Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
नमो नमो निम्मलदंसणस्स बाल ब्रह्मचारी श्री नेमिनाथाय नमः पूज्य आनन्द-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर-गुरूभ्यो नमः
आगम-२५
आतुरप्रत्याख्यान आगमसूत्र हिन्दी अनुवाद
10694
अनुवादक एवं सम्पादक
आगम दीवाकर मुनि दीपरत्नसागरजी
[ M.Com. M.Ed. Ph.D. श्रुत महर्षि ]
आगम हिन्दी-अनुवाद-श्रेणी पुष्प-२५
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
सूत्र
आगम सूत्र २५, पयन्नासूत्र-२, 'आतुरप्रत्याख्यान'
आगमसूत्र-२५- 'आतुरप्रत्याख्यान'
पयन्नासूत्र-२- हिन्दी अनुवाद
कहां क्या देखे?
क्रम
विषय
पृष्ठ क्रम
विषय
प्ररुपणा प्रतिक्रमण आदि आलोचना आलोचना दायक-ग्राहक स्वरूप
| ०५ । ४ । असमाधि मरण
पण्डित मरण एवं आराधना
०९
३
ol
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (आतुरप्रत्याख्यान) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
Page 2
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम सूत्र २५, पयन्नासूत्र-२, 'आतुरप्रत्याख्यान'
सूत्र
४५ आगम वर्गीकरण
सूत्र क्रम
क्रम
आगम का नाम
आगम का नाम
सूत्र
अंगसूत्र-१
२५ | आतुरप्रत्याख्यान
पयन्नासूत्र-२
०१ आचार ०२ सूत्रकृत्
अंगसूत्र-२
२६
०३
स्थान
अंगसूत्र-३
२७
| महाप्रत्याख्यान
भक्तपरिज्ञा | तंदुलवैचारिक संस्तारक
पयन्नासूत्र-३ पयन्नासूत्र-४ पयन्नासूत्र-५
०४
समवाय
अंगसूत्र-४
२८
०५
अंगसूत्र-५
२९
पयन्नासूत्र-६
भगवती ज्ञाताधर्मकथा
०६ ।
अंगसूत्र-६
पयन्नासूत्र-७
उपासकदशा
अंगसूत्र-७
पयन्नासूत्र-७
अंतकृत् दशा ०९ अनुत्तरोपपातिकदशा
अंगसूत्र-८ अंगसूत्र-९
३०.१ | गच्छाचार ३०.२ चन्द्रवेध्यक ३१ | गणिविद्या
देवेन्द्रस्तव वीरस्तव
पयन्नासूत्र-८ पयन्नासूत्र-९
३२
१० प्रश्नव्याकरणदशा
अंगसूत्र-१०
३३
अंगसूत्र-११
३४
| निशीथ
११ विपाकश्रुत १२ औपपातिक
पयन्नासूत्र-१० छेदसूत्र-१ छेदसूत्र-२
उपांगसूत्र-१
बृहत्कल्प व्यवहार
राजप्रश्चिय
उपांगसूत्र-२
छेदसूत्र-३
१४ जीवाजीवाभिगम
उपागसूत्र-३
३७
उपांगसूत्र-४ उपांगसूत्र-५ उपांगसूत्र-६
छेदसूत्र-४ छेदसूत्र-५ छेदसूत्र-६
४०
उपांगसूत्र-७
दशाश्रुतस्कन्ध ३८ जीतकल्प ३९ महानिशीथ
आवश्यक ४१.१ ओघनियुक्ति ४१.२ | पिंडनियुक्ति ४२ | दशवैकालिक ४३ उत्तराध्ययन ४४
नन्दी अनुयोगद्वार
मूलसूत्र-१ मूलसूत्र-२ मूलसूत्र-२
१५ प्रज्ञापना १६ सूर्यप्रज्ञप्ति १७ चन्द्रप्रज्ञप्ति
| जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति १९ निरयावलिका
कल्पवतंसिका २१ | पुष्पिका
| पुष्पचूलिका २३ वृष्णिदशा २४ चतु:शरण
उपागसूत्र-८
उपांगसूत्र-९ उपांगसूत्र-१० उपांगसूत्र-११ उपांगसूत्र-१२ पयन्नासूत्र-१
मूलसूत्र-३ मूलसूत्र-४ चूलिकासूत्र-१ चूलिकासूत्र-२
