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सूत्र
आगम सूत्र २५, पयन्नासूत्र-२, 'आतुरप्रत्याख्यान' सूत्र - २८
जिसकी जड़ रिश्ता है ऐसी दुःख की परम्परा इस जीवने पाई, उस के लिए सभी संयोग संबंध को मन, वचन, काया से मैं त्याग करता हूँ। सूत्र - २९
प्रयत्न (प्रमाद) से जो मूलगुण और उत्तरगुण की मैंने आराधना नहीं की है उन सब की मैं निन्दा करता हूँ। भाव की विराधना का प्रतिक्रमण करता हूँ। सूत्र - ३०, ३१
सात भय, आठ मद, चार संज्ञा, तीन गारव, तेत्तीस आशातना, राग, द्वेष की तथा- ... असंयम, अज्ञान, मिथ्यात्व और जीवमें एवं अजीवमें सर्व ममत्व की मैं निन्दा करता हूँ और गर्दा करता हूँ। सूत्र-३२
निन्दा करने के योग्य की मैं निन्दा करता हूँ और जो मेरे लिए गर्दा करने के योग्य है उन (पाप की) गर्दा करता हूँ। सभी अभ्यंतर और बाह्य उपधि का मैं त्याग करता हूँ। सूत्र - ३३
जिस तरह रत्नाधिक के सामने बोलने(कहेने) वाला कार्य या अकार्य को सरलता से कहता है उसी तरह माया मृषावाद को छोड़कर वह पाप को आलोए । सूत्र-३४
ज्ञान, दर्शन, तप और चारित्र उन चारों में अचलायमान, धीर, आगममें कुशल, बताए हुए गुप्त रहस्य को अन्य को नहीं कहनेवाला (ऐसे गुरु के पास से आलोयणा लेनी चाहिए ।) सूत्र-३५
हे भगवन् ! राग से, द्वेष से, अकृतज्ञत्व से और प्रमाद से मैंने जो कुछ भी तुम्हारा अहित किया हो वो मैं मन, वचन, काया से खमाता हूँ। सूत्र-३६
___मरण तीन प्रकार का होता है-बाल मरण, बाल-पंड़ित मरण और पंड़ित मरण, सीर्फ केवली पंड़ित मरण से मृत्यु पाते हैं। सूत्र-३७
___और फिर जो आठ मदवाले, नष्ट हुई हो वैसी बुद्धिवाले और वक्रपन को (माया को) धारण करनेवाले असमाधि से मरते हैं उन्हें निश्चय से आराधक नहीं कहा है। सूत्र-३८
मरण विराधे हए (असमाधि मरण द्वारा) देवता में दुर्गति होती है । सम्यक्त्व पाना दुर्लभ होता है और फिर आनेवाले काल में अनन्त संसार होता है । सूत्र - ३९
देव की दुर्गति कौन-सी ? अबोधि क्या है ? किस लिए (बार-बार) मरण होता है ? किस वजह से जीव अनन्त काल तक घूमता रहता है ? सूत्र - ४०,४१
मरण विराधे हुए कंदर्प (मश्करा) देव, किल्बिषिक देव, चाकर देव, असुर देव और संमोहा (स्थान भ्रष्ट)
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (आतुरप्रत्याख्यान) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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