Book Title: Yoganubhutiya
Author(s): Chandrashekhar Azad
Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf

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Page 1
________________ योगानुभूतियाँ श्री चन्द्रशेखर आजाद लगभग दो वर्ष पूर्व की बात है । बसंत का ही मौसम था । केन्द्र पर नियमित अभ्यास करने आने वालों में भाई देवेन्द्र भी थे। इन्होंने आग्रह किया कि पू. म. सा.उमरावकुंवरजी शिष्या-मण्डली के साथ यहां विराजमान हैं। वे आपसे योग-संबंधी कुछ चर्चा करना चाहते हैं। पू. म. सा. ने मुझसे अपनी शिष्यामण्डली की समस्त सदस्यों के लिए कुछ प्रासनादि का अभ्यास सिखाने की अपेक्षा व्यक्त की जो मैंने तत्काल सहर्ष स्वीकार की। यह क्रम प्रतिदिन कुछ दिनों तक चला। इसी दौरान योगविषयक चर्चाएँ भी चला करती थीं। चर्चाओं के बीच ही पूज्य म. सा. ने योगविषयक अपने अनुभव सुनाये तथा ध्यान का भी महत्त्व समझाया । इसी बीच बाहर से पधारे कुछ उन साधकों से भी भेंट का सुअवसर प्राप्त हुमा जिन्होंने ध्यान के अभ्यास में अनेकानेक विस्मयकारी अनुभव प्राप्त किए थे। मुख्यतः उन साधिकाश्री का स्पष्ट स्मरण पाता है जिनके विषय में बताते हुए पू. म. सा. ने कहा था कि ध्यानस्थ अवस्था में एक बार इनका शरीर स्वतःही भूमि से ऊपर उठ गया था। उनके अभ्यास में समय की कोई बाधा नहीं थी। कुछ अभ्यासियों का तो यहां तक अनुभव उनके पत्रों से ज्ञात हुआ कि उन्हें दिन में कभी भी और कई-कई घंटों का ध्यान स्वतः ही निष्प्रयत्न ही लगने लगा है। इतना प्रभावित किया इन सब बातों ने कि मन में उत्कट आकांक्षा जाग्रत हो गई इस ध्यानविज्ञान को सीखने की। मैंने तब पू. म. सा. से प्राग्रहपूर्वक इस ज्ञान निर्भर से प्लावित करने का निवेदन किया तो उन्होंने कृपापूर्वक बड़े ही सहजभाव से स्वीकार कर लिया। इस बात की चर्चा अब हमने केन्द्र के सदस्यों के बीच की तो उनमें से कुछ सदस्य और भी हमारे साथ भाने को तत्पर हो गये। ___ यह क्रम साप्ताहिक ध्यानशाला के रूप में प्रारंभ हुआ और हम प्रति रविवार प्रातः ध्यान के लिए एकत्र होने लगे । इस बीच यहाँ भी कुछ साधकों को बड़े अलौकिक अनुभव हुये जो उन्होंने पृथक-पृथक लिपिबद्ध भी किये हैं। प्रस्तत लेख में इस ध्यानपद्धति को ज्यों का त्यों आपके सम्मुख प्रस्तुत किया है पू. म. सा. के आशीर्वाद एवं प्रापकी सच्ची लगन व सत्प्रयत्नों से, आप भी इससे लाभान्वित हो सकते हैं। यह पद्धति हमारी साथी सदस्या कु. विजया खड़ीकर द्वारा लिपिबद्ध की गई है । उन्हीं के शब्दों में प्रस्तुत है जैन साध्वी प. पूजनीय उमरावकुंवरजी 'अर्चनाजी' म. सा. के प्रवचन का सारांश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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