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(आतुरप्रत्याख्यान) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
Page 3
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम सूत्र २५, पयन्नासूत्र-२, 'आतुरप्रत्याख्यान'
सूत्र
10
01
01
04
मुनि दीपरत्नसागरजी प्रकाशित साहित्य आगम साहित्य
आगम साहित्य साहित्य नाम बक्स क्रम
साहित्य नाम मूल आगम साहित्य:
147 6 | आगम अन्य साहित्य:1-1- आगमसुत्ताणि-मूलं print
[49] -1- माराम थानुयोग
06 -2- आगमसुत्ताणि-मूलं Net [45] -2- आगम संबंधी साहित्य
02 -3- आगममञ्जूषा (मूल प्रत) [53] -3- ऋषिभाषित सूत्राणि | आगम अनुवाद साहित्य:
165
-4- आगमिय सूक्तावली -1- આગમસૂત્ર ગુજરાતી અનુવાદ [47] | आगम साहित्य- कुल पुस्तक
516 -2- आगमसूत्र हिन्दी अनुवाद Net [47] | -3- Aagamsootra English Trans. | [11] | -4- सामसूत्र सटी ४२राती मनुवाः [48] -5- आगमसूत्र हिन्दी अनुवाद print [12]
अन्य साहित्य:3 आगम विवेचन साहित्य:
171
તત્ત્વાભ્યાસ સાહિત્ય-1- आगमसूत्र सटीकं [46] 2 सूत्रात्यास साहित्य
06 -2- आगमसूत्राणि सटीकं प्रताकार-11 [51]] 3
વ્યાકરણ સાહિત્ય
05 | -3- आगमसूत्राणि सटीकं प्रताकार-2
વ્યાખ્યાન સાહિત્ય. -4- आगम चूर्णि साहित्य [09] 5 उनलत साहित्य
09 |-5- सवृत्तिक आगमसूत्राणि-1 [40] 6 व साहित्य
04 -6- सवृत्तिक आगमसूत्राणि-2 [08] 7 माराधना साहित्य
03 |-7- सचूर्णिक आगमसुत्ताणि । [08] 8 परियय साहित्य
04 आगम कोष साहित्य:
02 -1- आगम सद्दकोसो [04] 10 तीर्थं5२ संक्षिप्त र्शन
25 -2- आगम कहाकोसो [01] | 11ही साहित्य
05 -3- आगम-सागर-कोष:
[05] 12 દીપરત્નસાગરના લઘુશોધનિબંધ
05 -4- आगम-शब्दादि-संग्रह (प्रा-सं-गु) [04]
આગમ સિવાયનું સાહિત્ય કૂલ પુસ્તક 5 आगम अनुक्रम साहित्य:
09 -1- सागमविषयानुभ- (भूग)
| 1-आगम साहित्य (कुल पुस्तक) -2- आगम विषयानुक्रम (सटीक) 04 2-आगमेतर साहित्य (कुल 08 -3- आगम सूत्र-गाथा अनुक्रम
दीपरत्नसागरजी के कुल प्रकाशन RAAEEमुनिहीपरत्नसागरनुं साहित्य
| भुनिटीपरत्नसागरनु आगम साहित्य [ पुस्त8 516] तेजा पाना [98,300] 2 भुनिटीपरत्नसागरनुं अन्य साहित्य [ पुस्त8 85] तेनास पाना [09,270] मुनिहीपरत्नसागर संशतित तत्वार्थसूत्र'नी विशिष्ट DVD तेनाल पाना [27,930] |
सभा। प्राशनो ०१ + विशिष्ट DVD सपाना 1,35,500
| 149 ५४न साहित्य
85
02
| 03
60
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (आतुरप्रत्याख्यान) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद'
Page 4
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम सूत्र २५, पयन्नासूत्र-२, 'आतुरप्रत्याख्यान'
सूत्र
