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।। कोबातीर्थमंडन श्री महावीरस्वामिने नमः ।। ।। अनंतलब्धिनिधान श्री गौतमस्वामिने नमः ।।
।। गणधर भगवंत श्री सुधर्मास्वामिने नमः ।। । योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।। ।। चारित्रचूडामणि आचार्य श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।।
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर (जैन व प्राच्यविद्या शोधसंस्थान एवं ग्रंथालय)
पुनितप्रेरणा व आशीर्वाद राष्ट्रसंत श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा.
जैन मुद्रित ग्रंथ स्केनिंग प्रकल्प
ग्रंथांक : १३६७
न
आराधना
महावार
कन्द्रको
कोबा.
अमृतं
तु विद्या
तु
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र
शहर शाखा
आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-३८२००७ (गुजरात) (079)23276252,23276204 फेक्स : 23276249
Websiet : www.kobatirth.org Email : Kendra@kobatirth.org
आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर त्रण बंगला, टोलकनगर हॉटल हेरीटेज़ की गली में पालडी, अहमदाबाद - ३८०००७ (079) 26582355
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श्री॥ गौतम पृच्छा धर्म अधर्म का फल
( जैन पत्र से उद्धृत )
अनुवादक
मुंनी श्री यतीन्द्रविजय जी
प्रकाशक
सेठ सरूपचन्द हुकमाजी
जासेलगढ़वाले
कन्नूजी माठूमल एण्ड संज़ के आर्ट (एलेक्ट्रिक) प्रिंटिंग वर्क्स देहली
बाबू धनपत सिंह भनसाली के प्रवन्ध से मुद्रित । द्वितीय पार ५००० ] सन १९१६ [ मूल्य भेट annnnnnnnnngo
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मधु के बँद विषय में भटका, जीव गढ़े में गिरता है, हाथी काल भटकता, नीचे नागों से भी घिरता है। यह संसार बृक्ष है नश्वर, देखो मित्रों चित्र विचित्र, धार्मिक संस्था की सहाय कर, संचित करनी पुन्य पवित्र ।
सर्व महाशयों को उचित है कि धार्मिक संस्थाओं की
सहायता करें।
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धर्म और अधर्म का फल ।
गौतम पृच्छा
नमिउण नित्थनाहं, जाणतो तहा य गोयमो भयवं अबुद्भाण वोहणत्थं, धम्माधम्फलं पुच्छ । । ।
भावार्थ-तीर्थनाथ सर्वज्ञ भगवान ' श्री महावीरस्वामी'को नमस्कार कर गौतमस्वामी जानते हुए भी भव्यजीवों के हितार्थ धर्म
और अधर्म का फल इस प्रकार पूछते हैं । __ १ प्रश्न-हे प्रभो ! किस कर्म से जीव नरक में जाते हैं
उत्तर-गौतम! जो जीव एकेन्द्रिय देन्द्रिय आदि जीवों की हिंसा करते हैं, चुगलखोर
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होते हैं, अदत्त (बिना दी हुई वस्तु ) ग्रहण करते हैं, परस्त्रीगमन, चोरी, परनिन्दा, क्रोध, मान, माया और लोभ करते हैं, दुष्ट स्वभाव रखते हैं, असद्-वस्तुआ का व्यापार और साधु महात्माओं की निन्दा करते हैं, वे जीव मर कर नरक में जाते हैं, और 'सुभूमचक्रवर्ती ' की तरह दुःख के भाजन बनते हैं।
२ प्रश्न-हे भगवन् ! किस कर्म से जीव स्वर्ग में जाते हैं ?
उत्तर-गौतम ! जो जीव यथाशक्ति तपस्या, व्रत, नियम पालन करते हैं सरल स्वभाव रखते हैं, सब जीवों का भला चाहते
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हैं, गुरु जनों के पचन पर विश्वास रखते हैं।
और सबके साथ सदाचार से व्यवहार करते हैं वे, जीव मर कर स्वर्ग में जाते हैं। और
आनन्द श्रावक, की तरह सुखी होते हैं। ....३ प्रश्न--हे परमेश्वर ! किस कर्म से जीव तिथंच होते हैं ?
