस्र), १४०६१-३ गौतमस्वामी स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सर्वारिष्टप्रणाशाय), १६४८४-६(+) गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., (श्रीमंतं मगधेषु), १४१४५-३७(+) गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (इंद्रभूतिं वसुभूति), १६४८४-४(+), १४३४७-६ For Private And Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ग्रहदृष्टि श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, वै., (ज्ञार्केदु शुक्रात), १५६७१-२ (+) (२) ग्रहदृष्टि श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वै., (सूर्य चंद्र बुध शुक), १५६७१ - २ (+) ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (जगद्गुरुं नमस्कृत्य), १३९५१-१८, १५२९२-१० घंटाकर्ण कल्प, मा.गु., सं., गद्य, वे., (प्रणम्य गिरिजाकांतं), १५९४० ($) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रा., प्राभृ. २०, ग्रं. १८५४, पद्य, म्पू, नमो अरि० जयति नवणलिण), १६८२३(*) (२) चंद्रप्रज्ञमिसूत्र - टवार्थ@, मा.गु., गद्य, मूपु. ( श्रीभगवंत कहे छै), १६८२३(+) चंद्रप्रभजिन सबीजमंत्र स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., ( ॐ नमो भगवते श्री), १३९५९-१ चंपकश्रेष्ठि कथा, मु. प्रीतिविमल, सं., श्लो. ४७७, वि. १६५६, पद्य, म्पू., ( श्रेयः संततिकर्त्तार), १५८५दाका Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुः शरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ६३, पद्य, मृपू., (सावज जोग विरई), १४३९३-२ (+), १४५९०-१(+), १५१२१(+), १५४२५ (+), १६९२३(+), १७२९० (+), १४२९९, १४४९० ४, १४९९२ ८, १५२८७, १५६६९, १५६९५, १५८६०, १५८८७-१, १६२३५, १६२४५, १६२८१, १७१२३, १६२३३ ($) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक- अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., ( इवमध्ययनं परमपद), १५४२५ (+), १६२८१ (२) चतुः शरण प्रकीर्णक-टबार्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., गद्य, मूपु., (ऊँ नत्वा चतुःशरण), १५८८७-१ (२) चतुः शरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (चउसरणपड़नाना अर्थ०), १७२९०+), १६२३५, १६२३३ (६) (२) चतुः शरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु. ग्रं. ३४१, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य महावीर), १६९२३(०), १५२८७, १५६६९, " १५६९५, १६२४५, १७१२३ (२) चतुः शरण प्रकीर्णक-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., वि. १५९७, गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिनं), १५१२१ (*) , , (२) चतुःशरण प्रकीर्णक - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सावद्य योग विरति ते), १४२९९ चतुर्विंशतिजिन स्तव, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू (ऋषभजिनमजितनाथं), १६३५३-३(०) चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पंडित. संघविजय, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (वृषभलांछनलांछित), १४०६१-१९ चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, सं., स्त. २४, श्लो. १२०, पद्य, मूपू., (जय प्रथम तीर्थेश जय), १४१४८-२ चतुर्विंशति - विंशतिविहरमान- शाश्वतजिन स्तवन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (जयश्रिये भवशत्रो ), १४१४९-२६(१) For Private And Personal Use Only चतुर्विंशति- विंशतिविहरमान- शाश्वतजिन स्तवन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जयश्रीसंगिनो नौमि ), १४१४९-८(+) चतुष्पव कथा, सं., गद्य, मूपू., (यस्य ध्यानानुभावान्द्र), १६१४०-३ चमत्कारचिंतामणि, राजऋषिभट्ट, सं., पद्य, वै., (कणत्किंकिणी जालकोल), १३९६१, १४३४२ १ १५४४९, १५६८०, १५८००, १६०८१, १६३६६, १६४४९ (२) चमत्कारचिंतामणि -- टीका, मु. पुण्यहर्ष-शिष्य, सं., गद्य, मूपू., वै., (श्रीपुण्यहर्षमानम्य), १७२३८(5) चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., ( एवय समणधम्म १० संजम ), १५१९६ - ८ (+), १६१३३-३ (२) चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलुं बोल वय पंचमहा), १६१३३-३ चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु., सं., गद्य, म्पू., ( सामाइकावश्यक पौषधानि ), १४७१० (+) ४८७ Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६६५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंद), १५२१७ चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, सं., जै., (--), <प्रतहीन>. (२) चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान- बालावबोध, मु. सूरचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरं सूरचंद्र), १७२८९ चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., श्लो. १२३२, वि. १५२४, पद्य, मूपू., (नत्वा जिनपतिमाद्यं), १४५६०(६) चेतोदूतम्, आ. उदयनंदिसूरि, सं., श्लो. १२९, वि. १५०२, पद्य, म्पू., (ते जीयासुर्जगति), १३९६५ (-) चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६३, पद्य, मूपू., (वंदित्तु वंदणिज्जे), १६३४४ (२) चैत्यवंदनभाष्य-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्तुं कहितां), १६३४४ चैत्यवंदन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, जै., (इछामि खमासमणो कही), १६९६०-१ छंदः शतक, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अधि. २, गा. ११२, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योति), १६६१३-१ छंद अक्षर संख्याश्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, (अनुष्टुप् अष्ट अक्षर), १६७८९-२(१) छंदप्रकार नाम, प्रा., गद्य, (अजय विजय वलिवंत वार), १६६१३-२ छंदोनुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ. ८, गद्य, मूपू., (वाचं ध्यात्वार्हतीं), १३९२९ (२) छंदोनुशासन-स्वोपज्ञ छंदचूडामणि वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, मूपू., (शब्दानुशासनविरचनानंत), <प्रतहीन>. (३) छंदोनुशासन-स्वोपज्ञ वृत्ति का पर्याय टिप्पण, सं., ग्रं. १७५१, गद्य, पू., (छंदोनुशासनपर्यायाः), १३९३०-१ (२) छंदोनुशासन-अध्याय ६ दोधकप्रकरण, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गा. ३२, गद्य, मूपू., (पिअहा पहारिण इक्कि), <प्रतहीन>. (३) छंदोनशासन-अध्याय ६ दोधकप्रकरण-अवचरि, सं., गद्य, मप., (हे सखि मत्प्रियस्य),१३९३०-२ छंदो रत्नावली, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., अ. ९, पद्य, मूपू., (श्रीशारदापदप्रौढप्रस), १३९३१ छींक विचार, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पाखी पडिकमणा करता), १५०१४-२ जंकिंचिसूत्र, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (जंकिंचि नामतित्थं), १३९५७-५(+) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., उ. २१, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० रायगिहे), १५२७१, १५५०५ (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-छायानुवाद, मु. मानसिंघ, सं., गद्य, मूपू., (महावीरं जिनं नत्वा), १५३०१ (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (ते काल चउथो आरोतेवा), १५२७१, १५५०५ (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-बालावबोध@, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे चोथा आराने विषे), १४८२१, १७१३६, १७२७५ (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-जंबूचरित्र, मु. चेतनविजय, हिं., गा. ५२३, वि. १८५२, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत नमो सदा), १५५८५(4) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., वक्ष. ७, ग्रं. ४१४६, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), १४७४७, १४७६१, १६२२४ (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., ग्रं. १४२५२, वि. १६३९, गद्य, मूपू., (जीयात् तेजस्त्रिभुवन), १४७४७, १६२२४ (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-यंत्र संग्रह@, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १६९१० For Private And Personal Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४८९ जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (जयतिहुयणवर कप्परुक्ख), १६३६१(+), १५३६५-३, १५६६२(१), १६७९८-२(#) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-टीका, सं., ग्रं. २५०, गद्य, मूपू., (अत्रायं वृद्धसंप्रदा), १६३६१(+) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-टबार्थ, पं. शुभकुशल गणि, मा.गु., ग्रं. २२१, गद्य, मूपू., (--), १५६६२(#) जातक पद्धति, मु. हर्षविजय, सं., श्लो. ९३, वि. १७६५, पद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वदेवेश), १६५६९ (२) जातक पद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (प्रणाम करीने), १६५६९ जातकराज पद्धति, पं. यशस्वत्सागर, सं., अधि. १४, पद्य, मूपू., (श्रीमद्विद्यागुरु), १४६४५(+$) जिनगुण स्तोत्र, मा.गु.,सं., गा. ३१, पद्य, मूपू., (चिदानंदरूपं सुरूपं), १५९७३-१४(६) जिनपर्षदा परिमाणगाथा, प्रा., गद्य, श्वे.. (वीरजिण २४ अट्ठट्ट). १६९३४-२(+) । जिनब्रह्म स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (परानंदपदामार्हन्), १४१४९-१३(+) जिनभक्तिसूरि अष्टक, वा. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ९, वि. १८०४, पद्य, मूपू., (श्रीमच्चंद्रकुलेश्वर), १४०५३-२(+) जिनमंगल स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (परं श्रेयः पदं), १४१४९-१६(+) जिनमंगल स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ६, पद्य, म्पू., (प्रभुतां शिवसंपदाम), १४१४९-१५(+) जिनमहिमा स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (शिवपदप्रभुतां दधतां), १४१४९-१४(+) जिनलाभसूरि अष्टक, वा. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ९, वि. १८३४, पद्य, मूपू., (राग विभास तथा कडषौ), १४०५३-३(+ जिनशतक, मु. जंबू कवि, सं., परि. ४, श्लो. १००, वि. १००१-१०२५, पद्य, मूपू., (श्रीमद्भिः स्वैर्महो), १४६१२(+), १५३९५ (२) जिनशतक-अवचूरि, सं., गद्य, म्पू., (रागादिदोष जेतृत्वा), १५३९५ जिनस्तवचतुर्विंशतिका, सं., स्त. २४, पद्य, मूपू., (श्रीनाभेयसुनाभेय), १४१४४-१(+) जिनस्तवनचौवीशी, आ. लब्धिसागरसूरि, प्रा.,मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (नाभिराय कुल कुवलय), १४००७, १४०८३ जिनस्तुति प्रार्थना, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (प्रशमरसनिमग्न), १४०६१-४ जिनस्तुत्यादि संग्रह, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीअर्हतो भगवंत), १४१२५-२ जीतकल्पसूत्र, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. १०५, पद्य, मूपू., (कयपवयणप्पणामो), १६४६५(+) (२) जीतकल्पसूत्र-टीका, आ. तिलकाचार्य, सं., ग्रं. १७००, वि. १२७४, गद्य, मूपू., (वंदे वीरं तपोवीर), १६४६५(+) (२) जीतकल्पसूत्र-प्रायश्चित संग्रह, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (मध्यम देवगुरुपुस्तका), १४२९८-३(+) जीव पर्याय सपर्याय के ३२ भेद, प्रा., पद्य, मूपू., (पण थावर सुहमियरा), १६१३८-३ (२) जीव पर्याय सपर्याय के ३२ भेद-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पांच थावर बादर पांच), १६१३८-३ जीवविचार, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (अंडजाः पक्षिसाद्य), १४३०४-२ जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. ५१, पद्य, मूपू., (भुवणपईवं वीर नमिऊण), १४७१४-२(+#), १५४७३(+६), १५४७६(+), १५९८९(+), १६१७१(+), १६२१९-२(+), १६६२८(+), १७०३६-१(+#5), १७०६०-२(+), १७१६८(+5), १५००७, १५१०८, १५५६३-१, १५७२८, १५९७२-२, १६०४९, १६४५६-१, १६५७२, १६९८६, १६९९८, १७१२५, १७२१२, १४४९८ (६) (२) जीवविचार प्रकरण-टीका, पा. रत्नाकर, सं., वि. १६१०, गद्य, मूपू., (सज्ञानभास्करं वीरं), १५४७३(+$) For Private And Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ (२) जीवविचार प्रकरण-टीका, सं., गद्य, मूपू., (अस्यां गाथायां पूर्व), १५९८९(+) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, पू., (स्वर्ग मृत्यु पाताल), १५५६३-१ (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन भुवन रै विषै), १६१७१(+), १६६२८(+), १७०३६-१(+#$), १७०६०-२(+), १७१६८(+६), १५००७, १५१०८, १६०४९, १६५७२, १६९९८, १७२१२ (२) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध @, मा.गु., गद्य, मूपू., (भुवनमाहि मिथ्यात्व), १५४७६(+), १५७२८, १६९८६, १४४९८() (२) जीवविचार प्रकरण-यंत्र, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवना २ भेद एक मुक्त), १६९९० जीवाभिगमसूत्र, प्रा., प्रतिप. १०, ग्रं. ४७५०, गद्य, मूपू., (णमो उसभादियाणं चउवीस), १६०३१(+), १६८२९ (२) जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. जिनविजय, मा.गु., ग्रं. ९३००, वि. १७७२, गद्य, मूपू., (प्रणम्य ज्ञानविज्ञान), १६०३१(+) (२) जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीशांतिनाथमानम्य), १६८२९ जैन कथाकोश, सं., गद्य, मूपू., (यांति दृष्टं दुरितान), १६८४०(+), १५२२० जैन कुमारसंभव, आ. जयशेखरसूरि, सं., स. ११, ग्रं. १२२५, पद्य, मूपू., (अस्त्युत्तरस्यां), १५११५ -जैन गाथा , प्रा., पद्य, श्वे., (--), १३८६१-२ -जैन गाथा , प्रा.,सं., पद्य, श्वे., (--), १५१६१-६, १६८७३-३ जैन तर्कभाषा, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., परि. ३, ग्रं. ७००, गद्य, मूपू., (ऐंद्रवदनतं नत्वा), १४६२४(६) संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (--), १५५७४-३, १५७१३-२, १५७७५-२ जैन प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, जै., (--), १७०४३-२(+) -जैन श्लोक, सं., पद्य, मूपू., (--), १५०२१-२(+), १६७३७-२(+), १६८०९-३(+), १३८७४-२, १४०२९-२, १४३७८-२, १५२४५-२ जैन सामान्यकृति, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (--), १३९९९-२(+६), १५२२५-२(+), १५८०६-१(+), १४१७९-२, १४२३७-२, १५६३३-८, १६७०८-२, १५१९५-१(६), १५३१२-३() जैन सामान्यकृति-पेटांक बाकी, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., श्वे., (--), १६१८२-४(+), १४९८१(६) -जैन सुभाषित , सं., पद्य, मूपू., (--), १६४९२-२(+), १६४५६-४ जैनेंद्र व्याकरण, आ. देवनंदी, सं., गद्य, दि., (सिद्धिरनेकांतात), १५०१८(६) (२) जैनेंद्र व्याकरण-टीका, सं., गद्य, दि., (श्रीनाभिजस्याद्भुतयो), १५०१८($) जैनेतर सामान्यकृति- पेटांक बाकी, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., वै., (--), १३९११-२, १५३९०-२ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १९, ग्रं. ५५००, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० चंपाए), १४३९० (+$), १४७७४(+5), १५२३१(+), १५५४८(+), १५८७४(+), १६२९९(+), १६५४१(+) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., ग्रं. ८५००, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), १४३९०(५६), १६२९९(+), १६५४१(+) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञाताधर्मकथांगस्य), १५८७४(+) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार श्रीमहावीरने), १४७७४(+$) For Private And Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९१ (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टिप्पण @, सं., गद्य, मूपू., (--), १५२३१(+) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-प्रश्नशतक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञाताधर्मकथा साढि), १५५३५ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पंचानंतक सुप्रपंच), १४०५९-२ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिः पंचरूप), १५१६६-४(+#), १५५३३-४(+), १५७६०-३(+), १६३३७-१(+), १४४५९-६ (२) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीनेमीनाथ पांच), १६३३७-१(+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (समुद्रभूपालकुलप्रदीप), १५५३३-३(+) ज्ञानबिंद प्रकरण, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, मूपू., (ऐंद्रस्तोमनतं नत्वा), १७०५६(२) ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., अष्ट. ३२, श्लो. २७३, पद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रीसुखमग्नेन), १६९१९-१(६) ज्ञानार्णव, आ. शुभचंद्र, सं., स. ४२, श्लो. २०७७, पद्य, दि., (ज्ञानलक्ष्मीघनाश्लेष), १४५९२(+$) ज्योतिष, मा.गु.,सं., पद्य, वै., (लग्ने १ कु जेशिश), १५८६७-२, १५८८७-२ ज्योतिष अपूर्ण ग्रंथ, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., ?, (--), १५१९५-४(5) ज्योतिष श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, (--), १६५१६-२, १६६६९-२, १७०५४-३ ज्योतिष संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., ?, (--),१३९४२-४, १५०६३-२, १५५८६-२ (२) ज्योतिष संग्रह-बालावबोध @, मा.गु., गद्य, ?, (--), १३९४२-४ ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., श्लो. २९४, पद्य, मूपू., (श्रीअर्हतजिनं नत्वा), १६६९०(+), १७२८६(+$), १४८८२, १५१३०, १६५१६-१, १६१४४(६), १७१९८($) (२) ज्योतिषसार-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंतभगवानने), १४८८२, १५१३० (२) ज्योतिषसार-बालावबोध @, मा.गु., गद्य, मूपू., (पडवा सठइग्यारस नंदा), १६०९६(+5) (२) ज्योतिषसार-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (प्रणम्य परमानंददायक), १७०९६ ज्योतिषसार, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. ३३४, पद्य, मूपू., (लग्नं लग्नपतिर्बलान), १५१०५(-) (२) ज्योतिषसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (लग्नरौ स्वामी लग्न), १५१०५(२) ढुंढकमतखंडन, सं.,प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १४६२०(+$) तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., मूपू., (निजरिय जरामरणं), १५०३५(+) (२) तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कल्याणवल्ली नतिथार), १५०३५(+) तत्त्वज्ञानतरंगिणी, आ. ज्ञानभूषण, सं., अ. १८, वि. १५६०, पद्य, दि., (प्रणम्य शुद्धचिद्रूप), १५७१७(+) तत्त्वतरंगिणी, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., गा. ६२, वि. १६१५, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं तित्थ), १६०२२(+) (२) तत्त्वतरंगिणी-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., ग्रं. ११०२, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्या), १६०२२(+) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., अ. १०, सू. १९८, पद्य, मूपू., (सम्यग्दर्शनशुद्ध), १४१७२-१(+), १४६२५ (+S), १४६४४(+), १५०४८(+), १५०६१(+), १४१९०, १४२१८, १४४०१, १४७३९, १५०७०-२(६), १५०७३(5) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-स्वोपज्ञ भाष्य, वा. उमास्वाति, सं., अ. १०, ग्रं. २२००, गद्य, म्पू., (सम्यग्दर्शनं सम्यग्), १५०६१(+), १४१९०, १५०७०-२(), १५०७३(9) For Private And Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९२ (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र - टीका #, ग. सिद्धसेन, सं. ग्रं. १८२८२, गद्य, मूपू., (जैनेंद्रशासनसमुद्रम), १५०६१(+), 9 , १५०७०-२($), १५०७३ ($) कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र - श्रुतसागरी टीका (दि.), आ. श्रुतसागरसूरि, सं., गद्य, मूषू, दि., (सिद्धोमास्वामि ), १४४०१ (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र - टवार्थ, पुहिं, गद्य, मूपु., दि., (सम्यग्दर्शन सम्यग), १५०४८(+) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-उमास्वाति वाचक प्रशस्ति, संबद्ध, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (प्रागेवैतददक्षिण), १४१७२-२(+) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र संबंधकारिका आदि, संबद्ध, वा. उमास्वाति, सं., श्लो, ३१, पद्य, मूपु., (सम्यग्दर्शनशुद्ध), १५०६१(+), १५०७०-१ (३) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-आद्य संबंधकारिका की टीका, आ. देवगुप्तसूरि, सं., गद्य, मूपू., (वीरं प्रणम्य सर्वज्ञ), १५०६१ (+), १५०७०-१ तपविधि संग्रह, मा.गु., सं., गद्य, मृपू., (अथ अक्षयनिधितप विधि), १५३४८ तपविधि संग्रह, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (अनागत चोवीसी कल्याणक), १५९३३ तपविधि संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (श्रीकेवलज्ञानि जिनाय), १५३५६ तपागच्छ पट्टावली, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., गा. २१, पद्य, भूपू (सिरिमंतो सुहहेउ), १५७४८, १७२८५(३) 19 (२) तपागच्छ पट्टावली- स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, मूपू., (सिरिमंतोत्ति यत्तदो), १५७४८, १७२८५ (S) ताजिकसार, हरिभट्ट, सं., अ. ४४द्वार, श्लो. ४००, श. ११०५, पद्य, वै., (श्रीरामस्य पदारविंद), १६०३०(+), १६६४१ (२) ताजिकसार- कारिका टीका, ग. सुमतिहर्ष, सं., वि. १६७७, गद्य, मूपू., वै., (श्रीसूर्यचंद्रारबुधे), १३९३८, १५८१९, १६०३२ तीर्थकर, चक्रवर्ति व वासुदेवनाम, अवगाहना व आयुष्य, प्रा., प+ग, मूपू., (दो चक्की हरपणगं पणग), १४३९४-२ (०) तीर्थमालास्तव, सं., जै., (--), <प्रतहीन>. (२) तीर्थमाला स्तव - टीका, सं., गद्य, मूपू., (अरिहंतभगवंतं० अर्हतं), १४६२७-३($) तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, भूपू., (सद्भक्त्वा देवलोके), १४०६१-१५, १४१५० ११, १५१८३-४ तेरापंथीत खंडन, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (केइ एक क्रिया वादी), १६८५७ (का त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., श्लो. २४, पद्य, वै. (ऐंद्रस्यैव शरासनस्य), १५३७६ (+) 19 (२) त्रिपुराभवानी स्तोत्र - ज्ञानदीपिका टीका, आ. सोमतिलकसूरि, सं. ग्रं. ४७०, वि. १३७९, गद्य, मूपू वै., (सर्व्व पुंडरीक), १५३७६(+) त्रिभुवनशाश्वतचैत्यस्तव, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., श्लो. ३८, पद्य, मूपू., ( भक्त्वा प्रणम्य ऋषभं ), १४१४५ - १२(५) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पर्व. १० + परिशिष्ट, ग्रं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठानम), १४५८० For Private And Personal Use Only (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र - रामचंद्र चरित्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., स. १०, ग्रं. ४०३२, पद्य, मूपू., (अथ श्रीसुव्रतस्वामीज), < प्रतहीन > . (३) राम चरित्र, संबद्ध, पंन्या. देवविजय, सं., स. १० प्र. ५०००, वि. १६५२, प+ग, मूपू., (अथास्मिन् जंबूद्वीपे ), १६३६४ Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९३ (२) सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठान), १४०६१-१, १४१२७-२,१५२८० (३) सकलार्हत् स्तोत्र-टीका, ग. कनककुशल, सं., ग्रं. २८२, वि. १६५४, गद्य, मूपू., (वयम् आर्हत्य), १५२८० (३) सकलार्हत् स्तोत्र-जिनभवन स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अवनितलगतानां कृत्रिम), १६०५३-२ दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., गा. ४५, पद्य, मूपू., (नमिउं चउवीस जिणे), १४६४०(+), १४७००(+), १४७०६(+), १४७१४-३(+#), १४९२८(+), १५४३९(+), १५७४५(+5), १५८३२(+), १६३७१(+), १६६८५-१(+), १६८१७(+), १५४४२-१, १५६५९, १५७२१, १५९७२-१, १६२४३, १६२७३, १६४५६-३, १६५०५, १६७३०, १७२९१(#) (२) दंडक प्रकरण-टीका, मु. रूपचंद्र, सं., ग्रं. ५३६, वि. १६७५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परया भक्त्या ), १५७२१ (२) दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., ग्रं. २१६, वि. १५७९, गद्य, मूपू., (श्रीवामेयं महिमामेय), १६२४३ (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मु. यशसोम-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रराजं जिनं नत्वा), १४७०६(+), १६८१७(+) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, म्पू., (ऋषभादिक २४ जिननै), १४९२८(+), १५४३९(+), १५६५९ (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक महावीर), १६३७१(+) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रराजं जिनं नत्वा), १५८३२(+), १६७३० (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करी चउवीस), १४६४०(+), १४७००(+), १५७४५ (+$), १६६८५-१(+), १५४४२-१ (२) दंडक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इहां चोवीस दंडसान्नइ), १६५०५ दर्शनरत्नरत्नाकर, आ. इंद्रनंदिसूरि, सं., अ. ४ लहरी, वि. १५७०, गद्य, मूपू., (परमब्रह्मरुपाय जगत्), १४४०२(+) दशदिग्पाल पूजाविधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (हवे वलि सहाय दानना), १७०३५-२ दशलाखणि पूजा, प्रा.,सं., पद्य, दि., (उतिमादिक्षमाद्यंत), १४५०९-३ दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., अध्य. १० चूलिका २, गा. ७००, वी. रवी, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), १४७४८(+), १४७५८(+), १५६९१(+), १५९८३(+), १६५६१(+), १६६५१(+$), १६७७५(+६), १७२४१(+), १७२६५(+), १४९२६, १५१२७, १५७०८, १५८०७, १५८१४, १६१८८, १६३०३, १६३१६, १६४९८, १६४९९, १६५३३, १७०५७, १७०९३, १६४७७, १६५७१, १६१४९(5) (२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मु. श्रीपाल, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट), १६५६१(+) (२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (ध० जीवनइ दुर्गति), १४७४८(+), १४७५८(+), १५६९१(+), १६६५१(+5), १७२४१(+), १६४९८, १६४९९, १६५३३, १७०९३ (२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, पुहि., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), १५९८३(+) (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जिनलब्धि, मा.गु., ढा. ११, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (सुख दायक लायक सुगुण), १४१६१ (२) दशवकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., अ. १०, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (धर्ममंगल महिमा निलो), १५१५२-१,१६१०७ (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., सज्झा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीगुरूपदपंकज नमीजी), १४११६, १४११७, १४६८४, १४७३५, १५५०७-१, १५२५५(5) For Private And Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., दशा. १०, ग्रं. १३८०, पद्य, मूपू., ( नमो अरिहंताणं० हवइ), १४६९९(+), १४७२८, १५२७६, १५४८९, १६१०३-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र - निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. १४१, पद्य, मूपु, (वंदामि भदबाहु), १६१०३-२ (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र - चूर्णि# प्रा.सं., प्र. २२२५, गद्य, मृपू., (मंगलावीणि सत्याणि०), १६१०३-३ (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र - अर्थ@, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १५४०२ (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र - टबार्थ, मु. केशव ऋषि, मा.गु., वि. १७०८, गद्य, म्पू., (वर्द्धमानं जिनं), १४६९९ (+) (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (श्रीवशाश्रुतस्कंध १४७२८, १५२७६, १५४८९ दानकल्पद्रुम, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पल. ९, पद्य, मूपू., (स श्रेयस्त्रिजगद्) १६६९७ (+), १५२७२-१ (२) दानकल्पद्रुम-टबार्थ, पंन्या. रामविजय, मा.गु., वि. १८३३, गद्य, मूपू., (श्रीऋषभस्वामी केहवा), १६६९७(+), १५२७२-१ (२) धन्य चरित्र, मु. ज्ञानसागर शिष्य, सं., गद्य, म्पू., ( स श्रेयस्त्रिजगद्ध्य), <प्रतहीन (३) धन्य चरित्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखदं), १६००५) , दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., वक्ष. ४, गा. ८१, पद्य, मूपू., (परिहरिय रज्जसारो), १६८९२ (२) दानशीलतपभावना कुलक-धर्मरत्नमंजूषा टीका, ग. देवविजय, सं., ग्रं. १२०१६, वि. १६६६, गद्य, मूपु., (ॐ नमो नाभिभूपाल संभव), १६८९२ दामन्त्रक कथा, सं., श्रो. ९८, पद्य, मूपू., (अत्राभूद् भरतक्षेत्र), १६३१३-३(+) , For Private And Personal Use Only दिग्विजय महाकाव्य, उपा. मेघविजय, सं., स. १३, पद्य, मूपू., (स्वस्तिश्रीर्नृसुरास), <प्रतहीन > (२) दिग्विजय महाकाव्य - टिप्पण, उपा. मेघविजय, सं., गद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वरपार्श्व), १३९६६(+) दीक्षा मुहुर्त, सं., गद्य, मृपू., (), १५६०७-२ दीप नमस्कार, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (शुभं भवतु कल्याणं), १५१६७-२ दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., श्लो. ४३७, ग्रं. १५००, वि. १४८३, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमांगल्य), १५२०६ (+) १२००, वि. १७६३, गद्य, मूपू., (अर्हतं बालबोधानां ), १५२०६ (+) (मंगलिक दीवा सरीखी पी), १४४७३ (+) (२) दीपावली पर्व कल्प-टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., ग्रं. (२) दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., दीपावलीपर्व कल्प, आ. विनयचंद्रसूरि, सं., श्लो. २७८, वि. १३४५, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १६४१०-२(+) दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २७८, पद्य, मूपू., (संतु श्रीवर्द्धमानस), १६४१०-१(+), १६६१९(+) दीपोत्सव, वा. जयरंग, सं., वि. १८७५, गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिनं वंदे), १५१५३ दुहा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, ?, (--), १४०२६-३, १४६५३-२, १५८०४-३($) दृष्टांतशतक, ऋ. तेजसिंघ, सं., श्लो. १०२, पद्य, वे, (नत्वा श्रीवृषभं सदा), १४७८२(+) (२) दृष्टांतशतक - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनइं), १४७८२ (+) देवकुमार चरित्र, सं., पद्य, मूपू., (किंचास्ति नियमो नायं), १४५९३(+$) देवतामूर्त्तिप्रकरण, सूत्रधार मंडन, सं., अ. ८, पद्य, वै., ( धातुरत्नशिलाकाष्ठचित), <प्रतहीन. Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९५ (२) देवतामूर्त्तिप्रकरण-वास्तुशास्त्र रूपावतार, सूत्रधार मंडन, सं., पद्य, जै., वै., (ऋषभश्चाजितश्चैव संभव), १३९०९ देव पूजा, सं., पद्य, दि., (जय जय जय णमोस्तु०), १४५०९-१ देवराजवत्सराज कथानक-दानविषये, सं., श्लो. ४२६, पद्य, मूपू., (अस्मिन्नसारे संसारे), १४५१४(+) द्रव्य संग्रह, मु. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., अधि. ३, गा. ५८, पद्य, दि., (जीवमजीवं दव्वं जिणवर), १५८३०(+) (२) द्रव्य संग्रह-बालावबोध, मु. रामचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., दि., (श्रीपार्श्वचंद्रसूरि), १५८३०(+) द्रव्यानुयोगतर्कणा, मु. भोजसागर, सं., अ. १५, ग्रं. २९५६, पद्य, मूपू., (श्रीयुगादिजिनं नत्वा), १४७६६(+) (२) द्रव्यानुयोगतर्कणा-स्वोपज्ञ टीका, मु. भोजसागर, सं., गद्य, मूपू., (श्रियं निवासं निखिला), १४७६६(+) द्वात्रिंशवात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., द्वात. २१, श्लो. ६६३, पद्य, मूपू., (स्वयंभुवं भूतसहस्रने), १४१४५-७(+) पेटा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ४२१, पद्य, मूपू., (सद्भूत भाव्यर्थ विका), १६२६३-१ धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., श्लो. २११, पद्य, दि., (तन्नमामि परं ज्योति), १६९१७(+), १४४३६, १५८५४-१, १६०४४ धनदत्तमित्र कथानक, सं., गा. १८८, पद्य, मूपू., (धनदो धनमिच्छूनां), १६७८९-१(#) धर्मपरीक्षा, मु. मतिसागर, सं., पद्य, मूपू., (--), <प्रतहीन>.. (२) धर्मपरीक्षा रास, संबद्ध, पुहिं., पद्य, मूपू., (पणऊं अरिहंत देव गुरु), १६८०८(5) धर्मपरीक्षा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., ग्रं. १०८, वि. १७४४, पद्य, मूपू., (पणमिय पासजिणिद), १६९६९(+), १६९८९ (२) धर्मपरीक्षा-छाया, सं., श्लो. १०५, पद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वजिनेन), १६९६९(+), १६९८९ धर्मपरीक्षा कथा, ग. देवविजय, सं., श्लो. ३६७, पद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणितं देवं), १६१६७(+) (२) धर्मपरीक्षा कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रणमीनें प्रणम्या), १६१६७(+) धर्मोपदेश श्लोकसंग्रह, सं., गद्य, म्पू., (मंगलं भगवानवीरो), १७०६८(+$) । (२) धर्मोपदेश श्लोकसंग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भगवंत श्रीमहावीर), १७०६८(+६) धूर्ताख्यान, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., आख्या. ५, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे तिअस), <प्रतहीन>. (२) धूर्ताख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सदुपनिषदनेकग्रंथसंदर), १४३१५ नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गा. ७००, प+ग., म्पू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), १४६८६(+), १४७७२(+), १४९३९(+), १५९४२(+), १४६९५, १५४९४, १५७५४,१६२२३, १६२४६,१६८०१,१७२३५,१५६१८(#5), १६१०५(३), १६१२६(), १७२०८-१(#) (२) नंदीसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ७७३२, गद्य, मूपू., (जयति भुवनैकभानुः), १४७५४ (२) नंदीसूत्र-टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. २३३६, गद्य, मूपू., (जयति भुवनैकभानुः), १६५२६(+$) (२) नंदीसूत्र-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (नंदी ते आनंदनी देण), १४६८६(+), १४७७२(+), १४९३९(+), १५९४२(+$), १४६९५, १७२३५ (२) नंदीसूत्र-बालावबोध @, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ नंदि इति कः), १६२२३, १५६१८(#$), १७२०८-१(#) (२) नंदीसूत्र-टिप्पण, मा.गु., गद्य, मूपू., (जयई० विषय कषायादि), १५७५४ (२) नंदीसूत्र-कथा संग्रह @, मा.गु., कथा. ८९, गद्य, म्पू., (नंदनं नंदि प्रमोदोहर), १४९३९(+), १६२२३ For Private And Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ (२) नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणी वियाणओ), १५२३०-१(+), १६२१९-१०(+), १५३८७-१,१६१७६-१,१६५५७-२ नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद. ९, पद्य, मूपू., (णमो अरिहताणं), १५५०९-१, १६७५१, १७२८२ (२) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध@, मा.गु., गद्य, मूपू., (माहरउ नमस्कार), १५५०९-१, १७२८२ (२) नमस्कार महामंत्र-आद्यपद विवरण, सं., गद्य, मूपू., (नमोर्हद्भ्यः इति), १६७५१ नमस्कार महामंत्र कथा संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (नमस्कारप्रभावे इह), १६१४०-४ नमस्कारमाहात्म्य श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (नमस्कारसमं मंत्र), १७०७१-३ नमस्कार स्तव, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (परमिट्ठि नमुक्कार), १४००४(+), १५५४६(+) (२) नमस्कार स्तव-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., वि. १४९७, गद्य, मूपू., (जिनं विश्वत्रयी), १४००४(+), १५५४६(+) नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (नमिऊण पणयसुरगण), १३९५७-३(+), १६६०४(+) (२) नमिऊण स्तोत्र-अभिप्रायचंद्रिकाटीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., ग्रं. ३००, वि. १३६५, गद्य, मपू., (श्रीपार्श्वस्वामिन), १६६०४(+) (२) नमिऊण स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नमिऊण. अहो भव्या), १४६२७-१ नयचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., वि. १८वी, गद्य, मूप., (प्रणम्यपरमब्रह्म), १६९३४-१(+), १५२९९ (२) नयचक्रसार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १८वी, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमब्रह्म), १५२९९ नरब्रह्म कथा, पा. राजवल्लभ, सं., श्लो. ९३, वि. १५३०, पद्य, मूपू., (यथा देवे जिनो देवः), १५१६९-२ नवग्रहपूजा विधि, मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (सवन नो पाटलो शुद्ध), १७०३५-१ नवतत्त्व प्रकरण, आ. धर्मसूरि, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (--), १७०३६-२(+#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १७०३६-२(+#5) नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), १४४४३(+), १४६४६(+), १४७०८(+), १४७१४-१(+#), १५१४८(+), १५५५६(+), १५७५२(१), १५८२२-१(+), १५९७०-१(+), १६१६३(५), १६४७१(+), १६५९९(+#), १६६८४(+), १६८७४(+), १६८८८(+), १७०६०-१(+), १७२१०(+5), १७२३०(+), १७२९९(+), १४३३८, १४४९०-३, १४९९२-९, १५२९४, १५३४५, १५३७९-१, १५३८०, १५३९७, १५४०९, १५४६५, १५७५६, १५७६५, १५८१३, १५८२६, १६१३८-१, १६१९०, १६२४७, १६२७७, १६४५६-२, १६५६८, १६५९६, १७०३८, १७१७२, १५६८७(5), १५८९७(६), १६५७९(१) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. ४७७, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानजिनपति), १६३४९-१(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (जयति श्रीमहावीर), १५१४८(+), १५७५२(+), १५८२२-१(+), १६८७४(+), १५७५६, १६२७७ (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, पा. रूपचंद्र गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीतरागं नमस्कृत्य), १४४४३(+), १६४७१(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मु. लालकुशल कवि, मा.गु., वि. १७०९, गद्य, मूपू., (श्रीगुरुणां प्रसादेन), १७२३०(+) For Private And Personal Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९७ (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव कहतांच्यार), १४६४६(+), १४७०८(+), १५५५६(+), १५९७०-१(+), १६१६३(+), १६८८८(+), १७०६०-१(+), १७२१०(+६), १४४९०-३, १५२९४, १५३४५, १५३७९-१, १५४६५, १५७६५, १५८२६, १५८९७, १६१३८-१, १६१९०, १६५९६, १७०३८, १६५७९(२) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (यथावस्थित साचउंजे), १५८१३ (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, मूपू., ते., (--), १७२९९(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण--बालावबोध, मु. साधुकीर्ति, मा.गु., गद्य, स्पू., (पार्श्व नत्वा सुबोध), १६५९९(+#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. सोमसुंदरसूरि शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (यथा स्थित साचउंजे), १६५६८ (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, ग. हर्षवर्द्धन, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानप्रभु), १६२४७ (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), १४३३८, १५३८०, १५३९७, १५८८८-१, १६३६३, १६८७१ (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, रा., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व कणीनै कहीज), १५७१५(5) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध @, रा., गद्य, मूपू., (जीवाजीवा० जीवतत्त्व), १५७२६, १५६८७(5) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., ग्रं. २००, गद्य, मूपू., (हवे विवेकि सम्यग्), १५६२१, १५७२० (२) नवतत्त्व प्रकरण-टिप्पण @, सं., गद्य, मूपू., (जीवति दशविधान), १४७१४-१(+#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नवतत्त्व नाम जीव), १५१५०-१, १५६७३-१, १६६५९-१ (२) नवतत्त्व प्रकरण-विचार यंत्र, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व प्राणचेतना), १६९९१ (२) नवतत्त्व प्रकरण-यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), १५३२२ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. १०७, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापुन्नं पावा), १५५६२(+), १५२८९, १५३७८, १५७३५ (२) नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि @, सं., गद्य, मूपू., (--), १५५६२(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, ग. मानविजय, मा.ग., गद्य, मप., (जीवतत्त्व चेतना सहित), १५३७८ (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनं नत्वा), १५२८९ (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे नवतत्त्वना नाम), १५७३५ ध, सं., पद. ९, गद्य, मूपू., (--), १५९२१(६) नवपद खमासण विचार, पुहि.,सं., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम पदै), १७०७१-१ नवपद खमासमणदण विचार, सं., गद्य, जै., (--), १६२०२-१(क) नवपद तपविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, म्पू., (ॐ ह्रीं नमो अरिहंत), १४७१६-३ नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, पू., (उपन्नसन्नाणमहोमयाणं), १४०३९, १४९५१-११, १५६३३-३, १६५१४, १६७२६-२, १७२२७-२(5) नवपद लघु पूजा, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु.,सं., ढा. ९, पद्य, मूपू., (उपन्नसन्नाणमहोमयाणं), १५०८९-१ नवपदवासक्षेप पूजा, मा.गु.,सं., पद्य, जै., (अरिहंत पद ध्यातो), १६७४३-१(#) For Private And Personal Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., स्मर. ९, प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० हवइ), १५०७६-१(+), १५२५२(+), १६४८४-१(45), १६६०५(+), १७११६-१(+), १७१९७(+), १५१७८-१, १५५२१, १६१५०, १३९१५, १३९१६, १५१३४, १५९२९, १६५६६, १६८०३-१, १७११२ (२) नवस्मरण-सप्तस्मरणटीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिन), १६४८०(+) (२) नवस्मरण-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मपू., (अरिहंतनइं माहरो), १५०७६-१(+), १६६०५(+), १७१९७(+), १३९१५, १३९१६, १५१३४ (२) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, हिस्सा, सं., गद्य, म्पू., (भो भो भव्याः श्रृणुत), १४१४५-३५(+), १५४८६(+), १६४८४-२(+), १६४८४-७(+), १४५७३, १७१०६ (३) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (भो भो भव्य जीवो), १५४८६(+), १४५७३ नाडीपरीक्षा, सं., श्लो. ७, पद्य, वै., (अंगुष्टमूले हस्तस्य), १६००७-२ नाडीपरीक्षा, सं., श्लो. २२, पद्य, श्वे., (श्रीवीरचरणौ नत्वा), १५६८४ (२) नाडीपरीक्षा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (एता नाडीनाम स्नायु), १५६८४ नाडीभेद, सं., श्लो. १६, पद्य, वै., (अथातः संप्रवक्ष्यामि), १३९४२-३ नाभेय स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (नमिय जिणमुसभमुभयंस), १६३२८-१ (२) नाभेय स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्करी जिन ऋषभ विहु), १६३२८-१ नारिकेल कल्प-विधिसहित, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ ह्रीं श्रीं क्ली), १५३५३-१ निर्भयभीमव्यायोग, आ. रामचंद्रसूरि, सं., अंक. १, श्लो. २६, प+ग., मूपू., (तपोभिर्दुस्तपैर्येन), १३८९७-२ निशीथसूत्र, प्रा., उ. २०, ग्रं. ८१५, गद्य, मप., (जे भिख हत्थ कम्म), १४७६९(+), १६०३८(+), १४६२८($) (२) निशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हुवो सु०), १४७६९(+), १६०३८(+) (२) निशीथसूत्र-बीजक, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हो सूत्र०), १७२६९ नीतिशतक, भर्तृहरि, सं., श्लो. १०९, पद्य, वै., (दिक्कालाधनवच्छिन्न), १६६०२(+), १६९००-१(+), १५४६०, १५९५४, १६१८०-१,१६५४२ (२) नीतिशतक-टीका, पा. धनसार उपाध्याय, सं., वि. १५३५, गद्य, मूपू., वै., (युगादिदेवोप्ययुगादि), १६९००-१(+) नेमिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (मयनाहसरिस विलसिर), १६३२८-३ (२) नेमिजिन चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कसतूरी सरिखी प्रसरती), १६३२८-३ नेमिजिन स्तवन, आ. विजयसिंहसूरि, सं., श्लो. २४, पद्य, मूपू., (नेमिः समाहितधियां), १४१४५-३२(+), १४१२७-३ नेमिजिन स्तवन, आ. सोमप्रभरि, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (पदपावितभूमिमंडलं), १४१४६-४ नेमिजिन स्तवन, सं., श्लो. ३२, पद्य, म्पू., (महिमानल्पनेमेशा), १४१४६-३ नेमिजिन स्तवन-गिरनारतीर्थमंडन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (उज्जयंतशैलेशतुंग), १४१४४-१०(+) नेमिजिन स्तवन-पंचवर्गपरिहार, सं., श्लो. १९, पद्य, मूपू., (शैवेयसार्वं सरसं), १४१४६-९ नेमिभक्तामर, आ. भावप्रभसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, पू., (भक्तामर त्वदुपसेवन), १५४०१ (२) नेमिभक्तामर-वृत्ति, आ. भावप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीपार्श्वनाथ), १५४०१ For Private And Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ नैषध चरित्र, क. हर्ष, सं., स. १२, पद्य, वै., (निपीय यस्य क्षितिरक), १६३९३(+), १५४७७, १५८७७, १४९१९(5) (२) नैषध चरित्र-टीका, आ. चारित्रवर्द्धन वाचनाचार्य, सं., गद्य, मूपू., वै., (--), १४९१९(६) पंचकल्पसूत्र, प्रा., गद्य, मूपू., (--), <प्रतहीन>. (२) पंचकल्पसूत्र-भाष्य, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. २५७४, ग्रं. ३१००, पद्य, मूपू., (वंदामि भद्दबाहु), १७०७३ पंचतीर्थीजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (आदिनाथ युगाधीशः), १५१६७-३ पंचतीर्थीजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ६, पद्य, मप., (प्रणत मानव दानव नायक),१५१८३-२० पंचदशबंधन विचार, सं., पद्य, मूपू., (औदारिकोदारमितिकिं), १४१६६-२(+) पंचपरमेष्टि स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (स्वश्रियं श्रीमद), १६३५३-२(+) पंचवस्तुक, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. १७१४, पद्य, मूपू., (णमिऊण वद्धमाणं सम्म), १४४०० (२) पंचवस्तुक-स्वोपज्ञ शिष्यहिता व्याख्या, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. ७१७५, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनं वीरं), १४४०० पंचसूत्र, आ. चिरंतनाचार्य, प्रा., सूत्र. ५, गद्य, मूपू., (णमो वीयरागाणं सव्व), १५०८०(+), १५०८२(+), १४२१६, १४२१७ (२) पंचसूत्र-टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. ८८०, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमात्मान), १५०८०(+), १५०८२(+) (२) पंचसूत्र-अवचूरि, ग. उदयकलश, सं., गद्य, मूपू., (पा० पापप्रतिघातगुण), १४२१६ पंचाख्यान वार्तिक, सं., श्लो. ४८, पद्य, श्वे.?, (कुश्रितं कुप्रनष्टं), १४३६०(+) (२) पंचाख्यान वार्तिक-बालावबोध, मा.