[२५] आतुरप्रत्याख्यान पयन्नासूत्र-२- हिन्दी अनुवाद
सूत्र-१
छ काय की हिंसा का एक हिस्सा जो त्रस की हिंसा, उसका एक देश जो मारने की बुद्धि से निरपराधी जीव की निरपेक्षपन से हिंसा, इसलिए और झूठ बोलना आदि से निवृत्त होनेवाला जो समकित दृष्टि जीव मृत्यु पाता है तो उसे जिनशासन में (पाँच मृत्यु में से) बाल पंड़ित मरण कहा है। सूत्र - २
जिनशासन में सर्व विरति और देशविरति में दो प्रकार का यतिधर्म है, उसमें देशविरति का पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत मिलाने से श्रावक के बारह व्रत बताए हैं। उन सभी व्रत से या फिर एक दो आदि व्रत समान उस के देश आराधन से जीव देशविरति होते हैं। सूत्र-३
प्राणी का वध, झूठ बोलना, अदत्तादन और परस्त्री का नियम करने से तथा ईच्छा परिणाम का नियम करने से पाँच अणुव्रत होते हैं। सूत्र-४
जो दिगविरमण व्रत, अनर्थदंड से निवर्तन रूप अनर्थदंड विरमण और देशावगासिक में तीनों मिलकर तीन गुणव्रत कहलाते हैं। सूत्र-५
भोग-उपभोग का परिमाण, सामायिक, अतिथि संविभाग और पौषध ये सब (मिलकर) चार शिक्षाव्रत कहलाते हैं। सूत्र-६
शीघ्रतया मृत्यु होने से, जीवितव्य की आशा न तूटने से, या फिर स्वजन से (संलेखना करने की) परवानगी न मिलने से, आखरी संलेखना किए बिनासूत्र -७
शल्यरहित होकर; पाप आलोचकर अपने घरमें निश्चय से संथारे पर आरूढ होकर यदि देशविरति प्राप्त करके मर जाए तो उसे बाल पंड़ित मरण कहते हैं । सूत्र-८
जो विधि भक्तपरिज्ञा में विस्तार से बताया गया है वो यकीनन बाल पंडित के लिए यथायोग्य जानना चाहिए। सूत्र-९
कल्पोपपन्न वैमानिक (बार) देवलोक के लिए निश्चय करके उसकी उत्पत्ति होती है और वो उत्कृष्ट से निश्चय करके सातवे भव तक सिद्ध होता है। सूत्र-१०
जिनशासन के लिए यह बाल पंड़ित मरण कहा गया है, अब मैं पंड़ितमरण संक्षेप में कहता हूँ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (आतुरप्रत्याख्यान) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
Page 5
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम सूत्र २५, पयन्नासूत्र-२, 'आतुरप्रत्याख्यान'
सूत्रसूत्र - ११
हे भगवंत ! मैं अनशन करने की ईच्छा रखता हूँ | पाप व्यवहार को प्रतिक्रमता हूँ । भूतकाल के (पाप को) भावि में होनेवाले (पाप) को, वर्तमान के पाप को, किए हुए पाप को, करवाए हुए पाप को और अनुमोदन किए गए पाप का प्रतिक्रमण करता हूँ, मिथ्यात्व का, अविरति परिणाम, कषाय और पाप व्यापार का प्रतिक्रमण करता हूँ।
मिथ्यादर्शन के परिणाम के बारे में, इस लोक के बारे में, परलोक के बारे में, सचित्त के बारे में, अचित्त के बारे में, पाँच इन्द्रिय के विषय के बारे में, अज्ञान अच्छा है ऐसी चिंतवना किये हुए...
