Book Title: Vivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Author(s): Chandrashekhar Sharma
Publisher: Chandrashekhar Sharma

View full book text
Previous | Next

Page 137
________________ भाषाटीकासमेतः । ( १३१ ) धन्योहं कृतकृत्योहं विमुक्तोहं भवग्रहात् । नित्यानन्दस्वरूपोऽहं पूर्णोऽहं तदनुग्रहात् ॥ ४८९॥ श्रीगुरु महाराजकी कृपासे नित्य आनन्द स्वरूपको मैं प्राप्त हुआ इस लिये मैं पूर्ण हूं धन्य हूं और संसाररूप ग्रहसे विमुक्त होकर कृतकृत्य हूं ॥ ४८९ ॥ असङ्गोहमनङ्गोहमलिङ्गोहमभडुरः । प्रशान्तोऽहमनन्तोहममलोहं चिरंतनः ॥ ४९० ॥ गुरुके अनुग्रहसे मैं असङ्ग हुआ असङ्ग रहित चिह्न से रहित नाशसे रहित प्रशान्त अनन्त निर्मल पुरातन ब्रह्मस्वरूपको प्राप्त हुआ ।। ४९० ॥ अकर्ताहमभोक्ताहमविकारोहम क्रियः । शुद्धबोधस्वरूपोहं केवलोहं सदाशिवः ॥ ४९१ ॥ कर्तृत्व भोक्तृत्व विकार क्रिया इन सबसे रहित बोधस्वरूप केवल सदाशिवस्वरूप में हूँ ॥ ४९१ ॥ I द्रष्टुः श्रोतुर्वक्तुः कर्तुमकुर्विभिन्न एवाहम् । नित्यनिरन्तर निष्क्रियनिःसीमासङ्गपूर्णबोधात्मा ॥ ४९२ ॥ द्रष्टा श्रोता वक्ता कर्त्ता भोक्ता इन सबसे भिन्न नित्य सदा किपासे रॅहित निःसीम असङ्ग पूर्ण बोधस्वरूप आत्मा मैं हूं ॥ ४९२ ॥ नाहमिदं नाम दोप्युभयोरवभासकं परं शुद्धम् । बाह्याभ्यन्तरशून्यं पूर्ण ब्रह्मा द्वितीयमेवाहम् ॥ ४९३ ॥ न मैं यह हूं न तो वह हूं अर्थात् न स्थूल प्रपञ्च हूं न तो सूक्ष्म हूं किन्तु दोनों का प्रकाशक बाह्य आभ्यन्तरसे शून्य पूर्ण अद्वितीय परम शुद्ध ब्रह्म मैं हूँ ॥ ४९३ ॥ निरुपममनादितत्त्वं त्वमहमिदमद इति कल्पनादूरम् | नित्यानंदेकरसं सत्यं ब्रह्माद्वितीयमेवाहम् ॥ ४९४ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158