गु., ग्रं. १५००, गद्य, श्वे.?, (दक्षिणदेश तिहां महिल), १४३६०(+) पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पंचा. १९, गा. ९४०, ग्रं. ११८७, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं सावग), <प्रतहीन>. (२) पंचाशक प्रकरण-हिस्सा प्रथम पंचाशक, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं सावग), १४१९३ (३) पंचाशक प्रकरण हिस्से के प्रथम पंचाशक की चूर्णि, हिस्सा, आ. यशोदेवसूरि, प्रा., वि. ११७२, गद्य, मूपू., (नमिय भुवणेक्कभाणु), १४१९३ । पंचोपचारपूजा विधि, सं.,मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १४३४७-१(६) पट्टावली, सं., गद्य, मूपू., (अथात्र श्रीपyषणा), १५१४७(+) पट्टावली खरतरगच्छीय, वा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३०, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जगन्नाथं), १७२०४ पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, मूपू., (कल्याणकारणं शुद्धं), १६५४७ पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., गा. २८, पद्य, स्पू., (पडिलेहणा विशेष), १७२०१ (२) पडिलेहण कुलक-टबार्थ, ग. विजयविमल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रतिलेखनाना विशेष), १७२०१ पद्मनाभ पुराण, आ. शुभचंद्र, सं., स. १५, श्लो. २४००, पद्य, दि., (श्रीमद्भट्टारक प्रभु), १७१८६(+) पद्मावती स्तोत्र, सं., श्लो. ४०, पद्य, श्वे., (ॐ अस्य श्रीमंत्रराज), १५०२७ परमाणुपरिणाम भांगा कोष्टक, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (परमाणु पोग्गलेणं), १४५३४-१ परमात्मद्वात्रिंशिका, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (ॐकाररूपः परमेष्टि), १४१४५-२८(+) परमात्मप्रकाश, मु. योगींद्रदेव, प्रा., गा. ३४५, वि. १२वी, पद्य, दि., (जे जाया झाणग्गियए), १४३७८-१ (२) परमात्मप्रकाश-टीका, आ. ब्रह्मदेवसूरि, सं., ग्रं. ४०००, वि. १६वी, गद्य, दि., (चिदानंदैकरूपाय जिनाय), १४३७८-१ For Private And Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (नमिउण भणइ एवं भयवं), १४३९३-१(+), १४९३५(+#), १७१६५(+), १६२५५, १६४६४ (२) पर्यंताराधना-टबार्थ, मु. लावण्यविजयवाचक शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर प्रतिइं), १६४६४ (२) पर्यंताराधना-टबार्थ@, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करिने), १४९३५(+#), १७१६५(+), १६२५५ पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., श्लो. ६२४, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (स्मृत्वा पार्श्व), १५९०५-१ (२) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्मृ० श्रीपार्श्वनाथ), १५९०५-१ पर्वराजमहोत्सव, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १६३२०(5) पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (स्नातस्याप्रतिमस्य), १५१६६-७(+#), १५५३३-८(+), १५६४६-३(+), १६३३७-२(+), १४४५९-२२, १४९९२-४, १५२८६-६ (२) पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे भगवंत केहवा छे), १६३३७-२(+) पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथा, सं., गद्य, मूपू., (बुधैर्विधीयतां सम्यग), १६३८० पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, सं., प+ग., मूपू., (धर्मतः सकलमंगलावली), १६५४४(+), १४४५३, १५३१९ पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., स. ८, ग्रं. ६४००, वि. १३१२, पद्य, मपू., (नाभेयाय नमस्तस्मै), १६१११(६) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ नमः पार्श्वनाथाय), १४०५८-११, १५१७८-२, १५२९२-५ पार्श्वजिनप्रभाव स्तवन, वा. सकलचंद्र, प्रा.,मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वामोदर सरोवर जिनहसं), १५६०१-१७ पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रघुनाथ, सं., श्लो. ४०+१, वि. १८५७, पद्य, स्था., (महिम्नः पारं ते परम), १४९७२(+) पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्व भावतः), १४१४६-१५ पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वः श्रेयसे), १४१४६-१३ पार्श्वजिन स्तवन, आ. धर्मघोषसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (विध्वस्ताखिलकर्मजाल), १४१४५-२९(+) पार्श्वजिन स्तवन, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (ब्रह्माजिह्मलयं कृता), १४१४६-५ पार्श्वजिन स्तवन, सं., श्लो. १८, पद्य, मूपू., (भास्वन्महाः सुमहिमाव), १४१४६-७ पार्श्वजिन स्तवन, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (रुचिमंडलमंडितदिग्वलय), १४१४५-४(+) पार्श्वजिन स्तवन, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्व संस्तुव), १४१४६-१ पार्श्वजिन स्तवन-छआरागर्भित, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (सुध्यान सुध्या नतपाद), १४१४६-२ पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित, मु. राजसमुद्र, प्रा.,मा.गु., ढा. ३, गा. १९, वि. १६६५, पद्य, __ मूपू., (नमिअ सिरिपासजिणसुजणं), १४६४२(4) (२) पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित-बालावबोध, ग. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, म्पू., (ए गाथानो अर्थ सोहिलउ), १४६४२(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (सौभाग्यभाग्या), १४०६१-१२ पार्श्वजिन स्तवन-शाहपुरमंडन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (जयश्रियां संगममाप्तु), १४१४९-६(+) पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थमंडन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (स्तुवे श्रीस्तंभनां), १४१४४-१२(+) पार्श्वजिन स्तुति, मु. जिनपद्म, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (तमालनीलच्छविपिच्छलां), १४१४६-१८ For Private And Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५०१ पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (कल्याणानि समुल्लसंति), १५५३३-२९(+) पार्श्वजिन स्तुति-२४ महादंडक, आ. भुवनहितसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (जिनपति विततिस्तनोतु), १४१०७-१ (२) पार्श्वजिन स्तुति-२४ महादंडक-व्याख्या, वा. पद्मराज, सं., वि. १६६६, गद्य, मूपू., (जिनपतीनां ऋषभादि), १४१०७-१ पार्श्वजिन स्तुति-जेसलमेरमंडन, मु. सहजकीर्ति, सं., गद्य, मूपू., (विदित निखिलभाव), १४१०७-२ पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नै दें कि धप), १५५३३-२२(+), १४०५९-६ पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (शमदमोत्तमवस्तुमहापणं), १४०५९-७ पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोकं), १४०५९-८ पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (गुणमणिनिहिणो जस्सु), १६३२८-४($) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुणरूप रतननउ निधान), १६३२८-४(६) पार्श्वजिन स्तोत्र, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (जगति शस्तवैराग्यरंग), १४१४५-२२(+), १४१४६-१६ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (नम्रकम्रसुरराजमंडली), १४१४५-३(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (पाथः पूरेधिमूर्ध्वं), १४१४५-६(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ४९, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य), १४०६१-२ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (प्रणमामि सदा प्रभु), १५१८३-९ पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकुंड, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं तं नमह), १४८०४-३ पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (किं कर्पूरमयं सुधारस), १४०६१-११, १४३४७-२, १५१८३-३, १६९५२ (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि-टीका, सं., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथस्य), १६९५२ पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला-महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., श्लो. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (ॐ नमो देवदेवाय नित्य), __ १३९५७-४(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., श्लो. ३२, वि. १७१२, पद्य, मूपू., (जय जय जगनायक), १५१६६-४१(+#), १५२९२-४ पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, आ. हंसरत्नसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (महानंद लक्ष्मी धना), १५१७८-५ पार्श्वनाथ चरित्र, ग. उदयवीर, सं., स. ८, ग्रं. ५५००, वि. १६५४, मूपू., (प्रोद्यत्सूर्यसम), <प्रतहीन>. (२) पार्श्वनाथ चरित्र-टबार्थ, मा.गु., स. ८, गद्य, मूपू., (--), १६१११(६) पालगोपाल कथा, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., श्लो. २३८, पद्य, मूपू., (ये शील सुख कुल्लील), १४३११-१ पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., श्लो. १९६, पद्य, श्वे., (महादेवं नमस्कृत्य), १६४२३(+), १३९०३, १४५३२, १६००७-१, १६३१०, १६४२० (२) पाशाकेवली-भाषा @, मा.गु., गद्य, श्वे., (१११ उत्तम थानक लाभ), १५२४१, १५३०४, १६४५५, १६४७४, १७१०१, १७१०९ पासाकेवली, मु. गौतम स्वामी, सं., गद्य, मूपू., (--), <प्रतहीन>. (२) पासाकेवली, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हलि हलि चिली चिली), १४५१३ For Private And Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ पिंडनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ६७१, ग्रं. ७०००, पद्य, मूपू., (पिंडे उग्गम उप्पाय), १५४९१ पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १०३, पद्य, मूपू., (देविंदविंदवंदिय पयार), १४३९३-३(+), १६२१९-१(+$), १६३१४, १६४८१-१, १४६११(६) (२) पिंडविशुद्धि प्रकरण-दीपिका टीका, आ. उदयसिंहसूरि, सं., वि. १२९५, गद्य, मूपू., (तं नमत श्रीवीर), १६३१४, १६४८१-१ (२) पिंडविशुद्धि प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (इंद्रवृदवंदित), १४३९३-३(+) पीस्तालीसआगम गणj, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम श्रीनंदीसूत्र), १६०७४ पुण्यफल कुलक, प्रा., श्लो. १६, पद्य, मूपू., (छत्तीसदीवससहस्सा), १४०९२-२, १४३१७-२ (२) पुण्यफल कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवै सो वर्षना दिन), १४३१७-२ पुराणहुंडी, सं., श्लो. २७८, पद्य, श्वे., वै., (श्रूयतां धर्मः), १६२३९, १६९७१ (२) पुराणहुंडी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., वै., (ध० धर्म सघलाई सांभल), १६२३९ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जइ णं भंते समणेणं०), १५५३४-४(+), १६३२४-४(+), १४८११-४, १६३८९-४, १७२६७-४, १६६३३-४(#) (२) पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागदेवने नमस), १५५३४-४(+), १४८११-४ (२) पुष्पचूलिकासूत्र-टिप्पण@, सं.,मा.गु., गद्य, श्वे., (--), १६३२४-४(+) पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., गा. ५०५, पद्य, मूपू., (सिद्धं कम्ममविग्गह), १६२१९-६(+) पुष्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जति णं भंते समणेणं०), १५५३४-३(+), १६३२४-३(+), १४८११-३, १६३८९-३, १७२६७-३, १६६३३-३(१) (२) पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (जौ हे पूज्य०), १५५३४-३(+), १४८११-३ (२) पुष्पिकासूत्र-टिप्पण@, सं.,मा.गु., गद्य, श्वे., (--), १६३२४-३(+) पूजासार समच्चय, म. इन्द्रनंदि, सं., गद्य, दि.. (विज्ञानं विमलं यस्य). १७००९ पृथ्वीचंद्र चरित्र, उपा. जयसागर, सं., प्र. ११, ग्रं. २६५४, वि. १५०३, पद्य, मूपू., (वीरचरणाभोज श्रयामि), १४६५१(+$) पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकाचार्य, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वनाथां), १६५७७(+), १७२४६(+) (२) पौषदशमीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीने), १६५७७(+) पौषदशमीपर्व कथा, सं., गद्य, मपू., (अभिनवमंगलमालाकरणं), १५२४८-२(+) प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., पद. ३६, सू. २१७६, ग्रं. ७७८७, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० ववगयज), १६८२५(+), १६२०८ (२) प्रज्ञापनासूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. १६०००, गद्य, मूपू., (जयति नमदमरमुकुटप्रति), १५६६६६६) (२) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, म. धनविमल, मा.ग., गद्य, मप., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १६८२५ (+) (२) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, पू., (--), १६२०८ (२) प्रज्ञापनासूत्र तृतीयपद-हिस्सा महादंडक द्वार, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, मूपू., (अहं भंते सव्वजीवा), १५७०७ (३) प्रज्ञापनासूत्र तृतीयपद का हिस्सा महादंडकद्वार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवइ भगवान सर्वजीवा), १५७०७ For Private And Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५०३ (२) प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा शरीरपद, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, मूपू., (कतिणं भंते सरीरा पं), १५४३६(+) (३) प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा शरीरपद का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवइं इग्यारमा पद), १५४३६(+) प्रज्ञाप्रकाशषविंशिका, आ. रूपसिंह, सं., श्लो. ३७, पद्य, श्वे., (प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन), १५८८४(+) (२) प्रज्ञाप्रकाशषविंशिका-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रज्ञा क० बुद्धि), १५८८४(+) प्रतिक्रमणादिफलदर्शक गाथा संग्रह, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (आवस्सएण एण सावय जो), १५६१५-२ (२) प्रतिक्रमणादिफलदर्शक गाथा संग्रह-टबार्थ, रा., गद्य, मूपू., (पडिकमणो कीयासु जो), १५६१५-२ प्रतिज्ञा श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, मूपू., (वीसलदेव नरदेवसंसदि), १४४९३-५ प्रतिमा विचार, सं., गद्य, मूपू., (अथ पुनः काः प्रतिमा), १५३७५-२ प्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), १६३१२(+$), १६९७७, १५८५८(5) प्रतिष्ठा कल्प, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (शुभ दिनै विद्यावंत ज), १६९७५(+) प्रतिष्ठा विधि संग्रह, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (--), १५५८७ प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य स्वस्ति), १५३५०(+), १६१५७(+), १५६०७-१ प्रतिष्ठा विधि संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., पू., (संपयं पयट्ठाविही), १४३५८ प्रतिष्ठासार संग्रह, मु. वसुनंदि सैद्धान्तिक, सं., अ. ६, पद्य, दि., (सिद्ध सिद्धात्म), १६१००(+) प्रबुद्धरौहिणेय, आ. रामभद्रसूरि, प्रा.,सं., अंक. ६, ग्रं. ९६१, वि. १३वी, प+ग., मूपू., (यस्योपदेशपदमप्यवगत्य), १३८९७-१ प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसरि, सं., अ. ८ परिच्छेद, गद्य, मप., (रागद्वेषविजेतारं), <प्रतहीन>. (२) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. वादिदेवसूरि, सं., अ. ८ परिच्छेद, गद्य, पू., (नमः परमविज्ञानदर्शना), <प्रतहीन>. (३) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-स्याद्वादरत्नाकर टीका की रत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., ग्रं. ५६८०, गद्य, मूपू., (सिद्धये वर्द्धमान), १५००४(+) प्रमाणवादार्थ, मु. यशस्वत्सागर, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमद्वागीश्वरी), १४३३२ प्रमादपरिहार कुलक, प्रा., गा. ३२, पद्य, मूपू., (मणवंछिअसुहजणगे अणिट), १५६८१-४(+) प्रवचनविचारसार, उपा. नयकुंजर, प्रा., अधि.८, प+ग., मूपू., (शांतिः शांतये सोस्तु), १४६३८(5) प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., द्वा. २७६, श्लो. १५९९, ग्रं. २०००, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण जुगाइजिण), १४७२५, १४५६१(६) (२) प्रवचनसारोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनई ऋषभ), १४७२५, १४५६१(क) प्रवेश नक्षत्र, सं., गद्य, श्वे., (प्रवेश नक्षत्राणि), १३९०२-१ प्रशमरति प्रकरण, वा. उमास्वाति, सं., अ. १०, श्लो. ३१३, पद्य, मूपू., (नाभेयाद्याः सिद्धा), १४१७३, १४१७४(5) (२) प्रशमरति प्रकरण-टीका, सं., ग्रं. २५५२, गद्य, मूपू., (प्रशमस्थेन येनेयं), १४१७३, १४१७४(5) प्रश्नचिंतामणि, ग. वीरविजय, सं., खं. २, ग्रं. २२००, वि. १८६८, गद्य, मूपू., (पुष्टंदीवरपीवरद्युत), १६७६०-१(+$) (२) प्रश्नचिंतामणि-बीजक, मा.गु., गद्य, मूपू., (ब्राह्मी सुंदरी), १६७६०-२(+) For Private And Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, गा. १२५०, ग्रं. १३००, प+ग., मूपू., (जंबू अपरिग्गहो संवुड), १४७७०(+), १४८७९(+#), १५३८६(+) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो जंबू इणमो कहतां), १४८७९(+#) प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), १४६४९(+5), १५४३४ (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला-कल्पलतिका वृत्ति, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. ७३२६, वि. १४२९, गद्य, मूपू., (श्रीनाभिभूर्जिनवरः), ___१४६४९(+), १५४३४ (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला-कथा, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (इहैव जंबूद्वीपप्रज्ञ), १४६४९(+), १५४३४ प्रश्नोत्तररत्नाकर, मु. शुभविजय, सं., उल्ला. ४, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य परं ज्योति), १६२१७(+) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, वा. क्षमाकल्याण, सं., प्रश्न. १५१, वि. १८५१, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं नत्वा), १७१३०(+) (२) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., प्रश्न. १५१, वि. १८५३, गद्य, मूपू., (पहिलै बोलै तीर्थंकर), १४६८१ प्रस्ताविक श्लोकसंग्रह-, मा.गु.,सं., गा. ११३, पद्य, श्वे., (विद्या भल पण अधांग), १५७८० प्रहेलिका श्लोक, क. अमर, सं., श्लो. २, पद्य, (नमन्मानववृंदस्य जिन), १४४९३-४ प्राकृतलक्षण, क. चंड कवि, सं., विधा. ४, गद्य, जै.?, (प्रणम्य शिरसा वीर), १६५२१(+) (२) प्राकृतलक्षण-अवचूरि, सं., गद्य, जै.?, (प्रकृतिः संस्कृत), १६५२१(+) बंधत्रिभंगी, मु. नेमिचंदजिन, प्रा., त्रिभं. ३, गा. ४१, पद्य, दि., (णमिऊण णेमिचंदं असहाय), <प्रतहीन>. (२) बंधत्रिभंगी-यंत्र, मा.गु.,सं., यं., दि., (आहारकद्विक), १४८२६ बंधशतक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, जै., (जीवाय १ लेस्स २ पखिय), १६२१२-१ (२) बंधशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, जै., (जी. जीव प्रति उद्देश), १६२१२-१ बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (बंधविहाणविमुक्कं), १४३०७-३(+), १४८०७-३(+), १५२०२-३(+), १५२६२-३(+), १५४८२-३(+), १५६०३-३(+), १५९८७-३(+), १६२३२-३(+), १६२६१-२(+), १६९५३-३(+), १७२१५-६(+), १७०७८-३ (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (कर्म बंधना प्रकारथी), १४३०७-३(+), १४८०७-३(+), १५२६२-३(+), १६२३२-३(+), १६२६१-२(+), १६९५३-३(+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध @, मा.गु., गद्य, मूपू., (बंध सामित्त विचार), १५२०२-३(+) बप्पभट्टसूरि व आम्रनृप दृष्टान्तकथा, सं., पद्य, मूपू., (अथ सहित्ति सखा मित्र), १६१२२-२ बीजतिथि स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (महीमंडणं पुन्नसोवन्न), १४०५९-१ बुद्धिसागर, श्राव. संग्रामसिंह नरदेव सोनी , सं., त. ४, ग्रं. ५०२, वि. १९४०, पद्य, मूपू., (श्रीवीतरागाय मोह), १५९३२ बुध स्तोत्र, सं., श्लो. ३, पद्य, वै., (बुधः चतुर्थग्रहश्च), १५३६६-१२) बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., अ. ६, ग्रं. ४७३, गद्य, मूपू., (नो कप्पइ निग्गंथाण), १४८६६-२(+), १४४९७९६) (२) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (कव० कश्चित नगरं), १४४९७(१) For Private And Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५०५ बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अ. ५ अधिकार, गा. ६५५, वि. ६वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण), <प्रतहीन>. (२) बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास, संक्षेप, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अ. ५, पद्य, मूपू., (नमिऊणसजलजलहर ___ निभस्सण), १६२०५(+), १४४२७, १५८०३ (३) बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमीने जे भगवंत सजल), १४४२७ (३) बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहेता नमीनइ), १५८०३ (२) बृहत्क्षेत्रसमास-संक्षेप जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. १४२, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलजलहर निभस्स), १४४७४(+$), १६४७२(+9), १६७१० (+$), १६७९९ (३) बृहत्क्षेत्रसमास-संक्षेप जंबूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहेतां नमस्कार), १६४७२(+s), १६७१०(+$) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., गा. ३८७, वि. १३७३, पद्य, मूपू., (सिरिनिलयं केवलिणं), <प्रतहीन>. (२) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-अवचूरि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (वीरजिनवरेंद्र सर्वे), १४५९७ (२) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नत्त्वा वीरं बृहत्), १६४८९ बृहत्शांतिस्नात्र विधि संग्रह, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु.,सं., वि. १८१४, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वपादा), १६००८ बृहत्शांतिस्नात्र विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (नमोर्हत्सिद्धाचार्यो), १६५५१, १७१९९, १५२८२-१(६) बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४९, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई ठिइ), १४४११(+5), १४७०४(+), १४८३९(+), १५८४७(+), १६१०१(+$), १६१०९(+), १६११३(+), १६२१९-९(+), १६३९४(+), १६३९५(+), १६४६२-१(+), १६७३९(+), १६९९३(+), १७०७२(+), १४८७७, १५४८४, १५५०६, १५६१६, १५६७४, १५६९२, १५८४३, १६१४८-२, १६४२६, १६५३७, १४४३५(s), १६४०९(5), १६४५९(६) (२) बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., ग्रं. ३५००, गद्य, मूपू., (अत्यद्भुतं योगिभि), १६१०९(+) (२) बृहत्संग्रहणी-वृत्ति, आ. हेमसूरि, सं., गद्य, मूपू., (तिष्ठंति नारकादि), १५३१३ (२) बृहत्संग्रहणी-अवचूर्णी, सं., गद्य, मूपू., (नमिऊ आदौ शास्त्रकार), १६११३(+) (२) बृहत्संग्रहणी-अवचूरि , सं., गद्य, पू., (नत्वा प्रणम्य), १४५६९(+5) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा गुरुपदयुग्मं), १७०७२(+) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ , मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीने अरिहंत), १६४६२-१(+) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार अरिहंता), १४४११(+5), १६१०१(+६), १६९९३(+), १५६१६, १६४०९(६) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिउं कहतां नमस्कार), १५४८४ (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथं फल), १५६९२ (२) बृहत्संग्रहणी-रास, संबद्ध, मु. प्रीतिविजय-शिष्य, मा.गु., उल्ला. ७, गा. ५५०, वि. १७७७, पद्य, मूपू., (अरिहंतादिक पांच जे), १४२५६(+) (२) बृहत्संग्रहणी-अंकयंत्रसंग्रह @, मा.गु., यं., मूपू., (--), १७१५९(+$) For Private And Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ बृहस्पति स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (ॐ बृहस्पतिः सुरा), १५१६६-५२(+#), १३९५१-१६, १५३६६-१३(-) बोल संग्रह @, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (हिवै शिष्य पूछै), १३९५३-२ भंगप्रस्तार, गांगेय, मा.गु.,सं., को., मूपू., (एक संयोगे ७ भांगा), १६०१६-१ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४४+४, ग्रं. ७७, पद्य, मपू., (भक्तामरप्रणतमौलि), १४३४६(+), १४३८६(+), १५२५६(+#), १५३२८(+), १५३७७(+), १५४५२(+), १५६५४-१(+), १५६८३(+), १५७१९(+), १५७७२(+), १५८१२(+s), १६२०७(+), १६४७९(+), १६५०१(+), १६६२१-१(+), १७०३१(+), १३९६२, १४४९०-२, १४४९५-३, १४५७२, १४८०४-१, १४९९२-१०, १४९९३-१,१५१६४, १५२०८, १५२५७, १५२६०, १५४५८, १५६९७, १५८४१, १५९१२, १६३९२, १६४४०, १६४५८, १६६८३, १६३११(६) (२) भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., ग्रं. १५७२, वि. १४२६, गद्य, मूपू., (पूजाज्ञानवचोपायापगमा), १५२०८, १६३९२, १६४५८ (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका, वा. मेघविजय, सं., ग्रं. १०००, वि. १७०१-१७८२, गद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वरपार्श्व), १३९६२ (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका, मु. रायमल्ल ब्रह्म, सं., वि. १६६७, गद्य, मूपू., दि., (श्रीवर्द्धमानं), १४९९३-१ (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, मपू., (व्याख्या किल इति), १५३२८(4) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., ग्रं. ६९३, वि. १६५२, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंददायक), १५४५२(+), १५६५४-१(+), १५७१९(+), १६६२१-१(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू., (किल इति निश्चये अहम), १६४७९(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (किल इति सत्ये अहमपि), १६२८३ (२) भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सम्यग् जिनपादयुग), १६५०१(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-(पु.हि.)सवैयाबद्ध पद्यानुवाद, पुहिं., सवै. ४८, पद्य, मूपू., (--), १६४४० (२) भक्तामर स्तोत्र-भाषानुवाद, मु. हेमराज, मा.गु., गा. ४८, पद्य, मूपू., (आदि पुरूष आदिस जिन), १३९१३, १५४८०-३, १६४४० (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (भक्तिवंत जे देवता), १५२५६(+#), १५३७७(+), १५६८३(+), १५७७२(+), १५८१२(+5), १६२०७(+), १४४९५-३, १५२५७, १५६९७, १६३११(5) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., वि. १५२७, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), १५२६०, १५६९७ (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (किल इति सत्ये), १४५८५ (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (किल इसी संभावनाई), १५४५८, १५९१२ (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा, आ. गुणाकरसूरि, सं., कथा. २८, गद्य, मूपू., (पुरामरावती जयिन्यां), १५२०८, १६४५८ (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., कथा. २८, गद्य, मूपू., (एकदा जिनमतना द्वेषी), १६२०७(+), १५२६०, १५६९७ (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा @, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमालवदेशमाहि), १५९१२ (२) भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., मंत्र. ४८, गद्य, म्पू., (ॐ ह्रीं अहँ णमो), १४८०४-१ For Private And Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., शत. ४१, ग्रं. १५७५२, गद्य, मूपु. ( नमो अरहंताणं० सव्व), १४८६९(+), १६२२१(+), (१६२२५ (+), १६९३२ (+), १५८७३ (२) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., शत. ४, ग्रं. १८६१६, वि. ११२८, गद्य, मूपू., (सर्वज्ञमीश्वरमनंतमसं), प्रतहीन " (३) भगवतीसूत्र - अभयदेवीय टीका का हिस्सा पंचनिग्रंथी प्रकरण, आ. अभयदेवसूरि प्रा. गा. १०६, वि. १९१२८, पद्य, मूपु., (पनवण वेय रागे कप्प), १६३३२(+) (४) पंचनिर्ग्रथी प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (पन्नवण इति द्वारगाथा), १६३३२(+) (२) भगवतीसूत्र - टबार्थ, मु. देवकुशल, मा.गु., ग्रं. ४५८००, वि. १७९०, गद्य, मूपू. (श्रीमद्वीरजिनं नत्वा), १६२२५ (०) (२) भगवतीसूत्र - टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते कालनइ विषइ ते), १६९३२ (+), १५८७३ (२) भगवतीसूत्र - पर्यायार्थ, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (अथ विवाहपन्नत्तित्ति), १६२२१(+) (२) भगवतीसूत्र - बीजक, मु. हर्षकुल, सं., ग्रं. ४०९, गद्य, मूपू., ( प्रणम्य परया भक्त्या), १५८४८(+), १६२०१ (२) भगवतीसूत्र- हुंडी, ऋ, धर्मसिंह, मा.गु., वि. १८८२, गद्य, म्पू., ( नवकार नमो बंभीए लिवी), १४६१० (२) भगवतीसूत्र - हिस्सा @, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, भूपू., (--), १६७९१(+) (२) भगवतीसूत्र- बोलसंग्रह @, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक मासनी दिक्षा सुभ), १५३२३ (२) भगवतीसूत्र - उद्देशसंग्रह @, संक्षेप, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, भूपू (--), १५३५८०) , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) भगवतीसूत्र-यंत्र, मा.गु., यं., मूपू., (--), १४५३४-२ भरटकद्वात्रिंशिका, ग. आनंदरत्न, सं., कथा. ३२, वि. १५वी, गद्य, मूपू., (देवदेवं नमस्कृत्य), १६३२५ भरतबाहुबली महाकाव्य, ग. पुण्यकुशल, सं., स. १८, श्लो. १५३५, वि. १६५९, पद्य, मूपु. ( अथार्षभिर्भारतभूभुजा), १५०६९ भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., गा. ५३१, पद्य, मूपु., (णमिऊण णमिरसुरवर मणि), १६८९५ (+३), १७२१३ (२) भवभावना-टबार्थ, पंन्या. शांतिविजय गणि, मा.गु., ग्रं. ३४२५, गद्य, मूपू., ( प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), १६८९५ (+$) (२) भवभावना कथा, ग, शान्तिविजय, मा.गु., गद्य, मूपू, (जम्बूद्वीपे भरत), १६८९५ (+३) भावत्रिभंगी, मु. श्रुतमुनि, प्रा., गा. ११६, वि. १४वी, पद्य, दि., (खवियघणघाइकम्मे अरहंत), <प्रतहीन>. (२) भावत्रिभंगी - बालावबोध, मा.गु., गद्य, दि., (जिनाधीशं नमस्कृत्य), १६०९० , भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., भाष्य. ३, गा. १४५, पद्य, भूपू ( वंदितु वंदणिज्जे), १६१६२(*), १६३८२१, १६४४५ (०), १७२९६(+), १४८७१, १५४८८, १५९७४- १, १६२५४-१, १६४४४, १५७०० ($) (२) भाष्यत्रय - अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपु. ( वंदि० वंदनीयान् सर्व), १६३८२(+) " (२) भाष्यत्रय-बालावबोध, मा.गु., भाष्य. ३, गद्य, मूपू., (तस्या प्रसादमासाद्य), १७२९६ (+) भाष्यत्रय, प्रा., भाष्य ३, पद्य, भूपू (तिन्नि निसीही इच्चाइ), १६२९९-४(+) , ५०७ (२) भाष्यत्रय - टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपु. ( वंदित्तु क० वांदीने), १६१६२ (१, १६४४५ (+), १५९७४१, १६४४४, १५७००(३) 9 For Private And Personal Use Only भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., श्लो. १७०, वि. १३, पद्य, मूपू., (सारस्वतं नमस्कृत्य), १५६७१ - १ (+), १३९०६, १५५१८, १६०३६, १६६६९-१. १७०५४-२ १६३५८(३) (२) भुवनदीपक- टीका, सं., गद्य, मृपू., (सर्वान् देवान्नमस्कृ), १६०३६ Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ (२) भुवनदीपक-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (सरस्वती संबंधीओ मह), १५६७१-१(+), १३९०६, १६३५८ (२) भुवनदीपक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ग्रहाधिपति १ उच्च), १५५१८ भुवनभानुकेवली चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, मूपू., (--), <प्रतहीन>.. (२) भुवनभानुकेवली चरित्र-बालावबोध, मु. हरिकलश, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिरिवीरं नमीअजिणं), १५२७० भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., ग्रं. १८००, गद्य, मूपू., (अस्तीह जंबूद्वीपे), १४३१०(+), १६३२७(+) मंगलकलश कथा, सं., पद्य, श्वे., (--), १४६३४(६) मंगलशब्द स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनाधिपमोहजय), १४१४९-१९(+) मंगलशब्दार्थ स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (जगतां प्रभुतां प्राप), १४१४९-२३(+) मंगलशब्दार्थ स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (समवाप्य जयश्रियं जग), १४१४९-२२(+) मंगल स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (मंगलो भूमिपुत्रश्च), १५३६६-११(-) मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (--), १४४८७-२ मघवन शब्दनिरूपण.सं..गद्य. वै.. (मघवा बहलमिति पक्षे). १५८५४-२ मल्लिजिन चरित्र, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (इक्खागुरायवसहो पडि), १५८८३ महानिशीथसूत्र, प्रा., अध्य. ६ चूलिका २, ग्रं. ४५४४, गद्य, मूपू., (ॐ नमो तित्थस्स ॐ), १४५११(+5) महापुरुष चरित्र, प्रा., पद्य, मूपू., (--), १६१९६(+) महालक्ष्मी स्तव, सं., श्लो. ११, पद्य, श्वे., (आद्यं प्रणवस्ततः), १४३४७-४ महावीरजिन अष्टक, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (जय श्रिये कर्ममहारि), १४१४९-५(+) महावीरजिन गीत, आ. वीरचंदसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, दि., (सद्गुणसदनं हितमितगदन), १४०८२-१० महावीरजिनद्वात्रिंशिका स्तव, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (सदा योगसाम्यात् समुद), १६४५३(+) (२) महावीरजिनद्वात्रिंशिका स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीगुरुना चरण कमलना), १६४५३(+) महावीरजिन नमस्कार, आ. विजयसेनसूरि, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वरवचनविलासप्रीणिता), १४०६१-६ महावीरजिन वृद्धस्तवन, आ. अभयसूरि, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (जइ जासमणे भगवं), १६८८४-३(5) (२) महावीरजिन वृद्धस्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जइज्जा समणे नो अर्थ), १६८८४-३(१) महावीरजिन स्तव, आ. पादलिप्तससूरि, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (गाहाजुलयेण जिणं मय), १४१४५-२(+) महावीरजिन स्तव, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., (कलशकलशरादि प्रोल्लसल), १४१४६-८ । महावीरजिन स्तव, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (जयइ नवनलिनकुवलयवियसि), १३९५७-२(+) महावीरजिन स्तव, प्रा., गा. ४३, पद्य, मूपू., (नमिउण जिणं जइजीवबंधव), १४१४५-३४(+) महावीरजिन स्तव-क्रियागुप्त, पं. शीलशेखर गणि, सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू., (चरमजिन तं कल्याणानि), १४१४५-२१(+), १४१४६-१७ महावीरजिन स्तवन-पंचवर्गपरिहार, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., (सुरासुरश्रीसुविशाल), १४१४६-१० महावीरजिन स्तवन-पंचवर्गपरिहार, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (स्वश्रेयससरसीरुहसूर), १४१४६-११ For Private And Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ महावीरजिन स्तव-पंचवर्गपरिहार, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (सेवारससुरसाल श्रीवीर), १४१४६-१२ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (रक्षतु सवलितोपसर्ग), १४१४५-२०(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वीरं देवं नित्यं), १५१६६-१९(+#), १५५९४-१३ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीमत्सिद्धार्थवंशा), १७०७१-४ महावीरजिन स्तुति-२४ दंडक, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, पू., (त्रिभुवनविभवीप्सितार), १४१४९-११(+) महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (जयसिरिजिणवर तिहुअणजण), १४१४९-९(+) महावीरजिन स्तोत्र, आ. विजयसेनसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (मनसि मानव मानव), १४०६१-१३ महावीरजिन स्तोत्र, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (प्रतप्तहेम प्रतिमप्र), १४१४५-५(+) मांसभक्षणनिषेध पाठ, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (यदुक्तं श्रावकदिनकृत), १४४३४(६) (२) मांसभक्षणनिषेध पाठ-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, पू., (--), १४४३४(६) मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ६४६, वि. ११७२, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीरं चउ), १५२१८(+), १६११९(+), १५१७१ (२) मुनिपति चरित्र-टबार्थ, मु. लब्धिहंस-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिन), १५१७१ (२) मुनिपति चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंदप्रदं), १६११९(+) मुनिसुव्रतजिन स्तव, सं., श्लो. ४०, पद्य, मूपू., (कैवल्यावगमविदिता), १४१४५-१(+) मुहूर्तमुक्तावली, आ. परमहंस परिव्राजक, सं., श्लो. ४५, पद्य, वै., (श्रीशं श्रीहरशारदां), १४४५४-१, १५०६३-१ (२) मुहूर्तमुक्तावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (श्रीपार्श्वनाथं), १५०६३-१ मृगसुंदरी कथा, सं., श्लो. १४७, पद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रथमं देवं), १६९४६(4) मेघदूत, कालिदास, सं., श्लो. ११५, ग्रं. ३५०, पद्य, वै., (कश्चित्कांताविरहगुरु), १४३६८(+), १४४७०(+), १६३७४(+), १३९८१-१, १४३४०-१ (२) मेघदूत-शिष्यहितैषिणीटीका, वा. लक्ष्मीनिवास, सं., गद्य, मूपू., वै., (कश्चित् अनिर्दिष्ट), १६३७४(+) मेघमाला, मु. केवलिकीर्ति, मा.गु.,सं., श्लो. २९६, पद्य, दि., (हर्षेण हरिणा स्तुत्य), १३९४२-१ (२) मेघमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, दि., (प्रथम कार्तिकमासे), १३९४२-१ मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., श्लो. २०१, वि. १६५७, पद्य, मूपू., (प्रणम्य ऋषभदेव), १६९७३ (२) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणमीने चरणकमल), १६९७३ मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., श्लो. ११६, वि. १५७६, पद्य, मूपू., (अन्यदा नेमिरीशाने), १५६४७ (२) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मु. सौभाग्यचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (मौनएकादशीपर्वस्य), १५६४७ मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (अरस्य प्रव्रज्या नमि), १५२४८-१(+), १६५१० मौनएकादशीपर्व कथा, प्रा., गा. १५७, पद्य, मूपू., (सिरिवीरं नमिऊण पुच्छ), १६९६७ मौनएकादशीपर्व माहात्म्य, मु. धीरविजय, सं., श्लो. १०९, वि. १७७४, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानतीर्थेश), १६५२४ (२) मौनएकादशीपर्व माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानस्वामि), १६५२४ For Private And Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अरस्य प्रवज्या), १४०५९-४ यंत्र, मा.गु.,सं., यं., जै., वै., (--), १५४९८-३ यतिदिनकृत्य, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. ४२०, वि. १७१६, पद्य, मूपू., (श्रीवीरः श्रेयसे), १६८९६ यशोधर चरित्र, मु. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., स.८, श्लो. ९६०, पद्य, दि., (श्रीमंत वृषभं वंदे), १६५३१-१(+) युक्तिप्रकाश सूत्र, ग. पद्मसागर, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (प्रणत्य व्यक्तभक्त्य), १६९२२(+) (२) युक्तिप्रकाश सूत्र-स्वोपज्ञ टीका, ग. पद्मसागर, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), १६९२२(+) युष्मदस्मद्साधनिका विधि, सं., गद्य, श्वे., (तपोश्च वाच्य लिंगत्व), १५३४६(+) (२) युष्मदस्मद्साधनिका विधि-अवचूरि, सं., गद्य, श्वे., (अथेति संज्ञा संधि), १५३४६(+) योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (यत्र वित्रासमायांति), १७०७५(+), १५२३४, १४७८४(s), १७०५८($) (२) योगचिंतामणि-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम स्त्री योग्य), १७०७५(+), १५२३४ योगशतक, धन्वंतरी, सं., श्लो. १११, पद्य, वै., (कृत्नस्य तंत्रस्य), १५०८६(+), १६७९५(+), १५१०१ (२) योगशतक-टीका, मु. पूर्णसेन, सं., गद्य, जै., वै.?, (कृत्यस्येति० कृत्स्न), १५१०१ योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १२, श्लो. १०००, पद्य, मूपू., (नमो दुर्वाररागादि), १५१७३(+s), १६२१९-७(+), १६२८९(+), १४३०५, १४३४९, १४५६७, १५८२३, १६१४८-१, १४६२२(१), १५०५५(७), १६३९१(#) (२) योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, मूपू., (अत्र महावीरायेति), १५०५५(६) (२) योगशास्त्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., प्रका. १२, वि. १५०८, गद्य, मूपू., (सिद्धार्थक्षितिपालसु), १५१७३(+S) (२) योगशास्त्र-हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, मपू., (--), <प्रतहीन>. (३) योगशास्त्र-हिस्सा १ से २ प्रकाश का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीमहावीरनइं कारणि), १६३९१(#) (२) योगशास्त्र-हिस्सा परिग्रहारंभ श्लोक, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (परिग्रहारंभमग्ना), १३९७३, १५०७७ (३) योगशास्त्र-हिस्सा परिग्रहारंभ श्लोक का शतार्थ विवरण, ग. मानसागर, सं., विव. १०६, वि. १७वी, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमप्रीत्या), १३९७३, १५०७७ ।। योगसार, मु. योगींद्रदेव, अप., गा. १०८, पद्य, दि., (णिम्मलझाणपरिट्ठया), १४७२७(+), १४६७४ (२) योगसार-(पु.हि.)टबार्थ, पुहिं., गद्य, दि., (निर्मल ध्यान विषै), १४६७४ (२) योगसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, दि., (निर्मल ध्यानने विषइ), १४७२७(+) योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीआवश्यक सुअक्खंधो), १५६०६ रघुवंश, कालिदास, सं., स. १९, पद्य, (वागर्थाविव संपृक्तौ), १४५४९(+), १५२०४(+), १५२६५-१(+), १६१३९(+), १६७८४(+), १६९१३(+), १५८८०, १६४०५, १६८५९, १४९९३-२, १४९९३-३, १५५४४(5) (२) रघुवंश-संजीवनी टीका, कोलाचल मल्लिनाथसूरि, सं., गद्य, (मातापितृभ्यां जगतो), १४७२१(+), १७२८३, १४९९३-३ (२) रघुवंश-सुबोधिका टीका, ग. श्रीविजय, सं., ग्रं. ८०००, गद्य, जै., (अहं कालिदासनामाकविता), १७२२२, १५५४४(६) रत्नवती कथा-विषयत्यागे, सं., श्लो. १२८, पद्य, मूपू., (शिवश्रीदायक), १४३११-२ For Private And Personal Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५११ रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., श्लो. ५५०, पद्य, पू., (नमिऊण जिणवरिंदे उवया), १४३०२, १७२५० (२) रत्नसंचय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीमहावीरनै नमस्कार), १४३०२ रत्नसार कथा, सं., गद्य, मूपू., (--), १४४१५(+5) रत्नसार संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (हवें पल्योपमनो), १५९७७(६) रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्रियां मंगल), १६०४८-१(+), १६२०९(+), १४०६१-१०, १७१५७ (२) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो कल्याणक लक्ष्मी), १६०४८-१(+) (२) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रेयः कल्याण अनइ), १६२०९(+) । राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., सू. १७५, ग्रं. २१००, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), १४६८५(+), १४६८८(+#), १५४९२(+s), १६६३४(+), १६१७३(३) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ३७००, गद्य, मूपू., (प्रणमत वीरजिनेश्वर), १४८८७(+#) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., ग्रं. ५५००, गद्य, मूपू., (देवदेवं जिनं नत्वा), १४६८८(+#) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हुवउ० चउथा), १४६८५(+), १५४९२(+$) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-बालावबोध, मु. श्रवणशिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवि पुण्यवंत हुइ ते), १४६९०(+) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टिप्पण, सं., गद्य, पू., (अथ कस्मात् इदं उपांग), १६६३४(+) राह स्तोत्र, सं., श्लो.५, पद्य, वै.. (ॐ नमो सैंहिकेयाय). १३९५१-१५ रूपसेनकनकावती चरित्र-चतुर्थव्रत पालने, आ. जिनसूरि, सं., श्लो. २२४, ग्रं. १५३०, पद्य, मूपू., (श्रीमंतं विदुर शांत), १५५८३(+), १७२४४(+) (२) रूपसेनकनकावती चरित्र-चतुर्थव्रत पालने-टबार्थ, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर नीरोग पामे सो), १५५८३(+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., अधि. ६, गा. २६३, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय), १६१२९(+), १६१५५(+), १६४२८(+), १६४५०(+5), १६४७५(+$), १६७७३(+६), १७१४८(+), १४७२०, १५७४१, १६४७३ (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., अ. ६, वि. १५वी, गद्य, मूपू., (अहमिति ब्रह्मपदं), १६१७२ (३) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अर्हमिति ब्रह्मपदं०), १४७२० (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीर श्रीमहावीर केहवा), १६४५०(+$) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध , पंन्या. दयासिंह, मा.गु., ग्रं. ४११७, वि. १५२९, गद्य, मूपू., (हुं ब्रह्मज्ञाननु), १५७४१ (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीर क० श्रीमहावीर), १६४२८(+) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध , मु. वत्सराज, मा.गु., वि. १६६५, गद्य, पू., (--), १६४९०(+5) लघुनंदीसूत्र-अनुज्ञानंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., सू. ३०, गद्य, मूपू., (से किं तं अणुण्णा), १७२०८-२(१) लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., कां. ३, श्लो. ४६१, ग्रं. ५५०, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परमात्मानं), १५८५२) For Private And Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., श्लो. १७+२, पद्य, मूपू., (शांति शांतिनिशांत), १४१४५-३६(+), १५०७६-२(+), १६३३७-३(+), १६४८४-३(+), १६६००-२(+), १४४९५-२, १५१७८-३, १६७४५-३, १६८०३-२, १७०१५-२, १७२११-२ (२) लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीशांतिनाथ शांति), १५०७६-२(+), १६३३७-३(+) (२) लघुशांति-बालावबोध, ग. दयाकीर्ति वाचक, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमानदेवाचार्य), १४४९५-२ लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, पू., (नमिय जिणं सव्वन्नु), १४८६५(+), १५३२५, १५५२६, १५७८९, १७०२३ (२) लघुसंग्रहणी-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिय क० नमस्कार करी), १४८६५(+), १५३२५, १५५२६, १५७८९, १७०२३ (२) लघुसंग्रहणी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जबूद्वीप एक लाख), १६६६८-१(+) (२) लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल @, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (लाख जोयणनो जंबूद्वीप), १४८५३-१, १५७३१, १६६५९-२ लवंगादिक क्वाथ, सं., पद्य, वै., (लविंग क्षुद्रा दशमूल), १६००७-३ लीलावती, आ. भास्कराचार्य, सं., प+ग., वै., (प्रीति भक्तजनस्य), १५९५६(+), १५२२१-१, १५२२३ (२) लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., अ. १६, गा. ७०७, वि. १७३६, पद्य, पू., वै., (सोभित सिंदूर पुर), १४८४५(+), १४३१८ लोकतत्त्वनिर्णय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., श्लो. १४५, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्यैकमनेक), १४०६६-२(+) लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. ३२, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जिणदसणं विणा जं), १६७०६(+$), १४३००-१, १५७६३ (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-टीका, सं., गद्य, मूपू., (जिणदसणं गाथा जिन), १४३००-१ (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-वार्तिक, ऋ. मोल्हा, मा.