Book Title: Yadusundara Mahakavya
Author(s): Padmasundar, D P Raval
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 12
________________ ३ अप्रकाशित कृतियाँ : (१) परमतव्यवच्छेदस्याद्वादसुन्दरद्वात्रिंशिका (२) राजप्रश्नीयनाटयपदभजिका (३) षड्भाषागभितनेमिस्तव (४) वरमङ्गलिकास्तोत्र 4 (५) भारतीस्तोत्र (६) सारस्वतरूपमाला (७) हायनसुन्दर (e) सुन्दरप्रकाशशब्दार्णव अपरनाम पदार्थचिन्तामणि (९) रायमल्लाभ्युदयमहाकाव्य " (१०) जम्बूचरित्र (जम्बूअज्झयण) 10 (११) प्रज्ञापनासूत्रअवचरि11 यसुन्दर महाकाव्य में महाकाव्य के लक्षण : संस्कृत काव्यशास्त्र में दी गई महाकाव्य की व्याख्या को यदुसुन्दर पूर्ण रूप से अनुसरता है। वह सर्गबद्ध है । कुल सर्ग १२ हैं । कथानक अनुसार प्रत्येक सर्ग का नामकरण किया गया है। र्मा के अन्तमें छन्दपरिवर्तन होता है। सर्ग के अन्त में भावि सर्ग की कथा का सूचन मिलता है । यदुसुन्दर का आरम्भ 'चिद्रूप मह' की स्तुति से होता है। वस्तु पौराणिक है । पौराणिक १ अनूप संस्कृत लायब्रेरी, लालगढ पेलेस, बीकानेर, हस्तप्रत नं. ९७४६ २ वही, हस्तप्रत नं. ९९३६ ३ श्री अगरचंद नाहटा संग्रह, बीकानेर ४ वही ५ वही ६ पुण्यविजयजी संग्रह, ला.द. भा. सं विद्यामंदिर, अहमदाबाद, हस्तप्रत नं. ४०३ । जन शास्त्र भण्डार, राजस्थान, हस्तप्रत नं. ४१६ ७ ला. द. भा. सं. विद्यामंदिर, हस्तप्रत नं. १०८० । ज्ञानभंडार लायब्रेरी, बिकानेर, __हस्तप्रत नं. ५२७२ । ८ श्रीवनेचंदजी सिंधि, सुजानगढ (राजस्थान) । श्री अगरचन्द नाहटा संग्रह, बिकानेर । ला. द. भा. सं. विद्यामंदिर, हस्तप्रत नं १००० । कान्तिविजयजी शास्त्र संग्रह, छाणी, हस्तप्रत नं ४४८ ९ कल्याणचन्द्र पुस्तक भंडार, खंभात. देखिए 'जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास,' खण्ड १, पृ. ११८ १० ला. द. भा.सं विद्यामंदिर, हस्तप्रत नं. ५११६ ११ ला. द. संयह, ला. द. भा. सं. विद्यामंदिर, हस्तक्त नं. ७४०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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