उत्तर--गौतम ! जो जीव अपने स्वार्थ के वास्ते मित्रता रखते हैं और काम हो जाने के बाद मित्रता तोड़ देते हैं, मित्र के दोष निकालते हैं अथवा मित्र की निन्दा करते रहते हैं और असत्य कलंक देते हैं, मित्र के साथ भेदभाव रखते हैं, मित्रद्रोह और माया स्थानों को सेवन करते हैं वे जीव मर कर
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तिर्यच होते हैं और 'अशोकदत्तकुंवर' को तरह तिर्यंच गति का अनुभव करते हैं।
४ प्रश्न-हे जिनेश्वर ! किस कर्म से जीव मनुष्य होते हैं ?
उत्तर--गौतम ! जो जीव सरलस्वभावी, निरहंकारी, क्रोधरहित और न्यायवान होते हैं, सुपात्र को दान देते हैं, साधुजनों की प्रशंसा किया करते हैं, और किसी के साथ द्वेषभाव नहीं रखते वे जीव मर कर मनुष्य होते हैं और सागरचन्द्र की तरह अनेक मानुष्यभव सम्वन्धि सुख लीलाओं के भोगने वाले होते हैं।
५ प्रश्न- हे जगदगुरु । किस कर्म से मनुष्य स्त्रीपने उत्पन्न होते हैं ?
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उत्तर--गौतम ! जो मनुष्य विशेष चपन स्वभाव रखते हैं, कदाग्रह किया करते हैं, मायावीस्वभाव रखते हैं, विश्वासघात करते हैं, लोगों को ठगना ही अपना कर्तव्य समझते हैं; वे मर कर स्त्रीपने उत्पन्न होते हैं और जन्मपर्यन्त पराधीनहो दुखी होते हैं।
६ प्रश्न-हे तिलोकीनाथ ! किस कर्म से स्त्री पुरुषपने उत्पन्न होती हैं ?
उत्तर--गौतम ! जो स्त्री सन्तोष वाली, विनयवान, सरलचित्तवाली; और स्थिरस्वभाव (चित्त) वाली होती हैं, जो सत्यवचन बोलती हैं और कलह वगैरह नहीं करतीं वे मर कर पुरुष पने उत्पन्न होती हैं और अनेक सुखों को प्राप्त करती हैं।
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७ प्रश्न-हे सर्वज्ञ ! किस कम से जीव नपुंसक होते हैं ?
उत्तर--जो पुरुष घोड़ा बकरा इत्यादि जानवरों को बधिया करते हैं जानवरों के नाक कान आदि अवयवों को छेदन करते हैं, और जानवरों की वृत्ति छेद करते हैं वे परभव में नरकादि गतियों का अनुभव कर सांग हीन (नपुंसक) होते हैं और 'गोत्रास' की तरह अनेक विटम्बना सहन करते हैं। ___ ८ प्रश्न-हे निष्कारणबन्धो ! किस कर्म से जीव अल्पायु होते हैं।
उत्तर-गौतम! जो पुरुष निर्दयपरिणामीहो जीवोंकी हिंसा करते हैं, परलोक को नहीं मानते
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निन्दनीय कम्मों का प्राचरण करते हैं, देव गुरु और धर्मकी अवहीलनों (निन्दा) करते हैं वे अल्पायुबांधते हैं अर्थात् कमायु वाले होते हैं।
६ प्रश्न-हे कृपानिधे ! किस कर्म से जीव दीर्घायु होते हैं ?
उत्तर-गतम! जोजीवोंकी हिंसानहीं करते ट्या परिणाम र वते हैं, दानादि देकर लोगों को हर्षित करते हैं और देवगुरु धर्म की प्रशंसा करते हैं वे जीव दीर्घायु होते हैं। __१० प्रश्न-हे स्वयंबुद्ध ! किस कर्म से जीव भोग रहित होते हैं ?