गु., गद्य, श्वे., (आदिदेवं नमस्कृत्य), १५७६३ (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., वि. १७१९, गद्य, म्पू., (पणमिय जिणपयपंकयरयेमि), १६७०६(+$) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-विषमपद टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (समत्तचरण अस्य), १४३००-२ वज्रपंजर स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (ॐ परमेष्ठि), १४१४५-१४(+), १४०६१-१६, १४३४७-३, १४८०४-२ वडोदरा में पोडवाड गच्छ की चर्चा, मु. दीपविजय, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रथम दशवैकालिक की), १६८५८ वरदत्तगुणमंजरी कथा, ग. कनककुशल, सं., श्लो. १५०, वि. १६५५, पद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), १५५६४(+), १५६९८(+), १५५६६, १७१५६, १७२६४, १६७५८(६) (२) वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), १५५६४(+), १५५६६, १७१५६ (२) वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ प्रतै), १७२६४, १६७५८(5) वरदत्तगुणमंजरी कथा, सं., गद्य, मूपू., (ज्ञानं सारं सर्व), १५५११(+), १६४३६, १६४४२, १६७५९($) वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., उल्ला. १०, ग्रं. ४३००, गद्य, म्पू., (नमः श्रीपार्श्वनाथाय), १७१३७(5) वसंतविलास महाकाव्य, आ. बालचंद्रसूरि सिद्धसारस्वत, सं., स. १४, ग्रं. १५१६, पद्य, मूपू., (श्रीकांतनाभिप्रभवानन), १५०९६ For Private And Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ वसतिदानादि विषयक दृष्टांत कथासंग्रह, प्रा.,सं., कथा. ८, गद्य, मूपू., (वसही सयणासण भत्तपाणे), १५५९७ वसधारा स्तोत्र, सं., गद्य, मप., बौ., (संसारद्वयदैन्यस्य), १४०६५-१(+), १६१४३(+$), १६३०७(+), १६७५७(+), १४९२९-४, १५१२२, १५४७२, १६२७६, १६७३२ (२) वसुधारा स्तोत्र-विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., बौ., (पुत्रवती स्त्री पासे), १४९२९-२, १५४७२ वस्तपालमंत्री चरित्र, ग. जिनहर्ष, सं., प्र. ८, वि. १४९७, पद्य, मप., (श्रीमानहन शिवः),१४६६८) वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., श्लो. १२८, वि. १५०७, पद्य, मपू., (प्रणम्यात्मविद), १५७५५ वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., परि. ५, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (श्रियं दिशतु), १४५७०(+) वाचना विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (मुहपति पडिलेहवी), १६५३२-२ विंशतिचंद्रनाम स्तोत्र, सं., श्लो. ६, पद्य, वै., (हिमांशु प्रथमं नाम), १५३६६-१०(-) विचार प्रश्न संग्रह, सं.,प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १४४२२(६) विचार संग्रह, प्रा.,मा.ग., पद्य, जै., (अद्दामलग पमाणे पढवि). १६७८२(६) विचार संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, पू., (जोअणसयं तु गंता अणहा), १६८६७ विचार संग्रह (सं.प्रा.मा.गु.), प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), १५१९८-४(+), १५२६६(+), १५२७९-४ विचारश्रेणी, सं..?, (--), (प्रतहीन>. (२) विचारश्रेणी-व्याख्या, आ. मेरुतुंगसूरि, सं.,प्रा., गद्य, पू., (जं रयणिं कालगओ इति), १४३३० विचारसारोद्धार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (--), १४६७६(#$) विचारामृतसार संग्रह, आ. कुलमंडनसूरि, सं., वि. १४७३, प+ग., मूपू., (श्रीवर्द्धमानसूर्यो), १४३६५ विचारामृतसार संग्रह, ग. जिनहर्ष, सं., कथा. २०, ग्रं. २८००, वि. १५०२, पद्य, मूपू., (श्रीभूर्भुवः स्व), १५५३१(+) विजयरत्नसूरि स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नृपतिनाभिकुलांबरभास), १५५३३-२४(+) विजयाविजयश्रेष्टि कथा, मु. हेमविजय, सं., श्लो. ८४, पद्य, मूपू., (प्रणम्य हरिवंशाब्धि), १६१२२-३ विदग्धमुखमंडन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., परि. ४, श्लो. २७६, पद्य, बौ., (सिद्धौषधानि भवदुःख), १४३३९(+), १६७१७(+), १६७२५(+), १५७२३, १४५३५(5) (२) विदग्धमुखमंडन काव्य-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., बौ., (ग्रंथादौ धर्मदासनामा), १६७१७(+) विद्यानंद व्याकरण, आ. विद्यानंदसूरि, सं., वि. १४वी, गद्य, मूपू., (--), १४६००(5) (२) विद्यानंद व्याकरण-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. विद्यानंदसूरि, सं., वि. १४वी, गद्य, मूपू., (--), १४६००(६) विद्यार्थी पंचलक्षण श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (काकचेष्टा बको ध्यान), १४९४९-१८ विद्याविलास कथानक-पुण्यप्रभावे, सं., गद्य, मूपू., (धर्माज्जन्मकुले शरीर), १६१२२-१ विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., श्रु. २ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), १४६९७(+), १५४४०(+६), १६३९९(+), १६६१०, १७१३५, १७१७४ (२) विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ विपाकश्रुत किसउ), १४६९७(+), १५४४०(+६), १६६१०, १७१३५, १७१७४ विविध विचारसंग्रह, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (उस्सेइम संसेइम चाउलो), १४३५४ For Private And Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ विविध विचारसंग्रह, प्रा.,सं., पद्य, मूपू., (तस जीवाणविधाउ तेह), १४३१७-४ (२) विविध विचारसंग्रह-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १४३१७-४ विविध श्लोकसंग्रह, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (सर्वदोषविनिर्मुक्तः), १४१४५-३३(+) विवेकमंजरी, श्राव. आसड कवि , प्रा., गा. १४४, वि. १२४८, पद्य, मूपू., (सिद्धिपुरसत्थवाह), १६२१९-५(+) विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., उल्ला. १२, पद्य, मूपू., (शाश्वतानंदरूपाय तमस), १६२२८ विहरमान २० जिन स्तवन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (वंदे सीमधरं देव), १४१४४-४(+) वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. २०, पद्य, मूपू., (यः परात्मा परं), १६२१९-८(+), १६४८८(+), १६४९१($), १६६२४(+), १६६९६(+), १७२२०(+), १६२६३-२, १४००८(१) (२) वीतराग स्तोत्र-अवचूरि , मु. विशालराजसूरि-शिष्य, सं., प्रका. २०, वि. १५१२, गद्य, मूपू., (जयति श्रीजिनो वीरः), १६४९१(+s) (२) वीतराग स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे परात्मा परम आत्मा), १६४८८(+), १७२२०(+) (२) वीतराग स्तोत्र-हिस्सा अष्टम प्रकाश, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (सत्वस्यैकांतनित्यत्व), १४०६६-१(+) (३) वीतराग स्तोत्र-हिस्सा अष्टम प्रकाश-टीका, सं., गद्य, मूपू., (ननु सिद्धं स्वयं), १४०६६-१(+) वृत्तरत्नाकर, केदार भट्ट, सं., अ. ६, ग्रं. १८९, पद्य, वै., (सुख संतान सिध्यर्थं), १४८७०(+), १६०१४(+), १६९०४ (२) वृत्तरत्नाकर-बृहद्वृत्ति, ग. सोमचन्द्र, सं., ग्रं. ११९०, वि. १३२९, गद्य, मूपू., वै., (यत्पादाग्रनखांशुराजि), १६३०६(+) वृष्टिफलाफल विचार, सं., श्लो. ७, पद्य, वै., (कृतिकायां घनो देवी), १३९४२-२ (२) वृष्टिफलाफल विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, वै., (च्यार नक्षत्रना पाईय), १३९४२-२ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., अध्य. १२, गद्य, मूपू., (जइ णं भंते० पंचमस्स), १५५३४-५(+), १६३२४-५(+), १४८११-५, १६३८९-५, १७२६७-५, १६६३३-५(#) (२) वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जौ हे पूज्य० पांचमान), १५५३४-५(+), १४८११-५ (२) वृष्णिदशासूत्र-टिप्पण@, सं.,मा.गु., गद्य, श्वे., (--), १६३२४-५(+) वैद्यजीवन, क. लोलिंबराज, सं., विला. ५, पद्य, वै., (प्रकृति सुभगगात्रं), १५८४६(+), १५८९२(+), १६१०८-१(+), १३९६०, १५१२४, १६४८२ (२) वैद्यजीवन-टबार्थ, पंडित. ज्ञानतिलक गणि, मा.गु., गद्य, मपू., वै., (श्रीपार्श्वेशं जिन), १५८४६(+) वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., विला. ९, श्लो. ३२६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (सरस्वतीं हृदि ध्यात्), १६०८९(5) (२) वैद्यवल्लभ-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसरस्वती देवता), १६०८९($) वैराग्यशतक, भर्तृहरि, सं., श्लो. ११६, पद्य, वै., (चुडोत्तंसितचंद्रचारु), १६९००-३(+) (२) वैराग्यशतक-टीका, पा. धनसार उपाध्याय, सं., वि. १५३५, गद्य, मूपू., वै., (तस्मै शांताय तेजसे), १६९००-३(+) वैराग्यशतक, प्रा., श्लो. १०५, पद्य, मूपू., (संसारंमि असारे नत्थि), १५५५७-२(+), १५५८१(+), १५६८१-२(+), १७१९२(+), १४३२८, १४४९६, १४८९५, १६७०५, १६८५१, १७०८५ (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, सं., गद्य, म्पू., (वीरं वारिधिगंभीरं), १४८९५ For Private And Personal Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir . . संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (स० चार गतिरूप संसार), १५५८१(+) (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसार असारमाहि नथी), १५५५७-२(+), १७१९२(+), १४३२८, १४४९६, १६७०५, १६८५१, १७०८५ व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. १०, ग्रं. ३७३, गद्य, मूपू., (जे भिक्खू मासिय), १४७३७(+), १४७७३(+), १४८६६-१(+), १६१२८(+), १६८२६(+5), १६९३९(+) (२) व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. २५००, गद्य, मूपू., (जे० जे कोइ भि० साधु), १४७३७(+), १६१२८(+), १६८२६(+5), १६९३९(+) (२) व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (प्रणम्य श्रीमहावीर), १४७७३(+) (२) व्यवहारसूत्र-चुलिका, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० पाडलीपु), १५३३० (२) व्यवहारसूत्र-वचनिका, संबद्ध, मा.गु., उ. १०, गद्य, मूपू., (जे साध अथवा साध्वी), १५०२८ व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (जिनेंद्रपूजा गुरू), १५७७१-२(+) व्रतविधान, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अथ शील कल्याण उपवास), १६०५१ व्रतोच्चार विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (महोत्सवपुर्वका नालिक), १५०१४-१ शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १००, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं धुवबंधोदय), १४७०७(+), १५२०२-५(+), १५२०७(+), १५२६२-५(+), १५४८२-५(+), १५६०३-५(+), १६१८२-२(+), १६२८६-२(+), १७२१५-७(+), १४८४७, १६७१४-१, १७०५५-१, १७०७८-५ (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. ४३४०, गद्य, मपू., (यो विश्वविश्वभविनां), १५२०७(+) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, म्पू., (नमिअजिणं० मिथ्यात्व), १६२८६-२(+) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (परमात्मानई भव्य), १४७०७(+), १५२६२-५(+), १६१८२-२(+), १४८४७ (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीतराग नमस्करीनइ), १५२०२-५(+) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), १५४८२-५(+) शतपंचाशीतिका संग्रहणी, मु. उत्तम, प्रा., गा. १८६, वि. १६८९, पद्य, श्वे., (नमिउं उसभाइ जिणे), १५७९१(+) (२) शतपंचाशीतिका संग्रहणी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (नमस्कार करीनें ऋषभ), १५७९१(+) शत्रुजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. ३९, पद्य, मूपू., (सुअधम्मकित्तिअंतं), १४०९२-४ शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरिपाटिका, सं., श्लो. २४, पद्य, मूपू., (नमेंद्रमंडलमणिमय), १४१४५-३०(+) शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ), १४०९२-३, १५१५४ (२) शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अइमुत्तइ केवलीइ), १५१५४ शत्रंजयतीर्थस्तवन, सं., श्लो. ५, पद्य, मप., (आदिनाथ जगन्नाथ विमला), १४१४४-९(+) शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., स. १४, ग्रं. १००००, पद्य, पू., (ॐ नमो विश्वनाथाय), १४६५८(+६), १५८७५(+), १६३०० (२) शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीयुगादीशं), १५८७५ (+), १६३०० For Private And Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ शनिभार्या नाम, सं., श्लो. २, पद्य, वै., (ध्वजनी धामनी चैव), १५३६६-२ शनिश्चर स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (यः पुरा राज्यभ्रष्टा), १५१६६ - ५१ (+#), १३९५१ - १४, १५३६६ - १५) शांतसुधारस, उपा. विनयविजय, सं. भा. १६, श्लो. २३४, वि. १७२३, पद्य, म्पू., (नीरंध्रे भवकानने), १४४०९ (+) (२) शांतसुधारस टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू., (किं विशिष्टे भवकानने), १४४०९) 9 शांतिचक्र पूजा, सं., गद्य, वे., (अर्हद्वीजमनाहतं च), १६०७३ शांतिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ३३, पद्य, मृपू., (अप्पडिहयधम्मचक्केण), १६३२८-२ (२) शांतिजिन चरित्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अप्रतिहत अस्खलित), १६३२८-२ शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. कुशलसागर, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (सकलदेवनरेश्वरवंदितं), १४०६१-९ शांतिजिन स्तव, आ, जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २०, पद्य, मूपु., ( श्रीशांतिनाथ भगवान), १४१४६-१४ शांतिजिन स्तवन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (जयश्रियं यस्तनुते), १४१४९-२० (+) शांतिजिन स्तोत्र, मु. उत्तमरत्न, मा.गु., सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., ( स्मर शांति जिन जिन ), १५२९२-६ शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., प्र. ६, श्लो. १६३२, ग्रं. ५०००, वि. १३०७, पद्य, मूपू., ( श्रेयोरत्नकरोद्भूता), १४४६५ (+$), १४५७९ ($) शांतिनाथ चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि सं., प्र. ६, वि. १५३५, गद्य, मृपू., (प्रणिपत्यार्हतः सर्व), १५४२७ (+), १४७६४ शांतिपूजा विधि, मा.गु. सं., गद्य, मृपू., ( ननु संघादीनां विघ्नो ), १५२८२-२ शांतिस्नात्र विधि, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., सं., पद्य, मूपू., (अथ प्रतिष्ठायां वा ), १६९९९ शांतिस्नात्रविधि भाषा, मा.गु., सं., गद्य, भूपू., ( तिहां चंद्रबल योगह), १५२८२-३ शारदामाता छंद, प्रा.,मा.गु., सं., श्लो. ४४, वि. १६७८, पद्य, श्वे., (सकल सिद्धि दातारं), १५३९३-२ शालिभद्र चरित्र, पंडित. धर्मकुमार, सं., प्रक्र. ७, ग्रं. १२२४, वि. १३३४, पद्य, मूपू., (श्रीदानधर्मकल्पद्रु), १६४०४ शाश्वतजिन स्तवन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (नामाकृतिद्रव्यभावैः), १४१४४-८(+) शाश्वतजिन स्तवन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., ( शाश्वततीर्थनाथानां ), १४१४४-७(+) शिशुपालवध, क. माघ, सं., स. २०, पद्य, ( श्रियः पतिः श्रीमति), १४३७९ (+), १४६८२(१), १५२१३ (२) शिशुपालवध - अवचूरि, वा. मेरुचंद्र, सं. ग्रं. ७२६५, गद्य, मूपू. वै., (), १५६७५ (AS) शीलगुप्ति कुलक, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीरं भणामिह ), १६११७-१ " शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., कथा. ४३, गा. ११५, पद्य, मूपू., ( आबालबंभयारिं नेमि ), १७२८१ (+), १५२४९ (२) शीलोपदेशमाला - बालावबोधकथा, ग. मेसुंदर, मा.गु., प्र. ६२५०, वि. १५५१, गद्य, मूपू., (श्रीवामेवममेयश्री सहि), १५२४९ (२) शीलोपदेशमाला-कथा @, मा.गु., गद्य, मृपू., ( लाख जोअण प्रमाण जंबू), १५२४९ शीलोपदेशमाला, आ. जयवल्लभसूरि, प्रा., गा. ११६, पद्य, म्पू., ( आबाल बंभवारि नेमि ), १६५२८-१ शुकसप्तति कथासंग्रह, सं., कथा. ७०, गद्य, मूपू., (प्रणम्य शारदां देवीं ), १४६५३-१ शुक्र स्तोत्र, सं., श्लो. ३, पद्य, वै., (प्रथमं शुक्रनामश्च), १५३६६-१४) For Private And Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५१७ शुक्लपंचमीतिथि विचार, सं., श्लो. ७, पद्य, श्वे., (चैत्य मासस्य पंचम्या), १४२६१-२ शुभकांता दृष्टांत, प्रा., गा. २१६, पद्य, मूपू.?, (अह हरि विक्कमराओ जाओ), १६११७-३ शृंगारवैराग्यतरंगिणी, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. ४६, पद्य, मूपू., (धर्मारामदवाग्निधूम), १५३७३(+) शृंगारशतक, भर्तृहरि, सं., श्लो. १००, पद्य, वै., (शंभुस्वयंभुहरयो हरिण), १६९००-२(+), १६५४० (२) शृंगारशतक-टीका, पा. धनसार उपाध्याय, सं., वि. १५३५, गद्य, मूपू., वै., (हरो महेशः योगिनामवगत), १६९००-२(+) श्राद्धजीतकल्प, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. १४२, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (कयपवयणप्पणामो जीयगयं), १४२९८-१(+) (२) श्राद्धजीतकल्प-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (आचारवान् ज्ञानादिपंच), १४२९८-१(+) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., श्लो. ३४१, ग्रं. ३९०, पद्य, मूपू., (वीरं नमिऊण तिलोयभाणु), १४७०३, १५८९६ (२) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीरं कहीइ श्रीमहावीर), १४७०३, १५८९६ श्राद्धलघुजीतकल्प , आ. तिलकाचार्य, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (सिरिवीरजिणं नमिङ), १४२९८-२(+) (२) श्राद्धलघुजीतकल्प-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (लघुपंचकं लघुदशकं), १४२९८-२(+) श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सच्चित्त दव्व विगई),१६५३५-२(+), १५६७७-२ (२) श्रावक १४ नियम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पाणी फल बीज दातण ते), १५६७७-२ (२) श्रावक १४ नियम गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सचित्त कहिता सचित्त), १६५३५-२(+) श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., अधि. ५, ग्रं. १६६, वि. १६६७, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं प्रणिपत), १५९७५-१(+), १५८६३ (२) श्रावक आराधना-बालावबोध, उपा. राजसोम, मा.गु., वि. १७१५, गद्य, मूपू., (इहां आराधनाने विषे), १४०२६-१ श्रावक आलोयणा विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम मुहूर्त), १५१०२, १६२७५, १६९६६ श्रावक आलोयणा विधि, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (स्मारं स्मारं जिनें), १५९७६ श्रावक के १४ प्रकार, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (मृता चालिणी महिख हश), १५२७९-९ श्रावकविधि प्रकाश, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., वि. १८३८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीशं), १५५८०(+) श्रावकाचार, आ. देवसेन, अप., गा. २२४, पद्य, दि., (णवकारे प्पिणु पंच), १५९८१ श्रीचंद्रकेवलि चरित्र, मु. सिद्धर्षि, सं., अधि. ४, श्लो. ९६६, वि. ५९८, पद्य, मूपू., (ॐ ध्यात्वा श्रीजिन), १५८८२(६) (२) श्रीचंद्रकेवलि चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐकार सिद्धनो ध्यान), १५८८२(5) श्रीपाल चरित्र, मु. जयकीर्ति-शिष्य, सं., प्र. ४, ग्रं. १२५७, वि. १८६८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य सिद्धचक्रं), १५९१७( श्रुतदेवी स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (कमलदल विपुलनयना कमल), १४३५०-५ श्रुतदेवी स्तुति, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सुयदेवयाय जक्खो कुंभ), १६०५८-२ श्रुतबोध, कालिदास, सं., श्लो. ४१, पद्य, वै., (छंदसां लक्षणं येन), १६३२१(+), १५२८५, १६५४८ (२) श्रुतबोध-मनोरमाटीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., वै., (श्रीमत्सारस्वत धाम), १६५४८ श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं.,हिं., पद्य, मूपू., (कलकोमलपत्रयुता), १४६५९-२(+), १५४८२-८(+), १५६५४-२(+), १५७६१-२(+), १४१८९-२, १५२७८-२, १६९१९-२ For Private And Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५१८ (२) श्लोक संग्रह - टीका, सं., गद्य, मूपू., (--), १४६५९-२ (+) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे., (देहे निर्ममता गुरौ), १५८२२ - २ (+), १६०४८ - २ (+), १६३४९-३(+), १५२७२-२, १५४२२-२, १५४४२-२, १५९२८ ($), १६७८९-३ (#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १५२७२-२, १५४२२-२ (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १५९२८ ($) षट्त्रिंशज्जल्पविचार संग्रह, मु. भावविजय, सं., वि. १६७९, गद्य, मूपू., (ॐ नमः श्रीपार्श्वनाथ), १६३५९( षट्पंचाशिका, आ. पृथुयशा, सं., अ. ७, श्लो. ५६, पद्य, वै., ( प्रणिपत्य रविं), १५१४० - १(+), १५७५३ (+), १५९११-१(+#), १४३४४-१, १५५२८, १५८४९, १५९०६, १६०२८, १६०९४, १६३१५-१, १६१३१(१), १७०५४- १(5) कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ षट्पुरुष चरित्र, ग. क्षेमंकर, सं., प+ग, मृपू., (श्रीअर्हतञ्चतुस्), १६९५५ (+), १६०३७ षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ८६, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं जियमग्गण), १५२०२-४ (+), १५२६२-४(+), १५४८२-४(+), १५६०३-४(०), १५९८७-४(+), १६१८२-१(+), १६२८६-१(+), १६९३७/*), १७२१५-४(०), १७०७८-४ (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं. ग्रं. २८००, गद्य, मूपु., (यद्भाषितार्थलवमाप्य), 19 १६२८६-१(+) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. श्रुतसागरशिष्य, मा.गु., गद्य, मृपू., (गुरुक्तचिंतामणि), १६९३७ (+) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू., (हवई चउथा कर्मग्रंथ), १५२६२-४ (+), १६१८२- १) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मृपू., ( वीतरागदेव नमस्कार), १५२०२-४ (+) षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि सं., अधि ७, श्लो. ८७, पद्य, मृपू., (सदर्शनं जिनं नत्वा), १४२०१ (+), १४६२३ (+३), १५१७०(१), १६४०२ (२) षड्दर्शन समुच्चय-तर्करहस्यदीपिका टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., अधि. ७, ग्रं. ५७७३, गद्य, मूपू., (जयति विजितरागः केवला), १५१७० (+) " (२) षड्दर्शन समुच्चय- लघुवृत्ति, आ. सोमतिलकसूरि, सं. ग्रं. १२५०, वि. १३९२, गद्य, मूपू., (सज्ञानदर्पणतले विमले), १४२०१०), १४६२३+३) १६४०२ - षष्टिशतक प्रकरण, श्राव, नेमिचंद्र भांडागारिक, प्रा., श्लो. १६१+४, पद्य, भूपू., ( अरिहं देवो सुगुरू), १६२८२ (+), १६०६३ (२) षष्टिशतक प्रकरण- टीका, मा.गु., गद्य, मूपू., (सर्वशदेव सुसाधु), १६०६३ संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. गा. १२५+२, पद्य, मूषू., (नमिऊण तिलोअगुरुं), १४५५५ (+), १४८४३+) १४८५२(*), १६७०३(*१, १४५०६, १४८६७, १५७३२, १७२२९, १४५१७/३१, १४५२४(5), १६८८४ - १(३) (२) संबोधसप्ततिका - अवचूरि, सं., गद्य, मूपु., (नत्वा त्रैलोक्य गुरु), १५७३२ (२) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनइ तिन), १४५५५ (+), १४८४३ (+#), १६७०३(+), १४५०६, १४८६७, १७२२९, १४५२४(३) १६८८४-१ (5) ($), (२) संबोधसप्ततिका बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वेदिय पासजिणंद तह), १४५१७(३) संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि सं., प्रा., श्लो. ४, पद्य, भूपू (संसारदावानलदाहनीर), १५१६६-५ (००), १५५३३-५ (१), १४४५९-१३, १५७६७-२ For Private And Personal Use Only ܕ Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. १२२, पद्य, मृपू., (काऊण नमुक्कारं जिणवर), १६७८६ (२) संस्तारक प्रकीर्णक-वालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू., (श्रीमद्वीरं नमस्कृत्), १६७८६ सकलजिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., गा. ६, पद्य, मूपू., (त्रिजगत्प्रभुता), १४१४९-२४(+) सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, आ. मल्लिषेण, सं., श्लो. २५, पद्य, दि., (नत्वा वीरजिनं जगत्त), १६००९०) (२) सज्जनचित्तवल्लभ काव्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, दि., (नमस्कार करकै श्रीवीर), १६००९(+) सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., गा. ७२, पद्य, मूप. (सिद्धपएहिं महत्वं), १५२६२-६(+), १५४८२-६(+), १५६०३-६ (+), , १६१८२-३(+), १६२८६-३ (+), १७२१५-८(+), १७२४२ (+), १६७१४-२, १७०५५-२, १७२३१ (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्ध निश्चल पद छइ), १५२६२-६(+), १६१८२-३ (+), १७२४२(+), १७२३१ (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए गाथाने विषै च्यार), १७२४२(+) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-यंत्र, पंन्या. सुमतिवर्धन, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीजिन प्रते नम), १४३१६ (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ - यंत्रसंग्रह, मा.गु., यं., मूपू., (--), १४५९९-१ सप्ततिशतजिन स्तवन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू (षष्ट्या युतं शतं), १४९४४-५ () , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., गा. ३६०, वि. १३८७, पद्य, मृपू., (सिरिरिसहाइ जिनिंदे), १४३९४-१ (+), १७२३२-१(+), १५२८४ (२) सप्ततिशतस्थान प्रकरण- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक जिनेंद्र), १४३९४ - १ (+), १७२३२-१(+) सप्तसंधान महाकाव्य, उपा. मेघविजय, सं., स. ९, ग्रं. ४४२, वि. १७६०, पद्य, भूपू (श्रीनाभिजन्मान्वयपद), १४५९८ (+३) (२) सप्तसंधान महाकाव्य-वृत्ति, सं., गद्य, म्पू, (प्रणम्य सर्वान् सकला ), १४५९८ (६) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., स्मर. ७, पद्य, मूपु., (णमो अरिहंताणं० हवइ), १४८०९ (+), १५९०० (+), १६६००-१(+), १७२९३, १४४९५ १३, १६७९८-३(०), १७०१५-१(४) (२) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अजितनाथ जीता छइ सर्व), १४८०९ (+), १४४९५-१($) (२) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-टिप्पण @, सं., गद्य, मूपू., (--), १५९०० (+$) समयसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., गा. ४१५, पद्य, दि., (वंदितु सव्यसिद्धे), <प्रतहीन. ५१९ समयसार प्रकरण, आ. देवानंदसूरि, प्रा., अ. १०, वि. १४६९, गद्य, मूपू., (सव्वन्नु मोक्खमक्खत), १५४७५ (२) समयसार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञदेव मोक्ष), १५४७५ समवसरणशतक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, म्पू., ( कतिणं भंते समोसरणा), १६२१२-२ (२) समवसरणशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (केवल हे भगवन्), १६२९१२-२ (२) समयसार-आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., प+ग., दि., ( नमः समयसाराय स्वानुभ), <प्रतहीन >. (३) समयसार - आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., श्लो. २७८, पद्य, दि., (नमः समयसाराय स्वानु), < प्रतहीन > . (४) समयसार नाटक- पद्यानुवाद, श्राव, बनारसीदास, पुहिं., गा. ७२७, ग्रं. १७०७, वि. १६९३, पद्य, दि., (करम धरम जग तिमिर), १५५९६(४) For Private And Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. गा. २४, पद्य, मूपू., ( धुणिमो केवलीवत्यं), १६८४७(१), १५१२३, १६४९४ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) समवसरण स्तव - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तीर्थंकरं समवसरणस्थं), १७२०० (२) समवसरण स्तव-टबार्थ, पंन्या. रुपविजयजी, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्तवनां करुं छु), १६४९४ (२) समवसरण स्तव-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणि प्रणतं ), १६८४७(+), १५१२३ समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०३, सू. १५९, ग्रं. १६६७, गद्य, मूपू., (सुयं मे० इह खलु समणे), १५३८३(+), १५३७९-२, १५४८५ (२) समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., ग्रं. ४४७४, वि. १७उ, गद्य, मूपू., (देवदेवं जिनं नत्वा), १५३८३(+) समस्या श्लोक, सं., श्लो. ४४, पद्य, श्वे., (वंध्याः योंध: कुहुनि), १४४९३ - २ समस्या श्लोक संग्रह, आ. कुलमंडनसूरि, सं., श्लो. ८८, पद्य, भूपू (फणींद्रो यइक्रकृत), १४४९३-१ " समाधिशतक, आ. देवनंदी, सं., श्लो. १०६, पद्य, दि., (येनात्माबुध्यतात्मै), <प्रतहीन> (२) समाधिशतक दोधकछंदमय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. १०४, पद्य, मूपू., दि., (प्रणमी सरसति भारती), १७०४७ सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., गा. ४४४, ग्रं. १६७५, वि. १४५७, गद्य, भूपू (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १५२१६ (+३), १६७९०+) सम्यक्त्वकौमुदी कथा, आ. गुणाकरसूरि, सं., श्लो. १५३३, ग्रं. १५३३, वि. १५०२, पद्य, मूपु. ( तस्मै नित्यं चिदानंद), " १६२५१-१ सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., गा. २५, पद्य, मृपू., (जह सम्मत्तसरूवं), १६५८५- १(+), १४१२८-१, १६८८२ (२) सम्यक्त्वपच्चीसी - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., ( यथा येन औपशमिकत्वादि), १६८८२ , (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जह कहतां जे उपशमादिक), १६५८५ -१ (+), १४१२८-१ सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि प्रा., गा. ७०, पद्य, भूपू (दंसणसुद्धिपयासं), १५७५१ (२) सम्यक्त्वसप्ततिका-अवचूरि, मु. सोमप्रभसूरि - शिष्य, सं., गद्य, मूपू., (दृश्यते यथावत्पदार्थ), १५७५१ सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., गा. १२, पद्य, मूपू., (मंगलं भगवान वीरो), १४०५८-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, मु. उत्तमसागर, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., ( नमोस्तु वचनं ), १५१९१-२ (+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, मु. पद्मसुंदर, सं., श्लो. ६२, पद्य, मूपू., ( - - ), १५१२९ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (राजते श्रीमती देवता), १५१९१-३ (+), १४४५७-८ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (व्याप्तानंत समस्तलोक), १५१९१-१(+$) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १५, पद्य, वै., (सरस्वती महाभागे वरदे ), १५१९१ - ४(+) सरस्वतीसूत्र, सं., पद्य, (--), <प्रतहीन >. (२) सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., (प्रणम्य परमात्मानं ), १४७४५ (+), १४७८८(१६), १४८५८(MS), १४९५५(+), १५१३६ (+), १५८१७(+), १५८४२ (+), १६१६० (+४), १६१८९(+), १६७०० (+), १७०१७(+), १७०५० (+), १७१०५ (+), १७२१९(+), १७२८७(+), १४६३६, १५३११, १५४५५, १५५४५, १५५६०, १५६४३, १६३१७, १६६८९, १६८२८, १७१६९, १७१७०, १६११८, १५४८१(३) १६२२६(३) १६६९९ (३) For Private And Personal Use Only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (३) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., वृ. ३, ग्रं. ७५००, वि. १६२३, गद्य, मूपू., वै., (नमोस्तु सर्वकल्याणपद), १५९२५, १६६९९() (३) सारस्वत व्याकरण-चतुर्दशस्वर स्थापनवादस्थल, संबद्ध, वा. वल्लभ वाचक, सं., गद्य, मूपू., वै., (श्रीसिद्धी भवतांतरां), १६१७७ (२) सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, वै., (नमस्कृत्य महेशानं), १३९१७(+), १४७८७(+5), १५२३२(+), १५७४६(+), १६१२७(+), १३९१८, १३९१९-१, १५५४७-१, १५५३६(१) (३) सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., वि. १७९९, गद्य, मूपू., वै., (पुराणपुरुषं ध्यात्वा), १५५३६(5) सर्पविष मंत्र, मा.गु.,सं., गद्य, ?, (ॐ नमो छारीया वीर), १५४९८-२ सर्वज्ञजिन विनति, मा.ग..प्रा.,गा.१२. पद्य, मप., (केवल लछि विलास वास),१५१८५-५ सर्वज्ञ स्तवाष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (कृतार्थोपि जगन्नाथ), १४१४५-१३(+) सर्वतीर्थ स्तुति, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (अट्ठावयम्मि उसभो), १६५२८-२ सर्वदेव स्तुति संग्रह, सं., पद्य, जै., वै., बौ., (श्रेयसं सकलं श्रीदं), १४०५६(5) (२) सर्वदेव स्तुति संग्रह-टीका, सं., गद्य, जै., वै., बौ., (कश्चिद्विपश्चित समता), १४०५६($) साधारणजिन अष्टक, सं., गा. ९, पद्य, जै., (सिद्धि बुद्धि परं), १६९६०-२ साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (जय श्रीजिनकल्याण), १४१४९-१(+), १४०६१-५, १५१८३-८ साधारणजिन चैत्यवंदन.सं.. श्लो. १०. पद्य, मप., (पारींद्रककंदं वीरं). १४०६०-२(+) साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (देवाः प्रभो यं विधिन), १४१२६(+), १५१८३-१० (२) साधारणजिन स्तव-वृत्ति, मु. कनककुशल, सं., ग्रं. १४२, गद्य, जै., (देवाः प्रभो. द्याख्य), <प्रतहीन>. (३) साधारणजिन स्तव-अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., ग्रं. १४२, गद्य, मूपू., (हे प्रभो सत्वमया), १४१२६(+) साधारणजिन स्तव, आ. नरचंद्रसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (सरति सरति चेत स्तोतु), १४१४६-६ साधारणजिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (आनंदाद्वैतदातारं), १४१४९-१२(+) साधारणजिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (प्रभुरक्षरशर्मसंपद), १४१४९-१७(२) साधारणजिन स्तव, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (नमोस्तु तुभ्यं भुवनै), १४१४५-८(+) साधारणजिन स्तवन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (जयश्रियां धाम सुधामध), १४१४९-२१(+) साधारणजिन स्तवन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (यैर्भवंति हृदयस्थितै), १४१४९-१८(+) साधारणजिन स्तवन, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमन् धर्म श्रय), १४५७७(5) (२) साधारणजिन स्तवन-अवचूरि, सं., गद्य, स्पू., (हे श्रीमन् हे धर्म), १४५७७(5) साधारणजिन स्तवन, सं., श्लो. ६, पद्य, मप., (अहो प्रभो प्रभावस्ते). १४१४८-१.१४१४८-३ साधारणजिन स्तवन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (जिनेंद्र तव पादांतेभ), १४१४४-२(+) साधारणजिन स्तवन, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (शिवसिरसि निवासं यः), १४१४५-१७(+) साधारणजिन स्तुति, मु. कनकदेव, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (देवः केवलबोधिचक्षु), १४४९३-६ For Private And Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ साधारणजिन स्तुति, ग. साधुराज, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (आंबारायण सेलडी खडहडी), १३९९५(+) (२) साधारणजिन स्तुति-वृत्ति, ग. साधुराज, सं., गद्य, मूपू., (तस्य चेदमादिपा), १३९९५(+) साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीतीर्थराजः पदपद्म), १४०६१-१८ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अविरलकमलगवल), १४०५९-५ साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, मूपू., (अहो अमेघजावृष्टिरहो), १४१४५-३८(+$) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (गुणास्ते प्रभविंदुना), १४१४५-२७(+) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (जिनवरोक्षरभावरिपून), १४१४५-२५(+) साधारणजिन स्तुति-अष्टप्रातिहार्यगर्भित, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (प्रातिहार्यकलितासम), १४१२७-१ साधारणजिन स्तुति-प्रार्थना, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (अद्य मे सफलं जन्म), १४३४७-७ साधारणजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (जय वीतमोहः जय वीतदोष), १५१८३-५ साधुलोच कराने का मुहूर्त, सं., गद्य, श्वे., (ह। चि । स्वा । मृ), १३९०२-२ साधुविधि प्रकाश, वा. क्षमाकल्याण, प्रा.,सं., वि. १८३८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य तीर्थेशगणेश), १६०८२(+$) सामायिक ३२ दोष गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (पालद्धी अथिरासण दिसि), १४३१७-३, १६१३३-७ (२) सामायिक ३२ दोष गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (पालखीइं न बेसीई), १४३१७-३ सामायिकसूत्रे इरियावही साक्षिपाठ, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीमहानिशीथसूत्रनो), १७०४३-१(+) सामुद्रिकशास्त्र, सं., अ. ३६, श्लो. २७१, पद्य, मूपू., (आदिदेवं प्रणम्यादौ), १६६२३(+#), १४३६९, १५७१४, १६३२३, __ १६९८३, १६४३९(s) (२) सामुद्रिकशास्त्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आदिनाथ जे चतुर्विंशत), १६३२३ (२) सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध @, मा.गु., गद्य, मूपू., (आदिदेव प्रते प्रथम), १६६२३(+#) (२) सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध @, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिला आउखु जौइजै), १४३६९, १६९८३ सारचतुर्विशतिका, मु. सकलकीर्ति, सं., ग्रं. २५२५, पद्य, दि., (श्रीमान्योनाभिसूनुः), १४७२२ सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. १००, पद्य, मूपू., (सिंदूरप्रकरस्तपः), १४३३७(+), १५१४३(+), १५२५०(+), १५३१८(+), १५३८५(+), १५४७१(+#$), १५५५०(+), १५७१८(+$), १५७७१-१(+), १६२००(+), १६५३९(+#), १६५७६(+$), १६७१३(+), १७०६७(+), १४३०९, १५२०५, १५४२२-१, १६५६३, १६६८०, १६९७८, १७०३३ -टीका, आ. चारित्रवर्द्धन वाचनाचार्य, सं., वि. १५०५, गद्य, मपू., (पार्श्वप्रभोः), १५५५०(+) (२) सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६५५, गद्य, पू., (श्रीमत्पार्श्वजिनं), १७०६७(+), १५८१८-१(#) (२) सिंदूरप्रकर-टीका, सं., गद्य, मूपू., (पार्श्वप्रभोः क्रमयो), १४३०९ (२) सिंदूरप्रकर-पद्यानुवाद भाषा, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. १०१, वि. १६९१, पद्य, मूपू., दि., (सोभित तपगजराज सीस), १४६९६-२ (२) सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिंदूरनउ समूह तापरूप), १५१४३(+), १५२५०(+), १५७७१-१(+), १६२००(+), १६५३९(+#), १६५७६(+), १५२०५, १५४२२-१, १६९७८ (२) सिंदूरप्रकर-कथा @, मा.गु., गद्य, मूपू., (यतः येषां न विद्या), १५१४३(+), १५२०५ For Private And Personal Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा, ग. क्षेमकर, सं., प+ग., मूपू., (अनंत शब्दार्थ गतोपयो), १४६०७($) सिंहासनबत्रीसी चरित्र, मु. लब्धिसागर, मा.गु.,सं., कथा. ३२, पद्य, मूपू., (पहिलू परमेश्वर नमी), १४१८८(+) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण), १४०६१-१७, १४०९३-२, १५१८३-११ सिद्धचक्र यंत्र, सं.,मा.गु., प+ग., पू., (--), १५३५३-२ सिद्धचक्रयंत्रोद्धार पूजनविधि, सं., गद्य, मूपू., (विधि महोत्सवे), १६०१३(+) सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (सिद्धं सिद्धत्थसुअं), १४८३० (२) सिद्धपंचाशिका प्रकरण-बालावबोध, आ. विद्यासागरसूरि, मा.गु., वि. १७८१, गद्य, मूपू., (सिद्ध प्राभृत महा), १४८३० सिद्ध पूजा, सं., पद्य, दि., (ॐ उर्ध्वाधोरयुत), १४५०९-२ सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक, प्रा., गा. ११९, ग्रं. १३५, पद्य, पू., (तिहुयणपणए तिहुयणगुणा), १६९८५ (२) सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक-टीका, सं., ग्रं. ८१५, गद्य, मूपू., (सकलभुवनेशभूतान्निखिल), १६९८५ सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (करमरालविहंगमवाहना), १४९६७-२, १५२९२-३ सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ. ८, सू. ४६८५, ग्रं. २१८५, वि. ११९३, गद्य, मूपू., (अर्ह सिद्धिः स्याद), १३८९३(+), १४६०१(+६), १४९४७(+), १५००३(+), १५०३०(+), १६३१९(+), १५०६२, १६३२९(६) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-लघुटुंढिकावृत्ति, आ. मुनिशेखरसूरि, सं., अ. ७, ग्रं. ३६७५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमन्), १४९९९ (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. १८०००, वि. ११९३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमात्मानं), १३८९३(+), १५०६२, १३९३३ (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-तत्त्वप्रकाशिकाबृहद्वृत्ति की न्याससारसमुद्धार टीका, आ. कनकप्रभसूरि, सं., वि. १२९८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य केवलालोकावलो), १४६०१(+$) । (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिकाबृहद्वृत्ति का तत्त्वप्रकाशिकाप्रकाश शब्दमहार्णवन्यास, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. ११९३-१२००, गद्य, मूपू., (श्रीमंतमजितं देवं), १४४१० (३) न्यायसंग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., सू. ५७, गद्य, भूपू., (स्वं रूपं शब्दस्या), १४४८६(5) (४) न्यायसंग्रह-न्यायार्थमंजूषा बृहद्वृत्ति, ग. हेमहस, सं., वक्ष. ४, ग्रं. ३२०६, वि. १५१५, गद्य, मूपू., (त्रैलोक्याह्लादहेतु), १४४८६(5) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ६०००, गद्य, मूपू., (अहमित्येतदक्षर), १४९४७(+), १५०३०(+) (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति की अवचूरि, सं., अ. २, गद्य, पू., (--), १५०३०(+) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमलक्षणसूत्रार्थ १-४ अध्ययन, मु. गुणधीर, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहँ नत्त्वा तथा), १३९३५ (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-चंद्रप्रभा प्रक्रिया, उपा. मेघविजय, सं., ग्रं. १८०००, वि. १७५७, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमदर्हत), १५००३(+), १५०७५(+$) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमलघुप्रक्रिया, उपा. विनयविजय , सं., वि. १७१०, गद्य, मूपू., (अर्हमित्यक्षरं ध्येय), १३९६३(+), १५०६४(६) For Private And Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमलघुप्रक्रिया की स्वोपज्ञ हैमप्रकाश वृत्ति, उपा. विनयविजय, सं., वि. १७१०-१८००, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्व), १५०६४($) (२) प्राकृत व्याकरण, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पाद. ४, सू. १११९, गद्य, मूपू., (अथ प्राकृतम् बहुल), १४८५९(+) (३) प्राकृत व्याकरण-स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. २१८५, गद्य, मूपू., (अथ शब्द आनंतर्यार्थो), १४८५९(+) (२) धातुपारायण, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ६०३, गद्य, मूपू., (अहँ भू सत्तायां), १३९०० (३) धातूपारायण-अवचूरि, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, मूपू., (इह पूर्वाचार्य), १३९०० (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमधातुपाठ, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ३००, वि. ११९३, गद्य, मूपू., (भू सत्तायां पां पाने), १५५५८(+) (२) हैमविभ्रम, सं., श्लो. २१, पद्य, मपू., (कस्य धातोस्तिवादीनाम), १३९२४-१(+), १३९२४-२(+), १३९२३-१, १३९२३-२,१५११७-१, १५११७-२ (३) हैमविभ्रम-तत्त्वप्रकाशिका टीका, आ. गुणचंद्रसूरि, सं., ग्रं. ६००, वि. १२००, गद्य, मूपू., (निखिलजगदेकशरणं), १३९२४-१(+), १३९२३-१,१५११७-१ सिद्धांतगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, श्वे., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), १५३३६(+$) (२) सिद्धांतगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १५३३६(+$) सिद्धांतरत्निका व्याकरण, आ. जिनचन्द्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमद्गुरुपदाम्भोज), १३९२२(+), १६८६६(5) सिद्धांतरहस्य विचारसंग्रह, प्रा., पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीरं नरिंद), १६६३१(+) सिद्धांतविचार गाथासंग्रह, प्रा., गा. २२२, पद्य, मूपू., (कंचणगिरि पव्वेसुं), १४३०४-१ सिद्धांतषट्विंशिका, प्रा.,मा.गु.,सं., अधि. ३६, प+ग., मूपू., (प्रथमं तावत्जिना), १४६४३(६) सिद्धांत स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ४६, पद्य, मपू., (नत्वा गुरुभ्यः श्रुत),१४१४५-१६(+) सिद्धांतहुंडी, पंन्या. सहजकुशल, प्रा., ग्रं. २०१६, गद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवराई सुय), १४१८३, १४३०३ (२) सिद्धांतहडी-बालावबोध, मा.ग.. गद्य, मप.. (श्रीजिनादिक प्रति). १४१८३.१४३०३ सिद्धांत हुंडी, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (पहिलुंलुंका कन्हइ), १६३८७-२ सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १३४१, ग्रं. १६७५, वि. १४२८, पद्य, मूपू., (अरिहाइ नवपयाइं झायित), १५९५२(+) (२) सिरिसिरिवाल कहा-अवचूरि, मु. हेमचंद्र, सं., ग्रं. ४०२२, गद्य, मूपू., (ध्यात्वा नवपदीं), १५९५२(+) (२) श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ४०, गा. ७५६, ग्रं. ११३१, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर जेहना), १३८३३(+), १३८३४(+), १७२४० सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. नेमसागर, प्रा.,मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (तें मोरू मन मोहीओ), १५८६५-३ सीमंधरजिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (जयश्रियाढ्यं कनकाभ), १४१४९-४(+) सीमंधरजिन स्तवन, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (केवलनाणसणाहं विदेह), १४१४५-३१(+) For Private And Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ सीमंधरजिन स्तवन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (सीमंधरं जिनाधीशं), १४१४४-३(+) सीमंधरजिन स्तोत्र, आ. रूपसिंह, सं., श्लो. ५, पद्य, श्वे., (अनंत कल्याणकर), १५१८३-६ सुदर्शनसेठ चरित्र, मु. सकलकीर्ति, सं., परि.८, पद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), १५३२१ सुभाषित संग्रह, सं., श्लो. ४०६, पद्य, श्वे., (सामायिकं स्तवः), १६६२०(+) सुव्रतऋषि कथा, सं., गद्य, मपू., (श्रीमहावीरं नत्वा), १७१८०(+) सुसढ चरित्र, प्रा., गा. ५१६, पद्य, मूपू., (जे परमाणंदमय परप्पमा), १४७०५(+-) (२) सुसढ चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), १४७०५(+-) सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., वर्ग. ४, वि. १७५४, पद्य, मूपू., (सकलसुकृत्यवल्लीवृंद), १४५३३(+$), १६४१२(+), १७०३०(+$), १४८७६, १५६००, १६७५३,१६८६८) (२) सूक्तमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सर्व जे शुभ करणीनी), १७०३०(+9), १४८७६ (२) सूक्तमाला-बालावबोध, मु. प्रतापविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (तदनुक्रम संग्रहो), १५६०० (२) सूक्तमाला-बालावबोध @, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल सर्व जे शुभ करणी), १६८६८(5) (२) सूक्तमाला-कथा, मा.गु., कथा. ६९, गद्य, मूपू., (श्रीआदेश्वरजीनी सेवा), १५६०० सूक्तावली, सं., श्लो. ७७८, पद्य, मूपू., (अहँतो भगवंत इंद्र), १६८०२($) सूक्तावली संग्रह, प्रा.,मा.गु., गा. १०७४, पद्य, मूपू., (कीजइ धर्म सुहामणो), १४२८४ सूक्तावली संग्रह, सं., पद्य, श्वे., (लक्ष्मीविर्वेकेन), १६२७८(45) (२) सूक्तावली संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), १६२७८(+$) सूक्तावली संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. २६०, पद्य, पू., (वीरं विश्वगुरुं), १६४१४(+), १६४०३ सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. २३, ग्रं. २१००, प+ग., मूपू., (बुज्झिज तिउट्टेज), १४६७७(+), १४७४९(+#), १४७६७(+#), १४८४८(+), १४८८३(+#), १५६९९(+5), १६६६३(+), १६६६५(+), १७०४५ (+), १५१७४, १६१७८(5) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-वीरस्तववृत्ति, आ. शीलांकाचार्य, सं., ग्रं. ३००, गद्य, मूपू., (उक्तं पंचममध्ययन), १४२९७ (२) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बुज्झि० छकाय जीवना), १४६७७(+), १४७४९(५१), १४७६७(+#), १५६९९(+5), १६६६३(+), १६१७८(5) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-प्रथमश्रुतस्कंध-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्धमानमानम्य), १५१७४ (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य सद्गुरुन्), १४८४८(+), १६६६५(+) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, मु. रत्नसीशिष्य, मा.गु., वि. १७४४, गद्य, मूपू., (श्रीआचारांग कहिनइ), १७०४५(+) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध @, मा.