झूठे आचार का चितवन किये हुए, बौद्धादिक कुदर्शन अच्छा ऐसा चिंतवन किये हुए, क्रोध, मान, माया और लोभ, राग, द्वेष और मोह के लिए चिंतवन किये हुए, (पुद्गल पदार्थ और यश आदि की) ईच्छा के लिए चिंतन हए, मिथ्यादृष्टिपन का चिंतवन किये हए, मूर्छा के लिए चिंतवे हए, संशय से, या अन्यमत की वांछा से चितवन किये हुए, घर के लिए चिंतवे हुए, दूसरों की चीजें पाने की वांछा से चिंतवन किये हुए, भूख-प्यास से चिंतवे हुए,
सामान्य मार्ग में या विषम मार्ग में चलने के बाद भी चिंतवे हुए, निंद्रा में चिंतवे हुए, नियाणा चिंतवे हुए, स्नेहवश से, विकार के या चित्त के डहोणाण से चिंतवे हुए, क्लेश, मामूली युद्ध के लिए चिंतवे हुए या महायुद्ध के लिए चिंतवन किये हए. संग चिंतवे हए, संग्रह चिंतवे हए. राजसभा में न्याय के लिए चिंतवे हए,
खरीद करने के लिए और बेचने के लिए चिंतवे हुए, अनर्थ दंड चिंतवे हुए, उपयोग या अनुपयोग से चिंतवे हुए, खुद पर कर्जा हो उसके लिए चिंतवे हुए, वैर-तर्क, वितर्क, हिंसा, हास्य के लिए, अतिहास्य के लिए, अति रोष करके या कठोर पाप-कर्म चिंतवन किये हुए, भय चिंतवे हुए, रूप चिंतवे हुए, अपनी प्रशंसा दूसरों की निंदा, या दूसरों की गर्दा चिंतवे हुए, धनादिक परिग्रह पाने को चिंतवे हुए, आरम्भ चिंतवे हुए, विषय के तीव्र अभिलाष से संरभ चिंतवे हुए, पाप कार्य अनुमोदन समान चिंतवे हुए, जीवहिंसा के साधन को पाने को चिंतवे हुए,
असमाधि में मरना चिंतवे हुए, गहरे कर्म-उदय द्वारा चिंतवे हुए, ऋषि के अभिमान से या सुख के अभिमान से चिंतवे हुए, अविरति अच्छी ऐसा चिंतवे हुए, संसार सुख के अभिलाष सहित मरण चितवन किये हुए...
दिवस सम्बन्धी या रात सम्बन्धी सोते या जागते किसी भी अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार या अनाचार लगा हो उसका मुझे मिच्छामि दुक्कडम् हो । सूत्र-१२
जिनो में वृषभ समान वर्द्धमानस्वामी को और गणधर सहित बाकी सभी तीर्थंकर को मैं नमस्कार करता हूँ सूत्र - १३
इस प्रकार से मैं सभी प्राणीओं के आरम्भ, अलिक (असत्य) वचन, सर्व अदत्तादान (चोरी), मैथुन और परिग्रह का पच्चखाण करता हूँ। सूत्र - १४
मुझे सभी जीव के साथ मैत्रीभाव है । किसी के साथ मुझे वैर नहीं है, वांच्छा का त्याग करके मैं समाधि रखता हूँ। सूत्र - १५
सभी प्रकार की आहार विधि का, संज्ञाओं का, गारवों का, कषायों का और सभी ममता का त्याग करता हूँ, सब को खमाता हूँ।
इस
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (आतुरप्रत्याख्यान) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
Page 6
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम सूत्र २५, पयन्नासूत्र-२, 'आतुरप्रत्याख्यान'
सूत्र - १६
यदि मेरे जीवित का उपक्रम (आयु का नाश ) इस अवसर में हो, तो यह पच्चक्खाण और विस्तारवाली आराधना मुझे हो ।