उत्तर--मौतम ! जो अपनी आत्मा से किसी को दान नहीं देते हैं और क्लेश से किसी को देने में आ गया हो तो पीछा लेने
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की इच्छा करते हैं तथा दूसरा कोई दान देता हो उसको रोकने का प्रयत्न करते हैं वे जीव भोग समृद्धि रहित होते हैं और धनसार की तरह बहुत क्लेशों के पात्र बनते हैं ।
११ प्रश्न - हे करुणानिधि ! किस कर्म से जीव भोगसमृद्धिवान् होते हैं ?
उत्तर -- गौतमं ! जो जीव आसन, पट्टिका संथारिया, पादप्रौंछनक कम्बल वस्त्र, पात्र आदि चारित्रोपकरण और शुद्धमान आहार पानी तथा रूप साधु अणगार को बहिराते हैं और हीन दीन दुःखियों को अनुकंपादान सहर्ष अर्पण करते हैं तथा जैनशासन की प्रभावना बढ़ाते हैं वे जीव भोगसमृद्धिवान् होते हैं । १२ प्रश्न - हे दीनोद्धारक ! किस कर्म से
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जीव सौभाग्यवान होते हैं ?
उत्तर--गौतम ! जो देवगुरु धर्म आदि का विनय करते हैं, कड़वे बचन नहीं बोलते, धर्म निन्दा और मर्मवचनों का परित्याग करते हैं वे जीव सर्वजनवल्लभ (सौभाग्यवान्) होते हैं। ___ १३ प्रश्न-हे भवनिस्तारक ! किस कर्म से जीव दुर्भागी होते हैं ?
उत्तर-गौतम ! जो निर्गुणी अहंकारी होते हैं, गुणवान और धैर्यवान-तपस्वियों की निंदा करते हैं, व्यभिचारी (विषयासक्त) होते हैं, जातिमद करते हैं, दूसरे जीवों को दुख में डालते हैं वे जीव सब के निन्दनीय (दुर्भागी) होते हैं।
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( १० )
१४ प्रश्न - हे परमज्ञानिन ! किस कर्म से जीव बुद्धिमान होते हैं ?
उत्तर -- गौतम ! जो शास्त्रों का अभ्यास करते हैं और गुरुजनों के पास चिन्तवन करते हैं अथना शास्त्र सुनते हैं, दूसरों को पढ़ाते हैं, पढ़ने वालों को सहायता देते हैं, धर्मोपदेश करते हैं ये जीव महा बुद्धिवान् होते है !
१५ प्रश्न - हे देवाधिदेव ! किस कर्म से जीव कुबुद्धिवान होते हैं ?
उत्तर -- गौतम ! जो तपस्वी, ज्ञानी, गुणवान, आदि की आशातना करते हैं, और ये क्या जानते हैं ? इस प्रकार जो मुख से बोलते हैं वे जीव लोक में निन्दनीय हो कुबुद्धि
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( ११ )
वान होते हैं और दुर्बुद्धि की तरह कहीं आदर नहीं पाते।
१६ प्रश्न--हे जगज्जीवहितैषिन ! किस कर्म से जीव पंडित होते हैं ?
उत्तर--गौतम ! जो बृद्धों की सेवा करते हैं, पुण्य और पाप को जानते है, शास्त्र देव गुरु आदि की भक्ति करते हैं वे जीव मर कर पंडित होते हैं। ___ १७ प्रश्न--हे जगदार्तिविदान ! किस कर्म
से जीव मूर्ख होते हैं ? ___ उत्तर--गौतम ! जो ऐसा बोलते हैं किमहाशयो ! चोरी करो, मांस खाओ, मदिरा पान करो, पढ़ने से क्या होता है, धर्म करने से कुछ फायदा नहीं होता, वे जीव भवांतर
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( १२)
में मूर्ख होते है आर आम्रमित्र की तरह लोक में निन्दनीय होते हैं।
१८ प्रश्न-हे वीतराग ! किस कर्म से जीव धार (साहसिक ) होते हैं ?
