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श्रीउत्तराध्ययननिर्युक्तिः- कयपवयणप्पणामो वुच्छं धम्माणुओगसंगहिअं । उत्तरझयणाणुओगं गुरुवएसाणुसारेण ॥ १ ॥ प्र०॥ नामं ठवणा दविए खित्त दिसा तावखित्त पन्नवए । पइकालसंचयपहाणनाणकमगणणओ भावे ॥ १ ॥ जहणं सुत्तरं खलु उक्कोसं वा अणुत्तरं होइ। सेसाई उत्तराई अणुत्तराई च नेयाणि ॥ २ ॥ कमउत्तरेण पगयं आयारस्सेव उवरिमाइं तु । तम्हा उ उत्तरा खलु अज्झयणा हंति णायव्वा ॥ ३ ॥ अंगप्पभवा जिणभासिया य पत्तेयबुद्धसंवाया। बंधे मुक्खे य कया छत्तीसं उत्तरज्झयणा ॥ ४ ॥ नामं ठवणज्झयणे दव्यज्झयणे य भावअज्झयणे। एमेव य अज्झीणे आय ज्झवणेऽविय तहे ॥ ५ ॥ अज्झप्पस्साणयणं कम्माणं अवचओ उवचियाणं । अणुवचओ व णवाणं तम्हा अज्झयणमिच्छति ॥ ६ ॥ अहिगम्मंति व अत्था अणेण अहियं व णयणमिच्छंति। अहियं व साहु गच्छइ तम्हा अज्झयणमिच्छति ॥७॥ जह दीवा दीवसयं पइप्पए सो य दीप्पए दीवो। दीवसमा आयरिया अप्पं च परं च दीवंति ॥ ८ ॥ भावे पत्थमियरो नाणाई कोहमाइओ कमसो आउत्ति आगमुत्ति य लाभुत्ति य हुंति एगट्ठा ॥ ९ ॥ पछत्थिया अपत्था तत्तो उप्पिट्टणा अपत्थयरी। निप्पीलणा अपत्था तिनि अपत्थाई पुत्नीए ॥ १० ॥ अडविहं कम्मरयं पोराणं जं खवेइ जोगेहिं एवं भावज्झयणं णेयव्वं आणुपुथ्वी ॥ ११ ॥ सुयखंधे निक्खेवं णामाइ चउध्विहं परुवेडं णामाणि य अहिगारे अज्झयणाणं पवक्खामि ॥ १२ ॥ विणयसुयं १ च परीसह २ चउरंगिजं३ असंखयं ४ चेव । अकाममरणं५ नियंठि६ ओरम्भं ७ काविलिनं८ च ॥ १३ ॥ णमिपव्वज्ज९ दुमपत्तयं १० च बहुसुयपुलं ११ तहेव हरिएसं १२ । चिनसंभूह १३ उसुआरिजं १४ सभिक्खु १५ समाहिठाणं १६ च ॥ १४ ॥ पावसमणिजं १७ तह संजइज १८ मियचारिया १९ नियंठिज २० । समुहपालिनं २१ रहनेमियं २२ केसिगोयमिज्जं २३ च ॥ १५ ॥ समिइओ २४ जन्नइज २५ सामायारी २६ तहा खलुकिज २७ । मुक्खगइ२८ अप्पमाओ२९ तव३० चरण३१ पमायठाणं ३ २ च ॥ १६ ॥ कम्मप्पयडी३३ लेसा३४ बोढच्चे खलु णगारमग्गे३५ य। जीवाजीवविभत्ती ३६ छत्तीसं उत्तरज्झयणा ॥ १७ ॥ पढमे विणओ बीए परीसदा दुउहंगया तइए। अहिगारो य चउत्थे होइ पमायप्पमाएति ॥ १८ ॥ मरणविभत्ती पुण पंचमम्मि विज्जा चरणं च छट्ठअज्झयणे रसगेहिपरिचाओ सत्तमे अमि अलोभे ॥ १९ ॥ निकंपया य नवमे दसमे अणुसासणोवमा भणिया । इकारसमे पृया तवरिद्धी चैव बारसमे ॥ २० ॥ तेरसमे अ नियाणं अनियाणं चैव होइ चउदसमे । भिक्खुगुणा पन्नरसे सोलसमे बंभगुत्तीओ ॥ २१ ॥ पावाण वज्रणा खलु सत्तरसि भोगिडिविजहणऽद्वारे। एगुणि अप्परिकम्मे अणाहया चेव बीसइमे ॥ २२ ॥ चरिया य विचित्ता इकवीसि बावीसिमे थिरं चरणं । तेवीसइमे धम्मो चउवीसहमे य समिईओ ॥ २३ ॥ बंभगुण पनवीमे मामायारी य होइ छब्बीसे । सत्तावीस असढया अट्ठावीसे य मुक्खगई ॥ २४ ॥ एगुणतीस आवस्सगपमाओ तवो अ होइ तीसइमे चरणं च इकतीसे बत्तीसि पमाइठाणाई ॥ २५ ॥ तेत्तीसइमे कम्मं च. उतीसहमे यहुति लेसाओ। भिक्खुगुणा पणतीसे जीवाजीवा य छत्तीसे ॥ २६ ॥ उत्तरायणाणेसो पिंडत्थो वण्णिओ समासेणं इत्तो इकिकं पुण अज्झयणं कित्तइस्सामि ॥ २७ ॥ तत्थ१३५३ श्री उत्तराध्ययननियुक्ति
मुनि दीपरत्नसागर