सूत्र -
सूत्र - १७
सभी दुःख क्षय हुए हैं जिनके ऐसे सिद्ध को और अरिहंत को नमस्कार हो, जिनेश्वरों ने कहे हुए तत्त्व में सद्दहता हूँ, पापकर्म को पच्चक्खाण करता हूँ ।
सूत्र १८
जिन के पाप क्षय हुए हैं, ऐसे सिद्ध को और महा ऋषि को नमस्कार हो, जिस तरह से केवली ओंने बताया है वैसा संथारा मैं अंगीकार करता हूँ ।
सूत्र १९
जो कुछ भी झूठ का आचरण किया हो उन सब को मन, वचन, काया से वोसिराता हूँ। सर्व आगार रहित (ज्ञान, श्रद्धा और क्रियारूप) तीन प्रकार की सामायिक मैं करता हूँ ।
सूत्र - २०
बाहरी और अभ्यंतर उपधि तथा भोजन सहित शरीर आदि उन सब भाव को मैं मन, वचन, काया से वोसिराता (त्याग करता) हूँ।
सूत्र २१
इस प्रकार से सभी प्राणी के आरम्भ को, अखिल (झूठ) वचन को, सर्व अदत्तादान चोरी को, मैथुन और परिग्रह का पच्चक्खाण करता हूँ ।
सूत्र - २२
मेरी सभी जीव से मैत्री है। किसी के साथ मुझे वैर नहीं है । वांच्छना का त्याग करके मैं समाधि रखता हूँ
सूत्र - २३
राग को, बन्धन को, द्वेष और हर्ष को, रांकपन को, चपलपन को, भय को, शोक को, रति को, अरति को मैं वोसिराता (त्याग करता) हूँ ।
सूत्र २४
ममता रहितपन में तत्पर होनेवाला मैं ममता का त्याग करता हूँ, और फिर मुझे आत्मा आलम्बनभूत है, दूसरी सभी चीज को वोसिराता हूँ ।
सूत्र - २५
मुझे ज्ञानमें आत्मा, दर्शनमें आत्मा, चारित्रमें आत्मा, पच्चक्खाणमें आत्मा और संजम जोगमें भी आत्मा (आलम्बनरूप) हो ।
सूत्र - २६
जीव अकेला जाता है, यकीनन अकेला उत्पन्न होता है, अकेले को ही मरण प्राप्त होता है, और कर्मरहित होने के बावजूद अकेला ही सिद्ध होता है।
सूत्र - २७
ज्ञान, दर्शन सहित मेरी आत्मा एक शाश्वत है, शेष सभी बाह्य पदार्थ मेरे लिए केवल सम्बन्ध मात्र स्वरूप
वाले हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (आतुरप्रत्याख्यान)" आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद"
Page 7
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
सूत्र
आगम सूत्र २५, पयन्नासूत्र-२, 'आतुरप्रत्याख्यान' सूत्र - २८
जिसकी जड़ रिश्ता है ऐसी दुःख की परम्परा इस जीवने पाई, उस के लिए सभी संयोग संबंध को मन, वचन, काया से मैं त्याग करता हूँ। सूत्र - २९
प्रयत्न (प्रमाद) से जो मूलगुण और उत्तरगुण की मैंने आराधना नहीं की है उन सब की मैं निन्दा करता हूँ। भाव की विराधना का प्रतिक्रमण करता हूँ। सूत्र - ३०, ३१
सात भय, आठ मद, चार संज्ञा, तीन गारव, तेत्तीस आशातना, राग, द्वेष की तथा- ... असंयम, अज्ञान, मिथ्यात्व और जीवमें एवं अजीवमें सर्व ममत्व की मैं निन्दा करता हूँ और गर्दा करता हूँ। सूत्र-३२
