Book Title: Yadusundara Mahakavya
Author(s): Padmasundar, D P Raval
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 10
________________ प्रस्तावना हस्तप्रत परिचय प्रस्तुत यदुसुन्दर महाकाव्य का संपादन उपलव्ध एकमात्र प्रति की सहायता से किया गया है। यह प्रति लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर में सुरक्षित है। यह प्रति मुनिश्री पुण्यविजयजी के संग्रह की है । इसका क्रमांक ४७९९ है । यह प्रति कागज पर लिखी हुई है। इस की लिपि नागरी है। इस प्रति का परिमाण २७.३४११.३ से. मी. है। इस प्रति में कुल पत्र ५४ हैं । अंतिम पत्र का क्रमांक ५३ है किन्तु क्रमांक ३६ दो पत्रों को दिया गया है। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां हैं। कुछ पत्र में १४-१५ पंक्तियाँ भी हैं । पंक्तियों में अक्षरों की संख्या ४५ से ५० तक पाई जाती है। प्रति की अवस्था अच्छी है। इस प्रति का लेखनकाल १८वीं शती का उत्तरार्ध है । यदुसुन्दर महाकाव्य के प्रणेता पद्मसुन्दर कवि श्री पद्मसुन्दर का जन्म राजस्थानगत तेजपुर गाँव में हुआ था, जो गाँव जोधपुरनरेश मालदेव के हस्तक था' । कवि की कर्मभूमि तेजपुर, जोधपुर, चरथावल . और दिल्ही रही । मुझफरनगर जिले के चरथावल गाँव के अग्रवाल वंश और गोइल गोत्र के तथा दिगम्बर सम्प्रदाय के काष्ठा संघ मथुरान्वय पकरगण के आम्नाय के श्रावक रायमल्ल, जोधपुरनरेश मालदेव और दिल्ही के मुगलसम्राट अकबर के वे आश्रित और सम्मानित कवि थे । वे नागपुरीय तपागच्छ के श्वेताम्बर संप्रदाय के प्रकाण्ड पंण्डित साधु थे । वे आनंदमेरु के शिष्य पद्ममेरु के शिष्य थे। पद्मसुन्दर नाम के साथ उपाधिवाचक शब्द महारक, उपाध्याय, वादी, गणि, सूरि, आचार्य, मनि. पांडे, पंडित आदि प्राप्त होते हैं । कवि के अपने विद्वान शिष्य का नाम हेमसूरि था । अकबर की विद्वत्परिषद् के ३३ हिन्दू सभ्यों में कवि पद्मसुन्दर का अग्र स्थान था । अकबर की सभा में पद्मसुन्दर ने चन्द्रकीर्ति को परास्त किया था जिसके कारण अकबर ने १. अनेकान्त, वर्ष ५, किरण ५-६, पृ. ४९-५२ २. जैन साहित्य का इतिहास, नाथूराम प्रेमी, पृ. ३९५-४०३ ३. जैन साहित्यनो इतिहास, मोहनलाल दलीचन्द देसाई, पृ.२४६ । संस्कृत साहित्य का इतिहास, वाचस्पति गैरोला, पृ.३६३-४ ४. इति श्रीमन्नागपुरीयतपागच्छनभोमणि पण्डितोत्तमश्रीपद्ममेरु शिरहित सुन्दर ...सुन्दरप्रकाशशब्दार्णवपुष्पिका । ५. पहावली समुच्चय, भाग २, चारित्रस्मारक ग्रन्थमाला क्र. ४४, अहमदाबाद, १९५०, पृ. २२४ ६. अनेकान्त, वर्ष ७, किरण ५-६, पृ. ४९-५२ ७. जैन परम्परानो इतिहास, भाग-२, पृ. ५९४ ८ आइने-अकबरी, पृ. ५३७-५५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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