गु., गद्य, मूपू., (बुज्झेज कहता जाणइ), १४८८३(+#) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (पुच्छिसुणं समणा माहण), १४०४६ (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुच्छिसुणं० पूर्वो), १४०४६ सूरिमंत्रबृहत्कल्प विवरण, आ. जिनप्रभसूरि, सं., प+ग., मूपू., (अहँ बीजं नमस्कृत्य), १५१११ सूर्यद्वादशनाम स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, वै., (आदित्यं च नमस्कार), १५३६६-६(-) For Private And Personal Use Only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., प्राभृ. २०, ग्रं. २२००, गद्य, मूपू., (नमो अरि० तेणं० मिथिल), १४४४७(+) (२) सूर्यप्रज्ञप्ति-टिप्पण@, सं., गद्य, मूपू., (--), १४४४७(+) सूर्यषट्नाम श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (आदित्यं भास्करं भानु), १५३६६-७(-) सूर्य स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (सूर्य स्मरति सदा), १५३६६-९.) सूर्याष्टक, क. सिंह, सं., श्लो. १५, पद्य, वै., (रक्तवर्णं महातेजो), १३९५१-१७, १५३६६-८-) सेट अनिट विवरण, सं., पद्य, मप., (प्रत्यूह व्यूहव्यपोह), १६५९५(+$) स्तुतिचतुर्विंशतिका, वा. क्षमाकल्याण, सं., स्तु. २४, श्लो. ७७, वि. १८०१-१८४१, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या नतमौलि), १४०५३-१(+), १५०२१-१(+), १६९०२-२ स्तुतिचतुर्विंशतिका, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, पद्य, मूपू., (नरेंद्रमौलिगलितो), १६३५३-१(+) (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-स्वोपज्ञ अवचूरि, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., गद्य, मूपू., (पारिजाताः कल्पद्रुमा), १६३५३-१(+) स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, पद्य, मूपू., (भव्यांभोजविबोधनैक), १३९९०(+), १३९९९-१(+), १४०००(+), १४०५२(१), १३९८९, १३९९१, १४०२७, १४०४८, १४०४९, १४०५०, १४०५१, १४०५५, १४९७०, १५१६७-१, १५८०९, १६९०२-१, १७२११-१ (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-टीका, मु. जयविजय, सं., ग्रं. २३५०, वि. १६७१, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंददायिन), १४०२७, १४०५५, १५१६७-१ (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (धनपालपंडितबांधवेन०), १३९९० (+), १३९९९-१(+) (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (श्रीमत्नाथं नत्वा), १३९९१ स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. सिद्धांतसार, सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, पद्य, मूपू., (अभिनवनुतिमार्ग त्वां), १५०५९(+-) (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-स्वोपज़ टीका, मु. सिद्धांतसार, सं., वि. १५७०, गद्य, मूपू., (अनंतचिन्मयं मुक्तं), १५०५९(+-) स्थानांगसूत्र, आ. सधर्मास्वामी, प्रा., स्था. १०, ग्रं. ३७००, प+ग.. मप.. (सयं मे आउसं तेणं). १४७२४(+). १६८१६ (+$). १४७५२ (२) स्थानांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., स्था. १०, ग्रं. १४२५०, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (श्रीवीरं जिननाथ), १६८१६(+६), १४७५२ (२) स्थानांगसूत्र-टबार्थ, उपा. मेघराज, मा.गु., ग्रं. १३५००, गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरजिनं नत्वा), १४७२४(+) स्थूलिभद्र चरित्र, आ. जयानंदसूरि, सं., श्लो. ६८४, पद्य, मूपू., (वीरोवर्यः श्रिये), १६३९६ स्नात्र पूजा, श्राव. देपाल भोजक, प्रा.,मा.गु., कुसु. ५, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (पवित्र उदक लेइ अंग), १६७२६-१ स्नात्रपूजा संग्रह@, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), १६२८०, १७२४८ (२) स्नात्रपूजा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (मोतिना आभर्ण विशेष), १७२४८ स्यादिशब्दसमुच्चय, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., उल्ला. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशारदा हृदि), १३९२०, १३९२१ (२) स्यादिशब्दसमुच्चय-स्वोपज्ञ दीपिका अवचूरि, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीशारदामित्यादि), १३९२०, १३९२१ हरिबल चरित्र, सं., गद्य, मूपू., (जिनमुखातारामशोभायाः), १७०१४ For Private And Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ हरिश्चंद्रराजा कथानक, सं., श्लो. ४७७, पद्य, म्पू., (नाभेयाय नमस्तस्मै), १६९४५ हीरप्रश्न, उपा. कीर्तिविजय , सं., प्रका. ४, गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रियो निदान), १७२२६ हेतुविडंबनस्थल, उपा. जिनमंडन, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमदहँत), १४३३३ हेमदंडक, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीवभेया सरीराहार), १७१६०-१(+) (२) हेमदंडक-भाषाटीका, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. १०७, वि. १८६१, पद्य, मूपू., (जो ध्रुव अलख अमूरती), १७१६०-२(+) हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ. ८, श्लो. १३९, वि. १२वी, पद्य, म्पू., (पुल्लिंगं कटणथपभमयर), १४९७६(+), १५४१४ (२) हैमलिंगानुशासन-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (स्तु इति पृथक् संत), १४५२५ (२) हैमलिंगानुशासन-स्वोपज्ञ विवरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ३३००, गद्य, मूपू., (श्रीसिद्धहेमचंद्र), १५४१४ होलिकापर्व कथा, सं., श्लो. ६५, पद्य, मूपू., (ऋषभस्वामिनं वंदे), १६०७७ (२) होलिकापर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभस्वामीने नमस्कार), १६०७७ होलिकापर्व प्रबंध, ग. पुण्यराज, सं., श्लो. ३४, वि. १४८५, पद्य, मूपू., (प्रणम्य सम्यक परमार), १४५७५-१(5) (२) होलिकापर्व प्रबंध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (प्रणाम करीने भले), १४५७५-१(६) For Private And Personal Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ मा.गु., प्राचीन हिन्दी, राजस्थानी, गजराती आदि देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट ४ गति वेलि, मा.गु., गा. १३५, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (आदिदेव अरिहंतजी आदी), १४५०७(+) ४ ध्यान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम आरितध्यान जीका), १६१०२-१ ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल४५, गा. ८६२, ग्रं. ११२०, वि. १६६५, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ शशिकुलतिलो), १६२३६(+), १६३६५ ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (सिद्धार्थ भूपति सोहे), १३९५१-२, १५१६१-७, १५१९२-४, १७१३८-३ ४ मंगल पद, मु. सकलचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज म्हारै च्यारु), १७१७३-४(+) ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ११०, पद्य, श्वे., (अनंत चोवीसी जे नमु), १६३९८-१ ४ शरण सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पहिलो मंगलिक कहु), १५३५९-४ ५ इंद्रिय के विषय, मा.गु., गद्य, मूपू., (आठ कायाना ५ चक्षूना), १४५६४-३ ५ इंद्रिय सज्झाय, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (मात उरे मयगल वनमाहि), १५१८८-४० ५ कारण छढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ५८, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ सुत वंदिये), १४१५०-१४, १५१८७-१, १५३८९ ५ कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ३९, पद्य, मूपू., (सेवो सदगुरु गुण), १४१३९-१ ५ ज्ञान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मतिज्ञान श्रुतज्ञान), १४७०२-१(+) ६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ९, वि. १८३४, पद्य, मूपू., (श्रीस्याद्वाद शुद्धो), १५१९९-३(+$) ६ आरा बोल, मा.गु., ग्रं. १८०, गद्य, मूपू., (दस कोडाकोड सागरोपमना), १६३७६ ६ आरा मान, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीस कोडाकोडि सागरोपम), १४३६७ ६ जीव पंचढालियो, मु. तिलोक ऋषी, मा.गु., ढा. ५, वि. १९३९, पद्य, श्वे., (प्रणमु सासण स्वामजी), १७१३४-२ ६ लेश्या सज्झाय, पुहिं., गा. १६, पद्य, मूपू., (ग्यानइं दीवो रे लोका), १४६३५-३२ ७ प्रकार के विनय का विचार, मा.ग., गद्य, मूपू., (ए च्यारि ध्यान), १६१०२-२ ७ भय नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (इहलोक भय १ परलोक भय), १४०१२-४ ७ वार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., ढा. ७, पद्य, मूपू., (बोले आदित वार अहो), १६८१९-४, १४२४०-२(5) ७ व्यसन सज्झाय, मु. गजविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ नृप कुल), १५१८८-४ ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल कर्म आठ तेहनी), १५४५९, १५८५९, १६६७२ ८ कर्म दृष्टांत, रा., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणी कर्म को), १५६७३-४ ८ कर्मप्रकृति विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम ज्ञानावरणी), १५३७४-१ ८ कर्मबंध विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (घट पटादिशेषरूप वस्तु), १६१३३-२ ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७७, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (अजर अमर निकलंक जे), १५३७२, १५६३१, १५६३५ For Private And Personal Use Only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ८ प्रकारी पूजा-पिस्तालीसआगमगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., वि. १८८१, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), १५५२४(+), १६९३५, १७०४२, १७०५२, १७०८० ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ८, गा. ७६, पद्य, मूपू., (शिवसुख कारण उपदेशी), १७०४८(+), १४०१४, १४१२१, १४२४४-१, १५५७५ (२) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिनत), १७०४८(+), १४०१४, १४१२१ १० दान दोहरा, पुहिं., गा. १४, पद्य, श्वे., (गो सुवर्ण दासी भवन), १४६९६-२७ १० दृष्टांत, मा.गु., गद्य, मूपू., (चुल्लग १ पासग २ धन्न), १७१८९ १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (दसविह प्रह उठी), १४१२९-३, १४६३५-२८ १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ नंदन नमुं), १५१९३-५, १५३३३-१ १० प्रकार यतिधर्म, मा.गु., गद्य, मूपू., (खंती क० साधु क्षमा), १५६७३-३ १० बोल, पुहि., गा. १२, पद्य, श्वे., (जिन की बात कहु), १४६९६-२८ १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ११, गा. १३६, पद्य, मूपू., (सुकृतलता वन सींचवा), १४१६०(+), १४९५७, १६०३९ १० श्रावक बत्रीसी, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ३२, वि. १५५३, पद्य, मूपू., (जिन चोविसे करु), १३८५१-२ १० श्रावक सज्झाय, गढमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे.?, (आनंदी आणंद हुवै), १५३५९-२ १० श्रावक सज्झाय, मु. सौभाग्यरत्न, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (दश श्रावक भगवंतना), १५५७९-३२ १० संज्ञा नाम, रा., गद्य, मूपू., (आहारसंज्ञा भयसंज्ञा), १५१५०-३ ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्वा. ११, वि. १७२२, पद्य, मूपू., (आचारांग पहेलु का), १४५४५(६) ११ गणधर छंद, मु. रतनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (एकादश गणधरनां नाम), १५११०-३, १५१६१-३ ११ गणधर देववंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (बिरुद धरी सर्वज्ञनु), १६६५४-२, १७१६३ १२ भावना, मु. विजयसिंह, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), १५९७३-१६(६) १२ भावना, मु. विद्याधर, मा.गु., ढा. १२, पद्य, मूपू., (पहिलीय भावना भविज्यो), १५७५० १२ भावना, मा.गु., गद्य, मूपू., (अपरां च बिजु), १६५१३, १६९५४ १२ भावना थोकडो, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम बार भावनानां), १६०६७ १२ भावना पद, रा., भा. १२, पद्य, मूपू., (हे रे जीव गढ मड), १५२९० १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १३, गा. १२८, ग्रं. २००, वि. १७०३, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमी), १४११८, १४२८६, १५८४४, १६४२४८६), १६५३६($) १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., ढा. १४, पद्य, मूपू., (विमल कुल कमलना हंस), १४४८५-१(+), १४४८४-१, १५७३०, १६४९६, १४२८९(5) १२ व्रत टीप, मा.ग., गद्य, मप., (प्रथम सम्यक्त्व देव). १७२५७(+#) For Private And Personal Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ १२ व्रत सज्झाय, मु. विमलसोमसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. ४५, वि. १६९२, पद्य, मूपू., (श्रीशीतलजिन पय नमी), १५८२१ १३ काठिया दोहरा, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. १८, पद्य, श्वे., (जे वट पारे वाट मै), १४६९६-१८ १३] द्वार, रा. डा. १३, ग्रं. ३१०, गद्य, थे., (गाथा मूल द्रष्टांत), १६८३९, १७२२८ १४ गुणठाणा २१ द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नामद्वार १ लखण २), १६७६६ १४ गुणठाणा ४१ द्वार, मा.गु., गद्य, वे., (नाम द्वार लक्षण), १७०६६ १४ गुणठाणा जीवभेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलें गुणठाणे), १४१२८-२, १६७९६ १४ गुणस्थानक २४ द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ चवदेगुणठाणे जीव), १४८३४ १४ गुणस्थानक के बोल, मा.गु., गद्य, म्पू., (एकसी अडतालीस प्रकृति), १६९१४६) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु, मणिविजय, मा.गु., डा. १७, गा. १२६, पद्य, मूपू (श्रीशंखेश्वरपुर धणी), १४२४१ - २ (०), " १४०७६-१, १४०९०-१ १४ स्वप्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पहिलै गजवर दीठो मुज), १४९६७-४ १४ स्वप्न गुहुंली, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (माता त्रिशला निहाले), १४४०३-१० १४ स्वप्न विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वप्न पाठक कहइ छइ), १५५२०, १५७७९-१ १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., पद्य, मृपू., (सोभागिण जाणि इण कारण), १४०५८-२४३) १५ तिथि ७ वार चरित्र, मु. लब्धिविजय, मा.गु., डा. १५, पद्य, मूपू., ( श्रीमत् गौडी जगधणी), १४४०४-१, १६८१९-१, १४२४० - १($) १५ तिथि चोपाई, मु. तुलसी, मा.गु., गा. १६, पद्य, जै. ?, (परिवा प्रथम कला घटि), १४६९६-१७ १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्तु. १६, गा. ६४, पद्य, मूपू., ( एक मिथ्यात असंयम), १५५९४-२, १४५२० (३) १६ सती सज्झाय, वा, उदयरत्न, मा.गु., गा. १७, पद्य, म्पू., ( आदिनाथ आदि जिनवर), १४२४१-८), १५१६६-३८(+), १४०५८-४, १४१५०-५, १४२४३-५ १६ सती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सरसती माता प्रणमुं), १५१६६-३७(+#) १६ स्वप्न सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (पाडलीपुर नयरी चंद्र), १५१८६-६ १६ स्वप्न सज्झाय, मु. विद्याधर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., ( सरसति सामणि वीनवु), १४६३५ २६ १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., ढा. १७, गा. १०८, पद्य, मूपू., (अरिहंत मुखपंकज वासि), १४४३२, १५०८९ - २, १६०१७, १६५८३ (२) १७ भेदी पूजा - टबार्थ, मु. सुखसागर, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवें स्नान कर्या), १४४३२ १७ भेदी पूजा, वा साधुकीर्ति, मा.गु., दा. १७, वि. १६१८, पद्य, मूपु. ( भाव भले भगवंतनी पूजा), १५५०० १७ भेदी पूजा रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., दा. ९५, ग्रं. ७२२५, वि. १७९७, पद्य, मूपू., (सुख संपति दायक सदा), १३९८६ १७ भेदी पूजा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( सत्तर भेद पूजा फल), १४९३९-४ १८ पापस्थानक चौपाई, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. १४६, वि. १६५२, पद्य, मूपू., (सारद मात नमउ निसदिस), १६७१५ १८ पापस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहलो प्राणातिपात), १४०१२-२ For Private And Personal Use Only Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., सज्झा. १८, ग्रं. २११, पद्य, मूपू., (पापस्थानक पहिलं कहि), १४१५२, १५५२२, १५८३९, १५९७३-१५, १६०४०, १६०८४-१, १६६९१ १८ पापस्थानकपरिहार कुलक, मु. ब्रह्म, मा.गु., ढा. १८, ग्रं. ३५०, पद्य, श्वे., (सुंदर रूप विचार चतुर), १४१५३ २० वसा जीवदया, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रसने थावर तेमां), १५३३३-४ २० स्थानकतप सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गोअम प्रणमी पभणु), १४६३५-६ २० स्थानकतपस्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ८१, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (जिनमुख पंकज वासिनी), १४१५०-३, १५६४४ २० स्थानकतपस्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. १९, पद्य, मूपू., (वीशस्थानक तप सेवीयै), १५९०७-२ २० स्थानक पूजा, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., वि. १८५८, पद्य, मूपू., (सुख संपति दायक सदा), १५३३५, १५९०७-१ २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. २०, वि. १८४५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), १५०८८(+), १५१९९-१(६), १५४८७, १६४२५, १६५७०, १६६६४, १६२५८(5) २० स्थानक सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिन चरणे करी), १५१८८-१२ २१ प्रकारी पूजा, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., ढा. २१, गा. १०५, पद्य, मूपू., (प्रणमुं प्रथम जिणंद), १६०९८ २१ प्रकारे प्रासुक पाणी, मा.गु., गद्य, मूपू., (वाघरानूं धोयण १ पीठा), १६१३३-६ २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मु. समरसिंघ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर पयनमी), १५१३१-९ २२ परिसह चौपाई, मु. चोथमल, मा.गु., ढा. २२, पद्य, श्वे., (श्रीआदिश्वर आददे), १५३२४ २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (चक्ररत्न पदवी १ छत्र), १५३७४-३ २४ जिनकल्याणक स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., ढा. ६, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (निज गुरु पय प्रणमी), १४०६७-१ २४ जिनकल्याणक स्तवन, मु. समरसिंघ, मा.गु., गा. ६५, पद्य, मूपू., (नमिव्य निय गुरु०), १४०८७ २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसती आपे सरस वचन), १३९५१-३, १४०५८-१९ २४ जिन गर्भावास काल, मा.गु., को., मूपू., (--), १५५६३-२ २४ जिन चैत्यवंदन, मु. भीमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकल पदारथ मेलवे आदी), १४४५२-४ २४ जिन चैत्यवंदन, मु. रायचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (आदिकरण श्रीआदिनाथ), १४४५२-१९ २४ जिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., चैत्यव. २५, गा. ७५, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं श्रीआदि), १७११९ २४ जिन परिवार सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चोवीस तीर्थंकरनो), १३९५१-१३ २४ जिनवर्णगर्भित चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभने वासपूज्य), १४४५२-६, १५१८३-२३ २४ जिनवर्ण चैत्यवंदन, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सोल तीर्थंकर जाणीये), १४४५२-११ २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, म. आणंद, मा.ग., गा. २९, वि. १५६२, पद्य, मप., (सयल जिणेसर प्रणम), १५५७४-२, १६०६२-२ २४ तीर्थंकर स्तुति, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीय पास जिणेसर), १५१६२-२ २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर अवगाहणा संघयण), १४६७८, १६९८८ For Private And Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रथम नामद्वार बीजु), १४४८१ (+), १४८६८ (+), १५३१६ (+), १५३५४, १५५७६, १६१२५, १५४११($) २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (दंडक लेश्या ठित्ति), १४८७५, १६०५५, १६१५३, १६२४४, १६९६५ २४ दंडक ३५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसारी जीवो च्यार), १४८१५ २४ दंडक ५६३ जीवभेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनुष्य ५६३ जीवना), १५९८२-१ २४ दंडक बोलसंग्रह@, मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडक २४ ना शरीर ५), १४७१३-२ २४ दंडक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथवीकायनो १ दंडक अ), १४६३३(s) २४ दंडक स्तवन, मु. श्रीविजय, मा.गु., गा. ४६, वि. २४ दंडक स्तवन, मु. श्रीविजय, मा.गु., गा. ४२, वि. २४ दंडक स्तवन, मु. श्रीविजय, मा.गु., गा. ३७, वि. २४ दंडक स्तवन, मु. श्रीविजय, मा.गु., गा. ३७, वि. २५ बोल, मा.गु., गद्य, वे., ( नरकगति १ तिर्यंचगति), १६०६४ ($) २५ भावना विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनोगुप्ति १ एषणासमित), १६१३३-४ ३० चोवीसीजन स्तवनसंग्रह, वा. सुजयसीभाग्य, मा.गु., स्त. ३०, पद्य, म्पू., (श्रीजिनवर चरण कमल), १५०५१ ३३ बोल थोकडो, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक संजय एक असंजम), १७१४५ (), १६०६१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६३१, पद्य, मूपू., (पणमि आदिजिनेसर राय), १४०९१-१ १६३१, पद्य, मूपू., (पासनाह जिण पाय), १४०९१-३ १६३१, पद्य, म्पू, (वीरजिन प्रणमी पाय), १४०९१-२ १६३१, पद्य, मृपू., (सांतिनाथ जिन प्रणमीव), १४०९१-४ ३३ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (सात्त भये इहलोक भय), १५३४०, १५७०१ ३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीसुमति दायक कुमति), १४४५७ ४ १५१९२-२ ३४ अतिशय स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. २, गा. १५, पद्य, मूपू., (प्रणमुं देवनो देव ए), १४५८९-४(+) ३५ गुणवाणी स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपु, (जिनवाणी प्राणी सुणो), १४५८९-३(+) ३५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेले बोले गति चार), १४९८६ ३५ मार्गानुसारीगुण सज्झाय, उपा, मानविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, भूपू., (वीर कहइ भविजन प्रत), १४२४४-२ ३६ नियंठा, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीभगवतीजी सतक २५), १७१६४ ३६ बोल थोकडो, मा.गु., गद्य, भूपू (एगे असंजमे १ एगे), १७१०३ (+) , ६२ बोल मार्गणा, मु. . जिनेंद्रसागर, मा.गु., ढा. १३, गा. १८३, वि. १७८३, पद्य, मूपू., (गुरुवचन लही करी आगम), १५७८५ ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई बोले ), १७१९५ -२ (+), १६६८१, १६९२४ (६) ६२ मार्गणाबोल स्तवन, मु. श्रीविजय, मा.गु., गा. ६४, पद्य, मूपु, ( आठ अद्धलोकनी मांडला ), १४०९१-६ ६८ आगम पूजा, क. दीपविजय, मा.गु., वि. १८५६, पद्य, मूपू., ( प्रथम विशाल जिन भुवन), १४०३६ ९९ प्रकारी पूजा- शत्रुंजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८८४, पद्य, म्पू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), १३९९३(+), १६८११(+), १४९६०, १५३६७, १५४४९, १५५१२, १६७५६ (#) १२५ सीख, मा.गु., पद्य, मृपू., (श्रीसद्गुरु उपदेस), १४९५१-४ ५६३ जीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (उंचा लोक में ५६३), १५१५८ (+), १५३७४-४, १५१३१-४) ५६३ जीवविचार बोलसंग्रह @, मा.गु., गद्य, मूपू., ( जीव का भेद वेइंद्री), १६६६८-३(+) For Private And Personal Use Only Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अंगस्फुरण विचार, मा.गु., गद्य, जै.?, (माथो फूरकें तो), १५९७३-६ अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., खं. ३ ढाल २२, गा. ६३२, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (गणधर गौतम प्रमुख), १४१७९-१, १४४५०, १४७८०, १५७९६, १५९१३ अंजनासुंदरी रास, क. महानंद, मा.गु., गा. ५१८, वि. १६६०, पद्य, मूपू., (आदिजिनवर आदिजिनवर), १५०१५, १४१९८(5) अंजनासुंदरीरास, मा.गु., गा. १५६, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्ध समरु), १६८५० अंजनासुंदरी रास, मा.गु., गा. १६५, पद्य, मूपू., (शील समो वड को नही), १४९३०, १५६२४, १५९३१, १६९५१, १५४८३(६) अइमुत्तामुनि सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गुण आदरीइ प्राणीया), १५४७८-८ अक्षयनिधितप खमासमण दहा, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (सुखकर संखेश्वर नमी), १६००६-२ अक्षयनिधितप विधि, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही कहेवी), १६००६-४ अक्षयनिधितप स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ५१, वि. १८७१, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर शिर), १६००६-१ अक्षरबावनी, मु. उदराज, मा.गु., गा. ५९, वि. १६७६, पद्य, श्वे., (अकल अवतार अपरंपर), १५७२९-४ अक्षरबावनी, मु. जसराजजी; मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ५६, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (ॐकार अपार जगत आधार), १४३६२ अक्षौहिणीसैन्य मान, मा.गु., को., मूपू., (६५६१०० रथ ६५६१००), १६८०९-२(+) अगडदत्त रास, वा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ३१९, वि. १६२५, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पय नमी), १४६३१-१ अग्निभूति-वायुभूति सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमुं ते ऋषिरायनइ), १५४७८-६ अग्यारअंग बारउपांग सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अंग इग्यारै सोहामणा), १४१५०-१७ अजापुत्र रास, आ. विनयदेवसूरि, मा.गु., ढा. २३, गा. २१६, ग्रं. ६७५, पद्य, मूपू., (श्रीचंद्रप्रभजिन), १४००३-२(+) अजितजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अजितनाथ अवतार सार), १५१६६-२९(+#), १५१८३-१७ अजितजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अजित अजोध्यानो धणी),१५१६६-५४(+#) अजितजिन छंद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, वि. १६७०, पद्य, दि., (गोयम गनहर पर नमी), १४६९६-३५ अजितजिन स्तवन, आ. ऋषभसागर. मा.ग..गा. ५. पद्य, मप.. (अजित जिनेसर इकमनां), १४५३९-२ अजितजिन स्तवन, ऋ. भीमजी-शिष्य, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (अजित जिणेसर सांभलो), १४९९२-१४ अजितजिन स्तवन, मु. मोहन *, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रीतलडी बंधाणी रे), १६०२३-२ अजितजिन स्तवन, मु. मोहनरुचि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अजित जिणेसर साहिब), १६९६०-३ अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अजित जिणंदस्यु प्रीत), १६५८८-२ अजीव ५६० भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (पांच संस्थान तेना), १७१९५-१(+) अजीवपुद्गल ५३० भेद-पनवणावृत्तौ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्ण १०० गंध ४६ रस), १५४७४-४(१) अजीवभेद सज्झाय, मु. जिन, मा.गु., ढा. २, गा. ३५, पद्य, मूपू., (श्रुतदेवी सुपरें), १४५०४-५(+) अढीद्वीपव्याख्या गणितानुयोगे, मु. दीपविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानाख्य), १७११७ अदत्तादानविरमणव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (त्रीजुं महाव्रत), १४७४०-८ अध्यात्मगीता, उपा. विनयविजय , मा.गु., ढा. ९, गा. २४२, ग्रं. ३३०, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (इष्टदेव प्रणमी करी), १४९७१ अध्यात्म फाग, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. १८, पद्य, श्वे., (अध्यातम बिनु क्यों), १४६९६-१६ For Private And Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ श्वे अध्यात्मवत्तीसी, मु. बालचंद, पुहिं., गा. ३३, वि. १६८५, पद्य, वे., (अजर अमर पद परमेसरकुं), १५९१०-१, १६८८० अध्यात्मबत्रीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३२, पद्य, श्वे., (सुध वचन सदगुरु कहें), १४६९६ १२, १५९७३-८ अध्यात्मवाणी सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (ए अध्यातमनी वाणी), १६३४१-२ अध्यात्मसार प्रश्नोत्तर, मु. अमीकुंअर, मा.गु., वि. १८८२, गद्य, म्पू., (जय भगवान त्रिलोक्य), १६०२४ अध्यात्मसारमाला, क. नेमिदास रामजी शाह कवि, मा.गु., पी. ५, गा. १०८, ग्रं. २३०, वि. १७६५, पद्य, वे., (श्रीजिनवाणी निउ नमी), १६३४१-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनंतकाय सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (अनंतकायना दोष अनंता), १४९१४-६ अनंतजिन स्तवन, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू., ( सदगुरु चरण नमी करी), १४१५१-३ (+) अनागतचौवीशीजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पद्मनाभ पहेला जिणंद), १४४५२-३ अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (मगधाधिप श्रेणिक), १४९१४ -१२ अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( श्रेणिक रयवाडी चड्यो), १४५३६-६ अनाधीमुनि सज्झाय, मु. सिंहविमल, पुर्हि, गा. १९, पद्य, मृपू., (मगध देश को राज राजे), १४५१५-४) अनुकंपास्वरूप चौढालीयो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (अनुकंपाने आदरी किजो), १६६०७($) अभिनंदनजिन स्तवन, ग. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बेकर जोडी वीनवुं रे), १३९६८-५ (+) अमरकुमार सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. ५२, पद्य, मूपू., (पुरव कृत करमां तणो ), १६५७३-२ अमृतमुखी चौपाई, मु. हीरजी, मा.गु., ढा. ३२, गा. ४२८, वि. १७२७, पद्य, श्वे., (श्रीआदिसर आदिधरि), १४२४६(+), १४२४७(+) अरिहंतपद स्तवन, मु. कुशल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपु., (श्रीतेरम गुण बसिकै), १५१२८-२ अरिहंतपद स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, भूपू., (द्रव्यपर्याय प्ररुषक), १५१२८-३ अर्जुनमाली ढाल, मु. जेमल ऋषि, रा., ढा. ९, गा. ११६, वि. १८२०, पद्य, श्वे., (वर्धमान जिनवर नमुं), १५८०६-२(+), १५५१४-५ अर्जुनमाली सज्झाय, मु. कानजी, मा.गु., गा. १६, वि. १७४३, पद्य, श्वे., (सदगुरु चरण नमी कहू), १४९८७-४ अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., ( अरबुदगिर रलिआमणो रे ), १४५४२-२ (+) अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. रत्नविजय, पुहिं. गा. ७, पद्य, मूपू., (मुजको कोन सुधारे नाथ), १४४०५-२५ अल्पबहुत्व ९८ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम सर्वथकी थोडा), १५४३२ अल्पबहुत्व विचार, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथ्वी मध्य जे मेरु), १४३३१ अवंतिसुकमाल सज्झाय, मु. सोमकुसल, मा.गु., गा. २१, पद्म, मूपु., ( पास जिणेसर पाए नमी), १४११९-१ अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., डा. १३, गा. १०७, वि. १७४१, पद्य, मूपू., (मुनिवर आर्य सुहस्ती), १४१५४, १६५७३१, १६५८४-१, १७००२ अवस्थाष्टक, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (चेतन लच्छन नियतनै), १४६९६-३२ अष्टप्रकारी पूजाविधि स्तवन, मु. प्रीतविमल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुवधिनाथनी पूजा सार), १५२९२-८ अष्टप्रवचनमाता सज्झाय, पा. देवचंद्रजी, मा.गु., डा. ९, गा. १३०, पद्य, मूपू., ( सुकृत कल्पतरु श्रेणि), १५६२३, १६९६१-२ For Private And Personal Use Only Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५३५ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीचंद्रप्रभु नित्य), १५१८३-२१ अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अठावे गीरी संग भरपइ), १४४५२-२६ अष्टमीतिथि नमस्कार, पंडित. खीमाविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (चैत्र वदी आठम दिने), १५३६०-२ अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसरसतिने चरणे), १४४०४-४ अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चोवीसे जिनवर प्रणमु), १४०५९-३ अष्टमीतिथि स्तुति, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चौवीसे जिनवर प्रणमुं), १५५९४-५ अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मंगल आठ करी जिन आगल), १५१६६-१५(+#), १५५३३-३९(+), १४४५९-१०, १५२८६-४ अष्टमीतिथि स्तुति , मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमी अष्ट परमाद), १५५३३-६(+), १४४५९-११ अष्टापदतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अष्टापद गढ उपरे भरते), १४४५२-२० अष्टापदतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३२, पद्य, पू., (अष्टापद श्रीआदिजिणंद), १३९५१-७ अष्टापदतीर्थस्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, पू., (तिरथ अष्टापद नित), १५६०९-८ अष्टापदतीर्थस्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (अष्टापद गिरि जात्रा), १४२४१-३(+) असज्झाय सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पवयण समरी सासणमाता), १५५७९-२६ असमाधि के २० बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (उतावलो चालें तो), १५१९५-१२ अहमदाबादशहर यात्रादर्शन स्तवन, मु. रत्नविजय, मा.गु., स्त. १७, वि. १९६७, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेश्वर साहेबो), १४४०५-२४ आगति यंत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १६९८२(+) आगम अध्यात्म स्वरुप, पुहि., गद्य, श्वे., (अगमवसु को जा भाव सो), १४६९६-४५ आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.ग..वि. १७७६. गद्य, मप.. (हिवैभव्यजीवने), १५२२५-१(+).१४१६९.१४२०३, १४२११-१, १४२१२, १४२१३, १४२१४, १५१७५, १५३००, १५७१६, १६८४१ (२) आगमसारोद्धार-स्वोपज़ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १७७६, गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम जीव), १५२२५-१(+) आगम स्वाध्याय, वाघो, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (अनंत चतुष्टय रे आतमा), १५२७८-१ आचार्यपद चैत्यवंदन, पा. हीरधर्म, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिनपद कुल मुखरस अनिल), १५१२८-७ आचार्यपद स्तवन, मु. कुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (खंती खडगथी जेणे), १५१२८-८ आचार्यपद स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पंचाचारकुं पालै), १५१२८-९ आठप्रवचनमाता सज्झाय, ऋ. रायचंद, मा.गु., ढा. ८, वि. १८२१, पद्य, श्वे., (पांचसुमत तीनगुप्त आठ), १७१५८ आणंदविमलसूरि स्वाध्याय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रणमी वीर जणेसरराय), १६५२८-३ आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गद्य, श्वे., (हे आत्मा हे चेतन ऐ), १६८०६ । आत्मप्रबोध सज्झाय, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पिउडा रे पिउडा नरभव), १५८०१-३ आत्मशिक्षा, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १२३, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन समवडइ), १५१३१-६ आत्मशिक्षा बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम ए आत्मा), १६९९६ For Private And Personal Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ आत्मशिक्षा सज्झाय, मु. मणिचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आतमरामे रे मुनि रमे), १४२४४-१३, १४२४५-११ आत्महितविनंति छंद, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (प्रभु पाय लागी करूं), १४९९२-१६ आत्महितशिक्षा सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु संघाते प्रीत), १४५०४-७(+) आदिजिन १३ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीआदेसरना १३ भव), १४३६१ आदिजिन गीत, रुचिर, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे.?, (प्रात समें प्रभु), १४९९२-६ आदिजिन गीत, आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, दि., (अपरम अकल तूं अलख), १४०८२-४ आदिजिन गीत, आ. वीरचंदसूरि, म., गा. ४, पद्य, दि., (आई काजी जिन बाजी वन), १४०८२-१८ आदिजिन गीत, आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, दि., (आदि अनादि जुगादि), १४०८२-२० आदिजिन गीत, आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, दि., (मंगल कारण त्रिभुवन), १४०८२-६ आदिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबुद्वीपई पश्चिम), १७२८४-३ । आदिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आदिदेव अरिहंत नमु), १५१६६-२८(+#), १५१८३-१६ आदिजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम तिर्थंकर आदि), १५१६६-५३+#) आदिजिन छंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रमोद रंग कारणी), १५१६०-३३ आदिजिन ज्ञानकल्याणक स्तवन, सा. विमलश्री, मा.गु., गा.८, पद्य, दि., (वंदिवि आदिजिणिदुए), १४०८२-२ आदिजिन नमस्कार, मु. धनहर्ष, मा.गु., गा. १२, पद्य, म्पू., (श्रीशेत्रुजें ऋषभ), १५९७३-११ आदिजिन नमस्कार, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदि धरम जिणे उधर्यो), १४४५२-१४ आदिजिन पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मरुदेवीनो नंद माहरो), १४१५०-६ आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुजय, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रणमवि सयल जिणंद), १४४५७-३, १५१८७-२ आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., गा. ५७, वि. १६६६, पद्य, मूपू., (श्रीआदीसर वंदं पाय), १४६३५-२१ आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, आ. विजयतिलकसूरि, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (पहिलं पणमीय देव), १४०१७ (२) आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीविजयतिलक), १४०१७ आदिजिन विवाहलो, मा.गु., ढा. ४४, गा. २४३, पद्य, मूपू., (सासनदेवीय पाय प्रणमे), १७२१७-१() आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणेसर प्रीतम), १५१६५-२ आदिजिन स्तवन, आ. ऋषभसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (काइ रिसहेसर अलवेसर), १४५३९-१ आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जे जगनायक जगगुरुजी), १४५३६-१५ आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन मधुकर मोही रह्यउ), १४४७२-३(+) आदिजिन स्तवन, ग. जिनविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (नयन सुकोमल कहें), १३९६८-३(+) आदिजिन स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनराज नाम तेरा राखु), १५९०७-३ आदिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदिसर सुखकारी हो), १५१६५-४ आदिजिन स्तवन, मु. दीपसौभाग्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जय जय आदि जिनंद आज), १५६०९-४ आदिजिन स्तवन, मु. धर्मसिंह, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (वीर पुरुष बलवान एक), १५२७९-२ For Private And Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५३७ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन स्तवन, मु. माधव, मा.गु., गा. १०, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (परमेसर तमे खराजी), १४९८७-९ आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग..गा. ५. पद्य, मप.. (जगजीवन जग वालहो), १५१६५-१ आदिजिन स्तवन, ऋ. रईदास, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (श्रीरीषभदेव जिणंदा), १४९८७-८ आदिजिन स्तवन, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आदिजिनेश्वर अरजसुनी), १४०२१-१ आदिजिन स्तवन, मु. विवेकविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (आदिजिन भावे भवीजन), १४०६२-१२ आदिजिन स्तवन, आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, दि., (सोवन घडीकुं माणिक), १४०८२-१२ आदिजिन स्तवन, मु. सुमतिविजय, मा.गु., गा. २२, वि. १७८६, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणेसर साहीबाजी), १४५३६-९ आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ३, गा. २६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (प्रणमु प्रथम जिनेसर), १४१५०-२५, १४९५१-७ आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (पहिलु पणमिअ देव), १५८५७(+), १६२६४ (२) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हुं पहिलु धुरि), १५८५७(+), १६२६४ आदिजिन स्तवन-धुलेवानगर, मु. तखतसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (श्रीऋषभजिणेसर वंदीये), १४१४७-३ आदिजिन स्तवन-बीबडोदमंडन, मु. धनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आदिजीणेसर यलवेलो), १४९४९-१२ आदिजिन स्तवन-मेदनीपुरमंडन, मु. सत्यसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणंद जुहारीयै), १४१४७-२ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बालपणे आपण ससनेहि), १५५७९-१९ आदिजिन स्तवन-षट्आराविचारगर्भित, मु. आणंदरुचि, मा.गु., वि. १७३६, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धाचल नितनमी), १४१३२ आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रह उठी वंदु ऋषभदेव), १५१६६-८(+#), १५५३३-३३(+), १४४५९-२६, १५२८६-८ आदिजिन स्तुति, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुधर्म देवलोक पहिलो), १५५३३-४०(+) आदिजिन स्तुति, मु. सौभाग्य, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पुंडरिकगिर स्वामी), १५५३३-३०(+), १६९६०-४ आदिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कनक तिलक भाले हार), १४०६२-१ ।। आदिजिन स्तुति- नवतत्त्वगर्भित, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्यने पाव), १५५३३-३८(+) आदिजिन स्तुति-मरुदेवामाता केवलज्ञान, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गजकुंभे बेसी आवे), १५१६६-१८(+#) आदिजिन स्तुति-वीसलपुरमंडन, मु. देवकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (विसलपुर वांदु), १५५३३-२५(+) आदित्यवार कथा, मा.गु., गा. १५७, पद्य, श्वे., (रिसहणाह प्रणमु जिणंद), १५७६८ आध्यात्मिक गीत, मु. लब्धिविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, पू., (जबलगे विषय घटा न),१६८१८-२(+) आध्यात्मिक गीत, आ. वीरचंदसूरि, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (चंगी सूरंगी नारी न), १४०८२-८ आध्यात्मिक दूहासंग्रह, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अणजोवंतां लाख जोवो), १५१८७-५ आध्यात्मिक दूहासंग्रह, मा.गु., पद्य, श्वे., (परमातम परमानही), १६८८१(६) । आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (ॐ हं सोहं का करो), १५१९३-३ For Private And Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कर्मरूप अंतरालित्रट), १५१९३-२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोटि वहुई मननुं रे), १४०९३-४ आध्यात्मिक पद, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (--), १५२७९-१२($) आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (तु आतम गुण जाणरे), १४६९६-५५ आध्यात्मिक पद, भूधर, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे.?, (बोलत चालत डोलतो मेरी), १४१४७-५ आध्यात्मिक पद, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अमे योगीओना बाल अमे), १४४०५-७, १४४०५-२६ आध्यात्मिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अविचल पदवी पावे), १५१९३-४ आध्यात्मिक पद, मा.गु., पद्य, मूपू., (दिल की बात पीछानी), १५१९५-१०(६) आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (हम बैठे अपनी मोनसौ), १४१४७-६, १४६९६-६१ आध्यात्मिक रेखता, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (कहूं वह ब्रह्म देखा), १४१४७-१२ आध्यात्मिक सज्झाय, जटमल, रा., गा. १०, पद्य, जै.?, (असो रे सुभट नर निकले), १५२९१-८(२) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. जयविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पुरुष पनोतों बहु गुण), १४५३६-१४ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. दोलत, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चेतन कर्मतणी गती), १५१६०-१८ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अणविमास्युं करइ काइ), १४२४४-१५, १४२४५-१३ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अनुभव सिद्ध आतम जे), १४२४४-७, १४२४५-५ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आतम अनुभव जेहनई), १४२४४-६, १४२४५-४ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चेतन चेतन में धरि), १४२४४-१०, १४२४५-८ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चेतन तुमही आपें), १४२४४-१६, १४२४५-१४ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चेतना चेतनकुं), १४२४४-९, १४२४५-७ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जग सरूप चेतन संभलावइ), १४२४४-११, १४२४५-९ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जे देखु ते तुज नही), १४२४४-४, १४२४५-२ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जेहनइं अनुभव आतम), १४२४४-५, १४२४५-३ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समकित तेह यथास्थित), १४२४४-१२, १४२४५-१० आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सम्मदीट्ठी ते यथा), १४२४४-२३, १४२४५-२१ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अनुभविने एकला आनंदमा), १४४०५-४ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (मारो आनंदनो प्यालो), १४४०५-२७ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुप्रभातनो दहाडो), १४४०५-५ आध्यात्मिक सज्झाय, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (एक जगि उंटडी दैवनि), १४०२२-१७ आध्यात्मिक सज्झाय, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गांठडी काढी कांजिणी), १४०२२-१३, १४०२२-१४ आध्यात्मिक सज्झाय, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., ढा. ३, गा. २१, पद्य, मूपू., (तुं जिनवदन भवननी), १४०२२-२ आध्यात्मिक सज्झाय, रा., पद्य, मूपू., (--),१५५१४-४५) For Private And Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ आनंदघन गीतबहोत्तरी, मु. आनंदघन, पुहिं., पद. ७८, पद्य, मूपू., ( क्या सोवेउठि जाग), १६८१८ - १ (+), १४९६८ आनंदधावक संधि, पा, श्रीसार, मा.गु., ढा. १५, गा. २५२, वि. १६८४, पद्य, म्पू, (वर्द्धमान जिनवर चरण), १५९२०-१, १७०८६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आनंदश्रावक सज्झाय, मु. कनीराम, रा., गा. ४४, वि. १८८६, पद्य, श्वे., (पडिमाधारी आणंद), १५२९५-१ आयंबिलतपसज्झाय, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मृपू., (समवसरण बेशी करी मुख), १४४०५-१५ आयुष्य विचार @, मा.गु., गद्य, मूपू., (१२० हाथीनो आयु १२० ), १५५०९-२, १५७७९-२, १५९८२-२, १७०३९-३ आराधना, मु. हंस, मा.गु., गा. ९६, पद्य, म्पू. (पहिलउ नमस्कार अरिहंत), १४३६४ "" आर्द्रकुमार रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., डा. १९ गा. ३०१, ग्रं. ४५१, वि. १७२७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर जेहना ), १४८४४, १४९७४-२, १५६०५ आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रथम गृहस्थी अविरत), १७०२० आषाढाभूति चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., गा. ६७, वि. १६३८, पद्य, भूपू., (श्रीजिनवदन निवासिनी), १४१५५ आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., डा. १६, गा. २१८, ग्रं. ३५१, वि. १७२४, पद्य, म्पू., (सकल ऋद्धि समृद्धिकर), १६२४९, १६५०९-२, १६५२३, १६३५५(३), १६७१६ (३) ५३९ आषाढाभूति चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ७, गा. ४१४, वि. १७३७, पद्य, मूपू., (सासण नायक सुरवरूं), १६९४२ इक्षुकारसिद्ध चौपाई, मु. खेम, मा.