Book Title: Yogshastra Part 01
Author(s): Hemchandracharya, Vijaydharmsuri
Publisher: Asiatic Society of Bengal

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ प्रथमः प्रकाशः । सतो निरूप्य रूपं तदनुरूपं जगहुरोः । कान्तिसौम्यतया मच विध्याते तहिलोचने ॥ २४ ॥ उपसन्नं च तं ज्ञात्वा बभाष भगवानिति । चण्डकौशिक बुद्धास्व बुद्धास्व ननु मामुहः ॥ २५ ॥ श्रुत्वा तद्भगवदाक्यमूहापोहं वितन्वतः । पचगस्य समुत्पेदे स्मरणं पूर्वजन्मनाम् ॥ २६ ॥ स त्रिः प्रदक्षिणीकृत्य ततश्च परमेश्वरम् । निष्कषायः सुमनसाऽनशनं प्रत्यपद्यत ॥ २७ ॥ कतानशनकम्माणं निष्कणिं महोरगम् । प्रशमापनमज्ञासीदन्वज्ञासौच्च तं प्रभुः ॥ २८ ॥ कुत्राप्यन्यत्र मा यासीढष्टिमें विषभीषणा । इति तुण्डं बिले क्षिप्त्वा पपौ स ममतामृतम् ॥ २८ ॥ तस्थौ तथैव तत्रैव स्वामी तदनुकम्पया। परेषामुपकाराय महतां हि प्रवृत्तयः ॥ ३० ॥ भगवन्तं तथा दृष्ट्वा विस्मयस्मेरलोचनाः । गोपाला वसपालाश्च तत्रोपसम्पुर्दुतम् ॥ ३१ ॥ वृक्षान्तरे तिरोभूय यथेष्टं ग्रावलोष्टुभिः । प्रणिजघ्नुरनिनास्ते पन्नगस्य महात्मनः ॥ ३२ ॥ तथाप्यविचलन्तं तं वीक्ष्य विशम्भभाजिनः । यष्टिभिर्घयामासुनिकटीभूय तत्तनुम् ॥ ३३ ॥ आख्यन् जनानां ते गोपास्ततस्तत्रागमन् जनाः ।। ववन्दिरे महावीरममहंश्च महोरगम् ॥ ३४ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 202