Book Title: Aagam Manjusha N 43 Uttarjjhayan Nijjutti
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ _ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरूभ्यो नमः On Line - आगममंजूषा उत्तरज्झयणं-निज्जुत्ति * संकलन एवं प्रस्तुतकर्ता * मुनि दीपरत्नसागर M.Com.M.Ed., Ph.D.] Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || किंचित् प्रास्ताविकम् || ये आगम-मंजूषा का संपादन आजसे ७० वर्ष पूर्व अर्थात् वीर संवत २४६८, विक्रम संवत-१९९८, ई.स.1942 के दौरान हुआ था, जिनका संपादन पूज्य आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसरिजी म.सा.ने किया था| आज तक उन्ही के प्रस्थापित-मार्ग की रोशनी में सब अपनी-अपनी दिशाएँ ढूंढते आगे बढ़ रहे हैं। हम ७० साल के बाद आज ई.स.-2012,विक्रम संवत-२०६८,वीर संवत-२५३८ में वो ही आगम-मंजूषा को कुछ उपयोगी परिवर्तनों के साथ इंटरनेट के माध्यम से सर्वथा सर्वप्रथम “ OnLine-आगममंजूषा ” नाम से प्रस्तुत कर रहे हैं। * मूल आगम-मंजूषा के संपादन की किंचित् भिन्नता का स्वीकार * [१]आवश्यक सूत्र-(आगम-४०) में केवल मूल सूत्र नहीं है, मूल सूत्रों के साथ नियुक्ति भी सामिल की गई है। [२]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) में भी केवल मूल सूत्र नहीं है, मूलसूत्रों के साथ भाष्य भी सामिल किया है। [३]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) का वैकल्पिक सूत्र जो “पंचकल्प” है, उनके भाष्य को यहाँ सामिल किया गया tic [४] “ओघनियुक्ति”-(आगम-४१) के वैकल्पिक आगम “पिंडनियुक्ति” को यहाँ समाविष्ट तो किया है, लेकिन उनका मुद्रण-स्थान बदल गया है। [५] “कल्प(बारसा)सूत्र” को भी मूल आगममंजूषा में सामिल किया गया है। -मुनि दीपरत्नसागर मुनि दीपरतसागर : Address: Mnui Deepratnasagar, MangalDeep society, Opp.DholeshwarMandir, POST:- THANGADH Dist.surendranagar. Mobile:-9825967397 jainmunideepratnasagar@gmail.com Online-आगममंजूषा Date:-12/11/2012 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९३५२ श्रीउत्तराध्ययननिर्युक्तिः- कयपवयणप्पणामो वुच्छं धम्माणुओगसंगहिअं । उत्तरझयणाणुओगं गुरुवएसाणुसारेण ॥ १ ॥ प्र०॥ नामं ठवणा दविए खित्त दिसा तावखित्त पन्नवए । पइकालसंचयपहाणनाणकमगणणओ भावे ॥ १ ॥ जहणं सुत्तरं खलु उक्कोसं वा अणुत्तरं होइ। सेसाई उत्तराई अणुत्तराई च नेयाणि ॥ २ ॥ कमउत्तरेण पगयं आयारस्सेव उवरिमाइं तु । तम्हा उ उत्तरा खलु अज्झयणा हंति णायव्वा ॥ ३ ॥ अंगप्पभवा जिणभासिया य पत्तेयबुद्धसंवाया। बंधे मुक्खे य कया छत्तीसं उत्तरज्झयणा ॥ ४ ॥ नामं ठवणज्झयणे दव्यज्झयणे य भावअज्झयणे। एमेव य अज्झीणे आय ज्झवणेऽविय तहे ॥ ५ ॥ अज्झप्पस्साणयणं कम्माणं अवचओ उवचियाणं । अणुवचओ व णवाणं तम्हा अज्झयणमिच्छति ॥ ६ ॥ अहिगम्मंति व अत्था अणेण अहियं व णयणमिच्छंति। अहियं व साहु गच्छइ तम्हा अज्झयणमिच्छति ॥७॥ जह दीवा दीवसयं पइप्पए सो य दीप्पए दीवो। दीवसमा आयरिया अप्पं च परं च दीवंति ॥ ८ ॥ भावे पत्थमियरो नाणाई कोहमाइओ कमसो आउत्ति आगमुत्ति य लाभुत्ति य हुंति एगट्ठा ॥ ९ ॥ पछत्थिया अपत्था तत्तो उप्पिट्टणा अपत्थयरी। निप्पीलणा अपत्था तिनि अपत्थाई पुत्नीए ॥ १० ॥ अडविहं कम्मरयं पोराणं जं खवेइ जोगेहिं एवं भावज्झयणं णेयव्वं आणुपुथ्वी ॥ ११ ॥ सुयखंधे निक्खेवं णामाइ चउध्विहं परुवेडं णामाणि य अहिगारे अज्झयणाणं पवक्खामि ॥ १२ ॥ विणयसुयं १ च परीसह २ चउरंगिजं३ असंखयं ४ चेव । अकाममरणं५ नियंठि६ ओरम्भं ७ काविलिनं८ च ॥ १३ ॥ णमिपव्वज्ज९ दुमपत्तयं १० च बहुसुयपुलं ११ तहेव हरिएसं १२ । चिनसंभूह १३ उसुआरिजं १४ सभिक्खु १५ समाहिठाणं १६ च ॥ १४ ॥ पावसमणिजं १७ तह संजइज १८ मियचारिया १९ नियंठिज २० । समुहपालिनं २१ रहनेमियं २२ केसिगोयमिज्जं २३ च ॥ १५ ॥ समिइओ २४ जन्नइज २५ सामायारी २६ तहा खलुकिज २७ । मुक्खगइ२८ अप्पमाओ२९ तव३० चरण३१ पमायठाणं ३ २ च ॥ १६ ॥ कम्मप्पयडी३३ लेसा३४ बोढच्चे खलु णगारमग्गे३५ य। जीवाजीवविभत्ती ३६ छत्तीसं उत्तरज्झयणा ॥ १७ ॥ पढमे विणओ बीए परीसदा दुउहंगया तइए। अहिगारो य चउत्थे होइ पमायप्पमाएति ॥ १८ ॥ मरणविभत्ती पुण पंचमम्मि विज्जा चरणं च छट्ठअज्झयणे रसगेहिपरिचाओ सत्तमे अमि अलोभे ॥ १९ ॥ निकंपया य नवमे दसमे अणुसासणोवमा भणिया । इकारसमे पृया तवरिद्धी चैव बारसमे ॥ २० ॥ तेरसमे अ नियाणं अनियाणं चैव होइ चउदसमे । भिक्खुगुणा पन्नरसे सोलसमे बंभगुत्तीओ ॥ २१ ॥ पावाण वज्रणा खलु सत्तरसि भोगिडिविजहणऽद्वारे। एगुणि अप्परिकम्मे अणाहया चेव बीसइमे ॥ २२ ॥ चरिया य विचित्ता इकवीसि बावीसिमे थिरं चरणं । तेवीसइमे धम्मो चउवीसहमे य समिईओ ॥ २३ ॥ बंभगुण पनवीमे मामायारी य होइ छब्बीसे । सत्तावीस असढया अट्ठावीसे य मुक्खगई ॥ २४ ॥ एगुणतीस आवस्सगपमाओ तवो अ होइ तीसइमे चरणं च इकतीसे बत्तीसि पमाइठाणाई ॥ २५ ॥ तेत्तीसइमे कम्मं च. उतीसहमे यहुति लेसाओ। भिक्खुगुणा पणतीसे जीवाजीवा य छत्तीसे ॥ २६ ॥ उत्तरायणाणेसो पिंडत्थो वण्णिओ समासेणं इत्तो इकिकं पुण अज्झयणं कित्तइस्सामि ॥ २७ ॥ तत्थ१३५३ श्री उत्तराध्ययननियुक्ति मुनि दीपरत्नसागर Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९३५३ ज्झयणं पढमं विणयसुयं तस्वकमाईणि दाराणि पनवेउं अहिगारो इत्थ विणणं ॥ २८ ॥ विणओ पुष्वुदिट्ठो सुयस्स चउक्कओ उ निक्खेवो। दव्वसुय निण्हगाई भावसुय सुए उ उवउत्तो ॥ २९ ॥ संजोगे निक्खेवो छक्को दुविहो उ दब्वसंजोगे। संजुत्तगसंजोगो नायव्वियरेयरो चेव ॥ ३० ॥ संजुत्तगसंजोगो सचित्तादीण होइ दव्वाणं । दुममणुसुवण्णमाई संतइकम्मेण जीवस्स ॥ ३१ ॥ मूले कंदे खंधे तयाय साले पवालपत्तेहिं । पुप्फफले बीएहि अ संजुत्तो होइ दुममाई ॥ ३२ ॥ एगरस एगवण्णे एगेगंधे तहा दुफासे य। परमाणु खंधेहि अ दुपएसाईहि" णायबो ॥ ३३ ॥ जह धाऊ कणगाई सभावसंजोगसंजुया हुंति। इअ संतइकम्मेणं अणाइसंजुत्तओ जीवो ॥ ३४ ॥ इयरेयरसंजोगो परमाणूणं तहा पएसाणं । अभिषेयमणभिपेओ अभिलावो चैव संबंधी ॥ ३५ ॥ दुविहो परमाणूर्ण हवइ य संठाणखंधओ चेच। संठाणे पंचविहो दुविहो पुण होइ खंधेसुं ॥ ३६ ॥ परमाणुपुग्गला खलु दुझि व बहुगा य संहता संता निव्वत्तयंति खंधं तं संठाणं अणित्थत्थं ॥ ३७ ॥ परिमंडले य बट्टे तंसे चउरंसमायए चेव । घणपयर पढमवजं ओयपएसे य जुम्मे य ॥ ३८ ॥ पंचग बारसगं खलु सत्तग वत्तीसगं तु वहम्मि। तिय छक्कग पणतीसा चत्तारिय हुति संमि ॥ ३९ ॥ नव चैव तहा चउरो सत्तावीसा य अट्ठ चउरंसे । तिगदुगपन्नरसेऽविय छच्चैव य आयए हुति ॥ ४० ॥ पणयालीसा बारस छन्भेया आययंमि संठाणे वीसा चत्तालीसा परिमंडलि हुंति संठाणे ॥ ४१ ॥ धम्माइपएसाणं पंचण्ड उ जो पएससंजोगो । विष्ह पुण अणाईओ साईओ होति दुष्टं तु ॥ ४२ ॥ अभिपेयमणभिपेओ पंचसु बिसएस होइ नायव्वो । अणुलोमोऽभिप्पेओ अणभिप्पेओ अ पडिलोमो ॥ ४३ ॥ सव्वा ओसहजत्ती गंधजुत्ती य भोयणविही य। रागविहि गीयवाइयविही अभिप्पेयमणुलोमो ॥ ४४ ॥ अभिलावे संजोगो दव्वे खित्ते अकाल भावे य । दुगसंजोगाईओ अक्खरसंजोगमाईओ ॥ ४५॥ संबंधणसंजोगो सावित्ताचित्तमीसओ चैव। दुपयाइ हिरण्णाई रहतुरगाई अ बहुहा उ ॥ ४६ ॥ खेत्ते काले या तहा दुण्डवि दुविहो य होइ संजोगो । भावंमि होइ दुविहो आएसे चेवणारसे ॥ ४७॥ आदिद्वो आएसंमि बहुविहे सरिसनाणचरणगए। सामित्तपञ्चयामि चेव किंचित्तओ वृच्छं ॥ २५० ॥ ओदइअ ओवसमिए खइए य तद्दा खओवसमिए य। परिणाम सन्निवाए उत्रिहो होअणाएसो ॥४८॥ आएसो पुण दुविहो अप्पिअ ववहारऽणप्पिज चेव । इक्किको पुण तिविहो अत्ताण परे तदुभए य ॥ ४९॥ ओवसमिए य खइए खओवसमिए य पारिणामे अ। एसो चउष्विहो खलु नायव्वो अत्तसंजोगो ॥५०॥ जो सन्निवाइओ खलु भावो उदएण वज्जिओ होइ। इकारससंजोगो एसोडविय अत्तसंजोगो ॥५१॥ लेसा कसाय वेयण वेज अन्नाण मिच्छ मीसं च जावइया ओदइया सब्बो सो बाहिरो जोगो ॥५२॥ जो सन्निवाइओ खलु भावो उदएण मीसिओ होइ। पन्नारससंजोगो सव्वो सो मीसिओ जोगो ॥५३॥ बीओऽवि य आएसो अत्ताणे बाहिरे तदुभए य। संजोगो खलु भणिओ तं कित्तेऽहं समासे ॥५४॥ ओदइय ओवसमिए खइए य तहा खओवसमिए । परिणामसन्निवाए अ छथ्विहो अत्तसंजोगो ॥ ५५ ॥ नामंमि अ खित्तंमि अ नायब्बो बाहिरो य ( उ ) संजोगो । काले बाहिरो खलु मीसोऽवि य तदुभए होइ ॥ ५६ ॥ आयरिय सीस पुत्तो पिया य जणणी य होइ धूया य भज्जा पइ सीउन्हं तमुज्ज छायाऽऽयवे चैव ॥ ५७ ॥ आयरिओ तारिसओ जारिसओ नवरि हुज्ज सो चेव आयरियस्सवि सीसो सरिसो सव्येहिवि गुणेहिं ॥ ५८ ॥ एवं नाणे चरणे सामित्ते अप्पणो उ (य) पिउणोत्ति मज्झं कुलेऽयमस्स य अहयं अग्भितरो मित्ति ॥५९॥ पञ्चयओ य बहुविहो निश्चित्ती पञ्चओ जिणस्सेव देहाय बद्धमुका माइपिइआइ अ हवंति ॥ ६० ॥ संबंधणसंजोगो कसायबहुलस्स होइ जीवस्स पहुणो वा अपहुस्स व मज्झति ममजमाणस्स ॥ ६१ ॥ संबंधणसंजोगो संसाराओ अणुत्तरणवासो। तं छिन्तु विष्पमुका साहू मुका तओ तेणं ॥ ६२ ॥ संबंधणसंजोगे खित्ताईणं विभास जा भणिया। खित्ताइसु संजोगो सो चेव विभासिअम्रो अ (उ) ॥६३॥ गंडी गली मराली अस्से गोणे याहुति एगडा | आइने य विणीए य भदए वावि एगट्ठा ॥६४॥ अध्य० १। णासो परीसहाणं चउधिहो दुडिहो य (उ) दवंमि। आगमनोआगमतो नोआगमओ य सो तिविहो ॥६५॥ जाणगसरीर भविए तव्यइरित्ते य से भवे दुबिहे । कम्मे नोकम्मे या कम्मंमि य अणुदओ भणिओ ॥ ६६ ॥ णोकम्मंमि य तिविहो सचित्ताचित्तमीसओ चेव । भावे कम्मस्सुदओ तस्स उ दाराणिमे हुंति ॥ ६७ ॥ कनो१ कस्सर व दब्बे३ समोआर४ अहिआस५ नए६ य वत्तणा७ कालो८ । खित्तु९ से १० पुच्छा ११ निद्देसे १२ सुत्तकासे १३ य ॥ ६८ ॥ कम्मप्पवायपुव्वे सत्तरसे पाहुडंमि जं सुत्तं । सणयं सोदाहरणं तं चैव इहंपि णायव्यं ॥ ६९ ॥ तिपि णेगमणओ परीसहो जाव उज्जुमुत्ताओ। तिष्टं सद्दणयाणं परीसहो संजए होइ ॥ ७० ॥ पढमंमि अट्ट भंगा संगहि जीवो व अहव नोजीवो। ववहारे नोजीवो जीवदव्वं तु सेसाणं ॥७१॥ समोयारो खलु दुविहो पयडीपुरिसेसु होइ नायब्बो । एएसं नाणत्तं वृच्छामि अहाणुपुब्बीए ॥७२॥ णाणावरणे ए मोहम य अंतराइए चैव। एए बावीसं परीसहा हुंति णायवा ॥ ७३ ॥ पन्नाऽमाणपरिसहा णाणावरणमि हुति दुन्नेए। इको य अंतराये अलाभपरीसहो होइ ॥ ७४॥ अरई अचेल इत्थी निसीहिया जायणा य अकोसे सकारपुरकारे चरितमोहंमि सत्तेए ॥ ७५ ॥ अरईइ दुगुंछाए पुंवेय भयस्स चेव माणस्स । कोहस्स य लोहस्स य उदएण परीसहा सत्त ॥ ७६ ॥ दंसणमोहे दंसणपरीसहो नियमसो भवे इको सेसा परीसहा खल इकारस वेयणीजंमि ॥ ७७ ॥ पंचेव आणुपुब्बी चरिया सिजा बहेव (य) रोगे य तणफासजाउमेव य इकारस वेयणीजंमि ॥ ७८ ॥ बावीसं १३५४ श्री उत्तराध्ययन निर्युक्ति 1 1 मुनि दीपरत्नसागर Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३५४ 1 1 बायरसंपराए चउदस य सुहूमरागंमि छउमत्थवीयराए चउदस इक्कारस जिर्णमि ॥ ७९ ॥ एसणमणेसणीजं तिन्हं अग्गहणऽभोयण नयाणं । अहिआसण बोद्धव्या फाय सदुज्जुसुत्ताणं ॥८०॥ जं पुष्प नेगमनओ परीसहो वेयणा य दुण्हं तु । वेयण पहुच्च जीवे उज्जुसुओं सदस्स पुण आया ॥ ८१ ॥ वीसं उक्कोसपए बहंति जहन्नओ हवइ एगो सीओसिण चरियनिसीहिया य जुगवं न वर्हति ॥ ८२ ॥ वासग्गसो अ तिन्हं मुहुत्तमंतं च होइ उज्जुसुए सदस्स एगसमयं परीसहो होइ नायडो ॥ ८३ ॥ कंडू अभत्तच्छंदो अच्छीणं वेयणा तहा कुच्छी । कासं सासं चजरं अहिआसे सत्त वाससए ॥ ८४॥ लोए संथारम्मि य परीसहा जाव उज्जुसुत्ताओ। तिण्डं सद्दनयाणं परीसहा होन्ति अत्ताणे ॥ ८५॥ उद्देसो गुरुवयणं पुच्छा सीसस्स उ मुणेयवा। निद्देमो पुणिमेख बावीस सुत्तफासे य ॥ ८६ ॥ कुमारए१ नई २ लेणे३, सिला४ पंथे५ महउए६ । तावस ७ पडिमा सीसे९. अगणि १० निवेअ११ मुग्गरे १२ ॥८७॥ वणे १३ रामे १४ पुरे १५ भिक्खे १६. संथारे १७ मावधारणं १८ । अंगविज्जा १९ सुए२० भोमे २१, सीसस्सागमणे २२ इय ॥ ८८ ॥ उज्जेणी हत्थिमित्तो भोगपुरे हत्यिभूइखुट्टझे अ अडवीइ वेयणट्टो पाओगओ य सादिवं ॥ ८९ ॥ उज्जेणी धणमित्नो पुत्तो से खुट्टओ अ धणसम्मो । तण्हाइतोऽपीओ कालगओ एलगच्छपहे ॥ ९० ॥ रायगिहंमि वयंसा सीसा चउरो उ भदबाहुस्स । वैभारगिरिगुहाए सीयपरिगया समाहिगया ॥ ९१ ॥ तगराइ अरिहमित्तो दत्तो अरहनओ य भद्दा य । वणियमहिलं चइत्ता तत्तंमि सिलायले विहरे ॥९२॥ चंपाएँ सुमणुभदो जुबराया धम्मघोससीसो य। पंथंमि मसगपरिपीयसोणिओ सोऽवि कालगओ ॥ ९३ ॥ वीयभय देवदत्ता गंधारं सावयं पडियरित्ता लहइ सयं गुलियाणं पज्जोएणणी ( णाणि) ओजेणि ॥ ९४ ॥ दहूण चेडिमरणं पभावई पवइत्तू कालगया। पुक्खरकरणं गहणं दसउर पज्जोय मुयणं च ॥ ९५ ॥ माया य रुहसोमा पिया य नामेण सोमदेवत्ति । भाया य फग्गुरक्खिय तोसलिषुत्ता य आयरिया ॥ ९६ ॥ सिंहगिरि भदगुत्ते वयरक्खमणा पढित्तु पृष्ठगयं । पञ्चाविओ य भाया रक्खियखमणेहिं जणओ य ॥ ९७ ॥ अयलपुरे जुबराया सीसो राहस्स नगरिमुजेणिं । अज्जा राहखमणा पुरोहिए रायपुत्तो य ॥ ९८ ॥ कोसं बीए सिट्टी आसी नामेण तावसो तहियं मरिऊण सूयरोरग जाओ पुत्तस्स पुत्तोत्ति ॥ ९९ ॥ उसभपुरं रायगिहं पाडलिपुत्तस्स होइ उप्पत्ती नंदे सगडाले थूलभद सिरिए वरकई य ॥ १०० ॥ तिन्हं अणगाराणं अभिग्गहो आसि चउन्ह मासाणं वसहीमित्तनिमित्तं को कहि वृत्थो ? निसामेह ॥ १०१ ॥ गणियाघरम्मि इक्को वुत्थो बीओ उ वग्घवसहीए सप्पबसहीए तइओ को दुक्करकारओ इत्थं ? ॥ १०२ ॥ वग्घो वा सप्पा वा सरीरपीडाकरा उ भइया नाणं व दंसणं वा चरितं (यं) व न पञ्चला भित्तुं ॥ १०३ ॥ भयवपि थूलभदो तिक्खे चकम्मिओ न उण छिन्नो। अग्गिसिहाए वृत्थो चाउम्मासे न उण दुड्डो ॥ १०४ ॥ अन्नोऽवि य अणगारो भणमाणोऽहंपि थूलभद्दसमो। कंबलओ चंदणयाइ मइलिओ एगराईए ॥१०५॥ कोयरे वत्थो दत्ता सीसो अ हिंडओ तस्स । उवहरइ धाइपिंडं अंगुलिजलणा य सादियं ॥ १०६ ॥ निक्खतो गयउराओ कुरुदत्तसुओ गओ य साकेयं । पडिमाठियस्स कुडिया अग्गि सीसंमि जालिति ॥ १०७ ॥ कोसंबी जण्णदत्तो सोमदत्तो य सोमदेवो य आयरिय सोमभूई दुव्हंपि य होइ गायत्रं ॥ १०८ ॥ सन्नाइगमण वियर्ड वेरग्गा दोवि ते नईतीरे । पाजवगया नइपूरएण उदहिं तु उवणीया ॥ १०९ ॥ रायगहि मालगारो अज्जुणओ तस्स भज्ज खंदसिरी । मुग्गरपाणी गोट्टी सुदंसणो वंदओ णीइ ॥ ११० ॥ सावत्थी जियसत्तू धारणि देवी य खंदओ पुत्ती । धूआ पुरंदरजसा दत्ता सा दंडईरण्णो ॥ १११ ॥ मुणिसुवयंतेवासी खंदगपमुहा य कुंभकारकडे देवी पुरंदरजसा दंडइ पालग मरूप य ॥ ११२ ॥ पंच सया जंतेणं वहिआ उ पुरोहिण रुद्वेणं रागहोसतुलग्गं समकरणं चिंतयंतेहिं ॥ ११३ ॥ जायणपरीसहंमी बलदेवो इत्थ होइ आहरणं । किसिपारासरढंढो अलाभए होइ आहरणं ॥ ११४ ॥ महुराइ कालवेसिय जंबुय अहिउत्थ मुग्गलपुरं गया पडिसेहेई जंव्यरूपेण उवसग्गं ॥ ११५ ॥ सावत्थीइ कुमारो भहो सो चारिओति वेरजे । खारेण तच्छियंगो तणफासपरीसहं विसहे ॥ ११६ ॥ चंपाएँ सुनंदो नाम सावओ जाड़धावणदुर्गृछी। कोसंबीइ दुगंधी उप्पण्णो तस्स सादिवं ॥११७॥ महुराइ इंददत्तो पुरोहिओ साहुसेवओ सिट्ठी । पासायविज्ञ पाडण पायच्छिज्जेंदकीले य ॥ ११८ ॥ उज्ज्ञेणी कालखमणा सागरस्वमणा सुवण्णभूमीए इंदो आउयसेसं पुच्छइ सादिकरणं च ॥ ११९ ॥ परिततो वायणाए गंगाकूले पिया असगडाए । संवच्छरेहऽहिजइ बारसहि असंख्यज्झयणं ॥ १२० ॥ इमं एरिमं तं च तारिसं पिच्छ केरिसं जायं ? इय भणइ थूलभदो सन्नाइघरं गज संतो ॥ १२१ ॥ ओहाविउकामोऽविय अज्जासाढो उपणीयभूमीए काऊण रायरूवं पच्छा सीमेण अणुसिहो ॥१२२॥ जेण भिक्खं बलिं देमि, जेण पोसेमि नायए। सा मे मही अक्कमइ, जायं सरणओ भयं ॥ १२३ ॥ बहुस्सुयं चित्तकहं, गंगा वहइ पाडलें । वुज्झमाणग! भहं ते, लवता किंचि सुहासिय ॥ १२४ ॥ जेण रोहंति बीयाणि, जेण जीयंति कासया । तस्स मज्झे विवज्जामि, जा० ॥ १२५॥ जमहं दिया य राओ य, तप्पेमि महसप्पिसा । तेण मे उडओ दड्ढो, जा० ॥ १२६ ॥ वग्घस्स मइ भीएणं, पावगो सरणं कओ । तेण दङ्कं ममं अंगं, जा० ॥ १२७ ॥ लंघणपवणसमत्थो पुत्रिं होऊण संपई कीस ? दंडयगहियग्गहत्थो वयंस! को नामओ वाही ? ॥ १२८ ॥ जिट्टासाढेस मासु, जो सुहो वाह मारुओ। तेण मे भज्जए अंगं, जा० ॥ १२९॥ जेण जीवति सत्ताणि, निरोहंमि अनंतए । तेण मे भज्जए अंगं, जा० ॥ १३०॥ जाव वृच्छं सुहं वृच्छं, पादवे निरुवदवे । १३५५ श्री उत्तराध्ययन निर्युक्ति मुनि दीपरत्नसागर Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलाउ उट्टिया वाडी, जा० ॥१३१॥ अम्भितरया खुभिया. पिउंति य बाहिरा जणा। दिसं भयह मायंगा!, जा० ॥१३२॥ जत्य राया सयं चोरो, भंडिओ य पुरोहिओ। दिसं भयह नायग्या!, जा० ॥१३३॥ अइगयए य सलिए, चेइयथूभगए य वायसे । भित्तीगयए य आयये, सहि ! मुहिओ हु जणो न बुज्झइ ॥१३४॥ तुम एव य अम्म हे ! लवे. मा हु विमाणय जक्वमागयं । जक्खाहइए हु तायए, अनि दाणि विमग्ग ताययं ॥१३५॥ नवमास कुच्छीइ धालिया, पासवणे पुलिशे य महिए।धूयाए गेहिए हडे, सलणए असलणए य मे जायए॥१३६।। सयमेव य लक्व लोविया, अप्पणिआ य वियदि खाणिया। ओवाइयलओ य सि, किं छेला! बेवेत्ति वाससी? ॥१३७॥ कड़ए ते कुंडले य ते, अंजियक्वि ! तिलयते य ते। पवयणस्स उद्वाहकारिए, दुद्दा महि ! कतोऽमि आगया?॥१३८॥राईसरिसवमित्ताणि, परछिदाणि पाससि । अप्पणो बिमित्ताणि, पासंतोऽविन पाससि ॥१३९|| समणोऽसि संजओ असि. बंभयारी ममलेटुकंचणो । हाग्यिवाअओय ने, जिट्टज ! कि ते पडिग्गहे ? ॥१४॥२ अाणामंठवणादविए माउयपय संगहिकए चेव। पजव भावे य तहा सत्तेए इकगा हुंति ॥१४॥णामं ठवणा दविए खिने काले य गणण भावे या निक्वेवो य चउहं गणणसंखाइ अहिगारो॥१४२॥ णामंगं ठवणंग दव्वंग चेव होइ भावंग। एसो खल अंगस्सा णिक्वेवो चउविहो होइ॥१४३॥ गंधगमोसहंग मज्जाउजसरीरजुदंर्ग। एनो इकिफपि य णेगविहं होइ णायव्यं ॥१४४॥ जमदग्गिजड़ा हरेणुअ सबरनियंसणिय सपिण्णायं। रुक्खस्म य बाहिरा तया मडियवासिय कोडि अग्धइ ॥१४५॥ ओमीरहरिवंगणं पलं पलं भहदारुणो करिसो। सयपुष्फाणं भागो भागो य तमालपत्तस्स॥१४६॥ एयं ण्हाणं एवं विलेवणं एस चेव पडवासो। बासवदत्ताइ कओ उदयणमभिधारयंतीए ॥१४॥ दुन्नि य ग्यणी माहिंदफलं च तिण्णि य समूसणंगाई। सरसं च कणयमूलं एसा उदमट्ठमा गुलिआ॥१४८।। एसा उंहरइ कंटुं तिमिरं अवहेडयं सिरोगेगं। तेइज्जग. चाउन्धिग मूमगमप्पावरद्धं च ॥१४९॥ मोलस दक्या भागा चउरो भागा य धाउगीपुष्फे । आढगमो उच्छुरसे मागहमाणेण मजंग ॥१५०॥ एग मुगुंदा तरं एग अहिमाझदास्यं अम्गी। एगं सामलीपंडं बद्धं आमेलओ होइ ॥१५१॥ मीसं उगे य उदरं पिट्टी बाहा य दुनि ऊरू य। एए खलू अटुंगा अंगोवंगाई मेसाई॥१५२॥ जाणावरण पहरणे जदे कुसलनणं च नीइ । दक्वनं ववसाओ सरीरमागेग्गया चेव ॥१५३॥ भावंगपि य दुविहं सुअमंग चेव नोसुयंगं च । सुयमंगं बारसहा चउविहं नोसुअंगं च ॥१५४॥ माणुस्सं धम्मसुई सद्धा नवसंजमंमि विरियं च। एए भावंगा खलु दुलभगा हुंति संसारे॥१५५॥ अंग दस भाग भेा अवयवा सगल चुण्ण खंडे अ। देस पएसे पधे साह पडल पजव खिले अ॥१५६॥ दया य संजमे लजा, दुगुल्छाऽछत्रणा इअ। तितिक्खा य अहिंसा य, हिरि एगट्ठिया पया॥१५७॥ माणुस्स खित्त जाई कुल रूवारोग आउयं बुद्धी। सवणुग्गह सद्धा संजमो अलोगंमि दुलाहाई ॥१५८॥ चुालग पासग घने जुए ग्यणे असुमिण चके या चम्म जुगे परमाणू दस दिटुंता मणुअलंभे॥१५९॥ आलस्स मोहऽवना थंभा कोहा पमाय किविणत्ता। भय सोगा अनाणा वक्खेव कुऊहला रमणा ॥१६॥ | एएहिं कारणेहि लदण सुदाईपि माणुस । न लहइ सुई हिअकारि संसारुत्तारिणि जीवो ॥१६१॥ मिच्छादिट्ठी जीवो उवह परयणं न सहहइ । सदहइ असम्भावं उवढं वा अणुवइ8 ॥१६२॥ सम्मदिट्टी जीवो उवइट्ट पक्यणं तु सद्दहइ। सहहइ असम्भावं अणभोगा गुरुनिओगा वा ॥१६३॥ बहुरयपएसअवत्तसमुच्छ दुगतिगअबद्धिगा चेव। एएसि निग्गमणं वुच्छामि अहाणपत्रीए ॥ १६४ ॥ बहुरय जमालिपभवा जीवपएसा य तीसगुत्ताओ। आत्ताऽऽसाढाओ सामुच्छेयाऽऽसमित्ताओ ॥१६५॥ गंगाओ दोकिरिया छलुगा तेरासिआण उप्पत्ती। थेग य गुट्टमाहिल, पुट्टमबद्ध परूविति॥१६६॥ जिट्ठा सुदंसण जमालि अणुज सावस्थि तिंदग़जाणे। पंच सया य सहस्सं ढंकेण जमालि मनणं ॥१६७॥ गयगिहे गणसिलए वमु चउ. दमपव्यि तीसगुत्ताओ। आमलकप्पा नयरी मित्तसिरी कूरपिंडादि ॥१६८॥ सियवियपोलासाढे जोगे तदिवसहिययसले य। सोहम्मि नलिणगुम्मे रायगिहे पुरि य बलभाहे ॥१६९॥ मिहिलाए लापिडघरे महगिरि कोडिन आसमित्तो आणेउणमणप्पवाए रायगिहे खंडरक्खा य॥१७०॥ नइखेडजणच उलग महगिरि घणगत अजगंगे या किरिया दो रायगिहे महातवोतीर म. णिनाए ॥१७१॥ पुरिमंतरंजि भुयगुह बलसिरि सिरिगुत्त रोहगुत्ते या परिवाय पुट्टसाले घोसण पडिसेहणा वाए ॥१७२॥ विच्छ्य सप्पे मूसग मिगी वराही य कागि पोयाई। एयाहिं विजाहिं मा उ परिवायगो कसलो॥१७३॥ मोरिय नउलि विराली वग्घी सीही य उलगि ओवाई। एयाओ विजाओ गिव्ह परियायमहणीओ॥१७॥दसपुरनगरुच्छुघरे अजरक्खिय पुसमिननियगं च। गुट्टामाहिल, नव अट्ठ सेसपुच्छा य विझस्म ॥१७५॥ पुट्टो जहा अबद्धो कंचुइणं कंचुओ समोइ । एवं पुट्टमवदं जीवं कम्मं समोड़ ॥१७६॥ पञ्चक्खाणं मेयं अपरिमाणेण होइ का. यञ्च । जेसिं तु परीमाणं तंदुझु होइ आसंसा॥१७॥ रहवीरपुरं नयरं दीवगमुजाण अज्जकण्हे अ। सिवभूइस्सुवहिमि पुच्छा थेराण कहणा य॥१७८॥ अ०३॥ नामंठवणपमाओ दधे भावे अ हाइ नायबो । एमेव अप्पमाओ चउनिहो होइ नायबो॥१७९॥ मज बिसय कसाया निहा विगहा य पंचमी भणिया। इय पंचविहो एसो होइ पमाओ य अपमाओ॥१८०॥ पंचविहो अ पमाओ इहमायणमि अप्पमाओ या वणिजए उ जम्हा तेण पमायप्पमायंति॥१८१॥ उत्तरकरणेण कयं जं किंची संखयं तु नायव्यं । सेसं असंखयं खलु असंखयस्सेस निजुत्ती॥१८२॥ ९३५५ 12 श्री उत्तराध्ययन नियुक्ति मुनि दीपरत्नसागर AS Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । नामंठवणादविए खिने काले तहेव भावे य । एसो खलु करणंमी णिक्वेवो छविहो होइ ॥१८३॥ दव्वकरणं तु दुविहं सन्नाकरणं व नो य समाए। कडकरणमट्टकरणं वेलूकरणं च सत्राए॥१८४॥ नोसन्नाकरणं पुण पओगसा वीससा य बोद्धव्यं । साईअमणाईअंदुविहं पुण विस्ससाकरणं ॥१८५॥धम्माधम्मागासा एवं तिविहं भवे अणाईयं। चक्मअचक्खुप्फासे एय दुविहं तु साईयं॥१८६॥खंधेसुअ दुपएसाइएसु अब्भेसु अब्भरुक्वेसुं । णिप्फण्णगाणि दवाणि जाणि तं वीससाकरणं ॥१८७॥ दुविहं पओगकरणं जीवेतर मूल उत्तरं जीवे । मूले पंच सरीरा तिमु अंगोवंगणामं च ॥१८८॥ सीसमुरोयरपिट्टी दोनि वाहू अहुँति ऊरू । एए अटुंगा खलु अंगोवंगाई सेसाई॥१८९॥ हुँति उर्वगा कण्णा नासऽच्छी जंघ हत्थ पाया य। अंगोवंगा अंगलिनहकेमामंसु एमाई॥१९॥तेसिं उत्तरकरणं बोदव्वं कण्णखंधमाईयं। इंदियकरणा ताणिय उवघायविसोहिओ ९ति ॥१९१॥ संघायणपरिसाढणउभयं तिसु दोसु नत्यि संघा. ओ। कालंतराइ निण्डं जहेव सुत्तमि निदिहूँ ॥ १५२॥ इत्तो उत्तरकरणं सरीरकरणं पओगनिष्फनं । तं भेयाऽणेगविहं चउचिहमिणं समासेणं ॥ १९३॥ संघायणा य परिसाडणा य मीसे तहेव पडिसेहो। पडसंखसगथूणा उतिरिच्छाण करणं च ॥१९४|| अजियप्पओगकरणं दब्वे वण्णाइयाण पंचण्हं । चित्तकर(ण) कुसुभाईसु विभासा उ सेसाणं ॥१९५॥ण विणा आगासेणं कीरइज किंचि खित्तमागास । वंजणपरिआवनं उच्छ्रकरणमाइअंबहुहा ॥१९६॥ कालो जोजावइओ जं कीरइ जंमि जंमि कालंमि। ओहेण नामओ पुण हवंति इकारमकरणा ॥१९॥ बबं च बालवं चेच. कोलवं थीविलोअणं । गराइ वणियं चेव, विट्टी हवइ सत्तमी ॥ १९८॥ सउणि चउप्पयं नागं, किसुग्धं करणं तहा। एए चत्तारि धुवा, सेसा करणा चला सत्त ॥१५॥ किण्हचउद्दसि रनि सउर्णि पडिवजए सया करणं । इत्तो अहक्कम खलु चउप्पयं नाग किंग्धं ॥२०॥ भावकरणं तु दुविहं जीवाजीवेसु होइ नायचं । तत्थ उ अजीवकरणं तं पंचविहंतु नायचं ॥२०१॥ वण्णरसगंधफासे संठाणे चेव होइ नायव्वं । पंचविहं पंचविहं दुविहऽट्टविहं च पंचविहं ॥२०२॥ जीवकरणं तु दुविहं सुयकरणं चेव नो य सुयकरणं । बदमबद्धं च सुअंनिसीहमनिमीबदं तु ॥२०३॥ नोसुयकरणं दुविहं गुणकरणं तह य जुंजणाकरणं । गुण तवसंजमजोगा जुंजण मणवायकाए य॥२०४॥ कम्मगसरीरकरणं आउअकरणं असंखयं तं तु । तेणऽ हिगारो तम्हा उ अप्पमाओ चरितमि ॥२०५॥ दुविहो य होइ दीवो दव्वदीयो य भावदीवो य । इविकोऽविअ दुविहो आसासपगासदीवो अ॥२०६॥ मंदीणमसंदीणो संधिअमस्मंधिए अ बोहव्वे। आसासपगासे अ भावे दुविहो पुणिविको॥२०७॥अ०४॥ कामाण उ णिक्खेवो चउब्बिहो छविहो यमरणस्स । कामा पुवुद्दिट्ठा पगयमभिप्पेयकामेहिं ॥२०८॥ दबमरणं कुसुभाइएस भावि आउम्पओ मुणेयब्बो। ओहे भवतभविए मणुस्सभविएण अहिगारो॥२०९॥ मरणविभत्तिपरुवण अणुभावो चेव तह पएसगं । कइ मरइ एगसमयं ? कइखुनो बावि इकिके ?॥२१०॥ मरणमि इक्कमिके कइभागो मरइ सहजीवाणं?। अणुसमय संतरं वा इक्विक किचिरं कालं? ॥२११॥ आवीचि ओहि अंतिय वलायमरणं वसट्टमरणं च। अंतोमाई नम्भाव बालं तह पंडियं मीसं ॥२१२।। छउमत्थमरण केवलि बेहाणस गिद्धपिट्टमरणं च। मरणं भत्तपरिण्णा इंगिणि पाओवगमणं च ॥२१३॥ सत्तरस विहाणाई मरणे गुरुणो भणंति गुणकाला। तेमि नामविभनि बुच्छामि अहाणुपुत्रीए ॥२१४॥ अणुसमयनिरंतरमवीइसन्नियं तं भणति पंचविहं । दवे खिने काले भवे य भावे य संसारे ॥२१५॥ एमब आहिमरणं जाणि मओ नाणि चेच मग्इ पुणो। एमेव आइयंतियमरणं नवि मरइ नाई पणो ॥२१६॥ संजमजोगविसना मरति जे तं वलायमरणं तु । इंदियविसयवसगया मरति जे तं वस तु ॥२१७॥ रजाइ गारवेण य बहुम्सुयमएण चाऽवि दुचरियं । जे न कहंति गुरुणं न हु ते आराहगा हुंति॥२१८॥ गारवपकनिचुहा अइयारं जे परम्स न कहति । दमणनाणचरित्ने ससाउमरणं हवइ तेसिं ॥२१९॥ एयं ससमरणं मरिऊण महभए दुरंतंमि । सुइर भमंति जीवा दीहे संसारकतारे ।। २२० ॥ मोतुं अकम्मभूमगनरतिरिए सुरगणे अ नेरइए। सेसाणं जीवाणं नम्भवमरणं तु केमिचि ॥२२१॥ अविग्यमरणं बालं मरणं विग्याण पंडियं विति। जाणाहि बालपंडियमरणं पुण देसविग्याणं ॥२२२॥ मणपजवोहिनाणी सुअमइनाणी मरंति जे समणा । छउमत्थमग्णमेयं केवलिमरणं तु केवरिणो ॥२२३॥ गिद्धाइभक्वणं गिद्धपिट्ट उच्चंधणाइ वेहासं। एए दुनिवि मरणा कारणजाए अणुण्णाया ॥२२४॥ भनपरिण्णा इंगिणी पाओवगमं च तिणि मग्णाई। णण उविसिद्रा॥२२५॥ सोचकमो अनिरुवक्कमो अ विद्दोऽणभाव मरणंमि। आउगकम्मपएसग्गणंतणता पएसेहिं ॥२२६॥ दुन्नि व निनि वचनारिपंच मरणाई अाइमरणमि। कई मरइ एगसमयंसि विभासावित्थरं जाणे ॥२२७ ॥ सब्वे भवस्थजीवा मरंति आचीइ सया मरणं । ओहिं च आइअंतिय दुनिवि एयाइँ भयणाए॥२२८॥ ओहि च आहअंतिय चान, नह पंडिअंच मीसं च । छउमं केवलिमरणं अनुनेणं विरुझंति ॥२२५॥ संखमसंखमणता कमो उ इकिकगमि अपसन्थे। सनट्टग अणुबंधो पसन्थए केवलिमि सई ॥२३०॥ मरणे अणंतभागो इकिके मरइ आइमं मोनुं ।अणुसमयाई नेयं पढमचरिमंतरं नन्थि ॥२३१॥ सेसाणं मरणाणं नेओ संतरनिरंतरो उ गमो। माइंसपज्जवसिया सेसा पढमिछ. गमणाइ ॥२३२।। मने एए. दारा मरणविभत्तीइ वण्णिा कमसो। सगलणिउणे पयत्ये जिणचउदसपुचि भासंति ॥२३३॥ एगंतपसस्था तिणि इत्थ मरणा जिणेहिं पन्नना। मनपरिणा ५ ० श्री उत्तराध्ययन नियुक्ति मुनि दीपरत्नसागर ९३५६ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९३५७ इंगिणी पाउवगमणं च कमजिनं ॥ २३४ ॥ इत्थं पुण अहिगारो णायशो होइ मणुअमरणेणं। मुत्तुं अकाममरणं सकाममरणेण मरियां ॥ २३५॥ अ०५ ॥ नामं ठवणा दविए खित्ते काले पहाण पइ भावो । एएसि महंताणं पडिवक्खो खुइया हुंति ॥२३६॥ निक्खेवो नियंठमि चउडिहो दुडिहो य दव्वंभि आगमनोआगमओ नोआगमतो य सो तिविहो ॥ २३७॥ जाणगसरीरभविए तब्वतिरित्ते य निण्हगाईसुं। भावंमि नियंठो खलु पंचविहो होइ नायब्बो ॥ २३८ ॥ उकोसो उ नियंठो जहनओ चेव होइ णायच्यो। अजहन्नमणुकोसा हुंति नियंठा असंखिजा ॥ २३९ ॥ दुविहो य होइ गंथो बज्झो अग्भितरो य नायो। अंतो य चउदसविहो दसहा पुण बाहिरो गंधो ॥ २४०॥ कोहो माणो माया लोभे पिजे तहेव दोसे य मिच्छत्त वेअ अरइ रई हास सोगे मय दुगंछा ॥ २४१ ॥ खेत्तं वत्थू धणधनसंचओ मित्तनाइसंजोगो । जाणसयणासणाणि अ दासीदासं च कुवियं च ॥ २४२॥ सावज्जगंधमुक्का अग्भितरबाहिरेण गंषेण। एसा खलु निजुत्ती सुहागनियंठसुत्तस्स ॥ २४३ ॥ अ०६ ॥ निक्खेवो उ उम्मे चउब्विहो दुब्बिहो य दव्वंमि । आगमनोआगमओ नोआगमओ अ सो तिविहो ॥ २४४ ॥ जाणगसरीरभविए तव्वरिते असो पुणो तिविहो । एगभविअ बढाऊ अभिमुहओ नामगोए अ ॥ २४५॥ उरभाउणामगोयं वेयंतो भावज उ ओरुभो। तत्तो समुट्टियमिणं ओरन्भिजंति अज्झयणं ॥ २४६ ॥ ओर य कागणी अंबर अ ववहार सागरे चेब। पंचेए दिट्टंता ओरग्भिजमि अज्झयणे ॥ २४७ ॥ आरंभे रसगिडी दुग्गतिगमणं च पञ्चवाओ य। उक्मा कया उरम्भे ओरब्भिजस्स निजुत्ती ॥ २४८॥ आउरचिन्नाई एयाई, जाई चरई नंदिओ। सुकत्तणेहि लाढाहि, एवं दीहाउलक्खणं ॥ २४९॥अ. ८॥ निक्खेवो कविलंमी चउव्विहो दुब्बिहो य दव्वंमि। आगमनोआगमओ नोआगमओ सो तिविहो ॥ २५० ॥ जाणगसरीरभविए तव्वतिरित्ते य सो पुणो तिविहो। एगभविअचदाउअ अभिमुहओ नामगोए अ ॥ २५१॥ कविलाउणामगोयं वेयंतो भावओ भवे कविलो । तत्तो समुट्टियमणं अज्झयणं काविलिति ॥ २५२॥ कोसंबी कासव जसा कविलो सावत्थि इंददत्तो य इब्भे य सालिभद्दे धणसिट्टि पसेणई राया ॥ २५३ ॥ कविलो निश्चियपरिवेसिआइ आहारमित्तसंतुट्टे। बावारिओ (य) दुहि मासेहिं सो निग्गओ रत्तिं ॥२५४॥ दक्खिण्णे पत्थंतो बद्धो अ तओ अ अप्पिओ रण्णो। राया से देइ वरं किं देमी ? केण ते अत्थो ? ॥२५५॥ जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो पद्धति। दोमासकयं कज्जं, कोडिएवि न निट्टियं ॥ २५६ ॥ कोडिंपि देमि अजेति भणइ राया पहिट्ठमुहवण्णो । सोऽवि चहऊण कोडिं समणो जाओ समिअपावो ||२५७॥ छम्मासे छउमत्यो अट्ठारस जोयणाईं रायगिहि। वलभद्दप्पमुहाणं इकडदासाण पंच सए ॥ २५८ ॥ अइसेसे उप्पण्णे होही अट्टो इमोत्ति नाऊणं। अदाणगमणचित्तं करेइ धम्मया गीयं ॥ २५९ ॥ अ० ८ || निक्लेवो उ नमिमि चउब्विहो दु० ॥ २६० ॥ जाणग० [ सरीरभविए तव्वरिते य०' ] ॥ २६१ ॥ नमिआउनामगोयं वेयंतो भावतो नमी होड़। तस्स य खलु पव्वज्जा नमिपब्वजंति अज्झयणं ॥ २६२ ॥ पव्वज्जानिक्खेवो चउब्विहो अन्नतित्थिगा दव्ये। भावंमि उ पवजा आरंभ परिग्गहचाओ ॥ २६३ ॥ करकंडू कलिंगेसु, पंचालेसु य दुम्मुहो। नमी राया विदेहेसु गंधारेसु य नग्गई || २६४|| बसभे अ इंदकेऊ वलए अंबे अ पुष्फिए बोही। करकंडु दुम्मुहस्सा नमिस्स गंधाररण्णो अ॥ २६५॥ मिहिलावइस्स णमिणो छम्मासायंक विज्जपडिसेहो । कत्तिज सुमिणगदंसण अहिमंदरनं दिघोसे अ॥ २६६ ॥ दुन्निवि नमी विदेहा रज्जाई पयहिऊण पव्वइआ । एगो नमितित्थयरो एगो पत्तेयबुद्धो अ॥ २६७॥ जो सो नमितित्थयरो सो साहस्सिय परिब्बुडो भयवं। गंधमवहाय पव्वद पुत्तं रज्जे ठवे ऊणं ॥ २६८ ॥ बीओवि नमी राया रजं चइऊण गुणसयसमग्गं गंथमवहाय पवइ अहिगारो एत्थ बिइएणं ॥ २६९ ॥ पुप्फुत्तराउ चवणं पव्वज्जा होइ एगसमएणं। पत्तेयबुद्ध केवलि सिद्धि गया एगसमयेणं ॥२७०॥ सेअं सुजायं सुविभत्तसिंगं, जो पासिआ वसहं गुडमज्झे । रिद्धिं अरिद्धिं समुपेहिआ णं, कलिंगरायावि सक्खि धम्मं ॥२७१॥ जो इंदकेउं समलंकियं तु, दडुं पडतं पविलुप्पमाणं रिद्धिं अरिद्धिं समुपेहिआ णं, पंचालरायावि समिक्ख धम्मं ॥ २७२ ॥ वृद्धिं च हाणि च ससीव दट्टु, पूरावरेगं च महानईणं । अहो अणिचं अधुवं नच्चा, पंचालरायावि समिक्ख धम्मं ॥ २७३ ॥ बहुयाणं सद्दयं सुच्चा, एगस्स य असहयं वलयाण नमी राया, निक्खतो मिहिलाहिवो ॥ २७४ ॥ जो चूअरुक्खं तु मणाभिरामं समंजरीपल्लवपुष्कचित्तं रिद्धिं अरिद्धिं समुपेहिआ णं, गंधाररायावि समिक्ख धम्मं ॥ २७५॥ जया रजं च रटुं च पुरं अंतेउरं तहा। सब्वमेअं परिचज, संचयं किं करेसिमं ? ॥२७६॥ जया ते पेइए रज्जे, कया किचकरा बहु तेसिं किचं परिचज, अज किञ्चकरो भवं ॥ २७७ ॥ जया सव्वं परिचज, मुक्खाय घडसी भवं । परं गरहसी कीस ?, अत्तनीसेसकारए ॥२७८॥ मुक्खमग्गं पवनेसु, साहस बंभयारिसु। अहिअत्थं निवारिंतो, न दोसं वतुमरिहसि ॥ २७९॥ अ. ८॥ निक्खेवो उ दुमंमि चउच्विहो दुविहो य होइ दव्वंमि आगमणोआगमओ णोआगमओ भवे तिविहो ॥२८० ॥ जाणगसरीरभविए तव्वइरित्तो य सो भवे तिविहो । एगभवियबद्धाऊ अमिमुहओ नामगोए य ॥ २८१ ॥ दुमयाउनामगोयं वेयंतो भावज दुमो होइ। एमेव य पत्तस्सवि निक्खेवो" चउब्बिहो होइ ॥ २८२॥ दुमपत्तेणोवकम्म अहाठिईए उपक्रमेणं च इत्थ कयं आइंमी तो तं दुमपत्तमज्झयणं ॥ २८३॥ मगहापुस्नयराओ वीरेण विसजणं तु सीसाणं । सालमहासालाणं पिट्टीचंपं च आगमणं ॥ २८४ ॥ पव्वज्जा गागिलिस्स य नाणस्स य उप्पया उ तिम्हपि आगमणं चंपपुरिं वीरस्स अवंदणं तेसिं ॥ २८५ ॥ चंपाइ पुण्णभ मि १३५८ श्री उत्तराध्ययननियुक्ति मुनि दीपरत्नसागर प्रक Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९३५८ 1 1 चेइए नायओ पहिअकित्ती । आमंतेउं समणे कहेइ भयवं महावीरो ॥ २८६॥ अट्ठविहकम्ममहणस्स तस्स पगईविसुद्धलेसस्स । अट्ठावए नगवरे णिसीहिए मिडियट्टस्स ॥२८७॥ उसभस्स भरपिउणो तेलुकपगासनिग्गयजसस्स जो आरोढुं बंदइ चरिमसरीरो अ सो साहू ॥ २८८॥ साहुं संवासेई य असाहुं किर न संवसावेइ। अह सिद्धपत्रओ सो पासे वेयसिहरस्स ॥ २८९ ॥ चरिमसरी साहू आरुहइ नगबरं न अन्नोति एयं तु उदाहरणं कासीअ तहिं जिणवरिंदो ॥ २९० ॥ सोऊण तं भगवओ गच्छइ तहिं गोजमो पहिअकित्ती आरुहई तं नगवरं पडिमाओ वंदइ जिणाणं ॥ २९९ ॥ अह आगओ सपरिसो सबिट्टीए तहिं तु वेसमणो। वंदित्तु चेइयाई अह बंदइ गोअमं भयवं ॥ २९२ ॥ अह पुंडरीअनायं कहेइ तहिं गोयमो पहिअकित्ती । दसमस्स य पारणए पव्वावेसी कोडिनं ॥ २९३ ॥ तस्स य वेसमणस्सा परिसाए सुरवरो पयणुकम्मो तं पुंडरीयनायं गोयमकहिअं निसामेइ ॥ २९४ ॥ घित्तॄण पुंडरीअं वग्गुविमाणाओ सो चुओ संतो तुंबवणे धर्णागिरिस्स अज्जसुनंदासुओ जाओ ॥ २९५ ॥ दिने कोडिने या सेवाले चेव होइ तइए य इकिकस्स य तेसि परिवारो पंच पंच सया ॥ २९६ ॥ हेहिलाण चउत्थं मज्झि हाणं तु होइ छहं तु । अट्टममुवरिडाणं आहारो तेसिमो होइ ॥ २९७ ॥ कंदाई सचित्तो हिद्विद्वाणं तु होइ आहारो। बीआणं अवित्तो तइआणं सुकसेवालो ॥ २९८ ॥ तं पासिऊण इट्टि गोयमरिसिणो तओ तिवग्गावि। अणगारा पव्वइआ सम्परिवारा विगयमोहा ॥ २९९ ॥ एगस्स खीरभोअणहेऊ नाणुप्पया मुणेयवा। एगस्स परिसादंसणेण एगस्स य जिणंमि ॥ ३०० ॥ केवलिपरिसं तत्तो वयंता गोयमेण भणिआ य । इउ एह वंदह जिणं कयकिश्च जिणेण सो भणिओ ॥ ३०१ ॥ सोऊण तं अरहओ हियएणं गोयमोऽवि चिंतेइ नाणं मे न उपजह भणिओ य जिषेण सो ताहे ॥ ३०२ ॥ चिरसंस चिरपरिचिअं चिरमणुगयं च मे जाण । देहस्स य भेयंमि य दुष्णिवि तुला भविस्सामो ॥ ३०३ ॥ जह मन्ने एअम अम्हे जाणामु खीणसंसारा तह मने एअमहं विमाणवासीवि जाणंति ॥ ३०४ ॥ जाणगपुच्छं पुच्छइ अरहा किर गोयमं पहिअकित्ती किं देवाणं वयणं गिज्झं आतो जिणवराणं ? ॥ ३०५ ॥ सोऊण तं भगबओ मिच्छायारस्स सो उबट्ठाइ तनीसाए भयवं सीसाणं देइ अणुसिद्धिं ॥ ३०६ ॥ परियडियलावण्णं चलंतसंधिं मुयंतबिंटागं पत्तं च वसणपत्तं कालप्पतं भणइ गाहं ॥३०७॥ जह तुम्भे तह अम्हे तुम्भेहि अ होहिहा जहा अम्हे अप्पाहेइ पडतं पंडुयपत्तं किसलयाणं ॥ ३०८ ॥ नवि अस्थि नवि अ होहि उछावो किसलपंडुपत्ताणं । उवमा खलु एस क्या भवियजणविवोहणडाए ॥ ३०९ ॥ बहुए सुय पूजाए य तिण्डंपि चउकओ य निक्खेवो। दशबहुगेण बहुगा जीवा तह पुग्गला चेव ॥ ३१० ॥ भावबहुएण बहुगा चउदस पुत्रा अणतगमजुत्ता। भावे खओवसमिए स्वइयंमि य केवलं नाणं ॥ ३११ ॥ दव्वसुय पोंडयाइ अहवा लिहियं तु पुत्थयाईसुं। भावसुयं पुण दुविहं सम्मसुयं चैव मिच्छयं ॥ ३१२ ॥ भवसिद्धिया उ जीचा सम्मदिट्टी उ जं अहिज्जति। नं सम्मसुएण सुयं कम्मट्ठविहस्स सोहिकरं ॥ ३१३ ॥ मिच्छदिट्ठी जीवा अभव्यसिद्धी य जं जहिजति । तं मिच्छसुरण सुर्य कम्मादाणं च तं भणियं ॥ ३९४ ॥ ईसरतलवरमाडंविआण सिवईदखंदविण्हूणं जा किर कीरइ पूआ सा पूआ दव्वओ होई ॥३१५॥ तित्थयरकेवलीणं सिद्धायरिआण सव्वसाहूणं जाकिर कीरइ पूआ सा पूआ भावओ होइ ॥ ३९६ ॥ जे किर चउदसपृथ्वी सव्वक्खरसन्निवाइणो निउणा । जा तेर्सि पूआ खलु सा भावे तीइ अहिगारो ॥३१७॥ अ. ११ ॥ नामं ठवणादविए० ॥ ३१८॥ जाणगसरीरभविए० ॥३१९॥ हरिएसनामगो वेअंतो भावओ अ हरिएसो। तत्तो समुट्टियमिणं हरिएसिजति अज्झयणं ॥ ३२० ॥ पुण्वभवे संखस्स उ जुबरनो अंतिअं तु पवज्जा जाईमयं तु काउं हरिएसकुलमि आयाओ ॥ ३२१ ॥ महराए संखो खलु पुरोहिअसुओ अ गयउरे आसी। दढण पाडिहेरं हुयवहरत्थाइ निक्खतो ॥ ३२२|| हरिएसा चंडाला सोवाग मयंग बाहिरा पाणा । साणधणा य मयासा सुमाणवित्तीय नीया य ॥ ३२३॥ जम्मं मयंगतीरे वाणारसिगंडितिंदुगवणं च कोसलिएसु सुभद्दा इसिवंता जनवाडंमि ॥ ३२४॥ बलकुट्टे बलकोट्टो गोरी गंधारि सुविणग वसंतो। नामनिरुत्ती उणसप्प संभवो दुदुहे बीओ ॥ ३२५ ॥ भहएणेव होअव्वं, पावह महाणि भद्दज। सविसो हम्मए सप्पो, भेरुंडो तत्थ मुम्बइ ॥ ३२६ ॥ इत्थीण कहित्थ बहई, जणवयरायकहित्थ वहई। पडिगच्छह रम्म बिंदुअं, अइसहसा बहुमुंडिए जणे ॥ ३२७॥ अ. १२ ॥ चित्ते संभूमि अ निक्खेवो चउकओ दुहा दब्बे आगमनोआगमओ नोआगमओ अ सो तिविहो ॥३२८॥ जाणगसरीरभविए तव्वतिरिते य सो पुणो तिविहो। एगभविअ बढाऊ अभिमुहओ नामगोए य ॥ ३२९ ॥ चित्तेसंभूआउं वेअंतो भावओ अ नायो। तत्तो समुद्दिअमिणं अज्झचित्तसंभूयं ॥ ३३० ॥ सागेए चंडवडिंभयस्स पुत्तो अ आसि मुणिचंदो। सोऽवि अ सागरचंदस्स अंतिए पञ्चए समणो ॥ ३३१॥ तव्हाछुहाकिलंतं समणं दडूण अडविनीतं । पडिग्रहणाय बोही पत्ता गोवालपुत्तेहिं ॥ ३३२ ॥ तत्तो दुनि दुगुंछं काउं दासा दसन्नि आयाया दुखि अ उसुआरपुरे अहिगारो बंभदतेणं ॥ ३३३ ॥ राया य तत्थ बंभो कहओ तइओ कणेरदत्तोति । राया य पुष्कचूलो दीहो पुण होइ कोसलिओ ॥ ३३४ ॥ एए पंच वयंसा सबै सहदारदरिसिणो भोचा। संवच्छरं अणूणं वसंति इकिकरजंमि ॥ ३३५ ॥ गया य बंभदत्तो धणुओ सेणावई अ वरघणुओ इंदसिरी इंदजसा इन्दुवसु चुलणि देवीओ ॥ ३३६ ॥ चित्ते अ विज्जुमाला विजुमई चित्तसेणओ भहा। पंथग नागजसा पुण कित्तिमई कित्तिसेणा य १३५५ श्री उत्तराध्ययननियुक्ति मुनि दीपरत्नसागर Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३३७॥ देवी अ नागदत्ता जसवइ रयणवह जक्ख हरिलो य। वच्छी अ चारुदत्तो उसभो कच्चाइणी य सिला ॥३३८॥ धणदेवे वसुमित्ते सुदंसणे दारुए य नियडिाले। पुत्थी पिंगल 81 पोए सागरदत्ते य दीवसिहा॥३३९॥ कंपिले मलयवई वणराई सिंधुदत्त सोमा यातह सिंधुसेण पजुन्नसेण वाणीर पड़गा य॥३४०॥ हरिएसा गोदत्ता कणेरुदत्ता कणेरु पइगा य। कुंजर कणेरुसेणा इसि बुड़ी कुरुमई देवी ॥३४१॥ कंपिालं गिरितडगं चंपा हस्थिणपुरं च साएयं । समकडगं ओसाणं (नंदोसा) वंसीपासाय समकडगं ॥३४२॥ समकडगाओ अडवी तण्हा वडपायचंमि संकेओ। गहणं वरवणुअस्स य बंधणमकोसणं चेव ॥३४३॥ सो हम्मई अमचो देहि कुमारं कहिं तुमे नीओ? । गुलियविरेयणपीओ कवड मओ छविओ तेहिं ॥३४४॥तं सोऊण कुमारो भीओ अह उष्पहं पलाइत्था। काऊण थेररूवं देवो वाहेसिअ कुमारं ॥३४५॥ वडपुरगवंभवलयं वडथलग चेव होइ कोसंबी। बाणारसि रायगिहि गिरिपुर महुरा य अहिछत्ना॥३४६॥ वणहत्थी अकुमारं जणयह आहरण बसणगुणलुद्धो। वच्चंतो अ पुराओ (वडपुरओ) अहिछत्तं अंतरा गामो ॥३४७॥ गहणं नईकुडंगं गहणतरागाणि परिसहिअआणि। देहाणि पुण्णपत्तं पिअं खुणो दारओ जाओ॥३४८॥ सुपइढे कुसकुंडि भिकुंडिवित्तासिअंमि जिअसत्तू। महुराओ अहिछत्तं वचंता अंतरा लहइ ॥३४९॥ इंदपुरे रुहपुरे सिवदत्त विसा - हदत्त धूआओ। बडुअत्तणेण लहइ कमाओ दुनि रजं च ॥३५० ॥ रायगिह मिहिल हस्थिणपुरं च चंपा तहेव सावत्थी । एसा उ नगरहिंडी बोदवा बंभदत्तस्स ॥३५१॥ रयणुप्पया य विजओ बोद्धबो दीहरोसमुक्खे य । संभरणनलिणिगुम्म जाईइ पगासणं चेव ॥ ३५२॥ जाईइ पगास निवेयणं च जाईझ्यासणं चित्ते । चित्तस्स य आगमणं इडिपरिचाग सुत्नत्थो ॥३५३॥ इत्थीरयणपुरोहियभजाणं चुग्गहो विणासंमि। सेणाचइस्स भेओ वकमणं चेव पुत्ताणं ॥३५४ ॥ संगाम अत्थि भेओ मरणं पुण चूयपायवुजाणे । कडगस्स य निवभेओ दंडो अ पुरोहियकुलस्स ॥ ३५५ ।। जउघरपासायंमि अ दारे य सयंवरे अ थाले अ । तत्तो अ आसए हथिए अ तह कुंडए चेव ॥ ३५६॥ कुकुडरहतिलपत्ते सुदंसणो दारूए य नयणिड़े। पत्नच्छिज्जमयंवर कलाउ तह आसणे चेय ॥ ३५७॥ कंचुयपजुण्णमि अ हत्थी वणकुंजरे कुरुमई अ । एए कन्नालंभा बोदवा बंभदत्तस्स ॥ ३५८ ॥ अ.१३॥ उसुआरे निक्खेवो चउ० ॥३५९ ॥ जाण ॥ ३६० ॥ उसुआरनामगोए वेयंतो भावओ अ उसुआरो । तत्तो समुट्ठियमिणं उसुआरिजंति अज्झयणं ।। ३६१॥ पुत्रभवे संघडिया संपीआ अन्नमन्त्रमणुरत्ता। भुत्तूण भोगभोए निम्गंधा पञ्चए समणा ॥३६२॥ काऊण य सामनं पउमगुम्मे विमाणि उववना पलिओवमाई चउरो ठिई उकोसिया तेसिं ॥३६३॥ तत्तो अचुआ संता कुरुजणवयपुरवरंमि उसुआरे । छावि जणा उववचा चरिमसरीरा विगयमोहा ॥३६४॥ राया उसुयारो या कमलावइ देवि अग्गमहिसी से । भिगुनामे य पुरोहिय वासिट्ठा मारिया तस्स ॥३६५॥ उसुआरपुरे नयरे उसुआरपुरोहिओ अ अणवञ्चो। पुत्तस्स कए बहुसो परितप्पंती दुअम्गावि ॥३६६॥ काऊण समणरूवं तहि देवो पुरोहि भणइ । होहिंति तुज्झ पुना दुन्नि जणा देवलोगचुआ॥३६७॥ तेहि अ पन्चाइज तया य न करेह अंतरायं ण्हे । ते पबइ संता बोहेहिती जणं बहुअं ॥३६८॥ तं वयणं सोऊणं नगराओ निति ते वयम्मामे । बद्दति अने तहि गाहिति अणं असम्भावं ॥३६९॥ एए समणा धुत्ता पेयपिसाया य पोरसादा यामा तेसिं अलिअहा मा भे पुत्ता ! विणासिज्जा ॥३७॥ दट्टण तहिं समणे जाई पोराणिअंच सरिऊणं। बाहितऽम्मापियरं उसुआरं रायपुत्तंच॥३७१॥ सीमंधरो यराया भिगू अवासिट्टरायपत्ती य । बंभणी दारगा चव, छप्पए परिनिव्वआ॥ ३७२ ॥ अ.१४॥ निक्खवा भिक्खूमी चउव्विहो०॥३७३॥ जाणगसरीरभविए तब्बइरित्ते अनिण्हगाईसु । जो भिंदेइ खुहं खलु सो भिक्खू भावओ होइ ॥३७४ ॥ भेत्ता य भेयणं वा नायचं भिदियवयं चेव। इकिपि अ दुविहं दवे भावे अ नायत्रं ॥३७५॥ रहकारपरसुमाई दारूगमाई अ दवओ हुंति । साहू कम्मऽट्टविहं तवो अभावंमि नायवो ॥३७६॥ रागदोसा दंडा जोगा तह गारवा य सल्ला य। विगहाओ सण्णाओ खुहं कसाया पमाया य॥३७७॥ एयाइं तु खुहाई जे खलु भिदंति सुव्या रिसओ । ते भिन्नकम्मगंठी उचिंति अयरामरं ठाणं ॥ ३७८ ॥ अ.१५॥ णामंठवणादविए माउयपयसंगहेक्कए चेव । पजव भावे य तहा सत्तेए इक्कगा हुंति ॥ ३७९ ॥ दससु अछको दवे नायवो दसपएसिओ खंधो। ओगाहणाठिईए नायवो पज्जवदुगे अ ॥३८०॥ बंभंमि (मी) उ चउकं ठवणाभंमि बंभणुप्पत्ती। दवंमि वस्थिनिग्गहु अनाणीणं मुणेयवो ॥३८१॥ भावे उ वस्थिनिग्गहु नायवो तस्स रक्खणट्टाए। ठाणाणि ताणि वजिज्ज जाणि भणियाणि अज्झयणे ॥३८२॥ चरणे छक्को दशे गइचरणं चेव भक्खणे चरणं । खित्ते काले जंमि उ भावे उ गुणाण आयरणं ॥३८३॥ समाहीइ चउक दवं दवेण जेण उ समाही। भावंमि नाणदसणतवे चरिते अनायवं ॥३८४ ॥ नामंठवणादविए खित्तऽद्धा उडू उवरई वसही। संजम पग्गह जोहे अचल गणण संधणा भावे ॥३८५ ॥ अ. १६॥ पावे छकं दवे सञ्चित्ताचित्तमीसगं चेवा खित्तंमि निरयमाई कालो अइदुस्समाईओ॥३८६॥ भावे पावं इणमो हिंस मुसा चोरिअंच अब्बभातत्तो परिग्गहो चिअ अगुणा भणिआ य जे सुते॥३८॥ समणे चउक्कनिक्खेवओ उ दमि निण्हगाईआ। नाणी संजमसहिओ नायवो भावओ समणो ॥३८८॥ जे भावा अकरणिज्जा इहमज्झयणमि वनिआ जिणेहिं । ते भावे सेवंतो नायवो १३६ श्री उत्तराध्ययन नियुक्ति २ मुनि दीपरनसागर ९३५१ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पावसमणोत्ति॥३८९॥ एयाई पावाई जे खल वर्जति सुवया रिसओ।ते पावकम्ममुक्का सिदिमविग्घेण वचंति ॥३९०॥अ.१७॥ निक्खेवो संजइजमि चउ०॥३९१॥ जाणगसरीरमविए. | ॥३९२॥ संजयनाम गोयं वेयंतो भावसंजओ होइ।तत्तो समुट्ठियमिणं अज्झयणं संजइजति ॥३९३॥ कपिपुरखरंमि अनामेणं संजओ नरवरिंदो। सो सेणाए सहिओ नासीरं निग्गओ कइया ॥३९४ा हयमारूडो राया मिए छहित्ताण केसरुजाणे। ते तत्थ उ उत्तत्ये बहेइ रसमुच्छिओ संतो॥३९५॥ अह केसरमुजाणे नामेणं गहभालि अणगारो। अप्फोवमंडवंमि अ झायइ झाणं झविजदोसो ॥३९६॥ अह आसगओ राया तं पासिय संभमागओ तत्याभणइ अहा जह इण्टि इसिवज्झाए मणा लित्तो॥३९॥ वीसजिऊण आसं अह अणगारस्स एइ सो पास। विणएण बंदिऊणं अवराहं ते खमावेड ॥३९८॥ अह मोणमस्सिओ सो अणगारों नरवई न वाहण्इ। तस्स तवतेयभीओ इणमडे सो उदाहरह॥३९९॥ कपिलपराहिवई नामेणं संजओ अहं राया। तुज्झ सरणागओऽम्हि निहहिहा मा मि तेएणं ॥४००॥अभयं तुज्झ नरवई ! जलबुबुअसंनिमे अमाणुस्से।कि हिंसाइ पसजसि जाणतो अपणो दुक्खं? ॥४०१॥ सव्वमिणं चइऊणं अवसस्स जया य होइ गंतव्यं । किं भोगेसु पसजसि? किंपागफलोवमनिमेसुं ॥४०२॥ सोऊण य सो धम्म तस्सऽणगारस्स अंतिए राया। अणगारो पाइओ रजं चइउं गुणसमम्॥४०३॥ काऊण तवचरणं बहुणि वासाणि सो धुयकिलेसो।तं ठाणं संपत्तो जं संपत्ता न सोयंति॥४०॥ अ.१८॥ निक्खेवो अ मिआए चउकओ दुविहो ॥४०५॥ जाण ॥४०६॥ मिअआउनामगोयं वेयंतो भावओ मिओ होइ। एमेव य पुत्तस्सवि चउकओ होइ निक्खेवो॥४०७॥ मिगदेवीपुत्ताओ बलसिरिनामा समुट्ठियं जम्हा। तम्हा मिगपुत्तिज अज्झयणं होइ नायव्यं ॥४०८॥ सुग्गीचे नयरंमि अराया नामेण आसि बलभदो। तस्सासि अग्गमहिसी देवी उ मिगावई नामं॥४०९॥ तेसि दुण्डवि पुत्तो आसी नामेण बलसिरी धीमं। वयरोसभसंघयणो जुवराया चरमभवधारी॥४१०॥ उनंदभाणहिअओ पासाए नंदणंमि सो रम्मे। कीलइ पमदासहिओ देवो दुगुदगो चेव ॥४११॥ अह अन्नया कयाई पासायतलंमि सो ठिओ संतो। आलोएड पुरवरे रुंदे मम्मो गुणसमग्गे ॥४१२॥ अह पिच्छइ रायपहे वोलंतं समणसंजयं तत्थ । तवनियमसंजमधरं सुअसागरपारगं धीरं ॥ ४१३ ॥ अह देहद रायसुओ ते समणं अणमिसाइ दिट्ठीए। कहि एरिसय रूर्व विट्ठ मनेमए पुच्वं? ॥४१॥ एवमणुचिंतयंतस्स सनीनाणं तहिं समुप्पटं। पुव्वभवे सामनं मएवि एवं कयं आसि ॥४१५॥ सो लद्धबोहिलामो चलणे जणगाण बंदिउ भणडावीसजिउमिच्छामो काहं समणत्तणं ताया! ॥४१६॥ नाऊण निच्छयमई एव करेहिति तेहि सो भणिओ।धनोऽसि तुम पुत्ता ! जंसि विरत्तो सुहसएसु ॥४१७॥ सीहत्ता निक्समिउं सीहत्ता चेव विहरसु पुत्ता!। जह नवरि धम्मकामा विरत्तकामा उ विहरन्ति ॥ ४१८ ॥ नाणेण दसणेण य चरित्ततवनियमसंजमगुणेहिं । खंतीए मुत्तीए होदि तुम बड़माणो उ॥४१९॥ संवेगजणिअहासो मुक्खगमणबदचिंधसबाहो। अम्मापिऊण वयणं सो पंजलिओ पडिच्छीय ॥ ४२०॥डीए निक्खंतो काउं समणत्तणं परमपोरं तत्थ गओ सो धीरो जत्थ गया खीणसंसारा ॥४२१॥अ.१९॥नाम ठवणादविए खित्ते फाले अठाण पइ भावे। एएसि खुडगाणं पडिवक्ख महंतगा हुंति ॥४२२॥ निक्वेवो नियंठमि चउकओ दुविह॥४२३॥ जाणगसरीरभविए तव्वइरिते अनिण्हगाईसु। भावे पंचविहे खलु इमेहिं दारेहिं सो नेओ॥४२४॥ पण्णवण १ वेयर रागे३ कप्प४ चरित्त५ पडिसेवणा६ नाणे७। तित्थर लिंग९ सरीर१० खित्ते११ काल१२ गइ१३ ठिइ१४ संजम१५ निगासे१६ ॥४२५॥ जोगु१७ वओग१८ कसाये१९ लेसा२० परिणाम२१ बंधणे२२ उदए२३ । कम्मोदीरण२४ उपसंपजहण२५ सण्णा२६ य आहारे२७॥४२६ ॥ भवा२८ऽऽगरिसे२९ कालं३० तरे३१ समुग्धाय३२ खित्त३३ फुसणा३४ या भावे३५ परिमाणे३६ खलु महानियंठाण अप्पचहु३७॥४२७॥ सावजगंथमुक्का अम्भितरवाहिरेण गंषेण । एसा खलु निजुत्ती महानियंठस्स सुत्तस्स ॥ ४२८ ॥अ.२०॥ समुदेण पालियंमि अ निक्खे चउकओ दुविद दव्ये । आग० ॥४२९॥ समुदपालिआउं वेयंतो भावओ य नायब्यो। तत्तो समुट्ठियमिणं समुदपालिजमायणं॥४३०॥ चंपाए सत्यवाहोनामेणं आसि पालिओ नामं। वीरवरस्स भगवओ सो सीसो खीणमोहस्स ॥४३१॥ अह अन्नया कयाई पोएणं गणिमधरिमभरिएणं । यो नगरं संपत्तो पिहुंडं नाम नामेणं ॥४३२॥ ववहरमाणस्स तहिं पिहुंडे देइ वाणिओ पूजा तंपि अ पत्ति पित्तृण निग्गओ सो सदेसस्स ॥४३३॥ अह सा सत्याहसुआ समुहमज्झमि पसबई पुत्तं । पिअदसणसव्वंगं नामेण समुत्पालित्ति ॥४३४ ॥ खेमेणं संपत्तो सो पालिअसावगो घरं निययं । धाईदसदपvिडो अह बाइ सो उदाहिनामो॥४३५॥ बावत्तरि कलाओ असिक्खिजओ नीइकोविओ जाहे।तो जुब्वणमफुलो जाओ पिअदसणो अहिजे ॥४३६॥ अह तस्स पिया पति आणेई रुविणित्ति नामेणे । चउसद्विगणोवेयं अमरवहणं सरिसरुवं ॥४३७॥ अह रूविणीइ सहिओ कीला सो भवणपुंडरीअंमि । दोगुदगुव्व देवो किंकरपरिवारिओ निचं ॥४३८॥ अह अभया कयाई ओलोयणसंठिओ सगिहिणीओ। वज्झ नीणिजंतं अमिजतं जणसएहिं ॥४३९॥ अह भणइ सचिनाणी भीओ संसारिआण दुक्खाणं। नीआण पाचकम्माण हा जहा पावगं इणमो॥४४०॥ संबुद्धो सो भयवं संवेगमणुत्तरं च संपत्तो। आपुच्छिऊण जणए निक्खंतो खायजसकित्ती॥४४१॥ काऊण तवचरणं १३६१ श्री उत्तराध्ययननियुक्तिः मुनि दीपरनसागर ९३६० Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर 8 बहूणि वासाणि सो धुयकिलेसो । तं ठाणं संपत्तो जं संपत्ता न सोयंति ॥४४२॥ अ.२१॥ रहनेमीनिक्खेवो चउकओ दुविह होइ दमि। आग० ॥४४३॥ जाण ॥४४४॥ रहनेमि| नामगोअं वेयंतो भावओ अ रहनेमी। तत्तो समुट्ठियमिणं रहनेमिजति अज्झयणं ॥ ४४५॥ सोरियपुरंमि नयरे आसी राया समुहविजओत्ति । तस्सासि अम्गमहिसी सिवत्ति देवी | अणुजंगी॥४४६॥ तेसि पुत्ता चउरो अरिटनेमी तहेव रहनेमी। तइओ अ सच्चनेमी चउत्थओ होइ दढनेमी ॥४४॥जो सो अरिद्वनेमी बावीसइमो अहेसि सो अरिहा। रहनेमी सच्चनेमी। एए पत्तेयबुद्धा उ॥४४८॥ रहनेमिस्स भगवओ गिहत्यए चउर हुँति वाससया । संवच्छर छउमत्यो पंचसए केवली हुँति॥४४९॥ नववाससए वासाहिए उ सव्वाउगस्स नायव्वं । एसो उचेच कालो रायमईए उ नायव्वो॥४५०॥अ.२२॥निक्खेवो गोअममी चउकओ दुविहो०॥४५१॥ जाण॥४५॥गोयमनामागोयं वेयंतो भावगोयमो होइ। एमेव य केसिस्सवि निक्खेवों चउक्कओ होइ ॥४५३॥ गोअम केसीओ आ संवायसमुट्टियं तु जम्हेयं । तो केसिगोयमिजं अज्झयणं होइ नायब्ब ॥४५४॥ सिक्खावए१ अलिंगेर अ, सत्तूणं च पराजए। पासावगत्तणे४ चेव, तंतूदरणबंधणे५ ॥४५५॥ अगणिणिव्वावणे६ चेव, तहा दुहस्सनिग्गहे। तहा पहपरित्राय८, महासोअनिवारणे९॥४५६॥ संसारपारगमणे१०, तमस्स य विधाय ठाणोवसंपया१२चेव, एवं बारसस कमो ॥४५७॥ अ.२३॥ निक्खेव पवयणंमि (य) चउत्रिहो दविहो य होड दब्बंमि । आगमनोआगमओ नोआगमओ असो तिविहो । ॥ ४५८ ॥ जाणगसरीरभविए तब्वइरित्ते कुतित्थिमाईसु । भावे दुवालसंग गणिपिढग होइ नायव्वं ॥ ४५९॥ मायमि उ निक्खेवो चउम्विहो दुविहो० ॥ ४६० ॥ जाणगसरीरभविए तब्वइरिने अ भायणे दवं। भावमि अ समिईओ मायं खलु पवयणं जत्थ ॥४६१॥ अट्ठसुवि समिईसु अदुवालसंग समोअरइ जम्हा। तम्हा पचयणमाया अज्झयणं होइ नायवं ॥४६२॥ अ.२४ ॥ निक्खेवो जन्नमि अ चउकओ दुविहो य होइ दवंमि।आगमनोआगमओ नोआगमओ असो तिविहो ॥४६३॥ जाणगसरीरभविए तव्वइरिते अमाहणाईसुं। तबसंजमेसु जयणा भावे जन्मो मुणेयव्यो ॥४६४॥ जयघोसो अणगारो विजयघोसस्स जनकिमि। तत्तो समुट्ठियमिणं अज्झयणं जनइजति ॥४६५॥ वाणारसिनयरीए दो विप्पा आसि कासवमगत्ता। धणकणगांवउलकोसा छकम्मरया चउब्वेया॥४६६॥ दोवि अजमला भाउअ संपी कयाई जयघोसो हाइउंगओ गंगे। अह पिच्छह मंडुक्कं सप्पेण तहिं गसिजंतं ॥४६८॥ सप्पोऽवि अकुललेणं उक्खित्तो पाडिओ य भूमीए। सोवि अ कुललो सप्पं अकमिउं अच्छए तत्य ॥४६॥ सप्पोऽवि कुललवसगओ मंडुकं खाइ चिंचिआइयं । सोऽवि अ कुललो खायइ सप्पं चंडेहिं गासेहिं ॥४७०॥ तं अनमजघायं जयघोसो पासिऊण पडिबुदो। गंगाओ उत्तरिडं समणाणं आगओ वसहि ॥४७॥ सो समणो पव्वइओ निग्गंथो सव्वगंधउम्मुक्को। वोसिरिऊण असारे केसेहिं समं परिकसे॥४७२॥ पंचमहव्वयजुत्तो पंचिंदिअसंवुडो गुणसमिदो। घडणजयणपहाणो जाओ समणो समिअपावो ॥४७३॥ अह एगराइआए पडिमाए सो मुणी विहरमाणो। वसुहं दूइजतो पत्तो वाणारसिं नयरिं ॥४७४॥ सो उज्जाणनिसनो मासखमणेण खेइयसरीरो। भिक्खट्ठ बंभणिजे उबढिओ जन्नवाडमि ॥४७५॥ अह भणई जयघोसं कीस तुमं आगओ ? इह भंते!। नहु ते दाहामि इओ जायाहि हु अन्नओ भिक्ख ॥४७६॥ सो एवं पडिसिद्धो जनवाईमि जायगेण तहिं। परमत्यदिट्ठसारो नेव य तुट्ठो नवि अरुट्ठो॥४७७॥ अह भणई अणगारो जं जायग! आउसो निसामेह । वतचरिय भिक्खचरिया दिट्ठा साहण चरणमि ॥ ४७८॥ रजाणि उ अवहाया रायसिरिं अ (तs) णुचरंति भिक्खाए। समणस्स उ मुक्करसा भिक्खा चरणं च करणं च ॥४७९॥ संजाणंतो भणई जयघोसं जायगो 2 विजयघोसो। अस्थि उ पभूअमन्नं भुंजउ भयवं! पगामाए ॥४८॥ भिक्खेण न मे कर्ज ममं करणं तु धम्मचरणेणं । पडिकज धम्मचरणं मा संसारंमि हिंडिहिसि ॥ ४८१ ॥ मो समणा पव्वइओ धम्म सोऊण तस्स समणस्स। जयघोसविजयघोसा सिद्धि गया खीणसंसारा॥४८॥ अ.२५॥निक्खेवो सामंमि (य) चाउविहोदविहो होइ दवमि। आगमनोआगमओ नाआगमओ य सो तिविहो॥ ४८३ ॥ जाणगसरीरभविए तवइरित्ते असक्कराईसुं । भावंमि दसविहं खलु इच्छामिच्छाइ होइ॥ ४८४ ॥ इच्छा मिच्छा तहक्कारो, आवस्मिआ य निसीहिआ। आपुच्छणा य पडिपुच्छा, छंदणा य निमंतणा॥४८५॥ उवसंपया य काले सामायारी भवे दसविहा उ। एएसि तु पयाणं पत्तेय परुवणं बुच्छं ॥४८६॥ आयारे निक्वेवो चउक्कओ दुविहो० ॥४८७॥ जाणगसरीरभविए तबइरिने यनामणाईसुं । भावंमि दसविहाए सामायारीइ आयरणा ॥४८८॥ इच्छाइसाममेसुं आयरणं वण्णिअं तु जम्हेत्थ । तम्हा सामायारी अजायणं होइ नायकं ॥४८९॥ अ.२६॥ निक्खेवो खलंकमि चउविहो० ॥४९०॥ जाणगसरीरभविए तबइरिने बदमाईसुं । पडिलोमो सात्येसु भावओ होइ उ खलंको ॥४९१॥ अबदाली उत्तसओ जोत्तजुगभंज तुत्तभंजो अ। उप्पहविप्पहगामी एय खलूका भवे गोणा ॥४९२॥ जं किर दवं खुजं ककडगुरुयं तहा दुरवणाम । तं दधेसु खलुंकं बंककु. डिलवेढमाइदं ॥ ४९३॥ सुचिरंपि बंकडाई होहिंति अणुजइजमाणाई । करमंदिदारूआई गयंकुसाई व चिंटाई १४९४॥ दंसमसगस्समाणा जलुयकविच्छ्यसमा य जे हुंति । ते किर ६९/ ३२ श्री उत्तराध्ययननियुक्ति मुनि दीपरनसागर Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हॉति खलंका तिक्वमिउचंडमहविजा ॥४९५॥ जे किर गुरुपडिणीआ सबला असमाहिकारगा पाचा । अहिगरणकारगऽप्पा जिणवयणे ते किर खलंका ॥ ४९६ ॥ पिसुणा परोवतावी भिन्नरहस्सा परं परिभवंति। निविअणिज्जा य सदा जिणवयणे ते किर खलंका ॥४९॥ तम्हा खलंकभावं चइऊणं पंडिएण पुरिसेणं । कायबा होइ मई उज्जुसभावमि भावेणं ॥४९८॥ अ.२७॥ निक्वेवो मुक्खमि (य) चउविहो ॥४९९॥ जाणगसरीरभविए तत्वहरिते अनियलमाईसु । अट्टविहकम्ममुक्खो नायवो भावओ मुक्खो ॥५१०॥ निक्खेवो मग्गंमि (वि) चउबिहो० ॥५०१॥ जाणगसरीरभविए तबइरित्ते अ जलथलाईसुं। भावंमि नाणदसणनवचरणगुणा मुणेयवा ।।५०२॥ निक्खेवो उ गईए चउकओ दुविहो ॥५०३॥ जाणगसरीरभविए तवइरिते अ पुग्गलाईसुं। भावे पंचविहा खलु मुक्खगईए अहीगारो॥५०४॥ मुक्खो मग्गो अगई वणिजइ जम्ह इत्थ अज्झयणे। तं एअज्झयणं नायवं मुक्खमम्गगई॥५०५॥ अ.२८॥ आयाणपएणेयं सम्मत्तपरकमंति अज्झयणं । गुण्णं तु अप्पमायं एगे पुण बीयरायसुयं ॥५०६॥ निक्खेवो अपमाए चउवि०॥५०७॥ जाणगभवियसरीरे तबइरिने अमि. तमाईसु । भावे अन्नाणअसंवराइसु होइ नायवो ॥५०८॥ निक्खेवो असुअंमी चउकओ दुविहो ॥ ५०९॥ जाणगमवियसरीरे तबइरिने असो उ पंचविहो । अंडय बॉडय वालय वागय तह कीडए चेव ॥५१०॥ भावसुअं पुण दुविहं सम्मसु चेव होइ मिच्छसुयं । अहियारो सम्मसुए इहमज्झयगंमि नायचो॥५१॥ सम्मत्तमप्पमाओ इहमज्झयणमि वण्णिओ जेणं। तम्हेयं अज्झयणं णाय अप्पमायसुअं॥५१२॥ अ.२९॥ निक्खेवो (उ) तवंमि चउबिहो०॥५१३॥ जाणगभक्यिसरीरे तवझरिते अ पंचतवमाई । भावमि होइ दुविहो बज्झो अम्भितरो चेव ॥ ५१४ ॥ मग्गगईणं दुण्हवि पुत्रुट्टिो चउक्कनिक्खेवो । पगयं तु भावमम्गे सिद्धिगईए उनायचं ॥ ५१५॥ दुविहतवोमग्गगई वन्निजइ जम्ह इत्य अज्झयणे । तम्हा एअज्झयणं तवमग्गगइत्ति नायचं ॥५१६॥ अ.३०॥ निक्खेवो चरणमि (मी) चउचिहो दुविहो य होइ दवंमिाथागमनोआगमओ नोआगमओ य सो तिविहो ॥५१७॥ जाणगसरीरभविए तबहरित गइभिक्खमाईसुं । आचरणे आचरणं भावे चरणं तु णायचं ॥ ५१८ ॥ णिक्खेवो उ विहीए चउबिहो दुविहो य होइ दवंमि । आगमनोआगमओ नोआगमओ यसो तिविहो॥५१९॥ जाणगसरीरभविए तबइरित्ते य इंदियत्थेसुं। भावविही पुण दुविहा संजमजोगो तवो चेव ॥५२०॥ पगयं तु भावचरणे भावविहीए अ होइ नायवं। चाऊण अचरणविहिं चरणविहीए उ जइयचं ॥५२१॥ अ.३१॥निक्खेवो अपमाए चउविहो॥५२२॥ जाणगन्तवइरिते अमजमाईसु। निदा विकह कसाया विसएसु भावओ पमाओ॥५२३॥ नाम ठवणा दविए खित्तद्धा उडू उबरई बसही। संजम पम्गह जोहे अयल गणण संधणा भावे ॥५२४॥ भावप्पमाय पगय वाससहस्सं उग्गं तवमाइगरस्स आयरंतस्स। जो किर पमायकालो अहोरत्तं तु संकलिअं॥५२६॥ वारस वासे अहिए तवं चरंतस्स बदमाणस्स। जो किर पमायकालो अंतमहत्तं तु संकलिअं॥५२७ा जेसि तु पमाएणं गच्छइ कालो निरत्थओ धम्मे। ते संसारमणंत हिंडंति पमायदोसेणं ॥५२८॥ तम्हा खलुप्पमायं चइऊणं पंडिएण पुरिसेणं । दसणनाणचरिते कायवो अप्पमाओ उ॥५२९॥ अ.३२॥ कम्ममि अ निक्खेवो चउबिहो ॥५३०॥ जाणगभवियसरीरे तबइरितं च तं भवे दुविहं । कम्मे नोकम्मे या कम्ममि अ अणुदओ भणिओ॥५३१॥ नोकम्मदवकम्म नायव लेप्पकम्ममाईआभावे उदओ भणिओ कम्मट्टविहस्स नायबो॥५३२॥ निक्खेवो पयडीए चउव्विहो० ॥५३३॥ जाणगभवियसरीरा तव्वइरित्ता य सा पुणो दुविहा। कम्मे नोकम्मे या कम्ममि अ अणुदओ भणिओ ॥५३४॥ नोकम्मे दव्वाई गणपाउम्ग मुक्कगाई च। भाचे उदओ भणिओ मूलपयडि उत्तराणं च॥५३५॥ पगइठिई अणुभागं पएसकम्मं च सुटुनाऊणं । एएसिं संवरे खलु खवणे उसयावि जइअव्वं ॥५३६॥अ.३३॥ लेसाणं निक्खेवो चउक्कओ दुविह होइ नायव्यो० ॥५३७॥ जाणगभवियसरीरा तव्वइरित्ता य सा पुणो दुविहा । कम्मा नोकम्मे या नोकम्मे हुंति दुविहा उ॥५३८॥ जीवाणमजीवाण यदुविहा जीवाण होइ नायव्वा । भयमभवसिद्धिआणं दुविहाणवि होइ सत्तविहा ।।५३९॥ अजीवकम्म णोदव्यलेसा सा दसविहा उनायब्वा। चंदाण य सूराण य गहगणनक्खत्तताराणं ॥५४०॥ आभरणच्छायणादसगाण मणिकागिणीण जालेसा। अजीवदब्बलेसा नायव्वा दसविद्दा एसा ॥५४१॥ जा दव्यकम्मलेसा सा नियमा छब्बिहा उ नायव्वा । किण्हा नीला काऊ तेऊ पम्हा य सुका य॥५४२॥ दुविहा उ भावलेसा विसुद्धलेसा नहेब अविमुद्धा। दुविहा विसुद्धलेसा उवसमखइआ कसायाणं ॥५४॥ अविसुद्धभावलेसा सा दुबिहा नियमसो उ नायवा। पिजंमि अदोसंमि अ अहिगारो कम्मलेसाए॥५४४॥ नोकम्मदव्वलेसा पओगसा वीससा उ नायव्वा। भावे उदओ भणिओ छण्हं लेसाण जीवेसु ॥५४५॥ अज्झयणे निक्खेवो चउकओ दुविह होइ नायव्यो॥५४६॥ जाणगभवियसरीरं तब्वइरित्तं च पोत्थगाईसुं । अज्झप्पस्साणयणं नायध्वं भावमज्झयणं ॥५४॥ एयासि लेसाणं नाऊण सुहासुहं तु परिणामं । चइऊण अप्पसत्थं पसत्थलेसासु जइअवं ॥५४८ अ.३४॥ अणगारे निक्खेवो उविहो दुविह होइ नायचो० ॥५४९॥ जाणगभवियसरीरे तवहग्नेि अनिण्हगाईसु। भावे सम्मदिट्टी अगारवासा विणिमुको॥५५०॥ मम्गगईणं दुण्हवि पुबुदिट्टो चउक्कनिक्खेवो। अहिगारो भावभग्गे सिद्धिगईए उ नायबो ॥५५१॥ अ.३५॥ निक्खेवो जीवंमि अचउविहो दुबिह होइ नायबो०॥५५२॥ जाणगभवियसरीरे तपाइरित्ते य जीवदवं तु। भावंमि दसविहो खलु परिणामो जीवदवस्स ॥५५३॥ निक्वेवो अ(s)जीवंमी चउत्रिहो दुबिह होइ नायबो० ॥५५४॥ जाणगभवियसरीरे ९३६२११६ श्री उत्तराध्ययननियुक्ति मुनि दीपरत्नसागर Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवहरिते अजीवदवं तु।भावंमि दसविहो खलु परिणामो अ(s)जीवदवस्स // 555 // निक्खेवों विभत्तीए चउविहो दुविह होइ दर्वमि। // 556 // जाणगभावयसरीरा तबइरित्ता य से भवे दुविहा। जीवाणमजीवाण य जीवविभत्ती तहिं दुविहा॥५५७॥ सिद्धाणमसिद्धाण य अजीवाणं तु होइ दुविहा उ। रूविणमरूवीण य विभासिया जहा सुत्ते॥५५८॥ भावंमि विभत्ती खलु नायवा छबिहंमि भावमि। अहिगारो इत्थं पुण दक्वविभत्तीइ अज्झयणे ॥५५९॥अ.३६॥जे किर भवसिद्धीया परित्तसंसारिआय भविआयाते किर पढ़ति धीरा छत्तीसं उत्तरज्झयणे ॥५६॥जे हुँति अभवसिद्धिय गंथिअसत्ता अणंतसंसाराते संकिलिहकम्मा अभाविया उत्तरज्झाए॥५६१॥ तम्हा जिणपनत्ते अणंतगमपजवेहि संजुत्ते। अज्झाएँ जहाजोगं गुरूपसाया अहिजिाजा॥५६२॥ इति श्रीउत्तराध्ययननियुकिः श्रीभद्रबाहुस्वामिभिः कृता समाप्ता॥श्रीसिद्धक्षेत्रीयश्रीवर्धमानजैनागममंदिरे सकलागमानामियमादावुत्कारिता शोधिता च तपोगच्छीयाचार्यानन्दसागरेण॥श्रीवीरस्य संवत्र२४६७ आषाढशुक्लपंचम्यां रविवासरे।