उत्तर--गौतम ! जो सब जीवों को त्रास और भय से रहित करते हैं और दूसरों के पास भी किसी को भय नहीं दिलाते, दूसरों की पीड़ा निवारण करते हैं वे पुरुष अभयसिंह की तरह धीर (साहासिक) होते हैं। __ १६ प्रश्न हे जगजीन ! किस कर्म से जीव डरपोक होते हैं ? ___ उत्तर-गौतम ! जो तीतर, कूकड़ा, लावा तोता, मैना, सूकर, मृग आदि जीवों को पींजरे में डाल कर रखते हैं और निरन्तर
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( १३ )
सब जीवों को उच्चाट करते हैं वे पुरुष मर कर भीरुक डरपोक होते हैं और धनसिंह की तरह दुःख पाते हैं।
२० प्रश्न- हे कर्म विभंजन! किस कर्म से जीवों की विद्याएं निष्फल होती हैं ?
उत्तर-गौतम! जो पुरुष गुरु के पास विद्या और विज्ञान कपट से ग्रहण कर फिर गुरु को नहीं मानते और कोई पूछता है कि तुमने विद्याभ्यास किस के पास किया है उस वक्त वे गुरु का नाम छिपाते हैं अथवा विद्या गुरु की निन्दा करते रहते हैं वे विद्या
भों से रहित होते हैं अर्थात् उन की विद्याएँ त्रिदंडिक की तरह निष्फल होती हैं।
२१ प्रश्न-हे पुरुषोत्तम ! किस कर्म से
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१४ )
विद्याएँ सफल होती हैं ? - उत्तर-गौतम ! जो पुरष गुरुजनों को मानते हैं और निपट 15 से विनय पूर्वक गुरुजनों से विदा ग्रहण करते हैं उनकी विद्याएँ सपल होती हैं और श्रेणिक की तरह शीघ्र विद्या संपन्न होजाते हैं।
२२ प्रश्न- जगवत्र रू ! किस कर्म से लक्षमी नष्ट होती है ? __उत्तर-गौतम ! जो पुरुष दान करके अपने हृदय में विचार करते हैं कि मैंने दान नहीं दिया होता तो अच्छा था, इस प्रकार पश्चीताप करने वाले पुरुषों की लक्षमी थोड़े ही दिनों में नष्ट हो जाती है। F३३ प्रश्न-हे भवभयंभंजन ! किस कर्मसे
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लक्षमी मिलती है !
उत्तर-गौतम ! जो थोड़ा धन होने पर भी अपनी शक्ति प्रमाण से सुपात्र में दान देते हैं और उपदेश देकर दूसरों से दान दिलाते हैं उनको भवान्तर में बहुत लक्षमी मिलती है। ___ २४ प्रश्न-हे जगजीवतारक! किस कर्म से लक्षमी स्थिर होती है ? ।
उत्तर--गौतम ! जो २ वस्तु अपने को अत्यन्त रुचिकर हो उस को साधुओं को भाव पूर्वक दे देते हैं किन्तु देकर पश्चाताप नहीं करते हैं उनके शालिभद्रकी तरह लक्षमी स्थिर होती है। । २५ प्रश्न-हे सर्वदर्शिन् ! किस कम से
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। १६ ) पुत्र नहीं जीते है।
उत्तर-गौतम ! पशु पक्षी और मनुष्यों के बच्चों का वियोग कराते हैं, अति पाप करते है उनके पुत्र नहीं उत्पन्न होते यदि हो भी जाये तो वे मर जाते हैं। ___ २६ प्रश्न-हे महामाहण ! किस कर्म से जीव पुत्रवान होते है ?
