Book Title: Yoganubhutiya
Author(s): Chandrashekhar Azad
Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf

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Page 6
________________ पंचम खण्ड / 258 प्रत्यक्ष दर्शन का लाभ लें तो इस तैयार भूमि में प्रात्मदर्शन का बीज अंकुरित होने में विलम्ब नहीं होगा। यदि ऐसा हुआ तो और प्रानन्द की बात क्या हो सकती है ? उपरोक्त संकलन में जो भी अनुचित लगे उसे छोड़ दें और मेरी मूर्खता के लिए मुझे क्षमा करें और जो भी सत्य लगे वह प. पू. म. सा. का है, ऐसा समझकर उसे आत्मसात करने का प्रयास कीजिए। जो भी सही है ही प. पू. म. सा. का है और उन्हीं के चरणों में अर्पण करती हैं। अर्चनार्चन हरि ओ३म् योगकेन्द्र, इन्दौर. 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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