निन्दा करने के योग्य की मैं निन्दा करता हूँ और जो मेरे लिए गर्दा करने के योग्य है उन (पाप की) गर्दा करता हूँ। सभी अभ्यंतर और बाह्य उपधि का मैं त्याग करता हूँ। सूत्र - ३३
जिस तरह रत्नाधिक के सामने बोलने(कहेने) वाला कार्य या अकार्य को सरलता से कहता है उसी तरह माया मृषावाद को छोड़कर वह पाप को आलोए । सूत्र-३४
ज्ञान, दर्शन, तप और चारित्र उन चारों में अचलायमान, धीर, आगममें कुशल, बताए हुए गुप्त रहस्य को अन्य को नहीं कहनेवाला (ऐसे गुरु के पास से आलोयणा लेनी चाहिए ।) सूत्र-३५
हे भगवन् ! राग से, द्वेष से, अकृतज्ञत्व से और प्रमाद से मैंने जो कुछ भी तुम्हारा अहित किया हो वो मैं मन, वचन, काया से खमाता हूँ। सूत्र-३६
___मरण तीन प्रकार का होता है-बाल मरण, बाल-पंड़ित मरण और पंड़ित मरण, सीर्फ केवली पंड़ित मरण से मृत्यु पाते हैं। सूत्र-३७
___और फिर जो आठ मदवाले, नष्ट हुई हो वैसी बुद्धिवाले और वक्रपन को (माया को) धारण करनेवाले असमाधि से मरते हैं उन्हें निश्चय से आराधक नहीं कहा है। सूत्र-३८
मरण विराधे हए (असमाधि मरण द्वारा) देवता में दुर्गति होती है । सम्यक्त्व पाना दुर्लभ होता है और फिर आनेवाले काल में अनन्त संसार होता है । सूत्र - ३९
देव की दुर्गति कौन-सी ? अबोधि क्या है ? किस लिए (बार-बार) मरण होता है ? किस वजह से जीव अनन्त काल तक घूमता रहता है ? सूत्र - ४०,४१
मरण विराधे हुए कंदर्प (मश्करा) देव, किल्बिषिक देव, चाकर देव, असुर देव और संमोहा (स्थान भ्रष्ट)
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (आतुरप्रत्याख्यान) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
Page 8
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम सूत्र २५, पयन्नासूत्र -२, 'आतुरप्रत्याख्यान'
देव यह पाँच दुर्गति होती है ।
इस संसार में-मिथ्यादर्शन रक्त, नियाणा - सहित, कृष्ण लेश्यावाले जो जीव मरण पाते हैं-उन को बोधि दुर्लभ होता है ।
सूत्र - ४२
इस संसार में सम्यक् दर्शन में रक्त, नियाणा रहित, शुक्ल लेश्यावाले जो जीव मरण पाते हैं उन जीव को बोधि बीज (समकित सुलभ होता है ।
सूत्र ४३
सूत्र -
के शत्रुरूप, बहुत मोहवाले, दूषण सहित, कुशील होत हैं और असमाधिमें मरण पाते हैं वो अनन्त
संसारी होते हैं ।
सूत्र - ४४, ४५
जिन वचन में रागवाले, जो गुरु का वचन भाव से स्वीकार करते हैं, दूषण रहित हैं और संक्लेशरहित होते हैं, वे अल्प संसारवाले होते हैं। जो जिनवचन को नहीं जानते वो बेचारे (आत्मा) - बाल मरण और कईं बार बिना ईच्छा से मरण पाते हैं ।
सूत्र ४६
शस्त्रग्रहण (शस्त्र से आत्महत्या करना), विषभक्षण, जल के मरना, पानी में डूब मरना, अनाचार और अधिक उपकरण का सेवन करनेवाले जन्म मरण की परम्परा बढ़ानेवाले होते हैं।
सूत्र - ४७
उर्ध्व, अधो, तिर्च्छा (लोक) में जीव ने बालमरण किए लेकिन अब दर्शन ज्ञान सहित मैं पंड़ित मरण से