उत्तर-गौत्तम ! जो पुरुषपाम दयालु होते हैं किसी का पुत्र वियोग नहीं कराते उन के बहुत भाग्यशाली पुत्र होते हैं। __२७ प्रश्न-हे स्वयं विभो ! किस कर्म से जीव बहिरे होते हैं ? __उतर-गौतम ! जो पुरुष बिना हुए कहते हैं कि यह तो हमने सुना है और पराई निंदा
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( १७ )
करते हैं दूसरों के दोष निकालते हैं वे मरकर बहिरे होते हैं।
२८ प्रश्न-हे वीर ! किस कर्म से जीव जन्मान्ध होते हैं ?
उत्तर-गौतम ! जो बिना देखे कहते हैं कि हमने देखा है जो धर्म रहित होते हैं जो दूसरों के नेत्रों को बाधा पहुंचाते हैं वे मरकर जन्मान्ध होतेहैं। और वीरम पुत्र की तरह दुःवपातेहैं। ___ २६ प्रश्न हे धर्म चक्रधर । किस कर्म से आहार नहीं पचता है ?
उत्तर--गौतम ! जो झूठा और फेंकने योग्य भात पानी साधुओं को बहिराते हैं उनके अपचा रोग होता है अर्थात् खाया हुमा हजम नहीं होता।
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(१८)
३० प्रश्न--हे भव्यकुमुदविकासक ! किस कर्म से कोढी होते हैं ?
उत्तर--गौत्तम ! जो शहत की मक्खियों के छत्ते को नष्ट करते हैं, आग लगाते हैं, प्राणियों और तिर्यंचों को डाम लगाते हैं, बगीचों का विनाश करते है हरे दरख्तों को उखेड़ते हैं और काटते हैं, फूल फल व्यर्थ चूंटते हैं वे पुरुष मर कर 'गोसाल' की तरह कोढी होते हैं। __३१ प्रश्न--हे विश्वपुरन्दर ! किस कम से जीव कुबड़े होते है।
उत्तर--गौतम ! जो बैल भैंसा गदहा ऊंट आदि जानवरों के ऊपर बहुत भार लाद कर दुःख देते हैं वे पुरुष मर कर धनदत्त
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( 6 ) की तरह कुबड़े होते हैं।
३२ प्रश्न-हे धर्मनायक ! किस कप से जीव नीच गौत्र बांधते हैं ? . उत्तर--गौतमं ! जो जाति कुल का मद करते हैं, जो उन्मत्त हो दूसरों की निन्दा
और अपनी प्रशंसा करते है वे पुरुष नीच गौत्र कर्म उपार्जन करते हैं।
३६ प्रश्न- हे भारतभास्कर ! किस कर्म से जीव दास होते हैं
उत्तर-गौतम ! जो जीनों का क्रय विक्रय करते हैं, जो कृतघ्नी किये हुए उपकारों को भूलने वाले) होते हैं, वे पुरुष मर कर 'ब्रह्मदत्त' की तरह दास होते हैं।
३६ प्रश्न हे प्रभुवर ! किस कर्म से जीव दरिद्र होते हैं ?
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( २० )
उत्तर--गौतम ! जो विनय रहित, चारित्र और नियम हीन होते हैं, दान गुणा से रहित है, मन से आतभ्यान किया करते हैं, बचन से खोटे बचन बोलते हैं, काया से सावध [हिंसा के ] काम करते हैं, वे पुरुष भर कर 'निष्पुण्यक' की तरह दरिद्र होते हैं।
३५ प्रश्न--हे ब्यपगतकषाय ! किस कर्म से जीव इश्वर होते हैं ? __ उत्तर-गौतम ! जो दानी, विनयवान् , चारित गुण संपन्न, देशविरतिवन्त और उत्तम गुणों से सैकड़ों मनुष्यों में पूज्य होते हैं वे पुरुष 'पुण्यसार' की तरह महर्द्धिक और सब के ईश्वर (स्वामी) होते हैं। ३६ प्रश्न-हे कल्मषध्वंसिन् ! किस कम से
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( २१ )
जीव रोगी होते हैं ?
