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आगम सूत्र २५, पयन्नासूत्र-२, 'आतुरप्रत्याख्यान'
सूत्र - १६
यदि मेरे जीवित का उपक्रम (आयु का नाश ) इस अवसर में हो, तो यह पच्चक्खाण और विस्तारवाली आराधना मुझे हो ।
सूत्र -
सूत्र - १७
सभी दुःख क्षय हुए हैं जिनके ऐसे सिद्ध को और अरिहंत को नमस्कार हो, जिनेश्वरों ने कहे हुए तत्त्व में सद्दहता हूँ, पापकर्म को पच्चक्खाण करता हूँ ।
सूत्र १८
जिन के पाप क्षय हुए हैं, ऐसे सिद्ध को और महा ऋषि को नमस्कार हो, जिस तरह से केवली ओंने बताया है वैसा संथारा मैं अंगीकार करता हूँ ।
सूत्र १९
जो कुछ भी झूठ का आचरण किया हो उन सब को मन, वचन, काया से वोसिराता हूँ। सर्व आगार रहित (ज्ञान, श्रद्धा और क्रियारूप) तीन प्रकार की सामायिक मैं करता हूँ ।
सूत्र - २०
बाहरी और अभ्यंतर उपधि तथा भोजन सहित शरीर आदि उन सब भाव को मैं मन, वचन, काया से वोसिराता (त्याग करता) हूँ।
सूत्र २१
इस प्रकार से सभी प्राणी के आरम्भ को, अखिल (झूठ) वचन को, सर्व अदत्तादान चोरी को, मैथुन और परिग्रह का पच्चक्खाण करता हूँ ।
सूत्र - २२
मेरी सभी जीव से मैत्री है। किसी के साथ मुझे वैर नहीं है । वांच्छना का त्याग करके मैं समाधि रखता हूँ
सूत्र - २३
राग को, बन्धन को, द्वेष और हर्ष को, रांकपन को, चपलपन को, भय को, शोक को, रति को, अरति को मैं वोसिराता (त्याग करता) हूँ ।
सूत्र २४
ममता रहितपन में तत्पर होनेवाला मैं ममता का त्याग करता हूँ, और फिर मुझे आत्मा आलम्बनभूत है, दूसरी सभी चीज को वोसिराता हूँ ।
सूत्र - २५
मुझे ज्ञानमें आत्मा, दर्शनमें आत्मा, चारित्रमें आत्मा, पच्चक्खाणमें आत्मा और संजम जोगमें भी आत्मा (आलम्बनरूप) हो ।
सूत्र - २६
जीव अकेला जाता है, यकीनन अकेला उत्पन्न होता है, अकेले को ही मरण प्राप्त होता है, और कर्मरहित होने के बावजूद अकेला ही सिद्ध होता है।
सूत्र - २७
ज्ञान, दर्शन सहित मेरी आत्मा एक शाश्वत है, शेष सभी बाह्य पदार्थ मेरे लिए केवल सम्बन्ध मात्र स्वरूप
वाले हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (आतुरप्रत्याख्यान)" आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद"
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