गु., डा. ४, वि. १७४७, पद्य, मूपू. (परम दयाल दवाकरु आसा), १४२४८(*), १५५३९, " १६५२० उपदेशछत्तीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सकल सरूप यामें), १५७२९-३ ($) उपदेशयत्तीसी, मु. राज, पुहिं., गा. ३०, पद्य, भूपू., ( आतमराम सयाने तें), १५८०६ - ३ (+), १६०८४-२ इरियावहि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सकल कुशलदायक अरिहंत), १५५७९-२५ इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र- शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नारी मे दीठी इक आवती), १५१८८-२७ इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. १८७, नं. २९९, वि. १७१९, पद्य, मूपु., (सकलसिद्धदायक सदा), १४२५०, १४९३१, १५०९२, १७१९६, १४२४९३ १६१९३(३) " इलाचीकुमार रास, वा. मतिशेखर, मा.गु., गा. १६४, वि. १६, पद्य, भूपू., (श्रीजिनशासनि जिगि), १५९८४ - १ (S) इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नाम इलापुत्र जाणीए), १४९४९-९ उंबरदत्त रास, रा., ढा. ५, गा. ८८, पद्य, मूपू., (विपाकसुत्र अद्धेन), १५५१४-१ उत्तमकुमार चौपाई, मु. तत्त्वहंस, मा.गु., ढा. ५१, ग्रं. १६३६, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सरसति सामण पय नमी), १५८९४ उदाईराजा रास, रा., पद्य, वे., (श्रीआदिसर आदेदे), १५५१४-६($) उधवावर वैराग्य, जे. क. बनारसीदास पुहिं. गा. २६, पद्य, वे., (वालभ तु हूंत न), १४६९६-५७ " " , उपदेशसार रत्नकोश स्वाध्याय, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ६०, पद्य, मूपू., (तिथंकर चउवीसहउं वंदउ), १५१३१-८ उपधानतप गहुंली, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू., (त्रिगडे बेसी वीरजी), १४४०३-१७ उपधानतप दोहा, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मृपू., (बीर जिणेसर उपदिशे), १४४०३-७ उपाध्यायपद चैत्यवंदन, पा. हीरधर्म, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (धन धन श्रीउवज्झाय), १५१२८-१० For Private And Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ उपाध्यायपद स्तवन, मु. कुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हुयने हुयने हुयने), १५१२८-११ उपाध्यायपद स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (अंग इग्यारे चउदेपूरव), १५१२८-१२ ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, मा.गु., ढा. ७, पद्य, मूपू., (तिण काले तिण समे), १५५१४-७(5) ऋषिदत्तासती चौपाइ-शीलव्रतविषये, मु. देवकलश, मा.गु., गा. ३०१, वि. १५६९, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति सुपसाउलइ), १४१९५-४ ऋषिदत्तासती चौपाई, मु. प्रीतिसागर, मा.गु., ढा. ३८, वि. १७५२, पद्य, मूपू., (पास जिनेसर पयनमी), १४१९६(+) ऋषिदत्तासती चौपाई, मु. वीरमसागर, मा.गु., पद्य, मूपू., (चउवीसे जिन चितधरी), १७१०४(६) एकमतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एक मिथ्यात असंयम), १४४५९-१ एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (शासननायक वीरजी प्रभु), १४४५२-२७, १५८०१-४ एकादशीतिथि सज्झाय, वा. उदयरतन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज एकादसी रे नणदल), १५१६५-५ एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिजिणेसर), १४०५९-११ एषणाशतक भाषा, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १०१, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन समवडई), १४७१८ औपदेशिक अष्टपदी-भोंदुभाई, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (भोंदूभाई ते हिरदै), १४६९६-६६ औपदेशिक अष्टपदी-भोंदभाई, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (भोंदूभाई समुझु सबद), १४६९६-६५ औपदेशिक कवित, मु. मोहन, मा.गु., गा. ४४, पद्य, पू., (धूल साल देखें मूल), १५५९५ औपदेशिक कवित, मा.गु., गा. १, पद्य, ?, (चडै सो पडै प नहु), १४०६०-३(+) औपदेशिक कवित, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (चरण शरण चित्तधरण), १४४६८-२(+) औपदेशिक कुंडलिया, अगर, हिं., गा. ५७, पद्य, वै.?, (जो दिन जाय आनंद में), १६५८८-१ औपदेशिक गहुली, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सजनी मोरी आज थयो), १४४०३-१४, १४४०५-१७ औपदेशिक गीत, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ३१, पद्य, श्वे., (मेरा मन का प्यारा), १४६९६-१० औपदेशिक गीत, आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, दि., (अथिर जोवनधनघरपरिवारि), १४०८२-१४ औपदेशिक गीत, आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, दि., (आपि आप जस मुझु तह्यो), १४०८२-२४ औपदेशिक गीत, आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, दि., (छ दरसण छन्नविपाखंड), १४०८२-१६ औपदेशिक गीत, आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, दि., (सुणिसुणि कंत कामिनी), १४०८२-३ औपदेशिक चौपई, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (भविक जीव चिति ध्यानि), १४०२२-११ औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भगवति भारति चरण), १४५१५-७(+), १५१६६-३९(+#5), १३९५१-१२, १४०५८-१८ औपदेशिक दोहा, मु. निर्भयानंद, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (खोयो समय अमोल तें), १५३५२-६ औपदेशिक दोहा, मु. निर्भयानंद, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (बात सुनाऊ कौन को), १५३५२-७ औपदेशिक दोहा, मु. निर्भयानंद, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (वाचक ज्ञानी जगत में), १५३५२-५ औपदेशिक दोहा, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (सजन बोलावी अमोवला), १७१३८-२ औपदेशिक दोहा, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (समय समझे के कीजीऐ), १४५७५-२ For Private And Personal Use Only Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक दोहे, पुहि., पद्य, मूपू., (खेती पाती वीणती), १५२७९-१३ औपदेशिक धोल-जीवकाया, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काया कामिनी वीनवे), १४४०५-१४ औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (करि करिने शुभ काम), १५१६०-२१ औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कोई नथी करनार रे), १५१६०-७ औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (तजी तजीने खरु तत्त्व), १५१६०-२३ औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तजीयें गुरुओ दुर्मती), १५१६०-६ औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तारु कुण तु जोने), १५१६०-८ औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (धरि धरिने निज धर्म), १५१६०-२२ औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नथी नथी कोईनो नेह), १५१६०-१० औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पसु परे पासमां ते), १५१६०-२६ औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रगट्या बहु पाखंड), १५१६०-४ औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (भणी भणीने मत भुल रे), १५१६०-९ औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (भुडा धरी धरी भेष), १५१६०-२ औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मननो मार्यो मरे पोते), १५१६०-२० औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, पुहि.,मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (मानु में वाकुं मुनी), १५१६०-१४ औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुंडे भुंडाने मुंडे), १५१६०-३ औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (लालचि ललनाना लाखो), १५१६०-२५ औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, पुहिं.,मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (विषय तें जोहे बच्यो), १५१६०-१५ औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वेगलो छे वेरागरे), १५१६०-१ औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (साचा समरथो तेओज), १५१६०-२७ औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (साधु ते तो साचो रे), १५१६०-५ औपदेशिक पद, क. दिन, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे.?, (किनकी विगरी उनकी), १५२७९-६ औपदेशिक पद, क. दिन, पुहिं., पद्य, श्वे.?, (किनकुं ध्रिग हे उनकु), १५२७९-८ औपदेशिक पद, क. दिन, पुहिं., पद्य, श्वे.?, (किनकु फिट रे उनकुं), १५२७९-७ औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, दि., (इस नगरी में किस विध), १५२७९-१० औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (चेतन उलटी चाल चाले), १४६९६-५८ औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (चेतन तूं तिहुं काल), १४६९६-५० औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (चेतन नै कुन तोहि), १४६९६-५९ औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (तुंरंभ्रम भुलत रे), १४६९६-६७ औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (देखो भाई महाविकल), १४६९६-६९ औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (या चेतन की सब सुद्ध), १४६९६-४९ For Private And Personal Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (रे मन कुरु सदा संतोष), १४६९६-५६ औपदेशिक पद, मीयाराम संत, मा.गु., गा. ३, पद्य, वै., (हंसातो वासीरह कउवा), १५९४४-५ औपदेशिक पद, मु. रत्नविजय, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (हमोने नहि दुनिया से), १४४०५-२० औपदेशिक पद, श्राव. हीराचंद अमुलक, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (एतो फल पाप धरम के), १५१६०-३२ औपदेशिक पद, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (अपने मन कछु ओर हे), १४९८७-२ औपदेशिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (जवें चिदानंद निज), १५८०४-२ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (दुविद्या कबजे हैया), १४६९६-६० औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (परभव मे तु जासी), १५६८९-२ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, जै.?, (प्रेम कटोरी लग रहि), १४५६४-८ औपदेशिक पद, पुहि., पद्य, स्पू., (सजन मत जानो प्रीत), १५२७९-११(६) औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, श्वे., (स्वान भये पनगडसे), १४९५१-२(६), १५२७९-१५(६) औपदेशिक पद-४ वर्ण, पुहिं., गा. ५, पद्य, दि., (जो निहचे मारग गहे), १४६९६-३४ । औपदेशिक पद-वैराग्य पद, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (काया रुप ए कूतरी), १४४०५-२१ औपदेशिक पदसंग्रह, पुहि., गा. २५, पद्य, श्वे., (सतगुर तुम तो भूल गया), १४८५३-२ औपदेशिक पद्य संग्रह, मु. मुनिचंद, पुहिं., पद्य, मूपू., (--), १५२७९-१(६) औपदेशिक पद्य संग्रह, मा.गु.,पुहिं., पद्य, मूपू., (स्थावर पण चाले घj), १४४०३-२७ औपदेशिक रेखता, कुसल, पुहि., गा. ६, पद्य, जै.?, (समजले जीव वे प्यारे), १४१४७-११ औपदेशिक लावणी, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सुणो नीरंजन अरज), १५१६०-१७ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (तुम तजीय कर राजुल), १५६०९-५ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन सुण रे थारी सफल), १५१६०-३० औपदेशिक लावणी, धनीदास, पुहि., गा. ५, पद्य, जै.?, (तु तोड करम झंजीर), १५३१२-२ औपदेशिक लावणी, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (नगरी मध्ये माल मे), १५६०९-६ औपदेशिक सज्झाय, मु. इंद्र, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (ममता माया मोहिआरे), १४५१५-५(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. जिन, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (ते बलीया रे भाई ते), १४१३४-२ औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (नरभव नयर सोहामणो), १५८६५-४ औपदेशिक सज्झाय, मु. नेत, मा.गु., गा. १०, पद्य, जै.?, (ओ भव रतन चिंतामणी), १४९४९-१३ औपदेशिक सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चेतो आतमजी अथिर), १४५१५-११(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. भावविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सासरडे इम जइ रे बाइ), १४०१९-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. मणिचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जो चेते तो चेतजे जो), १४२४४-१७, १४२४५-१५ औपदेशिक सज्झाय, मु. मणिचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मिच्छत्व कहिजे), १४२४४-२१, १४२४५-१९ औपदेशिक सज्झाय, मु. मणिचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (शुक्लपक्ष पडवेथी), १४२४४-२०, १४२४५-१८ For Private And Personal Use Only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आज का लाहा लीजीई), १४२४४-२२, १४२४५-२० औपदेशिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आदित जाइने आपणी), १४२४४-१९, १४२४५-१७ औपदेशिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कोइ कीनहीकोउ काज न), १४२४४-८, १४२४५-६ औपदेशिक सज्झाय. ग. मणीचंद, मा.ग., गा. ८, पद्य, मूपू., (चेतन जब तुं ज्ञान), १४२४४-१४, १४२४५-१२ औपदेशिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शिवपुरवासना सुख सुणो), १४२४४-१८, १४२४५-१६ औपदेशिक सज्झाय, महमद, मा.गु., गा. ११, पद्य, जै.?, (भूलो ज्ञान भमरा कांई), १५६०९-१० औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (चड्या पड्यानो अंतर), १६६५४-३($) औपदेशिक सज्झाय, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (पामी सुगुरुनो सुपशाय), १४४०५-१३ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय*, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जीव कहे सुणी जीवड), १५१८८-१६ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुधो धर्म मकिस विनय), १५१८८-२६ औपदेशिक सज्झाय, मु. वालचंद, पुहि.,रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (श्रीअरिहंत देव देवकर), १५२९१-११(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (मंगल करण नमीजे चरण), १३९५१-११, १५९७३-१० औपदेशिक सज्झाय, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, मूपू., (अरे जंतु तुं चिंति), १४०२२-१८ औपदेशिक सज्झाय, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (एक अतुलाज लाजेणि), १४०२२-१५ औपदेशिक सज्झाय, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (कुठि घउटी घणूचेतना), १४०२२औपदेशिक सज्झाय, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (जेणि बहु गुणभरी नैव), १४०२२-५ औपदेशिक सज्झाय, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (दिइ दिइ दरिसन आपणूं), १४०२२-६ औपदेशिक सज्झाय, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पभणति जगगुरू त्रिजग), १४०२२-३ औपदेशिक सज्झाय, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (पुरिसा मत मो माथा), १४५१५-६(+), १४०२२-१६ औपदेशिक सज्झाय, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सकल जगजंतु पाणाण), १४०२२-४ औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (विणजारा रे ऊभो रहे), १५५७९-७ औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काया पुर पाटण मोकलौ), १५५७९-२८ औपदेशिक सज्झाय, मु. सिद्धविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (बापडला रे जीवडला), १५१८८-३१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (पहिला धुरि समरु), १४६३५-३५ औपदेशिक सज्झाय-काया, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (पाम्यो नर तनु सुरतरु), १४४०५-२२ औपदेशिक सज्झाय-क्रोधोपरि, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कडवां फल छे क्रोधनां), १६८२४-४(+), १४७४०-१ औपदेशिक सज्झाय-क्रोधोपरि, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (क्रोध न करिये भोला), १४९१४-२, १५१८८-१८ औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, पा. श्रीसार, मा.गु., गा. ७२, पद्य, मूपू., (उत्पति जोज्यो आपणी), १४९६७-१, १५२९५-५, १६७३८ औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (एक घर घोडा हाथीयाजी), १५१८८-२४ औपदेशिक सज्झाय- पेट विषये, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विश्वाश नही तेरे), १४४०३-१८ For Private And Personal Use Only Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ औपदेशिक सज्झाय-मांकण, मु. माणिक, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मांकणनो चटको दोहिलो), १५१८८-३६ औपदेशिक सज्झायमानोपरि, पंडित, भावसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू., ( अभिमान न करस्थो कोई), १४९१४-३, १५१८८-१९ औपदेशिक सज्झाय लोभोपरि, पंडित भावसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मृपू., (लोभ न करीये प्राणीया), १४९१४०५, १५१८८ - २१ औपदेशिक सवैया, मु. चिदानंदजी, मा.गु., गा. ५२, पद्य, मृपू., (ॐकार अगम अपार प्रवचन ), १४२८०१), १५०८५ औपदेशिक सवैया, क. मान, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे. (काया की सगाई नही), १५२७९-१४ औपदेशिक सवैया, ऋ. लालचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, वे., (दमडी रे काज दुनिया), १५३५२-४ औपदेशिक सवैया, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (जोर नार रंग रसै मान), १५३५२-३ " औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मृपू., ( उठी सवेरे सामायिक), १४४५९-३४ औपदेशिक स्वाध्याय, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (नित उठी गामें जावै), १५९२०-२ औषध संग्रह@, मा.गु., गद्य, वै., (--), १३९५५ -२ (+), १५७९७ -२ (+), १६५६४ - २ (+), १३९५६, १५७९८, १५९३४-२, १६२९३-२, १६५१५-२, १६५६०-२, १६६०९, १४८५७६) १५२००-१७(१), १५८१८-२०१ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कंडरिकपुंडरिक रास, मु. नारायण, मा.गु., ढा. २१, गा. १३५, वि. १६८३, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवयण आराधिइ), १७२६३ कठियारादृष्टांत सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (वीर जिनवर रे गोयम) १४६३५-३ कथा संग्रह, मा.गु., कथा. २३, पद्य, श्वे., (कोडी सरहं धनसंचियस्स), १४७१५ कयवन्ना चौढालियो - दानाधिकारे, मु. फतेचंद, मा.गु., ढा. ४, वि. १८८१, पद्य, स्था., (पार्श्वनाथ प्रणमी), १५८१५-१ कयवन्ना चौपाई, मु. गंगाराम, मा.गु., दा. २९, वि. १९२०, पद्य, श्वे. ( पूरण वंछित सुखकरण), १६१२३ " कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., ढा. ३१, गा. ५५५, वि. १७२१, पद्य, मूपु. ( स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), १४९१९४, १४२५१, १५३१२-१, १६६०१ (६) कर्मविपाक, मा.गु., गा. २४०८, पद्य, मूपू., (ॐकारबिंदु संयूक्तं), १४७२६ कर्मविपाक प्रश्नोत्तरभाषा, मा.गु., गा. २११, पद्य, वे., (ग्याताधर्मकथामाहि), १५३३१ , कयवन्ना सज्झाय-दानविषये, मु. लालविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १६८०, पद्य, मूपु. ( आदि जिनवर घ्याउ), १४६३५-३६ करणसत्तरी चरणसत्तरी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंचमाहाव्रत दशविधि), १४१५०-१८ कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (कर्म थकी छूटे नही), १५५६५-३ कर्मछत्रीसी, मा.गु., गा. ३७, पद्य, खे, (परम निरंजन परमगुरु), १४६९६ १० कर्मप्रकृति विधान, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. १७५ वि. १७००, पद्य, दि., ( परमसंकर परमभगवान), १४६९६-६ For Private And Personal Use Only कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (देव दाणव तीर्थंकर), १४२४१-५ (+) कर्म सज्झाय, मु. दान, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सुखदुःख सरज्यां पामी), १५१८८-१४ कर्म स्तवन, क. जसवंतसागर, मा.गु., पद्य, मूपू., ( श्रीसीमंधर पय प्रणमे ), १४३३६(+) कलयुग पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै.?, (छपे कलजुग आये वरती), १५९४४-४ कलावतीसती चौपाई, क्र. रायचंद, मा.गु., डा. १६, वि. १८३०, पद्य, वे., (जुगमंद्र जिन जगतगुरु), १५६९४ Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५४५ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ कलियुग सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, पुहि., गा. १२, पद्य, मूपू., (यारो कूडो कलियुग), १४६३५-३३ कहरानामचाली, पुहिं., गा. ११, पद्य, ?, (कुमति सुमति दोउ व्रज), १४६९६-२९ कागद परीक्षा, मा.गु., गद्य, ?, (प्रथम लाख पावसेर), १४९६७-५ कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ९, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (पारसनाथ प्रणमुंसदा), १५६४९ कामध्वजनरेंद्र प्रबंध, ग. मेघरत्न, मा.गु., खं. ५, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (सयल सुहकर सयल सुहकर), १५६४५(+) काया दूहा, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (भषतु अति घणो साख), १५८०६-५(+) कार्तिकशेठ पंचढालियो, ऋ. जैमल, मा.गु., ढा. ५, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिध साधु सर्व), १४७१२ कालिकाचार्य कथा @, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां पूर्वइ स्थविरा), १६६३९, १६७३४-१, १७००८, १७१२९ काव्यदुहाकवित्तपद्य, मा.गु., पद्य, ?, (--), १६२५४-४, १५१९५-५(5) कुंथुजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कुंथु जिणेसर जाणज्यो), १५५७९-२३ कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (जिनवर प्रणमी सदा), १५५७९-१५ कुगुरुसाधु पद, मु. अमृतविजय, पुहिं.,मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कछु कछु साधु कहे तब), १५१६०-१२ कुगुरूत्याग पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (तजु तजु में उन), १५१६०-२९ कुदेवकुगुरुकुधर्मस्वरूप विवेचन, मा.गु., गद्य, श्वे., (देवधरमगुरु वंदी पद), १४७४३ कुमतित्याग सज्झाय, ऋ. जवानमल, रा., गा. २८, वि. १९११, पद्य, श्वे., (जिनआगम वेण सुणीनें), १५२९५-३ कुमारपाल कीर्तिगाथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (राजा कुमारपालनइ चारइ), १५५३८-२(+$) कुरगडुऋषि रास, वा. मतिशेखर, मा.गु., गा. १७९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (रिसह जिणिंदह पयकमल), १५१८४-२ कसमसार चौपाई, म. विनयसागर, मा.ग.,खं. ४. वि. १६६५, पद्य, मप.. (श्रीआदीश्वर पयनमी),१६१५९ कृष्ण बारमासो, मु. रीषहजी, मा.गु., गा. २७, पद्य, श्वे., (मनमोहन दुवारामती), १५६०९-७ कृष्णभक्ति गीत, मा.गु., गा. १, पद्य, वै., (अब मुरली की टेर दै), १४१५१-१२(+) कृष्णरुक्मणी वेलि, रा. पृथ्वीराज राठोड , मा.गु., गा. ३०४, वि. १६३७, पद्य, वै., (परमेसर प्रणमि), १४२८२(+) (२) कृष्णरुक्मणी वेलि-टबार्थ, मु. शिवनिधान, मा.गु., वि. १६३८, गद्य, मूपू., वै., (श्रीहर्षसारसद्गुरु), १४२८२(+) केशीगणधर-परदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., ढा. ४१, गा. ५९४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीअरिहंत), १७१४० केसीगोयमगहली, मा.गु.,गा. ७, पद्य, मप., (सावथी उद्यानमांरे), १४०६८-१ कोकसार, आ. नर्बुदाचार्य, मा.गु., प्रका. १०, गा. १४९२, वि. १६५६, पद्य, मूपू., (मातंगी मति आपीये), १५५०८ कोयल वर्णन, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (कोयल समे तु बोल रहे), १४९४९-१७ क्रियाकोष, क. किशनसिंह सुखदेव श्रावक, पुहिं., गा. १८८८, वि. १७८४, पद्य, श्वे., (समवसरणलक्ष्मी सहित), १४८०० क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (आदर जीव क्षमागुण), १५५६५-१, १६९२७-२ खंडाजोयन बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (लाख जोयणनो जंबूद्वीप), १४३६३, १५५५१-१ खंधकमहामुनि चौढालियो, मु. तिलोक ऋषी, मा.गु., ढा. ४, गा. ८८, वि. १९३९, पद्य, श्वे., (प्रणमु जग नायक सदा), १७१३४-१ For Private And Personal Use Only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ खंधकमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २०, पद्य, मूपू., (नमो नमो खंधक महामुनि), १४१५९-२ खंधामुनि सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., ढा. २, गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीजिनधरम लहइ ते), १५४७८-३ खिमऋषि बलिभद्र यशोभद्रादि रास, मु. लावण्यसमय, मा.गु., खं. ३, गा. ५१२, वि. १५८९, पद्य, मूपू., (भारति भगवति मनि धरी), १३९८५ खेमाहडालिया रास, मु. लक्ष्मीरत्न, मा.गु., ढा. ६, गा. १३५, वि. १७४१, पद्य, मूपू., (आद्य जिनेसर आद्य), १४४४०-२ गजसिंघकुमार रास, मु. सुंदरराज, मा.गु., ख. ४, गा. ४३४, वि. १५५६, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमी), १७०८४, __१४२५२(4) गजसिंहनृपरास-सीलमहात्म्ये, मु. देवरत्न, मा.गु., खं. ४ ढाल ५१, गा. १५००, वि. १८१५, पद्य, मूपू., (प्रथम इष्ट पदेष्ट), १५१७२(+) गजसिंह रास, ग. मयाचंदजी, मा.गु., ढा. २७, वि. १८१५, पद्य, मूपू., (सांतिजिणंद सुखसंपदा), १५७८७ गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., ढा. ३०, गा. ५००, वि. १६९९, पद्य, मूपू., (नेमिसर जिनवरतणा चरण), १६२०३, १६५८०, १६२४२(5) गजसुकुमालमुनि संधि, मु. देव, मा.गु., ढा. १४, गा. २२२, वि. १७७६, पद्य, श्वे., (नमिय निरंजन नेमि), १६८२४-१(+) गजसुकुमाल रास, मु. शुभवर्द्धन-शिष्य, मा.गु., गा. ९१, पद्य, मूपू., (देस सोरठ द्वारापुरी), १३९६८-१(+), १६६१४ गजसुकुमाल सज्झाय, ऋ. चौथमल, मा.गु., गा. २३, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (गजसुखमाल देवकीनंदन), १५६०९-९ गजसुकुमाल सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (सोरठ देश मझार), १४२४२-७ गणधरवाद स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., गा. ४८, पद्य, मूपू., (सो सुत त्रिसलादेवि), १४३४१-१, १५६०१-३ गमारगुण श्लोक, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (रूपकला गुण चातुरी), १४१५९-३ गम्माशतक यंत्र-भगवतीसूत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १५४४७(+) गिरनार छंद, मु. जिन, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सोरठमे सोहामणो तिरथ), १४१२९-२ गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २७, गा. १६०३, वि. १७५४, पद्य, श्वे., (संपति सुखदायक सरस), १४३८८(+) गणकरंडकगणावली रास-बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २६, गा. ४९३, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंत गुण), १४८२९ गुणस्थानकस्थिति काल, मा.गु., गद्य, मपू., (मिथ्या० स्थिति अनंतो), १७२१५-२(+), १५४७४-३(#) गुणावलि चौपाई, ग. गजकुशल, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१९, वि. १७१४, पद्य, पू., (सकल मनोरथ पूरवे), १५४२४ गुरुकुलवास सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीवीर वदइ भविप्राण), १५४७८-७ गुरुगुण गहुंली, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तुमे शुभ परिणामें), १४०६८-१० गुरुगुण गहुंली, मु. राम, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (सदगुरुं मुख चंदचकोर), १४०६८-१४ गुरुगुण गहुँली, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (आतमरुची गुणधारणी रे), १४०६८-१५ गुरुगुण भास-गहुंली, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सदगुरुं हे सदगुरुं), १४०६८-९ गुरुगुण स्वाध्याय, मु. ऋद्धिचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (गुरु विना ज्ञान), १५७८४-२ For Private And Personal Use Only Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ गुरु महिमा सज्झाय, ग. कल्याणसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूषू, (गुरु आराधो गुरु), १४६३५ -५ गुरुविहार गहुली, मु. रत्नविजय, रा., मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., ( करजोडी करूं वीनती), १४४०५-८ गोरख वचनिका, पुहिं., गा. ७, पद्य, (जो भग देखि भामिनी), १४६९६-४२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., खं. ३ डाल ३९, गा. ८१६, ग्रं. ११५७, वि. १७०७, पद्य, मूपु. ( श्रीआदिसर प्रथम जिण), १४४६८ - १ (+), १४६७२ गोविंद बारमासो, मा.गु., गा. १५, पद्य, वै., (सखी चैत्र महीनि), १४९९२- २१ गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १२४, वि. १५४५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवे), १४४९४(+), १५८७१ गौतमस्वामी अष्टक, मु. धीर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पहिलो गणधर वीरनो रे), १५१६६-४७(+#) गौतमस्वामी गहुली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपु., (चरण करण गुण आगरो रे), १४०६८-६, १६४२२-२ (६) गौतमस्वामी गहुली, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गोतम गणधर मुख्य ), १४०६८-१३ गौतमस्वामी गहुली, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (राजगृही रलियामणि जिह), १४०६८-५ गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मात पृथ्वी सुत प्रात), १३९५१-२२ गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (वीर जिनेश्वरकेरो शिष), १५१६६-४६ (०) १४०५८-६, ५४७ For Private And Personal Use Only १५१६१-२, १५९२२-२ गीतमस्वामी दीपालिका रास, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., डा. १३, गा. ७६, पद्य, मूपू., (इंद्रभूति गौतम भणई), १४०९३ १ गौतमस्वामी भास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुनीवर हे कें मुनीवर), १४०६८ -११ गौतमस्वामी रास, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६७, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर चरण कमला), १४९४९-१ गौतमस्वामी रास, मु. उदयवंत, मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर चरण कमल), १५१६१-१ गौतमस्वामी रास, ऋ. रायचंद, रा. गा. १४, वि. १८३४, पद्य, वे., (गुण गाउ गौतम तणा), १५९४४-१ " गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., गा. ६३, वि. १४१२, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर चरण कमल), १५२८८ (+), १५२५४, १५३६९, १५६५६, १५९२२-१, १७१३८-१, १७१५० " गौतमस्वामी रास, श्राव. शांतिदास, मा.गु., गा. ६६, वि. १७३२, पद्य, म्पू., (सरस वचन दायक सरसती), १५५७४-१ गौतमस्वामी वीरविरहविलाप स्तवन, मु. खिमाविजय, पुहिं., गा. ९, पद्य, मृपू. ( तोस्यू प्रीत बंधाणि), १५८०१-२ गौतमस्वामी सज्झाय, मु. संघविवेक, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समोसरण सिंघासनइंजी), १४६३५ २७ गौतमस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (वीर कहै तुमे गोतम), १४१४७-८ गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभाते गोतम प्रणमी), १४०५८-८ गौतमस्वामी स्तोत्र, ग. विजयशेखर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीगौतम गुरु प्रभात), १४०५८-१६ ग्रहविलास, मा.गु., को., ., (), १४६९२ (६) घडपण सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (घडपण तुझ केणे तेडिओ), १५१९३-६ चंदनबाला चरित्र, ऋ. रतनचंद, मा.गु., ढा. १३, पद्य, स्था., (चंपा रे नगरी हो जाणी), १५९०३ चंदनबाला चौपाई, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. १२८, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वीरजिणवर पाय पणमेवि), १५१८४-३ चंदनबाला चौपाई, मु. ब्राह्म, पुहिं. गा. १६०, पद्य, मूपू., ( मोह पिसाच वसकरणकुं), १६०८७ Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ चंदनबाला रास, मु. बृह्मराय, मा.गु., गा. ८३, पद्य, श्वे., (असुभ करम के हरणकुं), १५७३६ चंदनबाला सज्झाय, मु. चतुरसागर, मा.गु., ढा. ३, गा. ४८, वि. १७०९, पद्य, मूपू., (सरसती केरा रे पय), १४५३६-३ चंदनमलयागिरि चौपाई, क. केसर, मा.गु., ढा. ११, गा. २६५, वि. १७७६, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर पाय), १६८८३(5) चंदनमलयागिरि रास, मु. भद्रसेन, पुहिं., अ. ५, गा. १९९, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीविक्रम), १६७३७-१(+) चंदनमलयागिरी चौपाई, मु. प्रेम, मा.गु., ढा. २२, पद्य, श्वे., (सुख संपति दायक नमु), १५९९१ चंदनमलयागिरीरास, पं. क्षेमहर्ष, मा.गु., ढा. १३, वि. १७०४, पद्य, मूपू., (जिनवर चउवीसे नमी), १५४२०६८) चंदनराजा चौपाई, पं. हीरविशाल, मा.गु., गा. २०४, पद्य, म्पू., (मन रंगिइंजिनवर नमउ), १३९८७-५ चंद्रकुमार वार्ता, मा.गु., गा. १२५, पद्य, मूपू., (समरु सरसती मात मनाय), १५३९०-१ चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, ऋ. जैमल, मा.गु., गा. ४०, पद्य, स्था., (पाडलीपुर नामे नगर), १४७४१-१ चंद्रप्रभजिन धवल प्रबंध, आ. विनयदेवसूरि, मा.गु., ढा. १३, गा. ८९, पद्य, मूपू., (वचन विलास भल वरसतीए), १४००३-१(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, आ. ऋषभसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आनन नेहसम सोभतो), १४५३९-४ चंद्रप्रभजिन स्तवन, ग. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चंद्रप्रभुस्युं मेरो), १३९६८-७(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सद्गुरु चरण नमी करी), १४१५१-५(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (साहिब मुज सुणो वीनती), १४१५१-४(+) चंद्रप्रभृजिन स्तवन, ऋ. रामचंद्र, मा.ग., गा.१०, वि. १९७८, पद्य, मप., (जगनायक जगपति जिनराया), १५०९७-१ चंद्रमा गहुंली, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (वालो मारो चंद्रमा), १४४०३-५ । स. म. तेजमनि, मा.ग..खं. ४ ढाल ३६. गा. ८५५. वि. १७४१. पद्य, श्वे.. (श्रीजिन शांति नम), १३८९२($) चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १०८, गा. २६७९, वि. १७८३, पद्य, मूपू., (प्रथम धराधव तीम), १३८९०(+), १३८९१, १७००५, १५४२३(६), १५५४९(5), १५७२२($) चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., खं. ६ ढाल १०३, गा. २५०५, ग्रं. ३०५५, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (श्रीजिननायक समरीई), १३८३१(+) चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., ढा. २९, गा. ६२४, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति नमी करी), १४१७६, १५६७६, १६०४६, १६३३० चंद्रावतीभीमसेन सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जिन मुख सोहे सरस्वति), १५९७३-२ चतुर विचार, रा., गा. १३४, पद्य, श्वे., (भगवंतै ध्रम भाखीयौ), १५७४४ चतुर्थीतिथी स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सर्वारथ सिद्धथी चवी), १४४५९-४ चतुर्विंशतिजिन अंतरकाल, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउवीसमा महावीरनई), १७०५३-२ चातुर्मास विनती, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (चतुर चोमासो इहा करो), १४४०५-९ चातुर्मासिक व्याख्यान, मा.गु., प+ग., म्पू., (प्रणम्य परमानंद पंचा), १५१६३ चारगोलेयादि चौढालीयो, मु. धनदास, रा., ढा. ४, पद्य, श्वे., (संतनाथजी सोलमा सांति), १६६४०-१ चारित्रपद चैत्यवंदन, पा. हीरधर्म, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (जस्स पसाये साहु पाय), १५१२८-२२ For Private And Personal Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५४९ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ चारित्रपद स्तवन, मु. कुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (निर्विकल्प अज), १५१२८-२३ चारित्रपद स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (कर्म अपचय दूर खपावे), १५१२८-२४ चारित्रमनोरथमाला, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (सुह गुरु पय प्रणमउं), १५१३१-७ चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (चित्त कहे ब्रह्मराय), १४२४२-५ चिदानंदबहोत्तरी, मु. चिदानंद, मा.गु., अ. ७२, पद्य, मूपू., (पिया परघर मत जावो), १४४४८६६) चीतोडगढ गजल, क. खेताक यति, पुहि., गा. ५७, वि. १७४८, पद्य, मूपू., (चरण चतुरभुज घाईऐ चित), १६१७४ चेतन वृतांत, श्राव. भगवतीदास, पुहि., गा. २९८, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (जिनचरण प्रणाम करि), १६२९४(+) चेलणाराणी चौपाई, रा., ढा. ९, पद्य, श्वे., (मगधदेसना अधिपति), १५४१६-१ चेलणासतीसज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरे वखाणी राणी), १४२४१-१४(+) चैत्रीआराहण विधि, रा., गद्य, मूपू., (पुनमरै दिन प्रथमतो), १५६३३-६ चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रथम प्रतिमा ४ माडी), १५१५७-१ चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, मु. दानविजय, मा.गु., देवजो. ५, पद्य, मूपू., (प्रथम चौमुख प्रतिमा), १४०४०-१, १७०२२ चौभंगी रूपकार वचनिका संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (एक जीव द्रव्यता के), १४६९६-४४ चौमासीपर्व देववंदन, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रथम ऋषभ देवचैत्य), १६८५३ चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (विमलकेवलज्ञान कमला), १४८२४(+), १४५७१, १४९७५, १५०९९, १५४४८, १६३५७, १६०६५(६), १६३७२($) चौवीसजिन नमस्कार, ग. जिनविजय, मा.गु., गा. ७५, पद्य, मूपू., (प्रथम जिन युगादिदेव), १४५६५-२ चौवीसजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (करि कच्छपी धरती), १५६०१-७ चौवीसतीर्थंकर के नाम-गण-योनि-नक्षत्र-राशी-लंछनयंत्र आदि, मा.गु., को., मूप., (--), १६०१६-२ चौवीसतीर्थंकररो लेखो, रा., अ. २४, प+ग., श्वे., (प्रथम श्रीआदिसर), १७२६८ छःरीपालीतसंघयात्रा स्तवन, मा.गु., ढा. ५, वि. १८२०, पद्य, मूपू., (सारद मात मया करो रे), १७१४३(+) छआवश्यक विचार स्तवन, वा. विनयविजय, मा.गु., गा. ४४, पद्य, मूपू., (चोवीसइं जिन चीतवीं), १५८०१-१ छ आवश्यक सज्झाय, क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (संझतणु पडिक्कमणु), १५५७९-१४ छट्ठतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमि जिणेसर लैं), १४४५९-८ छोति चौपाई, पानु, मा.गु., गा. ६०, पद्य, श्वे.?, (सरसति सामिणि करु), १४१८६-२ जंबूपृच्छा, मु. वीरजी, मा.गु., ढा. १३, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (सकल पदारथ सर्वदा), १६८७२ जंबूस्वामी कथा, मा.गु., गा. ४९०, वि. १६४२, पद्य, मूपू., (पढम पंचपरमेठिहि), १६८०९-१(+) जंबूस्वामी कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (सप्रभावं जिन), १५४९३($) जंबूस्वामी चरित्र, मु. पद्मचंद्र, मा.गु., ढा. ५८, गा. १५००, ग्रं. १५११, वि. १७१४, पद्य, मूपू., (शारद पाय प्रणमुं), १६०९२ जंबूस्वामी चरित्र, मा.गु., ग्रं. ३७५, प+ग., मूपू., (एकदा समें श्रीमहावीर), १६६८६(# जंबूस्वामी भास, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सहीयर म्हारी अरिहंत), १४०६८-८ For Private And Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ३५, गा. ६०८, ग्रं. १०३५, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणंदना), १३८८७(+), १६७३६(+5), १३८८८, १६१६५, १७२३३ जंबूस्वामी रास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. १८५, वि. १५२२, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर पय नमी), १३८८९, १३८९४, १६२५२ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. जयतसी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (महावीर सीस सुजाण रे), १५१५२-२ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. रुपविजय, मा.गु., ढा. ७, पद्य, मूपू., (जंबुस्वामि जोवन घर), १६१९१ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (राजग्रही नगरी वसे), १४५३६-४ जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रेणिक नर वयराजिओ), १४६३५-१४ । जगदंबा छंद, सारंग कवि, मा.गु., गा. २८, पद्य, वै., (विजया सांभलि वीनती), १५१९१-५(+) जयसेन चौपाई-रात्रिभोजन विषये, वा. धर्मसमुद्र, मा.गु., गा. २५५, पद्य, मूपू., (प्रणमीस गोयम गणहरराय), १६६३७-२(+), १४१९५-३, १४२२२, १४२२३ जिणरस, मु. वेणीराम, मा.गु., गा. १९५, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (गणपद सारद पाय नमी), १५२४०, १६३३६ जिनगीतचौवीसी, मु. आनंद, मा.गु., स्त. २४, वि. १५८१, पद्य, मूपू., (आदि जिणंद मया करो), १४९९२-२ जिनगीतचौवीसी, मु. चंद्रविजय, मा.गु., गी. २४, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (प्रथम जिणसर प्रणमीइ), १४१८५ जिनजन्म आंतरा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १७०२८ जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (ज्ञातारा नुमा), १६३७८(5) जिनपालजिनरक्षित चौपाई, मु. भावसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १६२, वि. १६३४, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि हंसगमनि), १४१९५-२ जिनपूजा अष्टक, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., (जलधारा चंदन पुहए), १४६९६-२६ जिनप्रतिमापूजा चर्चा, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., प्रश्न. १३, गद्य, मूपू., (ॐ नमो अरिहंताणं), १५१३१-१३ जिनप्रतिमा स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २१, पद्य, मूपू., (जिन जिन प्रतिमा वंदण), १४१५०-७ जिनप्रतिमा स्तवन, पुहि., गा. १०, पद्य, श्वे., (जिन प्रतिमा जिन सारख), १४६९६-५२ जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जिन जिन प्रतिमा वंदन), १४१३९-३ जिनप्रतिमाहुंडि रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६७, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (सुयदेवी हीयडै धरी), १३९३६-२ जिनबिंबप्रवेश विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवें पूर्वोक्त शुभ), १६९५८(+ जिनबिंबस्थापन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (भरतादिके उद्धारज), १४९४९-४ जिनरक्षितजिनपाल चौढालिया, रा., ढा. ४, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीसी आगे हुई), १५५१४-८ जिनवंदन विधि स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थंकर करु), १४५३६-१८ जिनवाणी स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (विबुध सुबुद्धि विधाय), १५६०१-५(६) जिनसहस्रनाम स्तोत्र, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., शत. १०, गा. १०१, वि. १६९०, पद्य, श्वे., (परम देव परनाम करि), १४६९६-१ जिनस्तवनचौवीशी, मु. कपूरविजय, मा.गु., स्त. २४, वि. १७६३, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणेसर राजिया), १४०४५(+) For Private And Personal Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५१ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ जिनस्तवनचौवीशी, क. कमलविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (सकल मंगल करण विमल), १४०८४ जिनस्तवनचौवीशी, मु. केसरकुसल, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (समरी अमरी सारदा सारद), १४०८५ जिनस्तवनचौवीशी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (आदिकरण अरिहंतजी ओलगड), १५३९२ जिनस्तवनचौवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (जगजीवन जगवाल्हो), १४१३६-१(+), १४३७०, १५१३९, १५२४६, १५९४३, १६२६२, १३९९७(६) जिनस्तवनचौवीशी-१४ बोल, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभदेव नितु वंदिये), १४०७७-१, १४०८० जिभादंत संवाद, मु. नारायण, मा.गु., गा. ५८, पद्य, श्वे., (वीर जिणेसर पाए नमु), १६६३७-१(+$) जीवउत्पत्ति के १४ स्थान, मा.गु., गद्य, मूपू., (वली नीत ने विषे उपजे), १५३३३-३ जीवकाया सज्झाय, मु. रंगविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रीतम तणो मुझ ओपरई), १४९९२-१२ जीव के पांचसोभेदे समकितविचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (बेस्येन्ने बें २०२), १७१९५-३(+$) जीवगति आगति यंत्र, मा.गु., यं., म्पू., (--), १६९८१(+$) जीवदयाप्रतिबोध गीत, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (दुलहे नरभव भमता दुलभ), १५१३१-११(६) जीवदया सज्झाय, मु. कनीराम, रा.,गा. ७०, वि. १८९४, पद्य, श्वे., (आप हणे हणावे नही पर), १५२९५-२ जीवभेद सज्झाय, मु. जिन, मा.गु., ढा. २, गा. २०, पद्य, मूपू., (श्रीसारद चितमें धरी), १४५०४-४(+) जीवविचार बोल, मा.गु., गद्य, मपू., (--),१५१५१(+$) जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ८३, वि. १७१२, पद्य, मूपू., (श्रीसरसती रे वरसती), १५१६२-१, १५९६३, १६०८३, १७०१६ जीवोत्त्पत्तिकारण सज्झाय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (उतपति जोइनइ आपणी), १४५१५-३(+) जैनकाव्य संग्रह, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), १६५०८-२, १५२७९-३(१) -जैन गाथा , मा.गु., पद्य, मूपू., (--), १४२९१-२ जैनधर्म सिद्धांत, मा.गु., पद्य, श्वे., (नमो अरिहंताणं नमो), १५३५७-१ जैन यंत्रसंग्रह(कोष्ठक), मा.गु., यं., मूपू., (--), १६४६२-२(+) ज्ञानगरबो, मु. भूधर, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (आदिशकति आस्युं नोरतै), १६८२४-३(+) ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. खिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (युगला धर्म निवारिओ आ), १४४५२-२५, १५३६०-१ ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (त्रिगडे बेठा वीर), १५१८३-२२, १५३६०-४ ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, मपू., (श्रीसौभाग्यपंचमी), १६१४२(+), १६७४१(+), १६९४४-१(+), १५९७८, १६५०६, १७०५१-१, १७०७६-१, १५६९६(क) ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., वि. १८८७, पद्य, मूपू., (सकल कुशल कमलावली), १६५५५ ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगुरुपाय), १४६३५-१९ For Private And Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सद्गुरू चरण पसाउले ), १४४०४-३ ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सद्गुरुना प्रणमुं), १४४०४-५ ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., डा. ५, गा. १६, पद्य, मूपू., ( श्रीवासुपूज्य जिणेसर), १६९४४ -२ (+), १५५७९-२२, १७०५१-२, १७०७६-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, सु. गुणविजय, मा.गु., डा. ६, गा. ४९, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणेसर), १६५७५ (१) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., डा. ६, वि. १७९३, पद्य, म्पू., (सुत सिद्धारथ भूपनो), १५३२०-१, १५५७८ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, ग. भक्तिविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, भूपू., (समरी श्रुतदेवी सदा), १४०७६-२, १४०९०-२ ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. २५, पद्य, वे., (सुरनर तिर्यग जग जोनि), १४६९६ - १३, १५९७३-५ ज्ञानपद गहुंली, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ज्ञान विना छे अंधारु), १४४०३-२१ ज्ञानपद चैत्यवंदन, पा. हीरधर्म, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (क्षिप्रादिक रामवह्नि), १५१२८-१९ ज्ञानपद स्तवन, मु. कुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनवर भाषित आगम भणिय), १५१२८-२० ज्ञानपद स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (मति श्रुत इंद्रिय), १५१२८-२१ ज्ञानमहिमा दुहा, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (ज्ञान समो कोइ धन), १४९४९ - १६, १५१४९-२ ढंढणऋषि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ढंढणऋषिने वंदणा), १५१८८-५ ढंढणऋषि सज्झाय, आ. हर्षमंगलसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि तुम्ह), १४६३५ -१३ खंडणऋषि सज्झाय, रा. डा. ३, पद्य, मूपू., (तिण कालेनें तिण समें), १५५१४-९ (5) , ढाईद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (खंडा ८ हजार ५५०), १५५५१-२ ढालमंजरी, मु. सुज्ञानसागर, मा.