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यहाँ पर दी गई है. इसके आधार पर प्रत की उपयोगिता तय हो सकती है. १५. प्रतिलेखन श्लोक (प्र.ले.श्लो.) : प्रत के अंत में प्रतिलेखक द्वारा दिए जानेवाले हृदयोद्गार - श्लोकादि के संकेत अपने
श्लोक क्रमांक के साथ यहाँ दिए गए हैं. यह श्लोक क्रमांक ज्ञानमंदिर में संग्रहित इस तरह के श्लोकों की सूची में से
दिया गया है. यह सूची भविष्य में योग्य खंड में प्रकाशित की जाएगी. १६. लिपि माहिती : प्रत देवनागरी, जैन देवनागरी आदि जिस लिपि में लिखी गई है, उसका उल्लेख यहाँ किया गया है. १७. प्रत प्रकार : सामान्यतः कागज की बिना बंधे - छुट्टे पत्रों वाली प्रतों से भिन्न, किसी भी पदार्थ पर लिखी गई गुटका आदि
प्रकार की प्रत होगी तो उसका उल्लेख यहाँ आएगा. अन्यथा 'प्रत सर्व सामान्य कागज के बिन बंधे पत्रों की है' यह समझ
लिया जाना चाहिए. १८. लंबाई, चौड़ाई : प्रत की लंबाई-चौड़ाई आधे सेंटीमीटर के अंतर की शुद्धि के साथ यहाँ दी गई है. १९. पंक्ति-अक्षर : पृष्ठगत पंक्ति व पंक्तिगत अक्षरों को भी अंदाजन गिन कर लघुतम व महत्तम रूप से दिया गया है. पेटाकृति माहिती स्तर जिन प्रतों में पेटाकृतियाँ होंगी, उन्हीं प्रतों हेतु यह स्तर होगा. इस स्तर पर निम्न सूचनाएँ दी जाएँगी. १. पेटांक : प्रतगत पेटाकृति का क्रमांक. २. पेटाकृति नाम : (पे.नाम) प्रतनाम की ही तरह यहाँ पर भी कृति का प्रत में सूचित नाम दिया गया है. मूल यदि टीका, टबार्थ
आदि युक्त हो तो प्रतनाम की तरह नियमानुसार 'सह' के साथ यह नाम दिया गया है. बहुधा कृति का मुख्य प्रस्थापित
नाम यहाँ दिए गए नाम से भिन्न होता है. यह नाम Bold अक्षरों में दिया गया है. ३. पेटाकृति पृष्ठ : (पृ.) पेटाकृति का आदि अंत पृष्ठ क्रमांक. ४. पेटाकृति पूर्णता : यदि पेटांक की पूर्णता संपूर्ण के अतिरिक्त हो तथा उससे जुडी प्रथम कृति की पूर्णता पेटांक की पूर्णता
से भिन्न हो तभी उसका उल्लेख यहाँ किया गया है. ५. पेटाकृति पूर्णता विशेष : (पू.वि.) पेटाकृति के पृष्ठों में यदि कोई कमी हो तो वह कमी आदि, मध्य या अंत किस भाग में
है यह संकेत यहाँ दिया गया है. आदि, मध्य में कौन से पृष्ठ कम हैं, उसकी यथार्थ सूचना प्रत माहिती की पृष्ठ सूचना के अंतर्गत मिलेगी. यहीं पर अन्तर्गत तत्-तत् पेटांक में उपलब्ध कृति के अनुपलब्ध अंश का स्पष्ट उल्लेख भी किया गया है. इसमें कृति की पूर्णता संबंधी यथायोग्य सूचना दी जाती हैं. जैसे - प्रथम पत्र न हो तो 'प्रारंभिक गाथा १० नहीं है.'
इसी प्रकार अन्य संकेतों हेतु भी समझे. ६. पेटाकृति प्रतिलेखन संवत्, ७. पेटाकृति प्रतिलेखन स्थल (ले. स्थ), ८. पेटाकृति प्रतिलेखक आदि, ९. पेटाकृति प्रतिलेखन
पुष्पिका उपलब्धि संकेत (प्र.ले.पु.), १०. पेटाकृति प्रतिलेखन श्लोक (प्र.ले.श्लो.) - पेटाकृतिगत इतनी सूचनाएँ हस्तप्रत
स्तर की ही तरह यहाँ पर भी पेटाकृति हेतु भिन्न रूप से प्रत में यथोपलब्ध दी गई हैं. ११. पेटाकृति विशेष : (पे.वि.) पेटाकृति के अन्य उल्लेखनीय तथ्यों का यहाँ समावेश किया गया है. जैसे - पेटाकृति
प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गिनकर कुल गाथाएँ लिखी है. यह कृति प्रत में एकाधिक बार लिखी गई है. इत्यादि. कृति माहिती स्तर प्रत व पेटाकृति स्तर के नाम में उल्लिखित कृतियों की सूचना इस स्तर पर दी गई है. १. कृति नाम : कृति का प्रस्थापित/बहुप्रचलित नाम ही यहाँ देने का नियम रखा है. अतः यह नाम उपर दिए गए प्रत या
पेटाकृति नाम से बहुधा भिन्न होगा. प्रत/पेटाकृति स्तर पर प्रत में उपलब्ध नामों को प्रायः ज्यों का त्यों दे दिया गया है. किसी भी कृति के वैविध्यतापूर्ण इन नामों का भी अपना एक अलग महत्व होता है. यदि पेटाकृति नाम और कृति नाम
समान हो तो कृति माहिती स्तर पर कृति नाम नहीं दिया गया है. २. कृति स्वरूप : सामान्यतः कृति के टीका, टबार्थ आदि स्वरूप कृति नाम में ही उल्लिखित होते हैं, परंतु हिस्सा, संक्षेप व
संबद्ध - इन तीन स्वरूपों में क्वचित ऐसा नहीं हो पाता. अतः इन तीन स्वरूपों को कृतिनाम के बाद अलग से भी दे दिया
गया है. ३. कर्ता का स्वरूप व नाम, ४. कृति भाषा, ५. कृति का गद्य, पद्य आदि प्रकार, ६. कृति रचना संवत, ७.(आदि :) प्रत
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