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इंगिणी पाउवगमणं च कमजिनं ॥ २३४ ॥ इत्थं पुण अहिगारो णायशो होइ मणुअमरणेणं। मुत्तुं अकाममरणं सकाममरणेण मरियां ॥ २३५॥ अ०५ ॥ नामं ठवणा दविए खित्ते काले पहाण पइ भावो । एएसि महंताणं पडिवक्खो खुइया हुंति ॥२३६॥ निक्खेवो नियंठमि चउडिहो दुडिहो य दव्वंभि आगमनोआगमओ नोआगमतो य सो तिविहो ॥ २३७॥ जाणगसरीरभविए तब्वतिरित्ते य निण्हगाईसुं। भावंमि नियंठो खलु पंचविहो होइ नायब्बो ॥ २३८ ॥ उकोसो उ नियंठो जहनओ चेव होइ णायच्यो। अजहन्नमणुकोसा हुंति नियंठा असंखिजा ॥ २३९ ॥ दुविहो य होइ गंथो बज्झो अग्भितरो य नायो। अंतो य चउदसविहो दसहा पुण बाहिरो गंधो ॥ २४०॥ कोहो माणो माया लोभे पिजे तहेव दोसे य मिच्छत्त वेअ अरइ रई हास सोगे मय दुगंछा ॥ २४१ ॥ खेत्तं वत्थू धणधनसंचओ मित्तनाइसंजोगो । जाणसयणासणाणि अ दासीदासं च कुवियं च ॥ २४२॥ सावज्जगंधमुक्का अग्भितरबाहिरेण गंषेण। एसा खलु निजुत्ती सुहागनियंठसुत्तस्स ॥ २४३ ॥ अ०६ ॥ निक्खेवो उ उम्मे चउब्विहो दुब्बिहो य दव्वंमि । आगमनोआगमओ नोआगमओ अ सो तिविहो ॥ २४४ ॥ जाणगसरीरभविए तव्वरिते असो पुणो तिविहो । एगभविअ बढाऊ अभिमुहओ नामगोए अ ॥ २४५॥ उरभाउणामगोयं वेयंतो भावज उ ओरुभो। तत्तो समुट्टियमिणं ओरन्भिजंति अज्झयणं ॥ २४६ ॥ ओर य कागणी अंबर अ ववहार सागरे चेब। पंचेए दिट्टंता ओरग्भिजमि अज्झयणे ॥ २४७ ॥ आरंभे रसगिडी दुग्गतिगमणं च पञ्चवाओ य। उक्मा कया उरम्भे ओरब्भिजस्स निजुत्ती ॥ २४८॥ आउरचिन्नाई एयाई, जाई चरई नंदिओ। सुकत्तणेहि लाढाहि, एवं दीहाउलक्खणं ॥ २४९॥अ. ८॥ निक्खेवो कविलंमी चउव्विहो दुब्बिहो य दव्वंमि। आगमनोआगमओ नोआगमओ सो तिविहो ॥ २५० ॥ जाणगसरीरभविए तव्वतिरित्ते य सो पुणो तिविहो। एगभविअचदाउअ अभिमुहओ नामगोए अ ॥ २५१॥ कविलाउणामगोयं वेयंतो भावओ भवे कविलो । तत्तो समुट्टियमणं अज्झयणं काविलिति ॥ २५२॥ कोसंबी कासव जसा कविलो सावत्थि इंददत्तो य इब्भे य सालिभद्दे धणसिट्टि पसेणई राया ॥ २५३ ॥ कविलो निश्चियपरिवेसिआइ आहारमित्तसंतुट्टे। बावारिओ (य) दुहि मासेहिं सो निग्गओ रत्तिं ॥२५४॥ दक्खिण्णे पत्थंतो बद्धो अ तओ अ अप्पिओ रण्णो। राया से देइ वरं किं देमी ? केण ते अत्थो ? ॥२५५॥ जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो पद्धति। दोमासकयं कज्जं, कोडिएवि न निट्टियं ॥ २५६ ॥ कोडिंपि देमि अजेति भणइ राया पहिट्ठमुहवण्णो । सोऽवि चहऊण कोडिं समणो जाओ समिअपावो ||२५७॥ छम्मासे छउमत्यो अट्ठारस जोयणाईं रायगिहि। वलभद्दप्पमुहाणं इकडदासाण पंच सए ॥ २५८ ॥ अइसेसे उप्पण्णे होही अट्टो इमोत्ति नाऊणं। अदाणगमणचित्तं करेइ धम्मया गीयं ॥ २५९ ॥ अ० ८ || निक्लेवो उ नमिमि चउब्विहो दु० ॥ २६० ॥ जाणग० [ सरीरभविए तव्वरिते य०' ] ॥ २६१ ॥ नमिआउनामगोयं वेयंतो भावतो नमी होड़। तस्स य खलु पव्वज्जा नमिपब्वजंति अज्झयणं ॥ २६२ ॥ पव्वज्जानिक्खेवो चउब्विहो अन्नतित्थिगा दव्ये। भावंमि उ पवजा आरंभ परिग्गहचाओ ॥ २६३ ॥ करकंडू कलिंगेसु, पंचालेसु य दुम्मुहो। नमी राया विदेहेसु गंधारेसु य नग्गई || २६४|| बसभे अ इंदकेऊ वलए अंबे अ पुष्फिए बोही। करकंडु दुम्मुहस्सा नमिस्स गंधाररण्णो अ॥ २६५॥ मिहिलावइस्स णमिणो छम्मासायंक विज्जपडिसेहो । कत्तिज सुमिणगदंसण अहिमंदरनं दिघोसे अ॥ २६६ ॥ दुन्निवि नमी विदेहा रज्जाई पयहिऊण पव्वइआ । एगो नमितित्थयरो एगो पत्तेयबुद्धो अ॥ २६७॥ जो सो नमितित्थयरो सो साहस्सिय परिब्बुडो भयवं। गंधमवहाय पव्वद पुत्तं रज्जे ठवे ऊणं ॥ २६८ ॥ बीओवि नमी राया रजं चइऊण गुणसयसमग्गं गंथमवहाय पवइ अहिगारो एत्थ बिइएणं ॥ २६९ ॥ पुप्फुत्तराउ चवणं पव्वज्जा होइ एगसमएणं। पत्तेयबुद्ध केवलि सिद्धि गया एगसमयेणं ॥२७०॥ सेअं सुजायं सुविभत्तसिंगं, जो पासिआ वसहं गुडमज्झे । रिद्धिं अरिद्धिं समुपेहिआ णं, कलिंगरायावि सक्खि धम्मं ॥२७१॥ जो इंदकेउं समलंकियं तु, दडुं पडतं पविलुप्पमाणं रिद्धिं अरिद्धिं समुपेहिआ णं, पंचालरायावि समिक्ख धम्मं ॥ २७२ ॥ वृद्धिं च हाणि च ससीव दट्टु, पूरावरेगं च महानईणं । अहो अणिचं अधुवं नच्चा, पंचालरायावि समिक्ख धम्मं ॥ २७३ ॥ बहुयाणं सद्दयं सुच्चा, एगस्स य असहयं वलयाण नमी राया, निक्खतो मिहिलाहिवो ॥ २७४ ॥ जो चूअरुक्खं तु मणाभिरामं समंजरीपल्लवपुष्कचित्तं रिद्धिं अरिद्धिं समुपेहिआ णं, गंधाररायावि समिक्ख धम्मं ॥ २७५॥ जया रजं च रटुं च पुरं अंतेउरं तहा। सब्वमेअं परिचज, संचयं किं करेसिमं ? ॥२७६॥ जया ते पेइए रज्जे, कया किचकरा बहु तेसिं किचं परिचज, अज किञ्चकरो भवं ॥ २७७ ॥ जया सव्वं परिचज, मुक्खाय घडसी भवं । परं गरहसी कीस ?, अत्तनीसेसकारए ॥२७८॥ मुक्खमग्गं पवनेसु, साहस बंभयारिसु। अहिअत्थं निवारिंतो, न दोसं वतुमरिहसि ॥ २७९॥ अ. ८॥ निक्खेवो उ दुमंमि चउच्विहो दुविहो य होइ दव्वंमि आगमणोआगमओ णोआगमओ भवे तिविहो ॥२८० ॥ जाणगसरीरभविए तव्वइरित्तो य सो भवे तिविहो । एगभवियबद्धाऊ अमिमुहओ नामगोए य ॥ २८१ ॥ दुमयाउनामगोयं वेयंतो भावज दुमो होइ। एमेव य पत्तस्सवि निक्खेवो" चउब्बिहो होइ ॥ २८२॥ दुमपत्तेणोवकम्म अहाठिईए उपक्रमेणं च इत्थ कयं आइंमी तो तं दुमपत्तमज्झयणं ॥ २८३॥ मगहापुस्नयराओ वीरेण विसजणं तु सीसाणं । सालमहासालाणं पिट्टीचंपं च आगमणं ॥ २८४ ॥ पव्वज्जा गागिलिस्स य नाणस्स य उप्पया उ तिम्हपि आगमणं चंपपुरिं वीरस्स अवंदणं तेसिं ॥ २८५ ॥ चंपाइ पुण्णभ मि १३५८ श्री उत्तराध्ययननियुक्ति मुनि दीपरत्नसागर
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