गु., खं. ६, वि. १८२२, पद्य, मूपू., (मंगल सहजानंद सुख), १५०७४ ढूंढकमत कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहिं. ग्रं. २४०, गद्य, म्पू., (ढुंढियो कहे हुं), १५९३६ ढोलामारु चौपाई, वा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ७००, वि. १६७७, पद्य, म्पू., (सकल सुरासुर सामिनी), १६०४३ (६) तत्त्वप्रकाश, श्राव. दलपतराय, पुहिं., गद्य, दि., (प्रथम शिष्य गुरु), १४२१५ (+) तत्त्वसार भाषा, मु. देवसेन, मा.गु., गा. ७९, पद्य, जे.?, (आदिसुखी अनंतसुखी), १४१७० तपपद चैत्यवंदन, पा. हीरधर्म, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू., (श्रीऋषभाविक तीर्थनाथ), १५१२८-२५ तपपद स्तवन, पा. हीरधर्म, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बारस भेद भए जिनराजै), १५१२८-२६ पपद स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., ( इच्छारोधन तप ते), १५१२८-२७ 19 तपस्या गहुंली, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू (मोहन वाजा बागीया), १४४०५-१० तप स्वाध्याय, मा.गु., गा. ८, पद्य, जै. ?, (सरसति सामी नरा), १५८८८-३ , तमाकुपरिहार सज्झाय, मु. आणंद, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपु. ( प्रीतम सेती विनवे), १४२७९-२(+) तमाकुपरिहार सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू (प्रीतम सेती वीनवे), १५९८८-२२ ताव चीत्रीसो यंत्र, मा.गु., को. मृपू., (--), १५४७४-५ () तिष्यकुरुदत्त सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (चोखइ चित्त चारित्र), १५४७८-५ तीर्थकरबल वर्णन, पुहिं., गद्य, भूपू., (बारां पुरुष का बल), १५६७३-२ " For Private And Personal Use Only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ तीर्थमाला, मु. शीलविजय, मा.गु., खं. ४, गा. ३६९, वि. १७४६, पद्य, भूपू., (अरिहंत देव नमुं सदा), १४४६२(*) तीर्थमाला, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., ढा. १३, गा. ३१२, ग्रं. ४१३, वि. १७८५, पद्य, मूपू., ( आणंददाई आगरे प्रणम्य), १४९६२ तीर्थमाला स्तवन, मु. मेघ, मा.गु., गा. ९२, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (शेत्रुंज सामी रिसह), १४०४२ तीर्थादि विविधनाम संग्रह, मा.गु., गद्य, वै., (अग्नितीर्थ कामतीर्थ), १५९९५-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुंबडी सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., ( सहि गुरुपाय प्रणमी), १५५७९-२९ तृतीयातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( श्रेयांस जिणेसर शिव), १४४५९-३ तेजसारकुमार रास, मु. कल्याण, मा.गु., ढा. ६३, वि. १७६४, पद्य, मूपू., (ऋषभादिक चोविस जिन), १३८८५ (+) तेलीपुत्र रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. २६०, वि. १५९५, पद्य, मृपू, (शासनदेवि नमुं महासती), १३८८४ तेरापंथी चर्चा, लक्ष्मीचंद, हिं., गद्य, वे. १, (अथ तेरापंथियाकी), १६८२२ ५५३ त्रिषष्टिशलाकापुरुष स्तवन, मु. वसतौ, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (सदगुरु चरणकमल मन), १६९६२-२ त्रैलोक्यसार चौपाई, आ. सुमतिकीर्तिसूरि, मा.गु., गा. २०५, वि. १६२७, पद्य, दि., (सरसति सद्गुरू सेवु), १४२८५, १६९९४ त्रैलोक्यसुंदरी चौपाई, ऋ. कनीरामजी, मा.गु., डा. २२, वि. १८११, पद्य, ओ., (अरिहंत सिद्ध अनंतगुण), १५३३८ त्रैलोक्यसुंदरी रास, ऋ. सबलदास, मा.गु., डा. १२, वि. १८५२, पद्य, वे. (विहरमान वीसे नमुं), १५८३५ ', थावच्चाकुमार भास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. १९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (नवरी द्वारामती जाणी), १४६३५ १२ दंडकद्वार बोलसंग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (), १६४५७) दंडक यंत्र, मा.गु., गद्य, जे., (--), १६९९२ दमयंती चौपाई, ऋ. प्रेमराज, मा.गु., गा. २०९, पद्य, श्वे., (जिणधरमसुं जागता हुवो), १४२३१, १४२३२ दमयंती रास, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., गा. १२३, वि. १७१३, पद्य, मूपू., (सानिद्ध जस कविता ), १४१९९ दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थंकर करु रे), १४४५७-२ दर्शनपद चैत्यवंदन, पा. हीरधर्म, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (हुय पुग्गल परिअठ्ठ), १५१२८-१६ दर्शनपद स्तवन, मु. कुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (देव श्रीजिनराज गुरु), १५१२८ - १७ दर्शनपद स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (जिनपन्नत तत्त सुधारस ), १५१२८-१८ दशार्णभद्रराजा सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सारद बुधदाइ सेवक), १४५१५ - २ (+), १४२४२-१ दाढाला कथा, मा.गु., गद्य, थे., (जंबूद्रीप भरतखंड), १७२६१-१ दानछत्रीसी, मु. राजलाभ, मा.गु., गा. ३६, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (दानतणा गुण परितिख), १३८५१-३ दानमहिमा दूहो, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (धर्मलाभ जइ उच्चर्यो), १५९७३-४ दानशीलतपभावना रास, मु. लब्धिविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल४९, गा. १२७४, वि. १६९२, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति तुं सारदा), १३८८२ (+) For Private And Personal Use Only दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., डा. ४, गा. १०१, ग्रं. १३५, वि. १६६२, पद्य, मूपु., ( प्रथम जिनेसर पाय), १४४७२-२(+), १७१९०(+), १५१५६, १६९२७-१, १७०२६-१, १४४२० (5) दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. जयेतावास, मा.गु., गा. १३, पद्य, वे., (दान एक मन देह जीवडे), १५२९१-४) Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ दान सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (रसीया राचौ दान तणे), १५१८८-२३ दामनकरास, वा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १३, वि. १७८२, पद्य, मूपू., (अकल सकल अमरेशने), १६४८५(+) दिपावलीपर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (वीर जिनवर वीर जिनवर), १५३६८, १६०५३-१ दीपावलीपर्व गहंली, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (भवियां आसो वदि), १४४०३-११ दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, मु. पद्म, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (त्रीस वरस घर वास), १४४५२-२४ दीपावलीपर्व रास, ऋ. जेमल, मा.गु., गा. ४३, पद्य, श्वे., (भजन करो श्रीभगवंतरो), १४८४०-२(#) दीपावलीपर्व स्तुति, पंडित. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दीवाली दिन पर्व), १४४५९-३३ दीपावलीपर्व स्तुति, मु. भालतिलक, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (जयजय कर मंगलदीपक), १५१६६-२४(+#), १५५३३-२७(+) दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सासननायक श्रीमहावीर), १५५३३-९(+), १५५९४-११ दीपावलीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वंदु वीर जिणंदनुचरी), १५१६६-२३(+#), १५२८६-११ दीपावलीपर्व स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (जय मानव सेवित), १५५३३-२८(+) देवकी ढाल, मा.गु., पद्य, मूपू., (इण अवसर श्रीनेमजी), १७१३३ देवकी सज्झाय, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., ढा. १०, पद्य, मूपू., (रथनेमि नामे हूवा), १७२६२(७) देवकुमार चौपाई, ग. सोभागसुंदर, मा.गु., गा. ३३७, वि. १६२७, पद्य, पू., (--), १६५०३ देवदत्ता चौपाई, मु. रत्नधर्म, रा., ढा. ७, वि. १८९१, पद्य, श्वे., (एकादसमां अंग मै नवमो), १५४१६-३ देवभेद बोलसंग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (देव भोगी के त्यागी), १४७१३-३ देवराजवछराज चौपाई, मु. नेमिविजय, मा.गु., ढा. ६३, गा. १८२५, वि. १७५८, पद्य, मूपू., (अकलगति अंतरीकजिन), १४४९२(5) देववंदनसूत्र के पद आदि संख्या कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--), १५२७९-५ देवसीयप्रतिक्रमणविधि स्वाध्याय, पासचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, जै.?, (--), १५१३१-१(६) देवसूरि स्वाध्याय, मु. ऋद्धिचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सरसति सामिण ध्याउ), १५७८४-३ देवादिचतुर्गति आगत जीवलक्षण, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवता माहेथि आव्याना), १५३७४-२ देवाधिदेव रचना, हिं., गा. ८५, वि. १८६०, पद्य, श्वे., (सकल जगतपद परमपद पूरण), १६६६६-२(+) द्रव्यगुणपर्याय रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १७, गा. ३८४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु जितविजय मन), १३८९५(+), १५७०५ (+$) (२) द्रव्यगुणपर्याय रास-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्यानुयोग द्रव्या), १३८९५(+), १५७०५ (45) धन्नाअणगार गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद समोसर्याजी), १४६३५-८ धन्नाअणगार रास, रा., ढा. ९, गा. १४८, पद्य, मूपू., (तिण कालनै तिणसमै), १५५१४-२ धन्ना चौढालिया, मु. फतेचंद, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (सकल अमर सेवत सदा), १५८१५-२ धन्नाशालिभद्र रास, मु. जिनविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल ८५, गा. २२४२, ग्रं. २५००, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिं नत क्रम), १६६६१(+), १४८१७ धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (दीधो मुनीवर दान नयरी), १४९४९-७ For Private And Personal Use Only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ धरणपोरवाड संबंध, मांईदास, मा.गु., गा. १०८, पद्य, श्वे., (--), १४४४० - १($) धर्मचर्चा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १४६६४($) धर्मजिन स्तुति, आ, जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुरति मन हरणी जाणे), १४०५९-१० धर्मधुतारा साधु पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., ( धीग धीग तेओने ते), १५१६०-१६ धर्मरुचि अणगार सज्झाय, ऋ. रतनचंद, रा., गा. १५, वि. १८६५, पद्य, स्था., (चंपानगरनी रुप सुंदर), १४९४९-६ धर्मोपदेशक दोहे, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू., (सिद्ध सदा सुख अनुभव), १६२५४-२ धारणीमाता सज्झाब, रा., गा. ७, पद्य, भूपू., (ने धारणी राणी बोले), १६५८४-२ ध्यानयत्रीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं. गा. ३६, पद्य, दि., ( ग्यानसरूप अनंतगुन), १४६९६ ११, १५९७३-९ " ध्यानस्वरुपनिरुपण प्रबंध, मु. भावविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. १६३, वि. १६९६, पद्य, मूपू., (सकल जिणेसर पाय वंदे), १५११८ ध्यानस्वरूप, मु. सुखानंद, मा.गु., वि. १७९०, प+ग, मूपू., (तत्र ध्याई जइते), १७०५३-१ नंदनमणियार चौडालियो, रा. डा. ४, पद्य, थे., (ग्यातारा तेरमां अधेन), १५४१६-४ 9 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नंदमणिआर सज्झाय, मु. लाभविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, भूपू., (वंदन देव गुरुनि करुं ), १४११९-२ नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु. बा. १६, प्र. ४२१, वि. १७२५, पद्य, भूपू., (सुत सिद्धारथ भूपनो), १४९७४-१ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., डा. ३, गा. १६, पद्य, मूपू., (राजगृही नयरीनो वासी), १४५३६-२८, १५१८८-७, १५७२९-२ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( रहो रहो रहो वालहा ), १५१८८-१७ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु, लब्धिविजय, मा.गु, गा. १६, पद्य, मूषू, (पंचसयां धणि परिहरी), १४६३५-३१ नंदीश्वरद्वीप ५२ जिनालय अष्टाह्निकामहोच्छव पूजा, मु. खेमाविजय, मा.गु., वि. १८८२, पद्य, मूपू., ( ॐ ह्रीँ नंदीश्वर), १४९५८-२ नमस्कार महामंत्र छंद, क. लाधो, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे. ?, (भोर भयो ऊठो भवि), १४०५८-२२ नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., गा. २२, पद्य, भूपू., (पहिलो लीजि), १३९६८-२ (०) नंदीश्वरद्वीप पूजा, मु. धर्मचंद्र, मा.गु., ढा. १२, वि. १८९६, पद्म, मूपू., (प्रणमुं शांति जिनंद), १४०३० (+) नंदीश्वरद्वीप स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (नंदीसर वरद्वीप नीहाल ), १४४५९-३७ नंदीसरद्वीप स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (--), १४५८९-१+४) नमस्कारमंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( श्रीनवकार जपो मनरंग), १४०२६-२ नमस्कार महामंत्र छंद, वा. कुशललाभ, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (वंछित ०श्रीजिनशासन), १५१६६ - ४२ (#), १४०५८-२१, १५१९२-५, १५२९२-७ नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुख कारण भवीयण समरो), १५१६६-४३(#), १५१९२-६ ५५५ नमस्कारमहामंत्र सज्झाय, मु. गुणप्रभुसुंदर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), १६०५९-२ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ए पंच परमेष्टि पद), १४१५०-१९ For Private And Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५६ www.kobatirth.org नमस्कार महामंत्र सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (वारीजाउ अरिहंतनें), १४१५०-१६ नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जी हो मिथीला नगरीनो), १५१८८-२५ नयविचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीजिनवरेंद्र), १५७९५ नरकदुःख रास, मा.गु., गा. २७२, पद्य, मूपू., (घर रे भार जुता घणा), १४९६५ नर्मदासुंदरी रास-शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ६३, गा. १४५४, ग्रं. १४६६, वि. १७५४, पद्य, मूपू., ( प्रभुचरणांबुजरजतणी), १३८८१, १३८८३, १४७६३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ६ ढाल ३९, गा. ९३१, ग्रं. १३५०, वि. १६७३, पद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी प्रमुख), १५४३८-१(+), १५६८८(+) १६१९८, १६२१३, १६५१८, १७२७१, १४५५७/३) नवअंगपूजा दोहा, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (परम उपगारी चरणकज), १४९४९ - ११ नवकारमंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( बार जपुं अरिहंतना), १५१८८-९ नवकारवाली गली, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बारगुणो अरिहंतजी), १४४०३-१९ नवकारशीतपव्रत वंदना, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (धन्य ते गांम नगर), १५१८७-७ " नवकार सज्झाय, मु. दुर्गादास, रा. गा. १४, वि. १८३१, पद्य, वे., (अरिहंत पहले पद जानी), १५२९१-५१) नवग्रह विचार, मा.गु., गा. १६, पद्य, जे. १, (समी भोमीथी तारा जेह), १५१९५-६ नवतत्त्व ९ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल लक्षण द्वार १), १७१११ नवतत्त्व चौपाई, मु. भावसागरसूरि- शिष्य, मा.गु., गा. ९५१, ग्रं. १३०५, वि. १५७५, पद्य, मूपू., (आदि नमी आणंदहपूरि), १३८८० यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., ग्रं. १६०, गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व प्राण चेतन), १६९२८ त्वविचार @, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १५४१२, १५४७४- १(१) नवदुर्गा विधान, पुहिं., गा. ९, पद्य, वे., ( प्रथम हि समकितवंत), १४६९६ २३ नवपद चैत्यवंदन स्तवन स्तुति संग्रह, मु. अबीरचंद जती, मा.गु., अ. ९ +९+ ९, वि. १९१७, पद्य, श्वे., ( जयजय श्रीअरिहंतदेव), १५०५० (+) नवपद चैत्यवदन, पा. हीरधर्म, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( जयजय श्रीअरिहंत भानु), १५१२८-१ नवपद जाप, मा.गु., गद्य, मूपू., (अशोकवृक्षः सुरपुष्प), १६७४३ - २ (#) नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, भूपू., ( नमोनंत संत प्रमोद), १४४५२ १ नवपद पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ९, वि. १८३०, पद्य, मूपू., ( श्रीगोडी पासजी नीति), १६०१८ नवपद पूजा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ९, वि. १८३८, पद्य, मूपू., (श्रुतदायक श्रुतदेवता), १६०८५ नवपदफल, मा.गु., गा. २, पद्य, जै., (आदि वीरनो उपदस्यो), १६२०२-३ नवपद वंदनक्रिया, मा.गु., गद्य, म्पू., (प्रथम प्रभाते), १७२२७-१ नवपद वचनिका, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. नवरत्न कवित, पुहिं. गा. ११, पद्य, वे " ·9 ह्री नमो अरिहंताण), १४७१६-२ For Private And Personal Use Only २३, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (सकल कुशल कमलानो), १४१५०-२०, १४२४२-८ (धन्नंतरि छपनक अमर), १४६९६-२५ Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५५७ नववाड सज्झाय, मु. केशरकुशल, मा.गु., ढा. ९, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर इम भणे), १४९१४-१, १५१८८-१ नववाड सीयलवेल, श्राव. मकन, मा.गु., ढा. ८, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (श्रीसरसती समरं सदा), १५६६७ नववाडि सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १०, गा. ४३, वि. १७६३, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुने चरणे नमी), १४०१२-१, १५६१० नववाडि सज्झाय, क. धर्महंस, मा.गु., ढा. ९, गा. ५६, पद्य, मूपू., (आदि आदि जिणेसर नमुं), १४११९-३, १६७७९-३() नववाडी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ११, गा. ९७, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर चरणयुग), १४०१३ नवसेना विधान, पुहि., गा. १२, पद्य, (प्रथममहिपत्तिनाम दल), १४६९६-३८ नागत्तुउश्रावक वरुण सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (धन्य ते जग माहे कहीइ), १५४७८-१२ नागीला भवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भवदेव भाई घेर आवीया),१६८२४-२(+) नाणावटी सज्झाय, श्राव. साहजी रुपाणी, रा., गा. ८, पद्य, श्वे., (हो नाणावटी नाणु), १५१८८-३८ नामनिर्णय विधान, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., (काहु दिन काह समै), १४६९६-२४ नारकीदुःख साखी, मा.गु., गा. २४४, पद्य, मूपू., (आदिदेव अरूं अंत जिण), १७१६७-१ नारद सज्झाय-पुद्गलविचारगर्भित, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रुतग्यानी रे), १५४७८-९ निंदानी सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चावत म करो परतणी), १४९१४-८ निमित्तउपादान दोहरा, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (गुरु उपदेस निमित्त), १४१७१-२(+), १४२११-२, १४६९६-४८ निमित्तकारण उपादानकारणनिर्णय संग्रह, पुहि., गद्य, श्वे., (प्रथम ही कोई पूछता), १४६९६-४७ निग्रंथवंदन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (तेतरीया आभाइ तेतरीया), १६९६१-४ निर्जरा तत्त्व, पुहि.,मा.गु., गद्य, मूपू., (निरजरा तत्व किणने), १४७३२ निवीयाता विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दूधनां नीवीयतां ५), १६१३३-५ निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीय जिनवर रे देशना), १४२४२-२ निह्नव सज्झाय, रा., गा. १८, पद्य, श्वे., (अरिहंत वचन उथापीया), १५२९५-४ नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., चोक. २४, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (एक दिवस वसै नेमकुंवर), १५५७२(+), १६१३७-१(+) नेमजिन तपकल्याणक, मु. सुनंदलाल, मा.गु., गा. ४२, वि. १७४४, पद्य, श्वे., (अरि गुरु गणधर देव), १५९३० नेमजिन स्तुति, पंन्या. महिमाविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीगिरनार शिखर), १५१६६-२२(+#) नेमराजिमती कागल, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीरेवंतगिर), १५५७९-२१ नेमराजिमती गीत, मु. कवियण, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय कौ नेमि), १३९५१-८ नेमराजिमती गीत, आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, दि., (दोकर जोडीनि जंपती), १४०८२-२३ नेमराजिमती गीत, आ. वीरचंदसरि, मा.ग..गा. ३. पद्य, दि.. (स्वामी तं विण को), १४०८२-११ नेमराजिमती तेरमासा, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२८, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (प्रणमुं विजया रे), १५१८६-२, १५७१३-१ नेमराजिमती पद, मु. प्रमाणसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नव भव केरी प्रीत), १५६०९-३ नेमराजिमती पद, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (राजुल पुकार करती), १४१४७-७ For Private And Personal Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ नेमराजिमती बारमास, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. १७, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (हं सरसती ने पाए), १४१५१-७(+) नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पियुजी पियुजी रे), १५१८८-३२ नेमराजिमती सज्झाय, म्. सीवजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (श्रीगुरु चरणे रे), १६५७३-३ नेमराजिमती सज्झाय, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, पू., (कपूर होवे अति उजलो), १५१८८-१३ नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (यादवजी हो समुद्रविजय), १५५७९-८ नेमराजिमती स्वाध्याय, उपा. अमरसी, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (पंथीडा हरकर कहै रे), १५७४९-२ नेमराजुल स्नेहवेली, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. १५, वि. १८७६, पद्य, मूपू., (शंखेश्वर पासजी हरी), १४९४४ नेमिजिन गीत, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वालो क्यां छे रे), १४१५१-१०(+) नेमिजिनगीत, आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, दि., (तोरी आंखडी अतीअणीआली), १४०८२-१९ नेमिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबूद्वीप भरतक्षेत्र), १७२८४-२ नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय कुलकेसरी), १४४५२-१२ नेमिजिन छढालीयो, मु. शिवजी गणि-शिष्य, मा.गु., ढा. ६, पद्य, श्वे., (सकल सुरासुर सारदा), १५१८६-३ नेमिजिन ढाल, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., ढा. १७, गा. १३२, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (चंद्रकांति चंद्राननी), १४००५ नेमिजिन नमस्कार, मु. लक्ष्मण, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (रिसह जिनवर० अवर), १४०६२-१० नेमिजिन नवरसो , क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., गा. ७२, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (सरसति सामिनी पाय), १४०९७, १४१५०-२७, १५७१२ नेमिजिन फाग, मु. वर्द्धमान, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीनेम जिनेश्वर), १५४३८-२(+) नेमिजिन बारमासो, मा.गु., पद्य, म्पू., (सखी आव्यो रे मास), १४०९९-२($) नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (हारे सजन समजाणा), १४९४९-१५(६) नेमिजिन विवाहलो, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. २२, वि. १८४९, पद्य, मूपू., (सरसती सरण नमी रे), १४२८७, १६५५४ नेमिजिन वीनती, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (हरखु माहि हियडइ किमइ), १५१८५-२ नेमिजिन सज्झाय, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (गोविंद हमकुं मारण), १४०२२-७ नेमिजिन सलोको, क. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५७, पद्य, मूपू., (सिद्धि बुद्धि दाता), १४४२८ नेमिजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (एतो बाल थकी ब्रह्म), १५५७९-९ नेमिजिन स्तवन, मु. डुंगर, मा.गु., गा. ७५, पद्य, श्वे., (सारदा सामिणि मनि), १४०९६ । नेमिजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (उज्जलगिरी अमहे जाइ), १४०६२-८ नेमिजिन स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजुल कहे रथ वालो), १४५३६-१७ नेमिजिन स्तवन, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभुजी नेमीसर भगवान), १४४०५-३ नेमिजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (नेमजी चालोतो तुमने), १५५७९-२० नेमिजिन स्तवन, मु. विमल-शिष्य, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरसति मात पसाउलइ रे), १५२२६-२ नेमिजिन स्तवन, आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, दि., (चतुर पणि चंग चारित्र), १४०८२-१७ नेमिजिन स्तवन, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (नेमीस्वर बनडो बण्यो), १४९४९-३ For Private And Personal Use Only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (हें लिं श्रावणीयों आ), १५५७९-१८ नेमिजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., कडी. ३६, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (जायव कुल सिणगार सिरि), १४१२९-५, १५८६५-२ नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रावण सुदि दिन), १५१६६-१३(+#), १५५३३-४४(+), १४४५९-७, १५२८६-३, १५५९४-४ नेमिजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गिरनार सिहरि पर नेमि), १४०५९-१४ नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कुगति कुमति छोडी), १४०६२-३ नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुरअसुरवंदितपायपंकज), १५५३३-२१(+), १४०५९-१२ पंचइंद्रिय सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (रे जीउं विषय न राचीइ), १४५३६-२२ पंचकल्याणक पूजा-पार्श्वजिन, पं. वीरविजय, मा.गु., वि. १८८९, पद्य, मूपू., (संखेश्वर साहेब सुर), १४६३७, १५६०४, १७१५४ पंचकल्याणक पूजा-बृहत्, उपा. चारित्रनंदि, मा.गु., वि. १८८९, पद्य, मूपू., (पण कल्याणक जिन तणा), १४०३८(+) पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, पुहि., ढा. ५, गा. २५, पद्य, श्वे., (पणमवि पंच परम गुरु), १५४८०-२ पंचकल्याणक विधि, मु. मनोहरविजय, मा.गु., वि. २०२३, गद्य, मूपू., (प्रथम दिवस विधि), १७०९७ पंचकल्याणक स्तवन, मु. कुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अष्टवरस नगमा सहीये), १५१२८-५ पंचकल्याणक स्तवन, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (चोवीसइ जिणचर नमी), १४०९८-३(+) पंचतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अरिहंत देवा चरणोनी), १५१६६-३२(+#) पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धुर समरुं श्रीआदिदेव), १५१८३-१५ पंचतीर्थ स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आदि हे आदि जिणेसरु), १५१६६-४९(+#), १३९५१-९, १४६३५-१७ पंचपदविधान वर्णन, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. १२, पद्य, श्वे., (नमो ध्यान धर पंचपद), १४६९६-२० पंचपरमेष्ठिगुणगर्भितजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (बार गुण अरिहंतदेव), १५१६६-३१(+), १६०५९-३ पंचपरमेष्ठि गणवर्णन गीता, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग.,गा. १३१, पद्य, मप., (प्रणमीई प्रेमस्य),१६३१८ पंचपांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (हस्तीनापुर नगर भलो), १४६३५-९ पंचमवाड सज्झाय, मु. केशरकुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (गोतम पुछे श्रीवीरने), १५५७९-५ पंचमहाव्रत कथा, मा.गु., स. ५, गद्य, मूपू., (जंबुद्वीपे महाविदेह), १७०६४, १६३५६(5), १६५७४(5) पंचमहाव्रत कथासंग्रह, मा.गु., अ. ५, गद्य, मूपू., (बालक जीवने हितने), १४६९३(+) पंचमहाव्रत भांगा, मा.गु., गद्य, श्वे., (पांचमहाव्रतना भांगा), १५१९६-६(+) पंचमहाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवैरे), १४१२२ पंचमहाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सुरतरुनी परि दोहिलो), १४१५०-८ पंचमहाव्रत सज्झाय, उपा. सकलचंदजी , मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंच महाव्रत तणो रे), १४५१५-९(+) For Private And Personal Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ पंचमीतिथि नमस्कार, मु. जीवविमल, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (नेमीसर पंचबाण गयगंजण), १४४५२-१८ पंचमीतिथि स्तवन, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., ढा. ५, वि. १७६०, पद्य, म्पू., (सकल मनोरथ पूरबैं), १६७३५-१(६) पंचमीतिथि स्तुति, म. जीवविजय; म्. सौभाग्यविजय, मा.ग., गा. ४, वि. १७८४-१८००, पद्य, मप., (पंचमी दिन जनम्या), १५१६६-१४(+#) पंचमीतिथि स्तुति, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिद्धवधु केरो सिणगार), १५५३३-३२(+) पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंच रूप करि मेरुशिखर), १४४५९-५ पंचमीपर्व नमस्कार, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (उज्वल कार्तिक पंचम), १५३६०-५ पंचवाक्य शुकनावली, मा.गु., गद्य, श्वे., (ऐ माणसथी लाभ कहेवो), १५५८६-१ पंचाख्यान चौपाई, मु. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., अधि. ५, गा. २६१६, वि. १६२२, पद्य, मूपू., (प्रणम्य पूर्व), १५२३७(+) पंचाख्यान भाषा, श्राव. निरमल, मा.गु., संधि. ५, पद्य, जै.?, (प्रथम जपौं अरिहंत), १५०९५ पंचेंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आपु तुजने शीख चतुरनर), १४५०४-३(+) पच्चक्खाणप्रमाण विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (आवलें १ उपवास हुवै), १५१९६-४(+) पट्टावली, मा.गु., गद्य, श्वे., (वीरने पाटें सुधर्मा), १६४२१(+) पट्टावली, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीजेसलमेर का भंडार), १७१०७ पट्टावली, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १६१३०(+$) पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, मपू., (गुबरग्रामवासी वसुभूत), १६६२६-१ पट्टावली गहंली, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (जीरे मारे स्वामी), १४४०५-६ पट्टावली चौरासीगच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान स्वामी), १५९४९ पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान तीर्थं), १५५२५, १६५३२-१, १६७३१(#) पट्टावली दिगंबर, मु. देपाल, मा.गु., गा. २, पद्य, दि., (आदि दिगंबर दरण आदि), १४०८२-२५ पदवी विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (भरतक्षेत्र माहि), १६६६८-२(+) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सही ए पदमप्रभु पूजन), १४६३५-१८ पद्मप्रभजिन स्तवन, आ. ऋषभसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मिलि करी आवै हो खेखो), १४५३९-३ पद्मप्रभजिन स्तवन, ऋ. भीमजी-शिष्य, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभु जिनराजसुं), १४९९२-१३ पद्मप्रभजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभुजिन जइ अळगा), १५१६५-७ पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (धनधन संप्रति साचो), १४५३६-२६, १४६३५-१५, १६७३४-२ पद्मरथ चौपाई, मु. माल, मा.गु., गा. १८२, पद्य, पू., (उत्तम ते आजनम लगि), १४१८४ पद्मावतिदेवी छंद, हीरो, मा.गु., गा. ४१, पद्य, श्वे.?, (देवीतो दीवाणं अनंत), १४५५२-३ पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, पद्य, मूपू., (हवे राणी पद्मावती), १५९७५-२(+), १४६३५-२९, १४८४०-१(#) परनिंदात्याग पद, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (किसी की नंद्या न करी), १५१६०-३१ For Private And Personal Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ परनिंदानिवारक सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, पू., (म कर हो जीव परतात), १४६३५-१०, १५१८८-८ परमात्मा नमस्कार, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (ईच्छं प्रमाणं प्रकाश), १४४५२-१० परमार्थ अष्टपदी, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (ऐसै ज्यौं प्रभु पाईइ), १४६९६-५४ परमार्थहिंडोल अष्टपदी, केसोदास, पुहि., गा.८, पद्य, ?, (सहज हिंडोलना हरख), १४६९६-६८ पर्युषणपर्व गहुंली, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अहो भवि पर्व दिवस), १४४०५-१२ पर्युषणपर्व गहुंली, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सजनी मोरी पर्व पजुसण), १४४०५-११ पर्युषणपर्व स्तुति, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पुण्य, पोषण पापर्नु), १५५३३-३४(+) पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण पुण्ये), १४४५९-३२ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर अतिअलवेसर), १५५३३-३७(+), १५५९४-७ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सत्तरे भेदे जिन पूजा), १५१६६-१२(+#), १४४५९-३१, १५२८६-१०, १५५९४-८ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परव पजुसण पुन्य), १५५३३-१५(+) पर्युषणापर्व अठाईस्तवन, मु. हेमसौभाग्य, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पास जिणंदा), १७०२९ पश्यमाधीश छंद, क. विदुर, रा., गा. २४, पद्य, वै.?, (--), १५१९७-१(६) पहेली पद, मा.गु., पद. १, पद्य, जै.?, (कीयो न कीयो पीयो न), १७२६१-२ पांचमा महाव्रतनी सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आजे मनोरथ अतिघर्ण), १४७४०-१० पांडव रास, आ. गुणसागरसरि. मा.ग.,खं. ९ ढाल १५१. ग्रं. ५७५०. वि. १६७६. पद्य, मप.. (श्रीजिन आदिजिनेश्वरू). १४७५७, १६८३२, १३८८६, १५७६६(७) पांडव सज्झाय-शत्रुजयतीर्थगर्भित, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. १९, पद्य, मप., (जी हो पंच पांडव मनि). १४०२१-३($) पाखंडीचरित्रनाटक पद, मु. विमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (संसारमा सुगुरु सार), १५१६०-११ पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. २७, वि. १७६८, पद्य, मूपू., (श्रीजिन सरस्वती संत),१६७७१(१), १७११०(६) पार्श्वजिन १० भव, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबूद्वीप भरतक्षेत्र), १७२८४-१ पार्श्वजिन १० भव विवाहलो, श्राव. पेथो , मा.गु., गा. २०६, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि करुअ), १४२८८ पार्श्वजिन आरती-गोडी, सुजान, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू.?, (पहेंली आरती अरीहंत), १५९७३-३ पार्श्वजिन गीत, आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., गा. २, पद्य, दि., (मोटि ममेर गंभीर गुणि), १४०८२-२६ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वंदू पार्श्वजिणंद), १५१८३-१९ पार्श्वजिन चैत्यवंदन-शंखेश्वर, मा.गु., गा. ३, पद्य, पू., (श्रीशंखेश्वर गाम मे), १४४५२-८ पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्ष, वा. भावविजय, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू., (सरसत मात मना करी), १४०५७, १४५५२-१, १६३९८-२ पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्ष, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ५५, वि. १५८५, पद्य, मूपू., (सरस वचन दियो सरसति), १५१४६-२(+), १४४५७-१, १४५५२-४($) For Private And Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६२ पार्श्वजिन छंद - अमीझरा, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., ( उठत प्रभात अमीझरो), १४०५८-२० पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. करमसी, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (गवरीपुत्र गणेशवर), १५१९७-३ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., ( जय जय गोडि पास धणि), १४४५७-६ पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., ( सरसति द्यो मुझ), १५१९७-२ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपु., (सुवचन आपो शारदा मया), १४७१७-१ पार्श्वजिन छंद-गोडीपार्श्वनाथ, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धवल धिंग गोडी धणी), १५१६६-४८(+#), १४०५८-१३, १५१९२-८ पार्श्वजिन छंद-नाकोडा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आपण घर बेठा लील करो), १४५०४-२ (+) पार्श्वजिन छंद- शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सेवो पास शंखेश्वरो), १५१६६-३४(२०), १४०५८-१२, १४१५० १०, १५१९२-७ पार्श्वजिन छंद- शंखेश्वर, ग. कनकरत्न, मा.गु., गा. २५, वि. १७११, पद्य, मूपू., ( सरसति सार सदा बुध), १५२९२-९ पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सेवे), १३९५१-५, १४०५८-७, १५२९२-२ पार्श्वजिन निसणी घरघर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. २७, पद्य, भूपू (सुखसंपत्तिदायक सुरनर), १४४७२-१(+5) " पार्श्वजिन पंचकल्याणक स्तवन- समेतशिखर, मु. शिव, मा.गु., कल. ३, वि. १९२७, पद्य, भूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ १६८४३(+) पार्श्वजिन पद- गोडीजी, मु. धरमसीह, मा.गु., गा. २९, पद्य, म्पू., (सरस वचन दे सरसती एह), १४५५२-२ पार्श्वजिन विनती जिराउला, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जिराउला देव करउं), १५१८५-४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू., (प्रणमुं पद पंकज पासन), १५१८७-३ पार्श्वजिन स्तवन, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पार्श्वप्रभुना चरण), १५५१७-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., ( वादल दहदीस उनह्या), १४५३६-२१ पार्श्वजिन स्तवन, ऋ. कानजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे. (प्रीतथी प्रभु पास), १४९८७-१० पार्श्वजिन स्तवन, ग. जिनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( पास जिणेसर सेवीइ), १३९६८-१०(+) पार्श्वजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप, (प्राणसनेही हो साहिब), १३८२८-२ " " पार्श्वजिन स्तवन, मु. धरमसी, मा.गु., ढा. ४, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सरस्वती वचनसुधारस ), १४५३६-८ पार्श्वजिन स्तवन, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. १४, वि. १८७७, पद्य, मूपु., (भावधरी भजन करु आपे), १४८७४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. विजयशील, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सकल मुरती श्रीपास), १५१६६ - ३५ (+#), १५१९२-९, १६९६२-४ For Private And Personal Use Only पार्श्वजिन स्तवन, मु. विनयशील, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सकल मुरत श्रीपास), १७११६-२ (०), १४०५८-९, १४४५७-९ पार्श्वजिन स्तवन, शंकर, मा.गु., गा. ९, पद्य, खे.?, (सरसति माता सेवकां), १४१२९-१ पार्श्वजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (मति तंबोल भर्या जसु), १५६०१-१५ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पारसना पसायथी रे), १४९१४-१० Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५६३ पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, पा. धर्मसिंह, मा.गु., ढा. ४, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (पूर मनोरथ पास जिणेसर), १५३३३-२ पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभु पासजी ताहरो), १५१९२-३ पार्श्वजिन स्तवन-अक्षयनिधितपगर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १२, वि. १८४३, पद्य, मूपू., (तपवर कीजे रे अक्षय), १६००६-३ पार्श्वजिन स्तवन-अजाहरा, आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, दि., (सुणिसुणि सजनी सहीअ), १४०८२-७ पार्श्वजिन स्तवन-अमीझरा, मु. महेंद्र, मा.गु., गा. ६, वि. १८६२, पद्य, मूपू., (जगगुरु वामानंदन भगवा), १५५७९-१६ पार्श्वजिन स्तवन-अवंती, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (उज्जयनी आवो रे पारश), १४४०३-२४ पार्श्वजिन स्तवन-अवंती, मु. रत्नविजय, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (मेरा दिल साफ कर देना), १४४०३-२५ पार्श्वजिन स्तवन-कल्याण, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (कल्याण पास पद कमले), १६६५४-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. अनोपचंद, मा.गु., ढा. ८, वि. १८२५, पद्य, मूपू., (जिन वदन निवासनी), १६५२९ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु.,गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीथलपति थलदेशे), १५१४६-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. १५, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (प्रणमु नित परमेश्वर), १४०२९-१, १४०७२, १४०७३, १५३९३-१, १६६८८-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (जिनजी सुण हो तेवीसम), १४०२१-७ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. वसता, रा., गा. १५, पद्य, श्वे., (जोर बन्यो जोर बन्यो), १५५७९-१३ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४१, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (वदन अनोपम चंदलो गोडि), १४४७२-४(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जी बीराजे बंगलामे), १४९४९-२ पार्श्वजिन स्तवन-चंद्राउला, मु. राजपाल, मा.गु., गा. ८८, वि. १६७१, पद्य, मूपू., (सरसति नइ समरी करी), १४०१५(+) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आणि मनसुध आसता देव), १४२४१-९(+), १५१६६-४४(+#), १४०५८-१७, १५१९२-१० पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (श्रीपास चिंतामणी), १५३५९-३ पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मपू., (जीराउलि मंडण श्रीपास), १३९५१-१ पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, दि., (चमकती चतुर चंद्राननी), १४०८२-१५ पार्श्वजिन स्तवन-नवपल्लव, मु. विजयचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पूजो पास जिनेसर देव), १५५७९-१२ पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादानीय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पुरसादाणी सांवल वरणो), १४५३६-१६ पार्श्वजिन स्तवन-फलवृद्धि, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (परतापूरण प्रणमीइ अरि), १५१९७-५ पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, मु. उदयरतन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वालाजी पांच मंगलवार), १४२४१-१५(+) पार्श्वजिन स्तवन-मगसीजी, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुखिया साहेब सुखिया), १४४०३-२३ पार्श्वजिन स्तवन-मांडवगढ, मु. रत्नविजय, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (तुमे तो भले बीराजो), १४४०३-२६ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयविजय, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सकल मंगल तणी कल्प), १४५४२-३(+) For Private And Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. कल्याणसागर, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (भगवती भारती चित्तधरी), १४६३५-२२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. कल्याणसागर, मा.गु., गा. २०, पद्य, पू., (समरथ साहिब सांवलो), १४६३५-२३ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. कुंअरविजय-शिष्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रह उठी प्रणमे), १४४५७-५ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. धर्मविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. १२८, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर समरीने), १४१३१, १४८६१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज अनोपम मुरत माहरे), १४५३६-२३ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. विजयराजसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रणमीय परमगुरु पाय), १३९७०-२ पार्श्वजिन स्तवन-शामलीया, मु. रत्नविजय, पुहिं., गा. १५, पद्य, मूपू., (शामलीया मौए जेशे), १४४०३-४ पार्श्वजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. २, गा. २७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन सेहरो), १४१५०-२४, १४९५१-८ पार्श्वजिन स्तवन-सुरतमंडण, वा. देव, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुरत मंडण पासजिणं), १४०५८-१५ पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थमंडन, वा. कुशललाभ, मा.गु., ढा. ५, गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रभु प्रणमुरे), १६६८८-२ पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थमंडन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मूरत त्रेवीसमो), १४०६२-९ पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थमंडन, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. २८, गा. ३२३, वि. १८११, पद्य, मूपू., (सरसतीने समरं सदा), १४४८७-१ पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थमंडन, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (थंभणपुर श्रीपास जिणं), १४०५८-१४, १४६३५-१६ पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अश्वसेन नरेसर वामा), १४०५९-१३ पार्श्वजिन स्तुति, वा. देवविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सेवे), १४४५९-१४ पार्श्वजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीपास जिणेसर पुजा), १५५३३-१८(+) पार्श्वजिन स्तुति, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (परम प्रभु परमेश्वर), १४४५९-१६ पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जलण जल वियोगा नाम), १४०६२-४ पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, मु. लब्धिरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीजिन गोडीपार्श्व), १५५३३-१२(+) पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमीतिथि, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जय पास देवा करूं), १५५३३-२०(+), १४४५९-१७ पार्श्वजिन स्तुति-भीलडीपुरमंडन, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (भीलडीपुर मंडण सोहिए), १५१६६-१०(+#) पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर-पौषदशमीतिथि, ग. रंगविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वरपार्श्वज), १४४५९-१५ पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सकल सदा फल चिंतामणि), १३९५१-१० पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मु. उदय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनमुख पंकज), १५१६६-४५(+#), १३९५१-२३ पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (नमु सारदा सार), १४४५७-७, १५१७८-४ पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, ग. कल्याणसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सिद्ध वधू वरवा लहोजी), १४६३५-२० पार्श्वजिन स्थविर सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (श्रीजिनशासनमा कहिउं), १५४७८-१० पार्श्व-शांतिजिन-१४ गुणस्थानक स्तवन, मा.गु., गा. ६९, पद्य, मूपू., (प्रणमिय संति जिणिंद), १४०९१-५ पिंडबत्रीसी सज्झाय, मु. सहजविमल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (सकल जिणेसर प्रणमु), १४१५०-९ For Private And Personal Use Only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पुंडरीकगणधरपूजा विधिसहित, मु. दानविजय, मा.गु., प+ग., मूपू., (सर्व श्रीसंघ उभा थइ), १४०४०-२ पुण्य छत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६९, पद्य, मूपू., (पुण्यतणां फल परतखि), १५५६५-२ पुण्यपाल चौपाई-दानविषये, पं. क्षेमहर्ष, मा.