उत्तर-गौतम ! जो लोग विश्वासघात करते हैं, और मनःशुद्धि पूर्वक गुरू के पास आलोचना (दंड)नहीं लेते वे मर कर अनेक रोगों से पीड़ित होते हैं। ___३७ प्रश्न--हे सच्चिदानन्द ! किस कम से जीव निरोगी होते हैं।
उत्तर--गौत्तम ! जो विश्वासी जीवों की रक्षा करते हैं और सब पापकर्मों की आलो चना शुद्ध दिल से लेते हैं वे पुरुष भवान्तर में निरोगी होते हैं और 'अट्टणमल्ल' की तरह सुखी बनते है।
३८प्रश्न.-हे निरंजन ! किस कर्म से जीव हीनांग होते हैं ?
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( २२ ) उत्तर गौतम ! जो धूर्तता से और हस्त लाघवता से कुंकुम कपूर मजोठ आदि लेल संभेल कर व्यापार करते हैं, खोटे तोल माप रखते हैं, वस्तु कम देते हैं और ज्यादा लेते है वे जीव भवान्तर में हानांग होते हैं। ___३६ प्रश्न हे मधराधव ! केस कर्म से जीव गूंगे होते हैं
उत्तर-गोतम ! साध, गुणी, ब्रह्मचारी पुरुषों के अवर्णवाद बोलते हैं वे पुरुष भवान्तर में गूंगे अथवा तोतले होते हैं।
४० प्रश्न हे परमेश्वर । किस कर्म से जीव लूले होते हैं ?
उत्तर-गौतम । जो धर्माचार्यों को और तथारूप साधुओं की पैरादिक से आशातना
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(२६)
-
करते हैं के पुरुष सर कर अग्निशर्मा भी तरह भवान्ता में लूले होते है। ___ ४१ प्रश्हे दीशांशुक्र ! किस कर्म से जीव अंगहीन होते हैं ?
उत्तर--गौतम ! जो निर्दयता से वृषभ वगैरह के ऊपर भार लादकर फिराते हैं उनके अंगों को छेदते हैं मर्मस्थानों में चाबुक लगाते हैं वे पुरुष मर कर भवान्तर में कार्मणकी तरह लगड़े (पांगुले होते हैं। __४२ प्रश्न-हे तीर्थपति ! किस कर्म से
जीव स्वरूपवान होते हैं ? __उत्तर-गौतम ! जो सरल स्वभाव वाले होते हैं, जिनका मन धर्म में लगा रहता है, जो जीवों की रक्षा और देव गुरु संघ आदि
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( २४ )
की भक्ति करते हैं, वे पुरुष भवान्तर में स्व
रूपवान होते हैं ।
४३ प्रश्न - हे जिनेन्द्र ! किस कर्म से जीद रूप विहीन होते हैं ?
उत्तर -- गौतम ! जो कुटिल स्वभाव के होते हैं. जिनको पाप कार्य अच्छे लगते हैं, जो जी हिंसा करने में तत्पर रहते हैं और देव गुरु धर्म के ऊपर द्वेष रखते हैं, वे पुरुषं मर कर कुरूपवान् (रूपरहित) होते हैं । ४४ प्रश्न - हे दिलरंजन ! किस कर्म से जीवों को बहुवेदना होती है ?
उत्तर - गौतम ! जो प्राणियों को लकड़ी रस्सी, तलवार, भाला आदि शस्त्रा से पीड़ा देते हैं. यंत्र में जोड़ते हैं. वे पुरुष बहुत वेदनां
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पाते हैं और लोष्टक (मृगालोडा) की तरह महादुःखी होते हैं।
४५ प्रश्न हे सर्वजनवल्वभ ! किस कर्म से जीव वेदना रहित होते हैं ?
