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ज्झयणं पढमं विणयसुयं तस्वकमाईणि दाराणि पनवेउं अहिगारो इत्थ विणणं ॥ २८ ॥ विणओ पुष्वुदिट्ठो सुयस्स चउक्कओ उ निक्खेवो। दव्वसुय निण्हगाई भावसुय सुए उ उवउत्तो ॥ २९ ॥ संजोगे निक्खेवो छक्को दुविहो उ दब्वसंजोगे। संजुत्तगसंजोगो नायव्वियरेयरो चेव ॥ ३० ॥ संजुत्तगसंजोगो सचित्तादीण होइ दव्वाणं । दुममणुसुवण्णमाई संतइकम्मेण जीवस्स ॥ ३१ ॥ मूले कंदे खंधे तयाय साले पवालपत्तेहिं । पुप्फफले बीएहि अ संजुत्तो होइ दुममाई ॥ ३२ ॥ एगरस एगवण्णे एगेगंधे तहा दुफासे य। परमाणु खंधेहि अ दुपएसाईहि" णायबो ॥ ३३ ॥ जह धाऊ कणगाई सभावसंजोगसंजुया हुंति। इअ संतइकम्मेणं अणाइसंजुत्तओ जीवो ॥ ३४ ॥ इयरेयरसंजोगो परमाणूणं तहा पएसाणं । अभिषेयमणभिपेओ अभिलावो चैव संबंधी ॥ ३५ ॥ दुविहो परमाणूर्ण हवइ य संठाणखंधओ चेच। संठाणे पंचविहो दुविहो पुण होइ खंधेसुं ॥ ३६ ॥ परमाणुपुग्गला खलु दुझि व बहुगा य संहता संता निव्वत्तयंति खंधं तं संठाणं अणित्थत्थं ॥ ३७ ॥ परिमंडले य बट्टे तंसे चउरंसमायए चेव । घणपयर पढमवजं ओयपएसे य जुम्मे य ॥ ३८ ॥ पंचग बारसगं खलु सत्तग वत्तीसगं तु वहम्मि। तिय छक्कग पणतीसा चत्तारिय हुति संमि ॥ ३९ ॥ नव चैव तहा चउरो सत्तावीसा य अट्ठ चउरंसे । तिगदुगपन्नरसेऽविय छच्चैव य आयए हुति ॥ ४० ॥ पणयालीसा बारस छन्भेया आययंमि संठाणे वीसा चत्तालीसा परिमंडलि हुंति संठाणे ॥ ४१ ॥ धम्माइपएसाणं पंचण्ड उ जो पएससंजोगो । विष्ह पुण अणाईओ साईओ होति दुष्टं तु ॥ ४२ ॥ अभिपेयमणभिपेओ पंचसु बिसएस होइ नायव्वो । अणुलोमोऽभिप्पेओ अणभिप्पेओ अ पडिलोमो ॥ ४३ ॥ सव्वा ओसहजत्ती गंधजुत्ती य भोयणविही य। रागविहि गीयवाइयविही अभिप्पेयमणुलोमो ॥ ४४ ॥ अभिलावे संजोगो दव्वे खित्ते अकाल भावे य । दुगसंजोगाईओ अक्खरसंजोगमाईओ ॥ ४५॥ संबंधणसंजोगो सावित्ताचित्तमीसओ चैव। दुपयाइ हिरण्णाई रहतुरगाई अ बहुहा उ ॥ ४६ ॥ खेत्ते काले या तहा दुण्डवि दुविहो य होइ संजोगो । भावंमि होइ दुविहो आएसे चेवणारसे ॥ ४७॥ आदिद्वो आएसंमि बहुविहे सरिसनाणचरणगए। सामित्तपञ्चयामि चेव किंचित्तओ वृच्छं ॥ २५० ॥ ओदइअ ओवसमिए खइए य तद्दा खओवसमिए य। परिणाम सन्निवाए उत्रिहो होअणाएसो ॥४८॥ आएसो पुण दुविहो अप्पिअ ववहारऽणप्पिज चेव । इक्किको पुण तिविहो अत्ताण परे तदुभए य ॥ ४९॥ ओवसमिए य खइए खओवसमिए य पारिणामे अ। एसो चउष्विहो खलु नायव्वो अत्तसंजोगो ॥५०॥ जो सन्निवाइओ खलु भावो उदएण वज्जिओ होइ। इकारससंजोगो एसोडविय अत्तसंजोगो ॥५१॥ लेसा कसाय वेयण वेज अन्नाण मिच्छ मीसं च जावइया ओदइया सब्बो सो बाहिरो जोगो ॥५२॥ जो सन्निवाइओ खलु भावो उदएण मीसिओ होइ। पन्नारससंजोगो सव्वो सो मीसिओ जोगो ॥