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बायरसंपराए चउदस य सुहूमरागंमि छउमत्थवीयराए चउदस इक्कारस जिर्णमि ॥ ७९ ॥ एसणमणेसणीजं तिन्हं अग्गहणऽभोयण नयाणं । अहिआसण बोद्धव्या फाय सदुज्जुसुत्ताणं ॥८०॥ जं पुष्प नेगमनओ परीसहो वेयणा य दुण्हं तु । वेयण पहुच्च जीवे उज्जुसुओं सदस्स पुण आया ॥ ८१ ॥ वीसं उक्कोसपए बहंति जहन्नओ हवइ एगो सीओसिण चरियनिसीहिया य जुगवं न वर्हति ॥ ८२ ॥ वासग्गसो अ तिन्हं मुहुत्तमंतं च होइ उज्जुसुए सदस्स एगसमयं परीसहो होइ नायडो ॥ ८३ ॥ कंडू अभत्तच्छंदो अच्छीणं वेयणा तहा कुच्छी । कासं सासं चजरं अहिआसे सत्त वाससए ॥ ८४॥ लोए संथारम्मि य परीसहा जाव उज्जुसुत्ताओ। तिण्डं सद्दनयाणं परीसहा होन्ति अत्ताणे ॥ ८५॥ उद्देसो गुरुवयणं पुच्छा सीसस्स उ मुणेयवा। निद्देमो पुणिमेख बावीस सुत्तफासे य ॥ ८६ ॥ कुमारए१ नई २ लेणे३, सिला४ पंथे५ महउए६ । तावस ७ पडिमा सीसे९. अगणि १० निवेअ११ मुग्गरे १२ ॥८७॥ वणे १३ रामे १४ पुरे १५ भिक्खे १६. संथारे १७ मावधारणं १८ । अंगविज्जा १९ सुए२० भोमे २१, सीसस्सागमणे २२ इय ॥ ८८ ॥ उज्जेणी हत्थिमित्तो भोगपुरे हत्यिभूइखुट्टझे अ अडवीइ वेयणट्टो पाओगओ य सादिवं ॥ ८९ ॥ उज्जेणी धणमित्नो पुत्तो से खुट्टओ अ धणसम्मो । तण्हाइतोऽपीओ कालगओ एलगच्छपहे ॥ ९० ॥ रायगिहंमि वयंसा सीसा चउरो उ भदबाहुस्स । वैभारगिरिगुहाए सीयपरिगया समाहिगया ॥ ९१ ॥ तगराइ अरिहमित्तो दत्तो अरहनओ य भद्दा य । वणियमहिलं चइत्ता तत्तंमि सिलायले विहरे ॥९२॥ चंपाएँ सुमणुभदो जुबराया धम्मघोससीसो य। पंथंमि मसगपरिपीयसोणिओ सोऽवि कालगओ ॥ ९३ ॥ वीयभय देवदत्ता गंधारं सावयं पडियरित्ता लहइ सयं गुलियाणं पज्जोएणणी ( णाणि) ओजेणि ॥ ९४ ॥ दहूण चेडिमरणं पभावई पवइत्तू कालगया। पुक्खरकरणं गहणं दसउर पज्जोय मुयणं च ॥ ९५ ॥ माया य रुहसोमा पिया य नामेण सोमदेवत्ति । भाया य फग्गुरक्खिय तोसलिषुत्ता य आयरिया ॥ ९६ ॥ सिंहगिरि भदगुत्ते वयरक्खमणा पढित्तु पृष्ठगयं । पञ्चाविओ य भाया रक्खियखमणेहिं जणओ य ॥ ९७ ॥ अयलपुरे जुबराया सीसो राहस्स नगरिमुजेणिं । अज्जा राहखमणा पुरोहिए रायपुत्तो य ॥ ९८ ॥ कोसं बीए सिट्टी आसी नामेण तावसो तहियं मरिऊण सूयरोरग जाओ पुत्तस्स पुत्तोत्ति ॥ ९९ ॥ उसभपुरं रायगिहं पाडलिपुत्तस्स होइ उप्पत्ती नंदे सगडाले थूलभद सिरिए वरकई य ॥ १०० ॥ तिन्हं अणगाराणं अभिग्गहो आसि चउन्ह मासाणं वसहीमित्तनिमित्तं को कहि वृत्थो ? निसामेह ॥ १०१ ॥ गणियाघरम्मि इक्को वुत्थो बीओ उ वग्घवसहीए सप्पबसहीए तइओ को दुक्करकारओ इत्थं ? ॥ १०२ ॥ वग्घो वा सप्पा वा सरीरपीडाकरा उ भइया नाणं व दंसणं वा चरितं (यं) व न पञ्चला भित्तुं ॥ १०३ ॥ भयवपि थूलभदो तिक्खे चकम्मिओ न उण छिन्नो। अग्गिसिहाए वृत्थो चाउम्मासे न उण दुड्डो ॥ १०४ ॥ अन्नोऽवि य अणगारो भणमाणोऽहंपि थूलभद्दसमो। कंबलओ चंदणयाइ मइलिओ एगराईए ॥१०५॥ कोयरे वत्थो दत्ता सीसो अ हिंडओ तस्स । उवहरइ धाइपिंडं अंगुलिजलणा य सादियं ॥ १०६ ॥ निक्खतो गयउराओ कुरुदत्तसुओ गओ य साकेयं । पडिमाठियस्स कुडिया अग्गि सीसंमि जालिति ॥ १०७ ॥ कोसंबी जण्णदत्तो सोमदत्तो य सोमदेवो य आयरिय सोमभूई दुव्हंपि य होइ गायत्रं ॥ १०८ ॥ सन्नाइगमण वियर्ड वेरग्गा दोवि ते नईतीरे । पाजवगया नइपूरएण उदहिं तु उवणीया ॥ १०९ ॥ रायगहि मालगारो अज्जुणओ तस्स भज्ज खंदसिरी । मुग्गरपाणी गोट्टी सुदंसणो वंदओ णीइ ॥ ११० ॥ सावत्थी जियसत्तू धारणि देवी य खंदओ पुत्ती । धूआ पुरंदरजसा दत्ता सा दंडईरण्णो ॥ १११ ॥ मुणिसुवयंतेवासी खंदगपमुहा य कुंभकारकडे देवी पुरंदरजसा दंडइ पालग मरूप य ॥ ११२ ॥ पंच सया जंतेणं वहिआ उ पुरोहिण रुद्वेणं रागहोसतुलग्गं समकरणं चिंतयंतेहिं ॥ ११३ ॥ जायणपरीसहंमी बलदेवो इत्थ होइ आहरणं । किसिपारासरढंढो अलाभए होइ आहरणं ॥ ११४ ॥ महुराइ कालवेसिय जंबुय अहिउत्थ मुग्गलपुरं गया पडिसेहेई जंव्यरूपेण उवसग्गं ॥ ११५ ॥ सावत्थीइ कुमारो भहो सो चारिओति वेरजे । खारेण तच्छियंगो तणफासपरीसहं विसहे ॥ ११६ ॥ चंपाएँ सुनंदो नाम सावओ जाड़धावणदुर्गृछी। कोसंबीइ दुगंधी उप्पण्णो तस्स सादिवं ॥११७॥ महुराइ इंददत्तो पुरोहिओ साहुसेवओ सिट्ठी । पासायविज्ञ पाडण पायच्छिज्जेंदकीले य ॥ ११८ ॥ उज्ज्ञेणी कालखमणा सागरस्वमणा सुवण्णभूमीए इंदो आउयसेसं पुच्छइ सादिकरणं च ॥ ११९ ॥ परिततो वायणाए गंगाकूले पिया असगडाए । संवच्छरेहऽहिजइ बारसहि असंख्यज्झयणं ॥ १२० ॥ इमं एरिमं तं च तारिसं पिच्छ केरिसं जायं ? इय भणइ थूलभदो सन्नाइघरं गज संतो ॥ १२१ ॥ ओहाविउकामोऽविय अज्जासाढो उपणीयभूमीए काऊण रायरूवं पच्छा सीमेण अणुसिहो ॥१२२॥ जेण भिक्खं बलिं देमि, जेण पोसेमि नायए। सा मे मही अक्कमइ, जायं सरणओ भयं ॥ १२३ ॥ बहुस्सुयं चित्तकहं, गंगा वहइ पाडलें । वुज्झमाणग! भहं ते, लवता किंचि सुहासिय ॥ १२४ ॥ जेण रोहंति बीयाणि, जेण जीयंति कासया । तस्स मज्झे विवज्जामि, जा० ॥ १२५॥ जमहं दिया य राओ य, तप्पेमि महसप्पिसा । तेण मे उडओ दड्ढो, जा० ॥ १२६ ॥ वग्घस्स मइ भीएणं, पावगो सरणं कओ । तेण दङ्कं ममं अंगं, जा० ॥ १२७ ॥ लंघणपवणसमत्थो पुत्रिं होऊण संपई कीस ? दंडयगहियग्गहत्थो वयंस! को नामओ वाही ? ॥ १२८ ॥ जिट्टासाढेस मासु, जो सुहो वाह मारुओ। तेण मे भज्जए अंगं, जा० ॥ १२९॥ जेण जीवति सत्ताणि, निरोहंमि अनंतए । तेण मे भज्जए अंगं, जा० ॥ १३०॥ जाव वृच्छं सुहं वृच्छं, पादवे निरुवदवे । १३५५ श्री उत्तराध्ययन निर्युक्ति मुनि दीपरत्नसागर