________________
आगम सूत्र २५, पयन्नासूत्र -२, 'आतुरप्रत्याख्यान'
सूत्र - ५४
दीर्घकाल के अभ्यास बिना अकाल में ( अनशन करनेवाले) वो पुरुष मरण के अवसर पर पहले किए हुए कर्म के योग से पीछे भ्रष्ट होते हैं। (दुर्गति में जाते हैं)।
सूत्र
सूत्र - ५५
उसके लिए राधावेध ( को साधनेवाले पुरुष) की तरह लक्ष्यपूर्वक उद्यमवाले पुरुष मोक्षमार्ग की जिस तरह साधना करते हैं उसी तरह अपने आत्मा को ज्ञानादि गुण के सहित करना चाहिए।
सूत्र - ५६
वह (मरण के) अवसर पर बाह्य (पौद्गलिक) व्यापार रहित, अभ्यन्तर (आत्म स्वरूप ) ध्यान में मग्न, सावधान मनवाला होकर शरीर का त्याग करता है ।
सूत्र - ५७
राग-द्वेष का वध कर के, आठ कर्म के समूह को नष्ट करके, जन्म और मरण समान अरहट्ट को भेदकर तूं संसार से अलग हो जाएगा ।
सूत्र ५८
इस प्रकार से त्रस और स्थावर का कल्याण करनेवाला मोक्ष मार्ग का पार दिलानेवाला, जिनेश्वर ने बताए हुए सर्व उपदेश का मन, वचन, काया से में श्रद्धा करता हूँ।
सूत्र ५९
उस (मरण के) अवसर पर अति समर्थ चित्तवाले से भी बारह अंग समान सर्व श्रुतस्कंध का चिंतन करना कीन नहीं है ।
सूत्र ६०
(इसलिए) वीतराग के मार्ग में जो एक भी पद से मानव बार-बार वैराग पाए उस पद सहित ( उसी पद का चितवन करते हुए) तुम्हें मृत्यु को प्राप्त करना उचित है।
सूत्र - ६१
उस के लिए मरण के अवसर में आराधना के उपयोगवाला जो पुरुष एक श्लोक की भी चिंतवना करता रहे तो वह आराधक होता है ।
सूत्र - ६२
आराधना के उपयोगवाला, सुविहित ( अच्छे आचारवाला) आत्मा अच्छी तरह से (समाधि भाव से) काल करके उत्कृष्ट से तीन भव में मोक्ष पाता है ।
सूत्र ६३
प्रथम तो मैं साधु हूँ, दूसरा सभी चीजमें संयमवाला हूँ (इसलिए ) सब को वोसिराता हूँ, यह संक्षेप में कहा
है
सूत्र - ६४
जिनेश्वर भगवान के आगम में कहा गया अमृत समान और पहले नहीं पानेवाला (आत्मतत्त्व ) मैंने पाया है और शुभ गति का मार्ग ग्रहण किया है इसलिए मैं मरण से नहीं डरता ।
सूत्र - ६५
धीर
पुरुष को भी मरना पड़ता है, कायर पुरुष को भी यकीनन मरना पड़ता है, दोनों को भी निश्चय से
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (आतुरप्रत्याख्यान)" आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद"
Page 10