Book Title: Vitrag Stotram
Author(s): Hemchandracharya, Chandraprabhsagar
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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जर्यायपभ्रंशभाषाप्रधानत्वात्पूजाकारणप्रवणोपदेशकानाम् , विरल. समीभूतान्येवाधुना सिद्धान्तसाधनसिद्धान्तपुस्तकानि, नातःपरं विज्ञानामस्ति विषादपदमन्यजगत्रयेऽपि परमवलोक्यतद्विवेक. विलोचनेन स्थापयामास गुर्जरदेशीय श्रीसूरतपत्तनीय गुलाबचन्द्राख्यो देवचन्द्रतनुजोऽविगीतसिद्धान्तप्रसाधनपटुप्रसाधितज्ञानदिवाकर श्रीमद्गणभृत्प्रभृतिसकलवाङ्मयवितानविस्तारणलब्धावतारः, स्ववस्तृदेवचन्द्रपादव्यवस्थापितसप्ततिसहस्रमानद्रम्मव्यवस्थायां पुस्तकप्रसारणप्रवणान् शेषानपराँस्तत्कार्यवाहकाञ् जीवनचन्द्र, नगीनचन्द्रादीन्पुरस्कृत्य व्यवस्थाम् , तत्र चानेकतरगूढतत्त्वप्रकाशनप्रभाकरसिद्धान्तलेखनव्यवस्थां सतीमप्यनाहत्याल्पपु. स्तकप्रसारमात्रजायमानबहुद्रव्यव्ययां झटिति पुस्तकप्रसरणप्रगुणां मुद्रणकलां मुख्यतयाधिचकारः, भगिन्याश्च स्वीयाया 'विद्युन्म. त्या द्रव्यं तत्र सम्मील्य समानीय च कलान्तरोपार्जितं चान्यद्रविणजातं पूरितं लक्षोन्मितं लक्ष्य लक्षणविदां, तत्र चादितो मङ्गला. चरणमिव शिष्टानां परममङ्गलभूतमिदमुपचक्रमे मुद्रितुम् , ज्ञानधनैः साधुभिः संशोध्येति प्रस्ताव्य व्यवस्था प्रस्ताव्यतेऽधुना प्रक्रान्तो प्रन्थः कर्तृश्रोत्रधिकार प्रमाणादिभिः ।
__ तत्रावधीयतां तावदवधारणाधीधनैरिदम् , यदुत विधाता रोऽस्य विहितनिर्वीराधनमोचनाष्टादशदेशामारिपटहलब्धाकल्पस्थायियशःशरीराः, सार्धत्रिकोटिग्रन्थग्रन्थनलक्षितसर्वज्ञावतारत्व
१ शेठ देवचन्द्रस्य पुत्री बाई वीजकोरः। प्रसिद्धकर्ता.
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