Book Title: Yatidincharya Vruttini Gaveshana
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ अन्तिमगाथा - संविग्ग-वग्ग -सायर-पणिय -सिरिदे वसूरि-उद्धवरिया । जाव रवि-दिवस-चरिया ता जयउ जईण दिणचरिया ॥६८९।। आना उपर मतिसागरसरिनी बत्ति छे. तेओनो सत्तासमय अढारमा सैकानो लागे छे. वधीने सत्तरमो सैको-एथी जूना होय तेम जणातुं नथी. भावदेवसूरिकृत य.दि.च. उपरनी वृत्तिमा तो तेओए प्रारंभमा ज कयुं छे केदिनचर्या श्रुतधुर्या कृतवान् श्री भावदे वसूरिवरः । सुकरां तनु ते रम्यां मति सागर एष तद् वृत्तिम् ॥ आ रोते श्रीदेवसूरिकृत य.दि.च.ना आदि भाग के अन्त भागमा तेओनो नामोल्लेख मळतो नथी. भंडारनी नामावलिमा ‘टीकाकार मतिसागरसूरि ए रीतनो उल्लेख छ- ४१४४ ग्रन्थाग्रनी वृत्तिनी रचना धणी ज शिथिल बंधवाळी अने कोई शिखाउ व्यक्तिए आ प्रथम प्रयत्न कर्यो होय तेवं प्रतीत थाय छे. वळी आ टीकानी जेटली पोथी मळी ते बधामा गाथा-६४ थी ६९ उपर वृत्ति नथी. क्यांक क्यांक वृत्ति अधूरी पण मूकी छे अने आश्चर्य तो ए छे के जेटली पोथीओ मळे छे ते बधी जाणे एक ज लहियाना हाथे लखायेली होय तेम लागे. पत्रसंख्या, कागळनी साइज, जात, अक्षर-मरोड बधं ज एकसरखं. अने जे पानानी जेटली लीटीथी, जे अक्षरथी वृत्ति अधूरी छे ते ज रोते भावनगर, लींबडी, अम. डेला.नी एम बधी पोथीओमा छे. आवी परिस्थितिमा एक आशानं किरण छे. डेलाना उपाश्रयनी य. दि. च.नी मतिसागरसूरि कृत टीकानो जे पोथी छे तेनी पहेली पूंठीमां झीणा अक्षरे आखं पातुं भरीने लखाण छे. सूक्ष्म नजरे ज्यारे ए लखाण वांच्यं -उकेल्यं त्यारे ख्याल आव्यो के आ तो श्री देवसूरिकृत. य. दि. च. नी पहेली गाथानी वृत्तिनी काची नकल छे. ए वृत्तिनी शैली जोईन थयं के श्री देवसूरिकृत य.दि.च. नी गरिमाने न्याय आपे तेवी आ टीका छे. पण आज दिन सधी घणां भंडारोमां आ दृष्टिए तपास करी पण हजी नजरे चढी नथी. कोई पण विद्वान मित्रने ए जोवामां आवे तो जरूर जाण करे, अत्यारे मूळ अने वृत्तिन संपादन थई गयं छे, पण कदाच आ विद्वत्तापूर्ण वृत्तिमळी आवे तो तेनं ज संपादन करवं ए आशाए आनं प्रकाशन रोकी राख्यं छे. विद्याप्रेमी सहृदय विद्वानोने ख्याल आवे ते माटे बन्ने वृत्तिनो प्रारंभ भाग आ साथे आप्यो छे-ते जोवाथी बन्नेनी शैलीनो पण परिचय मळी जशे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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