गु., ढा. १३, वि. १७०४, पद्य, मूपू., (अकल अगोचर अलख गति), १५५५३(+) पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मा.गु., ढा. ८, गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धिदायक सदा), १७२०६(+), १४००९, १४०२३, १४१०९, १४५३६-१, १५१५९, १६२६६, १७००१ पुण्यसार रास, ग. साधुमेरु, मा.गु., गा. ६०५, वि. १५०१, पद्य, मूपू., (केवलज्ञानिंइ अलंकरी), १३८७७(+) पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., ढा. ९, गा. २०५, वि. १६६६, पद्य, मूपू., (नाभिराय नंदन नमुं), १४९८७-३, १६५०९-१ पुद्गलबत्तीसी, मु. दोलतरुचि, मा.गु., गा. ३३, वि. १९५५, पद्य, श्वे., (हो जीउरा पुद्गल संग), १५१६०-२८ पुरंदरकुमार रास, वा. मालदेव, मा.गु., ढा. १२, गा. ३७६, पद्य, मूपू., (वरदाई श्रुतदेवता), १६३२२ पूजन प्रकरण, मा.गु., प+ग., श्वे., (करम घात हनि विश्व), १६०२० पूजाविधि रास, क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., गा. ५६६, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (सरस वचन दिउं सरस्वती), १३८७८, १३९३४ पूजाविधि स्तवन, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जिनचोविसे करु प्रणाम), १३९५१-६ पृथ्वीचंद गणसागर वेली, मा.ग., गा. ५४, पद्य, मप., (सिरि नेमि जिणेसर), १४५१५-१(+) पोसह रास, मा.गु., गा. ९२, पद्य, श्वे., (--),१५१८४-५ पौषदशमीपर्व स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (श्रीसंखेश्वर पासजिणे), १५५३३-४२(+) पौषदशमीपर्व स्तुति, मु. राजविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पोस दसम दीन पार्श्व), १५१६६-२१(+#) पौषध के १८ दोष @, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १५१९५-११(६) प्रतिमासंबंधि बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रावकनां बार व्रत), १३९३६-१ प्रत्याख्यान ४९ भांगा, मा.गु., गद्य, मपू., (मनइंन करुं वचने न), १५९७४-२ प्रत्याख्यान विचार, उपा. विनयविजय , मा.गु., ढा. २, गा. १७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (धुरि समरु सामिणी), १४२४३-४ प्रत्याख्यान सज्झाय-दुविहार, मु. मानविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमी सरसति), १४४७७-२ प्रदेशीराजा चौपाई, ऋ. जेमल, मा.गु., ढा. १७, वि. १८७७, पद्य, श्वे., (रायप्रसेणी सुत्रमे), १५८३६ प्रदेसीराजा रास, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., ढा. २१, वि. १८७७, पद्य, श्वे., (सुरीयाभदेव वीर), १५७११ प्रभाती पद, सुखदेव, पुहिं., गा. १०, पद्य, ?, (ऐसा कलियुग आवे राजा), १५६०९-२ प्रश्नवाद, मा.गु., गद्य, श्वे., (ढुंढक साथे वाद करवो), १७००० प्रश्नोत्तर १० दोहरा, पुहिं., गा. १०, पद्य, श्वे., (कोन वस्तु वपुमाहि), १४६९६-३० प्रश्नोत्तर बोल, रा., गद्य, मूपू., (प्रथम गुणठांणारा धणी), १६९९५ प्रश्नोत्तरमाला, बनारसीदास, पुहि., गा. २१, पद्य, वै., (नमित सीस गोविंदसौ), १४६९६-३१ प्रश्नोत्तरमाला, ग. विमलविजय, मा.गु., प्रश्न. १७२, गद्य, मूपू., (--), १५९५३ प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रणमुं तुमारा पाय), १४५३६-५, १५१८८-३५, १६६८८-३ For Private And Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ प्रहेलिका पद, मा.गु., पद. १, पद्य, जै.?, (ऐकनकुंकर हाथ बोलावत), १४५६४-७ प्राणातिपात प्रथमपापनास्थानिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पापस्थानिक पहिलू), १५१८८-३० प्राणातिपातविरमणव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवे रे), १४७४०-६ प्रायश्चित्त प्रमाण, मा.गु., गद्य, श्वे., (निरस सरस आहार परठवें), १५१९६-५(+) प्रास्ताविक कवित्त, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. २३, पद्य, श्वे., (पूरव कि पछिम हो), १४६९६-४१ प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. २२०, वि. १६७२, पद्य, मूपू., (प्रणमु सद्गुरु पाय), १४२६७(+), १४२६८(+), १४२६३, १४२६४, १४२६६, १४२७२, १५७६४ बनारसीदास प्रशस्ति, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ३, वि. १७७१, पद्य, दि., (नगर आगरेमें अगरवाल), १४६९६-७० बाराक्षरी ढाल, मु. पार्श्वदास, मा.गु., गा. ३६, वि. १८९९, पद्य, श्वे., (श्रीजिन जिन वृषकू), १६५५० बाहजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (रमत रमिवा मैं गईथी), १४०२१-६, १४१५०-२८, १५५७९-२(5) बाहुबली स्वाध्याय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (बाहूबली वन काउसग), १४५३६-२० बीजतिथि सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (बीज तणे दिन दाखवु), १४४०४-२ बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दिन सकल मनोहर बीज), १५१६६-३(+#), १५५३३-२(+), १४४५९-२, १५२८६-२, १५५९४-३ बुढ़ापा रास, मु. चंद, रा., ढा. २२, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (दयाज माता वीनवु गणधर), १५९१८ बुध रास, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६६, पद्य, मूपू., (पणमवी देवी अंबाई), १४५३६-१९ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ नमः चेइ वृर्ष), १७१५३ ब्रह्मचर्य १० समाधिस्थान कुलक, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४२, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर पाय), १५१३१-५() ब्रह्मचर्य सज्झाय, मु. केशरकुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (वीर जीणेसर भाखीयो), १५१८८-२ ब्रह्मचर्याध्ययन सज्झाय, वा. उदयविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ब्रह्मचर्यना दश), १५१८८-२९ ब्रह्मबावनी, मु. निहालचंद, पुहि., गा. ५२, वि. १८०१, पद्य, मूपू., (ॐकार अपार परमेश्वर), १४६५५, १५३५२-२, १५८०४-१ ब्रह्मविलास, श्राव. भगोतीदास लालजी ओसवाल, पुहिं., वि. १७५५, पद्य, दि., (प्रथम प्रणमि अरहत), १४८१४ ब्राह्मीसुंदरी सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (आदनाथ गर जनमीया ज्या), १४९४९-१४ भक्ति गीत, पं., गा. १, पद्य, ?, (तूसी क्या ज्यान्नै), १४१५१-११(+) भक्ति पद, गोरखनाथ, मा.गु., गा. ६, पद्य, वै., (काइ वावु कासी जीम), १५९४४-३ भरतक्षेत्र गहुंली, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जंबुद्वीपनी दक्षिणे), १४४०३-२० भरतबाहबलि कथा, मा.ग., गद्य, मपू., (हिवइ भरत श्रीमरुदेवी), १४७२९ भरतबाहुबली नवछंद, मु. कुमुदचंद्र, मा.गु., ढा. ४, वि. १६६८, पद्य, श्वे., (स्मृत्वा श्रीनाभेयं), १४२९० भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ३८, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीवरवा), १४२४२-३, १४२४३-१ For Private And Personal Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पच, मूपु., (राजतणा अति लोभीया), १५१६५-६, १५१८८-३३ भारतबाहुबली सवैया, मु. सभाचंद, मा.गु., गा. ३५, पद्य, भूपू., (परम पुरुष धरा जुगल), १६७८१(१) भवणद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोक में अलोक में जे), १५८९१, १६०८० भवानीदेवी छंद, मा.गु., रा., गा. ७१, पद्य, वै.२, (जणीमाता जालंधरी जणी), १५१९७-६ भाग्यलक्ष्मी चौपाई, मु. सबलदास, रा., ढा. ७, पद्य, वे., (जिनवर वचन धर्म आराधि), १५४१६-२ भुवनभानुकेवली चौपाई, वा. उदयरत्न, मा.गु., डा. ९७, ग्रं. २४१४, वि. १७६९, पद्य, म्पू., (सकलसिद्धिदायक सदा), १७०६३(३) भृगुपुरोहित चौढालीयो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (देव हुंता भव पाछलैजी), १५७२९-१ मंगलकलश चौपाई, मु. जीवण, मा.गु., वि. १७०८, पद्य, वे. (पणमवि सीमंधर प्रमुख), १५४९८-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , मंगलकलश चौपाई, मु. लक्ष्मीहर्ष, मा.गु., ढा. २७, वि. १७१९, पद्य, मूपू., (प्रह उठी नीत प्रणमीय), १६९८७ मंगलकलश फाग, वा. कनकसोम, मा.गु., गा. १४२, वि. १६४९, पद्य, म्पू, (सासण देवीय सामिणी ए) १६४९५ मंगलकलश रास, मु. ज्ञानरुचि, मा.गु., गा. ३५०, वि. १५२५, पद्य, मूपू., (आदि जिणवर जिणवर सुख), १३९८७-२ मंगलकलश रास, मु. दीप्तिविजय, मा.गु., वि. १७४९, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सरसति स्वामी), १४६७१(+) मंगलाचरण, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू, (मंगलं भगवान वीरो), १५१६१-४ मत्स्योदर रास, मु. जयराज, मा.गु., गा. १६१, वि. १५५३, पद्य, मूपू., (देव अरिहंत देव), १३९८७-३ मदननरेश्वर चौपाई, मु. दामोदर, मा.गु., गा. ५५७, ग्रं. ९३८, वि. १६६९, पद्य, मूपू., (आदि जिणेसर अतुलबल), १६६५३ (#) मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., गा. १७६, पद्य, मूपू., (सात कुव्यसनरा तीजा), १५४१७() मदनरेखासती रास, मा.गु., गा. १८८, पद्य, मूपु. (जुआ मांस दारु तणी), १५७३८(*), १६६७० (+), १६०७९, १७१७१ (३), , १५७४०) मदनरेखासती सज्झाय, मा.गु., गा. १६३, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्धने आयरिय), १५७०२ मदनसेन चौपाई, ऋ. सांवतराम, मा.गु., ढा. ३१, वि. १८९८, पद्य, श्वे., (प्रथम नमी भगवंतनै), १४३१३(+), १७०८७(+), १५३१७ मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद - शिष्य, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति मुझने रे मात), १४६३५ -४, १५१८८-३, १५५७९-२४ मनकमुनि सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., ( नमो रे नमो मनक), १४६३५-२ मननिरोध चौपाई, आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., गा. ९७, पद्य, दि., (सजन जन मन रंजणुं ), १५९८४-४ ५६७ मनुष्यक्षेत्र वर्णन, मा.गु., गद्य, भूपू., ( एक कर्मभूमिना १ बीजी), १५१५०-२ मनुष्यभव १० दृष्टांत सज्झाय, वा. गुणविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (प्रणमी परमेसर वीर), १४५१५-८(+) मलयासुंदरी रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १२३, गा. २९७५, ग्रं. ४०८४, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (सकल समीहित श्रेयकर), १३८७५ (+) For Private And Personal Use Only मलयासुंदरी रास, मु. कांतिविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल९१, वि. १७७५, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), १३८७६ मलयासुंदरी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., खं. ४ डाल१४८, गा. ३००६, वि. १७५१, पद्य, भूपू., ( श्रीशांतिसर सोलमो), १६६७१ Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ मल्लिजिन चैत्यवंदन-भोयणी, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नरनारी तार्या पाप), १४४०३-१ मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., ढा. ५, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (नवपद समरी मन शुद्धे), १४१४७-९, १७०१० मल्लिजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मल्लिनाथ जगनाथ चरण), १४१०६ (२) मल्लिजिन स्तवन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (हिवें श्रीमल्लिनाथ), १४१०६ मल्लिजिन स्तवन, आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, दि., (गोपति कुंभ कुलें), १४०८२-२२ महाबलमलयसुंदरी चौपाई, मु. भक्तविमल, मा.गु., खं. ४, वि. १८५२, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ), १६०७५ महाबल रास, ऋ. लाईआ शिष्य, मा.गु., ढा. ४२, ग्रं. ५३७, पद्य, श्वे., (गौतम देव नमो सदा), १३८७४-१ महावीरजिन २७ भव स्तवन, पंन्या. ज्ञानकुशल, मा.गु., ढा. ११, गा. ८७, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (पूरण प्रेमे प्रणमीइ), १४१०२, १५३३२, १५३६४ महावीरजिन २७ भव स्तवन, मु. लालविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ८१, वि. १६६२, पद्य, मपू., (विमलकमलदललोयणा दिसे), १४०१६,१४०९९-१, १४१११, १४१५०-१, १५२९६-१, १७००४, १७२७२ महावीरजिन चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, गा. ७, पद्य, मूपू., (सासण नायक सुरतरु), १७१३४-३(5) महावीरजिन छंद, मु. कवियण, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समरु देवि सरस्वति), १४०५८-२३ महावीरजिन निर्वाणकल्याणक सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (तीरथ नायक वंदिये), १५१३१-१२(5) महावीरजिन निर्वाण चैत्यवंदन, मु. शांति, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (कार्तिक मास मनोहरु), १५३६०-६ महावीरजिन निर्वाणमहिमा स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. गुणहर्ष, मा.गु., ढा. १०, गा. १२५, पद्य, मूपू., (श्रमणसंघतिलकोपमं), १४११५, १४५२७, १६४२२-१,१६५८७, १६८७७, १७२७३ । महावीरजिन पंचकल्याणक वधावा स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (वंदी जगजननी ब्रह्माण), १५३३९ महावीरजिन पारणाविनती स्तवन-जीरणसेठभाव, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चोमासी पारणो आवे), १५९३४-१ महावीरजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरजिनेश्वर परमेश्वर), १५१८७-४ महावीरजिन स्तवन, वा. उदयविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (त्रीगडे प्रभु सोहइ), १४५३६-२५ महावीरजिन स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. १३६, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (सकल कुशल तरुयर सजल), १५२२६-१ महावीरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मारग देशक मोक्षनो),१६५५८-२ महावीरजिन स्तवन, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (श्रीसीद्धार्थकुल),१५८८८-२ महावीरजिन स्तवन, मु. माणिकरत्न, मा.गु., गा. १३७, वि. १६२८, पद्य, मूपू., (सरसति सरसति सामिण), १६०६२-१ महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी वीर जिणंदने), १६२०६-३ महावीरजिन स्तवन, ऋ. रणधीर, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (वीर जिणेसर वंदीये), १५१९६-९(+) महावीरजिन स्तवन, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वीर प्रभु जयकार नमु), १४४०५-२ महावीरजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर विनये), १६२३७-२ महावीरजिन स्तवन, रुचिर, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे.?, (चरनकमल की आस प्रभुजी), १४९९२-७ For Private And Personal Use Only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५६९ महावीरजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (नणदल हे नणदल सीधारथ), १५१८६-१ महावीरजिन स्तवन, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर मनोहरु), १४२४१-६(+) महावीरजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८६२, पद्य, श्वे., (वीर जिणंद सासण धणी), १५१९६-१०(+) महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जय जिनवर जग हितकारी), १६५०२-३(+) महावीरजिन स्तवन, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५३, पद्य, मूपू., (सयल गुणनिधि० वीरजिन), १४६१३ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (तुं कृपा कुंभ शंभो), १५६०१-१९(६) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (वीर निर्वाण कालि), १५६०१-१२($) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (वेसाख सुद एकादी), १४०१९-२ महावीरजिन स्तवन-१२४ अतिचारगर्भित, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. १२५, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सरसती भगवती शुभमती), १४१०१-१ महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (एक मन वंधु श्रीवीर), १५२९१-९.) महावीरजिन स्तवन-२४ दंडक २६ द्वारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९१, ग्रं. १६२, पद्य, मूपू., (सुखकर स्वामी वीरजिन), १४१०३(+), १४४६०(+) (२) महावीरजिन स्तवन-२४ दंडक २६ द्वारगर्भित-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., ग्रं. ५१३, गद्य, मूपू., (श्रीपन्नवणासूत्र), १४१०३(+) (२) महावीरजिन स्तवन-२४ दंडक २६ द्वारगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुखनउ करणहार ठाकुर), १४४६०(+) रजिन स्तवन-३४ अतिशय विनतीगीत, आ. वीरचंदसरि, मा.ग..गा. २४, पद्य, दि.. (पणविवि वीरजिणींद), १४०८२-९ महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, उपा. विनयविजय , मा.गु., गा. २७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीवीरजिणेसर सुपरे), १५३७१ महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरा, श्राव. देवीदास, मा.गु., ढा. ५, गा. ६६, वि. १६११, पद्य, मूपू., (सकल जिणंद पाय नमि), १४०८९, १४११०, १४१५०-१३, १६२०६-१(६) महावीरजिन स्तवन-छमासीतप वर्णनगर्भित, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति सामण दो मति), १५१८६-५ महावीरजिन स्तवन-ज्ञानदर्शनचारित्रसंवादरूपनयमतगर्भित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ८, गा. ८१, वि. १८२७, पद्य, मूपू., (श्रीइंद्रादिक भावथी), १५१९३-१, १५६६८, १६८७६ महावीरजिन स्तवन-निगोदविचारगर्भित, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. २, गा. ४३, पद्य, मूपू., (वलि जाउं श्रीमहावीर), १४१५९-१ महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ५६, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (शासननायक शिवकरण वंदु), १४२४३-२, १५२८१, १५९४१, १६२०६-२ महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ६, वि. १८५७, पद्य, मूपू., (गुरूक्रम पंकज भ्रमर), १६५०२-१(+) (२) महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (शंखेश्वरं प्रणम्याथ), १६५०२-१(+) महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, आ. कमलकलशसूरि, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (समरवि समरथ सारदा), १३९५१-४, १४६३५-२४ For Private And Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ महावीरजिन स्तवन- संयमश्रेणिगर्भित, पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु., डा. ३, गा. ६१, वि. १७९९, पद्य, मृपू., (केवलज्ञान दिवाकरुजी), १४११४(+) (२) महावीरजिन स्तवन- संयमश्रेणिगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (समस्त ज्ञानावरणीय), १४११४(+) महावीरजिन स्तवन- सत्यावीसभवगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., ढा. १०, गा. १००, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसति भगवि दिओ मति), १४१०५ १६०६०, १६५८६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तवन-समकितविचारगर्भित, मु. न्यायसागर, मा.गु., ढा. ६, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (एकविध दुहविध त्रिविध), < प्रतहीन > . (२) महावीरजिन स्तवन- समकितविचारगर्भित - स्वोपज्ञ बालावबोध, मु. न्यायसागर, मा.गु., वि. १७७४, गद्य, म्पू, (प्रणम्य परमानंद दायक), १५०९४ महावीरजिन स्तवन- सांचोरमंडन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपु. ( साचोरिपुरवर जगत्र), १४०६२-११ महावीरजिन स्तवन स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., डा. ६, गा. १४८, प्र. २२८, वि. १७३३, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरुना पय), १४०११(०), १४१०४०), १४००६, १४१०८, १४११२-१, १४११३, १४१३७-१, १४४१३, १५५६७, १५८२४, १५९७३-१२, १६८७९, १७१०२ (२) महावीरजिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित बालावबोध, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., नं. ३११७, वि. १८४९, गद्य, भूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १४०११ (+) (२) महावीरजिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित वालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपु., (ए स्तवनमा प्राइ पद), १४१०४, १४००६, १४१०८, १५८२४ महावीरजिन स्तवन- हुडि, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मृपू., ( आसीन्मनो यस्य रसे), १५६०१-२(४) महावीरजिन स्तुति, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( जय जयकार साहिब शासन), १४४५९-२८ महावीरजिन स्तुति, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गंधारें श्रीवीरजिणंद), १४४५९-२७ महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कठन करम मेली काठीआ), १४०६२-५ महावीरजिन स्तुति-संप्रतिराजागुणगर्भित, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जास पटोधरनइ उपदेशी), १४४५९-३८ महावीरजिन स्तोत्र- प्रभाती, मु. विवेक, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सेवो वीरने चित्तमां), १५११०-२ महावीरजिन हमचडी-कल्याणकपंचवर्णन, उपा सकलचंद्रगणि, मा.गु., डा. ३, गा. ६८, पद्य, म्पू., (नंदनकुं त्रिशला), १४२९३, १४४७७-१, १५६०१-१(३) मांडलीयाजोगप्रवेश विधि, मा.गु., गद्य, म्पू, (स्थापनाजी पडीलेही), १६९४७ माणिभद्रवीर छंद, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., ( सरस वचन दो सरसती), १४९४९-१० माधवानल चौपाई, वा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ५५२, वि. १६१६, पद्य, म्पू., ( देवि सरसति देवि सरसत), १५८०८ (+) मानतुंगमानवती रास - मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., डा. ४७, गा. १०१५, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणंद पदांबुजे), १७२२४(+), १३८७२, १३८७३, १६२६९, १६३६७, १७१६२, १६६८२(३) मानसज्झाच, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (रे जीव मान न कीजीए), १४७४०-२ मान सज्झाय, मु. सत्यसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (--), १५५७९-११ 2 ($) माया सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समकितनुं मुल जाणीये), १४७४०-३ For Private And Personal Use Only Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ माया सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (माया मूल संसारनो), १४९१४-४, १५१८८-२० मासखमणतप गहुली, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (कर्म कठीन विदारवा), १४४०५-१९ मिथ्यात्ववानी, पुहि., गा. ४, पद्य, जै.?, (नारायन देव कौं कहैं), १४६९६-४० मिनापक्षी सकुन, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (चंचे चूणण पंखिमरण नय), १४६३१-२ मुनिगुण कवित्त, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद. १, पद्य, मूपू., (पाला चालें पंथ शीश), १४५६४-६ मुनिगुण गरबो, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मनने वश करे ते मुनी), १५१६०-२४ मुनिगुण गहुंली, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (क्यारे मलशे रे मुनि), १४४०३-८ मुनिगुण गहुंली, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जी रे चालो पोशाले), १४४०३-१३, १४४०५-१६ मुनिगुण सज्झाय, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अहो अहो साधुजी समता), १४४०५-२३ मुनिगुण सज्झाय, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (म्हारुं मन मोह्यु), १४४०३-३ मुनिपति चरित्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य पार्श्वनाथ), १५२६७, १५३०३ मुनि मालिका, मु. चारित्रसिंह, मा.गु., गा. ३६, वि. १६३६, पद्य, मूपू., (ऋषभ प्रमुख जिन पय), १६९६२-१ मुनि सज्झाय, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (नाण चरण संपन्न सुगुण), १६९६१-३ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, आ. ऋषभसागर, मा.गु.,रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रतसुं मनिधरि), १४५३९-११ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (साहिबा सरसतिने), १४१५१-२(+) मुहपत्तिपडिलेहण सज्झाय, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सासनपति प्रभुवीरनइं), १४१०१-२ मुहम्मदशाह पातिशाह विसलनगरयात्रा वर्णन, रा., वि. १७९९, गद्य, मप्., (आगरास कौस ३०० लाहौर), १४७१७-२ मूढशिक्षा अष्टपदी, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (ऐसे क्युं प्रभु पाईइ), १४६९६-५३ मृगध्वज गीत, मु. पद्मकुमार, मा.गु., गा. ९७, पद्य, मूपू., (पणमवि सिरि गोयम गणहर), १४१८१ मृगांकलेखा चौपाई, ऋ. रायचंद, मा.गु., ढा. ६२, वि. १८३८, पद्य, श्वे., (आदेसर जिन आददे चोवीस), १६७७४, __ १६५८१(६), १७१४१(६) मृगापुत्र सज्झाय, रा., पद्य, मूपू., (सासण नायक सुमरीय),१५५१४-३७) मृगावती चौपाई, मु. चंद्रकीर्ति, मा.गु., ढा. १६, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (आदिनाथ प्रणमुमुदा), १६२३१ मृगावती रास, मु. फतेचंद, मा.गु., ढा. ११, वि. १८७१, पद्य, स्था., (समरु पास जिणंदने), १५६९३ मृगावती रास, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., गा. ४२१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ नरपति कुलिं), १४२९१-१ मृषावादपापस्थानक सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (असत्य वचन मुखथी नवि), १४७४०-७ मेघकुमार चौढालियो, रा., ढा. ५, पद्य, मूपू., (मोटी बणाकुं एक सेवका), १६५८४-३ मेघकुमार चौपाई, सा. जीयोजी, मा.गु., ढा. ११, वि. १९३१, पद्य, श्वे., (श्रीपार्श्वप्रभुनें), १६८४८ मेघकुमार सज्झाय, मु. जयसागर, मा.गु., पद्य, मूपू., (समरी सारद स्वामिनी), १५५०१ मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (वीर जिणंद समोसर्याजी), १४९४९-८ मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघ), १५१८८-१५ मेघकुमार सज्झाय, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वीर जिणंदिइ प्रकासिई), १४०२२-१० For Private And Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ मेघकुमार सज्झाय, पुहिं., गा. २०, पद्य, मूपू., (दुर्लभ लाधो मनुष्य), १५२९१-६(-) मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (समदम गुणना आगरुजी), १५१८८-३७ मेतारजमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (धन धन मेतारज मुनि), १४६३५-१(६) मोक्षमार्ग पयडी, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. २४, पद्य, दि., (इक्क समैं रुचिवंतनों), १४६९६-९ मोक्षमार्ग प्रकाश, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., वि. १८९८, पद्य, श्वे., (चतुर्विंशति अरिहंत), १६११२ मोक्ष सज्झाय, मु. सहजसुंदर, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोक्षनगर माहरु सासरु), १५१८८-३९, १५५७९-६ मौनएकादशीपर्व देववंदन विधि, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (नगर गजपूर पुरंदर), १७१२१ ।। मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ३, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (द्वारिका नयरी), १४१५०-४, १४२४३-३ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ६४, पद्य, मूपू., (देव सरसति पढम पणमेवि), १४०९८-१(+) मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १२, गा. ६२, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (धुरि प्रणमुं जिन), १४१५०-३०, १४४४५, १५९८६, १७१२० मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एकादशी अति रुअडी), १५१६६-६(+#), १५५३३-७(+), १४४५९-१८, १५२८६-५, १५५९४-६ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गौतम बोले ग्रंथ), १५५३३-१०(+), १४४५९-१९ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. वनीतविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (द्वारीका नगरी), १४४६४-२, १४५६४-२ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमिजिन उपदेशी मौनएक), १४४५९-२० यंत्रफल चौपाई, पंडित. अमरसुंदर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जिन चउविसइ पाय प्रणम), १५१९५-७ यथाक्रमबीजक संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रभु प्रणम्य प्रथम), १५४०७ यशोधर व चंद्रमति के ७ भव, मा.गु., गद्य, जै., (जसोधर मोर झावो), १६५३१-३(+) यशोविजय गहुंली, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वाचक वीरने वंदना), १४४०३-१५, १४४०५-१८ योगपावडी, गोरखनाथ, मा.गु., गा. ६८, पद्य, वै., (क्रोध लोभ दूरइं परिह), १५९७३-१(६) रतनकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, श्वे., (रतनगुरु गुण आगला रे), १५१८६-७() रतनसी भास, मु. नानजी, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (वंद रेवंद गुणवंत), १५१९५-९ रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल ६६, गा. १३७२, वि. १७६०, पद्य, म्पू., (सकल श्रेणि में दुर), १६२८७, १६९४९, १७२५५, १४६७०(#), १६१६६($) रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., खं. ३ ढाल३२, गा. ७७४, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (रीषभादिक जिनवर नमु), १३८७१, १४१७५, १५७८८ रत्नपाल रास-दानाधिकार, मु. कवियण, मा.गु., खं. ३ ढाल ३६, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभदेव जिनवर), १६०५० रत्न रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., वि. १७५८, पद्य, मूपू., (सकल समीहित पूरण), १४५७८(६) रत्नसारकुमार कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (संपत्तिना मोटा निवास), १५०१० रत्नसारकुमार रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. २९९, वि. १५८२, पद्य, मूपू., (सरसति हसगमनि पय), १६३८५ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. सुखविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (राजुल घरथी नीसरी रे), १४५३६-१३ For Private And Personal Use Only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५७३ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (काउसग्ग थकी नेमी), १४९८७-७ रथनेमिराजिमती स्वाध्याय, म. हितविजय, रा.,गा.११. पद्य, मप.. (प्रणमी सदगरुपाय), १५५७९-२७ राजनगर तीर्थमाला, मु. रतनविजय, मा.गु., ढा. ४, वि. १९०४, पद्य, मूपू., (वचन सुधारस वरसति), १५७२४ राजनीति कवित्त, क. देवीदास, हिं., श्लो. १२२, पद्य, (नीतहीते धरम धरम), १७१६७-२(5) राज मान, मा.गु., गद्य, श्वे., (एक हजारभार मणनो), १६६८५-२(+) । राजसागरसूरिनिर्वाण रास, आ. तिलकसागरसूरि, मा.गु., गा. २६६, वि. १७२१, पद्य, मूपू., (वर्द्धमान जिनवर), १३८९९ राजसिंघ रास, ग. कपूरविजय, मा.गु., ढा. ५३, गा. १३८५, वि. १८२०, पद्य, मूपू., (ऋषी पडिलाभे भावथी), १६६५२(+$) राजिमती गीत, मु. जयतसी, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सुणि सुणि चतुर सुजाण), १५१५२-३ राजिमतीसती सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. १५, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (आव्यो ते मास भुजंग), १४१५१-६(+) राजिमतीसती सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (राजुल कहे सखी सांभलो), १४१५१-९(+) राजुलपच्चीसी, श्राव. विनोदीलाल, मा.गु., गा. ९६, वि. १७५३, पद्य, श्वे., (पहली वलि प्रणमुंहो), १४८३२ रात्रिभोजन चौपाई, मु. अमरविजय, मा.गु., ढा. २३, वि. १७८७, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंतसुसिद्धजी), १६५४५ रात्रिभोजन चौपाई, मा.गु., गा. २२८, पद्य, मूपू., (पणमि गोयम गणहर राय), १६७७९-१, १५६७८(६) रात्रिभोजन सज्झाय, म्. कांतिविजय, मा.ग., गा.६, पद्य, मप., (सकल धरममा सारज कहिइ), १४५०४-९(+), १४७४०-११ रात्रिभोजन सज्झाय, ऋ. जैमल, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (रात्रिभोजनमांहे दोष), १४७४१-३ रात्रिभोजन सज्झाय, वा. देवविजय, मा.गु., ढा. २, गा. १४, पद्य, मूपू., (गुरु चरणे रे भाव), १४२४२-६ रात्रिभोजन सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (अवनितलि वारू वसइजी), १४६३५-११, १४९१४-७, १५१८८-६ रामचंद्र लेख, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ५, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीलंका), १४२९२-२, १४५३६-२ रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., समु. ७, गा. १६१७, ग्रं. ३३२५, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सिद्धबुद्धदायक सलहीय), १३९५५-१(+), १६१८६(+$) रामसीता रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ९, गा. २४१२, ग्रं. ३७०४, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), १४२७१, १४१८०(5) रामायन अष्टपदी, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (विराजै रामायन घटमां), १४६९६-६३ रुपसेनसुजाणदेवी रास, मा.गु., गा. २९२, पद्य, मूपू., (संखेसरपुर मंडणो), १३८५४ रूपऋषि पट्टावली पद, मा.गु., गा. २, पद्य, स्था., (रुप ऋषजी गछ स्थापकिं), १५१९५-८ रूपसेनकुमार रास-दानविषये, मु. देवविजय, मा.गु., ढा. ३६, गा. ७१३, वि. १७७८, पद्य, मूपू., (विश्वविधाता विरजी), १५०५८ रोहामुनि सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सद्दहणा सूधी मनि), १५४७८-१ रोहिणीतपस्तवन, म. श्रीसार, मा.गु., गा. ३२, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सासण देवता सामणीए), १६७३५-२ रोहिणीतप स्तुति, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शिवसुखदायक नायक ए), १४४५९-२१ रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जयकारी जिनवर वासपूज), १५५३३-४३(+) रोहिणीयाचोर रास, क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., गा. ३४५, वि. १६८८, पद्य, मूपू., (सार सकोमल बुधिभली), १३८७० For Private And Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ लग्नसुबोधी एकोत्तरी, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ७१, वि. १८०८, पद्य, मूपू., (गुरु सारद पाय नमी), १७१९३ ललितांगकुमार रास, मु. क्षमाकलश, मा.गु., गा. २२२, वि. १५५३, पद्य, मूपु. ( पहिलं सरसति पय नमी ), १३८६९(३) लीख-जू सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. १२, वि. १६७५, पद्य, मूपू., (सरसति मति सुमति द्यो), १४६३५-३४ लीलावती चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., डा. २९, गा. ६१९ वि. १७२८, पद्य, मूपू., (जेवीसमो त्रिभुवन), १७१४२(*) लीलावती चौपाई - शीयलविषये, आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु., गा. ४७२, वि. १६०३, पद्य, मूपू., (आदिजिनवर आदिजिनवर), १४२२४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लीलावती रास, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), १४५२९ ($) लीलावती सुमतिविलास रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. २१, गा. ३४८, वि. १७६७, पद्य, म्पू., (परम पुरुष प्रभु पास), १३८५७, १३८५८ लुंकारी हंडी, रा., गद्य, थे., (गये काल का भाव केवली), १६८९१ लेखनी दोहा, मा.गु., गा. १, पद्य, वै., (माथा गंठि मत्त हरे), १५१९५-३ लोभ सज्झाच, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( तमे लक्षण जोजो लोभना), १४७४०-४ लोभ सज्झाच उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (लोभ तजो रे प्राणी), १५४७८-११ वकचूल चौपाई, मु. तीकम, मा.गु., डा. १७, गा. ३४१, वि. १७०६, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पावनमी), १६३४८, १७२४५ वंकचूल रास, मा.गु., गा. ९४, पद्य, श्वे., (आदि जिनवर आदि जिनवर ), १६२८५ वच्छराज रास, मु. ऋषभविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल ५६, गा. १५२८, ग्रं. २०१६, वि. १८८२, पद्य, मूपू., (श्रीसुहंकर आदिदेव), १६८८७ वज्रस्वामी सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, भूपू., ( गणधर दश पूरवधर सुंदर), १४५३९-८ वयरस्वामी सज्झाय, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., ( सिंहगिरिसीस धनगिरिसु), १४०२२-१ वर्गमूल कवित, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे. ?, (आदधें विषम संमलिक ), १४३८९-३ वसुदेव रास, मु. हर्षकुल, मा.गु., गा. ३५६, वि. १५५७, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ सिद्धि), १३८६७, १४१९५-१, १४२२७, १४२२५ (३) वसूराजा कथानक, मा.गु., गद्य, मूपू., (मुक्तिमती नामा नगरी), १५९०५-२ वासुपूज्यजिन पुण्यप्रकाश रास, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., दा. ६१, गा. ४५६, पद्य, मूपू., (ऋषभ अजित संभव जिनो), १३८६८(१) वासुपूज्यजिन स्तवन, आ. ऋषभसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (द्वादसमो जिन सेवयो), १४५३९ - १२ वासुपूज्यजिन स्तवन, ग. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., ( श्रीवासुपूज्यनुं रे), १३९६८-८(+) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( वासुपूज्य जिन बारमा), १४२४१-११ (+) वासुपूज्यजिन स्तवन- महिमावर्णन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., डा. १२, पद्य, म्पू., (वासुपूज्य जिणंदने), १५७३३ विक्रमचीबोली रास - पुण्यफलकथने, वा. अभवसोम, मा.गु., डा. १७, ग्रं. ३२५, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (वीणा पुस्तक धारणी), १७००३, १६४१५ ($) For Private And Personal Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५७५ विक्रमराजा चौपई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., खं. ६ ढाल ७५, गा. ३१६८, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (प्रणमु पासजिणंद पय), १४२२९(+) विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., ढा. ६४, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (परम ज्योति प्रकास), १३८६५(+), १४२००(+), १४२२८, १४६६९, १४७१९, १५२२९, १५७४७, १५६७०(१), १६७३३(१) विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ५२, गा. ११६२, ग्रं. १६२४, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (सुखदाता संखेश्वरो), १४१९७ विक्रमादित्य चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., ढा. २७, गा. ५८५, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी प्रणमीइं), १३९८३, १६६३०, १४६९१() विचार संग्रह @, मा.गु., गद्य, श्वे., (ठाणांगमाहिंत्रीजे), १४७०२-२(+), १७१६१(+६), १६४३७ (२) विचार संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीरं गुरुश्च वंदित्व), १६७६२(+), १४३६६, १६१३३-१ विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (तथा आठ आत्म मध्यप्रद), १४५९९-२ विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, पू., (समजवा हेतु सूत्रमाहि), १४३२९ विजयदेवसरि गीत, मु. कनकसोभागी, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (मोरु मन मोहिउं रे), १४५१५-१३(+) विजयदेवसूरि गीत, ग. धर्मदासजी, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आसा ओरी सजनी वंदो), १४५१५-१२(+) विजयदेवसूरि सज्झाय, ग. धर्मदासजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गछपति गाईई हो लाल), १४५१५-१४(+) विजयप्रभसूरि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आवउ सजनी सह गुरु), १४१४२-२(+) विजययंत्र कवित, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (प्रथम पुरव थाप आंक), १५१८८-४१ विजयरत्नसरि निर्वाण सज्झाय, म. रामविजय, मा.ग., गा.७३, वि. १७७३, पद्य, मप., (सप्रसन्न आल्हादकर), १४१२४(+) विजयशेठविजयाशेठाणी रास-शीलविषये, मु. रायचंद, मा.गु., गा. ८९, वि. १६८६, पद्य, मूपू., (ऋषभादिक जिन चउवीसे), १३८६६(+) विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, कुसल, मा.गु., ढा. ३, गा. २८, पद्य, मूपू., (भरतक्षेत्रे रे समुद), १४९१४-११ विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २४, वि. १८५७, पद्य, श्वे., (सीयलतणी महिमा सांभल), १४७४१-२ विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, ऋ. लालचंद, मा.ग.,गा. १७. वि. १८६१, पद्य, स्था.. (प्रथम नम श्रीअरिहंत विजयशेठविजयाशेठाणी रास, मु. मनोहर, मा.गु., गा. १३८, वि. १६८४, पद्य, श्वे., (श्रीवर नेमिजिनेश्वरो), १३९८७-७ विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., ढा. ३, गा. २४, पद्य, मूपू., (प्रह उठी रे पंच), १४९५१-६ विजयसेनसूरि सज्झाय, मु. हेमविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (विजयसेनसूरि० शिरोमणि), १४५१५-१०(+) विजयानंदसूरिनिर्वाण सज्झाय, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणी मनि), १४१२०-२ विजयानंदसूरिनिर्वाण सज्झाय, मु. भावविजय, मा.गु., गा. ४२, वि. १७११, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेसरपुर धणीजी), १४१२०-१ विजयानंदसूरि सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रणमी सहगुरु वंछित), १४४८५-२(+) विद्याविलास चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ३०, वि. १७११, पद्य, मूपू., (सरसति नित आपो सुमति), १४४४४(+), १४५८६ For Private And Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ विद्याविलास पवाडउ, आ. हीरानंदसूरि, मा.गु., गा. १९०, ग्रं. ४४०, वि. १४८५, पद्य, मूपू., (पहिलु पणमिय पढम), १३९८७-४, १४२३०, १५७७५-१ विधिविचार चौपाई, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १५१, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर पय प्रणमे), १५१३१-३(5) विमलजिन स्तवन, आ. ऋषभसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (विमलजिनेस्वर वीनवु), १४५३९-९ विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., खं. ९+चूलिका, गा. ३८७, ग्रं. १७००, वि. १५६८, पद्य, मूपू., (आदिजिनवर आदिजिनवर), १३८६४, १५२३९(६) विमलमंत्री श्लोक, पंडित. विनीतविमल, मा.गु., गा. १०९, पद्य, मूपू., (सरसति समरूंबे करजोड), १६६५६(#) विविध कथासंग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ एह उपरि भरतेश्वर), १६१९४ विविधनामआदि संग्रह, मा.गु., पद्य, श्वे., वै., (आदौ उभु परमाण), १५३५७-३ विविध विषय संग्रह, मा.गु., प+ग., मूपू., (--), १४४०६ विषापहार भाषा, आ. अचलकीर्ति, मा.गु., गा. ४१, वि. १७१५, पद्य, श्वे., (विसउनाथ विमल गुनईस), १५४८०-५ विहरमान २० जिन चैत्यवंदन, मु. अमीयविजय *, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (पहिला सीमंधर नमो), १५३६०-३ विहरमान २० जिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पहेला जिनवर विहरमान), १४४५२-५ विहरमान २० जिन चैत्यवंदन, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सीमधर युगमंधर जिन), १४४५२-२१ विहरमान २० जिन स्तवन, ग. खिमाविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सीमंधर युगमंधर बाहु), १५५७९-१ विहरमान २० जिन स्तवन, पा. धर्मसिंह, मा.गु., गा. ३६, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (वंदु मन सुध विहरणमाण), १६९६२-३ विहरमान २० जिन स्तवन, मु. श्रीपाल, मा.गु., गा. ३१, वि. १६४४, पद्य, श्वे., (सारदा प्रणमी पाय), १४९९२-५ विहरमान २० जिन स्तवन, पंन्या. हेतविजय-शिष्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मन सुद्धे समरु सरस), १५१६६-३६(+#) विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचविदेह विषय), १४०५९-९ विहरमानजिन स्तवनवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (पुखलवई विजये जयो रे), १४१३६-२(+) विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २०, पद्य, पू., (श्रीसीमंधर जिनवर), १४१३४-१, १६३५४ वीतराग विनती, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (वीतराग तुम्ह पाय), १५१८५-३ वीरभाणउदयभाण रास, मु. कुशलसागर, मा.गु., ढा. ६५, वि. १७४५, पद्य, मूपू., (सदगुरुजी सानिध करो), १७१९१(+), १३९८४ वेदनिर्णयपंचासिका, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ५१, पद्य, दि., (जगत विलोचन जगतहित), १४६९६-४ वैद्यलक्षणादिप्रस्ताविक कवित्त, पुहि., गा. ४१, पद्य, श्वे., (करमरोग की पर किति), १४६९६-४३ वैरसिंहकुमार चौपई-जीवदयाशील विषये, पंन्या. मोहनविमल, मा.गु., ढा. ३८, गा. ८७६, वि. १७५८, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सारद सामनी), १६५६५ वैराग्य सज्झाय, मु. पद्मकुमार, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (सुणि सुणि जीवडा रे),१५१८८-२८ वैराग्य सज्झाय, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (नथी सार जगतमां भाई), १४४०३-२ वैराग्य सज्झाय, मु. लावण्यसमय *, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (वैकुठ पंथ बिहामणो), १४२४२-४ वैशिकपुत्र सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पारसनाथ संतानीओ काला), १५४७८-२ For Private And Personal Use Only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५७७ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ व्यवहारशुद्धि चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ९, गा. १६१, वि. १६९६, पद्य, मूपू., (शांतिनाथ जिन सोलमो), १४२३३ शंभुवरप्रकृति स्तुति, मु. सकल, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (शंभुवर प्रकृति शक्ते), १५६०१-९ शत्रुजयगिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनमाहे तिरथ), १५१६६-११(+#), १४४५९-२९, १६९६०-५ शत्रुजय-चैत्यपरिपाटी, उपा. देवचंद, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (नमवि अरिहंत पयणंत), १४०२१-४ शत्रुजयतीर्थ १०८ खमासमण दूहा, मु. कल्याणसागरसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १०८, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल समरो सदा), १६५९१ शत्रुजयतीर्थ २१ नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सेजो १ श्रीपुंड), १५१५७-२ शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १२, गा. १२०, ग्रं. १७०, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (विमल गिरिवर विमल), __ १४५०४-१(+), १६७०४५), १४५३७, १४८१८, १५५१७-१, १६२४०, १६३७०, १६७०७, १६९२९ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (धुर समरु श्रीआदिदेव), १५१८३-१४ श@जयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शत्रुजय सिद्ध), १५१६६-३०(+#), १४४५२-९, १५११०-७, १६९६०-६ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ जगन्नाथ), १४०५८-१०, १४०६१-७, १५१८३-१ शत्रुजयतीर्थ परिपाटी स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., वि. १६९५, पद्य, मूपू., (सकल सभारंजन कला दिओ), १४१३३ शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (बे कर जोडी विनवूजी), १६०६२-३ शत्रुजयतीर्थ महिमावर्णन स्तवन, मु. मतिरत्न, मा.गु., पद्य, मूपू., (सरसति सामिने पाय), १४१२५-१, १६३६९ शत्रुजय तीर्थमाला, मु. अमृतविजय, मा.