उत्तर-गौतम ! जो निगडबन्धनों से मर णभय और आपत्ति से प्राणियों को बचाते हैं बे पुरुष 'जिनदत्त की तरह वेदनाओं से मुक्त हो कर सुखी होते हैं। ___ ४६ प्रश्न-हे प्रवचनसरोवरहंस ! किस कर्म से जीव एकेन्द्रिय होते हैं ? __उत्तर-गौतम ! जो मोहनीयकर्म के तीन उदय से कुटुम्ब के ऊपर अत्यन्त मोह रखते हैं परिग्रह को अपनी आत्मा के समान जान ते हैं और अज्ञान कार्यों में लहलीन रहते हैं
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वे जीव एकेन्द्रियों में उत्पन्न हो कर बहुत काल पर्यन्त संसार में परिभ्रमण करते हैं। । ४७ प्रश्न-हे मौनीन्द्राशरोमणे ! किस कर्म से जीव दीर्घसंसारी होते हैं ?
उत्तर--गौतम ! जो जीव अजीव, पुण्य, पाप, धर्ष, अधर्म; स्वर्ग; नरक मोच और ईश्वर को नहीं मानते हैं; और उन्मत्त हो अकृत्य किया करते हैं, वे पुरुष नास्तिक होने से दीर्घ संसारी होकर अनेक जन्म मरण संबन्धि दुःख देखते हैं।
४८ प्रश्न हे अनन्तज्ञानधर ! किस कर्म से जीव अल्पसंसारी होते हैं ?
उत्तर-गौतम ! जो जीव अजीवादि प. दार्थों को और धर्म अधर्मके शुभाशुभ फलको
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( २७०)
मानते हैं और अकृत्यों को छोड़कर सदाचार में प्रवृत्त होते हैं वे पुरुा अत्मसारी होते हैं
और जल्दी परमपद को पाते हैं। ___४६ प्रश्न-हे परमसौख्यदायक ! किस कर्म से जीव संसार को पार होकर सिद्धपुर (मोक्ष) को जाते हैं ?
उत्तर-गौतम ! जो निर्मल ज्ञान दर्शन और चरित्र को धारन कर निरतिचार चरित्र पालन करते हैं और उत्तरोत्तर चरित्र की खप करते हैं वे जीव 'अभयकुंवर' की तरह संसारसागर को तिर कर सिद्धपुर को जाते हैं और जम्म मरण आदि दुःखों से रहित हो परमानन्द सुख विलासी होते हैं।
अन्तिम कथन जं गोयमेण पुन्छ, त कहियं जिणवरेण वीरेण सव्वेहिं भावेहि सया, धम्माधम्मफलं पय॥
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भावार्य-गौतमस्वामी ने जो २ प्रश्न लोक हितार्थ पूछे उनके उत्तर जिनवर भगवान श्री महावीर स्वामीने शुभाशुभ फलपूर्वक प्रगट कहे। इसलिये हे महानुभावो ! धर्म और अधर्मका फल इस प्रकार जानकर धर्म मार्गमें प्रवृत्त हो जिससे कि मनुष्य जन्म सफल हो और अजरामर पदकी प्राप्ती हो। ॐ शान्ति ! शान्ति !! शान्ति !!!