५३॥ बीओऽवि य आएसो अत्ताणे बाहिरे तदुभए य। संजोगो खलु भणिओ तं कित्तेऽहं समासे ॥५४॥ ओदइय ओवसमिए खइए य तहा खओवसमिए । परिणामसन्निवाए अ छथ्विहो अत्तसंजोगो ॥ ५५ ॥ नामंमि अ खित्तंमि अ नायब्बो बाहिरो य ( उ ) संजोगो । काले बाहिरो खलु मीसोऽवि य तदुभए होइ ॥ ५६ ॥ आयरिय सीस पुत्तो पिया य जणणी य होइ धूया य भज्जा पइ सीउन्हं तमुज्ज छायाऽऽयवे चैव ॥ ५७ ॥ आयरिओ तारिसओ जारिसओ नवरि हुज्ज सो चेव आयरियस्सवि सीसो सरिसो सव्येहिवि गुणेहिं ॥ ५८ ॥ एवं नाणे चरणे सामित्ते अप्पणो उ (य) पिउणोत्ति मज्झं कुलेऽयमस्स य अहयं अग्भितरो मित्ति ॥५९॥ पञ्चयओ य बहुविहो निश्चित्ती पञ्चओ जिणस्सेव देहाय बद्धमुका माइपिइआइ अ हवंति ॥ ६० ॥ संबंधणसंजोगो कसायबहुलस्स होइ जीवस्स पहुणो वा अपहुस्स व मज्झति ममजमाणस्स ॥ ६१ ॥ संबंधणसंजोगो संसाराओ अणुत्तरणवासो। तं छिन्तु विष्पमुका साहू मुका तओ तेणं ॥ ६२ ॥ संबंधणसंजोगे खित्ताईणं विभास जा भणिया। खित्ताइसु संजोगो सो चेव विभासिअम्रो अ (उ) ॥६३॥ गंडी गली मराली अस्से गोणे याहुति एगडा | आइने य विणीए य भदए वावि एगट्ठा ॥६४॥ अध्य० १। णासो परीसहाणं चउधिहो दुडिहो य (उ) दवंमि। आगमनोआगमतो नोआगमओ य सो तिविहो ॥६५॥ जाणगसरीर भविए तव्यइरित्ते य से भवे दुबिहे । कम्मे नोकम्मे या कम्मंमि य अणुदओ भणिओ ॥ ६६ ॥ णोकम्मंमि य तिविहो सचित्ताचित्तमीसओ चेव । भावे कम्मस्सुदओ तस्स उ दाराणिमे हुंति ॥ ६७ ॥ कनो१ कस्सर व दब्बे३ समोआर४ अहिआस५ नए६ य वत्तणा७ कालो८ । खित्तु९ से १० पुच्छा ११ निद्देसे १२ सुत्तकासे १३ य ॥ ६८ ॥ कम्मप्पवायपुव्वे सत्तरसे पाहुडंमि जं सुत्तं । सणयं सोदाहरणं तं चैव इहंपि णायव्यं ॥ ६९ ॥ तिपि णेगमणओ परीसहो जाव उज्जुमुत्ताओ। तिष्टं सद्दणयाणं परीसहो संजए होइ ॥ ७० ॥ पढमंमि अट्ट भंगा संगहि जीवो व अहव नोजीवो। ववहारे नोजीवो जीवदव्वं तु सेसाणं ॥७१॥ समोयारो खलु दुविहो पयडीपुरिसेसु होइ नायब्बो । एएसं नाणत्तं वृच्छामि अहाणुपुब्बीए ॥७२॥ णाणावरणे ए मोहम य अंतराइए चैव। एए बावीसं परीसहा हुंति णायवा ॥ ७३ ॥ पन्नाऽमाणपरिसहा णाणावरणमि हुति दुन्नेए। इको य अंतराये अलाभपरीसहो होइ ॥ ७४॥ अरई अचेल इत्थी निसीहिया जायणा य अकोसे सकारपुरकारे चरितमोहंमि सत्तेए ॥ ७५ ॥ अरईइ दुगुंछाए पुंवेय भयस्स चेव माणस्स । कोहस्स य लोहस्स य उदएण परीसहा सत्त ॥ ७६ ॥ दंसणमोहे दंसणपरीसहो नियमसो भवे इको सेसा परीसहा खल इकारस वेयणीजंमि ॥ ७७ ॥ पंचेव आणुपुब्बी चरिया सिजा बहेव (य) रोगे य तणफासजाउमेव य इकारस वेयणीजंमि ॥ ७८ ॥ बावीसं १३५४ श्री उत्तराध्ययन निर्युक्ति
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मुनि दीपरत्नसागर