गु., ढा. १०, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (विमलाचल वाल्हा वारु), १६२५०(६) शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., ढा. १०, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (विमलाचल वाहला वारु), १४०४३ शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., ढा. १०, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (जगजीवन जालम जादवा), १३९९४, १४९५९ शत्रुजयतीर्थरायणवृक्ष स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (नीलुडी रायणतरु तले), १५५७९-१० शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ११२, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), १६५७८, १६८५२, १४९५१-५(६) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (इणि गिर सीधा साधु), १४५०४-६(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कनक, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (चालो सखी सिद्धाचल), १४१४७-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चालो मोरी सहीया), १४०२१-५ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. नयविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (माहरा आतमराम किणे), १५९७३-७ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ५, पद्य, म्पू., (विमलाचल नित वंदीये), १५११०-८ शत्रुजयतीर्थ स्तवन-आदिजिन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सेजा रलीआमणो), १४०६२-६ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजय तीरथसार), १५१६६-१६(+#), १५५३३-३५(+), १४४५९-२३ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमंडण), १४२४१-१२(+) For Private And Personal Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पुंडरिकमंडण पाय), १५५३३-३१(+), १५५९४-१२ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (आगे पूरव वार नीवाणु), १५५३३-१६(+) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पुंडरगिरी महीमा आगम), १५११०-९ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (विमलाचल गिरिवर राजे), १४४५९-२४ श@जयतीर्थे मोतीशाट्रॅक स्तवन- इतिहासयुक्त, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ७, पद्य, मूपू., (उठी प्रभाते प्रभु), १४४१४, १६४१८, १६५२५ शत्रुजय माहात्म्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए श्रीविमलाचल), १६८४५ शनिश्चर कथा, पुहिं., गा. १८०, पद्य, श्वे., (--), १५६०९-१(६) शनिश्चर छंद, पंडित. धर्महंस, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं क्ली), १५३६६-३८) शनिश्चर छंद, पंडित. ललितसागर, मा.गु., गा. ४७, पद्य, मूपू., (सरसति सामण मति दीयो), १५३६६-१(-) शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (अहि नर असुर सुरपति), १३९५१-१९, १५१९७-४, १५३६६-४(-) शनिश्चर छंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (छायानंदन जगजयो रवि), १५१६६-५०(+#) शलाकापुरुष नाम, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. २७, पद्य, दि., (नमो जिनवर० देव चौवीस), १४६९६-५ शांतिजिन आरती, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांति तुमारी तोरा), १७१७३-३(+) शांतिजिन छंद, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (सहिएरी दिन आज सुहाया), १४६९६-३६ शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सारद माय नमुं सिरनाम), १५१६६-४० (+#), १४०५८-५ शांतिजिन जन्माभिषेक कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (श्रीजयमंगलकृत्स्न), १५३५१ शांतिजिन त्रिभंगी छंद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (विश्वसेन कुल कमल), १४६९६-३७ शांतिजिन रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ६६, गा. १४२८, ग्रं. २२०५, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सकलसुखसंपतिकरण गउडि), १४२३४(+$) शांतिजिन विवाहलो, मु. आनंदप्रमोद, मा.गु., ढा. ६४, ग्रं. ५००, वि. १५९१, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणी वाणि), १५७८४-१ शांतिजिन स्तवन, आ. ऋषभसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सांभलि शांति जिनेसर), १४५३९-१० शांतिजिन स्तवन, ग. जिनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सारद चरण नमी करी रे), १३९६८-९(+) शांतिजिन स्तवन, मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (अचिरा नंदनंदन प्रणमी), १४१५०-२२ शांतिजिन स्तवन, मु. दियाल, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (श्रीसंत जीणेसर संत), १५२९१-७(-) शांतिजिन स्तवन, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सरसति सुभमति दीजे), १४१५१-१(+) शांतिजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (देउइहपुरी दीपइं), १४०६२-७ शांतिजिन स्तवन-२४ दंडक विचार गर्भित, वा. चारुचंद्र, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सांति जिणेसर सेवीयसा), १४०९२-१ शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ४८, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर केसर), १४०१८, १४०९५, १५४१५ For Private And Personal Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५७९ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शांतिजिन स्तवन-रागमाला, मु. सहजविमल, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (वंछित पूरण मनोहरु), १४५४२-१(+) शांतिजिन स्तुति, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर समरीइं), १४२४१-१०(+), १५१६६-९(+#), १५५३३-४१(+), १४४५९-३५ शांतिजिन स्तुति, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सांभल सांति जीणंद), १४१५१-८(+) शांतिजिन स्तुति, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मयगल घरबारी नार), १४०६२-२ शांतिजिन स्तुति, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांतिजिणंद जुहारीइ), १५१६६-२५(+#) शांतिजिन स्तुति-जावरापुर, मु. पुन्यविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांतिकर शांतिकर), १४४५९-३९(5) शांतिजिन स्तुति-फलवर्द्धि, मु. देवकुशल, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (फलवधीरो मंडण सांति), १५५३३-१९(+) शारदाष्टक, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. १०, पद्य, श्वे., (नमो केवल रुप भगवान), १४६९६-२२ शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१०, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सासननायक समरियै), १६७५४(+), १४२३५, १४२३६-१, १४२३७-१, १४३४८, १४५४४, १५५७७, १५६८५, १६२२७, १६३९७, १६९७९, १७०४०, १७१२७, १४४२६(१), १५९४८(#), १६४१३(5) शालिभद्र धन्ना सज्झाय, वा. उदय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अजिया मुनि० वेभारगिर), १५५७९-३ शालिभद्र रास, मु. साधुहंस, मा.गु., गा. २१९, वि. १४५५, पद्य, मूपू., (देवि सरसति २ सकल), १४१८६-१ शालिभद्र सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रथम गोवाल तणे भवे), १४६३५-७ शाश्वतजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (लाख बहोत्तेर कोडी), १४४५२-२ शाश्वतजिनप्रतिमा स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ४, गा. ६८, पद्य, मूपू., (विधुमडल परे निर्मल), १४५८९-२(+) शाश्वतजिनप्रतिमा स्तवन, मु. हर्षसागर, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर पय नमि), १५४३० (२) शाश्वतजिनप्रतिमा स्तवन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल क० समग्र), १५४३० शाश्वतजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभाननजिन), १४११२-२, १४५३६-११ शाश्वतजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ऋषभ चंद्रानन वंदन), १५५३३-३६(+) शाश्वता जिनबिंबप्रासाद विचार, मा.गु., गद्य, पू., (प्रथम सौधर्म देवलोके), १५३७५-१ शिवजी आचार्य रास, ऋ. धर्मसिंह, मा.गु., ढा. २५, वि. १६९२, पद्य, श्वे., (आदिपुरुष आदिसरु), १६४११ शिवपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. २६, पद्य, श्वे., (ब्रह्मविलास विकासधर), १४६९६-१४ शिववमार्ग वार्ता, मा.गु., पद्य, वै., (ॐ नमो जगदातार कल्प), १५३५७-२ शीतलजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (सीतलजिन सहजानंदी), १४२४१-७(+) शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीतलजिन सहेज सुरंगा), १४२४१-४(+) शीतलजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (भवि तुम्हे वंदो रे), १४०२१-२($) शीयल रास, म. ज्ञानचंद्र, मा.ग.,गा. १९६. पद्य, श्वे.. (पहिला अरिहंत प्रणमी),१३८६३ शीलचुंदडी सज्झाय, मु. करण, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (सियल चुंदडी खरी पिया), १४९५१-३ शीलछत्तीसी, मु. राजलाभ, मा.गु., गा. ३६, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (शांतिनाथ जिनवर पय), १३८५१-४ शीलनववाड ढाल, मु. अगरचंद, मा.गु., ढा. १०, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पंचपरमेष्ठि), १७१३२ For Private And Personal Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ६८, ग्रं. २५१, पद्य, म्पू., (पहिलुं प्रणाम करूं), १६७९४(१), १३८२६, १३८२७, १३८२८-१, १६७१२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "" शीलवती चौपाई, मु. देवरतन, मा.गु., खं. ३, वि. १६९८, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी परगडउ), १४२३८-१ शील सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सरसती केरा रे चरणकमल), १४७४०-९ शुकबहोत्तरी कथा, मु. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., कथा. ७२, गा. २४०१, वि. १६३८, पद्य, मूपू (सयल सुरासुर माया), १४२३९ शुकराज चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., खं. ४, ग्रं. १४५९, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धि दातार वर), १३८२९(+) शुकराज चौपाई, मु. सोभाचंद, मा.गु., डा. ३७, वि. १८२२, पद्य, मूपू., (श्रीसेतुंजय तीर्थ), १४२५३(३) शुकराज रास, मु. रतनविजय, मा.गु., वा. ६५, वि. १८११, पद्य, मूपू., (श्रीरीसहेसर बीनबु), १३८६२ शुकराज सहेली कथारास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १६७, पद्य, मूपू., ( सरसती हंसगमनी सदा), १३८३० श्राद्धमंडणग्रंथ, मु. रत्नविजय, मा.गु., प्रश्न. ११, गद्य, मूपू., (सर्वकुं प्रणमुं सदा), १६४३५ (+) श्रावक ४ प्रकार पद, मु. मोतीचंद, मा.गु., गा. ३६, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (वर्धमान शासन धणी), १५२९५-६ श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रावक तुं उठे परभात), १४२४१-१३ (+), १५८०६-४(+$), १५३५९-१ श्रावककरणी सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रावक धर्म करो सुखद), १४९१४-१३ श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपु. ( कहिए मिलस्ये रे), १५५७९-३३ श्रावकाचार चौपाई, ग. खेमराज, मा.गु., गा. ८१, वि. १५४६, पद्य, मूपू., ( जगबंधव सामी जिणराय), १६३०२ , श्रीपाल बृहद्रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ४९, गा. ८६१, वि. १७४०, पद्य, मूपू., (अरिहंत अनंतगुण धरीये), १३८३६ (+), १३८३५, १४२५४, १६५५९, १७०५९ श्रीपालमयणा गहुली, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (गुरुवचने तप आदर्या), १४४०३-२२ श्रीपालराजा चरित्र @, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), १४८२० (S) श्रीपालराजा रास, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ८०५, वि. १७२७, पद्य, म्पू., (सकल मनोरथ पूरविं), १६२२९ श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ३२३, वि. १५३१, पद्य, म्पू., (करकमल जोडि करि सिद्ध), १३८५२(+), १३८३२, १३८३७, १३८५३, १३८९६, १३९७०-१, १४२५५, १६२३० श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४१, गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, भूपू., ; ( कल्पवेल कवियण तणी), १३८३८(+), १३८३९(+), १३८४१(+), १३८४२ (+३), १३८४३ (+), १४७६५ (+), १६६१७/०३), १६६६०(+), १६८०७(+३), १६९७६ (+), १३८४०, १५२४५-१, १५२६३, १५२३६, १४४६६ (३), १५१३७(३), १५२३५ (३) (२) श्रीपाल रास-टबार्थ @, मा.गु., रा., गद्य, मृपू., (त्रीजो खंड पूरो थयो ), १३८४२ (+३) १४७६५ (+), १६९७६ (+), १४४६६ (६) (२) श्रीपाल रास - दुहा का बालावबोध@, मा.गु., गद्य, म्पू., (--), १३८४१ (+), १३८४३ (+) १६६६० + १५२३५ श्रीपाल रास- लघु, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २०, गा. २७१, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (चउवीसे प्रणमु जिनराय), १५९०१, १६६४७ श्रीपाल विनती स्तुति, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (ॐ नम सिधे मनधरि संत), १५४८०-१ For Private And Personal Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ श्रुतज्ञान गहुंली, आ. विजयधर्मसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ज्ञानी पुरुषनी जांऊ), १४४०३-९ श्रेणिकराजा रास, क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., खं. ७, गा. १८५१, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (आदि अनादि सरसती सदा), १३८४४ श्रेणिकराजा रास, ऋ. तिलोक, मा.गु., ढा. ८४, ग्रं. ३२५०, वि. १९३९, पद्य, मूपू., (जे जे जे जिन जग गुरु), १४७७५ श्रेणिकराजा रास, मा.गु., गा. २२५, पद्य, श्वे., (गौतमनै सिर नामीए मन), १४६१८ श्रेणिकराजा रास @, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), १४५५१(६) श्रेयांसजिन स्तवन, आ. ऋषभसागर, मा.गु.,रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (माहरी लय लागी तुम), १४५३९-७ षड्दर्शनाष्टक, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (शिवमत बोध सुवेदमत), १४६९६-३३, १५३५२-१ संग्रहणी स्तवन, मु. चारित्रसागर, मा.गु., ढा. ११, गा. ७७, पद्य, मूपू., (सरसति वरसति सकतिरूप), १५७१० संभवजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (संभवजिन सुकमाल सील), १५१८३-१८ संभवजिन स्तवन, ग. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (करजोडी नितु विनवू), १३९६८-४(+) संभवजिन स्तवन, मु. रिद्धिकिर्ति, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू, (साहिबा रे संभव जिनरी), १५५७९-३० संभवजिन स्तवन, आ. विनयदेवसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (संभव जिनवर त्रिभुवन), १४००३-३(+) संयम के १७ भेद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथिवीकाय संजमे १), १४०१२-३ संसारअनित्यभावना सज्झाय, ऋ. धर्मसी, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (करज्यो मति अहंकार ए), १५१८८-११ संसार असारतानिरूपक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नथी नथी कोई नथी सगु), १५१६०-१९ सगडराजा चौढालीयो, मु. रतनचंद ऋषि, रा., ढा. ४, वि. १८९८, पद्य, श्वे., (सगडराएनी वारता करता), १६६४०-३ सत्तरभेदी पूजा, मा.गु., पद्य, मूपू., (ॐकार शिवशर्ममय शिव), १५८३७ सत्यविजय निर्वाण रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा.१०६, वि. १७५६, पद्य, मपू., (श्रीजिनवरना चरणयुग), १३८४५ सदयवच्छ रास, मा.गु., गा. ६६१, पद्य, श्वे., (माई महामाई मज्झे), १४२५७ सदयवत्स सावलिंगा चउपई, मु. कीर्तिवर्द्धन, मा.गु., गा. ३९०, वि. १६९७, पद्य, पू., (स्वस्ति श्रीसोहगसुजस), १४२५८ सद्गुरुआलाप दोहरा, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (ज्यौं दातार दयाल होइ), १४६९६-६४ सनत्कुमारचक्रवर्ति चौढालियो, श्रावगदास, रा., ढा. ४, वि. १९१७, पद्य, श्वे.?, (जिन को प्रनाम कर), १६६४०-२ सनत्कुमारचक्रवर्ति चौपाई, मु. कीर्तिहर्ष, मा.गु., गा. २३३, वि. १५५१, पद्य, मूपू., (स्वामी जीरापुल्लि), १५०८४ सनत्कुमारचक्रवर्ति रास, आ. पुण्यरत्नसूरि, मा.गु., गा. २८१, वि. १६३७, पद्य, मूपू., (जय जय जगगुरू जागतओ), १३९८७-१(६) सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. चतुरसागर, मा.गु., ढा. ३, वि. १७७९, पद्य, मूपू., (प्रथम जिणेसर वीनवु), १४५३६-७ सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सरसति सरस वचन रस), १४५३६-१२ सनत्कुमारचक्रवर्ति रास, वा. पद्मराज, मा.गु., गा. १३३, वि. १६५९, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पय पणमेवी), १४२९४(+) सप्तनय, मु. न्यायसागर, मा.गु., ढा. २, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ त्रिशलातणो), १५७८१ (२) सप्तनय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, पू., (प्रथम नयनुं लक्षण), १५७८१ सभाशृंगार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव अजीव पुन्य पाप), १४३८९-१ For Private And Personal Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ समकितना सडसठबोलनी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १२, गा. ६८, पद्य, मूपू., (सुकृतवल्लि कादंबिनी), १७०१२(+), १४१७८, १६२६५, १६४३१, १६८७८ समताशतक, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०५, पद्य, मूपू., (समता गंगा मगनता उदास), १५२५१ समयसारसिद्धांतनाटक के कवित, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (प्रथम अग्यानी जीव), १४६९६-३९ समवसरण विचारसंग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे बारे परषदा कहे), १५१९८-३(+) समवसरण स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ७, वि. १८९२, पद्य, मूपू., (महावीर जग मुगटमणि), १७०४४(+) समाधिमरण रास, मु. मोहन, मा.गु., ढा. ११, गा. १८९, पद्य, पू., (प्रणमुं श्रीजिनराजकु), १४८५१(+) समोवसरण स्तवन, मु. शुभवीर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (समोसरणनी शोभा जेणे), १५९१०-२ सम्मेतशिखर तीर्थमाला, मु. जयसागर, मा.गु., गा. १३२, वि. १६११, पद्य, मूपू., (प्रणमीय प्रथम परमेसर), १६५०८-१ सम्यक्त्व के ६७ भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (परमारथ जाणनो अभ्यास), १५१९५-१४ सम्यक्त्वकौमुदी कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमा० महावीर), १६९३८ सम्यक्त्वकौमुदी कथाष्टक, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ४२, ग्रं. १८००, वि. १८८५, पद्य, स्था., (विज समान श्रीवीरजिन), १५९१४ सम्यक्त्वकौमुदी रास, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., गा. ६९३, ग्रं. १०५०, वि. १६२४, पद्य, मूपू., (शासननायक वीर जिणेसर), १३८४६(+), १४१८९-१ सम्यक्त्व प्राप्ति के करणत्रय विवरण, मा.गु., गा. ४+३, गद्य, मूपू., (प्रवृत्तकरणं१ अपुर्व), १६५८५-३(+) सम्यक्त्वसुखडी सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चाखो नर समकित सुखडली), १४१५०-२९ सम्यक्त्व स्तवन, ग. खिमाविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समकित द्वार गभारे), १५५७९-१७ सरस्वतीदेवी छंद, मु. खुशालकपूर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सरस वचन आपे सदा तु), १५२९६-२ सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., ढा. ३, गा. १४, पद्य, मूपू., (शशिकर जिनकर सम), १५२९२-१ सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सरसति सरस वचन समता), १४०५८-२ सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगदानंदन गुणनीलो रे), १७०२६-२ सवैयाबावनी, श्राव. बनारसीदास, मा.गु., गा. ५२, वि. १६८६, पद्य, दि., (ॐकार सबद विहदया के), १४६९६-३ सवैया संग्रह, मा.गु., पद्य, वै., (अली आय खरी सन्मुख), १५९७०-२(+), १५४६४-४ (२) सवैया संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, वै., (एकदा समे द्वारिका), १५९७०-२(+) सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. २ ढाल २२, गा. ५३५, ग्रं. ८००, वि. १६५९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीसर गुणनिलउ), १४२६०, १४२६१-१ सागरचंद सुशीलासुंदरी चौपाई-शीलव्रतविषये, ऋ. लालचंद, मा.गु., ढा. २१, गा. ४१९, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (श्रीआदेस्वर आद करी), १४२५९ साढापच्चीसदेश नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मगधदेस १ अंगदेस २), १५१५०-४ साधारणजिन आरती, मु. द्यानत, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (इहविध मंगल आरती कीजै), १४९५१-१ साधारणजिन गीत, आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, दि., (आज भवनु भमण भय टलयु), १४०८२-१३ For Private And Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५८३ साधारणजिन गीत, आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, दि., (ओही मेरा सालिम सबला), १४०८२-५ साधारणजिन गीत, आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, दि., (सुणि समरथ भगवंत भवीक), १४०८२-२१ साधारणजिन गीत, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (तुम सुंनीयो कुरना), १५२९१-३(-) साधारणजिन गीत, पुहि., गा. १२, पद्य, श्वे., (साधु सुपात्र बडे), १५९४४-२ साधारणजिन चैत्यवंदन, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (परमेश्वर परमात्मा), १४४५२-७ साधारणजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय तुं जिनराज आज), १४४५२-१३ साधारणजिन पद, मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अटके नयनं जिन चरणां), १५५७९-३१ साधारणजिन पद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (सुखदायक मुख एव जगत), १४६९६-६२ साधारणजिन रेखता, मु. नवल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (करु आराधना तेरी हिये), १४१४७-१३ साधारणजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (भवी तूमें वंदो रे), १६०८४-३ साधारणजिन स्तवन, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (मगन होइ आराधो साधो), १४६९६-५१ साधारणजिन स्तवन, मु. मेघ, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (--), १५२९१-१(-) साधारणजिन स्तवन, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हुं नहि जाणुरे), १४४०५-१ साधारणजिन स्तवन, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुजे हे चाह दरसन), १४१४७-१० साधारणजिन स्तवन, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (--), १५६०१-६(5) साधारणजिन स्तवन-देवनाटक विचार, मु. जितेंद्रसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रभु आगल नाचें सुर), १४३८९-२ साधारणजिन स्तवन-पद, मु. जसवत-शिष्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुरपति सुरपति सुरपति), १४१४७-४ साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंपक केतकी पाडल जाई), १५५३३-११(+) साधु आचार १०८ बोल, रा., गा. १८०, प+ग., श्वे., (जति थइनै आधाकर्मी), १७१३१ साधु के १४ उपकरण कवित, मु. जिनहरष, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पात्र प्रथम झोली), १६२५४-३ साधुगुण गहुँली, मु. क्षमाविजय शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सागर सम समता मुनीवरा), १४७४०-५ साधुगुणमाला, श्राव. हरजसराय जैन, पुहिं., गा. १२५, वि. १८६४, पद्य, मूपू., (श्रीत्रैलोकाधीस को), १६६६६-१(+) साधुगुणवर्णन सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जिनवचन निरतां सद्दहइ), १५१३१-१० साधुगुण सज्झाय, ग. मणिचंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रवण कीर्तन सेवन ए), १४२४४-३, १४२४५-१ साधुपद चैत्यवंदन, पा. हीरधर्म, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (दसण नाण चरित्त करी), १५१२८-१३ साधुपद सज्झाय, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. १६, वि. १८६३, पद्य, श्वे., (समकितधारी सुधमतीजी), १५२९१-१००) साधुपद स्तवन, मु. कुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (निकषाया जगजन कहै), १५१२८-१४ साधुपद स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, पू., (सुमति गुपति कर संजम), १५१२८-१५ साधुरक्षित ५२ जीवभेद, मा.गु., गद्य, श्वे., (एकेंद्रीना ४), १५१९६-७(+) साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ७, गा. ८८, पद्य, मूपू., (रिसहजिण पमुह चउवीस), १४२९६, १४९९२-१७, १५०९३, १५८६८, १७२३४, १७२९२-१ साधुवंदना, उपा. पुण्यसागर, मा.गु., गा. ८८, पद्य, मूपू., (पंच परमेठि पयकमल), १६७०२ For Private And Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५८४ www.kobatirth.org सामायिक ३२ दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., ( पालखी न बेसे १ अथिरा), १४०६७-२ सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मा.गु., पद्य, भूपू., ( गौतम गणधर प्रणमी), १४५०४-१० (+) साधुवंदना, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३२, पद्य, दि., (जिन भाषित भारती सुमर), १४६९६-८ साधुवंदना, ग, भक्तिविजय, मा.गु., गा. २९, वि. १८७३, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर प्रणमुं), १४१२९-४ साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., ढा. १३, गा. ३७७, पद्य, मूपू., (पंच भरत पंच एरवय), १४८३३, १५५१३ साधुवंदना, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., गा. १४४, पद्य, मृपू., (तुं जिनवदन कमलनी), १४२९५ साधुवंदना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., डा. १८, गा. ५१९, वि. १६९७, पद्य, मृपू., (शांतिनाथ जिन सोलमउ), १५६२५ साधुवंदना लघु, क्र. जेमल, मा.गु., गा. ५९, वि. १८०७, पद्य, वे., ( नमुं अनंत चोविसी), १५६८९-९, १७०८१ साधु समाचारी, पुहिं., मा.गु., समु. २८, गद्य, मूपू., (तिणकाल तिणसमें के), १५१४१ " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय - शिष्य, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (प्रणमिय श्रीगौतम), १५१९५-१३ सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सामायिक मन सुधे करो), १४६३५-३७ सामायिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चतुर नर साय नायक), १५१८७-६ सारदा छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मृपू., (सरस वचन समता मन), १४९६७-३ सारशिखामण रास, उपा. संवेगसुंदर, मा.गु., गा. २३७, वि. १५४८, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ सुमरन), १३८४८, १३८४९, १३८५०, १३८५१-१, १६१२४ सारी - हीणीस्त्री कवित, क. गद, मा.गु., गा. २, पद्य, जै. ?, ( वरष पनर षटमास), १४५६४-५ सिंधुचतुर्दशी, पुहिं. गा. १४, पद्य, जै.?, (जैसे काहु पुरुष की), १४६९६ १५ सिंहकुमार रत्नवती रास, मु. राजसुंदर, मा.गु., गा. ११९, वि. १६१८, पद्य, मूपु, (सकल मनोरथ पूरवइ), १३९८७-६ सिंहासनवीसी, ग, संघविजय, मा.गु., गा. १५४७, ग्रं. १६००, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सकल मंगल धर्म धुरि ), १५४३१, १४२६९ (३) सिंहासनबत्रीसी चौपाई - दानाधिकारे, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., गा. २४३०, ग्रं. ३५००, वि. १६३६, पद्य, मूपू., (आराहि श्रीरिषभप्रभु, १४२७०(5) सिदूदत्त चौपाई, मु. धनजी, मा.गु., पद्य, मूपू., (चउविह मंगल मनिधरुं), १४२६२ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं अरिहंत), १४४५२-१७ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधविजय- शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र आराधता), १४०९३३, १५१८३-१२ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नगरी तो चंपापुरी), १५१६६-२७(+#), १४४५२ - १५ सिद्धचक्र स्तवन, मु. उत्तमसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सकल कुशल कर मंद), १५६३३-७ " सिद्धचक्र स्तवन, मु. लालचंद, रा., गा. ७, पद्य, श्वे. (श्रीसिद्धसक्र पद), १५६३३-४ सिद्धचक्र स्तुति, मु. उत्तमसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू (श्रीसिद्धचक्र सेवो), १५५३३-१३(+) " For Private And Personal Use Only सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८उ, पद्य, मूपू., (पहिले पद जपीइ अरिहंत), १४४५९-३० सिद्धचक्र स्तुति, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (समरु सुखदायक मन), १५६३३-५ सिद्धचक्र स्तुति, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर नर), १५५९४-१० Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सिद्धचक्र स्तुति, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेशर अति अलवेसर), १५२८६-९ सिद्धचक्र स्तुति, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आसो चैत्र आंबिल ओली), १५५३३-१४(+) सिद्धचक्र स्तुति, वा. विनयविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र सेवो), १५१६६-१७(+#) सिद्धदंडिका स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ३८, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), १४१५०-१५ सिद्धपद चैत्यवंदन, पा. हीरधर्म, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (श्रीशैलेसी पूर्व),१५१२८-४ सिद्धपद स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, पू., (जगत भूषण विगत दूषण), १४१५०-१२, १४४५२-२३ सिद्धपद स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (अष्ट करमकुं दमन करी), १५१२८-६ सिद्धांतसारोद्धार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम जंबूद्वीपविचार), १५२४४, १५७७४ सीतासती कृत आलोयणा, मु. कुशल, मा.गु., ढा. ६, पद्य, मूपू., (सती न सीता सारिखी), १६६९८ सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (छोडी हो पिउ छोडि), १५१८६-४, १५१८८-३४ सीतासतीशील सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जलजलती मिलती घणी रे), १४५०४-८(+), १५१८८-१०, १६२९६-२ सीतासती सज्झाय, मु. उदयरतन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जनकसुता हुं नाम), १४९८७-५ सीमंधरजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (मुज हीडो हेजालुओ), १४९९२-३ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमु), १५१६६-२६(+#) सीमंधरजिन चैत्यवंदन , उपा. विनयविजय , मा.ग., गा. ३, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर वीतराग), १४४५२-२२, १५११०-४ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पूरव दिशि इशान कुण), १४४५२-१६, १५१८३-१३ सीमंधरजिन पत्र, क. नर, मा.गु., गद्य, श्वे.?, (स्वस्ति श्रीमहाविदेह), १६४४६ सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १७, गा. ३५०, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहिब), १४१३८(+), १६९७०(+), १७०७७(+), १४५९१, १५०९१, १७०९२, १५९७३-१३(5), १६०२१(६) (२) सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन-३५० गाथा-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ग्रं. १२०१, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीपार्श्व), ___१४१३८(+), १७०७७(+), १४५९१, १७०९२ (२) सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन-३५० गाथा-बालावबोध, क. पद्मविजय, मा.गु., ढा. १७, वि. १८३०, गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथपदद्वंद्व), १६०२१(६) सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सफल संसार अवतार हु), १४५३६-२४, १५१९२-१ सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. १२५, ग्रं. १८८, पद्य, मूपू., (स्वामी सीमंधर विनती), १६४१६(+$), १४०१९-१, १४०२०, १४१३७-२, १४१३९-५, १४१४०, १४१६२, १५०९८, १५५७०, १६७५०, १६८७३-१, १६४९७() (२) सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वदेव), १६४१६(+$), १५०९८ (२) सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे श्रीसीमधरस्वामी), १४०२० For Private And Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ सीमंधरजिन विनती स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. ४१, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधर साहिब), १४१५०-२३, १४१५०-२६ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनदास, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (सुणो सुणो सीमंधर), १४९४९-५ सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पुष्कलवइ विजये जयो), १५११०-५ सीमंधरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, पू., (गुणनिधि साहिब सेवीये), १६५०२-२(+) सीमंधरजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., गा. २४, पद्य, पू., (गिरिमां गोरु गिरुओ), १५६०१-१८ सीमंधरजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (जिनमुख वासिनि अमृत), १५६०१-११ सीमंधरजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (परम मुणि झाणवण गहण), १५६०१-४ सीमंधरजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (प्रणमुं तुम सीमधरु), १५६०१-१४ सीमंधरजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (सकल गुणराशि जिनराज), १५६०१-१६, १५६०१-१३(६) सीमंधरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. ११५, वि. १७१३, पद्य, पू., (अनंत चोवीसी जिन नमुं), १४१४२-१(+), १४१४१, १४१४३, १५५१५ सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पुरिसुत्तम नीराग), १४३४१-२, १५६०१-८ सीमंधरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सीमंधर जिनवर सुखकर), १५११०-६ सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (श्रीसीमंधर मुझनै), १५५३३-१७(+), १४४५९-३६, १५५९४-९ सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी केवला), १५१६६-२०(+#), १५५९४-१४ सुंदरराजा रास, मु. क्षमाकलश, मा.गु., गा. १९१, ग्रं. २७५, वि. १५५१, पद्य, पू., (पहिलू परमेसर नमी), १३८५६ सुकुमाल चरित्र, मु. अमरविजय, मा.गु., स. ९, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (ॐ नम सिद्धिकौ ध्यान), १५७४२ सुक्तावली श्लोक संग्रह, मा.गु., गा. ४, पद्य, ?, (नीज बालकने स्तनपान), १४९५८-१ सुगुरु पद, मु. अमृतविजय, मा.गु.,पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जानीये सुध जती तब), १५१६०-१३ सुगुरुमहिमा सज्झाय, रा., गा. १०, पद्य, श्वे., (दोय जोगी आय नीअमां), १५२९१-२(१) सुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. ४०, पद्य, मूपू., (सद्गुरु एहवा सेविइ), १४१३९-२ सुदर्शनशेठ चौपाई, ऋ. ब्रह्म, मा.गु., ढा. ३७, गा. ८३९, पद्य, श्वे., (श्रीजिणचरण प्रणीमइ), १५४०४ सुदर्शनशेठ रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. २३, गा. ३७७, वि. १७८५, पद्य, मूपू., (सकल पदारथ साधवा सकल), १३८५५(+) सुदर्शनशेठ रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २१, गा. ३८२, वि. १७४९, पद्य, मूपू., (प्रह उठी प्रणमुं), १७१८५ सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., ढा. ६, गा. ६८, पद्य, मूपू., (संयमीधीर सुगुरुपय), १४५३६-२७ सुदर्शनसेठ रास, मु. दीपचंद ऋषि, रा., गा. १२१, पद्य, श्वे., (वंदु श्रीजिन महावीर), १५३४४, १६२९० सुदर्शनसेठ रास, मु. मुनिसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २५५, वि. १५०१, पद्य, मूपू., (पहिलउ प्रणमिसु), १६२९५ सुधर्मागणधर भास, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ज्ञानादिक गुणखाणि), १४०६८-४ सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. अमृत, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चंपानयरी उद्यानमां), १४०६८-१२ सुपार्श्वजिन स्तवन, आ. ऋषभसागर, मा.गु.,रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (काइ जिनजीनै श्रीजिन), १४५३९-६ For Private And Personal Use Only Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५८७ सुभद्रासती चौपाई, ग. रूपवल्लभ, मा.गु., ढा. २५, गा. ५४०, वि. १८२५, पद्य, मूपू., (आदिकरण आदिसलं सांति), १४२७३(+), १४२६५ सुभद्रासती चौपाई, ऋ. लालचंद, मा.गु., ढा. ७, वि. १८५८, पद्य, स्था., (अरिहंत सिध समरु सदा), १४२७४, १५७९४ सुभाषित संग्रह, मा.गु., गा. ३, पद्य, ?, (सरिसूरां कां नांखीयइ), १४९९२-१८ सुमतिजिन स्तवन, मु. जसवंत-शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुमती जिणेसर साहिबा), १४१५०-२१ सुमतिजिन स्तवन, ग. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (सुमति सलूणां सांभलो), १३९६८-६(+) सुमतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुमतिनाथ गुणस्यु), १५१६५-३ तवन-१४ गणस्थान विचारगर्भित, म. धर्मवर्धन, मा.ग., ढा. ६, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मप., (समति जिणंद सुमति), १४१५०-२ सुमतिदेवी के अठोत्तरशतनाम दोहरा, पुहिं., गा. ६, पद्य, जै.?, (नमो सिद्धसाधक पुरुष), १४६९६-२१ सुरपति राजा रास-दानधर्मे, मु. दामोदर, मा.गु., वि. १६६५, पद्य, मूपू., (प्रणमुं स्वामि शांति), १४२७५ सुरसुंदर चौपाई, वा. मालदेव, मा.गु., गा. ६५२, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर पय नमी), १५७७३ सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., अ. ४ ढाल ४०, गा. ६१३, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (सासण जेहनउ सलहियइ), १४२७८, १६२३४, १७१५५ सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. २१, गा. ५१७, वि. १६४४, पद्य, मूपू., (आदि धरमने करवा ए), १३८५९, १४२७७, १४२८१, १४२७६(१), १७१७५ (# सुविधिजिन स्तवन, आ. ऋषभसागर, रा.,मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सुविधि सुविधि विधी), १४५३९-५ सुविधिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (में कीनो नहीं तुम), १६१३७-२(+) सुशीलाभीमसेन चरित्र, मु. विजय ऋषि, मा.गु., गा. ५६५, वि. १९९६, पद्य, श्वे., (आद नमु अरिहंत प्रभु), १७०९९(+$) सूत्रसाक्षि, मा.गु., गद्य, श्वे., (उत्तराध्ययन १), १५१३१-२ सूरसेन चौपाई, ऋ. हीराचंद, मा.गु., ढा. ४१, वि. १९६२, पद्य, स्था., (पद पंकज पारस नमु), १५३७० सूर्य गहली, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, म्पू., (वालो म्हारो दिनकर), १४४०३-६ सूर्य छंद, क. मुकुंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, वै., (पूर्वदिससु प्रमाण), १५३६६-५(२) सोदागर गीत, केसौदास, मा.गु., गा. १८, पद्य, जै.?, (सौदागर सौदौ करै), १४२३८-२ सोमसुंदरसूरि गहुली, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हारे मारे ठाम धर्म), १४४०३-१२ सौधर्मगणधर गहली, मु.सोहव, मा.ग.,गा. ७, पद्य, मप., (चेलणा लावे गहली), १४०६८-३ सौधर्मगणधर भास, ग. खिमाविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चउनाणी चंपावने संयम), १४०६८-७ सौधर्मगणधर भास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चंपानयरी उद्यान रे), १४०६८-२ सौधर्मदेवलोक स्तुति, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (सौधर्म देवलोक पहिलो), १४४५९-२५ सौभाग्यपंचमीपर्व कथा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीमत्पार्श्वजिनाधी), १७१७९ सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., ढा. ५, गा. ७५, ग्रं. ११०, वि. १७५८, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु चरणे नमी), १५३४१, १५८७० For Private And Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ७१, पद्य, मूपू., (आदिजिणवर आदिजिणवर), १४०९८-२(+) स्तवनचौवीसी, म. आनंदघन, मा.ग.. स्त. २४. वि. १८. पद्य, मप.. (ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम). १४६२१(+). १६०९७(+), १३९९८, १४०२४, १४०६३, १४०६४, १६४७६, १७२०९, १५०९७-२, १६१५१, १६१६४(), १६३६८($) (२) स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ग्रं. ८२८, गद्य, मूपू., (आनंदघनस्यास्या गीत), १६०९७(+), १३९९८, १४०६३, १४०६४ (२) स्तवनचौवीसी-टबार्थ, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गद्य, मूपू., (चिदानंदमई जिनवरू), १६१६४(s) स्तवनचौवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (सुगुण सुगुण सोभागी), १४०१० स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (मनमधुकर मोही रह्यो), १६२९६-१ स्तवनचौवीसी, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (आदि पुरुषए आदिजी), १५८३८, १५८६६ स्तवनचौवीसी, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (--), १७२१८९६) स्तवनचौवीसी, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., स्त. २४, वि. १७१४, पद्य, मूपू., (--), १४०८८(+$) स्तवनचौवीसी, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रथम जिणेसर पाय), १४५४०() स्तवनचौवीसी, मु. देवकुशल, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (सरसती मात पसाउले रे), १४०७५(+) स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २४, वि. १७७६, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणिंदसु प्रीतडी), १३९९६(+), १४५६३, १४९६४, १६०२६ (६) (२) स्तवनचौवीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए संसारी जीव देवतत्त), १३९९६(+) (२) स्तवनचौवीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १६०२६(६) स्तवनचौवीसी, क. पद्मविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेश्वर ऋषभ), १५५६८ स्तवनचौवीसी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (जग चिंतामणी जगगुरु), १५७९३, १७१८४ स्तवनचौवीसी, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (रिसह जिण वीनवउं देव), १६५८२ स्तवनचौवीसी, मु. मानविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंद), १४०८१(६), १४५३८६६) स्तवनचौवीसी, मु. मेघविजय, मा.गु., स्त. २४, वि. १७३९, पद्य, पू., (अलबेलो आदिसर सेवीइं), १४०७८ स्तवनचौवीसी , उपा. मेघविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (श्रीजिन जगआधार), १५७४९-१ स्तवनचौवीसी, मु. मोहनरुचि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभ जिणेसर साहिब), १४०७९ स्तवनचौवीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (प्रथम तीर्थंकर सेवना), १६५५७-१(६) स्तवनचौवीसी, आ. रत्नभूषणसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, दि., (जिनमनसि जगज पंचानन), १४०८२-२७ स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, म्पू., (ओलगडी आदीनाथनी जो), १४००१ स्तवनचौवीसी, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभ ऋषभ जिणंद निरखी), १४०७७-२, १४९५६ स्तवनचौवीसी, उपा. लावण्यविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (आदि जिनेसर साहिबा), १४००२ स्तवनचौवीसी, ग. विनीतविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (आदीसर अरज अमारीजी), १४१०० स्तवनचौवीसी, आ. वीरचंदसूरि, मा.गु., स्त. २४, ग्रं. १८४, पद्य, दि., (कुलकर नाभिराया केरु), १४०८२-१ स्तवनचौवीसी, पंडित. शुभविजय, मा.गु., स्त. २४, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (ईक्षुरस ल्ये हो), १४०८६(+) For Private And Personal Use Only Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५८९ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ स्तवनचौवीसी-अतीत, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (नामे गाजे परम आल्हाद), १४६३०(5) स्तवनचौवीसी-अनागत, मु. सुग्यानसागर, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (आगमनां उपदेशथी साहिव), १४९६९ स्तवनवीसी, मु. जसकीर्ति, मा.गु., स्त. २०, वि. १७९०, पद्य, मूपू., (सुजन सुजन सोभागी), १४०२५ स्तवनवीसी-अतीत, मु. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २१, पद्य, मूपू., (जिणंदा तारा नामथी), १४१३५, १६९६१-१, १६२९१ स्तुतिचौवीसी, मु. दानविजय, मा.गु., स्तु. २४, गा. ४०, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभजिणेशर केशर), १४०४७, १४५६५-१ स्तुतिचौवीसी, मु. वनीतविजय, मा.गु., स्तु. २४, गा. ९६, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर समरो), १४४६४-१, १४५६४-१ स्त्री लक्षण, मा.गु., गा. ४, पद्य, (पुप्फवास पदमनी सहज), १४२३६-२ स्थविर सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २०, पद्य, मूपू., (श्रुतधरा श्रुतबलइ), १५४७८-४ स्थापनापरीक्षा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीभद्रबाहुस्वामी), १५०१४-३ स्थूलिभद्र एकवीसो, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ४२, वि. १५५३, पद्य, मूपू., (आव्यो आव्यो रे जलहर), १४६३५-२५ स्थूलिभद्र चौपाई, मा.गु., गा. २१८, वि. १५३८, पद्य, म्पू., (पहिलउ पणमउ आदिजिणंद), १४१८७ स्थूलिभद्रनवरस सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ९, पद्य, मूपू., (करी श्रृंगार कोशा), १४२९२-१ स्थूलिभद्र नवरसो, वा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ९, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुखसंपत्ति दायक सदा), १६३३५ स्थूलिभद्र नवरसो ढाल व दूहा, वा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७४, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुखसंपति दायक सदा), १४९८७-१, १५३९१ स्थूलिभद्र शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १८, वि. १८६२, पद्य, मूपू., (सयल सुहंकर पासजिन), १५१४९-१, १५४३३, १४९८० (६) स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (अहो मुनिवरजी माहरी), १४९८७-६ स्नात्रपूजा, मु. नयविमल, मा.गु., पद्य, श्वे., (पूर्व दिसे तथा उत्तर), १४०४१ स्नात्रपूजा, मा.गु., गा. ६४, पद्य, मूपू., (मुक्तालंकारविकारसार), १६०५४ स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ८, गा. ६०, पद्य, मूपू., (चोतिसे अतिसय जुओ वचन), १४९५१-९, १५६३३-१, १५६५१-१, १६५९०, १६७१९-१, १६९५९ स्वरोदयज्ञान, मु. कपुरचंद, मा.गु., गा. ४५३, वि. १९०५, पद्य, मूपू., (नमो आदि अरिहंतदेव), १४८३६(+) स्वरोदयसार, मु. कपुरचंद, मा.गु., गा. ४५३, ग्रं. ५५०, वि. १९०७, पद्य, मूपू., (नमो आदि अरिहंत देव), १६००३ स्वार्थ सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (स्वारथ की सब हे रे), १५५७९-४ हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४८, गा. ९०५, वि. १६८०, पद्य, मपू., (आदिसर आदे करी चोवीसे), १३८६०(+), १४२७९-१(+), १५६३७(+), १३८६१-१, १४९७८, १५२६४, १७०८३, १६०१२(३) हनुमंतदेव छंद, मा.गु.,रा., गा. ९, पद्य, वै., (पवनपुत्र परिणाम कर), १५१९७-८ हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल ५९, ग्रं. ३७५१, वि. १८१०, पद्य, म्पू., (प्रथम धराधर जगधणी). १४०३४(+), १७२१६ हरिबल रास, मु. कुशलसंयम, मा.गु., खं. ४, गा. ९२५, ग्रं. १०५०, वि. १५५५, पद्य, मूपू., (पहिलं प्रणमूं पास), १४०३३(+), १३९८७-८, १४०३१, १४०३२(६) For Private And Personal Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.४ हरिबल रास, मु. जितविजय, मा.गु., ढा. ३५, गा. ८४९, पद्य, मूपू., (सुखदाई समरूं सदा), १६०२५, १६४४९($) हरिवंश रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १२७, गा. २५०६, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (अकल सकल अमरेशनी जिन), १४४३३(+) हीरविजयसूरि कवित, क. सोम, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सबे भृग नयन चलीगु), १६८१९-३ हीरविजयसूरि गहुंली, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (हीरसूरि गुरु हीरला), १४४०३-१६ हीरविजयसूरि प्रबंध, मा.गु., गद्य, मूपू., (संवत पन्नर त्र्यासिए), १४८६२, १६५३८ हीरविजयसूरि रास, क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., गा. ३११९, वि. १६८५, पद्य, मूपू., (सरसति भाषा भारती), १३९८८(+), ___१४०३५ हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल जिणेसर प्रणमु), १४२७९-३(+) हीरविजयसूरि सज्झाय, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (छंडिजा छंडिजारे), १४०२२-९ हीरविजयसूरि सज्झाय, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (बहु गुण लक्षण अभया), १४०२२-१२ हुंडी ढाल, मा.गु., वि. १८८०, पद्य, श्वे., (अववरती सुध साध कया), १५३९९(5) हेयज्ञेयउपादेय विचार, पुहिं., गद्य, श्वे., (हेय त्यागरुपनो अपने), १४६९६-४६ For Private And Personal Use Only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassage sur Gyanmandir आराधना धिना कन्द्र वीर जैन न महावीर कोबा. // असतं तु विद्या Acharya Sri Kailasasagarsuri Gyanmandir Sri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar E-mail : ayanmandir@kobatirth oral Website : www.kobatirth.org ISBN: 81-89177-04-4 Set: 81-89177-00-1 FOC Prie And Personal use only