Book Title: Yogshastra Part 01
Author(s): Hemchandracharya, Vijaydharmsuri
Publisher: Asiatic Society of Bengal
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प्रथमः प्रकाशः । अन्येद्युः कण्टिकाहेतोः कौशिक बहिरीयुषि । अभाक्षुर्मक्षु राजन्याः श्वेतम्बया एत्य तद्दनम् ॥ २ ॥ अथ व्यावर्तमानस्य गोपास्तस्य न्यवीविदन् । पश्य पश्य वनं कैश्चिद्भज्यते भज्यते तव ॥ ३ ॥ जाज्वल्यमानः क्रोधेन हविषेव हुताशनः ।। अकुण्ठधारमुद्यम्य कुठारं सोऽभ्यधावत ॥ ४ ॥ राजपुत्रास्ततो नेशः श्येनादिव शकुन्तयः । स्खलित्वा च पपातायं यमवक्त्र इवावटे ॥ ५ ॥ पतत: पतितस्तस्य सम्मुखः परशुः शितः । शिरो विधाकृतं तेन ही विपाकः कुकर्मणाम् ॥ ६ ॥ स विपद्य वनेऽत्रैव चण्डोऽहिर्दृग्विषोऽभवत् । क्रोधस्वीबानुबन्धी हि सह याति भवान्तरे ॥ ७ ॥ अवश्यं चैष बोधार्ह इति बुद्धया जगद्गुरुः । आत्मपीडामगणयबृजुनैव पथा ययौ ॥ ८॥ .. अभवत्पदसञ्चार सुखमीभूतवालुकम् । उदपानावहत्कुल्यं शुष्कजर्जरपादपम् ॥ ८ ॥ जीर्म पसंचयास्तीम कोर्स वल्मीकपर्वतैः । स्थलीभूतोटजं जीसारण्यं न्यविशत प्रभुः ॥ १० ॥ तत्र चाथ जगन्नाथो यक्षमण्ड पिकान्तरे । तस्थौ प्रतिमया नासाप्रान्तविश्रान्तलोचनः ॥ ११ ॥ ततो दृष्टिविषः सर्प: सदो भ्रमितुं बहिः।.. बिलाविरसरजिह्वा कालरात्रिमुखादिव ॥ १२ ॥
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