I
मरूँगा।
सूत्र - ४८
उद्वेग करनेवाले जन्म, मरण और नरक में भुगती हुई वेदनाको याद करते हुए अब तुम पंड़ित मरण से मरो सूत्र - ४९
यदि दुःख उत्पन्न हो तो स्वभाव द्वारा उस की विशेष उत्पत्ति देखना (संसारमें भुगते हुए विशेष दुःख को याद करना) संसार में भ्रमण करते हुए मैंने क्या-क्या दुःख नहीं पाए (ऐसा सोचना चाहिए ।)
सूत्र ५०
और फिर मैंने संसार चक्रमें सर्वे पुद्गल कई बार खाए और परिणमाए, तो भी में तृप्त नहीं हुआ ।
सूत्र- ५१
तृण और लकड़े से जैसे अग्नि तृप्त नहीं होता और हजारों नदीयों से जैसे लवण समुद्र तृप्त नहीं होता, वैसे काम भोग द्वारा यह जीव तृप्ति नहीं पाता ।
सूत्र ५२
आहार के लिए (तंदुलीया) मत्स्य सातवी नरकभूमि में जाते हैं। इसलिए सचित्त आहार करने की मन से भी ईच्छा या प्रार्थना करना उचित नहीं है ।
सूत्र ५३
जिसने पहेले ( अनशन का) अभ्यास किया है, और नियाणा रहित हुआ हूँ ऐसा मैं मति और बुद्धि से सोच कर फिर कषाय को रोकनेवाला मैं शीघ्र ही मरण अंगीकार करता हूँ ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (आतुरप्रत्याख्यान)" आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद"
Page 9
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम सूत्र २५, पयन्नासूत्र -२, 'आतुरप्रत्याख्यान'
सूत्र - ५४
दीर्घकाल के अभ्यास बिना अकाल में ( अनशन करनेवाले) वो पुरुष मरण के अवसर पर पहले किए हुए कर्म के योग से पीछे भ्रष्ट होते हैं। (दुर्गति में जाते हैं)।
सूत्र
सूत्र - ५५
उसके लिए राधावेध ( को साधनेवाले पुरुष) की तरह लक्ष्यपूर्वक उद्यमवाले पुरुष मोक्षमार्ग की जिस तरह साधना करते हैं उसी तरह अपने आत्मा को ज्ञानादि गुण के सहित करना चाहिए।
सूत्र - ५६
वह (मरण के) अवसर पर बाह्य (पौद्गलिक) व्यापार रहित, अभ्यन्तर (आत्म स्वरूप ) ध्यान में मग्न, सावधान मनवाला होकर शरीर का त्याग करता है ।
सूत्र - ५७
राग-द्वेष का वध कर के, आठ कर्म के समूह को नष्ट करके, जन्म और मरण समान अरहट्ट को भेदकर तूं संसार से अलग हो जाएगा ।
सूत्र ५८
इस प्रकार से त्रस और स्थावर का कल्याण करनेवाला मोक्ष मार्ग का पार दिलानेवाला, जिनेश्वर ने बताए हुए सर्व उपदेश का मन, वचन, काया से में श्रद्धा करता हूँ।
सूत्र ५९
उस (मरण के) अवसर पर अति समर्थ चित्तवाले से भी बारह अंग समान सर्व श्रुतस्कंध का चिंतन करना कीन नहीं है ।
सूत्र ६०
(इसलिए) वीतराग के मार्ग में जो एक भी पद से मानव बार-बार वैराग पाए उस पद सहित ( उसी पद का चितवन करते हुए) तुम्हें मृत्यु को प्राप्त करना उचित है।
सूत्र - ६१
उस के लिए मरण के अवसर में आराधना के उपयोगवाला जो पुरुष एक श्लोक की भी चिंतवना करता रहे तो वह आराधक होता है ।
सूत्र - ६२