॥अथ सिद्धपद स्तवनं ॥ भी गौतम पृच्छा करे, विनय करी शीश नमाय प्रभु जी। अविचल स्थानक में पुण्यं कृपा करी मोय बताय प्रभु जी । शिवपुर नगर सोहामणुं ॥॥ए श्रांकणी
आठ कर्म अलगां करी, सारयां आतम काम हो । प्रभु०॥ छुठा संसारमा दुःख थकी, तेणे रहेवानुं किहां ठाम हो । प्रभुजी० ॥शिब० ॥२॥
बीर कहे ऊर्ध्व लोकमां, सिद्ध शिला तणु ठगम हो गौतम । स्वर्ग छम्बीशनी ऊपरे, तेहनाबारे नाम हो । गौत. ॥ शिव० ॥३॥
लाख पैतालीस जोजना, लांबी पहोली जाण हो । गौत.॥ पाठ लोजन जाड़ी विच्चे, छेडे मंख पंख ज्यु आण हो । गौत. शिव०॥
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उम्मबल हार मोतीवणो, गो दुग्ध शंख बखाय हो । गौत। ते थकी ऊजली भति पयी, उलट छत संठाण हो ॥ गोत. ॥ शिव०॥२॥
अजुण स्पर्ण सम दीपती, गैठारी मठारी बाण हो ॥ गौत.॥ पटक रत्न यकी निर्मली, सभाली अत्यंत पखाण हो ॥ गौत०॥ शिव०॥
सिद्ध शिला उलंधी गया, अधर रमा सिर राज हो । गौत०॥ प्रलोक शुं जाई अडया; सार्या मातम काज हो ॥ गौत० ॥ शिव०॥७॥
जन्म नहीं मरणा नहीं, नहीं जरा नहीं रोग हो । गौत। पैरी नहीं मित्रन नहीं, नहीं संजोग विजोग थे। गौत०॥ शिव०॥
भूख नहीं तिरषा नहीं, नहीं हर्ष नहीं सोग हो ॥ मौत.॥ कर्म नहीं काया नहीं, नहीं विषयारस योग हो ॥ गौत०॥ शिव०॥३॥
शब्द रूप रस गंध नहीं, नहीं फरस नहीं वेद हो ॥ गौत०॥ वोले नहीं चाले नहीं, मौनपणु नहीं खेद हो ॥ गौत०॥ शिष०॥१०॥
ग्राम नगर तिहां कोई नहीं, नहीं वस्ती न उजाद हो । गौत०॥ काल सकाल बतें नहीं, रात दिवस तिथि दार हो॥ गौत० ॥ शिव०॥११॥
राजा नहीं परजा नहीं, नहीं ठाकुर नहीं दास हो ॥ गौत। मुक्तिमा गुरु चेला नहीं, नहीं लघु बडाई तास हो ॥ गौत० ॥ शिव ॥१२॥
अनंता सुखमा झीली रथा, अरुपी ज्योति प्रकाश हो ॥ गौत.. सहु कोइने सुख सारीखां, सघलाने अविचल वास्. हो ॥ गौत०॥शिा०॥१३॥ ___ अनंत सिद्ध मुकतें गया, वली अनंता जाय हो । गत। भवर बग्या रुंधे नहीं, ज्योति मां ज्योति समाय हो ॥गौत०॥ शिव० ॥
केवल जान सहित के, केवल दर्शन खास हो । गौत०॥ खायक समाकत दीपतुं, कदीय न होवे उदास हो ॥ गौत० ॥ शिव ॥१२॥
सिर स्वरूप जे भोलखे, भायी मन वैराग हो ।गौत.॥ शिव सुंदरी वेगेवरे, नवको सुक्ख प्रथाग हो ॥ गौत० ॥॥ शिष०॥१६.
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हमारे पुस्तकालय की संक्षिप्तसूची 'नम नाथजी और राजुल जी का (समबाद) बारहमासा और चौमासा
मूल्य)॥ राजुल जी का बारहमासा रिषभ देव जी का बारहमासा दुर्गा चरित्र ( एक सति ही अात्म कथा व्यापार प्रवेशिका-अवश्य सापारियों के
पढ़ने योग्व साधारण धर्म जैन हिस्टोरीकल सिटडील अंगरेजी में चतुर्दरा नियमावली (१४ नियम प्रति दिन धारने ..
की संक्षिप्त विधि )
हमारे बन्त्रालय में लय प्रकार की छपाई बहुत साफ और पद्धता से होती है।
मिलन का पता कन्नू जी माठूमल एण्ड संज
फतहपुरी दिली
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