आराधना के उपयोगवाला, सुविहित ( अच्छे आचारवाला) आत्मा अच्छी तरह से (समाधि भाव से) काल करके उत्कृष्ट से तीन भव में मोक्ष पाता है ।
सूत्र ६३
प्रथम तो मैं साधु हूँ, दूसरा सभी चीजमें संयमवाला हूँ (इसलिए ) सब को वोसिराता हूँ, यह संक्षेप में कहा
है
सूत्र - ६४
जिनेश्वर भगवान के आगम में कहा गया अमृत समान और पहले नहीं पानेवाला (आत्मतत्त्व ) मैंने पाया है और शुभ गति का मार्ग ग्रहण किया है इसलिए मैं मरण से नहीं डरता ।
सूत्र - ६५
धीर
पुरुष को भी मरना पड़ता है, कायर पुरुष को भी यकीनन मरना पड़ता है, दोनों को भी निश्चय से
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (आतुरप्रत्याख्यान)" आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद"
Page 10
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम सूत्र २५, पयन्नासूत्र-२, 'आतुरप्रत्याख्यान'
सूत्रमरना है, तो धीरपन से मरना ही यकीनन सुन्दर है। सूत्र-६६
शीलवान को भी मरना पड़ता है, शील रहित पुरुष को भी यकीनन मरना पड़ता है, दोनों को भी निश्चय कर के मरना है, तो शील सहित मरना ही निश्चय से प्रशंसनीय है। सूत्र-६७
जो कोई भी चारित्रसहित ज्ञान में, दर्शन में और सम्यक्त्व में, सावधान होकर प्रयत्न करेगा तो विशेष कर के संसार से मुक्त हो जाएगा। सूत्र-६८
लम्बे समय तक ब्रह्मचर्य का सेवन करनेवाला, शेष कर्म का नाश कर के और सर्व क्लेश का नाश कर के क्रमिक शुद्ध होकर सिद्धि में जाता है। सूत्र-६९
कषाय रहित, दान्त (पाँच इन्द्रिय और मन का दमन करनेवाला), शूरवीर, उद्यमवंत और संसार से भयभ्रांत हुए आत्मा का पच्चक्खाण अच्छा होता है। सूत्र-७०
धीर और मोह रहित ज्ञानवाला जिस मरण के अवसर पर यह पच्चक्खाण करेगा तो वह उत्तम स्थानक को प्राप्त करेगा। सूत्र - ७१
धीर, जरा और मरण को जाननेवाला, ज्ञानदर्शन से युक्त लोक में उद्योत को करनेवाले ऐसे वीरप्रभु सर्व दुःख का क्षय बतानेवाले हो।
(२५)आतुरप्रत्याख्यान-प्रकीर्णक-२ का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (आतुरप्रत्याख्यान) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
Page 11
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________ आगम सूत्र 25, पयन्नासूत्र-२, 'आतुरप्रत्याख्यान' नमो नमो निम्मलदंसणस्स પૂજ્યપાદ્ શ્રી આનંદ-ક્ષમા-લલિત-સુશીલ-સુધર્મસાગર ગુરૂભ્યો નમ: SONGS 25 आतुरप्रत्याख्यान आगमसूत्र हिन्दी अनुवाद . . . . . . . . . . [अनुवादक एवं संपादक] आगम दीवाकर मुनि दीपरत्नसागरजी [ M.Com. M.Ed. Ph.D. श्रुत महर्षि] . A 21182:- (1) (2) deepratnasagar.in भेला भेड्रेस:- jainmunideepratnasagar@gmail.com भोला/ 09825967397 मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (आतुरप्रत्याख्यान) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 12